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Erotica फागुन के दिन चार

Shetan

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खयी के पान बनारस वाला
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गली के अन्दर पान की दुकान।

और गली बनारस की पतली, संकरी लम्बी और दोनों ओर घर भी दुकाने भी, गलियों में से निकलती और संकरी गलियां, जैसे बात से बात निकलती है,...


गुड्डी मेरा हाथ कस के पकडे, दुकानों पर रंग गुलाल पटे पड़े थे, तरह तरह की पिचकारियां,


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बीच बीच में एकाध हलवाई की भी दूकान, जहाँ ताज़ी गुझिया छन रही थीं, होलिका में चढ़ाने के सामान, खरीदने वाले आदमी औरतें, कंधे से कंधा छिला पड़ रहा था, लोग धकियाते, रगड़ते दरेरते आगे बढ़ रहे थे,... और कोई आदमी नहीं था जिसके कुर्ते पे गुलाबी रंग के छींटे न हो, ज्यादातर के तो चेहरे पर भी, ... होली अभी भी हफ्ते भर दूर थी पर,
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इस गली में लग रहा था बनारस और होली अभी से मिलकर फगुआ खेल रहे थे, एक तो बनारस वैसे ही मस्ती के लिए मशहूर फिर फागुन की फगुनाहट, ...

जैसे ही हम लोग गली में घुसे, एक कोठी की तरह से घर था, एकदम गली के मुहाने पे जहाँ लग रहा था कोई गाने की बैठकी चल रही थी, एक मीठी मीठी आवाज आ रही थी होरी की,



कैसी होरी मचाई,...

इतते आवत कुँवरी राधिका,
उतते कुँवर कन्हाई
खेलत फाग परस्पर हिलमिल, यह सुख बरनि न जाई

घर-घर बजत बधाई


ठुमरी की रस घोलती आवाज, मेरे कदम रोक रही थी, गुड्डी मेरा हाथ पकडे खींच रही थी, और वो भी ठिठक गयी, अंदर से आनेवाली आवाज ने दुहराया,

इतते आवत कुँवरी राधिका

उतते कुँवर कन्हाई



गुड्डी ने जिस तरह मुझे देखा, छरछरराती हजार पिचकारियां एक साथ चल पड़ी,.. बिना रंगे, रंगो से मैं नहा उठा,... हम दोनों आगे आगे पीछे से पीछा करती धीमी होती ठुमरी,

मत मारो पिचकारी, ...

थोड़ा ही आगे बढे होंगे की गुड्डी ने जोर से अपनी ओर खींचा, ...

मेरी आंखे मुंडेर पर पड़ीं, एक बड़ी सी बिंदी, काजल भरी आंखे,... खिलखलाती हंसती,...


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और नीचे खड़े धवल वस्त्र में एक,... लग रहा था साफ़ साफ़ कोई नन्दोई होंगे, सलहज ने उस समय तो छोड़ दिया सफ़ेद कपडे की दुहाई सुन के,... लेकिन मुंडेर से एक बड़ा लोटा गाढ़े गुलाबी रंग का,... और वो रंग से सराबोर, ...

गुड्डी के खींचने से मैं बच तो गया लेकिन एक दो छींटे मेरी भी सफ़ेद शर्ट पर, ... और भांग की दूकान पर बैठी एक औरत ने मुझे देखा तो बोली,

अरे रंग तो शुभ होता है,...

और गुड्डी मुस्करा पड़ी,... तभी बड़ी जोर की भगदड़ मची, ...

गुड्डी ने कस के मेरा हाथ पकड़ लिया और खिंच के एकदम पीछे, सट के चिपक के ढाल सी खड़ी हो गयी,... और तबतक पता चल भगदड़ क्यों मची थी, एक गली सामने से आ के मिल रही थी, उसी में से एक वृषभ देव्, ... अब मैं समझा, रांड सांड सीढी सन्यासी' वाली बात,... मस्ती से झूमते हुए इस गली की ओर,... मैं और गुड्डी उन्ही को देख रहे थे,... लेकिन तबतक कुछ लोगों ने निवेदन किया या किसी बछिया की महक लग गयी , उसी जिधर से आये थे उधर ही वापस की ओर मुड़ पड़े, गली ने चैन की साँस ली, चहल पहल चालू हो गयी,... लेकिन मुड़ने के पहले गुड्डी ने मुझे हड़का के कहा,

