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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ४०

सुलझायी पहेली रीत ने पृष्ठ ४३०

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motaalund

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पूर्वांचल और माफिया

डी बी का कोई दूसरा फोन आ गया था


शायद हेडक्वार्टर से या किसी नेता वेता का, क्योंकि उनकी खाली यस जी सर की आवाज आ रही थी और मेरा फोन उन्होंने होल्ड पर रखा था।


और फोन काटने की मेरी हिम्मत भी नहीं थी, हॉस्टल के मेरे सीनियर थे और यहाँ भी,

लेकिन मैं शुक्ला के बारे में सोच रहा था, और ड्रग्स और सेठ जी की लड़की के बारे में।

ये कोई फ्रिंज आपरेशन रहा होगा, शुक्ला की पहल पर, क्योंकि ज्यादातर माफिया रंगदारी से शुरू हुए फिर ठेकेदारी की ओर मुड़ गए। और शुक्ला ने सिंह के प्रभुत्व का इस्तेमाल किया होगा।


लेकिन डी बी की ये बात एकदम सही थी की दूकान से भेजे जाने वाले सामने के साथ हथियारों की आवाजाही आसान रही होगी। इनकी दूकान का सामान नेपाल तक जाता हैं और उधर से भी ड्राई फ्रूट्स और बाकी सब, फिर नेपाल का बार्डर खुला हैं और पक्की सड़कों के अलावा तराई के जंगल के बीच भी कच्ची सड़कों का जाल हैं, और वहां से पिट्ठू पे भी सामान आता हैं, और पहली बार बाटा मर्डर में जो एके ४७ इस्तेमाल हुयी, कुछ तो कहते हैं की सिंह ने हॉस्पिटल शूटआउट के इनाम के तौर पर डी गैंग से पायी और कुछ कहते हैं की नेपाल से आयी।



लेकिन असली खेल तो होता हैं गोली का।

और नेपाल से हर जगह तो जा नहीं सकती तो इसका मतलब एक सेन्ट्रल प्रोक्योरमेंट डिपो टाइप होगा और वहां से जहाँ जरूरत हो, तो एक बार कहीं पहुँच भी गयीं तो वहां से आजमगढ़, गाजीपुर, बलिया, छपरा, आरा, सिवान सब जगह मिर्च मसलों के साथ। और ४० किलो सूखी लाल मिर्च के बोरे में एक दो किलो कारतूस तो कहाँ पता चलता हैं।


डी बी की ये बात भी सही थी की माफिया वालों को खास तौर से पूर्वांचल में लड़कियों का ज्यादा शौक नहीं था, कई तो एकदम परिवार वाले, हाँ तीसरे चौथे पायदान वालों की, शूटर्स की बात अलग थी और ये शुक्ल जी उन्होंने उसी पायदान से शुरू किया होगा और दूसरी बात ये हैं की चाहे अखबार हो ट्रक और बस में बजने वाले कैसेट के गाने हों या चाय की दूकान की बातचीत इन छुटभैयों का महिमा मंडन भी अच्छी तरीके से किया जाता था ( बड़े माफिया की नाम लेने की हिम्मत किसी में नहीं थी) तो कैशोर्य की पायदान पर पैर रखती लड़कियों के मन में भी,


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तो कभी शुक्ला ने तांक झाँक के बाद सोचा होगा चांस ले सकते हैं। और फिर सेठजी पर प्रेशर भी बनाना आसान होगा, इसलिए उनकी लड़की उठायी गयी होगी, वो आपरेशन सिंह के लेवल का नहीं लगता लेकिन उसने आब्जेक्ट भी नहीं किया होगा।

और फिर कुछ ले देकर जो छोटा चेतन का मोहरा बोल रहा था, यानी महीने वार रकम, और सेठ जी का भी फायदा,


तबतक डी बी की आवाज सुनायी दी,

" अरे यार ये फोन, यस सर यस सर, करते,,,,, अच्छा मुद्दे पे आओ " और उनकी आवाज धीमी होगयी

" ये वही हैं न चिट्ठी वाली, किस्मत वाले हो "



उसी तरह धीमी आवाज में मैंने कबूल किया, हाँ वही है।


चिट्ठी वाला किस्सा तो पूरा हॉस्टल जनता था, करीब तीन साल से, अंतर्देशीय पत्रों का चक्कर, और डर ये लगता था कोई खोल के झाँक न ले। मैंने लाख गुड्डी से कहा था लिफ़ाफ़े में भेजो लेकिन वो मेरी सुनती तो गुड्डी क्यों होती।

