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Erotica फागुन के दिन चार

Shetan

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चू दे स्कूल का प्लान

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गुड्डी ने प्लान खींच दिया, और बताने लगी- “ये ऊपर का रूम है। इसी में एक्स्ट्रा क्लास चल रही थी। लड़कियां यहीं होंगी…”

डी॰बी॰ ने आश्चर्य से पूछा- “ये तुम्हें कैसे मालूम?”

गुड्डी ने झुंझलाकर बोला- “तो किसको मालूम होगा?”

गुड्डी तो गुड्डी थी। गनीमत है। डी॰बी॰ अभी रीत से नहीं मिले थे, सुपर चाचा चौधरी। चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है और रीत का चाचा चौधरी से भी।

गुड्डी बोली- “अरे मैं पिछले छः साल से वहां पढ़ रही हूँ। और कितनी बार उस कमरे में एक्स्ट्रा क्लास अटेंड की है। एक्स्ट्रा क्लास वहीं लगती है। और आज तो गुंजा ने बोला भी था की क्लास वहीं लगेगी…”


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गनीमत था की डी॰बी॰ ने ये नहीं पूछा की गुंजा कौन है?



गुड्डी- “दो दरवाजे हैं एक बाहर का, जिससे सब लोग आते हैं और एक पीछे का जो नार्मली बंद रहता है, चार खिड़कियां हैं, एक खिड़की दायें साइड की है जो बंद नहीं होती…”



अबकी मैंने टोका- “क्यों?”



मुझे डांटने में उसने कोई गुरेज नहीं किया, न आँखों से ना आवाज से-

“क्यों का क्या मतलब? अरे हवा आती है, धूप आती है, मैं तो हमेशा वहीं बैठती थी। टीचर के पास से दिखाई भी नहीं पड़ता था तो एकाध झपकी भी आ जाय, एस॰एम॰एस॰ करते रहो। टीचर ने एकाध बार बंद करने की कोशिश की लेकिन नहीं बंद हुई और सबसे बड़ी बात, ....रुक के थोड़ा मुस्करा के वो बोली

बगल की छत से लड़के लाइन मारते थे। कई बार चिट्ठी फेंकते थे। उस फ्लोर पे पहले कोई कमरा बन रहा था था। फिर आधा बनकर रुक गया है काम, इसीलिए और,… कोई उन लड़कों को मना भी नहीं करता था…”


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मैंने गुड्डी को छेड़ा- “तभी तुम वहां बैठती थी?”



डी॰बी॰- “चुप रहो यार। ये बहुत काम की बात बता रही है और तुम। खाली 3 समोसे खा गये, कालेज में राकेश के यहाँ ब्रेड पकौड़े साफ करते थे और। आप बोलिए, ये ऐसा ही है। इसकी बात पे ध्यान मत दिया करिए…” वो गुड्डी से बोले।


“हमने बिल्डिंग के चारों ओर से फोटोग्राफ भी लिए हैं। लेकिन…” और अपनी बात रोक के उन्होंने फोटोग्राफ मंगाए।

मैंने देखा, गुड्डी ने करीब करीब सारी बिल्डिंग का नक्शा बना दिया था, दरवाजे, सीढियाँ, घुसने का रास्ता, बरामदे,


लेकिन अब जब ये गुड्डी ने बता दिया था की वो तीनो लड़कियां किस कमरे में थी तो मेरा दिमाग बस अब उस नक़्शे को दिमाग में उतार रहा था, चिड़िया की आँख की तरह, कमरे की लम्बाई चौड़ाई, वो खिड़की जिसके बगल में गुड्डी बैठती थी, उस कमरे में घुसने का दरवाजा, पीछे का बरामदा, बगल के क्लास रूम।

इस तरह से की मैं आँख बंद कर के बताऊँ तो एक एक डिटेल एकदम सही हो,

सिर्फ तीन लड़कियां थीं,....



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तो होस्टेज बनाने वाले ने उन्हें साथ ही रखा होगा, बल्कि इस तरह की एक ओर दीवाल हो, और शायद वो तीनो लड़कियां खिड़की के पास ही हों,

अभी दिन का समय है तो बंद खिड़की से भी थोड़ी रौशनी आ रही होगी, लाइट का कनेक्शन तो पुलिस ने काट दिया होगा या काट देंगे

और अब बिल्डिंग के फोटोग्राफ आ गए थे।

टेली लेंस से बगल की बिल्डिंग से हर एंगल से डीबी ने फोटोग्राफी करवाई थी जिससे ऑपरेशन के पहले कमांडो को ब्रीफ किया जा सके।

“यही खिड़की है…” गुड्डी ने उंगली से इशारा किया।
Guddi ; ye upar vala class hai. Yahi extra class chalti hai. Ladkiya yahi hogi.

DB guddi ki bat pe sock. Ye tumko kese pata. Use nahi pata to fir kis ko pata. Shukar hai anand babu aap chacha Chaudhari se bhi tez dimag vali reet se nahi mile ho.

Guddi 6 sal se vahi padh rahi thi. Use pata hai extra class kahan lagti hai. Gunja bhi vahi hogi.

Kya gunja kon hai. DB sahab ab ye na puchho.

Khidki band nahi hoti. Wow guddi ne dant diya anamd babu ko. Guddi ki favourite jagah hai vo. Na teacher ki najron mein. Aur zabki lo sms karo. Bindas. Guddi mushkura padi. Danger feeling. Wow vaha se guddi ladko ki lar tapakvati thi.