" हे हाथ जोड़ो,... "
और मैंने वृहदाकार वृषभ देव् को आदर पूर्वक हाथ जोड़ लिया, मेरी एक आदत हो गयी थी की गुड्डी कुछ कहे तो मैं तुरंत वो काम कर देता था, सोचता बाद में था, मन ने मेरी बात माननी रसगुल्ले का घूस पा के ही छोड़ दी थी, अब धीरे धीरे तन ने भी, लेकिन दिमाग अभी भी देर से ही सही,... तो मैंने गुड्डी से पूछ लिया, धीमे से ही सही

" क्यों "


" क्या पता तेरे जीजा जी हों या बाबू जी " बड़ी सीरियसली बोली, फिर जोड़ा,


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" भूल गए मम्मी ने क्या कहा था, ... तेरी बहन महतारी पे बनारस के सांड़ चढ़वाएंगी,... और मम्मी की कोई बात गलत होती नहीं, भले ही वो मजाक में कहें और ये बात तो उन्होंने सीरियसली कही थी, फिर गदहों का स्वाद लेते लेते,... थोड़ा स्वाद भी बदल जाएगा और बनारस के साँड़ तो पूरी दुनिया में मशहूर हैं। "

अब मम्मी की बात के आगे तो मैं कुछ बोल नहीं सकता था, गुड्डी ने तीन तिरबाचा भरवाया था,... मम्मी के आगे मुझे सिर्फ हाँ बोलना है और बहुत हिम्मत की तो जी मम्मी '. अब लोग तो पहाड काट के दूध की नदी निकालने का प्रोग्राम बनाते हैं उसके मुकाबले तो इस लड़की ने आसान सी शर्त रखी थी।

गुड्डी ने तो बड़ी सीरियसली बोली थी बात, लेकिन हम दोनों सांड़ से बचने के लिए भांग वाली दूकान पे सट के खड़े थे और वो भांग वाली गुड्डी की बात सुन के मुस्करा रही थी, समझ गयी थी रिश्ता क्या है।

पान की दूकान दिख तो रही थी लेकिन अभी भी थोड़ी दूर थी, बीच में रंग गुलाल पिचकारी वाली दुकाने जहाँ भीड़ के मारे चलना मुश्किल हो रहा था. जगह जगह भोजपुरी होली के गाने बज रहे थे, एक जगह बज रहा था,


होली में महंगा सरसों क तेल होई,
अबकी तो देखा पेलमपेल होई,



पीछे से भीड़ का एक रेला आ रहा था, गुड्डी ने मुझे बचाते हुए अपनी ओर खींचा, मैं एकदम सट गया, फेविकोल के जोड़ की तरह, मुस्कराते हुए वो सारंग नयनी मेरे कान में हंस के वो हंसिनी बोली,

" तुम काहें परेशान हो रहे सरसों क तेल महंगा होने से मम्मी बोल रही थीं न अरे तोहरी बहिन महतारी क गढ़हा पोखरा अस है तो उन्हें कौन तेल की जरूरत पड़ेगी, फिर गदहा घोडा कौन तेल लगा के,... "

गुड्डी सच में मम्मी को सिर्फ रंग रूप और जोबन में नहीं पड़ी थी बल्कि, चिढ़ाने छेड़ने और रगड़ने में और उसमें वो न जगह देखती थी न मौका।

मम्मी ने जो गरियाया था गुड्डी वही कह रही थी,...


चने के खेत में पड़ा था पगहा, पड़ा था पगहा, आनंद की बहिनी को, बहिनी को
गुड्डी छिनार को एलवल वाली को ले गया गदहा,

ले गया गदहा चने के खेत में, चने के खेत में , गुड्डी छिनार को चोद रहा गदहा चने के खेत में।

चने के खेत में पड़ा रोड़ा, पड़ा रोड़ा

आनंद की महतारी को ले गया घोडा, घोंट रही लौंड़ा चने के खेत में


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हम लोग एक रंग की दूकान से सट के खड़े थे, दुकानदार किसी को पिचकारी बेच रहा था, बोल रहा था देखिये कितनी लम्बी है, कितना रंग आता है,... पर वो निकल निकल गया और उस दूकानदार को गुड्डी दिख गयी, बस वो चालू हो गया,...

