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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
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मैं, गुड्डी और होटल
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Wah man gae. Deh ki holi bhouji sang.देह की होली - भौजी संग
गप्पांक
सुपाड़ा अंदर, बुर खूब अच्छी तरह से फैली और अब भौजी की चीख निकल गयी, यही तो मैं चाहता था लेकिन अब मैंने रुक गया। अब मेरे होंठ भी मैदान में आ गए, कभी भौजी की एक गद्दर चूँची काट लेता तो कभी निपल चूस लेता, हाथ भी उनकी क्लिट को हलके से छू के दूर हो जाता और फिर मैंने भौजी से पूछा,
" भौजी मजा आरहा है "
" बहुत रज्जा " कहकर भौजी ने कस के नीचे से अपने चूतड़ उछाले, उनसे रहा नहीं जा रहा था और वो सीधे चौथे गेयर में जाना चाहती थीं
लेकिन मैं उनको थोड़ा और तड़पना चाहता था, सब कुछ कबुलवाना चाहता था उन्ही के मुंह से, और मैंने धक्के का जवाब बजाय धक्के के देने के कस के उनके गाल को फिर से, जहाँ पहले काटा था, वहीँ काट लिया और भौजी चीख पड़ीं,
" उईईई, लगता है, तोहरी छिनार बहिनिया क गाल नहीं है जो मोहल्ला भर से चुसवाती कटवाती रहती है, जरा हलके से "
जवाब में मैंने दूसरे गाल को और कस के काट लिया। अब दूबे भाभी, चंदा भाभी गुड्डी और मोहल्ले वालियां देखे, न भौजी को बताना पड़ेगा न किसी को पूछना, पता चल जाएगा हचक के पेलवा के आ रही हैं। और मेरे दोनों हाथ भौजी के जोबना पे, पूरी ताकत से,
भौजी कभी कहर रही थीं, कभी सिसक रही थीं कभी हलके हलके असीस रही थें,
" ले आओगे न अपनी बहिनिया को होली के बाद तो देखना, तोहरी महतारी के ऊपर तो पिछले सावन में गुड्डी क मम्मी ने ५१ पण्डे चढ़वाये थे मैं तो तेरी सारे बनारस के गुंडे, एक झड़ेगा दूसरा डालेगा, अंदर, पूरा बनारस रस लेगा, गुड्डी क ननदिया क,
और उनकी ये आखिरी बात सुन के तो मैंने पागल होगया मारे ख़ुशी के,
मेरी बहन गुड्डी की ननद मतलब गुड्डी मेरी,
ये तो मेरा जिंदगी का सपना था और सब कंट्रोल ख़तम हो गया, बस दोनों हाथ अब संध्या भाभी की कमर पे और मेरा लंड पूरी ताकत से भौजी की बुर में , कम से कम दर्जन भर धक्के मैंने गिन के मारे होंगे, बस एकाध इंच बाहर बचा था, रगड़ रगड़ के घिसट घिसट के दरेरते, फैलाते, छीलते,
और हलकी सी चुम्मी ले के मैं भौजी से प्यार से भौजी से बोला,
" भौजी तोहरे मुंह में गुड़ घी, जउन तोहार ये बात हो जाए, मेरी बहन गुड्डी क ननद हो जाए, मजाक में नहीं सच में उसकी ननद बन जाए "
अपने होंठ उठा के उन्होंने खुद मुझे चूम लिया और कस के बाँहों में बाँध के चिढ़ाते हुए बोलीं,
" सोच ले स्साले, अभी तो तेरी कुछ भी रगड़ाई नहीं हुयी है, बनारस में ससुराल होगी और यहाँ औरंगाबाद में तो तेरी, तेरी बहन, महतारी, बूआ मौसी, चाची सब की ऐसी रगड़ाई होगी न, अगर हम अपनी बहन बेटी देंगी, ...."
मेरी आँख के सामने वो सीन घूम गया जब गुड्डी ने भाभी की शादी में, भाभी का बीड़ा पता नहीं कहाँ लगा, लेकिन गुड्डी का सीधे मेरे दिल पे, एकदम तीरे नीमकश की तरह, आधा घुस के अटक गया और जब बिदाई के समय मैंने उसे वो बीड़ा दिखया और बोल दिया,
" एक दिन तुम भी जहां भाभी खड़ी थीं वहीँ से मेरे ऊपर ये बीड़ा मारोगी, "
कुछ तो वो शरमाई, कुछ मुस्करायी, लेकिन लड़कियां अपनी उम्र से पहले बड़ी हो जाती हैं तो धीरे से बोली,
" ज्यादा सपने नहीं देखने चाहिए "
लेकिन मैंने तो उसी दिन सपना देख लिया और कुछ भी करने को तैयार था उसे पूरा करने के लिए, तो मैंने संध्या भौजी से सीरियसली बोला
" भौजी, कुछ भी, सब मंजूर लेकिन अब तो ससुराल यहीं होगी "
और अपनी बात पे मुहर लगाते मैंने मूसल को करीब बाहर तक खिंचा और पूरी ताकत से कामदेव के तीर की तरह छोड़ा, और वो वज्र सीधे संध्या भौजी बच्चेदानी पे, लोहार के घन की तरह लगा।
उईईई , उईईई संध्या भौजी पहले दर्द से चीखीं, फिर मजे से, आँखे उनकी उलटी हो गयी देह कांपने लगी, लेकिन मैं अपना बित्ते भर का लंड जड़ तक ठेले रहा और कभी मेरे होंठ ने उनके इधर उधर चुम्मा लिया तो कभी उँगलियाँ सहलाती रहीं
भाभी झड़ती रहीं।
मैं अबतक सीख गया था लड़की को एक बार किसी तरह झाड़ दो तो उसके बाद जो वो गर्माएगी, तो सब लाज छोड़ के मस्ती में चुदाई में साथ देगी,
और मैं कस के उन्हें दबोचे रहा, चूमता रहा, सहलाता रहा और एक बार धीरे धीरे संध्या भाभी जब नार्मल हो रही थीं तो बहुत धीरे धीरे मैंने भाला बाहर निकालना शुरू किया, भौजी को लगा की चुदाई का पार्ट २ शुरू होगा, लेकिन मेरे मन तो कुछ और था, मैंने पूरा ही मूसल बाहर निकाल लिया ।
Man gae komalji. Bhabhi sang bhi romance. Aur vo bhi erotic romance. Maza aa gaya.मस्ती संध्या भौजी की
लेकिन मैंने तो उसी दिन सपना देख लिया और कुछ भी करने को तैयार था उसे पूरा करने के लिए, तो मैंने संध्या भौजी से सीरियसली बोला
" भौजी, कुछ भी, सब मंजूर लेकिन अब तो ससुराल यहीं होगी "
और अपनी बात पे मुहर लगाते मैंने मूसल को करीब बाहर तक खिंचा और पूरी ताकत से कामदेव के तीर की तरह छोड़ा, और वो वज्र सीधे संध्या भौजी बच्चेदानी पे, लोहार के घन की तरह लगा।
उईईई , उईईई संध्या भौजी पहले दर्द से चीखीं, फिर मजे से, आँखे उनकी उलटी हो गयी देह कांपने लगी, लेकिन मैं अपना बित्ते भर का लंड जड़ तक ठेले रहा और कभी मेरे होंठ ने उनके इधर उधर चुम्मा लिया तो कभी उँगलियाँ सहलाती रहीं
भाभी झड़ती रहीं।
मैं अबतक सीख गया था लड़की को एक बार किसी तरह झाड़ दो तो उसके बाद जो वो गर्माएगी, तो सब लाज छोड़ के मस्ती में चुदाई में साथ देगी,
