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Erotica फागुन के दिन चार

chodumahan

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आपने सचमुच एक भव्य आवेशित और विस्तृत/विशाल अपडेट दिया है...
जिसमें लोग उन पलों में डूबने और उतराने लगते हैं...
शाजिया .. नादिया.. महक के साथ मिलकर गुड्डी ने मस्ती की एक नई परिभाषा गढ़ दी है...
आपकी यही विशेषता कि कुछ नया पेश करें .. बरबस हीं हमें खींच लाता है...
स्कूल में का खिलंदड़ापन ...
जवानी के इस मोड़ पर की मस्तियाँ.. ताजिंदगी याद रहती हैं...
और उन कुछ पलों को आप की प्रस्तुति हमें भूतकाल में ले जाकर गुदगुदा जाती है....
और बच्चों में इस तरह की प्रतियोगिता..(गाली देने में श्रेष्ठता) या अन्य खेल उनकी क्रिएटिविटी को दिखाते हैं...

"आओ बच्चो तुझे दिखाएं झांटे ९ बी वालियों की, इनकी बुर को तिलक करो ये बनी चुदवाने को,..."

इस तरह की पैरोडी... कुछ स्टडी डेस्क पर पुराने सीनियर्स द्वारा उकेरे गए कमेंट्स ...
अब तक मस्तिष्क के किसी कोने में छुपे हुए हैं...
एक अलग हीं मुस्कान बिखेर देते हैं...

और किसका मन नहीं करेगा... ऐसी सुनीतवा .. अनीतवा से मिलने को...

अब तो नहाए हुए आनंद बाबू को गुंजा नहवा के हीं छोड़ेगी... वो भी होली और प्यार के रंगों में...

और हाँ .. सचमुच के मनमोहन बाबू बन गए .. आनंद बाबू से...

गुंजा ने शाही लीची का स्वाद ले हीं लिया....

एक बार फिर से रंगों से सराबोर कर दिया आपने...
 

Rajizexy

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फागुन के दिन चार भाग १९

गुंजा और गुड्डी

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रह गया छत पे मैं अकेला।



गुड्डी थी तो लेकिन बाथरूम में और वो बोलकर गई थी डेढ़ घंटे के पहले वो नहीं निकलेगी।

मैंने सीढ़ी का दरवाजा बंद किया और चंदा भाभी के बाथरूम में पहले तो सिर झुका के सिर में लगे रंग, फिर चेहरे, हाथ पैर के रंग। जो रीत ने सबसे पहले पेंट लगा दिया था उसका कमाल था या जो बेसन वेसन चंदा भाभी ने दिया था उसका। काफी रंग साफ हो गया। मैंने मुँह में एक बार फिर से साबुन लगाया तभी दरवाजे पे खट खट हुई। मुँह पोछते हुए मैं दरवाजे के पास पहुँचा। जल्दी से मैंने बस टॉवेल लपेटी

तब तक खट-खट तेज हो गई थी। जैसे कोई बहुत जल्दी में हो। कौन हो सकता है ये मैंने सोचा- “गुंजा…”

घड़ी की ओर निगाह पड़ी तो उसके आने में तो अभी पौन घंटे से ऊपर बाकी था। वो बोलकर गई थी की मेरे आने के पहले मत जाइएगा। बिना सबसे छोटी साली से होली खेले। कहीं जल्दी तो नहीं आ गई और मैंने दरवाजा खोला। साबुन अभी भी आँख में लगा था साफ दिख नहीं रहा था।

गुड्डी अभी भी लगता है बाथरूम में ही थी।

कपडे दिख नहीं रहे थे, किसी तरह एक छोटी सी टॉवेल लपेट के मैं निकला,

शैतान का नाम लो शैतान हाजिर और गुड्डी बाहर निकल आई।

लम्बे भीगे बाल तौलिया में बंधे, रंग उसका भी साफ हुआ था लेकिन पूरा नहीं और एक खूब टाईट शलवार सूट में।



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उसके किशोर जोबन साफ-साफ दिखते, छलकते और कसी शलवार में नितम्बों का कटाव, यहाँ तक की अगर वो जरा भी झुकती तो चूतड़ की दरार तक। मेरी निगाह उसके गदराये जोबन पे टिकी थी। मैं बेशर्मों की तरह उसे घूर रहा था।

“लालची…” वो मुश्कुराकर बोली बिना दुपट्टा नीचे किये।

“अच्छी चीज हो तो मुँह में पानी आ ही जाता है…” मैं बोला।

“मुँह में या कहीं और…” वो शैतान बोली और उसकी निगाह नीचे की ओर।

और मेरी निगाह भी नीचे पड़ी। टॉवेल थोड़ी सी खुली थी और ' वो शैतान' अपना माल देखकर ललचाते हुए झाँक रहा था।

“रहने दो ऐसे ही। थोड़ा हवा पानी लगने दो…” खिलखिलाते हुए वो बोली, फिर आँख नचाकर कहने लगी। अच्छा चलो मैं बंद कर देती हूँ और मेरे पास आकर अपनी कोमल उंगलियां। बंद किसे करना उसने हाथ अन्दर डालकर सीधे उसे पकड़ लिया।

वो थोड़ा सुस्ता रहा था। लेकिन फिर अब गुड्डी की उंगलियां। वो फिर कुनमुनाने लगा।

“तेरे लिए एक अच्छी खबर है…” मेरे कान में होंठ लगाकर गुड्डी बोली।

मैं- “क्या?”

“मेरी सहेली। वो पांच दिन वाली…” गुड्डी आँख नचाकर बोली।


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मेरे मन में चिंता की लहर दौड़ गई कहीं ये ठीक नहीं हुई तो। मैंने इतना प्लान बनाया था की रात भर आज इसे और फिर अब मेरे जंगबहादुर को स्वाद भी लग गया था।

गुड्डी मुझे इन्तजार कराके बोली-

“वो मेरी सहेली। टाटा, बाईं बाई। एकदम साफ। इसलिए तो नहाने में इतना टाइम लग गया था। अब तुम्हारा रास्ता एकदम क्लियर…”

“हुर्रे। ये तो बहुत अच्छी खबर है, तो पहले तो कुछ मीठा हो जाय…” मैंने भी उसे कसकर बाहों में भींच लिया। जवाब में उसके हाथ ने मेरे लण्ड को कसकर दबा दिया। सोया शेर अब जग गया था।

“एकदम क्यों नहीं…” और दो किस्सी गुड्डी ने मेरे होंठों पे दे दी।

“अरे इसे भी तो कुछ मीठा खिला दो। बिचारा भूखा है…” मैंने बोला।

“तो रहने दो न। बुद्धू लोगों के साथ यही होता है। अरे मेरे प्यारे बुद्धू। चल तो रही हूँ न तेरे साथ। आज रात से पूरे हफ्ते भर रहूंगी। दिन रात। । संध्या भाभी दावत तो दे के गयीं हैं बेचारी उनके दोनों मुंह में इतना पानी आ रहा था। अभी गुंजा आती होगी, स्साले तेरी सबसे छोटी साली, खिलाना उसको यहाँ तक, अपना मोटा लम्बा ब्रेड रोल। "

वो बोली,.... और साथ में अब जोर-जोर से मुठिया रही थी।

मेरा सुपाड़ा तो चंदा भाभी के हुकुम के बाद खुला ही रहता था, बस गुड्डी ने अपने अंगूठे से उसे भी रगड़ना शुरू कर दिया।

एक बात मैंने देखी, जब भाभियों ने मेरा चीर हरण कर के पूरी तरह निर्वस्त्र किया, जितना कड़क औजार देख के भाभियाँ पनियाती हैं उससे भी ज्यादा मोटे बौराये खुले सुपाड़े को देख के.... नीचे की मंजिल में एक तार की चासनी निकलने लगती है।

“ये भी तो पांच दिनों के बाद…” शलवार के ऊपर से मैं भी अब उसकी चुनमुनिया को रगड़ रहा था।

“तुम ना बेसबरे। एक से एक भोजन है यहाँ और, चलो अभी गुंजा आयेगी ना। रीत और संध्या भाभी को तो दूबे भाभी और चंदा भाभी इत्ती जल्दी बिना पूरी तरह निचोड़े छोड़ने वाली नहीं, लेकिन गुंजा बस आ ही रही होगी, सुबह तो उसे दिखा भी दिया, पकड़ा भी दिया और बाकी काम अब, तुम्हें कुछ नहीं मालूम अरे यार अभी तो नहाई हूँ ना। छ: सात घंटे तक कुछ नहीं…” गुड्डी बोली।

“एक उंगली भी नहीं। आखीरकार, इसका उपवास भी तो टूटना चाहिए न…” मैं मुँह बनाते बोला।

खिलखिला के वो हँसने लगी और एक बार फिर मुझे किस कर लिया और बोली-

“इसका उपवास पांच दिन का नहीं …. और वो उंगली से नहीं इससे टूटेगा, मेरे बेसबरे बालम। तुम लेते लेते थक जाओगे मैं देते देते नहीं थकूँगी। प्रामिस है मेरा। बस थोड़ा सा। इंतेजार…”


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गुड्डी की उंगलियां लगातार चल रही थी और अब मेरे लण्ड की हालत खराब हो रही थी। अब मैंने उसके होंठ पे कसकर एक चुम्मी ली, उसके निचले होंठों को मुँह में लेकर चूस लिया। गुड्डी का गुलाबी रसीला होंठ मेरे होंठों के बीच में था।

मैं उसे चूस रहा था, चुभला रहा था साथ में मेरा एक हाथ टाईट कुरते को फाड़ती चूची को दबा रहा था और दूसरा उसके चूतड़ के कटाव की नाप जोख कर रहा था। हाथ गुड्डी के भी खाली नहीं थे। एक से तो वो मेरा लण्ड अब खुलकर कस-कसकर मुठिया रही थी और दूसरे से उसने मेरी पीठ पकड़ रखी थी और अपनी ओर पूरी जोर से खींच रखा था।

“हे वहां एक छोटा सा किस बस जरा सा। देखो ना उसका कितना मन कर रहा है…” मैंने फिर मनुहार की।

“छोटा सा क्यों, पूरा क्यों नहीं। यहाँ से यहाँ तक…” और उसने अपनी नाजुक उंगली से, लम्बे नाखून से मेरे खुले सुपाड़े से लेकर लण्ड के बेस तक लाइन खींच दी। लेकिन अगली बात ने उम्मीद तोड़ दी।

“लेकिन अभी नहीं। बोला ना। अच्छा चलो। बनारस से निकलने से पहले बस किस दूंगी वहां…” और उसने मेरे सुपाड़े को अपने अंगूठे से दबाकर इशारा साफ कर दिया की वो किस कहाँ होगा।

“अभी…” मैंने फिर अर्जी लगाई।

“उनहूँ…” अब उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में घुसा दी थी और मैं उसे कसकर चूस रहा था। कुछ देर बाद जब सांस लेने के लिए होंठ अलग हुए तो मैंने फिर गुहार की- “बस थोड़ा सा…”

फिर आँख नचाके वो शोख बदमाश बोली, " हाँ एक बात बता सकती हूँ, मिल सकता है इसको किस भी, चुसम चुसाई भी " सुपाड़े की एकलौती आँख पे अपने नाख़ून से सुरसुरी करती उसने एक उम्मीद जगाई, और मैं कुछ पूछता उसके पहले उसने बता भी दिया,

" तेरी छोटी साली, दर्जा नौ वाली,




चुसवाना उससे मन भर के, बस आती ही होगी और वैसे भी अभी घंटे भर तक तो नीचे बाथरूम में कुश्ती चलेगी ननद भाभियों की। अभी गुंजा आती होगी उससे चुसवाना…”

थोड़ा सा वो पसीजी। कम से कम साफ मना तो नहीं किया।

“गुंजा। अरे यार वो छोटी है अभी…” मैंने उसे फिर मुद्दे पे लाने की कोशिश की।


असली बात ये थी की मैं न नौ नगद न तेरह उधार वाला था, जंगबहादुर फनफनाये थे, गुड्डी मेरी बाँहों में थी, छत पर सन्नाटा और उसके रसीले होंठ इसलिए मैं गुंजा के पोस्ट डेटेड चेक पर नहीं टलने वाला था, पर गुड्डी गुस्सा हो गयी।

पहले तो उसने मेरे कान का पान बनाया और हड़काते हुए बोली,

" स्साले, तेरी किस्मत अच्छी थी की मैं तुझे ऊपर से लिखवा के ले आयी, वरना, कुछ लोग बुद्धू होते हैं तू महाबुद्धु है। सुबह दबा के मीज के रगड़ के ऊपर वालों की नाप जोख कर ली,




चुनमुनिया भी सहला ली, सुबह से उसने चिक्क्न मुक्क्न कर के रखी है। अरे दो ढाई साल पहले से उसका बिना घाव के खून निकलना शुरू हो गया है। छोटी कतई नहीं है,