" इतनी लम्बी मोटी पिचकारी पूरे बनारस में नहीं मिलेगी, पूरी बाल्टी भर रंग आता है,... "


गुड्डी ने झटके से बार बार अपने चेहरे पे आती लट को हटाया और उससे बोली, ... " मेरे पास आलरेडी है " और मुझे देख के मुस्करा दी। तब तक पान की दूकान के पास भीड़ थोड़ी सी हलकी हुयी और वो रगड़ते, दरेरते, जगह बनांते, मुझे खींचते सीधे पान वाले के पास,

तब मुझे याद आया जो चंदा भाभी ने बोला था। दुकान तो छोटी सी थी। लेकिन कई लोग। रंगीन मिजाज से बनारस के रसिये। लेकिन वो आई बढ़कर सामने। दो जोड़ी स्पेशल पान।पान वाले ने मुझे देखा ओर मुश्कुराकर पूछा- “सिंगल पावर या फुल पावर?”

मेरे कुछ समझ में नहीं आया, मैंने हड़बड़ा के बोल दिया- “फुल पावर…”

वो मुश्कुरा रही थी ओर मुझ से बोली- “अरे मीठे पान के लिए भी तो बोल दो। एक…”

लेकिन मैं तो खाता नहीं…” मैंने फिर फुसफुसा के बोला।

पान वाला सिर हिला हिला के पान लगाने में मस्त था। उसने मेरी ओर देखा तो गुड्डी ने मेरा कहा अनसुना करके बोल दिया- “मीठा पान दो…”

“दो। मतलब?” मैंने फिर गुड्डी से बोला।

वो मुश्कुराकर बोली- “घर पहुँचकर बताऊँगी की तुम खाते हो की नहीं?”
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मेरे पर्स से निकालकर उसने 500 की नोट पकड़ा दी। जब चेंज मैंने ली तो मेरे हाथ से उसने ले लिया और पर्स में रख लिया। रिक्शे पे बैठकर मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था।
Ohhh ho. Maza aa gaya. Holi ka vo bhojpuri mahol aur holi ke geet. Amezing. Maza aa gaya.

Ek nari ko purush ki dhal bante dikhaya vo to tarif karu utni kam he. Vrush dekvta ka ek chalte sing hi lag jae to afat aa jae. Par aap ne usme mazak gariyane vala tadka lagaya vo to kabile tarif he.


Ye muje amezing daylog laga. Jabardast.

इतनी लम्बी मोटी पिचकारी पूरे बनारस में नहीं मिलेगी, पूरी बाल्टी भर रंग आता है,... "

गुड्डी ने झटके से बार बार अपने चेहरे पे आती लट को हटाया और उससे बोली, ... " मेरे पास आलरेडी है " और मुझे देख के मुस्करा दी।


Aur anand babu ki mahtari aur baheniya ko to guddi ne bhi nahi chhoda. Sab ke sab amezing tha.


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large baby boy photo album
 

Mass

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Ohhh ho. Maza aa gaya. Holi ka vo bhojpuri mahol aur holi ke geet. Amezing. Maza aa gaya.

Ek nari ko purush ki dhal bante dikhaya vo to tarif karu utni kam he. Vrush dekvta ka ek chalte sing hi lag jae to afat aa jae. Par aap ne usme mazak gariyane vala tadka lagaya vo to kabile tarif he.


Ye muje amezing daylog laga. Jabardast.

इतनी लम्बी मोटी पिचकारी पूरे बनारस में नहीं मिलेगी, पूरी बाल्टी भर रंग आता है,... "


गुड्डी ने झटके से बार बार अपने चेहरे पे आती लट को हटाया और उससे बोली, ... " मेरे पास आलरेडी है " और मुझे देख के मुस्करा दी।


Aur anand babu ki mahtari aur baheniya ko to guddi ne bhi nahi chhoda. Sab ke sab amezing tha.