और मैं कस के उन्हें दबोचे रहा, चूमता रहा, सहलाता रहा और एक बार धीरे धीरे संध्या भाभी जब नार्मल हो रही थीं तो बहुत धीरे धीरे मैंने भाला बाहर निकालना शुरू किया, भौजी को लगा की चुदाई का पार्ट २ शुरू होगा, लेकिन मेरे मन तो कुछ और था, मैंने पूरा ही मूसल बाहर निकाल लिया ।
" हे क्या करते हो, करो न "
भौजी ने हलके से गुहार लगाई लेकिन मैं अब उनकी बात नहीं सुनने वाला था, कस के मैंने उनकी जाँघे फैलाई।
ताज़ी ताज़ी झड़ी बुर का स्वाद कुछ और ही होता, जब तक भाभी समझे मेरा मुंह उस रसीली के रसीले निचले काम रस से भीगे होंठों पे चिपक गया और बिना रुके मैंने कस कस के चूसना शुरू कर दिया।
जीभ मेरी भौजी की बिल के अंदर और होंठों से दोनों फांके को कस के भींच रखा था।
चूसने के साथ जीभ , क्या कोई औजार पेलता होगा, कभी अंदर बाहर, कभी गोल गोल, मुझे भी मालूम था की सभी नर्व एंडिंग्स योनि के शुरू में दो तीन इंच में अंदरूनी दीवालों, पे तो मेरी जीभ कभी उन्हें सहलाती तो कभी दरेरती, और भौजी मस्ती में चूतड़ पटकती, कभी छटपटाती लेकिन मैंने उनके दोनों कलाइयों को कस के पकड़ रखा था।
कुछ देर में जब भौजी का छटपटाना थोड़ा कम हुआ तो मैंने बाएं हाथ से भौजी की क्लिट पे रगड़ाई शुरू कर दी। अब एक बार से फिर से उनकी हालत और खराब
" छोड़ साले छोड़, ओह्ह नहीं नहीं " भौजी छटपटा रही थीं,
और मैंने छोड़ दिया, उनकी कलाई लेकिन वो उँगलियाँ अब एक साथ, एक दो नहीं सीधे पूरी तीन उनकी भीगी गीली बुर में
और होंठ से कस कस के क्लिट की चुसाई, दूसरे हाथ से भौजी की बड़ी बड़ी चूँचिया रगड़ाई
भौजी कस कस के चूतड़ उछाल रही थीं, उनकी बुर मेरी अंदर घुसी उँगलियों को निचोड़ रही थी, पांच सात मिनट में जब उनकी हालत खराब हो गयी और मेरे लिए भी अपने को रोक करना मुश्किल था मैंने एक बार फिर से भौजी की दोनों टांगों को अपने कंधे पे, बगल में रखे सरसों के तेल की बोतल से तेल अच्छी तरह सुपाड़े पे लिथड़ा, बुर की दोनों फांको को फैलाया और पूरी ताकत से वो जोर का धक्का मारा
भौजी जोर से चीखीं,
" उईईई उईईईईई ओह्ह्ह्हह ओह्ह्ह्ह नही उईईईईई "
चीख इतनी जोर थी की पक्का पहली मंजिल पे गुड्डी को भी सुनाई पड़ गयी होगी, लेकिन बिना रुके मैंने थोड़ा सा पीछे खींच के जो धक्का मारा तो अबकी सुपाड़े का हथोड़ा सीधे भौजी की बच्चेदानी पे
" उईईई उईईई नहीं नहीं , निकाल साले, बस एक मिनट उफ़ दर्द हो रहा है नहीं बस नहीं, उईईईईई "
ये चीख पहली बार से भी तेज थी। लेकिन बिना रुके अब मैंने ताबतोड़ पेलाई शुरू कर दी, और कुछ देर में भाभी भी मेरा साथ दे रही थी चार पांच धक्को के बाद मैंने रुकता तो नीचे से उनके धक्के चालू हो जाते।
१२ -१५ की नानस्टाप तूफानी चुदाई के बाद मैं झड़ने के कगार पर था,
संध्या भौजी थक कर थेथर हो रही थीं, फागुन के महीने में भी वो जेठ बैशाख की तरह पसीने में डूबी थीं, पर उनकी मस्ती में कोई कमी नहीं आ रही थी। हर धक्के का जम के मजा भी ले रही थी, चूतड़ उछाल उछाल के अपनी चूँचियों को मेरे सीने पे रगड़ रगड़ के मेरी भी हालत ख़राब कर रही थी। उन्हें मैंने एक बार झाड़ दिया था, इसलिए उन्हें अभी टाइम तो लगाना था ही , लेकिन इस जबरदस्त और नॉन स्टाप पिलाई से अब हम दोनों एक बार कगार पे पहुँच रहे थे।
लेकिन कल रात की चंदा भाभी की पाठशाला और अभी संध्या भाभी की क्लास के बाद अब मैं भी इतना नौसिखिया नहीं था। मस्तराम जी की कितनी किताबे कंठस्थ थीं, कोका पंडित के तो पन्ने तक याद पर हाँ प्रैक्टिस में एकदम कोरा, फिर झिझक, पर कल रात चंदा भाभी ने जिस तरह मेरी नथ उतारी, अब मैं एकदम
तो बस मैंने पिस्टन बाहर निकाल लिया और संध्या भाभी एकदम से तड़प उठीं, लेकिन मैं उन्हें तड़पाना ही चाहता था, अभी तो मुझे उनकी बड़ी उम्र की एम् आई एल ऍफ़ टाइप ननद और गुड्डी की सबसे छोटी बहन, छुटकी की समौरिया उनकी ननद की बेटी, जो अभी कोरी थी को भी पेलना था। और बिना भौजी को तड़पाये, तो बस मैंने मूसल बाहर निकाल लिया और संध्या भौजी की गारियाँ चालू
" स्साले क्यों निकाल लिया, तेरी महतारी भी तो नहीं है यहाँ जिसके भोंसडे में आग लगी हो तेरा लंड घोंटने के लिए, पेल नहीं तो तो, "
यही सब तो मैं सुनना चाहता था लेकिन कल मैंने चंदा भौजी से सीख लिया था की मरद के तरकश में बहुत से तीर होते हैं मोटे मूसल के साथ साथ, तो बस अब एक बार फिर से संध्या भौजी की टाँगे उठी, जाँघे फैली और पहले तो मैंने अंगूठे से कस के उनकी फुदकती फड़फड़ाती क्लिट को रगड़ा और बेचारी भौजी पगला गयीं, लेकिन अभी तो शुरुआत थी। ऊँगली जगह होंठों ने लिया, फुद्दी के होंठों को मेरे होंठ कस कस के चूसने चाटने लगे।
ऐसी मीठी चाशनी भाभी की बिल से निकल रही थी, और थोड़ी देर में होंठों का साथ देने के लिए उँगलियाँ भी कूद पड़ी।
होंठ चाट चूस रहे थे और उंगलिया एक नहीं दो एक साथ रस के कुंवे में डुबकी लगा रही थीं और भौजी मारे मस्ती के कभी चूतड़ पटकती तो कभी गरियाती,
चुदती औरत के मुंह से गालियां बहुत अच्छी लगती हैं। और बनारस वालियों की गालियां तो सीधे माँ बहिन कोई नहीं बचती और गदहे घोड़े कुत्ते से कम में चढ़ता नहीं माँ बहिन पे और ये एक बैरोमीटर भी है उनकी मस्ती का, कितनी चुदवासी हो रहीं हैं।
थोड़ी देर उन्हें और पागल करने के बाद दुबारा भौजी पर चढ़ाई करने के लिए मैंने मुंह और उंगलिया उनकी गुलाबो से हटाया लेकिन भौजी तो भौजी और मैं अभी भी नौसिखिया देवर कहें, ( मेरी भाभी के रिश्ते से ) बहनोई कहें ( गुड्डी के रिश्ते से ),
