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Erotica फागुन के दिन चार

Premkumar65

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स्कूल में होली


" हे तेरे स्कूल में होली जबरदस्त हुयी " मैंने कस के दोनों उभारों को मसलते हुए पूछा, जहाँ उसकी सहेलियों ने जम के रंग लगाया था।



गुंजा जोर से खिलखिलाई और गुड्डी की ओर इशारा करते बोली, " अपनी दिलजनिया से पूछिए न, वो भी तो उसी स्कूल में हैं और दो दिन पहले जब ११ वी की छुट्टी हुयी तो क्या मस्ती काटी इनलोगो ने "



गुड्डी ने गुझिया मुझे खिलाते हुए गुंजा को बनावटी गुस्से से हड़काया, " हे ' अपनी ' का क्या मतलब, तू इनकी नहीं है कुछ क्या ?"



अपना हक़ जताते हुए मेरे खड़े खूंटे पे कस कस के अपने छोटे छोटे खुले चूतड़ गुंजा ने कस के रगड़ा, और बोली, " एकदम हूँ, और साली का हक़ तो पहले होता है वो भी छोटी साली का, इसलिए तो मैं गोद में बैठी हूँ, क्यों जीजू " और गुंजा ने कस के चुम्मी ली और अबकी गुंजा के मुंह से , उसके मुख रस के स्वाद के साथ बियर मेरे मुंह में।



और गुड्डी ने सुनाना शुरू किया लेकिन हंसी के मारे, वो बोली, एक तो हम दोनों के स्कुल का नाम ऐसे और फिर ही ही ही



बात गुंजा ने पूरी की और आगे होली के बदलते नियमो की बात भी



एक कोई मारवाड़ी सेठ ने अपनी पूज्य स्वर्गीया की स्मृति में स्कूल बनवाया था, मैनेंजमेंट और कंट्रोल पूरा उन्ही का, नाम था चूड़ा देवी बालिका विद्यालय, लेकिन सब लोग चू दे विद्यालय कहते थे, नयी सड़क के पास ही था। गुंजा ने अपने हाथ से बियर मुझे पिलाते हुए हंस के बोला,

" जीजू सोचिये न जिस स्कूल का नाम ही चुदे है वहां की लड़कियां नहीं चुदेंगी तो कहाँ की लड़कियां चुदेंगी"



" तो चुदवा ले, देख बेचारे इतनी दुर्गत सह के भी छोटी साली के लिए रुके थे " गुड्डी ने मेरी ओर देखते हुए गुंजा को चढ़ाया,



गुंजा ने बड़े प्यार से मेरे गाल पे एक खूब मीठी वाली चुम्मी ली और बोली, मेरे जीजू चाहे जो करें और गुड्डी ने स्कूल की होली का किस्सा शुरू किया।



पहले रूल्स बहुत स्ट्रिक्ट थे, जब गुड्डी क्लास ८ में थी, होली एकदम मना थी, लेकिन लड़कियां कहाँ मानती थीं तो जबतक गुड्डी नौ में पहुंची तो अबीर गुलाल की होली परमिट हो गयी लेकिन क्लास में नहीं, और वो भी सिर्फ टीका लगा के,



" दी उसमें क्या मजा आता होगा, जबतक अंदर हाथ डाल के गुब्बारे न रगड़े जाएँ " गुंजा ने बियर की एक घूँट लेते हुए कहा।



गुड्डी उसे देख के मुस्करा रही थी, बोली,

" तू क्या सोचती है, मैं थी न। मैं घर से तो गुलाल ही ले गयी घर पे भी नोटिस आयी थी अगर कोई लड़की रंग लाते हुए पकड़ी गयी या उसके बैग में रंग मिला तो फाइन। लेकिन मैं भी, रस्ते में एक दूकान से पूरे ढाई सौ ग्राम पक्का लाल रंग , ये बोल के की दुपटा रंगना है, और उसी गुलाल में मिला दिया और गुलाल का पैकेट फिर से बंद। स्कूल में भी सब के बैग चेक हुए दो चार के बैग में रंग पकड़ा गया तो वहीँ सब के सामने कान पकड़ के और सब पैकेट जब्त। "



फिर मैंने हुंकारी भरते हुए गुड्डी की ओर तारीफ़ की नजर से देखा और गुंजा ने अपने हाथ की बियर की बॉटल से मुझे बियर पिलाया।



असल में बियर पिलाने का कभी अपने मुंह से कभी बियर की बॉटल से गुंजा कर रही थी और भांग वाली गुझिया खिलाने का काम गुड्डी



मेरी तो मज़बूरी थी, दोनों हाथ फंसे थे, बिजी थे, उस सेक्सी किशोरी के उभरते हुए उभारों को मसलने रगड़ने में और गुड्डी ने जब वो गुंजा की क्लास में थी उस समय की होली का किस्सा आगे बढ़ाया,



गुड्डी बोली, " तो मेरा और मेरी और छह साथ सहेलियों के पास ' असली गुलाल ' वाला पैकेट था, फिर तो वही पक्का रंग मिला गुलाल, जबतक कोई टीचर देखती तो बस माथे पे और बहुत हुआ तो गाल पे, और टीचर भी तो कभी हम लोगो की तरह थीं तो जहां वो निकलीं, बस दो लड़कियां पीछे से हाथ पकड़ती और मैं यूनिफार्म वाले ब्लाउज के खोल के सीधे कबूतरों पे वो वाला गुलाल, और आराम से सहलाना मसलना और साथ में गरियाना भी, स्साली जाके अपने भाइयों से चूँची मिजवाओगी, रगड़वाओगी और हम लोगो से मसलवाने में शर्म आ रही है "



" दी एकदम सही कह रही हैं मेरी क्लास में भी करीब आधे से ज्यादा तो अपने भाइयों के साथ ही, दो चार तो सगे



" लेकिन तब भी तो सूखा रंग ही रहा न, झाड़ झुड़ के " मेरे समझ में अभी गुड्डी की पूरी प्लानिंग नहीं आयी तो मैंने पूछ लिया।



" अरे तो फिर रंगरेज के यहाँ से दुपट्टे रंगने वाले रंग लेने का फायदा क्या, " गुड्डी मुझे घूरते बोली, फिर उसने राज खोला, उसकी और सहेलियों ने , कुछ ने रुमाल तो कुछ ने दुप्पट्टे ही स्कूल से निकलने के पहले गीले कर लिए थे और फिर निकलते समय फिर वही, एक ने पीछे से दोनों कलाई पकड़ी और गीली रुमाल या गीले दुपट्टे से तो टॉप के अंदर डाल के निचोड़ दिया, सूखा रंग गीला हो गया, और उसके बाद रगड़ रगड़ के फिर से दोनों गुब्बारे, ज्यादातर लड़कियां जब हफ्ते भर की होली की छुट्टी के बाद लौटी तब भी उनके रंग पूरी तरह नहीं छूटे थे। "



मान गया गुड्डी को मैं हम तीनो खूब हँसे, और गुंजा ने जोड़ा,

तभी दीदी,… पिछले साल से जब आप दसवीं में थी, मुझे याद है , रंग परमिट हो गया था आखिरी दिन लेकिन बस अब दो कंडीशन है, यूनिफार्म पे रंग नहीं पड़ना चाहिए और क्लास में होली नहीं होगी, बाकी कुछ भी कर लो। अब तो आखिरी पीरियड में टीचर सब हर क्लास की, बस अटेंडेंस लेके चली जाती हैं टीचर रूम में और घंटे भर हम लोगों की मस्ती, और आज तो मस्ती हुयी, इंटरवल के बाद ही हम लोगो की टीचर चली गयी, बस दो घण्टे,



और ये किसने किया, गुड्डी ने एक भांग वाली गुझिया को सीधे गुंजा के मुंह में डालते हुए पूछा, " ये किसने किया, "



गुड्डी का इशारा गुंजा के दोनों उभारों पर उँगलियों के निशानों पर था,



" और कौन करेगा, " गुझिया खाते हुए गुंजा बोली और फिर जोड़ा, ' वही शाजिया, और अकेले पार तो पा नहीं सकती मुझसे तो वो कमीनी छिनार महक, उसने मेरे दोनों हाथ पीछे से पकड़ के अपने दुपट्टे से बाँध दिया और शाजिया ने गोल्डन पेण्ट अपने हाथ में लगा के, पूरे पांच मिनट तक दबाती रही, और बोली, यार तेरे जोबन इत्ते जबरदस्त हैं, जो भी तेरा यार होगा कम से कम मेरा इसी बहाने नाम पूछेगा "



" सच में दोनों बहने होली में एकदम पागल हो जाती हैं " मेरी कुछ समझ में नहीं आया तो गुड्डी ने मैं कुछ बोलूं एक बियर की बोतल खोल के मेरे मुंह में, और बोलना शुरू कर दी,



" नादिया, नादिया है शाजिया की बड़ी बहन, मेरी अच्छी दोस्त है। वो और श्वेता, होली में ऐसे दोनों बौरातीं हैं, लड़कियां तो छोड़, लड़के भी उन दोनों से पनाह मानते हैं, श्वेता से तो कल वीडियो काल पे मिले थे, छुटकी के साथ, "



और मैंने एक फैसला कर लिया। गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी और गुड्डी की दोनों बहनों का तो कानपुर से होली के बाद लौटने का रिजर्वेशन तो कराना ही है , श्वेता का एकदम पक्का, उसने गुड्डी की दोनों बहनों के साथ होली आफ्टर होली में मेरा बटवारा कर लिया था, सर से कमर तक छुटकी के हिस्से, घुटने के नीचे दोनों पैर मंझली के हवाले और कमर से लेकर घुटने तक श्वेता के कब्जे में।



और गुझिया ख़तम कर के गुंजा ने अपने क्लास की होली की हाल बतानी शुरू की, लेकिन उसके पहले गुड्डी ने पूछ लिया और गाने में कौन जीता, और ये बात भी मेरे समझ में नहीं
आयी।
School ki holi ka Salam hi alag hai. Teenage me masti hoti hi hai.
 

komaalrani

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सुपर टर्बो चार्जड मेगा अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें लाइन करें और कमेंट जरूर करें

गुंजा
 

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग १९

गुंजा और गुड्डी

The Last update is on the previous page,

Page 255


please read, enjoy and comment
 

komaalrani

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Congratulations on this "super turbo charged" update...keeps on going.. and going...
Lagta hai padhne ke liye 1 din chhutti lena padega 😜 😜 😃😃

komaalrani
रात में पढ़िए, आराम से,
 

Sanju@

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छोटे घुंघरू वाला बिछुआ


दूबे भाभी बैठकर गाइड कर रही थी। वो मुझे चिढ़ाते हुए गाने लगी-

“अरे छोटे घुंघरू वाला छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला,

वो बिछुवा पहने आनंद की बहना, गुड्डो छिनारी, एलवल वाली (मेरी ममेरी बहन के मोहल्ले का नाम)

अरे अरवट बाजे करवट बाजे, लड़िका के दूध पियावत बाजे,

अरे यारन से चूची मिजवावत बाजे, दबवावत बाजे,

अरे छोटे घुंघरू वाला, छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला।

अरे अरवट बाजे करवट बाजे, अपने भइय्या से रोज चुदावत बाजे,


अरे छोटे घुंघरू वाला, छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना, छोटे घुंघरू वाला।



गुड्डी और रीत हाथ के श्रृंगार में लगी थी, नेल पालिश।

गुड्डी बोली- “क्यों ये बात सच है ले चुके हो उसकी?”