दो बाते सुन भी लो और समझ लो, साल डेढ़ साल पहले से उसके क्लास की आधे से ज्यादा लड़कियों की चिड़िया उड़नी शुरू हो गयी है, मेरे ही स्कूल की है और एक एक बात बताती भी है। और दूसरी उससे भी ज्यादा जरूरी बात, साली कभी छोटी नहीं होती। साली साली होती है। "


फिर उसे ध्यान आया की बहुत देर से और बहुत कस के कान पकडे है तो कान छोड़ के मुस्कराते हुए बोली,


" अरे यार दीदी की छुट्टी चल रही हो तो छोटी साली ही काम आएगी न "

मेरे मन की बदमाशी मुझसे पहले उसे पता चल गयी थी, वो समझ गयी की मैं उसकी दोनों छोटी बहनों के बारे में सोच रहा हूँ। उसकी नाचती गाती दीये सी बड़ी बड़ी आँखे मुझे बता रही थी, की मैं क्या सोच रहा हूँ उसने पकड़ लिया है।

मैंने भी शरारत से पूछा, " सिर्फ साली ही या, "

जोर का मुक्का और जोर से पड़ा और गालिया भी, " हिम्मत हो तो मम्मी के सामने बोलना, मैं समझ रही हूँ तेरी बदमाशी। "

सच में मेरे मन में पता नहीं कहाँ से गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी ही आ गयीं थी,खूब भरी देह, गोरी जबरदस्त, मुंह में पान, कोहनी तक लाल लाल चूड़ियां गोरे हाथों में, खूब टाइट चोली कट ब्लाउज, जो नीचे से उभारों को उभारे और साइड से कस के दबोचे, और खूब लो कट, स्लीवलेस, मांसल गोरी गोलाइयाँ तो झलक ही रही थीं घाटी भी अंदर तक, उभार भी क्या जबरदस्त और उतने ही कड़े कठोर,


फिर वो मम्मी की परी खुद ही बोली, मेरी ओर से तो सब के लिए ग्रीन सिग्नल है और जहाँ तक मम्मी का सवाल है वो तो वो खुद ही तुझे सीधे रेप , अब सोच लो "

मैं लेकिन बात पटरी पर वापस ले आना चाहता था

“अच्छा बस एक छोटा सा किस। बहुत छोटा सा बस एक सेकंड वाला…” गुंजा की बात सोचकर मेरा लण्ड और टनटना गया। लेकिन बर्ड इन हैंड वाली बात थी।

गुड्डी घुटने के बल बैठ गई और मेरी आँखों में अपने शरारती आँखें डालकर ऊपर देखती हुई बोली-

“चलो। तुम भी क्या याद करोगे किस बनारस वाली से पाला पड़ा है…”

और टॉवेल के ऊपर से ही उसने तने हुए तम्बू पे एक किस कर लिया। बिच्चारा मेरा लण्ड। लेकिन अगले ही पल उसने खुली हवा में साँस ली। जैसे स्प्रिंग वाला कोई चाकू निकलकर बाहर आ जाय 8” इंच का। बस वही हालत उसकी थी। मैंने उसे पकड़कर गुड्डी के होंठों से सटाने की कोशिश की तो गुड्डी ने घुड़क दिया।



“चलो हटाओ हाथ अपना। छूना मत इसे। मना किया था ना की अब हाथ मत लगाना इसे अब जो करूँगी मैं करूँगी, या तेरी साली, सलहज, फिर कुछ रुक के मुस्करा के आँख नचा के बोली,... सास करेंगी। …”

उतनी डांट काफी थी। मैंने दोनों हाथ पीठ के पीछे बाँध लिए। की कहीं गलती से ही। हाथ गुड्डी ने भी नहीं लगाया। सुपाड़ा पहले से ही । मोटा लाल गुस्सैल, खुला हुआ और लण्ड चितकबरा हो रहा था। दूबे भाभी के हाथ की लगायी कालिख, रीत और गुड्डी के लगाये लाल गुलाबी रंग।

गुड्डी ने अपने रसीले प्यारे होंठ खोल दिए। मुझे लगा की अब ये किशोरी लेगी लेकिन उसनी अपनी जीभ निकाली और फिर सिर्फ जीभ की टिप से, मेरे पी-होल को, सुपाड़े के छेद पे हल्के से छुआ दिया। जोर का झटका जोर से लगा।
उसकी गुलाबी जुबान पूरी बाहर निकली थी। कभी वो पी-होल के अंदर टिप घुसेड़ने की कोशिश करती तो कभी बस जुबान से सुपाड़े के चारों ओर जल्दी-जल्दी फ्लिक कराती।

और जब उसकी जुबान ने सुपाड़े के निचले हिस्से को ऐसे चाटा जैसे कोई नदीदी लड़की लालीपाप चाटे तो मेरी तो जान निकल गई। मेरी आँखें बार-बार गुहार कर रही थी, ले ले यार ले ले। कम से कम सुपाड़ा तो ले ले।



गुड्डी जीभ से सुपाड़ा चाटते हुए मेरे चेहरे को, मेरी आँखों को ही देखती रहती जैसे उसे मुझे तड़पाने में, सताने में मजा मिल रहा ही और फिर उसने एक बार में ही गप्प। पूरा मुँह खोल कर पूरा का पूरा सुपाड़ा अन्दर। जब उसके किशोर होंठ सुपाड़े को रगड़ते हुए आगे बढ़े और साथ में नीचे से जीभ भी चाट रही थी लेकिन ये तो शुरूआत थी। मजे में मेरी आँखें बंद हो गई थी।

अब गुड्डी ने चूसना शुरू कर दिया। पहले धीरे-धीरे फिर पूरे जोश से।

लेकिन सुपाड़े से वो आगे नहीं बढ़ी। हाँ अब उसकी उंगलियां भी मैदान में आ गईं थी। वो मेरे बाल्स को सहला रही थी, दबा रही थी। एक उंगली बाल्स और गाण्ड के बीच की जगह पे सुरसुरी कर रही थी और दूसरे हाथ का अंगूठा और तरजनी लण्ड के बेस पे हल्के-हल्के दबा रहे थे। और गुड्डी ने मुँह आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। ओह्ह… आह्ह… हांआ मेरे मुँह से आवाजें निकल रही थी।

तभी सीढ़ी पे हल्के से कदमों की आवाजे आई। गुड्डी ने झटके से अपना मुँह हटाया और शेर को वापस पिंजड़े में किया।
Very romantic erotic update 👌👌💯✅
 

Rajizexy

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गुंजा -भीगे होंठ मेरे



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नीचे से बाथरूम से भी कभी कस के संध्या भाभी की, तो कभी कस के रीत की सिसकोयों की आवाज आ रही थी और ये साफ़ था की नीचे हो रही कन्या क्रीड़ा कम से कम अभी एक डेढ़ घंटा और चलेगी और गुड्डी भी जल्दी बाहर नहीं निकलेगी, मतलब छत पे मैं और वो सेकसी हॉट टीनेजर अकेली, कम से कम घंटे डेढ़ घंटे तक,


लेकिन गुंजा को कोई फरक नहीं पड़ रहा था,

उसने आराम से उसने अपने स्कूल बैग का बाहरी पाउच खोला, और पहले एक शीशी खोली उसमें से कुछ लिक्विड निकाला और कस कस के हाथ पे रगड़ा और धीरे धीरे हाथ में लगा सफ़ेद वार्निश काफी कुछ साफ़ साफ़ हो गया

और फिर उसी बाहर वाले पाउच से रंग के कुछ अलग से चार पांच पैकेट, बड़े बड़े, और लाल रंग का पाउच खोल के मुझे दिखाते हुए पूछने लगी


" कैसे लगेगा ये रंग मेरे यार पे "

" तो उसी से पूछ न " अपने तन्नाए मूसलचंद की ओर इशारा करते मैं बोला,

" अरे उसी से पूछ रही हूँ, बुद्धू राम, ...मैंने सुबह बोला था न स्कूल जाने से पहले मेरा इन्तजार करना फिर देखना इत्ती कस के इसकी रगड़ाई होगी, "

और वो लाल रंग गुंजा के कोमल कोमल हाथों से मेरे मोटे मूसल पे

कुछ देर तो वो पीछे से, मेरे पीठ पे अपने उभरते जुबना दबाती रगड़ती, एक मुट्ठी में उसके नहीं आ रहा था तो दोनों हाथों से पकड़ के जैसे कोई ग्वालिन दोनों हाथ से मथानी पकड़ के,

और फिर सामने से नीचे से बैठ के लाल के बाद हरा, और फिर नीला रंग बीच बीच में, और बदमाश इतनी की उस शोख किशोरी की नाचती गाती आँखे मेरी आँखों में झांकती, उकसाती, कभी खुले सुपाड़े को जीभ निकाल के चिढ़ाती तो कभी बस छू के हटा लेती

मेरी हालत ख़राब मैं कहना चाहता था बोल नहीं पा रहा था तो गुंजा ने ही बोल दिया

." अरे जीजू, मैं दी की तरह कंजूस नहीं हूँ, ....बस एक बार बोल के देखिये आपकी साली सब कुछ दे देगी "

और जब उसने जीभ से छुआ तो मुझसे नहीं रहा गया और मैं बोल पड़ा, " हे मुंह में ले ले न न बस जरा सा न, बस एक बार, बस थोड़ी देर,... "

गप्प

सुबह से मूसल चंद ने बहुत स्वाद चखा था, रीत की कसी कसी गुलाबी फांको पे रगड़ घिस कर के, संध्या भाभी की रसीली खेली खायी हलकी सी खुली फांको के बीच फंस के,

लेकिन होंठों का स्वाद नहीं मिला था, और मिला भी तो एकदम शोला और शबनम, गरम गर्म कच्ची अमिया वाली टीनेजर के खूब गुलाबी रसीली होंठों का, सुबह मैं ललचा ललचा के टेबल पे पर ही देख रहा था और स्कूल जाने के पहले एक छोटी सी ही सही मेरे होंठों को चुम्मी मिल गयी थी, लेकिन मेरे चर्मदण्ड की ये किस्मत,

मोटे कड़े मांसल सुपाड़े पे उस शोख सेक्सी टीन के रसीले होंठों का हल्का हल्का प्रेशर, और उस से भी थी उस बदमाश की कातिल कजरारी बड़ी बड़ी आँखे जो मेरी आँखों में मुस्करा के देख रही थीं,

" हे क्या कर रही है, गुंजा,... " मेरे मुंह से निकला।

और जवाब में उसने उन होंठों का दबाव मेरे पगला रहे सुपाड़ा पे बढ़ा दिया और सरकाते हुए इंच इंच आगे,

मजे से मेरी हालत खराब हो रही थी, अच्छा भी लग रहा था, मन भी कर रहा था की ये रुक जाए, ....और मन ये भी कह रहा था की और कस कस के चूसे,

अब मेरी छोटी,... स्कूल वाली साली की जीभ भी मैदान में आ गयी, होंठ हलके हलके दबा रहे थे, जीभ नीचे से रगड़ने लगा और जहाँ सुपाड़ा चर्मदण्ड से मिलता है, ठीक उस जगह पे जीभ की टिप से कुरेदने लगी, और साथ में अब उसने रुक रुक के चूसना भी शुरू कर दिया

मैं सिसक रहा था, कमर अपने आप हिल रही थी मस्ती से हालत खराब हो रही थी, सुबह से होली की मस्ती में पहली बार ऐसे हो रहा था की मेरा एकदम अपने ऊपर कंट्रोल नहीं था। किसी तरह से मैंने बोला,

." अरे निकालो न, अभी तूने इत्ता रंग पोता है सब तेरे मुंह में,.... " और मेरी उस छोटी मिर्च सी तीखी, रसगुल्ले सी मीठी साली ने जवाब दे दिया

पूरी ताकत से उसने अपने सर से, गले से पुश किया और अब मुजफ्फरपुर की शाही लीची से भी रसीला, मोटा सुपाड़ा उस कच्ची कली के मुंह में,

और अब उसके दोनों हाथ भी मैदान में थे, बचा खुचा रंग अपने हाथ से लंड पे पोत रही, रगड़ रही थी, लेकिन रंग से ज्यादा कस कस के मुठिया रही थी। इतना कस के चूस रही थी वो स्साली की जैसी लंड के रस की एक एक बूँद आज घोंट के ही रहेगी,

मुझसे अब नहीं रहा गया, मस्ती से मेरी आँखे बंद हो गयीं, कस के मैंने गुंजा का सर दोनों हाथों से पकड़ा और बिना इस बात का ध्यान रखे की वो उमरिया की बारी है, ....आज पहली बार पहलवान से उसकी दोस्ती हो रही है, दोनों हाथो से उस कोमल किशोरी का, अपनी छोटी साली का मुंह पकड़ के मैंने ठेल दिया, और गुंजा ने भी कस के अपना मुँह फेला , धीरे धीरे कर के सुपाड़े के आगे भी,

