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फागुन के दिन चार भाग ३० -कौन है चुम्मन ? पृष्ठ ३४७
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उमर का वो पड़ाव हीं कुछ ऐसा होता है...Shadi me dulhe ka bhai kabhi bachta he kya. Gariyana to thik tha. Par makup vala jo seen dala has has kar pet dukh gaya. Anand ji ki cousin badi tez nikli.
Sabse last vala seen jabardast nikla.
ये सब लाइनें यादगार और दिल को छू लेने वाली होती हैं...Jab puchha byah karoge is se bolo.
Bas vahi seen dill ko gudguda gaya. Amezing create kiya he. Jabardast shararat bhi aur haya bhi. Jese fantasy aur chah ka matlab samaza diya ho. Jabardast ....
आनंद बाबु खुद हीं नहीं बचना चाहते...Amezing. Pagal kar diya. Kahi na kahi mohe rang de vali vo shararat feel hui muje. Alag he par feel vahi lagi. Bahot maza aaya. Aur Anand babu ka to bachna mushkil he. Par guddi rani ko dekhne ke lie to sab zelna padega. Mahtari pe pande chadhvane padenge. Amezing
और टीन एजर्स की लव स्टोरी हर बार हिट होती है...एकदम सही कहा फैंटसी और चाहत
शादी ब्याह में कोई लड़की दिखती है, अच्छी लगती है, वो कभी देख के मुस्करा देती है, बस. फिर कभी सहेलियों के झुरमुट में बादल में बिजली की तरह दिखती है, आँखे चार होती हैं,
बस यही मन करता है बस एक बार और दिख जाए,...
फिर नाम मालूम हो जाए ,... और मुंह भर बात हो जाए,... और प्यार की बेल चढ़नी शुरू होती है,...
और उसी में कोई उसी लड़की के बारे में पूछ ले, ब्याह करोगे,... झिझक लाज,... और बाद में अहसास होता है की चिढ़ाया जा रहा था, .... लेकिन उस मज़ाक में भी चाहत को एक उम्मीद दिखती है क्या पता,... हो जाये तो
और उसी उम्मीद की ऊँगली पकड़ के जिंदगी थोड़ा और आगे बढ़ती है, थोड़ा मुस्कराती है
गुड्डी और आनंद का यह किस्सा कितने टीनेजर्स का होता है,
आपने इसे सहारा दिया, आपको अच्छा लगा,... आभार।
सहज पके सो मीठा होय...एकदम सही कहा आपने इन गारियों की मिठास वही समझ सकता है जिसने इन्हे गाया हो और जिसने इन्हे सुना हो। मैं सिर्फ वही गारिया या बाकी लोकगीत लिखतीं हूँ जो मैंने कभी गायीं हो या सुनी हों।
खाने वाले खाने की रफ़्तार धीमी कर देता है, रोज से दूना खा लेता है,... इसी बहाने भाभियों, सालियों की रस घोली आवाज में एक दो और सुनने को मिल जाए,... और साथ में आनंद जानता है की जब तक खाना चल रहा है, गुड्डी साथ में है उसे खाना खिला रही है , जहाँ खाना ख़तम हुआ , वो किसी और काम के लिए निकल जायेगी या गुड्डी की मम्मी या चंदा भाभी आ जाएँगी।
यह कहानी सच में धीमे धीमे पढ़ने की चीज है, पढ़ने से ज्यादा महसूस करने की, हम सब की जिंदगी में ऐसे मीठे पल आते हैं पर जिंदगी की आपाधापी, कभी इम्तहान, कभी नौकरी उसे धकिया कर आगे बढ़ जाते हैं
ये प्रसंग, ये पल पुराने पन्नो को पलट कर उन्हें याद दिलाने के लिए,
और शब्दों में व्यक्त करना.. सब लेखकों के वश की बात नहीं...वाह कोमल मैम
कितने अच्छे से और गहराई से टीनेज की मनोदशा बताई है।
सादर
Variety is spice of life.Bilkul sahi kaha komalji. Yaha muje kuchh alag laga to vo ye ki mohe rang de thi komal ki jubani. Ek nari ki chahat ,vedna, anubhav kahani. Vahi yaha to sajan ji. Matlab ek purush ki jubani har ek feelings ko. Amezing he. Dono hi.