संध्या भाभी ने हल्का सा धक्का दिया जैसे चुमावन के समय भाभियाँ देती हैं, पर मैं पीछे हाथ कर के सम्हल गया, बाथरूम में दीवाल के सहारे बैठ गया, और भौजी मेरी गोद में। मेरा खूंटा खड़ा था वैसा ही टनटनाया और भौजी ने अपने हाथ से पकड़ के के अपनी बिल के दरवाजे पे सटाया और पूरी ताकत से बैठ गयीं। एक तो मैंने पहले ही छँटाक भर तेल अपनी भौजी की बुरिया को पिलाया था और फिर रगड़ मसल के जो चाशनी निकली थी, धीरे धीरे कर के इंच इंच मेरा आधा से ज्यादा मूसल उनके अंदर,
Ufff amezing update.सीख- संध्या भाभी की
संध्या भाभी ने हल्का सा धक्का दिया जैसे चुमावन के समय भाभियाँ देती हैं, पर मैं पीछे हाथ कर के सम्हल गया, बाथरूम में दीवाल के सहारे बैठ गया, और भौजी मेरी गोद में। मेरा खूंटा खड़ा था वैसा ही टनटनाया और भौजी ने अपने हाथ से पकड़ के के अपनी बिल के दरवाजे पे सटाया और पूरी ताकत से बैठ गयीं।
एक तो मैंने पहले ही छँटाक भर तेल अपनी भौजी की बुरिया को पिलाया था और फिर रगड़ मसल के जो चाशनी निकली थी, धीरे धीरे कर के इंच इंच मेरा आधा से ज्यादा मूसल उनके अंदर,
मैंने नीचे से धक्का मारने की कोशिश की पर भौजी ने इशारे से मना कर दिया वो उस मोटू मल की कड़ाई मोटाई अपनी बिल में महसूस करना चाहती थीं।
हम दोनों ने एक दूसरे को बस कस के भींच रखा था पर कमान अभी भौजी के हाथों में थी। कभी वो अपनी मोटी मोटी चूँचियाँ मेरी छाती पे रगड़ती तो कभी कस के चूमते हुए मेरे होंठों को काट लेती, जीभ अपनी मेरे मुंह में पेल देतीं। लेकिन कुछ देर में सावन के झूले की तरह, कभी वो पेंग मारती और मोटूराम अंदर और कभी मैंने पेंग मारता तो थोड़ा और घुस जाता लेकिन अगली बार वो चूतड़ उछाल के एक दो इंच बाहर निकल देतीं।गोद में बिठा के किसी को चोदने का ये एकदम अलग ही मजा था।
एकदम एक नया ही मजा मिल रहा था, झड़ने की जल्दी न उन्हें न मुझे और वो अब समझ गयी थीं की मैं लम्बी रेस का घोडा हूँ तो
और साथ भौजी की बातें भी कभी गुड्डी के बारे में कभी उसी सबसे छोटी बहन के बारे में तो कभी गुड्डी की मम्मी के बारे में
" देख साले आज गुड्डी को पहली बार पेलोगे न तो ये ध्यान रखना, पहली बार तो ठीक है पटक के ऊपर चढ़ के टांग उठा के, लेकिन रात में दूसरी बार या फिर कभी भी, एक पोज में नहीं, थोड़ा बदल बदल के करोगे तो उसको भी ज्यादा मजा आएगा और स्साले तुझे भी। "
बात तो सही थी।
गोद में बैठा के चोदने में एक अलग ही मजा था, धक्को में वो ताकत तो नहीं थी, लेकिन बतियाने का, चेहरा देखने का चूमने चाटने का, पीठ पकड़ के अपनी ओर पुल करने का अलग ही मजा आ रहा था। कल चंदा भाभी ने ऊपर चढ़ के, पहली बार तो ऐसे ही चोदा था लेकिन बाद में समझया भी था की अगर औरत ऊपर हो तो भी मरद उसके चूतड़ को पकड़ के उसे ऊपर नीचे करके, नीचे से चूतड़ उठा उठा के धक्का मार के कंट्रोल अपने हाथ में ले सकता है लेकिन ये तरीका कच्ची उम्र की लौंडियों के लिए नहीं है उन्हें तो ऊपर चढ़ के रगड़ रगड़ के उनकी फाड़ने का मजा है क्योंकि जब वो तड़पेंगी, चिखेंगी, उनकी जब फटेगी तो दर्द से परपरायेगी वो देखने का मजा ही अलग है हाँ बहुत हुआ तो बाद में एक बार झिल्ली फट जाए तो निहुरा के।
लेकिन थोड़ी देर बाद संध्या भाभी नीचे मैं ऊपर और मैं उन्हें हचक हचक के चोद रहा था। हर धक्का बच्चेदानी पे और हर बार क्लिट भी रगड़ी जा रही थी। दोनों टाँगे उनकी मेरे कंधे पे, भौजी की हालत खराब थी लेकिन अबकी मैं रुकने वाला नहीं था।
हम दोनों साथ साथ झड़े और एक दूसरे से चिपके पड़े रहे।
जब कुछ देर बाद साँस लेने की हालत हुयी तो भौजी मुस्करा के लेकिन शिकायत के अंदाज में बोलीं,
" इत्ता दर्द तो जब पहली बार फटी थी तब भी नहीं हुआ था। "
" और इत्ता मजा भौजी ? " मैंने भी हंस के पूछा।
" सोच भी नहीं सकती थी, लगते सीधे हो, पर हो एकदम खिलाड़ी "
हंस के मुझे गले लगा के बोलीं, फिर कचकचा के मेरे गाल काट के बोलीं,
" मस्त कलाकंद हो, एकदम देख के गपागप करने का मन करता है। अच्छा निकलो, तुम लोगो को अभी बाजार भी जाना है और शाम के पहले आजमगढ़ भी पहुंचना होगा, जो तौलिया पहन के आये थे बस उसी को पहन के एकदम दबे पाँव निकल लो, सीधे ऊपर। जब तुम सीढ़ी पे चढ़ जाओगे तो मैं निकलूंगी। "
और उन्होंने मेरा तौलिया पकड़ा दिया।
बाथरूम से निकलते ही, रीत के कमरे से खूब जोर से खिलखिलाने की आवाज आ आरही थी, मैं समझ गया उसकी सहेलियां होंगी और एक बार मैं पकड़ गया तो फिर से होली का चक्कर शुरू हो जाएगा।
इसलिए बस दबे पाँव सीढ़ी से ऊपर, जब तक मैं छत पे पहुंचा नीचे से बाथरूम से संध्या भाभी भी बस एक टॉवेल लपेटे,
कमरे में गुड्डी मेरा इंतज़ार कर रही थी और झट्ट से टॉवेल खींच के उतार दिया,
" हे ये टॉवेल चंदा भाभी की है यही छोड़ के जाना है , चोरी की आदत अच्छी नहीं। "
और झुक के बोली, आया मजा, कित्ती बार?
Amezing... Superb. Man gae komalji. Shararat aur romance ek sath.गुड्डी
बाथरूम से निकलते ही, रीत के कमरे से खूब जोर से खिलखिलाने की आवाज आ आरही थी, मैं समझ गया उसकी सहेलियां होंगी और एक बार मैं पकड़ गया तो फिर से होली का चक्कर शुरू हो जाएगा। इसलिए बस दबे पाँव सीढ़ी से ऊपर, जब तक मैं छत पे पहुंचा नीचे से बाथरूम से संध्या भाभी भी बस एक टॉवेल लपेटे,
कमरे में गुड्डी मेरा इंतज़ार कर रही थी और झट्ट से टॉवेल खींच के उतार दिया,
" हे ये टॉवेल चंदा भाभी की है यही छोड़ के जाना है , चोरी की आदत अच्छी नहीं। "
और झुक के बोली, आया मजा, कित्ती बार?
मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो डांट पड़ गयी,
" अबे चुप्प, तुझसे नहीं इससे बात कर रहीं हूँ "
मेरे जंगबहादुर की ओर इशारा करते बोली और पलंग पे जो मेरी शर्ट पेंट पड़ी थी खुद अपने हाथ से पहनाने लगी।
अब गुड्डी पहना रही थी तो मना भी नहीं कर सकता था लेकिन मेरी निगाह बार शर्ट पे पड़ रही थी जिस पे मेरी बहन के रेट और उसका मोबाइल नंबर लिखा था, वो भी सारा का सारा।
गुड्डी का स्पेशल रेट सिर्फ बनारस वालों के लिए। आपके शहर में एक हफ्ते के लिए। एडवांस बुकिंग चालू।
उसके बाद जैसे दुकान पे रेट लिस्ट लिखी होती है-
चुम्मा चुम्मी- 20 रूपया
चूची मिजवायी- 40 रूपया
लंड चुसवायी- 50 रूपया
चुदवाई- 75 रूपया
सारी रात 150 रूपया।
फिर डांट पड़ी मुझे ,
" मैं समझ रही हूँ, क्यों परेशान हो रहे हो। अरे ये तेरी बहना की रेट लिस्ट पहना के तुझे तेरे मायके नहीं ले जाऊंगी । शॉपिंग के बाद तेरे रेस्ट हाउस चलेंगे न तो बदल लेना वहां "
और मैं तैयार था लेकिन तब तक मेरी निगाह एक बड़े से बैग, अटैची पर पड़ी,
" हे यह गधे का बोझ कौन लाद के चलेगा " मैंने गुड्डी से बोला।
तब तक चंदा भाभी आ गयीं , और हँसते हुए बोलीं
" जिसका गदहा अस होगा वो गदहे का बोझ लादेगा, अब तो सबने देख ही लिया है और जिसकी महतारी गदहे संग सोई होगी,... लेकिन घबड़ा मत अभी तो सामान थोड़ा और बढ़ेगा।अच्छा मैं जरा कुछ सामान दे रही हूँ ले जाने ले लिए। तुम्हारे साथ…”
वो बोली।
“नहीं भाभी नहीं। बेकार कहाँ…” मैंने मना किया।
“तुम ना। तुम्हें तो लड़की होना चाहिए था। हर बात पर ना करते हो…” वो बोली और अपने कमरे में चल दी
मैं भी भाभी के पीछे-पीछे उनके कमरे में। चंदा भाभी ने अपनी ननद या मेरी भाभी के लिए गुलाब जामुन, गुझिया (कहने की जरूरत नहीं सब भांग वाली थी) इत्यादि दी और फिर एक आलमारी खोलकर बोली-
“अरे तेरा सामान भी तो दे दूँ। तुझे मायके में बहुत जरूरत पड़ेगी…”
उन्होंने फिर वो स्पेशल सांडे का तेल जिसका इश्तेमाल उन्होंने मेरे ऊपर कल रात को किया था। वो शिलाजीत और ना जाने क्या-क्या पड़ा लड्डू जिसका असर उनके हिसाब से वियाग्रा से भी दूना होता है वो सब दिया और समझाया भी। फिर उन्होंने अपना लाकर खोलकर एक छोटी सी परफ्यूम की शीशी दी और कहा की उसकी एक बूँद भी लड़की को लगा दो तो वो पागल हो जायेगी, बिना चुदवाये छोड़ेगी नहीं।
तब तक गुड्डी आ गई थी। उन्होंने उसके कान में सब कुछ समझाया और कहने लगी की हम लोग खाना खाकर जायें।
“नहीं भाभी। इतना गुझिया, दहीबड़ा, मिठाई सब कुछ तो खाया है…”
मैंने मना किया। गुड्डी ने भी ना ना में सिर हिलाया।
“अरे आगरा का पेठा, बनारस की रबड़ी
बलिया का सत्तू, आजमगढ़ की खिचड़ी।
भाभी ने हँसकर गाया और बोली- “रबड़ी छोड़कर जा रही हो कल से खिचड़ी खाना, सटासट-सटासट…”
मैं हँसकर बोला- “अरे भाभी कल से क्यों आज रात से ही। इतना इंतजार क्यों कराएंगी बिचारी को…”
चंदा भाभी ने गुड्डी को चिढ़ाया।
“क्यों, गई तुम्हारी सहेली। ठीक हो गया पेट खिचड़ी खाने को…”
गुड्डी शर्मा गई और झिझकते हुए बोली- “धत्त। हाँ…”
अब सिर्फ मैं, गुड्डी और चंदा भाभी छत पे थे।
“भाभी जरा इसको कुछ समझा दीजिये की कैसे, क्या?” मैंने गुड्डी की ओर देखते हुए चंदा भाभी से बोला।
लेकिन वो अबकी नहीं शर्माई और चंदा भाभी ने भी उसी का साथ दिया-
“इसे क्या समझाना है। तुम्हीं पीछे हट जाते हो शर्माकर। बोलोगे जाने दो कल,... और जो करना है वो तुम्हें करना है। इस बिचारी को क्या करना है?”
चंदा भाभी गुड्डी के पास जाकर खड़ी हो गईं, और उसके कंधे पे हाथ रखकर बोली।
“और क्या?” हिम्मत पाकर गुड्डी भी बोली।
“तो राजी हो। आज हो जाय…” मैंने छेड़ा।
गुड्डी अब फिर बीर बहूटी हो गई और हल्के से बोला- “धत्त मैंने ऐसा तो नहीं कहा- “और थोड़ी हिम्मत बटोर के चंदा भाभी की ओर देखकर बोली-
“कपड़े लौटा दिए है ना इसलिए बोल रहे हैं। बनारस की लड़कियां इतनी सीधी भोली भाली होती हैं। तभी लेकिन तुम्हारा मोबाइल, पर्स कार्ड अभी भी मेरे पास है। रिक्शे का पैसा भी नहीं दूंगी।
Hmmm bat to sahi hai. Guddi hamare yaha ki ladkiya sidhi bholi hoti hai. Kapde to chhin lie aur nanga kar diya aur sidhi hoti hai.गुड्डी संग.
गुड्डी अब फिर बीर बहूटी हो गई और हल्के से बोला- “धत्त मैंने ऐसा तो नहीं कहा- “और थोड़ी हिम्मत बटोर के चंदा भाभी की ओर देखकर बोली-
“कपड़े लौटा दिए है ना इसलिए बोल रहे हैं। बनारस की लड़कियां इतनी सीधी भोली भाली होती हैं। तभी लेकिन तुम्हारा मोबाइल, पर्स कार्ड अभी भी मेरे पास है। रिक्शे का पैसा भी नहीं दूंगी। समझे…”
मैं कुछ बोलता उसके पहले रीत आ गई.
