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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २७

मैं, गुड्डी और होटल

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motaalund

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रसगुल्ला
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गुड्डी ने एक बार आंख उठा के देखा मेरी ओर और मेरी हालत खराब,.... और उस सारंग नयनी ने पलक बंद कर ली, ये सिर्फ मैंने देखा और गुड्डी ने,...

गुड्डी से नैन मटक्का या जो कहिये बरात पहुँचते ही शुरू हो गया था. हाईस्कूल इंटर में एक शौक होता है अलग दिखने का, ... और तरीके भी सब लड़कों के अलग अलग,... और गाँव की बारात बाग़ में टिकी, लेकिन मैं एक मोटी सी अंग्रेजी की किताब, ... कुछ घराती साइड की लड़कियां आयी थीं,... अक्सर मोटी किताब का इस्तेमाल उसके अंदर मस्तराम छुपा के पढ़ने के लिए होता था, लेकिन आज मैं शायद इम्प्रेस करने के चक्कर में, बिना ये समझे की यहाँ इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला था, ...

तभी गुड्डी आयी, जहाँ मैं सबसे अलग थलग, अकेला उस किताब की आड़ में बैठा था। वो तिलक में भी आयी थी मेरे यहाँ तो पहचानता था ही, शादी में जैसे लड़कियां सजती हैं, मेकअप, चोली और लहंगे में,... और गुड्डी अपनी उमर वालियों से थोड़ी ज्यादा ही मेच्योर थी, टीनेज की पायदान पर कदम रख चुकी थी और उसके साथ दो तीन सहेलियां,

" रसगुल्ला " आँख नचा के गुड्डी ने उकसाया।

" नहीं नहीं मुझे नहीं खाना " मैंने फिर झूठ मूठ किताब पढ़ने का नाटक किया,... और उसके किताब खींच के दूर फेंक दिया और बोली

" तो मत खाइये, लेकिन चलिए मुझे खिला दीजिये, " जिस तरह से मुस्करा के आँख नचा के वो बोली,... मैंने एक रसगुल्ला उसके मुंह में लेकिन वो बदमाश हलके से उसने काट लिया। और रसगुल्ला पूरा गप्प। और मेरी कलाई पकड़ के ऊँगली में लगे शीरे को पकड़ के चाट गयी और मेरे मन में न जाने कौन कौन से सीन छा गए, फिर उसने बोला,... अब आप


" नहीं नहीं मैंने मना कर दिया " सर हिला के मैं बोली। अब उसकी सब सहेलियां मेरे और गुड्डी के बीच चल रही मजेदार खींच तान देख रही थी।

" तो मत खाइये न कौन खिला रहा है , चिढ़ा के वो बोली, फिर मुस्करा के कहा

" अच्छा मुंह खोल के एक बार बस दिखा दीजिये मेरी एक सहेली से शर्त लगी है आपके अभी भी दूध के दांत है , प्लीज। "



और मैंने मुंह खोल दिया खूब बड़ा सा, और गप्प से रसगुल्ला अंदर ,

मान गया मैं उसको और ऊपर से उसकी चिढ़ाती आँखे और शैतान मुस्कान फिर वो डायलॉग, एकदम डबल मीनिंग वाला, " देखा, गया न पूरा अंदर "

और हाथ में लगा सब शीरा मेरे गाल पे पोत दिया और बोली, " अपनी बहिनिया से चटवा लेना, साफ़ कर देंगी अच्छी तरह से "

और जब तक मैं कुछ बोलूं वो ये जा वो जा,...



उस जमाने में शाम को द्वारपूजा लग जाता था और बराती डांस वांस तो करते नहीं थे, तो जब हम लोग पहुंचे, ...द्वारपूजे के पहले, गुड्डी का डांस था,

मैं दूसरे तीसरी लाइन में खड़ा लेकिन चारो और देख के उसकी निगाह ने मुझे ढूंढ ही लिया, हलके से मुस्करायी और म्यूजिक शुरू हुआ,...

और जैसे ही गाने के साथ उसने डांस करना शुरू किया,... क्या कोई प्रोफेशनल डांसर करेगी,...




आ.. आ.. आ.. आ.. गोरी हैं कलाइयां

तू ला दे मुझे हरी-हरी चूड़ियाँ

गोरी हैं कलाइयां

तू ला दे मुझे हरी-हरी चूड़ियाँ

अपना बना ले मुझे बालमा




जिस तरह वो दोनों हाथों की चूड़ियां आपस में बजा के दिखा दिखा के कहती लग रहा था जैसे मुझ से ही कह रही हो,...

मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा

जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा

मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा

जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा, ....



स्टेज के किसी कोने में वो होती लेकिन आँख उसकी बस मेरे पास,... और उसके बाद म्यूजिक बदली,...

मेरे हाथों में नौ नौ चुडिया



और जब वो लाइन आयी

मेरे दर्जी से आज मेरी जंग हो गई ,
कल चोली सिलाई आज तंग हो गई


जिस तरह से उसने अपने छोटे छोटे आते उभरते जोबन उभारे, और एक बार मुझे दिखा के,

मेरी हालत खराब, डांस के बाद सब लोग इतनी तारीफ़ लेकिन मेरे तो बोल नहीं फूट रहे थे, वो दिखी, उसने मुझे देखा तो मैं तो उस हालत में जैसे किसी ने जादू की मूठ मार दी हो, न हिल सकता हो न डुल सकता हो, ... मेरे बिन बोले वो मेरी हालत समझ गयी, मुस्करायी और अपनी सहेलियों के झुण्ड के साथ अंदर, थोड़ी देर में द्वारपूजा शुरू होने वाला था,...
द्वारपूजा के ठीक पहले जब दुलहा आता है दुल्हन और उसकी सहेलियां छत पर से, बीड़ा मारती हैं। सबसे पहले दुल्हन, पान का एक बीड़ा जिसमे अक्षत रहता है और कहते हैं की अगर बीड़ा सही लगा तो फिर दूल्हे पर दुल्हन का राज रहता है,... और फिर सहेलियां भी,...

मैं सहबाला था तो दूल्हे के साथ ही एकदम चिपका और मेरी निगाहें छत पर, पहले तो भाभी की एक झलक पाने के लिए लेकिन उससे ज्यादा किसी और की,... भाभी तो थोड़ी सी दिखीं, सहेलियों के झुण्ड में छिपी, पीछे नाउन उन्हें पकडे, और जैसे ही उन्होंने बीड़ा मारा, ...

