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Erotica फागुन के दिन चार

Sutradhar

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गुड्डी संग.


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गुड्डी अब फिर बीर बहूटी हो गई और हल्के से बोला- “धत्त मैंने ऐसा तो नहीं कहा- “और थोड़ी हिम्मत बटोर के चंदा भाभी की ओर देखकर बोली-

“कपड़े लौटा दिए है ना इसलिए बोल रहे हैं। बनारस की लड़कियां इतनी सीधी भोली भाली होती हैं। तभी लेकिन तुम्हारा मोबाइल, पर्स कार्ड अभी भी मेरे पास है। रिक्शे का पैसा भी नहीं दूंगी। समझे…”

मैं कुछ बोलता उसके पहले रीत आ गई.


“दूबे भाभी ने बोला है की बोलना 5 मिनट रुकेंगे वो भी आ रही हैं…”


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लेकिन मेरे आँख कान रीत से चिपके थे। पक्की कैटरीना कैफ। हरे रंग का इम्ब्रायडर किया हुआ धानी कुरता और एक बहुत टाईट पाजामी।



मेरी ओर देखकर मुश्कुराई और गुड्डी के कान में कुछ बोला।

गुड्डी गुलाल हो गई। लेकिन हाँ में सिर हिलाया। (बाद में बहुत हाथ पैर जोड़ने पे गुड्डी ने बताया की रीत ने उससे पूछा था। वैसलीन रखा है की नहीं।)

रीत मेरे पास आई और मेरी ओर देखकर चंदा भाभी से पूछा- “हे कुछ गड़बड़ लग रहा है ना। कुछ मिसिंग है…”

और बिना उनके जवाब का इंतजार किये मुझे हड़काया- “शर्ट के अन्दर कुछ नहीं पहना, ऐसे बाहर जाओगे झलकाते हुए वो भी मेरी छोटी बहन के साथ नाक कटवाओगे हम लोगों की। तुम्हारे उस खिचड़ी वाले शहर में तुम्हारी बहनें बिना अन्दर कुछ पहने झलकाती घूमती होंगी यहाँ ये नहीं होता…”



सब लोग अपनी मुश्कान दबाए हुए थे सिवाय मेरे।



घबड़ाकर मैं बोला- “लेकिन। लेकिन मेरे पास वो तो कल गुड्डी ने। आप ही ने तो…”


“क्या गुड्डी गुड्डी रट रहे हो? मैंने कुछ पहनाया नहीं था तुम्हें। कहाँ है वो?” तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी उसे उतारने की?”

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अब मैं समझा उसकी शरारत।


गुड्डी ने पास पड़ी रंग में लथपथ ब्रा की ओर इशारा किया। जिसे रीत ने होली के श्रृंगार के समय पहनाया था लेकिन मैंने बाद में उतार दिया था। झट से उसने मेरी शर्ट उतारकर फिर से ब्रा पहनाई और फिर से शर्ट। और देखती बोली-

“लेकिन अभी भी कुछ कमी लग रही है…”


और जब तक मैं समझूँ रीत अन्दर से दो रंग भरे गुब्बारे ले आई और फिर से ब्रा के अन्दर। मैं लाख चीखता चिल्लाता रहा। लेकिन कौन सुनता बल्की अब चंदा भाभी भी उन्हीं के साथ-

“अरे लाला फागुन का टाइम है लोग सोचेंगे कोई जोगीड़ा का लौडा है…”


दूबे भाभी भी आ गईं। सबको नमस्कार करके जब मैं चलने के लिए हुआ तो दूबे भाभी ने याद दिलाया- “हे अपने उस माल को साथ लाना मत भूलना और रंग पंचमी से दो दिन पहले…”

और रीत से बोली- “अरे पाहुन जा रहे हैं, जाने से पहले पानी पिला के भेजना चाहिए सगुन होता है, आज कल की लड़कियां…”
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रीत मुझसे गले मिलते हुए बोली- “मिलते हैं ब्रेक के बाद…”


हाँ चार-पांच दिन की बात है फिर तो मैं वापस। मैं भी बोला।

“नहीं नहीं मेरी आँख फड़क रही है। मुझे तो लगता है शाम तक फिर मुलाकात और…” वो मेरे कान में मुझे चिपकाए हए बोली।