रीत ने आँख तरेरी और दूबे भाभी की ओर इशारा किया, जिन्होंने हुक्म दिया था की होली में सब ‘खुल कर’ बोले-

“अरे माना इनकी बात सीधी है, अभी तक नहीं चुदी है। तो अब चोद देंगे ऐसा क्या? बिछुवे तो बजेंगे ही उसके…” रीत ने बात पूरी की।


उसके बाद गहनों का और चेहरे के श्रृंगार का नंबर था।


संध्या भाभी ने मुझे एक करधनी पहनाई वो भी घुंघरू वाली और मुश्कुराकर रीत और गुड्डी की ओर देखकर बोला- “हे ये मत बताना की तुम्हें इसका भी मतलब नहीं मालूम है की ये कब बजती है?”

रीत की मुश्कुराहट से साफ झलक रहा था की वो चतुर सुजान है। लेकिन गुड्डी वैसी की वैसी तो संध्या भाभी ने फिर बोला-

“अरे बुद्धू। कोई जरूरी थोड़े ही सै की यही तुम्हारे ऊपर चढ़कर चोदे। अरे ऐसा बुद्धू हो तो कई बार लड़की को ही कमान अपने हाथ में लेनी होती है। और जब लड़की ऊपर होती है, तो उछल-उछलकर ऊपर-नीचे करके चोदती है। तो करधन के ही घुंघरू बोलते हैं…”

रीत मुश्कुराती हुई मेरे चेहरे का मेकप करने में बिजी थी, लाल लिपस्टिक।

और गुड्डी से बोली, हे देख हैं न खूब चूमने लायक, चूसने लायक होंठ, लौंडिया मात।

" अरे तो चूम ले न " गुड्डी खिलखिलाती हुयी बोली और रीत ने चूम लिया।

गालों पे रूज, आँख में काजल, मस्कारा, आइब्रो और साथ में कानों में झुमके, नाक में नथ, कान नाक में छेद तो था नहीं इसलिए कहीं से इन लोगों ने स्क्रू वाले झुमके और नथ का इंतजाम किया था। नथ भी बड़ी सी उसकी मोती होंठों पे। नथ गुड्डी पहना रही थी। मैं थोड़ा ना-नुकुर कर रहा था।

तब चंदा भाभी ने हड़काया- “अरे पहन लो पहन लो, वरना उतारी क्या जायेगी?”

मुश्कुराती हुई रीत ने गुड्डी को आँख मारकर बोला- “पहना दे तू लेकिन उतारूंगी मैं ही…”

तभी रीत का ध्यान मेरे ब्लाउज़ पे गया जिसके अन्दर संध्या भाभी की ब्रा थी। वो हल्के से बोली- “माल तो मस्त है लेकिन थोड़ा सा कसर है…” और वो भाग के अन्दर गई।

जब वो बाहर आई तो उसके हाथ में रंग के भरे दो गुब्बारे थे। उसने झट से मेरी ब्रा खोलकर उसके अन्दर डाल दिया और बोली- “हूँ अब मस्त माल लग रही है एकदम 34सी बल्की डी…” और मुझे खड़ा कर दिया गया था।
सिन्दूर दान, - यादों के झुरमुट से
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दूबे भाभी जो अब तक दूर से गाइड कर रही थी, पास में आई और बोली- “सही है लेकिन बस एक कसर है…” और उन्होंने अपने माथे से अठन्नी की साइज की टिकुली मेरे माथे पे लगा दी और बोला- “अब हुआ शृंगार पूरा। नहीं लेकिन एक कसर है…”



सब मुझे घेर के खड़े थे। चंदा भाभी, संध्या भाभी और रीत और गुड्डी तो एकदम सटकर अगल-बगल। किसी को कुछ समझ में नहीं आया।

दूबे भाभी- “अरी सालियों। इत्ती मस्त दुल्हन लेकिन उसकी मांग तो सूनी है। सिन्दूर कौन भरेगा?”



रीत ने गुड्डी की ओर इशारा किया तो गुड्डी ने रीत की ओर।

चंदा भाभी ने उकसाया- “अरे सोचो मत। इसकी बहन पे तो तीन-तीन एक साथ चढ़ेंगे, तुम तो दो ही हो कर दो एक साथ…”

दूबे भाभी ने हड़काया- “अरे तुम लोग बनारस की हो। लखनऊं की नहीं की जो पहले आप, पहले आप कर रही हो”


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कई बार अतीत बिन बोले वर्तमान पर छा जाता है, भांग का नशा था, सामने रीत भी गुड्डी भी,


लेकिन वो सीन चार पांच साल पहले का, भाभी की शादी में, जब ऐसे ही तो भाभी की सहेलियों भाभियों के झुरमुट में पकड़ा गया था मैं और वही सिंगार, गुड्डी नेलपॉलिश लगा रही थी अपने हाथ से मेरे हाथ को पकड़ के,

नेलपॉलिश लगाती गुड्डी की ओर देख के मैं बोला,

" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,

" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली,

मैंने गुड्डी की ओर देखा, बड़ी बड़ी दीये सी आँखे, नेह का तेल, प्यार की बाती, दीये जगमगा उठे लेकिन लाज ने पल भर के लिए गुड्डी की पलकों को झुका दिया, और उसी झिझक ने मेरे होंठों पर फेविकोल चिपका दिया,

लजा गया, जैसे मेरे चेहरे पर किसी ने ईंगुर पोत दिया हो एकदम पलके झुकी।

" काहें तुम्ही कह रहे हो, डांस अच्छा करती है , कल गाना भी सुन लिया होगा तुम्हारी बहिन महतारी सब का हाल, .... "

गुड्डी की मम्मी , मेरी ठुड्डी पकड़ कर चेहरा उठा के गाल सहलाते हुए आँख में आँख डाल के पूछीं।

मेरी आँखे झुकी, लाज से मेरी हालत खराब,



अब सब लोग एक साथ हँसे, भाभी ( गुड्डी की मम्मी ), विमला भाभी, रमा सब,... खिलखिला रही थी विमला भौजी बोलीं

" इतना तो लड़किया नहीं लजाती शादी की बात पे जितना भैया तुम लजा रहे हो, ... गौने क दुल्हिन झूठ "

लेकिन तब तक भाभी ( गुड्डी की मम्मी ) ने गुड्डी से पूछ लिया

" बोलो पसंद है, करा दूँ शादी। "

नेलपॉलिश तो कब की गुड्डी लगा चुकी थी, अनजाने में उसने कस के मेरा हाथ हल्के से दबा दिया लेकिन मेरी तरह से वो लजा नहीं रही थी, खुल के मुझे देख रही थी.

मजाक में गाँव में शादी के माहौल में कोई किसी को छोड़ता नहीं न रिश्ता न उम्र देखी जाती है। " बोलो, ठीक से देख लो अगर पंसद हो बस हाँ बोल दो " गुड्डी की मम्मी , गुड्डी के पीछे पड़ गयी।


अब मुझे लगता है हाँ बोल देना चाहिए था, इतना छोटा भी नहीं था, इंटर कर चुका था, आई आई टी में सेलेक्शन भी हो गया था,

मुझे अब तक याद है, गुड्डी ने एक बार आंख उठा के देखा मेरी ओर और मेरी हालत खराब,.... और उस सारंग नयनी ने पलक बंद कर ली, ये सिर्फ मैंने देखा और गुड्डी ने,...और मैं उन पलकों में बंद हो चुका था,



कैद तो उस सारंगनयनी ने पहली बार ही कर लिया था, मैं थोड़ा सा रिजर्व, लेकिन वो जनवासे में अपनी सहेलियों के साथ और दांत देखने के बहाने, रसगुल्ला खिला के चली गयी और साथ में, मुझे भी ले गयी। और जैसे वो काफी नहीं था, डांस करते समय भी जब वो गाती,

जिस तरह वो दोनों हाथों की चूड़ियां आपस में बजा के दिखा दिखा के कहती लग रहा था जैसे मुझ से ही कह रही हो,...




मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा

जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा




स्टेज के किसी कोने में वो होती लेकिन आँख उसकी बस मेरे पास,...



और उसके बाद, बस मैं मौका खोज रहा था उससे मिलने का लेकिन उसके पहले ही, बीड़ा मारने की रस्म, बादलों में बिजली सी वो भी दिखी, और भाभी का हाथ उठा, उसके साथ ही उसका भी,...



भाभी का बीड़ा तो लगा सही, लेकिन गुड्डी का एकदम सीधे मेरे सीने पर,

द्वारपूजे के बाद जब वो दिखी, तो मैंने बस इतना कहा की तुम्हारा निशाना एकदम सही लगा,



वो मुस्करायी और बस बोली की लेकिन कुछ लोग ऐसे बुद्धू होते हैं जिनका निशाना लग भी जाता है उन्हें पता नहीं चलता।

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अब भी यही बात साल रही है की उस दिन गुड्डी की मम्मी की बात, बियाह करोगे इससे, मन तो बस यही कर रहा था की ये लड़की मिल जाए, बस उसके बाद और कोई चीज नहीं मांगूंगा, लेकिन, वही झिझक,



--

और अभी डेढ़ साल पहले, घर पे, पढ़ाई भी हो चुकी थी और पढ़ते हुए ही सेलेक्शन भी हो गया था, आल इंडिया सर्विस में फर्स्ट अटेम्प्ट में, रैंक भी अच्छी थी और कैडर भी होम यानि यू पी मिलना करीब तय था,



मेरी आम की चिढ जग जाहिर थी, और सिर्फ खाना नहीं पसंद है ये बात नहीं, नाम लेने से लेकर आस पास भी, और सब लोग ध्यान भी करते थे , मेरे सामने



लेकिन गुड्डी, गुड्डी थी, और मैं भी हर मौका ढूंढ़ता था उसके आस पास मंडराने का, नौवें पास कर लिया था उसने,



गरमी का सीजन था, गुड्डी, साथ में उसकी सहेली और मेरी कजिन, एक दो और अड़ोस पड़ोस की लड़कियां और मंजू, वैसे तो घर में काम करती थी, लेकिन हम लोगो के लिए भौजी ही थी, और रिश्ता निभाती भी थी, मजाक न एकदम खुल कर बल्कि देह तक पहुँच जाता था.

वो सब लोग मिल के सुतुही से कच्चे आम छील रहे थे और मैं चुपके चुपके गुड्डी की कच्ची अमिया निहार रहा था, अपनी सहेलियों से २० नहीं २२ थी, वो कुछ भी होती, दर्जनों लड़कियां खड़ी हों दिखती मुझे वही थी,

लड़कियां एक खेल खेलती थीं, जब आम की गुठली बचती थी तो उसे दो उँगलियों में पकड़ के दबाकर छोड़ती थी और वो उछलती थी, लेकिन उसके उछलने के पहले किसी लड़की का नाम लेकर पूछती थी, उसकी शादी कहाँ होगी, और जिधर वो गुठली जाती फिर सब मिल के उस लड़की को चिढ़ाती की उसकी ससुराल पूरब होगी या जिधर भी वो गुठली उछल के गिरे



मंजू ने एक गुठली पकड़ी और गुड्डी को दिखाते, चिढ़ाते, दबा के पूछा,




बिजुली रानी, बिजुली रानी, कहाँ होई,

गुड्डीया का बियाह कहाँ होई




और वो गुठली उछली, मेरी ओर और सीधे मेरे ऊपर ही गिर गयी,

मंजू जोर से खिलखिलाई, “अरे सब क गुठली तो ससुराल की ओर जाती है ये तो सीधे दूल्हे पे ही गिर गयी, गुड्डी देख लो, है लड़का पसंद, चाहे तो बियाहे के पहले एकाध बार ट्राई कर के देख लो, "

और फिर सब लड़कियां गुड्डी के पीछे, लेकिन गुड्डी से ज्यादा मैं झेंप गया, उठा लेकिन जाने के पहले एक बार गुड्डी को भर आँख देखने की लालच नहीं रोक पाया,

और फिर वो आँखे जो मुस्करायीं, गुनगुनुनाईं,


और थोड़ी देर बाद वो मिली, अकेले थे हम दोनों, वो कुछ लेने आयी थी मेरे कमरे से और मैंने हिम्मत कर के पूछ लिया,

" हे वो, वो वाली बात, सच हो जाए तो "

वो समझ रही थी मैं क्या पूछ रहा हूँ, लेकिन उसकी चिढ़ाती आँखों ने और छेड़ा मुझे, मुस्करा के बोली,

" कौन सी बात?"

