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Erotica फागुन के दिन चार

Shetan

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गुड्डी और मम्मी

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" एक बात तो मानना पडेगा तोहरी महतारी दिल की अच्छी हैं, बहुत अच्छी। एक बार हमसे नहीं बोलीं की ये क्या मान दी, बल्कि कहती थीं की जरा सा चीज के लिए , काहें किसी पण्डे का मन दुखी करें, खुश रहेंगे तो आशीर्वाद देंगे और सावन का आशीर्वाद उहो बनारस में बनारस के पण्डे का आसीर्बाद,... और सच में सब पण्डे खुस हो के गए, केतना तो इसी घर में न बिस्वास हो तो गुड्डी से पूछ लेना,... और पण्डे भी एक से एक जबरदस्त, तगड़े पहलवान, दूनो चूँची पकड़ के ऐसे धक्का लगाते थे, दूसर कौन होत तो चिथड़ा चिथड़ा, लेकिन तोहरे भाभी क सास, चूतड़ उठाय उठाय के वो धक्का मारें,... एक भी पंडा बिना खुश हुए नहीं गया और साथ में वो १०१ रूपया लेकर बाद में पैर भी छूती थीं। सब क सब अइसन आसीर्बाद दिए,... " मम्मी बोल रही थीं और वहां लग रहा था की श्वेता और छुटकी भी सांस रोक के सुन रही थीं क्योंकि उन दोनों की आवाज भी एकदम बंद थी,...



लेकिन गुड्डी ने बीच में बात काट दी, बोली मम्मी का आसीर्बाद दिए थे पंडा सब ,
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" तीन आसीर्बाद, पहला उनका जोबन हरदम टनाटन रहेगा, बड़ा भी कड़ा भी, दूसरा उनकी ताल तलैया में न पानी क कमी होगी न डुबकी मारने वालों की, और तीसरी , ... और यह कह के चुप हो गयीं जैसे इन्तजार कर रही हों की हम लोग कुछ बोले, गुड्डी भी चुप तो मैं ही बोला



" मम्मी क्या था तीसरा आसीर्बाद, "

वो बड़ी जोर से हंसी फिर बोलीं तोहरे फायदे वाली बात, वो बड़ी सीरियस होके बोलीं,


' कुल पंडा, एक दो नहीं सब के सब, आसीर्बाद दिए की जेकरे लिए मनौती है जिसको नौकरी मिली है, वो जरूर यही पोखरी में डुबकी मारेगा, एक बार नहीं बार बार,... "
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और अबकी श्वेता जो ध्यान से मेरी रगड़ाई सुन रही थी, उसकी आवाज आयी,

" और बनारस के पंडो का आसीर्बाद कभी खाली नहीं जाता "
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" अरे डेढ़ साल से ऊपर हो गया तो वही दो बात मैं कह रही थी की एक जब तोहरे भौजाई क मायके क नाऊ कहार वहां मजा ले लिए है तो तुम थोड़े छोड़े होंगे, " मम्मी बोल रही थीं


पर बीच में गुड्डी बोली,

" और अब तो तय भी हो गया की अगली बार सबके सामने, ... "

" एकदम, मम्मी बोलीं, और जल्दी से बात आगे बढ़ाई " दूसरी बात पंडो का आसीर्बाद तो तुम तो जरूर अपनी,... तो जहाँ से निकले हो उसको नहीं छोड़े, तो तुम्हारे मुझे मम्मी कहने पे तुम गरियाये नहीं जाओगे, या तेरी रगड़ाई नहीं होगी, भूल जाओ डबल गारी पड़ेगी और रगड़ाई तो, बस हफ्ता दस दिन है होली के तीन दिन बाद,... आओगे तो देखना "

छुटकी अब ताश के पीछे पड़ी थी, बोली अबकी पत्ते कौन फ़ेंटेगा,... मम्मी बोलीं, तुम दोनों नहीं मैं फेंटूंगी। और फोन रख दिया,... लेकिन फोन रखने के पहले उन्होंने धीरे से एक बात कही जो सिर्फ मैंने और गुड्डी ने सुनी,


" मम्मी बोलते हो तो बहुत अच्छा लगता है, खूब मीठा मीठा लगता है लगता है एकदम दिल से बोल रहे हो। "
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जबतक मैं जी मम्मी बोलता फोन कट गया, लेकिन गुड्डी ने जिस प्यार से मुझे देखा, ...मै मान गया उसकी यह बात भी बाकी बात की तरह सही थी,