गुड्डी सामन लेकर बाहर निकल चुकी थी। जैसे ही मैं निकला पानी का ग्लास रीत के हाथ - “लीजिये साली के हाथ का पानी पीकर जाइए…” और जैसे मैंने हाथ बढ़ाया उस दुष्ट ने पूरा ग्लास मेरे ऊपर। गाढ़ा लाल गुलाबी रंग।



“अरे ठीक है होली का प्रसाद है। चलिए…” चंदा भाभी बोली।


मैं गुड्डी के साथ बाहर निकल आया लेकिन मुझे लग रहा था की मेरा कुछ वहीं छूट गया है। रीत की बात भी याद आ रही थी। आँख फड़कने वाली। लेकिन चाहने से क्या होता है।

और खास तौर से जब आपके साथ कोई हसीन नमकीन लड़की हो जो पिछले करीब 24 घंटे से आपकी ऐसी की तैसी करने पे जुटी हो।

और वही हुआ। पहले तो उसने रिक्शे की बात पे ना ना कर दी- “पैसा है तुम्हारे पास। चले हैं रिक्शे पे बैठने…” घुड़कते हुए वो बोली।



तब मुझे याद आया। मेरा मोबाइल, कार्ड्स पर्स सब तो इसी के पास था- “हे मेरा पर्स वो। लेकिन मैंने। तो…” हिम्मत करके मैंने बोलने की कोशिश की।



“जगह-जगह नोटिस लगी रहती है। यात्री अपने सामान की सुरक्षा खुद करें। लेकिन पढ़े लिखे होकर भी। मेरे पास कोई पर्स वर्स नहीं है…” बड़बड़ाते हुए वो बोली और फिर जैसे मुझे दिखाते हुए उसने अपना बड़ा सा झोले ऐसा पर्स खोला। बाकायदा मेरा पर्स भी था और मोबाइल भी। ऊपर से वो मेरा पर्स निकालकर मुझे दिखाते हुए बोली-


“देखो मैं अपना पर्स कितना संभाल कर रखती हूँ। तुम्हारी तरह नहीं…” और फिर जिप बंद कर दिया।

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उसमें मेरी पूरी महीने की सेलरी पड़ी थी। और उसके बाद रास्ते की बात पे तो वो एकदम तेल पानी लेकर मेरे ऊपर चढ़ गई- “बनारस की कौन है। मैं या तुम?” वो आँख निकालकर बोली।



“तुम हो…” मैंने तुरंत हामी भर ली।

शानदार मेगा अपडेट कोमल मैम

कहानी का नयापन बेहतरीन होने के सथ-साथ उत्सुकता भी बढ़ा रहा है कि अब आगे क्या होगा ? किस पात्र को क्या भूमिका मिलेगी ?

अपडेट की प्रतीक्षा रहेगी, हमेशा की तरह।

सादर
 

komaalrani

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Bhut shandaar update..... maja aa gya aapko wapis dekh kar.....


ध्यान रखो
Bahoot bahoot dhanyvaad koshish karungi ki ek do update post karti rhun jiase kahani chalati rahe
 

komaalrani

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शानदार मेगा अपडेट कोमल मैम

कहानी का नयापन बेहतरीन होने के सथ-साथ उत्सुकता भी बढ़ा रहा है कि अब आगे क्या होगा ? किस पात्र को क्या भूमिका मिलेगी ?

अपडेट की प्रतीक्षा रहेगी, हमेशा की तरह।

सादर
फागुन के दिन चार का और जोरू का गुलाम दोनों के बाद अब कोशिश करुँगी छुटकी का भी अपडेट जल्द दे दूँ
 

komaalrani

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Haven't read the update yet..but photos are super sexy..
Hope once you settle down, you'll findctimecto go thru my updates. Last time jahan tak aapne padha tha..story kaafi aage nikal chuka hain :)
Will look forward to your insightful comments once you read them. Thanks.

komaalrani
Thanks so much, will be waiting.
 

komaalrani

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" फागुन के दिन चार " के पिछ्ले संस्करण मे आनंद भाई साहब ने दरिया मे उतनी डुबकी नही लगाई होगी जितनी 2024 के इस संस्करण मे लगा ली ।
चंदा भाभी और संध्या भाभी नामक दरिया मे तो कई - कई बार तक डुबकी लगा ली । इसके अलावा दुबे भाभी , चंदा भाभी की कमसिन कन्या , रीत के साथ भी हल्के फुल्के फुहार का आनंद भी प्राप्त किया ।

यह सब देखकर ऐसा लग रहा है कि इस नए संस्करण मे आनंद साहब न सिर्फ बनारस मे ही बल्कि आजमगढ़ मे भी अपने जवानी के परचम लहराने वाले है । देखना यह है कि उनके हरम की शोभा कौन कौन बनेगी !

