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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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बहुत ही शानदार लाजवाब और मस्ती भरा अपडेट है लगता है आनन्द को एडवांस बुकिंग करवाके रहेगीमेरे कपड़े?
सब लोग जैसे ही मुड़े मुझे कुछ याद आया। अभी भी मैं साड़ी ब्लाउज़ में ही था।
“हे मेरे कपड़े?” मैं जोर से चिल्लाया।
“अरे लाला पहने तो हो, इत्ते मस्त माल लग रहे हो…” दूबे भाभी मुश्कुराकर बोली।
“लेकिन इसको पहनकर। अभी मझे गुड्डी के साथ बाजार जाना है फिर रेस्टहाउस। फिर घर…” मैं परेशान होकर बोला। अभी तक तो होली का माहौल था लेकिन ये सब चली जायेंगी तो?
“मुझे कोई परेशानी नहीं है अगर आप ये सब पहनकर बाजार चलेंगे। जोगीड़े में तो लड़के लड़कियां बनते ही हैं। लौंडे के नाच में भी। तो लोग सोचेंगे होगा कोई स्साला चिकना नमकीन लौंडा ” गुड्डी हँसकर बोली।
रीत ने भी टुकड़ा लगाया- “हे, अगर गुड्डी को आपको साथ ले जाने में परेशानी नहीं है तो फिर किस बात का डर?”
“हे मैंने तुमको दिए थे ना प्लीज दिलवा दो…” मैं गुड्डी से गिड़गिड़ा रहा था।
“वो तो मैंने रीत को दे दिए थे बताया तो था ना…” गुड्डी खिलखिलाती हुई बोली।
“अरे कुछ माँगना हो तो ऐसे थोड़े ही माँगते हैं। मांग लो ढंग से। दे देगी…” संध्या भाभी ने आँख मारकर मुझसे कहा।
“एकदम…” रीत ने हँसकर कहा।
मैं- “तो फिर कैसे मांगूं?”
“अरे पैर पड़ो। हाथ जोड़ो। दिल पसीज जाएगा तो दे देगी। अब इसका इतना पत्थर भी नहीं है दिल…” दूबे भाभी बोली।
खैर इसकी जरूरत नहीं पड़ी। मैंने पूछा- “क्यों दंडवत हो जाऊं?”
और रीत संध्या भाभी और गुड्डी खिलखिला के हँस पड़ी। संध्या भाभी बोली- “क्या बोले। लण्डवत?” और तीनों फिर खिलखिला के हँस पड़ी।
रीत बोली- “अरे इसके लिए तो मैं तुरंत मान जाती। चल गुड्डी…दे देते हैं, जब ढोलक मजीरा और घुंघरू आये थे तो रीत एक बैग भी लाद के ले आयी थी।
और उधर चन्दा, संध्या और दूबे भाभी ने मेरा फिर से चीर हरण शुरू कर दिया। साड़ी, गहने, सब उतार दिए गए लेकिन जो महावर चुन चुन के संध्या भाभी ने लगाया था वो तो पंद्रह दिन से पहले नहीं उतरने वाला था, वही हालत उन दोनों शैतानों के किये मेक अप की थी। इसके साथ मैंने अब देखा, मेरी नाभि के किनारे और जगह-जगह दोनों ने टैटू भी बना दिए थे।
हाँ, पायल और बिछुए, दूबे भाभी ने मना कर दिए उतारने से ये कहकर की सुहाग की निशानी हैं और नथ और कान के झुमके भी नहीं उतरे की ये सब तो आजकल लड़के भी पहनते हैं बल्की साफ-साफ बोलू तो चंदा भाभी ने कहा, जितने चिकने नमकीन लौंडे है सब पहनते हैं, गान्डूओं की निशानी है।
मैंने बहुत जोर दिया की महंगे होंगे तो हँसकर बोली, रीत से कहना। ये सब उसी की कारस्तानी है। लेकिन मैं बताऊं सब 20 आने वाला माल है।
तब तक रीत और गुड्डी ने जादूगर की तरह उस बैग में से हाथ डाल के साथ साथ निकाला।
एक के हाथ में मेरी पैंट और दूसरे के हाथ में शर्ट थी।
“हे भाभी किसे 20 आने वाला माल कह रही हो। कहीं मुझे तो नहीं…” हँसकर रीत ने पूछा।
“हिम्मत है किसी की जो मेरी इतनी प्यारी सेक्सी मस्त ननद को 20 आने वाला माल कह दे। जिसके पीछे सारा बनारस पड़ा हो…” चंदा भाभी बोली।
“पीछे मतलब। मैं तो सोचती थी की इसकी आगे वाली चीज मस्त-मस्त है…” संध्या भाभी भी रीत को चिढ़ाने में शामिल हो गईं।
“अरे आगे-पीछे इसकी सब मस्त-मस्त है। लेकिन इत्ते मस्त गोल-गोल चूतड़ हों तो पीछे से लेने में और मजा आएगा ना। चूची चूतड़ दोनों का साथ-साथ। क्यों ठीक कह रही हूँ ना मैं…”
मेरी और देखते हुए चंदा भाभी ने अपनी बात में मुझे भी लपेट लिया।
रीत की बड़ी-बड़ी हँसती नाचती कजरारी आँखें मुझे ही देख रही थी।
मैं शर्मा गया।
