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Erotica फागुन के दिन चार

motaalund

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रीत और गुड्डी ने मोर्चा संभाल लिया है दोनो एक आगे से दूसरी पीछे से रगड़ रही है जब दो रसीली कन्याओ के बीच कोई फंस जाए तो वह इनको देखकर ऐसे ही निकलने की कोसिस नही करेगा वही हाल आनंद का है दो कन्याओ के बीच मजा आ रहा है रीत दो बार बच गई लेकिन वह भी तो बचना नही चाहती हैं जब ऐसा चिकना जीजा मिला है लेकिन जब भी फटने की बारी आती हैं कोई न कोई आ जाता है
जब जब जो जो होता है...
तब तब सो सो होता है...
 

Shetan

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लेकिन बेचारे आनंद बाबू बदकिस्मत.. तीन-तीन मौका गंवा दिया....
Lekin moka ab bhi milega
 

Sanju@

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फागुन के दिन चार भाग १४

संध्या भाभी
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सामने संध्या भाभी, अपने हथेलियों में मुझे दिखाकर लाल रंग मल रही थी।

उनकी ट्रांसपरेंट सी साड़ी में उनका गोरा बदन झलक रहा था। भारी जोबन खूब लो-कट ब्लाउज़ से निकलने को बेताब थे। शायद विवाहित औरतों पे एक नए तरह का हो जोबन आ जाता है। वही हालत उनकी थी। चूतड़ भी खूब भरे-भरे।

देख कर हालत खराब हो रही थी मेरी बस मैंने सोच लिया आज कुछ भी हो जाये, और ऊपर झापर से नहीं, सीधे गपागप, गपागप, एक तो उमर में मेरी समौरिया, २२-२३ के बीच, मुझसे दो चार महीने बड़ी या छोटी, फिर शादी के बाद, जैसे कोई शेरनी आदमखोर हो जाए, उसके मुंह खून लग जाए, उस स्वाद के बाद सब भूल के, वही हालत नयी नयी शादी वाली, और संध्या भाभी को देख के लग रहा था, उनके पोर पोर से रस चू रहा था, जैसे किसी हारमोन की मादक महक आये, और आदमी बस उसी के महक में बहता, बहकता चला जाए,



और हालत संध्या भाभी की भी कम खराब नहीं थी,

साल भर भी नहीं हुए थे शादी के और शादी के बाद तो कोई दिन नागा नहीं जाता था, एक दिन भी गुलाबो को उपवास नहीं करना पड़ा, लेकिन मायके आये हफ्ते भर हो गया और, ऊपर से पांच दिन वाली छुट्टी कल खतम हुयी और उस दिन तो एकदम नहीं रहा जाता। इस चिकने पर निगाह पड़ते ही उन्होंने फैसला कर लिया था, आज छोडूंगी नहीं इस स्साले को, कुछ सोच के ऊपर वाले ने उपवास तोड़ने के लिए आहार भेजा है, थोड़ा नौसिखिया है, कुछ आगे बढ़ना होगा खुद और तब भी बात नहीं बनेगी तो सीधे ऊपर चढ़ के हुमच हुमच के, देखने से ही लम्बी रेस का घोडा लगता है, और फिर नयी उमर की नयी फसल के साथ तो और मजा आता है, स्साला चिचियाता रहेगी, मैं पेलती रहूंगी, लेकिन बिना पेले छोडूंगी नहीं।

“तुम दोनों रगड़ लो फिर मैं आती हूँ। इन्हें बनारस के ससुराल की होली का मजा चखाने…” वो मुश्कुराकर रीत और गुड्डी से बोली।



“ना, आ जाइए आप भी ना,... थ्री-इन-वन मिलेगा इनको…”
रीत और गुड्डी साथ-साथ बोली।


दूबे और चंदा भाभी बैठकर रस ले रही थी लेकिन कब तक? दूबे भाभी अपने अंदाज में बोली-

“अरे इस गंड़वे को तो एक साथ दो लेने की बचपन से आदत है। एक गाण्ड में एक मुँह में…”



