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This story has several thriller scenes and it was one example.Bahut hi saandar aur lajwaab update hai
This story has several thriller scenes and it was one example.Bahut hi saandar aur lajwaab update hai
आभार, धन्यवाद। पढ़ने के साथ आप जो कमेंट दे रहे हैं उससे एक सीधा तादाम्य, कहानी पाठक और लेखक के बीच में स्थापित हो रहा है और कहानी लिखने में भी यह संवाद बहुत सहायक सिद्ध होता है।बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
मेजर का मिशन चल रहा है दो लड़कियों को तो आजाद करवा लिया है
इन भागों में पूरी स्थिति के साथ पात्रों की मनस्थिति और धैर्य का भी चित्रण हुआ है। बहुत धन्यवादबहुत ही शानदार लाज़वाब अपडेट है तीनो लड़कियों को बचा लिया लेकिन खुद को चाकू लग गया
Thanks so much, i am thankful for your comments.बहुत ही शानदार और मजेदार अपडेट था ऐसी स्थिति में भी नैन मटका और जीजा साली की मस्तियां चल रही है महक तो जीजा पर फिदा हो गई है
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
सभी आतंकवादी पकड़े गए तीनो सालियों ने तो जीजा से मजे भी ले लिए
इस कहानी में रोमांस के साथ आतंक और आतंक से लड़ाई भी है और वह लड़ाई पूरे देश में फैली है बल्कि देश की सीमा के बाहर भी है यह झलकियां कहानी के उन पक्षों को दिखाती हैं, आभार।सारे अपडेट बहुत ही शानदार और लाजवाब है
एक ओर मिशन कामयाब हो गया
It was meant to be like a volcano, thanks it worked and yes but there are always exceptions to the ruleThanks for correcting me Madam...as I said..I was scrolling down and reading the update..but may have missed the finer points. But my observation is still true...Guddi's talk with her Mummy over phone and speaker mode..etc..it was like a volcano..
Just too good..
Glad that I am following your story
Thx once again..
Btw, on a lighter note..they say...lightening doesn't strike twice..true (or rare) as well..
Let's see if it happens.. I hope you understand what I meant by it
komaalrani
आगे आगे देखियेदोनों ने मिलकर हीरो की बुंड बजा दी..
लेकिन गुंजा तो सिर्फ सपनों में हीं...
Wah Komalji nai titli Sweta. Vese bhi guddi to never mind he. Kabhi na kabhi kuchh ban hi jaega.मम्मी का फोन
" मम्मी का फोन "
जैसे किसी आगे बढ़ती फ़ौज को हाल्ट का हुकुम सुनाया जाय, बस उसी तरह। मैं खड़ा. हम लोग घर पहुँच गए थे, गुड्डी और चंदा भाभी का घर ऊपर फर्स्ट फ्लोर पर था, हम लोग नीचे खड़े।
मेरे दोनों हाथ पहले से फसे थे, दो नत्था के गुलाबजामुन की एक एक किलो की हांडी, पान, बीयर की बोतलें, और भी जो जो गुड्डी खरीदती गयी, मैं पकड़ता गया। और गुड्डी ने अपना झोलेनुमा पर्स में से पहले तो मोबाइल निकाला और पर्स मुझे पकड़ा दिया, बिना इस बात की चिंता किये की मेरे पास हाथ की लिमिटेड सप्प्लाई है।
" मम्मी आप लोग कैसी हैं ? ठीक हैं न ? गुड्डी ने मम्मी से पूछा।
ठीक, ... अरे जलवा है जलवा, दो बार तो चाय दे गया, खाना मैंने कहा की हम लोग लाये हैं तब भी बहुत जिद करके मटन बिरयानी, ... छुटकी को अच्छी लगती है तो,.... "
मम्मी की आवाज में ख़ुशी छलक रही थी।
तब तक पीछे से छुटकी की आवाज आयी, एकदम हंसती चीखती, मैं जीत गयी, मैं जीत गयी। दी हार गयीं।
और एक लड़की की आवाज छुटकी को चिढ़ाती, " तूने बेईमानी की, तूने तीन कार्ड छुपाये थे, अभी देख मैं निकालती हूँ, तेरी चड्ढी में से, ... हाथ डाल के "
छुटकी की खिलखिलाने की आवाज आ रही थी जैसे उसे कोई कस के गुदगुदी लगा रहा हो,... " दी छोड़िये छोड़िये, वहां नहीं, अंदर नहीं "
" क्यों अंदर कोई खास खजाना है क्या जो इत्ता छुपा रही है, सीधे से हाथ डालने दे, ... वरना मैं अभी खींच के उतार दूंगी " उस लड़की की शरारत भरी आवाज आ रही थी।
" मम्मी आप लोग कुछ खेल रहे हैं क्या, " गुड्डी ने मम्मी से पूछा।
