- 22,787
- 60,496
- 259
फागुन के दिन चार भाग ३४ - मॉल में माल- महक पृष्ठ ३९८
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर दें
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर दें
मारने के बजाय नाकाम करना ज्यादे फायदेमंद हुआ...स्मिथ एंड वेसन
![]()
जैसे ही वो चेन वाला उसके पैरों के पास गिरा, उसका ध्यान बंट गया और मेरे लिए इतना वक्त काफी था। मैंने पूरी ताकत से चेन उसके रिवाल्वर वाले हाथ पे दे मारी।
रिवाल्वर छटक के दूर गिरी।
मैंने पैरों से मारकर उसे गुड्डी की ओर फेंक दिया।
वो अपने जमाने का जबर्दस्त बाक्सर रहा होगा। इतना होने के बाद भी वो तुरंत बाक्सिंग के पोज में और एक मुक्का जबर्दस्त मेरे चेहरे की ओर। मैं बाक्सर न हूँ, न था इसलिए जवाब मेरे पैर ने बल्की पैर की एंड़ी ने दिया। सीधे दोनों पैरों के बीच किसी भी पुरुष के सबसे संवेदनशील स्थल पर, और उसका बैलेंस बिगड़ गया। वो सीधे मेरे पैरों के सामने धड़ाम गिरा।
मैं जानता था वो उन दोनों मोहरों की तरह नहीं हैं।
सामने से निपटना उससे मुश्किल है।
फिर भले ही उसका चाकू और रिवाल्वर अब उससे दूर है, लेकिन क्या पता उसके पास कोई और हथियार हो?
मौके का फायदा उठाकर मैं ठीक उसके पीछे पहुँच गया।
पलक झपकते मैंने चेन भी उठा ली। ये आर्डिनरी चेन नहीं थी, चेन का एक फेस बहुत पतला, शार्प लेकिन मजबूत था। गिटार के तार की तरह,.... ये चेन गैरोटिंग के लिए भी डिजाइन थी। दूर से चेन की तरह और नजदीक आ जाए तो गर्दन पे लगाकर। गैरोटिंग का तरीका माफिया ने बहुत चर्चित किया लेकिन पिंडारी ठग वही काम रुमाल से करते थे।
प्रैक्टिस, सही जगह तार का लगना और बहुत फास्ट रिएक्शन तीनों जरूरी थे।
पनद्रह बीस सेकंड के अन्दर ही वो अपने पैरों पे था
और बिजली की तेजी से अपने वेस्ट बैंड होल्स्टर से उसने स्मिथ एंड वेसन निकाली, माडल 640।
![]()
मैं जानता था की इसका निशाना इस दूरी पे बहुत एक्युरेट।
इसमें 5 शाट्स थे। लेकिन एक ही काफी था। उसने पहले मुझे सामने खोजा, फिर गुड्डी की ओर।
तब तक तार उसके गले पे।
पहले ही लूप बनाकर मैंने एक मुट्ठी में पकड़ लिया था और तार का दूसरा सिरा दूसरे हाथ में, तार सीधे उसके ट्रैकिया के नीचे।
छुड़ाने के लिए जितना उसने जोर लगाया तार हल्का सा उसके गले में धंस गया। वो इस पेशे में इतना पुराना था की समझ गया था की जरा सा जोर और,...
![]()
लेकिन मैं उसे गैरोट नहीं करना चाहता था।
मेरे पैर के पंजे का अगला हिस्सा सीधे उसके घुटने के पिछले हिस्से पे पूरी तेजी से, और घुटना मुड़ गया। और दूसरी किक दूसरे घुटने पे। वो घुटनों के बल हो गया। लेकिन रिवालवर पर अब भी उसकी ग्रिप थी, और तार गले में फँसा हुआ था।
मैंने उसके कान में बोला- “मैं पांच तक गिनूंगा गिनती और अगर तब तक रिवाल्वर ना फेंकी…”
गले पे दबाव, आक्सीजन की सप्प्लाई काट रहा था और उसके सोचने की शक्ति, रिफ्लेक्सेज कम हो रहे थे।
मैंने चेन अब बाएं हाथ में ही फँसा ली थी और गिनती गिन रहा था- 1,… 2,… 3 और मेरे दायें हाथ का चाप पूरी ताकत से उसके कान के नीचे। चूँकि वो घुटने के बल झुका था, ये दुगनी ताकत से पड़ा। रिवाल्वर अपने आप उसके हाथ से छूट गई। मैंने तार थोड़ा और कसा। अब उसकी आँख के आगे अँधेरा छा रहा था। एक बार उसने फिर उठने की कोशिश की। मैंने उसे उठने दिया और वो पूरा खड़ा भी नहीं हुआ था की फिर पूरे पैरों के जोर से, घुटने के पीछे वाले हिस्से में, दोनों पैरों में।
अब तो वो पूरी तरह लेट गया था।
मैंने टाइम पे चेन छोड़ दी थी वरना उसका गला। मैंने उसका दायां हाथ पकड़ा और कलाई के पास से एक बार क्लाकवाईज और दूसरी बार एंटीक्लाकवाईज पूरी ताकत से। कलाई अच्छी तरह टूट गई। दूसरे हाथ की दो उंगलियां भी।