“अरे इस बिचारे को क्यों दोष देती हैं, साली छिनार चुदक्कड़ इसकी मायकेवालियां। मरवाना, डलवाना, पेलवानातो इस साले बहनचोद के खून में है हरामी का जना…रंडी का छोरा “

भांग अब चंदा भाभी को भी चढ़ गई थी।



संध्या भाभी आ गई रीत और गुड्डी के साथ।

लेकिन मुझे बचने का रास्ता मिल गया।

गुड्डी ने थोड़ा हटकर उन्हें जगह दी मेरे चेहरे पे रंग मलने के लिए, वैसे भी वो दोनों शैतान अब कमर के नीचे इंटरेस्ट ज्यादा ले रही थी।

दोनों और साइड में हो गई। बस यहीं मुझे मौका मिला गया।



रंग वंग तो मेरे पास था नहीं। लेकिन संध्या भाभी की गोरी-गोरी पतली कमरिया, किसी इम्पोर्टेड कमरिया से भी ज्यादा सेक्सी रसीली थी। उनका गोरा चिकना पेट कुल्हे के भी नीचे बंधी साड़ी से साफ खुला था और मेरे दोनों हाथ बस अपने आप पहुँच गए। संध्या भाभी के हाथ तो मेरे गालों पे बिजी हो गए और इधर मेरे हाथों ने पहले तो उनकी पतली कमरिया पकड़ी और फिर चुपके से साए के अन्दर फँसी साड़ी को हल्के-हल्के निकालना शुरू कर दिया। काफी कुछ काम हो चुका था तब तक मेरी आँखें उनकी चोली फाड़ती चूचियों पे पड़ी और मेरे लालची हाथ पेट से ऊपर, लाल ब्लाउज़ की ओर।

औरत को और कुछ समझ में आये ना आये लेकिन मर्द की चाहे निगाह ही उसके उभारों की ओर पड़ती है तो वो चौकन्नी हो जाती है, और यही हुआ।

इस आपाधापी में गुड्डी और रीत की पकड़ भी कुछ हल्की हो चुकी थी।

संध्या भाभी ने मेरा हाथ रोकने की कोशिश की।

मेरे एक हाथ में उनके आँचल का छोर था। मैंने उसे पकड़ा और कसकर झटका मारकर तीनों की पकड़ से बाहर। जब तक संध्या भाभी समझती समझती, मैंने उनके चारों ओर एक चक्कर मार दिया। साये से तो साड़ी मैं पहले ही निकाल चुका था, और उनकी साड़ी मेरे हाथ में।

संध्या भाभी, सिर्फ एक छोटी सी खूब टाइट लाल चोली और कूल्हे के सहारे खूब नीचे बांधे साये में , नाभी से कम से कम एक बित्ते नीचे, बस चार अंगुल और नीचे, और भाभी की राजरानी से मुलकात हो जाती।



और मैं। बस बेहोश नहीं हुआ। क्या मस्त जोबन लग रहे थे, एकदम तने खड़े, उभार चुनौती देते। मैंने तय कर लिया इन उभारों को सिर्फ पकड़ने मसलने से नहीं चलेगा, जब तक इन्हे पकड़ के, मसलते हुए, हुमच हुमच कर, गंगा स्नान नहीं किया,एकदम अंदर तक डुबकी नहीं लगायी, तो सब बेकार। भांग का नशा तो तगड़ा होता ही है लेकिन उसके ऊपर अगर जोबन का नशा चढ़ जाए तो फिर तो कोई रोक नहीं सकता कुछ होने से।

और ऊपर से मेरी हालत संध्या भाभी भी समझ रही थीं, वो और कभी अपने जोबन उभार कर, कभी झुक के, क्लीवेज दिखा के, ललचा भी रही थीं, उकसा भी रही थीं और बता भी रही थी की वो खुद छुरी के नीचे आने के लिए तैयार हैं।

और पल भर बाद जब मैं होश में आया तो मैंने संध्या भाभी से बोला,

“भाभी इत्ती महंगी साड़ी कहीं रंग से खराब हो जाती। मैं नहीं लगाता लेकिन आपकी इन दोनों बुद्धू बहनों का तो ठिकाना नहीं था ना…” मैंने रीत और गुड्डी की ओर इशारा करके कहा।



