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Erotica फागुन के दिन चार

Random2022

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Sandhya
होली बनारस की-देह की


जो चुनर उसने डांस के समय ओढ़ रखी थी अपनी ब्रा कम चोली के ऊपर।

वो तो मैंने नाचते नाचते ही उससे छीनकर दूर फेंक दी थी और अब उसके अधखुले उभार एक बार फिर मेरे सीने से दब रहे थे। उसके लम्बे नाखून मेरी पीठ पर चुभ रहे थे कंधे पे खरोंचे मार रहे थे।

फगुनाहट सिर्फ हम दोनों पे चढ़ी हो ऐसी बात नहीं थी।



संध्या भाभी अब चंदा भाभी के नीचे थी और चंदा भाभी ने जब उनकी टांगें उठायीं तो साया अपने आप कमर तक उठ गया। उनके भरतपुर के दर्शन हम सबको हो गए।

-- लेकिन अब किसी को उन छोटी मोटी चीजों की परवाह नहीं थी। चंदा भाभी का अंगूठा सीधे उनकी क्लिट पे। और दो उंगलियां अन्दर। माना संध्या भाभी ससुराल से होकर आई थी लेकिन अभी भी उनकी बहुत टाईट थी। जिस तरह से उनकी चीख निकली इससे ये बात साफ जाहिर थी पर चंदा भाभी को तो और मजा आ गया था। वो दोनों उंगलियां जोर-जोर से अन्दर गोल-गोल घुमा रही थी। दूसरा हाथ उनके मस्त गदराये जोबन का रस लूट रहा था।

संध्या भाभी सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी छटक रही थी। कभी मजे से कभी दर्द से।

लेकिन चंदा भाभी बोली-

“अरे ननद रानी ये छिनारपना कहीं और जाकर दिखाना। जब से बचपन में टिकोरे भी नहीं आये थे दबवाना शुरू कर दिया था। शादी के पहले 10-10 लण्ड खा चुकी हो। भूल गई पिछली होली मैंने ही बचाया था दूबे भाभी से। वरना मुट्ठी डालना तो तय था। तुमने वायदा किया था की जब शादी से लौटकर आओगी तो जरूर। और अब दो उंगली में चूतड़ पटक रही हो…”

“अरे लेगी-लेगी नहीं लेगी तो जबरदस्ती घुटायेंगे…” दूबे भाभी बोली।



वो गुड्डी को अब प्रेम पाठ पढ़ा रही थी। उसका एक किशोर उभार उनके हाथ में था और दूसरी टिट होंठों के बीच कस-कसकर चूसी जाती,

तो कभी दूबे भाभी के हाथ गुड्डी के जोबन को रगड़ते मसलते, और कस के निप पिंच कर लेती। गुड्डी की मस्ती में हालत खराब थी, फ्राक के ऊपर के हिस्से तो पहले ही चंदा भाभी ने चीथड़े चीथड़े कर दिए थे, ब्रा का ढक्कन बचा था, गुड्डी का। चंदा भाभी ने तो ब्रा के अंदर हाथ डाल के और हुक खोल के रंग लगा दिया था, लेकिन रंगो की होली तो कब की ख़तम हो चुकी थी अब तो सिर्फ देह की होली चल रही थी, और दूबे भाभी, दूबे भाभी थीं तो ऊपर झाँपर से उनका काम नहीं चलने वाला और उनके हाथ में ताकत भी बहुत थी, बस कस के ब्रा के बीच से

चरचरर र र

और गुड्डी की ब्रा की दोनों कटोरियाँ दो हिस्से में,


पर दूबे भाभी भी तो बड़ी बड़ी चूँचियाँ भी सिर्फ ब्रा से ढंकी थी, एक हुक रीत ने पहले ही तोड़ दिया था, बस एक हुक के सहारे और गुड्डी ने उसे भी खोल दिया और दूबे भाभी की ३६ ++ बड़ी बड़ी चूँचियाँ अच्छी तरह से रंग से लिपि पुती बाहर आ गयीं, आधे से ज्यादा रंग तो मेरे ही हाथ से लगा था दूबे भौजी के जोबन पे।

और अब मुकबला था ११ वी में पढ़ने वाली की उभरती हुयी चूँचियों और भौजी के पहाड़ों के बीच, गुड्डी नीचे दूबे भौजी ऊपर और जैसे चक्की के दो पाटे चल रहे हों, बीच बीच में वो गुड्डी के कान में कुछ कहती और मेरी ओर देखतीं,