" वही गुठली वाली बात, बिजुली बिजुली "

" अरे वो सब लड़कियों का खेल तमाशा, " हंस के वो बोली और बाहर जाने के लिए मुड़ी, लेकिन फिर ठिठक के रुक गयी और आलमोस्ट मुझसे सट के फुसफुसाते हुए बोली,

" और सच हो भी जाये तो मैं तुझसे डरती थोड़े ही हूँ "


कह के उसने मेरी नाक पकड़ ली, मारे ख़ुशी के मेरी बोलती बंद हो गयी लेकिन अगली बात जो नाक पकडे पकडे मेरी, बोली तो मैं एक पल के लिए हदस गया। उस सारंगनयनी ने कहा,

" लेकिन ललचाते बहुत हो "


मैं समझ गया, मेरी चोरी पकड़ी गयी, जो २४ घंटे उसकी बस उभरती हुयी कच्ची अमिया ताकता रहता था, क्या करूँ, आँखे मेरी मन की गुलाम, और मन तो जो सामने खड़ी थी उसमें उलझा,



बड़ी मुश्किल से मेरे बोल फूटे, बहुत धीमे से थूक निगलते बोल पाया , " गुस्सा,.... तुम गुस्सा हो ?"



" बुद्धू " वो बोली और खिलखिलाई, हजारों मोती फर्श पर लुढ़क गए, और नाक छोड़ के बोली,

" गुस्सा होउंगी, वो भी तुझ पे, भूल जा "

और बाहर, लेकिन दरवाजे के पास रुक के एक पल के लिए ठिठकी, मुड़ी मेरी ओर देखा और हलके से मुस्करा के बोली, " लालची "

उसी दिन शाम को पिक्चर हाल में, बताया तो था, हम सब लोग फिल्म देखने गए थे, सबसे किनारे मैं, मेरे बगल में गुड्डी और उसके बाद मेरी कजिन, और फिर बाकी लोग, पिकचर शुरू होने के थोड़ी देर बाद ही, मेरा हाथ पकड़ कर उसने अपने सीने पे, और कुछ देर बाद हलके से दबाया भी, और रात में भी, नीचे हम दोनों ही सोते थे, गरमी के दिन, तो बरामदे में चारपाइयाँ सटी, और रात में भी



नहीं बात छुआ छुववल से आगे नहीं बढ़ी, लेकिन पहल हर बार गुड्डी ही करती थी



और अभी गुड्डी ने ही पहल की, ढेर सारा सिन्दूर मेरी मांग में, भरभरा कर



संध्या भाभी ने सिंदूर की डिबिया बढ़ाई और,… सिन्दूर दान किया गुड्डी ने ही, और ढेर सारा,


उसके मन में इतनी ख़ुशी थी और उससे ज्यादा मेरे मन में,

कब ये मौका आये बदले में मैं कब मांग भरूंगा इसकी। फिर रोज सुबह उठूंगा तो इसका चेहरा देखकर और सोऊंगा तो इसका चेहरा देखकर।



कुछ मेरी नाक पे भी गिर गया। संध्या भाभी ने चिढ़ाया- “नाक पे सिन्दूर गिरने का मतलब जानते हो तुम्हारी सास बहुत खुश रहेंगी…”

चंदा भाभी ने रीत को किसी काम से किचेन में भेज दिया था, और संध्या भाभी एक बार फिर से चंदा भाभी और दूबे भाभी के साथ मिल के छत के दूसरे कोने पे अगली योजना की प्लानिंग कर रहे थे,



लेकिन अब मेरी बोलने की बारी थी, बहुत देर से मैं चुप था।





मै गुड्डी से धीरे से बोला- “अरे सिन्दूरदान हो गया तो अब सुहागरात भी तो होनी चाहिए…”

वो भी इधर उधर देख के मीठा मीठा मुस्करा के खूब धीमे से बोली, " चल तो रही हूँ न तेरे साथ, मना लेना रात भर सुहागरात, मना थोड़े ही करुँगी, कर लेना अपने मन की, मना थोड़े ही करुँगी "

मेरा चेहरा चमक गया, फिर भी मैंने जबरदस्ती मुंह बना के कहा, " सिर्फ आज " और गुड्डी जो उसकी आदत थी, नाक पकड़ के बोली,

" इसीलिए, बुद्धू पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम बनाया है और आज पांच दिन वाली आंटी जी की भी टाटा बाई बाई तो उसकी भी परेशानी नहीं, सिर्फ आज क्यों, जब चाहो तब "



और मेरी नाक पकडे, संध्या भाभी की ओर इशारा कर के बोली, " और रात तक इंतजार काहे करोगे, मना लो न तोहार भौजी बहुत गर्मायी हैं, अपने पिचकारी के पानी से उनकर गर्मी ठंडी कर दो, उनको भी पता चल जाये मेरे वाले के बारे में, बहुत चिढ़ाती रहती हैं, और फिर तुम्हारी साली, रीत भी तो छौंछियायी है सबेरे से ठोंक दो एक बार, अरे एक दो बार करने से मेरे टाइम का स्टॉक कम थोड़े ही हो जाएगा "
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
जिस तरह बकरे को हलाल करने से पहले सजाया जाता है उसी तरह आनंद बाबू को भी दुल्हन की तरह सजाया गया है तीन औरते और दो कन्या ने । दुल्हन को देखकर लगता है पक्का सुहागरात होने वाली है वो भी पिछवाड़े की
 
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Sanju@

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सुहाग रात - बच गया पिछवाड़ा



मै गुड्डी से धीरे से बोला- “अरे सिन्दूरदान हो गया तो अब सुहागरात भी तो होनी चाहिए…”

वो भी इधर उधर देख के मीठा मीठा मुस्करा के खूब धीमे से बोली,

" चल तो रही हूँ न तेरे साथ, मना लेना रात भर सुहागरात, मना थोड़े ही करुँगी, कर लेना अपने मन की, "

मेरा चेहरा चमक गया, फिर भी मैंने जबरदस्ती मुंह बना के कहा, " सिर्फ आज " और गुड्डी जो उसकी आदत थी, नाक पकड़ के बोली,

" इसीलिए, बुद्धू पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम बनाया है और आज पांच दिन वाली आंटी जी की भी टाटा बाई बाई तो उसकी भी परेशानी नहीं, सिर्फ आज क्यों, जब चाहो तब "



और मेरी नाक पकडे, संध्या भाभी की ओर इशारा कर के बोली,


" और रात तक इंतजार काहे करोगे, मना लो न तोहार भौजी बहुत गर्मायी हैं, अपने पिचकारी के पानी से उनकर गर्मी ठंडी कर दो, उनको भी पता चल जाये मेरे वाले के बारे में, बहुत चिढ़ाती रहती हैं, और फिर तुम्हारी साली, रीत भी तो छौंछियायी है सबेरे से ठोंक दो एक बार, अरे एक दो बार करने से मेरे टाइम का स्टॉक कम थोड़े ही हो जाएगा

लेकिन तब तक भाभियों का ध्यान हमारी ओर मुड़ गया और दूबे भाभी बोलीं

" हे तोता मैना क्या गुपचुप हो रहा है "



संध्या भाभी ने गुड्डी की ओर से जवाब दिया, " अरे यही पूछ रहे होंगे न की सिन्दूर दान हो गया तो अब सुहागरात "

चंदा भाभी बोली- “बड़ी छिनार दुल्हन है, जबरदस्त खुजली इसकी चूत में मची है…”

लेकिन रीत बढ़कर आगे आई और हँसकर मेरा मुँह उठाकर बोली- “अरे जरूर मनाई जायेगी। और वो भी अभी…”

गुड्डी इस काम में पीछे हट गई थी ये कहकर की उसके वो दिन चल रहे हैं।

“लेकिन कैसे आवश्यक सामग्री है तुम्हारे पास?” मैंने भी हँसकर सवाल दागा।



“एकदम…”

और जो बैग वो सुबह अपने साथ लायी थी उसमें से एक मोटा लम्बा डिल्डो निकाला। गुलाबी एकदम मेरी साइज के बराबर रहा होगा। स्ट्रैप आन। जिसे लड़कियां पहनकर एक दूसरे के साथ या लड़कों के साथ।

और जवाब उसकी ओर से खिलखिलाती, गुड्डी ने दिया, वो युद्धस्थल से थोड़ी दूर आराम से बैठ कर मेरी दुरगति देख रही थी।

" अरे यही लाने तो आपकी साली गयी थी, अभी जो चंदा भाभी के किचन में, पसंद आया न "

" अरे नहीं यार काम पूरा नहीं हुआ, " रीत ने गुड्डी की ओर देखकर बड़े उदास मुंह से जवाब दिया,

" क्यों, "

एक साथ संध्या भाभी और गुड्डी ने पूछा, मतलब मेरे पिछवाड़े पर आसन्न हमले की प्लानिंग में में ये तीनो शामिल थी, जिनके लिए जान हथेली पर लेकर मैं दूबे भाभी के पास, मेरी सहायता से इन तीनों ने बनारस की होली के इतिहास में पहली बार दूबे भाभी का चीर हरण किया, साड़ी ब्लाउज दोनों, सच में ये दुनिया विश्वास करने लायक नहीं, लेकिन उसके बाद रीत ने जो जवाब दिया सच में मेरा दिल दहल गया,



" असल में मैं किचेन में बहुत देर तक मिर्चे वाला पुराना अचार ढूंढ रही थी, सोच रही थी उसका तेल लगा के तो अच्छी तरह से परपरायेगा, याद रहेगी ससुराल की, .....लेकिन मिला नहीं तो, "

गुड्डी ने भी थोड़ा उदास सा मुंह बना लिया, फिर बोली," तो क्या हुआ, दी सूखे मार लीजिये, ये कौन जेब में वैसलीन की शीशी लेकर घूमते हैं। "

मेरे मन में तो आया, की बोलूं, कल मेरे सामने दवा की दूकान से माला डी और आई पिल की गोली के साथ बड़ी सी वैसलीन जेली की शीशी गुड्डी ने खरीदी थी, तो क्या मुंह में लगाने के लिए।

तब तक दूबे भाभी का कमान जारी हुआ- “निहुराओ साली को…”

चंदा और संध्या भाभी ने मिलकर मुझे झुका दिया और साड़ी साया सब मेरी कमर पे।

दूबे भाभी बोली- “अरे क्या मस्त चिकने चूतड़ हैं नाम तो लिखो साले का…”

और फिर एक बार संध्या भाभी और गुड्डी, एक ने मेरे एक चूतड़ पे गाँ लिखा और दूसरे ने दूसरे पे डू। वो भी काली प्रिंटर इंक से, खूब बड़े-बड़े। वो भी संध्या भाभी के महावर की तरह 15 दिन से पहले छूटने वाला नहीं था।

मुझे अपने नितम्बों पे एक प्यार भरे हाथ की सहलाहट मालूम हुई।

आँख बंद करके भी मैं रीत के स्पर्श को पहचान सकता था, और दो लोग मिलकर मेरे नितम्बों को कसकर फैला रहे थे। चंदा भाभी और संध्या भाभी।

फिर दरार पे एक उंगली, और उसके बाद डिल्डो का दबाव, पहले हल्का फिर थोड़ा तेज।

गुड्डी मेरे सामने एक बार फिर से बैठी थी, थोड़ी दूर पे, और हम लोगों का नैन मटक्का कोई नहीं देख पा रहा था , बाकी सब लोग मेरे पिछवाड़े के पीछे पड़े थे, रीत तो नौ इंच की तलवार बांधे, मेरे पिछवाड़े सटाये, संध्या भाभी दोनों हाथों से मेरे नितम्बो की चियारे, चंदा भाभी उन दोनों को चढाती, और दूबे ओवरआल कंट्रोल में,

ये कहूं की दर्द नहीं हो रहा था तो गलत होगा, जिस तरह से रीत प्रेस कर रही थी और संध्या भाभी पूरी ताकत से फैलाये थीं,

लेकिन जब सामने गुड्डी बैठी हो, उसकी कजरारी, रतनारी आँखे, मीठी मीठी मुस्कान, और हम दोनों बिन बोले बतिया रहे थे, (ये तरीका एक बार इश्क हो जाए तभी पता चलता है,) फिर दर्द कहाँ पता चलता है.