“दूबे भाभी ने बोला है की बोलना 5 मिनट रुकेंगे वो भी आ रही हैं…”
लेकिन मेरे आँख कान रीत से चिपके थे। पक्की कैटरीना कैफ। हरे रंग का इम्ब्रायडर किया हुआ धानी कुरता और एक बहुत टाईट पाजामी।
मेरी ओर देखकर मुश्कुराई और गुड्डी के कान में कुछ बोला।
गुड्डी गुलाल हो गई। लेकिन हाँ में सिर हिलाया। (बाद में बहुत हाथ पैर जोड़ने पे गुड्डी ने बताया की रीत ने उससे पूछा था। वैसलीन रखा है की नहीं।)
रीत मेरे पास आई और मेरी ओर देखकर चंदा भाभी से पूछा- “हे कुछ गड़बड़ लग रहा है ना। कुछ मिसिंग है…”
और बिना उनके जवाब का इंतजार किये मुझे हड़काया- “शर्ट के अन्दर कुछ नहीं पहना, ऐसे बाहर जाओगे झलकाते हुए वो भी मेरी छोटी बहन के साथ नाक कटवाओगे हम लोगों की। तुम्हारे उस खिचड़ी वाले शहर में तुम्हारी बहनें बिना अन्दर कुछ पहने झलकाती घूमती होंगी यहाँ ये नहीं होता…”
सब लोग अपनी मुश्कान दबाए हुए थे सिवाय मेरे।
घबड़ाकर मैं बोला- “लेकिन। लेकिन मेरे पास वो तो कल गुड्डी ने। आप ही ने तो…”
“क्या गुड्डी गुड्डी रट रहे हो? मैंने कुछ पहनाया नहीं था तुम्हें। कहाँ है वो?” तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी उसे उतारने की?”
अब मैं समझा उसकी शरारत।
गुड्डी ने पास पड़ी रंग में लथपथ ब्रा की ओर इशारा किया। जिसे रीत ने होली के श्रृंगार के समय पहनाया था लेकिन मैंने बाद में उतार दिया था। झट से उसने मेरी शर्ट उतारकर फिर से ब्रा पहनाई और फिर से शर्ट। और देखती बोली-
“लेकिन अभी भी कुछ कमी लग रही है…”
और जब तक मैं समझूँ रीत अन्दर से दो रंग भरे गुब्बारे ले आई और फिर से ब्रा के अन्दर। मैं लाख चीखता चिल्लाता रहा। लेकिन कौन सुनता बल्की अब चंदा भाभी भी उन्हीं के साथ-
“अरे लाला फागुन का टाइम है लोग सोचेंगे कोई जोगीड़ा का लौडा है…”
दूबे भाभी भी आ गईं। सबको नमस्कार करके जब मैं चलने के लिए हुआ तो दूबे भाभी ने याद दिलाया- “हे अपने उस माल को साथ लाना मत भूलना और रंग पंचमी से दो दिन पहले…”
और रीत से बोली- “अरे पाहुन जा रहे हैं, जाने से पहले पानी पिला के भेजना चाहिए सगुन होता है, आज कल की लड़कियां…”
रीत मुझसे गले मिलते हुए बोली- “मिलते हैं ब्रेक के बाद…”
हाँ चार-पांच दिन की बात है फिर तो मैं वापस। मैं भी बोला।
“नहीं नहीं मेरी आँख फड़क रही है। मुझे तो लगता है शाम तक फिर मुलाकात और…” वो मेरे कान में मुझे चिपकाए हए बोली।
गुड्डी सामन लेकर बाहर निकल चुकी थी। जैसे ही मैं निकला पानी का ग्लास रीत के हाथ - “लीजिये साली के हाथ का पानी पीकर जाइए…” और जैसे मैंने हाथ बढ़ाया उस दुष्ट ने पूरा ग्लास मेरे ऊपर। गाढ़ा लाल गुलाबी रंग।
“अरे ठीक है होली का प्रसाद है। चलिए…” चंदा भाभी बोली।
मैं गुड्डी के साथ बाहर निकल आया लेकिन मुझे लग रहा था की मेरा कुछ वहीं छूट गया है। रीत की बात भी याद आ रही थी। आँख फड़कने वाली। लेकिन चाहने से क्या होता है।
और खास तौर से जब आपके साथ कोई हसीन नमकीन लड़की हो जो पिछले करीब 24 घंटे से आपकी ऐसी की तैसी करने पे जुटी हो।
और वही हुआ। पहले तो उसने रिक्शे की बात पे ना ना कर दी- “पैसा है तुम्हारे पास। चले हैं रिक्शे पे बैठने…” घुड़कते हुए वो बोली।
तब मुझे याद आया। मेरा मोबाइल, कार्ड्स पर्स सब तो इसी के पास था- “हे मेरा पर्स वो। लेकिन मैंने। तो…” हिम्मत करके मैंने बोलने की कोशिश की।
“जगह-जगह नोटिस लगी रहती है। यात्री अपने सामान की सुरक्षा खुद करें। लेकिन पढ़े लिखे होकर भी। मेरे पास कोई पर्स वर्स नहीं है…” बड़बड़ाते हुए वो बोली और फिर जैसे मुझे दिखाते हुए उसने अपना बड़ा सा झोले ऐसा पर्स खोला। बाकायदा मेरा पर्स भी था और मोबाइल भी। ऊपर से वो मेरा पर्स निकालकर मुझे दिखाते हुए बोली-
“देखो मैं अपना पर्स कितना संभाल कर रखती हूँ। तुम्हारी तरह नहीं…” और फिर जिप बंद कर दिया।
उसमें मेरी पूरी महीने की सेलरी पड़ी थी। और उसके बाद रास्ते की बात पे तो वो एकदम तेल पानी लेकर मेरे ऊपर चढ़ गई- “बनारस की कौन है। मैं या तुम?” वो आँख निकालकर बोली।
“तुम हो…” मैंने तुरंत हामी भर ली।
Kya romantic shararat he Komal ji. Bhale hi shadi na hui ho. Par guddi ka raviya ekdam vesa hi. Kya mitthe mitthe tane. Anand babu gadha leke to chali hai sath. Love it.फागुन के दिन चार भाग २३
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गुड्डी, बनारस की गलियां और शॉपिंग
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मैं गुड्डी के साथ बाहर निकल आया लेकिन मुझे लग रहा था की मेरा कुछ वहीं छूट गया है। रीत की बात भी याद आ रही थी। आँख फड़कने वाली। लेकिन चाहने से क्या होता है। और खास तौर से जब आपके साथ कोई हसीन नमकीन लड़की हो जो पिछले करीब 24 घंटे से आपकी ऐसी की तैसी करने पे जुटी हो।
और वही हुआ। पहले तो उसने रिक्शे की बात पे ना ना कर दी-
“पैसा है तुम्हारे पास। चले हैं रिक्शे पे बैठने…” घुड़कते हुए वो बोली।
तब मुझे याद आया। मेरा मोबाइल, कार्ड्स पर्स सब तो इसी के पास था-
“हे मेरा पर्स वो। लेकिन मैंने। तो…” हिम्मत करके मैंने बोलने की कोशिश की।
“जगह-जगह नोटिस लगी रहती है। यात्री अपने सामान की सुरक्षा खुद करें। लेकिन पढ़े लिखे होकर भी। मेरे पास कोई पर्स वर्स नहीं है…”
बड़बड़ाते हुए वो बोली और फिर जैसे मुझे दिखाते हुए उसने अपना बड़ा सा झोले ऐसा पर्स खोला। बाकायदा मेरा पर्स भी था और मोबाइल भी। ऊपर से वो मेरा पर्स निकालकर मुझे दिखाते हुए बोली- “देखो मैं अपना पर्स कितना संभाल कर रखती हूँ। तुम्हारी तरह नहीं…” और फिर जिप बंद कर दिया।
उसमें मेरी पूरी महीने की सेलरी पड़ी थी। और उसके बाद रास्ते की बात पे तो वो एकदम तेल पानी लेकर मेरे ऊपर चढ़ गई-
“बनारस की कौन है। मैं या तुम?” वो आँख निकालकर बोली।
“तुम हो…” मैंने तुरंत हामी भर ली।
“फिर…?”
