Shetan
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Ohhh ho. Maza aa gaya. Holi ka vo bhojpuri mahol aur holi ke geet. Amezing. Maza aa gaya.खयी के पान बनारस वाला
गली के अन्दर पान की दुकान।
और गली बनारस की पतली, संकरी लम्बी और दोनों ओर घर भी दुकाने भी, गलियों में से निकलती और संकरी गलियां, जैसे बात से बात निकलती है,...
गुड्डी मेरा हाथ कस के पकडे, दुकानों पर रंग गुलाल पटे पड़े थे, तरह तरह की पिचकारियां,
बीच बीच में एकाध हलवाई की भी दूकान, जहाँ ताज़ी गुझिया छन रही थीं, होलिका में चढ़ाने के सामान, खरीदने वाले आदमी औरतें, कंधे से कंधा छिला पड़ रहा था, लोग धकियाते, रगड़ते दरेरते आगे बढ़ रहे थे,... और कोई आदमी नहीं था जिसके कुर्ते पे गुलाबी रंग के छींटे न हो, ज्यादातर के तो चेहरे पर भी, ... होली अभी भी हफ्ते भर दूर थी पर,
इस गली में लग रहा था बनारस और होली अभी से मिलकर फगुआ खेल रहे थे, एक तो बनारस वैसे ही मस्ती के लिए मशहूर फिर फागुन की फगुनाहट, ...
जैसे ही हम लोग गली में घुसे, एक कोठी की तरह से घर था, एकदम गली के मुहाने पे जहाँ लग रहा था कोई गाने की बैठकी चल रही थी, एक मीठी मीठी आवाज आ रही थी होरी की,
कैसी होरी मचाई,...
इतते आवत कुँवरी राधिका, उतते कुँवर कन्हाई
खेलत फाग परस्पर हिलमिल, यह सुख बरनि न जाई
घर-घर बजत बधाई
ठुमरी की रस घोलती आवाज, मेरे कदम रोक रही थी, गुड्डी मेरा हाथ पकडे खींच रही थी, और वो भी ठिठक गयी, अंदर से आनेवाली आवाज ने दुहराया,
इतते आवत कुँवरी राधिका
उतते कुँवर कन्हाई
गुड्डी ने जिस तरह मुझे देखा, छरछरराती हजार पिचकारियां एक साथ चल पड़ी,.. बिना रंगे, रंगो से मैं नहा उठा,... हम दोनों आगे आगे पीछे से पीछा करती धीमी होती ठुमरी,
मत मारो पिचकारी, ...
थोड़ा ही आगे बढे होंगे की गुड्डी ने जोर से अपनी ओर खींचा, ...
मेरी आंखे मुंडेर पर पड़ीं, एक बड़ी सी बिंदी, काजल भरी आंखे,... खिलखलाती हंसती,...
और नीचे खड़े धवल वस्त्र में एक,... लग रहा था साफ़ साफ़ कोई नन्दोई होंगे, सलहज ने उस समय तो छोड़ दिया सफ़ेद कपडे की दुहाई सुन के,... लेकिन मुंडेर से एक बड़ा लोटा गाढ़े गुलाबी रंग का,... और वो रंग से सराबोर, ...
गुड्डी के खींचने से मैं बच तो गया लेकिन एक दो छींटे मेरी भी सफ़ेद शर्ट पर, ... और भांग की दूकान पर बैठी एक औरत ने मुझे देखा तो बोली,
अरे रंग तो शुभ होता है,...
और गुड्डी मुस्करा पड़ी,... तभी बड़ी जोर की भगदड़ मची, ...
गुड्डी ने कस के मेरा हाथ पकड़ लिया और खिंच के एकदम पीछे, सट के चिपक के ढाल सी खड़ी हो गयी,... और तबतक पता चल भगदड़ क्यों मची थी, एक गली सामने से आ के मिल रही थी, उसी में से एक वृषभ देव्, ... अब मैं समझा, रांड सांड सीढी सन्यासी' वाली बात,... मस्ती से झूमते हुए इस गली की ओर,... मैं और गुड्डी उन्ही को देख रहे थे,... लेकिन तबतक कुछ लोगों ने निवेदन किया या किसी बछिया की महक लग गयी , उसी जिधर से आये थे उधर ही वापस की ओर मुड़ पड़े, गली ने चैन की साँस ली, चहल पहल चालू हो गयी,... लेकिन मुड़ने के पहले गुड्डी ने मुझे हड़का के कहा,
" हे हाथ जोड़ो,... "
और मैंने वृहदाकार वृषभ देव् को आदर पूर्वक हाथ जोड़ लिया, मेरी एक आदत हो गयी थी की गुड्डी कुछ कहे तो मैं तुरंत वो काम कर देता था, सोचता बाद में था, मन ने मेरी बात माननी रसगुल्ले का घूस पा के ही छोड़ दी थी, अब धीरे धीरे तन ने भी, लेकिन दिमाग अभी भी देर से ही सही,... तो मैंने गुड्डी से पूछ लिया, धीमे से ही सही
" क्यों "
" क्या पता तेरे जीजा जी हों या बाबू जी " बड़ी सीरियसली बोली, फिर जोड़ा,
" भूल गए मम्मी ने क्या कहा था, ... तेरी बहन महतारी पे बनारस के सांड़ चढ़वाएंगी,... और मम्मी की कोई बात गलत होती नहीं, भले ही वो मजाक में कहें और ये बात तो उन्होंने सीरियसली कही थी, फिर गदहों का स्वाद लेते लेते,... थोड़ा स्वाद भी बदल जाएगा और बनारस के साँड़ तो पूरी दुनिया में मशहूर हैं। "