Chup raho tum. Dono ke romantic shararat me DB ki gand fat rahi hai. Anand babu ke samose ki chah. DB ne bhi tana mara. Purana wakt yaad kar ke.

Guddi ne naksha bana liya. Ghusna kaha se hai. Guddi ne vo bhi bata diya. Anand babu ne sab samaz liya. Akhir unki sali gunja jo fasi hai.

Plan banane ke lie photographer ka sahara liya. Guddi ne vo khidki dikha di.

Wow romanchak update

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खिड़की
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“लेकिन ये तो बंद है…” डी॰बी॰ ने बोला- “कोई भी खिड़की या दरवाजा नहीं खुला है…”



गुड्डी चालू हो गई-

“ओह्ह… मैंने पूरी बात नहीं बतायी। असल में, हम लोगों ने एक लकड़ी का पच्चा उसमें फँसा रखा था, बाहर से टीचर को दिखता नहीं था, कब्जे में लगा रखा था। जो लड़की सबसे पहले पहुँचती थी उसका काम होता था और वो खिड़की के बगल वाली डेस्क भी हथिया लेती थी। साल भर ये काम मैंने किया। रात को तो चौकीदार चेक करता था ना, इसलिए शाम को उसे हटा लिया जाता था…”



डी॰बी॰ प्लान पे तमाम निशान बना रहे थे, और किसी को बुलाकर उन्होंने तमाम आर्डर दिए और गुड्डी से पूछा- “वो जिस जगह काम हो रहा था, मतलब बंद था। कितना दूर था? गैप कितना था?”

दोनों हाथ फैलाकर गुड्डी बोली- “इतना,… थोड़ा सा ज्यादा…”

डी॰बी॰ ने पूछा- “10 फिट। 20 फिट…”



गुड्डी “नहीं नहीं। और कम, 5-6 फिट ज्यादा से ज्यादा। अरे कई बार लड़के तो पास में रखे पटरों की ओर इशारा करके बोलते, …

“आ जाऊं। आ जाऊं।

“और हम लोग उनको चिढ़ाते,.. “आ जाओ, आओ, इशारे करते और जब वो आने का नाटक करते तो हम उन्हें अंगूठा दिखा देते और खिड़की उठंगा देते…”
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डी॰बी॰ ने गुड्डी को चुप रहने का इशारा किया और सी॰ओ॰ अरिमर्दन सिंह को बुलाया। डी॰बी॰ ने पूछा- “बगल में जो मकान बन रहा है। वहां किसी को लगाया है?”

सी॰ओ॰ ने बोला- “जी जी। दो लोग एक गनर भी है…”



डी॰बी॰ ने बोला- “वहां 1+4 के दो सेक्शन लगा दो। एक ऊपर और एक उस बिल्डिंग से जहाँ उतरने का रास्ता हो, स्मार्ट लोगों को लगाना…” उन्होंने बात जारी रखी- “और एक आँसू गैस वाला सेक्शन भी। स्मोक बाम्ब के कुछ कैनिस्टर भी उनको दिलवा दो। हाँ वो सी॰सी॰टीवी वाले कैमरे लग गए चारों ओर?”

“जी…”

डी॰बी॰ ने फिर बोला- “तो उसके मेन फीड की स्क्रीन इसी कमरे में लगाओ…” और उसको जाने का इशारा किया।

उसके जाने के बाद वो गुड्डी से बोले- “यार तुमने,… छोटी हो,..तुम तो बोल सकता हूँ…”

“एकदम…” मुश्कुराकर वो बोली।

“बहुत बड़ी प्राब्लम तुमने साल्व कर दी…” डी॰बी॰ इतने देर में पहली बार मुश्कुराए।

डी॰बी॰ ने बात आगे बढ़ाई-

“असल में, हमें एंट्री समझ में नहीं आ रही थी। चौकीदार से मैंने खुद बात की। उसने लड़कियों के अलावा और किसी को स्कूल में घुसते नहीं देखा। सामने जो हलवाई की दुकान है, उसपे जो लड़का बैठता है, …”

“नंदू…” गुड्डी ने बात काटकर बोला।

डी॰बी॰ ने कहा- “हाँ वही। उसने यहाँ तक बताया की 9वीं क्लास की लड़कियां थी, 24 लड़कियां अन्दर गईं, सब डिटेल। लेकिन उसने भी बोला की किसी को उसने अन्दर जाते नहीं देखा और टीचर के आने के पहले ये हादसा हो गया, ”
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गुड्डी ने जोड़ा- “वो हमेशा लेट आती हैं। उनके पीरियड में बहुत मस्ती होती है…”

मुझे गुंजा की बात याद आयी उन टीचर के बारे में, मोहिनी मैडम, जैसा नाम वैसे सूरत।


मोहिनी मैडम कालेज के जो मारवाड़ी मालिक हैं उन के लड़के से फंसी है,


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और ज्यादातर टाइम उस की बाइक के पीछे चिपकी नजर आती हैं, क्लास वलास तो कम ही लेती हैं लेकिन स्टूडेंट्स उन से बहुत खुश रहती हैं, क्योंकि इम्तहान के पहले वो एक क्लास लेती हैं जिसमें दस वेरी इम्पोर्टेन्ट क्वेशन बताये जाते हैं, आठ शर्तिया आते हैं और करने पांच ही होते हैं। पर्चे मोहिनी मैडम के ताऊ की प्रेस में ही छपते हैं और उस मारवाड़ी मालिक के लड़के की कृपा से हर बार ठेका उन्ही को मिलता है।


