Superb hot amazing Writingदूध
गुड्डी दूसरे बेडरूम में चली गई और भाभी किचेन में। किचेन से दूध के दो गिलास लेकर वापस चन्दा भाभी मेरे बेडरूम में आई। मैं आराम से सोफे से हटकर अब डबल बेड पे बैठा था। उन्होंने कमरे में आलमारी खोलकर कोई बोतल खोली और कुछ दवा सी निकालकर दूध में डाली।
“हे भाभी ये…” मैंने पूछने की कोशिश की पर उन्होंने अपने होंठों पे उंगली रखकर मुझे चुप रहने का इशारा किया और दूध लेकर बाहर चली गईं।
थोड़े इतराने की, ना ना की आवाज आ रही थी। पर जब वो लौटीं तो उनके हाथ में दो खाली गिलास उनके मिशन के पूरे होने का संकेत दे रहे थे।
किचेन से अबकी वो लौटीं तो उनके हाथ में एक बड़ा गिलास था।
दूध के साथ-साथ मोटी मलाई की लेयर। और ऊपर से जैसे कुछ हर्ब सी पड़ी हों। मस्त महक आ रही थी। बगल के टेबल पे रखकर पहले तो उन्होंने दरवाजा बंद किया और फिर मेरे बगल में आकर बैठ गईं। साड़ी तो उनकी लूंगी बनके मेरी देह पे थी।
वो सिर्फ साए ब्लाउज़ में और ब्लाउज़ भी एकदम लो-कट। भरे-भरे रसीले गोरे गुदाज गदराये जोबन छलकनें को बेताब।
और अब तो चड्ढी का कवच भी नहीं था। ‘वो’ एकदम फनफना के खड़ा हो गया।
भाभी एकदम सटकर बैठी थी।
“दोनों को दूध दे दिया। पांच मिनट में एकदम अंटा गाफिल। सुबह तक की छुट्टी…”
भाभी का एक हाथ मेरे कंधे पे था और दूसरा मेरी जांघ पे…”उसके’ एकदम पास। मेरे कान में वो फुसफुसा के बोल रही थी। उनके होंठ मेरे इयर लोब्स को आलमोस्ट टच कर रहे थे।
मस्ती के मारे मेरी हालत खराब थी।
“दोनों को सुलाने का दूध दिया। और मुझे…” दूध के भरे ग्लास की ओर इशारा करके मैंने पूछा।
“जगाने का…”
मेरी प्यासी निगाहें ब्लाउज़ से झांकते उनके क्लीवेज से चिपकीं थी और वो भी जानबूझ के अपने उभारों को और उभार रही थी।
उन्होंने एक हल्का सा धक्का दिया और मैं पलंग पे लेट गया। साथ में वो भी और उन्होंने हल्की रजाई भी ओढ़ ली। हम दोनों रजाई के अंदर थे।
“तुम्हें मैं जितना, अनाड़ी समझती थी। तुम उतने अनाड़ी नहीं हो…” मेरे कान में वो फुसफुसायीं।
“तो कितना हूँ?” मैंने भी उन्हें पकड़कर कहा।
“उससे भी ज्यादा। बहुत ज्यादा। अरे गुड्डी जब तुम्हारी चड्ढी पकड़ रही थी तो तुम्हें कुछ पकड़ धकड़ करनी चाहिए थी। उससे अपना हथियार पकड़वाना चाहिए था, उसकी झिझक भी खुलती शर्म भी खुलती और। मजा मिलता सो अलग। तुम्हें तो पटी पटाई लड़की के साथ भी ना। एक बार लड़की के पटने से कुछ नहीं होता, उसकी शर्म दूर करो, झिझक दूर करो, खुलकर जितना बेशर्म बनाओगे उसे, उतना खुलकर मजा मजा देगी…”
“तो भाभी बना दो ना अनाड़ी से खिलाड़ी…”
“अरे लाला ये तो तुम्हारे हाथ में है। फागुन का मौका है, खुलकर रगडो। एक बार झिझक चली जायेगी थोड़ी बेशर्म बना दो। बस। मजे ही मजे तेरे भी उसके भी। तलवार तो बहुत मस्त है तुम्हारी तलवार बाजी भी जानते हो की नहीं। कभी किसी के साथ किया विया है या नहीं?”
“नहीं, कभी नहीं…” मैंने धीरे से बोला।
“कोरे हो। तब तो तेरी नथ आज उतारनी ही पड़ेगी…”
चन्दा भाभी ने मुश्कुराते हुए कहा। उनकी एक उंगली मेरे सीने पे टहल रही थी और मेरे निपल के पास आकर रुक गई। वहीं थोड़ा जोर देकर उसके चारों और घुमाने लगी।
मजे के मारे मेरी हालत खराब थी। कुछ रुक के मैं बोला-
“आपने मुझे तो टापलेश कर दिया और खुद?”
“तो कर दो ना। मना किसने किया है?” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरी नौसिखिया उंगलियां कभी आगे, कभी पीछे ब्लाउज़ के बटन ढूँढ़ रही थी। लेकिन साथ-साथ वो क्लीवेज की गहराईयों का भी रस ले रही थी।
“क्यों लाला सारी रात तो तुम हुक ढूँढ़ने में ही लगा दोगे…” भाभी ने छेड़ा।
Wwoooow lovely and perfect eroticगुरु बनी चंदा भाभी
मैंने होंठों से ही उनकी ब्रा का हुक खोल दिया।
और आगे मेरे दोनों हाथों ने कसकर ब्रा के अन्दर हाथ डालकर उनके मस्त गदराये उभार दबोच लिए।
“लल्ला, तुम इत्ते अनाड़ी भी नहीं हो…” मुश्कुराकर वो बोली।
मेरी तो बोलने की हालत भी नहीं थी। मेरे होंठ उनके केले के पत्ते ऐसे चिकनी पीठ पे टहल रहे थे, और दोनों हाथ मस्त जोबन का रस लूट रहे थे।
क्या उभार थे। एकदम कड़े-कड़े, मेरी एक उंगली निपल के बेस पे पहुँची
तभी मछली की तरह फिसल के वो मेरी बाँहों से निकल गई और अगले ही पल वो 36डी डीउभार मेरे सीने से रगड़ खा रहे थे।
चन्दा भाभी का एक हाथ मेरे सिर को पकड़े बालों में उंगली कर रहा था और दूसरा मेरे नितम्बों को कसकर पकड़े था। मेरे कानों से रसीले होंठों को सटाकर वो बोली-
“मेरा बस चले तो तुम्हें कच्चा खा जाऊं…”
“तो खा जाइए ना…” मैं भी सीने को उनके रसीले उभारों पे कसकर रगड़ते बोला-
मेरे होंठों पे एक हल्का सा चुम्बन लेती हुई वो बोली- “चलो एक किस लेकर दिखाओ…”
मैंने हल्के से एक किस ले ली।
“धत्त क्या लौंडिया की तरह किस कर रहे हो…”
वो बोली फिर कहा, वैसे शर्मीली लड़की को पहली बार पटा रहे तो ऐसे ठीक है वरना थोड़ी हिम्मत से कसकर…”
और अगली बार और कसकर उन्होंने मेरे होंठों पे होंठ रगड़े। जवाब में मैंने भी उन्हें उसी तरह किस किया। भाभी ने मेरे होंठों के बीच अपनी जुबान घुसा दी। मैं हल्के से चूसने लगा।
थोड़ी देर में होंठों को छुड़ाके उन्होंने हल्के मेरे गाल को काट लिया और बोली-
“क्यों देवरजी अब तो हो गई ना मैं भी आपकी तरह टापलेश। लेकिन किसी नए माल को करना हो तो इत्ती आसानी से चिड़िया जोबन पे हाथ नहीं रखने देगी…”
“तो क्या करना चाहिए?” मैंने पूछा।
“थोड़ी देर उसका टाप उठाने या ब्लाउज़ खोलने की कोशिश करो, और पूरी तरह से तुम्हें रोकने में लगी हो तो। उसी समय अचानक अपने बाएं हाथ से उसका नाड़ा खोलना शुरू कर दो। सब कुछ छोड़कर वो दोनों हाथों से तुम्हारा बायां हाथ पकड़ने की कोशश करेगी। बस तुरंत बिजली की तेजी से उसका टाप या ब्लाउज़ खोल दो। जब तक वो सम्हले तुम्हारा हाथ उसके उभारों पे। और एक बार लड़के का हाथ चूची पे पड़ गया तो किस की औकात है जो मना कर दे। और यकीन ना हो तो इसी होली में वो जो तेरी बहन कम छिनार माल है उसके साथ ट्राई कर लो…”
भाभी ने कहा।
“अरे उसके साथ तो बाद में ट्राई करूंगा। लेकिन…”
ये बोलते हुए मैंने उनके पेटीकोट का नाड़ा खींच लिया। वो क्यों पीछे रहती। मेरी साड़ी कम लूंगी भी उनके साए के साथ पलंग के नीचे थी।
“लेकिन तुम ट्राई करोगे उसे,अपनी बहन कम माल को । ये तो मान गए…”
