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Erotica फागुन के दिन चार

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घुस गया, धंस गया - संध्या भाभी








" अरे गुड्डी की मम्मी ने बोला था कम से कम सात साढ़े सात इंच का, ज्यादा भी हो सकता है लेकिन हँसते हुए वो ये भी बोलीं की तुम लजाते बहुत हो, गौने की दुल्हिन झूठ, और अब मैं कल बताउंगी उनको की पहली बार उनका अंदाज गलत है , पूरे बित्ते भर का है, एक दो सूत ज्यादा ही होगा। " चंदा भाभी हँसते बोली।



लेकिन संध्या भाभी की हरकत से मैं फ्लैश बैक से वापस आ गया,

कम से कम १०० ग्राम कडुवा तेल और अपनी दोनों हथेलियों में लगा के सीधे मेरे खूंटे के बेस से लेकर एकदम ऊपर तक चार पांच बार, तेल न सिर्फ लगाया बल्कि एकदम सुखा दिया।

मुझे लगा की सब तेल वो मोटे सुपाड़े में लगाएंगी , आखिर घुसेगा तो वही पर उन्होंने सारा हथेली का तेल बाकी चर्मदण्ड पे, और फिर उन्होंने सुपाड़े को पकड़ के सीधे बोतल से बूँद बूँद कर के, जितना उनकी दोनों हथेली पे आया था उतना सिर्फ वहीँ टपका दिया और फिर मारे बदमाशी के मेरी आँखों में शरारत से देखते हुए, चिढ़ाते छेड़ते मेरे मांसल सुपाड़े को कस के बाएं हाथ से दबा दिया और उस बेचारे की एकलौती आँख खुल गयी बस वहीँ बूँद बूँद देसी कडुआ तेल, अंदर तक टपका टपका के,


जैसे ही तेल अंदर गया, पहले सुरसुराहट फिर जोर से छरछराने लगा और भौजी खिलखिलाने लगी,

फिर सुपाड़े पे लगा तेल फैला के और सीधे बोतल से और तेल, एकदम चुपड़ के, तेल में भीगा नहीं डूबा रही थी और भौजाइयों के साथ कल से मैंने सीखा मजा तो मिलता है, ज्ञान भी और वो खास तौर से गुड्डी के बारे में, गुड्डी उनकी भी तो छोटी बहन की ही तरह से,


" समझ लो, आज रात को तो तुम मेरी छोटी बहन की लोगे जरूर, लेकिन इसी तरह से पहले कडुवा तेल,... और वो तो एकदम कोरी है, तेरा तो इतना लम्बा मोटा है, जिसका छोटी ऊँगली टाइप केंचुआ स्टाइल का होता है, कुँवारी कोरी में उसका भी बिना तेल या चिकनाई लगाया इन्ही घुसता। वैसे मुझे तो सबसे अच्छा कडुवा तेल ही लगता है, कट पिटजाए अंदर छिल जाए तो उसका भी इलाज,


लेकिन बहुत लोग नहीं इस्तेमाल करते की दाग पड़ जाएगा, तो वेस्लीन,। लेकिन अगर इस मोटे मूसल के साथ वैसलीन भी लगाना हैं न तो कम से कम आधी शीशी खर्च करना और फिर अपनी ऊँगली में लगा के वैसलीन एक ऊँगली दो पोर तक अंदर उसके बाद ही,

वैसे एक बात और अगर कभी कंडोम लगाने की जरूरत पड़े तो तेल या वैसलीन नहीं उसकी जेली अलग आती है, जेल होते है लेकिन कंडोम तो तुम कभी इस्तेमाल करना मत। अरे इतना मस्त मुसल, जब तक चमड़े की चमड़े से रगड़ाई न हो, क्या मजा और जिस लड़की को बचाना होगा वो खुद,... इतनी तो गोली आयी है, बल्कि इस्तेमाल के बाद वाली भी, चुदने के २४ घंटे के अंदर खा लो तो पेट फूलने का कोई खतरा नहीं, और अभी तो किसी दर्जा आठ वाली का भी स्कूल का बस्ता खोल के देखोगे तो सबसे ऊपर गोली रखी मिलेगी। "



भौजी तेल पानी करके मुझे तैयार कर रही थीं, लेकिन मुझे गूंजा याद आ रही थी,





मन उसका भी कर रहा था, मेरा भी बहुत, चूस के तो मैंने उसे मस्त झाड़ दिया था लेकिन पेलने की बात और होती है। पर बिना तेल या चिकनाई के मैं समझ गया था एकदम पॉसिबिल नहीं था और वहां कोई जुगाड़ था नहीं।



भौजी ने अपनी हथेली का तेल फिर अपनी फांको पे लगाया और एक हाथ से दोनों फांके फैला के सीधे शीशी उसमें घुसेड़ के उलट ली। तेल अंदर।


मैं सोच रहा था करेंगे कैसे,


लेकिन भौजी के रहते देवर को क्या परेशानी,

वो खुद एक पाईप पकड़ के निहुर गयीं और कल चंदा भाभी को मैंने कुतिया बना के एक राउंड अच्छी तरह से चोदा था तो कोई पहली बार तो था नहीं।


मैंने हलके से संध्या भौजी के मोटे मस्त चूतड़ को हलके हलके सहलाया और वो सिहर गयीं एकदम गरमा गयीं थी वो।