अब मैं समझ गया ये सेक्स एजुकेशन का क्लास मेरे लिए चल रहा था की आज रात मुझे गुड्डी के साथ क्या करना है और आज रात ही क्यों मेरे मन की बात चल जाए तो हर रात,



ये नहीं था की मैं मस्ती नहीं कर रहा था, रीत मेरी गोद में और अब उसकी भी जालीदार ब्रा खुल चुकी थी और वो मुझसे भी एक हाथ आगे अपने चूतड़ों को कस कस के कपड़ो में ढंके मेरे जंगबहादुर पे रगड़ रही थी,


लेकिन दूबे भाभी की मज़बूरी थी, गुड्डी के कमर के नीचे अभी दूकान बंद थी, और असली मजा तो उसी खजाने में है।



चंदा भाभी की उँगलियाँ संध्या भाभी के उस खजाने में सेंध लगा चुकी थी, और संध्या भाभी बार बार सिसक रही थीं तो मन तो दूबे भौजी का भी कर रहा था किसी कच्ची कली के प्रेम गली में होली की सैर करने का,

तो जैसे युद्धबंदियों की अदला बदली होती है तो बस उसी तरह उन्होंने रीत की ओर इशारा किया, और रीत पांच कदम दूबे भाभी की ओर तो गुड्डी पांच कदम मेरी ओर, और थोड़ी देर में गुड्डी मेरी गोद में और रीत और दूबे भाभी की देह की होली शुरू हो गयी थी।


रीत के जिस भरतपुर स्टेशन पे मेरी उँगलियाँ आज सुबह से कई बार चक्कर काट चुकी थीं पर दर्शन नहीं हुआ था,

दूबे भाभी जिंदाबाद उनकी कृपा से भरतपुर का आँखों ने नयन सुख लिया। होली में तब से आज तक कितनी बार देखा है, समझदार भाभियाँ ननद की शलवार हो पाजामी हो, नाड़ा कभी खोलती नहीं, सीधे तोड़ देती हैं और दूबे भाभी ने वही किया, और जब तक रीत समझे,

सररर सररर

दूबे भाभी के हाथ, रीत की पजामी सरक के उसके घुटने तक, और दिख गयी,

गुलाबी गुलाबी चिकनी चिकनी



लेकिन बहुत देर तक नहीं वो दूबे भाभी के होंठों के बीच कैद हो गयी और क्या चूस रही थीं वो, और रीत जोर जोर से सिसक रही थी


और चंदा भाभी ने अब तीसरी उंगली भी संध्या भाभी की चूत में घुसेड़ दी। और क्लिट पे कसकर पिंच करके, मेरी ओर इशारा करके, दिखा के बोली-

“अरे चूत मरानो, इसको देख। अपनी कुँवारी अनचुदी बहन को बस दूबे भाभी और अपनी यार के एक बार कहने पे लेकर आने पे तैयार हो गया है भंड़ुआ, यही नहीं राकी से भी चुदवायेगी वो। और तू ससुराल में दिन रात टांगें उठाये रहती होगी और यहाँ उंगली लेने में चीख रही है…”

संध्या भाभी मुश्कुराते हुए बोली- “रात दिन नहीं भाभी सिर्फ रात में। दिन में तो कभी कभी। जब मेरे देवर को मौका मिल जाता था या। नंदोई जी आ जाते थे…”


और इसके जवाब में चंदा भाभी ने अपनी तीनों उंगलियां बाहर निकल ली और अपने होंठ चिपका दिए संध्या भाभी की चूत पे। दो हाथों से उनकी जांघें कसकर फैलाए हुए थी वो।

चंदा भाभी और संध्या भाभी एक दूसरे की चूत के ऊपर कस-कसकर रगड़ घिस कर रही थी।

रीत और दूबे भाभी, चंदा भाभी और संध्या भाभी एकदम खुल के मस्ती कर रहे थे, उन्हें कुछ फरक नहीं पड़ रहा था की मैं और गुड्डी बैठे सब देख रहे हैं,

और पहल गुड्डी ने ही की, जरा सा ही सही,

दूबे भाभी के पास से निकलने के समय गुड्डी ने अपनी फटी दो टुकड़ो में बँटी ब्रा को किसी तरह से अपने उभारों पर टिका लिया था, मन तो मेरा बहुत कर रहा था की जैसे दूबे भाभी कस कस के गुड्डी की छोटी छोटी अमिया मसल रही थी, रगड़ रही थी, मैं भी उसी तरह, लेकिन, बस वही

