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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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नहीं... नहीं.. ये मेरा कमाल नहीं है...पढ़ने वाला हो तो आप जैसा
एक एक चीज आपने पकड़ ली,... मैंने कहा था की इस कहानी में कोई फेरबदल नहीं करुँगी,
जोरू का गुलाम भी एक तरह से रिपोस्ट थी लेकिन करीब ४० % हिस्सा उसमें नया घुस गया, और फोरम की पॉलिसी के चक्कर में दो चार पार्ट कट भी गए,
लेकिन इसमें मैंने तय किया था की कुछ नया नहीं जोड़ूँगी, दो कहानिया आलरेडी चल रही हैं और पिक्स भी सिर्फ हर पार्ट में एक या वो भी नहीं
लेकिन रफ़ूगीरी तो करनी पड़ती है और एक कारण ये भी है कई बार बाद की पोस्टों में और शुरू की पोस्टों में कुछ बाद में पढ़ने में लगता है की अंतर् हो गया, जैसे ये कैरेक्टर कहानी में प्रॉपर्ली इंट्रोड्यूस नहीं हुआ।
कहानी के बाद के हिस्से में गुड्डी की माँ का भी कई बार जिक्र आया, इसलिए पात्र परिचय में भी उनका नाम जुड़ा और उसी तरह शुरूआती पोस्ट्स में ध्यान से देखने पर कुछ जोड़ा जाना लगे. लेकिन जैसा आपने कहा वो अच्छे के लिए ही होगा।
हाँ लेकिन उसके चक्कर में पार्ट नहीं बढ़ेंगे जैसा आपने सजेस्ट किया था कांटेट, पोस्ट की साइज, अगली पोस्ट ही काफी बड़ी होगी ६,००० शब्दों के आसपास , नार्मल दो तीन पोस्टों के बराबर।
आइस-पाइस इस मामले में काफी मदद करता था....एकदम सही कहा आपने
इस कहानी में बार बार उस तरह के पल आएंगे, जैसे लगेगा हम लोग टाइम ट्रेवेल कर रहे हैं,... गर्मी की छुट्टियों में, शादियों में उस नैनो के चार होने में कितनी उम्मीदे जगती थी, कितनी बस मुंह भर बतिया के ख़तम हो जाती थी और कुछ हिम्मती लोग होते थे तो कभी कभार बात देह तक पहुँच जाती, वो भी अक्सर छुवा छुवल, कभी दरवाजे के पीछे छिप कर पकड़ लेने तक, ... बहुत कम बार मामला आखिर तक पहुंचता था
और उन्ही यादों के सहारे कैशोर्य पार हो के, नौकरी का कम्पटीशन, जिंदगी की आपधापी,
भईया-भाभी का ये contrast भी कहानी को एक नया आयाम देता है...पुरुष पात्रों में मुझे ज्यादा महारत हासिल नहीं है
दूसरे ढेर सारे कैरेक्टर्स आने से जो मुख्य कैरेक्टर्स है उनकी आभा धूमिल पड़ने लगती है जैसे फिल्मों में समूह गान में हीरोइन के कपडे का रंग बाकी डांसर से अलग होता है वो सबसे आगे रहती है।
भाई साहब के बारे में इतना तो लिखा ही ही की वो गुरु गंभीर थे, काम से काम रखते थे, ज्यादा बात नहीं करते थे और उमर का अंदर ज्यादा था, ... इसलिए और,... हाँ भाभी के बारे में वो दोस्त कहिये सहेली कहिये, जो बिना कहे बात समझ जाए, जिससे जो बात घर में किसी से न कही जा सकती हो वो कही जा सके,... और मजाक छेड़छाड़ तो है लेकिन एक लाइन भी है, भाभी छेड़ भी लेगी, चिढ़ा भी लेगी लेकिन देवर जवाब नहीं दे सकता।
और तन-मन विभोर हो प्रफुल्लित हो उठता है...और होली की पृष्ठ भूमि इसलिए की
इसमें अनुराग भी है और उसके लिए पृष्ठभूमि फागुन से बढ़ कर क्या होगी, ...
दूसरी बात आतंक है लेकिन अनुराग है पृष्ठभूमि में, ... चाहे आनंद और गुड्डी हों या करन -रीत
विजय अनुराग की होती है, प्रेम की और फागुन की।
कहानी की यही हाजिरजवाबी तो मन लुभा लेती है...फागुन के दिन चार भाग २
रस बनारस का - चंदा भाभी
१४,४३५
तब तक वहां एक महिला आई क्या चीज थी। गुड्डी ने बताया की वो चन्दा भाभी हैं। वह भी भाभी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी, लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी 38डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एकदम कसा कड़ा। मैं तो देखता ही रह गया। मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज़ भी उन्होंने एकदम लो-कट पहन रखा था।
मेरी ओर उन्होंने सवाल भरी निगाहों से देखा।
भाभी ने हँसकर कहा अरे बिन्नो के देवर, अभी आयें हैं और अभी कह रहे हैं की जायेंगे। मजाक में भाभी की भाभी सच में उनकी भाभी थी और जब भी मैं भैया की ससुराल जाता था, जिस तरह से गालियों से मेरा स्वागत होता था और मैं थोड़ा शर्माता था इसलिए और ज्यादा। लेकिन चन्दा भाभी ने और जोड़ा-
“अरे तब तो हम लोगों के डबल देवर हुए तो फिर होली में देवर ऐसे सूखे सूखे चले जाएं ससुराल से ये तो सख्त नाइंसाफी है। लेकिन देवर ही हैं बिन्नो के या कुछ और तो नहीं हैं…”
“अब ये आप इन्हीं से पूछ लो ना। वैसे तो बिन्नो कहती है की ये तो उसके देवर तो हैं हीं, उसके ननद के यार भी हैं इसलिए नन्दोई का भी तो…” भाभी को एक साथी मिल गया था।
“तो क्या बुरा है घर का माल घर में। वैसे कित्ती बड़ी है तेरी वो बहना। बिन्नो की शादी में भी तो आई थी। सारे गावं के लड़के… चौदह से उपर तो बिन्नो की शादी में ही लग रही थी, चौदह की तो हो गयी न भैया, "” चंदा भाभी ने छेड़ा।
ये सवाल मेरे से था लेकिन जवाब गुड्डी ने दिया . गुड्डी ने भी मौका देखकर पाला बदल लिया और उन लोगों के साथ हो गई। बोली