और गुंजा ने आज की क्लास का स्पेशल अट्रैक्शन ये बताया की मोहिनी मैडम आज सिर्फ अपना सब्जेक्ट नहीं बल्कि तीन तीन पेपर, मैथ, इंग्लिश और सोसल, तीनो के ' इम्पोर्टेन्ट सवाल ' बताएंगी और मॉडल आंसर भी वो जिराक्स करा के लायी है तो वो भी, हाँ अगर आज उन की क्लास में जो नहीं गया, वो कॉपी में कुछ भी लिख के आये, उस का फेल होना पक्का,

तो हो सकता है जब अटैक हुआ तो मोहिनी मैडम क्लास में तबतक न पहुंची हो क्योंकि नंदू ने सिर्फ २४ लड़कियों की बात बताई थी टीचर की नहीं


“तो उस लड़के ने भी किसी आदमी को अन्दर आते नहीं देखा। इसका साफ मतलब है की वो इसी खिड़की से अन्दर गए और उनके साथ या उन्हें किसी ने इसके बारे में बताया होगा। और कोई रास्ता है क्या?”

डी॰बी॰ ने गुड्डी ने जो प्लान बनाया था उसे और फोटुयें देखते हुए पूछा।



गुड्डी- “उन्ह। नहीं नहीं। हाँ एक रास्ता है। लेकिन उसे सिर्फ मैं और कुछ लड़कियां जानती हैं। ज्यादातर लोगों को ये मालूम नहीं की ये रास्ता अन्दर जाता है। एक बहुत जंग खाया सा दरवाजा है उसपे फिल्मों के पोस्टर लगे रहते हैं। बाहर और अन्दर दोनों ओर से बंद रहता है। एक सीढ़ी है, बहुत पतली और एकदम अँधेरी सीधे ऊपर जाती है, उसके नीचे बहुत कचड़ा भी पड़ा रहता है। सीढ़ी ऊपर बरामदे में खुलती है। लेकिन उसकी सिटकिनी जरा सा झटके से खुल जाती है। बस वहां से निकलिए तो उस क्लास का पीछे वाला दरवाजा…”


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डी॰बी॰ बोले- “वो भी तो बंद रहता है। तुमने बताया था ना…”



गुड्डी- “हाँ एकदम। लेकिन दो बार अपनी ओर खींचकर हल्के से अन्दर की ओर धक्का दीजिये तो बस खुल जाता है…”

गुड्डी ने राज खोला, और मेरी ओर देखकर बोली-

“मुझे क्या मालूम था रीत ने बताया था मुझे…”

डी॰बी॰ फिर मुश्कुरा रहे थे।

गुड्डी- “एक बार, एक-दो महीने पहले मैं गई थी उधर से। अक्षय कुमार की एक पिक्चर देखने- राठोर। हाँ क्या करूँ क्लास बहुत बोरिंग थी, और एक-दो बार क्लास में चुपके से लेट होने पे। एक बार तो तुम्हारे से ही बात करने के चक्कर में…”

मेरी ओर देखकर उसने इल्जाम लगाया।
DB ; sari khidkiya darwaje band hai.
To hamari guddi se puchho na. Guddi ne puri bat abhi batai nahi hai. Sirf ek lakdi ke tukde ka support hai. Kabje me. Bas duniya ki ankho me dhul. Khub rang raliya manai hai guddi rani ne. Jo pahele aaega. Vahi jagah paega. Aur guddi ne har wakt kabja jamae rakha vaha.

DB ka measurement chalu ho gaya. 10 fit ya 11,12 are baba kuchh 5 fit. Bada lalchaya hai londo ko guddi ne.

Guddi chalu hui ki bas. DB ne bhi guddi ko chup hone ka hishara diya. Bas bas meri maa. DB ne armindar singh ko bulaya. 1 aur 4 sec matlab ki kul 11+11=22 aur ashu gas gole dagne vali sec more. Wow.

Aur charo taraf camera CCTV. Vo bhi screen vahi guddi ke samne. Are guddi chhoti hai. Tum bologe chalega. Lekin kahi god me mat betha lena. Abhi anand babu ko bhi kuchh nashib nahi huaa. Kar di na DB sahab aap ki problem solve. Are ye guddi hai guddi.

Nandu. Guddi ko pata hai. Nandu ne information di. 24 ladkiya thi. Teacher koi aae nahi the. Ek number ka zaku hai nandu. Ladkiya tad ke ankhe sek raha hoga.

School ka name hi chu se shuru hota hai to teacher bhi kese bachti. Mohini medam hamesha late aati hai. Marvadi ke ladke se chipki raheti hai.

Wow nandu ne kisi ko aate nahi dekha matlab ki vo gunde usi raste se. Matlab ki koi bhedi hai.

Ohhh nahi nahi. Guddi ek aur rasta janti hai. Pichhe ka jung khaya darwaja. Amezing.
DB sahab guddi ko sab pata hai. Dhakka dete hi khul jata hai. Guddi ne gully mari thi. Film dekhne. Vikram Rathore....

Amezing update...