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चिट्ठियां सारी हॉस्टल के आफिस की टेबल पे रखी रहती, जिसका होता उठा लेता या कोई उस विंग वाला होता तो वो भी ला के दे देता। लेकिन गुड्डी की चिट्ठी के चक्कर में, मैं भी बेवकूफों की तरह जिस दिन गुड्डी की चिट्ठी आती, उसी दिन जवाब लिखा जाता, भेजा जाता और अगले दिन से हॉस्टल के आफिस का चक्कर चालू दिन में तीन बार और कुछ दिन में उड़ती चिड़िया के पर भांपने वालों ने भांप लिया कोई खास चिट्ठी है। बस एकाध बार चिट्ठी जब्त भी हो गयी और सबको चाय पिलाने के बाद ही मिली, और फिर गुड्डी की मोती ऐसी राइटिंग, पता देख के ही लोग समझ जाते थे की, कोई खास है।

हाँ समझदार तो वो है तो बस ये गनीमत थी की नाम नहीं लिखती थी बस बनारस, और इतना तो सब को पता चल गया की आनंद बाबू का चक्कर किसी बनारस की चिट्ठी वाली से है।

डी बी ऐसे दो चार क्लोज लोग ही थे जिन्हे नाम मालूम था लेकिन उसके आगे कुछ नहीं।



डी बी ने एक हॉस्टल के सीनियर फिर जॉब में सीनियर होने के नाते एक काम की बात बोली, " तुम घर जा रहे हों न "

" हाँ मैं हलके से बोला। गुड्डी मेरे कंधे पे सर रखे शायद ऊंघा रही थी, रतजगे की तैयारी में, थोड़ी सी नींद कही भी कभी भी।

" स्साले, अभी घर पे शादी की बात पक्की कर ले, किस्मत है तेरी इतनी अच्छी लड़की मिल रही है। और तेरी ट्रेनिंग तो अभी पांच छह महीने बची है न "



" हाँ, बस मई से फिल्ड ट्रेनिंग तो यहीं यूपी में ही और फिर सितंबर तक पोस्टिंग " मैंने बताया।


" बेस्ट है, सबसे अच्छा फील्ड ट्रेनिंग के टाइम में शादी कर ले , अगर एक बार पोस्टिंग हो गयी न तो गिन के तीन दिन की शादी की छुट्टी मिलेगी और सुहागरात के दिन फोन आ जायेगा, कही बंदोबस्त में ड्यूटी लगी है, फिर पता नहीं कहाँ कोने अंतरे पोस्टिंग हो, और हाँ वो तेरा पेपर पढ़ा था मैंने मेरे पास भी असेसमनेट के लिए आया था, जबरदस्त था, डाटा भी काफी था और अनैलेसिस भी।"



ट्रेनिंग में दो साल में दो पेपर लिखने होते हैं तो मैंने पूर्वांचल का माफिया लिखा था नाम तो पेपर टाइप ही था, सोशियो -इकोनॉमिक पर्स्पेक्टिव और ईस्टर्न यू पी माफिया। लेकिन असली खेल था फील्ड विजिट के नाम पे एक हफ्ते का टाइम मिलता था, ईस्टर्न यूपी मतलब हफ्ते भर के लिए में घर आ गया और गुड्डी भी उस समय आयी थी।

डीबी ने मेरा पेपर ध्यान से पढ़ा था, और इन्होने एक टेढ़ा सवाल पूछ लिया,

" ये तो ठीक है की पूर्वांचल में माफिया का चक्कर जो ७० और ८० के दशक में शुरू हुआ और ९० के दशक में अमरबेल की तरह फ़ैल गया, उसका आधार जाति था लेकिन उसका फायदा क्या मिला और उससे लिमिट्स क्या सेट हुईं ?

बस मुझे मौका मिल गया ज्ञान बघारने का और मैं नॉन स्टॉप बोलता रहा। गुड्डी और रीत के सामने तो बोलने का सवाल ही नहीं था,


" दोनों गुट दो डॉमिनेंट कास्ट के थे और सबसे बड़ी बात मुझे ये लगी की एक फ्यूडल कल्चर के बचे हुए अंश साफ़ साफ़ दिख रहे थे, प्रभुत्व स्थापित करने की लड़ाई और उस प्रभुत्व का एक्सटर्नल मैनिफेस्टेशन। और सबसे बड़ा अडवांटेज था उन्हें बिना बोले अपनी जाति के लोगों का अलीजियेंस मिला, फिजिकल, फायनेंसियल और इमोशनल सपोर्ट। और क्योंकि सैकड़ों सालों से ये ढांचा वहां था, इनबिल्ट था तो इस तरह की ग्रुप लॉयल्टी का, "



लेकिन डी बी ने मुझे काट दिया, लेकिन तुमने उनके ढांचे के बारे में भी अच्छा लिखा था।