हँसते हुए वो बोली। रजाई भी इस खींच-तान में हम लोगों के ऊपर से हट चुकी थी। मेरे दोनों हाथ पकड़कर उन्होंने मेरे सिर के नीचे रख दिया और मेरे ऊपर आकर बोली-
“अब तुम ऐसे ही रहना, चुपचाप। कुछ करने की उठाने की हाथ लगाने की कोशिश मत करना…”
मेरे तो वैसे ही होश उड़े थे।
उनके दोनों उरोज मेरे होंठों से बस कुछ ही दूरी पे थे। मैंने उठने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे धक्का देकर नीचे कर दिया। हाथ लगाने की तो मनाही ही थी। सिर उठाके मैं अपने होंठों से उन रसभरी गोलाइयों को छूना चाहता था। लेकिन जैसे ही मैं सिर उठाता वो उसे थोड़ा और ऊपर उठा लेती, बस मुश्किल से एक इंच दूर। और जैसे ही मैं सिर नीचे ले आता वो पास आ जाती।
जैसे कोई पेड़ खुद अपनी शाखें झुका के,.. एक बार वो हटा ही रही थी की मैंने जीभ निकालकर उनके निपलों को चूम लिया। कम से कम एक इंच के कड़े-कड़े निपल।
“ये है पहला पाठ। तुम्हारे पास तुम्हारे तलवार के अलावा। तुम्हारी उंगलियां हैं, जीभ है, बहुत कुछ है जिससे तुम लड़की को पिघला सकते हो। बस अन्दर घुसाने के पहले ही ऐसे ही उसे पागल बना दो। वो खुद ही कहेगी डाल दो। डाल दो…”
भाभी बोली।
और इसके साथ ही थोड़ा और नीचे फिसल के,... अब उनके उरोज मेरे सीने पे रगड़ रहे थे, कस-कसकर दबा रहे थे। बालिश्त भर की मेरी कुतुबमीनार उनके पेट से लड़ रही थी। वो जोबन जो ब्लाउज़ के अन्दर से आग लगा रहे थे,... मेरी देह पे,.. जांघ पे।
और जो मैं सोच नहीं सकता था। मेरे तनतनाये हथियार को उन्होंने अपनी चूचियों के बीच दबा दिया और आगे-पीछे करने लगी।
मुझे लगा की मैं अब गया तब गया।
तब तक भाभी की आवाज ने मेरा ध्यान तोड़ा- “हे खबरदार जो झड़े। ना मैं मिलूंगी ना वो…”
मैं बिचारा क्या करता।
भाभी ने एक हाथ से मेरे चरम दंड को पकड़ने की कोशिश की। लेकिन वो मुस्टंडा, बहुत मोटा था। उन्होंने पकड़कर उसे खींचा तो मेरा लाल गुलाबी मोटा सुपाड़ा। खूब मोटा, बाहर निकल आया। मस्त। गुस्स्सैल। मेरा मन हो रहा था की भाभी इसे बस अपने अंदर ले लें,.. लेकिन वो तो।
उन्होंने अपना कड़ा निपल पहले तो सुपाड़े पे रगड़ा और फिर मेरे सीधे पी-होल पे।
मुझे जोर का झटका जोर से लगा।
उनका निपल थोड़ी देर उसे छेड़ता रहा फिर उनकी जीभ के टिप ने वो जगह ले ली। मैं कमर उछाल रहा था। जोर-जोर से पलंग पे चूतड़ पटक रहा था और भाभी ने फिर एक झटके में पूरा सुपाड़ा गप्प कर लिया। पहली बार मुलायम रसीले होंठों का वहां छुवन। लग रहा था बस जान गई।
“भाभी मुझे भी तो अपने वहां…”
“लो देवरजी तुम भी क्या कहोगे?” और थोड़ी देर में हम लोग 69 की पोज में थे।
लेकिन मैं नौसिखिया। पहली बार मुझे लगा की किताब और असल में जमीन आसमान का अन्तर है। मेरे समझ में ही नहीं आ रहा था की कहाँ होंठ लगाऊं, कहाँ जीभ। पहली बार योनि देवी से मुलाकात का मौका था, कितना सोचता था की,...
लेकिन चन्दा भाभी भी कुछ बिना बताये, खुद अपनी जांघें सरका के सीधे मेरे मुँह पे सेंटर करके और कुछ समझा के। क्या स्वाद था। एक बार जुबान को स्वाद लगा तो, पहले तो मैंने छोटे-छोटे किस लिए और फिर हल्के से जीभ से झुरमुट के बीच रसीले होंठों पे। चन्दा भाभी भी सिसकियां भरने लगी। लेकिन दूसरी ओर मेरी हालत भी कम खराब नहीं थी।
वो कभी कसकर चूसती, कभी बस हल्के-हल्के सारा बाहर निकालकर जुबान से सुपाड़े को सहलाती और उनका हाथ भी खाली नहीं बैठा था। वो मेरे बाल्स को छू रही थी, छेड़ रही थी, और साथ में उनकी लम्बी उंगलियां शरारत से मेरे पीछे वाले छेद पे कभी सहला देती तो कभी दबाकर बस लगता अन्दर ठेल देंगी, और जब मेरा ध्यान उधर जाता तो एक झटके में ही ¾ अन्दर गप्प कर लेती, और फिर तो एक साथ, उनके होंठ कस-कसकर चूसते, जीभ चाटती चूमती और थोड़ी देर में जब मुझे लगता की बस मैं कगार पे पहुँच गया हूँ,....
Amazing and too eroticसिखाई पढाई
“बहुत जबर्दस्त जंगबहादुर है तुम्हारा मान गए…” आगे-पीछे करते भाभी मुश्कुराकर बोली।
“अरे भाभी ये सब आपकी करामात है। लेकिन इस बिचारे का मन तो रख दीजिये…”
“चलो अब तुम इत्ता कह रहे हो तो। लेकिन तुम्हें कुछ आता वाता तो है नहीं…” हँसकर वो बोली।
“तो सिखा दीजिये ना…” मैंने अर्जी लगाईं।
“क्या-क्या सिखाऊं?” आँख नचाते हुए वो बोली।
“सब कुछ…”
“अनाड़ी चुदवैया, बुर की बरबादी…” हँसकर वो बोली।
“अरे तो आप बना दीजिये ना अनाड़ी से खिलाड़ी। प्लीज…” मैं मुँह बनाकर बोला।
“चलो। तुम इत्ता हाथ जोड़ रहे हो तो। लेकिन गुरु दक्षिणा लगेगी…” वो मुश्कुराकर बोली।
“एकदम गुरु-दक्षिणा या बुर-दक्षिणा। जो आप हुकुम करें…” मैं भी अब उन्हीं के रंग में आ गया था।
“चलो। सही बोला तो पहला पाठ यही है की। तुम अपनी भाषा बदलो। कम से कम जब अकेले में हो या जब कोई औरत खुलकर बोलने को तैयार हो। पहले लड़की थोड़ा बिचकेगी, मुँह बनाएगी। क्या बोलते हो? कैसे बोलते हो। मारूंगी। गंदे। लेकिन तुम चालू रहो और कोशिश करके उससे भी ये सब बुलवाओ। बस देखना उसकी शर्म झिझक सब खतम हो जायेगी और वो भी टाँगें उठाकर चूतड़ उचका के खुलकर मजे लेगी। अच्छा चलो तुम्हें इससे मिलवाती हूँ…”
और उन्होंने मेरा हाथ खींचकर अपनी झांटों भरी बुर पे रख दिया।
फिर तो जो उन्होंने पढ़ाना शुरू किया और मैंने पढ़ना शुरू किया। मैंने दर्जनों सेक्स मैनुअल पढ़े थे, लेकिन जो बात चन्दा भाभी में थी। सब चीजें।
उंगली, उन्होंने समझाया- “हमेशा बीच वाली उंगली इश्तेमाल करो। सिर्फ इसलिए नहीं की वो सबसे लम्बी होती है बल्की उसके साथ दोनों और की उंगलियों से चूत की पुत्तियों को सहला सकते हो मसल सकते हो,... और साथ में अंगूठे से क्लिट को भी दबा सकते हो। यहाँ तक की शलवार या पैंटी के ऊपर से भी। सामने देखते रहो, बातें करते रहो,... लेकिन उंगलियां अपना काम करती रह सकती हैं।
जांघों को थोड़ा सहलाओ अगर लड़की पट रही होगी तो एक पल के लिए वो खोलकर फिर बंद कर लेगी। बस उसी समय हाथ अन्दर डाल दो। थोड़ा कुनमुनाएगी, बिचकेगी। लेकिन एक बार जहां तुम्हारा हाथ वहां लगा। एकदम पिघल के हाथ में आ जायेगी…”
“भाभी एक बार करने दो ना। तभी तो सीखूंगा…” मेरी हालत खराब हो रही थी अब सीधे प्रैक्टिकल के लिए
“क्या?” आँखें नचाकर वो बोली। मैं समझ गया वो क्या सुनना चाहती हैं।
“उंगली। आपकी रसीली चूत में…”
“तो करो ना…” और मेरी मझली उंगली खींचकर उन्होंने चूत में डाल दी। एकदम कसी थी, मस्त, रसीली मांसल, और उन्होंने शरारत से अपनी चूत मेरी उंगली पे भींच दी।
“कैसा लग रहा है देवरजी?”