वो दोनों दूर खड़ी खिलखिला रही थी।



“फिर होली तो भाभी से खेलनी है उनके कपड़ों से थोड़े ही…” बहुत भोलेपन से मैं बोला।


बिचारी संध्या भाभी शर्माती, लजाती और,... ब्लाउज़ साए में लजाते हुए वो बहुत खूबसूरत लग रही थी। उनके लम्बे काले घने बाल किसी तेल शम्पू के विज्ञापन लग रहे थे और पल भर के लिए वो झुकी अपने साए को थोड़ा ऊपर करने की असफल कोशिश करने तो, उनका ब्लाउज़ इत्ता ज्यादा लो-कट था की क्लीवेज तो दिखा ही, निपलों तक की झलक नजर आ गई।

मैं तो पत्थर हो गया- खासतौर पे 8” इंच तक।


साया भी इतना कसकर बंधा था की नितम्बों का कटाव, जांघ की गोलाइयां सब कुछ नजर आ रही थीं। अब तक तो मैं बिना हथियार बारूद के लड़ाई लड़ रहा, लेकिन मैंने सोचा थोड़ा रंग वंग ढूँढ़ लिया जाय। मैंने इधर-उधर निगाह दौड़ाई, कहीं कुछ नजर नहीं आया।
गुड्डी और रीत ने संध्या भाभी को भी रंग लगाने के लिए बुला लिया है संध्या भाभी को भी पूरा मौका मिल रहा है आनंद बाबू भी थोड़े थोड़े सयाने हो गए हैं एक ब्याहता के जोबन को देखने के लिए उसकी साड़ी उतार दी क्या मस्त है संध्या भाभी आनंद के नैना तो कबूतरो से ही नही हट रहे हैं
 

Sanju@

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संध्या भाभी संग होली

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“क्या ढूँढ़ रहे हो लाला?” हँसकर दूबे भाभी ने पूछा।



“रंग वंग। कुछ मिल जाय…” मैंने दबी जुबान में कहा।



दूबे भाभी गुड्डी और चंदा भाभी से कम नहीं थीं। जैसे वो दोनों, गुड्डी और रीत मुझे चढ़ा रहीं थी, ससुराल है चढ़ने के पहले पूछने की कोई जरूरत नहीं, उसी तरह दूबे भाभी तो उन दोनों से भी एक हाथ आगे, मुझे ग्रीन सिग्नल देते, अपने अंदाज में बोलीं,

“अरे लाला तुम ना। रह गए। बिन्नो ठीक ही कहती है तुम न तुम्हें कुछ नहीं आता सिवाय गाण्ड मराने के और अपनी बहनों के लिए भंड़ुआगीरी करने के। अरे बुद्धुराम ससुराल में साली सलहज से होली खेलने के लिए रंग की जरूरत थोड़े ही पड़ती है। अरे गाल रंगों काटकर, चूची लाल करो दाब के और। …”

आगे की बात चंदा भाभी ने पूरी की- “चूत लाल कर दो चोद-चोद के…”

लेकिन साथ-साथ ही उन्होंने अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखों से इशारा भी कर दिया की रंग किधर छुपाकर रखा है उन सारंग नयनियों ने।



गुझिया के प्लेटे के ठीक पीछे पूरा खजाना। रंग की पुड़िया, डिब्बी, पेंट की ट्यूब इतनि की कई घर होली खेल लें।

और मैंने सब एक झटके में अपने कब्जे में कर लिया और फिर आराम से पक्के लाल रंग की ट्यूब खोलकर संध्या भाभी को देखते हुए अपने हाथ पे मलना शुरू कर दिया।



“ये बेईमानी है तुमने मेरी साड़ी खींच ली और खुद…” संध्या भाभी ने ताना दिया।

“अरे भाभी आप ने अभी भी ऊपर दो और नीचे दो पहन रखे हैं। मैंने तो सिर्फ दो…” हँसकर मैं बोला।

" तो उतार दो न, बिन्नो मना थोड़े ही करेंगी, तुमने साडी उतारी उन्होंने मना किया क्या, अरे कुछ भी करोगे तो मेरी ननद नहीं मना करेंगी आज "

चंदा भाभी ने मुझे चढ़ाया, आखिर संध्या भाभी उनकी ननद लगती थीं और ननद की रगड़ाई हो, खुलेआम हो ये तो हर भाभी चाहती है।

रंग अब संध्या भाभी के हाथ में भी था और मेरे भी। बस इसू यही था। कौन पहल करे?

