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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३४ - मॉल में माल- महक पृष्ठ ३९८

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर दें
 
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motaalund

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यह दृश्य परिवर्तन में ए झटके को दिखाने के लिए था, एक समय सब कुछ सामान्य लग रहा था, दूकान के बाहर का दृश्य भी और अंदर का भी।

और होली में छुटभैये बदमाश तो पैसा मांगने आते रहते हैं, लेकिन अगर माफिया का सीनियर मैनेजमेंट वाला कोई खुद चल के आ जाए, जिसका नाम सबने सुन रखा हो, जो एक बार जोर का झटका जोर से दे चुका हो, उनकी लड़की को उठवा लिया हो और बड़ी मुश्किल से ले दे के

तो ऐसी हालत में क्या होता हैं

उस हाल के दृश्य को दिखाने की कोशिश थी यह।
सरप्राइज एलीमेंट....
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने, वो आनंद बाबू जो बनारस में अपने भाई की ससुराल और अपनी होने वाली ससुराल में, शरमाते, झिझकते हिचकते लग रहे थे, जिनकी गुड्डी की बहनों, गूंजा से लेकर दूबे भाभी और गुड्डी की मम्मी बात बात पे रगड़ाई कर रही थीं, गुड्डी तो खैर रगड़ाई करने का लाइसेंस ऊपर से लिखवा के लायी थी और रीत तो रीत ही हैं। पर जहाँ मौका पड़ा आनंद बाबू ने प्रत्युतपन्नमति , हिम्मत और ताकत एक साथ दिखाई। और गुड्डी ने भी उनका साथ दिया।

और यह हीरो आपने सही कहा कम से कम इस फोरम के हीरो से पूरा तो नहीं लेकिन थोड़ा सा हट के हैं, आगे सुधी पाठक स्वयं भेद कर सकते हैं।
यहाँ कई पाठक तो सुपरमैन सदृश हीरो का चित्रण चाहते हैं....
लेकिन उससे उनकी अपनी अहम की संतुष्टि हो सकती है...
पर एक सधी हुई लेखिका के शानदार कृति से महरुम हो सकते है...
आप इसी तरह अपनी लिखाई से हमें आनंदित करते रहें...
धन्यवाद...
 

motaalund

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एकदम सही कहा आपने

और हाथ से रिवाल्वर दूर करना भी जरूरी था

अब आनंद बाबू अपना असली रूप दिखा रहे हैं।
साथ हीं ट्रेनिंग की जोर आजमाइश का मौका भी...
 

motaalund

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माफिया और पुलिस की मिलीभगत के बिना कुछ होता नहीं

और किस तरह से वो गुड्डी के पीछे पड़े हैं और आनंद बाबू के यह भी साफ हो गया
और नेताओं का वरद हस्त इन सब पर करेला नील चढ़ा का कहावत चरितार्थ करता है..
 

motaalund

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बहुत बहुत धन्यवाद

यह प्रसंग मुझे इस लम्बी कहानी के सबसे अच्छे प्रसंगो में लगता है। एक साथ कई बातें होती है और उनका जिस तरह चित्र खींचा है
वो चित्र लाजवाब और अद्वितीय है...
 

motaalund

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आफिसर का सर जोर तो आफिस का है अगर वही खतरे में पड़ गया

जिस कुर्सी पे बैठ के हड़काते हैं अगर वो कुर्सी ही कोई सरका ले तो बस थानेदार से लेकर कांस्टेबल तक और उस असर उन गुंडों पर भी पड़ा
अपने से ताकतवर पर इनका जोर नहीं चलता...
बस जी हुजूरी.... और चापलूसी...
 

motaalund

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और व्यावहारिक ज्ञान में भी। अपने साथ आनंद बाबू के फायदे में क्या होगा ये भी उसे मालूम रहता है
चहुँ ओर दृष्टिपात और उसके परिणाम के अनुसार सलाह...
आनंद बाबू का तो सिर कढ़ाही में...
 

motaalund

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भाग २६ ------------पूर्वांचल और,
गुड्डी

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“मतलब?” पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली।



सिद्दीकी बोला- “अरे साले तेरे बाप हैं। साल भर में आ जायेंगे यहीं…”

और अपने साथ आये दो आदमियों से मोहरों की तरफ इशारा करते हुये कहा-

“ये दोनों कचड़ा उठाकर पीएसी की ट्रक में डाल दो और शुकुल जी को (छोटा चेतन की ओर इशारा करते हुये) वज्र में बैठा दो। उठ नहीं पायेंगे। गंगा डोली करके ले जाना। हाँ एक पीएसी की ट्रक यहीं रहेगी गली पे और अपने दो-चार सफारी वालों को गली के मुहाने पे बैठा दो की कोई ज्यादा सवाल जवाब न हो। और न कोई ससुरा मिडिया सीडिया वाला। बोले तो साले की बहन चोद देना…”



