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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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शादियों में जनवासे में वधू पक्ष की ओर से जासूस भी नियुक्त किये जाते थे...
वर पक्ष में किसका क्या नाम और रिश्ता है...
ताकि नाम के साथ गारियों से स्वागत किया जाए...
लेकिन एक बार हास्यास्पद बात ये हो गई कि दुल्हे और लड़की के भाई का नाम एक हीं था और दुल्हे के रिश्ते से दी जाने वाली गारियों में किसे दी जा रही है..
ये सुन के दोनों पक्ष मुस्कुरा रहे थे...
एकदम ये बात मेरी कहानी मोहे रंग दे में भी आयी

जहाँ लड़की की बहनें जिद्द कर के तिलक में आयीं ( सामान्यतया लड़कियां नहीं जातीं ) और इस मिशन के साथ की दूल्हे की बहनों का और सारी महिला रिश्तेदारों का नाम पता कर के आये
लेकिन जो आपने कहा है वो सिचुएशन भी आती है, और अगर वधु पक्ष में उस नाम वाला हुआ तो उस का नाम हटा के, सिर्फ इशारे से, लाल कोट वाला, पीली शर्ट वाला कह के काम चलाया जाता है।

रीत रिवाजों और गानों से मैं कहानी को जमीन से जोड़ के रखने की कोशिश करती हूँ।
 

komaalrani

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please do read, enjoy like and comment.
 

komaalrani

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Komal Madam, aapko dm kiya hain..Pls check once..thx.
komaalrani
aapko maine javwab de diya, kayi baar mesg dekhne men thoda time lag jata hai.
 

komaalrani

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Shetan

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मम्मी

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" और मैं सोच रही थी की तुम गुड्डी को छोड़ने तो आओगे ही, तो एकाध दिन और रुक जाते, कम से कम तीन दिन, एक दो दिन में क्या,... अबकी की तो तुमसे भी मुलाकात भी बस,... और हमारा तुम्हारा फगुआ भी उधार है, हमारी होली तो अबकी की एकदम सूखी, तो दो तीन रहोगे तो ज़रा,...

" हम दोनों की भी,... " छुटकी ने जोड़ा और श्वेता ने करेक्शन जारी किया, " नहीं, हम तीनो की "

और मैं जल्दी जल्दी कैलकुलेट कर रहा था, बनारस से भी हफ्ते में दो ही दिन सिकंदराबाद के लिए ट्रेन थी, जिससे मैंने लौटने का रिजर्वेशन करा रखा था, उसके हिसाब से मुझे एक डेढ़ दिन मिलता गुड्डी के यहाँ, लेकिन एक दिन का गुड्डी का एक्स्ट्रा साथ,... इसके लिए तो मैं,... और मैंने हल भी ढूंढ लिए, बाबतपुर ( बनारस का एयरपोर्ट ) से दिल्ली की तो तीन चार फ्लाइट रोज हैं और दिल्ली से सिकंदराबाद की भी, ... तो अगर मैं फ्लाइट से प्लान बनाऊं ,... तो कम से कम डेढ़ दिन और मिल जाएगा, और ट्रेनिंग शुरू होने के चार पांच घंटे पहले पहुँच जाऊँगा तो थोड़ा लेट वेट भी हुआ तो टाइम से,... हाँ रगड़ाई होगी तो हो , गुड्डी तो रहेगी न पास में,... और मम्मी खुश हो गयी तो क्या पता जो सपने मैं इत्ते दिन से देख रहा हूँ इस लड़की को हरदम के लिए उठा ले जाने का, ... वो पूरा ही हो जाए , ...

गुड्डी भी मेरी ओर देख रही थी, और अच्छा हुआ मुझे याद आ गया है गुड्डी ने क्या बोला था कैसे बोलना है


उनकी बात खतम हुयी भी की नहीं की मैंने बोलना शुरू कर दिया,

" मम्मी आप एकदम परेशान मत होइए मैं हूँ न,... "

उन्होंने जैसे चैन की साँस ली लेकिन फिर अचानक चौंक गयी और मुस्कराते, बोलीं,

" क्या कह रहे हो,... "

" आप एकदम परेशान मत होइए रिजर्वेशन के,.. " मैंने बोलना शुरू ही किया था की उन्होंने बात काट दी और हल्की सी खनखनाती हंसी के साथ बोलीं


" नहीं नहीं उसके पहले क्या कहा था "

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अब मैं समझ गया और गुड्डी भी मुझे कुछ चिढ़ाते कुछ घूर के देख रही थी,...

थोड़ा रुक के मैं हिम्मत कर के धीमे से बोला,... " मम्मी,... "

" सुनाई नहीं पड़ा , एक बार फिर से बोलो जोर से,... " अब मैं समझ गया वो चिढ़ा रही हैं,...

" मम्मी " गुड्डी को देखते हुए मैं जोर से बोला और गुड्डी जिस तरह से मुस्करायी, सब मेहनत वसूल हो गयी।
" एक बार फिर से " उधर से हलकी सी आवाज आयी,...


' मम्मी " अबकी मैं जितना शहद घोल सकता था घोल के बोला, सामने खड़ी ग्यारहवीं में पढ़ रही इस शहद की बोतल को पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता था
गुड्डी की आँखों में ख़ुशी थी, चमक थी और उधर से आने वाली आवाज भी अब और हल्की हो गयी थी,

" फिर "

" मम्मी " मैंने और प्यार घोलते हुए कहा ,

" एक साथ पांच बार बोलिये " उधर से छुटकी की आवाज आयी
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" नहीं दस बार ,...तू भी न छुटकी सच में अभी छोटी है सस्ते में छोड़ देती है ' हंसती खिलखिलाती श्वेता की आवाज थी।

" मम्मी, मम्मी, मम्मी, मम्मी, मम्मी मम्मी, मम्मी, मम्मी, मम्मी, मम्मी "

" तुम्हारे मुंह से बहुत अच्छा लगता है खूब मीठा, यही बोला करो " उधर से आवाज आयी,
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और गुड्डी ने सफलता भरी मुस्कान से मुझे देखा, जैसे बोल रही हो यही कह रही थी न तुमसे,... देखा मेरी बात का असर,....

पर मुझे चिढ़ाने के लिए कायनात में कोई कमी थी क्या, अब ये श्वेता भी जुड़ गयी थी, छुटकी के साथ जोर से बोली

" क्या बोला करो, ... "

" मम्मी,..." लेकिन मैंने अब अपनी बात पूरी कर दी, बिना इंट्रप्शन्स का ध्यान दिए,

" मम्मी, आप जरा भी चिंता न करिये ज़रा सी भी। मैं हूँ न, ... कल सुबह कानपुर में लोग आ ही जाएंगे,... और लौटने का टिकट रिजर्वेशन, आज कल तो इंटरनेट से हो जाता है, अभी तो टाइम है मैं कोटे के लिए भी बोल दूंगा, कोई आपको टिकट दे भी आएगा और स्टेशन पे जैसे आज आ लोग आ गए थे कानपुर में भी, और बंनारस में मैं और गुड्डी आएंगे आप लोगों को लेने।

और आप की बात सही है, आपसे तो अबकी ढंग से मुलाकात भी नहीं हो पायी, आप लोगो को निकलना था , ... लेकिन मैं होली के तीसरे दिन, आ जाऊँगा आप लोगों से पहले, और आप लोगो को लेने स्टेशन आऊंगा, और फिर दो तीन आप लोगो के साथ रह के ही जाऊँगा, ... फिर पता नहीं कब मुलाकात हो,... और बस आगे से ये मत कहियेगा की कौन है मैं हूँ ना,... "

उधर से कुछ आवाज आती उसके पहले गुड्डी चालू हो गयी, अपनी मम्मी, मेरा मतलब मम्मी से,



" सही तो है आखिर ६ फुट का आदमी, किसी काम तो आएगा, या खाली खाने के, मैं तो गिन रही थी पूरे पांच मालपूवे, आपने कहा था न चावल का दाना गिनने का, एक भी दाना नहीं छोड़ा, जितना हम तीनो बहने मिल के हफ्ते भर में चावल खाती है एक बार में, ... और मजे से अपनी बहन महतारी का पूरा प्रोग्राम , गदहे से , घोड़े से,... मम्मी आप चिंता न करिये, ये अपने मायके पहुँच के अपनी बहन कम माल के चक्कर में पड़ भी गए तो मैं रहूंगी न साथ। लौटने का रिजर्वेशन और आप को लेने मैं और ये आएंगे, ... और जहाँ तक लौटने का सवाल है , एक बार ये घर में घुस जाएँ , ...लौटेंगे तो तभी जब आप चाहेंगी। "

गुड्डी उसी हक से बोल रही थी जिस तरह से पत्निया पति के लिए बोलती हैं अपनी माँ से



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Kya bat he Komalji. Badi shararat se romance create kiya he. Amezing. Guddi ki hi shararat. Akhir bulva hi diya mammy. Jabardast aur lot te wakt rukne ka plan bhi he. Ab bolo mummy... Maza aa gaya.

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गुड्डी , उसकी मां , बहनें , फ्रैंड , पड़ोसन सभी ने उल्टी गंगा बहा कर रखा है । ऐसा लगता है जैसे इस बार किसी औरत का नही बल्कि एक मर्द का चीरहरण हो रहा है ।
आनंद साहब के लिए एक तरह का यह चीरहरण ही था । इतना पेशेंस , इतना सहनशक्ति , इतना सीधापन हर किसी लड़के मे नही होता ।
लेकिन आनंद साहब करे भी तो क्या करे ! यह दिल का मामला जो है । गुड्डी के हुस्न का जलवा जो है । उसकी अदाएं , उसकी नखरे , उसकी बातें या फिर उसकी शरारतें का जो है ।

मार्च का महीना चल रहा है । इसका मतलब फागुन के दिन चल रहे है । इस पुरे माह गांव के लगभग हर बस्ती मे , हर इलाके मे फागुन के लोकगीत गाये - बजाए जाते हैं जो अत्यंत ही कर्णप्रिय होते है । लोग अपने अपने ग्रूप बनाकर झाल - ढोल , गाजे - बाजे के साथ द्वार - द्वार जाकर होली के लोकगीत गाते हैं ।
मुझे याद है होली के दिन की शुरुआत मिट्टी - गोबर और कपड़े फाड़कर होती थी । दोपहर का पुरा समय एक दूसरे को गहरे रंग से सराबोर करके होती थी । ठंडाई और भांग के दौर से होती थी । और शाम - रात को अबीर - गुलाल और ड्राई फ्रूट के साथ गले मिलन के साथ इस पावन पर्व की समाप्ति होती थी ।
वैसे यह सब धीरे धीरे विलुप्त होते जा रहा है ।
आप के फागुन पर दिए हुए अपडेट वापस हमे उसी दौर मे ले जाते है ।
आप के यह अपडेट कभी-कभी हमे भाव - विह्वल कर देता है।
" जाने कहां गए वो दिन ।"