उसके पहले ही बादलों में बिजली सी वो भी दिखी, और भाभी का हाथ उठा, उसके साथ ही उसका भी,...

भाभी का बीड़ा तो लगा सही, लेकिन उसका एकदम सीधे मेरे सीने पर और मैंने पकड़ लिया, सम्हाल कर रख लिया। बीड़ा मारने के बाद नाउन और सहेलियां, तुरंत दुल्हन को हटा लेती हैं, लेकिन वो थोड़ी देर तक वहीं और उसके साथ मेरी निगाहें भी,

द्वारपूजे के बाद जब वो दिखी, तो मैंने बस इतना कहा की तुम्हारा निशाना एकदम सही लगा,

वो मुस्करायी और बस बोली की लेकिन कुछ लोग ऐसे बुद्धू होते हैं जिनका निशाना लग भी जाता है उन्हें पता नहीं चलता।

बाद में समझा मैं उसकी बात का मतलब,...

लेकिन मैंने तय कर लिया था जाने के पहले उससे कह दूंगा अपनी बात। और वो विदाई के समय मिली,...

और मैंने वो बीड़ा अक्षत दिखाया, उसने मुस्करा के पूछा, .. अब तक सम्हाल के रखे हो, कब तक रखोगे। हिम्मत कर के जो मैंने दस बार रिहर्सल किया था बोल दिया,

"जब तुम दुबारा इसी छत से बीड़ा मारोगी तब तक,...."

वो ज्यादा समझदार थी मुझसे, बोली,... ज्यादा सपने नहीं देखने चाहिए, बाद में तकलीफ होती है।

और बात उसकी सही थी, शादी ब्याह में इस तरह की मुलाकात, दोस्ती, अक्सर कुछ दिनों में धुंधला जाती है ,और बाद में जैसे किताबों में रखे फूल कुछ बातें याद दिला देते हैं उसी तरह से, ...



लेकिन गुड्डी, गुड्डी थी।


भाभी की चौथी में वो आयी। चौथी में अक्सर दुल्हन के मायके से लड़के आते हैं है लेकिन वो आयी, उसके बाद ६ महीने आठ महीने कोई छुट्टी हो,... बेल सूखी नहीं आगे बढ़ती रही, लेकिन हर बार पहल उसी ने की,...

और मैं भी कभी सेलेक्शन के लिए कभी इंटरव्यू तो कभी किसी काम से कहीं जाता, ट्रेन तो बनारस से ही पकड़नी पड़ती,... और बनारस जाऊं और सिगरा भाभी के याहं न जाऊं,... और उनके यहां जाने का मतलब खाना खाना और भाभी हो, गुड्डी की मम्मी तो बिना गारी सुने, और वो किसी को नहीं छोड़ती थीं, न जाओ तो डांट जबरदस्त पड़ती थी गुड्डी की भी भाभी की भी और जाओ तो बिना खाना खाये,... और जरा भी नखड़ा किये तो भाभी अपनी स्टाइल में, और अब मैं गुड्डी और भाभी के लिए गुलाब जामुन ले जाता तो उसकी दोनों छोटी बहनों के लिए चॉकलेट,


लेकिन भाभी, गुड्डी की मम्मी सिर्फ मज़ाक, छेड़खानी ही नहीं ख्याल भी बहुत करती थीं हालांकि उसमे भी मजाक का कोई मौका वो छोड़ती नहीं थी

जब मेरा सेलेक्शन हुआ तो मुझसे ज्यादा भाभी खुश थी और उनके बराबर ही उनकी भाभी यानि गुड्डी की मम्मी भी. बताया तो था की भाभी ने गंगा जी की आर पार की चुनरी मानी थी, तो मैं और भाभी मनौती पूरी होने पर गए गुड्डी के यहाँ रुके, और गंगा जी फिर चुनरी चढाने,... मैं भाभी, गुड्डी और भाभी यानि गुड्डी की मम्मी। उसके बाद पता चला की भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने भी एक दर्जन मंदिर में मेरे लिए मनौती मानी थी और फिर हम चारो उन सब मंदिरो पे, भाभी ने अपनी भाभी से पूछा,

" भौजी ये मनौती पूरा होने पे का मानी थी "

वो बड़ी सीरियसली बोलीं, " अरे बिन्नो तोहरे सास और इनके महतारी के लिए बहुत फायदा है, हम माने थे की भैया की नौकरी लग जायेगी बनारस क सौ पंडा इनकी महतारी के ऊपर चढ़ाइब,.... तो बस अब पूजा आज हो गयी तो बस वही एक चीज बाकी है, तो उनको भेज देना दस बारह दिन के लिए,... अभी भी बहुत जांगर है उनमे एक दिन आठ दस पंडा तो निपटा ही लेंगी, ... "

" एकदम भौजी " मेरी भाभी भी मेरी ओर चिढ़ाती निगाहों से देखते मुस्कराते बोलीं और जोड़ा,... " अरे अब उनकी तीरथ बरत क उमर वैसे भी साल में छह महीना तो तीरथ,... तरह तरह की मलाई का स्वाद मिलेगा और पंडे चढ़ेंगे तो आर्शीवाद भी देंगे , और दिन में २४ घंटा होता है अगर २४ घंटा में चौदह घंटा भी,...

भाभी की भाभी ने बात पूरी की,... चौदह घंटा भी चोदवाये तो,...

गुड्डी बिना बोले रह नहीं सकती थी, अब तक पीछे मेरे साथ खड़ी खिस खिस हंस रही थी अब जोड़ दिया

" हर पण्डे को डेढ़ से पौने दो घंटे मिलेगा "

भाभी और चंदा भाभी की गाने की आवाज की टनकार तेज हो रही थी और मैं यादों की झुरमुट से वापस आया,

भाभी जोर जोर से मुझे सुना के गा रही थीं साथ में चंदा भाभी
ये चांदनी पिक्चर का गाना तो उस समय की हर शादी में ...
और लड़के भी...
ये परिवर्धित पेशकश भी शानदार लगा....
 

motaalund

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भाभी, गुड्डी और भांग की गुझिया


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भाभी और चंदा भाभी की गाने की आवाज की टनकार तेज हो रही थी और मैं यादों की झुरमुट से वापस आया,



भाभी जोर जोर से मुझे सुना के गा रही थीं साथ में चंदा भाभी
“गंगाजी तुम्हारा भला करें गंगाजी…” भाभी ने अगली गारी शुरू कर दी थी।

गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी

तोहरी बहिनी क तोहरी गुड्डी क बुरिया इनरवा जैसे पोखरवा जैसे

तोहरी अम्मा क भोंसड़ा इनरवा जैसे पोखरवा जैसे

नौ सौ गुंडा नहावा करें, मजा लूटा करें, बुर हर हर हुआ करे ,

गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी।

तोहरी बहिनी क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन

तोहरी गुड्डी क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन

तोहरी अम्मा क बुरिया पतिलिया जइसन, बटुलिया जइसन

ओहमें नौ मन चावल पका करे बुर फच फच हुआ करे

बुर फच फच हुआ करे, गंगा जी

गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी

तोहरे बहिनी क बुरिया सड़किया जइसन लाइनिया जइसन

तोहरे गुड्डी क बुरिया सड़किया जइसन लाइनिया जइसन

तोहरे अम्मा क भोंसड़ा सड़किया जइसन लाइनिया जइसन

अरे नॉ सौ गाडी चला करे बुर फट फट हुआ करे


गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी , गंगा जी तेरा भला करें, गंगा जी



और एक के बाद एक नान स्टाप।



आनंद साल्ला पूछे अपनी बहना से अपनी गुड्डी से,

बहिनी तुम्हारी बिलिया में, क्या-क्या समाय,

अरे भैया तुम समाओ भाभी के सब भैया समाय

बनारस के सब यार समाय

आनंद मादरचोद पूछे अपनी अम्मा से अम्मा तोहरी बुरिया में का का समायी

अरे तोहरे भोंसडे में का का समायी , का का अमाई

भैया हमारे भोंसडे में कालीनगंज के सब भंडुए समाये, आजमगढ़ एक सब गंडुए समाये

बनारस के सब पण्डे समाये,


हाथी जाय घोड़ा जाय। ऊंट बिचारा गोता खाय। हमारी बुरिया में।


और।



हमारे अंगना में चली आनंद की बहिनी, अरे गुड्डी रानी,

गिरी पड़ी बिछलाईं जी, अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गइ लकड़िया जी।

अरे लकड़ी निकालें चलें आनंद भैया अरे उनके गणियों में घुस गई लकड़िया जी।

हमारे अंगना में चली आनंद की अम्मा , अरे आनंद क महतारी

अरे वो तो गिरी पड़ी बिछलाईं जी,


अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गइ लकड़िया जी

अरे लकड़ी निकालें चलें आनंद भैया अरे उनके गांडी में घुस गई लकड़िया जी।

मैं खाना खतम कर कर चुका था लेकिन मुझे कुछ अलग सा लगा रहा था। एकदम एक मस्ती सी छाई थी और मैंने खाया भी कितना। तब तक गुड्डी आई मैंने उससे पूछा-

“हे सच बतलाना खाने में कुछ था क्या? गुझिया में। मुझे कैसे लगा रहा है…”


वो हँसने लगी कसकर- “क्यों कैसा लग रहा है?”

“बस मस्ती छा रही है। मन करता है की। तुम पास आओ तो बताऊँ। था न कुछ गुझिया में…”

“ना बाबा ना तुमसे तो दूर ही रहूंगी। और गुझिया मैंने थोड़ी बनाई थी आपकी प्यारी चंदा भाभी ने बनाई थी उन्हीं से पूछिए ना। मैंने तो सिर्फ दिया था। सच कहिये तो इत्ती देर से जो आप अपनी बहना का हाल सुन रहे थे इसलिए मस्ती छा रही है…”

और तब तक चन्दा भाभी आ गईं एक प्लेट में चावल लेकर।

“ये कह रहें है की गुझिया में कुछ था क्या?” गुड्डी ने मुड़कर चंदा भाभी से पूछा।

“मुझे क्या मालूम?” मुश्कुराकर वो बोली- “खाया इन्होंने खिलाया तुमने। क्यों कैसा लग रहा है?”

“एकदम मस्ती सी लग रही है कोई कंट्रोल नहीं लगता है पता नहीं क्या कर बैठूंगा। और मैंने खाया भी कितना इसलिए जरूर गुझिया में…” मैं मुश्कुराकर बोला।

“साफ-साफ क्यों नहीं कहते। अरे मान लिया रही भी हो। तो होली है ससुराल में आए हो,साल्ली सलहज। यहाँ नहीं नशा होगा तो कहाँ होगा। ये तो कंट्रोल के बाहर होने का मौका ही है…”

और वो झुक के चावल देने लगी। उनका आँचल गिर गया। पता नहीं जानबूझ के या अनजाने में और उनके लो-कट लाल ब्लाउज़ से दोनों गदराये, गोरे गुद्दाज उभार साफ दिखने लगे।

मेरी नीचे की सांस नीचे, ऊपर की ऊपर। लेकिन बड़ी मुश्किल से मैं बोला- नहीं भाभी नहीं।

“क्या नहीं नहीं बोल रहे हो लौंडियों की तरह। तेरा तो सच में पैंट खोलकर चेक करना पड़ेगा। अरे अभी वो दे रही थी तो लेते गए, लेते गए और अब मैं दे रही हूँ तो…”

गुड्डी खड़ी मुश्कुरा रही थी। तब तक नीचे से उसकी मम्मी की आवाज आई और वो नीचे चली गई।

चन्दा भाभी उसी तरह मुश्कुरा रही थी। उन्होंने आँचल ठीक नहीं किया। “क्या देख रहे हो…” मुश्कुराकर वो बोली।


“नहीं, हाँ, कुछ नहीं, भाभी…” मैं कुछ घबड़ाकर शर्माकर सिर नीचे झुका के बोला। फिर हिम्मत करके थूक घोंटते हुए। मैंने कहा- “भाभी। देखने की चीज हो तो आदमी देखेगा ही…”

“अच्छा चलो तुम्हारे बोल तो फूटे। लेकिन क्या सिर्फ देखने की चीज है…”

ये कहते हुए उन्होंने अपना आँचल ठीक कर लिया। लेकिन अब तो ये और कातिल हो गया था। एक उभार साफ साड़ी से बाहर दिख रहा था और एकदम टाईट ब्लाउज़ खूब लो कटा हुआ।

मेरा वो तनतना गया था। तम्बू पूरी तरह तन गया था। किसी तरह मैं दोनों पैरों को सिकोड़ के उसे छुपाने की कोशिश कर रहा था।

लेकिन चन्दा भाभी ना। वो आकर ठीक मेरे बगल में बैठ गईं। एक उंगली से मेरे गालों को छूते हुए वो बोली-