पर गुड्डी, मुझसे भी ज्यादा मुझको जानती थी, और उसने हाथ उठा के बस वहीँ, जैसे उस दिन पिक्चर हाल में, आज से डेढ़ दो साल पहले, जब वो नौवीं में थी और मैंने पहली बार जोबन रस लिया था, भले ही फ्राक के ऊपर से,

और आज तो फ्राक चंदा भाभी ने चीर दी थी और ब्रा दूबे भाभी ने दो टूक कर दी थी,

और जैसे ही मेरा हाथ पड़ा फटी हुयी ब्रा खुद सरक के, उसे मालुम हो गया की इस जोबन का असली मालिक आ गया है और अब मैं कस के खुल के दबा रहा था, मसल रहा था, कभी रीत को रगड़ती दूबे भाभी देख लेती, मुझे देख के मुस्कराती और कभी चंदा भाभी



लेकिन मेरी मस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, और मैंने झुक के गुड्डी के रसीले होंठो को चूम भी लिया, लेकिन गुड्डी मुझसे भी दो हाथ आगे उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में ठेल दी और मैं कस के चूसने लगा,


हाथों को गुड्डी के जोबन रस का सुख मिल रहा था और होंठों को गुड्डी के मुख रस का, और वो भी सबके सामने,



लेकिन तभी छोटा सा विघ्न हो गया, रीत की कोई सहेली आयी थी, वो नीचे से आवाज लगा रही थी, तो रीत और दूबे भाभी दोनों सीढ़ी से उतरकर धड़ धड़ नीचे


पर हम चारों का जोश और बढ़ गया,


चंदा भाभी के तरकस में एक से एक हथियार थे, कभी वो कस कस के संध्या भाभी की चूत कस कस के चाटती और चूस चूस के उन्हें झड़ने के कगार पे ले आती पर जब संध्या भाभी, सिसकती चिरौरी करतीं

" भौजी झाड़ दो, हफ्ता हो गया पानी निकले, मोर भौजी "

बस चंदा भाभी चूसना बंद कर के कस के संध्या भौजी का जोबन रगड़ने लगती, उनके मुंह के ऊपर बैठ के चंदा भाभी अपनी बुर चुसवाती और संध्या भाभी की खूब चासनी से गीली तड़पती, फड़फड़ाती बुर साफ़ साफ़ दिखती और गुड्डी मुझे छेड़ती,

" हे देख तोहरी संध्या भौजी की कितनी रसीली गली है, घुस जाओ न अंदर "


गुड्डी के गाल चूम के मैं बोला " लेकिन मुझे तो इस लड़की की गली में घुसना है "



" तो घुसना न रात भर, मैंने कौन सा मना किया है अरे अभी छुट्टी है वरना यही छत पे तेरी नथ सबके सामने उतार देती " गुड्डी हँसते हुए बोली

संध्या भाभी के ऊपर चढ़ी चंदा भाभी ने गुड्डी को इशारा किया की मेरे मोटे जंगबहादुर को आजाद कर दे, और बस अगले पल वो तन्नाए , फनफनाये बाहर,

और गुड्डी ऊपर से मुठियाते हुए संध्या भाभी को दिखा रही थी, जैसे पूछ रही हो चाहिए क्या,



चंदा भाभी ने संध्या भाभी के मुंह को आजाद कर दिया और अब वो भी गुड्डी के साथ खेल तमाशे में शामिल हो गयीं और संध्या भाभी से बोली

" अरे ननद रानी कुछ मन कर रहा हो तो मांग लो, गुड्डी एकदम मना नहीं करेगी "

" अरे दिलवा दो न अपने यार का " संध्या भाभी मुस्कराते हुए बोली लेकिन गुड्डी कम नहीं थी, मेरे गाल पे खुल के चुम्मा लेते हुए बोली


" यार तो है मेरा, थोड़ा बुद्धू है तो क्या अब मेरी किस्मत में यही है, लेकिन क्या चाहिए ये खुल के बोलिये न "

" लंड चाहिए, इत्ता मोटा लम्बा कड़क है, एक बार चोद देगा तो घिस थोड़े ही जाएगा, हफ्ते भर से उपवास चल रहा है चूत रानी का, गुड्डी तुझे बहुत आशिरवाद मिलेगा, मुझे एक बार दिलवा देगी तो तो तुझे ये हर रोज मिलेगा, जिंदगी भर, सात जनम। "