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Thoda meri story par bhi dhyaan dijiye...aapko bhi tag kiya hain...thanks.
Btw, nice photos...
Shetan
 

Shetan

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गुलाब जामुन

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रिक्शे पे बैठकर मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था।

“याद है मुझे गोदौलिया जाना पड़ेगा, भइया थोड़ा आगे मोड़ना…” रिक्शे वाले से वो बोली।

गुड्डी को देख के आज कुछ ज्यादा ही लालच आ रहा था, रिक्शे पर बैठकर बड़ी हिम्मत कर मैंने हाथ गुड्डी के कंधे पर रख दिया. निगाहें मेरी उसके चिकने गाल से फिसल के सीधे उभार पर आके अटक रही थी, कुरता उसका ज्यादा ही टाइट था, कड़ाव कसाव उभार सब साफ़ दिख रहा था, पर गुड्डी मुझसे भी दो हाथ आगे, ... कंधे पर रखा हाथ उसने खींच कर सीधे जोबन पे, ... और मुड़ के मुस्करा के मुझे चिढ़ाती बोली,...

" यार तेरी सब बात ठीक है लेकिन दो बातें गड़बड़ है, एक तो बुद्धू हो दूसरे लालची "

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आज मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी थी, मुस्करा के बोला, " एकदम सही बोल रही हो, तुझे देख के मुंह में पानी आ रहा है,... "

वो कौन चुप रहने वाली थी, चिढ़ा के पूछा,... " कहाँ ऊपर वाले मुंह में या नीचे ? " फिर खुद ही जवाब भी दे दिया।

झपाक से गुड्डी ने एक चुम्मी ले ली, होंठ पर दांत भी कस के लगा दिया,... और हट के बोली,...


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" देखो ऊपर वाले मुंह के पानी का इलाज तो मैंने कर दिया और नीचे वाला पानी आज चंदा भाभी के पास गिराना "

मैं एकदम चुप, ये लड़की भी न, दूसरी कोई लड़की होती तो मुंह नोच लेती अगर उसका चाहने वाला किसी और पे आँख उठाता और यहाँ ये खुद,...

गुड्डी ने अब हाथ सीधे पैंट पे उसी जगह रख दिया और हल्के से दबा के बोली,

" अरे यार, मेरी तो आज छुट्टी है, आखिरी दिन। और तेरी बहन -महतारी कोई है नहीं यहाँ वरना मैं अपने हाथ से पकडे के तेरा ये सटाती उनके,... तो बची चंदा भाभी, ...




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तो क्या बुराई है, और कौन तेरा पम्प सूखने वाला है, चंदा भाभी को देने से ख़तम हो जाएगा। ये तो ऐसा हैंडपंप है जब चलाओ तब पानी,... कल फिर भर जाएगा। "
मुझसे न बोलते बने न चुप रहते, डर तो मुझे उसी का था, वो क्या सोचेगी, बुरा मानेगी, कोई और लड़की होती तो जलती, ... गुस्सा होती,... लेकिन किसी को दिल देने की सबसे बड़ी प्रॉब्लम ये हैं की आपका दिल जिसके पास है उसे आप से पहले आपके दिल की बात मालूम हो जाती है। गुड्डी के साथ यही होता था, मुझसे पहले मेरे दिल का बात मालूम हो जाती थी और उसे मालूम हो गयी। प्यार से मेरे गाल पे एक चपत मारती बोली,

" इसी लिए कहती हूँ , तू बुद्धू नहीं एकदम बुद्धू है। तू यही सोच रहा है न की मैं बुरा मान जाउंगी,... मैं क्यों बुरा मानूंगी, चंदा भाभी के साथ पानी गिराने में न तेरा घिस जाएगा, न कुछ कम होगा, चाहे चंदा भाभी के साथ चाहे अपनी बहन महतारी, किसी भी मायके वाली के साथ पानी गिराओ मैं नहीं बुरा मानने वाली। अच्छा ये बता, आज तक पहले पानी कभी गिरा नहीं है क्या, कित्ती बार मैंने खुद देखा है कि सुबह तुम उठते हो और पाजामा गीला। "
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( अब उस सुमुखी से कौन बताये की सपने में वही तो आती थी जो मेरा पानी,.. " लेकिन गुड्डी चालू थी,

