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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग २४

मस्ती गुड्डी की -मजे शॉपिंग के


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फिर वो पैन्टी ले आया। गुड्डी जब तक चुन रही थी। वो धीरे से आकर बोला- “साहब। वो जो आखिरी एम॰एम॰एस॰ मिला होगा ना, वो मैंने ही भेजा है…”

मेरा माथा ठनका। तो इसका मतलब- “पान्च के बदले पचास लग जाय, बिन चोदे ना छोड़ब। चाहे जेहल होइ जाय…” वाला मेसेज इन्हीं जनाब का था।

तब तक गुड्डी ने दो थान्गनुमा पैन्टी पसन्द कर ली थी।


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मैंने फिर उसे दो सेट का इशारा किया।

पैक करते हुये वो बोला- “सही चुना आपने इम्पोर्टेड है…”

“तब तो दाम बहुत होगा?” गुड्डी ने चौंक के पूछा।

“अरे रहने दीजिये आपसे पैसे कौन मांगता है? वो मेरा मतलब है आप लोग तो आयेंगी ना बस ऐड्जस्ट हो जायेगा…”

“मतलब। ऐसा कुछ नहीं है…” मैं उसे रोकते हुये बोला।

लेकिन बीच में गुड्डी बोली-

“अरे भैया आप इनसे पैसा ले लिजिये। होली के बाद जब वो आयेगी ना,.... तो आपके पास लेकर आयेंगे और फिर हम दोनों मिलकर आपकी दुकान लूट लेंगें…”



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गुड्डी की कातिल अदा और मुश्कान कत्ल करने के लिये काफी थी।



जब हम बाहर निकले तो हमारे दोनों हाथ में शापिन्ग बैग और गुड्डी पर्स निकालकर पैसे गिन-गिन के रख रही थी।

गुड्डी ने जोड़कर बताया। 40% ड्रेसेज पे और 48% बिकनी टाप पे छूट, कुल मिलाकर 42% छूट। फिर नाराज होकर मेरी ओर देखकर बोली-

“तुम भी ना बेकार में इमोशनल हो जाते हो। अगर वो फ्री में दे रहा था तो ले लेते। बाद की बात किसने देखी है? कौन वो तुम्हारे ऊपर मुकदमा करता?


और फिर मान लो, तुम्हारी वो ममेरी बहन दे ही देती तो कौन सा घिस जायेगा उसका? फिर इसी बहाने जान पहचान बढ़ती है। अब आगे किसी और दुकान पे टेसुये बहाये ना तो समझ लेना। तड़पा दूंगी। बस अपने से 61-62 करते रहना। बल्की वो भी नहीं कर सकते हो। मैंने तुमसे कसम ले ली है की अपना हाथ इश्तेमाल मत करना…”

और उसके बाद जिस अदा से उसने मुश्कुराकर तिरछी नजर से मुझे देखा, मैं बस बेहोश नहीं हुआ।
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उसके बाद एक बाद दूसरी दुकान। अल्लम गल्लम।

हाँ दो बातें थी। एक तो ये की पहली गलती मेरी थी।

मैंने ही तो कल शाम उसे बोला था कि उसको यहां से निकलकर शापिंग पे जाना है।

और दूसरी।

वो अपने लिये कुछ भी नहीं खरीद रही थी। मेरे बहुत जोर करने पर ही कभी कभी। एक जगह कहीं डेकोरेटिव कैन्डल्स मिल रही थी। सबसे बड़ी एक फुट की रही होगी। बस उसने वो तो खरीद ली आधी दर्जन,

9…” इन्च वाली भी,… जो ज्यादा ही मोटी थी।

साडियां,


अपनी भाभी के लिये तो मैं पहले से ही ले आया था। लेकिन मैंने उसे बता दिया कि मेरे यहां एक पहले काम करता था, उसकी बीबी आज कल रहती थी और उमर में मुझसे एक-दो साल ही बड़ी होगी। इसलिये रिश्ता वो भौजाई वाला ही जोड़ती थी, दीर्घ नितंबा, उन्नत उरोज, उम्र में भाभी से दो चार साल बड़ी होंगी और मजाक में सिर्फ खुलकर बोलना, कोई लिमिट नहीं, पति बाहर था और घर का सब काम काज उन्ही के जिम्मे, रिश्ता एकदम देवर भाभी वाला ही, जो मजाक करने में भाभी झिझकती थीं, उन्हें आगे कर देती थीं तो उनके लिए

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साड़ी उसके साथ ब्लाउज़।
 
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कन्डोम
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एक दुकान पे तो हद हो गई।

पहले उसने अपनी लिस्ट से वैसलीन की दो शीशी खरीदी, फिर मुझसे कहने लगी कि दो पैकेट कन्डोम के ले लो, दरजन वाले पैकेट लेना।

लेकिन मैं हिचक रहा था। एक तो दुकान पे सारी लड़कियां शापिंग कर रही थी और दूसरे एक को छोड़कर बाकी सारी सेल्सगर्ल्स थीं।

“क्यों कल तुमने आई-पिल खरीदी तो थी, इश्तेमाल के बाद वाली। वो क्या करोगी? और फिर तुमने तो प्रापर पिल भी ली है…”

फुसफुसाते हुये मैंने गुड्डी से कहा।



वहीं दुकान पे मेरे कान पकड़ती हुई वो बोली-

“तुमको मैं ऐसे ही बुद्धू नहीं कहती। अरे मैं तुम चाहोगे तो भी नहीं लगाने दूंगी। जब तक चमड़े से चमड़ा ना रगड़े। क्या मजा? मेरा तो छोड़ो, तुम्हारे उस माल से भी। लेकिन इश्तेमाल के बारे में बाद में सोचना। पहले जो कह रही हूँ वो करो…”