भाभी ने पहले तो टाप से निकलती मेरी बाहों की मछलियां देखीं और फिर जो उनकी निगाह मेरे बर्मुडा पे पड़ी। तम्बू पूरी तरह तना हुआ था।

जिम्मेदार तो वही थी, बल्की उनके चोली फाड़ते गोरे गदाराए मस्त जोबन ‘सी’ बल्की ‘डी’ साइज रहे होंगे, और यहीं उन्होंने गलती कर दी।

उनका ध्यान वहीं टिका हुआ था और मैं एक झटके में उनके पीछे और मेरे दायें हाथ ने एक बार में ही उनके हाथों समेत कमर को जकड़ लिया।



अब वो बिचारी हिल-डुल नहीं सकती थी। मेरा रंग लगा बायां हाथ अभी खाली था।

लेकिन मुझे कोई जल्दी नहीं थी। मैं देख चुका था अपने तन्नाये लिंग का उनपर जादू। अपने दोनों पैरों के बीच मैंने उनके पैर फँसा दिए कैंची की तरह। अब वो हिल डुल भी नहीं सकती थी। मेरा तना मूसल अब सीधे उनके चूतड़ की दरार पे। और हल्के-हल्के मैं रगड़ने लगा। इस हालत में ना तो रीत और गुड्डी देख सकती थी, ना चन्दा और दूबे भाभी की मैं क्या कर रहा हूँ।



“क्या कर रहे हो?” संध्या भाभी फुसफुसाईं।



“वही जो ऐसी सुपर मस्त और सेक्सी भाभी के साथ होली में करना चाहिए…” मैं बोला।

“मक्खन लगाने में तो उस्ताद हो तुम…” वो मुश्कुराकर बोली फिर मेरी ओर मुड़कर मेरी आँखों में अपनी बड़ी-बड़ी काजल लगी आँखें डालकर हल्के से बोली- “और वो जो तुम पीछे से डंडा गड़ा रहे हो, वो भी होली का पार्ट है क्या?”

“एकदम। मैं आपको अपनी पिचकारी से परिचय करा रहा हूँ…” मैं भी उसी तरह धीमे से बोला।

“भगवान बचाए ऐसी पिचकारी से। ये रीत और गुड्डी को ही दिखाना…”


“अरे वो तो बच्चियां हैं। पिचकारी का मजा लेने की कला तो आपको ही आती है…” मैंने मस्का लगाया।

“जरूर बच्चियां हैं, लपलपाती रहती हैं, तुम्हीं बुद्धू हो सामने पड़ी थाली। और जरा सा जबरदस्ती करोगे तो पूरा घोंट लेंगी…” वो बोली।

मैंने गाण्ड की दारार में लिंग का दबाव और बढ़ाया और अपनी रंग से डूबी दो उंगलियां उनके चिकने गालों पे छुलाते मैं बोला-

“लेकिन भाभी मुझे तो मालपूवा ही पसंद है…”

और रंग से दो निशान मैंने उनके गोरे गाल पे बना दिया लेकिन मेरी निगाह तो उनके लो-कट ब्लाउज़ से झाँकते दोनों गोरी गोलाइयों पे टिकी थी। क्या मस्त चूचियां थी। और मेरा हाथ सरक के सीधे उनकी गर्दन पे।

“ऊप्स क्या करूँ भाभी आपके गाल ही इतने चिकने हैं की मेरा हाथ सरक गया…” मैं बोला।

वो मेरी शरारत जानती थी।

लाल ब्लाउज़ लो-कट तो था ही आलमोस्ट बैकलेश भी था। सिर्फ एक पतली सी डोरी पीछे बंधी थी और गहरा गोल कटा होने से सिर्फ दो हुक पे उन भारी गदराये जोबनों का भार। ब्रा भी लेसी जालीदार हाल्फ कप वाली।