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गुंजा
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ब तक दो लोग आकर स्क्रीन सेट करने लगे, और एक रिमोट हम लोगों के पास लगा दिया जिससे कैमरा सेलेक्ट हो सकता था।

डी॰बी॰- “वो जो मकान बन रहा है ना, कैमरा उधर सेट करो। हाँ जूम करो। बस उसी खिड़की पे। हाँ और?”

खिड़की अच्छी तरह बंद थी।


डी॰बी॰- “इंटेलिजेंट। जाओ तुम सब…”

और उन्होंने हांक के जमूरों को बाहर कर दिया और हम लोगों को समझाया-

“उन सबों को ये अंदाज लग गया होगा की देर सबेर एंट्री प्वाइंट हमें पता चल जाएगा इसलिए उन्होंने अच्छी तरह से बंद कर दिया। ये कोई…”

तब तक एक और इंस्पेक्टर आलमोस्ट दौड़ता आया-

“सर साइटिंग हो गई। एक स्नाइपर ने देखा, ग्राउंड फ्लोर बाएं से तीसरी खिड़की। उसका कहना है की आब्जेक्ट अभी भी वहीं होगा, हालांकि खिड़की अब बंद हो गई है। वो पूछ रहा है की एंगेज करें उसे? एक्शन स्टार्ट करें?” उसने हांफते हुए पूछा- “कमांडो वाला ग्रुप भी रेडी है…”

डी॰बी॰- “अभी नहीं, कैमरा उधर करो, हाँ फोकस। दो लोगों को बोलना क्राल करके इनर पेरीमीटर के अन्दर घुसे। बट नो एक्शन नाट इवेन वार्निंग शाट, जाओ…” डी॰बी॰ ने आर्डर दिया।

अब कैमरा नीचे का फ्लोर दिखा रहा था। एक खिड़की हल्के से खुली थी लेकिन पर्दा गिरा था।

“मोबाइल। वो आप कह रहे थे न की उसका फोन…” गुड्डी भी अब पूरी तरह इन्वोल्व हो चुकी थी।

डी॰बी॰- “हाँ हाँ क्यों नहीं?” एकदम,...

और थोड़ी देर में रिकार्डिंग की कापी हमारे सामने बज रही थी।


शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, फिर एक कुर्सी घसीटने की आवाज, अस्फुट शब्द। फिर बैक ग्राउंड में एक हल्की सी चीख।

गुड्डी बोली-

“ये तो गुंजा लग रही है…” और उसने कान एकदम स्पीकर फोन से सटा लिए।
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फोन पर बोलने वाले ने एकाध लाइन बोली, फिर पीछे से आवाज आई-

“छोड़ो मुझे। हाथ छोड़ो…”

मेरा तो जी एकदम धक्क से रह गया, कलेजा मुंह को आ गया,



जैसे ही गुड्डी के मुंह से गुंजा निकला, मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। न कुछ दिखाई दे रहा था न समझ में आ रहा था, कस के मैंने अपनी चेयर पकड़ ली।

डीबी ने रिवाइंड किया, एकदम गुंजा ही थी,



आज सुबह ही तो पहली बार उसे देखा, उससे मिला, एकदम झिलमिलाती, ख़ुशी से भरी, सुबह की कच्ची धूप की तरह, जवानी नहीं बस कैशोर्य के दरवाजे पर सांकल खड़काती,



वही याद आ गया, एकदम बिजली की तरह चमक गयी



एकदम बच्ची नहीं लग रही थी वो।सफेद ब्लाउज़ और नीली स्कर्ट, स्कूल यूनीफार्म में।


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मेरी आँखें बस टंगी रह गईं। चेहरा एकदम भोला-भाला, रंग गोरा चम्पई । लेकिन आँखें उसकी चुगली कर रही थी। खूब बड़ी-बड़ी, चुहल और शरारत से भरी, कजरारी, गाल भरे-भरे, एकदम चन्दा भाभी की तरह और होंठ भी, हल्के गुलाबी रसीले भरे-भरे उन्हीं की तरह। जैसे कह रहे हों- “किस मी। किस मी नाट…”

मुझे कल रात की बात याद आई जब गुड्डी ने उसका जिक्र किया था तो हँसकर मैंने पूछा था- “क्यों बी॰एच॰एम॰बी (बड़ा होकर माल बनेगी) है क्या?”

पलटकर, आँख नचाकर उस शैतान ने कहा था- “जी नहीं। बी॰एच॰ काट दो, और वैसे भी मिला दूंगी…”

मेरी आँखें जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गई, उसके उभार।

उसके स्कूल की युनिफोर्म, सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में, किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए। परफेक्ट किशोर उरोज। पता नहीं वो इत्ते बड़े-बड़े थे या जानबूझ के उसने शर्ट को इत्ती कसकर स्कर्ट में टाईट करके बेल्ट बाँधी थी।


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मुझे चंदा भाभी की बात याद आ रही थी,... चौदह की हुयी तो चुदवासी,

और जब होली में उनके मुंहबोले पड़ोस के जीजू ने उनकी चिड़िया उड़ाई थी वो गुड्डी की मंझली बहन से भी थोड़ी छोटी, मतलब गुंजा से भी कम उम्र,...