जब वो सब हटा दिए गए तो थानेदार से वो बोला-


“मुझे मालूम है ना तो अपने जी॰डी॰ में कुछ लिखा है न एफ॰आई॰आर॰, फोन का लागबुक भी ब्लैंक हैं चार दिन से। तो जो कहानी साहब को सुना रहे थे, दुबारा न सुनाइएगा तो अच्छा होगा, और थानेदारिन जी को भी हम फोन कर दिए हैं। भाभीजी शाम तक आ जायेंगी तो जो हर रोज शाम को थाने में शिकार होता है ना उ बंद कर दीजिये। चलिए आप लोग। अगर एको मिडिया वाला, ह्यूमन राईट वाला, झोला वाला, साल्ला मक्खी की तरह भनभनाया ना। तो समझ लो। तुम्हरो नंबर लग जाएगा…”

थाने के पोलिस वाले चले गए।


तब तक एक गाड़ी की आवाज आई, वो हमारे लिए जो पोलिस की गाड़ी थी वो आ गई थी। हम लोग निकले तो दुकान के एक आदमी ने होली का जो हमने सामान खरीदा था वो दे दिया। सिद्दीकी हमें छोड़ने आया हमारे पीछे-पीछे अपनी गाड़ी में। गली के बाहर वो दूसरी तरफ मुड़ गया।

गुड्डी के चेहरे से अब जाकर डर थोड़ा-थोड़ा मिटा।
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“किधर चलें। तुम्हारा शहर है बोलो?” मैंने गुड्डी से पूछा।



“साहेब ने आलरेडी बोल दिया है मलदहिया पे एक होटल है। वहां से आप का रेस्टहाउस भी नजदीक है…”

आगे से ड्राइवर बोला।

पीछे से मैं बैठा सोच रहा था। थोड़ी ही देर में कहाँ कहाँ से गुजर गए। इतना टेंसन। लेकिन अब माहौल नार्मल कैसे होगा। गुड्डी क्या सोच रही होगी। मेरे कुछ दिमाग में नहीं घुस रहा था।

“ये ये तुम्हारी शर्ट पे चाकू लगा है क्या?”

गुड्डी ने परेशान होकर पूछा और टी-शर्ट की बांह ऊपर कर दी। वहां एक ताजा सा घाव था ज्यादा बड़ा नहीं लेकिन जैसे छिल गया हो। दो बूँद खून अभी भी रिस रहा था।

मुझे लगा वो घबड़ा जायेगी। लेकिन उसने लाइटली लिया और और चिढ़ाती सी बोली-


“अरे मैं सोच रही थी की फिल्मों के हीरों ऐसा कोई बड़ा घाव होगा और मैं अपने दुपट्टे को फाड़कर पट्टी बांधूंगी लेकिन ये तो एकदम छोटी सी पट्टी…”

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लेकिन उसकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी।
“ड्राइवर साहब कोई मेडिकल की दुकान पास में हो तो मैं एक बैंड-एड। …” मैं बोला।

लेकिन गुड्डी बीच में काटती बोली- “अरे नहीं कुछ जरूरत नहीं है। आप सीधे होटल ले चलिए बहुत भूख लगी है…” और उसने अपने बड़े से झोला नुमा पर्स से बैंड-एड निकला और एकदम मुझसे सटकर जितना जरूरी था उससे भी ज्यादा। मेरे हाथ में बैंड-एड लगा दिया लेकिन वैसे ही सटी रही अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ पकड़े जैसे खून बहने से रोके हो।



मैं बस सोच रहा था की कैसे उस दुस्वप्न से बाहर निकलूं।

पहले तो वो गुंडे और फिर पुलिस वाले। वो थानेदार। मैं अकेला होता तो ये यूजुअल बात होती लेकिन गुड्डी भी साथ। होली में उसके घर कितना मजा आया और घर पहुँचकर। कितना डर गई होगी, हदस गई होगी वो और मजे वजे लेने की बात तो दूर नार्मल बात भी शायद मुश्किल होगी।



लेकिन गुड्डी गुड्डी थी।


एक हाथ से मेरा हाथ पकड़े-पकड़े दूसरा हाथ सीधे मेरे पैरों पे और वहां से सीधे हल्के-हल्के ऊपर। मेरे कान में बोली-

“तुम डर गए हो तो कोई बात नहीं लेकिन कहीं ये तो नहीं डर के दुबक गया हो। वरना मेरा पांच दिन का इंतजार सब बेकार चला जाएगा…”
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मैं समझ गया की नार्मल होने की कोशिश वो मुझसे भी ज्यादा कर रही है।

मैं बस मुश्कुरा दिया। तब तक मेरा फोन बजा।
“मतलब?” पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली।
सिद्दीकी बोला- “अरे साले तेरे बाप हैं। साल भर में आ जायेंगे यहीं…”

ई तो सचमुच मूते लगा.. साला...
 

motaalund

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डी॰बी॰
सेठजी की लड़की

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डी बी का फोन था , थोड़े रिलैक्सड थे, बोले

“हाँ अब बता। गाड़ी में हो न। वो सब कचड़ा साफ हो गया ना?” वो पूछ रहे थे।

मैंने पूछा- “हाँ बास लेकिन ये लफड़ा था क्या?”