“मेरे साथ की ही है। मेरे साथ ही पिछले साल दसवां पास किया था, और चौदह की तो कब की हो गयी। " …”
“अरे तब तो एकदम लेने लायक हो गई होगी। चौदह की हो गयी मतलब चुदवाने लायक तो हो गयी, अब तो पक्की चुदवासी होगी , भैया, जल्दी ही उसका नेवान कर लो वरना जल्द ही कोई ना कोई हाथ साफ कर देगा दबवाने वबवाने तो लगी होगी। है न। हम लोगों से क्या शर्माना…”
चंदा भाभी ने मेरी रगड़ाई का लेवल बढ़ा दिया।
लेकिन मैं शर्मा गया। मेरा चेहरा जैसे किसी ने इंगुर पोत दिया हो। और चंदा भाभी और चढ़ गईं।
“अरे तुम तो लौंडियो की तरह शर्मा रहे हो। इसका तो पैंट खोलकर देखना पड़ेगा की ये बिन्नो की ननद है या देवर…”
भाभी हँसने लगी और गुड्डी भी मुश्कुरा रही थी।
मैंने फिर वही रट लगाई-
“मैं जा रहा हूँ। सुबह आकर गुड्डी को ले जाऊँगा…”
“अरे कहाँ जा रहे हो, रुको ना और हम लोगों की पैकिंग वेकिंग हो गई है ट्रेन में अभी 3 घंटे का टाइम है और वहां रेस्टहाउस में जाकर करोगे क्या अकेले या कोई है वहां…” भाभी बोली।
“अरे कोई बहन वहन होंगी इनकी यहाँ भी। क्यों? साफ-साफ बताओ ना। अच्छा मैं समझी। दालमंडी (बनारस का उस समय का रेड लाईट एरिया जो उन लोगों के मोहल्ले के पास ही था) जा रहे हो अपनी उस बहन कम माल के लिए इंतजाम करने। तुम खुद ही कह रहे हो चौदह की कब की हो गयी . बस लाकर बैठा देना। मजा भी मिलेगा और पैसा भी।
लेकिन तुम खुद इत्ते चिकने हो होली का मौसम, ये बनारस है। किसी लौंडेबाज ने पकड़ लिया ना तो निहुरा के ठोंक देगा और फिर एक जाएगा दूसरा आएगा रात भर लाइन लगी रहेगी। सुबह आओगे तो गौने की दुल्हन की तरह टांगें फैली रहेंगी…”
चंदा भाभी अब खुलकर चालू हो गई थी।
“और क्या हम लोग बिन्नो को क्या मुँह दिखायेंगे…” भाभी भी उन्हीं की भाषा बोल रही थी। वो उठकर किसी काम से दूसरे कमरे में गईं तो अब गुड्डी ने मोर्चा खोल लिया।
“अरे क्या एक बात की रट लगाकर बैठे हो। जाना है जाना है। तो जाओ ना। मैं भी मम्मी के साथ कानपुर जा रही हूँ। थोड़ी देर नहीं रुक सकते बहुत भाव दिखा रहे हो। सब लोग इत्ता कह रहे हैं…”
“नहीं। वैसा कुछ खास काम नहीं। मैंने सोचा की थोड़ा शौपिंग वापिंग। और कुछ खास नहीं। तुम कहती हो तो…” मैंने पैंतरा बदला।
“नहीं नहीं मेरे कहने वहने की बात नहीं है। जाना है तो जाओ। और शौपिंग तुम्हें क्या मालूम कहाँ क्या मिलता है। यहाँ से कल चलेंगे ना। दोपहर में निकलेंगे यहाँ से फिर तुम्हारे साथ सब शौपिंग करवा देंगे। अभी तो तुम्हें सैलरी भी मिल गईं होगी ना सारी जेब खाली करवा लूँगी…”
ये कहकर वो थोड़ा मुश्कुराई तो मेरी जान में जान आई।
चन्दा भाभी कभी मुझे तो कभी उसे देखती।
“ठीक है बाद में सब लोगों के जाने के बाद…” मैंने इरादा बदल दिया और धीरे से बोला।
“तुम्हें मालूम है कैसे कसकर मुट्ठी में पकड़ना चाहिए…” चन्दा भाभी ने मुश्कुराते हुए गुड्डी से कहा।
“और क्या ढीली छोड़ दूं तो पता नहीं क्या?”
गुड्डी मुस्करा के बोली।
और मैं भी उन दोनों के साथ मुश्कुरा रहा था। तब तक भाभी आ गईं और गुड्डी ने मुझे आँख से इशारा किया। मैं खुद ही बोला- “भाभी ठीक ही है। आप लोग चली जाएंगी तभी जाऊँगा। वैसे भी वहां पहुँचने में भी टाइम लगेगा और फिर आप लोगों से कब मुलाकात होगी…”
चन्दा भाभी तो समझ ही रही थी की। और मंद-मंद मुश्कुरा रही थी। लेकिन भाभी मजाक के मूड में ही थी वो बोली-
“अरे साफ-साफ ये क्यों नहीं कहते की पिछवाड़े के खतरे का खयाल आ गया। ठीक है बचाकर रखना चाहिए। सावधानी हटी दुर्घटना घटी… पिछवाड़े तेल वेल लगा के आये थे की नहीं, अरे बनारस है तुम्हारी ससुराल भी है, फिर फटने वाली चीज कब तक बचा के रखोगे "
भाभी , गुड्डी की मम्मी अब पूरे जोश में आ गयी थीं और उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था की उनकी बेटियां, गुड्डी और छुटकी वहीँ बैठीं हैं। दोनों मुस्करा रही थीं।
“अरे इसमें ऐसे डरने की क्या बात है देवरजी, ऐसा तो नहीं है की अब तक आपकी कुँवारी बची होगी। ऐसे चिकने नमकीन लौंडे को तो, वैसे भी ये कहा है ना की मजा मिले पैसा मिले और… कड़वा तेल की आप चिंता न करिये। अरे ये कानपुर जा रही हैं मैं तो हूँ न। पक्का दो ऊँगली की गहराई तक,... नहीं होगा तो कुप्पी लगा के, पूरे ढाई सौ ग्राम पीली सरसों का तेल,... गुड्डी साथ देगी न मेरा बस इन्हे पकड़ के निहुराना रहेगा। अब इतनी कंजूसी भी नहीं की एक पाव तेल के लिए बेचारे देवर की पिछवाड़े की चमड़ी छिले। "
चंदा भाभी तो गुड्डी की मम्मी से भी दो हाथ आगे।”
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गड्डी मैदान में आ गई मेरी ओर से- “इसलिए तो बिचारे रुक नहीं रहे थे। आप लोग भी ना…”
“बड़ा बिचारे की ओर से बोल रही हो। अरे होली में ससुराल आये हैं और बिना डलवाए गए तो नाक ना कट जायेगी। अरे हम लोग तो आज जा ही रहे हैं वरना। लेकिन आप लोग ना…” गुड्डी की मम्मी बोली।
“एकदम…” चन्दा भाभी बोली।