संध्या भाभी सच में गर्मायी थीं।

लेकिन चंदा भाभी उन्हें अभी और तड़पाना चाहती थी, जैसे मेन कोर्स के चक्कर में लोग स्टार्टर कम खाते हैं एकदम उसी तरह, किनारे पे ले जाके बार बार रुक जाती थीं


चंदा भाभी ने संध्या भाभी को छोड़ दिया और गुड्डी को चुम्मा लेने का, मेरे खूंटे को दिखा के इशारा किया और गुड्डी ने झुक के एक लम्बी सी चुम्मी मेरे सुपाड़े पे जड़ दी।

संध्या भाभी की हालत और खराब हो गयी।

तब तक सीढ़ियों से फिर पदचाप की आवाज सुनाई पड़ी और हम सब के जो भी थोड़े बहुत कपडे थे, देह पर, जंगबहादुर अंदर।

पहले रीत आयी, अपनी उस सहेली को गरियाती और मेरे और गुड्डी के पास बैठ गयी, फिर दूबे भाभी।

हम सब चुप थे, और ये चुप्पी टूटी दूबे भाभी की आवाज से,
Sandhya bhabhi or reet dono bar bar bach jati hai
 

Random2022

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Fi
मेरे कपड़े?


सब लोग जैसे ही मुड़े मुझे कुछ याद आया। अभी भी मैं साड़ी ब्लाउज़ में ही था।

“हे मेरे कपड़े?” मैं जोर से चिल्लाया।

“अरे लाला पहने तो हो, इत्ते मस्त माल लग रहे हो…” दूबे भाभी मुश्कुराकर बोली।

“लेकिन इसको पहनकर। अभी मझे गुड्डी के साथ बाजार जाना है फिर रेस्टहाउस। फिर घर…” मैं परेशान होकर बोला। अभी तक तो होली का माहौल था लेकिन ये सब चली जायेंगी तो?

“मुझे कोई परेशानी नहीं है अगर आप ये सब पहनकर बाजार चलेंगे। जोगीड़े में तो लड़के लड़कियां बनते ही हैं। लौंडे के नाच में भी। तो लोग सोचेंगे होगा कोई स्साला चिकना नमकीन लौंडा ” गुड्डी हँसकर बोली।

रीत ने भी टुकड़ा लगाया- “हे, अगर गुड्डी को आपको साथ ले जाने में परेशानी नहीं है तो फिर किस बात का डर?”

“हे मैंने तुमको दिए थे ना प्लीज दिलवा दो…” मैं गुड्डी से गिड़गिड़ा रहा था।

“वो तो मैंने रीत को दे दिए थे बताया तो था ना…” गुड्डी खिलखिलाती हुई बोली।

“अरे कुछ माँगना हो तो ऐसे थोड़े ही माँगते हैं। मांग लो ढंग से। दे देगी…” संध्या भाभी ने आँख मारकर मुझसे कहा।

“एकदम…” रीत ने हँसकर कहा।

मैं- “तो फिर कैसे मांगूं?”

“अरे पैर पड़ो। हाथ जोड़ो। दिल पसीज जाएगा तो दे देगी। अब इसका इतना पत्थर भी नहीं है दिल…” दूबे भाभी बोली।
खैर इसकी जरूरत नहीं पड़ी। मैंने पूछा- “क्यों दंडवत हो जाऊं?”

और रीत संध्या भाभी और गुड्डी खिलखिला के हँस पड़ी। संध्या भाभी बोली- “क्या बोले। लण्डवत?” और तीनों फिर खिलखिला के हँस पड़ी।

रीत बोली- “अरे इसके लिए तो मैं तुरंत मान जाती। चल गुड्डी…दे देते हैं, जब ढोलक मजीरा और घुंघरू आये थे तो रीत एक बैग भी लाद के ले आयी थी।

और उधर चन्दा, संध्या और दूबे भाभी ने मेरा फिर से चीर हरण शुरू कर दिया। साड़ी, गहने, सब उतार दिए गए लेकिन जो महावर चुन चुन के संध्या भाभी ने लगाया था वो तो पंद्रह दिन से पहले नहीं उतरने वाला था, वही हालत उन दोनों शैतानों के किये मेक अप की थी। इसके साथ मैंने अब देखा, मेरी नाभि के किनारे और जगह-जगह दोनों ने टैटू भी बना दिए थे।