" हां," मैं बोला और स्वीकार किया की मैं भी चकित था। ऊपर की पहली दो तीन पक्तियों में तो जाति का असर था जिसमे उनके फंक्शनल हेड , एरिया हेड इत्यादि थे लेकिन जो फुट सोल्जर्स थे उनमे भी बहुत वैरायटी थी। शूटर्स तो टोटेम पोल में सबसे ऊपर थे लेकिन ज्यादातर का लाइफ स्पान शार्ट था, पर उसके अलावा वाचर्स, फ़ॉलोअर्स, स्पलायर्स , रुकने और रहने का ठिकाना देने वाले इन सबकी पूरी फ़ौज थी और कई तो बस ' बॉस खुश होगा ' के अंदाज में इन्फर्मेशन मुहैया कराते थे । "


" एकदम सही कह रहे हो, जब छह महीने बाद तेरी पोस्टिंग होगी तो पहली पोस्टिंग में ही पता चल जाएगा की असली ताकत किस के पास है "

थोड़ा दुखी , थोड़ा गंभीर हो के वो बोले, फिर जोड़ा,

मेरे अपने आफिस में मुझे पता नहीं है की में जो बोलता हूँ वो कहाँ कहाँ तक पहुंचता है। लेकिन ये चेंज भी तुमने एकदम सही मैप किया था और पूरे डिटेल्स के साथ, ये फंक्शनल कमाडंर वाली बात मेरी समझ में नहीं आयी लेकिन



और मुझे फिर बोलने का मौका मिला गया,

" जब एक बार जातिगत माफिया का सिक्का बैठ गया तो बस असली चीज थी कमाई और ठेकदारी वो समझ गए की रंगदारी से भी बढ़िया है, तो उन्होंने डिपार्टमेंट वाइज बाँट दिया, किसी को पी डब्लू डी , किसी को सिंचाई, किसी को रेलवे, किसी को बिजली, तो बस जितने ठेके वाले काम थे सब। रेलवे में तो मैं चौंक गया, एक पांडेय जी फंक्शनल हेड थे, स्टेशन पर बिकने वाली रेवड़ी के ठेके से लेकर कंस्ट्रक्शन के बड़े से बड़े ठेके तक, और छोटे ठेके में पैसा कमाने से ज्यादा प्रभुत्व और उनकी छत्रछाया, और वो सब बिन पैसे के इन्फॉर्मर के तौर पर काम करते थे। असली पैसा बड़े ठेके में था। और मैंने तो यहाँ तक सुना कि अक्सर रेलवे मिनिस्टर बिहार के होते थे, वहां कि रेलवे लाइन के काम भी होते थे लेकिन ठेका चूँकि रेलवे का मुख्यालय गोरखपुर में था इसलिए उत्तर बिहार के माफिया को दिक्क्त होती थी। इसलिए भी रेलवे का विभाजन हुआ और हाजीपुर बिहार के जितने रेलवे मंडल थे,

गुड्डी कि तरह डी बी को भी बात काटने कि आदत थी, वो बोले
"लेकिन ये काम करने की तो इन सब माफिया की ताकत तो थी नहीं

" काम तो काम करने वाली ही कम्पनिया ही करती थी हाँ उनके रेट में २० से २५ परसेंट बढ़ा के ये कोट करती थी, और ये एक्स्ट्रा पैसा सीधे फंक्शनल हेड के जरिये और दुसरे छोटे मोटे कम टेक्निकल लेबर इंटेसिव काम, सप्लाई के काम भी माफिया के आदमियों को तो वो अलग से पैसा बनाते थे। "



हम लोगो की पुलिस वाली गाडी रुक गयी थी , सामने कोई वृषभ विश्राम कर रहे थे। तो ड्राइवर बगल की दूकान से चाय लेने चला गया।

मैं और गुड्डी चाय सुड़क रहा थे और मैं डी बी से पॉलिटिक्ल, आफीसीएल, माफिया और बिजनेस नेक्सस के बारे में बात कर रहा था लेकिन डी बी ने कहा



" तुम्हारे पेपर में एक पार्ट नहीं है लेकिन वो सब्जेक्ट का पार्ट था भी नहीं और वो एकदम हाल का मुद्दा और अब मुझे सबसे ज्यादा डर उसी से लगता है, "



क्या, मेरी समझ में नहीं आया। और अब डी बी ने बोलना शुरू किया तो रुके नहीं। गाडी चल पड़ी थी।
लगता है पूरे माफिया स्टाइल ... काम चल रहा है...
लेकिन इनकी अपनी गुटबाजी.. भी इन पर अंकुश लगाती है...
और खुदाई इंसाफ हो जाता है...
 