“आपकी ओर से भी और अपनी ओर से भी इनके तो इत्ते रिश्ते हो गए हैं। देवर भी हैं बिन्नो के नंदोई भी। और इनकी बहन आके दालमंडी में बैठेगी तो पूरे बनारस के साले भी, इसलिए डलवाने से तो बच नहीं सकते। अरे आये ही इसलिये हैं की, क्यों भैया वेसेलिन लगाकर आये हो या वरना मैं तो सूखे ही डाल दूँगी। और तू किसका साथ देगी अपनी सहेली के यार का। या…”
चन्दा भाभी अब गुड्डी से पूछ रही थी।
गुड्डी खिलखिला के हँस रही थी। और मैं उसी में खो गया था। भाभी किचेन में चली गई थी लेकिन बातचीत में शामिल थी।
“अरे ये भी कोई पूछने की बात है आप लोगों का साथ दूँगी। मैं भी तो ससुराल वाली ही हूँ कोई इनके मायके की थोड़ी। और वैसे भी शर्ट देखिये कित्ती सफेद पहनकर आये हैं इसपे गुलाबी रंग कित्ता खिलेगा। एकदम कोरी है…”
गुड्डी ने मेरी आँख में देखते हुए जो बोला तो लगा की सौ पिचकारियां चल पड़ी
“इनकी बहन की तरह…” चंदा भाभी जोर से हँसी और मुझसे बोली,
“लेकिन डरिये मत हम लोग देवर से होली खेलते हैं उसके कपड़ों से थोड़े ही…”
तब तक भाभी की आवाज आई-
“अरे मैं थोड़ी गरम गरम पूड़ियां निकाल दे रही हूँ भैया को खिला दो ना। जब से आये हैं तुम लोग पीछे ही पड़ गई हो…”
चंदा भाभी अंदर किचेन में चली गईं लेकिन जाने के पहले गुड्डी से बोला-
“हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है। वो वाली (और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हँस पड़ी), गुंजा से पूछ लेना अलग डब्बे में रखी है। जा…
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आनंद बाबु को अपने ससुराल (बल्कि भाई के ससुराल और उनकी होने वाली ससुराल) का असली मजा मिलने वाला है....गुझिया
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तब तक भाभी की आवाज आई- “अरे मैं थोड़ी गरम गरम पूड़ियां निकाल दे रही हूँ भैया को खिला दो ना। जब से आये हैं तुम लोग पीछे ही पड़ गई हो…”
चंदा भाभी अंदर किचेन में चली गईं लेकिन जाने के पहले गुड्डी से बोला- “हे सुन मैंने अभी गरम गरम गुझिया बनायी है। वो वाली (और फिर उन्होंने कुछ गुड्डी के कान में कहा और वो खिलखिला के हँस पड़ी), गुंजा से पूछ लेना अलग डब्बे में रखी है। जा…”
वो मुझे बगल के कमरे में ले गई और उसने बैठा दिया-
“हे कहाँ जा रही हो…” मैं फुसफुसा के बोला।
“तुम ना एकदम बेसबरे हो। पागल। अभी तो खुद भागे जा रहे थे और अभी। अरे बाबा बस अभी गई अभी आई। बस यहीं बैठो।"
उसने मेरी नाक पकड़कर हिला दिया और हिरणी की तरह उछलती 9-2-11 हो गई। मेरे तो पल काटे नहीं कट रहे थे। मैं दीवाल घड़ी के सेकेंड गिन रहा था।
पूरे चार मिनट बाद वो आई। एक बड़ी सी प्लेट में गुझिया लेकर। गरम गरम ताजी और खूब बड़ी-बड़ी गदराई सी। अबकी सोफे पे वो मुझसे एकदम सटकर बैठ गई। उसकी निगाहें दरवाजे पे लगी थी।
“लो…” मैंने हाथ बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ रोक दिया। और अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोली-
“मेरे रहते तुम्हें हाथों का इश्तेमाल करना पड़े…”
उसका द्विअर्थी डायलाग मैं समझ तो रहा था लेकिन मैंने भी मजे लेकर कहा-
“एकदम और वैसे भी इन हाथों के पास बहुत काम है…”
और मैंने उसे बाहों में भर लिया। बिना अपने को छुड़ाये वो मुश्कुराकर बोली-
“लालची बेसबरे।“
और अपने हाथ से एक गुझिया मेरे होंठों से लगा दिया। मैंने जोर से सिर हिलाया। वो समझ गई और बोली-
"तुम ना। नहीं सुधरने वाले
और गुझिया अपने रसीले होंठों में लगाकर मेरे मुँह में डाल दिया। मैंने आधा खाने की कोशिश की लेकिन उसकी जीभ ने पूरी की पूरी मुँह में धकेल दी।
“हे आधे की नहीं होती। पूरा अन्दर लेना होता है…” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरा मुँह भरा था लेकिन मैं बोला- “हे अपनी बार मत भूल जाना मना मत करने लगना…”
“जैसे मेरे मना करने से मान ही जाओगे और जब पूरा मेरा है तो आधा क्यों लूंगी…”
उसकी अंगुलिया अब मेरे पैंट के बल्ज पे थी। तम्बू पूरी तरह तन गया था। मेरे हाथ भी हिम्मत करके उसके उभारों की नाप जोख कर रहे थे।
“हे एक मेरी ओर से भी खिला देना…” किचेन से चन्दा भाभी की आवाज आई।
“एकदम…” गुड्डी बोली और दूसरी गुझिया भी मेरे मुँह में थी।
गुड्डी ने बताया की चन्दा भाभी एकदम बिंदास हैं और उसकी सहेली की तरह भी। उनके पति दुबई में रहते हैं कभी दो-तीन साल में एक बार आते हैं लेकिन पैसा बहुत है। इनकी एक लड़की है गुंजा 9वीं में पढ़ती है। गुड्डी के ही स्कूल में ही।
“हे गुड्डी खाना ले जाओ या बातों से ही इनका पेट भर दोगी…” किचेन से उसकी मम्मी की आवाज आई।
“प्लानिंग तो इसकी यही लगती है…” हँसकर मैं भी बोला।
गुड्डी जब खाना लेकर आई तो पीछे से चन्दा भाभी की आवाज आई-
“अरे पाहुन खाना खा रहे हो और वो भी सूखे सूखे। ये कैसे?”
मैं समझ गया और बोला की अरे उसके बिना तो मैं खाना शुरू भी नहीं कर सकता।
“अरे इनकी बहनों का हाल जरा सुना दो कसकर…” भाभी बोली।
“क्या नाम है इनके माल का?” चन्दा भाभी ने पूछा। बिना नाम के गारी का मजा ही क्या?