अब वो बहुत दिन तक रिवाल्वर क्या कोई भी हथियार,... और उसके बाद पैर,
फिर तो जो भी मेरा गुस्सा था। कोहनी से,... घुटनों से आग बनकर निकला. उसके चमचों की हिम्मत कैसे हुए गुड्डी को हाथ लगाए और फिर रीत की सहेली के साथ। ये हरकत? कुछ ही देर में दायीं कुहनी, पंजा और बायां पैर नाकाम हो चुका था।
सेठजी अभी भी परेशान थे। उन्हें अपने से ज्यादा हम लोगों की चिंता थी-
“भैया तुम लोग चले जाओ जल्दी। वरना तुम जानते नहीं ये कौन हैं? चूहे के चक्कर में सांप के बिल में हाथ दे दियो हो। भाग जाओ जल्दी…”
और वो हम लोगों से हाथ जोड़े खड़े थे।
तभी मुझे खयाल आया सबसे खतरनाक हथियार तो मैंने छीना ही नहीं- इसका मोबाइल।
जेब से मैंने उसके मोबाइल निकाले और चेक किया। गनीमत थी की आखिरी डायल नम्बर आधे घंटे से ज्यादा पहले का था।
मैंने सिम निकालकर अपने फोन में डाला और सारी फोन बुक, डायल और रिसीव नम्बर अपने मोबाइल में ट्रांसफर कर लिए।
मैंने उन्हें हिम्मत दिलाई-
“अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है। पुलिस कानून कुछ है की नहीं आप लगाइए ना फोन पोलिस को…”
जमीन पर पड़ा हुआ वो बास नुमा छोटा चेतन हँसने लगा।
सेठजी ने मेरे कान में फुसफुसा के कहा- “अरे है सब कुछ है। लेकिन एनही की है…” और फिर बोले- “आप लोग जाओ…”
गुड्डी ने हुकुम दागा- “आप भी ना। इन्हीं को बोल रहे हैं। बाहर थे ना दो ठो पोलिस वाले बुलाइये ना…”
![]()
-----------------------
पुलिस और कानून का एक सही खाका खींचा है..पुलिस कानून
![]()
सेठजी और मैंने मिलकर शटर खोला। दुकान के बाहर सन्नाटा पसरा पड़ा था। दूर दराज तक गली में सन्नाटा था। पोलिस वाला तो दूर, वो क्रिकेट खेलते बच्चे, सामान वाली ट्रक और टेम्पो, कुछ नहीं थे। यहाँ तक की सारी खिड़कियां तक बंद थी। सिर्फ गाय अभी भी चौराहे पे मौजूद थी, जुगाली करती।
दुकान के अन्दर घुस के मैंने अबकी गुड्डी से बोला- “हे तुम फोन लगाओ ना पोलिस वालों को…”
और उसने 100 नंबर लगाया। बड़ी देर तक घंटी जाने के बाद फोन उठा।
सब सुनने के बाद कोई बोला- “अरे काहे जान ले रही हो बबुनी भेजते हैं। थे तो दू ठे ससुरे वहीं चौराहावे पे। कौनो कतल वतल त न हुआ है ना?”
गुड्डी ने फोन रख दिया।
थोड़ी देर में टहलते हुए वही दोनों पोलिस वाले आये-
“का हउ सेठजी के हो। अरे कान्हे छोट-छोट बात पे पोलिस थाना करते हैं। सलटा लिया करिए ना…”
फिर गुड्डी की ओर देखकर गन्दी सी मुश्कान देते बोले-
“कहो कतो रेप वेप की फरियाद तो नहीं थी। चलो थाने में,... पहले थानेदार साहब बयान लेंगे तोहार सरसों का तेल लगाकर,... फिर हमरो नंबर आएगा। तब तक तो बिना तेलवे का काम चल जाएगा। थानेदार साहेब का डंडा बहुत लम्बा हउ और मजबूत भी। होली में थानेदारिन मायके भी गई हैं…”
मैंने तब तक उस बास उर्फ छोटा चेतन और दोनों मोहरों की फोटो मोबाइल पे ले ली थी।
मैं कुछ बोलता उसके पहले सेठजी बोले-
“अरे इंस्पेक्टर साहब, (थे दोनों कास्टेबल,) बच्चे हैं, कानून कायदा नहीं मालूम फोन घुमाय दिए। हम समझा देंगे। कौनों खास बात नहीं है…”
फिर हम लोगों से मुखातिब होकर बोले- “अब जाओ तुम लोग ना…”
उनके काम करने वाले भी अब वापस आ गए थे और एक ने हम लोगों का सामान भी पकड़ा दिया था।
मैं अब बीच में आ गया- “देखिये बात ये है की। तीन लोगों ने यहाँ सेठजी पे, …”
मेरी बात रोक के पोलिस वाला बोला-
“अरे आप हो कौन ?नाम पता, इ लौंडिया के साथ हो का। का रिश्ता है। राशन कार्ड है। वोटर आईडी। भगा के ले जा रहे हो?”