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मरता क्या ना करता, मैं काउंटर पे गया।

एक सेल्सगर्ल थी, थोड़ी डस्की, लेकिन बहुत ही तीखे नाक नक्श, गाढ़ी लिपस्टिक, हल्का सा काजल, उभार टाइट टाप में छलक रहे थे, कम से कम 34सी रहे होंगे, टाप और लांग स्कर्ट।

“व्हाट कैन आई डू फार यू…” टाईट टाप में बोली।

मैं पहले तो थोड़ा हकलाया, फिर अपने सारे अंग्रेजी नालेज का इश्तेमाल करके हिम्मत करके बोला- “आई वांट सम सम,… सम,… कन्ट्रासेप्टिव…”

“ओके। देयर आर मेनी टाईप्स आफ कन्ट्रसेप्टिव्स। पिल्स, जेली, एन्ड सो मेनी टाइप्स वी हैव। आपको क्या चाहिये?” डार्क लिपस्टिक बोली।
“जी,… जी। वो। उधर जो रखा है…” मैंने उंगली से रैक में रखे कन्डोम्स के पैकेट की ओर इशारा किया।

मैंने हकलाते हुए बोला, मेरी हालत खराब हो रही थी कभी उस लड़की को देखता तो कभी गुड्डी को, जिसे एकदम कुछ फरक नहीं पड़ रहा था। वो दूकान पर रखे बाकी सामान को ऐसे देख रही थी, जैसे मुझे जानती तक न हो। मैं बस यही मना रहा था की और कोई न आ जाये दूकान पे।

वो वहां गई और उस काउंटर के पास खड़ी होकर, एक बार मुझे देखा और कन्डोम के पैकेट के ठीक ऊपर एक स्प्रे रखा था उसे उठा लायी और मुझसे बोली-

“यू वांट दिस। ये बहुत अच्छा है। नाईस च्वाय्स। इट विल डिले बाई ऐट-लीस्ट सेवेन-एट मिनटस मोर। दो सौ अड्सठ रूपये…”

और मेरे हाथ में पकड़ा दिया।

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पीछे से गुड्डी मुझे कोन्च रही थी- “अरे साफ-साफ बोलो ना। कन्डोम…”

टाईट टाप अभी भी मेरे सामने खड़ी थी।



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मेरे अगल-बगल खड़ी लड़कियां मुँह दबाकर मुश्कुरा रही थी। मैं झेंप रहा था। लेकिन अब उसे मना कैसे करता, उस स्प्रे को मैंने पकड़ लिया, नाम पढ़ा और ध्यान से देखा जैसे किसी एक्सपर्ट की तरह एक्सपाइरी डेट और कम्पोजिशन देख रहा हूँ, बस मन कर रहा था गुड्डी उसे पे करे और हम लोग निकल लें।
काउंटर वाली बड़े ध्यान से मुझे देख रही थी.
टाईट टाप ने फिर पूछा- “कुछ और। ऐनीथिंग मोर?”

“यस। यस सेम रेक, जस्ट बिलो…”

वो फिर वहीं जाकर खड़ी हो गई- “हाँ बोलिये। क्या?”

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बड़ी हिम्मत जुटाकर मैं बहुत धीमे से बोला- “कन्डोम। कन्डोम…”

“कांट लिसेन। थोड़ा जोर से…” वो बोली।

पीछे से गुड्डी ने घुड़का- “अरे जोर से बोल ना यार…” तब तक दो-चार स्कूल की लड़कियां और आकर दुकान में खड़ी हो गई थी।

अब मेरी हालत और खराब हो गयी, कैसे उन लड़कियों के सामने बोलूं। क्या सोचेंगी सब, ये गुड्डी भी न, जबरदस्ती , मेरा तो बस चलता मैं दूकान से निकल जाता लेकिन गुड्डी जिस तरह देख रही थी, वो भी हिम्मत नहीं पड़ रही थी।

उधर वो टाइट टॉप मेरी हालत समझ के जहाँ कंडोम रखे थे, वहीँ खड़ी थी, उसकी निगाहें मुझे चिढ़ा रही थी, कभी मुझे देखती कभी गुड्डी को।

वो स्कूल की लड़कियां भी हम सब को देख रही थीं।
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“कन्डोम। आई मीन कन्डोम। कन्डोम…” हिम्मत जुटाकर थोड़ा जोर से मैं बोला।

“यस आई नो व्हाट यू मीन…” वो मुश्कुराकर बोली।

एक-दो और सेल्सगर्ल उसके बगल में आकर खड़ी हो गई थी-

“लेकिन कैसा। डाटेड, या एक्स्ट्रा लुब्रिकेटेड, या अल्ट्रा थिन। फ्लेवर्ड भी हैं स्ट्राबेरी, बनाना…”

अब वह टाइट टॉप मेरी मज़बूरी समझ के और खिंचाई कर रही थी।

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मैंने कभी नहीं सोचा था की कंडोम ऐसी चीजे में भी इतनी कॉम्प्लिकेशन, तबतक मजे ले के जैसे उस टाइट टॉप के बगल की दूसरी काउंटर गर्ल ने पूछा और साइज



अब मेरी हालत और खराब हो गयी, मतलब किस चीज की साइज,... लेकिन टाइट टॉप वाली ने मामला साफ़ किया

मतलब पैकेट में कितने ३ या ५ या एक दर्जन

मुसीबत में मुझे बचाने और कौन आता, गुड्डी। तो बस वो आगे आ गयी।

लेकिन बिना मुझे बोलने का मौका दिये अब गुड्डी सामने आ गई और बोली- “दो लार्ज पैकेट, डाटेड, अल्ट्रा थिन…”

उसने निकालकर दे दिये लेकिन फिर मुझसे बोली- “मेरी ऐड़वाइस है। वी हैव सम विद ईडिबिल फ्लेवर्स। इम्पोर्टेड हैं, अभी-अभी आये हैं…”



