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फागुन के दिन चार - भाग चार
चंदा भाभी
४६,६०९
" मम्मी बोलते हो तो बहुत अच्छा लगता है, खूब मीठा मीठा लगता है लगता है एकदम दिल से बोल रहे हो। "
जबतक मैं जी मम्मी बोलता फोन कट गया, लेकिन गुड्डी ने जिस प्यार से मुझे देखा, ...मै मान गया उसकी यह बात भी बाकी बात की तरह सही थी,
हाँ जब तक हम लोग सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुंचे एक बार फिर गुड्डी का फोन बजा और बजाय खोलने के उसने मुझे पकड़ा दिया, तेरे लिए ही होगा, मम्मी का फोन है।
उन्ही का था, बड़ी मिश्री भरी आवाज एकदम छेड़ने वाली चिढ़ाने वाली, बोलीं
" मम्मी इस लिए तो नहीं कहते की दुद्धू पीना यही, चल अबकी आओगे न होली के बाद, पिला दूंगी "
और जब तक मैं कुछ जबाब देता फोन कट गया था और हम लोग चंदा भाभी के घर पहुँच गए थे।चंदा भाभी का घर फर्स्ट फ्लोर पर था, गुड्डी के घर से सटा, सामने खूब बड़ी सी खुली छत। छत परसिर्फ यही दो घर थे,...
--
वो मुझे चंदा भाभी के घर सीधे ले गई। वो मास्टर बेडरूम में थी। एक आलमोस्ट ट्रांसपरेंट सी साड़ी पहने वो भी एकदम बदन से चिपकी, खूब लो-कट ब्लाउज़।
उन्हें देखते ही गुड्डी चहक के बोली- “देखिये आपके देवर को बचाकर लायी हूँ इनका कौमार्य एकदम सुरक्षित है। हाँ आगे आप के हवाले वतन साथियों। मैं अभी जस्ट कपड़े बदल के आती हूँ…”
और वो मुड़ गई।
“हेहे। लेकिन। ये तो मैंने सोचा नहीं…” तब तक मेरी चमकी, मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, फिर भी मैं बोला।
“क्या?” वो दोनों साथ-साथ बोली।
“अरे यार मैं। मैं क्या कपड़ा पहनूंगा। और सुबह ब्रश। वो भी नहीं लाया…”
अपनी परेशानी मैंने गुड्डी और चंदा भाभी को बताई।
“ये कौन सी परेशानी की बात है कुछ मत पहनना…” चंदा भाभी बोली।
“सही बात है आपकी भाभी का घर है। जो वो कहें। और वैसे भी इस घर में कोई मर्द तो है नहीं। भाभी हैं, मैं हूँ। गुंजा है। तो आपको तो लड़कियों के ही कपड़े मिल सकते हैं। और मेरे और गुंजा के तो आपको आयेंगे नहीं हाँ…”
भाभी की और आँख नचाकर वो कातिल अदा से बोली, और मुड़कर बाहर चल दी।
“आइडिया तो इसने सही दिया। लेकिन आप शर्ट तो उतार ही दो। क्रश हो जायेगी और शाम से पहने होगे। अन्दर बनियाइन तो पहना होगा ना तो फिर। चलो…”
और मेरे कुछ कहने के पहले ही भाभी ने शर्ट के बटन खोल दिए। और खूँटी पे टांग दी।
बेडरूम में एक खूब चौड़ा डबल बेड लगा था। उसपे एक गुलाबी सी सिल्केन चादर, दो तकिये, कुछ कुशन, बगल में एक मेज, एक सोफा और ड्रेसिंग टेबल। साथ में एक लगा हुआ बाथरूम।
“छोटा है ना?” भाभी ने मुझे कमरे की ओर देखते हुए कहा।
लेकिन मेरी निगाह तब तक उनके छलकते हुए उभारों की ओर चली गई थी। मुश्कुराकर मैं बोला- “जी नहीं एकदम बड़ा है। परफेक्ट…”
“मारूंगी तुमको। लगता है पिटाई करनी पड़ेगी…” मेरी नजरों की बदमाशी पकड़ी गयी थीं। भाभी बोलीं।
“हाँ मेरी ओर से भी…” ये गुड्डी थी।
वो कपडे बदलकर वापस आ गयी थी। उसने घर में पहनने वाली फ्राक पहन रखी थी जो छोटी भी थी और टाईट भी। जिस तरह उसके उभार छलक रहे थे साफ लग रहा था की उसने ब्रा नहीं पहन रखी है।
“अरे वाह। आपको टापलेश तो कर ही दिया पूरा ना सही। आधा ही सही…”
गुड्डी आते ही चालू हो गई। पर चन्दा भाभी कुछ सोच रही थी।
“आप लुंगी तो पहन लेते हैं ना…” वो बोली।
“हाँ कभी कभी। है क्या?” मैंने पूछा। मैं भी पैंट पहनकर कभी सो नहीं पाता था।
“हाँ,... नहीं। वो गुंजा के पापा जब आते हैं ना तो कभी मेरी। मतलब वो भी कित्ते कपड़े लाये। और दो-चार दिन के लिए तो आते हैं। तो मेरी एकाध पुरानी साड़ी की लूंगी बनाकर,.. रात भर की तो बात होती है…”