जहां तक ताश और जुआ खेलने की बात है , उस दौरान मै भी ऐसे मौके का एक पात्र बना रहा । मनोरंजन का यह भी एक बहुत बड़ा अंग था ।

आपकी स्टोरी बहुत अच्छी तरीके से आगे बढ़ रही है । धीरे धीरे किरदार के संख्या मे भी इजाफे हो रहे है । किरदारों का चरित्र भी शनैः शनैः डेवलप हो रहा है ।

आनंद साहब फिलहाल बिन ब्याहे दुल्हे का लुत्फ उठा रहे है । गुड्डी लाख कहे , पर आनंद साहब अपने शर्मीलेपन और अनाड़ीपन से निजात तो नही पाने वाले ।

बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
 
Last edited:

Sanju@

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फागुन के दिन चार भाग - ३

फगुनाई शाम बनारस की

तेरी मम्मी - ----मम्मी

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तबतक डिप्टी एस एस आ गए, ... गाडी चलने वाली है और मैं और गुड्डी उतर पड़े। हाँ गुड्डी के कान में गुड्डी की मम्मी ने कुछ समझाया भी।
लौटते समय मैंने उसके उभारों की ओर देखा। हम स्टेशन से बाहर निकल आये थे। और मुझे देखकर मुश्कुराकर उसने दुपट्टा और ऊपर एकदम गले से चिपका लिया और मेरी ओर सरक आई ओर बोली खुश।

“एकदम…” और मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया।

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“हटो ना। देखो ना लोग देख रहे हैं…” वो झिझक के बोली।

“अरे लोग जलते हैं जलते हैं और ललचाते भी हैं…” मैंने अपनी पकड़ और कसकर कर ली।

“किससे जलते हैं…” बिना हटे मुश्कुराकर वो बोली।

“मुझ से जलते हैं की कितनी सेक्सी, खूबसूरत, हसीन…”

मेरी बात काटकर मुश्कुराकर वो बोली- “इत्ता मस्का लगाने की कोई जरूरत नहीं…”

“और ललचाते तुम्हारे…” मैंने उसके दुपट्टे से बाहर निकले किशोर उभारों की ओर इशारा किया।

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“धत्त। दुष्ट…” और उसने अपने दुपट्टे को नीचे करने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया।

“तुम भी ना चलो तुम भी क्या याद करोगे। लोग तुम्हें सीधा समझते हैं…” मुश्कुराकर वो बोली ओर दुपट्टा उसने और गले से सटा लिया।

“मुझसे पूछें तो मैं बताऊँ की कैसे जलेबी ऐसे सीधे हैं…” और मुझे देखकर इतरा के मुश्कुरा दी।

“तुम्हारे मम्मी पापा तो…”

मेरी बात काटकर वो बोली- “हाँ सच में स्टेशन पे तो तुमने,…. मम्मी पापा दोनों ही ना। बहुत खुश थे। मम्मी तो एकदम निढाल थीं। बार बार यही कह रही थीं की तुम न होते,... सच में कोई तुम्हारी तारीफ करता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है…” और उसने मेरा हाथ कसकर दबा दिया।
“सच्ची?”

“सच्ची। लेकिन रिक्शा करो या ऐसे ही घर तक ले चलोगे?” वो हँसकर बोली।
चारों ओर होली का माहौल था। रंग गुलाल की दुकानें सजी थी।

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खरीदने वाले पटे पड़ रहे थे। जगह-जगह होली के गाने बज रहे थे। कहीं कहीं जोगीड़ा वाले गाने। कहीं रंग लगे कपड़े पहने।हम दोनों रिक्शे पे,....


....गलती मेरी ही थी, जैसा की हमेशा होता है। लेकिन गुड्डी अलफ़, चंद्रमुखी से ज्वालामुखी तो नहीं बनी थी लेकिन ज्यादा कसर नहीं थी,...

बात यह थी की मैंने बोल दिया था, तुम्हारी मम्मी,...

बस दुर्वासा की तरह तन गयी भृकुटि, एकदम चुप,... मैंने सोचा क्या गलत बोल दिया, ... लेकिन वो जानती थी की उसके सामने मेरी सोचने के शक्ति थोड़ी कुंद हो जाती थी और चार पांच बार सुना भी चुकी थी, ... मैं जैसे ही बोलता, मैं सोच रहा हूँ,...

तुरंत डांट पड़ती,

"क्यों सोच रहे हो, तुमसे किसी ने कहा सोचने के लिए. ... सोचोगे तो सोच में पड़े रहोगे,

चिंता मत कर चिंतामणि। मैं हूँ न सोचने के लिए, तुमसे जो कहा जैसे कहा जाए बस वैसे करो चुपचाप, और उतना तो हो नहीं पाता बड़े चले हैं सोचने।"

वो जानती थी मैं नहीं सोच पाउँगा, वो क्यों गुस्सा है इसलिए उसने मुंह फुलाए ही बोल दिया।

" ये तुम्हारी मम्मी क्या होता है, मेरी मम्मी, तेरी मम्मी,... " फिर बड़ी मुश्किल से सीधे सीधे उसने हल भी बता दिया,... " मम्मी नहीं बोल सकते हो,
--
--( मेरी आँखों के सामने गुड्डी की,.मम्मी की .. मेरा मतलब मम्मी की तस्वीर आ गयी )

--
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मैं समझ गया, बोल क्यों नहीं सकता था एक शब्द कम ही बोलना पड़ता, मैंने बोल दिया ' मम्मी ' और अपनी गलती मान के कान भी पकड़ लिया और फिर डांट पड़ गयी

" कान क्यों पकडे हो, मैं हूँ न तेरा कान पकड़ने के लिए "

लेकिन मैं सिंगल ट्रैक माइंड, मेरे मुंह से निकल गया,... सिर्फ कान ही पकड़ोगी या कुछ और भी पकड़ोगी।

बिना झझके उसने बोल दिया, " वो भी पकड़ूँगी और कान भी पकड़ूँगी और तेरी उस बहन कम माल, अपने नाम वाली से भी पकड़वाउंगी , खुश। देखो उस का नाम सुन के बांछे खिल गयीं, मम्मी उसके बारे में एकदम सही कहती हैं। "

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हुआ ये था की जब हम निकले थे स्टेशन से तो गुड्डी ने कहा की मम्मी तेरी बड़ी तारीफ़ कर रही थीं,... फिर रुक के बोली,... तुम यार चाहे जैसे हो, लेकिन कोई तेरी तारीफ़ करता है तो मुझे भी अच्छा लगता है. और मैं खुश लेकिन मुझे बाद में एक बात याद आयी जब में और गुड्डी निकल रहे थे तो मेरे डिब्बे से उतरने से पहले, उन्होंने गुड्डी को बुला लिया और थोड़ी देर तक कान में कुछ खुसुर फुसुर,... और वो बात मुझे नहीं पच रही थी। बस वही बात मैंने गुड्डी से पूछ ली, तुम्हारी मम्मी डिब्बे से उतरने से पहले कान में क्या कह रही थीं।

बस वहीँ से बात शुरू हुयी, गुड्डी ने ये तोग बताया, गुड्डी की मम्मी ने मेरा मतलब मम्मी ने क्या कहा था हाँ ' तुम्हारी मम्मी ' कहने पर एकदम अलफ़ जरूर हो गयी। मैं एकदम चुप हो गया, पता नहीं मुंह से क्या निकल जाए और ये सुनयना फिर से,... लेकिन


आँखों के सामने, गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी का चेहरा, और,... असल में मुझे ' ढूंढते रह जाओगे ' मैंन चेस्टर ' टाइप की महिलायें एकदम पसंद नहीं थी, दीर्घ स्तना, दीर्घ नितंबा और गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी तो, ३८ + वाली डबल डी कप साइज टाइप, लेकिन पत्थर जैसे कड़े चोली फाड़ते, और ब्लाउज भी हरदम इतना लो कट पहनती थीं की दोनों पहाड़ों के साथ बीच की घाटी भी, आलमोस्ट पूरी दिखती थी, और ब्लाइज भी ज्यादातर स्लीवेल्स और उभारों को कस के दबोचे, ... मैं अक्सर तो आँखे झुकाये रखता था या इधर उधर लेकिन कभी चोरी छुपे अगर आँख वहां चली भी गयी तो चोरी तुरंत पकड़ी जाती और उनका रिस्पांस और घातक होता, या तो आँचल लुढ़क जाता अपने आप और दोनों गोलाइयाँ साफ़ साफ़,... या कुछ देने के बहाने झुक जातीं और पूरी गहराई के साथ दोनों कंचे भी,...

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मैं जानता था उन की बदमाशी, लेकिन मेरे सीधे साथे मूसलचंद को नहीं मालूम था वो खड़े होकर एकदम,... और मैं तो चोरी छिपे लेकिन वो मुस्कराते हुए सीधे वहीँ देखती, जैसे कह रही हों ललचाओ ललचाओ, और उनका चिढ़ाना छेड़ना एकदम चौथे गियर में,

आज ही मेरी निगाहों की गलती, वो किचेन से निकली थीं कुछ कहने को, लेकिन पसीने से ब्लाउज एकदम चिपक गया था, वो गोरी गुदाज गोलाइयाँ , उस टाइट झलकौवा ब्लाउज से साफ़ साफ़ दिख रही थीं बस, ललच गया मेरा मन और तुरंत उन्हें अंदाज लग गया, उन्होंने आँचल ब्लाउज से हटा के कमर में बांध लिया जैसे कह रही हों देख ले मन भर के, ...


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और बहाना बनाया मेरी थाली में बचे चावल का,...गुड्डी को उन्होंने हुकुम सुनाया,...

" गुड्डी जरा किचेन से मोटका बेलनवा तो ले आना, बेलनवा से पेल के ठेल के पिछवाड़े घुसाय देंगे एक एक चावल "

गुड्डी खिस खिस हंसती रही. और गुड्डी की मम्मी, भाभी और, " एक बार मोटका बेलनवा घुसेड़ूँगी न, तो तोहार पिछवाड़वा, तोहरी अम्मा के भोंसडे से ज्यादा चौड़ा हो जाएगा, न विश्वास हो जब लौटोगे न तो उनका साया पलट के देख लेना,... सोच लो नहीं तो चावल ख़त्म करो "

मैं समझ रहा था ये उनका जवाब था मेरे मूसलचंद को ललचाने का, ...

लेकिन अगर मैं उन्हें मम्मी कहूंगा तो शायद गारी सुनने से, और उनकी इन शरारतों से बच जाऊं,... तो मैंने बहुत सोच के गुड्डी से मुस्कराते हुए बोला


" सुन यार मम्मी को मम्मी बोलने में मुझे क्या प्रॉब्लम लेकिन उनका,... "

प्राब्लम गुड्डी के साथ थी, एक तो आज तक उसने मेरी कोई बात पूरी नहीं होने दी, दूसरा वो समझ जाती थी आगे मैं क्या बोलूंगा और उसकी जबरदस्त काट होती थी उसके पास। आज भी यही हुआ,...