" और जरूर नाली वाली में,... मैं मान नहीं सकती,... तो मैं तो न तेरे पाजामे से जलने वाली न नाली से,... तो चाहे चंदा भाभी चाहे अपनी बहिन महतारी किसी के साथ,... बुद्धू मौका देख के चौका मारना चाहिए और अगर चुके न तो मैं गुस्सा हो जाउंगी। "
गुड्डी को गुस्सा तो मैं कर नहीं सकता था, लेकिन आज होली की फगुनाहट ज्यादा ही चढ़ी थी तो हिम्मत कर के मैंने उसी की बात दुहरा दी,

" बहन -महतारी "

और वो जोर से खिखिलायी, समझ गयी मेरी बदमाशी, हंस के बोली, " हिम्मत है "

फिर कुछ सोच के चिढ़ा के बोली, " ललचा रहे थे न मम्मी को देख के, ... मैं देख रही थी और वो भी देख रही थीं समझ भी रही थीं अच्छी तरह से "
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वो तो मैं भी समझ गया था की मेरी बदमाशी पकड़ी गयी

गुड्डी की मम्मी दीर्घ स्तना, कठोर कुच, और ब्लाउज खूब लो कट ,... और भाभी का आँचल लुढ़क गया, उभारों से एकदम चिपका, रसोई से आ रही थीं तो हलके पसीने में भीगा,... ब्रा का ढक्क्न भी नहीं, सफ़ेद झलकौवा ब्लाउज, गहराई उभार कड़ापन सब साफ़ साफ़

,... तो बस मेरी निगाहें वहीँ चिपकी,... और उन्होंने मुझे देखते देख लिया बस बजाय आँचल ठीक करने के कमर में बाँध लिया और दोनों पहाड़ एकदम साफ़ साफ़, और मेरे पास जब वो झुकी तो कनखियों से उन्होंने तम्बू में बम्बू भी देख लिया, बस मुस्करायीं और मैं समझ गया मेरी चोरी पकड़ी गयी।

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लेकिन गुड्डी एक बार फिर खिलखिला रही थी, मेरा नाक पकड़ के हिलाते बोली,...

" ललचाने लायक चीज हो यार तो कोई भी ललचाएगा, तो मेरा बाबू भी ललच गया तो क्या, ... न ललचाते तो मम्मी भी बुरा मानतीं और मैं भी,... नहीं ललचाने पर पाप लगता है। जो चीज चाहते हो वो नहीं मिलती....मम्मी हैं ही ऐसी। "

फिर सीरियस होके बोली, " बच गए तुम, मम्मी को कानपूर जाना था, वरना खुले आम आज तेरी नथ उतरती, जरा भी नखड़ा करते न तो बस मम्मी रेप कर देतीं तेरा। "

तबतक हम लोग गुलाब जामुन की दूकान के पास पहुँच गए ओर हम रिक्शे से उतर गए।

“गुलाब जामुन एक किलो…” मैंने बोला।

“स्पेशल वाले…” मेरे कान में वो फुसफुसाई।
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“स्पेशल वाले…” मैंने फिर से दुकानदार से कहा।

“तो ऐसा बोलिए ना। लेकिन रेट डबल है…” वो बोला। “हाँ ठीक है…” फिर मैंने मुड़कर गुड्डी से पूछा- “हे एक किलो चन्दा भाभी के लिए भी ले लें क्या?”