“हाँ तो तुम क्या कह रहे थे। देखने की चीज है या। कुछ और भी। देखूं तुम्हारी छिनार मायके वालियों ने क्या सिखाया है…” तब तक मैंने देखा की उनकी आँखें मेरे तम्बू पे गड़ी हैं।

कुछ गुझिया का असर कुछ गालियों का। हिम्मत करके मैं बोल ही गया-

“नहीं भाभी। मन तो बहुत कुछ करने का होता है है। अब ऐसी हो। तो लालच लगेगा ही ना…” अब मैं भी उनके रसीले जोबन को खुलकर देख रहा था।

“सिर्फ ललचाते रह जाओगे…”
अब वो खुलकर हँसकर बोली-

“देवरजी जरा हिम्मत करो। ससुराल में हो हिम्मत करो। ललचाते क्यों हों? मांग लो खुलकर। बल्की ले लो, एकदम अनाड़ी हो…” और फिर जैसे अपने से बोल रही हों। एक रात मेरी पकड़ में आ जाओ। ना। तो अनाड़ी से पूरा खिलाड़ी बना दूँगी और ये कहते हुए उन्होंने चावल की पूरी प्लेट मेरी थाली में उड़ेल दी।

“अरे नहीं भाभी मैं इत्ता नहीं ले पाऊंगा…” मैं घबड़ाकर बोला।

“झूठे देखकर तो लगता है की…” उनकी निगाहें साफ-साफ मेरे ‘तम्बू’ पे थी। फिर मुश्कुराकर बोली- “पहली बार ये हो रहा है की मैं दे रही हूँ और कोई लेने से मना कर रहा है…”

“नहीं ये बात नहीं है जरा भी जगह नहीं हैं…”

वो जाने के लिए उठ गई थी लेकिन मुड़ीं और बोली-

“अच्छा जी। कोई लड़की बोलेगी और नहीं अब बस तो क्या मान जाओगे। पूरा खाना है। एक-एक दाना। और ऊपर के छेद से ना जाए ना तो मैं हूँ ना। पीछे वाले छेद से डाल दूँगी…”

तब तक दरवाजा खुला और भाभी (गुड्डी की मम्मी) और गुड्डी अंदर आ गए। भाभी भी चन्दा भाभी का साथ देती हुई बोली- “एकदम और जायगा तो दोनों ओर से पेट में ही ना…”
और उसी समय मुझसे गलती हो गयी, ... गलती क्या हुयी, खता किसी और की थी सज़ा मुझे मिली। बताया था न गुड्डी की मम्मी के बारे में दीर्घ स्तना, कठोर कुच, और ब्लाउज चंदा भाभी इतना लो कट तो नहीं लेकिन कम भी नहीं,... और भाभी का आँचल लुढ़क गया, उभारों से एकदम चिपका, रसोई से आ रही थीं तो हलके पसीने में भीगा,... और मैंने कहा था एम् आई एल ऍफ़ की पहली पायदान पर तो चढ़ ही गयी थीं,... तो बस मेरी निगाहें वहीँ चिपकी



और उन्होंने मुझे देखते देख लिया



बस बजाय आँचल ठीक करने के कमर में बाँध लिया और दोनों पहाड़ एकदम साफ़ साफ़, और मेरे पास जब वो झुकी तो कनखियों से उन्होंने तम्बू में बम्बू भी देख लिया, बस मुस्करायीं और वो लेवल बढ़ा दिया,



थाली में पड़े चावल का मौका मुआयना करते गुड्डी को उन्होंने हुकुम सुनाया,... " गुड्डी जरा किचेन से मोटका बेलनवा तो ले आना, बेलनवा से पेल के ठेल के पिछवाड़े घुसाय देंगे एक एक चावल "

गुड्डी खिस खिस हंसती रही.



और गुड्डी की मम्मी, भाभी और, " एक बार मोटका बेलनवा घुसेड़ूँगी न, तो तोहार पिछवाड़वा, तोहरी अम्मा के भोंसडे से ज्यादा चौड़ा हो जाएगा, न विश्वास हो जब लौटोगे न तो उनका साया पलट के देख लेना,... सोच लो नहीं तो चावल ख़त्म करो "

और मैंने सर झुका के थाली में रखा चावल खाना शुरू कर दिया, लेकिन अब भाभी छोड़ने के मूड में नहीं थीं, मेरा गाल सहलाते चंदा भाभी से बोलीं,

" होली में ऐसे चिकने लौंडे की बिना लिए, नथ उतारे,... "

चंदा भाभी कौन काम थीं, साफ़ साफ़ पूछ लिया,... " अगवाड़े की पिछवाड़े "



" दोनों ओर " भाभी बोलीं, लेकिन चंदा भाभी ने जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली,... " अरे आप जाइये न निश्चिन्त होके, मैं हूँ न अच्छी तरह से नथ उतराई होगी इनकी आज। जैसे दालमंडी में इनकी बहन की होगी एकदम वैसे इनकी यहाँ "



मैं जान रहा था की अगर बोला तो मधुमखी के छत्ते में हाथ पड़ा,... इसलिए सर झुकाये बस खाना खाने में लगा था। लेकिन जंगबहादुर का क्या करें ऐसी रसीली बातें सुन के वो तो सर उठाये जा रहे थे. मैंने उनसे छुपाने के लिए एक पैर पर दूसरा पैर रखने की कोशिश की पर तब भी,... लेकिन भाभी की नजर से कोई चीज नहीं बच सकती थी, मुझसे बोली,



" ये क्या टांग पर टांग सटा के बैठे हो, तोहार बहिन महतारी तो हरदम टांग फैलाये रहती हैं, फैलाओ टांग वरना, .... गुड्डी जरा बेलनवा ले आओ "



मैंने टांग हटा दी और अब तम्बू में जबरदस्त बम्बू बित्ते भर का खड़ा, और अब तीनो मुस्करा रही थीं, भाभी और चंदा भाभी खुल के और गुड्डी मेरे पीछे खड़ी, खिस खिस,...



" जानती हो इनकी ये हालत काहें हुयी, " भाभी चंदा भाभी से पूछीं,



जानता तो मैं भी था और वो भी, उनके चोली फाड़ कड़क गद्दर जोबन जो सफ़ेद ब्लाउज से साफ़ झलक रहे थे उसी ने ये हालत की थी लेकिन देवर हो तो कौन भौजाई खींचने का मौका छोड़ देती है,



चंदा भाभी बोलीं , " अरे आप ने भैया को उनके अम्मा के भोंसडे की याद दिला दी, बेचारे उनको मातृभूमि की याद आ गयी और मातृभूमि के लिए लोग क्या क्या नहीं करते। "



" गुड्डी, जरा इधर आना बेटी " दुलार से उन्होंने बुलाया और काम पे लगा दिया, ...