मैं उसको मना नहीं कर सकता था या शायद मेरा मन कर रहाथा या बस मैं किसी तरह दुकान से निकलना चाहता था- “हाँ…” झटके से मैंने बोल दिया।

“एक और चीज है हमारे पास। सुडौल। फोर यंग ग्रोइंग गर्ल्स। बहुत बढ़िया और शेपली डेवलपमेंट होता है। इसमें एक होली आफर भी है। ब्रेस्ट मसाजर है 80% डिस्काउंट पे, साथ में। हफ्ते भर में वन कैन फील द डिफरेन्स…”

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स्कूल की लड़कियां जो आई थी उनमें से एक वही खरीद रही थी।

“ठीक है। ओके…” मैं बोला।

गुड्डी ने उसे कार्ड पकड़ा दिया।

सब सामान लेकर जब हम बाहर आये तो गुड्डी हँसते हुये दुहरी हो रही थी। वो रुकती, फिर खिलखिलाने लगती- “कन्डोम बोल तो पा नहीं रहे थे। करोगे क्या? तुम भी ना यार। और वो। तुमको पूरी दुकान बेच देती लेकिन तुम कन्डोम नहीं बोल पाते…”

और कस के उसने मेरी पीठ पे एक मुक्का मारा।


बिना उसके बोले मैं अगली मेडिकल की एक दूकान में घुस गया और मूव की एक बड़ी ट्यूब,



लेकिन मेरी किश्मत,… एक और दुकान दिख गई और वो उसमें घुस गई।

जब वो निकली तो फिर एक बैग मेरे हाथ में, मेरी पूछने की हिम्मत नहीं थी कि इसमें क्या है? 11 बैग मैं उठाये हुये था।

“अगर तुम कहो तो। अब हम लोग रिक्शा कर लें। और कुछ तो नहीं…” मैंने थककर पूछा।



“नहीं,,,,, अभी याद नहीं आ रहा है…” लिस्ट चेक करते हुये वो बोली- “और फिर याद आ जायेगा तो तुम्हारे मायके जाने के पहले एक राउंड और कर लेंगे…”

खैर, हम रिक्शे पे बैठ गये और रेस्टहाउस के लिये चल दिये।
 
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होली में ममेरी बहन को,...- सस्ता साहित्य
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स्टेशन के कुछ दूर पहले मुझे एक ठेले पे किताब की दुकान दिखायी पड़ी, और मुझे बहुत कुछ याद आ गया- “रोको रोको…” मैंने रिक्शे वाले को बोला और उतर पड़ा।

गुड्डी भी मेरे साथ उतर पड़ी।

मैंने उसे समझाने की कोशिश की…” रुको ना मैं जरा एक-दो किताब लेकर आता हूँ…”

“क्यों मैं भी चलती हूँ ना साथ…” गुड्डी तो गुड्डी थी।

लेकिन दुकान पर पहुँचकर अब झेंपने की बारी उसकी थी।

ये दुकान पहलवान की थी जहां से मैंने मस्तराम साहित्य का अध्ययन प्रारम्भ किया था। सचित्र कोक शास्त्र, देवर भाभी की कहानियां, बसन्त प्रकाशन की मैगजीन से लेकर मस्तराम की भांग की पकौड़ी और बाकी सब कुछ।

“का हो पहलवान कैसे हऊवा?” पुरानी यादों को ताजा करते हुये मैंने पूछा।
पहलवान तुरंत पहचान गया- “अरे भईया। बहुत दिन बाद। सुनले रहली कि कतों बड़की सरकारी नौकरी…”
मैं- “अरे ठीक हौ। हाँ ई बतावा की। कुछ हो…”

पहलवान- “अरे हौ काहें नाहीं आपके खातिर हम कबौ। लेकिन…” कहकर उसने गुड्डी की ओर देखा।

गुड्डी कुछ समझ रही थी, कुछ झेंप रही थी। मेरा हाथ गुड्डी के कंधे पे पहुँच गया और मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया।


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मेरी उंगलियां अब उसके उभारों तक पहुँच रही थी। ये पोज ही हम लोगों के रिश्तों को बताने के लिये काफी था। बची खुची बात। मेरी बात ने कह दी-

“देखावा ना इहौ देखिहें। अरे हम लोगन का ऐसे हौ। कौनो। छिपावे की…”

पहलवान ने अन्दर से अपना झोला निकाल लिया। इसी में उसका खजाना रहता था। उसने निकालकर एक किताब दिखायी। भांग की पकौड़ी-भाग दो, स्पेशल एडीशन।

मैंने किताब लेकर गुड्डी के हाथ में पकड़ा दी और बीच का एक पन्ना खोल दिया।

गुड्डी ने पढ़ने की शुरूआत की-

“हाँ और जोर से चोदो जीजू। ओह्ह… आह्ह…” और झेंप गई।
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उसने पर्स मुझे पकड़ा दिया, और कहा- “मैं चलती हूँ रिक्शे पे सामान रखा है। तुम ले आओ किताब…”

पर्स तो मैंने पकड़ लिया लेकिन साथ में उसका हाथ भी- “रुको ना बस दो मिनट। बोलो ना कैसी है किताब पसंद आई तो ले लें?”