motaalund

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माफिया, दंगा और पॉलिटिक्स



लो इंटेसिटी रायट्स, उससे माफिया का कनेक्शन, और लांग टर्म इम्पैक्ट टेरर के ब्रीडिंग ग्राउंड के तौर पर, माफिया तो अब समझो नयी सरकार के बाद ठंडा हो गया है लेकिन ये बड़ा सरदर्द है। " डी बी ने ठंडी साँस लेकर कहा।



" ये लो इंटेसिटी रायट्स, ये क्या बला है " मेरी समझ में नहीं आया

" कास्ट बनाम रिलिजन " वो बोल के रुक गए फिर समझ गए की मेरी समझ में नहीं आया। और बात आगे बढ़ाई,


" और उसी से नैरेटिव सेट करना, वेस्टर्न यूपी में तो शुरू हो गया था लेकिन अब यहाँ भी लगता है वही, किसी एकदम छोटे से मुद्दे को लेकर कस्बे में आग भड़केगी और फिर दो तीन दिन में जबतक पुलिस ऐक्शन होकर मामला ठंडा हो, ऐसा नैरेटिव सेट होगा, इलेक्ट्रानिक मिडिया वाले सब मिले हुए और आग भड़काएंगे। उन्हें टी आर पी का फायदा, और माफिया फायदा उठाती है हथियार सप्लाई करने का, और उसके बाद एक किसी कम्युनिटी वालों के मकान जल जाते हैं तो सस्ते मद्दे कोई माफिया का आदमी, या उनके इशारे पर और फिर वहां नया आपर्टमेंट, शहर के साथ गाँव, कसबे में भी, जो सैकड़ों साल से साथ रहते थे अलग,अलग

और एक तरह के लोग अगर एक साथ रहेंगे तो फिर आग सुलगाने में आसानी होती है उन्हें असली नकली वीडियो दिखा के, टेरर वालों के लिए भी अपना धंधा बढ़ाना आसान हो जाता है। फिर अगर ग्राउंड लेवल पे ये बात हो गयी तो, कहाँ तक पुलिस लगेगी, इसलिए ये दंगे, लैंड माफिया, पोलिटिसियन सबके लिए फायदे में हैं सिवाय हम लोगो के "

डी॰बी॰- “ठीक है तो। लेकिन लौटते समय घर जरूर आना और अकेडमी का क्या हाल है? वो खड़ूस चला गया…”

मैंने बोला- “हाँ। नए डायरेक्टर तो यूपी में ही ए॰डी॰जी॰ थे ना। हाँ लौटूंगा तो मिलूँगा…”

डी॰बी॰- “पक्का। वो भी खाली भाषण है। चलो टच में रहना…” कहकर उन्होंने फोन काट दिया।

बात उनकी सही थी, लेकिन तबतक उनकी कोई मीटिंग शुरू होने वाली थी और वो चल दिए और मैं सोच रहा था।



कुछ दिन पहले की बात है मैं ट्रेन से आ रहा था, और एक कोई बुजुर्ग सहयात्री थे, उन्होंने पूछा की कहाँ के रहने वाले हो और जैसे मैंने नाम बताया, बड़ी अजीब नज़रों से उन्होंने देखा और बोले

" अच्छा जहाँ का अबू सलेम है "

मैंने उन्हें लाख, शिब्ली नोमानी, हरिऔध, राहुल सांस्कृत्याययन से लेकर ब्रिगेडियर सुलेमान और कैफ़ी आजमी का जिक्र किया लेकिन अकेले अबू सलेम ने सबको धो दिया था।

आज मुझे समझ में आ रहा था नैरेटिव की ताकत।

मेरी चिड़िया चहक के बोली, " पता नहीं तेरे सीनयर क्या चकचक कर रहे थे लेकिन एक बात मुझे लगता है उन्होंने तुमसे समझदारी की, की "
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और बिना मेरे पूछे कान खींच के कान में बोली, " कुछ कहा न उन्होंने ट्रेनिंग में ही कर लेने को, तुम्हारे सीनियर हैं कुछ तो तुझे उनकी बात माननी चाहिए "



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मतलब मेरी चिड़िया सो नहीं रही थी, सुन रही थी

जो डी बी ने कहा था, " तेरी किस्मत अच्छी है जो ऐसी लड़की मिली है। अबकी घर पे बात पक्की कर लेना और पांच छह महीने ट्रेनिंग के बचे हैं, ट्रेनिंग में ही शादी कर लेना वरना बाद में ऐन सुहागरात के समय फोन आ जाएगा, और शादी की छुट्टी भी मुश्किल से तीन दिन की



तब तक होटल आ गया।
मीडिया वाले भी किसी एक का पक्ष लेकर मामले को तूल देकर..
आग भड़का देते हैं..
और नरेटिव वाली खबरें इतनी तेजी से फैलती हैं.
कि आग भी क्या उतनी तेजी से फैलता होगा...
 

