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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७
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सैंडविच तो आनंद बाबू बने...यही तो, एक बार गुड्डी ने बुला लिया,एक बार दूबे भाभी आ गयीं अब देखिये क्या होता है रीत के साथ और आनंद को कौन मिलती है, गुंजा, रीत या संध्या भाभी।
एक नई दीप्ति... एक नई ऊर्जा फैलने लगती है... नव विवाहिताओं से...एकदम सही पहचाना आपने, आंनद बाबू की घ्राण शक्ति बहुत तेज है और संध्या भाभी के देह से निकलने वाली फ्रेमॉन का असर बहुत तेज, अक्सर नव-विवाहिता में यह तेज होती ही है लेकिन संध्या भाभी में और ज्यादा इसलिए और भी बौराएँ हैं संध्या भाभी के ऊपर
वैसे आपने इस रफ़ूगीरी पर जरूर ध्यान दिया होगा की होली के इन दृश्यों में भी रीत, गुड्डी और संध्या भाभी के रोल में थोड़ी कशीदाकारी की गयी है।
इस बार संध्या भाभी बचनी नहीं चाहिए...एकदम और बिना रंग निकाले पिचकारी कैसी और संध्या भाभी ऐसी गर्मायी भौजाई हो तो खुद ही पिचकारी पिचका देगी।
संध्या भाभी का सांझ और सवेरा अबकी बार हो हीं जाना चाहिए....ये लाइन तो उमड़ती घुमड़ती हर भौजाई के मन में है लेकिन होंठों पर आ जाए उसके लिए संध्या भाभी ऐसी भौजाई चाहिए। हालंकि कामसूत्र, डुरेक्स ऐसे कई प्रोडक्ट की बिक्री पे असर डाल सकती है, भले ही वो कहें की चमड़े ऐसा लेकिन चमड़े और चमड़े ऐसा में बहुत फरक है। डॉटेड और अल्ट्रा थिन में वो स्पर्श सुख और नर्व एंडिंग्स कहाँ
लेकिन spontaneous तोड़ तो कोई ना कोई सोच हीं लेंगे...शेरनी के शिकार में कोई बकरे से पूछता है क्या, अब आगे देखना ही की दूबे भाभी इस बकरे का स्वाद कैसे लेती हैं और शिकारियों की चाल कितनी सफल होती है। और फिर गुड्डी जब कुछ बोलती है तो आनंद बाबू का दिमाग सोचना बंद कर देता है।
अब तो आनंद दुबे भाभी के चुंगल में फंस गया है अब तो उसका बचना मुश्किल है अब तो चिकने की मस्त रगड़ाई होने वाली है साथ ही गुड्डी रीत और संध्या भाभी को भी धमकी दे दी है दुबे भाभी ने लगता है सब पर भारी पड़ने वाली है दुबे भाभीफागुन के दिन चार ----भाग १५
दूबे भाभी
1,85,204
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चंदा भाभी अन्दर गई और रीत और संध्या भाभी दोनों मुझे उकसाते, फुसफुसाते बोलीं,
" जाओ, जाओ
मैं दूबे भाभी की ओर बढ़ा।
संध्या भाभी और रीत वहीं टेबल के पास खड़ी रही, मुश्कुराती हुई। खरगोश और शेर वाली कहानी हो रही थी। जैसे गाँव वालों ने खरगोश को शेर के पास भेजा था वैसे ही मैं भी।
दूबे भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।
उनके दोनों हाथ कमर पे थे चैलेन्ज के पोज में और भरे हुए नितम्बों पे वो बहुत आकर्षक भी लग रहे थे। उनका आँचल ब्लाउज़ को पूरी तरह ढके हुए था लेकिन 38डीडी साइज कहाँ छिपने वाली थी।
दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं -
“आ जाओ, तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। बहुत दिनों से किसी कच्ची कली का भोग नहीं लगाया। मैं रीत और संध्या की तरह नहीं हूँ। उन दोनों की भाभी हूँ…”
मैं ठिठक गया। चारों ओर मैंने देखा, ना तो भाभी के हाथ में रंग था और ना ही आसपास रंग, पेंट अबीर, गुलाल कुछ भी।