" सुन यार बोलना तो तुझे मम्मी ही पड़ेगा और तू ये अगर सोचता है तू गारी से बच जाएगा, मम्मी बोल के, तेरी माँ बहनो पे गदहे घोड़े नहीं चढेगे, हमारे गांव के और बनारस के मरद नहीं चढ़ेंगे और तेरी रगड़ाई नहीं होगी, तो भूल जा, वो तो और जबरदस्त होगी। कुछ लोग गारी सुनने के लिए ही बने होते हैं, रगड़े जाने के लिए बने होते हैं और तुम वही हो। तेरी किस्मत थी, मम्मी को कानपूर जाना था, और वो भी रात वाली ट्रेन से वरना तेरा रेप तय था आज. "


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गुड्डी के साथ एक चक्कर और था, कोई बात पूरी नहीं बताती थी फिर चिरौरी करो, बिनती करो तो शेष भाग पता चलता था।


पिछली बार भी मेरी चोरी पकड़ी गयी थी, गर्मी बहुत थी, सफ़ेद स्लीवेल्स ब्लाउज पसीने से चिपका और अंदर ब्रा भी नहीं,... तम्बू में बम्बू तनना ही था,



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मेरे जाने के बाद उन्होंने गुड्डी से बोला,
" बहुत ललचा रहा था बेचारा "
मेरी हालत गुड्डी ने भी देख ली थी, वो मम्मी को छेड़ते बोली,

" इतना बेचारे पर तरस आ रहा है तो दे क्यों नहीं देती जो देख के ललचाता रहता है "

" आने दो अगली बार, उसके बस का तो कुछ है नहीं, मैं ही उसे रेप कर दूंगी " गुड्डी को चिढ़ाते वो बोलीं,...


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और अब गुड्डी मुझे छेड़ रही थी लेकिन बच गए तुम.

पर गुड्डी अचानक सीरयस हो गयी और उसने काम की बात बोली,... स्ट्रेटेजिक थिंकिंग में गुड्डी का जवाब नहीं था,
गुड्डी भी अपनी मां से कम नहीं हैं वह भी आनंद बाबू के पूरे मजे ले रही है आनंद बाबू ठहरे शर्मिले बेचारे मां बेटी के बीच में फंस गए हैं गुड्डी ने आखिर आनंद से मम्मी बुलवावही दिया है दोनो को देखकर जीभ ललचा रही है देखते दोनो में से मिलती कोन सी है
 
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Sanju@

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आने वाला कल

दवा -आई पिल -माला डी

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पर गुड्डी अचानक सीरयस हो गयी और उसने काम की बात बोली,... स्ट्रेटेजिक थिंकिंग में गुड्डी का जवाब नहीं था,

" देख यार , मैं इसलिए तुमसे मंम्मी के बारे में कह रही थीं,... मान लो तुम्हे कोई चीज चाहिए ( मैं समझ गया था अब बात बहुत सीरियस ट्रैक पर पहुँच गयी है )मतलब हरदम के लिए चाहिए ( और उसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था, बस ये लड़की मिल जाए ) तो बिना मम्मी को पटाये,... उनकी हाँ तो,... इसलिए मैं कह रही थी की मम्मी को,...

पर गुड्डी के लिए देर तक सीरियस रहना बिना मुझे रगड़े रहना मुश्किल था, वो बोली

" मान लो मम्मी नाक रगड़वाएं, तलवे चटवायें तुझसे तो,... "


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" एकदम दस बार सौ बार अगर,... कुछ भी "

मैं तुरंत मान गया, अपने उस सपने को पूरा करने के लिए तो मैं कुछ भी करने को तैयार था, मिल जाए ये लड़की हरदम के लिए कैसे भी,
लेकिन गुड्डी का असर कुछ कुछ मेरे ऊपर भी हो रहा था, मैं बोला ,

" मम्मी सिर्फ तलवे ही चटवाएंगी या कुछ और,... "

अब गुड्डी चिल्लाई, पिटोगे तुम बड़ी जोर से। लेकिन मेरा पिटने का प्रोग्राम पोस्टपोन हो गया क्योंकि तब तक हमारा रिक्शा एक मेडिकल स्टोर के सामने से गुजरा ओर वो चीखी- “रोको रोको…”

“क्यों कया हुआ, कुछ दवा लेनी है क्या?” मैंने सोच में पड़ के पूछा।

“हर चीज आपको बतानी जरूरी है क्या?”

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वो आगे आगे मैं पीछे-पीछे।

“एक पैकेट माला-डी और एक पैकेट आई-पिल…”
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दूकान पर लड़कों की भीड़ थी, दवा देने वाले भी लड़के लेकिन गुड्डी को फर्क नहीं पड़ रहा था,...

मैं पीछे खड़ा उसे निहार रहा था, ... सोच रहा था उसकी जगह मैं होता तो, कंडोम लेने के लिए उसके जितने पर्यायवाची हो सकते है कंट्रासेप्टिव से लेकर फ्रेंच लेदर तक बोल डालता, ...कंडोम बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती और, बिना लिए वापस आ जाता, और ये लड़की,...

गुड्डी की एक लट मौका पाके उसके गालों को सहला रही थी, मुझे ललचा रही थी।

और मैं ललचाता देख रहा था उस तन्वंगी, सुनयना को,... बिना पलक झपकाए,... जब वो देखती थी मुझे तो मेरी हिम्मत नहीं पड़ती थी इस तरह नदीदों की तरह उसे देखने को,... मेरी भाभी ठीक ही कहती थी, गुड्डी एकदम अपनी मम्मी पर,... मेरा मतलब मम्मी पर गयी है. उसी तरह खूब लम्बी, उसी तरह गोरा चम्पई रंग, ऊँगली लगाओ तो मैली हो जाए, बड़ी बड़ी आँखे, पास बुलाती बतियाती, और ठीक उसी जगह ठुड्डी पर तिल, और,...


एकदम मम्मी की तरह जोबन जबरदंग, अपनी क्लास की , अपनी समौरियों से कम से कम कम दो नंबर ज्यादा, और मैंने पहले ही कहा था मुझे मैनचेस्टर नहीं पसंद हैं, लड़की को लड़की लगना तो चाहिए,...

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और गुड्डी को भी मालूम था मैं उन्हें देख के कितना लिबराता हूँ,.... और वो मेरी नंजरों की चोरी पकड़ती है तो बस मेरी नजरें नीचे, ...

लेकिन गुड्डी की जिस बात ने मुझे मुझसे ही चुरा लिया था,... वो थी, कैसे कहूं,... उसकी पहल,... जो में चाहता था पर बोल भी नहीं पाता था, वो समझकर कर देती थी। पहली मुलाक़ात से ही, ... कौन इंटर में पढ़ने वाला लड़का होगा जो किसी लड़की को देख के आंख भर देखना नहीं चाहेगा, मुंह भर बतियाना नहीं चाहेगा,... लेकिन मैंने मारे झिझक के किताब की दीवाल खड़ी कर दी, पर वो जानती थी मैं क्या चाहता हूँ और दांत देखने के बहाने मुंह खुलवा के,... रसगुल्ले के साथ उसकी मीठी ऊँगली का स्वाद कभी नहीं भूलने वाला,...

बस वो स्वाद एक सपना जगाता है ,... उसी घर में ये लड़की दुल्हन बनी, कोहबर में दही गुड़ खिला रही है और उसकी बहने छेड़ रही हैं,... लेकिन मैं सपने देखने वाला और वो सपनों को जमीन पर लाने वाली,...

उसी दिन, लग उसे भी गया था, उसी दिन डांस करते हुए, जिस तरह से वो मुझे देख दिखा के लाइनों पर थिरक रही थी,




मेरा बनके तू जो पिया साथ चलेगा
जो भी देखेगा वो हाथ मलेगा



और फिर रही सही कसर बीड़ा मारते समय, एकदम मुझे ढूंढ के बीड़ा मारा था, सीधे दिल पर लगा,... और जब सब लड़कियां मुंडेर से हट भी गयीं,... वो वहीँ खड़ी रही मुझे देखते चित्रवत,... और मैं भी मंत्रबद्ध, जैसे किसी लड़की ने बीड़ा नहीं जादू की मूठ मार दी हो, हिलना डुलना बंद हो गया हो,...

फिर गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी ने गुड्डी को दिखा के , चिढ़ा के पूछा था, शादी करोगे इससे,... अचानक कोई मन की बात बोल दे, ... लाज के मारे मैं जैसे बिदाई के समय दुल्हन गठरी बनी, बस एकदम उसी तरह, ...

पर गुड्डी बिना लजाये मुझे देखती रही, नेलपॉलिश लगाती रही और अपना जवाब उसने हलके से मेरा हाथ दबा के दे दिया।

और, मुझसे ज्यादा वो जानती थी उसके उभरते हुए चूजे कितने अच्छे लगते हैं


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लेकिन वो ये भी जानती थी की ठीक से देखने की हिम्मत तो मैं कर नहीं पाता, तो छूने का सवाल ही नहीं, बस ललचा सकता हूँ। और भरे पिक्चर हाल में घर के सब लोग, उसने मेरा हाथ अपने सीने पर रख के,... अपना दिल उसने मेरे हाथ में रख दिया,... मेरा दिल तो वो रसगुल्ला खिला के ही ले गयी थी।


और आज,.... मन मेरा कितना करता है लेकिन मैं उसके आगे बढ़ नहीं पाता था लेकिन इस लड़की को न सिर्फ पता था की मेरा मन क्या करता था बल्कि उसे पूरा करने की जिम्मेदारी भी उसने अपने ऊपर ले ली थी।

मैं बस चाह सकता था, और चाह रहा था, सारे देवता पित्तर मना रहा था बनारस के अपने शहर के,... यह लड़की मिल जाये,... एक बार दो बार के लिए नहीं , हरदम के लिए, जिंदगी कितनी आसान हो जाए, गुड्डी है न, सोचेगी वो देखेगी।

और तबतक दवा की दूकान वाला लड़का सब चीजें लाके देगया, ... गुड्डी ने मुड़ के भीड़ में मुझे देखा और जैसे कुछ याद आया, उस दवा वाले से बोली,

" और वैसलीन,. की बॉटल "

" बड़ी वाली है " वो बोला, ...और गुड्डी बोली, " बड़ी वाली ही चाहिए " .

मेरे पर्स में से सौ सौ के नोट निकाल के उसने दिए और सारा सामान झोले ऐसे उसके पर्स में।

रिक्शे पे बैठकर हिम्मत करके मैंने पूछा- “ये…”


“तुम्हारी बहन के लिए है जिसका आज गुणगान हो रहा था। क्या पता होली में तुम्हारा मन उसपे मचल उठे। तुम ना बुद्धू ही हो, बुद्धू ही रहोगे…” फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर वो बोली-

“तुमसे बताया तो था ना की आज मेरा लास्ट डे है। तो क्या पता। कल किसी की लाटरी निकल जाए…”

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मेरे ऊपर तो जैसे किसी ने एक बाल्टी गुलाबी रंग डाल दिया हो, हजारों पिचारियां चल पड़ी हों साथ-साथ।



मैं कुछ बोलता उसके पहले वो रिक्शे वाले से बोल रही थी- “अरे भैया बाएं बाएं। हाँ वहीं गली के सामने बस यहीं
रोक दो। चलो उतरो…”
खयी के पान बनारस वाला
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गली के अन्दर पान की दुकान।

और गली बनारस की पतली, संकरी लम्बी और दोनों ओर घर भी दुकाने भी, गलियों में से निकलती और संकरी गलियां, जैसे बात से बात निकलती है,...


