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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
मैं, गुड्डी और होटल
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Thanks so much, will try to post next part too soon.I am the most happiest person in this forum to see you back
ऐसी कहानियों को ही शिक्षाप्रद कहानी कहते हैं।नयकी भाभी से बढ़ कर कोई नहीं... जो ऐसी ज्ञान की बातें बताए...
अब अगर आगे कोई सील खोलना हो...
तो कोमल जी के इन बातों को ध्यान में रखें...
Thanks so much.Better to concentrate on your issues first.
चंदा भाभी और संध्या भाभी का तो भोग लगा ही लिया और गुंजा का स्वाद तो ले ही लिया था हाँ बस भोग लगते लगते रह गया। और गुड्डी की दावत तो रात में तय ही है।आनंद बाबू की हालत तो उस बच्चे के जैसे हो गई है...
जिसके सामने कई तरह के पकवान रखे हों...
और क्या खाएं और क्या न खाएं...
यही डिसाइड न कर पा रहे हों.....
बराबर का मुकाबला है साथ में आनंद बाबू सीख भी रहे हैंचुदाई के बीच संध्या भाभी गुड्डी का लारा लप्पा दे के...
आनंद बाबू को उकसा रही थीं...
लेकिन आनंद बाबू भी कम नहीं हैं...
मस्त मजेदार अपडेट....
एकदम और ट्रेनिंग के बाद इम्तहान भी होगा।लगता है.. सारे आसन की ट्रेनिंग दे कर हीं मानेंगी... संध्या भाभी...
इस के साथ ही बनारस की होली का प्रंसग ख़तम हुआ और कहानी गुड्डी के घर से निकल कर बनारस की गलियों में बढ़ेगी और वहां भी कुछ नयापन दिखेगा, अगली पोस्ट में जल्द हीदूबे भाभी की वार्निंग..
अब तो मरता क्या न करता...
आनंद बाबू अपनी बहिनी को....