“मैं क्या बोलूं जैसा तुम्हें लगे?” गुड्डी जबरदस्त झेंप रही थी।

“अरे भैईया, फोटुवे वाली हौ। देयीं…” पहलवान ने झोले से एक रंगीन किताब निकालते हुये कहा।

“हाँ हाँ दा ना…”

और मैंने किताब लेकर फिर गुड्डी के सामने ही पन्ना खोल दिया। बहुत अच्छी प्रिंटिंग थी। जो पन्ना खुला उसमें थ्री-सम था दो लड़के एक लड़की।


एक आगे से एक पीछे से।


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गुड्डी ने अपनी निगाह दूसरी ओर कर ली थी। लेकिन मैं देख रहा था की तिरछी निगाह से उसकी आँखें वहीं गड़ी थी।
“होली का कौनो ना हौ। खास बनारसी…” मैंने फिर पूछा।

गुड्डी कहीं और देखने का नाटक कर रही थी। लेकिन कान उसके हम लोगों की बात से चिपके थे।

“हौ ना। अरे अन्धरा पुल वाले दूठे मैगजीन हौ, होली के स्पेशल आजै आइल हो…”

और उसने निकालकर आजाद लोक और अंगड़ाई की दो कापी पकड़ा दी।

एक-दो और पुरानी मस्तराम एक अन्ग्रेजी की ह्यूमन डाईजेस्ट और मैंने ले ली। रिक्शे तक पहुँचने तक गुड्डी ने वो किताबें छुई भी नहीं।

लेकिन रिक्शे में बैठते ही उसने सारी मेरे हाथ से झपट ली। अब मुझे भी मौका मिल गया, उसे कसकर पकड़कर अपनी ओर खींचने का। साथ-साथ किताब देखने के बहाने।

उसने आजाद लोक होली अंक खोल रखा था। होली के जोगीड़े थे, गाने थे और टाईटिलें थी और साथ में होली के पाठक पाठिकाओं के संस्मरण, जीजा साली की होली। होली में देवर के संग किसी सोनी भाभी ने लिखा था।

पन्ने पलटते गुड्डी एक पन्ने पे रुक गई और जोर से मुझसे बोली-

“हे ये तुम्हारी कहानी किसने लिख दी। कहीं तुम्हीं ने तो नहीं?”
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मैंने देखा। संस्मरण था होली का। हेडिन्ग थी- “होली में ममेरी बहन को चोदा…”

सच में, नाम भी वही था, संगीता, और क्लास भी वही ११ वी में पढ़ने वाली,

और अब गुड्डी को मौका मिल गया, वो बिना तेल लगाए चढ़ गयी,

" देखो, पढ़ो और सीखो, पढ़ने लिखने से फायदा क्या, एक ये है, अरे अबकी होली में बचनी नहीं चाहिए, वो तो खुदे गर्मायी है, हाथ में ले के टहल रही है, और अब तो दूबे भाभी से तूने वायदा भी कर दिया है और जिम्मेदारी मेरे ऊपर की अपने सामने, "

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मुझे लग रहा था, रिक्शे वाला सुन रहा होगा और जितना मैं झेप रहा था उतना वो और, ....वैसे बात गुड्डी की गलत नहीं थी। थी तो मेरी बहन गुड्डी की ही उम्र की, उसी की क्लास की, और आज रात मैं गुड्डी के साथ तो फिर उसके साथ में क्या, और गूंजा तो नौंवे में। और जिस तरह से बनारस में



गनीमत थी रिक्शे वाले ने रास्ता पूछा और मुझे बात बदलने का मौका मिल गया

हम लोग रेस्टहाउस पहुँच गये थे। कमरे में घुसते ही मैं बेड पे गिर पड़ा। बगल में 11 बैग शापिन्ग के और गुड्डी का सामान। गुड्डी ने पहले तो रेस्टहाउस के कमरे का दरवाजा, खिडकियां सब बंद की, फिर सारे बैग, अपना सामान पलंग से हटाया। फिर मेरे बगल में बैठकर बोली- “थक गये क्या?”



मैं कुछ नहीं बोला।
 
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रेस्टहाउस- मसाज गुड्डी पेसल
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“अल्ले अल्ले मुन्ना मेरा। अभी। बस अभी तुम्हारी सब थकान दूर करती हूँ। एक मिनट। लेकिन ये पहले कपड़े तो उतार दो…”

और मेरे लेटे-लेटे ही उसने मेरी शर्ट उतारकर बिस्तर के नीचे फेंक दी।

पहले तो उसने मेरे चेहरे पे हाथ फिराया और धीरे से बोली-

“तुम हिलना मत बस लेटे रहो। अच्छे बच्चे की तरह मुन्ना मेरा। गुड गुड…”

फिर उसकी उंगलियों ने बड़े से बड़े स्पा वाले मात खा जायें।

पहले कंधे पे फिर गले के पीछे। पहले उंगलियों के पोरों से फिर हल्के-हल्के दोनों हाथों से फिर जोर से और वहां से सरक के मेरे हाथों की मांसपेशियों पे,… मुट्ठी से दबाते। छोटी-छोटी मुक्की से मारते। उसकी उंगलियां मेरी सारी थकान पी गईं।

लेकिन वो रुकी नहीं।

उसने मुझे साईड में किया और फिर कन्धे के नीचे कि मसल्स दोनों हाथों से जोर-जोर से मसाज करते हुये बैक बोन के साथ-साथ।

मेरी आँखें बंद हो गईं लगा सो जाऊँगा। करीब सारी रात चन्दा भाभी के साथ और सुबह से होली।

उसने मुझे फिर पीठ के बल लिटा दिया और पैंट के बटन खोलकर चूतड़ उठाकर पैंट अपने हाथों से नीचे सरका दी और एक झटके में नीचे उतारकर फेंक दी।



मुझे लगा अब गुड्डी कुछ शरारत करेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।



उसने मेरे एक पैर को ऊपर उठाया, पैर के पंजे को हल्के-हल्के अपने हाथ से दबाने लगी। दर्द अपने आप घुलने लगा।



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लेकिन फिर उसने वो किया जो मैं सोच भी नहीं सकता था। वो पलथी मारकर मेरे पैरों के पास बैठी थी।

