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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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Amezing update. Ohhh to ye tha reet ka msg. Tumhari bahniya ki booking ho gai. 8 ,10 ghante. Pese bhi to kamane hai. Maza aa gaya. Kya hoga tumhari mameri bahen ka.फागुन के दिन चार भाग २५
रंग
3,38,655
जैसे कोई किसी बच्चे के हाथ से मिठाई छीन ले वही हालत मेरी हो रही थी।
गुड्डी ने मुझसे मेसेज पढ़ते हुये मुझसे कपड़े पहनने का इशारा किया। मेरे पास चारा ही क्या था? मैं बस शर्ट पैंट पहनते हुये उसे देख रहा था। मारो तो तुम्हीं। जिलाओ तो तुम्हीं।
मेसेज पढ़ के पहले तो वो खिलखिलायी, फिर बोली-
“अरे इत्ता मुँह मत बनाओ। यार मुझे एक काम याद आ गया था। असली चीज खरीदना तो मैं भूल ही गई थी और उसकी दुकान शाम को ही बंद हो जाती है और दूसरी बात ये तुम्हारी मलाई, ...अब ये सीधे मेरी भूखी बुल-बुल के अंदर जायेगी और कहीं नहीं। भले ही तुम्हें छ: सात घन्टे इंतजार करना पड़ जाये…”
मैंने मोबाइल के लिये हाथ बढ़ाया तो उसने मना कर दिया, बोली-
“रास्ते में अभी टाइम नहीं है…”
और हांक के उसने मुझे रेस्टहाउस के कमरे से बाहर कर दिया-
“अरे यार सामान सब मैंने पैक कर दिया है। बस वो जो सामान थोड़ा सा रह गया है। बस एक दुकान है। जल्दी से लेकर। कहीं कुछ खाना हुआ तो खाकर सामान लेकर चल देंगे और एक बार तुम्हारे मायके पहुँच गये तो फिर तो…”
उसने रिक्शे पे बैठते हुये मुझे समझाया।
सामान जो छूट गया था वो रंग गुलाल था। लेकिन कोई खास तरह का। वो बोली-
“यार तुम्हारी भाभी ने स्पेशली बोला था इन रंगों के लिये। रीत के यहां ब्लाक प्रिन्टिंग का काम होता था तो ये लोग यहां से रंग लेते थे एकदम पक्का रंग। दूबे भाभी ने जो कालिख लगायी थी वो भी यहीं से…”
रिक्शा गली-गली होते हुये एक बड़ी सी दुकान के सामने जा पहुँचा, तब उसने रीत का मेसेज दिखाया-
“जीजू। लोग एक पति के लिये तरसते हैं लेकिन आपकी बहना। इतनी कम उमर में बस अगर थोड़ी सी मेहनत कर दे ना तो लखपती बन सकती है। मेरा मतलब मर्दो की संख्या से नहीं था। अब तक उसकी जो बुकिंग आ चुकी है और मैंने कंफर्म की है। बस एक हफ्ते वो बनारस रह जाय और रोज 8-10 घंटे। अब पैसा कमाना है तो मेहनत तो करनी पड़ेगी…”
हम लोग दुकान में घुस गये। एक ग्रासरी की दुकान की तरह बस थोड़ी बड़ी। ये थोक की दुकान थी और पूरे ईस्टर्न यूपी में होली का सामान सप्लाई करती थी। बनारस की गलियां। पतली संकरी और फिर अन्दर एक से एक बड़े मकान, दुकानें बस वैसे ही ये भी। बस थोड़ी ज्यादा चौड़ी।
चौराहे पे दो पोलिस वाले सुस्ता रहे थे।
पास में एक मैदान कम कचरा फेंकने की जगह पे कुछ बच्चे क्रिकेट का भविष्य उज्वल करने की कोशिश कर रहे थे, दीवालों पर पोस्टर, वाल राईटिंग पटी पड़ी थी। मर्दानगी वापस लाने वाली दवाओं से लेकर कारपोरेशन के इलेक्शन, भोजपुरी फिल्मों के पोस्टर से बिरहा के मुकाबले तक।
दुकान के दरवाजे के पास ही दीवाल पर मोटा-मोटा लिखा था- “देखो गधा मूत रहा है…” वहां गधा तो कोई था नहीं हाँ एक सज्जन जरूर साईकिल दीवार के सहारे खड़ी करके लघुशंका का निवारण कर रहे थे। एक गाय वीतरागी ढंग से चौराहे के बीचोबीच बैठी थी।
दो-तीन सामान ढोने वाले टेम्पो और एक छोटा ट्रक दुकान से सटकर खड़ा था। उसमें उसी दुकान से सामान लादा जा रहा था। टेम्पो शायद आस पास के बाजारों के लिए और ट्रक आजमगढ़ बलिया के लिए।
दुकान के अन्दर भी बहुत भीड़-भाड़ नहीं थी। थोक की दुकान थी और नार्मली शायद वो फुटकर सामान नहीं बेचते थे। हाँ दो-तीन लोग जिनके ट्रक और टेम्पो बाहर खड़े थे, वो थे और दुकान के मालिक तनछुई सिल्क का कुरता पाजामा पहने उन लोगों से मौसम का हाल से लेकर राष्ट्रीय राजनीति पर चर्चा कर रहे थे।
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गुड्डी ने दूर से उन्हें नमस्ते किया और उन्होंने तुरंत पहचान लिया।
वो सिर्फ दूबे भाभी के ब्लाक प्रिंट के लिए सामान ही नहीं सप्प्लाई करते थे, बल्की पारिवारिक मित्र भी थे। और उनकी छोटी लड़की रीत के साथ पढ़ती थी। वो हम लोगों के पास आकर खड़े हो गए।
गुड्डी ने मेरा परिचय कराया और बताया की वो मेरे साथ जा रही है इसलिए रंग और होली के कुछ सामान।
उसकी बात काटकर उन्होंने एक गुमास्ते को बुलाया और कहा की इसको बता दो। मुझे लगा की गुड्डी पता नहीं क्या-क्या बोले और देर भी हो रही थी तो लिस्ट मैंने उसे पकड़ा दी। उन्होंने मेरा परिचय उन सज्जन से भी कराया जिनकी ट्रक बाहर लद रही थी, ये कहकर की तुम्हारे शहर के ही हैं और जब उन्होंने बताया की जायसवाल जनरल स्टोर तो मैं तुरंत समझ गया।
चौक पे डिलाईट टाकिज के बगल में ही तो है, और उन्होंने भी बताया की हमारे घर के लोगों से वो भी परिचित हैं।
तब तक मैंने दुकान के एक कोने में चाइनीज पिचकारियां देखीं तो मैंने उनसे कहा की अरे पिचकारियां भी चीनी,... तो वो हँसकर बोलो चलो तुम्हें दिखलाता हूँ।
तरह-तरह की पिचकारियां, रंग और साथ में ही नीचे खुले डब्बों में हल्दी, धनिया, मिर्च पिसी तरह-तरहकर मसाले तभी मेरी निगाह पीतल की दो पिचकारियों पे पड़ी खूब लम्बी मोटी।
मैंने उनसे पूछा।
हँसकर वो बोले-
“अरे भैया पहले हमको भी शौक था। एक-एक पिचकारी में आधी बाल्टी तक रंग आ जाता है और धार इतनी तीखी की मोटे से मोटा कपड़ा भी फाड़कर रंग अंदर। लेकिन अब किसकी कलाई में इतना जोर है की इसको चलाये? इसलिए तो अब बस प्लास्टिक और वो भी बच्चे। बड़े तो होली खेलने निकलते नहीं और खेलते भी हैं तो सूखे रंग या पोतने वाले रंग। पिचकारी कहाँ…”
मुझे लगा की इनकी कहानी कहीं लम्बी ना हो जाय इसलिए मैंने सीधे पूछा- “कितने की है?”