" हाँ, हँसते हुए वो बोलीं, फिर जोड़ा, तीन दो पांच, मैं छुटकी और श्वेता, मंझली ऊपर लेटी कोई किताब पढ़ रही है। " मम्मी ने सबकी पोजीशन बता दी,
" श्वेता दी, वो भी,... और पापा कहाँ हैं ? " गुड्डी ने पूछा। फोन स्पीकर पर था, उन लोगो की आवाज तो सुनाई ही पड़ रही थी मेरी भी वहां सुनाई पड़ती इसलिए मैं चुपचाप।
और मम्मी ने पूरा किस्सा बताया,
और उसके साथ ही गुड्डी ने श्वेता के बारे में भी बता दिया, उससे एक साल सीनियर है स्कूल में इस साल बारहवे में गयी है।
उसके पापा के एक दोस्त हैं , आफिस में साथ काम करते हैं उन्ही की बेटी और फेमिली फ्रेंड भी।
मम्मी ने बोला की, श्वेता को भी कानपुर तक जाना था लेकिन उसकी बर्थ आर ए सी में रह गयी, कन्फर्म नहीं हुयी। पर उसकी सीट पर दो लड़के हैं इसलिए श्वेता को थोड़ा, ऐसा लग रहा था. जब वो उनके पास आयी तो मम्मी ने बोला की वो और छुटकी एक साथ लोवर बर्थ पे एडजस्ट हो जाएंगी और पापा अपर बर्थ पे चले जाएंगे।
लेकिन तभी जो टीटी था उसने सुना, तो उसने सजेस्ट किया की आप चारो लेडिस इस केबिन में एडजस्ट कर लें और बगल के कोच में जो टी टी की सीट होती है ७ नंबर वाली, पापा उसपे चले जाएँ। वो है साइड बर्थ लेकिन जौनपुर में दो बर्थ खाली होगी तो पापा को अंदर केबिन में एडजस्ट कर देंगे वो,... और उस केबिन में तेरे पापा के एक आफिस वाले हैं, तो बस तू तो अपने पापा को जानती है उनको भी,... तो वो बगल के कोच में , और श्वेता हम लोगो के साथ, तभी तो कह रही हूँ, इसे कहते हैं जलवा।
तभी छुटकी जोर से चीखी, " दी हाथ निकाल लीजिए, आप ने देख तो लिया न कोई कार्ड नहीं छुपाया मैंने "
मतलब हाथ छुटकी की चड्ढी में घुस गया था और अब श्वेता खिलखिला रही थी।
" नहीं नहीं मैं हाथ निकालूंगी, इत्ती मुश्किल से तो अंदर गया। क्या पता तू दुबारा कार्ड छिपा ले , चल पत्ते फेंट या हार मान ले "
गुड्डी भी समझ रही थी श्वेता की बदमाशी, हँसते हुए मम्मी से पूछा, " ये कार्ड कहाँ से मिला "
" और कहाँ से मिलेगा, जिसकी वजह से,... अरे जब श्वेता आयी और तेरे पापा दूसरे कोच में चले गए तो छुटकी भी उतर के श्वेता के साथ. श्वेता ने पूछा छुटकी से पत्ते खेलेगी, तो छुटकी चहक के बोली, खेलूंगी भी और आपको आज हराऊंगी भी, लेकिन फिर उदास हो के बोली, ताश तो हम लोग लाये नहीं।
वो कोच अटेंडेंट सुन रहा था, पूछने आया था कुछ एक्स्ट्रा तकिया तो नहीं चाहिए,... बस वही बोला, " अरे मिल जाएगा न अभी लाता हूँ " लेकिन थोड़ी देर में बोला, " यहां तो किसी के पास नहीं है, लेकिन खबर करवा दिया है अगले स्टेशन पर बस दस मिनट,... और सच में जैसे गाडी रुकी, किसी स्टेशन पर वो दो पैकेट कार्ड के,...
और बीच में बात काट के वो छुटकी से बोलीं,
" हे तुम दोनों झगड़ा मत करो, बस पांच मिनट, और अबकी पत्ते भी मैं फेंटूंगी, और तुम दोनों को हराऊंगी भी, बस दो मिनट रुको "
श्वेता का हाथ अभी भी वहीँ था, छुटकी से बोली वो,
" चल तेरी चड्ढी खोल देती हूँ,... न रहेगी चड्ढी न पत्ते छिपाने की जगह, "
और जिस तरह से छुटकी की सिसकी निकली, मैं भी समझ गया और गुड्डी भी की श्वेता की उँगलियाँ क्या कर रही हैं। लेकिन छुटकी श्वेता को पटाते बोली,
" प्लीज दी, ... अब तो,... अब तो हम दोनों एक ओर है , आज मिल के मम्मी को हराना है, वो बहुत बेईमानी करती है कभी नहीं हारती हैं "
( असल में ताश के खेल में गुड्डी और मेरी भाभी वो दोनों भी सुपर एक्सपर्ट थीं, गर्मी की छुट्टियों में तो सांप सीढ़ी, लूडो तक तो ठीक,... लेकिन जब ताश का नंबर आता था तो मैं हाथ खड़ा कर लेता था. मुझे एकदम नहीं आता था। गुड्डी और भाभी की मिली जुली कोशिश, थोड़ा बहुत तो सीखा मैंने लेकिन हरदम हार जाता था , ... कभी कोई गलत पत्ता चलता तो गुड्डी भाभी से शिकायत करती , आपके देवर एकदम नौसिखिये हैं , कुछ भी नहीं आता इन्हे "
और भाभी मेरे पीछे,
" भैया सीख लो वरना देवरानी आएगी तो मुझे ही बोलेगी, आपने अपने देवर को कुछ नहीं सिखाया।"
" सही तो बोलेगी , कुछ नहीं आता " गुड्डी फिर से पत्ते फेंटते मुझे मुस्करा के देखते, चिढ़ाते बोलती। मैं भी समझ रहा था गुड्डी किस खेल के बारे में बोल रही है ) .
