संध्या भाभी संग होली
“क्या ढूँढ़ रहे हो लाला?” हँसकर दूबे भाभी ने पूछा।
“रंग वंग। कुछ मिल जाय…” मैंने दबी जुबान में कहा।
दूबे भाभी गुड्डी और चंदा भाभी से कम नहीं थीं। जैसे वो दोनों, गुड्डी और रीत मुझे चढ़ा रहीं थी, ससुराल है चढ़ने के पहले पूछने की कोई जरूरत नहीं, उसी तरह दूबे भाभी तो उन दोनों से भी एक हाथ आगे, मुझे ग्रीन सिग्नल देते, अपने अंदाज में बोलीं,
“अरे लाला तुम ना। रह गए। बिन्नो ठीक ही कहती है तुम न तुम्हें कुछ नहीं आता सिवाय गाण्ड मराने के और अपनी बहनों के लिए भंड़ुआगीरी करने के। अरे बुद्धुराम ससुराल में साली सलहज से होली खेलने के लिए रंग की जरूरत थोड़े ही पड़ती है। अरे गाल रंगों काटकर, चूची लाल करो दाब के और। …”
आगे की बात चंदा भाभी ने पूरी की- “चूत लाल कर दो चोद-चोद के…”
लेकिन साथ-साथ ही उन्होंने अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखों से इशारा भी कर दिया की रंग किधर छुपाकर रखा है उन सारंग नयनियों ने।
गुझिया के प्लेटे के ठीक पीछे पूरा खजाना। रंग की पुड़िया, डिब्बी, पेंट की ट्यूब इतनि की कई घर होली खेल लें।
और मैंने सब एक झटके में अपने कब्जे में कर लिया और फिर आराम से पक्के लाल रंग की ट्यूब खोलकर संध्या भाभी को देखते हुए अपने हाथ पे मलना शुरू कर दिया।
“ये बेईमानी है तुमने मेरी साड़ी खींच ली और खुद…” संध्या भाभी ने ताना दिया।
“अरे भाभी आप ने अभी भी ऊपर दो और नीचे दो पहन रखे हैं। मैंने तो सिर्फ दो…” हँसकर मैं बोला।
" तो उतार दो न, बिन्नो मना थोड़े ही करेंगी, तुमने साडी उतारी उन्होंने मना किया क्या, अरे कुछ भी करोगे तो मेरी ननद नहीं मना करेंगी आज "
चंदा भाभी ने मुझे चढ़ाया, आखिर संध्या भाभी उनकी ननद लगती थीं और ननद की रगड़ाई हो, खुलेआम हो ये तो हर भाभी चाहती है।
रंग अब संध्या भाभी के हाथ में भी था और मेरे भी। बस इसू यही था। कौन पहल करे?
भाभी ने पहले तो टाप से निकलती मेरी बाहों की मछलियां देखीं और फिर जो उनकी निगाह मेरे बर्मुडा पे पड़ी। तम्बू पूरी तरह तना हुआ था।
जिम्मेदार तो वही थी, बल्की उनके चोली फाड़ते गोरे गदाराए मस्त जोबन ‘सी’ बल्की ‘डी’ साइज रहे होंगे, और यहीं उन्होंने गलती कर दी।
उनका ध्यान वहीं टिका हुआ था और मैं एक झटके में उनके पीछे और मेरे दायें हाथ ने एक बार में ही उनके हाथों समेत कमर को जकड़ लिया।
अब वो बिचारी हिल-डुल नहीं सकती थी। मेरा रंग लगा बायां हाथ अभी खाली था।
लेकिन मुझे कोई जल्दी नहीं थी। मैं देख चुका था अपने तन्नाये लिंग का उनपर जादू। अपने दोनों पैरों के बीच मैंने उनके पैर फँसा दिए कैंची की तरह। अब वो हिल डुल भी नहीं सकती थी। मेरा तना मूसल अब सीधे उनके चूतड़ की दरार पे। और हल्के-हल्के मैं रगड़ने लगा। इस हालत में ना तो रीत और गुड्डी देख सकती थी, ना चन्दा और दूबे भाभी की मैं क्या कर रहा हूँ।
“क्या कर रहे हो?” संध्या भाभी फुसफुसाईं।
“वही जो ऐसी सुपर मस्त और सेक्सी भाभी के साथ होली में करना चाहिए…” मैं बोला।
“मक्खन लगाने में तो उस्ताद हो तुम…” वो मुश्कुराकर बोली फिर मेरी ओर मुड़कर मेरी आँखों में अपनी बड़ी-बड़ी काजल लगी आँखें डालकर हल्के से बोली- “और वो जो तुम पीछे से डंडा गड़ा रहे हो, वो भी होली का पार्ट है क्या?”