वो हँसकर बोले- “अरे ले जाओ तुम जो कहोगे लगा देंगे वैसे ही पड़ी है…”
गुड्डी सामान चेक करके देख रही थी।
Ohhh to kahani me villains bhi hai. Vo bhi hero ke rahete. Bechare seth ji ki bitiya pahele utthva chuke hai. Aur ab guddi par najar. Aap ki kahani me paheli bar esa kuchh padhne ko mila hai.रंग में भंग
हमारे कुछ समझ में नहीं आया। जो दुकान के मालिक थे उनका चेहरा एकदम अचानक से उतर गया। सामने दो लड़के खड़े थे, वो दोनों टी-शर्ट और जीन्स में थे 22-24 साल के, कपड़े थोड़े तुड़े मुड़े। दाढ़ी थोड़ी सी बढ़ी। एक के हाथ में साइकिल की चेन लिपटी थी।
उन्होंने घबड़ाकर गुड्डी से कहा-
“बेटा तुम लोग चलो, हम तुम्हारा सामान भेजवा देंगे बाद में। जरा जल्दी निकलो…”
हमने चारों ओर देखा दुकान में कोई नहीं, ना काम करने वाले ना बाकी ग्राहक सभी गायब, और तभी घडरर की आवाज हुई और हमने जब दरवाजे की ओर देखा तो शटर एक आदमी बंद कर रहा था और जब मुड़कर उसने दुकान के मालिक को देखा तो लगता है उन्होंने मौत देख ली।
बस बेहोश नहीं हुए।
उसकी उम्र थोड़ी ज्यादा लग रही थी 28-30 साल की, पैंट के साथ एक काली शर्ट अन्दर टक की हुई। लेकिन मसल्स बहुत डेवलप, पैंट की जेबें थोड़ी फूली कमर के पास भी उसी तरह शर्ट फूली एक हाथ में चांदी का कड़ा। वो कुछ बोला नहीं सिर्फ दुकान के मालिक को देखता रहा।
“आप। आपने बेकार में तकलीफ की, खबर कर देते मैं हाजिर हो जाता। आप मेरी। मुझे तो इन लोगों ने बताया। नहीं की…”
दुकान के मालिक की घिघ्घी बंधी हुई थी। दोनों हाथ जुड़े हुए आँखों में डर नाच रहा था।
वो आदमी कुछ नहीं बोला। बस उन्हें देखता रहा अपनी फूली हुई जेब पे हाथ रखकर। लेकिन जो दोनों हम तीनों के पास खड़े थे उनमें से एक बोला-
“अब तो साहब आ ही गए हैं। तेरे ससुर क नाती। महीना शुरू हुए 10 दिन होई गवा है। होली अब गिन के 4 दिन बची है। त इ छूटकवा आय रहा की नाय। बोल? और ओके टरकाय दिया की… अरे एकरे तो सिर पे खून नाच रहा था। उ तो हम रोके एकरा के, ....की पुरान रिश्ता है। बड़मनई हैं और आप…”
“उ,… उ,..तो बाबू साहब की इहां हम शुरूये में,… और होली के अलगे से…”
जो दुकान के मालिक थे, थोड़ी उनकी हिम्मत बंधी की कोई जैसे गलत फहमी हुई हो और अब वो सुलझ जायेगी। उनके हाथ अभी जुड़े हुए थे।
“बाबू साहब तो ठीक है। लेकिन इहो तो हमरो साहब,… इनके लिए? दो बार फोन करवाये। त का साहेब कुछ बोलते ना तो का कपारे पे चढ़ा के ससुर का नाती नचबा…”
वो आदमी चालू हो गया।
“नहीं नहीं गलती होई गई मालिक माफ कय दिहल जाय। अब आगे से। अबहिंये…”
वो झुके जा रहे थे गिड़गिड़ा रहे थे, बस रो नहीं रहे थे।
“भूल गए। पिछली बार तुम्हरी लौंडिया ले गए थे तीन दिन के लिए, तबे किश्त बंधी थी। तब।....तब बाबू साहेब नहीं इहे साहब बचाए थे, नहीं तो हमार तो पूरा मन था की ससुरी को गाभिन करके भेजते। इ तो साहब तुम्हारि पुरानी,… बस खियाल आ गया। वरना मड़ुआडीह में बैठाय देते। रोज 10-10 मर्द ऊपर से उतरते ना, ता जतना तुम बक रहे हो उतना त उ ससुरी महीना में अपनी चूत से उगल देती। नाहीं तो बम्बई लेजाकर बेच आते। कच्ची माल थी उस बकत। त अब तू आपन दुकान सम्हाला,… अब तोहरी बिटिया एक नई दुकान खोलिहें। और जेतना लेवे के होई हम लोग ले लेब…”
हमलोगों के पास खड़ा आदमी फिर चालू हो गया।
अब तो वो बिचारे अलमोस्ट दंडवत होकर माफी मांगने लगे।
लेकिन गुड्डी बोली, जो दहसी हुई खड़ी थी-
“चाचा जी नहीं…”
बस गुड्डी का ये बोलना जहर हो गया।
हमारे पास जो दो लोग थे उनमें से जो साइलेंट टाईप का था उसने गुड्डी की बांह कसकर पकड़ ली और अपनी ओर खींच लिया।
दरवाजे के पास खड़ा तीसरा आदमी अब बोला-
“तो ये तुम्हारी भतीजी है?”
“नहीं नहीं जी। ऐसा कुछ नहीं। अरे ऐसे ही बोल रही है सौदा लेने आई थी, बस। ये लोग तो बस जा रहे थे बस। इसका मुझसे कोई लेना देना नहीं, बस छोड़ दीजिये इसे। हे जाओ तुम लोग कहाँ रुके हो? हम सब वो कुछ नहीं रखते। जाओ…”
दरवाजे के पास खड़ा आदमी मुश्कुरा रहा था, और एक हाथ से उसने जेब से गुटका निकाला और खाने लगा।
जिसने गुड्डी को पकड़ रखा था उसने दूसरा हाथ उसकी कमर पे रख दिया और अपनी ओर खींचा कसकर।
दूसरे ने सेठजी का कंधा पकड़ा और कहने लगा-
“अच्छा इनसे कुछ लेना देना नहीं तो ये तुम्हें चाचा जी क्यों बोल रही थी? दूसरे फिर तुम इसे बचाने के लिए काहे झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो?”
और जो आदमी गुड्डी को पकड़े हुए था…, उससे बोला-
“हे जरा साली की चूची दाब के तो बता। ये स्साली तो सेठजी की बेटी से भी ज्यादा करारा माल लग रही है…”
Vah action shuru ho gaya. Guddi bhi Kam nahin hai. Hill ki nok ghusa di. Aap ki kahani me kuchh naya padhkar maza aaya. Anand babu to himmat vale nikle.पलटा पासा
दूसरे ने सेठजी का कंधा पकड़ा और कहने लगा-
“अच्छा इनसे कुछ लेना देना नहीं तो ये तुम्हें चाचा जी क्यों बोल रही थी? दूसरे फिर तुम इसे बचाने के लिए काहे झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो?”
और जो आदमी गुड्डी को पकड़े हुए था…, उससे बोला-
“हे जरा साली की चूची दाब के तो बता। ये स्साली तो सेठजी की बेटी से भी ज्यादा करारा माल लग रही है…”
मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या करें-
“भैया हम लोगों को जाने दो। हम लोगों से कोई मतलब नहीं है बस। चले जा रहे हैं…”
बोलते गिड़गिड़ाते मैं नीचे झुका, जैसे मैं उनके पाँव पड़ने की की कोशिश कर रहा हूँ। और नीचे झुकते ही रंगों के डिब्बो के साथ-साथ एक खुले बरतन में लाल पिसी मिर्च का पाउडर और बगल में हल्दी का पाउडर।
झुके-झुके लाल पाउडर मैंने उठाया और तेजी से ऊपर उठाते हुए उसकी आँखों में पूरा का पूरा झोंक दिया।
जैसे ही वो सम्हलता, दूसरी मुट्ठी फिर।
अबकी आँख के साथ नाक और मुँह में। छींक से उसकी बुरी हालत हो गई।
तभी गुड्डी ने साथ-साथ, दूसरे आदमी के पैर में अपनी लम्बी तीखी हील भी पहले तो कसकर घुसा दी और फिर गोल-गोल घुमाने लगी। उसकी पकड़ ढीली हो गई और गुड्डी के दोनों हाथ छूट गए। गुड्डी ने उस आदमी के पेट में पूरी ताकत लगाकर अपनी कुहनी दे मारी।
बस वो मौका मिल गया जो मैं चाहता था।
दोनों से एक साथ निपटना असंभव था और दोनों के पास ही हथियार थे। चाकू, कट्टा या ऐसे कुछ भी।
गुड्डी को मैंने हल्का सा धक्का दिया और वो उस आदमी को लिए दिए सामान के ढेर के बीच जा गिरी।
जिसकी आँख में मैंने मिर्च झोंकी थी वो अब कुछ संभल रहा था।
आँखें खोलने की कोशिश करते हुए वो अपने साथी से बोला-
“पकड़ ले साली को। इस सेठ की लौंडिया को तो तीन दिन में छोड़ दिया था सिर्फ एक ओर से मजा लेकर। इसकी तो चूत का भोंसड़ा बना देंगे। और तुझे तो गाण्ड पसंद है न…”
मैं समझ रहा था ये सिर्फ बोल नहीं रहा है।
और हमारे पास सिर्फ एक रास्ता था, हमला।
मैंने जूते पूरी ताकत से उसके घुटने पे दे मारे और एक के बाद एक, चार बार वहीं। एक पैर उसका खतम हो गया।
लेकिन उसके गिरने से पहले ही मैंने एक हाथ से उसे पकड़ा और दूसरे हाथ से एक चाप सीधे उसके कान के नीचे और अब वो जो गिरा तो मैं समझ गया की कुछ देर की छुट्टी।