जितना जोर से में पुश कर रहा था, उससे जोर के वो पुश कर रही थी,

खूब मुलायम, मखमली रस भरे, गुंजा का मुख रस मेरे मसल में अच्छे से लिथड़ रहा था, उस लड़की न। जैसे मैंने दोनों हाथों से उसके सर को पकड़ रखा था,उसने मेरे चूतड़ को पकड़ के, कस के मुझे अपनी ओर खींच लिया, धीरे धीरे कर के आधे से थोड़ा ही कम खूंटा उस के मुंह के अंदर था।

गुंजा की आँखे उबली पड़ रही थीं,

मोटे से खूंटे को घोंट के गाल एकदम फूले, फ़टे पड़ रहे थे, होंठों के कोनो से लार की एक धार कभी निकल रही थी पर न तो उसके चूसने के जोश में कभी न जीभ जिस तरह से चाट रही थी उसमे कोई कमी आयी, कुछ देर में उसका मुंह तक गया तो उसने बाहर निकाला लेकिन फिर भी नहीं छोड़ा, हाथ से पकड़ के मेरे मूसल को अपने चिकने गाल पे रगड़ने लगी, फिर जीभ से बेस से लेकर ऊपर तक लिक कर रही थी

और मुझे फिर वही बात याद आयी



" अरे क्या कर रही है इसमें लगा रंग तेरे मुंह में,... " मैंने फिर बोला,

हंस के उस हंसिनी ने सुपाड़े पे एक मोटा सा चुम्मा जड़ दिया और मुस्करा के बोली, उसकी दूध खिल सी हंसी बिखर पड़ी,

" जीजू आप भी न, आप की साली हूँ मेरी जो मर्जी वो मुंह में लूँ। "

फिर कुछ रुक के बोली

"आप भी न एकदम बुद्धू हो , तभी मेरी दी अभी तक बची है। अरे इस प्यारे प्यारे मोटू के लिए मैंने अलग इंतजाम किया था, इसलिए तो बाहर वाले पाउच में वो रंग रखे थे, ये सब खाने में डालने वाले, खाने वाले रंग है और वो भी स्ट्रबेरी और चॉकलेट फ्लेवर्ड, मेरी पसंद का इसलिए तो मैं चूसूंगी और मन भर के चूसूंगी। अभी सिर्फ इस लिए निकाल लिया की आप की बात का जवाब देना था। "

वो बोल रही थी, तब भी गुंजा के दोनों मुलायम हाथों में मेरा कड़ा पगलाया खूंटा मसला रगड़ा जा रहा था और फिर जैसे अपने बात पे जोर देने के लिए उसने लम्बी सी जीभ निकाली, पहले मुझे चिढ़ाया, फिर सीधे सुपाड़ा के छेद में, पेशाब वाले छेद में जीभ की टिप डाल के सुरसुरी करने लगी,

मेरी हालत खराब लेकिन गुंजा बदमाशी के नए नए रिकार्ड बना रही थी, जीभ से सुपाड़ा के चारो ओर, बार, कुछ उसके थूक से कुछ मेरे प्री कम से, एकदम गीला लसलसा, और ऊँगली से लगा के गुंजा ने उसी लसलस को अपनी प्रेम गली में और

मेरा मन खराब हो गया, गुंजा ने एक बार फिर से खूंटा मुंह में ले लिया था और कस के चूस रही थी, लेकिन अब एक बार प्रेम गली पे निगाह पे मेरी पड़ गयी तो अब हम दोनों 69 की मुद्रा में
Sirf honth hi kyon didi aapne to sab kuch bhigo dia,ab kese bataun.💦💦💦
Adbhut sexyyyyy update
👌👌👌💯💯💦
 

Rajizexy

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चुसम चुसाई होली में



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और अब चूसने चाटने का काम मेरा था.

जैसे कोई पिया की प्यारी, मिलन की प्यासी खुद अपनी बांहे फैला दे, जैसे साजन की राह तकती, विरह में जलती नायिका, दरवाजे खोल के खड़ी हो जाए,



बस एकदम उसी तरह गुंजा ने अपनी मेरे होंठों के वहां पहुँचने से पहले ही अपनी दोनों कदली सी चिकनी, मांसल जाँघे फैला दी, जैसे रस्ते खुद खुल गए हों,

मेरे प्यासे होंठ जो अब तक उस कुँवारी किशोरी के भीगे रसीले होंठों का, आ रहे उभारों का स्वाद चख चुके थे, उस रति कूप में डुबकी लगाने के लिए बेक़रार थे। पर सीधे कुंए में उतरने के पहले, उसकी सीढ़ियों पर चढ़ना, उसके आसपास का हाल चाल,

चुंबन यात्रा जाँघों के उस ऊपरी हिस्सों से शुरू हुयी जहाँ, न धूप की किरण पड़ती थी न किसी की नजर, कभी मेरे होंठ हलके से चूमते, कभी सिर्फ जीभ जरा सा बाहर निकल कर बस उसकी टिप एक लाइन सी खींचती, रस्ता बताती उस प्रेम कूप की ओर जिसमें डुबकी लगाने के लिए मैं अब तड़प रहा था और कभी होंठ कस कस के चूसते, एक जांघ पर होंठ थे दूसरे से मेरी लम्बी काम भड़काने वाली उँगलियाँ, दोस्ती कर रही थीं। कभी बस छूतीं, कभी सहलाती तो कभी सरक सरक के प्रेम गली की ओर,....


गुंजा तड़प रही थी, सिसक रही थी,

और ये नहीं की वो मेरे चर्मदंड को भूल गयी थी,... उसके होंठ कभी मेरे होंठों की नक़ल करते उसके आस पास चाटते तो कभी मुट्ठी में पकड़ के वो कच्ची अमिया वाली हलके हलके आगे पीछे,

मस्ती के मारे मेरी आंखे जो अब तक बंद थी जब खुलीं तो बस एक पल ही देखा जो, वो आँखों से कभी भी न बिसरे बस इसलिए पलक के दोनों पपोटों में समा के मैंने आँखों की सांकल कस के बंद कर ली,


चिकनी गुलाबी खूब फूली फूली रस से छलकती दोनों फांके,

आम की दो बड़ी बड़ी रस चुआती फांको को जैसे किसी ने कस के चिपका दिया हो,


छेद क्या दरार भी नहीं दिखती थी, लेकिन जैसे चाशनी से भीगी, डूबी ताज़ी निकली जलेबी हो, शीरे में डूबी, उसी तरह रस में गीली, भीगी पता चल रहा था की ये कच्ची कली किस तरह चुदवासी थी,

कभी अपनी जाँघे जोर जोर से रगड़ती, कभी सिसकती, " जीजू करो न, अच्छे जीजू, प्लीज, "



और कौन जीजू साली की बात टालता है वो भी फागुन में,

रति कूप के चारो ओर मेरे होंठ अब चक्कर काट रहे थे, कभी जीभ से बस बस मैं एक लाइन सी खींचता दोनों मोटे मोटे भगोष्ठों के चारो ओर, लेकिन गुंजा को मालूम था की मेरे एक्सीलेरेटर पर कैसे पैर रखा जाता है एक बार सुपाड़ा फिर उसके होंठों के बीच और वो कस कस के चूस रही थी तो मैं अब कैसे छोड़ता,

पहले मेरी जीभ ने उस कच्ची कोरी रस में भीगी चूत की चासनी को धीरे धीरे कर के चाटा, फिर हलके हलके चूसना शुरू किया,

फुद्दी फुदकने लगी, और मेरी चूसने की रफ़्तार बढ़ गयी,

होंठों का प्रेशर दोनों फांको पे , जो अब पूरी तरह मेरे मुंह थी, चूसने के साथ मेरी जीभ दोनों फांको को अलग करने की कोशिश कर रही थी, चाटने चूसने से चाशनी कम होने की बजाय और बढ़ रही थी, रस से एक ेदक गीली थी और अब होंठों ने दोनों फांको को हथेली के लिए छोड़ा और खुद क्लिट को छेड़ने में जुट गए, इस दुहरे से हमले तो खूब खेली खायी भी गरमा जाती, गुंजा तो पहले से ही पिघल रही थी,

थोड़ी देर हथेली से रगड़ने के बाद मैंने तर्जनी से दोनों फांको को फ़ैलाने की कोशिश की, लेकिन फेविकोल का जोड़ मात, इतनी कस के दोनों चिपकी थी,


जैसे दो बचपन की सखियाँ कस के गल बंहिया डाल के बैठी हों कोई छुड़ा न पाए, एकदम स्यामिज ट्विन्स की तरह जुडी चिपकी,

कलाई के पूरे जोर से तर्जनी को घुसाने की कोशिश की,


उईईई गुंजा जोर से चीखी,



ऊँगली का बस सिरा ही घुसा था, मैंने गोल गोल घुमाने की फिर घुसाने की कोशिश की जैसे बरमे से कोई कठोर लकड़ी में छेद कर रहा हो पर उस कच्ची कली की पंखुडिया इतनी कस के चिपकी थीं,

और मुझे कल रात की चंदा भाभी की बात याद आयी, बात तो वो गुड्डी के सिलसिले में कर रही थीं, लेकिन बात हरदम के लिए सही थी,

" देख बिना चिकनाई लगाए कभी भी नहीं करना चाहिए ,सबसे अच्छा तो देसी सरसों का तेल है, लेकिन उसको रखने का झंझट है और नहीं तो लगभग वैसा ही है वैसलीन, ( मुझे याद आया गुड्डी ने जब कल वैसलीन ली थी दूकान से तो दूकान वाला बोला, बड़ी शीशी है चलेगी तो गुड्डी मेरी ओर देख के मुस्कराते बोली एकदम बड़ी शीशी ही दे दीजिये"


और सरसों का तेल हो तो पहले अपने मूसल पे लगाओ, लेकिन उसके पहले हथेली पे और ऊँगली पे और हल्का सा नहीं बल्कि चुपड़ लो।तेल की शीशी में सीधे डाल लो ऊँगली पहचान ये है की ऊँगली से तेल टप टप चूए, और उससे फिर दोनों फांको के बीच,.... धीमे धीमे, ...तेल अपने आप जगह बनाएगा, और जैसे ही दरार थोड़ी सी फैले, ...उसमें बूँद बूँद तेल चुआ चुआ करके, जबतक ऊपर तक न छलक जाए,.... फिर हथेली से थोड़ी देर पूरी बुर रगड़ो, हलके हलके, और जब तेलिया जाए, तो फिर तेल में डूबी ऊँगली,जब तक दो पोर एक ऊँगली की न चली जाए तब तक, और उसके बाद गोल गोल घुमाओ,

फिर उसी ऊँगली के पीछे दूसरी ऊँगली एकदम चिपका के, दोनों ऊँगली एक पोर तक और हर बार पहले तेल अंदर, दो ऊँगली जब सटा सट जाने लगे तो उसके बाद सुपाड़े को एकदम तेल में चुपड़ के, तब धीरे धीरे, "



भाभी समझा भी रही थी और मेरे खूंटे पे तेल चुपड़ भी रही थी।

मुझसे नहीं रहा गया और मैं पूछ बैठा, " भाभी ने तो बताया था किआप करीब करीब छुटकी की उमर की थीं, जब आपके जीजा ने आपके साथ, तो कैसे आपकी तो एकदम, "

वो जोर से हंसी और तेल की धार सीधे सुपाड़े के छेद में और खूंटे को तेल लगे हाथों से मुठियाते बोलीं,

" देवर जी, पहली बात तो मेरे जिज्जा की महतारी आपकी महतारी की तरह गदहे के साथ नहीं सोई थीं, जीजा का आदमी ऐसा था , तोहरी तरह गदहा, घोडा छाप नहीं। दूसरी बात हमरे जीजा तोहरे तरह बुद्धू नहीं थे, खूब खेले खाये चतुर सुजान, और फिर हमार भौजी उनके साथ,...


तो पहले उनकी सलहज, हमार भौजी,... हमार बिल फैलाये के सीधे कडुवा तेल की बोतल का मुंह उसी में लगा के ढरका दीं, आधी बोतल, फिर बुरिया के ऊपर दबा के देर तक रगड़ रगड़ के जब तक तेल अंदर सोख नहीं लिया, फिर अपनी तेल में चुपड़ी दो ऊँगली,…

और हमार भौजी तो पिछली होली में ऊँगली घुसा के, नेवान कर दी थी, और फिर तो मैं खुद भी, ….