उन्होंने रीत और गुड्डी को साथ आने की गुहार लगाई-


“हे आओ ना तुम दोनों। हम मिलकर इनकी ऐसी की तैसी करेंगे ना…” संध्या भाभी बोली।



मैं उनके पीछे खड़ा था वहीं से मैंने रीत को आँख मारी और साथ आने से बरज दिया। गुड्डी पहले से ही चन्दा भाभी के पास चली गई थी किसी काम से।

रीत मुश्कुराकर बोली- “अरे आप काफी हैं और वैसे भी मैं तो सुबह से इनकी खिंचाई कर रही हूँ। जहाँ तक गुड्डी का सवाल है वो तो अगले पूरे हफ्ते इनके साथ रहेगी। इसलिए अभी आप ही। वरना कहेंगी की हिस्सा बटाने पहुँच गई…”

और ये कहकर उसने थम्स-अप का साइन चुपके से दे दिया।

अगले ही पल मेरा हाथ फिसल के चोली के अन्दर और चटाक-चटाक दो हुक टूट गए।

क्या स्पर्श सुख था, जैसे कमल के ताजा खिले दो फूल। ब्लाउज़ बस उनके उभारों के सहारे अटका था। मेरे हाथ का रंग पूरी तरह जालीदार शीयर लेसी ब्रा से छनकर अन्दर और उनके दोनों गोरे-गोरे कबूतर लाल हो गए। उनकी ब्राउन चोंचें भी साफ-साफ दिख रही थीं। मेरे हाथ अपने आप उन मस्त रसीले जवानी के फूलों पे भींच गए। एकदम मेरी मुट्ठी के साइज के, रीत से बस थोड़े ही बड़े, एकदम कड़े-कड़े।



वो सिसकी और बोली- “क्या कर रहे हो सबके सामने?” और उन्होंने एक बार फिर मदद के लिए रीत की ओर देखा।



लेकिन रीत , वो बस मुश्कुरा दी। मदद आई लेकिन दूसरी ओर से। मेरे पीछे से। वो तो कहिये मेरी छठी इन्द्रिय ने मेरा साथ दिया।

मैंने आँख के किनारे से देखा की चंदा भाभीअन्दर से, एक बाल्टी रंग के साथ , पूरी की पूरी बाल्टी भाभी ने मेरी ओर पीछे से।

अब चंदा भाभी भी होली में शामिल हो गयी थीं।

लेकिन मैं मुड़ गया और रंग भरी बाल्टी और मेरे बीच संध्या भाभी, और सारा का सारा रंग उनके ऊपर।

पूरा गाढ़ा लाल रंग। साड़ी तो मैंने पहले ही खींचकर दुछत्ती पे फेंक दी थी। रंग सीधे साए पे और वो पूरी तरह उनकी गोरी चिकनी जाँघों, लम्बे छरहरे पैरों से चिपक गया। अब कल्पना करने की कोई जरूरत नहीं थी। सब कुछ साफ-साफ दिख रहा था। रंग पेट से बह के साए के अन्दर भी चला गया था। इसलिए जांघों के बीच वाली जगह पे भी। अन्दर रंग, बाहर रंग।



चंदा भाभी के हाथ में ताकत बहुत थी और उन्होंने पूरी जोर से रंग फेंका था। सबसे खतरनाक असर ऊपर की मंजिल पे हुआ, बचा खुचा ब्लाउज़ का आखिरी हुक भी चला गया। दोनों जोबन ब्रा को फाड़ते हुए और ब्रा भी एक तो जालीदार और दूसरी लगभग ट्रांसपैरेंट। जैसे बादल की पतली सतह को पार करके पूनम के चाँद की आभा दिखे बस वैसे ही। लेकिन उनकी गुदाज गदराई चूचियां थोड़ी बच गईं क्योंकी वो मेरे हाथों के कब्जे में थी।