लेकिन मैं कनखियों से देख रहा था की दूसरा जिसे मैं गुड्डी के साथ धक्का देकर गिरा दिया था अब अपने पैरों पे खड़ा था और उसके हाथ की चेन हवा में लहरा रही थी और अगले ही पल ठीक मेरे ऊपर। अगर मैं झटके से बैठता नहीं। और बैठे-बैठे ही मैंने मेज जिस पर सामान रखा था उसकी ओर दे मारा।
लेकिन वो सम्हल गया और पीछे खिसक गया। चेन अभी भी उसके हाथ में लहरा रही थी। मैं चेन की रेंज से तो बाहर हो गया था, क्योंकि अब बीच में मेज और गिरा हुआ सामान था लेकिन मैं भी उसे पकड़ नहीं सकता था।
तब तक नीचे गिरे आदमी ने उठने की कोशिश की और मैंने बायां हाथ बढ़ाकर उसका दायां हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा। जैसे ही वो थोड़ा उठा, मेरे खाली हाथ ने एक चाप उसके दायें हाथ की कुहनी पे दे मारा और साथ ही में पैर उसके घुटने पे। मैं अपने निशाने के बारे में कांफिडेंट था की अब सारे कार्टिलेज घुटने और कुहनी के गए। और वो अब उठने के काबिल नहीं है।
दूसरा चेन वाला ज्यादा फुर्तीला और स्मार्ट था। मेज से बस वो आधे मिनट ही रुक पाया और घूमकर पीछे से उसने फिर चेन से मेरे ऊपर वार किया। मैं अब फँस गया। मेरे उन आर्म्ड कम्बैट के लेशन तब काम आते जब वो पास में आता और चेन से एक-दो बार से ज्यादा बचना मुश्किल था। वो एक बार अगर हिट कर देती तो। और फिर गुड्डी।
बचते हुए मैं दुकान के दूसरे हिस्से पे आ गया था, जहाँ इन्सेक्ट रिपेलेंट, मास्किटो रिपेलेंट ये सब रखे थे। और अब मैंने चेन वाले को पास आने दिया। वो भी समझदार था अब वो दूर से चेन नहीं घुमा रहा था। अपनी ताकत उसने बचा रखी थी और जब वो मेरे नजदीक आया तो चेन उसने फिर लहराई।
लेकिन मैंने हाथ में पीछे पकड़े काकरोच रिपेलेंट को खोल लिया था और पूरा स्प्रे सीधे उसकी आँख में।
एक पल के लिए उसकी हालत खराब हो गई और इतना वक्त मेरे लिए काफी था और मैंने पहले तो उसकी वो कलाई पकड़कर मोड़ दी जिसमें चेन थी। एक बार क्लाकवाइज और दुबारा एंटीक्लाक वाइज और वो लटक के झूल गई।
उसने बाएं हाथ से चाकू निकालने की कोशिश की, लेकिन तब तक मेरी उंगलियां सारी एक साथ उसके रिब केज पे। वो दर्द से झुककर दुहरा हो गया और मेरी कुहनी उसके गले के निचले हिस्से पे। साथ में घुटना उसकी ठुड्डी पे। जब तक वो सम्हलता मैंने उसकी दूसरी कलाई भी तोड़ दी।
“बचो…” गुड्डी जोर से चीखी।
Wow yaar action bhi ekdam parfect. Nahi to koi bhi hero ko bas Superman bana dete hai. Aap real jindgi vastvikta ke jese ekdam samazdari se koi bhi galti nahi. Anand babu sirf dikhte sidhe hai. Fight me sham dam dand bhed sab. Bazi hath se gai to hath upar. Mouka mila to vapis le teri to.चाक़ू और तीसरा आदमी
और जब वो मेरे नजदीक आया तो चेन उसने फिर लहराई।
लेकिन मैंने हाथ में पीछे पकड़े काकरोच रिपेलेंट को खोल लिया था और पूरा स्प्रे सीधे उसकी आँख में।
एक पल के लिए उसकी हालत खराब हो गई और इतना वक्त मेरे लिए काफी था और मैंने पहले तो उसकी वो कलाई पकड़कर मोड़ दी जिसमें चेन थी। एक बार क्लाकवाइज और दुबारा एंटीक्लाक वाइज और वो लटक के झूल गई।
उसने बाएं हाथ से चाकू निकालने की कोशिश की, लेकिन तब तक मेरी उंगलियां सारी एक साथ उसके रिब केज पे। वो दर्द से झुककर दुहरा हो गया और मेरी कुहनी उसके गले के निचले हिस्से पे। साथ में घुटना उसकी ठुड्डी पे। जब तक वो सम्हलता मैंने उसकी दूसरी कलाई भी तोड़ दी।
“बचो…” गुड्डी जोर से चीखी।
मैं उस तीसरे आदमी को भूल ही गया था।
अब तक वो चूहे बिल्ली की लड़ाई की तरह हम लोगों को देख रहा था। उसे पूरा कांफिडेंस था की उसके दोनों मोहरे मुझसे निपटने के लिए काफी थे, और वो अपना हाथ गन्दा नहीं करना चाहता था। दूसरा, आर्गेजेशन में वो अब मैंनेजमेंट पोजीशन में पहुँच चुका था लेकिन अब दूसरे बन्दे के गिरने के बाद उसके हाथ में चाकू था और तेजी से उसने मेरी ओर फेंका।
निशाना उसका भयानक था।
मेरे बगल में हटने के बावजूद वो मेरी शर्ट फाड़ते हुए हल्के से बांह में लगा।
अगर गुड्डी ना बोली होती,.. तो सीधे गले में।
डेड लाक की हालत थी। उसने पलक झपकते जेब से रिवाल्वर निकाल लिया था और ये कोई कट्टा (देसी पिस्तोल) नहीं था की मैं रिस्क लूं की शायद ये फेल कर जाय।
उसने नहीं चलाया।
मैं पल भर सोचता रहा फिर मेरी चमकी।
दो बातें थी। एक तो उसके मोहरे को मैंने पकड़ लिया था और उस गुत्थमगुत्था में गोली किसे लगेगी ये तय नहीं हो सकता था। दूसरे दिन का समय था, चारों ओर बस्ती थी और गोली चलने की आवाज सुनकर कोई भी आ सकता था।
मैंने एक रिस्क लिया। उस चेन वाले मोहरे को आगे करके मैं बढ़ा। ये बोलते हुए-
“प्लीज गोली मत चलाना, मैं निहत्था हूँ। हम लोगों से कोई मतलब नहीं बस हम दोनों को निकल जाने दीजिये प्लीज। बाकी आपके और सेठजी के बीच है बस हम दोनों को…”
वो थोड़ा डिसट्रैक्ट हुआ लेकिन रिवालवर ताने रहा, और कहा-
“हे इसको छोड़ो पहले। फिर हाथ ऊपर…”
“बस-बस जी करता हूँ जी गोली नहीं जी…”
मैं गिड़गिड़ा रहा था।
उस चेन वाले के हाथ से मैंने चेन ले ली और मुट्ठी में लेकर चेन वाले मोहरे को उसकी ओर थोड़ा धक्का देकर छोड़ दिया। उसके घुटने और कुहनी तो जवाब दे ही चुके थे, वो धड़ाम से उसके सामने जा गिरा। मैंने हाथ ऊपर कर लिया था ये बोलते हुए की
"जी देखिये,.... मेरे हाथ ऊपर है,... प्लीज।"
जैसे ही वो चेन वाला उसके पैरों के पास गिरा, उसका ध्यान बंट गया और मेरे लिए इतना वक्त काफी था।
मैंने पूरी ताकत से चेन उसके रिवाल्वर वाले हाथ पे दे मारी।
रिवाल्वर छटक के दूर गिरी। मैंने पैरों से मारकर उसे गुड्डी की ओर फेंक दिया।
वो अपने जमाने का जबर्दस्त बाक्सर रहा होगा।
इतना होने के बाद भी वो तुरंत बाक्सिंग के पोज में और एक मुक्का जबर्दस्त मेरे चेहरे की ओर। मैं बाक्सर न हूँ, न था इसलिए जवाब मेरे पैर ने बल्की पैर की एंड़ी ने दिया। सीधे दोनों पैरों के बीच किसी भी पुरुष के सबसे संवेदनशील स्थल पर, और उसका बैलेंस बिगड़ गया। वो सीधे मेरे पैरों के सामने धड़ाम गिरा।
मैं जानता था,.... वो उन दोनों मोहरों की तरह नहीं हैं।
Amezing. Ab to anand babu ne fight kisi professional fighter ki tarah ladhi. Lagta hai gunde chetan ki pahoch upar tak hai.स्मिथ एंड वेसन
जैसे ही वो चेन वाला उसके पैरों के पास गिरा, उसका ध्यान बंट गया और मेरे लिए इतना वक्त काफी था। मैंने पूरी ताकत से चेन उसके रिवाल्वर वाले हाथ पे दे मारी।
रिवाल्वर छटक के दूर गिरी।
मैंने पैरों से मारकर उसे गुड्डी की ओर फेंक दिया।
वो अपने जमाने का जबर्दस्त बाक्सर रहा होगा। इतना होने के बाद भी वो तुरंत बाक्सिंग के पोज में और एक मुक्का जबर्दस्त मेरे चेहरे की ओर। मैं बाक्सर न हूँ, न था इसलिए जवाब मेरे पैर ने बल्की पैर की एंड़ी ने दिया। सीधे दोनों पैरों के बीच किसी भी पुरुष के सबसे संवेदनशील स्थल पर, और उसका बैलेंस बिगड़ गया। वो सीधे मेरे पैरों के सामने धड़ाम गिरा।
मैं जानता था वो उन दोनों मोहरों की तरह नहीं हैं।
सामने से निपटना उससे मुश्किल है।
फिर भले ही उसका चाकू और रिवाल्वर अब उससे दूर है, लेकिन क्या पता उसके पास कोई और हथियार हो?