रीत शर्ट लेकर मेरी और बढ़ी- “चलो पहनो…”
शर्ट तो मेरी ही थी लेकिन रंग बदल चुका था जहां वो पहले झ्क्काक सफेद होती थी अब लाल नीले पीले पता नहीं कितने रंगों की डिजाइन।
मैंने 34सी साइज वाली जो ब्रा मुझे पहनाई गई थी और उसमें भरे रंग के गुब्बारों की ओर इशारा किया- “अरे यार इन्हें तो पहले उतारो…”
“क्यों क्या बुरा है इनमें अच्छे तो लग रहे हो…” गुड्डी ने आँख नचाकर कहा।
“हे बाबू ये सोचना भी मत। मैंने अपने हाथ से पहनाया है इसको हाथ भी लगाया ना तो बस टापते रह जाओगे…” रीत ने जो धमकी दी तो फिर मेरी क्या औकात थी।
“वैसे भी बनियान नहीं है तो शर्ट के नीचे ठीक तो लग रही है…” गुड्डी ने समझाया और मुझे याद आया।
मैं- “हाँ मेरी बनयान और चड्ढी। वो…”
“अरे जो मिल रहा है ले लो। तुम लड़कों की तो यही एक बुरी आदत है। एक से संतोष नहीं है। एक मिलेगा तो दूसरी पे आँख गड़ाएंगे और तीसरी का नंबर लगाकर रखेंगे…” रीत बोली और शर्ट पीछे कर लिया।
मैं सच में घबड़ा गया। इन बनारस की ठग से कौन लगे- “अच्छा चलो रहने दो। ऊपर से ही शर्ट पहना दो…” मैं हार कर बोला।
“अरे ब्रा पहनने का बहुत शौक है तुम्हें लगता है। बचपन से घर में किसकी पहनते थे या लण्ड में लगाकर मुट्ठ मारते थे। लाला…” संध्या भाभी बोली। चित भी उनकी पट भी उनकी।
रीत ने शर्ट पहना ली तब मैंने देखा। होली मैं जैसे ठप्पे लगाते हैं ना। बस वैसे। लेकिन। रीत के यहाँ ब्लाक प्रिंटिंग होती थी और वो खुद कम कलाकार थोड़े ही थी।
रीत और गुड्डी ने मिलकर मुझे शर्ट पहनाई।
गुड्डी आगे से जब बटन बंद कर रही थी तब मैंने देखा उसपर लाल गुलाबी रंग में मोटा-मोटा लिखा था- “बहनचोद। "
इत्ता बड़ा बड़ा की बहुत दूर से भी साफ दिखे…” और उससे थोड़े ही छोटे अक्षरों में उसके नीचे काही रंग में लिखा था-
“बहन का भंड़ुआ। होली डिस्काउंट। बनारस वालों के लिए खास…”
और सबसे नीचे मेरे शहर का नाम लिखा था और मेरी ममेरी बहन गुड्डी का स्कूल का नाम रंजीता (गुड्डी) लिखा था। लेकिन सबसे ज्यादा मैं जो चौंका। वो साइड में उंगली से जैसे किसी ने कालिख से लिख दिया हो,
लिखा था रेट लिस्ट पीछे।
अब तक मैंने पीछे नहीं देखा था। जब उधर ध्यान दिया तो मेरी तो बस फट ही गई। जैसे कोई सस्ते विज्ञापन। ऊपर लिखा था-
खुल गई। चोद लो। मार लो। और उसके नीचे,--- गुड्डी का स्पेशल रेट सिर्फ बनारस वालों के लिए। आपके शहर में एक हफ्ते के लिए। एडवांस बुकिंग चालू।
उसके बाद जैसे दुकान पे रेट लिस्ट लिखी होती है-
चुम्मा चुम्मी- 20 रूपया
चूची मिजवायी- 40 रूपया
चुसवायी- 50 रूपया
चुदवाई- 75 रूपया
सारी रात 150 रूपया।
और सबसे खतरनाक बात ये थी की नीचे दो मोबाइल नंबर लिखे थे। बस गनीमत ये थी की सिर्फ 9 नंबर ही दिए गए थे। एक तो मैंने पहचान लिया मेरा ही था। लेकिन दूसरा?
मेरे पूछने के पहले ही रीत बोली- “मेरा है…” गुड्डी तो तुम्हारे साथ चली जायेगी तो मैंने सोचा की मैं ही उसकी बुकिंग कर लेती हूँ आखीरकार, तुम्हारी बहन है पहली बार बनारस का रस लूटेगी तो कुछ आमदनी भी हो जाय उसकी और आज कल अच्छा से अच्छा माल बिना ऐड के कहाँ बिकता है?
“तो उस साली का नम्बर क्यों नहीं दिया?” संध्या भाभी ने पूछा।
“अरे तो इस भंड़ुए का क्या होता। मेरे ये कहाँ से नोट गिनते…” गुड्डी ने प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए कहा।
“नहीं यार संध्या दी ठीक कह रही हैं। अरे उसके पास भी तो कुछ मेसेज होली के मिलेंगे। मैं तेरा काम आसान कर रही हूँ। जब उसे मालूम होगा की यहाँ कमाई का इतना स्कोप है तो खड़ी तैयार हो जायेगी आने के लिए। तुझे ज्यादा पटाना नहीं पड़ेगा छिनार को। अरे यहाँ ज्यादा लोग है बनारस के लोग रसिया भी होते हैं। डिमांड ज्यादा होगी होली में। टर्न ओवर की बात है। बोल?”