गुड्डी मेरा हाथ कस के पकडे, दुकानों पर रंग गुलाल पटे पड़े थे, तरह तरह की पिचकारियां,


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बीच बीच में एकाध हलवाई की भी दूकान, जहाँ ताज़ी गुझिया छन रही थीं, होलिका में चढ़ाने के सामान, खरीदने वाले आदमी औरतें, कंधे से कंधा छिला पड़ रहा था, लोग धकियाते, रगड़ते दरेरते आगे बढ़ रहे थे,... और कोई आदमी नहीं था जिसके कुर्ते पे गुलाबी रंग के छींटे न हो, ज्यादातर के तो चेहरे पर भी, ... होली अभी भी हफ्ते भर दूर थी पर,
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इस गली में लग रहा था बनारस और होली अभी से मिलकर फगुआ खेल रहे थे, एक तो बनारस वैसे ही मस्ती के लिए मशहूर फिर फागुन की फगुनाहट, ...

जैसे ही हम लोग गली में घुसे, एक कोठी की तरह से घर था, एकदम गली के मुहाने पे जहाँ लग रहा था कोई गाने की बैठकी चल रही थी, एक मीठी मीठी आवाज आ रही थी होरी की,



कैसी होरी मचाई,...

इतते आवत कुँवरी राधिका,
उतते कुँवर कन्हाई
खेलत फाग परस्पर हिलमिल, यह सुख बरनि न जाई

घर-घर बजत बधाई


ठुमरी की रस घोलती आवाज, मेरे कदम रोक रही थी, गुड्डी मेरा हाथ पकडे खींच रही थी, और वो भी ठिठक गयी, अंदर से आनेवाली आवाज ने दुहराया,

इतते आवत कुँवरी राधिका

उतते कुँवर कन्हाई



गुड्डी ने जिस तरह मुझे देखा, छरछरराती हजार पिचकारियां एक साथ चल पड़ी,.. बिना रंगे, रंगो से मैं नहा उठा,... हम दोनों आगे आगे पीछे से पीछा करती धीमी होती ठुमरी,

मत मारो पिचकारी, ...

थोड़ा ही आगे बढे होंगे की गुड्डी ने जोर से अपनी ओर खींचा, ...

मेरी आंखे मुंडेर पर पड़ीं, एक बड़ी सी बिंदी, काजल भरी आंखे,... खिलखलाती हंसती,...


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और नीचे खड़े धवल वस्त्र में एक,... लग रहा था साफ़ साफ़ कोई नन्दोई होंगे, सलहज ने उस समय तो छोड़ दिया सफ़ेद कपडे की दुहाई सुन के,... लेकिन मुंडेर से एक बड़ा लोटा गाढ़े गुलाबी रंग का,... और वो रंग से सराबोर, ...

गुड्डी के खींचने से मैं बच तो गया लेकिन एक दो छींटे मेरी भी सफ़ेद शर्ट पर, ... और भांग की दूकान पर बैठी एक औरत ने मुझे देखा तो बोली,

अरे रंग तो शुभ होता है,...

और गुड्डी मुस्करा पड़ी,... तभी बड़ी जोर की भगदड़ मची, ...

गुड्डी ने कस के मेरा हाथ पकड़ लिया और खिंच के एकदम पीछे, सट के चिपक के ढाल सी खड़ी हो गयी,... और तबतक पता चल भगदड़ क्यों मची थी, एक गली सामने से आ के मिल रही थी, उसी में से एक वृषभ देव्, ... अब मैं समझा, रांड सांड सीढी सन्यासी' वाली बात,... मस्ती से झूमते हुए इस गली की ओर,... मैं और गुड्डी उन्ही को देख रहे थे,... लेकिन तबतक कुछ लोगों ने निवेदन किया या किसी बछिया की महक लग गयी , उसी जिधर से आये थे उधर ही वापस की ओर मुड़ पड़े, गली ने चैन की साँस ली, चहल पहल चालू हो गयी,... लेकिन मुड़ने के पहले गुड्डी ने मुझे हड़का के कहा,

" हे हाथ जोड़ो,... "
और मैंने वृहदाकार वृषभ देव् को आदर पूर्वक हाथ जोड़ लिया, मेरी एक आदत हो गयी थी की गुड्डी कुछ कहे तो मैं तुरंत वो काम कर देता था, सोचता बाद में था, मन ने मेरी बात माननी रसगुल्ले का घूस पा के ही छोड़ दी थी, अब धीरे धीरे तन ने भी, लेकिन दिमाग अभी भी देर से ही सही,... तो मैंने गुड्डी से पूछ लिया, धीमे से ही सही

" क्यों "


" क्या पता तेरे जीजा जी हों या बाबू जी " बड़ी सीरियसली बोली, फिर जोड़ा,


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" भूल गए मम्मी ने क्या कहा था, ... तेरी बहन महतारी पे बनारस के सांड़ चढ़वाएंगी,... और मम्मी की कोई बात गलत होती नहीं, भले ही वो मजाक में कहें और ये बात तो उन्होंने सीरियसली कही थी, फिर गदहों का स्वाद लेते लेते,... थोड़ा स्वाद भी बदल जाएगा और बनारस के साँड़ तो पूरी दुनिया में मशहूर हैं। "

अब मम्मी की बात के आगे तो मैं कुछ बोल नहीं सकता था, गुड्डी ने तीन तिरबाचा भरवाया था,... मम्मी के आगे मुझे सिर्फ हाँ बोलना है और बहुत हिम्मत की तो जी मम्मी '. अब लोग तो पहाड काट के दूध की नदी निकालने का प्रोग्राम बनाते हैं उसके मुकाबले तो इस लड़की ने आसान सी शर्त रखी थी।

गुड्डी ने तो बड़ी सीरियसली बोली थी बात, लेकिन हम दोनों सांड़ से बचने के लिए भांग वाली दूकान पे सट के खड़े थे और वो भांग वाली गुड्डी की बात सुन के मुस्करा रही थी, समझ गयी थी रिश्ता क्या है।

पान की दूकान दिख तो रही थी लेकिन अभी भी थोड़ी दूर थी, बीच में रंग गुलाल पिचकारी वाली दुकाने जहाँ भीड़ के मारे चलना मुश्किल हो रहा था. जगह जगह भोजपुरी होली के गाने बज रहे थे, एक जगह बज रहा था,


होली में महंगा सरसों क तेल होई,
अबकी तो देखा पेलमपेल होई,



पीछे से भीड़ का एक रेला आ रहा था, गुड्डी ने मुझे बचाते हुए अपनी ओर खींचा, मैं एकदम सट गया, फेविकोल के जोड़ की तरह, मुस्कराते हुए वो सारंग नयनी मेरे कान में हंस के वो हंसिनी बोली,

" तुम काहें परेशान हो रहे सरसों क तेल महंगा होने से मम्मी बोल रही थीं न अरे तोहरी बहिन महतारी क गढ़हा पोखरा अस है तो उन्हें कौन तेल की जरूरत पड़ेगी, फिर गदहा घोडा कौन तेल लगा के,... "

गुड्डी सच में मम्मी को सिर्फ रंग रूप और जोबन में नहीं पड़ी थी बल्कि, चिढ़ाने छेड़ने और रगड़ने में और उसमें वो न जगह देखती थी न मौका।

मम्मी ने जो गरियाया था गुड्डी वही कह रही थी,...


चने के खेत में पड़ा था पगहा, पड़ा था पगहा, आनंद की बहिनी को, बहिनी को
गुड्डी छिनार को एलवल वाली को ले गया गदहा,

ले गया गदहा चने के खेत में, चने के खेत में , गुड्डी छिनार को चोद रहा गदहा चने के खेत में।

चने के खेत में पड़ा रोड़ा, पड़ा रोड़ा

आनंद की महतारी को ले गया घोडा, घोंट रही लौंड़ा चने के खेत में


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हम लोग एक रंग की दूकान से सट के खड़े थे, दुकानदार किसी को पिचकारी बेच रहा था, बोल रहा था देखिये कितनी लम्बी है, कितना रंग आता है,... पर वो निकल निकल गया और उस दूकानदार को गुड्डी दिख गयी, बस वो चालू हो गया,...

" इतनी लम्बी मोटी पिचकारी पूरे बनारस में नहीं मिलेगी, पूरी बाल्टी भर रंग आता है,... "


गुड्डी ने झटके से बार बार अपने चेहरे पे आती लट को हटाया और उससे बोली, ... " मेरे पास आलरेडी है " और मुझे देख के मुस्करा दी। तब तक पान की दूकान के पास भीड़ थोड़ी सी हलकी हुयी और वो रगड़ते, दरेरते, जगह बनांते, मुझे खींचते सीधे पान वाले के पास,

तब मुझे याद आया जो चंदा भाभी ने बोला था। दुकान तो छोटी सी थी। लेकिन कई लोग। रंगीन मिजाज से बनारस के रसिये। लेकिन वो आई बढ़कर सामने। दो जोड़ी स्पेशल पान।पान वाले ने मुझे देखा ओर मुश्कुराकर पूछा- “सिंगल पावर या फुल पावर?”

मेरे कुछ समझ में नहीं आया, मैंने हड़बड़ा के बोल दिया- “फुल पावर…”

वो मुश्कुरा रही थी ओर मुझ से बोली- “अरे मीठे पान के लिए भी तो बोल दो। एक…”

लेकिन मैं तो खाता नहीं…” मैंने फिर फुसफुसा के बोला।

पान वाला सिर हिला हिला के पान लगाने में मस्त था। उसने मेरी ओर देखा तो गुड्डी ने मेरा कहा अनसुना करके बोल दिया- “मीठा पान दो…”

“दो। मतलब?” मैंने फिर गुड्डी से बोला।

वो मुश्कुराकर बोली- “घर पहुँचकर बताऊँगी की तुम खाते हो की नहीं?”
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मेरे पर्स से निकालकर उसने 500 की नोट पकड़ा दी। जब चेंज मैंने ली तो मेरे हाथ से उसने ले लिया और पर्स में रख लिया। रिक्शे पे बैठकर मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था।
गुलाब जामुन

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रिक्शे पे बैठकर मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था।

“याद है मुझे गोदौलिया जाना पड़ेगा, भइया थोड़ा आगे मोड़ना…” रिक्शे वाले से वो बोली।

गुड्डी को देख के आज कुछ ज्यादा ही लालच आ रहा था, रिक्शे पर बैठकर बड़ी हिम्मत कर मैंने हाथ गुड्डी के कंधे पर रख दिया. निगाहें मेरी उसके चिकने गाल से फिसल के सीधे उभार पर आके अटक रही थी, कुरता उसका ज्यादा ही टाइट था, कड़ाव कसाव उभार सब साफ़ दिख रहा था, पर गुड्डी मुझसे भी दो हाथ आगे, ... कंधे पर रखा हाथ उसने खींच कर सीधे जोबन पे, ... और मुड़ के मुस्करा के मुझे चिढ़ाती बोली,...

