एकदम सही कहा आपने, वो आनंद बाबू जो बनारस में अपने भाई की ससुराल और अपनी होने वाली ससुराल में, शरमाते, झिझकते हिचकते लग रहे थे, जिनकी गुड्डी की बहनों, गूंजा से लेकर दूबे भाभी और गुड्डी की मम्मी बात बात पे रगड़ाई कर रही थीं, गुड्डी तो खैर रगड़ाई करने का लाइसेंस ऊपर से लिखवा के लायी थी और रीत तो रीत ही हैं। पर जहाँ मौका पड़ा आनंद बाबू ने प्रत्युतपन्नमति , हिम्मत और ताकत एक साथ दिखाई। और गुड्डी ने भी उनका साथ दिया।
और यह हीरो आपने सही कहा कम से कम इस फोरम के हीरो से पूरा तो नहीं लेकिन थोड़ा सा हट के हैं, आगे सुधी पाठक स्वयं भेद कर सकते हैं।