हाँ, पायल और बिछुए, दूबे भाभी ने मना कर दिए उतारने से ये कहकर की सुहाग की निशानी हैं और नथ और कान के झुमके भी नहीं उतरे की ये सब तो आजकल लड़के भी पहनते हैं बल्की साफ-साफ बोलू तो चंदा भाभी ने कहा, जितने चिकने नमकीन लौंडे है सब पहनते हैं, गान्डूओं की निशानी है।


मैंने बहुत जोर दिया की महंगे होंगे तो हँसकर बोली, रीत से कहना। ये सब उसी की कारस्तानी है। लेकिन मैं बताऊं सब 20 आने वाला माल है।

तब तक रीत और गुड्डी ने जादूगर की तरह उस बैग में से हाथ डाल के साथ साथ निकाला।

एक के हाथ में मेरी पैंट और दूसरे के हाथ में शर्ट थी।



“हे भाभी किसे 20 आने वाला माल कह रही हो। कहीं मुझे तो नहीं…” हँसकर रीत ने पूछा।

“हिम्मत है किसी की जो मेरी इतनी प्यारी सेक्सी मस्त ननद को 20 आने वाला माल कह दे। जिसके पीछे सारा बनारस पड़ा हो…” चंदा भाभी बोली।

“पीछे मतलब। मैं तो सोचती थी की इसकी आगे वाली चीज मस्त-मस्त है…” संध्या भाभी भी रीत को चिढ़ाने में शामिल हो गईं।



“अरे आगे-पीछे इसकी सब मस्त-मस्त है। लेकिन इत्ते मस्त गोल-गोल चूतड़ हों तो पीछे से लेने में और मजा आएगा ना। चूची चूतड़ दोनों का साथ-साथ। क्यों ठीक कह रही हूँ ना मैं…”


मेरी और देखते हुए चंदा भाभी ने अपनी बात में मुझे भी लपेट लिया।

रीत की बड़ी-बड़ी हँसती नाचती कजरारी आँखें मुझे ही देख रही थी।

मैं शर्मा गया।

रीत शर्ट लेकर मेरी और बढ़ी- “चलो पहनो…”

शर्ट तो मेरी ही थी लेकिन रंग बदल चुका था जहां वो पहले झ्क्काक सफेद होती थी अब लाल नीले पीले पता नहीं कितने रंगों की डिजाइन।

मैंने 34सी साइज वाली जो ब्रा मुझे पहनाई गई थी और उसमें भरे रंग के गुब्बारों की ओर इशारा किया- “अरे यार इन्हें तो पहले उतारो…”

“क्यों क्या बुरा है इनमें अच्छे तो लग रहे हो…” गुड्डी ने आँख नचाकर कहा।

“हे बाबू ये सोचना भी मत। मैंने अपने हाथ से पहनाया है इसको हाथ भी लगाया ना तो बस टापते रह जाओगे…” रीत ने जो धमकी दी तो फिर मेरी क्या औकात थी।

“वैसे भी बनियान नहीं है तो शर्ट के नीचे ठीक तो लग रही है…” गुड्डी ने समझाया और मुझे याद आया।

मैं- “हाँ मेरी बनयान और चड्ढी। वो…”

“अरे जो मिल रहा है ले लो। तुम लड़कों की तो यही एक बुरी आदत है। एक से संतोष नहीं है। एक मिलेगा तो दूसरी पे आँख गड़ाएंगे और तीसरी का नंबर लगाकर रखेंगे…” रीत बोली और शर्ट पीछे कर लिया।

मैं सच में घबड़ा गया। इन बनारस की ठग से कौन लगे- “अच्छा चलो रहने दो। ऊपर से ही शर्ट पहना दो…” मैं हार कर बोला।

“अरे ब्रा पहनने का बहुत शौक है तुम्हें लगता है। बचपन से घर में किसकी पहनते थे या लण्ड में लगाकर मुट्ठ मारते थे। लाला…” संध्या भाभी बोली। चित भी उनकी पट भी उनकी।

रीत ने शर्ट पहना ली तब मैंने देखा। होली मैं जैसे ठप्पे लगाते हैं ना। बस वैसे। लेकिन। रीत के यहाँ ब्लाक प्रिंटिंग होती थी और वो खुद कम कलाकार थोड़े ही थी।

रीत और गुड्डी ने मिलकर मुझे शर्ट पहनाई।



गुड्डी आगे से जब बटन बंद कर रही थी तब मैंने देखा उसपर लाल गुलाबी रंग में मोटा-मोटा लिखा था- “बहनचोद। "