दूसरा पोलिस वाला भी अब बीच में आ गया-
“मालूम है। ....नाबालिग लग रही है अभी तो इसकी डागदरी होगी। साले, किडनैपिंग लगेगी, दफा 359, दफा 360 दफा 364 साले चक्की पीसोगे और अगर कहीं रेप का केस लग गया तो दफा, 376 375। डागदरी में साबित हो गया तो जमानतो नहीं होगी साल भर। अरे जब एक बार हमारे थानेदार साहब का डंडा चल गया ना रात भर,...तो डागदरी में तो रेप के कुल निशान मिलने ही वाला है। और कौनो कसर रही तो,... डाक्टरों साहेब के थाने पे दावत पे बुलाये लेंगे। छमिया तो मस्त है…”
अब मैं आग बबूला हो रहा था, बहुत हो गया-
“हे कौन है तुम्हारा इन्स्पेक्टर? क्या नाम है, कौन थाना है? अभी मैं बात करता हूँ…” मैं गुस्से में बोला।
तब तक एक पोलिस वाले की निगाह जमीन पे पड़े छोटा चेतन, उन मोहरों के बास पे पड़ी। वो झुक के बोला-
“अरे बाबू साहब! कौन ससुरा?.... का हो सेठजी, इ का हो। जानते नहीं है आप…”
पड़े पड़े उसने मेरी ओर इशारा किया।
मेरा एक पैर उसके मुँह पे भी पड़ गया था। बोलना मुश्किल हो रहा था।
मैंने फिर बोलने की कोशिश की-
“जी यही थे। एक्सटार्शन, हमला के लिए आप इन्हें पकड़िये। ये सेठजी को धमकी दे रहे थे और हम लोगों पे भी इनके साथियों ने। बताइए थाने का नाम, मैं ही इन्स्पेक्टर को फोन करता हूँ…”
वो बोला- “अब फोन मैं करूँगा और इन्स्पेक्टर साहेब यहीं आयेंगे…” और मोबाइल निकालकर लगाया।
मैं उसकी बात सुन रहा था-
“जी हाँ अरे अपने उनके खास। हाँ हाँ वही। पता नहीं कैसे। अरे कौनो ससुरा लौड़ा लफाड़ी है स्टुडेंट छाप और साथ में एक ठो छमिया भी है। फोनवा वही किये थी। हाँ आइये। नहीं कहीं नहीं जाने देंगे। और एम्बुलेंस बाबू साहेब मना कर दिए। उनके कौनो खास डाक्टर हैं बस उन्हीं को फोन किये हैं प्राइवेट नर्सिंग होम है सिगरा पे। अउते होंगे वो भी। हाँ आपको याद कर रहे थे। बस आप आ जाइए तुरंत। अरे हम रोके हैं ले चलेंगे थाने उन दोनों को…”
अब मेरी हालत पतली हो रही थी। इन सिपाहियों से तो मैं निपट लेता लेकिन वो पता नहीं कौन थे?
गुड्डी भी मेरा हाथ पकड़कर खींच रही थी- “हे कुछ करो ना। अगर वो आ गया ना…”
मैं भी डर रहा था। अगर एक बार इन सबों ने मेरा मोबाइल ले लिया, तो फिर?
बिचारे सेठजी अपनी ओर से कोशिश कर रहे थे-
“हे कुछ ले देकर मान जाइए। बच्चे हैं नहीं मालूम था किससे उलझ रहे हैं?”
अचानक बल्ब जला वो भी 250 वाट का। डी॰बी॰ दो साल मुझसे सीनियर थे हास्टल में। मेरी रैगिंग उन्होंने ही ली थी। अभी फेस बुक में किसी ने बताया था की उनकी पोस्टिंग यहीं हो गई है नंबर भी लिया था। बस मैंने लगा दिया नंबर, 2-3-4-5 बार रिंग गई लेकिन कोई जवाब नहीं।
मैं समझ गया अब गई भैंस पानी में। हो सकता है, मेरा नंबर तो है नहीं उनके पास। इसलिए इस पोस्ट पे ना जाने कितने फोन आते होंगे? लेकिन कहीं वो सो रहे हों तो? खैर, मैंने एक मेसेज छोड़ दिया अपने नाम के साथ कोड नेम भी लिख दिया 44। हम दोनों का रूम नंबर हास्टल में एक ही था विंग अलग-अलग थे।
तुरंत रिस्पोंस आया- “बोलो कहाँ हो?”