उसने दोनों पैरों के तलवे अपने उभारों के ऊपर रख लिये और हल्के-हल्के उरोजों से ही दबाने लगी। फिर उसके होंठों ने एक किस मेरे पैर के अंगूठे पे लिया फिर बाकी उंगलियों पे, साथ-साथ उसकी उंगलियां मेरे टखनों को फिर घुटने और पंजों के बीच दबा रही थी।
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होंठ अब मेरे पैर के अंगूठे को कस-कसकर चूस रहे थे, किस कर रही थी।

फिर जुबान मेरे पूरे तलवे पे। और उंगलियां अब तक जांघों पे आ चुकी थीं। झुक के उसने ढेर सारी किस मेरे पंजों से लेकर जांघों तक ली और फिर मुझे पेट के बल लिटा दिया।



मेरे जंगबहादुर कुछ कुनमुनाने लगे थे।

गुड्डी ने उसे जांघ के नीचे दबा दिया।

अब गुड्डी के हाथ सीधे मेरे नितम्बों पे, वो उन्हें दबा रही थी, मीस रही थी, जैसे कोई आटा गूंधे, मुट्ठी बांधकर उससे दबा रही थी। मेरी सारी थकान काफूर हो चुकी थी।



उसने दोनों हाथों से मेरे नितम्बों को फैलाया और देर तक पूरी ताकत से फैलाये रही।

फिर अपनी मंझली उंगली को मेरे गुदा द्वार के छेद पे ले जाकर कसकर दो-तीन मिनट तक रगड़ा, और बोली-

“एक बार बच गये बार-बार नहीं बचोगे…”



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और फिर मुझे सीधा करते हुये बोली-

“आराम मिल गया ना,… जाकर नहाओ तैयार हो। शाम के पहले हम लोगों को निकल जाना है…”



“हे मेरे कपड़े…” बाथरूम में घुसते-घुसते मुझे याद आया।



“अरे निकालती हूँ यार। नंगे नहीं ले चलूँगी, तेरे मायके…” वो बोली।
 
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मस्ती शावर में
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मैंने शावर खोला। लेकिन बहुत जोर से आ रही, थी इसलिये पहले मैं नम्बर एक के लिये खड़ा हो गया। शुरू भी नहीं हुआ था की गुड्डी धड़धड़ाते हुये घुसी।

मैं- “हे मैं सूसू कर रहा था। तुम नाक तो कर देती…”

“भूल जाओ कि मैं तुम्हारे पास नाक करके आऊँगी। मेरी मर्जी। जब आऊं, जैसे आऊं?”

और उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया।

उसके तने उभरे हुये उरोज मेरी पीठ में रगड़ रहे थे। दोनों हाथों से उसने मेरे सीने को पकड़ लिया और हल्के से मेरे टिटस को सहलाने लगी। फिर एक टिट को कसकर पिंच कर दिया और अपनी जीभ की नोक मेरे कान में डालकर सुरसुरी करने लगी। उसका एक हाथ मेरे लण्ड के बेस पे चला गया।

उसे दबाते हुये बोली-

“अरे राज्जा करो ना सूसू। जी भरकर करो। इसके खिलाफ कोई कानून तो है नहीं और ना अभी तक कोई टैक्स लगा है। मुझसे शर्माता है मुन्ना। अरे एक दिन तो तुझे अपने हाथ से। …”

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ये कहते हुये उसने मेरे बाल्स को हल्के से दबाया, गाल पे काट लिया।

“हे नहला भी दो ना…” मैंने आवाज लगायी।

बाहर से उसने आवाज लगायी-

“घबड़ाओ मत एक दिन नहलाऊँगी भी, धुलाऊँगी भी, और सूसू भी करा दूंगी। लेकिन आज अभी जल्दी भी है और मेरी। तुम्हें बताया तो था…”
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मुझे याद आ गया की उसकी सहेली की तो विदायी हो गई है लेकिन 5-6 घंटे तक वहां “अनटचेबल…” है।

नहाने के पहले मैंने नल खोलकर सिर नीचे कर दिया। मेरा गेस सही निकला। जब रीत ने चलते चलाते, एक रास्ते के लिये कहकर गुलाबी रंग से स्नान करा दिया था, उसी समय मेरे सिर में ढेर सारा सूखा रंग भी डाल दिया था और अब वो धुलकर बह रहा था।



गूड्डी बाथरूम में शैम्पू और साबुन रखने के लिये आई थी। जमकर नहाने के बाद रंग तो कुछ कम हुआ ही थकान भी उतर गई। तौलिया तो था नहीं। अन्दर से मैं चिल्लाया-

“तौलिया प्लीज…”

“अरे जानू। बाहर आ जाओ, रगड़ भी दूंगी। पोंछ भी दूंगी…” गुड्डी ने जवाब दिया।

कोई चारा था क्या? मैं वैसे ही बाहर आया, क्या करता।

कमरा पहचाना नहीं जा रहा था। सारा सामान अंदर। मेरा और गुड्डी का सामान करीने से लगा, मेरी शर्ट पैंट बेड पे रखी और गुड्डी के हाथ में तौलिया-

“क्या टुकुर टुकूर देख रहे हो…”

वो आँख नचाकर बोली और अपने हाथ से मुझे पोंछने लगी।


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मैं डर रहा था की वो कोई शरारत न करे? लेकिन उसने धीरे-धीरे पहले आराम से मेरे बाल, फिर बाकी देह पोंछी। लेकिन शरारत शुरू हुई जब तौलिया पीछे पहुँची। कस-कसकर उसने मेरे नितम्ब रगड़-रगड़कर साफ किये, सबसे ज्यादा रंग वहीं लगा था और सबसे कम वहीं छूटा। उंगली में तौलिये का एक कोना लपेटकर उसने पहले तो मेरे चूतड़ फैलाये फिर सीधे गाण्ड में-

“देखूं यहां साफ वाफ किया है कि नहीं?”