रीत वास्तव में बी॰काम॰ में पढ़ने लायक थी। उसका बिजनेस सेन्स गजब का था।
और जब तक मैं रोकूँ रोकूँ, ...गुड्डी ने दनदनाते हुए। नंबर लिखवा दिया और रीत ने आगे और पीछे जहाँ उसका नाम लिखा था उसके नीचे लिख दिया-
तब तक मुझे ध्यान आया, गुड्डी ने तो पूरा ही दसों नंबर बता दिया।
“हे हे हे ये क्या किया तुम दोनों ने?” मैंने बोला।
गुड्डी को भी लगा तो वो रीत से बोली- “हे यार उसका तो पूरा नम्बर लिख गया। एक मिटा दे ना…”
रीत सीधी होती हुई बोली- “अब कुछ नहीं हो सकता। ये ना मिटने वाली स्याही है…” और ये नम्बर सबसे ज्यादा बोल्ड और चटख थे।
पैंट पहनने के लिए मेरा साया उतार दिया गया। मैं हाथ जोड़ता रहा- “हे प्लीज बनयान नहीं तो कम से कम चड्ढी तो वापस कर दो…”
“बता दूं किसके पास है?” गुड्डी ने आँख नचाकर रीत से पूछा।
“बता दो यार अब ये तो वैसे भी जाने वाले हैं…” हँसकर अदा से रीत बोली।
“तुम्हारी सबसे छोटी साली के पास है। गुंजा के पास वो पहनकर स्कूल गई है। कह रही थी की उसे तुम्हारी फील आएगी और वैसे भी उसने तुम्हें अपनी रात भर की पहनी हुई टाप और बर्मुडा दिया था। तो क्या सोचते हो ऐसे ही। एक्सचेंज प्रोग्राम था…”
गुड्डी ने हँसते हुए राज खोला।
पैंट पे भी वैसे ही कलाकारी की गई थी।
गनीमत था की पैंट नीली थी लेकिन उसपे सफेद, गोल्डेन पेंट से।
पीछे मेरे चूतड़ पे खूब बड़े लेटर्स में गान्डू लिखा था। आगे भंड़ुआ, गंडुआ और भी बनारसी गालियां। शर्ट मैंने पैंट के अन्दर कर ली की कुछ कलाकारी छिप जाय लेकिन गुड्डी और रीत की कम्बाइंड शरारत के आगे, उन दुष्टों ने इस तरह लिखा था की इसके बावजूद वो नंबर दिख ही रहे थे।
“चलो न अब नीचे नहाने बहुत देर हो रही है। और इनको गुड्डी को जाना भी है…” संध्या भाभी बोली और जिस तरह से उन्होंने दूबे भाभी का हाथ पकड़ रखा था उन्हें देख रही थी। एक अजीब तरह की चमक। और वही चमक दूबे भाभी की आँखों में।
और दूबे भाभी ने रीत को भी पकड़ लिया- “चल तू भी…”
रीत की निगाहें मेरी और गड़ी थी।
और दूबे भाभी भी दुविधा में थी- “मन तो नहीं कर रहा है इस मस्त माल मीठे रसगुल्ले को छोड़कर जाने के लिए…” मेरे गाल पे चिकोटी काटते हुए वो बोली।
“अरे आएगा वो हफ्ते भरकर अन्दर। फिर तो तीन-चार दिन रहेगा ना। बनारस का फागुन तो रंग पंचमी तक चलता है…” चंदा भाभी ने उन्हें समझाया।
तय ये हुआ की रीत, चंदा भाभी, दूबे भाभी, और संध्या सब दूबे भाभी के यहाँ नहायेंगी। गुड्डी को तो अलग नहाना था और उसे आज बाल धोकर नहाना था, ज्यादा टाइम भी लगना था की उसके “वो पांच दिन…” खतम हो रहे थे। इसलिए वो ऊपर चंदा भाभी के यहाँ जो अलग से बाथरूम था उसमें नहा लेगी।
“और मैं?” मैं फिर बोला।
“अरे इनको भी ले चलते हैं ना अपने साथ नीचे। रंग वंग…” लेकिन रीत की बात खतम होने के पहले संध्या भाभी ने काट दी।
“अरे ये तो वैसे ही मस्त माल लग रहे हैं लाल गुलाबी। फिर पहले रंग लगाओ और फिर साफ करो। जा तो रहे हैं अपने मायके। अपनी उस एलवल वाली बहन से साफ करवा लेंगे…”
चंदा भाभी ने मेरे कान में कुछ कहा। कुछ मेरे पल्ले पड़ा कुछ नहीं पड़ा। मेरे आँख कान बने उस समय रीत की अनकही बातों का रस पी रहे थे।
तय ये हुआ की मैं छत पे ही रंग साफ कर लूँगा और उसके बाद चंदा भाभी के बेडरूम से लगे बाथरूम में। भाभी मुझे टावल साबुन और कुछ और चीजें दे गईं।
सब लोग निकल गए लेकिन रीत रुकी रही। जाते-जाते मेरा हाथ दबाकर बोली,..... मिलते हैं ब्रेक के बाद.
वाह कोमल मैमचुसम चुसाई होली में
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और अब चूसने चाटने का काम मेरा था.
जैसे कोई पिया की प्यारी, मिलन की प्यासी खुद अपनी बांहे फैला दे, जैसे साजन की राह तकती, विरह में जलती नायिका, दरवाजे खोल के खड़ी हो जाए,
बस एकदम उसी तरह गुंजा ने अपनी मेरे होंठों के वहां पहुँचने से पहले ही अपनी दोनों कदली सी चिकनी, मांसल जाँघे फैला दी, जैसे रस्ते खुद खुल गए हों,
मेरे प्यासे होंठ जो अब तक उस कुँवारी किशोरी के भीगे रसीले होंठों का, आ रहे उभारों का स्वाद चख चुके थे, उस रति कूप में डुबकी लगाने के लिए बेक़रार थे। पर सीधे कुंए में उतरने के पहले, उसकी सीढ़ियों पर चढ़ना, उसके आसपास का हाल चाल,
चुंबन यात्रा जाँघों के उस ऊपरी हिस्सों से शुरू हुयी जहाँ, न धूप की किरण पड़ती थी न किसी की नजर, कभी मेरे होंठ हलके से चूमते, कभी सिर्फ जीभ जरा सा बाहर निकल कर बस उसकी टिप एक लाइन सी खींचती, रस्ता बताती उस प्रेम कूप की ओर जिसमें डुबकी लगाने के लिए मैं अब तड़प रहा था और कभी होंठ कस कस के चूसते, एक जांघ पर होंठ थे दूसरे से मेरी लम्बी काम भड़काने वाली उँगलियाँ, दोस्ती कर रही थीं। कभी बस छूतीं, कभी सहलाती तो कभी सरक सरक के प्रेम गली की ओर,....