इत्ता बड़ा बड़ा की बहुत दूर से भी साफ दिखे…” और उससे थोड़े ही छोटे अक्षरों में उसके नीचे काही रंग में लिखा था-

“बहन का भंड़ुआ। होली डिस्काउंट। बनारस वालों के लिए खास…”

और सबसे नीचे मेरे शहर का नाम लिखा था और मेरी ममेरी बहन गुड्डी का स्कूल का नाम रंजीता (गुड्डी) लिखा था। लेकिन सबसे ज्यादा मैं जो चौंका। वो साइड में उंगली से जैसे किसी ने कालिख से लिख दिया हो,



लिखा था रेट लिस्ट पीछे।

अब तक मैंने पीछे नहीं देखा था। जब उधर ध्यान दिया तो मेरी तो बस फट ही गई। जैसे कोई सस्ते विज्ञापन। ऊपर लिखा था-


खुल गई। चोद लो। मार लो। और उसके नीचे,--- गुड्डी का स्पेशल रेट सिर्फ बनारस वालों के लिए। आपके शहर में एक हफ्ते के लिए। एडवांस बुकिंग चालू।



उसके बाद जैसे दुकान पे रेट लिस्ट लिखी होती है-



चुम्मा चुम्मी- 20 रूपया

चूची मिजवायी- 40 रूपया

चुसवायी- 50 रूपया

चुदवाई- 75 रूपया

सारी रात 150 रूपया।




और सबसे खतरनाक बात ये थी की नीचे दो मोबाइल नंबर लिखे थे। बस गनीमत ये थी की सिर्फ 9 नंबर ही दिए गए थे। एक तो मैंने पहचान लिया मेरा ही था। लेकिन दूसरा?

मेरे पूछने के पहले ही रीत बोली- “मेरा है…” गुड्डी तो तुम्हारे साथ चली जायेगी तो मैंने सोचा की मैं ही उसकी बुकिंग कर लेती हूँ आखीरकार, तुम्हारी बहन है पहली बार बनारस का रस लूटेगी तो कुछ आमदनी भी हो जाय उसकी और आज कल अच्छा से अच्छा माल बिना ऐड के कहाँ बिकता है?

“तो उस साली का नम्बर क्यों नहीं दिया?” संध्या भाभी ने पूछा।

“अरे तो इस भंड़ुए का क्या होता। मेरे ये कहाँ से नोट गिनते…” गुड्डी ने प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए कहा।

“नहीं यार संध्या दी ठीक कह रही हैं। अरे उसके पास भी तो कुछ मेसेज होली के मिलेंगे। मैं तेरा काम आसान कर रही हूँ। जब उसे मालूम होगा की यहाँ कमाई का इतना स्कोप है तो खड़ी तैयार हो जायेगी आने के लिए। तुझे ज्यादा पटाना नहीं पड़ेगा छिनार को। अरे यहाँ ज्यादा लोग है बनारस के लोग रसिया भी होते हैं। डिमांड ज्यादा होगी होली में। टर्न ओवर की बात है। बोल?”

रीत वास्तव में बी॰काम॰ में पढ़ने लायक थी। उसका बिजनेस सेन्स गजब का था।

और जब तक मैं रोकूँ रोकूँ, ...गुड्डी ने दनदनाते हुए। नंबर लिखवा दिया और रीत ने आगे और पीछे जहाँ उसका नाम लिखा था उसके नीचे लिख दिया-
तब तक मुझे ध्यान आया, गुड्डी ने तो पूरा ही दसों नंबर बता दिया।

“हे हे हे ये क्या किया तुम दोनों ने?” मैंने बोला।

गुड्डी को भी लगा तो वो रीत से बोली- “हे यार उसका तो पूरा नम्बर लिख गया। एक मिटा दे ना…”

रीत सीधी होती हुई बोली- “अब कुछ नहीं हो सकता। ये ना मिटने वाली स्याही है…” और ये नम्बर सबसे ज्यादा बोल्ड और चटख थे।

पैंट पहनने के लिए मेरा साया उतार दिया गया। मैं हाथ जोड़ता रहा- “हे प्लीज बनयान नहीं तो कम से कम चड्ढी तो वापस कर दो…”