रीत ने और जोर लगाया, कभी वो गोल गोल घुमाती तो कभी पुश करती, लेकिन न कोई चिकनाई न रीत को पिछवाड़े के हमले की प्रैक्टिस, चंदा भाभी से वो शोख बोली,

" ये जो गुड्डी का माल है न, स्साले इसके मायके वाले सब के सब या तो जनखे हैं या गंडुए, ये भी स्साला चिकना कोरा है, इसकी बहन भी कोरी है, कोई मारने के चक्कर में नहीं पड़ा "

संध्या भाभी का ललचाता हाथ, अब मेरे लटके खूंटे पे एक बार फिर पहुँच गया था, और उसे छूते सहलाते वो बोलीं,

" देख यार जनखे वाली बात तो मैं नहीं मान सकती, हाँ गंडुआ और भंडुआ दोनों बात सही है "

चंदा भाभी ने और जोड़ा, " यार रीत, फायदा तो इसके ससुराल वालों का बनारस वालों का ही होगा न अगर ये कोरा है और इसकी बहिनिया भी कोरी है "

रीत ने एक बार फिर जोर लगाने की कोशिश की।



तभी दूबे भाभी की आवाज अमृत की तरह मेरे कानों में पड़ी वो रीत से बोल रही थी-

“जाने दे यार सगुन तो तुमने कर दिया ना। अभी रंग पंचमी में तो ये आयेंगे ना। तो फिर इनकी बहन और इनको साथ-साथ घोंटायेंगे। अभी कहीं फट फटा गई तो अपने मायके में जाकर सबको दिखाएंगे…”रीत ने भी उसे हटा लिया और कसकर एक हाथ मेरे चूतर पे जमाते हुए, हँसकर बोली- “बच गई आज तेरी…”



रीत से तो बच गई लेकिन भाभियों से तो बचने का तो सवाल ही नहीं था, और उनकी उंगलियों से,

उसके बाद तो वो होली शुरू हुई।

गालियां गाने और अब भले मेरी ड्रेस बदली हुई थी लेकिन था तो वही। और एक बार फिर से होली जबर्दस्त शुरू हो गई थी। गाने, गालियां, रंग, अबीर, रगड़ना, मसलना सब कुछ जो सोच सकते हैं वो भी और जो नहीं सोच सकते हैं वो भी।
, संध्या भाभी-

देह की होली -जरा सी




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मैंने संध्या भाभी को पकड़ा और बिना किसी बहाने के सीधे हाथ उनके जोबन पे। एकदम परफेक्ट साइज थी उनकी ना ज्यादा छोटी ना ज्यादा बड़ी, 34सी। पहले तो मैंने थोड़ा सहलाया लेकिन फिर कसकर खुलकर रगड़ना मसलना। अब सब कुछ सबके सामने हो रहा था।

रंग वंग तो पहले ही होगया था अब तो सिर्फ देह की होली,

संध्या भाभी के जोबन एकदम कड़क थे, मेरा एक हाथ नीचे से सहलाते हुए ऊपर जाता और जहाँ निपल बस टच होता कस कस मसलना रगड़ना, दूसरा तो मेरी मुट्ठी में कैद था पहले से ही।

दोनों हाथों में लड्डू और इस रगड़ने मसलने का असर दो लोगों पर हो रहा था, एक तो संध्या भाभी पे वो ऐसी गरमा रही थीं, मचल रही थी, जाँघे अपनी आपस में रगड़ रही थी, गुड्डी की पांच दिन वाली आंटी आज जाने वाली थीं, लेकिन संध्या भाभी की कल ही चली गयीं थी वो पांच दिन वाली और उसके बाद तो जो गरमी मचती है चूत महरानी को, पांच दिन की छुट्टी और उसके पहले भी पति से दूर लेकिन सबसे बढ़कर संध्या भाभी ने जिस मोटे खूंटे को पकड़ा मसला था, कभी सपने में भी नहीं सोचा था, इतना मोटा और मस्त हो सकता है, बस मन कर रहा था वो अब अंदर घुस जाए,

और संध्या भाभी से ज्यादा अगर कोई खुश था तो वो गुड्डी,

" बुद्धूराम को कुछ अक्ल तो आयी वरना सोते जगते तो उन्हें बस एक ही चीज दिखाई पड़ती थी, गुड्डी।

और आज भी गुड्डी ने जो बोला था उन्हें संध्या भाभी के लिए उसी का असर, और सबसे बड़ी बात सब लड़कियों से तो लोग सुहागरात के बाद पूछते हैं, कैसा था मरद, मतलब कितना लम्बा, कितना मोटा, कितनी देर रगड़ा, झाड़ के झडा या ऐसे ही और फिर मन ही मन अपने यार या मरद से कम्पेयर करते हैं, या गुड्डी ने खुद ही, देख लो, कोई दूर दूर तक नहीं टिकेगा, हाँ थोड़ा झिझकता है तो गुड्डी है न, जिसकी बात वो सपने में भी नहीं टाल सकता,

दोनों जोबन कस के मसले जा रहे थे, खूंटा जबरदस्त खड़ा, भले साली सलहजों ने मिल के नारी का रूप बना दिया हो लेकिन उस नौ इंच के मोटे मूसल का क्या करतीं जिसको घोंटने के लिए सब दिवाली थी, गूंजा से लेकर दूबे भाभी तक

जरा सा निपल कस के पिंच कर दिया तो संध्या भाभी सिसक पड़ीं

“क्यों भाभी कैसा लग रहा है मेरा मसलना रगड़ना? मैं जोर से कर रहा हूँ या आपके वो करते हैं?”

मैंने निपल कसकर पिंच करते हुए पूछा। मेरे मन से अभी वो बात गई नहीं थी, उन्होंने कहीं थी की मैं तो अभी बच्चा हूँ।

रीत को चंदा भाभी ने दबोच लिया था। आखीरकार, रिश्ता उनका भी तो ननद भाभी का था।

चंदा भाभी का एक हाथ रीत की पाजामी में था और दूसरा उसके जोबन पे। वही से वो बोली-

“अरे पूरा पूछो न। इसके 10-10 यार तो सिर्फ मेरी जानकारी में मायके में थे, और ससुराल में भी देवर, नन्दोई सबने नाप जोख तो की ही होगी। सब जोड़कर बताओ न ननद रानी की चूची मिजवाने का मजा किसके साथ ज्यादा आया?”



लेकिन संध्या भाभी को बचाने आई दूबे भाभी और साथ में गुड्डी।

बचाना तो बहाना था, असली बात तो मजा लेने की थी।

दूबे भाभी ने पीछे से मुझे दबोच लिया और उनके दोनों हाथ मेरी ब्रा के ऊपर, और पीछे से वो अपनी बड़ी-बड़ी लेकिन एकदम कड़ी 38डीडी चूचियां मेरी पीठ पे रगड़ रही थी, और कमर उचका-उचका के ऐसे धक्के मार रही थी की क्या कोई मर्द चोदेगा,

और साथ में गुड्डी भी खाली और खुली जगहों पे रंग लगा रही थी। और साथ में मौका मुआयाना भी कर रही थी की मैं उसकी संध्या दी की सेवा ठीक से कर रहा हूँ की नहीं, और गरिया भी रही थी, उकसा भी रही थी, भांग का असर गुड्डी पे भी जबरदस्त था और गालियां भी उसी तरह से डबल डोज वाली,

" स्साले, तेरी उस एलवल वाली बहन की फुद्दी मारुं, अरे तेरी उस एलवल वाली, गदहे की गली वाली बहिनिया ( मेरी ममेरी बहन,, गुड्डी के क्लास की ही और उसकी पक्की सहेली, एलवल उसके मोहल्ले का नाम और जिस गली में वो रहती थी तो बाहर कुछ धोबियों का घर तो पांच छह गदहे हरदम बंधे रहते थे तो वो गली चिढ़ाने के लिए गदहे वाली गली हो गयी थी ) की तरह नहीं है मेरी दी, जो झांट आने से पहले से ही गदहों का घोंट रही है, जवान बाद में हुयी भोसंडा पहले हो गया, अरे शादी शुदा हैं तो क्या दो तीन ऊँगली से ज्यादा नहीं घोंट सकती "


अभी तो मैं ऊपर की मंजिल पे उलझा था इसी बहाने गुड्डी ने संध्या भाभी की निचली मंजिल की ओर ध्यान दिलाया,

होली में चोली के अंदर हाथ तो पास पडोसी भी डाल लेते हैं, जोबन रगड़ मसल लेते हैं लेकिन असली देवर ननदोई तो वो जो चूत रानी की सेवा करें ,

गुड्डी का इशारा काफी था, दो उँगलियाँ संध्या भाभी की चूत में।

क्या मस्त कसी चूत थी, एकदम मक्खन, रेशम की तरह चिकनी, पहले एक उंगली फिर दूसरी भी।


क्या हाट रिस्पांस था। कभी कमर उचका के आगे-पीछे करती और कभी कसकर अपनी चूत मेरी उंगलियों पे भींच लेती। मैंने अपने दोनों पैर उनके पैरों के बीच डालकर कसकर फैला दिया। एक हाथ भाभी की रसीली चूचियों को रगड़ रहा था और दूसरा चूत के मजे ले रहा था। दो उंगलियां अन्दर, अंगूठा क्लिट पे। मैं पहले तो हौले-हौले रगड़ता रहा फिर हचक-हचक के।

अब तो संध्या भाभी भी काँप रही थी खुलकर मेरा साथ दे रही थी-

“क्या करते हो?” हल्के से वो बोली।

“जो आप जैसी रसीली रंगीली भाभी के साथ करना चाहिए…”

और अबकी मैंने दोनों उंगलियां जड़ तक पेल दी। और चूत के अन्दर कैंची की तरह फैला दिया और गोल-गोल घुमाने लगा।

मजे से संध्या भाभी की हालत खराब हो रही थी।

गुड्डी खुश नहीं महा खुश। यही तो वो चाहती थी, मेरी झिझक टूटे और उसके मायकेवालियों को पता चले की कैसा है उसका बाबू, और साथ में वो बोली मुझसे ,