मौके का फायदा उठाकर मैं ठीक उसके पीछे पहुँच गया।
पलक झपकते मैंने चेन भी उठा ली। ये आर्डिनरी चेन नहीं थी, चेन का एक फेस बहुत पतला, शार्प लेकिन मजबूत था। गिटार के तार की तरह,.... ये चेन गैरोटिंग के लिए भी डिजाइन थी। दूर से चेन की तरह और नजदीक आ जाए तो गर्दन पे लगाकर। गैरोटिंग का तरीका माफिया ने बहुत चर्चित किया लेकिन पिंडारी ठग वही काम रुमाल से करते थे।
प्रैक्टिस, सही जगह तार का लगना और बहुत फास्ट रिएक्शन तीनों जरूरी थे।
पनद्रह बीस सेकंड के अन्दर ही वो अपने पैरों पे था
और बिजली की तेजी से अपने वेस्ट बैंड होल्स्टर से उसने स्मिथ एंड वेसन निकाली, माडल 640।
मैं जानता था की इसका निशाना इस दूरी पे बहुत एक्युरेट।
इसमें 5 शाट्स थे। लेकिन एक ही काफी था। उसने पहले मुझे सामने खोजा, फिर गुड्डी की ओर।
तब तक तार उसके गले पे।
पहले ही लूप बनाकर मैंने एक मुट्ठी में पकड़ लिया था और तार का दूसरा सिरा दूसरे हाथ में, तार सीधे उसके ट्रैकिया के नीचे।
छुड़ाने के लिए जितना उसने जोर लगाया तार हल्का सा उसके गले में धंस गया। वो इस पेशे में इतना पुराना था की समझ गया था की जरा सा जोर और,...
लेकिन मैं उसे गैरोट नहीं करना चाहता था।
मेरे पैर के पंजे का अगला हिस्सा सीधे उसके घुटने के पिछले हिस्से पे पूरी तेजी से, और घुटना मुड़ गया। और दूसरी किक दूसरे घुटने पे। वो घुटनों के बल हो गया। लेकिन रिवालवर पर अब भी उसकी ग्रिप थी, और तार गले में फँसा हुआ था।
मैंने उसके कान में बोला- “मैं पांच तक गिनूंगा गिनती और अगर तब तक रिवाल्वर ना फेंकी…”
गले पे दबाव, आक्सीजन की सप्प्लाई काट रहा था और उसके सोचने की शक्ति, रिफ्लेक्सेज कम हो रहे थे।
मैंने चेन अब बाएं हाथ में ही फँसा ली थी और गिनती गिन रहा था- 1,… 2,… 3 और मेरे दायें हाथ का चाप पूरी ताकत से उसके कान के नीचे। चूँकि वो घुटने के बल झुका था, ये दुगनी ताकत से पड़ा। रिवाल्वर अपने आप उसके हाथ से छूट गई। मैंने तार थोड़ा और कसा। अब उसकी आँख के आगे अँधेरा छा रहा था। एक बार उसने फिर उठने की कोशिश की। मैंने उसे उठने दिया और वो पूरा खड़ा भी नहीं हुआ था की फिर पूरे पैरों के जोर से, घुटने के पीछे वाले हिस्से में, दोनों पैरों में।
अब तो वो पूरी तरह लेट गया था।
मैंने टाइम पे चेन छोड़ दी थी वरना उसका गला। मैंने उसका दायां हाथ पकड़ा और कलाई के पास से एक बार क्लाकवाईज और दूसरी बार एंटीक्लाकवाईज पूरी ताकत से। कलाई अच्छी तरह टूट गई। दूसरे हाथ की दो उंगलियां भी।
अब वो बहुत दिन तक रिवाल्वर क्या कोई भी हथियार,... और उसके बाद पैर,
फिर तो जो भी मेरा गुस्सा था। कोहनी से,... घुटनों से आग बनकर निकला. उसके चमचों की हिम्मत कैसे हुए गुड्डी को हाथ लगाए और फिर रीत की सहेली के साथ। ये हरकत? कुछ ही देर में दायीं कुहनी, पंजा और बायां पैर नाकाम हो चुका था।
सेठजी अभी भी परेशान थे। उन्हें अपने से ज्यादा हम लोगों की चिंता थी-
“भैया तुम लोग चले जाओ जल्दी। वरना तुम जानते नहीं ये कौन हैं? चूहे के चक्कर में सांप के बिल में हाथ दे दियो हो। भाग जाओ जल्दी…”
और वो हम लोगों से हाथ जोड़े खड़े थे।
तभी मुझे खयाल आया सबसे खतरनाक हथियार तो मैंने छीना ही नहीं- इसका मोबाइल।
जेब से मैंने उसके मोबाइल निकाले और चेक किया। गनीमत थी की आखिरी डायल नम्बर आधे घंटे से ज्यादा पहले का था।
मैंने सिम निकालकर अपने फोन में डाला और सारी फोन बुक, डायल और रिसीव नम्बर अपने मोबाइल में ट्रांसफर कर लिए।
मैंने उन्हें हिम्मत दिलाई-
“अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है। पुलिस कानून कुछ है की नहीं आप लगाइए ना फोन पोलिस को…”
जमीन पर पड़ा हुआ वो बास नुमा छोटा चेतन हँसने लगा।
सेठजी ने मेरे कान में फुसफुसा के कहा- “अरे है सब कुछ है। लेकिन एनही की है…” और फिर बोले- “आप लोग जाओ…”
गुड्डी ने हुकुम दागा- “आप भी ना। इन्हीं को बोल रहे हैं। बाहर थे ना दो ठो पोलिस वाले बुलाइये ना…”
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Are are badi mushibat me faste rahe gae. Gundo ki to dhunai ho gai. Magar police vale to darane lage. Kon kon sa iljam lagva rahe the. Upar se daroga ka dar. Muje laga ye khudai kuchh special cop niklenge. Par chalo ye bhi chalega. SP saheb senior nickle.पुलिस कानून
सेठजी और मैंने मिलकर शटर खोला। दुकान के बाहर सन्नाटा पसरा पड़ा था। दूर दराज तक गली में सन्नाटा था। पोलिस वाला तो दूर, वो क्रिकेट खेलते बच्चे, सामान वाली ट्रक और टेम्पो, कुछ नहीं थे। यहाँ तक की सारी खिड़कियां तक बंद थी। सिर्फ गाय अभी भी चौराहे पे मौजूद थी, जुगाली करती।
दुकान के अन्दर घुस के मैंने अबकी गुड्डी से बोला- “हे तुम फोन लगाओ ना पोलिस वालों को…”
और उसने 100 नंबर लगाया। बड़ी देर तक घंटी जाने के बाद फोन उठा।
सब सुनने के बाद कोई बोला- “अरे काहे जान ले रही हो बबुनी भेजते हैं। थे तो दू ठे ससुरे वहीं चौराहावे पे। कौनो कतल वतल त न हुआ है ना?”
गुड्डी ने फोन रख दिया।
थोड़ी देर में टहलते हुए वही दोनों पोलिस वाले आये-
“का हउ सेठजी के हो। अरे कान्हे छोट-छोट बात पे पोलिस थाना करते हैं। सलटा लिया करिए ना…”
फिर गुड्डी की ओर देखकर गन्दी सी मुश्कान देते बोले-
“कहो कतो रेप वेप की फरियाद तो नहीं थी। चलो थाने में,... पहले थानेदार साहब बयान लेंगे तोहार सरसों का तेल लगाकर,... फिर हमरो नंबर आएगा। तब तक तो बिना तेलवे का काम चल जाएगा। थानेदार साहेब का डंडा बहुत लम्बा हउ और मजबूत भी। होली में थानेदारिन मायके भी गई हैं…”
मैंने तब तक उस बास उर्फ छोटा चेतन और दोनों मोहरों की फोटो मोबाइल पे ले ली थी।
मैं कुछ बोलता उसके पहले सेठजी बोले-
“अरे इंस्पेक्टर साहब, (थे दोनों कास्टेबल,) बच्चे हैं, कानून कायदा नहीं मालूम फोन घुमाय दिए। हम समझा देंगे। कौनों खास बात नहीं है…”
फिर हम लोगों से मुखातिब होकर बोले- “अब जाओ तुम लोग ना…”
उनके काम करने वाले भी अब वापस आ गए थे और एक ने हम लोगों का सामान भी पकड़ा दिया था।
मैं अब बीच में आ गया- “देखिये बात ये है की। तीन लोगों ने यहाँ सेठजी पे, …”
मेरी बात रोक के पोलिस वाला बोला-
“अरे आप हो कौन ?नाम पता, इ लौंडिया के साथ हो का। का रिश्ता है। राशन कार्ड है। वोटर आईडी। भगा के ले जा रहे हो?”