“बता दूं किसके पास है?” गुड्डी ने आँख नचाकर रीत से पूछा।

“बता दो यार अब ये तो वैसे भी जाने वाले हैं…” हँसकर अदा से रीत बोली।

“तुम्हारी सबसे छोटी साली के पास है। गुंजा के पास वो पहनकर स्कूल गई है। कह रही थी की उसे तुम्हारी फील आएगी और वैसे भी उसने तुम्हें अपनी रात भर की पहनी हुई टाप और बर्मुडा दिया था। तो क्या सोचते हो ऐसे ही। एक्सचेंज प्रोग्राम था…”

गुड्डी ने हँसते हुए राज खोला।

पैंट पे भी वैसे ही कलाकारी की गई थी।

गनीमत था की पैंट नीली थी लेकिन उसपे सफेद, गोल्डेन पेंट से।


पीछे मेरे चूतड़ पे खूब बड़े लेटर्स में गान्डू लिखा था। आगे भंड़ुआ, गंडुआ और भी बनारसी गालियां। शर्ट मैंने पैंट के अन्दर कर ली की कुछ कलाकारी छिप जाय लेकिन गुड्डी और रीत की कम्बाइंड शरारत के आगे, उन दुष्टों ने इस तरह लिखा था की इसके बावजूद वो नंबर दिख ही रहे थे।

“चलो न अब नीचे नहाने बहुत देर हो रही है। और इनको गुड्डी को जाना भी है…” संध्या भाभी बोली और जिस तरह से उन्होंने दूबे भाभी का हाथ पकड़ रखा था उन्हें देख रही थी। एक अजीब तरह की चमक। और वही चमक दूबे भाभी की आँखों में।

और दूबे भाभी ने रीत को भी पकड़ लिया- “चल तू भी…”

रीत की निगाहें मेरी और गड़ी थी।

और दूबे भाभी भी दुविधा में थी- “मन तो नहीं कर रहा है इस मस्त माल मीठे रसगुल्ले को छोड़कर जाने के लिए…” मेरे गाल पे चिकोटी काटते हुए वो बोली।

“अरे आएगा वो हफ्ते भरकर अन्दर। फिर तो तीन-चार दिन रहेगा ना। बनारस का फागुन तो रंग पंचमी तक चलता है…” चंदा भाभी ने उन्हें समझाया।

तय ये हुआ की रीत, चंदा भाभी, दूबे भाभी, और संध्या सब दूबे भाभी के यहाँ नहायेंगी। गुड्डी को तो अलग नहाना था और उसे आज बाल धोकर नहाना था, ज्यादा टाइम भी लगना था की उसके “वो पांच दिन…” खतम हो रहे थे। इसलिए वो ऊपर चंदा भाभी के यहाँ जो अलग से बाथरूम था उसमें नहा लेगी।


“और मैं?” मैं फिर बोला।


“अरे इनको भी ले चलते हैं ना अपने साथ नीचे। रंग वंग…” लेकिन रीत की बात खतम होने के पहले संध्या भाभी ने काट दी।
“अरे ये तो वैसे ही मस्त माल लग रहे हैं लाल गुलाबी। फिर पहले रंग लगाओ और फिर साफ करो। जा तो रहे हैं अपने मायके। अपनी उस एलवल वाली बहन से साफ करवा लेंगे…”

चंदा भाभी ने मेरे कान में कुछ कहा। कुछ मेरे पल्ले पड़ा कुछ नहीं पड़ा। मेरे आँख कान बने उस समय रीत की अनकही बातों का रस पी रहे थे।

तय ये हुआ की मैं छत पे ही रंग साफ कर लूँगा और उसके बाद चंदा भाभी के बेडरूम से लगे बाथरूम में। भाभी मुझे टावल साबुन और कुछ और चीजें दे गईं।



सब लोग निकल गए लेकिन रीत रुकी रही। जाते-जाते मेरा हाथ दबाकर बोली,..... मिलते हैं ब्रेक के बाद.
Fir se klpd ho gya
 

Mass

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Comment on update 18:

Wow...what a super update...I have never been to Banaras but reading your updates gives a distinct feel of how Holi is celebrated in Banaras (which btw, is very famous)
and when you mix it with erotica..its a deadly combo...the foreplay of Reet and Anand babu giving ample indications of that...

The erotic sex scene of Chanda and Sandhya bhabhi was truly awesome albeit with KLPD of Anand Babu 😜 😜 😀 😀
I fully agree with Raji's comments as well..."Awesome Gajab Updates"..truly super..

and your post ends with a cliff hanger..."मिलते हैं ब्रेक के बाद"...
The "possibilities" are many...and many might be mouth watering as well...