गुंजा तड़प रही थी, सिसक रही थी,
और ये नहीं की वो मेरे चर्मदंड को भूल गयी थी,... उसके होंठ कभी मेरे होंठों की नक़ल करते उसके आस पास चाटते तो कभी मुट्ठी में पकड़ के वो कच्ची अमिया वाली हलके हलके आगे पीछे,
मस्ती के मारे मेरी आंखे जो अब तक बंद थी जब खुलीं तो बस एक पल ही देखा जो, वो आँखों से कभी भी न बिसरे बस इसलिए पलक के दोनों पपोटों में समा के मैंने आँखों की सांकल कस के बंद कर ली,
चिकनी गुलाबी खूब फूली फूली रस से छलकती दोनों फांके,
आम की दो बड़ी बड़ी रस चुआती फांको को जैसे किसी ने कस के चिपका दिया हो,
छेद क्या दरार भी नहीं दिखती थी, लेकिन जैसे चाशनी से भीगी, डूबी ताज़ी निकली जलेबी हो, शीरे में डूबी, उसी तरह रस में गीली, भीगी पता चल रहा था की ये कच्ची कली किस तरह चुदवासी थी,
कभी अपनी जाँघे जोर जोर से रगड़ती, कभी सिसकती, " जीजू करो न, अच्छे जीजू, प्लीज, "
और कौन जीजू साली की बात टालता है वो भी फागुन में,
रति कूप के चारो ओर मेरे होंठ अब चक्कर काट रहे थे, कभी जीभ से बस बस मैं एक लाइन सी खींचता दोनों मोटे मोटे भगोष्ठों के चारो ओर, लेकिन गुंजा को मालूम था की मेरे एक्सीलेरेटर पर कैसे पैर रखा जाता है एक बार सुपाड़ा फिर उसके होंठों के बीच और वो कस कस के चूस रही थी तो मैं अब कैसे छोड़ता,
पहले मेरी जीभ ने उस कच्ची कोरी रस में भीगी चूत की चासनी को धीरे धीरे कर के चाटा, फिर हलके हलके चूसना शुरू किया,
फुद्दी फुदकने लगी, और मेरी चूसने की रफ़्तार बढ़ गयी,
होंठों का प्रेशर दोनों फांको पे , जो अब पूरी तरह मेरे मुंह थी, चूसने के साथ मेरी जीभ दोनों फांको को अलग करने की कोशिश कर रही थी, चाटने चूसने से चाशनी कम होने की बजाय और बढ़ रही थी, रस से एक ेदक गीली थी और अब होंठों ने दोनों फांको को हथेली के लिए छोड़ा और खुद क्लिट को छेड़ने में जुट गए, इस दुहरे से हमले तो खूब खेली खायी भी गरमा जाती, गुंजा तो पहले से ही पिघल रही थी,
थोड़ी देर हथेली से रगड़ने के बाद मैंने तर्जनी से दोनों फांको को फ़ैलाने की कोशिश की, लेकिन फेविकोल का जोड़ मात, इतनी कस के दोनों चिपकी थी,
जैसे दो बचपन की सखियाँ कस के गल बंहिया डाल के बैठी हों कोई छुड़ा न पाए, एकदम स्यामिज ट्विन्स की तरह जुडी चिपकी,
कलाई के पूरे जोर से तर्जनी को घुसाने की कोशिश की,
उईईई गुंजा जोर से चीखी,
ऊँगली का बस सिरा ही घुसा था, मैंने गोल गोल घुमाने की फिर घुसाने की कोशिश की जैसे बरमे से कोई कठोर लकड़ी में छेद कर रहा हो पर उस कच्ची कली की पंखुडिया इतनी कस के चिपकी थीं,
और मुझे कल रात की चंदा भाभी की बात याद आयी, बात तो वो गुड्डी के सिलसिले में कर रही थीं, लेकिन बात हरदम के लिए सही थी,
" देख बिना चिकनाई लगाए कभी भी नहीं करना चाहिए ,सबसे अच्छा तो देसी सरसों का तेल है, लेकिन उसको रखने का झंझट है और नहीं तो लगभग वैसा ही है वैसलीन, ( मुझे याद आया गुड्डी ने जब कल वैसलीन ली थी दूकान से तो दूकान वाला बोला, बड़ी शीशी है चलेगी तो गुड्डी मेरी ओर देख के मुस्कराते बोली एकदम बड़ी शीशी ही दे दीजिये"
और सरसों का तेल हो तो पहले अपने मूसल पे लगाओ, लेकिन उसके पहले हथेली पे और ऊँगली पे और हल्का सा नहीं बल्कि चुपड़ लो।तेल की शीशी में सीधे डाल लो ऊँगली पहचान ये है की ऊँगली से तेल टप टप चूए, और उससे फिर दोनों फांको के बीच,.... धीमे धीमे, ...तेल अपने आप जगह बनाएगा, और जैसे ही दरार थोड़ी सी फैले, ...उसमें बूँद बूँद तेल चुआ चुआ करके, जबतक ऊपर तक न छलक जाए,.... फिर हथेली से थोड़ी देर पूरी बुर रगड़ो, हलके हलके, और जब तेलिया जाए, तो फिर तेल में डूबी ऊँगली,जब तक दो पोर एक ऊँगली की न चली जाए तब तक, और उसके बाद गोल गोल घुमाओ,
फिर उसी ऊँगली के पीछे दूसरी ऊँगली एकदम चिपका के, दोनों ऊँगली एक पोर तक और हर बार पहले तेल अंदर, दो ऊँगली जब सटा सट जाने लगे तो उसके बाद सुपाड़े को एकदम तेल में चुपड़ के, तब धीरे धीरे, "
भाभी समझा भी रही थी और मेरे खूंटे पे तेल चुपड़ भी रही थी।
मुझसे नहीं रहा गया और मैं पूछ बैठा, " भाभी ने तो बताया था किआप करीब करीब छुटकी की उमर की थीं, जब आपके जीजा ने आपके साथ, तो कैसे आपकी तो एकदम, "
वो जोर से हंसी और तेल की धार सीधे सुपाड़े के छेद में और खूंटे को तेल लगे हाथों से मुठियाते बोलीं,
" देवर जी, पहली बात तो मेरे जिज्जा की महतारी आपकी महतारी की तरह गदहे के साथ नहीं सोई थीं, जीजा का आदमी ऐसा था , तोहरी तरह गदहा, घोडा छाप नहीं। दूसरी बात हमरे जीजा तोहरे तरह बुद्धू नहीं थे, खूब खेले खाये चतुर सुजान, और फिर हमार भौजी उनके साथ,...
तो पहले उनकी सलहज, हमार भौजी,... हमार बिल फैलाये के सीधे कडुवा तेल की बोतल का मुंह उसी में लगा के ढरका दीं, आधी बोतल, फिर बुरिया के ऊपर दबा के देर तक रगड़ रगड़ के जब तक तेल अंदर सोख नहीं लिया, फिर अपनी तेल में चुपड़ी दो ऊँगली,…
और हमार भौजी तो पिछली होली में ऊँगली घुसा के, नेवान कर दी थी, और फिर तो मैं खुद भी, ….