" यार तेरी सब बात ठीक है लेकिन दो बातें गड़बड़ है, एक तो बुद्धू हो दूसरे लालची "

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आज मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी थी, मुस्करा के बोला, " एकदम सही बोल रही हो, तुझे देख के मुंह में पानी आ रहा है,... "

वो कौन चुप रहने वाली थी, चिढ़ा के पूछा,... " कहाँ ऊपर वाले मुंह में या नीचे ? " फिर खुद ही जवाब भी दे दिया।

झपाक से गुड्डी ने एक चुम्मी ले ली, होंठ पर दांत भी कस के लगा दिया,... और हट के बोली,...


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" देखो ऊपर वाले मुंह के पानी का इलाज तो मैंने कर दिया और नीचे वाला पानी आज चंदा भाभी के पास गिराना "

मैं एकदम चुप, ये लड़की भी न, दूसरी कोई लड़की होती तो मुंह नोच लेती अगर उसका चाहने वाला किसी और पे आँख उठाता और यहाँ ये खुद,...

गुड्डी ने अब हाथ सीधे पैंट पे उसी जगह रख दिया और हल्के से दबा के बोली,

" अरे यार, मेरी तो आज छुट्टी है, आखिरी दिन। और तेरी बहन -महतारी कोई है नहीं यहाँ वरना मैं अपने हाथ से पकडे के तेरा ये सटाती उनके,... तो बची चंदा भाभी, ...




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तो क्या बुराई है, और कौन तेरा पम्प सूखने वाला है, चंदा भाभी को देने से ख़तम हो जाएगा। ये तो ऐसा हैंडपंप है जब चलाओ तब पानी,... कल फिर भर जाएगा। "
मुझसे न बोलते बने न चुप रहते, डर तो मुझे उसी का था, वो क्या सोचेगी, बुरा मानेगी, कोई और लड़की होती तो जलती, ... गुस्सा होती,... लेकिन किसी को दिल देने की सबसे बड़ी प्रॉब्लम ये हैं की आपका दिल जिसके पास है उसे आप से पहले आपके दिल की बात मालूम हो जाती है। गुड्डी के साथ यही होता था, मुझसे पहले मेरे दिल का बात मालूम हो जाती थी और उसे मालूम हो गयी। प्यार से मेरे गाल पे एक चपत मारती बोली,

" इसी लिए कहती हूँ , तू बुद्धू नहीं एकदम बुद्धू है। तू यही सोच रहा है न की मैं बुरा मान जाउंगी,... मैं क्यों बुरा मानूंगी, चंदा भाभी के साथ पानी गिराने में न तेरा घिस जाएगा, न कुछ कम होगा, चाहे चंदा भाभी के साथ चाहे अपनी बहन महतारी, किसी भी मायके वाली के साथ पानी गिराओ मैं नहीं बुरा मानने वाली। अच्छा ये बता, आज तक पहले पानी कभी गिरा नहीं है क्या, कित्ती बार मैंने खुद देखा है कि सुबह तुम उठते हो और पाजामा गीला। "
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( अब उस सुमुखी से कौन बताये की सपने में वही तो आती थी जो मेरा पानी,.. " लेकिन गुड्डी चालू थी,

" और जरूर नाली वाली में,... मैं मान नहीं सकती,... तो मैं तो न तेरे पाजामे से जलने वाली न नाली से,... तो चाहे चंदा भाभी चाहे अपनी बहिन महतारी किसी के साथ,... बुद्धू मौका देख के चौका मारना चाहिए और अगर चुके न तो मैं गुस्सा हो जाउंगी। "
गुड्डी को गुस्सा तो मैं कर नहीं सकता था, लेकिन आज होली की फगुनाहट ज्यादा ही चढ़ी थी तो हिम्मत कर के मैंने उसी की बात दुहरा दी,

" बहन -महतारी "

और वो जोर से खिखिलायी, समझ गयी मेरी बदमाशी, हंस के बोली, " हिम्मत है "

फिर कुछ सोच के चिढ़ा के बोली, " ललचा रहे थे न मम्मी को देख के, ... मैं देख रही थी और वो भी देख रही थीं समझ भी रही थीं अच्छी तरह से "
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वो तो मैं भी समझ गया था की मेरी बदमाशी पकड़ी गयी

गुड्डी की मम्मी दीर्घ स्तना, कठोर कुच, और ब्लाउज खूब लो कट ,... और भाभी का आँचल लुढ़क गया, उभारों से एकदम चिपका, रसोई से आ रही थीं तो हलके पसीने में भीगा,... ब्रा का ढक्क्न भी नहीं, सफ़ेद झलकौवा ब्लाउज, गहराई उभार कड़ापन सब साफ़ साफ़

,... तो बस मेरी निगाहें वहीँ चिपकी,... और उन्होंने मुझे देखते देख लिया बस बजाय आँचल ठीक करने के कमर में बाँध लिया और दोनों पहाड़ एकदम साफ़ साफ़, और मेरे पास जब वो झुकी तो कनखियों से उन्होंने तम्बू में बम्बू भी देख लिया, बस मुस्करायीं और मैं समझ गया मेरी चोरी पकड़ी गयी।

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लेकिन गुड्डी एक बार फिर खिलखिला रही थी, मेरा नाक पकड़ के हिलाते बोली,...

" ललचाने लायक चीज हो यार तो कोई भी ललचाएगा, तो मेरा बाबू भी ललच गया तो क्या, ... न ललचाते तो मम्मी भी बुरा मानतीं और मैं भी,... नहीं ललचाने पर पाप लगता है। जो चीज चाहते हो वो नहीं मिलती....मम्मी हैं ही ऐसी। "

फिर सीरियस होके बोली, " बच गए तुम, मम्मी को कानपूर जाना था, वरना खुले आम आज तेरी नथ उतरती, जरा भी नखड़ा करते न तो बस मम्मी रेप कर देतीं तेरा। "

तबतक हम लोग गुलाब जामुन की दूकान के पास पहुँच गए ओर हम रिक्शे से उतर गए।

“गुलाब जामुन एक किलो…” मैंने बोला।

“स्पेशल वाले…” मेरे कान में वो फुसफुसाई।
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“स्पेशल वाले…” मैंने फिर से दुकानदार से कहा।

“तो ऐसा बोलिए ना। लेकिन रेट डबल है…” वो बोला। “हाँ ठीक है…” फिर मैंने मुड़कर गुड्डी से पूछा- “हे एक किलो चन्दा भाभी के लिए भी ले लें क्या?”

“नेकी और पूछ पूछ…” वो मुश्कुराई।

“एक किलो और। अलग अलग पैकेट में…” मैं बोला।

पैकेट मैंने पकड़े और पैसे उसने दिए। लेकिन मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रहा था- “हे तुमने बताया नहीं की स्पेशल क्या? क्या खास बात है बताओ ना…”

“सब चीजें बताना जरूरी है तुमको। इसलिए तो कहती हूँ तुम्हारे अंदर दो बातें बस गड़बड़ हैं। बुद्धू हो और अनाड़ी हो। अरे पागल। होली में स्पेशल का क्या मतलब होगा, वो भी बनारस में…”



गुलाब जामुन लेके हम लोग निकले ही थे की मुझे चंदा भाभी की याद आ गयी किस तरह से डबल मीनिंग वाली खुल के बाते कर रही थी। मैंने गुड्डी से बोला

“हे सुन यार ये चन्दा भाभी ना। मुझे लगता है की लाइन मारती हैं मुझपे…”

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हँसकर वो बोली- “जैसे तुम कामदेव के अवतार हो। गनीमत मानो की मैंने थोड़ी सी लिफ्ट दे दी। वरना…” मेरे कंधे हाथ रखकर मेरे कान में बोली-

“लाइन मारती हैं तो दे दो ना। अरे यार ससुराल में आये हो तो ससुराल वालियों पे तेरा पूरा हक बनता है। वैसे तुम अपने मायके वाली से भी चक्कर चलाना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है…”

“लेकिन तुम। मेरा तुम्हारे सिवाय किसी और से…”

“मालूम है मुझे। बुद्धूराम तुम्हारे दिल में क्या है? यार हाथी घूमे गाँव-गाँव जिसका हाथी उसका नाम। तो रहोगे तो तुम मेरे ही। किसी से कुछ। थोड़ा बहुत। बस दिल मत दे देना…”

“वो तो मेरे पास है ही नहीं कब से तुमको दे दिया…”

“ठीक किया। तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं। तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी। तुम्हारी सब चीजें अच्छी हैं सिवाय दो बातों के…एक तो बुद्धू हो और दूसरे अनाड़ी।" वो शोख बोली।
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सामने जोगीरा चल रहा था। एक लड़का लड़कियों के कपड़े पहने और उसके साथ। रास्ता रुक गया था। वो भी रुक के देखने लगी। और मैं भी।


जोगीरा सा रा सा रा।

और साथ में सब लोग बोल रहे थे जोगीरा सारा रा।

तनी धीरे-धीरे डाला होली में। तनी धीरे-धीरे डाला होली में।



तब तक उसने हम लोगों की ओर देखा और एक नई तान छेड़ी।



“अरे कौन शहर में सूरज निकला कौन शहर में चन्दा,

अरे कौन शहर में सूरज निकला कौन शहर में चन्दा,

अरे गुलाबी दुपट्टे वाली को किसने टांग उठाकर चोदा,

जोगीरा सा रा सा रा…”


गुड्डी को लगा की शायद मुझे बुरा लगा होगा तो मेरा हाथ दबाकर बोली- “अरे चलता है यार होली है…”


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और मेरा हाथ पकड़कर आगे ले गई।
एक बुक स्टाल पे मैं रुक गया- “कोई होली स्पेशल है क्या?” मैंने पूछा।

“हौ ना। खास बनारसी होली स्पेशल अबहियें आयल कितना चाही?”

मैंने गुड्डी की ओर मुड़कर देखा उसने उंगली से चार का इशारा किया। और मैंने ले लिया। उसी के बगल में एक वाइन शाप भी थी। गुड्डी की निगाह वहीं अटकी थी।

“हे ले लूं क्या एक-दो बोतल बीयर?”

“तुम्हारी मर्जी। पीते हो क्या?”