“नेकी और पूछ पूछ…” वो मुश्कुराई।

“एक किलो और। अलग अलग पैकेट में…” मैं बोला।

पैकेट मैंने पकड़े और पैसे उसने दिए। लेकिन मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रहा था- “हे तुमने बताया नहीं की स्पेशल क्या? क्या खास बात है बताओ ना…”

“सब चीजें बताना जरूरी है तुमको। इसलिए तो कहती हूँ तुम्हारे अंदर दो बातें बस गड़बड़ हैं। बुद्धू हो और अनाड़ी हो। अरे पागल। होली में स्पेशल का क्या मतलब होगा, वो भी बनारस में…”



गुलाब जामुन लेके हम लोग निकले ही थे की मुझे चंदा भाभी की याद आ गयी किस तरह से डबल मीनिंग वाली खुल के बाते कर रही थी। मैंने गुड्डी से बोला

“हे सुन यार ये चन्दा भाभी ना। मुझे लगता है की लाइन मारती हैं मुझपे…”

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हँसकर वो बोली- “जैसे तुम कामदेव के अवतार हो। गनीमत मानो की मैंने थोड़ी सी लिफ्ट दे दी। वरना…” मेरे कंधे हाथ रखकर मेरे कान में बोली-

“लाइन मारती हैं तो दे दो ना। अरे यार ससुराल में आये हो तो ससुराल वालियों पे तेरा पूरा हक बनता है। वैसे तुम अपने मायके वाली से भी चक्कर चलाना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है…”

“लेकिन तुम। मेरा तुम्हारे सिवाय किसी और से…”

“मालूम है मुझे। बुद्धूराम तुम्हारे दिल में क्या है? यार हाथी घूमे गाँव-गाँव जिसका हाथी उसका नाम। तो रहोगे तो तुम मेरे ही। किसी से कुछ। थोड़ा बहुत। बस दिल मत दे देना…”

“वो तो मेरे पास है ही नहीं कब से तुमको दे दिया…”

“ठीक किया। तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं। तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी। तुम्हारी सब चीजें अच्छी हैं सिवाय दो बातों के…एक तो बुद्धू हो और दूसरे अनाड़ी।" वो शोख बोली।
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सामने जोगीरा चल रहा था। एक लड़का लड़कियों के कपड़े पहने और उसके साथ। रास्ता रुक गया था। वो भी रुक के देखने लगी। और मैं भी।


जोगीरा सा रा सा रा।

और साथ में सब लोग बोल रहे थे जोगीरा सारा रा।

तनी धीरे-धीरे डाला होली में। तनी धीरे-धीरे डाला होली में।



तब तक उसने हम लोगों की ओर देखा और एक नई तान छेड़ी।



“अरे कौन शहर में सूरज निकला कौन शहर में चन्दा,

अरे कौन शहर में सूरज निकला कौन शहर में चन्दा,

अरे गुलाबी दुपट्टे वाली को किसने टांग उठाकर चोदा,

जोगीरा सा रा सा रा…”


गुड्डी को लगा की शायद मुझे बुरा लगा होगा तो मेरा हाथ दबाकर बोली- “अरे चलता है यार होली है…”


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और मेरा हाथ पकड़कर आगे ले गई।
एक बुक स्टाल पे मैं रुक गया- “कोई होली स्पेशल है क्या?” मैंने पूछा।

“हौ ना। खास बनारसी होली स्पेशल अबहियें आयल कितना चाही?”

मैंने गुड्डी की ओर मुड़कर देखा उसने उंगली से चार का इशारा किया। और मैंने ले लिया। उसी के बगल में एक वाइन शाप भी थी। गुड्डी की निगाह वहीं अटकी थी।

“हे ले लूं क्या एक-दो बोतल बीयर?”

“तुम्हारी मर्जी। पीते हो क्या?”

“ना लेकिन। …”

“तो ले लो ना। तुम्हारे अन्दर यही गड़बड़ है सोचते बहुत हो। अरे जो मजा दे वो कर लेना चाहिए ऐसा टाइम कहाँ बार-बार मिलता है। घर से बाहर होली के समय…”

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मैंने दो बोतल बीयर ले ली।

रिक्शे पे मैंने पढ़ना शुरू किया। क्या मस्त चीज थी। एकदम खुली। मस्त टाईटिलें, होली के गाने और सबसे मजेदार तो राशि फल थे।

वो भी पढ़ रही थी साथ-साथ लेकिन उसने खींचकर रख दिया- “घर चल के पढेंगे…”

तब तक मुझे कुछ याद आया- “हे तुम्हारे घर में तो ताला बंद है चाभी भी मम्मी ले गईं तो हम रात को सोयेंगे कहां?”