“एकदम। मैं आपको अपनी पिचकारी से परिचय करा रहा हूँ…” मैं भी उसी तरह धीमे से बोला।
“भगवान बचाए ऐसी पिचकारी से। ये रीत और गुड्डी को ही दिखाना…”
“अरे वो तो बच्चियां हैं। पिचकारी का मजा लेने की कला तो आपको ही आती है…” मैंने मस्का लगाया।
“जरूर बच्चियां हैं, लपलपाती रहती हैं, तुम्हीं बुद्धू हो सामने पड़ी थाली। और जरा सा जबरदस्ती करोगे तो पूरा घोंट लेंगी…” वो बोली।
मैंने गाण्ड की दारार में लिंग का दबाव और बढ़ाया और अपनी रंग से डूबी दो उंगलियां उनके चिकने गालों पे छुलाते मैं बोला-
“लेकिन भाभी मुझे तो मालपूवा ही पसंद है…”
और रंग से दो निशान मैंने उनके गोरे गाल पे बना दिया लेकिन मेरी निगाह तो उनके लो-कट ब्लाउज़ से झाँकते दोनों गोरी गोलाइयों पे टिकी थी। क्या मस्त चूचियां थी। और मेरा हाथ सरक के सीधे उनकी गर्दन पे।
“ऊप्स क्या करूँ भाभी आपके गाल ही इतने चिकने हैं की मेरा हाथ सरक गया…” मैं बोला।
वो मेरी शरारत जानती थी।
लाल ब्लाउज़ लो-कट तो था ही आलमोस्ट बैकलेश भी था। सिर्फ एक पतली सी डोरी पीछे बंधी थी और गहरा गोल कटा होने से सिर्फ दो हुक पे उन भारी गदराये जोबनों का भार। ब्रा भी लेसी जालीदार हाल्फ कप वाली।
उन्होंने रीत और गुड्डी को साथ आने की गुहार लगाई-
“हे आओ ना तुम दोनों। हम मिलकर इनकी ऐसी की तैसी करेंगे ना…” संध्या भाभी बोली।
मैं उनके पीछे खड़ा था वहीं से मैंने रीत को आँख मारी और साथ आने से बरज दिया। गुड्डी पहले से ही चन्दा भाभी के पास चली गई थी किसी काम से।
रीत मुश्कुराकर बोली- “अरे आप काफी हैं और वैसे भी मैं तो सुबह से इनकी खिंचाई कर रही हूँ। जहाँ तक गुड्डी का सवाल है वो तो अगले पूरे हफ्ते इनके साथ रहेगी। इसलिए अभी आप ही। वरना कहेंगी की हिस्सा बटाने पहुँच गई…”
और ये कहकर उसने थम्स-अप का साइन चुपके से दे दिया।
अगले ही पल मेरा हाथ फिसल के चोली के अन्दर और चटाक-चटाक दो हुक टूट गए।
क्या स्पर्श सुख था, जैसे कमल के ताजा खिले दो फूल। ब्लाउज़ बस उनके उभारों के सहारे अटका था। मेरे हाथ का रंग पूरी तरह जालीदार शीयर लेसी ब्रा से छनकर अन्दर और उनके दोनों गोरे-गोरे कबूतर लाल हो गए। उनकी ब्राउन चोंचें भी साफ-साफ दिख रही थीं। मेरे हाथ अपने आप उन मस्त रसीले जवानी के फूलों पे भींच गए। एकदम मेरी मुट्ठी के साइज के, रीत से बस थोड़े ही बड़े, एकदम कड़े-कड़े।
वो सिसकी और बोली- “क्या कर रहे हो सबके सामने?” और उन्होंने एक बार फिर मदद के लिए रीत की ओर देखा।
