अन्दर कौन घुसे?
मेरा कहना था की मैं।
डी॰बी॰ का कहना था की पुलिस के कमान्डो।
मेरा आब्जेक्शन दो बातों से था।
पहला जूते, दूसरा सफारी। पुलिस वाले वर्दी पहने ना पहनें, ब्राउन कलर के जूते जरूर पहनते हैं और कोई थोड़ा स्मार्ट हुआ, स्पेशल फोर्स का हुआ तो स्पोर्टस शू। और सादी वर्दी वाले सफारी। दूर से ही पहचान सकते हैं और सबसे बढ़कर। बाडी स्ट्रक्चर और ऐटीट्युड। उनकी आँखें।
डी॰बी॰ का मानना था कि बो प्रोफेशनल हैं हथियार चला सकते हैं, और फिर बाद में कोई बात हुई तो?
मेरा जवाब था- “हथियार चलाने से ही तो बचना है। गोली चलने पे अगर कहीं किसी लड़की को लगी तो फिर इतने आयोग हैं, और सबसे बढ़कर न मैं चाहता था ना वो की ये हालत पैदा हों। दूसरी बात। अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो वो हमेशा कह सकता है की उसे नहीं मालूम कौन था? वो तो एस॰टी॰एफ॰ का इन्तजार कर रहा था…”
लेकिन फैसला गुड्डी ने किया। वो बोली-
“साली इनकी है, जाना इनको चाहिये और ये गुंजा को जानते हैं तो इन्हें देखकर वो चौंकेगी नहीं और उसे ये समझा सकते हैं…”
तब तक एक आदमी अन्दर आया और बोला- “बाबतपुर एयरपोर्ट, बनारस का एयरपोर्ट से फोन आया है की एस॰टी॰एफ॰ का प्लेन 25 मिनट में लैन्ड करने वाला है और बाकी सारी फ्लाइट्स को डिले करने के लिये बोला गया है। उनकी वेहिकिल्स सीधे रनवे पर पहुँचेंगी…”
डी॰बी॰ ने दिवाल घड़ी देखी, कम से कम 20 मिनट यहां पहुँचने में लगेंगें यानी सिर्फ 45 मिनट। हम लोगों का काम 40 मिनट में खतम हो जाना चाहिये। फिर उस इंतेजार कर रहे आदमी से कहा- “जो एल॰आई॰यू॰ के हेड है ना पान्डेजी। और एयरपोर्ट थाने के इन्चार्ज को बोलियेगा की उन्हें रिसीव करेंगे और सीधे सर्किट हाउस ले जायेंगे। वहां उनकी ब्रीफिंग करें…”
अब डी॰बी॰ एक बार फिर। पूरी टाइम लाइन चेन्ज हो गई। डी॰बी॰ ने बोला- “जीरो आवर इज 20 मिनटस फ्राम नाउ…”
मुझे 15 मिनट बाद घुसना था, 17 मिनट बाद प्लान ‘दो’ शुरू हो जायेगा 20वें मिनट तक मुझे होस्टेज तक पहुँच जाना है और अगर 30 मिनट तक मैंने कोई रिस्पान्स नहीं मिला तो सीढ़ी के रास्ते से मेजर समीर के लोग और। छत से खिड़की तोड़कर पुलिस के कमान्डो।
डी॰बी॰ ने पूछा- “तुम्हें कोई हेल्प सामान तो नहीं चाहिये?”
मैंने बोला- “नहीं बस थोड़ा मेक-अप, पेंट…”
गुड्डी बोली- “वो मैं कर दूंगी…”
डी॰बी॰ बोले- “कैमोफ्लाज पेंट है हमारे पास। भिजवाऊँ?”
गुड्डी बोली- “अरे मैं 5 मिनट में लड़के को लड़की बना दूं। ये क्या चीज है? आप जाइये। टाइम बहुत कम है…”
डी॰बी॰ बगल के हाल में चले गये और वहां पुलिसवाले, सिटी मजिस्ट्रेट, मेजर समीर के तेजी से बोलने की आवाजें आ रही थीं।
गुड्डी ने अपने पर्स, उर्फ जादू के पिटारे से कालिख की डिबिया जो बची खुची थी, दूबे भाभी ने उसे पकड़ा दी थी, और जो हम लोगों ने सेठजी के यहां से लिया था, निकाली और हम दोनों ने मिलकर। 4 मिनट गुजर गये थे। 11 मिनट बाकी थे।
मैंने पूछा- “तुम्हारे पास कोई चूड़ी है क्या?”
“पहनने का मन है क्या?” गुड्डी ने मुश्कुराकर पूछा और अपने बैग से हरी लाल चूड़ियां। जो उसने और रीत ने मिलकर मुझे पहनायी थी।
सब मैंने ऊपर के पाकेट में रख ली। मैंने फिर मांगा- “चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा…”
“तुमको ना लड़कियों का मेक-अप लगता है बहुत पसन्द आने लगा। वैसे एकदम ए-वन माल लग रहे थे जब मैंने और रीत ने सुबह तुम्हारा मेक अप किया था। चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिलकर वहां इसी ड्रेस में रखेंगें…” ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकालकर दे दिया।
7 मिनट गुजर चुके थे, सिर्फ 8 मिनट बाकी थे। निकलूं किधर से? बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था, इस मेक-अप में। सारा ऐड़वान्टेज खतम हो जाता। मैंने इधर-उधर देखा तो कमरे की खिड़की में छड़ थी, मुश्किल था। अटैच्ड बाथरूम। मैं आगे-आगे गुड्डी पीछे-पीछे। खिड़की में तिरछे शीशे लगे थे। मैंने एक-एक करके निकालने शुरू किये और गुड्डी ने एक-एक को सम्हाल कर रखना। जरा सी आवाज गड़बड़ कर सकती थी। 6-7 शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गई।
9 मिनट। सिर्फ 6 मिनट बाकी। बाहर आवाजें कुछ कम हो गई थीं, लगता है उन लोगों ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था। गुड्डी ने खिड़की से देखकर इशारा किया। रास्ता साफ था। मैं तिरछे होकर बाथरूम की खिड़की से बाहर निकल आया।
वो दरवाजा 350 मीटर दूर था।
यानी ढाई मिनट। वो तो प्लान मैंने अच्छी तरह देख लिया था, वरना दरवाजा कहीं नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ पिक्चर के पोस्टर।
तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा, उसको मैंने बोला- “तुम यहीं खड़े रहना और बस ये देखना कि दरवाजा खुला रहे…”
पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी। ड्राइवर ने उन्हें हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये। 13 मिनट, सिर्फ दो मिनट बचे थे।
मैं एकदम दीवाल से सटकर खड़ा था, कैसे खुलेगा ये दरवाजा? कुछ पकड़ने को नहीं मिल रहा था। एक पोस्टर चिपका था। सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली, कामास्त्री।
हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती और वहीं कुछ उभरा था। हैंडल के ऊपर ही पोस्टर चिपका दिया था। दो बार आगे, तीन बार पीछे जैसा गुड्डी ने समझाया था।
सिमसिम।
दरवाजा खुल गया। वो भी पूरा नहीं थोड़ा सा।