हाँ जब तक हम लोग सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुंचे एक बार फिर गुड्डी का फोन बजा और बजाय खोलने के उसने मुझे पकड़ा दिया, तेरे लिए ही होगा, मम्मी का फोन है।



उन्ही का था, बड़ी मिश्री भरी आवाज एकदम छेड़ने वाली चिढ़ाने वाली, बोलीं

" मम्मी इस लिए तो नहीं कहते की दुद्धू , पीने का मन करता है अबकी आओगे न होली के बाद, पिला दूंगी "
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और जब तक मैं कुछ जबाब देता फोन कट गया था और हम लोग चंदा भाभी के घर पहुँच गए थे।



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वो मुझे चंदा भाभी के घर सीधे ले गई। वो मास्टर बेडरूम में थी। एक आलमोस्ट ट्रांसपरेंट सी साड़ी पहने वो भी एकदम बदन से चिपकी, खूब लो-कट ब्लाउज़।

उन्हें देखते ही गुड्डी चहक के बोली- “देखिये आपके देवर को बचाकर लायी हूँ इनका कौमार्य एकदम सुरक्षित है। हाँ आगे आप के हवाले वतन साथियों। मैं अभी जस्ट कपड़े बदल के आती हूँ…” और वो मुड़ गई।

“हेहे, लेकिन,... ये तो मैंने सोचा नहीं…” मेरी चमकी। मैं बोल पड़ा।


“क्या?” वो दोनों साथ-साथ बोली।

“अरे यार मैं। मैं क्या कपड़ा पहनूंगा। और सुबह ब्रश। वो भी नहीं लाया…”

“ये कौन सी परेशानी की बात है कुछ मत पहनना…” चंदा भाभी बोली।

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“सही बात है आपकी भाभी का घर है, जो वो कहें। और वैसे भी इस घर में कोई मर्द तो है नहीं। भाभी हैं, मैं हूँ. गुंजा है। तो आपको तो लड़कियों के ही कपड़े मिल सकते हैं। और मेरे और गुंजा के तो आपको आयेंगे नहीं हाँ…”

भाभी की और आँख नचाकर वो कातिल अदा से बोली, और मुड़कर बाहर चल दी।
Jabardast shararat mazak. Mummy to panda vala ashirvad dilvane ke pure pure gun batva die. Jese ashirvad ek bar aur dilva ke hi man ne vali ho. Bechare Anand babu bade sidhe he.
Aur inki muh boli shali bhi kuchh kam nahi he. Moke pe choka marne ke pure firag me he.
Lekin guddi aur chanda bhabhi to kuchh aur hi plan me he. Yaha mard he hi kon. Has has ke pet dukh gaya. Amezing shararat erotic mazak.

Is vale part me to conversation me bahot sare mast daylog he. Kis kis ko point karti

Par maza aa gaya.

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komaalrani

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सहबाला हमारी तरफ पांच साल से छोटे बच्चों ले जाया जाता है...
ताकि जब दूल्हा रीति रिवाजों के बीच औरतों से घिरा हो तो
कुछ बात सहबाला के जरिये बताई जा सके...
और लड़की वाले पक्ष के लोग बड़े सहबाला को देखके असहज अनुभव न करें...
एकदम सही बात है यह अक्सर जगह पर छोटे बच्चों का इस्तेमाल दो बार होता है

एक तो सहबाला के रूप में और दूसरे छोटे बच्चे को नयी उतरी वधु के गोद में डाला जाता जाता है , बिना कहे यह कह कर की इस वंश परम्परा को आगे बढ़ाना अब तुम्हारी जिम्मेदारी है

सेक्स सिर्फ देह का खेल नहीं है, झणिक आनंद नहीं है, अन्य जातियों, प्रजातियों की तरह मानव जाति की कोशिश है,.... विलुप्त होने के विरुद्ध। और यही सन्देश बिलकुल आसान ढंग से दिया जाता है

लेकिन लड़के के छोटे भाई का, विशेष रूप से अगर किशोर हो, एकलौता हो, घर में कोई ननद भी न हो. आने वाली भाभी का बालसखा भी वही हो, और पढ़ने लिखने में तेज हो, इमेज सीधे की हो और लड़कियों को मालूम हो की वो काटेगा नहीं तो उसकी रगड़ाई तय है।
 

komaalrani

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कहाँ कहाँ से ढूंढ के लाती हैं...
यह वीडियों मैंने इसलिए भी शेयर किये की बहुत से लोग जब अब महानगरों में है या जिन्होंने वह शादियां नहीं देखी हैं उन्हें भी अहसास हो जाये की जो बात हो रही है वो सिर्फ किस्सा कहानी नहीं है

