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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३४ - मॉल में माल- महक पृष्ठ ३९८

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Sanju@

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थोड़ी देर में ही ब्लेक बेरी पे रिंग आई।


डी॰बी॰- “सुनो। सोनारपुरा में कोई चुम्मन है। सुना है उसके बारे में? पिछले एक हफ्ते का उसका अता पता मालूम करो और उसकी माँ होगी। उसको मेरे पास ले आना। हाँ बुरके में और सीधे मेरे पास, आधे घंटे के अन्दर…”

फोन रखकर डी॰बी॰ बोले-

“इट मेक्स सेन्स बट डज नाट आन्सर आल द क्वेस्चन्स। ऐनी वे। इट साल्व्स प्रजेंट प्राब्लम। इट सीम्स…”



पहली बार डी॰बी॰ ने राहत कि साँस ली और दोनों हाथ पीछे करके अंगड़ायी ली- “आपने बहुत हेल्प की…” गुड्डी की ओर देखकर कहा, और फिर मुझे देखकर मुस्करा के बोले.
“बस यही बदकिस्मती है की आप इस जैसे घोन्चू के साथ। चलिये आप कि बदकिस्मती लेकिन इसकी किश्मत…”

गुड्डी मुश्कुरायी और बोली- “बात तो आपकी सही है। लेकिन किश्मत के आगे कुछ चलता है? वैसे आपका?”



मैं और डी॰बी॰ दोनों मुश्कुराये।

डी॰बी॰- “मेरी लाइन बहुत पहले ही बन्द हो चुकी है। बचपन में मेरी एक ममेरी बहन थी। वान्या। मुझसे बहुत छोटी और मैं उसके कान खींचा करता था और उसने पूरा बदला ले लिया अब। वो जिन्दगी भर मेरे कान खींचेगी…”


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गुड्डी ने बहुत अर्थपूर्ण ढंग से देखते हुये मुझे हल्के से आँख मार दी, और हल्के से बोली- “सीखो। सीखो…”


डी॰बी॰ फोन पर दूर खड़े होकर बात कर रहे थे। आकर वो फिर हम लोगों के पास बैठ गये और बोले-
“अच्छा ये चुम्मन डरता है किसी चीज से? और क्या तुम सोचती हो। कौन होगा उसके साथ?”



गुड्डी ने कुछ देर सोचा, और लगभग उछलकर बोली-

“चूहा। मेरे ख्याल से वो चूहे से डरता है, बल्की पक्का डरता है।

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जब, जिस दिन उसने प्रीत पे तेजाब फेंका था। मैंने बताया था ना कि मैं प्रीत के पीछे-पीछे ही थी, और मैंने उसक हाथ पकड़कर पीछे खींचा था। तो हम लोग ना जब किसी को डराना होता था तो बड़ी जोर से बोलते थे- चूहा।

हमारे क्लास में थे भी बहुत, मोटे-मोटे। बस वो डरकर बिदक गया। थोड़ा सा तेजाब उसके अपने हाथ पे भी गिर गया था। प्रीत को इसलिये भी कम लगा और उसके साथ, मेर पूरा शक है। रजऊ ही होगा। वही उसका सबसे बड़ा चमचा था और उसका नाम लेकर लड़कियों को डराता था, और खिड़की पे सबसे ज्यादा वही खड़ा रहता था…”


चुम्मन और रजऊ, चुम्मन मुख्य भूंमिका में और रजऊ उसका चमचा।

मुझे दिन का सीन याद आया। गुंजा के उरोजों पे रंगीन गुब्बारे का सटीक निशाना।

मैंने गुड्डी को देख के बोला और फिर मेरी चमकी और हंस के बोला

" अरे वही, जिसने सुबह गुंजा को होली का गुब्बारा फेंक के मारा था "

मुझे गुंजा की बात याद आयी, जब गुंजा स्कूल से लौट के आयी तो, स्कूल यूनिफार्म करीब करीब बची, सिवाय,… सही समझा


सबसे जबर्दस्त लग रहा था उसके सफेद स्कूल युनिफोर्म वाले ब्लाउज़ पे ठीक उसके उरोज पे, उभरती हुई चूची पे किसी ने लगता है निशाना लगाकर रंग भरा गुब्बारा फेंका था। फच्चाक।

और एकदम सही लगा था,… साइड से। लाल गुलाबी रंग। और चारों ओर फैले छींटे। सफ़ेद ब्लाउज यूनिफार्म का एकदम गीला, जुबना से चपका, उभार न सिर्फ साफ़ साफ़ झलक रहे थे बल्कि उस नौवीं वाली के उभार का कटाव, कड़ापन, साइज सब खुल के, मैं उसे दुआ दे रहा था जिसने इतना तक के गुब्बारा मारा था

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गुड्डी की निगाह भी वहीं थी।

“ये किसने किया?” हँसकर उसने पूछा। आखीरकार, वो भी तो उसी स्कूल की थी।

“और कौन करेगा?” गुंजा बोली।

“रजउ…” गुड्डी बोली और वो दोनों साथ-साथ हँसने लगी।

पता ये चला की इनके स्कूल के सामने एक रोड साइड लोफर है। हर लड़की को देखकर बस ये पूछता है- “का हो रज्जउ। देबू की ना। देबू देबू की चलबू थाना में…” और लड़कियों ने उसका नाम रजउ रख दिया है। छोटा मोटा गुंडा भी है। इसलिए कोई उसके मुँह नहीं लगता।

पक्का वही होगा और मैंने डीबी को बोला
" वही होगा, सुबह भी स्कूल के आसपास थी था, क्या पता उस रजऊ को लड़कियों पे नजर रखने के लिए चुम्मन ने बोला हो

तब तक ओलिव कलर में कुछ मिलेट्री के लोग आये। डी॰बी॰ ने खड़े होकर उनसे हाथ मिलाया और हम लोगों का परिचय कराया।



मिलेट्री मैन- “हम लोगों ने पूरी रेकी कर ली है। थर्मल इमेजिन्ग डिवाइसेज से भी। एक कोई नीचे के कमरे में है और एक ऊपर के कमरे में।

डी॰बी॰ बोले- “थैन्क्स सो मच मेजर समीर। इट विल बि ग्रेट हेल्प और मेरे ख्याल से। वी विल नाट रिक्वायर बिग गन्स। लेकिन आप तैयार रहिये। हम नहीं जानते सिचुयेशन क्या टर्न ले?” और खड़े हो गये।



मेजर को संकेत मिल गया और वो हाथ मिलाकर चले गये।

डी॰बी॰ अब हम लोगों के साथ खुलकर बात करने के मूड में थे- “चलो। ये बात अब साफ हो गई की ये नीचे वाला कमरा जिसे तुम प्रिन्सिपल का रूम कह रही हो चुम्मन यहां है…”

फिर अचानक उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने ए॰एम॰, अरिमर्दन सिंह, सी॰ओ॰ कोतवाली को बुलाया। और बोले-

“ये मीडिया वाले साले। इनको बोल दो कोई भी लाइव टेलीकास्ट के चक्कर में ना पड़े अगले तीन घन्टों तक। वैन मोबाइल पे अगर कोई फोटो लेते दिखे, उसे अन्दर कर दो। ये भी साले फीड करते हैं। और 500 मीटर के बाहर…”

अरिमर्दन- “मैं सबको हैंडल कर लूंगा, पर सर वो इन्डिया टीवी…”



डी॰बी॰- “उसकी तो तुम…” अचानक डी॰बी॰ की निगाह बोलते-बोलते गुड्डी पे पड़ी और उसको देखकर बोले- “ऊप्स सारी तुम्हारे सामने…”

सी॰ओ॰ चले गये।



डी॰बी॰ ने फिर गुड्डी से माफी मांगने कि कोशिश की तो मैंने रोक दिया-

“आप इसको नहीं जानते। ये अगर मूड में आ जाय ना। तो ये सब जो आप बोल रहे थे ना कुछ नहीं है और अगर आप इनकी दूबे भाभी से मिलेंगे तो फिर तो जो आप फ्रेशर्स को सिखाते थे ना वो शरीफों की जुबान हो जाय…” मैंने जोड़ा।


डी॰बी॰ बोले- “मैं फिर जरूर मिलूंगा। बनारस में एक-दो भाभियां तो होनी ही चाहिये। ओके…”


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फिर बात पर लौट आये- “वो चुम्मन। वो नीचे प्रिन्सिपल के कमरे में इसलिये है कि वहां टीवी होगा…”



गुड्डी ने तुरन्त हामी भरी।

डी॰बी॰ बोले- “वो वहां से लाइव टेलीकास्ट देख रहा होगा। दूसरे वहा से मेन गेट और घुसने के सारे रास्ते दिखते हैं, यहां तक की वो खिड़की भी जिससे वो सब इंटर हुये थे। तो अगर उसके पास कोई रिमोट होगा तो वहीं से वो एक्स्प्लोड कर सकता है। लेकिन लड़कियों को वो अकेले नहीं छोड़ सकता तो ये जो थर्मल इमेजिन्ग दिखा रही है। गुड्डी आपने एकदम सही कहा था। लड़कियां इसी कमरे में होस्टेज हैं। लेकिन घुसेंगे कैसे? सामने से वहां वो बन्दा है और अगर उसके पास रिमोट हुआ। खिड़की। लेकिन लड़कियां एकदम सटकर हैं, ऐन्ड माई ब्रीफ इज जीरो कैजुअल्टी…”


तब तक एक फटीचर छाप जीन्स और कुर्ते में एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा। बाहर कोई उसको अन्दर आने से मना कर रहा था पर डी॰बी॰ ने आवाज देकर उसे अन्दर बुला लिया।

वो बोला- “सर जी आपने एकदम सही कहा था। कुछ दिन में तो आपको हम लोगों की जरूरत नहीं रहेगी…”



डी॰बी॰ ने पूछा- “सीधे मुद्दे पे आओ। ये बोलो। उसकी माँ मिली कि नहीं?”
चन्दर

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“अरे आप चन्दर को हुकुम दें और वो फेल हो जाय ये हो नहीं सकता। लाये हैं बाहर बैठी हैं। लेकिन मैंने सोचा कि मैं खुद साहब को पहले बता दूं ना…” उस आदमी ने बोला।



डी॰बी॰ ने कहा- “ठीक है बोलो…”

चंदर ने कहा- “वो तेजाब वाले वारदात के बाद, करीब छ महीने से वो गायब था। लेकिन अभी 10-12 दिन से नजर आ रहा है। अब सब लोग कहते हैं की एकदम बदल गया है। एकदम शान्त। बोलबै नहीं करता। घर पे भी कम नजर आता है और उसकी दो बातें जबरदस्त हैं। एक तो चाकू का निशाना, अन्धेरे में भी नहीं चूक सकता, और दूसरा जो लौन्डे लिहाड़ी हैं ना, वो सब बहुत कदर करते हैं। उसकी बात मानते हैं…”

डी॰बी॰ ने कहा- “ठीक है। उसकी माँ को बुला लाओ…”

जैसे ही बुरके में वो औरत आई, डी॰बी॰ उठकर खड़े हो गये और बोले- “अम्मा बैठिये…”

वो बैठ गईं और नकाब उठा दिया। एक मिडिल ऐजेड, 45-50 साल की गोरी थोडे स्थूल बदन की-
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“अरे भैय्या उ चुम्मनवा काव गड़बड़ किहिस। आप लोग काहे ओके पकड़े हैं?” उन्होंने बोला।


डी॰बी॰ ने बड़े शान्त भाव से प्यार से उनसे कहा-

“अरे नाहिं आप निशाखातिर रहिये। कोई नाहि पकड़े है उसको। कुछ नहीं किये है वो। आप पानी पिजिये…” और अपने हाथ से उन्होंने पानी बढ़ाया।

उन्होंने पानी का एक घूंट पिया और पूछा- “त बात का है? हम कसम खात हैं उ अब बहुत सुधर गया है…”

डीबी ने मोबाइल रिकार्डिन्ग को आन किया- “जरा ये आवजिया सुनियेगा…”

वो ध्यान से सुनती रही चुपचाप, फिर बोली- “अवाजिया त ओहि का है बाकी। …”


“बाकी का अम्मा?” डी॰बी॰ ने बड़े प्यार से उनसे पूछा।

“हमार मतलब। बाकी उ कह का रहा है, ये हमारे समझ में नहीं आ रहा है…”

“कौनो बात नहीं। त इ बतायीं की…”



और डी॰बी॰ की प्यार भरी बात ने 5 मिनट में सब कुछ साफ करा दिया।



चुम्मन की माँ ने बताया-


“उस तेजाब वाली घटना के बाद वो बम्बई चला गया था। उसके कोई फूफा रहते थे, उसके यहाँ… कुछ दिन टैक्सी वैक्सी का काम किया, लेकिन जमा नहीं, लाइसेंस नहीं मिला। फिर वो भिवंडी में। वहीं उसकी कुछ लोगों से उसकी मुलाकात हुई। वो एकदम मजहबी हो गया और अब जब आया है तो अब अपने पुराने दोस्तों से बहुत कम,.... खाली एक-दो से और एक कोई साहब कुछ खास काम दिये हैं, पता नही। बस यही कहता है की अम्मी बहुत बिजी हौं और कुछ जुगाड़ बन गया तो सऊदिया जाने का प्रोग्राम भी बन सकता है…”
आगे क्या करना है


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मेरी आँखों के सामने गुंजा की सूरत घूम रही थी, कहाँ तो उससे वादा कर के आया था की होली के बाद लौट के आऊंगा, रंगपंचमी के पहले लौट के आऊंगा और सबसे पहले होली उसी के साथ खेलूंगा, और कहाँ अब उसके जान बचने की दुआ मांग रहा था, बार बार मन घबड़ा रहा था

चन्दर को बुलाकर डी॰बी॰ ने हिदायत दी- “इन महिला को आराम से एक कमरे में रखे…” और हम लोग मिलकर ऐक्शन प्लान बनाने में जुट गये।

आगे क्या करना है अब इसका प्लान बनाना था

बहुत चीजें साफ़ हो गयी थीं, गुड्डी की बात से और उससे बढ़ कर चुम्मन की माँ के बयान से।

डीबी ने ये सब बात सिर्फ हम तीनो तक सीमित रखी थी, मैं गुड्डी और डीबी,

बाहर तो वही, भय आतंक, एस टी ऍफ़ के आने की तैयारी, मिलेट्री के लोग, पुलिस की स्पेशल कमांडो टीम, अलग अलग डिपार्टमेंट के लोग अलग सिचुएशन सम्हाल रहे थे। और हर थाने से खबरी, लोकल इंटेलिजेंस वाले टेंशन बढ़ने की सूचना दे रहे थे, मिडिया वाले अलग आग में हाथ सेंक रहे थे, टी आर पी बढ़ाने के चक्कर में थे,


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और डीबी कभी हम लोगों के साथ, तो कभी बीच बीच में सिद्दीकी, तो कभी लोकल इंटेलिजेंस यूनिट वाला, लगातार बज रहे फोन को भी हैंडल कर रहे थे, लेकिन कभी हम लोगों के पास से हटकर, कमरे के दूसरे ओर तो कभी बगल के कमरे में जाकर,

और मैं और गुड्डी सामने पड़े गुड्डी के बनाये नक़्शे को देख रहे थे, और अब साथ में मिलेट्री के लोगो ने जो थर्मल इमैजिंग की बहुत क्लियर दोनों मंजिलो की पिक्चर्स दी थीं उसे भी गुड्डी के बनाये नक़्शे से मैं जोड़ कर देख रहा था, सामने स्क्रीन पर अलग अलग एंगल से स्कूल की बिल्डिंग की तस्वीर आ रही थी, कैमरे का एंगल भी चेंज कर के देखा जा सकता था।

इन तीनो को बार बार देख के मन में कुछ बातें मेरे एकदम साफ़ हो गयीं थीं



१ स्कूल बिल्डिंग में गुंजा और उसके साथ की दो लड़कियों के अलावा सिर्फ दो और लोग हैं, वही जिन्होंने उन्हें बंधक बनाया है।


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२ उनमे से एक, चुम्मन नीचे प्रिंसिपल के कमरे में टीवी पर चल रही ख़बरों से बाहर की हाल चाल ले रहा होगा और वहां लैंडलाइन फोन भी है , और अगर जरूरत पड़ी तो उससे बात भी कर सकता है। उस कमरे की खिड़की भी थोड़ी खुली है, जहाँ से वो बाहर का नजारा देख रहा है।

३ दूसरा ऊपर के कमरे में लड़कियों के आस पास ही है, थर्मल इमेजिंग में करीब पन्दरह बीस फुट दूर नजर आ रहा है, बम्ब का रिमोट उसी के पास होगा। और चुम्मन ने उसे बोला होगा की लड़कियों के ऊपर नजर रखने को, लेकिन बम्ब से डर कर वह कमरे के दूसरी ओर या दरवाजे के पास खड़ा है।


४ तीनो लड़कियां एक साथ दरवाजे के पास, जो खिड़की गुड्डी ने बतायी थी, बस वही चिपक के बैठी हैं और बम्ब वही हैं।


५, गुड्डी के प्लान से कमरे में घुसने का रास्ता निकलने का रास्ता सब साफ़ हो गया था और कैमरे की फीड से नीचे का वो दरवाजा भी हल्का हलका दिख रहा था।



तो दोनों होस्टेज बनाने वाले चुम्मन और उसका चमचा थे और गुंजा के साथ बाकी दो लड़कियां कौन थीं?