चारो उँगलियों से मैंने उनके निहुरे, दोनों पैरों के बीच, फांको को सहलाया, और मेरी उंगलियां भी तेल से चुपड़ गयीं, बस थोड़ी देर तेल से लगी उँगलियाँ उनकी तेल में डूबी बुरिया पे मैं रगड़ता रहा।

संध्या भौजी सिसिया रही थीं, कातिक की कुतिया की तरह गरमा रही थीं। अपनी फैली जाँघे उन्होंने और फैला ली और अब दोनों पावरोटी की तरह फूली फांके साफ़ साफ़ दिख रही थीं।


" हे करो न "

मुंह मेरी ओर कर के वो बोलीं और जैसे उन्हें लगा मैं नौसिखिया शायद छेद न ढूंढ पा रहा हूँ तो हाथ से खुद पकड़ के अपने छेद पे, सटा दिया,

नौसिखिया तो मैं था, जिंदगी में दूसरी बार, लेकिन थ्योरी में तो बहुत पढ़ा लिखा और १०० में १०० मिलते, और कल चंदा भाभी ने रात भर में प्रैक्टिकल का भी कोर्स पूरा करा दिया लकिन ये भी सिखा दिया की थोड़ा तड़पाना, और मैंने मोटे तगड़े खूंटे को भौजी की फांको पे पहले थोड़ी देर रगड़ा, वो एकदम एक तार की चाशनी से भीगा, मुझे कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ी, भौजी ने खुद ही अपनी फांको को फैला के मोटा सुपाड़ा फंसा लिया, और तेल से तो एकदम चिकना हो गया था, तो बस ,

एक धक्का पूरी ताकत से, और

गप्पाक


गप्प से भौजी की भूखी बुलबुल ने सुपाड़ा घोंट लिया, पूरा नहीं लेकिन आधा से ज्यादा ही।

जैसे मछली को तैरना नहीं सिखाना नहीं पड़ता, लड़कियों को चुदवाना नहीं सिखाना पड़ता वैसे ही लड़को को भी चोदना भी, तो मैंने भी संध्या भौजी की पतली कटीली कमरिया कस के पकड़ के ठेलना, पेलना शुरू कर दिया। एकदम सट के रगड़ता दरेरता बड़ी मुश्किल से घुस रहा था।

मान गया मैं भौजी को, काम से कम एक पाव ( २५० ग्राम ) कडुवा तेल उन्होंने लगाया था तब जा के, ....इतना अच्छा लग रहा था की,

मारे जोश के कस के मैंने संध्या भौजी की कमर पकड़ी और हचक के जितनी ताकत देह में थी सब लगा के पेल दिया और अबकी पूरा सुपाड़ा अंदर था, और भौजी मारे मस्ती के सिहर उठीं।



" उयी ईई ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ , हाँ हाँ ऐसे ही, ओह्ह्ह उफ्फ्फ उईईईईई " भौजी सिसक रही थीं, कस के पाइप को पकडे घोंट रही थीं।

कुछ देर तक मैं भौजी की कमर पकड़ के ऐसे ही पेलता रहा, धकेलता रहा और थोड़ी देर में आधा चर्मदण्ड अंदर, और फिर मैंने पल भर के लिए साँस ली, और जिस तरह से भौजी ने मुड़ के मुझे देखा मैं निहाल हो गया।


मुझे देखते हुए मस्ती से वो अपने भरे भरे लाल गुलाबी रसीले होंठ दांतों से काट रही थीं, आँखे आधी मुंदी हुयी और सिसक रही थीं। और मेरी ओर देख के हलके से मुस्करा दीं, ऐसी मुस्कराहट जिसमें दर्द भी हो, ख़ुशी भी हो और मस्ती भी हो।

जैसे बरसों के सूखे के बाद खेत में सावन जम कर बरस रहा हो और खेत निहाल हो गया, अंचरा फैला के एक एक बूँद बटोर रहा हो ,



भौजी के चूतड़ के साथ उनकी चूँचिया भी जबरदंग थीं आज ३० नंबर ( गुंजा ) से लेकर ३६ +++ ( दूबे भाभी ) तक का रस मिला लेकिन जो बात उस ३४ नंबर में थी, और अब मेरा एक हाथ संध्या भाभी की कमर पे था और दूसरा उनकी झुके हुए जोबन पे, और कस के मैंने निचोड़ दिया।

" उयी, उईईई नहीं ओह्ह्ह " कस के वो चीख उठीं लेकिन मरदों के लिए तो यही चीखें संगीत का काम करती हैं और ऐसी मस्त चूँची हाथ में आने के बाद कौन छोड़ता है। दबाया तो मैंने उनकी चूँची होली खेलते समय भी खूब था लेकिन अभी अलग मजा आ रहा, लंड आधा अंदर टाइट कसी कसी बुर में घुसा और साथ में जोबन का मर्दन, और मैंने दुबारा दबाते हुए और अंदर पेलना शुरू किया।



संध्या भौजी हर धक्के के साथ चीख रही थीं, सिसक रही थीं लेकिन साथ में चूतड़ भी कस के हिला रही थीं जैसे कोई सर हिला हिला के कह रहा हो और, और ,



और मैं कौन रुकने वाला था,... सुबह से कितनी बार कौर मुंह में जाते जाते बचा था और जब जा रहा था तो मैं पूरे स्वाद से मजे ले ले के खाने वाला था और मैंने धक्के मारने रोक दिए।