लेकिन उस दिन इतना तेल पानी करने पे भी, जब झिल्ली फटी तो भौजी कस के हमार हाथ गोड़ दोनों छान के पूरी ताकत से,तब भी मैं ऐसी उछली, …..इसलिए पहली बात,... तेल पानी चिकनाई पहले और फिर ऊँगली पूरी अंदर कर के गीली कर के,... और जीजा का तो दो ऊँगली इतना मोटा रहा होगा, तेरा तो मेरी कलाई के बराबर, जब तक दो ऊँगली अंदर कम से कम दो पोर तक न घुस जाए तोहरे अस मूसल, घुसब बहुत मुश्किल है बल्किल कोशिश भी नहीं करनी चाहिए , बिना तेल लगाए, बिना दो पोर तक ऊँगली अंदर किये "
और यहाँ तो तेल की शीशी क्या तेल की एक बूँद भी नहीं थी, और मैं समझ गया बिना तेल, चिकनाई के, लेकिन जब सामने छपन भोग की थाली हो, तो
मैं एक बार कस के फिर से चूसने चाटने में लग गया,
मैं सीधे पांचवे गियर में पहुँच गया, कस के गुंजा की दोनों फैली जांघो को और बुरी तरह फैला दिया, अंगूठे को अपने मुंह में ले जाकर अपना सारा थूक उसपे लिपटा सीधे दरार के बीच, और अब मैं बजाय अंदर घुसाने की कोशिश करने के थोड़ी सी फैली फांको के बीच उसे रगड़ने लगा, और असर तुरंत हुआ,
" जीजूउउउउ " गुंजा ने जोर की सिसकी भरी।
वो हलके हलके चूतड़ उछाल रही थी, तड़प रही थी, उह्ह्ह आआह नहीं, हाँ कर रही थी कस कस के सिसक रही थी।
मुंह में मैंने ढेर सारा थूक भरा, दोनों अंगूठों से उस कोरी कच्ची कली की पंखुड़ियों को कस के फैलाया, और सारा का सारा थूक उसी खुली दरार में, और फिर अंगूठे और तर्जनी से दोनों फांको को पकड़ के चिपका के हलके हलके आपस में रगड़ना शुरू किया और गुंजा मस्ती से पागल हो गयी,
" ओह्ह्ह, क्या कर रहे हो जीजू, उफ़ कैसा लगता है , जीजू तू, ओह्ह जीजू ओह्ह्ह "
वो टीनेजर लम्बी लम्बी साँसे भर रही थी, कुछ भी मेरा बोलना उस जादू को तोड़ना होता। और फिर मेरी जीभ और होंठों को बोलने के और भी तरीके आते थे, एक बार फिर से जीभ ने मेरी छोटी साली के योनि कपाटों को बस हलके से खोला और जो दरार दिखी उसी में सेंध लगा दी
आगे पीछे, गोल गोल, उस प्रेम गली के मुहाने पे वो बार बार दरवाजा खटखटा रही थी, और मेरी जीभ का असर, मेरी साली की चढ़ती जवानी का असर,
जैसे पाताल गंगा निकल पड़ी हों, रस का एक झरना फूट पड़ा हो, पहले बूँद बूँद, फिर एक तार की चाशनी जैसा, लसलसा, लेकिन
क्या गंध, क्या स्वाद, क्या स्पर्श, और चुसूर चुसूर मेरे होंठ अंजुरी बना के उस कुँवारी कच्ची योनि रस को सुड़कने लगे
"ओह्ह्ह बहुत अछ्छा लग रहा है जीजू क्या हो रहा है जीजू उफ़ उफ़ हाँ हाँ, "
रुक रुक के वो जवानी की चौखट पे खड़ी टीनेजर कभी सिसकती कभी रुक रुक के बोलती
मेरे दोनों हाथों ने अब पूरा जीभ के लिए छोड़ दिया था
लेकिन वो दोनों शैतान हाथ अब भी रस ले रहे थे, पीछे गुंजा के छोटे छोटे नितम्बों को छू के दबा के दबोच के, और उंगलिया जिसे बहुत लोग वर्जित समझते हैं वहां भी जांच पड़ताल कर रही थीं
और जीभ पंखुड़ियों पे एक मिनट में १०० बार, २०० बार तितली की तरह पंख फड़फड़ा रही थी, फ्लिक कर रही थी,
गुंजा पागल हो रही थी
होंठ कभी चूसते कभी चाटते, कभी ऊपर जा कर उस कोमल कली की कड़ी कड़ी क्लिट पे भी सलामी बजा देते
ओह्ह आह बस ऐसे ही, क्या करते हो , बहुत बहुउउउत अच्छाआ लग रहा है ओह्ह्ह्हह्हह ओह्ह्ह्हह
और मैं समझ गया की मेरी साली अब एकदम झड़ने के कगार पे है, मैंने चूसने की चाटने की रफ़्तार बढ़ा दी
लेकिन छेड़ने का हक़ क्या सालियों का है , सुबह का ब्रेड रोल मैं भूला नहीं था, बस जब वो वो एकदम कगार पे पहुँच गयी,
मैं रुक गया
और गालियों की झड़ी लग गयी,
"करो न जीजू, ओह्ह्ह्ह रुक क्यों गए, अच्छा लग रहा था, ओह्ह प्लीज स्साले,.... तेरी बहन की, तेरी उस एलवल वाली की,... कर ना"
मेरे होंठ उस रसीली की रसभरी फांको से अब इंच भर ऊपर थे, मैंने चिढ़ाया
" क्या करूँ गुंजा रानी, मेरी प्यारी साली "
" स्साले, जो अबतक कर रहे थे, बहन के भंड़ुवे, " गुंजा अब एकदम बनारस वाली रसीली साली बन गयी थी।
" अरे स्साली वही तो पूछ रहा हूँ, " मैंने उस रस की पुतली को फिर उकसाया,
" अपनी बहन की चूत चाट चाट के चूस चूस के जो सीख के आया हैं न वही, " और फिर से एकदम स्वीट स्वीट
" जीजू प्लीज करो न चुसो न कस कस के बहुत अच्छा लग रहा था, चूस मेरी चूत, चाट कस के "
वो अपने चूतड़ उचका के खुद अपनी रस की गुल्लक मेरे होंठों के पास ला रही थी और मैं होंठ और ऊपर,