मैं दूबे भाभी को अपलक देख रहा था। छलकते हुए योवन कलश की बस आप जो कल्पना करें, रस से भरपूर जिसने जीवन का हर रंग देखा हो, देह सरोवर के हर सुख में नहाई हो, कामकला के हर रस में पारंगत, 64 कलाओं में निपुण, वो ताल जिसमें डूबने के बाद निकलने का जी ना करे।
दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा “क्या देख रहे हो लाला? अरे ऐसे मस्त देवर से होली के लिए मैं खास इंतजाम से आई हूँ…” और उन्होंने एक पोटली सी खोली।
ढेर सारी कालिख, खूब गाढ़ी, काजल से भी काली, चूल्हे के बर्तन के पेंदी से जो निकलती है वैसे ही। फिर दूसरे हाथ से उन्होंने कोई शीशी खोली, कडवा तेल की दो-चार बूँदें मिलाईं, और हाथ पे लगा लिया।
दूबे भाभीने मुझे चिढ़ाया -
“मायके जाकर तो अपनी बहन छिनाल के साथ मुँह काला करोगे ही। और वो भी गदहा चोदी यहाँ आकर सारे शहर के साथ मुँह काला करेगी तो मैंने सोचा की सबसे अच्छा तुम्हारे इस गोरे-गोरे लौंडिया स्टाइल मुँह के लिए ये कालिख ही है। और एक बात और इस कालिख की, कि चाहे तुमने नीचे तेल लगाया हो पेंट लगाया हो, कोई साल्ला कन्डोम वाला प्रोटेक्शन नहीं चलेगा। चाहे साबुन लगाओ चाहे बेसन चाहे जो कुछ, इसका रन्ग जल्दी नहीं उतरने वाला। जब रन्ग पन्चमी में आओगे ना अपनी चिनाल मादरचोद बहना को लेकर तभी मैं उतारूंगी इसका असर, चेहरे से लेकर गाण्ड तक…”
अब ये सुनकर तो मेरी भी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। मैं वहीं ठिठक गया।
लेकिन जिस तरह से दूबे भाभी मेरी और लपक के बढीं, मेरे बचने का कोई चान्स नहीं रहा। प्लानिंग साली गई गधी की चूत में। भाग भोसड़ी के। भाग साल्ला भाग और मैं मुड़ लिया।
लेकिन दूबे भाभी भी, आखीरकार सारी ननदें उनसे क्यों डरती थीं? मैं आगे-आगे वो पीछे-पीछे।
लेकिन भागने में मैं भी चतुर चालाक था। तभी तो दर्जा 7 से जब पहली बार पान्डे मास्टर मेरे पिछवाड़े के पीछे पड़े थे, तबसे आज तक मेरा पिछवाड़ा बचा हुआ था। मैं कन्नी काटकर बच गया।
लेकिन अगली बार जब मैंने ये चाल चली तो दूबे भाभी मेरे आगे और मेरा सारा ध्यान उनके 40+ साइज के मस्त नितम्बों के दर्शन में। क्या मस्त कटाव, कसाव, और चलते हुये जब दोनों गोलार्ध आपस में मिलते तो बस दिल की धड़कन डबल हो जाती। और एक दूसरा खतरा हो गया। सन्ध्या भाभी अचानक सामने आ गईं और मैं एक पल के लिये उनकी ओर देखने लगा।
बस ऐक्सिडेंट हो गया। मैं पकड़ा गया।
दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं - “साले बहनचोद, आखिर कहां जा रहे थे छिपने अपनी बहना के भोंसड़े में? अरे फागुन में ससुराल आये हो तो बिना डलवाये कैसे जाओगे सूखे सूखे? शादी के बाद दुल्हन ससुराल जाये और बिना चुदवाये बच जाये और ससुराल में कोई होली में जाये और बिना डलवाये आ जाय। सख्त नाइन्साफी है…”
अब तक मेरे गाल पे दो किशोरियों, रीत, गुड्डी और एक तरुणी, सन्ध्या भाभी की उंगलियां रस बरसा चुकी थी।
लेकिन दूबे भाभी का स्पर्श सुख कुछ अलग ही था। उन किशोरियों के स्पर्श में एक सिहरन थी, एक छुवन थी, एक चुभन थी। और सन्ध्या भाभी के छूने में जिसने जवानी का यौन सुख का नया-नया रस चखा हो उसका अहसास था।