“अरे पहन लेंगे ये। और बाकी। साड़ी क्या ये जो आप पहनी हैं वही क्या बुरी है…” गुड्डी ने बोला।
मुझे भी मजाक सूझा। मैंने भी बोला-
“ठीक है भाभी आप जो साड़ी पहने हैं वही और आखिर मैं भी तो दो कपड़े में ही रहूँगा। और आप फिर भी…”
“ठीक है चलिए पहले आप पैंट उतारिये…” भाभी ने हँसकर कहा।
“एकदम नहीं…” गुड्डी इस समय मेरे साथ आ गई थी-
“ये सही कह रहे हैं। पहले आपकी साड़ी उतरेगी। आखिर आप ने ही तो साड़ी की लूंगी बनाने का आफर दिया था…”
हँसकर वो बोली- “सही की बच्ची। कल तुमको और इनको यहीं छत पे नंगे ना नचाया तो कहना और वो भी साथ-साथ…”
गुड्डी ने मुझे आँख से इशारा किया। मैं कौन होता था उसकी बात टालने वाला। जब तक चन्दा भाभी समझें समझें, उनकीं साड़ी का आँचल मेरे हाथ में था। वो मना करती रही पर मैं जानता था की इनका मना करना कितना असली था कितना बनावटी। और दो मिनट के अन्दर उनकी साड़ी मेरे हाथ में थी।
लेकिन अब भाभी के हाथ में मेरी बेल्ट थी और थोड़ी देर में मेरी पैंट की बटन। मैंने झट से उनकी साड़ी लूंगी की तरह लपेट ली।
तब तक मेरी पैंट उनके हाथ में थी और वो उन्होंने गुड्डी को पास कर दिया। उसने स्लिप पे खड़े फिल्डर की तरह मेरे देखने से पहले ही कैच कर लिया और शर्ट के साथ वो भी खूँटी पे।
जब मैंने अपनी ओर देखा तब मुझे अहसास हुआ की गुड्डी और भाभी मुझे देखकर साथ-साथ क्यों मुश्कुरा रही थी। साड़ी उनकी लगभग ट्रांसपरेंट थी और मैंने ब्रीफ भी एकदम छोटी वी कट और स्किन कलर की। शेप तो साफ-साफ दिख ही रहा था और भी बहुत कुछ। सब दिखता है के अंदाज में।
चंदा भाभी ने अपनी हँसी छुपाते हुए गुड्डी को हड़काया-
“अच्छा चल बहुत देख लिया चीर हरण। कल होली में पूरी तरह होगा। पर ये बता की तुम दोनों ने बाजार में खाली मस्ती ही की या जो मैंने सामान लाने को कहा था वो लायी। जरूर भूल गई होगी…”
“नहीं कैसे भूलती, आपके देवर जो थे साथ में थे। अभी लाती हूँ…”
जैसे ही वो मुड़ी भाभी ने कहा- “अरे सुन ना। इनकी शर्ट पैंट सम्हालकर रख देना…”
“एकदम…” उसने खूँटी से खींचा और ले गई बछेड़ी की तरह। फिर दरवाजे पे खड़ी होकर मेरी शर्ट मुझे दिखाकर बोलने लगी-
“सम्हालकर। मतलब यहाँ पे गुलाबी और यहां पे गाढ़ा नीला…”
“हे मेरी सबसे फेवरिट शर्ट है…” लेकिन वो कहाँ पकड़ में आती। ये जा वो जा।
थोड़ी देर में वो बैग लेकर आई और भाभी को दिखाया। उसने भाभी के कान में कुछ कहा और भाभी ने झांक के बोला- “अरे अब तो कल मजा आ जायेगा…”
मैं समझ गया की उसने बियर की बोतल दिखाई होंगी।
चंदा भाभी
४६,६०९
" मम्मी बोलते हो तो बहुत अच्छा लगता है, खूब मीठा मीठा लगता है लगता है एकदम दिल से बोल रहे हो। "
जबतक मैं जी मम्मी बोलता फोन कट गया, लेकिन गुड्डी ने जिस प्यार से मुझे देखा, ...मै मान गया उसकी यह बात भी बाकी बात की तरह सही थी,
हाँ जब तक हम लोग सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुंचे एक बार फिर गुड्डी का फोन बजा और बजाय खोलने के उसने मुझे पकड़ा दिया, तेरे लिए ही होगा, मम्मी का फोन है।
उन्ही का था, बड़ी मिश्री भरी आवाज एकदम छेड़ने वाली चिढ़ाने वाली, बोलीं
" मम्मी इस लिए तो नहीं कहते की दुद्धू पीना यही, चल अबकी आओगे न होली के बाद, पिला दूंगी "
और जब तक मैं कुछ जबाब देता फोन कट गया था और हम लोग चंदा भाभी के घर पहुँच गए थे।चंदा भाभी का घर फर्स्ट फ्लोर पर था, गुड्डी के घर से सटा, सामने खूब बड़ी सी खुली छत। छत परसिर्फ यही दो घर थे,...