" जो खूंटा घोंट चुकी हो उसका ऊँगली से क्या होगा "

जो हरकत मैं संध्या भाभी के साथ कर रहा था, करीब-करीब वही दूबे भाभी मेरे साथ कर रही थी और गुड्डी भी जो अब तक हर बात पे ‘वो पांच दिन’ का जवाब दे देती थी खुलकर उनके साथ थी।

दूबे भाभी ने मेरे कपड़े उठा दिए। कपडे मतलब, अभी तो गुड्डी के मायकवालियों ने मिल के मुझे साड़ी साया पहना दिया था वो वही साड़ी साया

साड़ी का जो फायदा पुराने जमाने से औरतों को मिलता आया है वो मुझे मिल गया, उठाओ। काम करो, कराओ और पहला खतरा होते ही ढक लो।

मेरे लण्ड राज बाहर आ गए, और साथ ही मैंने भी संध्या भाभी का साया हटा दिया था और वो सीधे उनकी चूतड़ की दरार पे,

तो पिछवाड़े मेरे मूसल राज रगड़घिस्स कर रहे थे और संध्या भाभी की प्रेम गली में मेरी दोनों उँगलियाँ, कभी गोल गोल, तो कभी चम्मच की तरह मोड़ के काम सुरंग की अंदर की दिवालो पर,

कल रात चंदा भाभी की पाठशाला के नाइट स्कूल में भाभी ने सब ज्ञान दे दिया था, नर्व एंडिंग्स कहाँ होती हैं और जी प्वॉइंट कहाँ, छू के ही लड़की को पागल कैसे बनाते हैं और आज वह सब सीखा पढ़ा पाठ, संध्या भाभी के साथ ।

भाभी की चूत एक तार की चाशनी फेंक रही थी, मेरी उँगलियाँ रस से एकदम गीली, फुद्दी फुदक रही थी, कभी सिकुड़ती तो कभी फैलती, और तवा गरम समझ के उँगलियों का आखिरी हथियार भी मैंने चला दिया,

अंगूठे से क्लिट के जादुई बटन को रगड़ना,

और अब संध्या भाभी की देह एकदम ढीली पड़ गयी, मुंह से बस सिसकियाँ निकल रही थीं, आँखे आधी मुंदी और जाँघे अपने आप फैली,

गुड्डी मुझे देख के खुश हो रही थी, संध्या भाभी की हालत देख कर वो समझ गयी मेरी उँगलियाँ अंदर क्या ग़दर मचा रही थीं।

मैंने थोड़ी देर तक तो खूंटा गाण्ड की दरार पे रगड़ा और फिर थोड़ा सा संध्या भाभी को झुकाकर कहा-

“पेल दूं भाभी। आपको अपने आप पता चल जाएगा की सैयां के संग रजैया में ज्यादा मजा आया या देवर के संग होली में?”

मुड़कर जवाब उनके होंठों ने दिया। बिना बोले सिर्फ मेरे होंटों पे एक जबर्दस्त किस्सी लेकर और फिर बोल भी दिया-

“फागुन तो देवर का होता है…”

चंदा भाभी रीत को जम के रगड़ रही थीं लेकिन मेरा और संध्या भाभी का खेल देख रही थीं, जैसे कोई पहलवान गुरु अपने चेले को पहली कुश्ती लड़ते देख रहा हो, वहीँ से वो बोलीं

" और देवर भौजाई का फागुन साल भर चलता है, खाली महीने भर का नहीं"
आज तो दुबे भाभी ने आनंद का पिछवाड़ा बचा दिया वरना आज तो पिछवाड़े की हालत खराब हो जाती आनंद ने संध्या भाभी को और चंदा भाभी ने रीत को पकड़ कर कबूतरों को मिंझना शुरू कर दिया है देवर भौजाई का फाग शुरू हो गया है अब तो देवर सयाना हो गया है संध्या भाभी की आग को भड़का दिया है पेलने की सहमति संध्या भाभी ने दे दी है
 

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देवर भौजाई का फागुन




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गुड्डी मुझे देख के खुश हो रही थी, संध्या भाभी की हालत देख कर वो समझ गयी मेरी उँगलियाँ अंदर क्या ग़दर मचा रही थीं।

मैंने थोड़ी देर तक तो खूंटा गाण्ड की दरार पे रगड़ा और फिर थोड़ा सा संध्या भाभी को झुकाकर कहा- “पेल दूं भाभी। आपको अपने आप पता चल जाएगा की सैयां के संग रजैया में ज्यादा मजा आया या देवर के संग होली में?”





मुड़कर जवाब उनके होंठों ने दिया। बिना बोले सिर्फ मेरे होंटों पे एक जबर्दस्त किस्सी लेकर और फिर बोल भी दिया-

“फागुन तो देवर का होता है…”

चंदा भाभी रीत को जम के रगड़ रही थीं लेकिन मेरा और संध्या भाभी का खेल देख रही थीं, जैसे कोई पहलवान गुरु अपने चेले को पहली कुश्ती लड़ते देख रहा हो, वहीँ से वो बोलीं



" और देवर भौजाई का फागुन साल भर चलता है, खाली महीने भर का नहीं"

और मैं देवर का हक पूरी तरह अदा कर रहा था।

लण्ड का बेस तो दूबे भाभी के हाथ था, और सुपाड़ा संध्या भाभी की चूत के मुहाने पे रगड़ खा रहा था। दूबे भाभी ने पीछे से ऐसे धक्का दिया की जैसे वही चोद रही हों। लेकिन फायदा मेरा हुआ, हल्का सा सुपाड़ा भाभी की चूत में। बस इतना काफी था उन्हें पागल करने के लिए।

चूत की सारी नशें तो शुरू के हिस्से में ही रहती हैं। मैंने हल्के से कमर गोल-गोल घुमानी शुरू की और सुपाड़ा चूत की दीवाल से रगड़ने लगा।

मैंने चारों ओर देखा और कान में बोला- “भाभी। आप कह रही थी ना की गधे घोड़े ऐसा। तो अगर सुपाड़े में इत्ता मजा आ रहा है तो पूरा घोंटने में कितना आएगा। और सुपाड़ा तो बस आप लील ही जायेंगी तो फिर पूरा लण्ड भी अन्दर चला जाएगा…”

संध्या भाभी मजे से सिसक रही थी और उनकी सिसकियों से ज्यादा जिस तरह उनकी कमर पीछे की ओर पुश कर रही थी, उनकी चूत चिपक, फ़ैल रही थी, बता रही थी उन्हें कितना मजा आ रहा था,



लेकिन गुड्डी को बिलकुल मजा नहीं आ रहा था, वो एकदम रिंग साइड सीट पर थी, लेकिन वो सौ कोस दूर भी होती तो मन में उसने जो जादुई शीशा लगा रखा था, उसे मेरी एक एक बात बिना देखे पता चल जाती थी, और जो उस की आदत थी, सब के समाने उसने जोर से हड़काया,

" अरे जरा से क्या होगा, संध्या दी का, बाकी क्या अपनी उस रंडी एलवल वाली के लिए बचा रखा है, अरे मैंने बोल दिया, रीत ने बोल दिया, दूबे भाभी की मुहर लग गयी की जब लौट के उसे साथ ले के आओगे तो उस पे रॉकी को चढ़ाएंगे, तेरा जीजा बनाएंगे, उसकी मोटी गाँठ का मजा एक बार ले लेगी तो जिंदगी भर तेरे गुन जाएगी, भाई हो तो ऐसा, राखी का पैसा माफ़ कर देगी, "

एक तो संध्या भाभी की देह की गर्मी, फिर गुड्डी का हुकुमनामा,

मेरी बात और काम दोनों दूबे भाभी ने पूरी की-

“अरे जो साली ये कहे की लण्ड मोटा है उसे घोंटने में दिक्कत होगी। इसका मतलब वो रंडीपना कर रही है, पैदाइशी छिनाल है मादरचोद। उसकी चूत और गाण्ड दोनों में पूरा ठोंक देना चाहिए और ना माने तो मेरी मुट्ठी है ही। अरे इत्ते बड़े-बड़े बच्चे इसी चूत से निकलते हैं, पूरी दुनियां इसी चूत से निकलती है, ये बोलना चूत की बेइज्जती करना है…”

और ये कहते हुए उन्होंने दो उंगलियां मेरे पीछे डाल दी, और इसका खामियाजा संध्या भाभी को भुगतना पड़ा।

एक न्यूटन नाम के आदमी थे न जिन्होंने एक कानून बनाया था एवेरी एक्शन हैज, वही वाला, तो वही हुआ।

उस झटके से मेरा पूरा सुपाड़ा अब उनकी कसी मस्त चूत में था।



मेरी दो उंगलियां जो भाभी की गाण्ड का हाल चाल ले रही थी, वो भी पूरी अन्दर। गनीमत था की उनकी चूची मैंने कसकर पकड़ रखी थी, वरना इतने तगड़े झटके से वो गिर भी सकती थी। आगे से लण्ड और पीछे से मेरी उंगलियां। संध्या भाभी को अब फागुन का पूरा रस मिलना शुरू हो गया था।

सुपाड़ा घुसते समय दर्द तो उन्हें बहुत हुआ, लेकिन जैसे चंदा भाभी कह रही थी की वो बचपन की चुदक्कड रही होंगी। उन्होंने अपने दांतों से होंठों को काटकर चीख रोकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन तब भी दर्द की चीख निकल गई और अब मजे की सिसकियां और हल्के दर्द की आवाज दोनों साथ निकल रही थी।

उनकी दर्द से हालत खराब थी और मेरी मजे से। एकदम मुलायम चूत खूब कसी, जिस तरह से कस कस के मेरे सुपाड़े को खड़े खड़े भींच रही थी, निचोड़ रही थी, दबोच रही थी, साफ़ लगा रहा था, कितनी नदीदी है, कितनी भूखी, और मैं तो उन्हें भर पेट भोजन करा देता, लेकिन छत पर खड़े खड़े सबके सामने एक कौर खिला के ही अभी, मन बस यही कह रहा था की यार जाने के पहले एक बार मन भर, जी भर के संध्या भौजी को चोद लेने का मौका मिल जाता, नयी ब्याहता औरतों पे चढ़ने का मजा ही कुछ और है,



संध्या भौजी को मजा तीन जगह से मिल रहा था, मैं कस कस के एक हाथ से उनकी बड़ी बड़ी चूँची दबा रहा था, दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ दो पोर तक उनके पिछवाड़े घुसी, साफ़ था की उनके मरद पिछवाड़ा प्रेमी नहीं थे, ये इलाका अभी कोरा था, और बिल में घुसा मेरा मोटा सुपाड़ा। और पिछवाड़े वाली ऊँगली भी कभी गोल गोल घूमती तो कभी अंदर बाहर होती, आखिर जब मेरे पिछवाड़े थोड़ी देर पहले ही हमला हुआ था तो संध्या भाभी ने पूरी ताकत से उसे चियारा था, अभी तक फट रही है, और सुपाड़े का एक हल्का धक्का भी संध्या भाभी की चीख निकलवा रहा था।



संध्या भाभी तो खुश थी ही, लेकिन उनसे ज्यादा दो लोग और खुश थीं, एक तो गुड्डी, ख़ुशी उसके चेहरे से छलक रही थी , दूसरे चंदा भाभी, रीत की वो जम के रगड़ाई कर रही थीं, लेकिन औरतों के कितनी आंख्ने होती हैं ये उन्हें भी नहीं मालूम होता तो वो अपने चेले का और अपनी ननद का खेल देख रही थीं। और गुरुआइन से ज्यादा चेले के अच्छा करने पे किसे ख़ुशी होगी ,