मेरी जान में जान आई। सब मुझे ही देख रहे थे। छोटा चेतन। पोलिस वाले, सेठजी और गुड्डी। मोहरे अभी भी देखने की हालत में नहीं थे।
मैं दुकान के दूसरे कोने में चला गया। और फोन लगाया। उनकी पोस्टिंग यहीं हो गई थी। एक महीने पहले एस॰पी॰ सिटी में। एस॰एस॰पी॰ कहीं बाहर गए थे तो पूरा चार्ज उन्हीं के पास था।
पूरी दास्तान सुनकर वो बोला- “चल यार तूने रायता फैला दिया है तो समेटना तो मुझे ही पड़ेगा न। वो हैं कैसे बता जरा?”
मैंने बोला-
“अरे मैं अभी फोटो एम॰एम॰एस॰ करता हूँ। लेकिन वो तुम्हारा इंस्पेक्टर आ गया तो?”
मैंने जानबूझ के उसे पोलिस वालों ने क्या बोला था मुझे और गुड्डी को नहीं बताया। उसका गुस्सा, खासतौर से अगर कोई किसी लड़की से बदतमीजी करे तो जग जाहिर था।
थोड़ी देर में फिर फोन बजा, डी॰बी॰ का ही था।
“ये तूने क्या किया? तू ना। चल लेकिन,... चाय बनती है।...हाँ दो बात। पहली किसी को उन तीनों को ले मत जाने देना, खास तौर से उस इन्स्पेक्टर को या किसी डाक्टर को। और दूसरा सुन। अपने बारे में भी किसी को बताया तो नहीं। मत बताना। समझे?”
“लेकिन मैं कैसे रोक पाऊंगा…” मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
“ये तेरा सिरदर्द है। हाँ असली बात तो मैंने बतायी नहीं। मैं एक सिद्दीकी नाम के इन्स्पेक्टर को भेज रहा हूँ। बस उसी को इन तीनों को, और मुझसे बात कराकर…” ये कहकर फोन काट दिया।
सांस भी आई और घबड़ाहट भी। इसका मतलब ये तिलंगे कोई इम्पोर्टेंट है।
छोटा चेतन, उन दोनों के बास को दोनों पुलिस वालों ने मिलकर कुर्सी पे बिठा दिया था और एक कोल्ड-ड्रिंक लाकर दे दिया था। वो बैठकर सुड़ुक सुड़ुक के पी रहा था।
बाकी दोनों मोहरे भी फर्श पे काउंटर के सहारे बैठ गए थे।
हम लोग भी अगले पल का इंतजार कर रहे थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की थानेदार से मैं कैसे निबटूंगा? और पता नहीं वो सिद्दीकी का बच्चा। फिर ये जो डाक्टर आने वाला है तीन तिलंगों को लेने, उससे कैसे निबटेंगे? तब तक शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर।
क्या हीं बारीकी से पुलिसियों और गुंडों के मनोभावों को माहौल के मुताबिक बदलते दिखाया है...थानेदार साहेब
![]()
सांस भी आई और घबड़ाहट भी। इसका मतलब ये तिलंगे कोई इम्पोर्टेंट है।
छोटा चेतन, उन दोनों के बास को दोनों पुलिस वालों ने मिलकर कुर्सी पे बिठा दिया था और एक कोल्ड-ड्रिंक लाकर दे दिया था। वो बैठकर सुड़ुक सुड़ुक के पी रहा था।
बाकी दोनों मोहरे भी फर्श पे काउंटर के सहारे बैठ गए थे।
हम लोग भी अगले पल का इंतजार कर रहे थे।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की थानेदार से मैं कैसे निबटूंगा? और पता नहीं वो सिद्दीकी का बच्चा। फिर ये जो डाक्टर आने वाला है तीन तिलंगों को लेने, उससे कैसे निबटेंगे?