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वो मुझे चंदा भाभी के घर सीधे ले गई। वो मास्टर बेडरूम में थी। एक आलमोस्ट ट्रांसपरेंट सी साड़ी पहने वो भी एकदम बदन से चिपकी, खूब लो-कट ब्लाउज़।
उन्हें देखते ही गुड्डी चहक के बोली- “देखिये आपके देवर को बचाकर लायी हूँ इनका कौमार्य एकदम सुरक्षित है। हाँ आगे आप के हवाले वतन साथियों। मैं अभी जस्ट कपड़े बदल के आती हूँ…”
और वो मुड़ गई।
“हेहे। लेकिन। ये तो मैंने सोचा नहीं…” तब तक मेरी चमकी, मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, फिर भी मैं बोला।
“क्या?” वो दोनों साथ-साथ बोली।
“अरे यार मैं। मैं क्या कपड़ा पहनूंगा। और सुबह ब्रश। वो भी नहीं लाया…”
अपनी परेशानी मैंने गुड्डी और चंदा भाभी को बताई।
“ये कौन सी परेशानी की बात है कुछ मत पहनना…” चंदा भाभी बोली।
“सही बात है आपकी भाभी का घर है। जो वो कहें। और वैसे भी इस घर में कोई मर्द तो है नहीं। भाभी हैं, मैं हूँ। गुंजा है। तो आपको तो लड़कियों के ही कपड़े मिल सकते हैं। और मेरे और गुंजा के तो आपको आयेंगे नहीं हाँ…”
भाभी की और आँख नचाकर वो कातिल अदा से बोली, और मुड़कर बाहर चल दी।
“आइडिया तो इसने सही दिया। लेकिन आप शर्ट तो उतार ही दो। क्रश हो जायेगी और शाम से पहने होगे। अन्दर बनियाइन तो पहना होगा ना तो फिर। चलो…”
और मेरे कुछ कहने के पहले ही भाभी ने शर्ट के बटन खोल दिए। और खूँटी पे टांग दी।
बेडरूम में एक खूब चौड़ा डबल बेड लगा था। उसपे एक गुलाबी सी सिल्केन चादर, दो तकिये, कुछ कुशन, बगल में एक मेज, एक सोफा और ड्रेसिंग टेबल। साथ में एक लगा हुआ बाथरूम।
“छोटा है ना?” भाभी ने मुझे कमरे की ओर देखते हुए कहा।
लेकिन मेरी निगाह तब तक उनके छलकते हुए उभारों की ओर चली गई थी। मुश्कुराकर मैं बोला- “जी नहीं एकदम बड़ा है। परफेक्ट…”
“मारूंगी तुमको। लगता है पिटाई करनी पड़ेगी…” मेरी नजरों की बदमाशी पकड़ी गयी थीं। भाभी बोलीं।
“हाँ मेरी ओर से भी…” ये गुड्डी थी।
वो कपडे बदलकर वापस आ गयी थी। उसने घर में पहनने वाली फ्राक पहन रखी थी जो छोटी भी थी और टाईट भी। जिस तरह उसके उभार छलक रहे थे साफ लग रहा था की उसने ब्रा नहीं पहन रखी है।
“अरे वाह। आपको टापलेश तो कर ही दिया पूरा ना सही। आधा ही सही…”
गुड्डी आते ही चालू हो गई। पर चन्दा भाभी कुछ सोच रही थी।
“आप लुंगी तो पहन लेते हैं ना…” वो बोली।
“हाँ कभी कभी। है क्या?” मैंने पूछा। मैं भी पैंट पहनकर कभी सो नहीं पाता था।
“हाँ,... नहीं। वो गुंजा के पापा जब आते हैं ना तो कभी मेरी। मतलब वो भी कित्ते कपड़े लाये। और दो-चार दिन के लिए तो आते हैं। तो मेरी एकाध पुरानी साड़ी की लूंगी बनाकर,.. रात भर की तो बात होती है…”