लेकिन ये वो भी जानती थी और मैं भी की इस खुली छत पे, दिन दहाड़े जहाँ चार और लोग भी हैं। फिल्म का ट्रेलर तो चल सकता था लेकिन पूरी फिल्म होनी मुश्किल थी।



“मेरी तुम्हारी होली…” वो मुश्कुराकर बोली।



लेकिन उनकी बात काटकर मैं बोला-


“होगी भाभी। अभी तो आज और फिर रंगपंचमी के दो दिन पहले ही मैं आ जाऊंगा ना, तो तीन दिन की रंगपंचमी करेंगे। मैं उधार रखने में यकीन नहीं रखता खास तौर पे ऐसी सेक्सी भाभी का…”

और अपनी बात के सपोर्ट में लण्ड का एक धक्का और दिया उनकी चूत में और चूची पूरी ताकत से दबोच ली।

हामी उनकी चूत ने भी भरी मेरे लण्ड को कसकर सिकोड़ के।

गुड्डी थी न, सिर्फ रिंग साइड पे दर्शक ही नहीं रेफरी भी, संध्या भाभी की ओर से बोली,



"दी, आज नगद कल उधार, और उधार प्रेम की कैंची है। काल करे सो आज कर, बस मैं इनको साथ ले नहीं जाउंगी जब तक ये बाकी का,... "

गुड्डी का इशारा काफी था और ये तो, ...और संध्या भाभी ने चख तो लिया ही था,



लेकिन न तो संध्या भाभी बचीं न उनकी रगड़ाई रुकी,

मेरी जगह दूबे भाभी ने ले ली और एक बार फिर साया उठ गया।

मैं दूबे भाभी और संध्या भाभी के बीच सैंडविच बना हुआ था। दूबे भाभी कन्या प्रेमी थी, इसका अंदाज तो मुझे पहले ही चल गया था। दूबे भाभी ने संध्या भाभी की दूसरी चूची पकड़ ली थी और मजे ले रही थी।


मैंने धीमे से अपना लण्ड निकाला साड़ी साया ठीक किया और निकल आया।

क्या रगड़ाई की दूबे भाभी ने संध्या भाभी की, जिस प्रेम गली में पहले मेरी ऊँगली घुसी थी फिर मोटा सुपाड़ा,

वहां अब दूबे भाभी की चार चार मोटी उँगलियाँ, कभी कैंची की तरह फैला देतीं तो कभी हचक के चोद चोद के भाभी की हालत ख़राब करती, बुर तो संध्या भाभी की पहले ही लासा हो रही थी, गप्प से भौजी की उँगलियाँ घुस गयीं,

और थोड़ी देर में संध्या भाभी नीचे और दूबे भाभी ऊपर साया दोनों का कमर तक, दूबे भौजी कस कस के अपनी गर्मायी बुर संध्या भौजी की चूत से रगड़ रही थीं जब तक दोनों लोग झड़ नहीं जाएंगी मैं जानता था था हे ननद भाभी की देह की होली रुकेगी नहीं।

उधर चंदा भाभी और रीत की होली में युद्ध विराम हो चुका था।



जब मैं संध्या भाभी के साथ लगा था तब भी मैं उनकी लड़ाई का नजारा देख रहा था।

रीत से तो कोई जीत नहीं सकता ये बात स्वयं सिद्ध थी। लेकिन चंदा भाभी भी अपने जमाने की लेस्बियन रेसलिंग क्वीन रह चुकी थी। (और हिंदुस्तान में अगर “अल्टीमेट सरेंडर…” टाईप कोई प्रोग्राम हो, जिसमें लड़कियां एक दूसरे से सिर्फ कुश्ती ही नहीं लड़ती बल्की एक दूसरे की ब्रा और पैंटी को खोलकर अलग कर देती हैं और जो जिसकी चूत में जितनी हचक के उंगली करे। उसी प्वाइंट पे जीत हार होती है। आखिरी राउंड में दोनों बिना कपड़ों के ही लड़ती हैं। और अंत में इनाम के तौर पे जितने वाली की कमर में एक डिल्डो लगाया जाता है। जिससे वो हारने वाली को हचक-हचक के चोद सकती है उसकी गाण्ड मार सकती है। तो चंदा भाभी निश्चित फाइनल में पहुँचती)।



कपड़े वपड़े तो रीत और चंदा भाभी की होली में सबसे पहले खेत रहे। पहली बाजी चंदा भाभी के हाथ थी। वो ऊपर थी और अपनी गदरायी बड़ी-बड़ी 36डी चूचियों से रीत के मादक जोबन, जो अब पूरी तरह खुले थे, रगड़ रही थी। रीत के दोनों पैर भी उन्होंने फैला दिए थे। लेकिन रीत भी कम चालाक नहीं थी। उसने अपनी लम्बी टांगों से कैंची की तरह उन्हें नीचे से ही बांध लिया। अब बेचारी चंदा भाभी हिल डुल भी नहीं सकती थी और अब वो ऊपर थी।



जो ढेर सारे रंग मैंने उसके मस्त जोबन पे लगाए थे वो सब अब चंदा भाभी की चूचियों पे छटा बिखेर रहे थे।

उसने अपने दोनों हाथ चंदा भाभी के उभारों की ओर किये तो चंदा भाभी ने दोनों हाथों से उसे पकड़ने की कोशिश की और वहीं वो मात खा गईं। रीत ने एक हाथ से उनके दोनों हाथों को पकड़ लिया और उसका खाली हाथ सीधे चंदा भाभी की जांघों के बीच। पिछली कितनी होलियों का वो बदला ले रही थी जब चंदा भाभी और दूबे भाभी मिलकर होली में उसकी उंगली करती थी। और आज जब मुकाबला बराबर का था तो तो रीत की उंगली चंदा भाभी की बुर में।

लेकिन थोड़ी देर में ही जब रीत रस लेने में लीन थी तो चंदा भाभी ने अपने को अलग कर लिया और फिर।

सेअगला राउंड शुरू। मुकाबला बराबर का था और दोनों पहलवान एक दूसरे को पकड़े सुस्ता रहे थे।

दोनों जोड़ियां बाकी दुनिया से बेखबर, छत के एक किनारे पे जहाँ वैसे भी अभी हुयी होली का रंग बिखरा था, ना जाने कितनी बाल्टी रंग बिखरा हुआ था, रंग की पुड़िया, पेण्ट की ट्यूब, और उस बहते हुए रंगों के बीच दूबे भाभी और संध्या भाभी की जोड़ी और रीत और चंदा भाभी,



सावन भादों की बारिश में कई बार लगता है झड़ी रुक गयी है, सिर्फ पेड़ों की पत्तियों से, ओसारे से टप टप बूंदे टपकती हैं, लेकिन फिर कहीं से पास के पोखर से, बगल के गाँव की नदी से बादल घड़े भर भर के लाते हैं और एक बार फिर बारिश शुरू हो जाती है, ठीक यही बात होली में होती है, खास तौर से घर में, ननद भौजाई में, कहीं किसी ने छेड़ दिया और फिर से होली,



और देह की होली में

तो रीत और चंदा भाभी रुकी थीं, थकी थीं, लेकिन फिर बीच बीच में, और दूबे भाभी और संध्या भाभी का कन्या रस तो हर बार एक नयी ऊंचाई पे।

पांच दस मिनट का इंटरवल और फिर दुबारा
Awesome update
संध्या भाभी को फाग का रस मिल गया है अपने देवर से ।एक बार पूरी फिल्म बनते बनते रह गई
चंदा भाभी और रीत में जबरदस्त मस्तियां चल रही है दोनो एक दूसरे पर भारी पड़ रही है
 

Sanju@

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गुड्डी - मन जिसका तन उसका




छत के दूसरे कोने पे गुड्डी बैठी थी, जिस कमरे में कल मैं और चंदा भाभी, उस की चौखट पे .

गुड्डी भी एक प्लेट में गुझिया लेकर (अब हम सब भूल चुके थे की उसमें भांग पड़ी थी) गपक रही थी-जैसे लोहे के कण बिना बुलाये चुंबक से जा चिपकते हैं मेरी हालत वही थी, गुड्डी के लिए। बड़ौदा से यहाँ आने के लिए तीन बार मैंने ट्रेन बदली, बस किया और फिर टेम्पो में बैठकर,

तो अभी जैसे ही मैं दूबे भाभी और संध्या भाभी की सैंडविच से निकला सीधे गुड्डी को सूंघता हुआ,


और दूबे भाभी और संध्या भाभी की जोड़ी और चंदा भाभी और रीत अपने में इतने मस्त थे की उन्हें फरक नहीं पड़ने वाला था की मैं और गुड्डी कहाँ है, क्या कर रहे है। जहाँ गुड्डी बैठी थी, वहां से छत का वो कोना जहाँ लेडीज रेसलिंग चल रही थी, दिखता तो था, लेकिन मुश्किल से।

मैं गुड्डी के बगल में बैठ गया और उस से चिपक के लिबराते बोलने लगा,

“हे, मुझे भी दे ना…”

पहले तो उसने चिढ़ाया, "नदीदे, मंगते, तेरी माँ बहने जैसे टांग फैला देती हैं पहला मौका पाते ही, वैसे ही तू हाथ फैला देते, ...मुझे भी दो "

फिर प्लेट के बची हुयी एकमात्र फूली फूली बड़ी सी गुझिया एक बार में गपक गयी, जैसे ठूंस ठूंस के मुंह में घुसाया हो, गाल एकदम फूले, फिर बड़ी रोमांटिक अदा में बोली

“ले लो तुम्हारे लिए तो सब कुछ हाजिर है…” उसने प्लेट बढ़ाई।

प्लेट एकदम खाली थी,



लेकिन मैंने उसका सिर पकड़कर पहले तो उसके होंठों को चूमा और फिर मुँह में जीभ डालकर उसकी खायी कुचली मुख रस में घुली गुझिया लेकर खा गया-

“ये ज्यादा रसीली नशीली है…”

मेरा एक हाथ अपने आप गुड्डी के खुले उरोजों की ओर चला गया। इन्हीं ने तो मुझे जवान होने का अहसास दिलाया था शर्म गायब की थी। वो मेरी मुट्ठी में थे।

गुड्डी को फर्क नहीं पड़ रहा था, चंदा भाभी ने उसकी फ्राक के ऊपरी हिस्से को तो चीथड़े चीथड़े कर दिया था और फ्रंट ओपन ब्रा को खोल के पहले तो कबूतरों को आजाद किया फिर रंगड़ा मसला, रंग, पेण्ट संब लगाया, लेकिन असली बात ये थी की मुझे फर्क नहीं पड़ रहा था।

खुली छत पर जहाँ चार लोग और भी थे मैं खुल के गुड्डी का जोबन रस ले रहा था।



मुझे चंदा भाभी की कल रात की बात याद आयी,

" कल तुझे और तेरी जाने आलम को यहीं कपडे फाड़ के नंगे नचाउंगी न सबके सामने तो तेरी झिझक निकल जायेगी, और तू भी जब सबके सामने उसको चूमेगा, मसलेगा, और उसके भी कपडे उतरेंगे, तो,... "

बस भाभी की बात याद आते ही मैंने गुड्डी को चूम लिया, सीधे गाल पे, और उसे खींच के अपनी गोद में बिठाने की कोशिश की, लेकिन वह मछली की तरह फिसल गयी, मैं उदास होने की सोचूं उसके पहले उसे पता चल जाता था,

खड़े खड़े प्यार से बोली,

" अरे आ रही हूँ जानू, एक तो तेरे ऐसा चोर मुंह में से मेरी गुझिया लूट ले गया, दूसरे बस,..."