“बहुत अच्छा भाभी। बस यही सोच रहा हूँ की अगर उंगली की जगह मेरा…”
“मेरा क्या? क्या लौंडियों की तरह हकला रहे हो?” वो बोली।
“मेरा लण्ड होता तो कित्ता मजा आता…”
“चलो लगे रहो क्या पता मेरा मन कर जाए…” अदा से वो बोली।
मैंने उंगली को गोल-गोल अन्दर घुमाना शुरू किया।
उन्होंने खुद समझाया, कैसे गोल-गोल करते हैं। सारी नर्व्स ऊपर तक ही होती हैं इसलिए ज्यादा अन्दर तक करने की जरूरत नहीं। हाँ कैसे उंगली को चम्मच की तरह मोड़कर अन्दर दबा सकते हैं, कब और कितना अन्दर-बाहर कर सकते हैं और सबसे ज्यादा जरूरी बात, क्लिट ढूँढ़ने की।
करते समय तो वो बीच में दबी रहेगी,.. इसलिए अंदाज इत्ता अच्छा होना चाहिये की बिना देखे उसे छू सको, छेड़ सको। कैसे उसको दो उंगली के बीच में दबा सकते हैं, कैसे अंगूठे से उंगली करने के साथ-साथ,... अगर ढंग से करो तो दो-तीन मिनट में ही झड़ जायेगी…”
लेकिन सबसे जरूरी बात उन्होंने जो समझाई-
“पहले उसे बाकी जगहों से गर्म करो। किस करके। जोबन मर्दन, जांघें और चूत सहलाकर। उसके बाद ही क्लिट पे हाथ लगाओ। वरना एक तो वो उचकेगी और दूसरा मजे की जगह दर्द भी हो सकता है…” फिर उन्होंने मेरी आँखें बंद करवायीं और कहा-
“तुम मेरी क्लिट टच करो…”
भाभी हिल डुल जा रही थी। तीन-चार बार ट्राई करने के बाद ही मैं ढूँढ़ पाया। लेकिन जब दो-तीन बार लगातार मैंने कर लिया, तो खुश होकर उन्होंने मुझे किस कर लिया।
मैंने शरारत से पूछा- “तो अच्छे स्टुडेंट को इनाम क्या मिलेगा?”
“मिलेगा। जरूर मिलेगा। जो वो चाहता है वही मिलेगा…” मुश्कुराकर वो बोली। फिर कहने लगी की हर जगह तो रोशनी नहीं होगी, कभी रात के अँधेरे में, कभी बाग में, झुरमुट में,... तो अँधेरे में सही जगह लगाने की प्रैक्टिस होनी चाहिए और उन्होंने ब्रा से मेरी आँखें बाँध दी और बोला की ठीक है चलो अब तुम अपने हथियार को, …”
मैं उनकी बात काटकर बोला- “हथियार या …”
“तुम अब पक्के हुए। अपने लण्ड को मेरी बुर पे, चलो। सिर्फ तीन मौका है अगर सही हुआ तो इनाम वरना ऐसे ही सो जाना…”
पहली बार तो मैं एकदम फेल हो गया। दूसरी बार मेरा अंदाज सही था।
लेकिन वो आखिरी मौके पे सरक गईं और बोली- “क्या तुम सोचते हो की वो टांग फैलाकर खड़ी रहेगी…”
तब मेरी बुद्धी खुली। मैंने पहले तो उनके हाथ कब्जे में किये, पैरों से जांघें फैलायीं और फिर उसे लण्ड को सीधे सेंटर पे, बुर पे और थोड़ी देर रगड़कर जैसा उन्होंने समझाया था।
वो खूब गीली हो गईं तब छोड़ा। इस पूरी पढ़ाई के दौरान कभी उनका हाथ, कभी होंठ मेरे ‘उसको’ बार-बार छेड़ रहे थे और वो उसी तरह तना हुआ था।
“भाभी। अब तो…” मैंने अपने तन्नाये लण्ड की ओर इशारा किया।
“चलो तुम भी ना…” ये कहकर उन्होंने मुझे हल्का सा धक्का दे दिया।
मैं पलंग पे लेट गया। मेरा कुतुब मीनार हवा में था।
“करूँगी मैं,... बस तुम लेटे रहना। अनाड़ी कहीं उल्टा सीधा कर दो तो। अगर हिले डुले ना तो बहुत मारूंगी…”
फिर वो पलंग से उठकर चल दी और जब वो लौटी तो उनके हाथ में दो बोतल थी। उसे उन्होंने टेबल पे रख दी और मेरे पैरों के बीच में आकर बैठ गईं।
उन्होंने उसमें से ब्राउन बोतल उठाई और थोड़ा सा तेल अपनी हथेली पे लिया और हल्के से मला। फिर वो तेल मेरे तन्नाये हुए लिंग पे हल्के-हल्के लगाने लगी। गजब की सुरसुरी हो रही थी। क्या फीलिंग थी मैं बता नहीं सकता।
चन्दा भाभी ने मेरी और मुश्कुराते हुए देखा और बोला- “मालूम है ये क्या है?”
मैंने ना ने सिर हिलाया। उन्होंने अबकी ढेर सारा तेल बोतल से लिया और सीधे मेरे लिंग पे चुपड़ दिया। वो चमक रहा था। लेकिन थोड़ी देर में ही उसने जैसे तेल सोख लिया हो। भाभी ने फिर कुछ तेल अपने हाथ में लिया, मला और ‘उसपे’ मालिश करने लगी। अबकी उनकी उंगलियां कस-कसकर मुठिया रही थी।
जोश के मारे मेरी हालत खराब थी। वो नीचे से तेल लगाती थी और ऊपर तक। लेकिन सुपाड़े पे आकर रुक जाती थी, और हँसकर बोली-
“ये सांडे का तेल है और वो नहीं जो तुमने मजमे वालों के पास देखा होगा…”
भाभी की बात सही थी। मैंने कित्ती बार मजमे वालों के पास देखा था बचपन में, दोस्तों से सुना भी था। लोहे की तरह कड़ा हो जाता है। खम्भे पे मारो तो बोलेगा टन्न।
तेल मलते हुए भाभी बोली-
“देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”
मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?
चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।
जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-
“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”
भाभी बोली- “अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी…”
भाभी ने वो बोतल बंद करके दूसरी ओर रख दी और दूसरी छोटी बोतल उठा ली। जैसे उन्होंने बोतल खोली मैं समझ गया की सरसों का तेल है। उन्होंने खोलकर दो-चार बूंदें सीधे मेरे सुपाड़े के छेद पे पहले डाली, मजे से मैं गिनगिना गया,...
Aapne toh subha subha halat bigad daali meri acha hua ki nahaya nahi tha abhiकथा रति विपरीत की
मैं बनूँ साजन, तुम बनो सजनी
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भाभी मुश्कुराने लगी और उन्होंने कमर थोड़ी और नीची की। अपने हाथों से उन्होंने अपने निचले होंठों को थोड़ा फैलाया और मेरा सुपाड़ा उनकी चूत के अंदर। उन्होंने मेरे जंधे पकड़कर एक और धक्का दिया, और बोली-
“अब मैं मर्द हूँ और तुम औरत। ” और इसके साथ उन्होंने एक जबर्दस्त धक्का मारा।
सुपाड़ा पूरी तरह उनकी चूत के गिरफ्त में था। दोनों कन्धों पर जो उनका हाथ था वो सरक के मेरी छाती तक आ चुका था। जैसे कोई किशोरी के नए जोबन को सहलाए,वो उसी तरह।
मैं चाह रहा था की भाभी जल्दी से पूरा अन्दर ले लें पर वो तो।
उन्होंने सुपाड़े को अपनी चूत से कस-कसकर भींचना शुरू कर दिया। साथ ही उनके एक हाथ ने मेरे एक निपल को कसकर पिंच कर लिया। उनके लम्बे नाखून वहां निशान बना रहे थे। अब मुझसे नहीं रहा गया। मैंने कसकर अपने दोनों हाथों से उनके झुके हुए मस्त रसीले जोबन पकड़ लिए और कस-कसकर दबाने लगा। जवाब में भाभी ने एक जोर का धकका मारा और आधा लण्ड अन्दर चला गया।
लेकिन अब वो रुक गईं। वो गोल-गोल अपनी कमर घुमा रही थी।
अब मुझसे नहीं रहा गया। मैंने उनकी कमर कसकर पकड़ी और नीचे से जोर का धक्का मारा। साथ ही मैंने अपने हाथ से उनकी कमर पकड़कर नीचे की ओर खींचा। अब बाजी थोड़ी सी मेरे हाथ में थी। भाभी सिसकियां भर रही थी। और मेरा लण्ड सरक-सरक के और उनकी चूत में घुस रहा था।
भाभी- “तुम ना। बदमाश,... कल अगर तुम्हारी। …”
लेकिन भाभी की बात बीच में रह गई क्योंकि मैंने कसकर उनकी क्लिट दबा दी।
भ।भी जोर-जोर से सिसकी भरने लगी-
“साले। बहनचोद। मेरी सीख मेरे ही ऊपर। तेरे सारे खानदान की फुद्दी मारूँ…” और फुल स्पीड चुदाई चालू हो गई।
भाभी की चूची मेरी छाती से रगड़ रही थी। मैंने कस को उनको बांहों में भींच रखा था। और उन्होंने भी कसकर मुझे पकड़ रखा था। हचक के सटासट। ऊपर-नीचे, ऊपर-नीचे। थोड़ी देर तक भाभी खुद पुश कर रही थी और साथ में मैं। उनकी कमर पकड़कर। लेकिन कुछ देर बाद। उन्होंने जोर कम कर दिया और मैं ही अपनी कमर उचका के उनकी कमर नीचे खींचकर, चूतड़ उठाकर अपना लण्ड उनकी चूत में सटासट।
थोड़ी देर बाद ऐसी ही जबरदस्त चुदाई के बाद भाभी ने मेरे कान में कहा- “सुनो। तुम अपनी टाँगें कसकर मेरी पीठ पे पीछे बाँध लो। पूरी ताकत से…”
उस समय ‘मेरा’ पूरी तरह से भाभी के अन्दर पैबस्त था। मैंने वही किया। भाभी ने भी कसकर अपने हाथ मेरी पीठ के नीचे करके बाँध लिए। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