गुड्डी मेरे पास ही बैठी थी। उसने वहीं से हुंकार लगाई-
“मेरा ही नाम है। गुड्डी…”
“आनंद की बहना बिकी कोई लेलो…” गाना शुरू हो गया था और इधर गुड्डी मुझे अपने हाथ से खिला रही थी।
अरे आनंद की बहिनी बिके कोई ले लो। अरे रूपये में ले लो अठन्नी में ले लो,
अरे गुड्डी रानी बिके कोई ले लो अरे अठन्नी में ले लो चवन्नी में ले लो
जियरा जर जाय मुफ्त में ले लो अरे आनंद की बहिनी बिकाई कोई ले लो।
होली हो और मालपुआ ना हो..आनंद की बहिनी बिके कोई ले लो.
“अरे इनकी बहनों का हाल जरा सुना दो कसकर…” भाभी बोली।
“क्या नाम है इनके माल का?” चन्दा भाभी ने पूछा। बिना नाम के गारी का मजा ही क्या?
गुड्डी मेरे पास ही बैठी थी। उसने वहीं से हुंकार लगाई- “मेरा ही नाम है। गुड्डी…”
“आनंद की बहना बिकी कोई लेलो…” गाना शुरू हो गया था और इधर गुड्डी मुझे अपने हाथ से खिला रही थी।
अरे आनंद की बहिनी बिके कोई ले लो। अरे रूपये में ले लो अठन्नी में ले लो,
अरे गुड्डी रानी बिके कोई ले लो अरे अठन्नी में ले लो चवन्नी में ले लो
जियरा जर जाय मुफ्त में ले लो अरे आनंद की बहिनी बिकाई कोई ले लो।
और अगला गाना चन्दा भाभी ने शुरू किया।
मंदिर में घी के दिए जलें मंदिर में।
मैं तुमसे पूछूं हे देवर राजा, हे नंदोई भड़ुए। हे आनंद भड़ुए। तुम्हरी बहिनी का रोजगार कैसे चले
अरे तुम्हारी बहिनी का गुड्डी साल्ली का कारोबार कैसे चले।
अरे उसके जोबना का ब्योपार कैसे चले, मैं तुमसे पूछूं हे आनंद भड़ुए।
“क्यों मजा आ रहा है अपनी बहिन का हाल चाल सुनने में…” गुड्डी ने आँखें नचाकर मुझे छेड़ा।
“एकदम लेकिन घर चलो सूद समेत वसूलूँगा तुमसे…”
“वो तो मुझे मालूम है लेकिन डरती थोड़ी ना हूँ…” हँसकर मेरी बाहों से अपने को छुड़ाकर वो किचेन में चली गई।
गरमागरम पूड़ियां वो ले आई और बोली- “कैसा लगा मम्मी पूछ रही थी…”
मैं समझ गया वो किसके बारे में पूछ रही हैं। हँसकर मैंने कहा- “नमक थोड़ा कम था। मुझे थोड़ा और तीखा अच्छा लगता है…”
“अच्छा ज्यादा नमक पसंद है ना ऐसी मिर्चे लगेंगी की परपराते फिरोगे…”
चन्दा भाभी ने सुन लिया था और वहीं से उन्होंने जवाब दिया। और अगली गाली वास्तव में जबर्दस्त थी।
“मैं तुमसे पूछूँ आनंद साले। अरे तुम्हरी बहिनी के कित्ते द्वार।
आरी तुम्हरी बहिनी गुड्डी साल्ली है पक्की छिनार।
एक जाय आगे दूसर पिछवाड़े बचा नहीं कोई नौवा कहांर,
क्यों? एक साथ दोनों ओर से गुड्डी ने मुश्कुराकर मुझसे पूछा।
उधर भाभी ने वहीं से आवाज लगाईं- “अरे मैं तो समझती थी की बिन्नो के सिर्फ देवरों को ही पिछवाड़े का शौक है तो क्या उसकी ननदों को भी…”
“एकदम साल्ली नम्बरी छिनार हैं…” चन्दा भाभी ने जवाब दिया ओर अगला गाना, भाभी ने शुरू किया। मैंने खाना धीमे कर दिया था। गालियां वो भी भाभियों के मुँह से खूब मस्त लग रही थी।
कामदानी दुपट्टा हमारा है कामदानी।
आनंद की बहिना ने एक किया दू किया,
तुरक पठान किया पूरा हिन्दुस्तान किया
900 भड़ुए कालिनगंज (मेरे घर का रेड लाईट एरिया) के
अरे 900 गदहे,एलवल के (जिस मोहले में गुड्डी का घर था और उसकी गली में कुछ धोबी थे गली के बाहर गदहे बंधे रहते थे )
अरे गुड्डी रानी ने गुड्डी साल्ली ने एक किया दो किया,
हमारो भतार किया भतरो के सार किया।
उन्होंने गाना खतम भी नहीं किया था की चन्दा भाभी शुरू हो गईं।
मैं तुमसे पूछी हे गुड्डी बहना रात की कमाई का मिललई,
अरे भैया चार आना गाल चुमाई का, आठ आना जुबना मिस्वाई का,
और एक रुपिया टांग उठवाई का।
लेकिन भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने थोड़ा सा लेवल बढ़ाया और वो सिर्फ गुड्डी या बहनों पर लिमिट नहीं करती थीं अब चंदा भाभी सहायक भूमिका में थी, गुड्डी मेरे बगल में बैठे मेरे साथ सुन रही थी, और मुझे देख के मुस्करा रही थी,
आनंद भैया क बहिनी चढ़ गयी शहतूत
अरे गुड्डी छिनरो चढ़ गयी शहतूत , अरे अरे गुड्डी क उड़ गया स्कर्ट
अरे गुड्डी क उड़ गया स्कर्ट और दिख गयी चूत, अरे दिख गयी चूत
अरे आनंद भैया क अम्मा चढ़ गयी खजूर , अरे आनंद भैया क अम्मा चढ़ गयी खजूर ,
अरे आनंद भैया क महतारी चढ़ गयी खजूर , अरे उड़ गयी उनकी साड़ी अरे उलट गयी उनकी साड़ी
अरे उड़ गयी उनकी साड़ी अरे उलट गयी उनकी साड़ी और दिख गयी बुर, अरे दिख गयी बुर
तब तक गुड्डी माल पुआ लेकर आई- “एकदम तुम्हारे बहन के गाल जैसा है…”