“ना लेकिन। …”

“तो ले लो ना। तुम्हारे अन्दर यही गड़बड़ है सोचते बहुत हो। अरे जो मजा दे वो कर लेना चाहिए ऐसा टाइम कहाँ बार-बार मिलता है। घर से बाहर होली के समय…”

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मैंने दो बोतल बीयर ले ली।

रिक्शे पे मैंने पढ़ना शुरू किया। क्या मस्त चीज थी। एकदम खुली। मस्त टाईटिलें, होली के गाने और सबसे मजेदार तो राशि फल थे।

वो भी पढ़ रही थी साथ-साथ लेकिन उसने खींचकर रख दिया- “घर चल के पढेंगे…”

तब तक मुझे कुछ याद आया- “हे तुम्हारे घर में तो ताला बंद है चाभी भी मम्मी ले गईं तो हम रात को सोयेंगे कहां?”

“जहां मैं सोऊँगी…” वो मुश्कुराकर बोली।

“सच में तब तो…” मैं खुश होकर बोला।

पर मेरी बात काटकर वो बोली। इत्ती खुश होने की बात नहीं है। अरे यार एक रात की बात है। चन्दा भाभी के यहाँ। उनका घर बहुत अच्छा है। कल तो तुम्हारे साथ चल ही दूँगी…” तब तक हम लोग घर पहुँच गए थे।
आनंद बाबू को इतना शर्मिला और सीधा नहीं होना चाहिए था ये तो ना इंसाफी है गुड्डी की मम्मी ने जो भी आनंद से कहा था गुड्डी आनंद को वही बाते बोल कर मजे ले रही है गुड्डी ने होली की मस्ती का सारा सामान ले लिया है लगता है चंदा भाभी और गुड्डी आनंद की दमदार रगड़ाई करने वाली है
 

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मम्मी का फोन

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" मम्मी का फोन "


जैसे किसी आगे बढ़ती फ़ौज को हाल्ट का हुकुम सुनाया जाय, बस उसी तरह। मैं खड़ा. हम लोग घर पहुँच गए थे, गुड्डी और चंदा भाभी का घर ऊपर फर्स्ट फ्लोर पर था, हम लोग नीचे खड़े।

मेरे दोनों हाथ पहले से फसे थे, दो नत्था के गुलाबजामुन की एक एक किलो की हांडी, पान, बीयर की बोतलें, और भी जो जो गुड्डी खरीदती गयी, मैं पकड़ता गया। और गुड्डी ने अपना झोलेनुमा पर्स में से पहले तो मोबाइल निकाला और पर्स मुझे पकड़ा दिया, बिना इस बात की चिंता किये की मेरे पास हाथ की लिमिटेड सप्प्लाई है।

" मम्मी आप लोग कैसी हैं ? ठीक हैं न ? गुड्डी ने मम्मी से पूछा।

ठीक, ... अरे जलवा है जलवा, दो बार तो चाय दे गया, खाना मैंने कहा की हम लोग लाये हैं तब भी बहुत जिद करके मटन बिरयानी, ... छुटकी को अच्छी लगती है तो,.... "

मम्मी की आवाज में ख़ुशी छलक रही थी।

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तब तक पीछे से छुटकी की आवाज आयी, एकदम हंसती चीखती, मैं जीत गयी, मैं जीत गयी। दी हार गयीं।

और एक लड़की की आवाज छुटकी को चिढ़ाती, " तूने बेईमानी की, तूने तीन कार्ड छुपाये थे, अभी देख मैं निकालती हूँ, तेरी चड्ढी में से, ... हाथ डाल के "

छुटकी की खिलखिलाने की आवाज आ रही थी जैसे उसे कोई कस के गुदगुदी लगा रहा हो,... " दी छोड़िये छोड़िये, वहां नहीं, अंदर नहीं "

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" क्यों अंदर कोई खास खजाना है क्या जो इत्ता छुपा रही है, सीधे से हाथ डालने दे, ... वरना मैं अभी खींच के उतार दूंगी " उस लड़की की शरारत भरी आवाज आ रही थी।

" मम्मी आप लोग कुछ खेल रहे हैं क्या, " गुड्डी ने मम्मी से पूछा।

" हाँ, हँसते हुए वो बोलीं, फिर जोड़ा, तीन दो पांच, मैं छुटकी और श्वेता, मंझली ऊपर लेटी कोई किताब पढ़ रही है। " मम्मी ने सबकी पोजीशन बता दी,

" श्वेता दी, वो भी,... और पापा कहाँ हैं ? " गुड्डी ने पूछा। फोन स्पीकर पर था, उन लोगो की आवाज तो सुनाई ही पड़ रही थी मेरी भी वहां सुनाई पड़ती इसलिए मैं चुपचाप।

और मम्मी ने पूरा किस्सा बताया,

और उसके साथ ही गुड्डी ने श्वेता के बारे में भी बता दिया, उससे एक साल सीनियर है स्कूल में इस साल बारहवे में गयी है।


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उसके पापा के एक दोस्त हैं , आफिस में साथ काम करते हैं उन्ही की बेटी और फेमिली फ्रेंड भी।
मम्मी ने बोला की, श्वेता को भी कानपुर तक जाना था लेकिन उसकी बर्थ आर ए सी में रह गयी, कन्फर्म नहीं हुयी। पर उसकी सीट पर दो लड़के हैं इसलिए श्वेता को थोड़ा, ऐसा लग रहा था. जब वो उनके पास आयी तो मम्मी ने बोला की वो और छुटकी एक साथ लोवर बर्थ पे एडजस्ट हो जाएंगी और पापा अपर बर्थ पे चले जाएंगे।

लेकिन तभी जो टीटी था उसने सुना, तो उसने सजेस्ट किया की आप चारो लेडिस इस केबिन में एडजस्ट कर लें और बगल के कोच में जो टी टी की सीट होती है ७ नंबर वाली, पापा उसपे चले जाएँ। वो है साइड बर्थ लेकिन जौनपुर में दो बर्थ खाली होगी तो पापा को अंदर केबिन में एडजस्ट कर देंगे वो,... और उस केबिन में तेरे पापा के एक आफिस वाले हैं, तो बस तू तो अपने पापा को जानती है उनको भी,... तो वो बगल के कोच में , और श्वेता हम लोगो के साथ, तभी तो कह रही हूँ, इसे कहते हैं जलवा।

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तभी छुटकी जोर से चीखी, " दी हाथ निकाल लीजिए, आप ने देख तो लिया न कोई कार्ड नहीं छुपाया मैंने "

मतलब हाथ छुटकी की चड्ढी में घुस गया था और अब श्वेता खिलखिला रही थी।

" नहीं नहीं मैं हाथ निकालूंगी, इत्ती मुश्किल से तो अंदर गया। क्या पता तू दुबारा कार्ड छिपा ले , चल पत्ते फेंट या हार मान ले "

गुड्डी भी समझ रही थी श्वेता की बदमाशी, हँसते हुए मम्मी से पूछा, " ये कार्ड कहाँ से मिला "

" और कहाँ से मिलेगा, जिसकी वजह से,... अरे जब श्वेता आयी और तेरे पापा दूसरे कोच में चले गए तो छुटकी भी उतर के श्वेता के साथ. श्वेता ने पूछा छुटकी से पत्ते खेलेगी, तो छुटकी चहक के बोली, खेलूंगी भी और आपको आज हराऊंगी भी, लेकिन फिर उदास हो के बोली, ताश तो हम लोग लाये नहीं।
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वो कोच अटेंडेंट सुन रहा था, पूछने आया था कुछ एक्स्ट्रा तकिया तो नहीं चाहिए,... बस वही बोला, " अरे मिल जाएगा न अभी लाता हूँ " लेकिन थोड़ी देर में बोला, " यहां तो किसी के पास नहीं है, लेकिन खबर करवा दिया है अगले स्टेशन पर बस दस मिनट,... और सच में जैसे गाडी रुकी, किसी स्टेशन पर वो दो पैकेट कार्ड के,...

और बीच में बात काट के वो छुटकी से बोलीं,

" हे तुम दोनों झगड़ा मत करो, बस पांच मिनट, और अबकी पत्ते भी मैं फेंटूंगी, और तुम दोनों को हराऊंगी भी, बस दो मिनट रुको "

श्वेता का हाथ अभी भी वहीँ था, छुटकी से बोली वो,

" चल तेरी चड्ढी खोल देती हूँ,... न रहेगी चड्ढी न पत्ते छिपाने की जगह, "

और जिस तरह से छुटकी की सिसकी निकली, मैं भी समझ गया और गुड्डी भी की श्वेता की उँगलियाँ क्या कर रही हैं। लेकिन छुटकी श्वेता को पटाते बोली,

" प्लीज दी, ... अब तो,... अब तो हम दोनों एक ओर है , आज मिल के मम्मी को हराना है, वो बहुत बेईमानी करती है कभी नहीं हारती हैं "



( असल में ताश के खेल में गुड्डी और मेरी भाभी वो दोनों भी सुपर एक्सपर्ट थीं, गर्मी की छुट्टियों में तो सांप सीढ़ी, लूडो तक तो ठीक,... लेकिन जब ताश का नंबर आता था तो मैं हाथ खड़ा कर लेता था. मुझे एकदम नहीं आता था। गुड्डी और भाभी की मिली जुली कोशिश, थोड़ा बहुत तो सीखा मैंने लेकिन हरदम हार जाता था , ... कभी कोई गलत पत्ता चलता तो गुड्डी भाभी से शिकायत करती , आपके देवर एकदम नौसिखिये हैं , कुछ भी नहीं आता इन्हे "


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और भाभी मेरे पीछे,

" भैया सीख लो वरना देवरानी आएगी तो मुझे ही बोलेगी, आपने अपने देवर को कुछ नहीं सिखाया।"


" सही तो बोलेगी , कुछ नहीं आता " गुड्डी फिर से पत्ते फेंटते मुझे मुस्करा के देखते, चिढ़ाते बोलती। मैं भी समझ रहा था गुड्डी किस खेल के बारे में बोल रही है ) .

और अबकी उन्होंने श्वेता को हड़काया, " हे बस पांच मिनट। और तुम और छुटकी मिल भी जाओगी न तब भी हराऊंगी , ज़रा के जरूरी बात करनी थी लेकिन तुम दोनों के झगड़े में मैं भूल गयी थी , और गुड्डी से बोलीं, हे वो

" हैं और कान पारे सुन रहे हैं , स्पीकर फोन आन है " मुस्करा के गुड्डी बोली, स्पीकर फोन उधर भी ऑन था, श्वेता और छुटकी भी सुन रही थीं।



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सुन तो मैं रहा था लेकिन आवाज के साथ मन में चेहरे को भी देख रहा था,

गोल गोल बिंदी, बड़ी बड़ी काजर से भरी हरदम छेड़ती चिढ़ाती आँखे, गाढ़े लाल रंग वाले भरे मांसल होंठ, नाक में चमकती दमकती हीरे की छोटी सी कील ठुड्डी पर एक तिल और सबसे बढ़ कर छोटी सी लाल चोली में दबोचे, उभारे, खूब गोरे गुदाज उभार, जिनकी ऊंचाई, गहराई, कड़ापन, और कटाव सब कुछ ब्लाउज दिखाता ज्यादा था और छिपाता बहुत कम था, ...