“अबे तेरी किश्मत अच्छी थी जो ये आज हुआ। तीन महीने पहले होता न,… तो बास मैं भी कुछ नहीं कर सकता था, सिवाय इसके की तुम्हें किसी तरह यूपी के बाहर पहुँचा दूँ। लेकिन अभी तो एकदम सही टाइम पे…” उन्होंने कुछ रहस्यमयी ढंग से समझाया।

मैंने फिर गुजारिश की- “अरे बास कुछ हाल खुलासा बयान करो ना मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा…”

डी॰बी॰- “अरे यार हाल खुलासा बताऊंगा न तो गैंग आफ वासेपुर टाइप दो पिक्चरें बन जायेंगी। राजेश सिंह का नाम सुना है?” सवाल के जवाब में सवाल, पुरानी आदत थी।

“किसने नहीं सुना है। वही ना जिसने दिन दहाड़े बम्बई में ए॰जे॰हास्पिटल में शूट आउट किया था डी कंपनी के साथ…” मैंने अपने सामन्य ज्ञान का परिचय दिया।

डी॰बी॰- “वो उसी के आदमी थे जिसके साथ तुम और खास लोग…”

वो जवाब मेरी नींद हराम करने के लिए काफी था।

डी॰बी॰- “वही। और पिछली सरकार में तो किसी की हिम्मत नहीं थी की। लेकिन तीन महीने पहले जो सरकार बदली है वो ला एंड आर्डर के नाम पे आई है, इसलिए थोड़ा ज्यादा जोर है…”

मेरे दिमाग में गूँजा।

फेस बुक पे जो हम लोग बात कर रहे थे, नई सरकार खास तौर से डी॰बी॰ को ले आई है अपनी छवि सुधारने के नाम पे। पुरानी वाली इलेक्शन इसी बात पे हारी की माफिया, किडनैपिंग ये सब बहुत बढ़ गया था, खास तौर पे इस्टर्न यूपी में था तो हमेशा से, लेकिन अभी बहुत खुले आम हो गया था।

डी॰बी॰ का फोन चालू था-

“तो वो सिंह। पिछले सरकार में तो सब कुछ वो चलाता था, लेकिन जब सरकार बदली तो वो समझ गया की मुश्किल होगी। उसके बहुत छुटभैये पकड़े गए, कुछ मारे गए। उसने उड़ीसा में माइनिंग में इन्वेस्ट कर रखा था तो अब वो उधर शिफ्ट कर गया है। जो दूसरे गैंग है उनको उभरने में थोड़ा टाइम लगेगा। इसके गैंग के जो दो-तीन नंबर वाले थे वो अब हिसाब इधर-उधर सेट कर रहे हैं या क्या पता सिंह ही दल बदल कर 6-7 महीने में इधर आ जाय…”

“और वो शुक्ला?” मेरे सवाल जारी थे।

डी॰बी॰- “वो तो खास आदमी था सिंह का। तुमने सुना होगा बाटा मर्डर…”

“हाँ। वो भी तो सिंह ने दिन दहाड़े पुलिस की कस्टडी में…” मैंने बताया।

डी॰बी॰- “वो साला भी कम नहीं था। लेकिन अभी जो होम मिनिस्टर हैं उनका खास आदमी था। जेल से उसको ट्रांसफर कर रहे थे यहीं बनारस ला रहे थे, आगे-पीछे पुलिस की एस्कोर्ट वैन थी, एक ट्रक पीएसी भी थी, लेकिन तब भी,… 4 एके-47 चली थी आधे घंटे तक, 540 राउंड गोली। सिंह ने जो 4 शूटर लगाए थे उसमें से एक तो उसी समय थाईलैंड भाग गया, शकील का गैंग जवाइन कर लिया। एक नेपाल में है। एक को हम लोगों ने पिछले हफ्ते मार दिया,शुक्ला का हाथ लोग कहते हैं पूरी प्लानिंग में था। और उसके पहले सिंह के टॉप शूटर्स में था, चाक़ू में भी नंबरी।
डी बी रुक गए और मैं सोचने लगा, उसका चाक़ू का हाथ, अगर गुड्डी ने टाइम पर बचो न बोला होता तो निशाना उसका एकदम सही था। और जिस तरह से बजाय कट्टा के दो विदेशी रिवाल्वर लिए था उसी से लग रहा था, लेकिन डी बी ने शुक्ला और सिंह का आगे का रिश्ता बताया