दूसरा पोलिस वाला भी अब बीच में आ गया-
“मालूम है। ....नाबालिग लग रही है अभी तो इसकी डागदरी होगी। साले, किडनैपिंग लगेगी, दफा 359, दफा 360 दफा 364 साले चक्की पीसोगे और अगर कहीं रेप का केस लग गया तो दफा, 376 375। डागदरी में साबित हो गया तो जमानतो नहीं होगी साल भर। अरे जब एक बार हमारे थानेदार साहब का डंडा चल गया ना रात भर,...तो डागदरी में तो रेप के कुल निशान मिलने ही वाला है। और कौनो कसर रही तो,... डाक्टरों साहेब के थाने पे दावत पे बुलाये लेंगे। छमिया तो मस्त है…”
अब मैं आग बबूला हो रहा था, बहुत हो गया-
“हे कौन है तुम्हारा इन्स्पेक्टर? क्या नाम है, कौन थाना है? अभी मैं बात करता हूँ…” मैं गुस्से में बोला।
तब तक एक पोलिस वाले की निगाह जमीन पे पड़े छोटा चेतन, उन मोहरों के बास पे पड़ी। वो झुक के बोला-
“अरे बाबू साहब! कौन ससुरा?.... का हो सेठजी, इ का हो। जानते नहीं है आप…”
पड़े पड़े उसने मेरी ओर इशारा किया।
मेरा एक पैर उसके मुँह पे भी पड़ गया था। बोलना मुश्किल हो रहा था।
मैंने फिर बोलने की कोशिश की-
“जी यही थे। एक्सटार्शन, हमला के लिए आप इन्हें पकड़िये। ये सेठजी को धमकी दे रहे थे और हम लोगों पे भी इनके साथियों ने। बताइए थाने का नाम, मैं ही इन्स्पेक्टर को फोन करता हूँ…”
वो बोला- “अब फोन मैं करूँगा और इन्स्पेक्टर साहेब यहीं आयेंगे…” और मोबाइल निकालकर लगाया।
मैं उसकी बात सुन रहा था-
“जी हाँ अरे अपने उनके खास। हाँ हाँ वही। पता नहीं कैसे। अरे कौनो ससुरा लौड़ा लफाड़ी है स्टुडेंट छाप और साथ में एक ठो छमिया भी है। फोनवा वही किये थी। हाँ आइये। नहीं कहीं नहीं जाने देंगे। और एम्बुलेंस बाबू साहेब मना कर दिए। उनके कौनो खास डाक्टर हैं बस उन्हीं को फोन किये हैं प्राइवेट नर्सिंग होम है सिगरा पे। अउते होंगे वो भी। हाँ आपको याद कर रहे थे। बस आप आ जाइए तुरंत। अरे हम रोके हैं ले चलेंगे थाने उन दोनों को…”
अब मेरी हालत पतली हो रही थी। इन सिपाहियों से तो मैं निपट लेता लेकिन वो पता नहीं कौन थे?
गुड्डी भी मेरा हाथ पकड़कर खींच रही थी- “हे कुछ करो ना। अगर वो आ गया ना…”
मैं भी डर रहा था। अगर एक बार इन सबों ने मेरा मोबाइल ले लिया, तो फिर?
बिचारे सेठजी अपनी ओर से कोशिश कर रहे थे-
“हे कुछ ले देकर मान जाइए। बच्चे हैं नहीं मालूम था किससे उलझ रहे हैं?”
अचानक बल्ब जला वो भी 250 वाट का। डी॰बी॰ दो साल मुझसे सीनियर थे हास्टल में। मेरी रैगिंग उन्होंने ही ली थी। अभी फेस बुक में किसी ने बताया था की उनकी पोस्टिंग यहीं हो गई है नंबर भी लिया था। बस मैंने लगा दिया नंबर, 2-3-4-5 बार रिंग गई लेकिन कोई जवाब नहीं।
मैं समझ गया अब गई भैंस पानी में। हो सकता है, मेरा नंबर तो है नहीं उनके पास। इसलिए इस पोस्ट पे ना जाने कितने फोन आते होंगे? लेकिन कहीं वो सो रहे हों तो? खैर, मैंने एक मेसेज छोड़ दिया अपने नाम के साथ कोड नेम भी लिख दिया 44। हम दोनों का रूम नंबर हास्टल में एक ही था विंग अलग-अलग थे।
तुरंत रिस्पोंस आया- “बोलो कहाँ हो?”
मेरी जान में जान आई। सब मुझे ही देख रहे थे। छोटा चेतन। पोलिस वाले, सेठजी और गुड्डी। मोहरे अभी भी देखने की हालत में नहीं थे।
मैं दुकान के दूसरे कोने में चला गया। और फोन लगाया। उनकी पोस्टिंग यहीं हो गई थी। एक महीने पहले एस॰पी॰ सिटी में। एस॰एस॰पी॰ कहीं बाहर गए थे तो पूरा चार्ज उन्हीं के पास था।
पूरी दास्तान सुनकर वो बोला- “चल यार तूने रायता फैला दिया है तो समेटना तो मुझे ही पड़ेगा न। वो हैं कैसे बता जरा?”
मैंने बोला-
“अरे मैं अभी फोटो एम॰एम॰एस॰ करता हूँ। लेकिन वो तुम्हारा इंस्पेक्टर आ गया तो?”
मैंने जानबूझ के उसे पोलिस वालों ने क्या बोला था मुझे और गुड्डी को नहीं बताया। उसका गुस्सा, खासतौर से अगर कोई किसी लड़की से बदतमीजी करे तो जग जाहिर था।
थोड़ी देर में फिर फोन बजा, डी॰बी॰ का ही था।
“ये तूने क्या किया? तू ना। चल लेकिन,... चाय बनती है।...हाँ दो बात। पहली किसी को उन तीनों को ले मत जाने देना, खास तौर से उस इन्स्पेक्टर को या किसी डाक्टर को। और दूसरा सुन। अपने बारे में भी किसी को बताया तो नहीं। मत बताना। समझे?”
“लेकिन मैं कैसे रोक पाऊंगा…” मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
“ये तेरा सिरदर्द है। हाँ असली बात तो मैंने बतायी नहीं। मैं एक सिद्दीकी नाम के इन्स्पेक्टर को भेज रहा हूँ। बस उसी को इन तीनों को, और मुझसे बात कराकर…” ये कहकर फोन काट दिया।
सांस भी आई और घबड़ाहट भी। इसका मतलब ये तिलंगे कोई इम्पोर्टेंट है।
छोटा चेतन, उन दोनों के बास को दोनों पुलिस वालों ने मिलकर कुर्सी पे बिठा दिया था और एक कोल्ड-ड्रिंक लाकर दे दिया था। वो बैठकर सुड़ुक सुड़ुक के पी रहा था।
बाकी दोनों मोहरे भी फर्श पे काउंटर के सहारे बैठ गए थे।
हम लोग भी अगले पल का इंतजार कर रहे थे। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की थानेदार से मैं कैसे निबटूंगा? और पता नहीं वो सिद्दीकी का बच्चा। फिर ये जो डाक्टर आने वाला है तीन तिलंगों को लेने, उससे कैसे निबटेंगे? तब तक शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर।
Lo hawa nikal gai. Police vale hi alag alag charge kab se laga rahe the. Sahi samay pe bat ho gai. Bechari guddi bhi sath fasi hui hai.थानेदार साहेब
सांस भी आई और घबड़ाहट भी। इसका मतलब ये तिलंगे कोई इम्पोर्टेंट है।
छोटा चेतन, उन दोनों के बास को दोनों पुलिस वालों ने मिलकर कुर्सी पे बिठा दिया था और एक कोल्ड-ड्रिंक लाकर दे दिया था। वो बैठकर सुड़ुक सुड़ुक के पी रहा था।
बाकी दोनों मोहरे भी फर्श पे काउंटर के सहारे बैठ गए थे।
हम लोग भी अगले पल का इंतजार कर रहे थे।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था की थानेदार से मैं कैसे निबटूंगा? और पता नहीं वो सिद्दीकी का बच्चा। फिर ये जो डाक्टर आने वाला है तीन तिलंगों को लेने, उससे कैसे निबटेंगे?