तभी भाभी पलटी और। गाड़ी नाव के ऊपर। नीचे से भाभी बोली-
“बस ऐसे ही रहो थोड़ी देर…” और उन्होंने कुछ ऐडजस्ट किया और मैं उनकी जाँघों के बीच।
भाभी मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी। मैंने भाभी को पहले हल्के से फिर पूरी ताकत से किस किया। उन्होंने भी उसी तरह जवाब दिया। मुझे भाभी की बात याद आई। थोड़ी ही देर में मेरा होंठ उनके एक निपल को कसकर चूस रहा था और दूसरा निपल मेरी उंगलियों के बीच था। धक्कों की रफ्तार मैंने कम कर दी थी।
भाभी मस्त सिसकियां भर रही थी। कुछ देर बाद ही वो चूतड़ उचकाने लगी-
“करो ना देवरजी। और जोर से करो बहुत मजा आ रहा है। ओह्ह… ओह्ह…” करके भाभी सिसक रही थी बोल रही थी।
मैं कौन होता था अपनी इस मस्त भाभी को मना करने वाला। मैंने पूरी तेजी से कमर चलानी शुरू कर दी। इंजन के पिस्टन की तरह।
भाभी ने अपने हाथों से मेरे चूतड़ कसकर पकड़ रखे थे। मस्त गालियां। चीखें-
“साले रुके तो तेरी गाण्ड मार लूँगी। कल पूरी पिचकारी तेरी गाण्ड फैलाकर पेल दूँगी। बहनचोद। तेरी बहन को मेरे सारे देवर चोदें। बहुत मजा आ रहा है। हाँ…”
और भाभी ने फिर पोज बदल दिया।
वो मेरी गोद में थी। उनकी फैली जांघें मेरी कमर के चारों ओर, चूचियां मेरे सीने से रगड़ती।
मैं अब हल्के-हल्के धक्के मार रहा था। साथ में हम लोग बातें भी कर रहे थे।
भाभी ने चिढ़ाया- “सीख तो तुम ठीक रहे हो। अपने मायके जाकर उस छिनाल ननद के साथ प्रैक्टिस करना एकदम पक्के हो जाओगे…”
मैं- “गुरु तो आप ही हैं भाभी…”
भाभी कभी मेरे कान में अपनी जीभ डाल देती,
कभी हल्के से मेरे होंठ काट लेती और एक बार उन्होंने मेरे निपल को कसकर काट लिया।
मैं क्यों पीछे रहता।
मैंने ध्यान से सब सुना और पढ़ा था, और फिल्में देखी थी सो अलग।
मैंने दोतरफा हमला एक साथ किया। मैंने होंठों से पहले तो कसकर उनके निपल फ्लिक करना फिर चूसना शुरू किया और निपल हल्के से काट लिए।
एक हाथ जोबन मर्दन में लगा था। दूसरे हाथ को मैं नीचे ले गया और पहले तो हल्के-हल्के फिर जोर से उनके क्लिट को रगड़ने लगा।
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भाभी झड़ने के कगार पे पहुँच गईं लेकिन वो मेरी ट्रिक समझ गईं। उन्होंने धक्का देकर मुझे गिरा दिया और फिर मेरे ऊपर आ गईं, कहा-
“बदमाश हरामी, बहनचोद। बहन के भंड़वे, तेरी बहन को कोठे पे बैठाऊँ। मेरी सीख मुझी पे…”
और कस-कसकर धक्के लगाने लगी।
एक हाथ उनका मेरे निपल पे तो दूसरा मेरे पीछे गाण्ड के छेद पे।
मैं भी उसी तरह जवाब दे रहा था। हम लोग धकापेल चुदाई कर रहे थे। मैं बस अब रुकना नहीं चाहता था। मेरे हाथ कभी उनकी चूची पे कभी क्लिट पे। मेरा लण्ड अब बिना रुके अन्दर-बाहर हो रहा था।
भाभी की चूत कस-कसकर मेरे लण्ड को निचोड़ने लगी, और भाभी बोल रही थी-
“ओह्ह्ह… आह्ह… हाँ ओह्ह्ह… नहीं मैन्न…”
मुझे लग रहा था की मैं अब गया तब गया, लेकिन भाभी निढाल हो गईं, उनके धक्के रुक गए। लेकिन उनकी चूत कस-कसकर सिकोड़ती रही। निचोड़ती रही। और मैं भी। लगा मेरी जान निकल जायेगी पूरी देह से, आँखें बंद हो गई मैं कमर हिला रहा था।
जैसे कोई फव्वारा फूटे, मेरी देह शिथिल पड़ गई थी।
भाभी मेरे ऊपर लेटी थी। थोड़ी देर तक हम दोनों लम्बी-लम्बी साँसें लेते रहे। भाभी ही उठी और फिर मेरे बगल में लेट गईं। थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे बाहों में भरकर एक जबर्दस्त किस कर लिया। मुझे जवाब मिल गया था की मैं इम्तेहान मैं पास हो गया, बाहर जबर्दस्त होली के गाने चल रहे थे।
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Perfect and ek ek word amazing haiझरती चांदनी
हम दोनों थके थे। एक दूसरे को कस के बाँहों में भींचे, बाहर चांदनी, पलाश और रात झर रही थी,
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" तोहरे भैया के बियाहे में गुड्डी क महतारी पूछी थीं न गुड्डी से बियाह करोगे "
वो यादें, मेरा तन मन फागुन हो गया। बियाह तो उसी पल घड़ी हो गया था, जब उस सारंग नयनी ने भाभी के बीड़े के बाद बीड़ा मारा, सीधे मेरे सीने पे, ... जिंदगी में मिठास उसी दिन घुल गयी थी जब जनवासे में मेरे दांत देखने के बहाने पूरा बड़ा सा रसगुल्ला उसने एक बार में खिला दिया था , और उसकी वो खील बताशे वाली हंसी,...
मैं कुछ बोलता, उसके पहले भौजी ने अपनी मीठी मीठी ऊँगली मेरे होंठ पर रख दी और चुप कराते हुए पूछा,
" अबकी होलिका देवी का आशीर्वाद, तोहरे राशिफल में भी लिखा है तो का पता,... तो मान लो तोहार किस्मत,... बियाह हो ही जाए, तो दहेज में का मांगोगे। "
मेरे लिए तो उस लड़की का मिलना ही जिंदगी का सपना पूरा होना था,... जब तक मैं बस के पीछे लिखा, दुल्हन ही दहेज़ है, मैं दहेज़ के खिलाफ हूँ इत्यादि बोलता, मुंह खोलने की कोशिश करता, चंदा भाभी ने मुंह बंद करा दिया।
'" बहुत बोलते हो , सब मर्दो में यही एक बुरी आदत है बोलते ज्यादा हैं सुनते कम हैं। "
और चुप कराने के लिए अपनी दायीं चूँची भौजी ने मेरे मुंह में डाल दी बल्कि पेल दी, और बोलना शुरू कर दिया
" दहेज़ तो जरूर मांगना, और मैं बताती हूँ क्या मांगना, गुड्डी क मम्मी और दोनों उसकी छोटी बहने। और गुड्डी क महतारी ये जो टनटनाया औजार ले के घूमते हो न , कोहबर में ही दोनों अपनी बड़ी बड़ी चूँची में दबा के एक पानी निकाल देंगी, ... "
मेरी आँखों के सामने एक बार गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी की तस्वीर घूम गयी, दीर्घ स्तना, उन्नत उरोज, एकदम ब्लाउज फाड़ते, ब्लाउज के बाहर झांकते, चंदा भाभी से ही दो नंबर बड़े होंगे लेकिन वैसे ही कड़े कड़े,... सोच के फनफनाने लगता है।
लेकिन लालची मन, मैंने भाभी के दूसरे उरोज को कस के मुट्ठी से दबा दिया और जब मुंह खुला तो मन की बात कह दी, ... " और भौजी पास पड़ोसन "
" ये पूछने की बात है, कल दिन में ही पता चल जाएगा, जब पास पड़ोसन रगड़ाई करेंगी। " भौजी ने हंस के जवाब दिया।
बाहों में लिपटे-लिपटे साइड में होकर हम वैसे ही सो गए। मेरा लिंग भाभी के अन्दर ही था।
सुबह अभी नहीं हुई थी। रात का अन्धेरा बस छटा ही चाहता था।
कहीं कोई मुर्गा बोला और मेरी नींद खुल गई। हम उसी तरह से थे एक दूसरे की बाहों में लिपटे।
मेरा मुर्गा भी फिर से बोलने लगा था। मैंने भाभी को फिर से बाहों में भर लिया। बिना आँखें खोले उन्होंने अपनी टांग उठाकर मेरी टांग पे रख दी और अपने हाथ से ‘उसे’ अपने छेद पे सेट कर दिया। हम दोनों ने एक साथ पुश किया और वो अन्दर। उसी तरह साथ-साथ लेटे, साइड में। हल्के-हल्के धक्के के साथ।
पता नहीं हम कब झड़े कब सोये।
हाँ एक बात और चंदा भाभी ने बता दिया की उनकी नथ कब कैसे उतरी किसने उतारी, एक दो बार तो उन्होंने नखड़ा किया लेकिन फिर हंस के बोली,
तेरी तरह इन्तजार नहीं किया मैंने,... तेरी उस ममेरी बहन से कम उमर थी, अच्छा पहले तीन तिरबाचा भरो की अपनी छुटकी बहिनिया को चोदोगे तो बताउंगी,,.... हाँ बोलने से काम नहीं चला, उसका स्कूल का नाम ले के बताना पड़ा रंजीता को,... तीन बार तीर्बाचा भरवाया, की उस की फाड़ूंगा,... तो बात उन्होंने शुरू की। और बात पता नहीं कैसे घूम फिर के गुड्डी की मझली बहिनिया पर पहुँच गयी तो भौजी बोलीं
" अरे मंझली से भी छोटी थी, जब मेरी चिड़िया उड़नी शुरू हो गयी थी और तुझे वो क्या गुड्डी भी अभी छोटी लगती है,... "
पता नहीं कैसे मेरे मुंह से उनकी बेटी का नाम निकल गया, फिर लगा की नहीं बोलना चाहिए था पर बात तो निकल ही गयी, उन्होंने ही बोला था की उनकी बेटी भी मंझली की ही समौरिया है तो वही सोच के,...