लेकिन रीत , वो बस मुश्कुरा दी। मदद आई लेकिन दूसरी ओर से। मेरे पीछे से। वो तो कहिये मेरी छठी इन्द्रिय ने मेरा साथ दिया।
मैंने आँख के किनारे से देखा की चंदा भाभीअन्दर से, एक बाल्टी रंग के साथ , पूरी की पूरी बाल्टी भाभी ने मेरी ओर पीछे से।
अब चंदा भाभी भी होली में शामिल हो गयी थीं।
लेकिन मैं मुड़ गया और रंग भरी बाल्टी और मेरे बीच संध्या भाभी, और सारा का सारा रंग उनके ऊपर।
पूरा गाढ़ा लाल रंग। साड़ी तो मैंने पहले ही खींचकर दुछत्ती पे फेंक दी थी। रंग सीधे साए पे और वो पूरी तरह उनकी गोरी चिकनी जाँघों, लम्बे छरहरे पैरों से चिपक गया। अब कल्पना करने की कोई जरूरत नहीं थी। सब कुछ साफ-साफ दिख रहा था। रंग पेट से बह के साए के अन्दर भी चला गया था। इसलिए जांघों के बीच वाली जगह पे भी। अन्दर रंग, बाहर रंग।
चंदा भाभी के हाथ में ताकत बहुत थी और उन्होंने पूरी जोर से रंग फेंका था। सबसे खतरनाक असर ऊपर की मंजिल पे हुआ, बचा खुचा ब्लाउज़ का आखिरी हुक भी चला गया। दोनों जोबन ब्रा को फाड़ते हुए और ब्रा भी एक तो जालीदार और दूसरी लगभग ट्रांसपैरेंट। जैसे बादल की पतली सतह को पार करके पूनम के चाँद की आभा दिखे बस वैसे ही। लेकिन उनकी गुदाज गदराई चूचियां थोड़ी बच गईं क्योंकी वो मेरे हाथों के कब्जे में थी।
“थैंक यू भाभी…” मैंने चन्दा भाभी की ओर देखकर उन्हें चिढ़ाते हुए मुश्कुराकर कहा।
“बताती हूँ तुम्हें अपनी भाभी के पीछे छिपते हो। शर्म नहीं आती…” वो हँसकर बोली।
आनंद बाबू बुद्धू के बुद्धू रहे दुबे भाभी ने सही कहा है जब रस से भरे गुब्बारे सामने हो तो उनका रस निकालो कहा रंग के चक्कर में पड़ रहे हो
दुबे भाभी ने मस्त डायलॉग मारा है आनंद को
“अरे लाला तुम ना। रह गए। बिन्नो ठीक ही कहती है तुम न तुम्हें कुछ नहीं आता सिवाय गाण्ड मराने के और अपनी बहनों के लिए भंड़ुआगीरी करने के। अरे बुद्धुराम ससुराल में साली सलहज से होली खेलने के लिए रंग की जरूरत थोड़े ही पड़ती है। अरे गाल रंगों काटकर, चूची लाल करो दाब के और। …”
आगे की बात चंदा भाभी ने पूरी की- “चूत लाल कर दो चोद-चोद के…” ये बात मस्त कही है उपर के गुब्बारे और नीचे के कुएं का रस निकालो
रीत और गुड्डी ने आनंद को पूरा मौका दे दिया है कि ये सुसराल है सुसराल में साली,भाभी जो मिले उसके जोबन को दबा दो उन्होंने संध्या भाभी के साथ मस्ती करने का पूरा मौका दिया है चंदा भाभी ने तो रात में मजा ले लिया है वह भी आनंद की मदद कर रही है