motaalund

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होटल
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तब तक होटल आ गया था। रेडीसन होटल। शायद नया बना था। थ्री स्टार रहा होगा।





मैं- “अरे हम लोगों को तो खाली खाना खाना था यहाँ कहाँ?” होटल की बिल्डिंग देखते हए मैंने ड्राइवर से कहा।


“नया खुला है साहब अच्छा है और साहब ने यहाँ बोल भी दिया है…” ड्राइवर ने कहा और जब हम उतरे तो होटल का मैनेजर खुद हमारा इंतजार कर रहा था।

मैनेजर- “सर का फोन आया था, ये होटल हमारा नया है लेकिन सारी सुविधा हैं…” कहकर उसने हाथ मिलाया और लेकर अन्दर चला।

सामने ही रेस्टोरेंट था।

मैंने कहा- “असल में हम लोग सिर्फ लंच के लिए आये हैं…” और रेस्टोरेंट की ओर मुड़ने लगा।

“एक्सक्यूज मी…” पीछे से एक मीठी सी आवाज आई। मैंने मुड़कर देखा।

डार्क कलर की साड़ी में। हल्के मेकअप में। रिसेप्शनिस्ट थी, - “अक्चुअली। वी हैव मेड अरेंजमेंटस एट आवर स्यूट। फोल्लो मी…”

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मैनेजर बोला- “असल में मैं भी यही कह रहा था। आज रेस्टोरेंट में थोड़ा रिनोवेशन चल रहा है एंड रूम इस कम्फर्टेबल। आप थोड़ा रिलेक्स भी कर सकते हैं…”



रूम क्या था पूरा घर था। दो कमरों का स्यूट।

मीठी आवाज वाली दरवाजे के बाहर तक छोड़कर गई और बोली-


“आप लोग चाहें तो थोड़ा फ्रेश हो लें। मैं 10 मिनट में वेट्रेस को भेजती हूँ, या 108 पे आप रूम सर्विस को भी आर्डर दे सकते हैं…”

कहकर दरवाजा उसने खुद बंद कर दिया था, और मैग्नेटिक चाभी टेबल पे छोड़ दी थी।

मैं जानता था अब ये कमरा सिर्फ अन्दर से खुल सकता है।

गुड्डी तो पागल हो गई।

बाहर वाले कमरे में सोफा, एक छोटी सी डाइनिंग टेबल 4 लोगों के लिए, मिनी फ्रिज, और एक बड़ा सा टीवी 32…” इंच का एल॰सीडी, और बेडरूम और भी बढ़िया। लेकिन सबसे अच्छा था बाथरूम।


बाथटब, शावर सारी चीजें जो कोई सोच सकता है।

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गुड्डी ने बाथरूम में ही मुझे किस कर लिया। एक-दो पांच 10 बार।

झूठ बोल रहा हूँ। किस करते समय भी कोई गिनता है।

गुड्डी फिर दूर खड़ी हो गई और वहीं से हुक्म दिया- “शर्ट उतारो…”

मैं एक मिनट सोचता रहा फिर बोला- “अरे यार मूड हो रहा है तो बेडरूम में चलते हैं ना। यहाँ कहाँ?”

गुड्डी मुश्कुरायी और बिना रुके पहले तो आराम से शर्ट के सारे बटन खोले और फिर उतारकर सीधे हुक पे, अगला नम्बर बनियान का था।

अब मैं पूरी तरह टापलेश था। गुड्डी ने पहले मुझे सामने से ध्यान से देखा, एकाध जगह हल्की खरोंच सी थी। वहां हल्के से उसने उंगली के टिप से सहलाया और फिर पीछे जाकर, एक जगह शायद हल्का सा लाल था, वहां उसने दबाया, तो मेरी धीमी सी चीख निकल गई।

गुड्डी- “खड़े रहना…”


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वो बोली और बाहर जाकर फ्रिज से बर्फ एक टिशू पेपर में रैप करके ले आई और उस जगह लगा दिया।

एक-दो जगह और शायद कुछ घूंसे लगे थे या गिरते पड़ते टेबल का कोना, वहां भी उसने बर्फ लगाकर हल्का-हल्का दबाया।

गुड्डी- “पैंट उतारो…” मैडम जी ने हुकुम सुनाया। पीछे से फिर बोली-

“मैं ही बेवकूफ हूँ। तुम आलसी से अपने हाथ से कुछ करने की उम्मीद करना बेकार है…”

और मुझे पीछे से पकड़े-पकड़े मेरी बेल्ट खोल दी, और पैंट भी हुक पे शर्ट के ऊपर, और अब वो अपने घुटनों के बल बैठ गई थी।