लेकिन दूबे भाभी की रगड़ाई मसलाई में एक गजब का डामिनेन्स, एक अधिकार था जिसके आगे बस मन करता है कि बस सरेन्डर कर दो। अब जो करना हो ये करें, उनकी उंगलियां कुछ भी नहीं छोड़ रही थी, यहां तक कि मेरा मुँह खुलवा के उन्होंने दान्तों पे भी कालिख रगड़ दी। लेकिन तभी मेरी निगाह रीत पे पड़ गई, वो तेजी से कुछ इशारे कर रही थी।
सारी प्लानिंग के बाद भी मेरी हालत स्टेज पे पहली बार गये कलाकार जैसे हो रही थी, जो वहां पहुँचकर दर्शकों को देखकर सब कुछ भूल जाय और साइड से प्राम्पट प्राम्पटर इशारे करे, और उसे देखकर और डायरेक्टर के डर से उसे भूले हुये डायलाग याद आ जायें। वही हालत मेरी हो रही थी।
रीत को देखकर मुझे सब कुछ याद आ गया और मैंने एक पलटी मारी। लेकिन दूबे भाभी की पकड़ कहां बचता मैं।
हाँ हुआ वही जो हम चाहते थे। यानी अब भाभी मेरे पीछे थी।
उनके रसीले दीर्घ स्तन मेरे पीठ में भाले की नोक की तरह छेद कर रहे थे। उन्होंने अपनी दोनों टांगों के बीच मेरी टांगों को फँसा लिया था, जिससे मैं हिल डुल भी ना पाऊँ और अब उनके हाथ कालिख का दूसरा कोट मेरे गालों पे रगड़ रहे थे और साथ में अनवरत गालियां। मेरे घर में किसी को उन्होंने नहीं बख्शा।
लेकिन इसी चक्कर में वो भूल गईं इधर-उधर देखना और साइड से रीत और सन्ध्या भाभी ने एक साथ।
वो दोनों उनके चिकने गोरे-गोरे पेट पे रंग लगा रही थी, पेंट मल रही थी। लेकिन अभी भी दूबे भाभी का सारा ध्यान मेरी ओर ही लगा हुआ था जैसे कोई बहुत स्वादिष्ट मेन-कोर्स के आगे साईड डिश भूल जाय। हाँ गालियों का डायरेक्शन जरूर उन्होंने उन दोनों कि ओर मोड़ दिया था।
दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा
“अरे पतुरियों, बहुत चूत में खुजली मच रही है? भूल गई पिछले साल की होली। अरे जरा इस रसगुल्ले के चिकने गाल का मजा ले लेने दे फिर बताती हूँ तुम छिनारों को। यहीं छत पे ना नंगा नचाया तो कहना…”
स्ट्रेटेजी और मिलीभगत से दूबे भाभी रिकॉर्ड टूटना हीं चाहिए...एकदम वही हालत है आनंद बाबू की, शेरनी कैसे उनका शिकार करेगी वो जाने लेकिन इस त्याग बलिदान से दूबे भाभी का चीर हरण हो पाया की नहीं ये अगले भाग में और आनंद को भी तो नयन सुख और स्पर्श सुख का आनंद मिलेगा और सबकी तरह वो भी भले बोले नहीं लेकिन एम् आई एल ऍफ़ पे लहालोट होते हैं, गुड्डी की मम्मी को देख के ही और दूबे भाभी तो उनसे भी बीस
यहाँ तो झक्क गोले कबूतर खुद हीं बेचैन हैं....कबूतर हैं भी तो संध्या भाभी के मस्त, एक बार जब मर्द का हाथ कबूतर पर पड़ जाता है तो वो खुद ही पंख फड़फड़ाने लगते हैं
सारा प्लान उस समय फेल जाता है...फागुन के दिन चार ----भाग १५
दूबे भाभी
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चंदा भाभी अन्दर गई और रीत और संध्या भाभी दोनों मुझे उकसाते, फुसफुसाते बोलीं,
" जाओ, जाओ
मैं दूबे भाभी की ओर बढ़ा।
संध्या भाभी और रीत वहीं टेबल के पास खड़ी रही, मुश्कुराती हुई। खरगोश और शेर वाली कहानी हो रही थी। जैसे गाँव वालों ने खरगोश को शेर के पास भेजा था वैसे ही मैं भी।
दूबे भाभी मंद-मंद मुश्कुरा रही थी।
उनके दोनों हाथ कमर पे थे चैलेन्ज के पोज में और भरे हुए नितम्बों पे वो बहुत आकर्षक भी लग रहे थे। उनका आँचल ब्लाउज़ को पूरी तरह ढके हुए था लेकिन 38डीडी साइज कहाँ छिपने वाली थी।
दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं -
“आ जाओ, तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी। बहुत दिनों से किसी कच्ची कली का भोग नहीं लगाया। मैं रीत और संध्या की तरह नहीं हूँ। उन दोनों की भाभी हूँ…”
मैं ठिठक गया। चारों ओर मैंने देखा, ना तो भाभी के हाथ में रंग था और ना ही आसपास रंग, पेंट अबीर, गुलाल कुछ भी।
मैं दूबे भाभी को अपलक देख रहा था। छलकते हुए योवन कलश की बस आप जो कल्पना करें, रस से भरपूर जिसने जीवन का हर रंग देखा हो, देह सरोवर के हर सुख में नहाई हो, कामकला के हर रस में पारंगत, 64 कलाओं में निपुण, वो ताल जिसमें डूबने के बाद निकलने का जी ना करे।
दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा “क्या देख रहे हो लाला? अरे ऐसे मस्त देवर से होली के लिए मैं खास इंतजाम से आई हूँ…” और उन्होंने एक पोटली सी खोली।
ढेर सारी कालिख, खूब गाढ़ी, काजल से भी काली, चूल्हे के बर्तन के पेंदी से जो निकलती है वैसे ही। फिर दूसरे हाथ से उन्होंने कोई शीशी खोली, कडवा तेल की दो-चार बूँदें मिलाईं, और हाथ पे लगा लिया।
दूबे भाभीने मुझे चिढ़ाया -
“मायके जाकर तो अपनी बहन छिनाल के साथ मुँह काला करोगे ही। और वो भी गदहा चोदी यहाँ आकर सारे शहर के साथ मुँह काला करेगी तो मैंने सोचा की सबसे अच्छा तुम्हारे इस गोरे-गोरे लौंडिया स्टाइल मुँह के लिए ये कालिख ही है। और एक बात और इस कालिख की, कि चाहे तुमने नीचे तेल लगाया हो पेंट लगाया हो, कोई साल्ला कन्डोम वाला प्रोटेक्शन नहीं चलेगा। चाहे साबुन लगाओ चाहे बेसन चाहे जो कुछ, इसका रन्ग जल्दी नहीं उतरने वाला। जब रन्ग पन्चमी में आओगे ना अपनी चिनाल मादरचोद बहना को लेकर तभी मैं उतारूंगी इसका असर, चेहरे से लेकर गाण्ड तक…”
अब ये सुनकर तो मेरी भी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। मैं वहीं ठिठक गया।
लेकिन जिस तरह से दूबे भाभी मेरी और लपक के बढीं, मेरे बचने का कोई चान्स नहीं रहा। प्लानिंग साली गई गधी की चूत में। भाग भोसड़ी के। भाग साल्ला भाग और मैं मुड़ लिया।
लेकिन दूबे भाभी भी, आखीरकार सारी ननदें उनसे क्यों डरती थीं? मैं आगे-आगे वो पीछे-पीछे।
लेकिन भागने में मैं भी चतुर चालाक था। तभी तो दर्जा 7 से जब पहली बार पान्डे मास्टर मेरे पिछवाड़े के पीछे पड़े थे, तबसे आज तक मेरा पिछवाड़ा बचा हुआ था। मैं कन्नी काटकर बच गया।
लेकिन अगली बार जब मैंने ये चाल चली तो दूबे भाभी मेरे आगे और मेरा सारा ध्यान उनके 40+ साइज के मस्त नितम्बों के दर्शन में। क्या मस्त कटाव, कसाव, और चलते हुये जब दोनों गोलार्ध आपस में मिलते तो बस दिल की धड़कन डबल हो जाती। और एक दूसरा खतरा हो गया। सन्ध्या भाभी अचानक सामने आ गईं और मैं एक पल के लिये उनकी ओर देखने लगा।
बस ऐक्सिडेंट हो गया। मैं पकड़ा गया।
दूबे भाभी मुस्कराकर बोलीं - “साले बहनचोद, आखिर कहां जा रहे थे छिपने अपनी बहना के भोंसड़े में? अरे फागुन में ससुराल आये हो तो बिना डलवाये कैसे जाओगे सूखे सूखे? शादी के बाद दुल्हन ससुराल जाये और बिना चुदवाये बच जाये और ससुराल में कोई होली में जाये और बिना डलवाये आ जाय। सख्त नाइन्साफी है…”
अब तक मेरे गाल पे दो किशोरियों, रीत, गुड्डी और एक तरुणी, सन्ध्या भाभी की उंगलियां रस बरसा चुकी थी।