अब मम्मी की बात के आगे तो मैं कुछ बोल नहीं सकता था, गुड्डी ने तीन तिरबाचा भरवाया था,... मम्मी के आगे मुझे सिर्फ हाँ बोलना है और बहुत हिम्मत की तो जी मम्मी '. अब लोग तो पहाड काट के दूध की नदी निकालने का प्रोग्राम बनाते हैं उसके मुकाबले तो इस लड़की ने आसान सी शर्त रखी थी।
गुड्डी ने तो बड़ी सीरियसली बोली थी बात, लेकिन हम दोनों सांड़ से बचने के लिए भांग वाली दूकान पे सट के खड़े थे और वो भांग वाली गुड्डी की बात सुन के मुस्करा रही थी, समझ गयी थी रिश्ता क्या है।
पान की दूकान दिख तो रही थी लेकिन अभी भी थोड़ी दूर थी, बीच में रंग गुलाल पिचकारी वाली दुकाने जहाँ भीड़ के मारे चलना मुश्किल हो रहा था. जगह जगह भोजपुरी होली के गाने बज रहे थे, एक जगह बज रहा था,
होली में महंगा सरसों क तेल होई,
अबकी तो देखा पेलमपेल होई,
पीछे से भीड़ का एक रेला आ रहा था, गुड्डी ने मुझे बचाते हुए अपनी ओर खींचा, मैं एकदम सट गया, फेविकोल के जोड़ की तरह, मुस्कराते हुए वो सारंग नयनी मेरे कान में हंस के वो हंसिनी बोली,
" तुम काहें परेशान हो रहे सरसों क तेल महंगा होने से मम्मी बोल रही थीं न अरे तोहरी बहिन महतारी क गढ़हा पोखरा अस है तो उन्हें कौन तेल की जरूरत पड़ेगी, फिर गदहा घोडा कौन तेल लगा के,... "
गुड्डी सच में मम्मी को सिर्फ रंग रूप और जोबन में नहीं पड़ी थी बल्कि, चिढ़ाने छेड़ने और रगड़ने में और उसमें वो न जगह देखती थी न मौका।
मम्मी ने जो गरियाया था गुड्डी वही कह रही थी,...
चने के खेत में पड़ा था पगहा, पड़ा था पगहा, आनंद की बहिनी को, बहिनी को
गुड्डी छिनार को एलवल वाली को ले गया गदहा,
ले गया गदहा चने के खेत में, चने के खेत में , गुड्डी छिनार को चोद रहा गदहा चने के खेत में।
चने के खेत में पड़ा रोड़ा, पड़ा रोड़ा
आनंद की महतारी को ले गया घोडा, घोंट रही लौंड़ा चने के खेत में
हम लोग एक रंग की दूकान से सट के खड़े थे, दुकानदार किसी को पिचकारी बेच रहा था, बोल रहा था देखिये कितनी लम्बी है, कितना रंग आता है,... पर वो निकल निकल गया और उस दूकानदार को गुड्डी दिख गयी, बस वो चालू हो गया,...
" इतनी लम्बी मोटी पिचकारी पूरे बनारस में नहीं मिलेगी, पूरी बाल्टी भर रंग आता है,... "
गुड्डी ने झटके से बार बार अपने चेहरे पे आती लट को हटाया और उससे बोली, ... " मेरे पास आलरेडी है " और मुझे देख के मुस्करा दी। तब तक पान की दूकान के पास भीड़ थोड़ी सी हलकी हुयी और वो रगड़ते, दरेरते, जगह बनांते, मुझे खींचते सीधे पान वाले के पास,
तब मुझे याद आया जो चंदा भाभी ने बोला था। दुकान तो छोटी सी थी। लेकिन कई लोग। रंगीन मिजाज से बनारस के रसिये। लेकिन वो आई बढ़कर सामने। दो जोड़ी स्पेशल पान।पान वाले ने मुझे देखा ओर मुश्कुराकर पूछा- “सिंगल पावर या फुल पावर?”
मेरे कुछ समझ में नहीं आया, मैंने हड़बड़ा के बोल दिया- “फुल पावर…”
वो मुश्कुरा रही थी ओर मुझ से बोली- “अरे मीठे पान के लिए भी तो बोल दो। एक…”
लेकिन मैं तो खाता नहीं…” मैंने फिर फुसफुसा के बोला।
पान वाला सिर हिला हिला के पान लगाने में मस्त था। उसने मेरी ओर देखा तो गुड्डी ने मेरा कहा अनसुना करके बोल दिया- “मीठा पान दो…”
“दो। मतलब?” मैंने फिर गुड्डी से बोला।
वो मुश्कुराकर बोली- “घर पहुँचकर बताऊँगी की तुम खाते हो की नहीं?”
मेरे पर्स से निकालकर उसने 500 की नोट पकड़ा दी। जब चेंज मैंने ली तो मेरे हाथ से उसने ले लिया और पर्स में रख लिया। रिक्शे पे बैठकर मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था।
Ek nari ko purush ki dhal bante dikhaya vo to tarif karu utni kam he. Vrush dekvta ka ek chalte sing hi lag jae to afat aa jae. Par aap ne usme mazak gariyane vala tadka lagaya vo to kabile tarif he.
Ye muje amezing daylog laga. Jabardast.
इतनी लम्बी मोटी पिचकारी पूरे बनारस में नहीं मिलेगी, पूरी बाल्टी भर रंग आता है,... "
गुड्डी ने झटके से बार बार अपने चेहरे पे आती लट को हटाया और उससे बोली, ... " मेरे पास आलरेडी है " और मुझे देख के मुस्करा दी।
Aur anand babu ki mahtari aur baheniya ko to guddi ne bhi nahi chhoda. Sab ke sab amezing tha.
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