" यहीं रहना और अगर चावल बच गया, जितना दाना बचेगा, उतने लौंडे बनारस के इनकी बहन पे चढ़ेंगे,... वो भी फ्री। ये जिम्मेदारी तेरी हटना मत इनके पास से "

" एकदम " आज्ञाकारी बेटी की तरह गुड्डी ने सर हिलाया लेकिन क्लास में कुछ लड़कियां होती हैं न सबसे पहले हाथ उठाती हैं सवाल पूछने के लिए, गुड्डी उसी में से थी, अपनी मम्मी से बोली,...

" लेकिन मम्मी मैं गिन तो लूंगी लेकिन इनकी बहन तो यहाँ है नहीं अभी,.. "

" लेकिन ये तो हैं न यहाँ, इनकी बहन न सही यही सही " चंदा भाभी थीं न आग में घी डालनेवाली।

" और क्या इतना गोरा चिकना तो है, बहन इसकी अगवाड़े से घोंटती ये पिछवाड़े से घोंटेंगें। "

वो दोनों तो हँस ही रही थी। वो दुष्ट गुड्डी भी मुश्कुराकर उन लोगों का साथ दे रही थी।

हम बनारस वाले छेद छेद में भेद नहीं करते, और होली में ससुरारी आएं है वो भी बनारस तो बिना नथ उतरे,... "

तबतक गुड्डी की छोटी बहन आ गयी सबसे छोटी, छुटकी हाथ में बेलन लेके

" मम्मी आपने बेलन मंगाया था "


अब तो चंदा भाभी और भाभी, गुड्डी की मम्मी की हंसी रुके नहीं रुक रही थी। गुड्डी भी खिस खिस,...

किसी तरह हंसी रोक के गुड्डी की मम्मी बोली,... " हाँ गुड्डी को दे दो "

फिर उन्हें याद आया की वो आयी किस लिए थीं, एक क्राइसिस हो गयी थी छोटी सी।

पता चला की क्राइसिस ये थी की रेल इन्क्वायरी से बात नहीं हो पा रही थी की गाड़ी की क्या हालत है, कितनी लेट है लेकिन उससे भी बड़ी बात थी, बर्थ की। दो लोगों की बर्थ भी कन्फर्म नहीं हुई थी। नीचे कोई थे जिनकी एक टी टी से जान पहचान थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पा रही थी।

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चंदा भाभी भी प्यासी हैं..
आखिर पति साल-दो साल में दुबई से...
इशारेबाजी तो खूब चल रही है...
नाप-जोख भी चल रही है...
अब तो चंदा भाभी को हीं मामला अपने हाथ में लेना होगा.. (बल्कि चूत में)..
 

motaalund

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शलवार सूट वाली



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पता चला की क्राइसिस ये थी की रेल इन्क्वायरी से बात नहीं हो पा रही थी की गाड़ी की क्या हालत है और दो लोगों की बर्थ भी कन्फर्म नहीं हुई थी। नीचे कोई थे जिनकी एक टी टी से जान पहचान थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पा रही थी।



मैं डरा की कहीं इन लोगों का जाने का प्रोग्राम गड़बड़ हुआ तो मेरी तो सारी प्लानिंग फेल हो जायेगी।


“अरे इत्ती सी बात भाभी आप मुझसे कहती…” मैंने हिम्मत बंधाते हुए कहा ओर एक-दो लोगों को फोन लगाया- मेरा एक बैचमेंट , वो मसूरी में मेरा रूम मेट भी था और टेनिस में पार्टनर भी उसे, रेलवे मिली थी और बनारस में ही ट्रेनिंग कर रहा था। और एक सीनियर थे हॉस्टल के वो भी रेलवे में यही थे,

“बस दस मिनट में पता चल जाएगा। भाभी आप चिंता ना करें…”

मैंने उन्हें एश्योर किया, बोल मैं भाभी, गुड्डी की मम्मी से रहा था लेकिन मेरी निगाह गुड्डी के चेहरे पर टिकी थी, वो भी परेशान लग रही थी। चार लोगों को जाना और दो की बर्थ नहीं तो कैसे, अब उसकी बहने इत्ती छोटी भी नहीं की एडजस्ट हो जाएंगी, एक बर्थ कम से कम,... और अगर कहीं उन लोगों का जाना टला लगा तो उस की भी होली पे ग्रहण लग जाएगा। वो उम्मीद से मेरी ओर देख रही थी।

मैंने एक बार फिर से मैंने फोन लगाया,

और थोड़ी देर में फोन आ गया।


“चलो मैं तो इतना घबड़ा रही थी…” चैन की साँस लेते हुए वो चली गई लेकिन साथ में गुड्डी को भी ले गईं…” चल पैकिंग जल्दी खतम कर और अपना सामान भी पैक कर ले कहीं कुछ रह ना जाय…”



मैंने जाकर भाभी को बता दिया। गुड्डी भी अपनी दोनों छोटी बहनों को तैयार होने में मदद कर रही थी।

मेरी तरह से वो भी बस यही सोच रही थी, इन लोगों के कानपुर जाने के प्रोग्राम में कोई विघ्न न पड़े, टाइम पे स्टेशन पहुँच जाए, ट्रेन में बैठें तो कल के उसके प्रोग्राम में कोई अड़चन न पड़े, दूसरे यह भी था की उसकी मम्मी के जाने के बाद मेरी रगड़ाई वो और अच्छी कर सकती थी, मम्मी के जानते बाद ये वतन चंदा भाभी के हवाले होना था और चंदा भाभी तो उसकी सहेली सी ही थीं। वैसे गुड्डी की दोनों छोटी बहने, सब उन्हें मझली और छुटकी ही कहते थे, इत्ती छोटी भी नहीं थी, एक नौवें में दूसरी आठवें में।

चन्दा भाभी भी वहीं बैठी थी।

“गाड़ी पंद्रह मिनट लेट है तो अभी चालीस मिनट है। स्टेशन पहुँचने में 20 मिनट लगेगा। तो आप लोग आराम से तैयार हो सकते हैं। “

मैंने उन्हें बताया

“नहीं हम सब लोग तैयार हैं। गब्बू जाकर रिक्शा ले आ…” पड़ोस के एक लड़के से से वो बोली।