लेकिन दूबे भाभी का स्पर्श सुख कुछ अलग ही था। उन किशोरियों के स्पर्श में एक सिहरन थी, एक छुवन थी, एक चुभन थी। और सन्ध्या भाभी के छूने में जिसने जवानी का यौन सुख का नया-नया रस चखा हो उसका अहसास था।
लेकिन दूबे भाभी की रगड़ाई मसलाई में एक गजब का डामिनेन्स, एक अधिकार था जिसके आगे बस मन करता है कि बस सरेन्डर कर दो। अब जो करना हो ये करें, उनकी उंगलियां कुछ भी नहीं छोड़ रही थी, यहां तक कि मेरा मुँह खुलवा के उन्होंने दान्तों पे भी कालिख रगड़ दी। लेकिन तभी मेरी निगाह रीत पे पड़ गई, वो तेजी से कुछ इशारे कर रही थी।
सारी प्लानिंग के बाद भी मेरी हालत स्टेज पे पहली बार गये कलाकार जैसे हो रही थी, जो वहां पहुँचकर दर्शकों को देखकर सब कुछ भूल जाय और साइड से प्राम्पट प्राम्पटर इशारे करे, और उसे देखकर और डायरेक्टर के डर से उसे भूले हुये डायलाग याद आ जायें। वही हालत मेरी हो रही थी।
रीत को देखकर मुझे सब कुछ याद आ गया और मैंने एक पलटी मारी। लेकिन दूबे भाभी की पकड़ कहां बचता मैं।
हाँ हुआ वही जो हम चाहते थे। यानी अब भाभी मेरे पीछे थी।
उनके रसीले दीर्घ स्तन मेरे पीठ में भाले की नोक की तरह छेद कर रहे थे। उन्होंने अपनी दोनों टांगों के बीच मेरी टांगों को फँसा लिया था, जिससे मैं हिल डुल भी ना पाऊँ और अब उनके हाथ कालिख का दूसरा कोट मेरे गालों पे रगड़ रहे थे और साथ में अनवरत गालियां। मेरे घर में किसी को उन्होंने नहीं बख्शा।
लेकिन इसी चक्कर में वो भूल गईं इधर-उधर देखना और साइड से रीत और सन्ध्या भाभी ने एक साथ।
वो दोनों उनके चिकने गोरे-गोरे पेट पे रंग लगा रही थी, पेंट मल रही थी। लेकिन अभी भी दूबे भाभी का सारा ध्यान मेरी ओर ही लगा हुआ था जैसे कोई बहुत स्वादिष्ट मेन-कोर्स के आगे साईड डिश भूल जाय। हाँ गालियों का डायरेक्शन जरूर उन्होंने उन दोनों कि ओर मोड़ दिया था।
दूबे भाभी ने छेड़ते हुए कहा
“अरे पतुरियों, बहुत चूत में खुजली मच रही है? भूल गई पिछले साल की होली। अरे जरा इस रसगुल्ले के चिकने गाल का मजा ले लेने दे फिर बताती हूँ तुम छिनारों को। यहीं छत पे ना नंगा नचाया तो कहना…”
दूबे भाभी का दांव उलटा पड़ गया...चल गयी चाल-रीत और संध्या भौजी की
साड़ी -हरण
लेकिन ये होली पिछले साल की होली तो थी नहीं। अबकी रीत के साथ मैं था। और सन्ध्या भाभी भी ससुराल से खुलकर मजे लेकर ज्यादा बोल्ड होकर आई थी। दूबे भाभी ने वहीं गलती की जो हिन्दी फिल्मों में विलेन करता है- ज्यादा डायलाग बोलने की।
उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया की रीत और सन्ध्या भाभी, रंग लगाने के साथ साये में बन्धी उनकी साड़ी खोलने में लगे हैं। जब तक उन्हें अंदाज लगा बहुत देर हो चुकी थी। मैंने अपने चेहरे पे रगड़ रहे उनके हाथों को पकड़ लिया था। उन्होंने समझा कि मैं उन्हें कालिख लगाने से रोकने के लिये ऐसा कर रहा हूँ।
दूबे भाभी बोली- “अरे साले कालिनगन्ज के भन्डुये, (मेरे शहर की रेड लाईट ऐरिया का नाम, अकसर शादी वादी की गालियों में उसका नाम इश्तेमाल होता था,) तेरी पाँच भतारी बहन को सारे बनारस के मर्दों से चुदवाऊँ। उसमें तुम्हें शर्म नहीं लग रही है। क्या मेरा हाथ छुड़ा पाओगे। अभी तक कोई ऐसा देवर, ननद, ननदोई नहीं हुआ, जो दूबे भाभी के हाथ से छूट जाये…”
छूटना कौन चाहता था?