"ये सिंह का रेलवे, हास्पिटल और रोड का ठीका भी सम्हालता था। लेकिन अब सरकार बदलने के बाद उसे कुछ मिल नहीं रहा था। इसलिए अपना सीधा,… सिंह का बचा खुचा नेटवर्क तो है ही लेकिन शुक्ला अलग से। इसलिए अब सिंह के लोग भी उसको बहुत सपोर्ट नहीं करते थे। हाँ 6-7 महीने बचा रहता तो जड़ जमा लेता। बाटा वाले शूट आउट में सिद्दीकी का बहनोंई भी मारा गया था, 38 साल का बहुत ईमानदार इन्स्पेक्टर। उसके अलावा साले सभी मिले थे, वरना पुलिस की कस्टडी से। इसलिए मैंने सिद्दीकी को खास तौर से चुना…”



मेरा एक सवाल अभी भी बाकी था, सवाल भी और डर भी- “वो सेठ जो। उनको तो कहीं कुछ नहीं होगा?”


डी॰बी॰ हँसे और बोले- “अरे यार तुम मौज करो। ये सब ना, उसको कौन बोलेगा? सिंह को तो वो अभी भी हफ्ता देता ही है, और वैसे भी अब वो सिंह यहाँ का धंधा समेट रहा है। माइनिंग में बहुत माल है। खास तौर से उसने वहां एक-दो मल्टी नेशनल से हिसाब सेट कर लिया है। यूपी से लड़के ले जाता है। वहां जमीन पे कब्ज़ा करने में ट्राइबल्स को हड़काने में, तो अब बनारस की परचून की दुकान में,…. शुक्ला था तो उसको तुमने अन्दर करवा दिया। अब साल भर का तो उसको आराम हो गया और उनका रिश्ता सिंह से पुराना था।

उसकी दुकान से इस्टर्न यूपी, बिहार सब जगह माल जाता था तो उसी के अन्दर डालकर हथियार खास तौर से कारतूस, बदले में सेल्स टैक्स चुंगी वाले किसी की हिम्मत नहीं थी।

और बाद में शुक्ल ड्रग्स में भी। तो सेठजी की हिम्मत नहीं हो रही थी, तो उसकी लड़की उठाकर ले गए थे। फिर जो सौदा सेट हो गया तो। वैसे भी शुक्ला को एक-दो बार इसने घर पे भी बुलाया था। वहीं पे उसकी लड़की इसने देखी।

और ज्यादातर माफिया वाले मेच्योर होते हैं। उनका लड़की वड़की का नहीं होता, ज्यादा शौक हुआ तो बैंगकाक चले गए। लेकिन ये नया और थोड़ा ज्यादा। तो अब वैसे भी उन्हें डरने की बात नहीं है और एक-दो हफ्ते के लिए तुम्हें इत्ता डर है तो सिक्योरिटी लगा दूंगा। उसका फोन तो हम टैप करते हैं…”
तो वो सेठ जी की लड़की वाला मामला, मेरे अभी भी समझ में नहीं आया था, मैंने पूछ लिया।

डी बी हंस के बोले अभी पांच छह महीने बाद पोस्टिंग हो जायेगी न तो समझ में आ जायेगी। मुझे भी समझ में नहीं आ रहा था। जब मैं यहाँ आया साल भर पहले तो पता चला था लेकिन सेठ जी ने ऍफ़ आई आर तक तो करवाई नहीं। मुझे आये साल भर से ऊपर होगया और मुझे पता चला तो बहुत गुस्सा आया। सेठ जी से कहलवाया की रिपोर्ट तो करवा दीजिये, पुलिस प्रोटेक्शन भी दूंगा लेकिन आ के हाथ जोड़ के खड़े होगये। नहीं साहब, अब तो बिटिया भी आ गयी है सब लोग भूल गए हैं। फिर से अखबार, कोर्ट कचहरी, गवाही, लड़की की जाति शादी में झंझट होगा। लेकिन जानते हो असली बात क्या थी,

" नहीं " मैंने फोन पर भी जोर से सर हिलाया।

" अरे डील में सेठ जी को भी बहुत फायदा हुआ। कई जगह की सप्लाई का ठेका मिल गया, जितना महीना बाँधा था उससे बहुत ज्यादा और फिर जब से नयी सरकार आयी, उससे भी उनकी रब्त जब्त। "
पुलिस अपनी पे आए तो कोई गुंडा बदमाश..
अपनी उंगली तक नहीं हिला सकता...
लेकिन दोनों की मिली भगत.. जो न कर जाए कम है..
तब जनता जनार्दन की बेआवाज लाठी हीं काम आती है...
 
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