छह इंच से ज्यादा घुस गया था लेकिन अभी भी करीब एक तिहाई बाहर था, और ये नहीं की मैंने मजे लेना बंद कर दिया, अब मेरे दोनों हाथ भौजाई की रसीली चूँचियों को दबा रहे थे, निचोड़ रहे थे, कभी मैं निप्स को पिंच कर देता तो कभी हलके से नाख़ून गड़ा देता,

और संध्या भौजी कभी चीखतीं, कभी सिसकतीं, कभी प्यासी निगाहों से मुड़ मुड़ के मेरी ओर देखती लेकिन मैं जान बुझ के उन्हें तड़पा रहा था और कभी कभी उनकी पीठ सहला रहा था।


बस एक बार हलके से मैंने संध्या भाभी की कमर सहलाते हुए हलके से उन्हें पकड़ के अपनी ओर जरा सा खींचा और वो इशारा समझ गयीं।

एक बार फिर उन्होंने मेरी ओर मुस्करा के देखा और अब जब मैंने उन्हें हलके से उन्हें अपने औजार के ऊपर खींचा, तो मुझसे दुगने जोर से उन्होंने पीछे की ओर धक्का दिया बस दो चार धक्के देवर भाभी के बाद आलमोस्ट पूरा अंदर था।

लेकिन अब मेरा मन भी जोर जोर से कर रहा था और मैंने एक बार फिर से कमान अपने हाथ में ले ली, आलमोस्ट पूरा बाहर निकल के बस जितनी ताकत थी, उससे भी ज्यादा जोश से, दो चार धक्के, और चौथे धक्के में मेरा हथोड़ा छाप मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भौजी की बच्चेदानी में पूरी ताकत से, और


संध्या भाभी काँप गयी।


उनकी पूरी देह सिहर रही थी, बुर दुबडुबा रही थी, सिसक रही थीं और मैं समझ गया की अब वो बस झड़ने के कगार पे हैं और मैं रुक गया, बस हलके हलके कभी उनकी पीठ सहला रहा था, कभी झुक के चूम रहा था और संध्या भाभी शिकायत से बोलीं , बहुत हलके
Finally sandhya bhabhi ko moka mil hi gaye. Bahut pyasi hai, aaj tript ho jayengi
 

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बेटी,... महतारी दोनों



" ओह्ह नहीं , रुक, रुक जा, ओह्ह निकाल ले, उफ्फ्फ नहीं नहीं, लगता है , उईईईईई उईईईईई "

दर्द से उनके देह सिहर रही थी लेकिन अभी तो दर्द की शुरआत थी, झुक के मैंने कचकचा के भौजी की चूँची काट ली और दांत गड़ाए रहा

भौजी सिसक रही थीं,

कुछ देर तक काटने के बाद जब दांत हटाए, तो फिर वहीँ चूसने लगा और फिर दुबारा, होली का रंग तो भौजी छुड़ा लेंगी लेकिन ये निशान जल्दी नहीं जाने लायक और भौजी गरियाने लगीं

" अरे बहनचोद, ये क्या किया, ननद मेरी चिढ़ाएगी, बोलेगी, भैया नहीं थे तो किससे मायके में कटवाय के आयी हो ?"

खूंटा एकदम जड़ तक धंसाए, मैंने भौजी को छेड़ा,


" अरे तो क्या हुआ बोल दीजियेगा, मेरे नन्दोई मिल गए थे, अब नन्दोई को कोई ना थोड़े करता है और बहुत गर्माएंगी, तो मै होली के बाद आऊंगा तो मिलवा दीजियेगा, उनको भी मोटे मूसल का मजा दे दूंगा,"

भौजी खुश नहीं महा खुश, लेकिन बोलीं,

अरे उनकी तो उमर, फिर कुछ सोच के बोलीं,

"लेकिन उसकी बेटी एकदम गरम माल है, गुड्डी की सबसे छोटी बहन, छुटकी की उमर की है, उसी के क्लास में पढ़ती है मस्त चोदने लायक, "


मेरी आँखों के सामने छुटकी तस्वीर जो सुबह वीडियो काल में देखी थी वो घूम गयी





और मारे जोश के मैंने मोटा मसल आधे से ज्यादा निकाला और हचक के चोदते हुए भौजी से बोला,

" अरे भौजी, तोहार हुकुम हो तो बेटी महतारी दोनों को एक साथ चोद दूंगा "


और अबकी नान स्टाप चुदाई, जैसे धुनिया रुई धुनता है बस थोड़ी देर में भौजी झड़ने के कगार पे पहुँच गयी लेकिन अबकी मैं रुका नहीं और रफ़्तार बढ़ी दी,

" ओह्ह उन्हह उफ़ उफ़ " भौजी की साँसे लम्बी होती गयीं, बिल दुबदुबा रही थी, और झड़ते समय उनकी प्यारी हसीना अपने बुर को कस कस के निचोड़ रही थी, झड़ते समय संध्या भौजी की हालत खराब थी। लग रहा था पूरी देह का रस किसी ने निचोड़ लिया है, सब ताकत ख़तम हो गयी है, देह एकदम ढीली पड़ती जा रही थी, आँखे बंद हो रही थी, हलकी हलकी सिसकियाँ और फिर एकदम से, उनकी देह स्थिर,....