" गुंजा से भी कच्ची उमर थी भौजी आप की "
मेर्री बात उन्होंने काट दी, उन्हें बात आगे बढ़ाने की जल्दी थी, " उससे पूरे छह महीने छोटी थी "
फिर उन्होंने हाल खुलासा बताया। एक उनके पड़ोस की बहन थीं, उसे ये दीदी बोलती थीं इनसे चार पांच साल बड़ी, ... न सगी न रिश्ते की बस मुंह बोली। पडोसी थीं लेकिन दोस्ती खूब थी, दीदी से भी उनकी भाभी से भी। गौना जाड़े में हुआ था दीदी का और गौने में ही जीजा, उन पे मोहा गए. पास के गाँव में ही शादी हुयी थी।
भौजी बोलीं बस उनके टिकोरे से ही आ रहे थे, लेकिन उनकी उस मुंहबोली दीदी वाले जीजा जब भी आते, महीने में दो चार चक्कर लग ही जाता, बस कभी पीछे से पकड़ के टिकोरे मसल देते, अपना खूंटा चूतड़ में रगड़ देते, और ये नहीं की अकेले पाके, ... दीदी होती तो उसके सामने, और वो चिढ़ातीं,
' नाप लो, पिछली बार से कुछ बड़े हुए की नहीं "
और भौजी तो और चिढ़ाती अपने नन्दोई को,
" गलती तो पाहुन की है ठीक से दबाते नहीं तो बढ़ेंगे कैसे, फिर ननद ननद में फरक करते हैं , एक का तो चोली खोल के खुल के रगड़ते मसलते हैं और दूसरी का फ्राक के ऊपर से बस हलके से नाम के लिए "
और दीदी और, बोलतीं भौजी से लेकिन उकसातीं अपने मरद को,
" भौजी सही है , आपके नन्दोई बहन बहन में फरक करते हैं मुझे भी अच्छा नहीं लगता। "
फिर तो जीजू फ्राक के अंदर हाथ डाल के कस कस के कच्ची अमिया को, .... और जान बुझ के अपना टनटनाया खूंटा मेरे पिछवाड़े कस कस के रगड़ते, भले बीच में उनका पजामा मेरी फ्राक रहती लेकिन उसका कड़ापन, मोटाई,... मेरी देह सनसना जाती गुलाबो फड़कने लगतीं, मैं पनिया जाती। ऊपर से बोलती जीजू छोड़ न , लेकिन मन कतई नहीं होता की वो छोड़ें, पहली बार आ रहे जोबन पर किसी का हाथ पड़ा था.
भौजी मेरे मन की हाल अच्छी तरह समझती थीं खुद ही उनसे खुल के बोलतीं, ...
" अरे अब नेवान कर दो बबुनी का कब तक तड़पाओगे,... फिर खुद ही दिन घड़ी तय कर देतीं, ' अरे दो महीने में फागुन लग जाएगा, बस असली पिचकारी का रंग मेरी ननद को,... "
और हुआ वही, होली के एक दिन पहले भौजी ने अपने घर बुला लिया, होली में काम तो बढ़ ही जाता है, फिर मैं सोच रही थी की जीजू तो होली के दिन आयंगे।
मैं और भौजी मिल के गुझिया बना रहे थे और भौजी ने पहले से बनी दो गुझिया खिला दी, मुझे क्या मालूम था उसमें डबल भांग की डोज पड़ी है,... बस थोड़ी देर में ही,...
और पता चला की दीदी जीजू तो सुबह ही आ गए थे, दीदी अपनी किसी सहेली के यहाँ गयीं हैं शाम तक लौटेंगी और जीजू सो रहे हैं,...
लेकिन घर में कच्ची उमर की साली हो, होली हो किस जीजू को नींद लगती है, मानुस गंध मानुस गंध करते वो उठे,...
होली रंग से शुरू हुयी अंग तक पहुंच गयी,
पहले चरर कर के फ्राक फटी फिर जाँघों के बीच की चुनमुनिया, ...
भौजी ने कस के मेरे दोनों हाथ पकड़ रखे थे, लेकिन एक बार जब जीजू का सुपाड़ा अंदर घुस गया तो उन्होंने हाथ छोड़ दिया और मुझसे बोलीं, " ननद रानी जोर जोर से चूतड़ पटको, चीखो चिल्लाओ, अब बिना चुदवाये बचत नहीं है "
लेकिन जब झिल्ली फटने का टाइम आया, तो भौजी ने अपनी बड़ी बड़ी चूँची मेरे मुंह में ठेल दी, और अपने नन्दोई से बोलीं
" अब पेलो कस के, अरे कच्ची कली है, उछले कूदेगी है है, बछिया के उछलने से का सांड़ छोड़ देता है , और रगड़ के पेलता है। "
झिल्ली फटनी थी फटी,दर्द होना था हुआ, लेकिन जीजू ने खूब हचक के चोदा। और भौजी और उन्हें चढ़ा रही थीं।
और मुझसे उठा नहीं जा रहा था, भौजी और जीजू ने मिल के किसी तरह बिठाया। हम लोग बस ऐसे बैठे ही थी की दीदी आगयीं।
बात काट के मैं बोला, " वो तो बहुत गुस्सा हुयी होंगी उन्हें अगर पता चल गया होगा "
चंदा भाभी बोलीं, एकदम बहुत गुस्सा हुईं जीजू पर बहुत चिल्लाईं और मैं भी सहम गयी।
उसके बाद भाभी खूब देर तक खिलखिलाती रही फिर बोलीं अरे हाल तो पता चलना ही था, मेरी फ्राक फटी थी, जाँघों के बीच मलाई लगी थी, लेकिन जानते हो दी गुस्सा क्यों हो रही थीं,...
उनके आने का इन्तजार क्यों नहीं किया, उनके सामने मेरी लेनी चाहिए थी और दो बातों पर वो राजी हुयी, मैं जब जीजू की ओर से बोलने लगी तो वो बोलीं,
" चलों अब मेरे सामने फिर से करो, और जैसे मैं कहूं, मेरी छोटी बहिन के साथ मजा लिया और मुझे देखने को भी नहीं मिला, ... ऐसे नहीं निहुरा के हां "
और वहीँ आँगन में निहुरा के कुतिया बना के जीजू ने फिर से मुझे दीदी और भौजी के सामने चोदा ,
और भौजी से ज्यादा दीदी मुझे चिढ़ा रही थीं,
" क्यों पूछती थीं न जीजू के साथ कैसा लगता है अब खुद देख ले,... कैसे जोर के धक्के लगते हैं,... आ रहा है न मजा "
और कभी जोर से फिर जीजू को हड़काती, " मेरी बहिनिया की अभी कच्ची अमिया है तो क्या इत्ते हलके हलके मसलोगे,... सब ताकत क्या मेरी ननदों के लिए बी बचा रखी है, ... "
लेकिन एक बात समझ लो असली मजा नयी लड़की को दूसरी चुदाई में ही आता है। मैं समझ गयी क्यों सब लड़कियां इस के चक्कर में पड़ी रहती हैं।
डेढ़ घंटे में दो बार मैं चुदी। बाद में दी ने जीजू से दूसरी शर्त बतायी, और अब ये मेरी बहन आपको रंग लगाएगी पूरे पांच कोट रंग आज भी कल भी और चुपचाप बिना उछले कूदे लगवा लीजियेगा, ...
ये बात दी ने एकदम मेरे मन की कही थी, ये बात सोच के ही मैं परेशान हो रही थी, जीजू को रंग कैसे लगाउंगी, एक तो लम्बे हैं उचक के बच जाएंगे मेरा हाथ ही नहीं पहुंचेगा, दूसरे तगड़े भी बहुत हैं पकड़ भी जकड़ने वाली, एक बार मेरी कलाई पकड़ ली,... मैं खूब खुश लेकिन लालची बचपन की,... मैंने दीदी से कहा ,
पांच कोट रंग के बाद एक बाद एक कोट पेण्ट की भी,...
" एकदम पेण्ट तो बहुत जरूरी है, एक ओर सफ़ेद , एक ओर कालिख पक्की वाली " हँसते हुए दी ने मेरी बात में और जोड़ा फिर कहा ये तेरे जीजू ही आज जा के सब पेण्ट रंग लाएंगे तेरे साथ, ... "
पर जीजू एक बदमाश, और जीजू कौन जो बदमाश न हो और साली सलहज को तो बदमाश वाले ही अच्छे लगते हैं। जितने ज्यादा बदमाश हो उत्ते ज्यादा अच्छे। जीजू बोले, " मंजूर मैं चुप चाप लगवा लूंगा लेकिन ये मेरी साली जित्ती बार रंग लगाएगी, उत्ती बार मैं उसे सफ़ेद रंग लगाऊंगा, फिर ये न भागे। ये भी चुपचाप लगवा ले "
मैं मतलब समझ रही थी , थोड़ा शर्मा गयी लेकिन मेरी और से दी बोलीं, और जीजू को हड़का लिया, ...