गुझिया का स्टॉक सामने टेबल पर था और बियर की बॉटल्स का चंदा भाभी के कमरे में, प्लेट भर के गुझिया ( डबल डोज भांग वाली तो सभी थीं ) और दो बॉटल बियर की और लौटी तो धम्म से सीधे मेरी गोद में बैठ गयी। और दो बार एडजस्ट होने की ऐसी कोशिश की , कि गुड्डी के छोटे छोटे चूतड़ों से मेरे जंगबहादुर अच्छी तरह रगड़ गए और फनफनाने लगे। लेकिन जैसे मैंने गुझिया पर हाथ मारने कि कोशिश कि, जोर से एक पड़ी मेरे हाथ पे, और डांट भी,


' बिना तेरे हाथ लगाए काम नहीं होगा, देती हूँ न, लेकिन तुझे तो अभी भी हाथ वाली आदत है बचपन की "

मैं समझ रहा था वो किस ' हाथ वाली आदत " कि बात कर रही थी।

एक गुझिया गुड्डी ने उठायी जैसा मुझे पूरी उम्मीद थी आधा उसने खुद खा ली और आधी मेरी ओर बढ़ाई, मैंने खूब बड़ा सा मुंह खोला और

वो वाला भी गुड्डी के मुंह में।



मेरे हाथ में गुझिया नहीं आयी लेकिन और ज्यादा स्वादिष्ट चीजें आ गयी,

फ्रंट ओपन ब्रा खुलने में कितना टाइम लगता है, चुटपुट चुटपुट, और आज पहली बार दिन दहाड़े, दोनों कच्चे टिकोरे, खुली छत पे, मेरी मुट्ठी में, न रंग का बहाना, न टॉप के ऊपर से छूना सहलाना, सीधे चमड़ी से चमड़ी, मेरी हथेली कि तो आज बनारस में किस्मत खुल गयी थी, जोबन का रस तो आज मैंने सबका लूटा था,...


गूंजा ऐसी जस्ट टीन से लेकर दूबे भाभी ऐसी पक्की खेली खायी असली एम् आई एल ऍफ़ तक, और खुल के लूटा था लेकिन कभी कपड़ों कि छाँव में तो कभी रंग के बहाने

पर जिसके बारे में मैं सोते जागते सोचता था, वो मेरी गोद में दिन में खुली छत पे होगी, और उसके खुले उभार मेरी मुट्ठी में होंगे और ऐसा भी नहीं छत पे हम दोनों अकेले, लेकिन कुछ देर रगड़ने मसलने के बाद गुड्डी मेरी गोद से उठ गयी, और मेरा सर खींच के अपनी गोद में ले लिया। मैं अधलेटा सा उस सारंग नयनी, बनारस वाली कि गोद में सर रखे, उसकी बड़ी बड़ी आँखों को देखता, उसमे तिर रहे अपने सपनो को देखता,

कुछ तो है इस लड़की कि आँखों में एक बार आँख मिलने पर बोलती तो बंद होती ही है, सोचना भी बंद हो जाता है,


गुड्डी ने कस के एक हाथ से मेरे दोनों गालों को दबाया, चिरैया कि चोंच ऐसा मेरा मुंह खुल गया,

और जो गुझिया बड़े देर से वो चुभला रही थी, मुंह में रखे कूच रही थी, टुकड़े टुकड़े हो कर, गुझिया कम गुड्डी का मुख रस ज्यादा, उसमें लिसड़ा लिथड़ा, खूब गीला, बड़ी देर तक, गुड्डी अपने मुंह से उसके मुंह में, और फिर अंत में एक जबरदस्त चुम्मा,


" मुझे मालूम है तुझे क्या क्या नहीं पसंद है, सब ऐसे ही खाना पडेगा, मेरे सामने छिनरपन नहीं चलेगा, "

अपने होंठ उठा के वो खंजन नयन बोली,


मैं जान रहा था उसका उसका इशारा किधर है, लेकिन मैंने जिंदगी से वादा किया था, ये लड़की मिल जाए एक बार, एक बार के लिए नहीं, हरदम के लिए, फिर तो चलेगी इसकी, इसकी १०० बात मंजूर। लेकिन आँखे पैदायशी लालची, उसकी फ्रंट ओपन ब्रा अभी भी ओपन थी और आँखे बेशर्म सीधे वहीँ



जितनी मेरी आँखे बेशरम उतनी गुड्डी की उँगलियाँ,... शोख,... शरारती


वो जानबूझ के बिच्छी की तरह उन कातिल उभारों पर डोल रही थीं, कभी बस जुबना को और उभार देतीं तो कभी टनटनाये निपल को अंगूठे और ऊँगली के बीच पकड़ के पिंच कर देतीं,

जितने गुड्डी के निपल टनटना रहे थे उसने मेरे जंगबहादुर फनफना रहे थे, और गुड्डी उस बेचारे की बेसबरी देख के मुस्करा रही थी, फिर खुद झुक के वो निपल एकदम मेरे होंठों के पास, लेकिन जैसे मैंने सर ऊपर किया, उभार और दूर,

गुड्डी तड़पाती तो थी लेकिन इतना भी नहीं, दो चार बार के बाद, जैसे कोई फलों से लदी डाली खुद झुके, वो झुकी, निप्स उसने रगड़ा मेरे होंठों पे और जैसे ही मेरे होंठ खुले, वो अंदर

चुसूर चुसूर मैं मस्त हो कर चूस रहा था और अब दूसरा जोबन मेरे हाथ में,

और गुड्डी का एक हाथ मेरे सर को प्यार से सहला रहा था, और उँगलियाँ जैसे मेरे उलझे बालों को सुलझा रही हों, उनमे कंघी कर रही हो, मेरी आँखे सजनी की आँखों में डूबी, मेरे मुंह को तो उसने अपने उभार से बंद कर रखा था, लेकिन टीनेजर के होंठ तो खाली थे, वो बोली,

" मैं कह रही थी न संध्या दी बहुत गर्मायी है, अच्छा ट्रेलर दिखया तूने, लेकिन यहाँ से आज चलने के पहले उनका काम कर के जाना,"

बीच बीच में गुड्डी बियर की भी घूँट लगाती और असर अच्छा खासा हो गया था, बोली वो,...

" हचक के पेलना अपनी संध्या भाभी को, उन्हें भी पता चले लौंड़ा होता क्या है "



और गुड्डी ने राज खोला, साल भर मुश्किल से हुआ था, संध्या भाभी शादी के बाद बिदा हो के और अगले दिन सुबह, फोन पर सब भौजाइयां मोहल्ले की, और गुड्डी ऐसी जवान होती लड़कियां भी कान पारे, किसी ने स्पीकर फोन भी ऑन कर दिया था, सवाल सब वही , कितनी बार, कितना मोटा, कितनी देर तक, और संध्या भाभी विस्तार से, वो सब भाभियाँ भी जिनका मर्द पहले दिन ही बाहर पानी निकाल चूका हो या उन्ह कर के सो गया हो वो सब भी, खूब बढ़ा चढ़ा के, तो संध्या भाभी ने बोला

"बोलने लायक नहीं हैं बहुत रगड़ी गयी हैं, सुबह दो ननदें समझिये टांग के ले आयीं उन्हें। :

चंदा भाभी ने चिढ़ाया भी, बोलने लायक नहीं मतलब, क्या पहले दिन ही नन्दोई जी ने चमचम भी चुसवा दिया, अरे था कितना बड़ा,

और संध्या भाभी बड़े गर्व से बोलीं, अरे बहुत बड़ा है, नापा तो नहीं लेकिन ६ इंच तो होगा ही, या आसपास,

गुड्डी उस समय दसवें में थी और छह सात महीने पहले उसकी मेरे जंगबहादुर से दोस्ती हो चुकी थी, ज्यादा नहीं लेकिन हाथ उनसे मिला चुकी थी। उसे मालूम था इतना तो उसके यार का सोते समय, और जागने पर बित्ते से बड़ा ही,

और अबकी जब आयीं तब से अपने पति के औजार का गुणगान,

" फाड़ के रख देना, अपनी संध्या भौजी की चूत " गुड्डी हँसते बोली।

"एकदम, " मैं बोला, गुड्डी के उभार मेरे मुंह से बाहर हो गए थे लेकिन उसकी बात का जवाब भी देना जरूरी था, गुड्डी जो बियर की बॉटल पी रही थी उसी से टप टप अपने उभारों से गिराते हुए मेरे होंठों के बीच,

और मैं होंठों की ओक बना के पी रहा था, बियर में अचानक अल्कोहल कॉन्टेंट ४० % से बढ़कर ८० % हो गया था, जोबन का नशा,

" तेरी उँगलियों ने ही उनकी हालत खराब कर दी थी, जब पूरा मोटू घुसेगा तो पता चलेगा, " हँसते हुए गुड्डी बोली

और मेरी उँगलियाँ लेके सीधे मुंह में,


और मेरी चमकी दो उँगलियाँ तो संध्या भाभी की प्रेम गली की सैर करके आयी थीं, लेकिन दो ने पिछवाड़े भी डुबकी लगाई थी, मैंने ऊँगली हटाने की कोशिश की, और बोला भी, ..अरे ये ऊँगली संध्या भाभी के

मेरी बात काट के वो हड़काते हुए बोली,

" ऊँगली किसकी है, ...मेरी मर्जी, मुझे मालूम है "




मन जिसका तन उसका,



मैं थोड़ा ज्यादा ही रोमांटिक होने लगा, एक गुझिया और खाने को मिली, उसी तरह से पहले गुड्डी के मुँह में फिर उसके मुख रस से भीगी



बात मैंने कुछ सात जन्मों टाइप करने की कोशिश की तो जोर से डांट पड़ गयी,

" सुन यार अब सात जन्म में तो जो होना था होगा लेकिन आठवें जन्म में मैं पक्का लड़का बनूँगी और तुम लड़की, ...और तेरी झांट आने से पहले तेरी चूत का भोंसड़ा न बना दिया तो कहना, और सिर्फ तेरी ही ऐसी की ऐसी की तैसी नहीं करुँगी, तेरी माँ, बहन, सहेलियां सब की, पेलूँगी पहले पूछूँगी बाद में, ये नहीं की तेरी तरह आधे टाइम सिर्फ सोचने में, "



लेकिन तब तक हम दोनों का ध्यान रीत की सिसकियों ने खींच लिया, रीत तेज थी, स्मार्ट थी, लेकिन चंदा भाभी भी पुरानी खिलाड़ी

दोनों 69 की पोज में और चंदा भाभी ने आराम से रीत की गुलाबी फांको को फैलाया और कस के अपनी जीभ पेल दी,

गुड्डी, मैंने कहा न, कहने से ज्यादा करने में विश्वास करती थी और आज इस होली की मस्ती के बाद तो जरा भी झिझक नहीं बची थी। वो बात तो मुंह से कर रही थी लेकिन उसकी नरम हथेलियां जंगबहादुर की मालिश कर रही थीं, उनको तो गुड्डी ने कब का बाहर कर दिया, और वो टनटनाये और अब हाथ की जगह मुंह ने लिया,



पहले दो चार चुम्मी, फिर चुसम चुसाईं, सिर्फ सुपाड़े की, कभी जीभ की टिप पेशाब का छेद कुरेदती तो कभी गप्प से सब अंदर