इस अपडेट मे संध्या भाभी और उनके प्रिय देवर आनंद के बीच का अंतरंग सीन्स वाकई मे बहुत ही उत्तेजक और हाॅट सीन्स था ।
होली के पूर्व बनारस की यह रंगीन होली आनंद साहब के लिए काफी शानदार रही । वर्जिनिटी टूटी और साथ मे फ्यूचर के लिए अप्सराओं का भी इन्तजाम हो गया ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट कोमल जी ।
बहुत बहुत आभार

आपने सही कहा, गुंजा, और संध्या भाभी की भूमिकाओं में काफी विस्तार हुआ है इस संस्करण में अब देखिये आगे कहानी किधर मुड़ती है। बस साथ बनाये रखिये।
 

Random2022

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फागुन के दिन चार भाग २२

मस्ती संध्या भाभी संग

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तो ये चक्कर था, छुटकी और श्वेता एक और इसकिये मम्मी भी बजाय कुछ बोलने के नयन सुख ही ले रही थीं।

लेकिन छुटकी और श्वेता के इस लेस्बियन दंगल और जिस तरह से डिटेल में संध्या भाभी उस कच्ची कली की चिपकी चिपकी एकदम कसी गुलाबी मुलायम टाइट फुद्दी की फूली फूली भरी भरी फांको की बात कर रही थीं, जंगबहादुर फनफना गए। और उनके बौराने का एक कारण संध्या भाभी के नरम गरम चूतड़ भी थे, जिस तरह से वो अपने चूतड़ मेरे खड़े खूंटे पे रगड़ रही थीं उसी से अंदाजा लग रहा था की कितनी गरमा गयीं, बुर उनकी एकदम पनिया गयी थी। मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी के जुबना मीस रहा था और वो सिसकते हुए बोल रहीं थी,

" उस स्साली छुटकी के कच्चे टिकोरे भी ऐसी ही कस कस के मसलना और कुतरना जरूर।



और मेरे सामने सुबह की वीडियो काल में दिख रही छुटकी याद आ रही थी, छुटकी के दोनों मूंगफली के दाने ऐसे, घिसे हुए टॉप से साफ़ साफ रहे थे दोनों, बस मन कर रहा था मुंह में लेके कुतर लूँ, ऊँगली में ले के मसल दूँ, दोनों छोटे छोटे आ रहे दानों को ।आँखे मेरी बस वही अटकी थीं, छुटकी और मम्मी के, कबूतरों पे,

एक कबूतर का बच्चा, अभी बस पंख फड़फड़ा रहा था



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और दूसरा, खूब बड़ा तगड़ा, जबरदस्त कबूतर, सफ़ेद पंखे फैलाये,
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२८ सी और ३८ डी डी दोनों रसीले जुबना,

साइज अलग, शेप अलग पर स्वाद में दोनों जबरदस्त,
बस मन कर रहा था कब मिलें, कब पकड़ूँ, दबोचूँ, रगडूं, मसलु, चुसू, काटूं,

और संध्या भाभी की बात एकदम सही थी, स्साली गरमा भी रही थी, तैयार भी थी, सुबह जिस तरह मम्मी के वीडियो काल से जाने के बाद छुटकी ने फोन थोड़ा टिल्ट करके दोनों चोंचों का क्लोज अप एकदम पास से दिखाया, झुक के क्लीवेज का दर्शन कराया, लेकिन अभी तो सामने संध्या भाभी थीं, तो बस

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संध्या भौजी बाथरूम के फर्श पर थीं।