खाने पीने के समय ससुराल में गारियों से स्वागत....मिर्ची
“चल मेरे घोड़े चने के खेत में
चने के खेत में बोई थी घूंची, आनंद की बहना को गुड्डी को ले गया मोची,
तब तक गुड्डी माल पुआ लेकर आई- “एकदम तुम्हारे बहन के गाल जैसा है…”
चन्दा भाभी वहीं से बोली- “कचकचोवा…”
मैंने गुड्डी से कहा ऐसे नहीं तो वो नासमझ पूछ बैठी कैसे। तो मैंने खींचकर उसे गोद में बैठा लिया ओर उसके होंठ पे हाथ लगाकर बोला ऐसे। वो ठसके से मेरी गोद में बैठकर मालपुआ अपने होंठों के बीच लेकर मुझे दे रही थी ओर जब मैंने उसके होंठों से होंठ सटाए तो वो नदीदी खुद गड़प कर गई। चल तुझे अभी घोंटाता हूँ कहकर मैंने उसके होंठ काट लिए।
उय्यीई, उसने हल्की सी सिसकी ली ओर मुझे छेड़ा- “हे है ना मेरी नामवाली के गाल जैसा। कभी काटा तो होगा…”
“ना…” मैंने खाते हुए बोला।
“झूठे। चूमा चाटा तो होगा…”
“ना…”
“ये तो बहुत नाइंसाफी है। चल अबकी मैं होली में तो रहूँगी ना। उसका हाथ पैर बाँधकर सब कुछ कटवाऊँगी…” और अबकी उसने मालपुआ अपने होंठों से पास करते, मेरे होंठ काट लिए। मुझे कुछ-कुछ हो रहा था इत्ती मस्ती खुमारी सी लग रही थी।
तभी चन्दा भाभी की आवाज आई- “अरे गुड्डी और मालपुआ ले जाओ ओर हाँ अपनी नामवाली के यार से पूछना की अब नमक तो ठीक है ना…”
“भाभी नमक तो ठीक है लेकिन मिर्ची थोड़ी कम है…” मैंने खुद जवाब दिया।
“तुमने अच्छे घर दावत दी…” गुड्डी मुझसे बोलते, मुश्कुराते, मुझे दिखाकर अपने चूतड़ मटकाते किचेन की ओर गई ओर सच। अबकी चन्दा भाभी की आवाज खूब ठसके से जोरदार।
“चल मेरे घोड़े चने के खेत में चने के खेत में,
चने के खेत में बोई थी घूंची, आनंद की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मोची,
दबावे दोनों चूची चने के खेत में। चने के खेत में,
चने के खेत में पड़ी थी राई। चने के खेत में।
आनंद साले की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मेरा भाई,
कसकर करे चुदाई चने के खेत में, चने के खेत में।
और अब भाभी गुड्डी की मम्मी जोश में आ गयी और अब वो खूब टनकदार आवाज में गा रही थीं और चंदा भाभी उनका साथ दे रही थीं,
चने के खेत में, हो चने के खेत में पड़ा था पगहा, चने के खेत में पड़ा था पगहा
गुड्डी रंडी को, गुड्डी भाई चोद को ले गया, अरे ले गया, गदहा चने के खेत में
अरे चोद रहा , अरे आनंद भैया की बहिनी को चोद रहा गदहा चने के खेत में
अरे चने के खेत में चने के खेत में पड़ा था रोड़ा,
आनंद भैया की अम्मा को ले गया घोड़ा, चने के खेत में, चने के खेत में।
आनंद भैया की महतारी को ले गया घोड़ा, चने के खेत में, चने के खेत में।
घोंट रही लौड़ा, चने के खेत में।
अरे आनंद भैया की महतारी घोंट रही लौड़ा, चने के खेत में।
“तो क्या गदहे घोड़े से भी?” चन्दा भाभी ने वहीं से मुझसे पूछा- “बड़ी ताकत है तोहरी बहन महतारी में भैया …”
और यहाँ गुड्डी पूरी तरह पाला पार कर गई थी। बैठी मेरे पास थी लेकिन साथ। वहीं से उसने और आग लगाईं। “अरे उसकी गली के बाहर दस बारह गदहे हरदम बंधे रहते हैं ना विश्वास हो तो उनके भैया बैठे हैं पूछ लीजिये…”
“क्यों?” चन्दा भाभी ने हँसकर पूछा- “तब तो तुम्हारा प्लान सही था उसको दालमंडी लाने का। दिन रात चलती उसको मजा मिलता और तुमको पैसा। क्यों है ना?”
तब तक उस दुष्ट ने दही बड़े में ढेर सारी मिर्चे डालकर मेरी मुँह में डाल दी। मैं चन्दा भाभी की बात सुनने में लागा था। इत्ती जोर की मिर्च लगी की मैं बड़ी जोर से चिल्लाया पानी।
“अरे एक गाने में ही मिर्च लग गई क्या?” हँसकर चंदा भाभी ने पूछा।
“ऊपर लगी की नीचे?” भाभी क्यों पीछे रहती।
“अरे साफ-साफ क्यों नहीं पूछती की गाण्ड में मिर्च तो नहीं लग गई…” चन्दा भाभी भी ना।
पानी तो था लेकिन उस रस नयनी के हाथ में ओर वह कभी उसे अपने गोरे गालों पे लगाकर मुझे ललचाती कभी अपने किशोर उभारों पे। मुझसे दूर खड़ी-
“चाहिए क्या?” आँखें नचाकर हल्के से वो बोली।
“ऐसे मत देना सब कुछ कबूल करवा लेना पहले…” चन्दा भाभी वहीं से बोली।
“जरा गंगाजी वाला तो सुना दो इनको…” भाभी ने चंदा भाभी से कहा।
गुड्डी अब पास आकर बैठ गई थी लेकिन ग्लास वाला हाथ अभी भी दूर था- “बड़े प्यासे हो…” वो ललचा रही थी, तड़पा रही थी।
“हाँ…” मैंने उसी तरह हल्के से कहा।
“किस चीज की प्यास लगी है?”