दूसरे परम्पराएं बदलती हैं, टेक्नोलॉजी का असर आता है जैसे मोबायल की रिकार्डिंग

और सबसे बड़ी बात रोल,... लड़को का रोल सिर्फ शांत रहना और बिन बोले कन्याओं का महिलाओं से छेड़े जाने का आनंद लेना है।

मैं कहती आँखन की देखी
 

komaalrani

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क्या कहा जाए..
अब समय किसी के पास नहीं...
अब तो दो मिनट नूडल की तरह इंस्टेंट रिश्ते और फिर तलाक...
पुराने समय और रीति रिवाजों के पीछे कुछ तर्क और कारण थे...
जो अब दरकिनार कर दिए गए हैं..
अब शादियां इवेंट बन गयी है

जो कुलाचार था, जिन रस्मों का काम बूआ या नाउन करती, अक्सर सिर्फ महिलाये होती थीं इसलिए मजाक भी ज्यादा खुल के होते थे अब किसी बड़े होटल में होने वाली इवेंट हो गयीं है, हल्दी ऐसी रस्म में ड्रेस कोड होता है।
 

komaalrani

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कोमल मैम

सही बताऊं तो मैं यह सोच रहा था कि यह कहानी तो मेरी पढ़ी हुई है ही, सरसरी निगाह से देखूंगा और कॉमेंट्स पढूंगा कि देखे और पाठकगण कहानी को कितना पसंद करते हैं और क्या कहते हैं कहानी के बारे में।

और जब उनकी राय पॉजिटिव आयेगी तो मैं फूल कर कुप्पा हो जाऊंगा कि " देखा, मैं नहीं कहता था !!! " वगैरह - वगैरह।

लेकिन मैं भूल गया था कि आखिर पाला तो आप जैसी लेखिका से पड़ा है। अब हालत यह है कि मैं शुरु से इस कहानी को एक बार नहीं, बार - बार पढ़ रहा हूं और खुपड़िया को खुरचे जा रहा हूं कि मैने यह पंगा क्यूं लिया ??

हर पृष्ठ पहले से भी ज्यादा मानो ऐसा सजाया है कि मैं तो हतप्रभ रह गया। आपकी लेखनी को प्रणाम क्या साष्टांग प्रणाम कर रहा हूं वो भी बारम्बार।

आप तो आप ही हो, अद्वितीय !!!!!!!!!

सादर
आपका कमेंट मुझसे ज्यादा आपके बारे में कहता है

आप कितने सहृदय, दूसरों के गुण ढूंढ कर देखने वाले हैं।

लेकिन एक बात इस थ्रेड के बारे में ( जो मेरे बाकी थ्रेडस पर भी लागू होती हैं ), ... मेरी कहानियां थोड़ी नटखट शरीर बच्चों की तरह हैं, हरदम काबू में नहीं रहती। तो मैंने सोचा तो यही था की इस को जस का तस,... क्योंकि दो कहानियां पहले ही चल रही थीं, और उसमे भी समय तो लगता है

तो बस, लेकिन बस एक बार कहानी शुरू हो जाए तो वो हाथ से फिसल जाती है और फिर किधर भागेगी ठिकाना नहीं रहता। कहानी का नेचर अगर सीरियल की तरह हो, साल दर साल वाला तो कई बार आगे के भागों में छोटी मोटी विसंगतिया और कंटीन्यूटी की गलतियां भी आ जाती हैं इसलिए लगता है की उसे ठीक कर ले

तो जैसा आपने सही समझा, कहानी के सूत्र और सूत्रधार तो वही रहेंगे , लेकिन डिटेल्ड ट्रीटमेंट में एम्फेसिस में थोड़ा फरक तो होगा. बाद के भागों में कई बार गाथा में गुड्डी के परिवार का जिक्र आया ( मम्मी, छोटी बहने ) लेकिन पिछली बार शुरू में उनका जिक्र बहुत ही कम था। इसलिए मैंने सोचा की आने वाले दिनों की पदचाप की आहट, हल्की ही सही, कहानी के शुरू के भागों में आना चाहिए इसलिए थोड़ा परिवर्धन करना पड़ा।