लेकिन उस दिन इतना तेल पानी करने पे भी, जब झिल्ली फटी तो भौजी कस के हमार हाथ गोड़ दोनों छान के पूरी ताकत से,तब भी मैं ऐसी उछली, …..इसलिए पहली बात,... तेल पानी चिकनाई पहले और फिर ऊँगली पूरी अंदर कर के गीली कर के,... और जीजा का तो दो ऊँगली इतना मोटा रहा होगा, तेरा तो मेरी कलाई के बराबर, जब तक दो ऊँगली अंदर कम से कम दो पोर तक न घुस जाए तोहरे अस मूसल, घुसब बहुत मुश्किल है बल्किल कोशिश भी नहीं करनी चाहिए , बिना तेल लगाए, बिना दो पोर तक ऊँगली अंदर किये "



और यहाँ तो तेल की शीशी क्या तेल की एक बूँद भी नहीं थी, और मैं समझ गया बिना तेल, चिकनाई के, लेकिन जब सामने छपन भोग की थाली हो, तो



मैं एक बार कस के फिर से चूसने चाटने में लग गया,

मैं सीधे पांचवे गियर में पहुँच गया, कस के गुंजा की दोनों फैली जांघो को और बुरी तरह फैला दिया, अंगूठे को अपने मुंह में ले जाकर अपना सारा थूक उसपे लिपटा सीधे दरार के बीच, और अब मैं बजाय अंदर घुसाने की कोशिश करने के थोड़ी सी फैली फांको के बीच उसे रगड़ने लगा, और असर तुरंत हुआ,

" जीजूउउउउ " गुंजा ने जोर की सिसकी भरी।



वो हलके हलके चूतड़ उछाल रही थी, तड़प रही थी, उह्ह्ह आआह नहीं, हाँ कर रही थी कस कस के सिसक रही थी।

मुंह में मैंने ढेर सारा थूक भरा, दोनों अंगूठों से उस कोरी कच्ची कली की पंखुड़ियों को कस के फैलाया, और सारा का सारा थूक उसी खुली दरार में, और फिर अंगूठे और तर्जनी से दोनों फांको को पकड़ के चिपका के हलके हलके आपस में रगड़ना शुरू किया और गुंजा मस्ती से पागल हो गयी,


" ओह्ह्ह, क्या कर रहे हो जीजू, उफ़ कैसा लगता है , जीजू तू, ओह्ह जीजू ओह्ह्ह "



वो टीनेजर लम्बी लम्बी साँसे भर रही थी, कुछ भी मेरा बोलना उस जादू को तोड़ना होता। और फिर मेरी जीभ और होंठों को बोलने के और भी तरीके आते थे, एक बार फिर से जीभ ने मेरी छोटी साली के योनि कपाटों को बस हलके से खोला और जो दरार दिखी उसी में सेंध लगा दी

आगे पीछे, गोल गोल, उस प्रेम गली के मुहाने पे वो बार बार दरवाजा खटखटा रही थी, और मेरी जीभ का असर, मेरी साली की चढ़ती जवानी का असर,



जैसे पाताल गंगा निकल पड़ी हों, रस का एक झरना फूट पड़ा हो, पहले बूँद बूँद, फिर एक तार की चाशनी जैसा, लसलसा, लेकिन

क्या गंध, क्या स्वाद, क्या स्पर्श, और चुसूर चुसूर मेरे होंठ अंजुरी बना के उस कुँवारी कच्ची योनि रस को सुड़कने लगे


"ओह्ह्ह बहुत अछ्छा लग रहा है जीजू क्या हो रहा है जीजू उफ़ उफ़ हाँ हाँ, "

रुक रुक के वो जवानी की चौखट पे खड़ी टीनेजर कभी सिसकती कभी रुक रुक के बोलती

मेरे दोनों हाथों ने अब पूरा जीभ के लिए छोड़ दिया था

लेकिन वो दोनों शैतान हाथ अब भी रस ले रहे थे, पीछे गुंजा के छोटे छोटे नितम्बों को छू के दबा के दबोच के, और उंगलिया जिसे बहुत लोग वर्जित समझते हैं वहां भी जांच पड़ताल कर रही थीं


और जीभ पंखुड़ियों पे एक मिनट में १०० बार, २०० बार तितली की तरह पंख फड़फड़ा रही थी, फ्लिक कर रही थी,

गुंजा पागल हो रही थी

होंठ कभी चूसते कभी चाटते, कभी ऊपर जा कर उस कोमल कली की कड़ी कड़ी क्लिट पे भी सलामी बजा देते

ओह्ह आह बस ऐसे ही, क्या करते हो , बहुत बहुउउउत अच्छाआ लग रहा है ओह्ह्ह्हह्हह ओह्ह्ह्हह

और मैं समझ गया की मेरी साली अब एकदम झड़ने के कगार पे है, मैंने चूसने की चाटने की रफ़्तार बढ़ा दी

लेकिन छेड़ने का हक़ क्या सालियों का है , सुबह का ब्रेड रोल मैं भूला नहीं था, बस जब वो वो एकदम कगार पे पहुँच गयी,

मैं रुक गया



और गालियों की झड़ी लग गयी,



"करो न जीजू, ओह्ह्ह्ह रुक क्यों गए, अच्छा लग रहा था, ओह्ह प्लीज स्साले,.... तेरी बहन की, तेरी उस एलवल वाली की,... कर ना"



मेरे होंठ उस रसीली की रसभरी फांको से अब इंच भर ऊपर थे, मैंने चिढ़ाया

" क्या करूँ गुंजा रानी, मेरी प्यारी साली "

" स्साले, जो अबतक कर रहे थे, बहन के भंड़ुवे, " गुंजा अब एकदम बनारस वाली रसीली साली बन गयी थी।

" अरे स्साली वही तो पूछ रहा हूँ, " मैंने उस रस की पुतली को फिर उकसाया,

" अपनी बहन की चूत चाट चाट के चूस चूस के जो सीख के आया हैं न वही, " और फिर से एकदम स्वीट स्वीट

" जीजू प्लीज करो न चुसो न कस कस के बहुत अच्छा लग रहा था, चूस मेरी चूत, चाट कस के "

वो अपने चूतड़ उचका के खुद अपनी रस की गुल्लक मेरे होंठों के पास ला रही थी और मैं होंठ और ऊपर,

लेकिन साली जब अपने मुंह से कह दे, उसके बाद तो, फिर से चूसना चाटना, शुरू तो मन्द्र सप्तक से हुआ, मदिर मदिर समीर से लें ऐसी चढ़ती जवानी हो तो हवा को तूफ़ान में बदलने में कितनी देरी लगती है

और अबकी जब गुंजा झड़ने के कगार पर पहंची तो मैंने घोड़े को और एड दे दी, वो हवा में उड़ने लगा और गुंजा भी,

ओह्ह्ह उफ्फ्फ उईईई नहीं हां उफ्फ्फ आअह्ह्ह अह्ह्ह्हह

जवालामुखी फूट पड़ा, मैं कस के उसे दबाये था तभी वो चूतड़ उछाल रही थी, उचक रही थी, तड़प रही, जाल में आने वाली मछली जैसे हवा में उछलती है फ़ीट भर एकदम उसी तरह



लेकिन न मेरे चूसने में कमी हुयी न चाटने में



बस जीजू बस, बस एक पल, ओह्ह ओह्ह्ह देह उसकी एकदम ढीली हो गयी थी

उसकी बात मान के मैं एक पल को रुका फिर से चूसना शुरू कर दिया और दो चार मिनट में वो फिर झड़ रही थी , उसके बाद तो ये हालत हो गयी की मैं बस उसके रस कूप पे होंठ लगाता, क्लिट पे जीभ छुआता और वो,

तीसरी बार, चौथी बार



एकदम थेथर होगयी, थकी, निढाल और तब मैं रुका और बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही बेसुध, फिर मैं ही उठा और कस के उसे अपनी गोद में बिठा के चूम लिया, और बदले में क्या उस लड़की ने चूमा मेरे होंठों को, चाट चाट के चूस के, थकान से सपनों से लदी उसकी पलकें अभी भी बंद थी, लेकिन जब बड़ी बड़ी आँखे खोल के उस खंजननयनी ने देखा तो उसे अहसास हुआ,

जो वो चूस चाट रही थी उसका अपना योनि रस था,



वो एकदम से शर्मा गयी, मेरे पीठ पे मुक्के से मारने लगी, ' गंदे, बदमाश "

और मैंने उसे कस के भींच लिया और कान में पूछा, " हे अच्छा लगा "

और अबकी वो और जोर से शर्मा गयी, मेरी बाहों में कस के दुबक गयी। और फिर जवाब उसके एक मीठे वाले चुम्बन ने दिया,

कुछ देर तक हम दोनों ऐसे कस के चिपके, एक दूसरे को बाहों में भींचे रहे, और गुंजा को अपने नितम्बो में धंस रहे खूंटे का अहसास हुआ वो अभी भी जस का तस खड़ा,कड़ा, और गुंजा ने मेरे कानो में धीरे से बोला,

" सॉरी जीजू "

समझ तो मैं रहा था लेकिन मैं उसे हड़काते बोला, " साली, गाली देती हैं, सॉरी नहीं बोलती, न जीजा न साली "

" वो तेरा, : कस के बिन बोले अपने चूतड़ों से मेरे खड़े मूसल को दबाते बिन बोले उसने इशारा किया



" इत्ता मजा तो मिला, तेरे भीगे भीगे मीठे मीठे होंठों का शहद से मुंह का "

मैं बोला और गुंजा और कुछ बोलती उसके पहले मेरे होंठों ने उसके होंठ सील किये और जीभ ने मेरी साली के मुंह में सेंध लगा ली। कुछ देर पहले जो सुख मेरे लिंग को मिल रहा था अब वही मेरे जीभ को मिल रहा था, चूसे जाने का,

अब न गुंजा बोल सकती थी न मैं


=====

" गुंजा, " बड़ी जोर से आवाज गूंजी।

उसकी सहेली.... वही जो सुबह उसे बुलाने आयी थी, मोहल्ले भर में नहीं तो चार पांच घरों में जरूर सुनाई पड़ा होगा,



और उछल के गुंजा मेरी गोद से खड़ी हो गयी,


' स्साली कमीनी छिनार '

बुदबुदाते हुए झट से मेरे तौलिये के ऊपर आराम फरमा रही अपनी स्कर्ट को चढ़ा लिया और फिर स्कूल वाली टॉप को, और मैंने भी तौलिया बाँध लिया।


और मेरी ओर मुड़ के उस कामिनी ने एक झट से चुम्मी ली, और बड़ी बड़ी आँखे झुका के बोली,

" सॉरी जीजू मैं भूल ही गयी थी, मेरी एक एक्स्ट्रा क्लास है थोड़ी देर में, और उसमे जाना,... "

तबतक गुड्डी धुले हुए कपड़ो का गट्ठर लेके बाथरूम से निकल आयी थी, और गुंजा की बात सुन के बोली, " क्यों मोहिनी मैडम ""

और दोनों सहेलियों की तरह खिलखिलाई उस मैडम के नाम पर, गुड्डी चू दे बालिका विद्यालय की पुरानी खिलाडन, गुंजा की दो साल सीनियर,

बालिका विद्यालय की उन दोनों बालिकों के वार्तालाप से ये पता चला की,


मोहिनी मैडम कालेज के जो मारवाड़ी मालिक हैं उन के लड़के से फंसी है, और ज्यादातर टाइम उस की बाइक के पीछे चिपकी नजर आती हैं, क्लास वलास तो कम ही लेती हैं लेकिन स्टूडेंट्स उन से बहुत खुश रहती हैं, क्योंकि इम्तहान के पहले वो एक क्लास लेती हैं जिसमें दस वेरी इम्पोर्टेन्ट क्वेशन बताये जाते हैं, आठ शर्तिया आते हैं और करने पांच ही होते हैं। पर्चे मोहिनी मैडम के ताऊ की प्रेस में ही छपते हैं और उस मारवाड़ी मालिक के लड़के की कृपा से हर बार ठेका उन्ही को मिलता है।

और गुंजा ने आज की क्लास का स्पेशल अट्रैक्शन ये बताया की मोहिनी मैडम आज सिर्फ अपना सब्जेक्ट नहीं बल्कि तीन तीन पेपर, मैथ, इंग्लिश और सोसल, तीनो के ' इम्पोर्टेन्ट सवाल ' बताएंगी और मॉडल आंसर भी वो जिराक्स करा के लायी है तो वो भी, हाँ अगर आज उन की क्लास में जो नहीं गया, वो कॉपी में कुछ भी लिख के आये, उस का फेल होना पक्का,

तबतक गुंजा का नाम फिर जोर से लेकर वो सहेली चिल्लाई, और बोली, मैं ऊपर आ रही हूँ क्या कर रही है कमीनी,

" आती हूँ, यहाँ होली चल रही है अगर आयी तो जा नहीं पाएगी सोच ले " गुंजा ने जबरदस्त बहाना बनाया

लेकिन गुंजा के बाद एक और आवाज नीचे से पुकारने की आयी,



" गुड्डी, गुड्डी " और ये आवाज तो बुलंद थी ही मैं सबसे अलग, दूबे भाभी की। और गुड्डी धड़धड़ा के नीचे,