तब तक शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर।
धड़धड़ाती हुई जीप की आवाज सुनाई पड़ी। सबके चेहरे अन्दर खिल पड़े सिवाय मेरे और गुड्डी के। दनदनाते हुए चार सिपाही पहले घुसे। ब्राउन जूते और जोरदार गालियों के साथ-
“कौन साल्ला है। गाण्ड में डंडा डालकर मुँह से निकाल लेंगे, झोंटा पकड़कर खींच साली को डाल दे गाड़ी में पीछे…”
गुड्डी की ओर देखकर वो बोला।
और पीछे से थानेदार साहब।
पहले थोड़ी सी उनकी तोंद फिर वो बाकी खुद। सबसे पहले उन्होंने ‘छोटा चेतन’ साहब की मिजाज पुरसी की, फिर एक बार खुद उस डाक्टर को फोन घुमाया जिनके पास उसे जाना था और फिर मेरी और गुड्डी की ओर।
“साल्ला मच्छर…”
बोलकर उसने वहीं दुकान के एक कोने में पिच्च से पान की पीक मार दी और अब उसने फिर एक पूरी निगाह गुड्डी के ऊपर डाली, बल्की सही बोलूं तो दृष्टिपात किया। धीरे-धीरे, ऊपर से नीचे तक रीति कालीन जमाने के कवि जैसे नख शिख वर्णन लिखने के पहले नायिका को देखते होंगे एकदम वैसे। और कहा-
“माल तो अच्छा है। ले चलो दोनों को,... लेकिन पहले साहब चले जाएं। डायरी में इस लड़की के फोन का तो नहीं कुछ…” उन्होंने पहले आये पुलिस वाले से पूछा।
“नहीं साहब। बिना आपकी इजाजत के। अब इस साले को ले चलेंगे तो किडनैपिंग और लड़की को नाबालिग करके। ये उससे धंधा करवाता था। तो वो…”
थानेदार जी बोले- “सही आइडिया है तुम्हारा। ससुरी वो जो पिछले वाली सरकार में मंत्री की रखैल। चलाती है क्या तो नाम है। जहाँ इ सब दालमंडी वालियों को…”
“वनिता सुधार गृह…” कोई पढ़ा लिखा पोलिस वाला पीछे से बोला।
“हाँ बस वहीं। अरे सरकार गई धन्धवा तो सब वही है। बस वहीं रख देंगे बस पूछताछ के लिए जब चाहेंगे बुलवा लेंगे…” थानेदार जी ने चर्चा जारी रखी।
अब उन्होंने अगले अजेंडे की ओर रुख किया यानी मेरी ओर- “ले आओ जरा साले को…” दो पोलिस वालों को उन्होंने आदेश दिया।
“अरे साहब अभी ले चलेंगे न साले को थाने में वहां आराम से। जरा आधा घंटा हवाई जहाज बनायेंगे, टायर पहनाएंगे। फिर आप आराम से दो-चार हाथ। अरे जो कहियेगा हुजुर वो कबूलेगा,.... साल्ला, रेप, किडनैपिंग, ब्लू-फिल्म ड्रग्स, ....अपने हाथ से लौंडिया का नाड़ा खोलेगा…”
एक पोलिस वाले ने समझाया।
वो बोले- “अरे जरा बात कर लें नाम पता पूछ लें बाकी तो थाने में ही होगा…”
दो पोलिस वाले मेरी ओर बढ़े।
तभी मेरे फोन की घंटी बजी।
डी॰बी॰।
“सिद्दीकी पहुँचा?” वो बोले।
“नहीं, लेकिन वो थानेदार आ गया है और मुझे पकड़ने के चक्कर में है…”
“वो तो ठीक है, तुम्हारी ट्रेनिंग का पार्ट हो जाएगा। लेकिन सिद्दीकी पहुँचाने ही वाला है बस दो-वार मिनट, उन तीनों को उसी के हवाले करना।
मैंने फोन इस तरह किया था की दुकान में हो रही आवाजें भी उन्हें सुनाई पड़े।
“हे चल दरोगा साहेब बुला रहे हैं…” उन दोनों ने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश की।
“चल रहा हूँ साहब…” मैंने बोला और हाथ पकड़ने से रोक दिया।
“क्यों बे किससे बात कर रहा है तुझे टाइम नहीं है। और ये क्या यहाँ शरीफ आदमियों के साथ लफड़ा किया और,... ये साली लौंडिया कहाँ भगाकर ले जा रहा है? किससे बात कर रहा है? मोबाइल छीन इसका…”
वो गरजे।
डी॰बी॰ अभी फोन पर ही थे-
“वो,... वो। आपसे ही बात करना चाहते हैं जी। लीजिये…” और फोन मैंने थानेदार को पकड़ा दिया।
सारे पोलिस वाले हमें ऐसे देख रहे थे जैसे मैं किसी से सोर्स सिफारिश लगवा रहा हूँ, और जिसका थानेदार साहब पे कोई असर नहीं होगा। उल्टे उनकी एक घुड़क से उसकी पैंट ढीली हो जायेगी।
थानेदार जी ने फोन ले लिया। फिल्म अब स्लो मोशन में हो गई- “कौन है बे। ये जो पोलिस के मामले में टांग,.... नहीं नहीं सर इन्होंने बताया नहीं, मैं तो इसीलिए खुद आ गया था। पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया। मैडम ने फोन किया था। नहीं कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला। वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए हैं…”