मैं चुप रहा। ऐसे सवाल का जवाब देना भी नहीं चाहिए।
“अरे उलटा पड़ेगा। लेकिन तुम्हें तो बचपन से ही सब काम उल्टे करने की आदत है। यहाँ से गौदालिया कित्ता पास है। बगल में वो लक्सा वाली रोड पे एक माल भी खुल गया है। नई सड़क के बगल वाली गली में सब चीजें इतनी सस्ती मिलती हैं। लेकीन कल से तुम्हें रेस्टहाउस जाने की जल्दी पड़ी है…”
फिर मुझे मनाते हुए मेरे कंधे पे हाथ रखकर बोली-
“अरे मेरे बुद्धू राम जी। मैं मना थोड़े ही कर रही हूँ लेकिन इससे टाइम बचेगा। यहाँ की एक-एक गलियां मैं जानती हूँ…”
लेकिन गुड्डी का सारा सामान। एक बड़ा सा बैग उठाकर तो मैं चल रहा था। ऊपर से जनाब जी ने तुर्रा ये की मना कर दिया था की मैं इसे अपने पीठ पे ना रखूं।
मैं बड़बड़ा रहा था- “गधे का बोझ उठाकर कौन चल रहा है?”
“जो गधे ऐसी चीज रखेगा। वही गधे का काम करेगा। और क्या?”
उसने मुश्कुराती आँखों से मुझे देखते हुए चिढ़ाया। और साथ में बोली-
“अच्छा चलो अब ये ब्रा उतार दो बहुत देर से पहने हो हाँ तुम्हारा मन कर रहा हो तो अलग बात है…”
आँख नचाकर वो दुष्ट बोली।
और जैसे ही मैंने उतारा सम्हालकर उसने अपने बैग में रख लिया।
Man gae guddi ko. Batuniya rani khud ke gali bhul jane ka thikra bhi anand babu par fod diya. Aur sand ko dekh kar mast mazak kiya anand babu se. Apni bahen ke lie.... Vess vo hoti na to ab tak khada ho.... Maza aa gaya komalji.बनारस की गलियां
गुड्डी की बातें और बनारस की गलियां एक तो कभी ख़तम नहीं होतीं और दूसरे एक से दूसरी निकलती रहती हैं,
लेकिन मेरी ऑब्जर्वेशन वाली आदत और ऊपर से आज एक और फेलू दा की फैन मिल गयी थी, रीत,मगज अस्त्र में प्रवीण, तो मैं थोड़ा ही ज्यादा इधर उधर और मुझे जय बाबा फेलूनाथ की सीन्स एक के बाद एक याद आ रही थीं।
एक पतली सी गली में बड़ा सा महल सा मकान, बाहर दीवाल पर सिपाही और घुड़सवार के चित्र और ऐसा ही एक घर दिखा, गली ज्यादा पतली तो नहीं थी लेकिन चौड़ी भी नहीं, और गुड्डी चालू हो गयी,
" अरे एक बड़े पुराने रईस का घर है, मैं आ चुकी हूँ इनके याहं दूबे भाभी के साथ एक शादी में। अब बेचारे अकेले ही रहते हैं, हाँ शादी में आये थे सब लड़के बच्चे कोई बंबई, कोई दिल्ली, एक बेटी तो अमेरिका में, सब लोग कहते हैं होटल बना दीजिये, बेच के बच्चों के पास, और किसी से तो नहीं लेकिन दूबे भाभी से बोले, " अमरीका, और गंगा जी कैसे जाऊँगा रोज, बाप दादों का घर होटल, पता नहीं कैसे कैसे लोग आयंगे, जितना बचा है ऐसे ही काट लेंगे "
तब तक हम लोग आगे आ गए थे और बात के चक्कर में गुड्डी एक गली मिस कर गयी और डांट मुझे पड़ी,
तेरे चक्कर में न, आज तक मैं ये मोड़ कभी मिस नहीं करती, चलो मुड़ो,
और गलती उस की भी नहीं थी, एकदम संकरी सी गली और उस के बाहर एक वृषभ महोदय बैठे किसी बछिया का इन्तजार कर रहे थे, एक दो मोटरसाइकलें भी खड़ी थी, गली का मुहाना कहीं दिख नहीं रहा था।
बनारसी सांड के बगल से गुजरते मैं थोड़ा ठिठका, तो गुड्डी ने चिढ़ाया,
" क्यों क्या देख रहे हो तेरी बहिनिया के लिए सही है की नहीं. ...स्साला तेरा वो बचपन का माल साथ होता न,... तो ये अबतक फनफना के खड़े हो गए होते, वैसे उस माल को देख के खड़ा तो तेरा भी होता है,.... है न और सिर्फ तेरी बहिनिया या,.... और कोई भी है, "
अब गुड्डी जब पीछे पड़ जाए ख़ास तौर से मेरी मायकेववालियों के तो पीछे हटने में ही भलाई होती है,
इसलिए मैं बचते बचाते उसका १२ किलो का सामान लादे कभी पीछे पीछे तो कभी बगल में,
रास्ता तो उसे ही मालूम था। एक बचत यह होगयी की रीत आख्यान चालू हो गया और अगर कोई रीत फैंस क्लब बने तो बिना इलेक्शन के वो लाइफ टाइम प्रेजिडेंट हो जायेगी, हाँ ऑर्डिनरी मेंबर मैं भी बन जाऊँगा।
" अरे मुझे तो कुछ नहीं मालूम है, ये तो आस पास की गलियां हैं, रीत दी को तो बनारस की एक एक गली, आँख में पट्टी बाँध के उन्हें चला दो तो भी किसी से पहले खाली गली गली यहाँ से लंका, अस्सी घाट, मैदागिन, नाटी इमली सब जगह, और कितनी बार तो मैं उनकी एक्टिवा पे बैठ के उनके पीछे पीछे, जहाँ मैं सोचती भी नहीं थी वहां से भी एक्टिवा निकाल लेती हैं, "
गुड्डी का रीत पुराण चालू था।
लेकिन मैं तब तक ठिठक गया।
आब्जर्वेशन पावर मेरी भी जबरदस्त थी और फिर ट्रेनिंग में, सर्वेलेंस में अच्छी तरह से सिखाया भी गया था , ये गली आगे पहुँच के बंद हो जाती थी। एक दरवाजा था जो बंद था, और कोई मोड़ भी नहीं दिख रहा था। मैं अगल बगल के घरों को चारो धयान से देख रहा था और बीसो बार मैंने अपने को समझाया था गुड्डी जो कहे आँख मूँद के मानना चाहिए, सवाल नहीं करना चाहिए, लेकिन मुंह से निकल गया,
" अरे ये गली तो आगे से बंद है "
और पड़ गयी डांट,
" अभी रीत दी होतीं न तो तेरी माँ बहन सब एक कर देतीं। बनारस में हो बनारस वालियों की बात माननी चाहिए,... बल्कि अपने मायके में भी, "
Man gae guddi ko. Batuniya rani khud ke gali bhul jane ka thikra bhi anand babu par fod diya. Aur sand ko dekh kar mast mazak kiya anand babu se. Apni bahen ke lie.... Vess vo hoti na to ab tak khada ho.... Maza aa gaya komalji.बनारस की गलियां
गुड्डी की बातें और बनारस की गलियां एक तो कभी ख़तम नहीं होतीं और दूसरे एक से दूसरी निकलती रहती हैं,
लेकिन मेरी ऑब्जर्वेशन वाली आदत और ऊपर से आज एक और फेलू दा की फैन मिल गयी थी, रीत,मगज अस्त्र में प्रवीण, तो मैं थोड़ा ही ज्यादा इधर उधर और मुझे जय बाबा फेलूनाथ की सीन्स एक के बाद एक याद आ रही थीं।