सुबह की गुंजा के साथ जबरदस्त होली बार बार मुझे याद आ रही थी, छोटी सी प्यारी सी लड़की, इतनी खुश और मस्त और अब बस एक धागे से उसकी और उसकी दोनों सहेलियों की जान, बार बार मेरा दिल भर आ रहा था, लेकिन मेरे सवाल का जवाब भी उसी से मिल गया। बाकी दो लड़कियां, गुड्डी ने महक, की बहन का किस्सा और उसका चुम्मन का चक्कर बताया था, तो पक्का एक लड़की महक ही होगी और वही चुम्मन की असली टारगेट होगी, और वो दोनों हैं तो साथ में शाजिया भी होगी।



दोपहर की गुंजा के संग होली में इसी स्कूल के तो कितने किस्से गुंजा ने बताये थे और अपनी सहेलियों के भी

" जीजू, चलिए जीजा के साथ तो, ....और साली तो साली होती, छोटी बड़ी नहीं होती,... लेकिन उसके महीने भर के अंदर ही उसके एक फुफेरे भाई थे उससे पूरे सात साल बड़े, बस उसपे सुनीता ने लाइन मारनी शुरू कर दी और उनके साथ भी,... और फिर आके बताती, ...अभी तो चार पांच यार हैं उसके, कोई हफ्ता नहीं जाता जब कुटवाती नहीं और फिर आके हम लोगो को ललचाती है, ख़ास तौर से मुझे महक और शाजिया को, हम तीनो का क्लास में फेविकोल का जोड़ है.,...


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और अब खाली हम छह सात ही बची हैं , जिनकी चिड़िया नहीं उडी, खैर मेरी पे तो मेरे जीजू का नाम लिखा है "

"मैंने शाजिया और महक ने तय कर लिया था कुछ और लड़कियों से मिल के,.... आज होली में इस स्साली सुनीता की बुलबुल को हवा खिलाएंगे, लेकिन महक जानती थी की वो स्साली जरूर भागने की कोशिश करेगी, पीछे वाली सीढ़ी से, बस मैं और शाजिया तो नौ बी वालो की माँ बहन कर रहे थे,

लेकिन महक की नजर बाज ऐसी सीधे सुनीता पे, और जैसे सुनीता ने क्लास के पीछे वाले दरवाजे से निकलने की कोशिश की वो पंजाबन उड़ के क्या झपट्टा मारा, और फिर दो तीन लड़कियां और, और इधर हम लोग भी जीत गए थे, फिर तो मैं और शाजिया भी, "



मैं और गुड्डी दोनों ध्यान लगा के सुन रहे थे, गुंजा मुस्कराते हुए मेरी आँख में आँख डाल के बोली,



" जीजू, शाजिया, कभी मिलवाउंगी आपसे, ....पक्की कमीनी, लेकिन वो और महक मेरी पक्की दोस्त दर्जा ४ से,...

बस होली में कोई शाजिया की पकड़ में आ जाए,... महक और बाकी लड़कियों ने पीछे से हाथ पकड़ रखा था सुनीता का और शाजिया ने आराम से स्कर्ट उठा के धीरे धीरे चड्ढी खोली सुनीता की, दो टुकड़े किये और अपने बैग में रख ली, और जीजू आप मानेंगे नहीं, शाजिया ने उसकी बिल फैलाई तो भरभरा के सफेदा, और चारो ओर भी, मतलब स्कूल के रस्ते में किसी से चुदवा के आ रही थीं।

कम से कम पांच कोट रंग का और शाजिया ने कस के दो ऊँगली एक साथ उस की बिल में पेल दी, ऊपर वाला हिस्सा मेरे हिस्से में, ...चड्ढी शाजिया ने लूटी और ब्रा मैंने,... फिर मैंने भी खूब कस के रंग पेण्ट सब लगाया।

उस के साथ तो जो होली शुरू हुयी, आज पूरे दो घंटे थे, सीढ़ी वाले रास्ते से कोई जा नहीं सकता था महक उधर ही थी और जब तक फाइनल छुट्टी का घंटा नहीं बजता बाहर का गेट खुलता नहीं। इसलिए खूब जम के अबकी होली हुयी, ब्रा चड्ढी तो सबकी लूटी भी फटी भी, मैंने खुद तीन लूटीं, "



"लेकिन ये बताओ," मैंने उसके उभारो पर बने उँगलियों के निशानों की ओर इशारा किया ये


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वो जोर से खिलखिलाई,

" मन कर रहा है आपका शाजिया से मिलने का, बताया तो शाजिया के हाथ के निशान हैं लेकिन पहले मैंने ही, मैं सफ़ेद वार्निश वाली ३-४ डिब्बी ले गयी थी बस वही उसकी दोनों चूँचियों पे, एकदम इसी तरह, उसके भी और महक के भी, और शाजिया के तो पिछवाड़े भी, वहां तो छुड़ाने में भी उसकी हालत खराब हो जायेगी। "


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तो दो चार घंटे पहले ये तीन लड़कियां इतनी मस्ती कर रही थीं लेकिन अब, ....क्या हालत हो रही होगी उन बेचारियों की, सोच सोच के क्या होनेवाला है।

ये सोच के बस रोना नहीं आ रहा था, लेकिन मैंने तय कर लिया, कुछ भी हो और बहुत जल्द, क्योंकि वो कोई प्रोफेशनल तो हैं नहीं कब उन्हें डर लगे की वो पकडे जाएंगे और बम्ब का स्विच दबा दें,....



एक बार फिर मैंने नक़्शे को, थर्मल इमेजेस को देखा और धीरे धीरे एक एक दरवाजे, खिड़की रस्ते को मन में बैठा लिया। अब आँखे बंद कर के भी मैं जा सकता था।

मैंने डी॰बी॰ से पूछा- “अरे जब पता चल गया है कि ऐसा कोई खास नहीं हैं तो आप बता क्यों नहीं देते? फालतू का टेन्शन…”

डी॰बी॰ बोले- “मुझे बेवकूफ समझ रखा है। पहली बात इस बात की क्या गारन्टी की वो टेररिस्ट नहीं है? दूसरी इतना बढ़िया मौका मेरे लिये। इसी बहाने आर॰ऐ॰एफ॰, सी॰आर॰पी॰एफ॰ ये सब मिल गईं अब होली पीसफुली गुजर जायेगी। वरना डंडा छाप होमगार्ड के सहारे। इतना ज्यादा अफवाह है होली में दंगे की। और तीसरी बात- बेसिक सिचुएशन तो नहीं बदली है ना। वो तीन लड़कियां तो अभी तक होस्टेज हैं…”



बात तो उनकी सही थी।

डीबी ने जो बात नहीं बोली थी वो भी मैंने सुन ली,

क्या पता कोई टेरर लिंक हो ही। चुम्मन बंबई से आया है, अपनी अम्मी से कही विदेश जाने की बात कर रहा है, फिर उसकी अम्मी ने जो ये बात बोली की बंबई से लौटने के बाद एकदम बदल गया है। कुछ भी हो सकता है और सबसे बड़ी बात ये बम्ब, कहाँ से उसके हाथ लगा, फोड़ के फेंकने वाला लोकल नहीं था, तो कैसे उस एंगल को रूल आउट कर सकते हैं



और वो बात जो डीबी को ज्यादा तंग कर रही थी, नैरेटिव, पोलिटिकल लीडरशिप का एक पार्ट टेरर एंगल ही चाहता था तभी तो पोलिटिकल माइलेज मिलेगा, मीडया की भी टी आर पी मिलेगी और पुलिसवालों को मैडल मिलेगा, पकड़ लिया पकड़ लिया और इसलिए बोला गया है एस टी ऍफ़ का इंतजार करें मिडिया की आँखों के सामने आपरेशन, लड़कियां इन्वाल्व हैं, होली का मौका,

उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता की आपरेशन में लड़कियों की जान जा सकती है

डर से वो दोनों बॉम्ब एक्सप्लोड कर सकते हैं

और मिडिया वालो की हेडलाइन इम्प्रूव हो जायेगी

पर इसलिए ही डीबी और हम दोनों चाहते हैं की लड़कियां आपरेशन के पहले बाहर निकल जाए क्योंकि एस टी ऍफ़ के आने के बाद बातें उन के कंट्रोल के बाहर हो जायेगी।

और एक बात और थी, शहर में टेंशन, मेरे खड़े कानो ने सुन लिया था और डीबी के चेहरे का टेंशन देख लिया था। चुम्मन की अम्मी जो अभी बुर्के में आयी थी, कहीं किसी की नजर में पड़ गयी, तो एक नया एंगल


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लेकिन गुड्डी ज्यादा फोकस्ड थी, वो श्योर थी अब बिना रुके लड़कियों को छुड़ाने का काम होना चाहिए

हम दोनों ने मिलकर प्लान बनाना शुरू किया, लेकिन शुरू में ही झगड़ा हो गया और सुलझाया गुड्डी ने। उसकी बात टालने कि हिम्मत डी॰बी॰ में भी नहीं थी। झगड़ा इस बात पे था कि पीछे वाली सीढ़ी से अन्दर कौन घुसे?
अन्दर कौन घुसे?

मेरा कहना था की मैं।

डी॰बी॰ का कहना था की पुलिस के कमान्डो।



मेरा आब्जेक्शन दो बातों से था।

पहला जूते, दूसरा सफारी। पुलिस वाले वर्दी पहने ना पहनें, ब्राउन कलर के जूते जरूर पहनते हैं और कोई थोड़ा स्मार्ट हुआ, स्पेशल फोर्स का हुआ तो स्पोर्टस शू। और सादी वर्दी वाले सफारी। दूर से ही पहचान सकते हैं और सबसे बढ़कर। बाडी स्ट्रक्चर और ऐटीट्युड। उनकी आँखें।

डी॰बी॰ का मानना था कि बो प्रोफेशनल हैं हथियार चला सकते हैं, और फिर बाद में कोई बात हुई तो?



मेरा जवाब था- “हथियार चलाने से ही तो बचना है। गोली चलने पे अगर कहीं किसी लड़की को लगी तो फिर इतने आयोग हैं, और सबसे बढ़कर न मैं चाहता था ना वो की ये हालत पैदा हों। दूसरी बात। अगर कुछ गड़बड़ हुआ तो वो हमेशा कह सकता है की उसे नहीं मालूम कौन था? वो तो एस॰टी॰एफ॰ का इन्तजार कर रहा था…”



लेकिन फैसला गुड्डी ने किया। वो बोली-

“साली इनकी है, जाना इनको चाहिये और ये गुंजा को जानते हैं तो इन्हें देखकर वो चौंकेगी नहीं और उसे ये समझा सकते हैं…”



तब तक एक आदमी अन्दर आया और बोला- “बाबतपुर एयरपोर्ट, बनारस का एयरपोर्ट से फोन आया है की एस॰टी॰एफ॰ का प्लेन 25 मिनट में लैन्ड करने वाला है और बाकी सारी फ्लाइट्स को डिले करने के लिये बोला गया है। उनकी वेहिकिल्स सीधे रनवे पर पहुँचेंगी…”



डी॰बी॰ ने दिवाल घड़ी देखी, कम से कम 20 मिनट यहां पहुँचने में लगेंगें यानी सिर्फ 45 मिनट। हम लोगों का काम 40 मिनट में खतम हो जाना चाहिये। फिर उस इंतेजार कर रहे आदमी से कहा- “जो एल॰आई॰यू॰ के हेड है ना पान्डेजी। और एयरपोर्ट थाने के इन्चार्ज को बोलियेगा की उन्हें रिसीव करेंगे और सीधे सर्किट हाउस ले जायेंगे। वहां उनकी ब्रीफिंग करें…”



अब डी॰बी॰ एक बार फिर। पूरी टाइम लाइन चेन्ज हो गई। डी॰बी॰ ने बोला- “जीरो आवर इज 20 मिनटस फ्राम नाउ…”



मुझे 15 मिनट बाद घुसना था, 17 मिनट बाद प्लान ‘दो’ शुरू हो जायेगा 20वें मिनट तक मुझे होस्टेज तक पहुँच जाना है और अगर 30 मिनट तक मैंने कोई रिस्पान्स नहीं मिला तो सीढ़ी के रास्ते से मेजर समीर के लोग और। छत से खिड़की तोड़कर पुलिस के कमान्डो।



डी॰बी॰ ने पूछा- “तुम्हें कोई हेल्प सामान तो नहीं चाहिये?”



मैंने बोला- “नहीं बस थोड़ा मेक-अप, पेंट…”



गुड्डी बोली- “वो मैं कर दूंगी…”



डी॰बी॰ बोले- “कैमोफ्लाज पेंट है हमारे पास। भिजवाऊँ?”