पता नहीं मैं कित्ती देर तक और बेशर्मों की तरह देखता रहता, अगर गुड्डी ने ना टोका होता-

“हे क्या देख रहे हो। गुंजा नमस्ते कर रही है…”

और उस के बाद जिस तरह से उसने अपने हाथ से लाल तीखे मिर्चों से भरे ब्रेड रोल खिलाये,

“जिसने बनाया है वो दे…” हँसकर गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा।

मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गई। और उसी तरह बोली- “देगी जरूर देगी। लेने की हिम्मत होनी चाहिए, क्यों गुंजा?”



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“एकदम…मैं उन स्सालियों में नहीं जो देने में पीछे हटजाएँ, हां लेने में, 'आपके उनके ' की हिम्मत पर डिपेंड करता है , और जिस तरह से उसने खिलाया



" जीजू आ बोलिये जैसे लड्डू खाने के लिए मुंह खोलते हैं एकदम वैसा और बड़ा, हाँ ऐसे।"

" " दी, एक बार में डाल दूँ पूरा,"

" आधे तीहै में न डालने वाले को मजा न डलवाने वाली को " बुदबुदाती गुंजा ने एक बार में बड़ा सा ब्रेड रोल खूब गरम मेरे मुंह मे।

ब्रेड रोल बहुत ही गरम, स्वाद बहुत ही अच्छा था।


लेकिन अगले ही पल में शायद मिर्च का कोई टुकड़ा। और फिर एक, दो, और मेरे मुँह में आग लग गई थी। पूरा मुँह भरा हुआ था इसलिए बोल नहीं निकल रहे थे।

वो दुष्ट , गुंजा। अपने दोनों हाथों से अपना भोला चेहरा पकड़े मेरे चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।

बस वही चेहरा मेरे आँखों के सामने घूम रहा था


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और अब, बम, होस्टेज, टेरर, बेचारी लड़की कहाँ से गुजर गयी और मैं यहाँ बैठ के समोसे खा रहा हूँ।



डीबी ने एक बार फिर से रिवाइंड कर दिया था, और गुंजा की चीख सुन के मेरे सीने में जैसे किसी ने गरम चाक़ू उतार दिया था। शाक अब गुस्से में बदल गया था। मुझे लग रहा था गुड्डी की हालत मुझसे भी ज्यादा खराब होगी, मैं तो आज मिला वो तो बचपन से ही सहेली, सगी बहन से बढ़कर



डीबी मेरी ओर पुष्टि के लिए देख रहे थे,



मैने बोला- “एकदम गुंजा ही है…”

लेकिन गुड्डी ने ध्यान नहीं दिया।

मैं समझ भी गया था और मान भी गया था गुड्डी को, वह आवाजों की रस्सी पकड़ के कमरे के अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी,

साल भर पहले ही तो वो भी उसी क्लास में बैठती थी, एक एक आवाज को सुन के ध्यान से कमरे की हालत पढ़ने की कोशिश कर रही थी। सच में दुःख, शॉक पीने में लड़कियों का कोई मुकाबला नहीं। गुंजा है तो, मुसीबत में है, लेकिन सवाल है उसे बचाने का और ये रिकार्डिंग हेल्प कर सकती है तो चिंता से ऊपर उठ कर बस वो ध्यान से सुन रही थी।



अब फोन की आवाज साफ हो गई थी, गुड्डी ध्यान से सुन रही थी और उसकी आँखों में एक चमक सी आ गई। फिर वो एक मुश्कान में बदल गई और वो वापस कुर्सी पे आराम से बैठ गई। अब दूसरी बार के फोन की रिकार्डिंग बज रही थी।

डी॰बी॰ ने हल्की आवाज में गुड्डी से पूछा- “तुम्हें कुछ अंदाज लग रहा है?”

“हाँ…” उसी तरह गुड्डी धीमे से बोली।


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उन्होंने गुड्डी को होंठों पे उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और एक मिनट। वो बोले और जाकर दरवाजा बंद कर दिया। लौटकर उन्होंने रिकार्डिंग फिर से आन की और फुसफुसाते हुए गुड्डी से बोले- “ध्यान से एक बार फिर से सुनो, और बहुत कम और बहुत धीमे बोलना…”

रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी।

खतम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा- “बताऊँ मैं?”



डी॰बी॰ ने सिर हिलाया- “हाँ…”



चुम्मन…” गुड्डी ने बोला।
Wow countdown shuru. DB ne sari taiyari shuru karwa di. Camera sari jagah lag gae. Khas kar vo khidki par. Aur Sniper bhi tiyar. Usi khidki par aim lekar amezing romanchak lag raha hai.

Are wah. Khidki band ho gai. Matlab ki sayad harkat hai udhar. Target engage karne ka order de diya DB ne. Sighting bhi vaha ho gaya. Matlab ki perfect target hit hoga. Comando redy hai. Wow.

DB ne aage badhkar position lene ko to kaha. Par action lene ko mahi. Vo galti nahi karna chahta. Ab to guddi bhi operation me puri involved ho chuki hai.

Are bap re. Recording me aavaj guddi sayad pahechan gai. Ye to gunja ki aavaj lag rahi hai.

Gunja sayad chhodo muje chhodo... Aavaj sunte hi anand babu ki bhi fat gai. Akhir unki sali hai bhai...DB ne bhi confirm kar diya. Gunja hi thi.