“जहां मैं सोऊँगी…” वो मुश्कुराकर बोली।

“सच में तब तो…” मैं खुश होकर बोला।

पर मेरी बात काटकर वो बोली। इत्ती खुश होने की बात नहीं है। अरे यार एक रात की बात है। चन्दा भाभी के यहाँ। उनका घर बहुत अच्छा है। कल तो तुम्हारे साथ चल ही दूँगी…” तब तक हम लोग घर पहुँच गए थे।
Amezing Komalji. Esi girlfriend / mangetar / biwi kaha milegi. Jo bat ke khati he. Thik hi to kaheti he guddi. Are ghis thode jaega. Maza aa gaya. Budhu special vale gulab jamun bhi nahi samaza maza aa gaya.

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Shetan

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Thoda meri story par bhi dhyaan dijiye...aapko bhi tag kiya hain...thanks.
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Shetan
Please sare link
 

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Mass please aap apni story ka link do. Reply aur review barabar milega
 

Premkumar65

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गुड्डी और मम्मी

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" एक बात तो मानना पडेगा तोहरी महतारी दिल की अच्छी हैं, बहुत अच्छी। एक बार हमसे नहीं बोलीं की ये क्या मान दी, बल्कि कहती थीं की जरा सा चीज के लिए , काहें किसी पण्डे का मन दुखी करें, खुश रहेंगे तो आशीर्वाद देंगे और सावन का आशीर्वाद उहो बनारस में बनारस के पण्डे का आसीर्बाद,... और सच में सब पण्डे खुस हो के गए, केतना तो इसी घर में न बिस्वास हो तो गुड्डी से पूछ लेना,... और पण्डे भी एक से एक जबरदस्त, तगड़े पहलवान, दूनो चूँची पकड़ के ऐसे धक्का लगाते थे, दूसर कौन होत तो चिथड़ा चिथड़ा, लेकिन तोहरे भाभी क सास, चूतड़ उठाय उठाय के वो धक्का मारें,... एक भी पंडा बिना खुश हुए नहीं गया और साथ में वो १०१ रूपया लेकर बाद में पैर भी छूती थीं। सब क सब अइसन आसीर्बाद दिए,... " मम्मी बोल रही थीं और वहां लग रहा था की श्वेता और छुटकी भी सांस रोक के सुन रही थीं क्योंकि उन दोनों की आवाज भी एकदम बंद थी,...



लेकिन गुड्डी ने बीच में बात काट दी, बोली मम्मी का आसीर्बाद दिए थे पंडा सब ,
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" तीन आसीर्बाद, पहला उनका जोबन हरदम टनाटन रहेगा, बड़ा भी कड़ा भी, दूसरा उनकी ताल तलैया में न पानी क कमी होगी न डुबकी मारने वालों की, और तीसरी , ... और यह कह के चुप हो गयीं जैसे इन्तजार कर रही हों की हम लोग कुछ बोले, गुड्डी भी चुप तो मैं ही बोला



" मम्मी क्या था तीसरा आसीर्बाद, "

वो बड़ी जोर से हंसी फिर बोलीं तोहरे फायदे वाली बात, वो बड़ी सीरियस होके बोलीं,


' कुल पंडा, एक दो नहीं सब के सब, आसीर्बाद दिए की जेकरे लिए मनौती है जिसको नौकरी मिली है, वो जरूर यही पोखरी में डुबकी मारेगा, एक बार नहीं बार बार,... "
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और अबकी श्वेता जो ध्यान से मेरी रगड़ाई सुन रही थी, उसकी आवाज आयी,

" और बनारस के पंडो का आसीर्बाद कभी खाली नहीं जाता "
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" अरे डेढ़ साल से ऊपर हो गया तो वही दो बात मैं कह रही थी की एक जब तोहरे भौजाई क मायके क नाऊ कहार वहां मजा ले लिए है तो तुम थोड़े छोड़े होंगे, " मम्मी बोल रही थीं


पर बीच में गुड्डी बोली,

" और अब तो तय भी हो गया की अगली बार सबके सामने, ... "