गुड्डी बोली- “अरे मैं 5 मिनट में लड़के को लड़की बना दूं। ये क्या चीज है? आप जाइये। टाइम बहुत कम है…”



डी॰बी॰ बगल के हाल में चले गये और वहां पुलिसवाले, सिटी मजिस्ट्रेट, मेजर समीर के तेजी से बोलने की आवाजें आ रही थीं।



गुड्डी ने अपने पर्स, उर्फ जादू के पिटारे से कालिख की डिबिया जो बची खुची थी, दूबे भाभी ने उसे पकड़ा दी थी, और जो हम लोगों ने सेठजी के यहां से लिया था, निकाली और हम दोनों ने मिलकर। 4 मिनट गुजर गये थे। 11 मिनट बाकी थे।



मैंने पूछा- “तुम्हारे पास कोई चूड़ी है क्या?”



“पहनने का मन है क्या?” गुड्डी ने मुश्कुराकर पूछा और अपने बैग से हरी लाल चूड़ियां। जो उसने और रीत ने मिलकर मुझे पहनायी थी।



सब मैंने ऊपर के पाकेट में रख ली। मैंने फिर मांगा- “चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा…”



“तुमको ना लड़कियों का मेक-अप लगता है बहुत पसन्द आने लगा। वैसे एकदम ए-वन माल लग रहे थे जब मैंने और रीत ने सुबह तुम्हारा मेक अप किया था। चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिलकर वहां इसी ड्रेस में रखेंगें…” ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकालकर दे दिया।



7 मिनट गुजर चुके थे, सिर्फ 8 मिनट बाकी थे। निकलूं किधर से? बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था, इस मेक-अप में। सारा ऐड़वान्टेज खतम हो जाता। मैंने इधर-उधर देखा तो कमरे की खिड़की में छड़ थी, मुश्किल था। अटैच्ड बाथरूम। मैं आगे-आगे गुड्डी पीछे-पीछे। खिड़की में तिरछे शीशे लगे थे। मैंने एक-एक करके निकालने शुरू किये और गुड्डी ने एक-एक को सम्हाल कर रखना। जरा सी आवाज गड़बड़ कर सकती थी। 6-7 शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गई।



9 मिनट। सिर्फ 6 मिनट बाकी। बाहर आवाजें कुछ कम हो गई थीं, लगता है उन लोगों ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था। गुड्डी ने खिड़की से देखकर इशारा किया। रास्ता साफ था। मैं तिरछे होकर बाथरूम की खिड़की से बाहर निकल आया।


वो दरवाजा 350 मीटर दूर था।

यानी ढाई मिनट। वो तो प्लान मैंने अच्छी तरह देख लिया था, वरना दरवाजा कहीं नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ पिक्चर के पोस्टर।

तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा, उसको मैंने बोला- “तुम यहीं खड़े रहना और बस ये देखना कि दरवाजा खुला रहे…”



पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी। ड्राइवर ने उन्हें हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये। 13 मिनट, सिर्फ दो मिनट बचे थे।

मैं एकदम दीवाल से सटकर खड़ा था, कैसे खुलेगा ये दरवाजा? कुछ पकड़ने को नहीं मिल रहा था। एक पोस्टर चिपका था। सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली, कामास्त्री।


हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती और वहीं कुछ उभरा था। हैंडल के ऊपर ही पोस्टर चिपका दिया था। दो बार आगे, तीन बार पीछे जैसा गुड्डी ने समझाया था।

सिमसिम।

दरवाजा खुल गया। वो भी पूरा नहीं थोड़ा सा।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है गुड्डी और चुम्मन की मां ने आवाज को पहचान लिया है अब ये कन्फर्म हो गया है कि वह चुम्मन ही है लेकिन उसकी मां ने जो बताया है उससे लगता है कि चुम्मन भिवंडी में किसी गैंग से मिला जिसने शायद उसे आतंकवादी ग्रुप से मिलाया हो जब ही वो किसी काम की बात कर रहा था डीबी मिलिट्री के आने से पहले अपना मिशन पूरा करना चाहता है इसलिए वह आनंद और गुड्डी के साथ प्लान बनाता है गुड्डी तय करती हैं कि अंदर आनंद को जाना चाहिए क्योंकि गूंजा उसे जानती है और वह उसे कॉपरेट भी करेगी इसलिए आनंद अपना लुक चेंज करके अंदर जा रहा है देखते हैं अपने मिशन में कामयाब होता हैं या नहीं
 

Sanju@

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भाग ३१
चू दे कन्या विद्यालय- प्रवेश और
गुड्डी के आनंद बाबू

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गुड्डी ने अपने पर्स, उर्फ जादू के पिटारे से कालिख की डिबिया जो बची खुची थी, दूबे भाभी ने उसे पकड़ा दी थी, और जो हम लोगों ने सेठजी के यहां से लिया था, निकाली और हम दोनों ने मिलकर। 4 मिनट गुजर गये थे। 11 मिनट बाकी थे।

मैंने पूछा- “तुम्हारे पास कोई चूड़ी है क्या?”

“पहनने का मन है क्या?” गुड्डी ने मुश्कुराकर पूछा और अपने बैग से हरी लाल चूड़ियां।


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जो उसने और रीत ने मिलकर मुझे पहनायी थी।

सब मैंने ऊपर के पाकेट में रख ली। मैंने फिर मांगा-
“चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा…”



“तुमको ना लड़कियों का मेक-अप लगता है बहुत पसन्द आने लगा। वैसे एकदम ए-वन माल लग रहे थे जब मैंने और रीत ने सुबह तुम्हारा मेक अप किया था। चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिलकर वहां इसी ड्रेस में रखेंगें…”

ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकालकर दे दिया।
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मुझे अपनी एफबीआई के साथ एक महीने की क्वांटिको में ट्रेनिंग याद आ रही थी, जहाँ इन्वेस्टिगेशन के साथ पेन्ट्रेशन और कमांडो ट्रेनिंग का भी एक कोर्स था.
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और पुलिस अकादेमी सिकंदराबाद में कई एक्साम्स क्लियर करने के बाद ये मौका मिला था और दो तीन बाते बड़ी काम की थी,

जैसे किसी भी चीज को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना, और जो चीजें चेक में पकड़ी न जाएँ, या ले जाने में आसान हो और सबसे बड़ी बात
उपलब्ध हों। मुझे कमांडो आपरेशन का सबसे बड़ा डर ये था की वो मैक्सिमम फ़ोर्स इस्तेमाल करते हैं जिससे कम समय में ज्यादा डैमेज हो उन्हें एंट्री मिल जाए। कई बार नॉन -लीथल फ़ोर्स जैसे टीयर गैस या स्टन ग्रेनेड्स भी लड़ने के बाद उनके शेल अच्छी खासी चोट पहुंचा देते हैं

और फिर अटैक होने के बाद चुम्मन और उसका चमचा कहीं बॉम्ब डिस्पोज कर दें,


मैं किसी भी कीमत पर गुंजा और उसकी सहेलियों को खरोच भी नहीं लगने देना चाहता था।


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और उसके लिए परफेक्ट प्लानिंग और एक्जीक्यूशन जरूरी था और उसके साथ टाइम का ध्यान भी, क्योंकि सब कुछ डीबी के हाथ में नहीं था

एसटीफ स्टेट हेडक्वार्टस से उड़ चुकी थी और किसी भी पल बाबतपुर हवाई अड्डे पर उतरने वाली थी।

डीबी को उनके पहुंचने के पहले ही अपने पुलिस कमांडोज़ के आपरेशन को लांच करना था इसलिए एक एक मिनट का हिसाब करना था
लेकिन साथ में घबड़ाना भी नहीं था।

7 मिनट गुजर चुके थे, सिर्फ 8 मिनट बाकी थे।



निकलूं किधर से?

बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था, इस मेक-अप में?

सारा ऐड़वान्टेज खतम हो जाता। मैंने इधर-उधर देखा तो कमरे की खिड़की में छड़ थी, मुश्किल था। लेकिन उससे भी मुश्किल था, बाहर पुलिस वाले खड़े थे, कुछ मिलेट्री के कमांडो और दो एम्बुलेंस, बिना दिखे वहां से निकलना मुश्किल था, फिर कमरे में कभी भी कोई भी आ सकता था।



अटैच्ड बाथरूम।

मेरी चमकी, मेरी क्या, गुड्डी ने ही इशारा किया।

मैं आगे-आगे गुड्डी पीछे-पीछे। खिड़की में तिरछे शीशे लगे थे। मैंने एक-एक करके निकालने शुरू किये और गुड्डी ने एक-एक को सम्हाल कर रखना। जरा सी आवाज गड़बड़ कर सकती थी। 6-7 शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गई।


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9 मिनट। सिर्फ 6 मिनट बाकी।

बाहर आवाजें कुछ कम हो गई थीं, लगता है उन लोगों ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था।

गुड्डी ने खिड़की से देखकर इशारा किया। रास्ता साफ था। मैं तिरछे होकर बाथरूम की खिड़की से बाहर निकल आया। बाथरूम वैसे भी पीछे की तरफ था और उससे एकदम सट कर पी ए सी की एक खाली ट्रक खड़ी थी।



वो दरवाजा 350 मीटर दूर था। यानी ढाई मिनट।

चारो ओर सन्नाटा पसरा था, वो चूड़ा देवी स्कूल की साइड थी तो वैसे भी पुलिस का ज्यादा फोकस उधर नहीं था। ज्यादातर फ़ोर्स मेन गेट के पास या अगल बगल की बिल्डिंगो पर थी। कुछ एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां जरूर वहां आ के पार्क हो गयीं थी। कुछ दूरी पर स्कूल के पुलिस के बैरिकेड लगे थे, जहाँ पी ए सी के जवान लगे थे।


वो तो प्लान मैंने अच्छी तरह देख लिया था, वरना दरवाजा कहीं नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ पिक्चर के पोस्टर। नजर बचाता, चुपके चुपके दीवारों के सहारे मैं उस छुपे दरवाजे तक पहुंच गया था। गुड्डी ने न बताया होता तो किसी को शक नहीं हो सकता था की यहाँ पर दरवाजा है इतने पिक्चर के पोस्टर,



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साथ में डाक्टर जैन की मर्दानी ताकत बढ़ाने वाली दवाओं और खानदानी शफाखाने के साथ बंगाली बाबा के इश्तहार चिपके थे। बाहर नाली बजबजा रही थी, उसके पास दो तीन पान की दूकान की गुमटियां और एक दो ठेले, लेकिन अभी सब बंद और खाली।



तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा, उसको मैंने बोला-

“तुम यहीं खड़े रहना और बस ये देखना कि दरवाजा खुला रहे…”



पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी। ड्राइवर ने उन्हें हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये।


13 मिनट, सिर्फ दो मिनट बचे थे।
आनंद अन्दर जाने के लिए रास्ता ढूंढ रहा है मैप के हिसाब से उसे रास्ता भी मिल गया है
 

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खुला पोस्टर घुस गया हीरो
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मैं एकदम दीवाल से सटकर खड़ा था, कैसे खुलेगा ये दरवाजा? कुछ पकड़ने को नहीं मिल रहा था। एक पोस्टर चिपका था। सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली, कामास्त्री। हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती और वहीं कुछ उभरा था। हैंडल के ऊपर ही पोस्टर चिपका दिया था। और यह अकेला पोस्टर नहीं था, सिसकती कलियाँ, कच्ची जवानी, लेडीज हॉस्टल के नाम तो मैंने आसानी से पढ़ लिए और सब पर मोटा मोटा A और कुछ पुराने बस आधे तीहै,

कुछ भोजपुरी, ....सील टूट जाई

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तो कुछ दक्षिण भारतीय पिक्चरों के

मैंने गुड्डी को याद किया, पोस्टरों के ऊपर से ही हाथ फिरा के उस जंग लगे हैंडल को ढूंढा और फिर जैसे गुड्डी ने बताया था, दो बार आगे, तीन बार पीछे ।

सिमसिम।

दरवाजा खुल गया। वो भी पूरा नहीं थोड़ा सा। चूंचूं की आवाज हुयी, थोड़ा जोर लगाना पड़ा, कुछ जंग लगा सा था, और धीरे धीरे दरवाजा हल्का सा खुल गया। मैंने ज्यादा जोर लगाया भी नहीं, बस इधर उधर देखा, कोई देख नहीं रहा था।

15 मिनट हो गये थे। यानी जितना टाइम मैंने और गुड्डी ने सोचा था अंदर घुसने के लिए उसके अंदर मैंने गुड्डी और गुंजा के लड़कियों के स्कूल में सेंध लगा ली थी। लेकिन उस समय मैं न लड़कियों के स्कूल के बारे में सोच रहा था न उस स्कूल की लड़कियों के बारे में।

घटाटोप अँधेरा था। घुसते ही मैंने दरवाजे को अच्छी तरह से चिपका दिया था। और बाहर से रौशनी की एक किरण भी अंदर नहीं आ रही थी, ऊपर का दरवाजा भी बंद था ,



सीढ़ी सीधी थी लेकिन अन्धेरी, जाले, जगह-जगह कचडा।

थोड़ी देर में आँखें अन्धेरे की अभ्यस्त हो गई थी। मेरे पास सिर्फ 10 मिनट थे काम को अन्जाम देने के लिये।

सीढ़ी दो मिनट में पार कर ली।

साथ में कितनी सीढ़ीयां है रास्ते में, कौन सी सीढ़ी टूटी है, ऊपर के हिस्से पे सीढ़ी बस बन्द थी। लेकिन अन्दर की ओर इतना कबाड़, टूटी कुर्सियां, एक्जाम की कापियों के बन्डल, रस्सी। उसे मैंने एक किनारे कर दिया।

लौटते हुये बहुत कम टाइम मिलने वाला था। रबर सोल के जूते और एफबी आई के साथ क्वांटिको में दबे पाँव छापे डालने की गयी ट्रेनिंग, मैं श्योर था ऊपर जिन लोगों ने लड़कियों को अगवा कर रखा है, उन्हें ज़रा भी अंदाजा नहीं था की मैं कब अंदर घुस गया।



सीढ़ी का ऊपर दरवाजा खोल के भी मैंने चिपका दिया की अगर कोई देखे तो उसे अंदाजा न लगे की कोई स्कूल में दाखिल हो गया है। गुड्डी ने जो प्लान बनाया था, थर्मल इमेजिंग की जो पिक्स थी, सब मैंने मन में बैठा ली थी। सीढ़ी बरामदा सुर फिर वो कमरा जिसमे गुंजा की एक्स्ट्रा क्लास चल रही थी।



क्लास के पीछे के बरामदे में भी अन्धेरा था। मैं उस कमरे के बाहर पहुँचा और दरवाजे से कान लगाकर खड़ा हो गया।

हल्की-हल्की पदचाप सुनायी दे रही थी, बहुत हल्की।

मैंने दरवाजे को धक्का देने की कोशिश कि। वो बस हल्के से हिला।

मैंने नीचे झुक के देखा। दरवाजे में ताला लगा था।


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गुड्डी ने तो कहा था कि ये दरवाजा खुला रहता है।

अब?
गुन्जा- बाम्ब
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अब ?