एक क्लोज इंस्पेक्शन मेरी टांगों का। फिर पीछे से घुटनों के पास एक बड़ी खरोंच थी।

वाश बेसिन पे होटल वालों ने जो आफ्टर शेव दिया था उसे हाथ में लेकर उसने ढेर सारा घुटने पे लगा दिया।

“उईईई…” मैं बड़ी जोर से चीखा।

गुड्डी- “ज्यादा चीखोगे। तो इसे खोलकर लगा दूंगी…”

मुश्कुराते हुए उसने अपनी लम्बी उंगलियों से चड्ढी के ऊपर से ‘उसे’ दबा दिया।


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दर्द, डर और मजे में बदल गया।


गुड्डी- “चड्ढी उतारोगे या मैं उतार दूँ? वैसे अन्दर वाला कई बार देख चुकी हूँ। आज इसलिए ज्यादा शर्माने की जरूरत नहीं है…”


“नहीं मैं वो उतार दूंगा…” और मैंने झट से नीचे सरका दिया।

गुड्डी- “देखा। चड्ढी उतारने में कोई देरी नहीं…” मुश्कुराते हुए वो बोली। फिर पीछे से उसने देखा, एक हाथ में उसके बर्फ के क्यूब थे। मैं जो डर रहा था वही हुआ। वो बोली- “झुको…”


मैं झुक गया।

गुड्डी- टांगें फैलाओ।

मैंने फैला दी।

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और बर्फ का क्यूब अपने होंठों में पकड़ के सीधे मेरे बाल्स पे और वहां से हटाने के बाद मेरे पिछवाड़े के छेद पे।


और असर वही जो होना था, वही हुआ। 90° डिग्री।



…”
अब तो गुड्डी और आनंद बाबू स्यूट में बंद हों ...
और चाभी खो जाए...
 

motaalund

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वाह कोमल मैम


बहुत ही शानदार, इरॉटिक के साथ थ्रिलर, सस्पेंस।

सच में मजा आ रहा है।

अपडेट का आकार कितना भी हो, छोटा ही लगता हैं।

सादर
सही कहा महोदय ...
इरोटिका.. थ्रिल और गुंडे-बदमाश और पुलिस का नेक्सस..
और उनका चित्रांकन सचमुच अनूठा है...
 

motaalund

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छुटकी -होली दीदी की ससुराल में १००० पृष्ठ पूरे

इसके पहले मेरी एक और कहानी के १००० पृष्ठ पूरे हो चुके है

जोरू का गुलाम -१४२४ और कहानी जारी है और १५०० पृष्ठ से आगे ही बढ़ेगी

दस लाख से अधिक व्यू वाली तीन कहानी

। छुटकी -होली दीदी की ससुराल में =२१,८९,२२४
२ जोरू का गुलाम -----------३२,४४, ५९८

और मोहे रंग दे - १६,०६,१७०
कामना यही है कि इसमें और उतरोतर वृद्धि होती रहे...
 

motaalund

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इस अध्याय मे आपने अस्सी नब्बे के दशक के उत्तर प्रदेश के राजनीतिक और अपराधिक पहलू को उजागर किया है जिसका मै भी एक साक्षी रहा हूं ।
यह वह दौर था जब उत्तर प्रदेश और बिहार मे दबंग नेताओं और माफियाओं का दबदबा हुआ करता था । यह वह दौर था जब राजनैतिक दंगे , भू माफिया , अपहरण , हत्या साधारण बात हो गई थी । यह सब क्यों हुआ और इसका क्या राजनीतिक स्वार्थ था , अगर इसकी चर्चा शुरू कर दूं तो इस फोरम पर कई सारे विवाद शुरू हो जायेंगे ।
यह फोरम ऐसी चर्चा के लिए उपयुक्त मंच भी नही है ।

लेकिन इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि पूर्वांचल उस दौरान माफियाओं से अत्यंत ही त्रस्त था । पश्चिम उत्तर प्रदेश के बारे मे क्या कहूं ! लोग बाग शाम 6 बजे के बाद अपने जानवरों को भी घर से बाहर नही जाना देना चाहते थे , बच्चे और महिलाओं की बात तो दूर की थी ।
चूंकि मेरा सम्बन्ध पश्चिम बंगाल , बिहार और उत्तर प्रदेश तीनो जगहों से है इसलिए मै यहां की घटनाओं से अच्छी तरह अवगत था ।