“थैंक यू भाभी…” मैंने चन्दा भाभी की ओर देखकर उन्हें चिढ़ाते हुए मुश्कुराकर कहा।



“बताती हूँ तुम्हें अपनी भाभी के पीछे छिपते हो। शर्म नहीं आती…” वो हँसकर बोली।
आनंद बाबू बुद्धू के बुद्धू रहे दुबे भाभी ने सही कहा है जब रस से भरे गुब्बारे सामने हो तो उनका रस निकालो कहा रंग के चक्कर में पड़ रहे हो

दुबे भाभी ने मस्त डायलॉग मारा है आनंद को
“अरे लाला तुम ना। रह गए। बिन्नो ठीक ही कहती है तुम न तुम्हें कुछ नहीं आता सिवाय गाण्ड मराने के और अपनी बहनों के लिए भंड़ुआगीरी करने के। अरे बुद्धुराम ससुराल में साली सलहज से होली खेलने के लिए रंग की जरूरत थोड़े ही पड़ती है। अरे गाल रंगों काटकर, चूची लाल करो दाब के और। …”
आगे की बात चंदा भाभी ने पूरी की- “चूत लाल कर दो चोद-चोद के…” ये बात मस्त कही है उपर के गुब्बारे और नीचे के कुएं का रस निकालो
रीत और गुड्डी ने आनंद को पूरा मौका दे दिया है कि ये सुसराल है सुसराल में साली,भाभी जो मिले उसके जोबन को दबा दो उन्होंने संध्या भाभी के साथ मस्ती करने का पूरा मौका दिया है चंदा भाभी ने तो रात में मजा ले लिया है वह भी आनंद की मदद कर रही है
 
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दूबे भाभी

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तभी खट खट की सीढ़ी पे आवाज हुई और गुड्डी बोली- “अरे दूबे भाभी जल्दी…”

मैं और रीत तुरंत कपड़े ठीक करने में एक्सपर्ट हो गए थे। मैंने उसकी थांग ठीक की और उसने तुरंत अपनी पाजामी का नाड़ा बाँध लिया। मैंने उसका कुरता खींचकर नीचे कर दिया। गुड्डी भी। उसने मेरा बर्मुडा ऊपर सरकाया और हम तीनों अच्छे बच्चों की तरह टेबल पे किसी काम में बिजी हो गए।

चंदा भाभी भी बाहर आ गई थी और हम लोगों को देखकर मुश्कुरा रही थी। उन्हें अच्छी तरह अंदाजा था।

तब तक सीढ़ी पर से दूबे भाभी आई।

मैं उन्हें देखता ही रह गया।

जबरदस्त फिगर, दीर्घ नितंबा, गोरा रंग, तगड़ा बदन, भारी देह लेकिन मोटी नहीं। मैं देखता ही रह गया। लाल साड़ी, एकदम कसी, नाभि के नीचे बँधी, सारे कर्व साफ-साफ दिखते, स्लीवलेश लो-कट आलमोस्ट बैक-लेश लाल ब्लाउज़, गले से गोलाइयां साफ-साफ झांकती, कम से कम 38डीडी की फिगर रही होगी। नितम्ब तो 40+ विज्ञापन वाली जो फोटुयें छपती हैं। एकदम वैसे ही। पूरी देह से रस टपकता। लेकिन सबसे बड़ी बात थी, एकदम अथारटी फिगर। डामिनेटिंग एकदम सेक्सी।


उन्होंने सबसे पहले रीत और गुड्डी को देखा और फिर मुझे। नीचे से ऊपर तक।

उनकी निगाह एक पल को मेरे बरमुडे में तने लिंग पे पड़ी और उन्होंने एक पल के लिए चंदा भाभी को मुश्कुराकर देखा।

लेकिन जब मेरे चेहरे पे उनकी नजर गई तो एकदम से जैसे रंग बदल गया हो। मेरे रंग लगे पुते चेहरे को वो ध्यान से देख रही थी। फिर उन्होंने गुड्डी और रीत को देखा, तो दोनों बिचारियों की सिट्टी पिट्टी गम।

“ये रंग। किसने लगाया?” ठंडी आवाज में वो बोली।

किसी ने जवाब नहीं दिया। फिर चंदा भाभी बोली- “नहीं होली तो आपके आने के बाद ही शुरू होने वाली थी लेकिन। बच्चे हैं खेल खेल में। जरा सा…”
“वो मैंने पूछा क्या? सिर्फ पूछ रही हूँ। रंग किसने लगाया?”