एक मोटा सा ताला लटक रहा था, दरवाजा बंद और दरवाजे के उस पार गुंजा और उस की साथ की दर्जा नौ की दो लड़कियां।

बॉम्ब और टिक टिक करता समय, और धक् धक कर रहा दिल,



गुड्डी ने साफ़ कहा था, ये दरवाजा खुला ही रहता है, लेकिन अब और टाइम ज्यादा बचा नहीं था। पुलिस का आपरेशन शरू ही होने वाला था ,

तब तक मैंने देखा मोबाइल का नेटवर्क चला गया। लाइट भी चली गई। अन्दर कमरें में घुप्प अन्धेरा छा गया। लाउडस्पीकर पर जोर से चुम्मन की माँ की आवाज आने लगी- “खुदा के लिये इन लड़कियों को छोड़ दो। इन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? अल्लाह तुम्हारा गुनाह माफ कर देंगें। पुलिस के साहब लोग भी। बाहर आ जाओ…”

प्लान दो शुरू हो चुका था। 17 मिनट हो गये थे। मेरे पास सिर्फ 8 मिनट थे।


मैंने गुड्डी की चिमटी निकाली और ताला खोलकर हल्के से दरवाजा खोल दिया, थोड़ा सा।

घुप्प अन्धेरा।

ट्रेनिंग में लॉक पिक करने के कम्टीशन में मैं हमेशा टॉप थ्री मेन रहता था और उसमें भी जब आँख पर पट्टी बंद के लॉक पिक से ताला खोलना हो, सिर्फ हल्की सी आवाज पहचान के, और हमेशा डेढ़ मिनट से कम समय में। और अब गुड्डी की चिमटी काम आयी,

लेकिन अभी भी ध्यान रखना था आवाज जरा भी नहीं हो, कहीं लड़कियां उचक गयीं और बॉम्ब एक्सप्लोड हो गया था उन दुष्टों को अंदाजा लग गया,



ताले का रहस्य मैं समझ गया था, ये चुम्मन का काम नहीं था। गुंजा का स्कूल तो बंद ही हो गया था होली की छुट्टी के लिए तो चौकीदार ने सारे कमरों में हर दरवाजे पे ताला लगा दिया होगा, हाँ इस कमरे में एक्स्ट्रा क्लास होनी थी तो सामने का मेन दरवाजा खोल दिया होगा।



थोड़ी देर में मेरी आँखें अन्धेरे की आदी हो गई।

एक बेन्च पे तीन लड़कियां, सिकुड़ी सहमी, गुन्जा की फ्राक मैंने पहचान ली। गुन्जा बीच में थी।

बेन्च के ठीक नीचे था बाम्ब। बिजली की हल्की सी रोशनी जल बुझ रही थी। कोई तार किसी लड़की से नहीं बन्धा था।

फर्श पर करीब करीब क्रॉल करते हुए मैं एकदम बॉम्ब के पास पहुँच गया था और बॉम्ब डिस्पोजल का मैं एक्सपर्ट नहीं था लेकिन दो तीन बातें साफ़ थी और दो तीन बातें साफ़ नहीं थीं।

एक तो इसमें कोई टाइमर नहीं था, यानी जैसा फिल्मो में दिखाते हैं वैसा कुछ नहीं था।


लेकिन डिटोनेशन का तरीका साफ़ नहीं लग रहा था एक तो साफ़ था की ये रिमोट ऑपरेटेड होगा, लेकिन साथ में ये प्रेशर ऑपरेटेड भी हो सकता है। बॉम्ब से जुड़ा तार किसी लड़की से नहीं बंधा था यानी किसी लड़की के हिलने डुलने से बॉम्ब एक्सप्लोड होगा ये नहीं था लेकिन बॉम्ब का संबंध बेंच से जिसपर तीनो लड़कियां थीं, उससे था। तो अगर प्रेशर में ज्यादा चेंज आया तो हो सकता है ये एक्सप्लोड करे, और जैसे ही कोई लड़की बेंच से अगर तेजी से या झटके से उठें तो ये फट जाए,



तीनो लड़कियां खिड़की के पास थीं, और मुझे लग रहा था की पुलिस का आपरेशन अब उसी खिड़की से ही लांच होगा, टीयर गैस या स्टन ग्रेनेड या ऐसा ही कुछ और फिर पुलिस कमांडो के बाद ही बॉम्ब डिस्पोजल वाले अंदर घुसेंगे जब साइट सिक्योर हो जायेगी, पर उस के पहले ही अगर बॉम्ब एक्सप्लोड हो गया, लड़कियां झटके से उठीं या बेहोश हो के गिर गयीं,.... या चुम्मन ने ही रिमोट से बॉम्ब एक्सप्लोड कर दिया

मैं,.... ये रिस्क नहीं ले सकता था



आपरेशन के पहले इन तीनो को यहाँ से हटाना था और बहुत जरूरी था।

दीवाल के पास एक आदमी खड़ा था जो कभी लड़कियों की ओर, कभी दरवाजे की ओर देखता।

बाहर लाउडस्पीकर पर आवाज और तेज हो गई थी। कभी चुम्मन की माँ की आवाज,.... कभी पुलिस की मेगाफोन पे वार्निग।

उस आदमी का ध्यान अब पूरी तरह बाहर से आती आवाजों पे था।



जमीन पर क्राल करते समय मुझे ये भी सावधानी रखनी पड़ रही थी की जो एक छोटा सा पिन्जड़ा मेरे पास था, वो जमीन से ना टकराये। उसमें दो मोटे-मोटे चूहे थे।

अब मैं उंकड़ू बैठ गया, एक खम्भे के पीछे जहाँ से उन तीनो लड़कियों को मैं बहुत अच्छी तरह से देख सकता था।



गुंजा साफ़ दिख रही थी,डरी सहमी, एकदम छाया की तरह, दोनों लड़कियों के बीच में, लेकिन तब भी वो बाकी दोनों लड़कियों से ज्यादा हिम्मत दिखा रही थी।


कभी हिम्मत बढ़ाने के लिए उन दोनों के हाथों को पकड़ लेती, दबा देती, लेकिन उस को भी उस बम्ब का अहसास बड़ी शिद्दत के साथ था और बचने की उम्मीद कहीं से नजर नहीं आ रही थी।

लेकिन उसके बगल में बैठी दोनों लड़कियों की हालत और ज्यादा खराब थी। दायीं ओर बैठी लड़की, एकदम टिपिकल पंजाबी कुड़ी, शायद महक होगी, दर्जा चार से गुंजा के साथ पढ़ने वाली और दूसरी ओर जो थी, वो डर से एकदम सफ़ेद हो गयी थी, पत्ते की तरह काँप रही थी, शायद क्या पक्का शाजिया, अभी कुछ देर पहले जो होली की मस्ती में अकेले कुछ देर पहले पूरे क्लास से टक्कर ले रही थी, गन्दी वाली गाली देने में गुंजा के मुताबिक़ उसके टक्कर का कोई नहीं, लेकिन अभी देख कर के लग रहा था की अब बेहोश हुयी की तब।

टाइम बहुत नहीं था।

सबसे पहले गुन्जा ने मुझे देखा।

गुंजा के चेहरे का रंग एकदम बदल गया। ख़ुशी से वो परीचेहरा चेहरा फिर से सुर्खरू हो गयी, जैसे पतझड़ की जगह सीधे बसंत आ गया। जहाँ एकदम निराशा थी, वहां उम्मीद का तालाब लहलहाने लगा। वो हलके से मुस्करायी। वही किशोर शरारत जो सुबह मिर्चों से भरे ब्रेड रोल खिलाते समय थी

वो चीखती उसके पहले मैंने उसे चुप रहने का इशारा किया और उंगली से समझाया की बाकी दोनों लड़कियों को भी समझा दे की पहले की तरह बैठी रहें रियेक्ट ना करें।

बॉम्ब को अब मैं करीब करीब समझ गया था । मैं उससे बस दो फीट दूर था। एक चीज मैं तुरन्त समझ गया की इसमें कोई टाईमर डिवाइस नहीं है। ना तो घड़ी की टिक-टिक थी ना वो सर्किटरी। तो सिर्फ ये हो सकता है की किसी तार से इसे बेन्च से बान्धा हो और जैसे ही बेन्च पर से वजन झटके से कम हो। बाम्ब ऐक्टिवेट हो जाय।
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बहुत मुश्किल था।

मैं खिड़की से चिपक के खड़ा था। कोई डाइवर्ज़न क्रियेट करना होगा। मैंने गुन्जा को इशारे से समझा दिया। मेरे जेब में पायल पड़ी थी, जो सुबह गुड्डी और रीत ने मुझे पहनायी थी और घर से निकलते समय भी नहीं उतारने दिया था। बाजार में पहुँचकर मैंने वो अपनी जेब में रख ली थी।


चूहे के पिंजरे से मैंने पनीर का एक टुकड़ा निकाला और पायल में लपेट के, पूरी ताकत से बाहर की ओर अधखुले दरवाजे की ओर फेंका। झन्न की आवाज हुई। दरवाजे से लड़कर पायल अधखुले दरवाजे के बाहर जा गिरी- “झन-झन-झन…”

“कौन है?” वो आदमी चिल्लाया और बाहर दरवाजे की ओर लपका जिधर से पायल की आवाज आई थी।


इतना डायवर्ज़न काफी था।

मैंने गुन्जा को पहले ही इशारा कर रखा था।

उसके दायीं ओर वाली लड़की को पहले उठकर मेरे पास आना था। वो झटके से उठकर मेरे पास आई। एक पल के लिये मेरे दिल कि धड़कन रुक सी गई थी।

कहीं बाम्ब,.... लेकिन कुछ नहीं हुआ।



और जब वो मेरे पास आई तो मेरे दिल की धड़कन दो पल के लिये रुक गई।

महक,… लम्बी, गोरी, सुरू के पेड़ जैसी छरहरी और सबसे बढ़कर उसकी फिगर।

लेकिन अभी उसका टाईम नहीं था। मैंने उसके कान में फुसफुसाया-

“दिवाल से सटकर जाना पीछे वाले दरवाजे पे। इसके बाद गुन्जा के बगल की दूसरी लड़की को मैं उठाऊँगा। तुम दरवाजे पे उस लड़की का इंतेजार करना और पीछे वाली सीढ़ी से…”

महक को सीढ़ी का रास्ता मालूम था। उसने मुझे आँखों में अश्योर किया और दीवाल से सटे-सटे बाहर की ओर।

मैं डर रहा था की जब वो दरवाजे से बाहर निकले तब कहीं कोई आवाज ना हो?

खतरा दरवाजे के पास खड़े आदमी से था, निश्चित रूप से मैनेजमेंट में वो थोड़े नीचे लेवल का था और चुम्मन ने उसे इन लड़कियों का ध्यान रखने के लिए बोला होगा, लेकिन अगर उसे महक के दरवाजा खोलने की आवाज भी सुनाई पड़ी और उसने बेंच की ओर देखा तो फिर सब काम गड़बड़ हो जाएगा।



नीचे से अनाउंसमेंट और तेज हो गए थे, कभी पुलिस की आवाज आती कभी चुम्मन की माँ की, और उस आदमी का ध्यान उन आवाजों की ओर,



और मेर ध्यान कभी उसकी ओर कभी महक की ओर, मुझे गुड्डी की बात का अंदाजा था की चुम्मन और उसका चमचा चूहे से डरते हैं

और मैंने एक चूहा छोड़ दिया।

वो आदमी दरवाजे के बाहर खड़ा था, पनीर का टुकड़ा उसके पैरों के पास, …और पल भर में चूहा वहीं।
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वो जोर से उछला- “चूहा…”



और महक,…. दरवाजे के पार हो गई।


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बाहर से लाउडस्पीकर की आवाजें बन्द हो गई थी और अब फायर ब्रिगेड वाले वाटर कैनन छोड़ रहे थे।

बन्द होने पर भी कुछ पानी बाहर के बरामदे में आ रहा था।

वो आदमी फिर बेचैन होकर बाहर की ओर गया और फिर.

डाइवर्जन और रिजक्यू का जो तरीका एक बार चल गया था, दुबारा फिर से वही, और बाहर के अनाउंसमेंट, वाटर कैनन के चक्कर मे चौकीदारी कर रहे चमचे के दिमाग में कुछ नहीं घुस पा रहा था।


और फिर से

पायल, पनीर का टुकड़ा और चूहा।

और अबकी चूहे ने उसे काट लिया।

वो चीखा और अब दूसरी लड़की दिवार से सटकर बाहर की ओर।



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चूहे हमेशा दिवार से सटकर चलते हैं और अंधेरे में देख सकते हैं। जो चूहे मैं लाया था इनके दांत बड़े तीखे होते हैं। ये बात उस आदमी को भी मालूम थी और वो दीवार के नजदीक नहीं आ सकता था। लेकिन अब मामला फँस गया।



अभी तक बेन्च पे कम से कम गुन्जा का वजन था। लेकिन उसके हटने के बाद,....?

मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था, एक तो टाइम बहुत तेजी से भाग रहा था, दूसरे बाकी दोनों लड़कियों के हटने के बाद सब प्रेशर गुंजा का था बेंच पर और अगर यह प्रेशर ऐक्टिवेटेड बॉम्ब है तो गुंजा के हटते ही पक्का बॉम्ब एक्क्सपलोड होगा और गुंजा मैक्सिमम रिस्क पर होगी,....

लेकिन और कोई चारा नहीं था,



वो चमचा जैसे ही अंदर आता देखता की दो लड़कियां गायब हैं वो चुम्मन को खबर करता और फिर रिमोट और बॉम्ब,....