जहां तक बात है नैरेटिव की , राजनीति मे रियलिटी से अधिक प्रभावकारी नैरेटिव की होती है । आप के विषय मे आम लोगों की क्या धारणा बनती है , लोग आप के बारे मे क्या सोचते हैं , राजनीति मे यह अधिक मायने रखता है । रियलिस्टिक कोई खास मायने नही रखता ।
हमारे देश के एक प्राइम मिनिस्टर साहब के बारे मे आम जनता मे परसेप्शन बना कि उन्होने या उनके फैमिली मेम्बर के कुछ लोगों ने एक डिफेंस डील मे दलाली ली है । और यह परसेप्शन , यह नैरेटिव चुनाव मे उनके हार का कारण बना । जबकि हकीकत यह है कि आज तक उस आरोप को साबित नही किया जा सका । कम से कम प्राइम मिनिस्टर और उनके फैमिली पर तो यह आरोप सिद्ध नही हो पाया ।

जो राजनीतिक पार्टी जितना मजबूत , ठोस और तथ्यात्मक नैरेटिव गढ़ने मे सफल होती है , वह चुनाव मे उतना ही अधिक सफल होती है ।

एक बेहद ही शानदार विषय को आपने इस अपडेट का पार्ट बनाया , जो हैं तो बहुत ही उम्दा , पर इस फोरम के बहुतायत रीडर्स को शायद ही समझ मे आए !

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट कोमल जी ।
जगमग जगमग अपडेट ।
सामने वाले की टाँग खींच कर हीं अपने को विजयी करना चाहते हैं...
और कई बार कामयाब भी हो जाते हैं..
लेकिन कुछ हीं दिनों में कलई खुल जाती है....
 

motaalund

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Jo bhi ho
Ye kamukta ka silsila to chalta rhega
Ek bat hai
Mai janta hu kya bura hai kya sahi hai
Lekin mai kamuk hu mai control nhi kr pata isiliye padta hu apki kahaniya lekin wahi ,muth marne ke bad संत ho jata hun🙃
Khair jo bhi ho
Ek bar padiyega aur jawab dijiyega


Mai janana chahta hun ki apki kya राय hai :
1. Kya porn ya aisi kahaniya jo aap likhti hai, wo ek major vajah nhi hai mad sexuality ka (jaha log riste नैतिकता sab bhul kar sexual freedom khoj rahe hai)
Kya ye ek badi vajah nhi hai increased rape cases in india ka
Immediate example is recent kolkata doctor rape case jaha rapist ne pahle porn dekha aur phir jo bhi kiya 😑
Apko guilt nhi feel nhi hota??
2. Mai janta hu aap bhi सामान्य logo ki hi tarah sexuality control nhi kr pati lekin apka kya kahna hai Osho (I bet you know him) ke upar jo kahte hai ki karo lekin involve mat hona


Matlb har samay to admi sexual nhi ho sakta, aap bhi nhi, to phir ye kam aap consciously karti hai; Sayad roji roti ke liye; To aap kya sochti hai sahi galat ko lekar ?


Remember mai sex ke khilaaf nhi hun sexuality ke khilaaf hu jo andar hi aag bankar kisi masum par bhadakta hai aur uski aur uske family ki life kha jata hai.

Some request 🙏
• Pls koi mere upar ye na chillaye ki "phir tu kya kr raha hai yaha, Osho ko Jake sun bla bla .." ==> It is because of curiosity I asked, mai bhi insaan hun aur sex mere bhi माथे पर चढ़ता है
Mai nhi control kr pata to yaha akar story padta hun phir पछताता hun ki mai galat kr rha hu

• Kisi ko agar bura lage meri bat to chupchap sah le, gali galauch na kare kyo ki mai thoda sa hi achha hu

• Aur apki (sab logo) ki humble logical answer ka swagat hai.

• Aur jo sawal komalraani (apne) pucha tha : सत्य क्या है
Ye philosophical question hai
Mera question factual hai
Mai banaras ke aspas se hu aur mujhe lagta hai ki aap banaras se hi hai
To yaha ki society kaisi hai
Aap apne hisab se data percentage me bata sakti hai like 15% log aise baki waise hai.
Haa ye bhi batayega ki kis degree tak sexuality exist krti hai
Matlb apki kahaniyo ke level tak ki bhi??


Aur Komalraani se आग्रह hai ki answer tabhi likhe jab sexually aroused na ho
Matlb neutral condition me
Ye nhi ki sexual hokar kuchh bhi.


Aur ha mai student hu.
कई बार जो पाप लगता है... वो पाप नहीं होता है..
और जो पुण्य है वो पुण्य नहीं होता..
केवल परिस्थितियां हीं उसी कार्य को पाप और पुण्य का दर्जा देती है...
और लेखक/लेखिका पर दोषारोपण गलत है...
लोग राम चरित मानस पढ़ कर रावण के कर्म का अनुशरण करने लगें... तो ये तुलसीदास की गलती नहीं है...
बल्कि उस उस व्यक्ति की गलती है..
क्योंकि अंत में तो पाप का नाश हीं दिखाया गया है...
 