" कैसे कंजूस जीजू हो जो साली को सफ़ेद रंग लगाने का हिसाब रखोगे,... अरे मेरी बहन है, तेरी पिचकारी पिचका के रख देगी, लगा लेना, जित्ती बार वो रंग लगाएगी उत्ती बार, उसके दूनी बार, वो एकदम मना नहीं करेगी।
"दी और जीजू मेरी लिए एक नयी फ्राक और शलवार कुर्ता ले आये थे,... बस वही पहन के मैं घर लौटी। माँ दरवाजे पे ही मिलीं।
मुझे लगा की चंदा भाभी की माँ ने हड़काया होगा,... लेकिन भौजी बोलीं " अरे नहीं माँ देख के ही समझ गयीं बस दुलार से मुझे दुपका लिया और गाल पे चूम के बोली, अच्छा हुआ तू भी आज से हम लोगो की बिरादरी में आ गयी। जा थोड़ी देर आराम कर ले "
और हर कहानी के अंत में कहते हैं न की कहानी से क्या शिक्षा मिलती है तो चंदा भाभी ने वो शिक्षा भी दे दी।
" साली साली होती है उस की उमर नहीं रिश्ता देखा जाता है। और साली कोई जरूरी नहीं सगी हो रिश्ते जी , मुंहबोली भी ( आखिर चंदा भाभी की नथ तो मुंहबोली दीदी वाले जीजा ने उतारी थी दिन दहाड़े) दूसरी बात अगर जीजा साली को दबोचे नहीं दबाये रगड़े नहीं, मस्ती न करे तो सबसे ज्यादा साली को बुरा लगता है और जीजा साली के रिश्ते की बेइज्जती है। "
मैं ध्यान से उनकी बात सुन रहा था लेकिन उसके बाद जो बात उन्होंने बताई, वो एकदम काम की थी, ... दे
ख यार कोई चढ़ती उम्र वाली हो , गुड्डी की दोनों छोटी बहनों की उम्र की,...
बस एक बार पीछे से पकड़ के दबोच लो, कच्चे टिकोरों का खुल के रस लो,... और साथ में अपना तन्नाया खूंटा उसके छोटे छोटे चूतड़ के बीच दबाओ, जोर से एकदम खुल के रगड़ो, वो एक तो तुम्हारा इरादा समझ जायेगी, दूसरे उसकी देह में इत्ती जबरदस्त सनसनाहट मचेगी,... उसकी कसी बिल में इत्ते जोर से चींटे काटेंगे की वो खुद टाँगे खोल देगी, ... बस समझ लो उसके बाद न चोदना साली की भी बेइज्जती है और बुर रानी की भी। और जीजा साली के रिश्ते में कोई बोलता भी नहीं।
सुबह जब मेरी नींद खुली तो सूरज ऊपर तक चढ़ आया था और नींद खुली उस आवाज से।
“हे कब तक सोओगे। कल तो बहुत नखड़े दिखा रहे थे। सुबह जल्दी चलना है शापिंग पे जाना है और अब। मुझे मालूम है तुम झूठ-मूठ का। चलो मालूम है तुम कैसे उठोगे?” और मैंने अपने होंठों पे लरजते हुए किशोर होंठों का रसीला स्पर्श महसूस किया।
मैंने तब भी आँखें नहीं खोली।
“गुड मार्निंग…” मेरी चिड़िया चहकी।
मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और कसकर किस करके बोला- “गुड मार्निंग…”
“तुम्हारे लिए चाय अपने हाथ से बनाकर लाई हूँ। बेड टी। आज तुम्हारी गुड लक है…” वो मुश्कुरा रही थी।
Gunja fir se bach gyi. Jiju ka pyasa chhod diyaचुसम चुसाई होली में
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और अब चूसने चाटने का काम मेरा था.
जैसे कोई पिया की प्यारी, मिलन की प्यासी खुद अपनी बांहे फैला दे, जैसे साजन की राह तकती, विरह में जलती नायिका, दरवाजे खोल के खड़ी हो जाए,
बस एकदम उसी तरह गुंजा ने अपनी मेरे होंठों के वहां पहुँचने से पहले ही अपनी दोनों कदली सी चिकनी, मांसल जाँघे फैला दी, जैसे रस्ते खुद खुल गए हों,
मेरे प्यासे होंठ जो अब तक उस कुँवारी किशोरी के भीगे रसीले होंठों का, आ रहे उभारों का स्वाद चख चुके थे, उस रति कूप में डुबकी लगाने के लिए बेक़रार थे। पर सीधे कुंए में उतरने के पहले, उसकी सीढ़ियों पर चढ़ना, उसके आसपास का हाल चाल,
चुंबन यात्रा जाँघों के उस ऊपरी हिस्सों से शुरू हुयी जहाँ, न धूप की किरण पड़ती थी न किसी की नजर, कभी मेरे होंठ हलके से चूमते, कभी सिर्फ जीभ जरा सा बाहर निकल कर बस उसकी टिप एक लाइन सी खींचती, रस्ता बताती उस प्रेम कूप की ओर जिसमें डुबकी लगाने के लिए मैं अब तड़प रहा था और कभी होंठ कस कस के चूसते, एक जांघ पर होंठ थे दूसरे से मेरी लम्बी काम भड़काने वाली उँगलियाँ, दोस्ती कर रही थीं। कभी बस छूतीं, कभी सहलाती तो कभी सरक सरक के प्रेम गली की ओर,....
गुंजा तड़प रही थी, सिसक रही थी,
और ये नहीं की वो मेरे चर्मदंड को भूल गयी थी,... उसके होंठ कभी मेरे होंठों की नक़ल करते उसके आस पास चाटते तो कभी मुट्ठी में पकड़ के वो कच्ची अमिया वाली हलके हलके आगे पीछे,
मस्ती के मारे मेरी आंखे जो अब तक बंद थी जब खुलीं तो बस एक पल ही देखा जो, वो आँखों से कभी भी न बिसरे बस इसलिए पलक के दोनों पपोटों में समा के मैंने आँखों की सांकल कस के बंद कर ली,
चिकनी गुलाबी खूब फूली फूली रस से छलकती दोनों फांके,
आम की दो बड़ी बड़ी रस चुआती फांको को जैसे किसी ने कस के चिपका दिया हो,
छेद क्या दरार भी नहीं दिखती थी, लेकिन जैसे चाशनी से भीगी, डूबी ताज़ी निकली जलेबी हो, शीरे में डूबी, उसी तरह रस में गीली, भीगी पता चल रहा था की ये कच्ची कली किस तरह चुदवासी थी,
कभी अपनी जाँघे जोर जोर से रगड़ती, कभी सिसकती, " जीजू करो न, अच्छे जीजू, प्लीज, "
और कौन जीजू साली की बात टालता है वो भी फागुन में,
रति कूप के चारो ओर मेरे होंठ अब चक्कर काट रहे थे, कभी जीभ से बस बस मैं एक लाइन सी खींचता दोनों मोटे मोटे भगोष्ठों के चारो ओर, लेकिन गुंजा को मालूम था की मेरे एक्सीलेरेटर पर कैसे पैर रखा जाता है एक बार सुपाड़ा फिर उसके होंठों के बीच और वो कस कस के चूस रही थी तो मैं अब कैसे छोड़ता,
पहले मेरी जीभ ने उस कच्ची कोरी रस में भीगी चूत की चासनी को धीरे धीरे कर के चाटा, फिर हलके हलके चूसना शुरू किया,
फुद्दी फुदकने लगी, और मेरी चूसने की रफ़्तार बढ़ गयी,
होंठों का प्रेशर दोनों फांको पे , जो अब पूरी तरह मेरे मुंह थी, चूसने के साथ मेरी जीभ दोनों फांको को अलग करने की कोशिश कर रही थी, चाटने चूसने से चाशनी कम होने की बजाय और बढ़ रही थी, रस से एक ेदक गीली थी और अब होंठों ने दोनों फांको को हथेली के लिए छोड़ा और खुद क्लिट को छेड़ने में जुट गए, इस दुहरे से हमले तो खूब खेली खायी भी गरमा जाती, गुंजा तो पहले से ही पिघल रही थी,
थोड़ी देर हथेली से रगड़ने के बाद मैंने तर्जनी से दोनों फांको को फ़ैलाने की कोशिश की, लेकिन फेविकोल का जोड़ मात, इतनी कस के दोनों चिपकी थी,
जैसे दो बचपन की सखियाँ कस के गल बंहिया डाल के बैठी हों कोई छुड़ा न पाए, एकदम स्यामिज ट्विन्स की तरह जुडी चिपकी,
कलाई के पूरे जोर से तर्जनी को घुसाने की कोशिश की,
उईईई गुंजा जोर से चीखी,
ऊँगली का बस सिरा ही घुसा था, मैंने गोल गोल घुमाने की फिर घुसाने की कोशिश की जैसे बरमे से कोई कठोर लकड़ी में छेद कर रहा हो पर उस कच्ची कली की पंखुडिया इतनी कस के चिपकी थीं,
और मुझे कल रात की चंदा भाभी की बात याद आयी, बात तो वो गुड्डी के सिलसिले में कर रही थीं, लेकिन बात हरदम के लिए सही थी,
" देख बिना चिकनाई लगाए कभी भी नहीं करना चाहिए ,सबसे अच्छा तो देसी सरसों का तेल है, लेकिन उसको रखने का झंझट है और नहीं तो लगभग वैसा ही है वैसलीन, ( मुझे याद आया गुड्डी ने जब कल वैसलीन ली थी दूकान से तो दूकान वाला बोला, बड़ी शीशी है चलेगी तो गुड्डी मेरी ओर देख के मुस्कराते बोली एकदम बड़ी शीशी ही दे दीजिये"
और सरसों का तेल हो तो पहले अपने मूसल पे लगाओ, लेकिन उसके पहले हथेली पे और ऊँगली पे और हल्का सा नहीं बल्कि चुपड़ लो।तेल की शीशी में सीधे डाल लो ऊँगली पहचान ये है की ऊँगली से तेल टप टप चूए, और उससे फिर दोनों फांको के बीच,.... धीमे धीमे, ...तेल अपने आप जगह बनाएगा, और जैसे ही दरार थोड़ी सी फैले, ...उसमें बूँद बूँद तेल चुआ चुआ करके, जबतक ऊपर तक न छलक जाए,.... फिर हथेली से थोड़ी देर पूरी बुर रगड़ो, हलके हलके, और जब तेलिया जाए, तो फिर तेल में डूबी ऊँगली,जब तक दो पोर एक ऊँगली की न चली जाए तब तक, और उसके बाद गोल गोल घुमाओ,
फिर उसी ऊँगली के पीछे दूसरी ऊँगली एकदम चिपका के, दोनों ऊँगली एक पोर तक और हर बार पहले तेल अंदर, दो ऊँगली जब सटा सट जाने लगे तो उसके बाद सुपाड़े को एकदम तेल में चुपड़ के, तब धीरे धीरे, "
भाभी समझा भी रही थी और मेरे खूंटे पे तेल चुपड़ भी रही थी।
मुझसे नहीं रहा गया और मैं पूछ बैठा, " भाभी ने तो बताया था किआप करीब करीब छुटकी की उमर की थीं, जब आपके जीजा ने आपके साथ, तो कैसे आपकी तो एकदम, "
वो जोर से हंसी और तेल की धार सीधे सुपाड़े के छेद में और खूंटे को तेल लगे हाथों से मुठियाते बोलीं,
" देवर जी, पहली बात तो मेरे जिज्जा की महतारी आपकी महतारी की तरह गदहे के साथ नहीं सोई थीं, जीजा का आदमी ऐसा था , तोहरी तरह गदहा, घोडा छाप नहीं। दूसरी बात हमरे जीजा तोहरे तरह बुद्धू नहीं थे, खूब खेले खाये चतुर सुजान, और फिर हमार भौजी उनके साथ,...