आगे के किस भाग में ज्यादा बदलाव होगा , किस में कम यह तो उस भाग को पोस्ट करते समय ही पता चलेगा , लेकिन मैं गुजारिश कर सकतीं हूँ की आप का साथ बना रहे।

दूसरी बात जो आपने मेरे बारे में कही थी और मैंने माना की वह आपको ही ज्यादा दर्शाता है, क्यों

और अब जवाब के लिए मैं गोस्वामी जी का सहारा लेती हूँ ,

निज कवित्त केहि लाग न नीका, सरस होय अथवा अती फीका। जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥

( रसीली हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती? किन्तु जो दूसरे की रचना को सुनकर हर्षित होते हैं, ऐसे उत्तम पुरुष जगत् में बहुत नहीं हैं॥6॥)

तो आप उन विरले लोगों में है

धन्यवाद, आभार
 

Mass

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Madam, latest update posted on my story...albeit a small one...
look forward to your comments. Thank you.

komaalrani
 

komaalrani

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आज गुड्डी का लास्ट डे... तो माला-डी और आई-पिल क्यों...
क्योंकि कल तो बनारस से उड़ जाने वाली है...

या चंदा भाभी गुंजा के लिए कोई भाई प्लान कर रही हैं...
माला डी माहवारी के दौरान ही शुरू की जाती है और आई पिल देह संबंध के बाद लेकिन २४ घंटे के भीतर,

और आनंद बाबू के मायके में गुड्डी कहाँ दवा की दूकान ढूंढती,

और जैसा समझदार जानते हैं लड़कियां अपनी भावनाएं कई ढंग से व्यक्त करती हैं तो आनंद बाबू के लिए यह इशारा भी रहा हो की अब डरने घबडाने की बात नहीं न उन्हें रबड़ का इंतजाम करने की जरूरत है,

किसी कवि ने कहा है

" कुण्डी मत खड़काना राजा, सीधे अंदर आना राजा :
 

komaalrani

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ओहो... तो गुड्डी रानी ने हिंट दे दिया.. चंदा पर आज लैंडर लैंड करेगा....
अब हैंडपंप के हैंड से चलाने के दिन लद गए...
एकदम, और गुड्डी की बात तो योर विश इज माई कमांड वाली बात है, इसलिए गुड्डी ने बता भी दिया खोल के समझा भी दिया की वह न तो आनंद बाबू के उस पाजामे से जलती है जहाँ कितनी रोटी खाने के बाद एक बूँद खून बनता है और कितने खून से एक बूँद धातु बनती है वो धातु उसने खुद आनंद बाबू के पजामे पर सुबह सुबह देखी थी

गुड्डी ने विस्तार से सोदाहरण व्याख्या करके इसलिए समझा दिया की उसे मालूम था की वरना ये लड़का बस यही सोचता रह जाएगा, " गुड्डी बुरा मान जायेगी " और गुड्डी के लिए भी फायदा अगले दिन अनाड़ी नहीं,... हाँ खिलाड़ी न हो लेकिन कुछ तो सीख चूका होगा चंदा भाभी की पाठशाला में।
 

komaalrani

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ओहो... तो गुड्डी रानी ने हिंट दे दिया.. चंदा पर आज लैंडर लैंड करेगा....
अब हैंडपंप के हैंड से चलाने के दिन लद गए...
एकदम, और गुड्डी की बात तो योर विश इज माई कमांड वाली बात है, इसलिए गुड्डी ने बता भी दिया खोल के समझा भी दिया की वह न तो आनंद बाबू के उस पाजामे से जलती है जहाँ कितनी रोटी खाने के बाद एक बूँद खून बनता है और कितने खून से एक बूँद धातु बनती है वो धातु उसने खुद आनंद बाबू के पजामे पर सुबह सुबह देखी थी

गुड्डी ने विस्तार से सोदाहरण व्याख्या करके इसलिए समझा दिया की उसे मालूम था की वरना ये लड़का बस यही सोचता रह जाएगा, " गुड्डी बुरा मान जायेगी " और गुड्डी के लिए भी फायदा अगले दिन अनाड़ी नहीं,... हाँ खिलाड़ी न हो लेकिन कुछ तो सीखा होगा चंदा भाभी की पाठशाला में।
 
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