" स्साली छिनार, क्लास में अभी आधा घंटा है, सुबह एक बार चुदवा मन नहीं भरा तो इस समय भी "

गुंजा अपनी सहेली के बारे में बोल रही थी फिर उसने राज खोला की एक यार है उसका तो गुंजा को पंद्रह मिनट चौकीदारी करनी पड़ेगी,

" पन्दरह मिनट में हो जाता है,... " अचरज से मैं बोला। और गुंजा जोर से खिलखिलाई

" जीजू मैं ज्यादा बोल रही हूँ, दस मिनट, पांच मिनट कपडा उतारने और पहनने में, दो मिनट में वो मुठिया के खड़ा करती है, फिर मुश्किल से तीन मिनट। सुबह वाले को तो उसने मुंह में लिया था, मैं बाहर घडी देख रही थी, कुल दो मिनट बीस सेकेण्ड चूसा होगा, और मलाई बाहर, " हंस के मेरी छोटी प्यारी दुलारी साली बोली।

तब तक गुड्डी के वापस सीढ़ी पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी और गुंजा ने मेरी टॉवेल को उठा के अभी भी तन्नाए सुपाड़े पे एक कस के चुम्मी ली, और उससे और मुझसे दोनों से बोली

" जीजू, चुदुँगी तो तुझसे ही, ,,,आज नहीं हुआ तो, " और उसकी बात मैंने पूरी की

" जब होली के बाद लौटूंगा न तो सबसे पहले तेरी चुनमुनिया ही फाड़ूंगा " और मन में कसम खायी आयी से जेब में एक छोटी वैसलीन की शीशी कुछ न हो तो बोरोलीन की ट्यूब ही सही,

" एकदम " वो चंद्रमुखी खिल उठी और खड़ी हो के मुझे बाँहों में बाँध के जोर से एक चुम्मी ली।



तबतक गुड्डी आ गयी और मुझसे बोली " जल्दी नीचे जाओ, दूबे भाभी का बुलावा है, संध्या भाभी तेरे रंग छुड़ायेंगी। "



गुंजा सीढ़ी पर नीचे, और मैंने बोला" हे मैं भी आता हूँ "



" नहीं नहीं जीजू, " मना करती वो सुनयना बोली,

" वो कमीनी एक बार देख लेगी न और अगर मेरी क्लास की सहेलियों को खबर हो गयी तो फिर सब की सब, ....कोई नहीं छोड़ने वाली आपको, एक बार मैं निकल जाऊं "

और थोड़ी देर में गुंजा की नीचे से आवाज आयी, " मम्मी, मेरी एक्स्ट्रा क्लास है मैं जा रही हूँ , तिझरिया में लौट आउंगी "

बाथरूम के अंदर से चंदा भाभी की आवाज आयी ठीक है



और मैं भी सीढ़ी पर नीचे,

एक बाथरूम का दरवाजा आधा खुला था, संध्या भाभी झाँक रही थीं, ....सीढ़ी की ओर टकटकी लगाए।
Abusive erotic update
👌👌✅💦
 

Rajizexy

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फागुन के दिन चार भाग १९

गुंजा और गुड्डी

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please read, enjoy and comment
Awesome super duper gazab updates ✅✅

200-12
 

Sanju@

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फागुन के दिन चार -भाग १८

मस्ती होली की, बनारस की

२,१५,९३१



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रीत और चंदा भाभी हम दोनों को देख रही थीं, मुस्करा रही थीं।

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“अकेले अकले…” दोनों ने एक साथ मुझे और गुड्डी को देखकर बोला।

“एकदम नहीं…” और मैं गुझिया की प्लेट लेकर रीत के पास पहुँच गया। मैंने उसे गुझिया आफर की लेकिन जैसे ही वो बढ़ी मैंने उसे अपने मुँह में गपक ली।

“बड़ा बुरा सा मुँह बनाया…” तुम दिखाते हो ललचाते हो लेकिन देने के समय बिदक जाते हो…” वो बोली।

चंदा भाभी गुड्डी को लेकर अपने कमरे में चली गयी, कुछ उसे नहाने का सामन देना था। संध्या भाभी और दूबे भाभी पहले ही नीचे चले गए थे, छत पे सिर्फ मैं और रीत बचे थे और मुझे गुड्डी की आठवें जन्म वाली बात याद आ रही थी, न तुझे छोडूंगी, न तेरी माँ बहनो को न सहेलियों को।

“तुम्हीं से सीखा है…” गुझिया खाते हुए मैंने बोला।


“लेकिन मैं जबरदस्ती ले लेती हूँ…”

हँसकर वो बोली और जब तक मैं कुछ समझूँ समझूँ। उसके दोनों हाथ मेरे सिर पे थे, होंठ मेरे होंठ पे थे और जीभ मुँह में।

जैसे मैंने गुड्डी के साथ किया था वैसे ही बल्की उससे भी ज्यादा जोर जबरदस्ती से। मेरे मुँह की कुचली, अधखाई रस से लिथड़ी गुझिया उसके मुँह में। तब भी उसके होंठ मेरे होंठों से लाक ही रहे।

फिर तो पूरी प्लेट गुझिया, गुलाब जामुन की इसी तरह। हम दोनों ने, हाँ चंदा भाभी भी शरीक हो गई थी।

“हाँ अब दम आया…” अंगड़ाई लेकर वो हसीन बोली।

“तो क्या कुश्ती का इरादा है?” मैंने चिढ़ाया।

“एकदम। हाँ तुम हार मान जाओ तो अलग बात है…” वो मुश्कुराकर बोली।

“हारूँ और तुमसे। वैसे अब हारने को बचा ही क्या है? हमें तो लूट लिया बनारस की ठगनियों ने…” मैंने कहा।

“अच्छा जी जाओ हम तुम्हें कुछ नहीं कहते इसलिए। ना। और आप हमें ठग, डाकू, लूटेरे सब कह रहे हैं…” रीत बोली।

“सच तो कहा है झूठ है क्या? और आप लोगों ने एक से एक गालियां दी का नाम लेकर मेरी बहन का नाम लगा लगाकर। बहनचोद तक बना डाला…”

“तो क्या झूठ बोला। हो नहीं क्या?” वो आँख नचाते हुए बोली।

“और नहीं हो तो इस फागुन में तुम्हारी ये भी इच्छा पूरी हो जायेगी। बच्चा। ये मेरा आशीर्वाद है…” स्टाइल से हाथ उठाकर चंदा भाभी बोली।

आशीर्वाद तो मुझे रीत के लिए चाहिए था और वो अपनी पाजामी में पेंट की ट्यूब और रंग की खोंसी पेंट की ट्यूब और रंग की पुड़िया निकालकर अपनी गोरी हथेलियों पे कोई जहरीला रंगों का काकटेल बना रही थी।

“भाभी ये आशीर्वाद राकी को भी दे दीजिये ना इनकी तरह वो भी इनकी कजिन का दीवाना है…” ये बोलकर वो उठ खड़ी हुई और मेरी और बढ़ी।

मैं भागा।

पीछे-पीछे वो आगे आगे मैं।

अब होली की फिर नई जोड़ियां बन गई थीं। चंदा भाभी गुड्डी को कुछ यौन ज्ञान की शिक्षा दे रही थी कुछ उंगलियों से कुछ होंठों से।

संध्या भाभी एक बार फिर दूबे भाभी के नीचे और अपने ससुराल में सीखे हुए दावं पेंच आजमा रही थी।

“ये फाउल है…” पीछे से वो सारंग नयनी बोली।

मैं रुका नहीं मैं उसकी ट्रिक समझता था। हाँ धीमे जरूर हो गया।

“कैसा फाउल?” मैंने मुड़कर पूछा।

“क्यों प्यारी सी सुन्दर सी लड़की अगर पकड़ना चाहे तो पकड़वा लेना चाहिए ना…” वो भोली बनती बोली।

“एकदम मैं तो पकड़ने और पकड़वाने दोनों के लिए तैयार हूँ…” मैंने भी उसी टोन में जवाब दिया।

लेकिन जब वो पकड़ने बढ़ी तो मैंने कन्नी काट ली और बचकर निकल गया। वो झुकी लेकिन वहां रंग गिरा था और रीत फिसल गई।

मैं बचाने के लिए बढ़ा तो मैं भी फिसल गया लेकिन इसका एक फायदा हुआ रीत के लिए।

नीचे मैं गिरा और ऊपर वो। उसको चोट नहीं लगी लेकिन मुझे बहुत लगी, उसके जोबन के उभारों की जो सीधे मेरे चेहरे पे।

लेसी ब्रा सरक गई थी मेरी उंगलियों ने तो उन गुलाबी निपलों का रस बहुत लिया था। लेकिन अब मेरे होंठों को मौका मिल गया अमृत चखने का और उन्होंने चख भी लिया। पहले होंठों के बीच फिर जीभ से थोड़ा सा फ्लिक किया और दांत से हल्का सा काट लिया।

वो धीरे से बोली- “कटखने नदीदे…”

जवाब में मैंने और कसकर रीत के निपलों चूस लिए।

लेकिन अब वो थोड़ी एलर्ट हो गई थी। वो उठी और अपनी ब्रा ठीक करने लगी। मैं उसे एकटक देख रहा था एकदम मन्त्र मुग्ध सा, जैसे किसी तिलस्म में खो गया हूँ। घने लम्बे काले बाल उसकी एक लट गोरे गालों को चूमती। गाल जिनपे रंग के निशान थे और वो और भी शोख हो रहे थे।

लेसी ब्रा रंगों से गुलाबी हो गई थी और कुछ उरोजों के भार से कुछ रंगों के जोर से काफी नीचे सरक आई थी। एक निपल बाहर निकल आया था और दूसरे की आभा दिख रही थी। पूरे उरोज का गुदाजपन, गोलाईयां, रंग से भीगी जोबन से पूरी तरह चिपकी, उसका भराव, कटाव दर्शाती।

और नीचे चिकने कमल के पते की तरह पेट पे रंग की धार बहती। जो पिचकारियां मैंने उसे मारी थी, पाजामी सरक कर कुल्हे के नीचे बस किसी तरह कुल्हे की हड्डियों पे टिकी। वैसे भी रीत की कमर मुट्ठी में समां जाय बस ऐसी थी।

पाजामी भी देह से चिपकी और जो वो गिरी तो रंग जांघों के बीच भी और भरतपुर भी झलक रहा था।

वो रंग लगाना भूल गई। मैं तो मूर्ती की तरह खड़ा था ही।

“हे कैसे ऐसे देख रहे हो देखा नहीं क्या कभी मुझे?” रीत की शहद सी आवाज ने मुझे सपने से जगा दिया।

“हाँ नहीं। ऐसा कुछ नहीं…”

बस मैं ऐसे चोर की तरह था जो रंगे हाथ पकड़ा गया हो। और पकड़ा मैं गया। रीत के हाथ में और अबकी उसके हाथ सीधे मेरे गालों पे उस रंग के काकटेल के साथ। बिजी मेरे हाथ भी हो गए। एक उस अधखुली ब्रा में घुसा और दूसरा रीत की पाजामी में।

बस मैं पागल नहीं हुआ। उन उभारों को जिन्हें छूना तो अलग रहा सिर्फ देखने के लिए मेरे नैन बेचैन थे। अब वो मेरी मुट्ठी में थे।

जिनका रस लेने के लिए सारा बनारस पागल था, वो रस का कलश खुद रस छलका रहा था बहा रहा था। और साथ में नीचे की जन्नत जिसके बारे में पढ़ के ही वो असर होता था जो शिलाजीत और वियाग्रा से भी नहीं हो सकता था। वो परी अब मेरे हाथों में थी।

उसके मुलायम गुलाबी पंख अब मैं छू रहा था सहला रहा था। एकदम मक्खन, मखमल की तरह चिकनी, छूते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए। बिचारे लण्ड की क्या बिसात, वो तो बस उसके बारे में सोचकर ही खड़ा हो जाता था।

हिम्मत करके मैंने उस प्रेम की घाटी में लव टनेल में एक उंगली घुसाने की कोशिश की। एकदम कसी।

लेकिन मेरे एक हाथ की उंगलियां निपल को पिंच कर मना रही थी, मनुहार कर रही थी और दूसरा हाथ उस स्वर्ग की घाटी में। चिरौरी विनती करने में जाता था। कहते हैं कोशिश करने से पत्थर भी पसीज जाता है।

ये तो रीत थी।


जिसके शरीर के कुछ अंग भले ही पत्थर की तरह कड़े हों लेकिन उनके ठीक नीचे उसका दिल बहुत मुलायम था।

तो वो परी भी पसीज गई और मेरी उंगली की टिप बस अन्दर घुस पायी। लेकिन मैं भी ना धीरे-धीरे। आगे बढ़ता रहा और मेरे अंगूठे ने भी उस प्रेम के सिंहासन के मुकुट पे अरदास लगाई। क्लिट को हल्के से छू भर लिया और रीत ने जो ये दिखा रही थी की उसे कुछ पता नहीं मैं क्या कर रहा हूँ। जबर्दस्त सिसकी भरी।