तब तक शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर।
धड़धड़ाती हुई जीप की आवाज सुनाई पड़ी। सबके चेहरे अन्दर खिल पड़े सिवाय मेरे और गुड्डी के। दनदनाते हुए चार सिपाही पहले घुसे। ब्राउन जूते और जोरदार गालियों के साथ-
“कौन साल्ला है। गाण्ड में डंडा डालकर मुँह से निकाल लेंगे, झोंटा पकड़कर खींच साली को डाल दे गाड़ी में पीछे…”
गुड्डी की ओर देखकर वो बोला।
और पीछे से थानेदार साहब।
पहले थोड़ी सी उनकी तोंद फिर वो बाकी खुद। सबसे पहले उन्होंने ‘छोटा चेतन’ साहब की मिजाज पुरसी की, फिर एक बार खुद उस डाक्टर को फोन घुमाया जिनके पास उसे जाना था और फिर मेरी और गुड्डी की ओर।
“साल्ला मच्छर…”
बोलकर उसने वहीं दुकान के एक कोने में पिच्च से पान की पीक मार दी और अब उसने फिर एक पूरी निगाह गुड्डी के ऊपर डाली, बल्की सही बोलूं तो दृष्टिपात किया। धीरे-धीरे, ऊपर से नीचे तक रीति कालीन जमाने के कवि जैसे नख शिख वर्णन लिखने के पहले नायिका को देखते होंगे एकदम वैसे। और कहा-
“माल तो अच्छा है। ले चलो दोनों को,... लेकिन पहले साहब चले जाएं। डायरी में इस लड़की के फोन का तो नहीं कुछ…” उन्होंने पहले आये पुलिस वाले से पूछा।
“नहीं साहब। बिना आपकी इजाजत के। अब इस साले को ले चलेंगे तो किडनैपिंग और लड़की को नाबालिग करके। ये उससे धंधा करवाता था। तो वो…”
थानेदार जी बोले- “सही आइडिया है तुम्हारा। ससुरी वो जो पिछले वाली सरकार में मंत्री की रखैल। चलाती है क्या तो नाम है। जहाँ इ सब दालमंडी वालियों को…”
“वनिता सुधार गृह…” कोई पढ़ा लिखा पोलिस वाला पीछे से बोला।
“हाँ बस वहीं। अरे सरकार गई धन्धवा तो सब वही है। बस वहीं रख देंगे बस पूछताछ के लिए जब चाहेंगे बुलवा लेंगे…” थानेदार जी ने चर्चा जारी रखी।
अब उन्होंने अगले अजेंडे की ओर रुख किया यानी मेरी ओर- “ले आओ जरा साले को…” दो पोलिस वालों को उन्होंने आदेश दिया।
“अरे साहब अभी ले चलेंगे न साले को थाने में वहां आराम से। जरा आधा घंटा हवाई जहाज बनायेंगे, टायर पहनाएंगे। फिर आप आराम से दो-चार हाथ। अरे जो कहियेगा हुजुर वो कबूलेगा,.... साल्ला, रेप, किडनैपिंग, ब्लू-फिल्म ड्रग्स, ....अपने हाथ से लौंडिया का नाड़ा खोलेगा…”
एक पोलिस वाले ने समझाया।
वो बोले- “अरे जरा बात कर लें नाम पता पूछ लें बाकी तो थाने में ही होगा…”
दो पोलिस वाले मेरी ओर बढ़े।
तभी मेरे फोन की घंटी बजी।
डी॰बी॰।
“सिद्दीकी पहुँचा?” वो बोले।
“नहीं, लेकिन वो थानेदार आ गया है और मुझे पकड़ने के चक्कर में है…”
“वो तो ठीक है, तुम्हारी ट्रेनिंग का पार्ट हो जाएगा। लेकिन सिद्दीकी पहुँचाने ही वाला है बस दो-वार मिनट, उन तीनों को उसी के हवाले करना।
मैंने फोन इस तरह किया था की दुकान में हो रही आवाजें भी उन्हें सुनाई पड़े।
“हे चल दरोगा साहेब बुला रहे हैं…” उन दोनों ने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश की।
“चल रहा हूँ साहब…” मैंने बोला और हाथ पकड़ने से रोक दिया।
“क्यों बे किससे बात कर रहा है तुझे टाइम नहीं है। और ये क्या यहाँ शरीफ आदमियों के साथ लफड़ा किया और,... ये साली लौंडिया कहाँ भगाकर ले जा रहा है? किससे बात कर रहा है? मोबाइल छीन इसका…”
वो गरजे।
डी॰बी॰ अभी फोन पर ही थे-
“वो,... वो। आपसे ही बात करना चाहते हैं जी। लीजिये…” और फोन मैंने थानेदार को पकड़ा दिया।
सारे पोलिस वाले हमें ऐसे देख रहे थे जैसे मैं किसी से सोर्स सिफारिश लगवा रहा हूँ, और जिसका थानेदार साहब पे कोई असर नहीं होगा। उल्टे उनकी एक घुड़क से उसकी पैंट ढीली हो जायेगी।
थानेदार जी ने फोन ले लिया। फिल्म अब स्लो मोशन में हो गई- “कौन है बे। ये जो पोलिस के मामले में टांग,.... नहीं नहीं सर इन्होंने बताया नहीं, मैं तो इसीलिए खुद आ गया था। पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया। मैडम ने फोन किया था। नहीं कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला। वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए हैं…”
इतना तेज हृदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन, मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था। फिल्मों में भी नहीं। फोन लेने के चार सेकंड के अन्दर उनके ब्राउन जूते कड़के। वो तन के खड़े हो गए, हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकड़े।
Shukar hai sidhki sahab to dam dar nikle. Varna niche vale vo do aur thandar to chamche.सिद्दीकी
थानेदार जी ने फोन ले लिया। फिल्म अब स्लो मोशन में हो गई-
“कौन है बे। ये जो पोलिस के मामले में टांग,....नहीं नहीं सर इन्होंने बताया नहीं, मैं तो इसीलिए खुद आ गया था। पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया। मैडम ने फोन किया था। नहीं,... कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला। वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए हैं…”
इतना तेज हृदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन, मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था। फिल्मों में भी नहीं।
फोन लेने के चार सेकंड के अन्दर उनके ब्राउन जूते कड़के। वो तन के खड़े हो गए, हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकड़े।
वार्ता जारी थी-
“नहीं नहीं सिद्दीकी को भेजने की कोई जरूरत नहीं। नहीं मेरा मतलब,.... अरे मैडम ने जैसे ही फोन किया जी॰डी॰ में दर्ज कर दिया है, एफ॰आई॰आर॰ भी लिख ली है। जी,... सेठजी का बयान लेने ही मैं आया था। दफा,... जी नहीं एकाध कड़ी दफा भी। जी,... उसने अपने वकील को फोन कर दिया था मेरे आने के पहले। नहीं साहब,.... अरे एकदम छोटा मोटा कोई। नहीं,... कोई गलतफहमी हुई है। ठीक है आप कहते हैं तो पन्ना फाड़ दूंगा…”
फोन दो सेकंड के लिए दबाकर उन्होंने सर्व साधारण को सूचित किया-
“साले तेरा बाप है। डी॰बी॰ साहेब का फोन है। ये उनके दोस्त हैं…”
थानेदार- “जी हाँ एकदम दुरुस्त…” और फोन बंद करके मुझे पकड़ा दिया।
माहौल एकदम बदल गया।
जो दो पोलिस वाले मेरे हाथ पकड़े थे और हवाई जहाज, टायर इत्यादि की एडवेंचर्स योजनायें बना रहे थे, उन्होंने मौके का फायदा उठाया और मेरे चरणों में धराशायी हो गए-
“जी माफ कर दीजिये। ये तो इन दोनों ने। साले अब जिन्दगी भर ट्रैफिक की ड्यूटी करेंगे। थाने के लिए तरस जायेंगे। जूते मार लीजिये साहब। लेकिन…”
वो दोनों पोलिस वाले भी मेरे पास खड़े थे, लेकिन चरण कम पड़ रहे थे। इसलिए वो जाकर गुड्डी के चरणों में-
“माताजी। माताजी हम। पापी हैं हमें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी। लेकिन आप तो दयालु हैं, माफ कर दीजिये, हम कान पकड़ते हैं। बरबाद हो जायेंगे। साहेब हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे। बाल बच्चे वाले हैं हम आपके पैरों के दास बनकर रहेंगे…”
फर्क चारों ओर पड़ गया था।
दोनों मोहरे जो काउंटर का सहारा लेकर आराम से अधलेटे बैठे थे जमीन पे फिर से सरक गए थे।
‘छोटा चेतन’ जो ओवर कांफिडेंट था, के चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी और वो बार-बार मोबाइल लगाता और उम्मीद की निगाह से थानेदार की ओर देख रहा था।
यहाँ तक की सेठजी भी एक नई नजर से हम लोगों की तरफ देख रहे थे।
छोटा चेतन उन तिलंगों का बास दरवाजे की ओर देख रहा था और मैं भी। मैं सोच रहा था की अगर वो डाक्टर आ गया तो उसे मैं कैसे रोकूंगा?
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तभी दरवाजा खुला लेकिन धड़ाके से।
क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुई होगी? सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस।
सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मारकर दरवाजा खोला। उसी तरह से 10 नंबर का जूता और 6’4…” इंच का आदमी, और उसी तरह से सबको सांप सूंघ गया।
खास तौर से छोटा चेतन को, अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की और यहीं गलती हो गई।
एक झापड़। जिसकी गूँज फिल्म होती,... तो 10-12 सेकंड तक रहती और वो फर्श पे लेट गया।
सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चुका है, तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा और फिर बाकी दोनों मोहरों को। टूटे घुटने और हाथ को और फिर अब उसकी आवाज गूंजी-
“साले मादरचोद। बहुत चक्कर कटवाया था। अब चल…” और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी।
सिद्दीकी-
“साले भंड़ुवे, क्या बता रहे थे इसे? छोटा मोटा। सारे थानों में इसका थोबड़ा है और। चलो अब होली लाइन में मनाना। पुलिस लाइन में मसाला पीसना। किसी साहब के मेमसाहब का पेटीकोट साफ करना…”
तब तक फिर फोन की घंटी बजी।
डी॰बी॰- “सिद्दीकी पहुँचा?”
मैंने बोला- “हाँ…”
डी॰बी॰- “उसको फोन दो ना…”
मैंने फोन पकड़ा दिया।
सिद्दीकी बोल रहा था लेकिन कमरे में हर आदमी कान फाड़े सुन रहा था। मैं समझ गया था की पब्लिक जितना डी॰बी॰ के नाम से डरी उससे ज्यादा। सिद्दीकी को देखकर। वो बनारस का ‘अब तक छप्पन’ होगा।
सिद्दीकी- “जी इन दोनों को आपके पास लाने की जरूरत नहीं है खाली शुक्ला को। जी मैं कचड़ा ठिकाने लगा दूंगा। हाँ एक रिवाल्वर और दो चाकू मिले हैं। जी। मैं साथ में एक वज्र लाया हूँ यहीं लगा दिया, ....रामनगर से दो पी॰ए॰सी॰ की ट्रक आई थी होली ड्यूटी के लिए,... उन्हें गली के बाहर। डाक्टर को पहले ही उठवा लिया है और मेरे करने के लिए कुछ बचा नहीं था, साहब ने पहले ही,... मुझे बहुत घमंड था अपने ऊपर लेकिन जिस तरह से साहब ने चाप लगाया है सालों के ऊपर…”
और उसने फोन मुझे पास कर दिया।
डी॰बी॰ अभी भी लाइन पर थे, कहा- “अभी एक मोबाइल भेज रहा हूँ। तुम लोग…”
मैं- “मोबाइल। मतलब?” मेरी कुछ समझ में नहीं आया।
डी॰बी॰- “अरे पोलिस की गाड़ी। भेज रहा हूँ जाना कहां था…” वो बोले।
मैंने बताया की घर जा रहा हूँ बस पकड़ के तो वो फिर बोले
- “अरे खाना वाना खाकर घर जाते बस पकड़कर। लेकिन ये सब… “तो ठीक है सिद्दीकी जैसे निकले उसके बाद। हाँ ये बताने की जरूरत नहीं की किसी को बताना मत कुछ भी और तुम्हारे साथ वही है ना। जिसकी चिट्ठी आती थी?”