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और उन्हें भी मालूम था की मैं कितना ललचता था उन्हें देख के, इसलिए जरा सी बात पर उनका आँचल ढलक जाता था और जहाँ दोनों बड़ी बड़ी भारी गोलाइयाँ दिखीं पैंट टाइट, और ये उन्हें भी मालूम था मूसल चंद पर उनके गद्दर जोबन का असर,... और सबसे बढ़कर उनका खुलापन, छेड़ना, चिढ़ाना,... और मैं जितना लजाता उतना ही और रगड़ना ,

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं उनमे अगर गारी न दी जाए तो वो रिश्ते ही गाली लगते हैं, ...

वो बोल रही थी, मैं सुन रहा था लेकिन मन में, ...

" वो कानपूर से हम लोगो का लौटने का प्रोग्राम, तुम बोल रहे थे न की कोई बात हो तो सब उलट पुलट हो गया, ... ये तो वैसे भी महीने में बीस दिन टूर पे ही रहते हैं, बस चले तो पूरा महीना ही,... तो बस इनका कानपुर से ही टूर बन गया,...... कानपुर से ही होली के दो दिन बाद, ... तो मैं सोच रही हूँ की तीसरे दिन ही वापस आ जाऊं , लेकिन दो लड़कियों के साथ अकेले आना, फिर रिजर्वेशन, जाने का तो तुम थे इसलिए लेकिन लौटने का, ... कौन जाएगा टिकट लेने

तबतक श्वेता की आवाज सुनाई पड़ी,... छुटकी को चिढ़ाती


" तो मैं भी आप लोगो के साथ ही वापस चल चलूंगी, रास्ते में छुटकी को आठ दस बार हरा दूंगी ,... और बर्थ की कोई चिंता नहीं मैं तो छुटकी के साथ ही सो जाउंगी "

मैं आवाज से ज्यादा मन में उनका चेहरा, छेड़ती आँखे और बातें और सबसे बढ़ कर ब्लाउज फाड़ते,... और उनकी आवाज एक बार फिर चालू हो गयी,

" और मैं सोच रही थी की तुम गुड्डी को छोड़ने तो आओगे ही, तो एकाध दिन और रुक जाते, कम से कम तीन दिन, एक दो दिन में क्या,... अबकी की तो तुमसे भी मुलाकात भी बस,... और हमारा तुम्हारा फगुआ भी उधार है, हमारी होली तो अबकी की एकदम सूखी, तो दो तीन रहोगे तो ज़रा,...

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" हम दोनों की भी,... " छुटकी ने जोड़ा और श्वेता ने करेक्शन जारी किया, " नहीं, हम तीनो की "
मम्मी

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" और मैं सोच रही थी की तुम गुड्डी को छोड़ने तो आओगे ही, तो एकाध दिन और रुक जाते, कम से कम तीन दिन, एक दो दिन में क्या,... अबकी की तो तुमसे भी मुलाकात भी बस,... और हमारा तुम्हारा फगुआ भी उधार है, हमारी होली तो अबकी की एकदम सूखी, तो दो तीन रहोगे तो ज़रा,...

" हम दोनों की भी,... " छुटकी ने जोड़ा और श्वेता ने करेक्शन जारी किया, " नहीं, हम तीनो की "

और मैं जल्दी जल्दी कैलकुलेट कर रहा था, बनारस से भी हफ्ते में दो ही दिन सिकंदराबाद के लिए ट्रेन थी, जिससे मैंने लौटने का रिजर्वेशन करा रखा था, उसके हिसाब से मुझे एक डेढ़ दिन मिलता गुड्डी के यहाँ, लेकिन एक दिन का गुड्डी का एक्स्ट्रा साथ,... इसके लिए तो मैं,... और मैंने हल भी ढूंढ लिए, बाबतपुर ( बनारस का एयरपोर्ट ) से दिल्ली की तो तीन चार फ्लाइट रोज हैं और दिल्ली से सिकंदराबाद की भी, ... तो अगर मैं फ्लाइट से प्लान बनाऊं ,... तो कम से कम डेढ़ दिन और मिल जाएगा, और ट्रेनिंग शुरू होने के चार पांच घंटे पहले पहुँच जाऊँगा तो थोड़ा लेट वेट भी हुआ तो टाइम से,... हाँ रगड़ाई होगी तो हो , गुड्डी तो रहेगी न पास में,... और मम्मी खुश हो गयी तो क्या पता जो सपने मैं इत्ते दिन से देख रहा हूँ इस लड़की को हरदम के लिए उठा ले जाने का, ... वो पूरा ही हो जाए , ...

गुड्डी भी मेरी ओर देख रही थी, और अच्छा हुआ मुझे याद आ गया है गुड्डी ने क्या बोला था कैसे बोलना है


उनकी बात खतम हुयी भी की नहीं की मैंने बोलना शुरू कर दिया,

" मम्मी आप एकदम परेशान मत होइए मैं हूँ न,... "

उन्होंने जैसे चैन की साँस ली लेकिन फिर अचानक चौंक गयी और मुस्कराते, बोलीं,

" क्या कह रहे हो,... "

" आप एकदम परेशान मत होइए रिजर्वेशन के,.. " मैंने बोलना शुरू ही किया था की उन्होंने बात काट दी और हल्की सी खनखनाती हंसी के साथ बोलीं


" नहीं नहीं उसके पहले क्या कहा था "

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अब मैं समझ गया और गुड्डी भी मुझे कुछ चिढ़ाते कुछ घूर के देख रही थी,...

थोड़ा रुक के मैं हिम्मत कर के धीमे से बोला,... " मम्मी,... "

" सुनाई नहीं पड़ा , एक बार फिर से बोलो जोर से,... " अब मैं समझ गया वो चिढ़ा रही हैं,...

" मम्मी " गुड्डी को देखते हुए मैं जोर से बोला और गुड्डी जिस तरह से मुस्करायी, सब मेहनत वसूल हो गयी।
" एक बार फिर से " उधर से हलकी सी आवाज आयी,...


' मम्मी " अबकी मैं जितना शहद घोल सकता था घोल के बोला, सामने खड़ी ग्यारहवीं में पढ़ रही इस शहद की बोतल को पाने के लिए मैं कुछ भी कर सकता था
गुड्डी की आँखों में ख़ुशी थी, चमक थी और उधर से आने वाली आवाज भी अब और हल्की हो गयी थी,

" फिर "

" मम्मी " मैंने और प्यार घोलते हुए कहा ,

" एक साथ पांच बार बोलिये " उधर से छुटकी की आवाज आयी
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" नहीं दस बार ,...तू भी न छुटकी सच में अभी छोटी है सस्ते में छोड़ देती है ' हंसती खिलखिलाती श्वेता की आवाज थी।

" मम्मी, मम्मी, मम्मी, मम्मी, मम्मी मम्मी, मम्मी, मम्मी, मम्मी, मम्मी "

" तुम्हारे मुंह से बहुत अच्छा लगता है खूब मीठा, यही बोला करो " उधर से आवाज आयी,
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और गुड्डी ने सफलता भरी मुस्कान से मुझे देखा, जैसे बोल रही हो यही कह रही थी न तुमसे,... देखा मेरी बात का असर,....

पर मुझे चिढ़ाने के लिए कायनात में कोई कमी थी क्या, अब ये श्वेता भी जुड़ गयी थी, छुटकी के साथ जोर से बोली

" क्या बोला करो, ... "

" मम्मी,..." लेकिन मैंने अब अपनी बात पूरी कर दी, बिना इंट्रप्शन्स का ध्यान दिए,

" मम्मी, आप जरा भी चिंता न करिये ज़रा सी भी। मैं हूँ न, ... कल सुबह कानपुर में लोग आ ही जाएंगे,... और लौटने का टिकट रिजर्वेशन, आज कल तो इंटरनेट से हो जाता है, अभी तो टाइम है मैं कोटे के लिए भी बोल दूंगा, कोई आपको टिकट दे भी आएगा और स्टेशन पे जैसे आज आ लोग आ गए थे कानपुर में भी, और बंनारस में मैं और गुड्डी आएंगे आप लोगों को लेने।

और आप की बात सही है, आपसे तो अबकी ढंग से मुलाकात भी नहीं हो पायी, आप लोगो को निकलना था , ... लेकिन मैं होली के तीसरे दिन, आ जाऊँगा आप लोगों से पहले, और आप लोगो को लेने स्टेशन आऊंगा, और फिर दो तीन आप लोगो के साथ रह के ही जाऊँगा, ... फिर पता नहीं कब मुलाकात हो,... और बस आगे से ये मत कहियेगा की कौन है मैं हूँ ना,... "

उधर से कुछ आवाज आती उसके पहले गुड्डी चालू हो गयी, अपनी मम्मी, मेरा मतलब मम्मी से,



" सही तो है आखिर ६ फुट का आदमी, किसी काम तो आएगा, या खाली खाने के, मैं तो गिन रही थी पूरे पांच मालपूवे, आपने कहा था न चावल का दाना गिनने का, एक भी दाना नहीं छोड़ा, जितना हम तीनो बहने मिल के हफ्ते भर में चावल खाती है एक बार में, ... और मजे से अपनी बहन महतारी का पूरा प्रोग्राम , गदहे से , घोड़े से,... मम्मी आप चिंता न करिये, ये अपने मायके पहुँच के अपनी बहन कम माल के चक्कर में पड़ भी गए तो मैं रहूंगी न साथ। लौटने का रिजर्वेशन और आप को लेने मैं और ये आएंगे, ... और जहाँ तक लौटने का सवाल है , एक बार ये घर में घुस जाएँ , ...लौटेंगे तो तभी जब आप चाहेंगी। "

गुड्डी उसी हक से बोल रही थी जिस तरह से पत्निया पति के लिए बोलती हैं अपनी माँ से



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रगड़ाई

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उधर से कुछ आवाज आती उसके पहले गुड्डी चालू हो गयी, अपनी मम्मी, मेरा मतलब मम्मी से,

" सही तो है आखिर ६ फुट का आदमी, किसी काम तो आएगा, या खाली खाने के, मैं तो गिन रही थी पूरे पांच मालपूवे, आपने कहा था न चावल का दाना गिनने का, एक भी दाना नहीं छोड़ा, जितना हम तीनो बहने मिल के हफ्ते भर में चावल खाती है एक बार में, ... और मजे से अपनी बहन महतारी का पूरा प्रोग्राम , गदहे से , घोड़े से,... मम्मी आप चिंता न करिये, ये अपने मायके पहुँच के अपनी बहन कम माल के चक्कर में पड़ भी गए तो मैं रहूंगी न साथ। लौटने का रिजर्वेशन और आप को लेने मैं और ये आएंगे, ... और जहाँ तक लौटने का सवाल है , एक बार ये घर में घुस जाएँ , ...लौटेंगे तो तभी जब आप चाहेंगी। "

गुड्डी उसी हक से बोल रही थी जिस तरह से पत्निया पति के लिए बोलती हैं अपनी माँ से

लेकिन नेपथ्य में आवाज चालू थी,...