इतना तेज हृदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन, मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था। फिल्मों में भी नहीं। फोन लेने के चार सेकंड के अन्दर उनके ब्राउन जूते कड़के। वो तन के खड़े हो गए, हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकड़े।
अभी तो गुड्डी माल नजर आ रही थी..सिद्दीकी
![]()
थानेदार जी ने फोन ले लिया। फिल्म अब स्लो मोशन में हो गई-
“कौन है बे। ये जो पोलिस के मामले में टांग,....नहीं नहीं सर इन्होंने बताया नहीं, मैं तो इसीलिए खुद आ गया था। पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया। मैडम ने फोन किया था। नहीं,... कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला। वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए हैं…”
इतना तेज हृदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन, मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था। फिल्मों में भी नहीं।
फोन लेने के चार सेकंड के अन्दर उनके ब्राउन जूते कड़के। वो तन के खड़े हो गए, हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकड़े।
वार्ता जारी थी-
“नहीं नहीं सिद्दीकी को भेजने की कोई जरूरत नहीं। नहीं मेरा मतलब,.... अरे मैडम ने जैसे ही फोन किया जी॰डी॰ में दर्ज कर दिया है, एफ॰आई॰आर॰ भी लिख ली है। जी,... सेठजी का बयान लेने ही मैं आया था। दफा,... जी नहीं एकाध कड़ी दफा भी। जी,... उसने अपने वकील को फोन कर दिया था मेरे आने के पहले। नहीं साहब,.... अरे एकदम छोटा मोटा कोई। नहीं,... कोई गलतफहमी हुई है। ठीक है आप कहते हैं तो पन्ना फाड़ दूंगा…”
फोन दो सेकंड के लिए दबाकर उन्होंने सर्व साधारण को सूचित किया-
“साले तेरा बाप है। डी॰बी॰ साहेब का फोन है। ये उनके दोस्त हैं…”
थानेदार- “जी हाँ एकदम दुरुस्त…” और फोन बंद करके मुझे पकड़ा दिया।
माहौल एकदम बदल गया।
जो दो पोलिस वाले मेरे हाथ पकड़े थे और हवाई जहाज, टायर इत्यादि की एडवेंचर्स योजनायें बना रहे थे, उन्होंने मौके का फायदा उठाया और मेरे चरणों में धराशायी हो गए-
“जी माफ कर दीजिये। ये तो इन दोनों ने। साले अब जिन्दगी भर ट्रैफिक की ड्यूटी करेंगे। थाने के लिए तरस जायेंगे। जूते मार लीजिये साहब। लेकिन…”
वो दोनों पोलिस वाले भी मेरे पास खड़े थे, लेकिन चरण कम पड़ रहे थे। इसलिए वो जाकर गुड्डी के चरणों में-
“माताजी। माताजी हम। पापी हैं हमें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। लेकिन आप तो दयालु हैं, माफ कर दीजिये, हम कान पकड़ते हैं। बरबाद हो जायेंगे। साहेब हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। बाल बच्चे वाले हैं हम आपके पैरों के दास बनकर रहेंगे…”
फर्क चारों ओर पड़ गया था।
दोनों मोहरे जो काउंटर का सहारा लेकर आराम से अधलेटे बैठे थे जमीन पे फिर से सरक गए थे।
‘छोटा चेतन’ जो ओवर कांफिडेंट था, के चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी और वो बार-बार मोबाइल लगाता और उम्मीद की निगाह से थानेदार की ओर देख रहा था।
यहाँ तक की सेठजी भी एक नई नजर से हम लोगों की तरफ देख रहे थे।
छोटा चेतन उन तिलंगों का बास दरवाजे की ओर देख रहा था और मैं भी। मैं सोच रहा था की अगर वो डाक्टर आ गया तो उसे मैं कैसे रोकूंगा?
--------------
तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।
क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।
सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6’4…” इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया।
खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।
एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती,... तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।
सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-
“साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल…” और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।
सिद्दीकी-
“साले भंड़ुवे, क्या बता रहे थे इसे? छोटा मोटा। सारे थानों में इसका थोबड़ा है और। चलो अब होली लाइन में मनाना। पुलिस लाइन में मसाला पीसना। किसी साहब के मेमसाहब का पेटीकोट साफ करना…”
तब तक फिर फोन की घंटी बजी।
डी॰बी॰- “सिद्दीकी पहुँचा?”