मैं- “हाँ वही। गुड्डी…”
डी॰बी॰- “अरे यार तुम लोग शाम को घर आते। खैर, लौटकर मिलवाना जरूर…”
मैंने फोन बंद किया।
सिद्दीकी अभी भी मुझे देख रहा था-
“साहेब बहुत दिन हो गए मुझे भी गुंडे बदमाश देखे साहब। लेकिन जो हाथ आपने लगाये हैं न। बस सुनते थे या। वो जो चीनी टाइप है हाँ जैकी चान उसकी पिक्चर में देखते थे। सब एकदम सही जगह पड़ा है। अभी से ये हालात है तो जब आप यहाँ आयेंगे तो क्या हाल होगा इन ससुरों का? कैडर तो आप का भी यूपी है ना?”
“मतलब?” पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली।
सिद्दीकी बोला-
“अरे साले तेरे बाप हैं। साल भर में आ जायेंगे यहीं…”
और अपने साथ आये दो आदमियों से मोहरों की तरफ इशारा करते हुये कहा-
“ये दोनों कचड़ा उठाकर पीएसी की ट्रक में डाल दो और शुकुल जी को (छोटा चेतन की ओर इशारा करते हुये) बजर में बैठा दो। उठ नहीं पायेंगे। गंगा डोली करके ले जाना। हाँ एक पीएसी की ट्रक यहीं रहेगी गली पे और अपने दो-चार सफारी वालों को गली के मुहाने पे बैठा दो की कोई ज्यादा सवाल जवाब न हो। और न कोई ससुरा मिडिया सीडिया वाला। बोले तो साले की बहन चोद देना…”
जब वो सब हटा दिए गए तो थानेदार से वो बोला-
“मुझे मालूम है ना तो अपने जी॰डी॰ में कुछ लिखा है न एफ॰आई॰आर॰, फोन का लागबुक भी ब्लैंक हैं चार दिन से। तो जो कहानी साहब को सुना रहे थे, दुबारा न सुनाइएगा तो अच्छा होगा, और थानेदारिन जी को भी हम फोन कर दिए हैं। भाभीजी शाम तक आ जायेंगी तो जो हर रोज शाम को थाने में शिकार होता है ना उ बंद कर दीजिये। चलिए आप लोग। अगर एको मिडिया वाला, ह्यूमन राईट वाला, झोला वाला, साल्ला मक्खी की तरह भनभनाया ना। तो समझ लो। तुम्हरो नंबर लग जाएगा…”
थाने के पोलिस वाले चले गए। तब तक एक गाड़ी की आवाज आई, वो हमारे लिए जो पोलिस की गाड़ी थी वो आ गई थी। हम लोग निकले तो दुकान के एक आदमी ने होली का जो हमने सामान खरीदा था वो दे दिया। सिद्दीकी हमें छोड़ने आया हमारे पीछे-पीछे अपनी गाड़ी में। गली के बाहर वो दूसरी तरफ मुड़ गया।
गुड्डी के चेहरे से अब जाकर डर थोड़ा-थोड़ा मिटा।
“किधर चलें। तुम्हारा शहर है बोलो?” मैंने गुड्डी से पूछा।
“साहेब ने आलरेडी बोल दिया है मलदहिया पे एक होटल है। वहां से आप का रेस्टहाउस भी नजदीक है…” आगे से ड्राइवर बोला।
Man gae guddi ko. Vo khamosh hai matlab ye mat samzo Anand babu ki vo dar gai. Ese time pe bhi kya mazak kiya hai.भाग २६ ------------पूर्वांचल और,
गुड्डी
3,47,002
“मतलब?” पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली।
सिद्दीकी बोला- “अरे साले तेरे बाप हैं। साल भर में आ जायेंगे यहीं…”
और अपने साथ आये दो आदमियों से मोहरों की तरफ इशारा करते हुये कहा-
“ये दोनों कचड़ा उठाकर पीएसी की ट्रक में डाल दो और शुकुल जी को (छोटा चेतन की ओर इशारा करते हुये) वज्र में बैठा दो। उठ नहीं पायेंगे। गंगा डोली करके ले जाना। हाँ एक पीएसी की ट्रक यहीं रहेगी गली पे और अपने दो-चार सफारी वालों को गली के मुहाने पे बैठा दो की कोई ज्यादा सवाल जवाब न हो। और न कोई ससुरा मिडिया सीडिया वाला। बोले तो साले की बहन चोद देना…”
जब वो सब हटा दिए गए तो थानेदार से वो बोला-
“मुझे मालूम है ना तो अपने जी॰डी॰ में कुछ लिखा है न एफ॰आई॰आर॰, फोन का लागबुक भी ब्लैंक हैं चार दिन से। तो जो कहानी साहब को सुना रहे थे, दुबारा न सुनाइएगा तो अच्छा होगा, और थानेदारिन जी को भी हम फोन कर दिए हैं। भाभीजी शाम तक आ जायेंगी तो जो हर रोज शाम को थाने में शिकार होता है ना उ बंद कर दीजिये। चलिए आप लोग। अगर एको मिडिया वाला, ह्यूमन राईट वाला, झोला वाला, साल्ला मक्खी की तरह भनभनाया ना। तो समझ लो। तुम्हरो नंबर लग जाएगा…”
थाने के पोलिस वाले चले गए।
तब तक एक गाड़ी की आवाज आई, वो हमारे लिए जो पोलिस की गाड़ी थी वो आ गई थी। हम लोग निकले तो दुकान के एक आदमी ने होली का जो हमने सामान खरीदा था वो दे दिया। सिद्दीकी हमें छोड़ने आया हमारे पीछे-पीछे अपनी गाड़ी में। गली के बाहर वो दूसरी तरफ मुड़ गया।
गुड्डी के चेहरे से अब जाकर डर थोड़ा-थोड़ा मिटा।
“किधर चलें। तुम्हारा शहर है बोलो?” मैंने गुड्डी से पूछा।
“साहेब ने आलरेडी बोल दिया है मलदहिया पे एक होटल है। वहां से आप का रेस्टहाउस भी नजदीक है…”
आगे से ड्राइवर बोला।
पीछे से मैं बैठा सोच रहा था। थोड़ी ही देर में कहाँ कहाँ से गुजर गए। इतना टेंसन। लेकिन अब माहौल नार्मल कैसे होगा। गुड्डी क्या सोच रही होगी। मेरे कुछ दिमाग में नहीं घुस रहा था।
“ये ये तुम्हारी शर्ट पे चाकू लगा है क्या?”
गुड्डी ने परेशान होकर पूछा और टी-शर्ट की बांह ऊपर कर दी। वहां एक ताजा सा घाव था ज्यादा बड़ा नहीं लेकिन जैसे छिल गया हो। दो बूँद खून अभी भी रिस रहा था।
मुझे लगा वो घबड़ा जायेगी। लेकिन उसने लाइटली लिया और और चिढ़ाती सी बोली-
“अरे मैं सोच रही थी की फिल्मों के हीरों ऐसा कोई बड़ा घाव होगा और मैं अपने दुपट्टे को फाड़कर पट्टी बांधूंगी लेकिन ये तो एकदम छोटी सी पट्टी…”
लेकिन उसकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी।
“ड्राइवर साहब कोई मेडिकल की दुकान पास में हो तो मैं एक बैंड-एड। …” मैं बोला।
लेकिन गुड्डी बीच में काटती बोली- “अरे नहीं कुछ जरूरत नहीं है। आप सीधे होटल ले चलिए बहुत भूख लगी है…” और उसने अपने बड़े से झोला नुमा पर्स से बैंड-एड निकला और एकदम मुझसे सटकर जितना जरूरी था उससे भी ज्यादा। मेरे हाथ में बैंड-एड लगा दिया लेकिन वैसे ही सटी रही अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ पकड़े जैसे खून बहने से रोके हो।
मैं बस सोच रहा था की कैसे उस दुस्वप्न से बाहर निकलूं।
पहले तो वो गुंडे और फिर पुलिस वाले। वो थानेदार। मैं अकेला होता तो ये यूजुअल बात होती लेकिन गुड्डी भी साथ। होली में उसके घर कितना मजा आया और घर पहुँचकर। कितना डर गई होगी, हदस गई होगी वो और मजे वजे लेने की बात तो दूर नार्मल बात भी शायद मुश्किल होगी।
लेकिन गुड्डी गुड्डी थी।
एक हाथ से मेरा हाथ पकड़े-पकड़े दूसरा हाथ सीधे मेरे पैरों पे और वहां से सीधे हल्के-हल्के ऊपर। मेरे कान में बोली-
“तुम डर गए हो तो कोई बात नहीं लेकिन कहीं ये तो नहीं डर के दुबक गया हो। वरना मेरा पांच दिन का इंतजार सब बेकार चला जाएगा…”
मैं समझ गया की नार्मल होने की कोशिश वो मुझसे भी ज्यादा कर रही है।
मैं बस मुश्कुरा दिया। तब तक मेरा फोन बजा।
Ohhh to ab samaz aaya vo cadre posting sab anand babu ke lie tha. Vese fight se police valo ke lejane tak aur db sahab se bat karne tak aap ne bilkul nahi ehsas hone diya.डी॰बी॰
सेठजी की लड़की
डी बी का फोन था , थोड़े रिलैक्सड थे, बोले
“हाँ अब बता। गाड़ी में हो न। वो सब कचड़ा साफ हो गया ना?” वो पूछ रहे थे।
मैंने पूछा- “हाँ बास लेकिन ये लफड़ा था क्या?”