Truly awesome updates...👏👏👏👍👍👍

komaalrani
 

komaalrani

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Behad Kamuk
Thanks so much for the nice words, reading and enjoying the story. You are the first to comment on this story, Please keep on reading and sharing your views

:thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks: :thanks:
 

motaalund

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माटी की देह और माटी की होली, एकदम कीचड़ उछालने से ज्यादा मजा होली में कीचड़ लगाने में है। क्या याद दिला दी आप ने
और पकड़ के कीचड़ में डालने में...
 

motaalund

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रीत का दिमाग, आनंद बाबू का साथ, गुड्डी की चालाकी और संध्या भाभी का जोश,

जो काम अभी तक नहीं हुआ था,

जो काम हर होली में होता था, दूबे भाभी ननदों को टॉपलेस करती थीं, वो

अबकी उनके साथ हो गया।
जीत के पहले तिकड़ी का स्लोगन " हाउ इज द जोश "
जीत के बाद... " हाई सर "
 

motaalund

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दो दो किशोरियां आगे पीछे और कंचुकी हीन, सीधे उरोजों से होली खेल रही

अब कौन कह सकता है बनारसी ससुराल ऐसी होली कहीं और होगी,
तन से तन की होली...
मन से मन की होली...
 

motaalund

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वो अकेले

लेकिन कई बार रगड़े जाने में भी, रगड़वाने में भी मजा आता है, अगर रगड़ने वाली किशोरियां हो, नयी नयी भाभियाँ हो या खूब अनुभवी गदरायी खेली खायी दूबे भाभी ऐसी, वो कोमल कोमल हाथ जब गालों पर रेंगते हैं, पीठ पर टहलते हैं तो बस मन यही करता है,

थोड़ा और नीचे, और किसी बदमाश भाभी या हिम्मती साली ने ऊपर से ही बस ' वहां ' छू भी लिया

होली सार्थक हो जाती है।
तो पिचकारी अपने पूरे शबाब पर...
 
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ऐसी देह की होली न कभी खेली गई और न ही फ्यूचर मे किसी के नसीब मे होगी ।
दूबे भाभी , चंदा भाभी , संध्या भाभी , रीत और गुड्डी के साथ आनंद साहब की यह रंगीन होली वर्षों - वर्ष तक रीडर्स के मन मस्तिष्क पर अंकित रहेगी ।

सभी महिलाओं ने पहले तो आनंद साहब को रंगो से सराबोर किया , वस्त्रहीन कर उसे औरत का ड्रेस पहनाया , साज श्रृंगार कराया और अंत मे जब उसे कपड़े पहनाने की बात आई तो फिर अश्लील शब्दकोश से उस कपड़े का ऐसा क्रिया कर्म किया जो शब्दों मे बखान करना मुश्किल है ।
तौबा तौबा !
यह कहने की जरूरत नही कि इस देह की होली मे क्या क्या कारनामे हुए !

इन अपडेट मे कुछ सेन्टेन्स जो कही गई वह नो डाऊट आउटस्टैंडिंग थे ।
" दिखाना , ललचाना और , समय पर बिदक जाना " -- रीत ।
" हमे तो लूट लिया बनारस की ठगनियों ने " -- आनंद ।
" तुम्हे देखने के लिए आंख खोलनी पड़ती है क्या !" -- गुड्डी ।

गुड्डी की यह बात और फिर उसी दौरान कवि पद्माकर साहब की रचना - " एकै संग हाल नंद लाल...." इस अपडेट का सबसे खुबसूरत लम्हात था ।
राधा अपने प्रियतम से कहती है -- " गुलाल तो आंख से धुल जाए , पर नंद लाल कैसे जाए । "


इन अपडेट मे संध्या और रीत ने जिस तरह शब्दों को बिगाड़ कर उसे अश्लील रूप मे परिवर्तित किया , वह भी अद्भुत था । सहज नही होता है किसी अच्छे खासे शब्दों का अश्लील रूपांतरण करना । वह शब्द जो परिस्थिति के अनुरूप हो ।

शायद इस अध्याय के बाद होली पर्व का ' द एंड ' हो जाए पर , यह हकीकत है कि यह होली हमे भुलाए नही भुलेगी । ना हमे और न ही आनंद को और न ही इस पर्व मे सम्मिलित सभी महिलाओं को ।

आउटस्टैंडिंग अपडेट कोमल जी ।
जगमग जगमग अपडेट ।
 
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