“तुम्हारी…”
उसने ग्लास से एक बड़ा सा घूँट लिया। और ग्लास अपने हाथ से मेरे होंठों से लगा दिया। हँसकर वो बोली, जूठा पीने से प्यार बढ़ता है, और मेरे हाथ से ग्लास लेकर बाकी बचा पानी पी गई।
“कब बुझेगी प्यास?” मैंने बेसब्र होकर उसके कानों में हल्के से पूछा।
“बहुत जल्द। कल। अभी मेरी पांच दिन की छुट्टी चल रही है। कल आखिरी दिन है…” और वो ग्लास लेकर बाहर चली गई।
कुछ नया पेश किया..थोड़ा सा फ्लैश बैक
गुड्डी और भाभी ( गुड्डी की मम्मी )
भाभी मेरा मतलब गुड्डी की मम्मी की टनकदार आवाज में गारी सुनते सुनते मैं एकदम फ्लैश बैक में चला गया,
भैया की शादी,.... बताया तो था इन्ही के बड़े से घर, गुड्डी की मम्मी के घर से शादी हुयी थी, तीन दिन की गाँव की बारात, आम की बाग़ में तम्बू में टिकी, ... और सब रस्म रिवाज और कोई रस्म नहीं जिसमे माँ बहीन खुल्लम खुल्ला न गरियाई जाएँ,... मैंने उसी साल इंटर का इम्तहान दिया था,... हाँ घर से मुझे समझा बुझा के भेजा गया था, गाँव की शादी है खूब गारी वारी सुननी पड़ेगी, खुल्ल्म खुल्ला मजाक होगा, एकदम बुरा मत मानना, ...
शादी के अगले दिन कलेवा होता है, ...
लड़का, सहबाला यानी मैं और दो चार कुंवारे लड़के और दूल्हे से कम उम्र के,... और न लड़के की ओर का कोई रहता न न लड़की की ओर का कोई मर्द, ... खाली साली सलहज, घर गाँव की औरतें, हाँ नाऊ जरूर साथ रहता है दूल्हे के पीछे बैठा, अंगोछा लेकर तैयार। सब साली सलहज एक एक करके कभी साथ साथ मिलती हैं, किसी ने सिन्दूर लगा दिया बाल में, किसी ने काजल, किसी ने पाउडर मुंह पे पोत दिया तो नाऊ बिना कुछ बोले अंगोछे से पोछ देता है फिर अगली साली, सलहज वही हरकत करती है और घंटो चलता है ये,....
और उसी समय भाभी, गुड्डी की मम्मी से पहला सामना हुआ।
देखा तो पहले भी था, पहचानता था, रात भर उनकी टनकदार आवाज में एक से एक गारी भी सुनी थी, मंडप में बैठ के। लेकिन जो कहते हैं न वन टू वन वो उसी समय, एकदम पास से पहली बार देखा था और देखता रह गया. खूब भरी देह, गोरी जबरदस्त, मुंह में पान, होंठ खूब लाल, बड़े बड़े झुमके, और कोहनी तक लाल लाल चूड़ियां गोरे हाथों में, और खूब टाइट लाल रंग का ही चोली कट ब्लाउज, जो नीचे से उभारों को उभारे और साइड से कस के दबोचे, और खूब लो कट, स्लीवलेस, मांसल गोरी गोलाइयाँ तो झलक ही रही थीं घाटी भी अंदर तक, और साड़ी प्याजी रंग की एकदम झलकौवा, ....
मैं देखता रहा गया और वो भी समझ गयी थी मेरी हालत, इंटर विंटर की उमर में तो बहुत जल्द हालत खराब हो जाती है,... लेकिन मुझे होश तब आया जब उन्होंने मेरे कायदे से कढ़े बाल हाथ लगा के बिगाड़ दिए और जोर से चिढ़ाया, उनके साथ कोई लड़की, भाभी की की कोई सहेली और एक दो औरतें और थीं और चिढ़ाते हुए बोलीं,
" तोहार महतारी बाल भी ठीक से नहीं काढ़ी, ... अइसन जल्दी थी आपन तो खूब सिंगार पटार कर के,... बारात जाए तो अपने यारों को बुलाय के चक्की चलवाएंगी अपनी, आठ दस मरद तो चढ़ ही चुके होंगे रात में,... लौट के जाना तो खोल के देखना, बुलबुल ने कितना चारा खाया, सफ़ेद परनाला बह रहा होगा " ( उस समय रिवाज था अभी गाँव में बहुत जगह, बरात में लड़कियां औरतें नहीं जाती थीं और बरात जाने के बाद घर में औरतों का राज, रात भर रतजगा, नटका, और खूब मस्ती होती थी, हाँ दूर दूर तक कोई आदमी क्या बच्चा भी नहीं रहता था )
और जब तक मैं समझूं उनकी बदमाशी, उन्होंने कंघी लेकर मेरा बाल फिर से काढ़ दिया और सीधी मांग निकाल दी, औरतों की तरह,... फिर शीशा दिखा के बोलीं ,
अब अच्छा लग रहा हैं न, ऐसे रखा करो, अइसन गौर चिक्क्न मुंह पे यही निक लगता है,...
और बाकायदा एक सिन्दूर की डिबिया निकाल के खूब ढेर सारा सिन्दूर मेरी मांग में भर दिया और थोड़ा सा नाक पे गिरा तो बोलीं,
" सास तोहार खूब प्यार दुलार करेगी तोहसे, नाक पे सिन्दूर गिरना शुभ होता है, "
लेकिन जो बात मैं कहना चाहता था वो जो लड़की साथ में थी ( बाद में नाम पता चला रमा, भाभी की सहेली भी, मौसेरी बहन भी, भाभी से दो साल छोटी, अभी बीए में गयी थी ) उसने कह दी, कौन ननद मौका छोड़ेगी भौजाई को छेडने का , मुस्करा के मेरी आँख में आँख डाल के भाभी से, गुड्डी की मम्मी से बोली,
" भौजी, सिन्दूर दान तो हो गया अब सुहाग रात,.... "
; " अरे ननद भी हैं ननदोई भी मना लो न, " उन्होंने अपनी ननद को छेड़ा और मुझसे पूछा
" क्यों भैया खड़ा वड़ा होता है, टनटनाता है का " और फिर पता नहीं जान बुझ के या वैसे ही, वो झुकीं और आँचल एकदम नीचे, और उस लो कट चोली से मांसल गोलाई गदरायी, और पूरी गहरी घाटी और उससे बढ़ के कंचे के बराबर एकदम टनटनाये खड़े खड़े निपल, साफ़ दिख रहे थे,
खड़ा तो होना था , लेकिन मैंने चड्ढी का कवच ओढ़ रखा था पैंट के नीचे पर भाभी की कुशल उँगलियाँ, कुछ देर तो उन्होंने हथेली से पैंट के ऊपर रगड़ा, और फिर अंगूठे और तर्जनी से पकड़ के चड्ढी को सिकोड़ दिया। सांप का सर बाहर, अब खाली पैंट के नीचे तो एकदम साफ़ साफ़ दिख रहा था. भाभी ने अंगूठे और तर्जनी से उसे चार पांच बार रगड़ा और वो फुफकारने लगा, बस उन्होंने अपनी ननद रमा को छेड़ा,
" देखो बिन्नो तुमसे सुहागरात के लिए एकदम तैयार है। तोहरी दीदी की झिल्ली तो कल खुली तू आज ही करवा लो,... "
लेकिन रमा एकदम नहीं शरमाई और हाँ भौजी ने अपना आँचल ठीक भी नहीं किया, बस एकदम मुझसे सट के, उन्हें अपने गद्दर जोबन का असर मालूम पड़ गया था, दोनों जोबन एकदम मेरे सीने से सटा के, अपनी बड़ी सी अठन्नी की साइज की लाल लाल टिकुली अपनी माथे से निकाल के मेरे माथे पे पे चिपका दी, और वार्निंग भी दे दी,
खबरदार अपनी महतारी के भतार, अगर इसे उतारा कल बिदाई के पहले, सुहाग क निशानी है। और जोबन से खूब जोर से धक्का दिया, और हलके से बोलीं,
" अरे मालूम है मुझे इसका असर, बहुत टनटना रहा है, पहला पानी इसी में दबा के रगड़ रगड़ के निकालूंगी, फिर अंजुरी में भर के तोहिं को पिलाऊंगी , ऐसी गरमी लगेगी, सीधे अपनी महतारी के भोसड़े में जाके डुबकी मारोगे तभी गरमी शांत होगी "
बोली तो वो हलके से थीं लेकिन रमा, उनके साथ की महिला और आस पास वाली औरतें साफ़ साफ़ सुन रही थीं मुस्करा रही थीं।
और उन्होंने जो दूसरा धक्का जोबन से मारा तो बस मैं लुढ़कते लुढ़कते बचा, और मेरे मुंह से निकल गया,...