तो पहले उनकी सलहज, हमार भौजी,... हमार बिल फैलाये के सीधे कडुवा तेल की बोतल का मुंह उसी में लगा के ढरका दीं, आधी बोतल, फिर बुरिया के ऊपर दबा के देर तक रगड़ रगड़ के जब तक तेल अंदर सोख नहीं लिया, फिर अपनी तेल में चुपड़ी दो ऊँगली,…
और हमार भौजी तो पिछली होली में ऊँगली घुसा के, नेवान कर दी थी, और फिर तो मैं खुद भी, ….
लेकिन उस दिन इतना तेल पानी करने पे भी, जब झिल्ली फटी तो भौजी कस के हमार हाथ गोड़ दोनों छान के पूरी ताकत से,तब भी मैं ऐसी उछली, …..इसलिए पहली बात,... तेल पानी चिकनाई पहले और फिर ऊँगली पूरी अंदर कर के गीली कर के,... और जीजा का तो दो ऊँगली इतना मोटा रहा होगा, तेरा तो मेरी कलाई के बराबर, जब तक दो ऊँगली अंदर कम से कम दो पोर तक न घुस जाए तोहरे अस मूसल, घुसब बहुत मुश्किल है बल्किल कोशिश भी नहीं करनी चाहिए , बिना तेल लगाए, बिना दो पोर तक ऊँगली अंदर किये "
और यहाँ तो तेल की शीशी क्या तेल की एक बूँद भी नहीं थी, और मैं समझ गया बिना तेल, चिकनाई के, लेकिन जब सामने छपन भोग की थाली हो, तो
मैं एक बार कस के फिर से चूसने चाटने में लग गया,
मैं सीधे पांचवे गियर में पहुँच गया, कस के गुंजा की दोनों फैली जांघो को और बुरी तरह फैला दिया, अंगूठे को अपने मुंह में ले जाकर अपना सारा थूक उसपे लिपटा सीधे दरार के बीच, और अब मैं बजाय अंदर घुसाने की कोशिश करने के थोड़ी सी फैली फांको के बीच उसे रगड़ने लगा, और असर तुरंत हुआ,
" जीजूउउउउ " गुंजा ने जोर की सिसकी भरी।
वो हलके हलके चूतड़ उछाल रही थी, तड़प रही थी, उह्ह्ह आआह नहीं, हाँ कर रही थी कस कस के सिसक रही थी।
मुंह में मैंने ढेर सारा थूक भरा, दोनों अंगूठों से उस कोरी कच्ची कली की पंखुड़ियों को कस के फैलाया, और सारा का सारा थूक उसी खुली दरार में, और फिर अंगूठे और तर्जनी से दोनों फांको को पकड़ के चिपका के हलके हलके आपस में रगड़ना शुरू किया और गुंजा मस्ती से पागल हो गयी,
" ओह्ह्ह, क्या कर रहे हो जीजू, उफ़ कैसा लगता है , जीजू तू, ओह्ह जीजू ओह्ह्ह "
वो टीनेजर लम्बी लम्बी साँसे भर रही थी, कुछ भी मेरा बोलना उस जादू को तोड़ना होता। और फिर मेरी जीभ और होंठों को बोलने के और भी तरीके आते थे, एक बार फिर से जीभ ने मेरी छोटी साली के योनि कपाटों को बस हलके से खोला और जो दरार दिखी उसी में सेंध लगा दी
आगे पीछे, गोल गोल, उस प्रेम गली के मुहाने पे वो बार बार दरवाजा खटखटा रही थी, और मेरी जीभ का असर, मेरी साली की चढ़ती जवानी का असर,
जैसे पाताल गंगा निकल पड़ी हों, रस का एक झरना फूट पड़ा हो, पहले बूँद बूँद, फिर एक तार की चाशनी जैसा, लसलसा, लेकिन
क्या गंध, क्या स्वाद, क्या स्पर्श, और चुसूर चुसूर मेरे होंठ अंजुरी बना के उस कुँवारी कच्ची योनि रस को सुड़कने लगे
"ओह्ह्ह बहुत अछ्छा लग रहा है जीजू क्या हो रहा है जीजू उफ़ उफ़ हाँ हाँ, "
रुक रुक के वो जवानी की चौखट पे खड़ी टीनेजर कभी सिसकती कभी रुक रुक के बोलती
मेरे दोनों हाथों ने अब पूरा जीभ के लिए छोड़ दिया था
लेकिन वो दोनों शैतान हाथ अब भी रस ले रहे थे, पीछे गुंजा के छोटे छोटे नितम्बों को छू के दबा के दबोच के, और उंगलिया जिसे बहुत लोग वर्जित समझते हैं वहां भी जांच पड़ताल कर रही थीं
और जीभ पंखुड़ियों पे एक मिनट में १०० बार, २०० बार तितली की तरह पंख फड़फड़ा रही थी, फ्लिक कर रही थी,
गुंजा पागल हो रही थी
होंठ कभी चूसते कभी चाटते, कभी ऊपर जा कर उस कोमल कली की कड़ी कड़ी क्लिट पे भी सलामी बजा देते
ओह्ह आह बस ऐसे ही, क्या करते हो , बहुत बहुउउउत अच्छाआ लग रहा है ओह्ह्ह्हह्हह ओह्ह्ह्हह
और मैं समझ गया की मेरी साली अब एकदम झड़ने के कगार पे है, मैंने चूसने की चाटने की रफ़्तार बढ़ा दी
लेकिन छेड़ने का हक़ क्या सालियों का है , सुबह का ब्रेड रोल मैं भूला नहीं था, बस जब वो वो एकदम कगार पे पहुँच गयी,
मैं रुक गया
और गालियों की झड़ी लग गयी,
"करो न जीजू, ओह्ह्ह्ह रुक क्यों गए, अच्छा लग रहा था, ओह्ह प्लीज स्साले,.... तेरी बहन की, तेरी उस एलवल वाली की,... कर ना"
मेरे होंठ उस रसीली की रसभरी फांको से अब इंच भर ऊपर थे, मैंने चिढ़ाया
" क्या करूँ गुंजा रानी, मेरी प्यारी साली "
" स्साले, जो अबतक कर रहे थे, बहन के भंड़ुवे, " गुंजा अब एकदम बनारस वाली रसीली साली बन गयी थी।
" अरे स्साली वही तो पूछ रहा हूँ, " मैंने उस रस की पुतली को फिर उकसाया,
" अपनी बहन की चूत चाट चाट के चूस चूस के जो सीख के आया हैं न वही, " और फिर से एकदम स्वीट स्वीट
" जीजू प्लीज करो न चुसो न कस कस के बहुत अच्छा लग रहा था, चूस मेरी चूत, चाट कस के "
वो अपने चूतड़ उचका के खुद अपनी रस की गुल्लक मेरे होंठों के पास ला रही थी और मैं होंठ और ऊपर,
लेकिन साली जब अपने मुंह से कह दे, उसके बाद तो, फिर से चूसना चाटना, शुरू तो मन्द्र सप्तक से हुआ, मदिर मदिर समीर से लें ऐसी चढ़ती जवानी हो तो हवा को तूफ़ान में बदलने में कितनी देरी लगती है
और अबकी जब गुंजा झड़ने के कगार पर पहंची तो मैंने घोड़े को और एड दे दी, वो हवा में उड़ने लगा और गुंजा भी,
ओह्ह्ह उफ्फ्फ उईईई नहीं हां उफ्फ्फ आअह्ह्ह अह्ह्ह्हह
जवालामुखी फूट पड़ा, मैं कस के उसे दबाये था तभी वो चूतड़ उछाल रही थी, उचक रही थी, तड़प रही, जाल में आने वाली मछली जैसे हवा में उछलती है फ़ीट भर एकदम उसी तरह
लेकिन न मेरे चूसने में कमी हुयी न चाटने में
बस जीजू बस, बस एक पल, ओह्ह ओह्ह्ह देह उसकी एकदम ढीली हो गयी थी
उसकी बात मान के मैं एक पल को रुका फिर से चूसना शुरू कर दिया और दो चार मिनट में वो फिर झड़ रही थी , उसके बाद तो ये हालत हो गयी की मैं बस उसके रस कूप पे होंठ लगाता, क्लिट पे जीभ छुआता और वो,
तीसरी बार, चौथी बार
एकदम थेथर होगयी, थकी, निढाल और तब मैं रुका और बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही बेसुध, फिर मैं ही उठा और कस के उसे अपनी गोद में बिठा के चूम लिया, और बदले में क्या उस लड़की ने चूमा मेरे होंठों को, चाट चाट के चूस के, थकान से सपनों से लदी उसकी पलकें अभी भी बंद थी, लेकिन जब बड़ी बड़ी आँखे खोल के उस खंजननयनी ने देखा तो उसे अहसास हुआ,