" एकदम, मम्मी बोलीं, और जल्दी से बात आगे बढ़ाई " दूसरी बात पंडो का आसीर्बाद तो तुम तो जरूर अपनी,... तो जहाँ से निकले हो उसको नहीं छोड़े, तो तुम्हारे मुझे मम्मी कहने पे तुम गरियाये नहीं जाओगे, या तेरी रगड़ाई नहीं होगी, भूल जाओ डबल गारी पड़ेगी और रगड़ाई तो, बस हफ्ता दस दिन है होली के तीन दिन बाद,... आओगे तो देखना "

छुटकी अब ताश के पीछे पड़ी थी, बोली अबकी पत्ते कौन फ़ेंटेगा,... मम्मी बोलीं, तुम दोनों नहीं मैं फेंटूंगी। और फोन रख दिया,... लेकिन फोन रखने के पहले उन्होंने धीरे से एक बात कही जो सिर्फ मैंने और गुड्डी ने सुनी,


" मम्मी बोलते हो तो बहुत अच्छा लगता है, खूब मीठा मीठा लगता है लगता है एकदम दिल से बोल रहे हो। "
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जबतक मैं जी मम्मी बोलता फोन कट गया, लेकिन गुड्डी ने जिस प्यार से मुझे देखा, ...मै मान गया उसकी यह बात भी बाकी बात की तरह सही थी,

हाँ जब तक हम लोग सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुंचे एक बार फिर गुड्डी का फोन बजा और बजाय खोलने के उसने मुझे पकड़ा दिया, तेरे लिए ही होगा, मम्मी का फोन है।



उन्ही का था, बड़ी मिश्री भरी आवाज एकदम छेड़ने वाली चिढ़ाने वाली, बोलीं

" मम्मी इस लिए तो नहीं कहते की दुद्धू , पीने का मन करता है अबकी आओगे न होली के बाद, पिला दूंगी "
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और जब तक मैं कुछ जबाब देता फोन कट गया था और हम लोग चंदा भाभी के घर पहुँच गए थे।



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वो मुझे चंदा भाभी के घर सीधे ले गई। वो मास्टर बेडरूम में थी। एक आलमोस्ट ट्रांसपरेंट सी साड़ी पहने वो भी एकदम बदन से चिपकी, खूब लो-कट ब्लाउज़।

उन्हें देखते ही गुड्डी चहक के बोली- “देखिये आपके देवर को बचाकर लायी हूँ इनका कौमार्य एकदम सुरक्षित है। हाँ आगे आप के हवाले वतन साथियों। मैं अभी जस्ट कपड़े बदल के आती हूँ…” और वो मुड़ गई।

“हेहे, लेकिन,... ये तो मैंने सोचा नहीं…” मेरी चमकी। मैं बोल पड़ा।


“क्या?” वो दोनों साथ-साथ बोली।

“अरे यार मैं। मैं क्या कपड़ा पहनूंगा। और सुबह ब्रश। वो भी नहीं लाया…”

“ये कौन सी परेशानी की बात है कुछ मत पहनना…” चंदा भाभी बोली।

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“सही बात है आपकी भाभी का घर है, जो वो कहें। और वैसे भी इस घर में कोई मर्द तो है नहीं। भाभी हैं, मैं हूँ. गुंजा है। तो आपको तो लड़कियों के ही कपड़े मिल सकते हैं। और मेरे और गुंजा के तो आपको आयेंगे नहीं हाँ…”

भाभी की और आँख नचाकर वो कातिल अदा से बोली, और मुड़कर बाहर चल दी।
Kamaal ka licht hain aap Komal ji.
 

komaalrani

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Wow.. really komalji, every word has tease effect..!! From teen teasing to MILF dominance. but romance and submission is always there. Very open to say.. Sorry komalji,.. this thread is more enchanting than the previous one. 😄😄😄
Very few people will have your sense of grasp and putting it in a few words. you have hit the bull's eye and that was the picture I was trying to paint, unspoken romance, and submission. And you are correct. Initially, I just thought, I would repost but then it moved to small additions and the challenge was to not interrupt the storyline. I am not sure about the coming post, but the early posts have more color in the characters.
 
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