रीत के दोनों हाथ मेरे चेहरे पे रंग लगा रहे थे। मैं जानता था की ये रंग आसानी से छूटने वाला नहीं है पर कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है और मैं उसके काम में कोई रोक टोक नहीं कर रहा था और ना वो मेरे काम में।

बस जैसे ही मैंने क्लिट छुआ और मेरी उंगली ने अन्दर-बाहर करना शुरू किया। रीत ने मुझे कसकर पकड़ लिया उसके लम्बे नाखून मेरी पीठ में धस गए।

और वो खुद अपने मस्त जोबन मेरे सीने पे रगड़ने लगी। मैंने इधर-उधर कनखियों से देखा सब लोग लगे हुए थे। दूबे भाभी संध्या भाभी के साथ और चंदा भाभी गुड्डी के साथ।

किसी का ध्यान हमारी ओर नहीं था। रीत भी यही देख रही थी और अब उसने कसकर मुझे भींच लिया। बाहों ने मुझे पकड़ा। उसके उभारों ने मेरे सीने को रगड़ा। और नीचे उसकी चूत ने कसकर मेरी अन्दर घुसी उंगली को जकड़ा। जवाब मेरे तन्नाये लण्ड ने दिया उसकी पाजामी के ऊपर से रगड़ कर। बस मेरा मन यही कह रहा था की मैं इसकी पाजामी खोलकर बस इसे यहीं रगड़ दूं। चाहे जो कुछ हो जाए।

लेकिन हो नहीं पाया। कुछ खटका हुआ या कुछ रीत ने देखा। (बाद में मैंने देखा संध्या भाभी शायद हमें देख रही थी इसलिए रीत ने)।


बस उसने मेरे कान को किस करके बोला- “हे दूँगी मैं लेकिन बस थोड़ा सा इंतेजार करो ना। मैं भी उतनी ही पागल हूँ इसके लिए…”
मैं और रीत जानते थे अभी इससे ज्यादा कुछ हो नहीं सकता था, गुड्डी दूर खड़ी थम्स अप दे रही थी, लेकिन,...
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
एक बार फिर से आनंद के मजे हो गए गुड्डी के साथ जो lip to lip किया था वो ही रीत ने कर दिया एक और कन्या के होठों का रसपान हो गया एक बार फिर से रीत को रगड़ दिया लेकिन आगे कुछ भी नही हुआ
 

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गुड्डी



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फिर ब्रेक हो गया और दूबे भाभी की आवाज सुनाई पड़ी

" अरे खाली रगड़ा रगड़ी ही करती रहोगी या कुछ नाच गाना भी होगा। इतनी सूनी होली थोड़े ही होती है…”

चंदा भाभी ने और आग लगाई,

“अरे इत्ता मस्त जोगीड़ा का लौंडा खड़ा है, जब तक पैरों में हजार घुँघुरु वाला इसके पैरो में न बांधा जाये, तब तक तो होली अधूरी है। ढोलक मजीरा हो, जोगीड़ा हो, "

और गुड्डी तो जहा सुई का छेद तलवार घुसेड़ देती थी, बोल उठी,

" एकदम सही कहा आपने, अपनी बहिनिया को दालमंडी में बिठाएंगे, तो कुछ तो मुजरा उजरा करेगी, कल जब मेरे साथ बजार गए थे तो किसी भंडुए से बात कर रहे थे, की वो कत्थक सीखी है तो नाच तो लेगी ही, उसको फोटो भी दिए थे तो वो बोला, होली के बाद ले आना, बसंती बायीं के कोठे पे बैठा दूंगा। "

दूबे भाभी और खुश, बोलीं

“अरे असली भंडुवा है ये, और गंडुवा आज तो बच गया, अगली बार आएगा तो बन ही जाएगा। लेकिन ढंग से गाने के लिए ढोलक और मजीरा तो चाहिए, रीत तू नीचे जा के, संध्या के घर में ढोलक होगी” "



रीत कत्तई नहीं जानी चाहती थी, उसने बहाना बनाया,

" अरे उसकी चाभी संध्या भाभी के पास होगी और फिर दो तीन ढोलक हैं एक खराब भी है, संध्या भाभी को भेज दीजिये वो चेक कर लेंगी, लेती भी आएँगी "

संध्या भाभी तो नीचे जाना ही चाहती थीं, उनके मरद का अब तक दस मिस्ड काल आ चुका होगा। पर गुड्डी ने रीत को एक और काम पकड़ा दिया,

" हे तुझे वो सब भी तो ले आना है " मेरी ओर इशारा कर के वो बोली।

"चल मैं भी चलती हूँ, मैं ढोलक खुद चेक कर लुंगी और मजीरा तुम सब ढूंढ नहीं पाओगी, "

दूबे भाभी नीचे और साथ में रीत और संध्या भाभी भी।



उन लोगो के नीचे जाते ही चन्दा भाभी हंस के बोलीं, " पंद्रह मिनट की छुट्टी "

इशारा उनका साफ़ था संध्या भाभी का फोन, …. मरद इतनी जल्दी तो छोड़ेगा नहीं. फिर दूबे भाभी ढोलक के मामले में एकदम परफक्शनिस्ट थीं, खुद बजा के चेक कर के, और आएँगी सब लोग साथ साथ।

और मेरी निगाह बार बार गुड्डी की ओर जा रही थी, वो मेरा इरादा समझ रही थी, मुस्करा रही थी, चाह वो भी रही थी और दो चाहने वाले चाहते हैं तो हो ही जाता है


चंदा भाभी का फोन बजा, एक ख़ास रिंग और गुड्डी ने चिढ़ाया, क़तर से भतार, अब देखती हूँ पंद्रह मिनट लगता है की बीस मिनट,



चंदा भाभी ने कस के एक घूंसा गुड्डी की पीठ पे जमाया और बोलीं,

" अभी से इतनी चिपका चिपकी होती है तेरी एक बार लग्न हो जाएगी फिर देखूंगी, रहेगी तो इसी घर में "

और करीब दौड़ते हुए अपने कमरे में और दरवाजा भी बंद कर लिया अंदर से, …की हम लोग न सुने .



छत पर मैं और गुड्डी अकेले, और गुड्डी के रंग लगे हाथ

और उसके रंग लगे हाथों ने बर्मुडा में डालकर मेरे लण्ड पे बचा खुचा रंग लगा दिया और मेरे बांहों से निकलते हुए बोलने लगी-

“देख ली तुम्हारी ताकत। जरा सा भी रंग नहीं डाल पाए। और अगर रंग नहीं डाल पाए तो बाकी कुछ क्या डालोगे…”


आँख नचाकर नैनों में मुश्कुराकर जिस तरह उसने कहा की मैं घायल हो गया। मैं उसके पीछे भागा और वो आगे। दौड़ते हुए उसके हिलते नितम्ब, मेरे बर्मुडा का तम्बू तना हुआ था।

मैंने चारों और निगाह दौडाई।

कहीं रंग की एक भी पुड़िया नहीं, एक भी पेंट की ट्यूब नहीं। लेकिन एक बड़ी सी प्लेट में अबीर रखी हुई थी। वही उठाकर मैंने गुड्डी के ऊपर भरभरा कर डाल दी।



वो अबीर-अबीर हो गई। उसकी देह पहले ही टेसू हो रही थी। नेह के पलाश खिल रहे थे और अब। तन मन सब रंग गया।



“हे क्या किया?” वो कुछ प्यार से कुछ झुंझला के बोली।

“तुम ही तो कह रही थी डालो डालो…” मैंने चिढ़ाया।

“आँख में थोड़ी…” वो बोली- “कुछ दिख नहीं रहा है…”

“मैं तुम्हें दिख रहा हूँ की नहीं?” मैंने परेशान होकर पूछा।

“तुम्हें देखने के लिए आँखें खोलनी पड़ती हैं क्या? मुश्कुराकर वो बोली लेकिन फिर कहने लगी- “कुछ करो ना आँख में किरकिरी सी हो रही है…”

मैं उसे सहारा देकर वाश बेसिन के पास लेकर गया। पानी से उसका चेहरा धुलाया। फिर अंजुरी में पानी लेकर उसकी बड़ी-बड़ी रतनारी आँख के नीचे ले जाकर कहा- “अब इसमें आँखें खोल दो…”

और उसने झट से आँखें खोल दी। उसकी आँख धुल गई। फिर मैंने ताजे पानी की बुँदे उसकी आँखों पे मारा। दो-चार बार मिचमिचा के उसने पलकें खोल दी और जैसे कोई चिड़िया सोकर उठे। और पंख फड़फड़ाये।

बस उसी तरह उसकी वो मछली सी आँखें। पलकें खुल बंद हुई और वो मेरी और देखने लगी।



“निकला…” मैंने चिंता भरे स्वर में पूछा।



“नहीं…” वो शैतान मुश्कुराते हुए बोली। वो अभी भी वाश बेसिन पे लगे शीशे में अपनी आँखें देख रही थी।

“क्या अबीर अभी भी नहीं निकला?” मैं पूछा।


“वो तो कब का निकल गया…” ये शीशे में मेरे प्रतिविम्ब की ओर इशारा करती गुड्डी बोली- “ये, अबीर डालने वाला नहीं निकला…”


मैं उसकी बात समझ गया।

“चाहती हो क्या निकालना?” मैं उसके इअर लोबस को अपने होंठों से हल्के से छूकर बोला…”

“मेरे बस में है क्या? इतना अन्दर तक धंसा है। कभी नहीं चाहूंगी उसे निकालना। ऐसे कभी बोलना भी मत…”

मुश्कुराकर शीशे में देखती वो सारंगनयनी बोली।



पीछे से मैंने उसे अपनी बाहों में कसकर पकड़ लिया और रसीले गालों पे एक छोटा सा चुम्बन ले लिया।



फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई भीतर गोरी।

भाय करी मन की पदमाकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी॥

छीन पितंबर कमर तें, सु बिदा दई मोड़ि कपोलन रोरी।


नैन नचाई, कह्यौ मुसकाइ, लला। फिर खेलन आइयो होरी॥



***** *****

एकै सँग हाल नँदलाल औ गुलाल दोऊ,दृगन गये ते भरी आनँद मड़गै नहीं।

धोय धोय हारी पदमाकर तिहारी सौंह, अब तो उपाय एकौ चित्त में चढ़ै नहीं।

कैसी करूँ कहाँ जाऊँ कासे कहौं कौन सुनै,कोऊ तो निकारो जासों दरद बढ़ै नही।


एरी। मेरी बीर जैसे तैसे इन आँखिन सों,कढ़िगो अबीर पै अहीर को कढ़ै नहीं।



“होली देह का रंग तो उतर जाएगा लेकिन नेह का रंग कभी नहीं उतरेगा…” मैंने बोला।



उस पल कोई नहीं शेष रहा वहाँ… न चंदा भाभी न दूबे भाभी न संध्या भाभी। और शायद हम भी नहीं। शेष रहा सिर्फ फागुन। रग-रग में समाया रंग और राग। एक पल के लिए शायद श्रृष्टि की गति भी ठहर गई।



न मैं था न गुड्डी थी। सिर्फ हम थे। पता नहीं कितने देर तक चला वो पल। निमिष भर या युग भर?

मैं गुड्डी की ओर देखकर मुश्कुराया और वो मेरी और अब काहे का सूनापन।

लेकिन मान गया मैं गुड्डी को, मुझे किसी भी आसन्न खतरे से भविष्य की किसी आशंका से कोई बचा सकता था तो गुड्डी ही।



मुझसे बहुत पहले उसने सीढ़ियों से आती हुयी पदचाप सुन ली और जब तक मैं कुछ समझूं, सोचूं, वो छटक के दूर, एकदम से सीढ़ियों के पास और वहीँ से मुझे मीठे मीठे देख रही थी, फिर आँखो से उसने सीढ़ी की ओर इशारा किया,



और अगले ही पल सीढ़ी पर से हांफते,कांपते, रीत गले में खूब बड़ी सी ढोलक टाँगे, हाथ में एक बैग लिए, और उसके पीछे संध्या भाभी,हाथ में मजीरा और साथ में दूबे भाभी।


चंदा भाभी का भी क़तर से आया फोन ख़त्म हो गया और नेपथ्य से वह भी सीधे मंच पर।
Fantastic update
लगता है अब तो आनंद को घुंगरू बांध कर मुजरा करवाने वाली है
 

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जा रे हट नटखट, न छू रे मेरा घूंघट


लेकिन पहले इनके पैरों में घुंघरू बंधेगा…” ये गुड्डी थी। उसने वो बैग खोल लिया जो रीत लायी थी। उस में खूब चौड़े पट्टे में बंधे हुए ढेर सारे घूँघरू।

“एकदम-एकदम…” संध्या भाभी ने भी हामी भरी।



मैं फिर पकड़ा गया और चंदा भाभी, संध्या भाभी और गुड्डी ने धर पकड़कर मेरे पैरों में घुंघरू बाँध दी। रीत दूर से मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी।

मैं क्यों उसे बख्शता। मैंने दूबे भाभी को उकसाया- “आप तो कह रही थी की आपकी ननद रीत बहुत अच्छा डांस कर है तो अभी क्यों?”