लेकिन गुड्डी स्मार्ट जैसे ही रीत झड़ी,

गुड्डी ने मेरे औजार को कपड़ों के अंदर और हम दोनों अच्छे बच्चों की तरह प्लेट से गुझिया खा रहे थे



रीत और चंदा भाभी हम दोनों को देख रही थीं, मुस्करा रही थीं।
Fantastic update
आनंद और गुड्डी की मस्तियां शुरू हो गई अब तो आनंद पूरा बेशर्म हो गया है अब उसकी पूरी जिझक खत्म हो गई है खुले में गुड्डी को अपनी गोद में बिठा के एक दूसरे के होठ से होठ के रसपान के साथ मिल कर गुझिया खा रहे हैं गुड्डी ने संध्या भाभी को पेलने का फरमान जारी कर दिया है इधर गुड्डी आनंद के हथियार का रसपान कर रही है वही दूसरी और रीत और चंदा भाभी 69 पोज में एक दूसरे के रस का रसपान कर रही है
 

chodumahan

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बी दर्जिन आपकी शुक्रगुजार हैं की आपने हुनर की क़द्र की वर्ना ब्रांडेड और रेडीमेड के जमाने में इन तकलीफो को कौन समझता है।

असल में कोशिश मेरी भी यही थी की किसी तरह बक्से से निकाल के थोड़ा तह वह कर के, झाड़ झुड़ के पुराना माल टिका दूँ, लेकिन मेरी परेशानी ये नहीं की मेरे कहानियों के चाहने वाले कम हैं, वो तो उनकी किस्मत और ऊपर वाले की रहमत है, लेकिन असली परेशानी, जो भी थोड़े बहुत हैं, वो बहुत ही जानकार, नुक्स निकालने वाले और हद दर्जे के जानकार है और मेरी कहानियां भी पक्की बेवफा हैं , जो उनकी वफादार हैं, जैसे लड़की, ससुराल जाने के बाद माँ की जगह सास के साथ खड़ी हो जाती है, ( सास बहु वाली नहीं मेरी कहानी, मोहे रंग दे और छुटकी वाली सास बहू) एकदम उसी तरह।

और गलती मेरी भी थी किसी बच्ची की कोई ड्रेस सीने को दे और जब तक ड्रेस बन के तैयार हो, तो वो बच्ची माशा अल्ला अच्छी खासी जवान हो जाये, तो ड्रेस कैसे फिट आएगी। पायंचे छोटे होंगे, कहीं ज्यादा ही टाइट होगी, तो जब पहली बार यह कहानी पोस्ट हुयी तो जैसे सीरियल में होता है करेक्टर में बदलाव आ जाता है और कई बार शुरूआती दौर से मैच नहीं खाती।पूरे चार साल लग गए थे उस कहानी को पोस्ट होने में

और इस बात को पकड़ा मेरे अजीज दोस्त सूत्रधार जी ने जो बहुत कम बोलते हैं, सूत्र में कहते हैं, लेकिन उस सूत्र में पूरे समीकरण की व्याख्या हो जाती है। और पहली बात उन्होंने पकड़ी रीत के बारे में।

रीत इस कहानी की जान है। लेकिन होली की सीन में जो पहले रीत का जिक्र था वो बाद के ( मध्यांतर के बाद के ) उसके किरदार से मैं ये तो नहीं कहूँगी, की मेल नहीं खाता लेकिन कुछ लोगो को, जिसमे मैं भी शुमार हूँ, दुबारा पढ़ने पर जोर जोर से खटक रहा था। इसलिए बहुत कुछ सम्हाल के रीत में कुछ बदलाव इस तरह करना पड़ा की उसकी अहमियत न कम हो और आगे की पोस्टो से मैच करे ।

दूसरा मामला गुंजा का था, मेरी एक परेशानी और है मैं पोस्ट लिख के कहीं अलग से सेव नहीं करती और किया भी तो कभी डिलीट होगया कभी वाइरस खा गया तो कभी लैपटॉप बदल गया। लेकिन ये काम भी मेरे दोस्तों ने किया, विशेष रूप से जौनपुर जी ने उन्होंने उन्हें पइदी ऍफ़ में बदला, लेकिन पता नहीं क्यों ( और इस फोरम के पी डी ऍफ़ में भी वो गलती है ) एक बड़ा सा भाग छूट गया है, बात गुंजा से शुरू होती है और अचानक आनंद बाबू घर से जाने लगते हैं। तो करीब उस को भी फिर से लिखना पड़ा।

कहानी के बाद के हिस्सों में गुड्डी की बहनो का और गुड्डी की मम्मी का जिक्र बार बार आता है, लेकिन जब आनंद बाबू बनारस में थे बस बहुत हल्का सा, इसलिए वो किरदार भी बढे, और गुड्डी -आनंद बाबू के रिश्ते में रोमांस की शुरुआत की बात भी करनी थी तो ढेर सारा
फ्लैश बैक भी,

और कुछ मित्रों ने इरोटिका कांटेट बढ़ाने की बात की थी तो गुंजा और संध्या भाभी का विस्तार कुछ उसके कारण भी,

बहुत से बाते और भी हैं लेकिन वो स्प्वॉयलर अलर्ट की कैटगरी में आती है।

और आंनद बाबू का नाम भी इस बार बार आया है , कहानी में भी कमेंट्स में भी। परेशानी ये थी की ये मेरी अकेली कहानी है जो एक पुरुष के द्वारा फर्स्ट परसन में है और आनंद बाबू बार बार अपना नाम तो ले नहीं सकते और बातचीत में भी हम कहाँ किसी का नाम लेकर बात करते हैं और गुड्डी शुद्ध भारतीय नारी है, आनंद बाबू पर हक़ जताने में, हड़काने में और उनके मायके वालों को बुरा भला कहने में

लेकिन मेरी एक गुरु हैं, लेडी डाक्टर, उन्होंने मुझे अच्छी तरह समझा दिया की नाम कहानी की जरूरत है तो किसी भी जुगाड़ से पढ़ने वालों के मन में हीरो का नाम तो होना ही चाहिए इसलिए बार बार आनंद बाबू और अपनी होने वाली ससुराल में है तो बाबू ,

अब ये ड्रेस कैसे बन रही है अब आप ऐसे लोग रेगुलर आएंगे तो पता चलेगा ।

एक बार फिर से धन्यवाद, आप पुराने मित्र पाठक है इसलिए आपका इतना समय लिया।
दर्जी का उदहारण केवल एक कला से संबंधित पीड़ा और उससे जुड़े कार्यों के वेदना के लिए किया गया था..
कृपया अन्यथा न लें...
ये सही है कि ज्यादातर लोग अब ज़ोमैटो या स्विगी इत्यादि जैसे प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं ताकि उन्हें पका पकाया (रेडीमेड) खाना घर पर हीं मिल सके...
लेकिन क्या वही गुणवत्ता और स्वाद मिल सकती है जो घर के बने खाने में है...
मेरा मानना है कि... नहीं...

आपका प्रयास न केवल सार्थक रहा बल्कि झाड़ झुड़ कर पेश करने पर पुराने पाठकों के द्वारा दोहराव का आरोप लगाया जा सकता था...
लेकिन आपने वो सरल प्रक्रिया नहीं अपनाई और कुछ नया और परिवर्धित संस्करण पेश किया...
और पुराने के मुकाबले ये अब तक ५० प्रतिशत नया है...
नए पात्र.. नई घटनाएं... लेकिन बैकग्राउंड वही रखा...
जिसके कारण ऐसा लग रहा है कि कुछ नया पढ़ने को मिल रहा है...
कुछ नया और अछूता सा...
और यहाँ आपके हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी...

और जिस भी टैग से कहानी फोरम में उपलब्ध... उसमें व्यूअरशिप तो ठीक-ठाक क्या बहुत हीं अच्छा है...
लेकिन कमेंट में क्यूं नहीं तब्दील हो पा रहा है...
ये मेरी समझ से बाहर है..
शायद पारभासी दुनिया (virtual world) में लोग अपनी पहचान बताना नहीं चाहते... या फिर पहचाने जाने का डर हो... या फिर इंटरनेट की उपलब्धता ऑफिस वगैरह में हो... जहाँ दसियों restriction होते हैं....
क्यूंकि चाहे आप जितना भी अपने आपको छुपा लें.. ट्रैक करने के लिए काफी कुछ पीछे छूट जाता है...

और अगर खाना अच्छा हो तो खाना किसने बनाया.. किस बर्तन में बना... खाना जिस थाली में परोसा गया वो ठीक नहीं है...
ऐसा मीन मेख निकालने से खाने का लजीज स्वाद कम नहीं हो जाएगा...
और नुक्स निकालने वाले तो हर जगह नुक्स निकाल के दिखा सकते हैं..
फिल्म शोले के लिए एक यू-ट्यूबर ने पचासों गलतियां निकाल दी... (जिसमें १-ठाकुर की बहु लालटेन जलाती है... मतलब बिजली नहीं थी...लेकिन पानी की टंकी पर पानी कैसे ऊपर चढ़ाया जा सकता है... इत्यादि इत्यादि)
लेकिन कितने लोग इन बातों पर ध्यान देते हैं...
वो बस सिनेमा हॉल में जाते हैं और आनंद के कुछ पल बिता कर फिल्म के अलग अलग सीन की नकल कर एक दूसरे के साथ उन पलों को जीवंत करते हैं.. और ऐसा भी कुछ चुनिंदा फिल्मों के लिए होता है... वरना बकवास कहते हुए निकल जाते हैं...
और ऐसे लोगों का ध्येय केवल निंदा करना हीं होता है...

लेकिन सीरियल/फिल्मों में भी पात्रों के बाद के आचरण में विविधता ये सब कंटीन्यूटी की गलतियां है... जो इतनी बड़ी कहानी में बिल्कुल संभव है... जो कि सीरियल या फिल्म में एक ग्रुप द्वारा किया जाता है .. वो यहाँ पर एक व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है...
इसलिए ये बिल्कुल संभव है कि जो पात्र शुरुआत में एक अलग रूप में प्रस्तुत किया गया हो वो बाद में अपने मैच्योर होने पर एक अलग हीं गेटअप में हो...
इसलिए बाद में रीत अपने परिपक्व अंदाज में दिखी...
लेकिन अपनी बनारस की मूल प्रवृति(basic instinct) को भी साथ लिए चलती रही...
इसलिए इसे रीत के विकास क्रम में देखा जाना चाहिए...

और प्रस्तुति में बिल्कुल गलती नहीं है...
क्योंकि समसामयिक घटनाओं का समावेश और उनका कहानी में उचित स्थान प्रयोग तारीफ के काबिल है...
तो कपड़े के छोटे बड़े होने का सवाल मेरे ख्याल से लागू नहीं होता...
और ये केवल अतिश्योक्ति नहीं... बल्कि एक पाठक के रूप में मेरा आंकलन है...

सूत्रधार जी काफी मंझे हुए और अनुभवी व्यक्ति हैं...
और वो काफी संयमित और सटीक आंकलन करते हैं...

और दुबारा आपने पढ़कर काफी कुछ सुधार किया है.. इस नए और परिवर्धित संस्करण में...

और ड्रेस तो क्या हीं शानदार बन रहा है...
बल्कि उम्दा और अद्वितीय... साथ में मौलिक भी...

और आपने हम सबका समय नहीं लिया...
बल्कि अपनी कहानियों और ज्ञान के माध्यम से हमें कृतज्ञ किया है...
और अंत में इतना हीं कहना चाहता हूँ कि आप विनम्र और संयमी है...
ये आपके कमेंट्स से भी लक्षित है...
 
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