एक पतली सी गली में बड़ा सा महल सा मकान, बाहर दीवाल पर सिपाही और घुड़सवार के चित्र और ऐसा ही एक घर दिखा, गली ज्यादा पतली तो नहीं थी लेकिन चौड़ी भी नहीं, और गुड्डी चालू हो गयी,
" अरे एक बड़े पुराने रईस का घर है, मैं आ चुकी हूँ इनके याहं दूबे भाभी के साथ एक शादी में। अब बेचारे अकेले ही रहते हैं, हाँ शादी में आये थे सब लड़के बच्चे कोई बंबई, कोई दिल्ली, एक बेटी तो अमेरिका में, सब लोग कहते हैं होटल बना दीजिये, बेच के बच्चों के पास, और किसी से तो नहीं लेकिन दूबे भाभी से बोले, " अमरीका, और गंगा जी कैसे जाऊँगा रोज, बाप दादों का घर होटल, पता नहीं कैसे कैसे लोग आयंगे, जितना बचा है ऐसे ही काट लेंगे "
तब तक हम लोग आगे आ गए थे और बात के चक्कर में गुड्डी एक गली मिस कर गयी और डांट मुझे पड़ी,
तेरे चक्कर में न, आज तक मैं ये मोड़ कभी मिस नहीं करती, चलो मुड़ो,
और गलती उस की भी नहीं थी, एकदम संकरी सी गली और उस के बाहर एक वृषभ महोदय बैठे किसी बछिया का इन्तजार कर रहे थे, एक दो मोटरसाइकलें भी खड़ी थी, गली का मुहाना कहीं दिख नहीं रहा था।
बनारसी सांड के बगल से गुजरते मैं थोड़ा ठिठका, तो गुड्डी ने चिढ़ाया,
" क्यों क्या देख रहे हो तेरी बहिनिया के लिए सही है की नहीं. ...स्साला तेरा वो बचपन का माल साथ होता न,... तो ये अबतक फनफना के खड़े हो गए होते, वैसे उस माल को देख के खड़ा तो तेरा भी होता है,.... है न और सिर्फ तेरी बहिनिया या,.... और कोई भी है, "
अब गुड्डी जब पीछे पड़ जाए ख़ास तौर से मेरी मायकेववालियों के तो पीछे हटने में ही भलाई होती है,
इसलिए मैं बचते बचाते उसका १२ किलो का सामान लादे कभी पीछे पीछे तो कभी बगल में,
रास्ता तो उसे ही मालूम था। एक बचत यह होगयी की रीत आख्यान चालू हो गया और अगर कोई रीत फैंस क्लब बने तो बिना इलेक्शन के वो लाइफ टाइम प्रेजिडेंट हो जायेगी, हाँ ऑर्डिनरी मेंबर मैं भी बन जाऊँगा।
" अरे मुझे तो कुछ नहीं मालूम है, ये तो आस पास की गलियां हैं, रीत दी को तो बनारस की एक एक गली, आँख में पट्टी बाँध के उन्हें चला दो तो भी किसी से पहले खाली गली गली यहाँ से लंका, अस्सी घाट, मैदागिन, नाटी इमली सब जगह, और कितनी बार तो मैं उनकी एक्टिवा पे बैठ के उनके पीछे पीछे, जहाँ मैं सोचती भी नहीं थी वहां से भी एक्टिवा निकाल लेती हैं, "
गुड्डी का रीत पुराण चालू था।
लेकिन मैं तब तक ठिठक गया।
आब्जर्वेशन पावर मेरी भी जबरदस्त थी और फिर ट्रेनिंग में, सर्वेलेंस में अच्छी तरह से सिखाया भी गया था , ये गली आगे पहुँच के बंद हो जाती थी। एक दरवाजा था जो बंद था, और कोई मोड़ भी नहीं दिख रहा था। मैं अगल बगल के घरों को चारो धयान से देख रहा था और बीसो बार मैंने अपने को समझाया था गुड्डी जो कहे आँख मूँद के मानना चाहिए, सवाल नहीं करना चाहिए, लेकिन मुंह से निकल गया,
" अरे ये गली तो आगे से बंद है "
और पड़ गयी डांट,
" अभी रीत दी होतीं न तो तेरी माँ बहन सब एक कर देतीं। बनारस में हो बनारस वालियों की बात माननी चाहिए,... बल्कि अपने मायके में भी, "
Kyo panga liya anand babu. Tum to samaz hi gae the na. Fir bhi. Kar di na tumhari bahen ki isne. Par offer bhi badhiya diya hai. Paheli zilli tujse hi fadvaungi. Fir chahe jo dubki lagane. Tuje bhi to charane milenge. Amezing dil chhu lene vala update. Guddi bahot nast chanchal roll kar rahi hai.रीत महिमा और गलियों में गलियां
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और फिर रीत महिमा गान शुरू हो गया।
" जानते हो रीत दी को एकदम डर नहीं लगता, रात के अँधेरे में भी, एक तो उनके हाथ में जोर इतना है, दो चार को तो अकेले ही,...
फिर गली गली, उनको सिर्फ रास्ता भी नहीं मालूम आधे से ज्यादा बनारस में, उस गली के मोड़ पे कौन रहता है, उनसे पूछ लो तो बता देंगी तो हर गली में आस आपस कौन है, कैसा है... इसलिए मैं कहती हूँ जब तेरी बहनिया आएगी न यहाँ तो देखना रीत दी कितने लौंडे चढ़ायेंगी,... एक तो तुम पोस्टर लगाए घूम रहे हो, फिर रीत दी और माल भी तो मस्त है वो, और स्साले मुंह मत बना। गलती तेरी अब तक छोड़ क्यों रखा था स्साली को। चल यार झिल्ली तो तुझी से फड़वाउंगी, वो भी अपने सामने, दूबे भाभी का हुकुम, और तूने भी हाँ बोला था, मेरे और रीत दी दोनों के मोबाइल में रिकार्ड है। अरे आठ दस बार डुबकी लगा लेना, उसके बाद तो नदी बह रही है चाहे जो डुबकी लगाए, ...और फिर पैसा भी मिलेगा,
तेरी तो यार चांदी हो जाएगी, चार आने हम लोग तुझे भी देंगे न "
तबतक वो बंद दरवाजा आ गया, एकदम फर्जी दरवाजा था, गुड्डी ने हाथ लगाया और खुल गया और वो बोली,
" खुला ही रहता है, किसी ने मारे बदमाशी के बंद कर दिया होगा, पुराने ज़माने का है अभी तक चला आ रहा है "
और अब एक चौड़ी गली आ गयी थी, जिसके दोनों ओर दोमंजिले घर थे और उस से कई जगहों पर और गलियां निकल रही थीं। पास में ही एक मस्जिद की मीनार भी दिख रही थी।
कुछ नए, कुछ पुराने और कुछ बहुत पुराने जिनका रंग रोगन उजड़ सा गया था, इसी बीच एक बड़ा सा टूटता हुआ घर दिखा, करीब करीब टूट ही चुका था, जगह जगह पुरानी ईंटे, गिरती हुयी बिल्डिंग के सामान पड़े हुए थे, और एक बोर्ड लगा था, ' बिल्डिंग टूट रही है, किसी को मोरंग, पुरानी ईंटे या और कोई सामान चाहिए, तो सम्पर्क करें। ईंटे गली में इधर उधर भी बिखरे पड़े थे और गुड्डी अचानक थोड़ी उदास हो गयी, उस घर को देख के और मेरे बिन पूछे बोलने लगी,