और अबकी उन्होंने श्वेता को हड़काया, " हे बस पांच मिनट। और तुम और छुटकी मिल भी जाओगी न तब भी हराऊंगी , ज़रा के जरूरी बात करनी थी लेकिन तुम दोनों के झगड़े में मैं भूल गयी थी , और गुड्डी से बोलीं, हे वो
" हैं और कान पारे सुन रहे हैं , स्पीकर फोन आन है " मुस्करा के गुड्डी बोली, स्पीकर फोन उधर भी ऑन था, श्वेता और छुटकी भी सुन रही थीं।
सुन तो मैं रहा था लेकिन आवाज के साथ मन में चेहरे को भी देख रहा था,
गोल गोल बिंदी, बड़ी बड़ी काजर से भरी हरदम छेड़ती चिढ़ाती आँखे, गाढ़े लाल रंग वाले भरे मांसल होंठ, नाक में चमकती दमकती हीरे की छोटी सी कील ठुड्डी पर एक तिल और सबसे बढ़ कर छोटी सी लाल चोली में दबोचे, उभारे, खूब गोरे गुदाज उभार, जिनकी ऊंचाई, गहराई, कड़ापन, और कटाव सब कुछ ब्लाउज दिखाता ज्यादा था और छिपाता बहुत कम था, ...
और उन्हें भी मालूम था की मैं कितना ललचता था उन्हें देख के, इसलिए जरा सी बात पर उनका आँचल ढलक जाता था और जहाँ दोनों बड़ी बड़ी भारी गोलाइयाँ दिखीं पैंट टाइट, और ये उन्हें भी मालूम था मूसल चंद पर उनके गद्दर जोबन का असर,... और सबसे बढ़कर उनका खुलापन, छेड़ना, चिढ़ाना,... और मैं जितना लजाता उतना ही और रगड़ना ,
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं उनमे अगर गारी न दी जाए तो वो रिश्ते ही गाली लगते हैं, ...
वो बोल रही थी, मैं सुन रहा था लेकिन मन में, ...
" वो कानपूर से हम लोगो का लौटने का प्रोग्राम, तुम बोल रहे थे न की कोई बात हो तो सब उलट पुलट हो गया, ... ये तो वैसे भी महीने में बीस दिन टूर पे ही रहते हैं, बस चले तो पूरा महीना ही,... तो बस इनका कानपुर से ही टूर बन गया,...... कानपुर से ही होली के दो दिन बाद, ... तो मैं सोच रही हूँ की तीसरे दिन ही वापस आ जाऊं , लेकिन दो लड़कियों के साथ अकेले आना, फिर रिजर्वेशन, जाने का तो तुम थे इसलिए लेकिन लौटने का, ... कौन जाएगा टिकट लेने
तबतक श्वेता की आवाज सुनाई पड़ी,... छुटकी को चिढ़ाती
" तो मैं भी आप लोगो के साथ ही वापस चल चलूंगी, रास्ते में छुटकी को आठ दस बार हरा दूंगी ,... और बर्थ की कोई चिंता नहीं मैं तो छुटकी के साथ ही सो जाउंगी "
मैं आवाज से ज्यादा मन में उनका चेहरा, छेड़ती आँखे और बातें और सबसे बढ़ कर ब्लाउज फाड़ते,... और उनकी आवाज एक बार फिर चालू हो गयी,
" और मैं सोच रही थी की तुम गुड्डी को छोड़ने तो आओगे ही, तो एकाध दिन और रुक जाते, कम से कम तीन दिन, एक दो दिन में क्या,... अबकी की तो तुमसे भी मुलाकात भी बस,... और हमारा तुम्हारा फगुआ भी उधार है, हमारी होली तो अबकी की एकदम सूखी, तो दो तीन रहोगे तो ज़रा,...
" हम दोनों की भी,... " छुटकी ने जोड़ा और श्वेता ने करेक्शन जारी किया, " नहीं, हम तीनो की "
But in this case, lightning did strike twice.Just to clarify madam...not sure what you thought of "lightening"...
i had 2 things in mind...
1) next update of yours is also mindblowing (which is very much possible and hence true, not rare... )
2) Once again by coincidence, we both post our next update on the same day as yesterday... ..
and hence the lightening reference...
Lets see...1st is 100% possible...
komaalrani