“और रहा आपकी बर्थ का। तो पिछले स्टेशन को इन लोगों ने खबर कर दिया था। तो 19 और 21 नंबर की दो बर्थें मिल गई हैं। आप सब लोगों को वो एक केबिन में एडजस्ट भी कर देंगे। स्टेशन पे वो लोग आ जायेंगे। मैं भी साथ चलूँगा तो सब हो जाएगा…”

मैं बोल भाभी से रहा था लेकिन नजर गुड्डी के चेहरे से चिपकी थी। मैं बदलता रंग देख रहा था, अब वह एकदम खुश, अपनी सबसे छोटी बहन छुटकी को हड़का रही थी. एक नजर जैसे इतरा के उसने मुझे देखा,... फिर जब मुझे देखते पकड़ा, तो सबकी नजर बचा के जीभ निकल के चिढ़ा दी।

समझ तो वो भी रही थी की मैंने ये सब चक्कर किस लिए किया है,



“अरे भैया ये ना। बताओ अब ये सीधे स्टेशन पे मिलेंगे। अगर तुम ना होते ना। लेकिन मान गए बड़ी पावर है तुम्हारी। मैं तो सोच रही थी की,… एक बर्थ भी मिल जाती और तो बैठ के भी चले जाते, लेकिन तुम ने तो सब, जरा मैं नीचे से सबसे मिलकर आती हूँ…”

और वो नीचे चली गईं।

और अब गुड्डी खुल के मुझे देख के मुस्करायी।

चन्दा भाभी ने गुड्डी को छेड़ते हुए कहा- “अरे असली पावर वाली तो तू है। जो इत्ते पावर वाले को अपने पावर में किये हुए हैं…”
वो शर्माई, मुस्करायी और बोली- “हाँ ऐसे सीधे जरूर हैं ये जो, …”

मैंने चंदा भाभी से कहा अच्छा भाभी चलता हूँ।

“मतलब?” गुड्डी ने घूर के पूछा।

“अरी यार 9:00 बज रहा है। इन लोगों को छोड़कर मैं रेस्टहाउस जाऊँगा। और फिर सुबह तुम्हें लेने के लिए। हाजिर…” मैंने अपना प्रोग्राम बता दिया।

“जी नहीं…” गुर्राते हुए वो बोली-

“क्या करोगे तुम रेस्टहाउस जाकर। पहले आधा शहर जाओ फिर सुबह आओ, कोई जरूरत नहीं। फिर सुबह लेट हो जाओगे। कहोगे देर तक सोता रह गया। तुम कहीं नहीं जाओगे बल्की मैं भी तुहारे साथ स्टेशन चल रही हूँ। दो मिनट में तैयार होकर आई…”

और ये जा वो जा।



चंदा भाभी मुस्कराती हुए बोली- “अच्छा है तुम्हें कंट्रोल में रखती है…”

मेरे मुँह से निकल गया लेकिन मेरे कंट्रोल में नहीं आती।

तब तक वो तैयार होकर आ भी गई। गुलाबी शलवार सूट में गजब की लग रही थी। आकर मेरे बगल में खड़ी हो गई।

“क्या मस्त लग रही हो?” मैंने हल्के से बोला।

लेकिन दोनों नें सुन लिया। गुड्डी ने घूर के देखा और चन्दा भाभी हल्के से मुश्कुरा रही थी। मुझे लगा की फिर डांट पड़ेगी। लेकिन गुड्डी ने सिर्फ अपने सीने पे दुपट्टे को हल्के से ठीक कर लिया और चंदा भाभी ने बात बदल कर गुड्डी से बोला- “हे तू लौटते हुए मेरा कुछ सामान लेती आना, ठीक है…”

“एकदम। क्या लाना है?”

“बताती हूँ लेकिन पहले पैसा तो ले ले…”

“अरे आप भी ना। खिलखिलाती हुई, मेरी और इशारा करके वो बोली- “ये चलता फिरता एटीएम तो है ना मेरे पास…” और मुझे हड़काते हुए उसने कहा- “हे स्टेशन चल रहे हैं कहीं भीड़ भाड़ में कोई तुम्हारी पाकेट ना मार ले, पर्स निकालकर मुझे दे दो…”

चन्दा भाभी भी ना। मेरे बगल में खड़ी लेकिन उनका हाथ मेरा पिछवाड़ा सहला रहा था। वो अपनी एक उंगली कसकर दरार में रगड़ती बोली-

“अरे तुझे पाकेट की पड़ी है मुझे इनके सतीत्व की चिंता हैं कहीं बीच बाजार लुट गया तो। ये तो कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे…”

गुड्डी मुस्कराती हुई मेरे पर्स में से पैसे गिन रही थी।

तभी उसने कुछ देखा और उसका चेहरा बीर बहूटी हो गया। मैं समझ गया और घबड़ा गया की कहीं वो किशोरी बुरा ना मान जाए। जब वो कमरे से बाहर गई थी तो उसके दराज से मैंने एक उसकी फोटो निकाल ली थी, उसके स्कूल की आई कार्ड की थी, स्कूल की यूनिफार्म में। बहुत सेक्सी लग रही थी। मैं समझ गया की मेरी चोरी पकड़ी गई।

“क्यों क्या हुआ पैसा वैसा नहीं है क्या?” चन्दा भाभी ने छेड़ा।

मेरी पूरे महीने की तनखाह थी उसमें।

“हाँ कुछ खास नहीं है लेकिन ये है ना चाभी…” मेरे पर्स से कार्ड निकालकर दिखाते हुए कहा।

“अरी उससे क्या होगा पासवर्ड चाहिए…” चन्दा भाभी ने बोला।

“वो इनकी हर चीज का है मेरे पास…” ठसके से प्यार से मुझे देखकर मुश्कुराते हुए वो कमलनयनी बोली।

उसकी बर्थ-डेट ही मेरे हर चीज का पास वर्ड थी, मेल आईडी से लेकर सारे कार्डस तक।

लेकिन चन्दा भाभी के मन में तो कुछ और था- “अरे इनके पास तो टकसाल है। टकसाल…” वो आँख नचाते बोली।

“इनके मायके वाली ना, एलवल वाली, जिसका गुण गान आप लोग खाने के समय कर रही थी…” गुड्डी कम नहीं थी।

“और क्या एक रात बैठा दें। तो जित्ता चाहें उत्ता पैसा। रात भर लाइन लगी रहेगी…” चंदा भाभी बोली।

“और अभी साथ नहीं है तो क्या एडवांस बुकिंग तो कर ही सकते हैं ना…” गुड्डी पूरे मूड में थी। फिर वो मुझे देखकर बोलने लगी।

कुछ लोगों को चोरी की आदत लग जाती है,

मैं समझ रहा था किस बारे में बात कर रही है फिर भी मैं मुस्कराकर बोला-

“भाभी ने मुझे आज समझा दिया है, अब चोरी का जमाना नहीं रहा सीधे डाका डाल देना चाहिए…”

फिर बात बदलने के लिए मैंने पूछा- “भाभी आप कह रही थी ना। बाजार से कुछ लाना है?”