मैंने इधर उधर देखा, ढेर सारे भीगे कपडे, रंगों से लथपथ, उनके भी दूबे भाभी के भी, बस उन्ही को मोड़ तोड़ के, दोनों हाथो से भौजी के चूतड़ को उठा के सीधे उस के नीचे, भौजी के बड़े बड़े रसीले चूतड़ अब कम से कम कम एक बित्ता फर्श से उठा था और उनकी चाशनी से भीगी, रस की रानी साफ़ साफ़ दिख रही थ।




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जाँघे भी उन्होंने खुद फैला दी और अपनी लम्बी गोरी टाँगे भी मेरे कंधे पे,

उन्हें भले जल्दी हो मुझे तो एकदम नहीं थी , अबकी खूब रस ले ले के लेना था उन्हें।

और जो उन्होंने सिखाया था, कैसे गुड्डी को खूब गरम करके लेना है, कल चंदा ने भाभी की पाठशाला में जो पढ़ाई हुयी थी, वो सब उनके ऊपर, कस कस के मैंने एक हाथ से अपने मोटे मस्त मूसल को उनकी भीगी गुलाबो के फांको के ऊपर रगड़ना शुरू किया, और दूसरा हाथ कस के उनकी कमर को दबोचे था।


भौजी ने मुझे जोर से घूरा और मैं अपनी गलती समझ गया। झट से बगल में रखी सरसो के तेल की शीशी खोल के एक ढक्क्न तेल पहले हथेली पे फिर उसी हथेली को बार बार अपने खूंटे पे, जैसे कल रात में चंदा भाभी कर रही थीं, और आज थोड़ी देर पहले ही संध्या भौजी ने किया था, और अब संध्या भौजी देख के मुस्करा रहीं थी की ये बुद्धू सीख तो रहा है, भले ही धीरे धीरे। और फिर मैंने खुली शीशी से ही थोड़ा सा तेल अपने मोठे बौराये सुपाड़े पे,

और संध्या भौजी मुझे चिढ़ाते बोलीं,


" अपने बूआ, चाची, मौसी और महतारी के भोंसडे में भी पेलना तो ऐसे ही कडुवा तेल लगा के, सटासट जाएगा, छिनरों के भोंसडे में, "

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कभी कभी गाली भी अच्छी लगती है और जब मीठे मीठे रिश्ते वाली हो भौजी या सलहज हो और वो संध्या भौजी ऐसी मीठी भी हो नमकीन भी,

उन्हें देख के मुस्कराते हुए उनकी भरी बहरी पकड़ी ऐसी फूली चुनमुनिया की दोनों फांको को मैंने बहुत प्यार से धीरे धीरे अलग किया, हलकी सी प्यार भरी चपत लगाई, और उस लाल गुलाबी सुरंग में,

टप,टप,टप, टप,
कडुवा तेल की छोटी मोटी बूंदे, लुढ़कती हुयी, सरकती हुयी, भौजी की रसीली बुरिया में जा रही थीं,

कडुवा तेल की झार पूरे बाथरूम में फ़ैल रही थी।

कडुवा तेल भौजी आपन बुर चियारे घोंट रही थीं।

पूरे ढक्क्न भर कडुवा तेल मैंने भौजी की चुनमुनिया को पिलाया,

आखिर सब धक्के तो उसी बेचारी को झेलने थे और तेल घुसने के बाद भी उनकी बुलबुल की चोंच मैं फैलाये रहा। बहुत प्यारी प्यारी लग रही थी। फिर अंगूठे और तर्जनी से दोनों फांको को पकड़ के मैंने कस के जकड़ लिया जिससे तेल की एक एक बूँद भौजी की बुरिया की दीवालों में आराम से रिस जाए और फिर हथेली से कुछ देर तक उसे रगड़ता रहा।

भौजी बहुत प्यार से मुझे देख रही थीं।

और हलके से फिर गुरु ज्ञान दिया, ऐसे करोगे तो चाहे गुड्डी की छुटकी बहिनिया हो या गुंजा सब रट चिल्लाते घोंट लेंगी ये गदहा क लौंड़ा ।

" उह्ह्ह, उह्ह्ह, ओह्ह " भौजी सिसक रही थी, देह उनकी कसक मसक रही थी, और कुछ देर बाद में जब उनसे नहीं रह गया तो खुद बोलीं,