लेकिन जवाब रीत ने दिया- “करूँगी। करूँगी मैं लेकिन साथ में नाचना पड़ेगा…”

“मंजूर…” मैं बोला और रीत ने एक दुएट वाले गाना म्यूजिक सिस्टम पे लगा दिया। होली का पुराना गाना। दूबे भाभी को भी पसंद आये ऐसा। क्लासिकल टाइप नटरंग फिल्म का-




धागिन धिनक धिन,

धागिन धिनक धिन, धागिन धिनक धिन,

अटक अटक झटपट पनघट पर,

चटक मटक इक नार नवेली,

गोरी-गोरी ग्वालन की छोरी चली,


चोरी चोरी मुख मोरी मोरी मुश्कुये अलबेली।



दूबे भाभी ढोलक पे थी, संध्या भाभी बड़े-बड़े मंजीरे बजा रही थी, चंदा भाभी हाथ में घुंघरू लेकर बजा रही थी। गुड्डी भी ताल दे रही थी।



कंकरी गले में मारी

कंकरी कन्हैया ने

पकरी बांह और की अटखेली

भरी पिचकारी मारी

सा रा रा रा रा रा रा रा

भोली पनिहारी बोली

सा रा रा रा रा रा रा रा


रीत क्या गजब का डांस कर रही थी। संध्या भाभी की रंग से भीगी झीनी साड़ी उसने उठा ली थी और अपने छलकते उरोजों को आधे तीहे ढंकी ब्रा के ऊपर बस रख लिया था। तोड़ा, टुकड़ा उसके पैर बिजली की तरह चल रहे थे-



अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूंघट

पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

सा रा रा रा रा रा रा रा




सबने धक्का देकर मुझे भी खड़ा कर दिया और अगला पार्ट गाने का मैं पूरा किया-



आया होली का त्यौहार

उड़े रंग की बौछार

तू है नार नखरेदार, मतवाली रे

आज मीठी लगे है तेरी गाली रे

ऊ। हाँ हाँ हाँ आ। हो।




लेकिन वो चपल चपला, हाथों में उसने पिचकारी लेकर वो अभिनय किया की हम सब भीग गए। खास तौर से तो मैं। उसके नयन बाण कम थे क्या?



तक तक न मार पिचकारी की धार

हो। तक तक न मार पिचकारी की धार

कोमल बदन सह सके न ये मार

तू है अनाड़ी बड़ा ही गंवार

कजरे में तुने अबीर दिया डार

तेरी झकझोरी से बाज आई होरी से

चोर तेरी चोरी निराली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूंघट

पलट के दूँगी आज तुझे गाली रे

मुझे समझो न तुम भोली भाली रे

सा रा रा रा रा रा रा रा




और उसके बाद तो वो फ्री फार आल हुआ की पूछो मत। लेकिन इसके पहले सबने तालियां बजायीं खूब जोर-जोर से सिवाय मेरे और रीत के हमारे हाथ एक दूसरे में फँसे थे। वो मेरी बांहों में थी और मैं उसकी।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है आखिर मुजरा करवा ही दिया साथ में रीत को भी शामिल कर लिया
 

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होली बनारस की-देह की


जो चुनर उसने डांस के समय ओढ़ रखी थी अपनी ब्रा कम चोली के ऊपर।

वो तो मैंने नाचते नाचते ही उससे छीनकर दूर फेंक दी थी और अब उसके अधखुले उभार एक बार फिर मेरे सीने से दब रहे थे। उसके लम्बे नाखून मेरी पीठ पर चुभ रहे थे कंधे पे खरोंचे मार रहे थे।

फगुनाहट सिर्फ हम दोनों पे चढ़ी हो ऐसी बात नहीं थी।



संध्या भाभी अब चंदा भाभी के नीचे थी और चंदा भाभी ने जब उनकी टांगें उठायीं तो साया अपने आप कमर तक उठ गया। उनके भरतपुर के दर्शन हम सबको हो गए।

-- लेकिन अब किसी को उन छोटी मोटी चीजों की परवाह नहीं थी। चंदा भाभी का अंगूठा सीधे उनकी क्लिट पे। और दो उंगलियां अन्दर। माना संध्या भाभी ससुराल से होकर आई थी लेकिन अभी भी उनकी बहुत टाईट थी। जिस तरह से उनकी चीख निकली इससे ये बात साफ जाहिर थी पर चंदा भाभी को तो और मजा आ गया था। वो दोनों उंगलियां जोर-जोर से अन्दर गोल-गोल घुमा रही थी। दूसरा हाथ उनके मस्त गदराये जोबन का रस लूट रहा था।

संध्या भाभी सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी छटक रही थी। कभी मजे से कभी दर्द से।

लेकिन चंदा भाभी बोली-

“अरे ननद रानी ये छिनारपना कहीं और जाकर दिखाना। जब से बचपन में टिकोरे भी नहीं आये थे दबवाना शुरू कर दिया था। शादी के पहले 10-10 लण्ड खा चुकी हो। भूल गई पिछली होली मैंने ही बचाया था दूबे भाभी से। वरना मुट्ठी डालना तो तय था। तुमने वायदा किया था की जब शादी से लौटकर आओगी तो जरूर। और अब दो उंगली में चूतड़ पटक रही हो…”

“अरे लेगी-लेगी नहीं लेगी तो जबरदस्ती घुटायेंगे…” दूबे भाभी बोली।



वो गुड्डी को अब प्रेम पाठ पढ़ा रही थी। उसका एक किशोर उभार उनके हाथ में था और दूसरी टिट होंठों के बीच कस-कसकर चूसी जाती,

तो कभी दूबे भाभी के हाथ गुड्डी के जोबन को रगड़ते मसलते, और कस के निप पिंच कर लेती। गुड्डी की मस्ती में हालत खराब थी, फ्राक के ऊपर के हिस्से तो पहले ही चंदा भाभी ने चीथड़े चीथड़े कर दिए थे, ब्रा का ढक्कन बचा था, गुड्डी का। चंदा भाभी ने तो ब्रा के अंदर हाथ डाल के और हुक खोल के रंग लगा दिया था, लेकिन रंगो की होली तो कब की ख़तम हो चुकी थी अब तो सिर्फ देह की होली चल रही थी, और दूबे भाभी, दूबे भाभी थीं तो ऊपर झाँपर से उनका काम नहीं चलने वाला और उनके हाथ में ताकत भी बहुत थी, बस कस के ब्रा के बीच से

चरचरर र र

और गुड्डी की ब्रा की दोनों कटोरियाँ दो हिस्से में,


पर दूबे भाभी भी तो बड़ी बड़ी चूँचियाँ भी सिर्फ ब्रा से ढंकी थी, एक हुक रीत ने पहले ही तोड़ दिया था, बस एक हुक के सहारे और गुड्डी ने उसे भी खोल दिया और दूबे भाभी की ३६ ++ बड़ी बड़ी चूँचियाँ अच्छी तरह से रंग से लिपि पुती बाहर आ गयीं, आधे से ज्यादा रंग तो मेरे ही हाथ से लगा था दूबे भौजी के जोबन पे।

और अब मुकबला था ११ वी में पढ़ने वाली की उभरती हुयी चूँचियों और भौजी के पहाड़ों के बीच, गुड्डी नीचे दूबे भौजी ऊपर और जैसे चक्की के दो पाटे चल रहे हों, बीच बीच में वो गुड्डी के कान में कुछ कहती और मेरी ओर देखतीं,



अब मैं समझ गया ये सेक्स एजुकेशन का क्लास मेरे लिए चल रहा था की आज रात मुझे गुड्डी के साथ क्या करना है और आज रात ही क्यों मेरे मन की बात चल जाए तो हर रात,



ये नहीं था की मैं मस्ती नहीं कर रहा था, रीत मेरी गोद में और अब उसकी भी जालीदार ब्रा खुल चुकी थी और वो मुझसे भी एक हाथ आगे अपने चूतड़ों को कस कस के कपड़ो में ढंके मेरे जंगबहादुर पे रगड़ रही थी,


लेकिन दूबे भाभी की मज़बूरी थी, गुड्डी के कमर के नीचे अभी दूकान बंद थी, और असली मजा तो उसी खजाने में है।



चंदा भाभी की उँगलियाँ संध्या भाभी के उस खजाने में सेंध लगा चुकी थी, और संध्या भाभी बार बार सिसक रही थीं तो मन तो दूबे भौजी का भी कर रहा था किसी कच्ची कली के प्रेम गली में होली की सैर करने का,

तो जैसे युद्धबंदियों की अदला बदली होती है तो बस उसी तरह उन्होंने रीत की ओर इशारा किया, और रीत पांच कदम दूबे भाभी की ओर तो गुड्डी पांच कदम मेरी ओर, और थोड़ी देर में गुड्डी मेरी गोद में और रीत और दूबे भाभी की देह की होली शुरू हो गयी थी।


रीत के जिस भरतपुर स्टेशन पे मेरी उँगलियाँ आज सुबह से कई बार चक्कर काट चुकी थीं पर दर्शन नहीं हुआ था,

दूबे भाभी जिंदाबाद उनकी कृपा से भरतपुर का आँखों ने नयन सुख लिया। होली में तब से आज तक कितनी बार देखा है, समझदार भाभियाँ ननद की शलवार हो पाजामी हो, नाड़ा कभी खोलती नहीं, सीधे तोड़ देती हैं और दूबे भाभी ने वही किया, और जब तक रीत समझे,

सररर सररर

दूबे भाभी के हाथ, रीत की पजामी सरक के उसके घुटने तक, और दिख गयी,

गुलाबी गुलाबी चिकनी चिकनी



लेकिन बहुत देर तक नहीं वो दूबे भाभी के होंठों के बीच कैद हो गयी और क्या चूस रही थीं वो, और रीत जोर जोर से सिसक रही थी


और चंदा भाभी ने अब तीसरी उंगली भी संध्या भाभी की चूत में घुसेड़ दी। और क्लिट पे कसकर पिंच करके, मेरी ओर इशारा करके, दिखा के बोली-

“अरे चूत मरानो, इसको देख। अपनी कुँवारी अनचुदी बहन को बस दूबे भाभी और अपनी यार के एक बार कहने पे लेकर आने पे तैयार हो गया है भंड़ुआ, यही नहीं राकी से भी चुदवायेगी वो। और तू ससुराल में दिन रात टांगें उठाये रहती होगी और यहाँ उंगली लेने में चीख रही है…”

संध्या भाभी मुश्कुराते हुए बोली- “रात दिन नहीं भाभी सिर्फ रात में। दिन में तो कभी कभी। जब मेरे देवर को मौका मिल जाता था या। नंदोई जी आ जाते थे…”


और इसके जवाब में चंदा भाभी ने अपनी तीनों उंगलियां बाहर निकल ली और अपने होंठ चिपका दिए संध्या भाभी की चूत पे। दो हाथों से उनकी जांघें कसकर फैलाए हुए थी वो।

चंदा भाभी और संध्या भाभी एक दूसरे की चूत के ऊपर कस-कसकर रगड़ घिस कर रही थी।

रीत और दूबे भाभी, चंदा भाभी और संध्या भाभी एकदम खुल के मस्ती कर रहे थे, उन्हें कुछ फरक नहीं पड़ रहा था की मैं और गुड्डी बैठे सब देख रहे हैं,

और पहल गुड्डी ने ही की, जरा सा ही सही,

दूबे भाभी के पास से निकलने के समय गुड्डी ने अपनी फटी दो टुकड़ो में बँटी ब्रा को किसी तरह से अपने उभारों पर टिका लिया था, मन तो मेरा बहुत कर रहा था की जैसे दूबे भाभी कस कस के गुड्डी की छोटी छोटी अमिया मसल रही थी, रगड़ रही थी, मैं भी उसी तरह, लेकिन, बस वही

पर गुड्डी, मुझसे भी ज्यादा मुझको जानती थी, और उसने हाथ उठा के बस वहीँ, जैसे उस दिन पिक्चर हाल में, आज से डेढ़ दो साल पहले, जब वो नौवीं में थी और मैंने पहली बार जोबन रस लिया था, भले ही फ्राक के ऊपर से,