“वो जी। इसने…” गुड्डी ने सीधे रीत की ओर इशारा कर दिया।



बिचारी रीत घबड़ा गई। वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया-

“नहीं भाभी। बात ऐसी है की। इन दोनों की गलती नहीं है। वो तो मैंने ही। पहले तो मैंने ही उन दोनों को रंग लगाया। ये दोनों तो बहुत भाग रही थी। फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिलकर मेरा ही हाथ पकड़कर मेरे हाथ का रंग मेरे मुँह पे…”

दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा। चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उंगलियों की रंग में डूबी छाप। एक जोबन पे काही, स्लेटी और दूसरे पे सफेद वार्निश। और वही रंग मेरे गाल पे।

वो मुश्कुरायीं और थोड़ा माहौल ठंडा हुआ।

“अरे गलती तुम्हारी नहीं। ऐसी सालियां हों, ऐसे मस्त जोबन हो तो किसका मन नहीं मचलेगा?”

वो बोली और पास आकर एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था।

“बहुत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में…” वो बोली और फिर कहा- “चलो रंग छुड़ाओ। साफ करो एकदम…”



मैं जब छत पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोली- “तुम नहीं। ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं? जब तक ससुराल में हो हाथ का इश्तेमाल क्यों करोगे, इनके रहते?”

हम तीनों वाश बेसिन पे पहुँचे। मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली- “ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हें तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के…”


“वो भी बिचारे कर नहीं पाते। कोई ना कोई आ टपकता है…” रीत मुँह बनाकर बोली।


“मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी। तेरी इनकी किश्मत…” मुँह बनाकर गुड्डी बोली और चली गई।


“करूँगा रीत और तीन बार करूंगा कम से कम। आखीरकर, तुम्हीं ने तो कहा था की हमारा रिश्ता ही तिहरा है। मुझे मेरी और तेरी किश्मत के बारे में पूरी तरह से मालूम है…” हँसकर मैंने हल्के से कहा।



रीत का चेहरा खिल गया। बोली- “एकदम और मेरी गिनती थोड़ी कमजोर है। तुम तीन बार करोगे और मैं सिर्फ एक बार गिनूंगी। फिर दुबारा से…”

तब तक गुड्डी आ गई उसके हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था। दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी।

“यार हमारी चालाकी पकड़ी गई…” रीत बोली।

“हाँ दूबे भाभी के आगे…” गुड्डी बोली।



तब मुझे समझ में आया की प्लानिंग गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का। मेरे चेहरे पे जो फाउंडेशन और तेल गुड्डी ने लगाया था, चिकनी चमेली के बाद उसका फायदा ये होता की उसके ऊपर रंग पेण्ट वार्निश कुछ भी लगता, वो पक्का नहीं होता, और नहाते समय साबुन से रगड़ने से छूट जाता और उसके ऊपर से रीत और गुड्डी रंग और पेण्ट लगा देती तो किसी को अंदाज भी नहीं लगता की नीचे तेल या ऐसा कुछ लगा है। लेकिन दूबे भाभी की तेज निगाह, वो लेडी शर्लाक होम्स की, रीत की भी भाभी थीं, बस उन्होंने फरमान जारी कर दिया

दूबे भाभी गरजीं- “हे चंदा चकोरी। जरा यार से गप बंद करो और इसके बाद साबुन से, एक बूँद रंग की नहीं दिखनी चाहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की…”

उन दोनों के हाथ जोर-जोर से चलने लगे।

मैंने चिढ़ाया- “हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे, उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से…”

“चुप…” जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की।

तीन-चार बार चेहरा साफ किया। मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर ‘बहुत तैयारी’ से तेल वेल लगाकर जिससे रंग का असर ना पड़े। आया था। किशोर था 11-12 में पढ़ने वाला। दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपड़े उतरवाए। पूरा नंगा किया और फिर वहीं छत पे सबके सामने खुद होज से। फिर कपड़े धोने वाला साबुन लगाकर फिर निहुराया।