लेकिन मैं इतनी जल्दी मैदान नहीं छोड़ने वाला था,
हाँ मैंने स्पीड कम कर दी, फिर रुक गया।



चार मिनट तक भौजी एकदम कांपती रही, फिर मुड़ के जो मेरी ओर से प्यार से देखा फिर लजा गयीं, और मैंने कस के उन्हें पकड़ के गालों से लेकर नितम्बों तक चूम लिया।




खूंटा मेरा अभी भी जड़ तक धंसा था और भौजी की बिलिया अच्छी तरह फैली कस के उसे प्यार से दबोची थी।

भौजी अभी जस्ट झड़ी थीं, इसलिए मैं धक्के नहीं लगा रहा था लेकिन मेरे होंठ, उँगलियाँ भौजी को फिर से गरमा रहे थे।


कभी उँगलियाँ उनकी रेशमी जाँघों को सहलातीं और चूतड़ पे चिकोटी काट लेतीं, तो कभी मेरे होंठ उड़ते भौंरे की तरह उनके गालों पे बैठ के रस चूस लेता तो कभी मेरी जीभ, कंधे से लेकर नितम्बो तक उनकी रीढ़ की हड्डी के ऊपर से, गहरी चिकनी पीठ पर एक गीली सी लाइन खींच देती। हाथ भी अब एक बस खुल के, कस के जुबना का रस ले रहे थे और भौजी गरमाने लगीं, हीटर की मोटी रॉड तो अंदर तक बालिश भर धंसी ही थी।

संध्या भाभी ने निहुरे निहुरे एक बार मुड़ के मेरी ओर फिर से देखा, आँखों में प्यास, उनकी मांग में भरभराता खूब गहरा सिन्दूर, माथे पर बड़ी सी बिंदी, गले में लटकता मंगल सूत्र, सुहागिन के निशान देख के एक बार मैं एकदम जोश में भर गया और कस के उस सिन्दूर को पहले चूमा, फिर बिंदी को फिर होंठों पे कस के चुम्मा लेके हलके हलके, मोटा सांप बिल से सरकते हुए धीरे धीरे, हाँ चूँची कस कस के रगड़ी जा रही थी,


लेकिन मैंने आलमोस्ट सुपाड़ा बाहर तक निकाल के रोक दिया, और भौजी की हालत ख़राब



लेकिन बेचारा मेरा मोटू भी तो कितनी बार ताल पोखरी के पास सुबह से जा के बिना डुबकी लगाए, रीत, संध्या भौजी और सबसे बढ़कर वो कोरी गुंजा, सिर्फ जरा सा सरसों के तेल न होने से बिन चुदे रह गयी, वो बेचारी तो मुझसे भी ज्यादा गर्मायी थी,

" हे डालो न " शिकायत के स्वर में भौजी की हलकी सी आवाज आयी।

" क्या डालूं, भौजी, " मैंने भी उनके कान के लोब्स को हलके से काटते पूछा।



लेकिन मैं भूल गया था की संध्या भौजी असली बनारस वाली हैं, पलट के उन्होने जवाब दिया,


" स्साले मादरचोद, जो अपनी महतारी के भोंसड़ा में डालते हो, वही, ....की उनसे भी पूछते हो, भोंसडे में डालूं की गांड में, पेल साले तेरी महतारी के भोंसडे में, " और फिर जो गालियों की गंगा बही,




भौजी को मालूम था मेरा एक्सिलरेटर कब और कैसे दबाना चाहिए, और बस उनकी महतारी की गारी का जवाब मैंने हचक के पेल के दिया और बोला,

" भौजी, आज तोहार बुर क भोंसड़ा न बना दिया तो कहना, और लौट के आऊंगा तो तोहरी ननद और ओकर बिटिया जो आप कह रही थीं गुड्डी की छुटकी बहिनिया के बराबर है उसका भी, लीजिये सम्हालिए " मैंने कस के धक्का मारते हुए बोला,

" ओह्ह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ उईईई उईईई नहीं, ओह्ह आह्ह्ह्हह रुक स्साले, एक मिनट, ओह फट जायेगी, इतना जोर से नहीं "


भौजी चीख रही थीं, सुबक रही थी और इतनी जोर जोर से की बगल के बाथरूम में रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी तो सुन ही रहीं थीं , संध्या भौजी की ये चीखें पक्का ऊपर गुड्डी को भी सुनाई पड़ रही होंगी।




लेकिन आवाजें बगल के बाथरूम से भी आ रही थीं, रीत की चंदा भाभी और दूबे भाभी की और वो भी ऐसे ही तेज तेज



जब मैं संध्या भाभी को रगड़ रगड़ के चोद रहा था वो जोर जोर से चीख रही थीं, महतारी को गरिया रही थीं बगल वाले बाथरूम से रीत की भी आवाज आ रही थी,
Sandhya bhabhi ki cheekhen dard se jyada maje ki hai, or cheekh cheekh kar sabko pta rahi hai ki sabse pehle unki pyas bhuj rahi hai, bakiyon ka number bad me
 

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सिसकियाँ और चीखें






भौजी चीख रही थीं, सुबक रही थी और इतनी जोर जोर से की बगल के बाथरूम में रीत, चंदा भाभी और दूबे भाभी तो सुन ही रहीं थीं ,

संध्या भौजी की ये चीखें पक्का ऊपर गुड्डी को भी सुनाई पड़ रही होंगी।

लेकिन आवाजें बगल के बाथरूम से भी आ रही थीं, रीत की चंदा भाभी और दूबे भाभी की और वो भी ऐसे ही तेज तेज,