मैंने बोला- “हाँ…”
डी॰बी॰- “उसको फोन दो ना…”
मैंने फोन पकड़ा दिया।
सिद्दीकी बोल रहा था लेकिन कमरे में हर आदमी कान फाड़े सुन रहा था। मैं समझ गया था की पब्लिक जितना डी॰बी॰ के नाम से डरी उससे ज्यादा। सिद्दीकी को देखकर। वो बनारस का ‘अब तक छप्पन’ होगा।
सिद्दीकी- “जी इन दोनों को आपके पास लाने की जरूरत नहीं है खाली शुक्ला को। जी मैं कचड़ा ठिकाने लगा दूंगा। हाँ एक रिवाल्वर और दो चाकू मिले हैं। जी। मैं साथ में एक वज्र लाया हूँ यहीं लगा दिया, ....रामनगर से दो पी॰ए॰सी॰ की ट्रक आई थी होली ड्यूटी के लिए,... उन्हें गली के बाहर। डाक्टर को पहले ही उठवा लिया है और मेरे करने के लिए कुछ बचा नहीं था, साहब ने पहले ही,... मुझे बहुत घमंड था अपने ऊपर लेकिन जिस तरह से साहब ने चाप लगाया है सालों के ऊपर…”
और उसने फोन मुझे पास कर दिया।
डी॰बी॰ अभी भी लाइन पर थे, कहा- “अभी एक मोबाइल भेज रहा हूँ। तुम लोग…”
मैं- “मोबाइल। मतलब?” मेरी कुछ समझ में नहीं आया।
डी॰बी॰- “अरे पोलिस की गाड़ी। भेज रहा हूँ जाना कहां था…” वो बोले।
मैंने बताया की घर जा रहा हूँ बस पकड़ के तो वो फिर बोले
- “अरे खाना वाना खाकर घर जाते बस पकड़कर। लेकिन ये सब… “तो ठीक है सिद्दीकी जैसे निकले उसके बाद। हाँ ये बताने की जरूरत नहीं की किसी को बताना मत कुछ भी और तुम्हारे साथ वही है ना। जिसकी चिट्ठी आती थी?”
मैं- “हाँ वही। गुड्डी…”
डी॰बी॰- “अरे यार तुम लोग शाम को घर आते। खैर, लौटकर मिलवाना जरूर…”
मैंने फोन बंद किया।
सिद्दीकी अभी भी मुझे देख रहा था-
“साहेब बहुत दिन हो गए मुझे भी गुंडे बदमाश देखे साहब। लेकिन जो हाथ आपने लगाये हैं न। बस सुनते थे या। वो जो चीनी टाइप है हाँ जैकी चान उसकी पिक्चर में देखते थे। सब एकदम सही जगह पड़ा है। अभी से ये हालात है तो जब आप यहाँ आयेंगे तो क्या हाल होगा इन ससुरों का? कैडर तो आप का भी यूपी है ना?”
“मतलब?” पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली।
सिद्दीकी बोला-
“अरे साले तेरे बाप हैं। साल भर में आ जायेंगे यहीं…”
और अपने साथ आये दो आदमियों से मोहरों की तरफ इशारा करते हुये कहा-
“ये दोनों कचड़ा उठाकर पीएसी की ट्रक में डाल दो और शुकुल जी को (छोटा चेतन की ओर इशारा करते हुये) बजर में बैठा दो। उठ नहीं पायेंगे। गंगा डोली करके ले जाना। हाँ एक पीएसी की ट्रक यहीं रहेगी गली पे और अपने दो-चार सफारी वालों को गली के मुहाने पे बैठा दो की कोई ज्यादा सवाल जवाब न हो। और न कोई ससुरा मिडिया सीडिया वाला। बोले तो साले की बहन चोद देना…”
जब वो सब हटा दिए गए तो थानेदार से वो बोला-
“मुझे मालूम है ना तो अपने जी॰डी॰ में कुछ लिखा है न एफ॰आई॰आर॰, फोन का लागबुक भी ब्लैंक हैं चार दिन से। तो जो कहानी साहब को सुना रहे थे, दुबारा न सुनाइएगा तो अच्छा होगा, और थानेदारिन जी को भी हम फोन कर दिए हैं। भाभीजी शाम तक आ जायेंगी तो जो हर रोज शाम को थाने में शिकार होता है ना उ बंद कर दीजिये। चलिए आप लोग। अगर एको मिडिया वाला, ह्यूमन राईट वाला, झोला वाला, साल्ला मक्खी की तरह भनभनाया ना। तो समझ लो। तुम्हरो नंबर लग जाएगा…”
थाने के पोलिस वाले चले गए। तब तक एक गाड़ी की आवाज आई, वो हमारे लिए जो पोलिस की गाड़ी थी वो आ गई थी। हम लोग निकले तो दुकान के एक आदमी ने होली का जो हमने सामान खरीदा था वो दे दिया। सिद्दीकी हमें छोड़ने आया हमारे पीछे-पीछे अपनी गाड़ी में। गली के बाहर वो दूसरी तरफ मुड़ गया।
गुड्डी के चेहरे से अब जाकर डर थोड़ा-थोड़ा मिटा।
“किधर चलें। तुम्हारा शहर है बोलो?” मैंने गुड्डी से पूछा।