“अरे पहन लेंगे ये। और बाकी। साड़ी क्या ये जो आप पहनी हैं वही क्या बुरी है…” गुड्डी ने बोला।
मुझे भी मजाक सूझा। मैंने भी बोला-
“ठीक है भाभी आप जो साड़ी पहने हैं वही और आखिर मैं भी तो दो कपड़े में ही रहूँगा। और आप फिर भी…”
“ठीक है चलिए पहले आप पैंट उतारिये…” भाभी ने हँसकर कहा।
“एकदम नहीं…” गुड्डी इस समय मेरे साथ आ गई थी-
“ये सही कह रहे हैं। पहले आपकी साड़ी उतरेगी। आखिर आप ने ही तो साड़ी की लूंगी बनाने का आफर दिया था…”
हँसकर वो बोली- “सही की बच्ची। कल तुमको और इनको यहीं छत पे नंगे ना नचाया तो कहना और वो भी साथ-साथ…”
गुड्डी ने मुझे आँख से इशारा किया। मैं कौन होता था उसकी बात टालने वाला। जब तक चन्दा भाभी समझें समझें, उनकीं साड़ी का आँचल मेरे हाथ में था। वो मना करती रही पर मैं जानता था की इनका मना करना कितना असली था कितना बनावटी। और दो मिनट के अन्दर उनकी साड़ी मेरे हाथ में थी।
लेकिन अब भाभी के हाथ में मेरी बेल्ट थी और थोड़ी देर में मेरी पैंट की बटन। मैंने झट से उनकी साड़ी लूंगी की तरह लपेट ली।
तब तक मेरी पैंट उनके हाथ में थी और वो उन्होंने गुड्डी को पास कर दिया। उसने स्लिप पे खड़े फिल्डर की तरह मेरे देखने से पहले ही कैच कर लिया और शर्ट के साथ वो भी खूँटी पे।
जब मैंने अपनी ओर देखा तब मुझे अहसास हुआ की गुड्डी और भाभी मुझे देखकर साथ-साथ क्यों मुश्कुरा रही थी। साड़ी उनकी लगभग ट्रांसपरेंट थी और मैंने ब्रीफ भी एकदम छोटी वी कट और स्किन कलर की। शेप तो साफ-साफ दिख ही रहा था और भी बहुत कुछ। सब दिखता है के अंदाज में।
चंदा भाभी ने अपनी हँसी छुपाते हुए गुड्डी को हड़काया-
“अच्छा चल बहुत देख लिया चीर हरण। कल होली में पूरी तरह होगा। पर ये बता की तुम दोनों ने बाजार में खाली मस्ती ही की या जो मैंने सामान लाने को कहा था वो लायी। जरूर भूल गई होगी…”
“नहीं कैसे भूलती, आपके देवर जो थे साथ में थे। अभी लाती हूँ…”
जैसे ही वो मुड़ी भाभी ने कहा- “अरे सुन ना। इनकी शर्ट पैंट सम्हालकर रख देना…”
“एकदम…” उसने खूँटी से खींचा और ले गई बछेड़ी की तरह। फिर दरवाजे पे खड़ी होकर मेरी शर्ट मुझे दिखाकर बोलने लगी-
“सम्हालकर। मतलब यहाँ पे गुलाबी और यहां पे गाढ़ा नीला…”
“हे मेरी सबसे फेवरिट शर्ट है…” लेकिन वो कहाँ पकड़ में आती। ये जा वो जा।
थोड़ी देर में वो बैग लेकर आई और भाभी को दिखाया। उसने भाभी के कान में कुछ कहा और भाभी ने झांक के बोला- “अरे अब तो कल मजा आ जायेगा…”
मैं समझ गया की उसने बियर की बोतल दिखाई होंगी।
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