जब मैं संध्या भाभी को रगड़ रगड़ के चोद रहा था वो जोर जोर से चीख रही थीं, महतारी को गरिया रही थीं बगल वाले बाथरूम से रीत की भी आवाज आ रही थी,

" चंदा भाभी प्लीज, चूसो न, झाड़ दो न, सुबह से बार बार, मेरी अच्छी भौजी, मेरी प्यारी भौजी, तोहार हाथ जोड़ रही हूँ, गोड़ पड़ रही हूँ "

और चंदा भाभी की ओर से दूबे भाभी की आवाज आयी, " अरे झाड़ तो ये देगी मेरी देवरान, लेकिन तुझको भी इसकी चूस चूस के झाड़नी पड़ेगी, "

" एकदम भौजी, मंजूर सब मंजूर " सिसकते हुए रीत की आवाज आ रही थी।


" सोच ले, जो जो चुसवाऊँगी, चटवाउंगी, सब चाटना पडेगा, जीभ अंदर डाल के, फिर अगर पीछे हटी न तो, " खिलखिलाते हुए चंदा भाभी की आवाज आयी।

" अगर पीछे हटी न तो मैं हूँ न , इसके पिछवाड़े मुट्ठी पेल दूंगी, अरे अगवाड़े की झिल्ली बचानी है लेकिन पिछवाड़े का क्या " उसी तरह हँसते हुए दूबे भाभी की आवाज सुनायी दी, और लगता है चंदा भाभी ने चूसना शुरू कर दिया था क्योंकि रीत की सिसकियाँ सुनाई दे रही थी



और फिर जब इधर संध्या भाभी झड़ रही थीं, उधर रीत के उह आह्ह की आवाज आ रही थीं वो भी झड़ रही थीं।

और अब जब मैं एक बार कस के संध्या भाभी को चोद रहा था, भौजी गरिया रही थीं, सिसक रही थीं चीख रही थीं, उधर से भी चंदा भाभी की आवाज आ रही थीं

" हाँ रीत हाँ ऐसे ही चूस, झाड़ दे मुझे मेरी ननदिया, "


लेकिन थोड़ी देर बार रीत की उन्ह आह नहीं नहीं इधर नहीं की आवाज आ रही थीं और फिर जवाब में दूबे भौजी की गरजने की

' स्साली छिनार, खोल मुँह पूरा , और चौड़ा, जीभ अंदर तक जानी चाहिए, वरना तेरी गांड का गोदाम बनेगा आज, बिना चूड़ी उतारे कोहनी तक पेलुँगी "

मैं समझ गया खेल,

चंदा भाभी अब अपने बड़े चूतड़ फैला के, पिछवाड़ा खोल के, और रीत मुंह बना रही होगी, लेकिन दूबे भभकी बात और उधर से आवाजें आना बंद हो गयीं, और मैं समझ गया अब रीत रानी चंदा भौजी के पिछवाड़े चूसुर चुसूर, गोल दरवाजे का रस चूस रही होंगी


बस ये सोच के ही इतना जोश आया मुझे की संध्या भौजी की दोनों चूँची पकड़ के मैंने वो हलब्बी धक्का मारा की उनकी भी चीख निकल पड़ी

" उययी उययी ओह्ह्ह उफ्फ्फ्फ़ "

चुदाई के समय लड़कियों की चीखें लड़को का जोश और बढ़ा देती हैं, और जैसे कोई पहली बार पेली जा रही बछिया को जबरदस्त सांड़ छाप लेता है, अगले दोनों पैरों से दबोच लेता है, उसी तरह अपने हाथों से संध्या भौजी को कस के दबोच के, मैं धक्के पे धक्के मार रहा था


चार पांच धक्के के बाद उनके कान में जीभ घुमाते हुए पूछा

" काहें भौजी, मजा आ रहा है "

" अरे स्साले, सपने में भी ऐसा मजा नहीं मिला जो आ जा मिल रहा है, जेके बियहबा तू वो धन्य हो जाई"


और मारे ख़ुशी के भौजी की बात सुन के मैंने उनका मालपुवा अस गाल कचकचा के काट लिया और चिढ़ाया,

" अब तोहार ननद पूछेंगी तो का बताइयेगा "

" इहे की हमारे मायके में एक नंबरी चोदू है, ओहके लगा तोहार बयाना बटा दे दिए हैं, होली के बाद आयी तो तोहरो चुदाई ऐसे ही करी /"

खिलखिलाते हुए भौजी बोलीं और इसी बात पे मैंने दूसरा गाल भी कस के काट लिया। मेरे दांत के निशान कोई रंग तो थे नहीं जो बेसन और साबुन से छूट जाते।

और दोनों जुबना मसलते हुए मेंने एक धक्का और मारा और बोला

" हमरे भौजी का हुकुम हम टाल नहीं सकते, हचक के पेलूँगा, लेकिन एक के साथ एक फ्री "

मेरा इशारा संध्या भाभी ने जो अपनी ननद की बेटी के बारे बताया था, गुड्डी की सबसे छोटी बहन के क्लास वाली, उसकी ओर था,