“साहेब ने आलरेडी बोल दिया है मलदहिया पे एक होटल है। वहां से आप का रेस्टहाउस भी नजदीक है…” आगे से ड्राइवर बोला।
और वास्तविकता से भरपूर पेश करने में कोमल जी का कोई सानी नहीं है..." शठे शाठ्यम समाचरेत " - मतलब दुष्ट को उसी के भाषा मे समझाना चाहिए । जिस तरह पहले आनंद ने शहर के गुंडे शुक्ला और उसके दो पंटरों की धुलाई करी और उसके बाद बजाय मेहरबानी डी बी सर , पुलिस आफिसर सिद्दीकी साहब ने भ्रष पुलिसिए की इज्ज़त उतारी वह दुष्ट को उसी के जुबान मे जबाव देना था । वह शठे शाठ्यम समाचरेत निहितार्थ करता था ।
अपडेट के प्रारंभ मे आप ने जिस तरह ग्रासरी के दुकान और उसके आस-पास के परिवेश का वर्णन किया तब एक बार के लिए मुझे फिल्म ' शोले ' के होली वाला वह दृश्य याद आ गया जब गब्बर सिंह रामगढ़ गांव पर हमला करने वाला था । डाकुओं के आने से पहले कुछ कुछ ऐसी ही चहल-पहल उस वक्त गांव मे भी थी ।
यही नही जिस तरह अमिताभ बच्चन साहब ने रंग और अबीर- गुलाल डाकुओं के आंख मे झोंक कर पासा ही पलट दिया था ठीक वैसे ही आनंद ने इन गुंडों के आंखों मे लाल मिर्ची डालकर किया ।
आप ने पुलिस आफिसर सिद्दीकी साहब की तुलना अमिताभ बच्चन और सलमान खान से की जब की मेरा मानना है असल अमिताभ बच्चन तो आनंद साहब थे । अकेले ही तीन तीन हथियारबंद गुंडों को जमीन पर सुला दिया । फाइटिंग स्किल की बानगी पेश कर दी । यही नही एक हीरो की तरह अपनी हीरोइन की रक्षा भी करी । अपने पुलिस आफिसर दोस्त की मदद से इस शहर से गुंडों का आतंक समाप्त कर दिया ।
लेकिन दुख हुआ उस ग्रासरी के मालिक को देखकर । उनकी बेटी के साथ बहुत ही गलत हुआ था , इसका हमे बेहद ही अफसोस है लेकिन इसके बावजूद भी इन गुंडों का सामना करना तो दूर भीगी बिल्ली की तरह उनके कदमों पर बिछे बिछे पड़े हुए थे ।
अपने मान सम्मान , अपनी इज्ज़त से बढ़कर कुछ नही होता । गलत के खिलाफ मौन साध लेना बुजदिली की पहचान है , कायरतापूर्ण है ।
मर्द की पहचान बिस्तर पर नही होती । औरत के सामने डींग हांकने से नही होती । मर्द की पहचान आनंद साहब की तरह दिलेर और आत्मसम्मान के रक्षा करने से होती है । जरूरतमंद की निस्वार्थ भाव से सेवा करने से होती है ।
यह अध्याय बहुत बहुत खुबसूरत था । इरोटिका लेखन की आप क्विन हो यह सर्वविदित है पर एक्शन सीन्स लिखने मे भी आप को महारत हासिल है , यह इस अपडेट ने सिद्ध कर दिया ।
बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग अपडेट ।
अभी तो इश्क के इम्तिहान और भी हैं...Mayeke jaane se pehle ek or round kr lenge. Abhi to is line ka matlab guddi ke liye dubara market jaane se hai ek do din bad 1 or round ka naya mtlb guddi samajh jayegi
Right now I am on page 309 but no action filled update.Last action filled update is on last page 309
गुड्डी बायोलोजिकल एज में भले छोटी हो लेकिन समझदारी में आनंद बाबू से मीलों आगे...Thanks, Guddi to smajhdaar hai hi vo ab Aaanad Babu ko Samjahdar bana rahi hai thanks for reading, enjoying and sharing your comment. Next post too has been posted . Please read and share your views
न केवल धूल चटाया.. बल्कि अगले कुछ महीनों के लिए नाकाम भी कर दिया...कोमल मैम
अत्यंत रोमांचकारी और लोमहर्षक अपडेट।
स्ट्रीट फाइट का जीवंत विवरण और गुड्डी की जीवटता।
आपकी लेखनी धन्य है।
सादर
हरेक सीन को बारीक नजर से पेश करने की कला सिर्फ कोमल रानी में ही है...Wowww Komal ji Superb post full of action and drama. I am fan of your versatility.