" कर ना, करो न प्लीज, ओह्ह्ह उह्ह्ह "
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कस कस के सुपाड़ा उनकी गीली बुर के होंठों पे रगड़ते मैंने चिढाया, " का करूँ भौजी "

अब उनसे नहीं रहा गया और अपने बनारसी रूप में आ गयीं,

" स्साले जो अपनी बहन महतारी के साथ करते हो, चाची, मौसी और बूआ के साथ करते हो, पेल साले, पेल पूरा "

और बहन महतारी की गारी सुनने के बाद कौन रुक सकता था तो मैंने पेल दिया, पूरी ताकत से, कमर का जोर लगा के और

गप्पांक

सुपाड़ा अंदर, बुर खूब अच्छी तरह से फैली और अब भौजी की चीख निकल गयी,

यही तो मैं चाहता था लेकिन अब मैं रुक गया।

अब मेरे होंठ भी मैदान में आ गए, कभी भौजी की एक गद्दर चूँची काट लेता तो कभी निपल चूस लेता,


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हाथ भी उनकी क्लिट को हलके से छू के दूर हो जाता और फिर मैंने भौजी से पूछा,

" भौजी मजा आरहा है "

" बहुत रज्जा "

कहकर भौजी ने कस के नीचे से अपने चूतड़ उछाले, उनसे रहा नहीं जा रहा था और वो सीधे चौथे गेयर में जाना चाहती थीं लेकिन मैं उनको थोड़ा और तड़पना चाहता था, सब कुछ कबुलवाना चाहता था उन्ही के मुंह से, और मैंने धक्के का जवाब बजाय धक्के के देने के कस के उनके गाल को फिर से, जहाँ पहले काटा था, वहीँ काट लिया और भौजी चीख पड़ीं,
Jo bhojai ki bhi cheekh niklwa de, ese dewar ki takat ko salam
 

Random2022

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मस्ती संध्या भौजी की

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लेकिन मैंने तो उसी दिन सपना देख लिया और कुछ भी करने को तैयार था उसे पूरा करने के लिए, तो मैंने संध्या भौजी से सीरियसली बोला

" भौजी, कुछ भी, सब मंजूर लेकिन अब तो ससुराल यहीं होगी "

और अपनी बात पे मुहर लगाते मैंने मूसल को करीब बाहर तक खिंचा और पूरी ताकत से कामदेव के तीर की तरह छोड़ा, और वो वज्र सीधे संध्या भौजी बच्चेदानी पे, लोहार के घन की तरह लगा।

उईईई , उईईई संध्या भौजी पहले दर्द से चीखीं, फिर मजे से, आँखे उनकी उलटी हो गयी देह कांपने लगी, लेकिन मैं अपना बित्ते भर का लंड जड़ तक ठेले रहा और कभी मेरे होंठ ने उनके इधर उधर चुम्मा लिया तो कभी उँगलियाँ सहलाती रहीं

भाभी झड़ती रहीं।

मैं अबतक सीख गया था लड़की को एक बार किसी तरह झाड़ दो तो उसके बाद जो वो गर्माएगी, तो सब लाज छोड़ के मस्ती में चुदाई में साथ देगी,

और मैं कस के उन्हें दबोचे रहा, चूमता रहा, सहलाता रहा और एक बार धीरे धीरे संध्या भाभी जब नार्मल हो रही थीं तो बहुत धीरे धीरे मैंने भाला बाहर निकालना शुरू किया, भौजी को लगा की चुदाई का पार्ट २ शुरू होगा, लेकिन मेरे मन तो कुछ और था, मैंने पूरा ही मूसल बाहर निकाल लिया ।

" हे क्या करते हो, करो न "

भौजी ने हलके से गुहार लगाई लेकिन मैं अब उनकी बात नहीं सुनने वाला था, कस के मैंने उनकी जाँघे फैलाई।


ताज़ी ताज़ी झड़ी बुर का स्वाद कुछ और ही होता, जब तक भाभी समझे मेरा मुंह उस रसीली के रसीले निचले काम रस से भीगे होंठों पे चिपक गया और बिना रुके मैंने कस कस के चूसना शुरू कर दिया।

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जीभ मेरी भौजी की बिल के अंदर और होंठों से दोनों फांके को कस के भींच रखा था।