अब चुदाई सावन के झूले की तरह चल रही थीं, एक ओर से मैं पेंग मारता तो दूसरी ओर से वो कभी झूला धीरे धीरे तो कभी एकदम तेज , सुहागिन साल भर की ब्याहता औरतों को चोदने का यही तो मजा है, पूरा साथ देती हैं और मेरा जैसा नौसिखिया हो बढ़ बढ़ के मजे देने में हिस्सा लेती हैं। संध्या भौजी हंसती हुयी बोलीं

" अरे हमरे ननद के पहले तो वही टांग फैलाएगी, मैं जाती हूँ उनके यहाँ, चूतगंज ( संध्या भौजी अपने नन्द के मोहल्ले चेतगंज को चूतगंज ही कहती थीं ) तो उसी के साथ सोती हूँ, इतनी गर्म है, खुद मेरा हाथ पकड़ के अपनी गुच्ची पे, रात भर गुच्च गुच्च, एक पोर तो ऊँगली का आराम से घोंट लेती है और थोड़ा जोर लगाती हूँ तो दो पोर तर्जनी का,



लेकिन है अभी कोरी कुँवारी, चूँचिया भी बस एकदम कच्ची अमिया, गुड्डी की छुटकी की तरह से, लेकिन एक बात समझ लो लल्ला, ऐसी चूँचिया उठान वाली को चोदने का मजा ही अलग है। कभी नहीं छोड़ना चाहिए, बहुत पाप लगता है, फिर एक बार ओह उम्र वाली की पेल के फाड़ दोगे न तो जिन्नगी भर, "

उनकी ननद की बेटी को तो मैंने नहीं देखा था लेकिन गुड्डी की छुटकी को तो मैंने देखा ही था, मेरी खिंचाई करने में अपनी मम्मी का पूरा साथ दे रही थीं और आज सुबह जिस तरह से उसने छोटे छोटे जोबन की झलक दिखाई थीं,

बस मैंने पूरा बाहर निकाल के ऐसी ताकत से मारा की मोटा सुपाड़ा सीधे संध्या भाभी की बच्चेदानी पे लगा और वो काँप गयीं, बुर उनकी फूलने पिचकने लगी, और मैंने अपनी मन की बात उनसे कह दी, डर जो था,

" भौजी मेरा, थोड़ा, ..."

संध्या भाभी मेरे पूरे घुसे खूंटे को मस्ती से अपनी बिल को सिकोड़ के निचोड़ते बोलीं,

" थोड़ा, किसको बता रहे हो, अरे गदहे का लंड है मनई का नहीं, मनई का पांच छह इंच का होता है तोहार तो बालिश्त से भी, तोहार ममेरी बहन गदहे वाली गली में रहती हैं न तो जरूर तोहार महतारी गदहे के साथ सोई होंगी तभी, लेकिन क्या होगा बहुत होगा थोड़ा सरसो का तेल ज्यादा लगेगा, तो कौन कंजूसी, कमा तो रहे हो, और चीखेगी चिल्लायेगी, तो चीखने देना, यही चीख सोच सोच के तो खुश होगी बाद में "

बगल के बाथरूम से चंदा भाभी की सिकियाँ तेज हो गयी थीं लग रहा था रीत ने उन्हें चूस के झाड़ दिया है और वो आवाजे सुन के मैं और जोश में आ गया और संध्या भाभी भी बस भौजी के मोटे मोटे चूतड़ को पकड़ के मैंने कस के धक्के मारने शुरू कर दिया

" लो भौजी लो ,ये गदहे का लंड " मैंने जोश में बोला,

" दे, मादरचोद, दे, चोद जैसे अपनी महतारी का भोसड़ा चोदता है, देखती हूँ तेरी ताकत "

मेरी ओर मुंह कर के निहुरे निहुरे संध्या भाभी बोली और मैंने कस के उनके होंठ चूस लिए फिर कचकचा के काट लिए,

भौजी की फैली हुयी टाँगे भी अब थोड़ी सिकुड़ गयी थीं, वो प्रेम गली अब पहले से संकरी हो गयी थीं और मूसल रगड़ते, घिसटते दरेररते जा रहा था। मैंने भी तिहरा हमला कर दिया, एक हाथ भौजी की कड़ी कड़ी चूँची मसल रहा था, दूसरी चूँची मेरे होंठों के बीच और दूसरा हाथ मेरा सीधा भौजी की फूलती पिचकती क्लिट पे

धक्के भी लगातार और हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे

ओह्ह उफ़ नहीं हाँ और और हाँ ऐसे ही संध्या भाभी बोल रही थीं, एकदम झड़ने के कगार पे और अब मैं भी नहीं रुकने वाला था, थोड़ी देर में वो झड़ने लगीं, जोर जोर से सिसक रही थीं

उईईई ओह्ह्ह नहीं उफ्फ्फ्फ़ हाँ रुक स्साले, उफ्फ्फ उईईईईई उईईई

पर मैं अबकी नहीं रुकने वाला था न स्पीड धीमे करने वाला, एक बार दो बार वो झड़ी होंगी और फिर मैं भी उनके अंदर, ढेर सारी मलाई,


एक बार मेरा झड़ना रुका तो फिर हलके हलके धीरे धीरे और फिर दुबारा बचा खुचा, डॉट बोतल में कस के लगी थीं तब भी रिस रसी के एक दो बूँद बाहर निकल कर जाँघों पे सरकती रेंगती

थोड़ी देर तक हम दोनों ऐसे ही चिपके रहे, संध्या भाभी झुकी, निहुरि और मैं चढ़ा उनके ऊपर, फिर हम दोनों बाथरूम के फ्लोर पे बैठ गए और अब जब संध्या भाभी ने देखा तो शर्मा गयीं