लेकिन साली जब अपने मुंह से कह दे, उसके बाद तो, फिर से चूसना चाटना, शुरू तो मन्द्र सप्तक से हुआ, मदिर मदिर समीर से लें ऐसी चढ़ती जवानी हो तो हवा को तूफ़ान में बदलने में कितनी देरी लगती है
और अबकी जब गुंजा झड़ने के कगार पर पहंची तो मैंने घोड़े को और एड दे दी, वो हवा में उड़ने लगा और गुंजा भी,
ओह्ह्ह उफ्फ्फ उईईई नहीं हां उफ्फ्फ आअह्ह्ह अह्ह्ह्हह
जवालामुखी फूट पड़ा, मैं कस के उसे दबाये था तभी वो चूतड़ उछाल रही थी, उचक रही थी, तड़प रही, जाल में आने वाली मछली जैसे हवा में उछलती है फ़ीट भर एकदम उसी तरह
लेकिन न मेरे चूसने में कमी हुयी न चाटने में
बस जीजू बस, बस एक पल, ओह्ह ओह्ह्ह देह उसकी एकदम ढीली हो गयी थी
उसकी बात मान के मैं एक पल को रुका फिर से चूसना शुरू कर दिया और दो चार मिनट में वो फिर झड़ रही थी , उसके बाद तो ये हालत हो गयी की मैं बस उसके रस कूप पे होंठ लगाता, क्लिट पे जीभ छुआता और वो,
तीसरी बार, चौथी बार
एकदम थेथर होगयी, थकी, निढाल और तब मैं रुका और बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही बेसुध, फिर मैं ही उठा और कस के उसे अपनी गोद में बिठा के चूम लिया, और बदले में क्या उस लड़की ने चूमा मेरे होंठों को, चाट चाट के चूस के, थकान से सपनों से लदी उसकी पलकें अभी भी बंद थी, लेकिन जब बड़ी बड़ी आँखे खोल के उस खंजननयनी ने देखा तो उसे अहसास हुआ,
जो वो चूस चाट रही थी उसका अपना योनि रस था,
वो एकदम से शर्मा गयी, मेरे पीठ पे मुक्के से मारने लगी, ' गंदे, बदमाश "
और मैंने उसे कस के भींच लिया और कान में पूछा, " हे अच्छा लगा "
और अबकी वो और जोर से शर्मा गयी, मेरी बाहों में कस के दुबक गयी। और फिर जवाब उसके एक मीठे वाले चुम्बन ने दिया,
कुछ देर तक हम दोनों ऐसे कस के चिपके, एक दूसरे को बाहों में भींचे रहे, और गुंजा को अपने नितम्बो में धंस रहे खूंटे का अहसास हुआ वो अभी भी जस का तस खड़ा,कड़ा, और गुंजा ने मेरे कानो में धीरे से बोला,
" सॉरी जीजू "
समझ तो मैं रहा था लेकिन मैं उसे हड़काते बोला, " साली, गाली देती हैं, सॉरी नहीं बोलती, न जीजा न साली "
" वो तेरा, : कस के बिन बोले अपने चूतड़ों से मेरे खड़े मूसल को दबाते बिन बोले उसने इशारा किया
" इत्ता मजा तो मिला, तेरे भीगे भीगे मीठे मीठे होंठों का शहद से मुंह का "
मैं बोला और गुंजा और कुछ बोलती उसके पहले मेरे होंठों ने उसके होंठ सील किये और जीभ ने मेरी साली के मुंह में सेंध लगा ली। कुछ देर पहले जो सुख मेरे लिंग को मिल रहा था अब वही मेरे जीभ को मिल रहा था, चूसे जाने का,
अब न गुंजा बोल सकती थी न मैं
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" गुंजा, " बड़ी जोर से आवाज गूंजी।
उसकी सहेली.... वही जो सुबह उसे बुलाने आयी थी, मोहल्ले भर में नहीं तो चार पांच घरों में जरूर सुनाई पड़ा होगा,
और उछल के गुंजा मेरी गोद से खड़ी हो गयी,
' स्साली कमीनी छिनार '
बुदबुदाते हुए झट से मेरे तौलिये के ऊपर आराम फरमा रही अपनी स्कर्ट को चढ़ा लिया और फिर स्कूल वाली टॉप को, और मैंने भी तौलिया बाँध लिया।
और मेरी ओर मुड़ के उस कामिनी ने एक झट से चुम्मी ली, और बड़ी बड़ी आँखे झुका के बोली,
" सॉरी जीजू मैं भूल ही गयी थी, मेरी एक एक्स्ट्रा क्लास है थोड़ी देर में, और उसमे जाना,... "
तबतक गुड्डी धुले हुए कपड़ो का गट्ठर लेके बाथरूम से निकल आयी थी, और गुंजा की बात सुन के बोली, " क्यों मोहिनी मैडम ""
और दोनों सहेलियों की तरह खिलखिलाई उस मैडम के नाम पर, गुड्डी चू दे बालिका विद्यालय की पुरानी खिलाडन, गुंजा की दो साल सीनियर,
बालिका विद्यालय की उन दोनों बालिकों के वार्तालाप से ये पता चला की,
मोहिनी मैडम कालेज के जो मारवाड़ी मालिक हैं उन के लड़के से फंसी है, और ज्यादातर टाइम उस की बाइक के पीछे चिपकी नजर आती हैं, क्लास वलास तो कम ही लेती हैं लेकिन स्टूडेंट्स उन से बहुत खुश रहती हैं, क्योंकि इम्तहान के पहले वो एक क्लास लेती हैं जिसमें दस वेरी इम्पोर्टेन्ट क्वेशन बताये जाते हैं, आठ शर्तिया आते हैं और करने पांच ही होते हैं। पर्चे मोहिनी मैडम के ताऊ की प्रेस में ही छपते हैं और उस मारवाड़ी मालिक के लड़के की कृपा से हर बार ठेका उन्ही को मिलता है।