वहां वो थोड़ी सी उंगली अंदर डालती, फिर गोल-गोल घुमाती, फिर थोड़ा और अन्दर, दो मिनट तक। एक पोर से ज्यादा ही अन्दर तक और उसका दो असर हुआ। मैं सिसकी के साथ उसे मना कर रहा था लेकिन वो मानती तो गुड्डी कहां से होती?

और दूसरा।

मेरा जंगबहादुर सीधे 90° डिग्री पे।

और गुड्डी ने तौलिये में लिपटी उंगली मुझे निकालकर दिखाया, सफेद तौलिया। लाल काही हो गया था। मैंने सोचा भी नहीं था की वहां भी सूखा रंग।

गुड्डी को मालूम था,… इसलिये की वो सूखा रंग डाला भी उसी ने तो था, जब भाभियों ने मुझे निहुरा रखा था उसी समय। चंदा भाभी ने मेरी गाण्ड फैलायी थी और गुड्डी ने पूरा मुट्ठी भर रंग अंदर तक।


पैर सुखाने के लिये वो अपने घुटनों के बल बैठ गई थी।



पहले तौलिया से उसने पैर सुखाये और फिर एक छोटी सी तौलिया से मेरे कनकनाये, तन्नाये जंगबहादुर पे हाथ लगाया।

गुड्डी उसे हल्के-हल्के रगड़ भी रही थी और कुछ बोल भी रही थी, और अब सीधे उसकी किशोर उंगलियां, मेरे लण्ड को सहला रही थी, दबा रही थी। मोटा बड़ा सा, गुस्साया, लीची ऐसा सुपाड़ा पूरी तरह खुला।
 
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गुड्डी की लिप सर्विस
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मैंने ध्यान दिया तो वो बोल रही थी-

“बहुत इंतजार कराया तुमको ना। अब मैं देखती हूँ…”

मैं- “हे क्या बोल रही हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है…”

वो बड़ी-बड़ी आँखें उठाकर बोली-

“हे तुमसे नहीं इससे बात कर रही हूँ। तुम चुप रहो…”

और अपने होंठों पे उंगली से शान्त रहने का इशारा किया और फिर सिर झुका के चालू हो गई। पहले तो उसने खुले सुपाड़े पे एक-दो किस लिये। और फिर बोलने लगी-

“बहुत तड़पाया है ना तुमको इसने? लेकिन अब देखो तुम्हें क्या-क्या मजे कराती हूँ, ....किस-किस जगह की सैर कराती हूँ? संकरी सुरंग की, गोलकुंडा के गोल दरवाजे की, भरतपुर के स्टेशन की, ऊपर-नीचे, आगे-पीछे के सब दरवाजे खुलवा दूंगी तेरे लिये। चाहे डुबकी लगाना चाहे गोते खाना। तुम्हारी मर्जी…”


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और गुड्डी की लम्बी रसीली गुलाबी जीभ, सीधे लण्ड के बेस से आगे तक लपर-लपर चाटने लगी।

चाटते-चाटते वो मेरे कभी एक तो कभी दूसरे बाल्स को अपने होंठों के बीच दबाकर चूसने भी लगती।
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मेरी हालत खराब होने लगी थी। आँखें बंद हो गई थी, कमर अपने आप धीमे-धीमे आगे-पीछे होने लगी थी।

गुड्डी के एक हाथ ने मेरे लण्ड के बेस को दबा रखा था और दूसरा मेरी बाल्स को सहला रहा था, दबा रहा था।

कभी-कभी वो बाल्स और पिछवाड़े वाली जगह के बीच सुरसुरी भी कर रही थी। अपने लम्बे नाखून से वहां वो खरोंच देती। लण्ड पत्थर की तरह कड़ा हो गया था। बस मन कर रहा था की वो कुछ करके उसे रिलीज करा दे।

गुड्डी ने फिर अपनी जीभ पूरी बाहर निकाली और जुबान की टिप से मेरे सुपाड़े के छेद को, पी-होल को, जस्ट एक हल्के से छेड़ दिया। लगा जैसे 440 वोल्ट का झटका लगा हो। उसने एक पल के लिये जीभ हटा ली और फिर दुबारा अबकी वो सुपाड़े के होल में टिप डालकर घुमा रही थी।
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मेरी मजे से जान निकल रही थी।

उसने जैसे कोई लालची लड़की लालीपाप चाटे, बस उसी तरह लण्ड के अगले हिस्से पे चपड़ चपड़ फ्लिक करना शुरू कर दिया। कभी वो सुपाड़े के चारों ओर जुबान घुमाती तो कभी सिर्फ नीचे चाटती और अचानक एक बार में ही गप्प से उसने पूरा सुपाड़ा गपक लिया और चूसने चुभलाने लगी। मेरी पूरी कोशिश के बावजुद वो और अन्दर नहीं घुसेड़ने दे रही थी। सुपाड़ा खुशी से और फूल के कुप्पा हो गया। कुछ देर बाद उसने मुँह से उसे बाहर निकाल लिया।

और फिर एक बार उसके पी-होल पे किस करके बोलने लगी-

“देखा अरे मेरा बस चले तो तुझे इतना मजा दूं ना की तुम सोच नहीं सकते। ये तो ट्रेलर भी नहीं था। अरे तुम्हारे एक आँख क्यों है, जिससे तुम कोई भेदभाव ना कर पाओ। तुम्हारे लिये सब चूत एक बराबर हों। बल्की सब छेद एक बराबर हों। लेकिन ये ना इन्हें क्या चिन्ता तुम्हारी। इससे ये रिश्ता ये नाता, ...ये कजिन है तो ये,...। अरे खुद उस साली की चूत में चींटे काट रहे हैं, बैगन मोमबत्ती घुसेड़ रही है, ....पूरे मोहल्ले वालों के आगे चूत फैलाकर खड़ी है, लेकिन ये।