फिर थोड़ी देर बाद अपनी बड़ी बड़ी दीये जैसी आँखों को खोल के उन्होंने मुझे देखा और कस के दबोच के चूम लिया और बोलीं, लाला तुम जितने अनाड़ी दीखते हो उतने हो नहीं।

बगल के बाथरूम से आवजें आनी बंद हो गयी थीं, नहाने धोने और मस्ती के बाद दूबे भाभी, चंदा भाभी और रीत निकल गयी थीं लेकिन यहाँ निकलने का मन न मेरा कर रहा था न संध्या भौजी का और न हम दोनों को कोई जल्दी थीं।



बात संध्या भाभी ने ही शुरू की
Very hot update komal ji. Sandhya bhabhi ne to kabool liya esa sukh unhe pehle kabhi nhi mila.
 

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फागुन के दिन चार भाग २१ -

संध्या भाभी और गुड्डी

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बगल के बाथरूम से आवजें आनी बंद हो गयी थीं, नहाने धोने और मस्ती के बाद दूबे भाभी, चंदा भाभी और रीत निकल गयी थीं लेकिन यहाँ निकलने का मन न मेरा कर रहा था न संध्या भौजी का और न हम दोनों को कोई जल्दी थीं।



बात संध्या भाभी ने ही शुरू की

संध्या भाभी मुस्कराते हुए, आँखे नचा के बोलीं,

" गुड्डी को ले जा रहे हो, आज रात हचक के पेलना, महीना उसका ख़तम हो गया न "

" हाँ, भौजी, नहा के निकली थी बाल धो के, खुद ही बोली, पांच दिन वाली आंटी जी गयीं, " मुस्कराते हुए मैंने कबूला।

" अरे तब तो आज बहुत गर्मायी होगी, छनछना रही होगी खुद ही लंड लेने को, मेरा महीना तो कल ख़तम हुआ था तब से ऐसी आग लगी थी, बुर में ऐसे चींटे काट रहे थे, वो तो तुमने अभी हचक के पेला है तो जा के ठंडक आयी है। कब से चक्कर चल रहा है तुम दोनों का ? "
भौजी अब एकदम पक्की दोस्त की तरह बतिया रही थीं। क्या बताता मैं, कुछ सोचा,... कुछ जोड़ा और बोल दिया,

" भौजी, ढाई तीन साल तो हो गया होगा, बल्कि शायद ज्यादा ही । "

संध्या भाभी आश्चर्य चकित हो के मुझे देखने लगीं, फिर कस के मुझे पकड़ के मेरी आँखों में देखते बोलीं

" ढाई तीन साल ? और अभी तक पेले नहीं हो उसको ? गुड्डिया सहिये कहती है, एकदम बुरबक हो। आजकल के लड़के तो सबेरे लड़की से बात होती है, नाम पूछते हैं और शाम को पर्स में बोरोलीन की ट्यूब और कंडोम लेके पहुँच जाते है और तुम तीन साल से लटकाये टहल रहे हो। "


कुछ देर वो चुप बैठी रहीं, मैं भी क्या जवाब देता, फिर वो कुछ सोच के, समझ के बोलीं,

" गुड्डी ही मना करती थी क्या, झिझकती होगी, लेकिन लड़की तो मना करेगी ही, लड़के का काम है थोड़ा जोर जबरदस्ती, थोड़ा मनाना, "


मैं क्या बोलता उनसे, झिझक तो मेरी सब गुड्डी ने ही दूर की, मैं तो खाली उसे देख के ललचाता रहता था।

उसकी कच्ची अमिया देख के मुंह में पानी आता था, ....और समझती तो वो थी ही, पिक्चर हाल के अँधेरे में उसने खुद मेरा हाथ खींच के अपने टिकोरों पे रखा था , डेढ़ पौने दो साल पहले और उसी बार पाटी से पाटी सटा के हम दोनों सोते थे नीचे बरामदे में गर्मी में, कभी बतियाते, कभी बस देखते रहते, और उसी ने खींच के मेरा हाथ अपनी शलवार के ऊपर, और मुझसे नाड़ा नहीं खुला तो खुद नाड़ा खोल के मेरा हाथ अंदर, उस भट्ठी को पहली बार मैंने छुआ था और गुड्डी ने भी मेरे पाजामे में हाथ डाल के ' उसका हाल चाल ' लिया था लेकिन तब भी मेरी हिम्मत नहीं पड़ी।



कुछ तो ये डर की बरामदे में खुले में, और कुछ मेरी झिझक, लेकिन संध्या भाभी की बात का जवाब तो देना ही था तो मैंने बोल दिया


" नहीं, नहीं गुड्डी ने कभी मना नहीं किया, झिझकता मैं ही ज्यादा था, फिर लगता था हम दू बरामदे में हैं कोई आ गया तो, गुड्डी ने आज तक मुझे कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया। "

मैंने कबूल कर लिया।



" तो आज, कैसे " संध्या भाभी सब बात पूछ लेना चाहती थीं जैसे कम्पनी के कंसल्टेंट सब बात पूछ के उसी से कुछ रिपोर्ट बना के दे देत्ते हिन्