जो वो चूस चाट रही थी उसका अपना योनि रस था,
वो एकदम से शर्मा गयी, मेरे पीठ पे मुक्के से मारने लगी, ' गंदे, बदमाश "
और मैंने उसे कस के भींच लिया और कान में पूछा, " हे अच्छा लगा "
और अबकी वो और जोर से शर्मा गयी, मेरी बाहों में कस के दुबक गयी। और फिर जवाब उसके एक मीठे वाले चुम्बन ने दिया,
कुछ देर तक हम दोनों ऐसे कस के चिपके, एक दूसरे को बाहों में भींचे रहे, और गुंजा को अपने नितम्बो में धंस रहे खूंटे का अहसास हुआ वो अभी भी जस का तस खड़ा,कड़ा, और गुंजा ने मेरे कानो में धीरे से बोला,
" सॉरी जीजू "
समझ तो मैं रहा था लेकिन मैं उसे हड़काते बोला, " साली, गाली देती हैं, सॉरी नहीं बोलती, न जीजा न साली "
" वो तेरा, : कस के बिन बोले अपने चूतड़ों से मेरे खड़े मूसल को दबाते बिन बोले उसने इशारा किया
" इत्ता मजा तो मिला, तेरे भीगे भीगे मीठे मीठे होंठों का शहद से मुंह का "
मैं बोला और गुंजा और कुछ बोलती उसके पहले मेरे होंठों ने उसके होंठ सील किये और जीभ ने मेरी साली के मुंह में सेंध लगा ली। कुछ देर पहले जो सुख मेरे लिंग को मिल रहा था अब वही मेरे जीभ को मिल रहा था, चूसे जाने का,
अब न गुंजा बोल सकती थी न मैं
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" गुंजा, " बड़ी जोर से आवाज गूंजी।
उसकी सहेली.... वही जो सुबह उसे बुलाने आयी थी, मोहल्ले भर में नहीं तो चार पांच घरों में जरूर सुनाई पड़ा होगा,
और उछल के गुंजा मेरी गोद से खड़ी हो गयी,
' स्साली कमीनी छिनार '
बुदबुदाते हुए झट से मेरे तौलिये के ऊपर आराम फरमा रही अपनी स्कर्ट को चढ़ा लिया और फिर स्कूल वाली टॉप को, और मैंने भी तौलिया बाँध लिया।
और मेरी ओर मुड़ के उस कामिनी ने एक झट से चुम्मी ली, और बड़ी बड़ी आँखे झुका के बोली,
" सॉरी जीजू मैं भूल ही गयी थी, मेरी एक एक्स्ट्रा क्लास है थोड़ी देर में, और उसमे जाना,... "
तबतक गुड्डी धुले हुए कपड़ो का गट्ठर लेके बाथरूम से निकल आयी थी, और गुंजा की बात सुन के बोली, " क्यों मोहिनी मैडम ""
और दोनों सहेलियों की तरह खिलखिलाई उस मैडम के नाम पर, गुड्डी चू दे बालिका विद्यालय की पुरानी खिलाडन, गुंजा की दो साल सीनियर,
बालिका विद्यालय की उन दोनों बालिकों के वार्तालाप से ये पता चला की,
मोहिनी मैडम कालेज के जो मारवाड़ी मालिक हैं उन के लड़के से फंसी है, और ज्यादातर टाइम उस की बाइक के पीछे चिपकी नजर आती हैं, क्लास वलास तो कम ही लेती हैं लेकिन स्टूडेंट्स उन से बहुत खुश रहती हैं, क्योंकि इम्तहान के पहले वो एक क्लास लेती हैं जिसमें दस वेरी इम्पोर्टेन्ट क्वेशन बताये जाते हैं, आठ शर्तिया आते हैं और करने पांच ही होते हैं। पर्चे मोहिनी मैडम के ताऊ की प्रेस में ही छपते हैं और उस मारवाड़ी मालिक के लड़के की कृपा से हर बार ठेका उन्ही को मिलता है।
और गुंजा ने आज की क्लास का स्पेशल अट्रैक्शन ये बताया की मोहिनी मैडम आज सिर्फ अपना सब्जेक्ट नहीं बल्कि तीन तीन पेपर, मैथ, इंग्लिश और सोसल, तीनो के ' इम्पोर्टेन्ट सवाल ' बताएंगी और मॉडल आंसर भी वो जिराक्स करा के लायी है तो वो भी, हाँ अगर आज उन की क्लास में जो नहीं गया, वो कॉपी में कुछ भी लिख के आये, उस का फेल होना पक्का,
तबतक गुंजा का नाम फिर जोर से लेकर वो सहेली चिल्लाई, और बोली, मैं ऊपर आ रही हूँ क्या कर रही है कमीनी,
" आती हूँ, यहाँ होली चल रही है अगर आयी तो जा नहीं पाएगी सोच ले " गुंजा ने जबरदस्त बहाना बनाया
लेकिन गुंजा के बाद एक और आवाज नीचे से पुकारने की आयी,
" गुड्डी, गुड्डी " और ये आवाज तो बुलंद थी ही मैं सबसे अलग, दूबे भाभी की। और गुड्डी धड़धड़ा के नीचे,
" स्साली छिनार, क्लास में अभी आधा घंटा है, सुबह एक बार चुदवा मन नहीं भरा तो इस समय भी "
गुंजा अपनी सहेली के बारे में बोल रही थी फिर उसने राज खोला की एक यार है उसका तो गुंजा को पंद्रह मिनट चौकीदारी करनी पड़ेगी,
" पन्दरह मिनट में हो जाता है,... " अचरज से मैं बोला। और गुंजा जोर से खिलखिलाई
" जीजू मैं ज्यादा बोल रही हूँ, दस मिनट, पांच मिनट कपडा उतारने और पहनने में, दो मिनट में वो मुठिया के खड़ा करती है, फिर मुश्किल से तीन मिनट। सुबह वाले को तो उसने मुंह में लिया था, मैं बाहर घडी देख रही थी, कुल दो मिनट बीस सेकेण्ड चूसा होगा, और मलाई बाहर, " हंस के मेरी छोटी प्यारी दुलारी साली बोली।
तब तक गुड्डी के वापस सीढ़ी पर चढ़ने की आवाज सुनाई पड़ी और गुंजा ने मेरी टॉवेल को उठा के अभी भी तन्नाए सुपाड़े पे एक कस के चुम्मी ली, और उससे और मुझसे दोनों से बोली
" जीजू, चुदुँगी तो तुझसे ही, ,,,आज नहीं हुआ तो, " और उसकी बात मैंने पूरी की
" जब होली के बाद लौटूंगा न तो सबसे पहले तेरी चुनमुनिया ही फाड़ूंगा " और मन में कसम खायी आयी से जेब में एक छोटी वैसलीन की शीशी कुछ न हो तो बोरोलीन की ट्यूब ही सही,
" एकदम " वो चंद्रमुखी खिल उठी और खड़ी हो के मुझे बाँहों में बाँध के जोर से एक चुम्मी ली।
तबतक गुड्डी आ गयी और मुझसे बोली " जल्दी नीचे जाओ, दूबे भाभी का बुलावा है, संध्या भाभी तेरे रंग छुड़ायेंगी। "
गुंजा सीढ़ी पर नीचे, और मैंने बोला" हे मैं भी आता हूँ "
" नहीं नहीं जीजू, " मना करती वो सुनयना बोली,
" वो कमीनी एक बार देख लेगी न और अगर मेरी क्लास की सहेलियों को खबर हो गयी तो फिर सब की सब, ....कोई नहीं छोड़ने वाली आपको, एक बार मैं निकल जाऊं "
और थोड़ी देर में गुंजा की नीचे से आवाज आयी, " मम्मी, मेरी एक्स्ट्रा क्लास है मैं जा रही हूँ , तिझरिया में लौट आउंगी "
बाथरूम के अंदर से चंदा भाभी की आवाज आयी ठीक है
और मैं भी सीढ़ी पर नीचे,
एक बाथरूम का दरवाजा आधा खुला था, संध्या भाभी झाँक रही थीं, ....सीढ़ी की ओर टकटकी लगाए।