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motaalund

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Jo bhi ho
Ye kamukta ka silsila to chalta rhega
Ek bat hai
Mai janta hu kya bura hai kya sahi hai
Lekin mai kamuk hu mai control nhi kr pata isiliye padta hu apki kahaniya lekin wahi ,muth marne ke bad संत ho jata hun🙃
Khair jo bhi ho
Ek bar padiyega aur jawab dijiyega


Mai janana chahta hun ki apki kya राय hai :
1. Kya porn ya aisi kahaniya jo aap likhti hai, wo ek major vajah nhi hai mad sexuality ka (jaha log riste नैतिकता sab bhul kar sexual freedom khoj rahe hai)
Kya ye ek badi vajah nhi hai increased rape cases in india ka
Immediate example is recent kolkata doctor rape case jaha rapist ne pahle porn dekha aur phir jo bhi kiya 😑
Apko guilt nhi feel nhi hota??
2. Mai janta hu aap bhi सामान्य logo ki hi tarah sexuality control nhi kr pati lekin apka kya kahna hai Osho (I bet you know him) ke upar jo kahte hai ki karo lekin involve mat hona


Matlb har samay to admi sexual nhi ho sakta, aap bhi nhi, to phir ye kam aap consciously karti hai; Sayad roji roti ke liye; To aap kya sochti hai sahi galat ko lekar ?


Remember mai sex ke khilaaf nhi hun sexuality ke khilaaf hu jo andar hi aag bankar kisi masum par bhadakta hai aur uski aur uske family ki life kha jata hai.

Some request 🙏
• Pls koi mere upar ye na chillaye ki "phir tu kya kr raha hai yaha, Osho ko Jake sun bla bla .." ==> It is because of curiosity I asked, mai bhi insaan hun aur sex mere bhi माथे पर चढ़ता है
Mai nhi control kr pata to yaha akar story padta hun phir पछताता hun ki mai galat kr rha hu

• Kisi ko agar bura lage meri bat to chupchap sah le, gali galauch na kare kyo ki mai thoda sa hi achha hu

• Aur apki (sab logo) ki humble logical answer ka swagat hai.

• Aur jo sawal komalraani (apne) pucha tha : सत्य क्या है
Ye philosophical question hai
Mera question factual hai
Mai banaras ke aspas se hu aur mujhe lagta hai ki aap banaras se hi hai
To yaha ki society kaisi hai
Aap apne hisab se data percentage me bata sakti hai like 15% log aise baki waise hai.
Haa ye bhi batayega ki kis degree tak sexuality exist krti hai
Matlb apki kahaniyo ke level tak ki bhi??


Aur Komalraani se आग्रह hai ki answer tabhi likhe jab sexually aroused na ho
Matlb neutral condition me
Ye nhi ki sexual hokar kuchh bhi.


Aur ha mai student hu.
कई बार जो पाप लगता है... वो पाप नहीं होता है..
और जो पुण्य है वो पुण्य नहीं होता..
केवल परिस्थितियां हीं उसी कार्य को पाप और पुण्य का दर्जा देती है...
 

motaalund

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Ek aur bat

Mujhe lagta hai ki apki story likhne ki कला बहुत ही लाजवाब है तो क्यों नहीं आप एक सामाजिक उपन्यास लिखने का try करती
Mujhe lagta hai ki yaha apke talent ka sahi istemal nhi ho Raha
Aur ha please love story likhiyega (wo padne me jyada maja aata hai)
Apne gunaho ka devta novel by Dharmaveer Bharati padha hoga
Usse achhi novel (in sense of understanding of love and seperation) maine aaj tak nhi padhi
Mujhe lagta hai ki aap uske aaspas ki novel likh sakti hai

Agar apne pahle hi likha ho aur mujhe nhi pata ho to pls kripa kare 🙏mujhe naam batae novel ka aur ho sake to pdf chipka de taki mai padh saku

Aur ek naughty baat (jaruri nahi hai aise hi likh diya hu)
Apki kahaniyo me bahut se gyan milte hain like don't cover your penis by the upper skin vagairah

Mai soch rha tha ki apke pas aisi koi book hai jisme ye sab Gyan likha ho to
Batayega
कहानी समाज का दर्पण होती है...
और क्या हीं आइना दिखाया है...
कोमल जी ने गुंडे, बदमाश, पुलिस , नेताओं के कारगुजारियों का...
कई बार जो बातें अख़बार या अन्य साहित्य नहीं कह पाती..
वो कहानियां आराम से कह डालती हैं...
प्रेमचंद की कहानियों में इसकी झलक आप जरुर महसूस करेंगे...
 
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