और एक और परेशानी बची थी डाइवर्जन, पनीर, पायल चूहा अब कुछ नहीं था और बार बार चल भी नहीं सकता था।



दो लड़कियां तो बच के कमरे के बाहर निकल गयी थीं, और सीढ़ी वाले दरवाजे के पास होंगी,.... लेकिन गुंजा अभी भी खतरे में थीं।

वो आदमी अब और एलर्ट होकर अन्दर की ओर देख रहा था। जैसे ही वो रियलाईज करता की दो लड़कियां गायब हैं, तो मेरे लिये मुश्किलें टूट पड़ती।

क्या करूं? क्या करूं? मैं सोच रहा था। तब तक जोरदार आवाज हुई- “बूम। बूम…”

मैं समझ गया ये डमी ग्रेनेड है। धुआँ और आवाज। लेकिन उसने बरामदे में शीशा तोड़ दिया था और उसी के रास्ते वाटर कैनन का पानी।

गुंजा बस टिकी बैठी थी और अब दुबारा मौका नहीं मिलने वाला था।

मेरे इशारे के पहले ही, वो मेरी ओर कूद पड़ी।


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और मैं स्लिप के फील्डर की तरह पहले से तैयार। मैंने उसे कैच किया और उसी के साथ रोल करते हुये जमीन पर दरवाजे की ओर।



बाम्ब नहीं फूटा।

लेकिन एक दूसरा धमाका हो गया।
चाक़ू

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कमरे में एक दूसरा आदमी दाखिल हो गया-

“क्या हो रहा है यहां? तू नीचे जा। अब लगता है की टाईम आ गया है…”

और उसने लाइटर निकालकर जला ली। और जैसे ही लाईटर की रोशनी बेन्च की ओर पड़ी। बेन्च खाली,

वो चिल्लाया- “लड़कियां कहां गईं?” देख जायेंगी कहां? यहीं कहीं होगीं, ढूँढ़ जल्दी…”

मैं और गुन्जा दम साधे फर्श पे थे, और लाइटर की रोशनी हम लोगों की ओर भी आ गई। पक्का यही चुम्मन था, फर्श पर गुंजा को पकडे, चिपके मैं उसकी आवाज से महसूस कर रहा था। उसकी आवाज में एक अथार्टी के साथ, एक डर एक हल्का सा फ्रस्ट्रेशन और झुंझलाहट भी थी, जैसे कोई जुआरी आखिर दांव मेन सब कुछ लगा दे और जीती हुयी बाजी जैसे अचानक उलट जाए, बेंच खाली, लड़कियां गायब, खिड़की के रस्ते वाटर कैनन से हमला शुरू हो गया था,



और जैसे कोई जंगली जानवर फंस जाए, उसके निकलने का कोई रास्ता नहीं बचे तो वो सिर्फ हमला कर सकता है और एकदम खूंख्वार हो जाता है, वो अपनी जान पर खेल कर जान लेने पर उतारू होता है, मैं समझ गया था चुम्मन अब उस मूड में होगा और गुंजा अभी भी उसी कमरे में है,



डीबी के खबरी ने बताया था, चुम्मन मशहूर चाक़ू बाज है, उसका निशाना कभी गलत नहीं होता,



एक चाकू तेजी से,… हवा में लहराता।

मैं सिर्फ इतना कर सका की रोल करके मैंने गुन्जा को अपने नीचे कर लिया। पूरी तरह मेरे नीचे दबी, चारों ओर मेरी बांहें, पैर।

चाकू मेरी बांह में लगा और अबकी बार वो खरोंच नहीं थी, घाव थोड़ा गहरा था। खून तेजी से निकलने लगा। अगर मैंने गुंजा को उस तरह पलक झपकते दबोचा नहीं होता तो निश्चित रूप से चाक़ू गुंजा के सीने में पैबस्त होता, और चाक़ू भी पूरे ९ इंच के फल वाला, तीखा,



मैंने गुंजा से बोला- “तू भाग। बाकी लड़कियां पीछे वाली सीढ़ी पे खड़ी होंगी। तू भी वहीं खड़ी होकर मेरा इंतजार करना। मैं रोकता हूँ इसको…”

हम लोग दरवाजे के पास ही थे।

गुंजा सरक कर, क्रॉल करती हुई दरवाजे के बाहर निकल गई और दौड़ती हुई सीढ़ी की ओर।
एडवांटेज टीम गुंजा
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लाइटर के बुझने से कमरे में एक बार फिर से अँधेरा था,

लेकिन तीनो लड़कियां अब कमरे के बाहर थीं और सीढ़ी के दरवाजे पर, लेकिन कमरे में मैं अभी भी फंसा था, चाक़ू का घाव मेरे दाएं हाथ में, काफी गहरा था, खून बह रहा था और वो अब एकदम मेरे बगल में आकर खड़ा था, मेरे लिए बचना तो छोड़िये, उठना मुश्किल था।

वो आदमी मेरे पास आ चुका था।

लाईटर बुझ चुका था,लेकिन उस अन्धेरे में भी उसने एक बड़ा चाकू जो निकाला, उसकी चमक साफ दिख रही थी।



वो आदमी-
“क्यों साले, किसका आशिक है तू? उस महक का। बुरचोदी, उसकी बहन तो बच गई ये नहीं बचने वाली मेरे हाथ से। या गुंजा का? अब स्वर्ग में जाकर मिलना महक से। घबड़ाना मत दो-चार महीने मजे लेकर उसे भी भेज दूंगा तेरे पास, ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा…”

और उसने चाकू ऊपर की ओर उठाया।

मैं जमीन पे गिरा था, उसके पैरों के पास।

गुड्डी से जो मैंने बाल वाला कांटा लिया था और उसने मजाक में मेरे बालों में खोंस दिया था,... मेरे हाथ में था।

खच्च। खच्च। खच्च। दो बार दायें पैर में एक बार बायें पैर में। जितनी मेरे हाथ में ताकत हो सकती थी, उतनी ताकत लगा के, बस यही मौका था बचने का।

वो आदमी लड़खड़ाकर गिर पड़ा।

उठते हुये मैंने उसके दायें हाथ की मेन आर्टरी में, पूरी ताकत से कांटा चुभोया और खून छल-छल बहने लगा।



निकलते-निकलते मैंने देखा कि एक मोबाइल फर्श पे गिरा है।

मैंने उसे तुरन्त उठा लिया और कमरे के बाहर।

उसी समय एक आँसू गैस का शेल खिड़की तोड़ता हुआ कमरे में।

20 मिनट हो चुका था।

मुझे 5 मिनट में बाहर निकलकर आल क्लियर का मेसेज देना था, वरना कमांडो अन्दर।



लेकिन ज्यादा तुरन्त की समस्या ये थी.... ये दोनों पीछा तो करेंगे ही कैसे उसे कम से कम 5-10 मिनट के लिये डिले किया जाय।

दरवाजा बन्द करके मैंने टूटा हुआ ताला उसमें लटका दिया- ऐडवांटेज एक मिनट।

मैंने गुड्डी से जो चूड़ियां ली थी, सीढ़ी की उल्टी डायरेक्शन में मैंने बिखरा दी और कुछ एक कमरे के सामने। अगर वो कन्फुज हुये तो- ऐडवांटेज दो मिनट।



मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर।

तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।

महक ने बोला- “चलें नीचे?”



मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।

पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।

मैंने बोला- “ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा-उठाकर यहां रखो…”

वो बोली- “मेरा नाम महक है। महक दीप…”

मैंने कहा- “मुझे मालूम है। लेकिन प्लीज जरा जल्दी…” और जल्दी-जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी किया।

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है आनंद ने अंदर पहुंच कर चुम्मन के आदमी को चूहे और पायल से ध्यान भटका कर एक एक करके तीनों लड़कियों को रूम से निकाल लिया है लेकिन गुंजा को निकालते समय चुम्मन आ गया और आनंद और चुम्मन में लड़ते समय चाकू लग गया गुड्डी की पिन ने आज तो आनन्द को बचा लिया है
 

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भाग ३२ - आपरेशन गुंजा + +

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मैं जमीन पे गिरा था, उसके पैरों के पास। गुड्डी से जो मैंने बाल वाला कांटा लिया था और उसने मजाक में मेरे बालों में खोंस दिया था, मेरे हाथ में था।

खच्च। खच्च। खच्च। दो बार दायें पैर में एक बार बायें पैर में।



वो आदमी लड़खड़ाकर गिर पड़ा।

उठते हुये मैंने उसके दायें हाथ की मेन आर्टरी में, पूरी ताकत से कांटा चुभोया और खून छल-छल बहने लगा। निकलते-निकलते मैंने देखा कि एक मोबाइल फर्श पे गिरा है। मैंने उसे तुरन्त उठा लिया और कमरे के बाहर।

उसी समय एक आँसू गैस का शेल खिड़की तोड़ता हुआ कमरे में।

20 मिनट हो चुका था। मुझे 5 मिनट में बाहर निकलकर आल क्लियर का मेसेज देना था, वरना कमांडो अन्दर। लेकिन ज्यादा तुरन्त की समस्या ये थी, ये दोनों पीछा तो करेंगे ही कैसे उसे कम से कम 5-10 मिनट के लिये डिले किया जाय।

दरवाजा बन्द करके मैंने टूटा हुआ ताला उसमें लटका दिया- ऐडवांटेज एक मिनट।

मैंने गुड्डी से जो चूड़ियां ली थी, सीढ़ी की उल्टी डायरेक्शन में मैंने बिखरा दी और कुछ एक कमरे के सामने। अगर वो कन्फुज हुये तो- ऐडवांटेज दो मिनट।



मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर। तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।

दोनों लड़कियां, डरी सहमी, सीढ़ीा के दरवाजे के पीछे चिपकी, दीवाल से सटी, कातर हिरणी की तरह, देख रही थीं। डर के मारे उनका चेहरा अभी भी सफ़ेद था, और गुंजा के पास पहुँचते ही, दोनों ने गुंजा के हाथ को कस के पकड़ लिया और जहाँ से गुंजा आयी थी, जहाँ तीनो अभी पल भर पहले बॉम्ब के ऊपर बैठायी गयी थीं, बस उधर ही देख रही थीं।

चुम्मन की पहले गरजती हुयी आवाज, ' “लड़कियां कहां गईं?” देख जायेंगी कहां? यहीं कहीं होगीं, ढूँढ़ जल्दी…” उन्होंने सुनी थी और दहस गयी थीं, और फिर जो मैंने कांटा चुभोया चुम्मन के पैर में तो उसकी हलकी सी चीख भी सुनी, लेकिन वो जानती थीं, खतरा टला नहीं है, बॉम्ब अभी भी क्लास में लगा है और चुम्मन को पता चल गया है की वो सब क्लास से बच के निकल भागी हैं।

मुझे देख के गुंजा ने कस के दोनों लड़कियों का हाथ कस के दबा दिया और डरी हुयी भी उसके चेहरे पे एक छोटी सी, नन्ही सी मुस्कान दौड़ गयी।

लेकिन डर मैं भी रहा था,

चुम्मन से भी और उस से ज्यादा होने वाले कमांडो हमले से। और चुम्मन को जो मैंने पल भर के लिए देखा था, मान गया था मैं, जबरदस्त किलर इंस्टिंक्ट, पावर पैक्ड, और अँधेरे में भी गजब का निशाना। लाइटर की हिलती डुलती रौशनी में भी अगर मैंने पालक झपकते कस के गुंजा को अपने नीचे दबोचा नहीं होता और पूरी तरह अपनी देह से छाप नहीं लिया होता, पक्का वो चाक़ू, गुंजा के दिल में पैबस्त होता। देह से चिपकी टाइट जींस, टाइट टी शर्ट में उसकी एक मसल्स साफ़ साफ़ झलक रही थीं, मैंने उसके एक पैर और हाथ में जो काँटा एकदम आर्टरी में चुभोया था, दूसरा होता तो उसका एक हाथ पैर बेकार हो चुका होता, लेकिन मैं जानता था की बस थोड़ी देर अरे वो हम लोगों के पीछे होगा।

चुम्मन जानता था की उसका पूरा प्रोटेक्शन वो तीनों लड़कियां हैं और जब तक लड़कियां उसके कब्जे में है, कोई शायद ही गोली चलाये, और वो निगोशिएट कर सकता है, लेकिन अगर लड़कियां एक बार निकल गयीं तो डी बी से ज्यादा सिद्द्की की जो अबतक छप्पन वाली रेपुटेशन थी, उसका बचना मुश्किल था, इसलिए मैं जानता था की वो कुछ भी कर के तीनो लड़कियों को पकड़ने की फिर से कोशिश करेगा, और उसकी दोनों फूली जेबों से मुझे अंदाज लग गया था की उसके एक जेब में कट्टा नहीं रिवाल्वर है और दूसरी में बॉम्ब का रिमोट। और एक दो चाक़ू तो जरूर और उसने रख रखा होगा,

इसलिए उसका लड़कियों से सामना होना जरूरी नहीं है, बस एक बार विजुअल कांटेक्ट हो जाए, फिर तो जिस फुर्ती से उसने चाक़ू गुंजा के ऊपर अँधेरे में फेंका था, कोई न कोई लड़की या मैं चाक़ू का शिकार का बनता, और उसके बाद बाकी लड़कियां भी पकड़ी जातीं,

और जो डाइवरसन टूटे ताले और चूड़ियों से मैंने किया था वो भी बहुत देर तक टिकने वाला नहीं था, तो उसकी नजर में आने के पहले हम सब को निकल लेने में ही भलाई थी।

लेकिन चुमन से कम खतरा कमांडो से नहीं था। जिस तरह जब हम लोग कमरे से निकले उसके पहले आंसू गैस का गोला खिड़की तोड़ते हुए आया, ये साफ़ था की अब पांच मिनट के अंदर खिड़की से कमांडो घुस सकते हैं, लेकिन उन्हें मेरे बारे में कुछ पता नहीं है और लड़कियों के पास मुझे देख के हो सकता है कोई शाप शूटर गोली चला दे।

इसलिए बस किसी तरह जल्द से जल्द मुझे इन तीनो लड़कियों के साथ बाहर निकल लेना था, लेकिन अब दो बातें थी। एक तो चढ़ते समय गुंजा और उसकी सहेलियों की बचाने की बात थी, और एड्रिनेलिन पूरी तेजी पर था, लेकिन अब एक बार मिशन हो जाने के बाद वो बात नहीं रहती, और दूसरे खुद को हैंडल करना अकेले आसान होता है, लेकिन साथ में तीन लड़कियां हो और उनकी जान पर भी बनी हो तो खतरा तीन गुना ज्यादा बढ़ जाता है।



एक बार मैंने उन तीनो को देखा, गुंजा दोनों के बीच में, और गुंजा का हाथ दोनों कस के पकडे थीं, जैसे मेले की भीड़ में बच्चे माँ का हाथ कस के पकडे रहते हैं, कहीं बिछुड़ ना जाएँ और गुंजा ने मेरी ओर इशारा करके कुछ कहा तो उन दोनों डरे हुए चेहरों पर एक कमजोर सी मजबूर मुस्कान छा गयी।

एक लड़की जो सबसे पहले बेंच पर से उठी थी, और जिसके कान में गुंजा ने अभी कुछ बोला था, कुछ मुझसे, कुछ अपनी सहेलियों से बोली - “चलें नीचे?”



मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।

पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।

मैंने बोला- “ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा-उठाकर यहां रखो…”



वो बोली- “मेरा नाम महक है। महक दीप…”

मैंने कहा- “मुझे मालूम है। लेकिन प्लीज जरा जल्दी…” और जल्दी-जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी किया।

तीसरी लड़की से मैंने रस्सी के लिये इशारा किया और उसने हाथ बढ़ाकर रस्सी पास कर दी। ऊपर की सिटकिनी से बोल्ट तक फिर एक क्रास बनाते हुये। बीच में जो भी टूटी कुर्सियां, फर्नीचर सब कुछ, कम से कम 5-6 मिनट तक इसे होल्ड करना चाहिये।

ये दरवाजा हमारा पहला प्रोटेक्शन था, कितना भी कमजोर क्यों न हो, लेकिन कुछ तो था।



सीढ़ी पर अँधेरा था, जाले, कबाड़, और एक दो टूटी सीढ़ी और हम चार लोगों को उतर के नीचे के दरवाजे तक पहुंचना था, तो तीन चार मिनट तो लगना ही था और अगर तब तक कहीं चुम्मन इस सीढ़ी के छत वाले दरवाजे पर अपने चमचे के साथ पहुँच जाता तो, उसे सीढ़ी से नीचे उतरना भी नहीं है। मैं अँधेरे में चुम्मन के चाक़ू का निशाना देख चुका था और यहाँ तो हम सब की पीठ उस की ओर होती तो बचने का कोई चांस नहीं था।



बस मुझे मालूम था, की जो मैंने चुम्मन के पैरों में काँटा चुभोया था, उसका एक फायदा तो होगा की पैर से मार के अब वो ये दरवाजा आसानी से नहीं तोड़ पायेगा, और थोड़ा भी बैरकेडिंग में ताकत होगी तो हम लोगों को निचले दरवाजे तक पहुँचने का टाइम मिल जाएगा।

तीसरी लड़की से न मैंने नाम पूछा था न उसने बताया, लेकिन बिन बताये, मुझे पता चल गया था की वो शाज़िया है, एक मामले में मेरी गुंजा के कान काटती और एक मामले में गुंजा को टक्कर देती। सुबह से कितनी बार तो गुंजा उसका गुणगान कर चुकी थी, गाली देने में और होली में मस्ती में सिर्फ अकेली शाज़िया थी जो गुंजा के भी कान काटती थी और फागुन लगते ही उसकी होली शुरू हो जाती थी, और ' बिग बी ( बिग बूब्स ) के मामले में वो दोनों अपने से बड़ी दर्जा दस वालियों को भी पीछे छोड़ देती थीं, हंसती तो गालों में गड्ढे पड़ते, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, खूब लम्बे बाल, गुंजा के बूब्स पर जो दसो उँगलियों के निशान थे वो शाज़िया के ही थे।

लेकिन इस समय सब हंसी खिलंदरा पन गायब था, डर अभी भी उसके चेहरे पर था, पर धीरे धीरे मेरे साथ डर कम होता जा रहा था और रस्सी लगाने, पूरी सीढ़ी पर से टूटे फूटे कबाड़ ला के रस्सी से बाँध के बैरिकेड को स्ट्रांग करने में वो मेरे साथ लगी थी, और गुंजा और महक पुरानी कापियों के बंडल को एक के ऊपर रख के उस को सपोर्ट दे रही थीं।



दो तीन मिनट के अंदर हम लोगों ने सीढ़ी के ऊपर वाले दरवाजे को अच्छी तरह से ब्लाक कर दिया और फिर नीचे की ओर।
खतरा
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तब तक दो बार पैरों से मारने की और फिर धड़ाम की आवाज आई। जिस कमरे में इन्हें होस्टेज बनाकर रखा था, और जिसे मैंने बाहर से बन्द कर दिया था, टूटा ताला लटका कर।

उसका दरवाजा टूट गया था।

मैंने तीनों से बोला- “भागो नीचे। सम्हलकर। चौथी सीढ़ी टूटी है। 11वीं के ऊपर छत नीची है…”

महक ने उतरते हुये जवाब दिया- “मालूम है मालूम है। स्कूल बंक करने का फायदा…”

दौड़ते हुये कदमों की आवाज, सीधे सीढ़ी के दरवाजे की ओर से आ रही थी।

मेरा चूड़ी वाली ट्रिक फेल हो गई थी। मेरे दिमाग की बत्ती जली, जो मेरा खून गिर रहा होगा। अन्धेरे में उससे अच्छा ट्रेल क्या मिलेगा। और कम से कम दो तीन मिनट का टाइम अब कम था हम लोगों के पास, गुंजा के क्लास से निकलने के बाद सीढ़ी वाला दरवाजा बरामदे के कोने में ही तो था इसलिए अब किसी भी पल


और वही हुआ। हमारे नीचे पहुँचने से पहले ही सीढ़ी के दरवाजे पे हमला शुरू हो गया था।

इसका मतलब कि अब दोनों साथ थे, जिसके पैर में मैंने कांटा चुभोया था उसके पैर में इतनी ताकत तो होगी नहीं,

की अकेले वो पैर के धक्के से मारकर दरवाजा खोल सके, दोनों एक साथ जोर लगा रहे थे, भड़ भड़ भड़ भड़,

लेकिन शाज़िया और महक की मेहनत का नतीजा जो बैरिकेड हमने बनाया था वो टिका था, वो टिका था, वरना अब तक वो दरवाजा टूट चुका होता। कुंडे में इतनी ताकत नहीं थी की उसे रोक सकता,



लड़कियां एक बार फिर घबड़ा रही थीं, वो भी जानती थीं, जहाँ वो सीढ़ी का दरवाजा खुला, वहीँ,


चुम्मन की जोर की आवाज, गालियां, और एक बार फिर सहम कर के सब सीढ़ी के किनारे खड़ी, नीचे का दरवाजा अभी भी दूर था, पंद्रह बीस सीढियाँ बाकी थीं, और उस भड़भड़ाहट से कापियों के एक दो बंडल लुढ़कते हुए सीढयों पर गिरने लगे,

सीढ़ियों पर एकदम अँधेरा था, ऊपर से जाले, एक दो सीढियाँ बीच में टूटी, और गिरते बंडलों से और मुसीबत हो रही थी फिर टाइम भी निकल रहा था,

चलो, एक एक की लाइन में, मैंने हलके से बोला, सबसे आगे गुंजा, सबसे पीछे मैं और तभी


…. गोली की आवाज।

गोली से वो दरवाजे का बोल्ट तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन मुझे ये डर था की कहीं वो इन लड़कियों को ना लग जाये।

मैंने बोला- “पीठ दीवाल से सटाकर चुपचाप…”

एक के बाद एक धांय धांय

सब लाइन में खड़े हो गये। दिवाल से चिपक के और अगले ही पल अगली गोली वहीं से गुजरी जहां हम दो पल पहले थे। वो जाकर सामने वाले दरवाजे में पैबस्त हो गई।



सबसे आगे गुंजा थी, पीछे वो दूसरी लड़की और सबसे अन्त में महक और मैं, एक दूसरे का हाथ पकड़े। गोली की आवाज सुनकर महक कांप गई और उसने कसकर मेरा हाथ भींच लिया और मैंने भी उसी तरह जवाब में उसका हाथ दबा दिया।

महक मुझे देखकर मुश्कुरा दी, और मैं भी मुश्कुरा दिया।

खतरा दोहरा था, एक तो गोली लगने का, दूसरा, गोली छत पर, सीढ़ी की दूसरी दीवार पर लग के जो टकराएगी तो वहां से वापस आ के भी घायल कर सकती थी, और फिर हम रुक भी नहीं सकते थे, दरवाजा अगर ऊपर वाला खुल जाता तो हम सबका बचना मुश्किल था। मैं देख चुका था उस की किलर इंस्टिक्ट, जिस तरह से उसने गुंजा पर चाक़ू चलाया था जो मैंने रोका, वो सीधे गोली चलाता और किसी न किसी का निशाना बनना तय था। इसलिए किसी भी हालत में दरवाजे के खुलने के पहले निचले दरवाजे तक उन चलती गोलियों के बीच पहुंचना जरुरी था। तीनो एक बार फिर डर से सफ़ेद हो गयीं थी, दीवाल में चिपकी, धीरे धीरे सरकते हुए एक एक सीढ़ी उतरते हुए और फिर जब किसी गोली की आवाज आती, कोई गोली सनसनाती हुयी किसी की बगल से निकलती तो एक बार फिर सबकी रूह काँप जाती,

बम से बचे लेकिन गोलियों से कहीं,....

हम सब अपनी पीठ दीवाल से चिपकाए,

अब हम लोग सीढ़ी के नीचे वाले हिस्से में थे, जहां निचले दरवाजे से छनकर रोशनी आ रही थी। मुझे देखकर महक मीठी-मीठी मुश्कुराती रही और मैं भी। इत्ती प्यारी सुन्दर कुड़ी मुश्कुराये और कोई रिस्पान्स ना दे? गुनाह है।

तब तक महक की निगाह मेरे हाथ पे पड़ी वो चीखी- “उईईई… कितना खून?”



अब मेरी नजर भी हाथ पर पड़ी। मैं इतना तो जानता था की चोट हड्डी में नहीं है वरना हाथ काम के लायक नहीं रहता। लेकिन खून लगातार बह रहा था। मेरी बांह और बायीं साईड की शर्ट खून से लाल हो गई थी।

महक ने अपना सफेद दुपट्टा निकाला और एक झटके में फाड़ दिया। और आधा दुपट्टा मेरी चोट पे बांध दिया। खून अभी भी रिस रहा था लेकिन बहना बहुत कम हो गया था।



तब तक दुबारा गोली की आवाज और मैंने महक को खींचकर अपनी ओर। अचानक मैंने रियलाइज किया की मेरे हाथ उसके रूई के फाहे ऐसे उभार पे थे। मैंने झट से हाथ हटा लिया और बोला- “सारी…”



महक ने एक बार फिर मेरा हाथ खींचकर वहीं रख लिया और बोली- “किस बात की सारी? नो थैन्क नो सारी। वी आर फ्रेन्डस…”



मैंने मोबाइल की ओर देखा। सिर्फ दो मिनट बचे थे। अगर मैंने आल क्लियर ना दिया तो इसी रास्ते से मिलेट्री कमान्डो और हम लोग क्रास फायर में। नेटवर्क अभी भी गायब था।

सिर्फ चार सिढ़ियां बची थी। दीवाल से पीठ सटाये-सटाये। हम नीचे उतरे।



ऊपर से जो गोलियां चली थी, उससे नीचे सीढ़ी के दरवाजे में अनेक छेद हो गये थे। काफी रोशनी अंदर आ रही थी। पहली बार हम लोगों ने चैन की सांस ली, और पहली बार हम चारों ने एक दूसरे को देखा।



महक ने अपनी नीली-नीली आँखें नचाकर कहा- “आप हो कौन जी? इत्ते हैन्डसम पुलिस में तो होते नहीं। मिलेट्री में। लेकिन ना पिस्तौल ना बन्दूक…”



गुंजा आगे बढ़कर आई- “मेरे जीजू है यार। जीजू ये है, …”

“महक…” उसनेदुबारा अपना नाम बताया खुद हाथ बढ़ाया और मैंने हाथ मिला लिया।

“मैं शाज़िया…” तीसरी लड़की बोली और अबकी मैंने हाथ बढ़ाया।

महक ने हँसकर कहा- “हे तेरे जीजू तो मेरे भी जीजू…” शाज़िया बोली- “और मेरे भी…”



“एकदम…” गुंजा बोली- “लेकिन आपको ये कैसे पता चला की मैं यहां फँसी हूँ?”



“अरे यार सालियों को जीजा के अलावा और कहीं फँसने की इजाजत नहीं है…” मैंने कसकर महक और गुंजा को दबाते हुये कहा।



मैं बात उन सबसे कर रहा था, लेकिन मेरी निगाह बार-बार ऊपर और नीचे के दरवाजों पे दौड़ रही थी। मुझे ये डर लग रहा था की अभी तो हम सब दिवाल से सटे खड़े हैं। लेकिन जब हम नीचे वाले दरवाजे पे खड़े होंगे अगर उस समय उन सबों ने गोली चलाई, तो हमारी पीठ उनकी ओर होगी। बहुत मुश्किल हो जायेगी। मैं इसलिये टाइम पास कर रहा था की। ऊपर से वो दोनों क्या करते हैं। मुझे एक तरकीब सूझी। कुछ रिस्क तो लेना ही था।



मैं- “तुम तीनों इसी तरह दीवार से चिपक के खड़ी रहो…” और मैं झुक के नीचे वाले दरवाजे के पास गया और ऊपर की ओर देख रहा था।



महक ने आह्ह… भरी- “काश इस निगोड़ी दीवाल की जगह ऐसे हैन्डसम जीजू के साथ सटकर खड़ा होना पड़ता…”



गुंजा बोली- “अरी सालियों वो मौका भी आयेगा। ज्यादा उतावली ना हो…”

एक मिनट तक जब कुछ नहीं हुआ तो मुझे लग गया कि कम से कम अब वो ऊपर दरवाजे के पीछे नहीं हैं।लग रहा था की उसके रिवाल्वर की या तो गोलियां खतम हो गयी हैं या फिर वो दरवाजे के बोल्ट को तोड़ने का कोई और जुगाड़ करने गया है। गोलियां बंद हो गयीं थीं, बस अब हम सबको जल्द से जल्द नीचे का दरवाजा खोल के बाहर निकल लेना था।



मैंने मुड़कर दरवाजे को खोलने की कोशिश की। वो नहीं खुला।-मैंने तो दरवाजा बन्द नहीं किया था। नीचे झुक के एक छेद से मैंने देखने की कोशिश की। तो देखा की बाहर एक ताला लटक रहा
था।
मुसीबत -ताला बंद बाहर से
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मेरी ऊपर की सांस ऊपर, नीचे की नीचे।

ये क्या हुआ? दरवाजा किसने बन्द किया? ड्राईवर को तो मैं बोलकर गया था की देखते रहने को, अब।

लड़कियां जो चुहल कर रही थी। वो मैं जानता था की चुहुल कम डर भगाने का तरीका ज्यादा है,

लेकिन अब मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था, बाहर से दरवाजा बन्द और ऊपर से ताला। जब कि तय यही हुआ था की हम लोगों को इधर से ही निकलना है।

“कौन हो सकता है वो?” मेरा दिमाग नहीं सोच पा रहा था। मुझे याद आया, अगर दिमाग काम करना बन्द कर दे तो दिल से काम लो, और दिमाग की बत्ती तुरन्त जल गई।

पहला काम- सेफ्टी फर्स्ट। स्पेशली जब साथ में तीन लड़कियां हैं। तो खतरा किधर से आ सकता है? दरवाजे से, ऊपर से या नीचे से? इसलिये दीवाल के सहारे रहना ही ठीक होगा और डेन्जर का एक्स्पोजर कम करने के लिये। चार के बजाय दो की फाइल में, और फाइल में।

एक आगे एक पीछे।



मैं महक के पास गया। और बोला- “चलो तुम कह रही थी ना की दीवाल के बजाय जीजू के तो मैं तुम्हारे आगे खड़ा हो जाता हूँ और गुंजा तुम शाज़िया के आगे…”



महक बोली- “नहीं नहीं। “मैं आपके आगे खड़ी होऊंगी…” और मेरे आगे आकर खड़ी हो गई।



मैं उसकी कमर को पकड़े था की गुन्जा बोली- “जीजू आप गलत जगह पकड़े हैं। थोड़ा और ऊपर…”



महक ने खुद मेरा हाथ पकड़कर अपने एक उभार पे रख दिया और गुंजा की ओर देखकर बोला- “अब ठीक है ना। अब तू सिर्फ जल, सुलग। इत्ते खूबसूरत सेक्सी जीजू को छिपाकर रखने की यही सजा है…”



मैं कान से उनकी बातें सुन रही था, लेकिन आँख मेरी बाहर निकलने वाले दरवाजे पे गड़ी थी।

नेटवर्क जाम था और अगले आधे घंटे और जाम रहने की बात थी, इसलिये मोबाइल से भी डी॰बी॰ से बात नहीं हो सकती थी।

बन्द कोई गलती से कर सकता है लेकिन ताला नहीं, तो कोई बड़ा खतरा आने के पहले।

मैं खुद,… खुद ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा।



अचानक मुझे एक ब्रेन-वेव आई- “किसी के पास ऐसा नेल कटर है। जिसमें स्क्रू ड्राइवर है?”