" अरे भौजी गिर जाऊँगा,... "
" इतनी जल्दी गिर जाओगे भैया तो हमरे ननद का काम कैसे चलेगा,... "
भाभी, गुड्डी की मम्मी के साथ वाली महिला, ने चिढ़ाया,, उसी समय पता चला की उनका नाम विमला है , वो भी गुड्डी की मम्मी की देवरानी हैं उसी पट्टी की, दो साल पहले ही गौना हुआ था।
भाभी, मेरी आँखों में काजल लगाने में बिजी थीं और अब मैं उन्हें धक्का देके बचने में, बस भाभी ने रमा की ओर देखा वो शलवार कुर्ते में दुपट्टा तीन तह में करके उभारों को छुपाये, ... एक तीर से उन्होंने दो शिकार किया, पहले तो अपनी ननद और देवरानी से बोला,
" रमा, विमला ज़रा पकड़ इन्हे, जउन गाय पहले पहले दूध देती हैं न उसका हाथ गोड़ छानना पड़ता है "
और जब तक मैं समझूं समझूं, भाभी ने मेरे दोनों हाथ पीछे कर के रमा के दुप्पटे से बाँध दिए। एक तो मेरे हाथ बंध गए, ... दूसरे रमा का दुपट्टा अब उसके कुर्ते को फाड़ते उभार साफ़ साफ़ दिख रहे थे चोंच भी।
भाभी ने एक बार फिर से काजल लगाया और आगे का काम रमा के हवाले कर दिया, वो लिपस्टिक लेके पहले से ही तैयार थी, क्या कोई ब्यूटी पार्लर वाली करेगी,... आराम से धीरे धीरे,... मेरे हाथ तो बंध ही गए थे, नाऊ दूल्हे की रक्षा करने में लगा था,...
गुड्डी भी पास खड़ी खेल तमाशा देख रही थी, खिस खिस कर रही थी, उसकी मम्मी ने मेरे जूते की ओर इशारा किया, ...
" अरे कल दूल्हे की जूते की चुराई में तोहरे भाइयों क गाँव क लड़कों क इतना फायदा होगया था, तो का पता सहबाला के जूते की चुराई में कुछ मिल जाए,...
" एकदम मम्मी " कह के वो आज्ञाकारी पुत्री चालू हो गयी, ...
( कल रात में जब साढ़े तीन चार बजे शादी ख़तम हुयी तो कोहबर की छेंकाई में, जूता चुराई में और जूता चुराने के अभियान में यही रमा थी और साथ में गुड्डी, ... जूता वापस करने के नेग में लड़कियों ने साफ़ साफ़ कह दिया, हम पैसा वैसा नहीं लेंगे, ... बस दूल्हा आपन बहिन दे दें,... इशारे पर मेरी कजिन थी वही एलवल वाली, और सबसे ज्यादा शोर रमा और गुड्डी मचा रही थीं एक एक जूते हाथ में ले के, दूल्हे अपनी बहना दो, दूल्हे अपनी बहना दो, ... मामला अटक गया था और डेडलॉक तोडा मेरी कजिन ने ही, वही बोली, भईया हाँ कर दीजिये, दे दीजिये, देख लूंगी स्सालो को, ... रमा ने चिढ़ाया, नाड़ा बाँध नहीं पाओगी , तीन दिन तक, एक आएगा दूसरा जाएगा,... लेकिन मेरी कजिन भी कम नहीं थी बोली, अरे स्सालो की बहिन ले जा रही हूँ हरदम के लिए, तो बेचारों को आंसू पोछने के लिए , मंजूर है.... तो भाभी वही कह रही थी। हाँ उसी दिन से गुड्डी और मेरी कजिन की पक्की दोस्ती भी हो गयी ).
गुड्डी ने जूते मोज़े खोले तो विमला भाभी पैरों में जैसे गाँव में गौने जाने वाली दुल्हिन को नाउन महावर लगाती है, वो चालू हो गयीं। और भाभी आगे का प्लान बना रही थीं, विमला भाभी और रमा से,... मिलकर
" हे साड़ी साया तो मेरा आ जाएगा लेकिन ब्लाउज, मेरा तो ढीला होगा "
" अरे ब्लाउज का कौन जरूरत है, बॉडी पहना देंगे, ... बबुआ क बहिन महतारी तो जोबन उघाड़े घूमती है दबवाती मिसवाती " विमला भौजी, गुड्डी की मम्मी से एकदम कम नहीं थी
और बिना उनकी बात पूरी हुए, भाभी ने मुझसे पूछ लिया, बनियान कौन नंबर की पहनते हो, ३२ की ३४ और जैसे मैंने जवाब दिया भाभी तुरंत अपनी ननद रमा से बोली,
" अरे बिन्नो ये तो तोहार साइज है बस आपन बॉडी पहराय दा "
रमा लिपस्टिक लगा चुकी थी, मेरे हाथ अब खुल गए थे लेकिन एक हाथ रमा ने पकड़ रखा था नेल पालिश लगा रही थी दूसरा हाथ गुड्डी को पकड़ा दिया था नेल पालिश लगाने के लिए। रमा बोली, एकदम भौजी, सिंगार दुल्हिन का कर दें फिर लाती हूँ, ... लेकिन दुल्हिन क सिंगार कर रहे हैं तो दुलहिन क
" काम भी करना पडेगा,...एकदम बिन्नो अब सिन्दूर दान हो गया है तो " भाभी बोलीं फिर तोप का रुख मेरी ओर मोड़ दिया,
" और यह मत कहना की डालेगा कौन, जो एक दिन सिन्दूर डालता है वही अगले दिन टांग उठा के, निहुरा के डालता है, ... एकदम गोर चिक्क्न हो, मखमल ऐसे गाल " मेरा गाल सहला के बोली, फिर जोड़ा, कउनो लौंडिया से ज्यादा नमकीन हो एक बार साडी साया पहना देंगे तो कोई कह नहीं सकता है, ये बताओ गांड मरवाये हो की नहीं, अइसन चिक्क्न माल, लौण्डेबाज सब बिना गांड मारे छोड़े थोड़े होंगे, सट्ट से जाएगा। "
मेरे मुंह से नहीं अनजाने में निकल गया फिर तो दोनों भाभियाँ, पहले विमला भाभी
" अरे बिन्नो की ससुराल में सब गंडुए है या भंडुए है गाँड़ क्या मारेंगे "
कल रात गारी गाते समय जब भी मेरा नाम आता था , यही भाभी, बाद में सब भाभियाँ,...