चूसने के साथ जीभ , क्या कोई औजार पेलता होगा, कभी अंदर बाहर, कभी गोल गोल, मुझे भी मालूम था की सभी नर्व एंडिंग्स योनि के शुरू में दो तीन इंच में अंदरूनी दीवालों, पे तो मेरी जीभ कभी उन्हें सहलाती तो कभी दरेरती, और भौजी मस्ती में चूतड़ पटकती, कभी छटपटाती लेकिन मैंने उनके दोनों कलाइयों को कस के पकड़ रखा था।

कुछ देर में जब भौजी का छटपटाना थोड़ा कम हुआ तो मैंने बाएं हाथ से भौजी की क्लिट पे रगड़ाई शुरू कर दी। अब एक बार से फिर से उनकी हालत और खराब

" छोड़ साले छोड़, ओह्ह नहीं नहीं " भौजी छटपटा रही थीं,

और मैंने छोड़ दिया, उनकी कलाई लेकिन वो उँगलियाँ अब एक साथ, एक दो नहीं सीधे पूरी तीन उनकी भीगी गीली बुर में

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और होंठ से कस कस के क्लिट की चुसाई, दूसरे हाथ से भौजी की बड़ी बड़ी चूँचिया रगड़ाई

भौजी कस कस के चूतड़ उछाल रही थीं, उनकी बुर मेरी अंदर घुसी उँगलियों को निचोड़ रही थी, पांच सात मिनट में जब उनकी हालत खराब हो गयी और मेरे लिए भी अपने को रोक करना मुश्किल था मैंने एक बार फिर से भौजी की दोनों टांगों को अपने कंधे पे, बगल में रखे सरसों के तेल की बोतल से तेल अच्छी तरह सुपाड़े पे लिथड़ा, बुर की दोनों फांको को फैलाया और पूरी ताकत से वो जोर का धक्का मारा

भौजी जोर से चीखीं,

" उईईई उईईईईई ओह्ह्ह्हह ओह्ह्ह्ह नही उईईईईई "

चीख इतनी जोर थी की पक्का पहली मंजिल पे गुड्डी को भी सुनाई पड़ गयी होगी, लेकिन बिना रुके मैंने थोड़ा सा पीछे खींच के जो धक्का मारा तो अबकी सुपाड़े का हथोड़ा सीधे भौजी की बच्चेदानी पे

" उईईई उईईई नहीं नहीं , निकाल साले, बस एक मिनट उफ़ दर्द हो रहा है नहीं बस नहीं, उईईईईई "
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ये चीख पहली बार से भी तेज थी। लेकिन बिना रुके अब मैंने ताबतोड़ पेलाई शुरू कर दी, और कुछ देर में भाभी भी मेरा साथ दे रही थी चार पांच धक्को के बाद मैंने रुकता तो नीचे से उनके धक्के चालू हो जाते।

१२ -१५ की नानस्टाप तूफानी चुदाई के बाद मैं झड़ने के कगार पर था,

संध्या भौजी थक कर थेथर हो रही थीं, फागुन के महीने में भी वो जेठ बैशाख की तरह पसीने में डूबी थीं, पर उनकी मस्ती में कोई कमी नहीं आ रही थी। हर धक्के का जम के मजा भी ले रही थी, चूतड़ उछाल उछाल के अपनी चूँचियों को मेरे सीने पे रगड़ रगड़ के मेरी भी हालत ख़राब कर रही थी। उन्हें मैंने एक बार झाड़ दिया था, इसलिए उन्हें अभी टाइम तो लगाना था ही , लेकिन इस जबरदस्त और नॉन स्टाप पिलाई से अब हम दोनों एक बार कगार पे पहुँच रहे थे।

लेकिन कल रात की चंदा भाभी की पाठशाला और अभी संध्या भाभी की क्लास के बाद अब मैं भी इतना नौसिखिया नहीं था। मस्तराम जी की कितनी किताबे कंठस्थ थीं, कोका पंडित के तो पन्ने तक याद पर हाँ प्रैक्टिस में एकदम कोरा, फिर झिझक, पर कल रात चंदा भाभी ने जिस तरह मेरी नथ उतारी, अब मैं एकदम