" सैय्यद चच्चू का घर है, था। बहुते बड़ा, बचपन में कितनी बार आयी थी दूबे भाभी के साथ, अरे बहुत छोटी थी, वो उनका चच्चू बोलती थीं तो हम बच्चे भी। बड़ा सा आंगन था, बरामदा, एकट दूकट खेलते थे अगल बगल की लड़कियां, उनके यहाँ तो कोई बचा नहीं था। "
फिर रुक के बोली
" अरे उनके दो भाई थे वो पाकिस्तान चले गए एक लड़का भी, दो बेटियां थी, एक अमेरिका गयी पढ़ने, एक कनाडा वहीँ रह गयी, शादी नौकरी। ये अकेले। दो चार साल में कभी आतीं तो बस यही जिद्द की मकान बेच के हम लोगों के साथ चलिए, लेकिन चच्चू किसी की नहीं सुनते, बोलते यहाँ जो पुरखों की कब्र है, वहां दिया बाती करते हैं वो कौन करेगा। रोज नियम से जाड़ा गरमी बरसात सुबह सुबह गंगा नहाते थे, पहले तो तैर कर रामनगर तक, लेकिन अब वो बंद हो गया था। कनाडा वाली बेटी ने बहुत जिद की तो बोले, गंगा जी को भी साथ ले चलो तो चलेंग। तीन चार महीने पहले, बेटे बेटी कोई नयी आये। बेटे को वीसा नहीं मिला, बेटियों का अपना अलग, सब मोहल्ले वालों ने, मैं भी आयी थी दूबे भाभी के साथ, और वो कनाडा वाली महीने भर बाद आयीं तो घर बेच दिया अब का कहते हैं कोई बिल्डर लिया है, मल्टी स्टोरी बनाएगा। "
Wah har ghar ki ek hi kahani. Holi ki khushiya aur vahi jubani. Sabhi dewar bhabhi aur nanand sahlaj nandoi aur jija sang vahi holi khelne ke mud me. Sabhi gharo me vahi pakvan dahibada aur gunjiya. Amezingगली गली होली
लेकिन मेरी निगाह बगल की साइड में चल रही बातचीत पे चल रही थी, सिर्फ इस गली में नहीं हर जगह रास्ते में जगह, जगह बच्चे प्लास्टिक वाली पिचकारी लेकर रस्ते में आने जाने वालों पर पिच पिच कर रहे थे।
और ये हाल हर जगह होता है, घर में माँ होली का सामान, गुझिया, समोसे, दहीबड़े, बनाने में लगी रहती हैं तो बच्चे तंग न करें इसलिये उन्हें बाहर कर दिया जाता है।
साइड में दो लोग, सफ़ेद कुर्ते पाजामे में, शायद मस्जिद से नमाज पढ़ के आ रहे थे, और सफ़ेद कपडे देख कर तो रंग छोड़ने वालों को और जोश आ जाता है तो बच्चों ने उन पे भी,
एक जो थोड़े बड़े थे उस बच्चे को चिढ़ाया,
" अरे मियां, क्या पानी लेकर पिच्च पिच्च, अपनी अम्मी से कह दो थोड़ा रंग वंग भी दिलवा दें, खाली पानी में क्या मजा "
इशारा बच्चे के बहाने अंदर की ओर था और जवाब अंदर से सूद के साथ आया, गुझिया छनने की छनन मनन और चूड़ियों की तेज खनक के साथ
" राजू अपने चच्चू से कह दो दिलवा दें न रंग। का करेंगे सब पैसा बचा के, अब तो कोई बहिनियों नहीं बची है जिसके लिए जहेज का इंतजाम कर रहे हों "
अब बाहर से चच्चू की आवाज अंदर गयी,
" आदाब भाभी "
" तसलीम " के साथ अंदर की खिलखिलाती आवाज ने चिढ़ाया भी बुलाया भी
" सब काम बाहर बाहर से कर लोगे, या अंदर भी आओगे, गरम गरम गुजिया निकाल रही हूँ। "
" नहीं नहीं भाभी, आप रंग डाल देंगी " बाहर से घबड़ाया जवाब गया।
" देखो भाभी हूँ, मेरा हक़ है, वो अंदर आओगे तो पता चलेगा, देखो, डलवाने से डरने से कोई बचता थोड़े ही है। "
हंसी के साथ दावतनामा आया,
और मैं रंग से भीगते भीगे बचा, लेकिन थोड़ा फिर भी,
असल में निशाना गुड्डी ही थीं मैं नहीं। गुड्डी ने जो बोला था था उस मोहल्ले में पन्दरह बीस भाभियाँ, तो उन्ही में से एक, छत पर खड़ी, दूर से उन्होंने गुड्डी को आते देखा होगा और होली का मौसम, ननद सूखी सूखी चली जाये, मोहल्ले से,
लेकिन गुड्डी भी एक तेज, उसने भी देख लिया था तो वो छटक के दूसरी पटरी पे और मैं, बाल्टी के रंग के आलमोस्ट नीचे,
और होली का ये असर सिर्फ इस गली में नहीं,
अब तक हम लोगो ने दस पन्दरह गलियां पार कर ली थी और होली अभी चार पांच दिन दूर थी, लेकिन अभी से होली का असर पसरा पड़ा था।
प्लास्टिक की पिचकारियां लिए बच्चे, कहीं बाहर खड़े, कहीं छत पर से, कोई दिखा नहीं जिसके कपडे रंग से सराबोर न हों और कोई अगर मेरी तरह का ससुराली पकड़ में आ गया, ससुराल खुद की न हो, किसी की हो,
मोहल्ले और गाँव के रिश्ते की भी तो बस, अंदर जो खातिर होती है वो तो ही, बाहर निकलने पर भी सलहजें तैयार रहती हैं बाल्टीलेकर
और आठ दस ऐसी सीन पिछले बीस मिनट में देख चुका था मैं, मुझे नजीर की होली याद आ रही थी,
जब फ़ागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
लेकिन फिर गुड्डी की कमेंट्री चालु हो गयी बनारस की गलियों पे
सच में इतनी गलियां जगह जगह से निकल रही थीं, वो बोली ये दाएं वाली आगे जा के मुड़ जाती है, थोड़ा आगे जा के बंगाली टोला वाली गली भी इसमने और वहां से एक और मोड़ फिर सीधे घाट पे,
मुझे भी मालूम था जमाने से ढेर सारे बंगाली लोग और उनमे भी बंगाली विडोज यहाँ आके रहती हैं,
फिर एक संकरी सी गली थी, दो लोग साथ साथ नहीं निकल सकते थे , उसकी ओर दिखाते बोली,
मैं तुझसे बोल रही थी नहीं लक्सा वाला मॉल, बस इसी गली से मुश्किल से दस मिनट, लेकिन वहां नहीं चलेंगे अभी, बहुत महंगा है, हाँ तेरा माल आएगा न होली के बाद तो उसे तेरे साथ जरूर ले चलूंगी उस मॉल में, बढ़िया दाम लगेगा उस स्साली का वहां, बाकी तेरे भंडुआगिरी पे है, अपनी बहिनिया से कितना कमाते हो,
तब तक मुझे एक गली दिखी दूसरी ओर जो नयी सड़क के पास खुलती थी,
सामने नयी सड़क, प्राची सिनेमा जो कब का बंद हो चुका था बस उसी के बगल में, सड़क साफ़ दिख रही थी और गुड्डी ने मेरे बिन बोले कहाँ,
" नहीं अब हम लोग गोदौलिया ही चलेंगे, नहीं तो तुम कहोगे, वहां भी गलियों में सस्ते में अच्छा माल मिल जाता है और फिर तुम जो पीछे पोस्टर लगा के घूम रहे हो, और तेरे उस माल की पिक्स भी हैं मेरे पास,... तो तगड़ा डिस्काउंट पक्का