Anand babu ne position le li. Vo subah ka dilkash najara yaad kar rahe the. School dress me gunja ne anand babu ki lar tapakva di. Aur bechari ab kaha fas gai. Kal hi to bechare anand babu ko bmhb ka matlab pata chala tha. Badi hokar mal banegi. Magar us se pahele to gunde aa gae. Are baba use mal ban ne to do. Bechari guddi to gunja ke jija ke lie uska b aur h bhi katva rahi thi. Par....

Bechari chodah ki chudas hi rahe gai. Anand babu chanda bhabhi vali jija sali ki kahani sunkar kya kya kalpna kar bethe. Kher vo to manjli thi.


Par guddi hai ye to apni bahen ko apne vale ke lie matlab uske ashli jija ke lie.
He kya dekh rahe ho. Gunja kab se namaste kar rahi hai. Kyo yaad aaya vo bredroll anand babu.. swad to achha tha. Par mirchi lagi tab gand fati...

DB confirmation chahte the. Par guddi to guddi hai. Ashal me us department me to guddi honi chahiye thi. Lekin ye kya guddi ne recording sunkar kuchh aur hi raviya apnaya. Vo mushkura rahi hai. Kya chumban????

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जोरू का गुलाम भाग २३७

बंबई -मंगलवार रात पृष्ठ १४४३

अपडेट पोस्टेड

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Real@Reyansh

हसीनो का फेवरेट
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फागुन के दिन चार


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" फागुन के दिन चार " मेरी लम्बी कहानी बल्कि यूँ कहें की उपन्यास है। इसका काल क्रम २१ वी शताब्दी के शुरू के दशक हैं, दूसरे दशक की शुरुआत लेकिन फ्लैश बैक में यह कहानी २१ वीं सदी के पहले के दशक में भी जाती है.

कहानी की लोकेशन, बनारस और पूर्वी उत्तरप्रदेश से जुडी है, बड़ोदा ( वड़ोदरा ) और बॉम्बे ( मुंबई ) तक फैली है और कुछ हिस्सों में देश के बाहर भी आस पास चली आती है। मेरा मानना है की कहानी और उसके पात्र किसी शून्य में नहीं होने चाहिए, वह जहां रहते हैं, जिस काल क्रम में रहते हैं, उनकी जो अपनी आयु होती है वो उनके नजरिये को , बोलने को प्रभावित करती है और वो बात एक भले ही हम सेक्सुअल फैंटेसी ही लिख रहे हों उसका ध्यान रखने की कम से कम कोशिश करनी चाहिए।

लेकिन इसके साथ ही कहानी को कुछ सार्वभौम सत्य, समस्याओं से भी दो चार होना पड़ता है और होना चाहिए।

जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कहानी फागुन में शुरू होती है और फागुन हो, बनारस हो फगुनाहट भी होगी, होली बिफोर होली भी होगी।

लेकिन होली के साथ एक रक्तरंजित होली की आशंका भी क्षितिज पर है और यह कहानी उन दोनों के बीच चलती है इसलिए इसमें इरोटिका भी है और थ्रिलर भी जीवन की जीवंतता भी और जीवन के साथ जुडी मृत्यु की आशंका भी। इरोटिका का मतलब मेरे लिए सिर्फ देह का संबंध ही नहीं है , वह तो परिणति है। नैनों की भाषा, छेड़छाड़, मनुहार, सजनी का साजन पर अधिकार, सब कुछ उसी ' इरोटिका ' या श्रृंगार रस का अंग है। इसलिए मैं यह कहानी इरोटिका श्रेणी में मैं रख रही हूँ .

और इस कहानी में लोकगीत भी हैं, फ़िल्मी गाने भी हैं, कवितायें भी है

पर जीवन के उस राग रंग रस को बचाये रखने के लिए लड़ाई भी लड़नी होती है जो अक्सर हमें पता नहीं होती और उस लड़ाई का थ्रिलर के रूप में अंश भी है इस कहानी में।

किसी एक टैग में जिंदगी को समेटना मुश्किल है और कहानी को भी। कहानी के कुछ रंग कर्टेन रेजर या पूर्वाभास के तौर पर मैं प्रस्तुत करुँगी, सतरंगी रंग कुछ इरोटिका के कुछ थ्रिलर के. कुछ उन शहरों के जहाँ यह कहानी चक्कर काटती है.

आप का दुलार, प्यार, साथ , आशीष मिलेगा तो अगले सप्ताह से यहाँ पोस्ट करना शुरू करुँगी


अगर समय मिला, मुझे, मेरे पाठक मित्रों को तो कोशिश करुँगी महीने में तीन चार भाग जरूर पोस्ट कर दूँ ,




तो पूर्वाभास की शुरआत के पहले इस कहानी के ही एक अंश से



और साथ में टीवी चैनेल वाले ये भी बताना नहीं भूलंगे की यहाँ के लोग पढ़ने, काम ढूँढ़ने बाहर जाते हैं, कोई खास रोजगार का जरिया यहां नहीं है।



लेकिन ये दर्द सिर्फ एक शहर का नहीं, शायद पूरे पूर्वांचल का है, और जमाने से है। मारीशस, फिजी, गुयाना, पूर्वांचल के लोग गए, और शूगर केन प्लांटेशन से लेकर अनेक चीजें, उनकी मेहनत का नतीजा है। वहां फैली क्रियोल, भोजपुरी, चटनी संगीत यह सब उन्हीं दिनों के चिन्ह है।