और गुंजा ने आज की क्लास का स्पेशल अट्रैक्शन ये बताया की मोहिनी मैडम आज सिर्फ अपना सब्जेक्ट नहीं बल्कि तीन तीन पेपर, मैथ, इंग्लिश और सोसल, तीनो के ' इम्पोर्टेन्ट सवाल ' बताएंगी और मॉडल आंसर भी वो जिराक्स करा के लायी है तो वो भी, हाँ अगर आज उन की क्लास में जो नहीं गया, वो कॉपी में कुछ भी लिख के आये, उस का फेल होना पक्का,
तबतक गुंजा का नाम फिर जोर से लेकर वो सहेली चिल्लाई, और बोली, मैं ऊपर आ रही हूँ क्या कर रही है कमीनी,
" आती हूँ, यहाँ होली चल रही है अगर आयी तो जा नहीं पाएगी सोच ले " गुंजा ने जबरदस्त बहाना बनाया
लेकिन गुंजा के बाद एक और आवाज नीचे से पुकारने की आयी,
" गुड्डी, गुड्डी " और ये आवाज तो बुलंद थी ही मैं सबसे अलग, दूबे भाभी की। और गुड्डी धड़धड़ा के नीचे,
" स्साली छिनार, क्लास में अभी आधा घंटा है, सुबह एक बार चुदवा मन नहीं भरा तो इस समय भी "
गुंजा अपनी सहेली के बारे में बोल रही थी फिर उसने राज खोला की एक यार है उसका तो गुंजा को पंद्रह मिनट चौकीदारी करनी पड़ेगी,
" पन्दरह मिनट में हो जाता है,... " अचरज से मैं बोला। और गुंजा जोर से खिलखिलाई
" जीजू मैं ज्यादा बोल रही हूँ, दस मिनट, पांच मिनट कपडा उतारने और पहनने में, दो मिनट में वो मुठिया के खड़ा करती है, फिर मुश्किल से तीन मिनट। सुबह वाले को तो उसने मुंह में लिया था, मैं बाहर घडी देख रही थी, कुल दो मिनट बीस सेकेण्ड चूसा होगा, और मलाई बाहर, " हंस के मेरी छोटी प्यारी दुलारी साली बोली।
तब तक गुड्डी के वापस सीढ़ी पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी और गुंजा ने मेरी टॉवेल को उठा के अभी भी तन्नाए सुपाड़े पे एक कस के चुम्मी ली, और उससे और मुझसे दोनों से बोली
" जीजू, चुदुँगी तो तुझसे ही, ,,,आज नहीं हुआ तो, " और उसकी बात मैंने पूरी की
" जब होली के बाद लौटूंगा न तो सबसे पहले तेरी चुनमुनिया ही फाड़ूंगा " और मन में कसम खायी आयी से जेब में एक छोटी वैसलीन की शीशी कुछ न हो तो बोरोलीन की ट्यूब ही सही,
" एकदम " वो चंद्रमुखी खिल उठी और खड़ी हो के मुझे बाँहों में बाँध के जोर से एक चुम्मी ली।
तबतक गुड्डी आ गयी और मुझसे बोली " जल्दी नीचे जाओ, दूबे भाभी का बुलावा है, संध्या भाभी तेरे रंग छुड़ायेंगी। "
गुंजा सीढ़ी पर नीचे, और मैंने बोला" हे मैं भी आता हूँ "
" नहीं नहीं जीजू, " मना करती वो सुनयना बोली,
" वो कमीनी एक बार देख लेगी न और अगर मेरी क्लास की सहेलियों को खबर हो गयी तो फिर सब की सब, ....कोई नहीं छोड़ने वाली आपको, एक बार मैं निकल जाऊं "
और थोड़ी देर में गुंजा की नीचे से आवाज आयी, " मम्मी, मेरी एक्स्ट्रा क्लास है मैं जा रही हूँ , तिझरिया में लौट आउंगी "
बाथरूम के अंदर से चंदा भाभी की आवाज आयी ठीक है
और मैं भी सीढ़ी पर नीचे,
एक बाथरूम का दरवाजा आधा खुला था, संध्या भाभी झाँक रही थीं, ....सीढ़ी की ओर टकटकी लगाए।
आपकी कहानी में पाँच दिन की छुट्टी हमेशा कहर ढाती हैंमिर्ची
“चल मेरे घोड़े चने के खेत में
चने के खेत में बोई थी घूंची, आनंद की बहना को गुड्डी को ले गया मोची,
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तब तक गुड्डी माल पुआ लेकर आई- “एकदम तुम्हारे बहन के गाल जैसा है…”
चन्दा भाभी वहीं से बोली- “कचकचोवा…”
मैंने गुड्डी से कहा ऐसे नहीं तो वो नासमझ पूछ बैठी कैसे। तो मैंने खींचकर उसे गोद में बैठा लिया ओर उसके होंठ पे हाथ लगाकर बोला ऐसे। वो ठसके से मेरी गोद में बैठकर मालपुआ अपने होंठों के बीच लेकर मुझे दे रही थी ओर जब मैंने उसके होंठों से होंठ सटाए तो वो नदीदी खुद गड़प कर गई।
चल तुझे अभी घोंटाता हूँ कहकर मैंने उसके होंठ काट लिए।
उय्यीई, उसने हल्की सी सिसकी ली ओर मुझे छेड़ा-
“हे है ना मेरी नामवाली के गाल जैसा। कभी काटा तो होगा…”
“ना…” मैंने खाते हुए बोला।
“झूठे। चूमा चाटा तो होगा…”
“ना…”
“ये तो बहुत नाइंसाफी है। चल अबकी मैं होली में तो रहूँगी ना। उसका हाथ पैर बाँधकर सब कुछ कटवाऊँगी…”
और अबकी उसने मालपुआ अपने होंठों से पास करते, मेरे होंठ काट लिए।
मुझे कुछ-कुछ हो रहा था इत्ती मस्ती खुमारी सी लग रही थी।
तभी चन्दा भाभी की आवाज आई- “अरे गुड्डी और मालपुआ ले जाओ ओर हाँ अपनी नामवाली के यार से पूछना की अब नमक तो ठीक है ना…”
“भाभी नमक तो ठीक है लेकिन मिर्ची थोड़ी कम है…” मैंने खुद जवाब दिया।
“तुमने अच्छे घर दावत दी…”
गुड्डी मुझसे बोलते, मुश्कुराते, मुझे दिखाकर अपने चूतड़ मटकाते किचेन की ओर गई ओर सच। अबकी चन्दा भाभी की आवाज खूब ठसके से जोरदार।