" अभी तो हलकी ठडंक है, हम लोग कमरे में ही रहेंगे, नीचे वाली मंजिल में, और भैया भाभी तो ऊपर वाले कमरे में और एक बार भाभी ऊपर चली जाती हैं तो फिर सुबह ही उतरती हैं, बर्तन वाली आती है तो दरवाजा मैं ही खोलता हूँ तो इसलिए इस समय,"

मैंने धीरे से अपनी प्लानिंग बताई।



और संध्या भौजी खिलखिलाने लगीं,

" एकदम सही कह रहे हो, बिंन्नो दी ( मतलब मेरी भाभी ) भी यही कह रही थीं की तेरे भैया तो एकदम चुंबक हैं, चिपक जाते हैं तो रात भर छोड़ते नहीं हैं, तीन बार से तो कम कभी नहीं और कई बार तो सुबह भी और कभी पिछवाड़ा भी , ....एक बार वो ऊपर गयीं तो फिर दरवाजा बंद तो सुबह ही खुलता है और घडी की सुई नौ पे गयी नहीं की ऊपर से पुकार आने लगती है "




मैं भी याद करके मुस्कराने लगा और बोला,

" एकदम यही है, कई बार मुझसे गप्प मारने में भाभी को देर हो गयी, और सबसे पहले मुझे अपने सामने बैठा के डांट डांट के खिलाती हैं, और नौ बज गया तो अपना खाना ले के ऊपर "


" तो नीचे और कोई नहीं, तोहार महतारी तो दक्षिण की तीर्थ यात्रा पे निकली हैं वो तो मई जून में आएँगी, "

संध्या भाभी को काफी कुछ मालूम था तब भी उन्होंने पूछा,

" नहीं एक मंजू भौजी हैं, ....घर की ही समझिये बल्कि घर से बढ़के, घर सम्हालती वही हैं वो पीछे दो कोठरिया बनी है उसमें रहती हैं , ...तो नीचे मैं और गुड्डी ही " मैंने मुस्कराते हुए भौजी से कबूला।



वो भी जोर से मुस्करायीं, उनकी आँखों में चमक आयी और फिर उन्होंने हलके से थोड़ा सोये थोड़ा जागे, जंगबहादुर को सहलाते, दुलराते

मेरे गाल पे छोटी सी चुम्मी ले के कहा, "स्साले फिर तो तेरी चांदी है, ...पेलना मजे ले ले के "
Komal ji, is baar kahani me bhaiya or bhabhi ke bich bhi sex ko btana thoda bahut, pichli baar to sab band darwaje ke piche tha.
 
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बहुत बहुत आभार, धन्यवाद आपके कमेंट इतने सटीक और रससिक्त होते हैं की कुछ कहा नहीं जाता। बहुत धन्यवाद कहानी का साथ देने के लिए
संध्या भाभी को सांझ के बजाय दिन में हीं बाती की जरूरत है अपने दिया के लिए...
 

motaalund

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इस पूरी होली का, आनंद बाबू के कपडे उतारने का मकसद ही यही था की उनकी झिझक ख़तम हो जाए और वो जिंदगी का रस ठीक से ले सकें
अब तो शेर के मुँह को खून लग हीं गया है....
तो सामने राजी शिकार पर धावा बोलना जरुरी है...
 
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motaalund

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इतना अच्छा रूपक मैं भी नहीं सोच सकती थी और आप ने एकदम सही उदाहरण दिया और मैंने उसे आगे बढ़ाया,

अब जो पुराने ज़माने की दर्जिने होती थीं वो आज के फैशन डिजाइनर होते हैं,

अन्यथा लेने का सवाल ही नहीं था, और आप की एक एक बात एकदम सटीक है

ड्रेस की तारीफ़ का शुक्रिया और एक बार और, पहले वाली कहानी में शुरू के और बाद के भागों में कुछ हलका फुल्का द्व्न्द सा या बल्कि ये कहें की मिलान नहीं था, और एक लम्बे सीरियल में ये कंटीन्यूटी वाली दिक्क्त आ जाती है, इसलिए उसे बस एकरस कर रही हूँ लेकिन उस चक्कर में लिखना भी बहुत पड़ रहा है और कुछ पार्ट तो पूरे के पूरे और एकदम लम्बे जैसे गूंजा वाला ये पार्ट था

दूसरी बात की कहानी में कुछ आगे आने वाली घटनाओं की भी पदचाप सुनाई देनी चाहिए तो इस लिए गूंजा का स्कूल, उसकी सहेलियां थोड़े विस्तार से आयीं

एक बार फिर से आभार धन्यवाद, साथ बनाये रखिये
अबकी बार तो गुंजा भी अपना जलाल बिखेर रही है...
 
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motaalund

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बहुत बहुत आभार

आपने इतनी पुरानी यादों को कुरेद दिया, स्कूल, डेस्क पे कुरेदे, खोदे हुए अक्षर, एक एक शब्द आपके कमेंट के मैंने कई बार पढ़े।

एकदम सटीक।


एक बार फिर से धन्यवाद, बस इसी तरह साथ बनाये रखें


🙏🙏🙏🙏🙏🙏
यादों की जानी पहचानी डगर....
जिस पर चलते हुए आदमी अपने असली स्वरूप में होता है...
 

motaalund

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होगा होगा बहुत कुछ होगा

अभी तो कच्ची कली गुंजा और शादी शुदा संध्या भाभी बची हैं न अगले पार्ट्स में सब कुछ होगा
रीत की प्रीत तो अनुपम है...
 
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