“अबे तेरी किश्मत अच्छी थी जो ये आज हुआ। तीन महीने पहले होता न,… तो बास मैं भी कुछ नहीं कर सकता था, सिवाय इसके की तुम्हें किसी तरह यूपी के बाहर पहुँचा दूँ। लेकिन अभी तो एकदम सही टाइम पे…” उन्होंने कुछ रहस्यमयी ढंग से समझाया।
मैंने फिर गुजारिश की- “अरे बास कुछ हाल खुलासा बयान करो ना मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा…”
डी॰बी॰- “अरे यार हाल खुलासा बताऊंगा न तो गैंग आफ वासेपुर टाइप दो पिक्चरें बन जायेंगी। राजेश सिंह का नाम सुना है?” सवाल के जवाब में सवाल, पुरानी आदत थी।
“किसने नहीं सुना है। वही ना जिसने दिन दहाड़े बम्बई में ए॰जे॰हास्पिटल में शूट आउट किया था डी कंपनी के साथ…” मैंने अपने सामन्य ज्ञान का परिचय दिया।
डी॰बी॰- “वो उसी के आदमी थे जिसके साथ तुम और खास लोग…”
वो जवाब मेरी नींद हराम करने के लिए काफी था।
डी॰बी॰- “वही। और पिछली सरकार में तो किसी की हिम्मत नहीं थी की। लेकिन तीन महीने पहले जो सरकार बदली है वो ला एंड आर्डर के नाम पे आई है, इसलिए थोड़ा ज्यादा जोर है…”
मेरे दिमाग में गूँजा।
फेस बुक पे जो हम लोग बात कर रहे थे, नई सरकार खास तौर से डी॰बी॰ को ले आई है अपनी छवि सुधारने के नाम पे। पुरानी वाली इलेक्शन इसी बात पे हारी की माफिया, किडनैपिंग ये सब बहुत बढ़ गया था, खास तौर पे इस्टर्न यूपी में था तो हमेशा से, लेकिन अभी बहुत खुले आम हो गया था।
डी॰बी॰ का फोन चालू था-
“तो वो सिंह। पिछले सरकार में तो सब कुछ वो चलाता था, लेकिन जब सरकार बदली तो वो समझ गया की मुश्किल होगी। उसके बहुत छुटभैये पकड़े गए, कुछ मारे गए। उसने उड़ीसा में माइनिंग में इन्वेस्ट कर रखा था तो अब वो उधर शिफ्ट कर गया है। जो दूसरे गैंग है उनको उभरने में थोड़ा टाइम लगेगा। इसके गैंग के जो दो-तीन नंबर वाले थे वो अब हिसाब इधर-उधर सेट कर रहे हैं या क्या पता सिंह ही दल बदल कर 6-7 महीने में इधर आ जाय…”
“और वो शुक्ला?” मेरे सवाल जारी थे।
डी॰बी॰- “वो तो खास आदमी था सिंह का। तुमने सुना होगा बाटा मर्डर…”
“हाँ। वो भी तो सिंह ने दिन दहाड़े पुलिस की कस्टडी में…” मैंने बताया।
डी॰बी॰- “वो साला भी कम नहीं था। लेकिन अभी जो होम मिनिस्टर हैं उनका खास आदमी था। जेल से उसको ट्रांसफर कर रहे थे यहीं बनारस ला रहे थे, आगे-पीछे पुलिस की एस्कोर्ट वैन थी, एक ट्रक पीएसी भी थी, लेकिन तब भी,… 4 एके-47 चली थी आधे घंटे तक, 540 राउंड गोली। सिंह ने जो 4 शूटर लगाए थे उसमें से एक तो उसी समय थाईलैंड भाग गया, शकील का गैंग जवाइन कर लिया। एक नेपाल में है। एक को हम लोगों ने पिछले हफ्ते मार दिया,शुक्ला का हाथ लोग कहते हैं पूरी प्लानिंग में था। और उसके पहले सिंह के टॉप शूटर्स में था, चाक़ू में भी नंबरी।
डी बी रुक गए और मैं सोचने लगा, उसका चाक़ू का हाथ, अगर गुड्डी ने टाइम पर बचो न बोला होता तो निशाना उसका एकदम सही था। और जिस तरह से बजाय कट्टा के दो विदेशी रिवाल्वर लिए था उसी से लग रहा था, लेकिन डी बी ने शुक्ला और सिंह का आगे का रिश्ता बताया
"ये सिंह का रेलवे, हास्पिटल और रोड का ठीका भी सम्हालता था। लेकिन अब सरकार बदलने के बाद उसे कुछ मिल नहीं रहा था। इसलिए अपना सीधा,… सिंह का बचा खुचा नेटवर्क तो है ही लेकिन शुक्ला अलग से। इसलिए अब सिंह के लोग भी उसको बहुत सपोर्ट नहीं करते थे। हाँ 6-7 महीने बचा रहता तो जड़ जमा लेता। बाटा वाले शूट आउट में सिद्दीकी का बहनोंई भी मारा गया था, 38 साल का बहुत ईमानदार इन्स्पेक्टर। उसके अलावा साले सभी मिले थे, वरना पुलिस की कस्टडी से। इसलिए मैंने सिद्दीकी को खास तौर से चुना…”
मेरा एक सवाल अभी भी बाकी था, सवाल भी और डर भी- “वो सेठ जो। उनको तो कहीं कुछ नहीं होगा?”
डी॰बी॰ हँसे और बोले- “अरे यार तुम मौज करो। ये सब ना, उसको कौन बोलेगा? सिंह को तो वो अभी भी हफ्ता देता ही है, और वैसे भी अब वो सिंह यहाँ का धंधा समेट रहा है। माइनिंग में बहुत माल है। खास तौर से उसने वहां एक-दो मल्टी नेशनल से हिसाब सेट कर लिया है। यूपी से लड़के ले जाता है। वहां जमीन पे कब्ज़ा करने में ट्राइबल्स को हड़काने में, तो अब बनारस की परचून की दुकान में,…. शुक्ला था तो उसको तुमने अन्दर करवा दिया। अब साल भर का तो उसको आराम हो गया और उनका रिश्ता सिंह से पुराना था।
उसकी दुकान से इस्टर्न यूपी, बिहार सब जगह माल जाता था तो उसी के अन्दर डालकर हथियार खास तौर से कारतूस, बदले में सेल्स टैक्स चुंगी वाले किसी की हिम्मत नहीं थी।
और बाद में शुक्ल ड्रग्स में भी। तो सेठजी की हिम्मत नहीं हो रही थी, तो उसकी लड़की उठाकर ले गए थे। फिर जो सौदा सेट हो गया तो। वैसे भी शुक्ला को एक-दो बार इसने घर पे भी बुलाया था। वहीं पे उसकी लड़की इसने देखी।
और ज्यादातर माफिया वाले मेच्योर होते हैं। उनका लड़की वड़की का नहीं होता, ज्यादा शौक हुआ तो बैंगकाक चले गए। लेकिन ये नया और थोड़ा ज्यादा। तो अब वैसे भी उन्हें डरने की बात नहीं है और एक-दो हफ्ते के लिए तुम्हें इत्ता डर है तो सिक्योरिटी लगा दूंगा। उसका फोन तो हम टैप करते हैं…”
तो वो सेठ जी की लड़की वाला मामला, मेरे अभी भी समझ में नहीं आया था, मैंने पूछ लिया।
डी बी हंस के बोले अभी पांच छह महीने बाद पोस्टिंग हो जायेगी न तो समझ में आ जायेगी। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था। जब मैं यहाँ आया साल भर पहले तो पता चला था लेकिन सेठ जी ने ऍफ़ आई आर तक तो करवाई नहीं। मुझे आये साल भर से ऊपर होगया और मुझे पता चला तो बहुत गुस्सा आया। सेठ जी से कहलवाया की रिपोर्ट तो करवा दीजिये, पुलिस प्रोटेक्शन भी दूंगा लेकिन आ के हाथ जोड़ के खड़े होगये। नहीं साहब, अब तो बिटिया भी आ गयी है सब लोग भूल गए हैं। फिर से अखबार, कोर्ट कचहरी, गवाही, लड़की की जाति शादी में झंझट होगा। लेकिन जानते हो असली बात क्या थी,
" नहीं " मैंने फोन पर भी जोर से सर हिलाया।
" अरे डील में सेठ जी को भी बहुत फायदा हुआ। कई जगह की सप्लाई का ठेका मिल गया, जितना महीना बाँधा था उससे बहुत ज्यादा और फिर जब से नयी सरकार आयी, उससे भी उनकी रब्त जब्त। "