“चल मेरे घोड़े चने के खेत में चने के खेत में,
चने के खेत में बोई थी घूंची, आनंद की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मोची,
दबावे दोनों चूची चने के खेत में। चने के खेत में,
चने के खेत में पड़ी थी राई। चने के खेत में।
आनंद साले की बहना को गुड्डी छिनार को ले गया मेरा भाई,
कसकर करे चुदाई चने के खेत में, चने के खेत में।
और अब भाभी गुड्डी की मम्मी जोश में आ गयी और अब वो खूब टनकदार आवाज में गा रही थीं और चंदा भाभी उनका साथ दे रही थीं,
चने के खेत में, हो चने के खेत में पड़ा था पगहा, चने के खेत में पड़ा था पगहा
गुड्डी रंडी को, गुड्डी भाई चोद को ले गया, अरे ले गया, गदहा चने के खेत में
अरे चोद रहा , अरे आनंद भैया की बहिनी को चोद रहा गदहा चने के खेत में
अरे चने के खेत में चने के खेत में पड़ा था रोड़ा,
आनंद भैया की अम्मा को ले गया घोड़ा, चने के खेत में, चने के खेत में।
आनंद भैया की महतारी को ले गया घोड़ा, चने के खेत में, चने के खेत में।
घोंट रही लौड़ा, चने के खेत में।
अरे आनंद भैया की महतारी घोंट रही लौड़ा, चने के खेत में।
“तो क्या गदहे घोड़े से भी?”
चन्दा भाभी ने वहीं से मुझसे पूछा- “बड़ी ताकत है तोहरी बहन महतारी में भैया …”
और यहाँ गुड्डी पूरी तरह पाला पार कर गई थी। बैठी मेरे पास थी लेकिन साथ। वहीं से उसने और आग लगाईं।
“अरे उसकी गली के बाहर दस बारह गदहे हरदम बंधे रहते हैं ना विश्वास हो तो उनके भैया बैठे हैं पूछ लीजिये…”
“क्यों?” चन्दा भाभी ने हँसकर पूछा और छेड़ा “तब तो तुम्हारा प्लान सही था उसको दालमंडी लाने का। दिन रात चलती उसको मजा मिलता और तुमको पैसा। क्यों है ना?”
तब तक उस दुष्ट ने दही बड़े में ढेर सारी मिर्चे डालकर मेरी मुँह में डाल दी। मैं चन्दा भाभी की बात सुनने में लागा था। इत्ती जोर की मिर्च लगी की मैं बड़ी जोर से चिल्लाया पानी।
“अरे एक गाने में ही मिर्च लग गई क्या?” हँसकर चंदा भाभी ने पूछा।
“ऊपर लगी की नीचे?” भाभी क्यों पीछे रहती।
“अरे साफ-साफ क्यों नहीं पूछती की गाण्ड में मिर्च तो नहीं लग गई…” चन्दा भाभी भी ना।
पानी तो था लेकिन उस रस नयनी के हाथ में ओर वह कभी उसे अपने गोरे गालों पे लगाकर मुझे ललचाती कभी अपने किशोर उभारों पे। मुझसे दूर खड़ी-
“चाहिए क्या?” आँखें नचाकर हल्के से वो बोली।
“ऐसे मत देना सब कुछ कबूल करवा लेना पहले…” चन्दा भाभी वहीं से बोली।
“जरा गंगाजी वाला तो सुना दो इनको…” भाभी ने चंदा भाभी से कहा।
गुड्डी अब पास आकर बैठ गई थी लेकिन ग्लास वाला हाथ अभी भी दूर था- “बड़े प्यासे हो…” वो ललचा रही थी, तड़पा रही थी।
“हाँ…” मैंने उसी तरह हल्के से कहा।
“किस चीज की प्यास लगी है?” गुड्डी ने आँख नचाकर ग्लास अपने सीने से लगाकर, आती हुई अमिया को दबाकर ललचाते पूछा।
“तुम्हारी…”
उसने ग्लास से एक बड़ा सा घूँट लिया। और ग्लास अपने हाथ से मेरे होंठों से लगा दिया। हँसकर वो बोली, जूठा पीने से प्यार बढ़ता है, और मेरे हाथ से ग्लास लेकर बाकी बचा पानी पी गई।
“कब बुझेगी प्यास?” मैंने बेसब्र होकर उसके कानों में हल्के से पूछा।
“बहुत जल्द। कल। अभी मेरी पांच दिन की छुट्टी चल रही है। कल आखिरी दिन है…” और वो ग्लास लेकर बाहर चली गई।
मुझे आशा भी है विश्वास भी है की अब आप निरंतर इस कहानी का साथ देते रहेंगे और अपनी टिप्पणियों से इसे ऊर्जा और उत्साह प्रदान करते रहेंगे5 महीने 20 दिन बाद आपकी कहानी पढ़ना शुरू किया है, कोशिश है कि निरंतर पढ़ने का समय मिल सके
होली के रंग उनके और इस फागुन में सब दिखेंगेफागुन की होली की कोमल सरीखी जीजा साल मस्तियाँ
Thanks so much for such nice comments.Ufff Komal ji kya mast plot rachit ho aap. Bilkul aisa lagta hai ki mere sath hi ho raha hai ye sab.
superb Komaji. Kitna erotic andaman me light ho aap. Mama ki intaha ho gai.
एकदम ये स्कूल की होली बहुत सी यादों को सामने ला कर के खड़ी कर देती है।School ki holi ka Salam hi alag hai. Teenage me masti hoti hi hai.
Bas do din baad sunday hai main monday ko aap ke comment ka wait karungiCongratulations on this "super turbo charged" update...keeps on going.. and going...
Lagta hai padhne ke liye 1 din chhutti lena padega
komaalrani