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बस अब देखना तुम मेरे हाथ में आ गये हो ना बस अब हमारा तुम्हारा राज चलेगा। देखना ये चाहें ना चाहें तुम दनदना के घुस जाना, चोद देना साली को,... जिसका भी मन चाहे बाकी मैं देख लूँगी…”


और ये कहकर गुड्डी ने घोंटा तो आधे से ज्यादा लण्ड उसके मखमली मुँह में और वह पूरी रफ्तार से चूस रही थी। जैसे कोई वैक्युम क्लीनर सक कर रहा हो। उसकी आँखें बाहर निकल रही थी, गाल एकदम अंदर की ओर वो चिपका लेती थी, रसीले गुलाबी होंठ लण्ड को रगड़ रहे थे और नीचे से जुबान लण्ड के निचले हिस्से को चाट रही थी।


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मैं बस चुपचाप उस मजे को महसूस कर रहा था।

गुड्डी ने अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को कसकर भींच रखा था अपनी ओर खींच रखा था, और अब मुझसे नहीं रहा गया और मैंने भी गुड्डी के सिर को दोनों हाथों से पकड़कर कस-कसकर लण्ड अंदर ठेलना शुरू किया। एक नई नवेली किशोरी के लिये। ये बहुत मुश्किल था लेकिन मैं उस समय सब कुछ भूल गया था।

और आगे-पीछे करके जैसे उसके मुँह को चोद रहा होऊं बस उस तरह ढकेल रहा था।

वो बिचारी गों गों कर रही थी। लेकिन ना मैं रुकना ना चाहता था ना वो। मेरा सुपाड़ा गले के अंत तक लग रहा था टकरा रहा था। उसकी आँखें उबल रही थी। फिर भी वो अपने मुँह को मेरे लण्ड पे ठेले जा रही थी। जैसे कोई खुद शुली पे चढ़ने की कोशिश कर रहा हो। और इसके साथ उसका चूसना, चाटना जारी था। लेकिन कुछ देर बाद गुड्डी ने मुँह से लण्ड को बाहर कर दिया। उसके गाल दुखने लगे। लेकिन ना जीभ कि हरकत रुकी ना ही उंगलियों की बदमाशी थमी।


वो साइड से अब लण्ड को चाट रही थी, चूम रही थी।
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उसकी उंगलियां मेरे बाल्स को कभी दबा देती, कभी सहला देती, तो कभी वो बाल्स और पिछवाड़े के बीच में उंगली से रगड़ देती, तो कभी लम्बे नाखून मेरी गाण्ड के छेद पे। सुरसुरी कर देते, घिसड़ देते।

कुछ देर बाद उसने फिर तरीका बदला और अपने टाइट कुर्ते से छलकते उभारों के बीच उसे दबा दिया, और लण्ड को बीच में करके दोनों चूचीयों के बीच भींच रही थी। थोड़ी देर के बाद उसने फिर लण्ड को मुँह में ले लिया। अब तक उसके होंठ, गाल अच्छी तरह सुस्ता चुके थे। इसलिये अब जो उसने लण्ड को अंदर लिया तो पहली ही बार में तीन चौथाई से ज्यादा घोंट लिया और पहले ही उसके थूक से चिकने हो जाने से अब लण्ड सटासट उसके मुँह में। जीभ के सहारे। अंदर एकदम जोर से जोश से।


उसके होंठ दांतों पे चढ़े, एक हल्की सी भी खरोंच मेरे लण्ड पे नहीं लगी और धीरे-धीरे करके पूरा का पूरा लण्ड।

मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। और जैसे ही मेरे बाल्स उसके होंठों से टकराये उसने सिर उठाकर अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से मुझे देखा। जैसे कह रही हो देखा। ये काम जैसे मैं कर सकती हूँ कोई नहीं कर सकता। सुपाड़े ने उसके गले को ब्लाक कर रखा था, तब भी वो कम से कम एकाध मिनट तक उसी हालत में रहकर नाक से पूरी तरह सांस लेती हुई। फिर उसे धीमे-धीमे निकालती। मैंने डीप थ्रोट की बहुत ब्ल्यु फिल्में देख रखी थी लेकिन जिस तरह से गुड्डी चूस रही थी। वो सब पानी भरती।


गुड्डी पूरे जोर से चूसती और जब लण्ड पूरा अंदर चला जाता। वो खुद अपने मुँह को सिर को लण्ड के ऊपर पुश करके बाल्स से सटाकर रखती। मैं देख रहा था की उसकी गाल की एक-एक नस। उसकी आँखें सब बाहर की और हो जाती लेकिन वो मजे ले लेकर और फिर जब उसे निकालती तो अगले ही पल पहले से दूने जोश से लण्ड फिर जड़ तक अंदर।

साथ-साथ उसकी शैतान उंगलियां मेरे गुदा द्वार को छेड़ती। एक बार तो उसने एक पूरी उंगली की पोर अंदर कर दिया और साथ में कस-कसकर चूस रही थी। मुझे लग रहा था कि अब मैं गिरा, अब झड़ा। लेकिन अब मैं ये सोचने की हालत में नहीं था। और जिस तरह से गुड्डी के होंठ मेरे लण्ड से चिपके थे, ये तय था कि वो सारी मलाई गटक जायेगी। मैं जोर-जोर से लण्ड गुड्डी के मुँह के अंदर बाहर कर रहा था और वो कस-कसकर चूस रही थी।


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तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी।