इससे दो अंजान लोग और परिवारों के बीच नजदीकियों का संचार होता है...Bilkul sahi kaha komalji. Gariyana ye gane to ham bhi gate he. Khushiyo ke in kisso me ek spardha si hoti he. In hasi mazak ki boli me kon jitega. Kabhi dulhe ke bhai bahen to kabhi dulhe ki buaa tai mahtari sab ko gali padti he. Unke dosto ki to alag se prabandh hoti he.
Gariyana bhi to khane pine chalne firne tak sab pe. Kabhi to ladki vale ke ladko ke nam se bhi jod jod kar chidhaya jata he. Par in gariyane me pyar masti shararat khushiya chhupi hoti he. Gariyate hi risto se riste judte he. Dosti hoti he. Vyavhar bante he. Amezing komalji
सूख दुःख.. खुशी के पल.. शरारतें.. यही तो जिंदगी की सच्चाई है...कहानी लिखते समय या कमेंट का जवाब देते समय कई बार मैं कोशिश करती हूँ यादों को कुरेदूँ , कई बार वो खुद सामने आके खड़ी हो जाती हैं और कहती हैं , मेरे बारे में नहीं लिखोगी, मुझे एकदम बिसरा दिया , और बस कलम उधर ही मुड़ जाती है।
और कैशोर्य तो बस, जाड़े की धूप की तरह, नरमाहट वाली गरमी, कुछ अलसायी सी, कुछ भाभी की छुप के काटी गयी चिकोटियां की तरह, ... परछाई को पकड़ने की कोशिश की तरह, झप्प से आता है, जब तक समझो समझो, चला जाता है फिर कभी पुराने गानों में कभी स्कूल की तस्वीरों में मिलता है।
कभी अच्छा लगता है, कभी दुःख भी देता है, काश,...
जिंदगी की कहानी में तो काश,... के कितने पल आते हैं और बाद में रोज के काम में दब जाते हैं
कितने गुड्डी और आनंद शादियों में मिलते हैं, बतियाते हैं, ... मुड़ मुड़ के देखते हैं और जिंदगी कही और मुड़ जाती है।
पर यह तो कहानी है इसमें तो मैं कोशिश कर सकती हूँ, गुड्डी और आनंद साथ साथ ही रहें,
जो भी थोड़े बहुत लोग आएं उनसे मिलने,... उनसे मिलें, बतियाएं, गप्पे मारें
और हम लोग भी मुड़ के पीछे देखें,... दुःख सालता है, लेकिन अच्छा लगता है कभी कभी।
आप का साथ इस कथा यात्रा में तो रहेगा ही लेकिन कमेंट पर आपके कमेंट देखकर अच्छा लगा।
जब हम पाठक लोग भावुक हो उठते हैं..लिखने वाली तो मैं ही हूँ दर्द छलक जाता है।
यह पहली और एकमात्र कोशिश थी मेरी की नैरेटर एक पुरुष पात्र हो, उस के नजरिये से कहानी लिखी जाए। मैंने मन को समझाया कहानी कहते समय अपने को पार कर के जाना चाहिए, वह हमेशा अपने अनुभव और यादों के इर्द गिर्द नहीं होनी चाहिए , इसलिए मैंने नैरेटर बदल दिया, कहानी कहने का जिम्मा आनंद बाबू को दे दिया, ... पर
पता नहीं मैंने बेईमानी की या गुड्डी और बाकी स्त्री पात्रों ने जोर दिखाया, और यह कहानी भी स्त्री प्रमुख ही है।
मोहे रंग दे में नैन मिले लेकिन महीने दो महीने में शादी हो गयी, वहां नैन मिलते समय नायिका कैशोर्य के उत्कर्ष पर थी,
पर यहाँ तो कैशोर्य के शुरू के सोपान थे जब गुड्डी बाबू और आनंद मिले, फिर तीन साल तक कभी कभी मिलते ही रहे, ... और जब कहानी शुरू हुयी तो इसलिए थोड़ा सा फ्लैश बैक
मोहे रंग दे में कहानी एक तरह से सुहागरात से शुरू होती थी और नव वधु के शुरू के दिन थे, इस फोरम में, बाहर भी पति पत्नी की कहानी या तो सेक्स की होती है या झगडे की। पर मोहे रंग दे पति पत्नी के बीच कैशोर्य के रोमांस की तरह की कहानी है इसलिए आप ऐसे विरले रससिक्त लोगों को छोड़ के ज्यादा आशीष नहीं मिला उसे, ...
फागुन के दिन चार में सुहागरात तो छोड़िये शादी भी अभी बहुत दूर है।