और उसके बाद अपने देश में भी, चाहे वह बंगाल की चटकल मिलें हो।



बम्बई (अब मुम्बई) और अहमदाबाद की टेक्सटाइल मिल्स पंजाब के खेत, काम के लिए। और सिर्फ काम की तलाश में ही नहीं, इलाज के लिए बनारस, लखनऊ, दिल्ली जाते हैं। पढ़ने के लिए इलाहबाद, दिल्ली जाते हैं।



लेकिन कौन अपनी मर्जी से घर छोड़कर काले कोस जाना चाहता है? उसी के चलते लोकगीतों में रेलिया बैरन हो गई, और अभी भी हवाओं में ये आवाज गूँजती रहती है-




भूख के मारे बिरहा बिसरिगै, बिसरिगै कजरी, कबीर।

अब देख-देख गोरी के जुबना, उठै न करेजवा में पीर।
Thank You didi .. but this story seems to of early 2010s .. And Which Indicates that ....
 
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rakmis

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रोमांस की पराकाष्ठा के बाद अब रोमांच की इंतिहा का इंतजार। गुड्डी और आनंद जाएंगे न? कोई नया ट्विस्ट तो नहीं डाल दिया?
गुंजा
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ब तक दो लोग आकर स्क्रीन सेट करने लगे, और एक रिमोट हम लोगों के पास लगा दिया जिससे कैमरा सेलेक्ट हो सकता था।

डी॰बी॰- “वो जो मकान बन रहा है ना, कैमरा उधर सेट करो। हाँ जूम करो। बस उसी खिड़की पे। हाँ और?”

खिड़की अच्छी तरह बंद थी।


डी॰बी॰- “इंटेलिजेंट। जाओ तुम सब…”

और उन्होंने हांक के जमूरों को बाहर कर दिया और हम लोगों को समझाया-

“उन सबों को ये अंदाज लग गया होगा की देर सबेर एंट्री प्वाइंट हमें पता चल जाएगा इसलिए उन्होंने अच्छी तरह से बंद कर दिया। ये कोई…”

तब तक एक और इंस्पेक्टर आलमोस्ट दौड़ता आया-

“सर साइटिंग हो गई। एक स्नाइपर ने देखा, ग्राउंड फ्लोर बाएं से तीसरी खिड़की। उसका कहना है की आब्जेक्ट अभी भी वहीं होगा, हालांकि खिड़की अब बंद हो गई है। वो पूछ रहा है की एंगेज करें उसे? एक्शन स्टार्ट करें?” उसने हांफते हुए पूछा- “कमांडो वाला ग्रुप भी रेडी है…”

डी॰बी॰- “अभी नहीं, कैमरा उधर करो, हाँ फोकस। दो लोगों को बोलना क्राल करके इनर पेरीमीटर के अन्दर घुसे। बट नो एक्शन नाट इवेन वार्निंग शाट, जाओ…” डी॰बी॰ ने आर्डर दिया।

अब कैमरा नीचे का फ्लोर दिखा रहा था। एक खिड़की हल्के से खुली थी लेकिन पर्दा गिरा था।

“मोबाइल। वो आप कह रहे थे न की उसका फोन…” गुड्डी भी अब पूरी तरह इन्वोल्व हो चुकी थी।

डी॰बी॰- “हाँ हाँ क्यों नहीं?” एकदम,...

और थोड़ी देर में रिकार्डिंग की कापी हमारे सामने बज रही थी।


शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था, फिर एक कुर्सी घसीटने की आवाज, अस्फुट शब्द। फिर बैक ग्राउंड में एक हल्की सी चीख।

गुड्डी बोली-

“ये तो गुंजा लग रही है…” और उसने कान एकदम स्पीकर फोन से सटा लिए।
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फोन पर बोलने वाले ने एकाध लाइन बोली, फिर पीछे से आवाज आई-

“छोड़ो मुझे। हाथ छोड़ो…”

मेरा तो जी एकदम धक्क से रह गया, कलेजा मुंह को आ गया,



जैसे ही गुड्डी के मुंह से गुंजा निकला, मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। न कुछ दिखाई दे रहा था न समझ में आ रहा था, कस के मैंने अपनी चेयर पकड़ ली।

डीबी ने रिवाइंड किया, एकदम गुंजा ही थी,



आज सुबह ही तो पहली बार उसे देखा, उससे मिला, एकदम झिलमिलाती, ख़ुशी से भरी, सुबह की कच्ची धूप की तरह, जवानी नहीं बस कैशोर्य के दरवाजे पर सांकल खड़काती,



वही याद आ गया, एकदम बिजली की तरह चमक गयी



एकदम बच्ची नहीं लग रही थी वो।सफेद ब्लाउज़ और नीली स्कर्ट, स्कूल यूनीफार्म में।


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मेरी आँखें बस टंगी रह गईं। चेहरा एकदम भोला-भाला, रंग गोरा चम्पई । लेकिन आँखें उसकी चुगली कर रही थी। खूब बड़ी-बड़ी, चुहल और शरारत से भरी, कजरारी, गाल भरे-भरे, एकदम चन्दा भाभी की तरह और होंठ भी, हल्के गुलाबी रसीले भरे-भरे उन्हीं की तरह। जैसे कह रहे हों- “किस मी। किस मी नाट…”

मुझे कल रात की बात याद आई जब गुड्डी ने उसका जिक्र किया था तो हँसकर मैंने पूछा था- “क्यों बी॰एच॰एम॰बी (बड़ा होकर माल बनेगी) है क्या?”