शाज़िया ने मुस्कराकर कहा- “मेरे पास है…”

चहक महक ज्यादा रही थी, लेकिन मुस्करा शाज़िया भी कम नहीं रही थी। अब जब गोलियां चलनी बंद हो गयी थीं, ऊपर से दरवाजे का टूटने का खतरा और सीढ़ी से चुम्मन के हमले का डर थोड़ा कम हो गया था, स्कूल से बाहर निकलने के और इन सीढ़ियों के बीच बस ये मुआ दरवाजा बचा था, जिसे पार कर के इन तीनो ने न जाने कितनी बार क्लास बंक की थी, तो माहौल थोड़ा नार्मल होने लगा था।



दो चार घंटे पहले ही इसी स्कूल में इन तीन बालाओं ने कितना होली का हंगामा किया, शाज़िया ने एक से एक गालियां सुना के ९ बी वालों की माँ बहन एक कर दिया, क्लास की कोई लड़की नहीं बची होगी जिसकी चड्ढी बनियाइन इन सबों ने न लूटी हो, दो अंगुल अंदर तक रंग न लगाया हो, लेकिन उसके बाद बस मौत के साये से बच के, जैसे एक बहुत बड़ा खतरा सरसरा के उन्हें छूता हुआ बगल से निकल गया हो,



लेकिन अब जब करीब करीब बचने के कगार पर थीं और साथ में उनकी एक सहेली का जीजू, सहेली क्या बहन से बढ़के तो जीजू भी उसके पहले इन दोनों के और महक के साथ शाज़िया भी मस्तिया रही थी, थोड़ी थोड़ी,

लेकिन साथ में खतरे का अहसास और उससे बचने की तरकीब भी कम नहीं थी, मुश्किल से पांच मिनट हुए होंगे शाज़िया और महक से मिले लेकिन अब बिन कहे वो जैसे मेरी टीम का हिस्सा बन गयी थीं , शाज़िया मेरे साथ दरवाजे का ताला खोलने की जुगत में थी और गुंजा और महक सीढ़ी के ऊपर वाले दरवाजे पर निगाह गड़ाए थीं की कहीं चुम्मन फिर से सीढ़ी के ऊपर वाले दरवाजे को तोड़ने की, खोलने की कोशिश तो नहीं कर रहा है।

मैं सोच रहा था की ताले के बोल्ट के जो स्क्रू हैं उन्हें ढीले करके, जोर से धक्का देने पर ताला कैसा भी हो बोल्ट निकल आयेगा।

चार बोल्ट में से तीन भी अगर किसी तरह किसी तरह खुल जाते तो फिर तो लात मार के ये बोल्ट टूट जाता और हम सब बाहर, हमारा गुंजा + मिशन कामयाब, उसके बाद तो, लेकिन एक परेशानी हो तो न, लकड़ी का वो दरवाजा हिल रहा था, और नेल कटर से प्रेशर नहीं बन रहा था। मेरा बिना कहे, शाज़िया झुक गयी, और कस के पकड़ के जकड़ के, मुड़ के मेरी ओर देखती, वो चम्पई रंग वाली, अपने गोरे गालों से एक लट हटाती

हल्के से मुस्करा के बोली, ' जीजू अब लगाइये, कस के, देखती हूँ स्साला, मादर कैसे नहीं खुलता, "



शाज़िया की बात, पहला बोल्ट आसानी से खुल गया। और अब दूसरे बोल्ट का नंबर था, लेकिन एक पल को मेरी नजर झुकी, निहुरी शाज़िया के ब्वाइश लेकिन भरे भरे हिप्स पे पड़ी, स्कर्ट थोड़ी सरक के ऊपर चली गयी, और कुछ मांसल नितम्बों के बीच धंसी थी, मेरे मन में पता नहीं कहाँ से अपनी गुरुआनी चंदा भाभी की बात याद आ गयी, ' कैसे लौंडे हो, स्साली निहुरी हुयी है, चूतड़ उठा के और " लेकिन मैंने बोल्ट पर ध्यान दिया,



पर ये बनारस की लड़कियां, एक्स रे आईज होती हैं इनकी मन की किताब मर्दो से पहले पढ़ लेती हैं, और निहुरे निहुरे हल्के से मुस्करायी और अपना पिछवाड़ा मटका दिया, और दूसरा बोल्ट भी खुल गया।

लेकिन स्साला तीसरा बोल्ट, उसमें जंग लगा था, और मैं और शाज़िया उससे जंग लड़ रहे थे, बस कुछ पल और, और हम खुली हवा में होते,….. लेकिन ये बोल्ट और बिना इसके
खुले बाहर निकलना मुश्किल था
बूम, बॉम्ब और,… बाहर
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तभी कई बातें एक साथ हुयी,

मेरी उस बदमाश दर्जा नौ वाली स्साली बनारस वाली ने अपना पिछवाड़ा मेरे ' वहां' रगड़ दिया

मुझे लगा सीढ़ी हिल रही है,

ऊपर से एक प्लास्टर का बड़ा सा टुकड़ा गिरा और मैंने झुक के शाज़िया की कमर पकड़ के उसे छाप लिया और मेरा एक हाथ सीधे


मेरे मुंह से ' सॉरी' निकल गया और शाज़िया के मुंह से जबरदस्त गाली, जैसे दीवाली की फुलझड़ी छूटी हो,

" स्साले, तेरी माँ बहन की, ....स्साली से सॉरी बोलते हो, चलो बाहर तेरी तो मैं,... और उस गुंजा की भी "

लेकिन शाज़िया की मीठी मालपुवे ऐसी बाकी गालियां एक तेज आवाज में दब गयीं



गड़गड़ , गड़गड़

प्लास्टर के और ढेर सारे टुकड़े, लेकिन सब के सब मेरी पीठ, बांह और सर पे, शाज़िया बच गयी थी,

पीछे से कापियों के बंडल

आवाज तेज हो गयी थी,

गड़गड़, गड़गड़, गड़गड़, गड़गड़,

और मैं समझ गया, गड़बड़, महागड़्बड़ जोर से में चीखा ' बचो, दो की फ़ाइल में "

और अबकी समझाना नहीं पड़ा, महक ने खुद मुझे खींच के अपने पीछे और मेरा एक हाथ खींच के अपने उभार पे कस के,

लेकिन अभी मेरा ध्यान कहीं और था, मैंने जैसे रटी रटाई कमांड की तरह से, ' दोनों हाथों से कान बंद, सर झुका, एकदम सीने के अंदर '

और एक हाथ से तो महक को पकडे था, दूसरे हाथ से गुंजा और शाज़िया को, कस के दबोच कर, दीवाल से चिपक के



बूम


जोर का धमाका हुआ,

फिर सीढ़ी पर से लुढ़कते पुढ़कते फर्नीचर जो हमने बैरकेड में लगाए थे कापियों के बण्डल, और ढेर सारा छत का प्लास्टर चूना

और साथ ही में वो नीचे वाला दरवाजा धड़ाम से और और हम सब लुढ़कते पुढ़कते बाहर,


और जब मेरी आँख खुली तो शाज़िया पेट के बल थी और मैं उसके ठीक ऊपर,

गुंजा, महक को सहारा दे के खड़ा कर रही थी और मुझे चिढ़ाने लगी

' माना जीजू, मेरी सहेली मस्त माल है, और अभी तक एकदम कोरी भी, सील पैक बंद, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर से टाइट, ...लेकिन ऐसा भी क्या की खुले मैदान में, "


मैं शरमाता झेंपता उठा और शाज़िया को भी पकड़ के उठाया पर शाज़िया क्यों छोड़ती गुंजा को,

" अबे स्साली, मेरा मुंह मत खुलवा, मेरे जीजू हैं,... मैं चाहे खुले मैदान में मस्ती करूँ चाहे भरे बाजार में,... किसी की क्यों फटती है "

लेकिन लड़कियों की मस्ती से अलग मेरी निगाह चारो ओर घूम रही थी, जहां हम निकले थे वहां तो सन्नाटा था लेकिन दीवाल की कुछ ईंटे अभी भी गिर रही थीं


" भागो " मैं जोर से चिल्लाया और हम सब २००-३०० मीटर दूर जा के रुके।

और तब तक चु दे बालिका विद्यालय की एक दीवाल भरभरा के जहाँ हम लोग थोड़ी देर पहले थे,...

सबने एक साथ खुली हवा में सांस ली। अब हम लोगों ने स्कूल की ओर देखा। ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। जिस कमरे में ये लोग पकड़े गये थे, उसकी छत, एक दीवाल काफी कुछ गिर गई थी। सीढ़ी के ऊपर का वरान्डा भी डैमेज हुआ था। अभी भी थोडे बहुत पत्त्थर गिर रहे थे।


बाम्ब एक्स्प्लोड किसने किया? उन दोनों का क्या हुआ? मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

मैंने इशारे से तीनो लड़कियों को चुप रहने और दीवाल के पास सटने के लिए बोला और चारों और देखने लगा,

अंदर की दो दुष्टात्मा से तो बच के हम लोग निकल आये थे लेकिन बाहर के गिद्ध भी कम खतरनाक नहीं थे, हर चीज को खबर बना के, बेच देने वाले, सेंसेशन फैला कर कमाई करने वाले और सब के अपने हिट थे,

डीबी ने जो आउटर पेरिमीटर बनवाया था, ३०० मीटर का, पुलिस का बैरिकेड लगा था, पी ए सी की एक ट्रक, एक आंसू गैस वालों की टुकड़ी और वाटर कैनन और बैरिकेड के ठीक पार ढेर सारी ओबी वान और कई अनाउंसर कभी अपना मेकअप दुरुस्त करती तो कभी कैमरा मैन को चु दे विद्यालय की ओर इशारा करती, और कभी जोर जोर से चीखती



यह खबर आज सबसे पहले बनारस न्यूज नेटवर्क से सुन रहे हैं,.... में निवेदिता जीरो प्वाइंट पर मौजूद हूँ, चु दे बालिका विद्यालय से, ....पुलिस का आपरेशन शुरू होने वाला है, बल्कि शुरू हो भी चूका है, बस कुछ देर और और हमारी तीनो होस्टेज आजाद होंगी निवेदिता का प्रॉमिस सबसे पहले उन तीनो लड़कियों का इंटरव्यू आप इसी चॅनेल पर देख्नेगे, बस कुछ ही देर में आपरेशन शुरू होने वाला है



तब तक कैमरा में ने कुछ इशारा किया, निवेदिता ने माइक बंद किया और एक छोटे से शीशे में देखकर अपनी लिपस्टिक फ्रेश की , पल्लू को थोड़ा सा झटका दिया, और तब तक कैमरा मैन चारो ओर के पुलिस बंदोबस्त को दिखा रहा था लेकिन एक और अनाउंसर आ गयी, शलवार सूट में

" मै सबीहा, सीधे चु दे विद्यालय से, आप देख सकते हैं पुलिस के इंतजाम को, बस आपरेशन शुरू होने वाला है, अभी अभी हमारे संवाददाता ने बाबतपुर एयरपोर्ट से खबर दी है की लखनऊ से एस टी ऍफ़ की टीम पहुंच गयी है और एयर पोर्ट से चल दी है। बस कुछ देर और , हमरे उन तीनो लड़कियों के बारे में बड़ी एक्सक्लूसिव खबर मिली है, ....कौन हैं वो, जो बनारस पुलिस की लापरवाही से आंतकवादियों के हमले का शिकार हुयी और अभी भी उन बेरहम बदमाशों के कब्जे में फंसी है,.... कब तक छूटेंगी वो,.... क्या गुजर रही होगी उन बेचारियों पे,.... क्या बचपाएगी उन की जान या वे सब भी बनारस पुलिस के निकम्मेपन का शिकार होंगी, ....क्या होगा उन बेचारियों के साथ, बस कुछ पल और,"



और वो तीनो बेचारियाँ भी ये सब सुन रही थीं, खिलखिला रही थीं। और मेरे पीछे पड़ी थीं, ....लेकिन मै अभी सब नजारा देख रहा था,

बॉम्ब के एक्सप्लोजन के बाद एक साथ कई एक्टिविटी शुरू हो चुकी थी,

घेरे के सबसे बाहर की ओर लेकिन इनर पैरामीटर में एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां थीं, और दो चार एम्बुलेंस स्कूल की ओर बढ़ना शुरू की और उनके पीछे , दो फायरब्रिगेड की गाड़ियां लेकिन तब तक ट्रैफिक पुलिस के कोई अधिकारी आये और उन्होंने सबको रोक दिया, और सिर्फ एक एम्बुलेंस को आगे बढ़कर स्कूल के सामने पहुँच कर ५० मीटर पहले रुक जाने को बोला, और फायर ब्रिगेड की एक ट्रक को स्कूल की साइड में लगा के खड़ा होने के लिए,


तब तक फायरिंग की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा- टैक-टैक। सेल्फ लोडेड राईफल और आटोमेटिक गन्स की, 25-30 राउन्ड।

सारा फायर प्रिन्सीपल आफिस की ओर केन्द्रित था। वो तो हम लोगों को मालूम था की वहां कोई नहीं हैं। स्कूल की ओर से कोई फायर नहीं हो रहा था।

तब तक मेगा फोन पर डी॰बी॰ की आवाज गुंजी- “स्टाप फायर…”

थोड़ी देर में एक पोलिस वालों की टुकडी, कुछ फोरेन्सिक वाले और एक एम्बुलेन्स अन्दर आ गई। कुछ देर बाद एक आदमी लंगड़ाते हुये और दूसरा उसके साथ जिसके कंधे पे चोट लगी थी, चारों ओर पुलिस से घिरे बाहर निकले।

स्कूल के गेट से वो निकले ही थे की धड़धड़ाती हुई 5 एस॰यू॰वी॰ और उनके आगे एक सफेद अम्बेसेडर और सबसे आगे एक सफेद मारुती जिप्सी जिसमें पीछे स्टेनगन लिये हुये। लोग बैठे थे, आकर रुकी।


डी॰बी॰ आगे बढ़कर अम्बेसेडर से निकले आदमी से मिले।

मैंने नोटिस किया बात करते-करते उसने पोजीशन बदल ली और अब डी॰बी॰ की पीठ स्कूल के गेट की ओर हो गई।

उधर एस॰यू॰वी॰ से उतरे लोगों ने पुलिस से कुछ बात की और उसमें से निकलकर चार लोगों ने उन दोनों को एस॰यू॰वी॰ में बिठा लिया, और चल दिये। जैसे ही वो गाड़ियां चली। अम्बेसेडर से उतरे आदमी ने, अब तक वहां प्रेस वालों से इशारा किया की डी॰बी॰ से बात करें।



उधर पीछे से गुंजा और महक आवाज दे रही थी।

सारी एक्टिविटी अब स्कूल के बाहर के दरवाजे के पास हो रही थी, एस टी ऍफ़ के अफसरों के साथ, डी बी और साथ में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, और कुछ अफसर, एस टी ऍफ़ वाले अपने साथ कुछ मिडिया वाले भी लाये थे और कुछ मिडिया वालों को उन्होंने इजाजत दे दी थी, और पुलिस थाने का रास्ता एकदम खाली था, जो लोग खड़े भी थे वो सब स्कूल की ओर देख रहे थे, कैमरे हो या आँखें सब स्कूल की ओर,

और मै दबे पांव, गुंजा, महक और शाज़िया के साथ पुलिस कंट्रोल रूम के अंदर जो डीबी का इनर रूम था, वहां।



गुड्डी वहीं थी।
कंट्रोल रूम, गुड्डी, ताला

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कन्ट्रोल रूम के सामने ही वो मोबाईल, पुलिस की गाड़ी का ड्राईवर मिला, जिसे मैंने नीचे रहने को बोला था, दरवाजे के सामने और जिससे कोई दरवाजा ना बन्द कर सके। और वो यहाँ… किसी तरह से मैंने अपने गुस्से को कन्ट्रोल किया।

मैंने ठन्डी आवाज में पूछा- “क्यों कहां चले गये थे तुम?”