" गुड्डी मेरा भी रिजर्वेशन " श्वेता की आवाज थी,

" दी आपका तो ये दौड़ के के कराएंगे,... सबसे पहले,... होली आफ्टर होली में आखिर आप नहीं होंगी तो इनके कपडे कौन फाड़ेगा अंदर तक रंग कौन लगाएगा ." गुड्डी चहक के बोली।

" देख यार गुड्डी, कपडे पे रंग लगाना, एक तो कपडे की बर्बादी, दूसरे रंग की बर्बादी। फिर कपड़े उतारने में बहुत टाइम बर्बाद होता है, इसलिए सीधे फाड़ ही देने चाहिए, ... मैं तो यही मानती हूँ "

श्वेता, गुड्डी से एक साल सीनियर, बारहवीं वाली,बोली।
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दो आवाजें और आयी, पहले छुटकी की फिर मंझली जो अब तक चुप थी, ' मैं भी यही मानती हूँ , दी "

" देख यार, मेरी जिम्मेदारी इन्हे इनके मायके से पकड़ के ले आने की है, फिर तीन दिन तक,... तुम सब जानो, तेरे हवाले वतन साथियों। " गुड्डी अंगड़ाई लेकर बोली,

और श्वेता ने तुरंत टीम लीडर का काम सम्हाल लिया, और वर्क डिस्ट्रीब्यूट कर कर दिया, " छुटकी, तू सबसे छोटी है सर वाला हिस्सा तेरे हिस्से, सर गाल चेहरा गर्दन सब और मंझली तू बड़ी है तो नीचे का हिस्सा तेरे जिम्मे, घुटना और उसके नीचे का। मैं बीच वाले से काम चला लूंगी। सीने से घुटने तक। '

लेकिन तब तक मम्मी की आवाज सुनाई दी, और श्वेता शांत हो गयी।
" सुनो "



" जी मम्मी " मैंने बहुत धीरे से कहा। वो बड़ी जोर से खिलखिलाईं और छेड़ते हुए बोलीं

" अबे सुन , तू अगर ये सोच रहे हो की मम्मी बोलने से गारी से बच जाओगे या मैं रगड़ाई नहीं करुँगी तो ये अपना कान, पिछवाड़ा या अपनी बहिन महतारी क जो जो चीज खोलना हो खोल के सुन ले ,... अब गारी भी डबल पड़ेगी सीधे महतारी की समझे मादरचो और रगड़ाई भी डबल होगी। चाहे जा के अपनी बहिन की बुर में छिप जाओ या महतारी के भौंसड़े में वहां से भी खींच लाएंगे हम लोग। "
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जैसे लोग हर बात पे यस सर बोलते हैं, अगर सामने बॉस खड़ा हो तो मेरे मुंह से भी निकल गया जी मम्मी



और श्वेता जोर से हंसी, बोली मतलब जाके छुपेंगे जरूर.

और मम्मी भी हंसी यहाँ गुड्डी भी, और मम्मी फिर चालू हो गयी,...

" देखो दो बाते हैं, एक तो मैं तुमसे पहले ही बता चुकी हूँ, बिन्नो की, तुम्हारी भाभी की शादी में जितने तिलकहरू, तिलक चढाने गए थे हमरे गाव वाले, नाऊ , बारी, पंडित, कहार सब की सब तोहरी महतारी क एतना तारीफ़ तारीफ़ की खुदे बुलाय बुलाय, सहरायीं, पकड़ के मुठियाई, जीभ से अस खूंटा ले ले के,... ओकरे बाद सब के सब , कउनो तिलकहरू बचा नहीं, सब की सब उनकी कुइयां में डुबकी लगाए, ... खूब गहरी,... "



लेकिन गुड्डी भी अब मूड में आ गयी थे, मंम्मी को और चढ़ाया, और मुझे जीभ निकाल के चिढ़ाया,

" मम्मी ये इतने सीधे है इन्हे कुइयां पोखर से समझ नहीं आएगा, साफ़ साफ़ बोलिए इनकी महतारी का हाल, का किया हमरे गाँव के नाऊ पंडित कहार ने ,.. "


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और इतना इशारा काफी था फिर वो चालू हो गयीं,

" अरे काहें नहीं समझ में आएगा, ... अरे ओनकर बुरिया में भोंसडे में हचक हचक के चोदे, बहुत तारीफ़ कर रहे थे सब, की कैसे चूतड़ उठा उठा के,... तो जब ससुरारी के नाऊ कहार नहीं बचे तो तुम तो जरूर चढ़े होंगे, बोलो,

मैं क्या बोलता, मेरी ओर से गुड्डी ने ही वकालत की,... " अरे मम्मी लजा रहे हैं, का बोले लेकिन छोड़ा थोड़े ही होगा इन्होने,

" एकदम लेकिन ये बताओ, माँ चोदने में लाज नहीं और बोलने में लाज, और जो माँ चोदे, उस मादरचोद को मादरचोद कहना गाली थोड़े ही होगी, अच्छा ये बताओ कुइयां मेरा मतलब भोसड़ा ज्यादा गहरा था, गाँव क कोहरा तो कह रहा था की कोई हाथ भी घुसा दे तो पता न चले,... तो कोहाइन बोली, गदहा घोडा क लंड लेती होंगी तो यही होगा न ,... "

मम्मी अब पूरे जोश में आ गयी थीं
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मैं सोच रहा था,

बगल की सीट पर उनकी छोटी बेटी, छुटकी और श्वेता बैठी है, ऊपर वाली सीट पर मंझली और मम्मी पूरे जोश में,... अगल सवाल जो उन्होंने पूछा फिर गुड्डी को मेरी बचत में आना पड़ा

मम्मी ने कहा,

अरे हम लोगन से का शरम, बोलो, तुम ऊपर चढ़े थे की की निहुरा के,...अरे लेने में लाज नहीं आयी, और अब,... तुम पेले, वो पेलवायीं और अब मुंह में दही जमा है, खाली ये बता दो कैसे लिए थे, ... पहली बार "

मुझे जवाब नहीं देना पड़ा, गुड्डी ही बोली,

" अरे मम्मी जंगल में मोर नाचा किसने देखा,... सबके सामने हो, आखिर हमरे गाँव का नाऊ कहार सब मजा लिए हैं तो कैसे लाज, .... और फिर ये भी मना नहीं नहीं कर पाएंगे,... और आपकी बात ये टालेंगे थोड़ी। "
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" एकदम सही कह रही हो " वो बोलीं, फिर मुझसे बोली,

" सही तो कह रही है गुड्डी , तुझे कुछ नहीं करना पडेगा,... मैं हूँ न , चंदा भाभी हैं , बस इस बार नहीं, अगले बार आओगे बनारस तो उनहु को बुलाय लेंगे, हम और चंदा पकड़ के निहुरा देंगे, कोई तोहार पकड़ के सटाय देगा,... ऐसा जोर से तोहार फनफनात है , बस एक धक्का मारना , ... बाकी तो, .... और उसके बाद तो वो, ... खुदे ,

और दूसरी बात और ये तो तोहरे सामने हुयी थी तो तू नकार नहीं सकते। "



और फिर वो मेरे सेल्केशन के बाद जब मैं भाभी के साथ आया था भाभी की मनौती पूरी करने,... गुड्डी की मम्मी ने भी बहुत मनौती मानी थी मेरे नौकरी लगने की,.. और अंत में भाभी ने ही उन्हें उकसाया, " भौजी और कुछ मानी होय तो बोल दीजिये और गुड्डी की मम्मी ऐसा मौका क्यों छोड़तीं, बोली



" अरे बिन्नो तोहरे सास और इनके महतारी के लिए बहुत फायदा है, हम माने थे की भैया की नौकरी लग जायेगी बनारस क सौ पंडा इनकी महतारी के ऊपर चढ़ाइब,.... तो बस अब पूजा आज हो गयी तो बस वही एक चीज बाकी है, तो उनको भेज देना दस बारह दिन के लिए,... अभी भी बहुत जांगर है उनमे एक दिन आठ दस पंडा तो निपटा ही लेंगी, ... "

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" एकदम भौजी " मेरी भाभी भी मेरी ओर चिढ़ाती निगाहों से देखते मुस्कराते बोलीं और जोड़ा,...


" अरे अब उनकी तीरथ बरत क उमर, वैसे भी साल में छह महीना तो सम्पूर्ण तीरथ यात्रा वाली बस पे ही चढ़ी रहती हैं ,... तरह तरह की मलाई का स्वाद मिलेगा और पंडे चढ़ेंगे तो आर्शीवाद भी देंगे , "
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( यह बात मेरे सामने हुयी थी यह तो सही था )

मम्मी ने फिर मुझसे कबुलवाया ,


याद आ गयी बात तो तोहार महतारी आयीं थी बनारस, आयी दस दिन के लिए और रुकी थी पूरे सवा महीने बोलो झूठ बोल रही हूँ का"

" नहीं मम्मी एकदम याद है, सावन लगा था , मैं ही तो आया था छोड़ने,... और यह भी सही है की महीने भर से ऊपर आप के यहाँ " मैंने कबूला।

" एक बात तो मानना पडेगा तोहरी महतारी दिल की अच्छी हैं, बहुत अच्छी। एक बार हमसे नहीं बोलीं की ये क्या मान दी, बल्कि कहती थीं की जरा सा चीज के लिए , काहें किसी पण्डे का मन दुखी करें, खुश रहेंगे तो आशीर्वाद देंगे और सावन का आशीर्वाद उहो बनारस में बनारस के पण्डे का आसीर्बाद,... और सच में सब पण्डे खुस हो के गए, केतना तो इसी घर में न बिस्वास हो तो गुड्डी से पूछ लेना,...


और पण्डे भी एक से एक जबरदस्त, तगड़े पहलवान, दूनो चूँची पकड़ के ऐसे धक्का लगाते थे, दूसर कौन होत तो चिथड़ा चिथड़ा, लेकिन तोहरे भाभी क सास, चूतड़ उठाय उठाय के वो धक्का मारें,... एक भी पंडा बिना खुश हुए नहीं गया और साथ में वो १०१ रूपया लेकर बाद में पैर भी छूती थीं। सब क सब अइसन आसीर्बाद दिए,... "

मम्मी बोल रही थीं


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और वहां लग रहा था की श्वेता और छुटकी भी सांस रोक के सुन रही थीं क्योंकि उन दोनों की आवाज भी एकदम बंद थी,...



लेकिन गुड्डी ने बीच में बात काट दी, बोली मम्मी का आसीर्बाद दिए थे पंडा सब ,
आनंद बाबू ने प्यार में गुड्डी की मम्मी को मम्मी बोल दिया वो भी सबके सामने कई बार फिर तो आनंद बाबू की गुड्डी और उसकी मम्मी के द्वारा फोन पर ही गारियो के साथ रगड़ाई हुई बेचारे आनंद साहब अब क्या करे गुड्डी से प्यार जो करते हैं
कोमल जी आपने बहुत ही शानदार तरीके से देवर भाभी के मस्ती मजाक का जो चित्रण किया है वह amzing है
 
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