" बिन्नो का देवर गंडुआ है, अरे दूल्हे का भाई भंडुआ है, अपनी महतारी का भंडुआ है अपनी बहिनिया का भंडुआ है।"
और पुराने में ( गाने में, खास तौर से गारी गाने में मुख्य गाने वाली एक लाइन गाती थीं, और बाकी उसे दुहराती थीं, कई बार आधी लाइन पूरी भी करती थीं ) सिर्फ औरते ही नहीं गुड्डी और उसकी सहेलियां भी और जोर से मुझे दिखा दिखा के ,
" दूल्हे का भाई गंडुआ है , अपनी महतारी क भंडुआ है "
लेकिन भाभी, गुड्डी की मम्मी विमला भाभी की बात में बात जोड़ते बोलीं,
" अरे तोहरे महतारी क गदहन से चोदवाउ, उनके भोंसडे में हमरे गाँव क कुल लौंडे डुबकी लगाएं , ... रोज तो तोहार बहिन महतारी मोट मोट लौंड़ा घोंटती है और तोहार अभी फटी नहीं,... "
रमा और गुड्डी नेल पालिश लगाते हुए खिस खिस कर रही थीं, मुझे देख के चिढ़ा रही थीं, तभी विमला भौजी भाभी से बोलीं
" अरे आम का अचार वाला तेल लगा के डालियेगा, सट्ट से चला जाएगा "
मेरी आम की चिढ वाली बात भाभी के गाँव वालों की भी मालूम हो गयी थी। बात बदलने के लिए मुझे कुछ बोलना था, बस मैंने गुड्डी की ओर देखते हुए बात बदलने की कोशिश की।
नेलपॉलिश लगाती गुड्डी की ओर देख के मैं बोला,
" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,
" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली,
" बोलो पसंद है, करा दूँ शादी। "यादों की झुरमुट से
गुड्डी
बात बदलने के लिए मुझे कुछ बोलना था, बस मैंने गुड्डी की ओर देखते हुए बात बदलने की कोशिश की।
नेलपॉलिश लगाती गुड्डी की ओर देख के मैं बोला,
" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,
" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली,
और मैं लजा गया, जैसे मेरे चेहरे पर किसी ने ईंगुर पोत दिया हो एकदम पलके झुकी।
" काहें तुम्ही कह रहे हो, डांस अच्छा करती है , कल गाना भी सुन लिया होगा तुम्हारी बहिन महतारी सब का हाल, .... " मेरी आँखे झुकी लाज से मेरी हालत खराब,
अब सब लोग एक साथ हँसे, भाभी ( गुड्डी की मम्मी ), विमला भाभी, रमा सब,... खिलखिला रही थी विमला भौजी बोलीं
" इतना तो लड़किया नहीं लजाती शादी की बात पे जितना भैया तुम लजा रहे हो, ... गौने क दुल्हिन झूठ " अब मैं समझा सब मिल के मुझे चिढ़ा रही थीं
लेकिन तब तक भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने गुड्डी से पूछ लिया
" बोलो पसंद है, करा दूँ शादी। "
नेलपॉलिश तो कब की गुड्डी लगा चुकी थी, अनजाने में उसने कस के मेरा हाथ हल्के से दबा दिया लेकिन मेरी तरह से वो लजा नहीं रही थी, खुल के मुझे देख रही थी.
मजाक में गाँव में शादी के माहौल में कोई किसी को छोड़ता नहीं न रिश्ता न उम्र देखी जाती है।
" बोलो, ठीक से देख लो अगर पंसद हो बस हाँ बोल दो " भाभी गुड्डी के पीछे पड़ गयी। रमा ने धीरे से गुड्डी को चिकोटी काटते चिढ़ाया हलके से
" अरे औजार भी बढ़िया लग रहा है चेक कर ले "
अब गुड्डी के शर्माने की बारी थी, ... पर भाभी एकदम उसके पीछे पड़ी थी, चिढ़ाते बोलीं,
" अरे आज शादी थोड़ी कर देंगे , बस यही मंडप में आज सगाई हो जायेगी, सब लोग हैं भी,... शादी तो तीन चार साल बाद,... पढ़ाई वढ़ाई हो जाए,... " और फिर मेरे ऊपर चालू हो गयीं,
" घबड़ा मत,.. मैं हूँ न तबतक हमसे काम चलाना, सिखाय पढाय के पक्का कर दूंगी, जो लजाते हो न इतना " लेकिन उनकी बात काट के रमा उनकी ननद ने चिढ़ाया ,
" अरे भौजी, गुड्डी का तो बहाना है, चिक्क्न माल देख के भौजी तोहार मन डोल गया है "
विमला भौजी, मेरे पीछे,
अरे भैया अस मौका नहीं मिलेगा, ... दुल्हिन भी दुल्हिन क महतारी भी, थोड़ी बहुत मेनहत कर दो अभी दो साली हैं नौ महीने बाद एक साली और ,
लेकिन भाभी ने तुरंत खंडन किया, " अरे नहीं भैया ओकर कउनो डर नहीं छुटकी के बाद ही आपरेशन करवा ली थी मैं, न रोज रोज गोली का चक्कर न रबड़ का तो बोलो, ...
गुड्डी ने एक बार आंख उठा के देखा मेरी ओर और मेरी हालत खराब,.... और उस सारंग नयनी ने पलक बंद कर ली, ये सिर्फ मैंने देखा और गुड्डी ने,...