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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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वैसे तो ऐसे साहित्य हर मौसम में उपलब्ध रहते हैं... खासकर स्टेशन के पास..
लेकिन होली के विशिष्ट मौके पर विशेष परिशिष्ट...
आजाद लोक.. हरजाई और ऐसे न जाने कितने हीं साहित्य...
जो हॉस्टल में एक किसी को दिया तो अगले दिन चार-पांच हाथों से भी ज्यादा गुजर चुका होता था..
और पता करने पर आधे हॉस्टल को छानना पड़ता था...
और हाँ. हॉस्टल में इसे PONDY कहते थे... Program On Natural Development of Youth.
यह फुलफार्म पहली बार पता चला

साथ में शायद अनेक पाठकों का भी ज्ञान वर्धन हुआ आपने एकदम सही कहा हैं और इसलिए इस प्रकरण में उन्ही दिनों की बानगी दिखाई गयी हैं
 

komaalrani

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तुम्हीं ने दर्द दिया ..
तुम्हीं दवा देना...
एकदम सही कहा आपने
 
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komaalrani

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अगला अपडेट बस कुछ दिनों में

पूर्वांचल और माफिया
 
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komaalrani

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आँखों देखा ऐसा नजारा..
जैसे सबकुछ सामने घटित हो रहा हो....
एकदम और अगले अपडेट की पूर्वपीठिका भी
 
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komaalrani

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मानव मनोविज्ञान और उनके शरारतों पर आपको महारथ हासिल है...
एक-एक दृश्य का वर्णन यूं किया कि सब कुछ आँखों देखा बयान हो रहा हो और एक चलचित्र पेश कर दिया...
🙏🙏🙏🙏:thank_you::thank_you:
 
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komaalrani

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पहले पोस्ट के अंत और इस पोस्ट के शुरुआत में कुछ कंटीन्यूटी की कमी लगी..
जैसे दो-चार लाइन पोस्ट होने से रह गए हों...

और पूर्वांचल की विडंबना यही है कि यहाँ इंडस्ट्री से ज्यादा गुंडों की भरमार है...
कोई भी बिजनेस हाउस इन्वेस्ट करने से पहले वहाँ के माहौल को देखती है...
और इसी कारण वहाँ के लोग दूसरे प्रदेशों में जाकर काम-काज ढूंढते हैं...

यह दृश्य परिवर्तन में ए झटके को दिखाने के लिए था, एक समय सब कुछ सामान्य लग रहा था, दूकान के बाहर का दृश्य भी और अंदर का भी।

और होली में छुटभैये बदमाश तो पैसा मांगने आते रहते हैं, लेकिन अगर माफिया का सीनियर मैनेजमेंट वाला कोई खुद चल के आ जाए, जिसका नाम सबने सुन रखा हो, जो एक बार जोर का झटका जोर से दे चुका हो, उनकी लड़की को उठवा लिया हो और बड़ी मुश्किल से ले दे के

तो ऐसी हालत में क्या होता हैं

उस हाल के दृश्य को दिखाने की कोशिश थी यह।
 
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komaalrani

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हीरो भी.. लेकिन साउथ इंडियन हीरो की तरह नहीं...
रियलिस्टिक हीरो...
और उपलब्ध साधनों का भरपूर इस्तेमाल...
साथ में ट्रेनिंग ने सोने पर सुहागा का काम किया...
एकदम सही कहा आपने, वो आनंद बाबू जो बनारस में अपने भाई की ससुराल और अपनी होने वाली ससुराल में, शरमाते, झिझकते हिचकते लग रहे थे, जिनकी गुड्डी की बहनों, गूंजा से लेकर दूबे भाभी और गुड्डी की मम्मी बात बात पे रगड़ाई कर रही थीं, गुड्डी तो खैर रगड़ाई करने का लाइसेंस ऊपर से लिखवा के लायी थी और रीत तो रीत ही हैं। पर जहाँ मौका पड़ा आनंद बाबू ने प्रत्युतपन्नमति , हिम्मत और ताकत एक साथ दिखाई। और गुड्डी ने भी उनका साथ दिया।

और यह हीरो आपने सही कहा कम से कम इस फोरम के हीरो से पूरा तो नहीं लेकिन थोड़ा सा हट के हैं, आगे सुधी पाठक स्वयं भेद कर सकते हैं।
 
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komaalrani

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बाल-बाल बचे..
वो लोग भी कम नहीं...
कुछ प्रेजेंस ऑफ माइंड
सली कमाल तो गुड्डी का था, ऐन मौके पे बोल दिया,

बचो, वरना चाक़ू तो कहीं और लगता।
हीं काम कर पाएगा...
 
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komaalrani

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मारने के बजाय नाकाम करना ज्यादे फायदेमंद हुआ...
अब लंबे समय तक कुछ करने लायक नहीं बचा...
एकदम सही कहा आपने

और हाथ से रिवाल्वर दूर करना भी जरूरी था

अब आनंद बाबू अपना असली रूप दिखा रहे हैं।
 
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komaalrani

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पुलिस और कानून का एक सही खाका खींचा है..
इसलिए इनके हौसले भी बढ़ गए हैं..
लेकिन शेर को भी सवा शेर मिलता है...
माफिया और पुलिस की मिलीभगत के बिना कुछ होता नहीं

और किस तरह से वो गुड्डी के पीछे पड़े हैं और आनंद बाबू के यह भी साफ हो गया
 
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