हाँ दूबे भाभी खुद जब उन्हें रीत और सन्ध्या की प्लानिंग का अंदाज हुआ तो मेरे चेहरे से हाथ हटाकर उन्होंने उन दोनों को रोकने की कोशिश की।
लेकिन मैं हाथ हटाने देता तब ना। मैंने और कसकर अपने चेहरे पे उनके हाथों को जकड़ लिया था। वो पूरी ताकत से अपने हाथ अब छुड़ा रही थी। लेकिन और साथ-साथ जो उन्होंने मेरे पैरों को कैन्ची की तरह अपने पैरों में फँसा रखा था, अब उन्हें खुद छुड़ाने में मुश्किल हो रही थी।
दोनों शैतानों ने मिलकर अब तक दूबे भाभी की साड़ी उनके पेटीकोट से बाहर निकाल दी थी।
सन्ध्या भाभी ने तो काही पेंट लगाकर उनके साये के अन्दर नितम्बों पे रंग भी लगाना चालू कर दिया था। लेकिन मैं जान गया था की अब थोड़ी सी देर भी बाजी पलट सकती है, इसलिये मैंने रीत को इशारा किया। और उसने एक झटके में साड़ी साये से बाहर।
और साथ ही मैंने दूबे भाभी का हाथ छोड़ दिया और पैर भी।
जैसे रस्सा कसी में एक ग्रुप अगर अचानक रस्सी छोड़ दे वाली हालत में हो गई। गिरते-गिरते वो सम्हल जरूर गईं पर इतना समय काफी था, रीत और सन्ध्या भाभी को उनकी साड़ी पे कब्जा करने के लिये।
दूबे भाभी उन दोनों की ओर लपकीं तो रीत ने साड़ी मेरी ओर उछाल दी और जब दूबे भाभी मेरी ओर आई तो मैंने साड़ी ऊपर दुछत्ती पे फेंक दी, जहां कुछ देर पहले सन्ध्या भाभी की साड़ी और ब्लाउज़ को मैंने फेंका था। वो कुछ मुश्कुराते और कुछ गुस्से में मुझे देख रही थी।
“अरे भाभी ऐसा चांदी का बदन, सोने सा जोबन। को आप मेरे ऐसे देवर से छिपाती हैं। अरे होली तो मुझे आपसे खेलनी है आपकी साड़ी से थोड़ी। फिर इत्ती महंगी साड़ी खराब होती तो भैया भी तो गुस्सा होते…”
“अरे ब्लाउज़ भी मैचिन्ग है…” सन्ध्या भाभी ने और आग लगायी।
दूबे भाभी- “मजा आयेगा तुमसे होली खेलने में। तुम्हारी तो मैं। …” वो कुछ आगे बोलती उसके पहले चंदा भाभी आ गई गुड्डी के साथ।
अब मैंने समझा गुड्डी ने पाला नहीं बदला था, वो घुसपैठिया थी। अगर वो बहाना बनाकर चंदा भाभी को . अन्दर ना ले जाती और अगर चंदा भाभी दूबे भाभी का साथ देती तो उनका साड़ी हरण करना मुश्किल था.