“अरे तुम्ह क्या मालूम है यहाँ की बाजार के बारे में, गुड्डी तू सुन…” चंदा भाभी ने हड़का लिया

“हाँ मुझे बताइये। और वैसे भी इनके पास पैसा वैसा तो है नहीं…” हवा में मेरा पर्स लहराते गुड्डी बोली।

“वो जो एक स्पेशल पान की दुकान है ना स्टेशन से लौटते हुए पड़ेगी…”

“अरे वही जो लक्सा पे है ना। जहां एक बार आप मुझे ले गई थी ना…” गुड्डी बोली।

“वही दो जोड़ी स्पेशल पान ले लेना और अपने लिए एक मीठा पान…”

“लेकिन मैं पान नहीं खाता। आज तक कभी नहीं खाया…” मैंने बीच में बोला।

“तुमसे कौन पूछ रहा है। बीच में जरूर बोलेंगे…” गुड्डी गुर्रायी। ये तो बाद में देखा जाएगा की कौन खाता है कौन नहीं। हाँ और क्या लाना है?”

“कल तुम इनके मायके जाओगी ना। तो एक किलो स्पेशल गुलाब जामुन नत्था के यहाँ से। बाकी तेरी मर्जी…” चंदा भाभी ने अपनी लिस्ट पूरी की

पर्स में से गुड्डी ने मुड़ी तुड़ी एक दस की नोट निकाली और मुझे देती हुई बोली-

“रख लो जेब खर्च के लिए तुम भी समझोगे की किस दिलदार से पाला पड़ा है…”
तब तक नीचे से आवाज आई। रिक्शा आ गया। रिक्शा आ गया।

हम लोग नीचे आ गए। मैंने सोचा की गुड्डी के साथ रिक्शे पे बैठ जाऊँगा लेकिन वो दुष्ट जानबूझ के अपनी मम्मी के साथ आगे के रिक्शे पे बैठ गई ओर मुझे मुड़कर अंगूठा दिखा रही थी।

वो जान रही थी, की मेरा इरादा प्लानिंग, रिक्शे पे साथ बैठता तो कम से कम कंधे पे तो हाथ रखी लेता अगर उसके आगे नहीं बढ़ता, दस पंद्रह मिनट का अकेले का टाइम मिलता बतियाने का। लेकिन वो मुझसे ज्यादा चालाक थी, मैं जब तक प्लानिंग करता वो चाल चल देती थी। एक तो मुझे तंग करने का इन्तजार करने का , दूसरे मम्मी के साथ बैठ के रस्ते भर उनसे बतिया सकती थी.



मुझे उसकी बहनों के साथ बैठना पड़ा।



गनीमत थी की गाड़ी ज्यादा लेट नहीं थी इसलिए देर तक इंतजार नहीं करना पड़ा। बर्थ भी मिल गई और स्टेशन पे स्टाफ आ भी गया था। स्टेशन पहुँचने के पहले रास्ते में ही टीटी ने पैसेंजर से बात करके इनकी कन्फर्म बर्थ और खाली बर्थों को मिला के एक केबिन करवा दिया था, दो लोवर दो अपर एक ही केबिन में , डिप्टी स्टेशन सुपरिंटेंडेंट ने खुद उन लोगो को केबिन में पहुंचाने के बाद टी टी को भी बोल दिया। उसके पापा मम्मी इत्ते खुश थे की,… गुड्डी की मम्मी तारीफ़ से बार बार मुझे देख रही थीं।

मैं भाभी की निगाह में देख रहा था वो कितनी इम्प्रेस्ड थीं, स्टेशन के स्टाफ यूनिफार्म में, एक जी आर पी वाला भी कही से आ गया था, हम लोगो को सामान की चिंता भी नहीं करनी पड़ी स्टेशन स्टाफ ने सामन सेट कर दिया, यहाँ तक की केबिन में चारों बर्थ पे बिस्तर भी लगा था. गुड्डी के पापा के कोई परिचित मिल गए थे तो वो पास के केबिन में उनके पास चले गए थे, हम लोगों के केबिन में गुड्डी, उसकी मम्मी दोनों बहिने और मैं। दोनों उधम मचा रही थीं, तबतक डिप्टी स्टेशन सुपरिंटेंडेंट आये और बोले, " सर, इंजन चेंज होगा तो पंद्रह बीस मिनट लगेगा, आप लोग आराम से बैठिये, ट्रेन रेडी हो जायेगी तो मैं बता दूंगा। "



उन के जाते ही भाभी फिर मुझे देख के मुस्करायीं, मैंने छुटकी और मझली से कहा चलो अभी टाइम है तुम दोनों को चॉकलेट दिलवा देता हूँ,



मुझे चिप्स भी चाहिए छुटकी बोली, मंझली ने जोड़ा कॉमिक्स, पांच मिनट बाद मैं दोनों को लेकर वापस,... चॉकलेट, चिप्स, कॉमिक्स, पेप्सी



और मैंने भाभी से बोला, कानपुर में भी इन लोगो ने बोल दिया है कोई सामान उतरवाने कोई आ जाएगा और आप लोग लौटिएगा कब,...



" अभी पता नहीं हो सकता है होली के दो दिन बाद, हो सकता है तीन दिन बाद, अभी तो लौटने का रिजर्वेशन "



उनकी बात काट के मैं बोला, " अरे आप गुड्डी को बोल दीजियेगा, उसकी चिंता मत करियेगा, मैं भी होली के चार पांच दिन बाद ही लौटूंगा, तब तक आप लोग आ जाइयेगा तो मुलाकात हो जायेगी, ... "



अब भाभी आपने रूप में आ गयीं, हंस के बोली,



" मुलाकात नहीं तोहार रगड़ाई होइ,... और कम से कम दो तीन दिन, ... हमार तोहार फगुआ उधार बा, एक इंच जगह बचेगी नहीं न अंदर न बाहर,... "



फिर सीरियस होके बोलीं, भैया तोहार तो,... और ये बनारस में भी तोहार,... "



उनकी बात ख़तम होते ही मैं बोला, " एकदम भाभी,... अरे हो सकता है मई से ही दो तीन महीने की ट्रेनिंग बनारस में ही हो, यहाँ आफिसर्स मेस है, रेस्टहाउस,

भाभी एकदम आग, गुड्डी गुर्राने लगीं ऊपर से उसकी दोनों बहने भी कान पारे,



" एकदम नहीं, घर में रहना होगा, और खाना दोनों टाइम घर में " भाभी और गुड्डी दोनों साथ साथ बोली, और दोनों बहनों ने भी ऊपर से हामी भरी,...