और आज तो फ्राक चंदा भाभी ने चीर दी थी और ब्रा दूबे भाभी ने दो टूक कर दी थी,

और जैसे ही मेरा हाथ पड़ा फटी हुयी ब्रा खुद सरक के, उसे मालुम हो गया की इस जोबन का असली मालिक आ गया है और अब मैं कस के खुल के दबा रहा था, मसल रहा था, कभी रीत को रगड़ती दूबे भाभी देख लेती, मुझे देख के मुस्कराती और कभी चंदा भाभी



लेकिन मेरी मस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, और मैंने झुक के गुड्डी के रसीले होंठो को चूम भी लिया, लेकिन गुड्डी मुझसे भी दो हाथ आगे उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में ठेल दी और मैं कस के चूसने लगा,


हाथों को गुड्डी के जोबन रस का सुख मिल रहा था और होंठों को गुड्डी के मुख रस का, और वो भी सबके सामने,



लेकिन तभी छोटा सा विघ्न हो गया, रीत की कोई सहेली आयी थी, वो नीचे से आवाज लगा रही थी, तो रीत और दूबे भाभी दोनों सीढ़ी से उतरकर धड़ धड़ नीचे


पर हम चारों का जोश और बढ़ गया,


चंदा भाभी के तरकस में एक से एक हथियार थे, कभी वो कस कस के संध्या भाभी की चूत कस कस के चाटती और चूस चूस के उन्हें झड़ने के कगार पे ले आती पर जब संध्या भाभी, सिसकती चिरौरी करतीं

" भौजी झाड़ दो, हफ्ता हो गया पानी निकले, मोर भौजी "

बस चंदा भाभी चूसना बंद कर के कस के संध्या भौजी का जोबन रगड़ने लगती, उनके मुंह के ऊपर बैठ के चंदा भाभी अपनी बुर चुसवाती और संध्या भाभी की खूब चासनी से गीली तड़पती, फड़फड़ाती बुर साफ़ साफ़ दिखती और गुड्डी मुझे छेड़ती,

" हे देख तोहरी संध्या भौजी की कितनी रसीली गली है, घुस जाओ न अंदर "


गुड्डी के गाल चूम के मैं बोला " लेकिन मुझे तो इस लड़की की गली में घुसना है "



" तो घुसना न रात भर, मैंने कौन सा मना किया है अरे अभी छुट्टी है वरना यही छत पे तेरी नथ सबके सामने उतार देती " गुड्डी हँसते हुए बोली

संध्या भाभी के ऊपर चढ़ी चंदा भाभी ने गुड्डी को इशारा किया की मेरे मोटे जंगबहादुर को आजाद कर दे, और बस अगले पल वो तन्नाए , फनफनाये बाहर,

और गुड्डी ऊपर से मुठियाते हुए संध्या भाभी को दिखा रही थी, जैसे पूछ रही हो चाहिए क्या,



चंदा भाभी ने संध्या भाभी के मुंह को आजाद कर दिया और अब वो भी गुड्डी के साथ खेल तमाशे में शामिल हो गयीं और संध्या भाभी से बोली

" अरे ननद रानी कुछ मन कर रहा हो तो मांग लो, गुड्डी एकदम मना नहीं करेगी "

" अरे दिलवा दो न अपने यार का " संध्या भाभी मुस्कराते हुए बोली लेकिन गुड्डी कम नहीं थी, मेरे गाल पे खुल के चुम्मा लेते हुए बोली


" यार तो है मेरा, थोड़ा बुद्धू है तो क्या अब मेरी किस्मत में यही है, लेकिन क्या चाहिए ये खुल के बोलिये न "

" लंड चाहिए, इत्ता मोटा लम्बा कड़क है, एक बार चोद देगा तो घिस थोड़े ही जाएगा, हफ्ते भर से उपवास चल रहा है चूत रानी का, गुड्डी तुझे बहुत आशिरवाद मिलेगा, मुझे एक बार दिलवा देगी तो तो तुझे ये हर रोज मिलेगा, जिंदगी भर, सात जनम। "

संध्या भाभी सच में गर्मायी थीं।

लेकिन चंदा भाभी उन्हें अभी और तड़पाना चाहती थी, जैसे मेन कोर्स के चक्कर में लोग स्टार्टर कम खाते हैं एकदम उसी तरह, किनारे पे ले जाके बार बार रुक जाती थीं


चंदा भाभी ने संध्या भाभी को छोड़ दिया और गुड्डी को चुम्मा लेने का, मेरे खूंटे को दिखा के इशारा किया और गुड्डी ने झुक के एक लम्बी सी चुम्मी मेरे सुपाड़े पे जड़ दी।

संध्या भाभी की हालत और खराब हो गयी।

तब तक सीढ़ियों से फिर पदचाप की आवाज सुनाई पड़ी और हम सब के जो भी थोड़े बहुत कपडे थे, देह पर, जंगबहादुर अंदर।

पहले रीत आयी, अपनी उस सहेली को गरियाती और मेरे और गुड्डी के पास बैठ गयी, फिर दूबे भाभी।

हम सब चुप थे, और ये चुप्पी टूटी दूबे भाभी की आवाज से,
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है रंगो की होली तो खत्म हो गई अब तो अंग से अंग रगड़ने की होली शुरू हो गई है चंदा भाभी ने तो संध्या भाभी को गरम करके उसकी आग को भड़का दिया है चंदा भाभी गुड्डी के साथ मिलकर संध्या भाभी को आनंद का हथियार दिखा कर मजे ले रही है जैसे छोटे बच्चे को लॉलीपॉप दिखाकर उसको नही देते हैं वैसा ही संध्या भाभी के साथ हो रहा है उनको हथियार की सख्त जरूरत है रीत की सहेली भी आ गई है देखते हैं उसके साथ भी होली खेलते हैं या नहीं
 

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. जोगीड़ा


और ये टूटा दूबे भाभी की घोषणा के साथ- “अरी छिनारों एक गाना सुनाने के बाद वो भी फिल्मी। चुप हो गए। क्या मुँह में मोटा लण्ड घोंट लिया है। अरे होली है जरा जोगीड़ा हो इस साले को कुछ सुनाओ…”

रीत बोलना चाहती थी- “नहीं भाभी लण्ड मुँह में नहीं है कहीं और है…”

लेकिन मैंने उसके मुँह पे हाथ रख दिया। और झट से हम दोनों ने कपड़े ठीक किये और इस तरह अलग हो गए जैसे कुछ कर ही नहीं रहे थे।

“भाभी जोगीड़ा सुना तो है लेकिन आता नहीं…” रीत बोली।

“अरे बनारस की होकर होली में कबीर जोगीड़ा नहीं। क्या हो गया तुम सबों को, चल मैं गाती हूँ तू सब साथ दे…” चंदा भाभी बोली।

गुड्डी और रीत ने तुरंत हामी में सिर हिलाया।



चंदा भाभी और दूबे भाभी चालू हो गईं बाकी सब साथ दे रही थी। यहाँ तक की मुझे भी फोर्स किया गया साथ-साथ गाने के लिए। इन सारंग नयनियों की बात मैं कैसे टाल सकता था।




अरे होली में आनंद जी की, अरे देवरजी की बहना का सबकोई सुना हाल अरे होली में,

अरे एक तो उनकी चोली पकड़े दूसरा पकड़े गाल,

अरे इनकी बहना का, गुड्डी साली का तिसरा धईले माल। अरे होली में।

कबीरा सा रा सा रा।

हो जोगी जी हाँ जोगी जी

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

कबीरा सा रा सा रा।

हो जोगी जी हाँ जोगी जी

ननदोई जी की बहना तो पक्की हईं छिनाल।

कोई उनकी चूची दबलस कोई कटले गाल,

तीन-तीन यारन से चुदवायें तबीयत भई निहाल।

जोगीड़ा सा रा सा रा

अरे हमरे खेत में गन्ना है और खेत में घूंची,

गुड्डी छिनरिया रोज दबवाये भैया से दोनों चूची,

जोगीड़ा सा रा सा रा। अरे देख चली जा।

चारों और लगा पताका और लगी है झंडी,

गुड्डी ननद हैं मशहूर कालीनगंज में रंडी।

चुदवावै सारी रात। जोगीड़ा सा रा रा ओह्ह… सारा।

ओह्ह… जोगी जी हाँ जोगी जी,

अरे कहां से देखो पानी बहता कहां पे हो गया लासा।

अरे ओह्ह… जोगी जी हाँ जोगी जी,

अरे कहां से देखो पानी बहता कहां पे हो गया लासा। अरे

अरे इनकी बहन की अरे इनकी बहन की बुर से पानी बहता

और गुड्डी की बुर हो गई लासा।

एक ओर से सैंया चोदे एक ओर से भैया।

यारों की लाइन लगी है। जरा सा देख तमाशा


जोगीड़ा सा रा सा रा।



तभी कोई बोला- “अरे डेढ़ बज गए चलो देर हो गई…” रीत का चेहरा धुंधला गया। चाँद पे बदली छा गई।

मैंने बात सम्भालने की कोशिश की। दूबे भाभी से मैं बोला- “अरे आप लोगों ने तो गा दिया। लेकिन आपकी इन ननदों ने। सब कहते हैं रीत ये कर सकती है वो कर सकती है…”


“मैं फिल्मी गा सकती हूँ होली के भी…” रीत बोली।

“नहीं नहीं जोगीड़ा। गा सकती हो तो गाओ वरना चलते हैं देर हो रही है…” दूबे भाभी बोली।

“अच्छा चलो। फिल्मी ही लेकिन जोगीड़ा स्टाइल में एकदम खुलकर…” मैंने आँख मारकर रीत को इशारा किया। वो समझ गई और बोली ओके चलो तुम्हारे पसंद का।

“मेरा तो फेवरिट वही है, मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त। लेकिन याद रखना होली स्टाइल में…” मैं बोला- “और साथ में डांस भी…”


फिर तो रीत ने क्या जलवे दिखाए। रवीना टंडन भी पानी भरती।


पहले तो उसने जो घुंघरू मुझे पहनाये गए थे। वो अपने दोनों पैरों में बाँधा और फिर उसने जो चुनरी मैंने हटा दी थी एक बार फिर से अपनी चोली कम ब्रा के ऊपर बस इस तरह ढंकी की एक जोबन तो पूरी तरह खुला था और एक थोड़ा सा चुनर के अन्दर। सिर्फ म्यूजिक उसने स्टार्ट कर दी और साथ में उसके अपने बोल। जो ढप गुड्डी के हाथ में थी वो भी उसने ले ली और चालू हो गई।



मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त मैं चीज बड़ी हूँ मस्त,

नहीं मुझको कोई होश होश, उसपर जोबन का जोश जोश।




ये कहते हुए उसने चूनर उछाल के सीधे मेरे ऊपर फेंक दी और वो चूचियां उछाली की बिचारे मेरे लण्ड की हालत खराब हो गई। मसल रही थी और जैसे इतना नाकाफी हो मुझे दिखाकर वो अपने दोनों उरोज रगड़ रही थी मसल रही थी।



म्यूजिक आगे बढ़ा।




नहीं मेरा- कोई दोष दोष मदहोश हूँ मैं हर वक्त वक्त,

मैं चीज बड़ी हूँ मस्त-मस्त मैं चीज बड़ी हूँ मस्त।




बस मैं ये इंतजार कर रहा था की ये इसमें होली का तड़का कैसे लगती है। गाना वैसे भी बहुत भड़काऊ हो रहा था। उसपर जोबन का जोश जोश गाते वो अपनी चोली नीचे कर थोड़ा झुक के चक्कर लेकर चूचियों को बड़ी अदा से पूरी तरह दिखा दे रही थी। फिर उसने अपना हाथ पाजामी की ओर बढ़ाया और थोड़ा और नीचे सरका के वो चूत उभार-उभार के ठुमके लगाये-



मेरी चूत बड़ी है मस्त मेरी चूत बड़ी है चुस्त चुस्त,

करती है लण्ड को पस्त पस्त। करती है लण्ड को पस्त पस्त।

रख याद मगर तू मेरे दीवाने

तेरा क्या होगा अंजाम न जाने।




और ये कहते-कहते रीत मेरे पास आ गई और उसने मुझे खींचकर अपने पास कर लिया और गाने लगी। और अपने हाथ से सीधे मेरे लण्ड पे रगड़ते हुए गाने लगी।



रखूंगी अन्दर हर वक्त वक्त। लण्ड को कर दूंगी एकदम मस्त-मस्त।



और हम सबने जोरदार ताली बजायी। मेरी ओर विजयी मुश्कान से उसने देखा। मुझे खींचकर अपने पास कर लिया और गाने लगी। संध्या भाभी ने फिर गुहार लगाई। चलो ना। सब लोग जैसे ही मुड़े मुझे कुछ याद आया। अभी भी मैं साड़ी ब्लाउज़ में ही था।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
दुबे भाभी द्वारा गाया गया जोगीडा बहुत ही शानदार था जिसमे आनन्द की बहन को टारगेट करके गाया था रीतिका फिल्मी जोगीडा दुबे भाभी वाले से भी ज्यादा मजेदार था
 
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