वो बोला- “क्यों? मैं तो यहीं था साहब। वहां कोई नहीं मिला क्या आपको…”

मैं चुप रहा।

ड्राईवर ने सफाई दी-

“आपके जाने के दो-चार मिनट के बाद सी॰ओ॰ साहेब, अरिमर्दन सिंह साहब आये थे। उन्होंने मुझसे पूछा- “तू यहां क्यो खड़ा है? मैंने बोला की साहब ने बोला है। फिर मैंने उन्हें सारी बातें बता दी। वो बोले की ठीक है, मैं यहां दो आर्मेड कान्स्टेबल लगा देता हूँ। तुम कन्ट्रोल रूम में जाकर मेम साहेब के पास रहो। तुम अकेले उन्हें ठीक से जानते हो। मेरे सामने ही उन्होंने दो कान्स्टेबल बुलाये और मैंने सी॰ओ॰ साहब को साफ-साफ बता दिया था की आपने बोला है की किसी हालत में दरवाजा नहीं बन्द होना चाहिये। उन्होंने खुद जाकर दरवाजे को खोलकर देखा…”

मैं क्या बोलता। उसके चेहरे से ये लग रहा था की ये आदमी झूठ नहीं बोल रहा है। और जैसे ही हम लोग कमरे में घुसे।

गुड्डी ने पहला सवाल यही दागा-

“तुमने उस ड्राईवर को यहां क्यों भेज दिया? मुझे कौन उठा ले जाता। तुम्हारे जाने के 5-6 मिनट के अन्दर ही वो ड्राईवर आया और बोला की सी॰ओ॰ साहेब ने बोला है की वो यहीं रहे, मेरे पास। तब से भूत की तरह वो दरवाजे के सामने खड़ा है…”


मुझे लगा कि अच्छा हुआ मैंने उसे कुछ नहीं कहा।

लेकिन मैं बोल पाता उसके पहले ही गुन्जा, शाज़िया और महक। एक साथ। गुंजा ने गुड्डी को बाहों में भर लिया और गुड्डी ने गुन्जा को। दोनों की आँखों से आँसू बस छलके नहीं।

गुन्जा बोली- “गुड्डी दीदी। अगर आज जीजू नहीं होते तो? मैं सोच नहीं सकती थी…”

“क्यों नहीं होते। खाली होली खेलने के लिये जीजू बने हैं क्या? मजा लेंगे वो और बचाने कौन आयेगा…” मुझे देखते हुये गुड्डी ने झिड़का।

दबाते-दबाते भी एक आँसू का कतरा उसके गाल पे गिर गया और उसके बाद शाज़िया और महक भी गुड्डी की बांहों में। इतनी देर का टेन्शन, डर, खतरा सब। बिन बोले बड़ी-बड़ी आँखों में तिरते, छलकते आँसुओं में बह गया। महक ने गुड्डी को अपनी बाहों में भर रखा था और बिन कहे। बहुत सी बातें दोनों कह रही थी।

मैंने चिढ़ाया- “हे गुड्डी को सब लोग बांहों में ले रहे हो और मैं। यहां सूखा…”

गुंजा मुश्कुराते हुये बोली- “अरे मैं हूँ ना…” और मेरी बांहों में आ गई और मैंने उसे कसकर बांहों में भींच लिया।


अब गुड्डी ने पहली बार मेरे बायें हाथ और शर्ट को ध्यान से देखा। खून से लथपथ। और बांह में महक का दुपट्टा। वो चीखते हुये बोली- “हे इतना खून बह रहा है। क्या हुआ?”

मैं- “बह नहीं रहा है। बह रहा था। महक के दुपट्टे का असर है। और सालियों के लिये खून क्या मैं सब कुछ बहाने को तैयार हूँ। क्यों मन्जूर?”

अब उनके शर्माने की बारी थी।

लेकिन शाज़िया और महक इत्ती आसानी से थोड़ी छोड़ने वाली थीं, पलट के शाज़िया ने जवाब दिया,

" अरे बाबू वो सीढ़ी पे धूम धड़ाम थोड़ा जल्दी हो गया, वरना मै जो निहुरी थी, वहीँ हाथ बढ़ा के खोल के पकड़ के सटा के, ....बच गए आप "

अब गुंजा भी मैदान में आ गयी, अपनी सहेलियों की हिम्मत बढ़ाते बोली,

" अरे होली के बाद आएंगे ये और पूरे पांच दिन यहीं रहेंगे, मेरा भी हिसाब किताब अभी बाकी है , रंगपंचमी यही होंगी "

उस की रंगभरी पिचकारी छोड़ती आँखे याद दिला रही थीं, उसका फगुवा भी अधूरा था लेकिन महक ने पूरा प्लान बता दिया,

" अरे जीजू, आप सोचते हैं की क्या सिर्फ एक लड़की पे तीन तीन लड़के एक साथ चढ़ सकते हैं, हम तीनो मिल के गैंग रेप करेंगे वो भी एक बार नहीं तीन बार "

" और लाने वाली मै हूँ, जा रही हूँ इनके साथ आज लेकिन कान पकड़ के साथ ले आउंगी और अपनी छोटी बहनों के हवाले कर दूंगी, फिर ये जो बहुत बोल रहे हैं न तब पता चलेगा "

गुड्डी भी उन दर्जा नौ वालियों का साथ देती बोली, एक तो गुंजा की पक्की सहेलियां, दूसरे गुड्डी का भी तो व्ही स्कूल है, उस की जूनियर।

मै दो बातें सोच रहा था, ये लड़कियां अभी थोड़ी देर पहले डर के मारे, कैसे, और ये सब बातें भी डर से बचने का ही एक रास्ता है, और दूसरे मेरी गलती। बनारस में मुंह नहीं खोलना चाहिए, वो भी लड़कियों के आगे और वो सालिया हो तब तो एकदम नहीं,

गुड्डी ने बात घुमा दी और उन तीनो से कुछ और बात करने लगी और मेरी निगाह खिड़की के बाहर स्कूल पर जा रही थी,



एस टी ऍफ़ वाले चले गए थे, लेकिन अब डीबी और लोकल पुलिस जोश में आ गए थे , तीन लाइने पुलिस वालों की सबसे बाहर पी ऐसी के जवान और उसके बाद आर ए ऍफ़ और सबसे अंदर लोकल पुलिस के कमांडो, जो थोड़े बहुत मिडिया वाले आ गए थे आस पास उन्हें हटाया जा रहा था, कुछ लोकल पाल्टीसियन टाइप भी थे जिहे डीबी खुद निपटा रहे थे। एक बार फिर पुलिस ने पैरामीटर बना लिया , एम्बुलेंस की एक दो गाड़ियों और एक फायर ब्रिगेड की गाडी को छोड़ के सब वापस जा रही थी।



पुलिस को छोड़ के बाकी सिविल आफ़िसर्स भी वापस जा रहे थे।

स्कूल के अंदर बॉम्ब डिस्पोजल स्क्वाड का एक दस्ता अंदर घुसा, फिर जो मिलेट्री के कमांडो आये थे, उनके साथ का बॉम्ब स्क्वाड, उन सब के पास तरह तरह के डिटेक्टर थे, फिर दो तीन कुत्ते, शायद बॉम्ब स्क्वाड वालों के थे और सबके बाद सिद्द्की और उसके साथ एक दो लोग और

और मेरे मन में सवाल अभी भी घूम रहे थे चुम्मन लोकल बदमाश था लेकिन जरूर बात उससे कहीं ज्यादा था, उसकी माँ ने बोला था की वो बंबई से हो के आया है, तो वहीँ कोई कांटेक्ट तो नहीं बन गया।



फिर चुम्मन के अलावा शायद मै अकेला था जिसने बॉम्ब को इतनी नजदीक से देखा था और उससे बढ़कर उसके एक्सप्लोड होने का असर देखा था, किसी जबरदस्त बॉम्ब मेकर का हाथ लगता था और अभी ८० % ही लग रहा था , कुछ चीजें उसमे नहीं थी लेकिन, और सबसे ज्यादा मुझे चौंकाया, डबल एक्सप्लोजन ने, आउटर बॉम्ब ने सिर्फ शॉक वेव्स जेनेरेट की, जो लग रहा था सीढ़ी हिल रही है, दरवाजा हिला, प्लास्टर गिरना शुरू हो गया और मुझे लग गया, हम लोग थोड़े सम्हल गए और उसी आउटर बॉम्ब से इनर बॉम्ब का बीस पच्चीस सेकेण्ड के अंदर एक्सप्लोजन हुआ, जो धड़ाके की आवाज हुयी और पक्का भले ही थोड़ी मात्रा में लेकिन लग रहा था आर डी एक्स, पर ये अब जो बॉम्ब डिस्पोजल वाले गए हैं इन्हे अंदाज लग जाएगा,



ऐसा बॉम्ब, बनारस में किसी लोकल बदमाश के पास, ?

और फिर रिवाल्वर, और उसकी गोलियां। अक्सर हम लोग मानते हैं की रिवाल्वर में छह गोलियां होती है लेकिन चार गोलियां तो नीचे वाले दरवाजे में ही लगी थीं, और फिर वो सीढ़ी के ऊपर के दरवाजे को भेद के आयीं और नीचे वाले दरवाजे में उन्होंने छेद किया, तो बिना हाई कैलिबर के और फिर कुछ शेल मैंने देखे भी थे, जो सामने दीवाल में लगा था, जो उससे लड़ के जिस दीवाल में हम चिपके थे वहां नीचे, वो तो मैंने महक को कस के चिपका रखा था, वरना उस हालत में भी वो गोली घायल तो कर ही देती।

आज मुझे अंदाज लग गया था की बनारस में गन रनिंग भी होती है और फॉरन गन्स भी आ गयी हैं लेकिन इस तरह की रिवाल्वर अभी कॉमन नहीं है फिर चुम्मन बनारस के किसी आर्गेनाइज्ड गैंग का पार्ट भी नहीं है

लेकिन सबसे बड़ी बात थी गुंजा और उसकी सहेलियों का बचना और वो हो गया, और इन सब सवालों का जवाब एस टी ऍफ़ वाले और पुलिस वाले ढूंढेंगे, अगर ढूंढना चाहेंगे, मुझे तो बस गुंजा को चंदा भाभी के हवाले करना है और उसकी बाकी सहेलिया भी ठीक ठाक पहुँच जाए अपने अपने घर

और ये चार आने का काम अभी भी बचा था, क्योंकि मिडिया वाले और कुछ सिक्योरटी एजेंसी वाले भी जानना चाहते होंगे की अंदर क्या हुआ



और ये चहकती गौरेया सब कहीं उन के चक्कर में पड़ गयीं तो एक अलग झंझट



कमरे में लगे टीवी पर एंकर चीख रही थी

" कहाँ; हैं तीनो लड़कियां , कौन थी तीनो लड़कियां, क्या हुआ था उनके, बस सिर्फ इसी चैनल पर " निवेदिता जी चीख रही थीं, और पीछे चु दे विद्यालय की तस्वीर और उसके ठीक सामने स्टूडियों में खड़ी वो, नीचे रनर चल रहा था, एस टी ऍफ़ का जबरदस्त आपरेशन, संघर्ष के बाद कमांडो ने तीनो लड़कियों को सकुशल छुड़ाया, लड़कियों की मेडिकल जांच चल रही है

शाज़िया और गुंजा देख के मुस्करा रही थीं, लेकिन महक के चेहरे पे एक बार फिर से डर छा गया था, जैसे वो उन पलों में वापस चली गयी हो। गुड्डी के हाथ को पकड़ के बोली, ' दी , लग नहीं रहा था बचूंगी, अगर आप लोग न आते "


गुड्डी ने बिना बोले बस उसके हाथ को दबा दिया, और मैंने चैनल चेंज कर दिया,

उस चैनल पर सबीहा बोल रही थीं, पहली खबर, होस्टेज के छूटने की सबसे पहली खबर आपको इसी चैनल पर मिली, और उनसे बात भी सबसे पहले इसी चॅनेल पर, हम दिखाएंगे आपको अंदरखाने की खबर, अंदर की बात, एकदम एक्सक्लूसिव, क्या गुजरा उन लड़कियों पर उन तीन घंटो में लेकिन उससे पहले बनारस जानना चाहता है , पुलिस व्यवस्था इतनी लचर क्यों, दिन दहाड़े, थाने से २०० मीटर दूर के लड़कियों के स्कूल में आतंकी हमला, क्या कर रही थी पुलिस, बने रहिये बस ब्रेक के बाद अंदरखाने की खबर , क्या हो रहा था स्कूल में



गुड्डी ने कुछ जानने के लिए कुछ बात बदलने के लिए और कुछ इस बड़े हादसे से बच के आयी लड़कियों का मूड ठीक करने के लिए पूछ लिया गुंजा से, " तू बता न अंदर की बात, क्या हुआ था, कैसे चुम्मन, ? "
आपने बहुत ही शानदार तरीके से भयानक सिचुएशन का चित्रण किया है
अंदर बहुत ही भयानक सिचुएशन थी हर कदम पर खतरा था एक एक कदम सोच समझकर आगे बढ़ाना था साथ ही समय का भी ध्यान रखना था एक तरफ चुम्मन और उसकी बंदूक की गोली का खतरा तो दूसरी तरफ STF वालों के गोला बारूद का एक चूक हुई और गोली सीने के पार हो जाती भय के वातावरण में भी हल्की फुल्की मस्त मजाक का चित्रण किया है जिससे लड़कियों का तनाव और भय कम हुआ आनंद ने अपने धैर्य से तीनों लड़कियों को बचा लिया है
 

motaalund

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Ekdam sahi har ladda is route se gujarta hai.
वो हसीं दिन और रातें..
दोस्तों संग बातें..
और वैसी मुलाकातें...
फिर कहाँ...
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने

दिसंबर में भी चार बड़े अपडेट जिसमे इस कहानी के भी दो अपडेट शामिल हैं पोस्ट हो गए
Truly .. you are ultimate in writing such marvelous stories.
 

motaalund

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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है आनंद ने अंदर पहुंच कर चुम्मन के आदमी को चूहे और पायल से ध्यान भटका कर एक एक करके तीनों लड़कियों को रूम से निकाल लिया है लेकिन गुंजा को निकालते समय चुम्मन आ गया और आनंद और चुम्मन में लड़ते समय चाकू लग गया गुड्डी की पिन ने आज तो आनन्द को बचा लिया है
गुड्डी हो या ना हो...
वो या उसका सामान.. आनंद बाबू के सेफ्टी के लिए मौजूद है...
 

motaalund

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यह फुलफार्म पहली बार पता चला

साथ में शायद अनेक पाठकों का भी ज्ञान वर्धन हुआ आपने एकदम सही कहा हैं और इसलिए इस प्रकरण में उन्ही दिनों की बानगी दिखाई गयी हैं
और आपने पुराने दिनों की झलकियाँ दिखा के...
उन्हीं दिनों को जीवंत कर दिया...
 
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