मेसेज की घंटी वो रिंग टोन जो मैंने रीत के लिये सेट किया-


“बहुत हुई अब आँख मिचौली। खेलूंगी अब रस की होली…” और गुड्डी ने अपना मुँह हटा लिया। मैंने कोशिश की कि उसके सिर को पकड़कर।


लेकिन वो खड़ी हो गई और दूर जाकर मोबाइल को खोलकर मेसेज देख रही थी।

जैसे कोई किसी बच्चे के हाथ से मिठाई छीन ले वही हालत मेरी हो रही थी।

गुड्डी ने मुझसे मेसेज पढ़ते हुये मुझसे कपड़े पहनने का इशारा किया। मेरे पास चारा ही क्या था? मैं बस शर्ट पैंट पहनते हुये उसे देख रहा था।


मारो तो तुम्हीं। जिलाओ तो तुम्हीं।



मेसेज पढ़ के पहले तो वो खिलखिलायी, फिर बोली-


“अरे इत्ता मुँह मत बनाओ। यार मुझे एक काम याद आ गया था। असली चीज खरीदना तो मैं भूल ही गई थी और उसकी दुकान शाम को ही बंद हो जाती है और दूसरी बात ये तुम्हारी मलाई, अब ये सीधे मेरी भूखी बुल-बुल के अंदर जायेगी और कहीं नहीं। भले ही तुम्हें छ: सात घन्टे इंतजार करना पड़ जाये…”



मैंने मोबाइल के लिये हाथ बढ़ाया तो उसने मना कर दिया, बोली-


“रास्ते में अभी टाइम नहीं है…” '

और हांक के उसने मुझे रेस्टहाउस के कमरे से बाहर कर दिया-

“अरे यार सामान सब मैंने पैक कर दिया है। बस वो जो सामान थोड़ा सा रह गया है। बस एक दुकान है। जल्दी से लेकर। कहीं कुछ खाना हुआ तो खाकर सामान लेकर चल देंगे और एक बार तुम्हारे मायके पहुँच गये तो फिर तो…”

उसने रिक्शे पे बैठते हुये मुझे समझाया।

सामान जो छूट गया था वो रंग गुलाल था। लेकिन कोई खास तरह का। वो बोली-

“यार तुम्हारी भाभी ने स्पेशली बोला था इन रंगों के लिये। रीत के यहां ब्लाक प्रिन्टिंग का काम होता था तो ये लोग यहां से रंग लेते थे एकदम पक्का रंग। दूबे भाभी ने जो कालिख लगायी थी वो भी यहीं से…तो मेरे यार को जो रंग उसके मायके में लगे वो बनारस पहुँचने तक न उतरे"

मेरे ऊपर तो गुड्डी का रंग चढ़ा हुआ था।




रिक्शा गली-गली होते हुये एक बड़ी सी दुकान के सामने जा पहुँचा, तब उसने रीत का मेसेज दिखाया-

“जीजू। लोग एक पति के लिये तरसते हैं लेकिन आपकी बहना। इतनी कम उमर में बस अगर थोड़ी सी मेहनत कर दे ना तो लखपती बन सकती है। मेरा मतलब मर्दो की संख्या से नहीं था। अब तक उसकी जो बुकिंग आ चुकी है और मैंने कंफर्म की है। ...आग लगा रही है आग स्साली तेरी बहिनिया शहर में .बस एक हफ्ते वो बनारस रह जाय और रोज 8-10 घंटे। अब पैसा कमाना है तो मेहनत तो करनी पड़ेगी…”
 
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और

हम लोग दुकान में घुस गये। एक ग्रासरी की दुकान की तरह बस थोड़ी बड़ी। ये थोक की दुकान थी और पूरे ईस्टर्न यूपी में होली का सामान सप्लाई करती थी। बनारस की गलियां। पतली संकरी और फिर अन्दर एक से एक बड़े मकान, दुकानें बस वैसे ही ये भी। बस थोड़ी ज्यादा चौड़ी।



चौराहे पे दो पोलिस वाले सुस्ता रहे थे। पास में एक मैदान कम कचरा फेंकने की जगह पे कुछ बच्चे क्रिकेट का भविष्य उज्वल करने की कोशिश कर रहे थे, दीवालों पर पोस्टर, वाल राईटिंग पटी पड़ी थी। मर्दानगी वापस लाने वाली दवाओं से लेकर कारपोरेशन के इलेक्शन, भोजपुरी फिल्मों के पोस्टर से बिरहा के मुकाबले तक।



दुकान के दरवाजे के पास ही दीवाल पर मोटा-मोटा लिखा था- “देखो गधा मूत रहा है…” वहां गधा तो कोई था नहीं हाँ एक सज्जन जरूर साईकिल दीवार के सहारे खड़ी करके लघुशंका का निवारण कर रहे थे। एक गाय वीतरागी ढंग से चौराहे के बीचोबीच बैठी थी। दो-तीन सामान ढोने वाले टेम्पो और एक छोटा ट्रक दुकान से सटकर खड़ा था। उसमें उसी दुकान से सामान लादा जा रहा था। टेम्पो शायद आस पास के बाजारों के लिए और ट्रक आजमगढ़ बलिया के लिए।



दुकान के अन्दर भी बहुत भीड़-भाड़ नहीं थी। थोक की दुकान थी और नार्मली शायद वो फुटकर सामान नहीं बेचते थे। हाँ दो-तीन लोग जिनके ट्रक और टेम्पो बाहर खड़े थे, वो थे और दुकान के मालिक तनछुई सिल्क का कुरता पाजामा पहने उन लोगों से मौसम का हाल से लेकर राष्ट्रीय राजनीति पर चर्चा कर रहे थे।
 
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फागुन के दिन चार भाग २४

मस्ती गुड्डी की -मजे शॉपिंग के, पृष्ठ ३०६ अपडेट पोस्टेड

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