" सोचना भी मत कहीं और रहने को " भाभी भी बोलीं, तीन बार मुझसे हामी भरवाई और फिर जब मैंने कबूल कर लिया,... कान पकड़ा, तो भाभी अपने रंग में



" अरे दिन में ट्रेनिंग आफिस में करना, रात में मैं ट्रेनिंग दूंगी, रोज बिना नागा। " गुड्डी मंद मंद मुस्करा रही थी फिर बोली और खाने के साथ गारी भी रोज सुननी पड़ेगी ये भी बोल दीजिये, ...



" वो कोई कहने की बात है, बिना गारी के खाना कैसे पचेगा,... " हँसते हुए वो बोलीं फिर अपने रूप में एकदम कह मुझसे रही थी बोल गुड्डी से रही थीं



" और गारी क्या सब सही सही बोल रही थी , तुम तो जा ही रही हो इनके साथ, इनके बहन का हाल देख लेना, और जहाँ तक इनकी महतारी का हाल है , मैं अपने मन से कुछ नहीं कहती। बिन्नो की तिलक में जितने तिलकहरु गए थे, नाइ बारी कहार पंडित सब उनके पोखरा में डुबकी लगा के आये थे, कई कई बार, वही सब बता रहे थे,... "



तबतक डिप्टी एस एस आ गए, ... गाडी चलने वाली है और मैं और गुड्डी उतर पड़े। हाँ गुड्डी के कान में उन्होंने कुछ समझाया भी।

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तब तक नीचे से आवाज आई। रिक्शा आ गया। रिक्शा आ गया।
असली पावर तो आनंद बाबु को अभी दिखानी है...
और ट्रेनिंग भी दोनों की.. (ऑफिस और घर पर गुड्डी और चंदा भाभी)... आनंद बाबु सफलतापूर्वक कंप्लीट करेंगे...
 

motaalund

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10k words update..wow...absolutely awesome Madam. Congrats for the same.
I'll tell you a fact..I am also thinking of writing a story..but really struggling to piece sentences together..and here you wrote 10k words update. Hats off!!
Btw, should I also try my hand at story writing? Even if I write, it will be a novice attempt. Thanks and congrats once again.
komaalrani
Btw, update padha nahi hain..will try to give another comment soon. Thanks.Zaahir hain, update ekdum mast hi rahega :)
oh.. sure...
whether in devnaagri font or roman font.
eagerly awaiting...
 

motaalund

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फागुन के दिन चार भाग २

रस बनारस का - चंदा भाभी


एक दस हजार से अधिक शब्दों वाला मेगा अपडेट

बहुत से नए प्रसंग

पृष्ठ १९ पर

कृपया पढ़ें, आनंद ले , लाइक करे और कमेंट करे


and did on 18th Feb.
आपने एक बार कमिटमेंट कर दी.. तो फिर अपने आप की नहीं सुनती...
 

motaalund

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कोमल मैम

फागुन के दिन चार कहानी पढ़ते - पढ़ते फिर से वही यादें ताजा हो गई जब पहली बार ये कहानी पढ़ी थी।

पर पता नहीं क्यूं कुछ नया - नया भी लग रहा है जैसे गुड्डी की मम्मी का आनंद बाबू से गुड्डी से शादी के लिए पूछना वगैरह - वगैरह।

ठीक से नहीं कह पा रहा हूं बस मेहसूस कर पा रहा हूं क्योंकि कहानी को पढ़े काफी दिन भी हो गए हैं।

आप ही बता पाएंगी कि क्या कुछ बदलाव किया है या नहीं ?? वैसे आपने जो भी किया हो या ना किया हो, कहानी को पढ़कर बहुत ही सुखद अहसास हो रहा है। पुनः आपका हार्दिक आभार।

सादर
अभी तक की कहानी में लगभग 30% नया कंटेंट पढ़ने को मिल चुका है...
हालाँकि ये कंटीन्यूटी को ध्यान में रखते हुए किया गया है...
और कुछ फ़्लैशबैक भी...
ताकि आगे तारतम्य बना रहे...
 

motaalund

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और मैं अनुरोध करुँगी, एक बार फिर से पढ़े

इसलिए भी की यह रिपोस्ट होकर भी रिपोस्ट नहीं है अब इसी भाग दो को लीजिये जो पृष्ठ १९ पर है इसके नौ भागों में तीन भाग तो एकदम नए हैं और बाकी में भी काफी परिवर्धन हुआ है

इसलिए जो किस्सा ४ हजार से काम शब्दों का था, अब दस हजार से ज्यादा शब्दों का हो गया।

इस प्रकार यह परिवर्धित संस्करण हैं, हाँ कोशिश करुँगी परिवर्तन कम से कम हो लेकिन रफ़ूगीरी के चक्क्रर में कुछ तो जुड़ जाता है और उसका अपना स्वाद है।

पहले भाग में भी पात्र परिचय में आप देखंगे गुड्डी की मम्मी का भी नाम जुड़ गया है।


एकबार फिर से धन्यवाद पधारने का और आग्रह कहानी का रसास्वादन करने का
आपसे शत-प्रतिशत सहमत हूँ...
और ये परिवर्धन दिल को गुदगुदा जाता है...
और आगे की ललक और बढ़ा देता है...
 

motaalund

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Madam, update 2 is as good as update 1...with new characters showing up...as I had said earlier, no wonder, it is (was) a very popular blockbuster story...abhi bhi aapko doubt hain kya?
Btw, I had given a msg to you...yesterday night...and once again, congrats for the other story...jkg...
Also, as the popularity of this story gets going...my request..create index on pg 1 so that it becomes easy for everyone else to know on which page the update is posted..hope you'll think about it. Thanks.
komaalrani
True.. this is an all time blockbuster in erotica...
 

motaalund

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कहानीकार सिर्फ एक ही विधा लिखे या जरूरी तो नहीं है न।
आप सही कह रहे हैं...
लेकिन कोमल जी की स्ट्रेंथ एक विस्तृत नॉवल लिखने अद्वितीय है...
 
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