“चल। जैसे पी॰टी॰ करता है, टांग फैला और और। पैरों की उंगलियां छू। हाँ चूतड़ ऊंचा कर और। और साले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाऊँगी…” वो बोली।

उसने कर दिये फिर सीधे गाण्ड में होज डालकर- “क्यों बहन के भंड़ुवे। गाण्ड में भी तेल लगाकर आया था क्या गाण्ड मरवाने का मन था क्या?” और वो रगड़ाई हुई उसकी की 10 दिन तक रंग नहीं छूटा।

चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की ओर मुड़ा तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठा। वो मुश्कुराकर बोली-

“उन्हह अब दुल्हन का रंग निखरा है…” और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा-


“क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले…”
Bach gayi reet
 

komaalrani

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वाह संध्या रानी आ गई. और मस्ती छा गई. रंग लगाने का मौका तों संध्या भाभी को भी पूरा दिया जा रहा है. दो कवारी हसीनाओ गुड्डी और रीत के बिच संध्या भाभी. नई नई शादी वाली. मतलब ताज़ा ताज़ा खेल खा के आई है. बात तों सही है. नई दुल्हन को कौन छोड़ेगा. हार रोज गचक कर. वो गाना है ने सुबह से लेकर शाम तक.. शाम से लेकर सुबह तक मुजे प्यार करो.

पर आनंद बाबू ससुराल मे हो तुम होने वाले. शर्माना मत. और ससुराल मे तों गरियाया जाएगा ही. और तुम वैसे भी माल हो. क्या कहा डूबे भाभी ने. साला गांडु है. एक पीछे से लेगा. और एक मुँह से. अरे सब उसकी महतारी का नतीजा है. पूरा परिवार ही ऐसा है. सब की आदत है.

पर आनंद बाबू को मान ना पड़ेगा. संध्या भाभी को जकड ही लिया. खेली खाई जवान दुल्हन का रूप निखार भी बड़ा जोरो पर चढ़ता है. गदरा जाता है. ऊपर से तुम महंगी साड़ी बोल कर उतरवा दिये. संध्या रानी का कसा हुआ जोबन देखने.

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एकदम सही कहा आपने, ससुराल शर्माने के लिए थोड़ी होती है। लड़कियां तक तो शर्माती नहीं, ससुराल पहुँच के बस टांग उठाने का इन्तजार करती हैं। और फिर जो जितना शरमाएगा उतना ही ससुराल में रगड़ा जाएगा, साली सलहज तो ऐसे बालक सम लड़कों का इन्तजार करती हैं जो आनंद बाबू के साथ हो रहा है।
 

komaalrani

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Thanks so much. aapke comment himmat bhi badhate hain aur utsaah bhi.
 

komaalrani

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Wow Madam...what a super sexy update...

The description of Sandhya Bhabhi (from Anand's POV) and of Anand from Sandhya's POV was awesome..
aag dono taraf lagi hui hai...Anand babu and Sandhya...
Also, in the beginning, Sandhya Bhabhi's figure description was awesomely sexy!!

Anand Babu's "plan (think)" of "Ganga Snan" of Sandhya bhabhi was extremely erotic...as well as her sexy stripping...
Dubey Bhabhi and Chanda Bhabhi's sexy leg pulling of Anand babu...well...the words and sentences drip with utter sexiness...
And the "Strategic Time Out" was a well thought out plan...

As you wrote in your previous comment that the next 4-5 updates will be Holi based....if this is just the beginning then I am sure, each new next few updates will take the erotic flavor a few notches higher with each update...
No wonder..you are an undisputed queen of Holi Erotica...no one comes even remotely close to writing even 5% of the way you write these holi scenes and the intricate minute details of each character involved.

Truly outstanding update... :thumbup: :thumbup: :thumbup: 👏 👏 👏 👏 ✌️✌️✌️


komaalrani

Such effusive praise coming from such a popular and excellent writer enthuses me beyond imagination. There are dozens of stories that hanker for a word of praise from you. You are correct, both Anand Babu and Sandhya Bhabhi want to make it Deh ki Holi, let us see what happens. Thanks again for carving time out from your busy schedule and supporting me.
 
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