तो बस मैंने पिस्टन बाहर निकाल लिया और संध्या भाभी एकदम से तड़प उठीं, लेकिन मैं उन्हें तड़पाना ही चाहता था, अभी तो मुझे उनकी बड़ी उम्र की एम् आई एल ऍफ़ टाइप ननद और गुड्डी की सबसे छोटी बहन, छुटकी की समौरिया उनकी ननद की बेटी, जो अभी कोरी थी को भी पेलना था। और बिना भौजी को तड़पाये, तो बस मैंने मूसल बाहर निकाल लिया और संध्या भौजी की गारियाँ चालू

" स्साले क्यों निकाल लिया, तेरी महतारी भी तो नहीं है यहाँ जिसके भोंसडे में आग लगी हो तेरा लंड घोंटने के लिए, पेल नहीं तो तो, "
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यही सब तो मैं सुनना चाहता था लेकिन कल मैंने चंदा भौजी से सीख लिया था की मरद के तरकश में बहुत से तीर होते हैं मोटे मूसल के साथ साथ, तो बस अब एक बार फिर से संध्या भौजी की टाँगे उठी, जाँघे फैली और पहले तो मैंने अंगूठे से कस के उनकी फुदकती फड़फड़ाती क्लिट को रगड़ा और बेचारी भौजी पगला गयीं, लेकिन अभी तो शुरुआत थी। ऊँगली जगह होंठों ने लिया, फुद्दी के होंठों को मेरे होंठ कस कस के चूसने चाटने लगे।
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ऐसी मीठी चाशनी भाभी की बिल से निकल रही थी, और थोड़ी देर में होंठों का साथ देने के लिए उँगलियाँ भी कूद पड़ी।

होंठ चाट चूस रहे थे और उंगलिया एक नहीं दो एक साथ रस के कुंवे में डुबकी लगा रही थीं और भौजी मारे मस्ती के कभी चूतड़ पटकती तो कभी गरियाती,

चुदती औरत के मुंह से गालियां बहुत अच्छी लगती हैं। और बनारस वालियों की गालियां तो सीधे माँ बहिन कोई नहीं बचती और गदहे घोड़े कुत्ते से कम में चढ़ता नहीं माँ बहिन पे और ये एक बैरोमीटर भी है उनकी मस्ती का, कितनी चुदवासी हो रहीं हैं।

थोड़ी देर उन्हें और पागल करने के बाद दुबारा भौजी पर चढ़ाई करने के लिए मैंने मुंह और उंगलिया उनकी गुलाबो से हटाया लेकिन भौजी तो भौजी और मैं अभी भी नौसिखिया देवर कहें, ( मेरी भाभी के रिश्ते से ) बहनोई कहें ( गुड्डी के रिश्ते से ),


संध्या भाभी ने हल्का सा धक्का दिया जैसे चुमावन के समय भाभियाँ देती हैं, पर मैं पीछे हाथ कर के सम्हल गया, बाथरूम में दीवाल के सहारे बैठ गया, और भौजी मेरी गोद में। मेरा खूंटा खड़ा था वैसा ही टनटनाया और भौजी ने अपने हाथ से पकड़ के के अपनी बिल के दरवाजे पे सटाया और पूरी ताकत से बैठ गयीं। एक तो मैंने पहले ही छँटाक भर तेल अपनी भौजी की बुरिया को पिलाया था और फिर रगड़ मसल के जो चाशनी निकली थी, धीरे धीरे कर के इंच इंच मेरा आधा से ज्यादा मूसल उनके अंदर,
Sandhya Bhabhi to bahut garmayin hui hai,esa devar bar bat nhi milta to sari kasar ke baar me hi poora karna chahti hai
 

komaalrani

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छुटकी के अपडेट के साथ अब तीनो कहानियों पर जैसा मैंने वायदा किया था की दिवाली के बाद अपडेट दे दूंगी, अपडेट आ गया है।

और अब इन्तजार रहेगा मित्रों के कमेंट्स और टिप्पणियों का।

अभी भी फोरम पर मेरा आना जाना कुछ ऐसा ही रहेगा लेकिन प्लीज कमेंट और लाइक्स में कोताही मत कीजियेगा।
 
Last edited:

komaalrani

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Sandhya Bhabhi to bahut garmayin hui hai,esa devar bar bat nhi milta to sari kasar ke baar me hi poora karna chahti hai
Thanks so much.
 
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