पलटकर, आँख नचाकर उस शैतान ने कहा था- “जी नहीं। बी॰एच॰ काट दो, और वैसे भी मिला दूंगी…”

मेरी आँखें जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गई, उसके उभार।

उसके स्कूल की युनिफोर्म, सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में, किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए। परफेक्ट किशोर उरोज। पता नहीं वो इत्ते बड़े-बड़े थे या जानबूझ के उसने शर्ट को इत्ती कसकर स्कर्ट में टाईट करके बेल्ट बाँधी थी।


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मुझे चंदा भाभी की बात याद आ रही थी,... चौदह की हुयी तो चुदवासी,

और जब होली में उनके मुंहबोले पड़ोस के जीजू ने उनकी चिड़िया उड़ाई थी वो गुड्डी की मंझली बहन से भी थोड़ी छोटी, मतलब गुंजा से भी कम उम्र,...



पता नहीं मैं कित्ती देर तक और बेशर्मों की तरह देखता रहता, अगर गुड्डी ने ना टोका होता-

“हे क्या देख रहे हो। गुंजा नमस्ते कर रही है…”

और उस के बाद जिस तरह से उसने अपने हाथ से लाल तीखे मिर्चों से भरे ब्रेड रोल खिलाये,

“जिसने बनाया है वो दे…” हँसकर गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा।

मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गई। और उसी तरह बोली- “देगी जरूर देगी। लेने की हिम्मत होनी चाहिए, क्यों गुंजा?”



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“एकदम…मैं उन स्सालियों में नहीं जो देने में पीछे हटजाएँ, हां लेने में, 'आपके उनके ' की हिम्मत पर डिपेंड करता है , और जिस तरह से उसने खिलाया



" जीजू आ बोलिये जैसे लड्डू खाने के लिए मुंह खोलते हैं एकदम वैसा और बड़ा, हाँ ऐसे।"

" " दी, एक बार में डाल दूँ पूरा,"

" आधे तीहै में न डालने वाले को मजा न डलवाने वाली को " बुदबुदाती गुंजा ने एक बार में बड़ा सा ब्रेड रोल खूब गरम मेरे मुंह मे।

ब्रेड रोल बहुत ही गरम, स्वाद बहुत ही अच्छा था।


लेकिन अगले ही पल में शायद मिर्च का कोई टुकड़ा। और फिर एक, दो, और मेरे मुँह में आग लग गई थी। पूरा मुँह भरा हुआ था इसलिए बोल नहीं निकल रहे थे।

वो दुष्ट , गुंजा। अपने दोनों हाथों से अपना भोला चेहरा पकड़े मेरे चेहरे की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।

बस वही चेहरा मेरे आँखों के सामने घूम रहा था


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और अब, बम, होस्टेज, टेरर, बेचारी लड़की कहाँ से गुजर गयी और मैं यहाँ बैठ के समोसे खा रहा हूँ।



डीबी ने एक बार फिर से रिवाइंड कर दिया था, और गुंजा की चीख सुन के मेरे सीने में जैसे किसी ने गरम चाक़ू उतार दिया था। शाक अब गुस्से में बदल गया था। मुझे लग रहा था गुड्डी की हालत मुझसे भी ज्यादा खराब होगी, मैं तो आज मिला वो तो बचपन से ही सहेली, सगी बहन से बढ़कर



डीबी मेरी ओर पुष्टि के लिए देख रहे थे,



मैने बोला- “एकदम गुंजा ही है…”

लेकिन गुड्डी ने ध्यान नहीं दिया।

मैं समझ भी गया था और मान भी गया था गुड्डी को, वह आवाजों की रस्सी पकड़ के कमरे के अंदर घुसने की कोशिश कर रही थी,

साल भर पहले ही तो वो भी उसी क्लास में बैठती थी, एक एक आवाज को सुन के ध्यान से कमरे की हालत पढ़ने की कोशिश कर रही थी। सच में दुःख, शॉक पीने में लड़कियों का कोई मुकाबला नहीं। गुंजा है तो, मुसीबत में है, लेकिन सवाल है उसे बचाने का और ये रिकार्डिंग हेल्प कर सकती है तो चिंता से ऊपर उठ कर बस वो ध्यान से सुन रही थी।



अब फोन की आवाज साफ हो गई थी, गुड्डी ध्यान से सुन रही थी और उसकी आँखों में एक चमक सी आ गई। फिर वो एक मुश्कान में बदल गई और वो वापस कुर्सी पे आराम से बैठ गई। अब दूसरी बार के फोन की रिकार्डिंग बज रही थी।

डी॰बी॰ ने हल्की आवाज में गुड्डी से पूछा- “तुम्हें कुछ अंदाज लग रहा है?”

“हाँ…” उसी तरह गुड्डी धीमे से बोली।


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उन्होंने गुड्डी को होंठों पे उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और एक मिनट। वो बोले और जाकर दरवाजा बंद कर दिया। लौटकर उन्होंने रिकार्डिंग फिर से आन की और फुसफुसाते हुए गुड्डी से बोले- “ध्यान से एक बार फिर से सुनो, और बहुत कम और बहुत धीमे बोलना…”

रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी।

खतम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा- “बताऊँ मैं?”



डी॰बी॰ ने सिर हिलाया- “हाँ…”



चुम्मन…” गुड्डी ने बोला।
 
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