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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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गुड्डी , उसकी मां , बहनें , फ्रैंड , पड़ोसन सभी ने उल्टी गंगा बहा कर रखा है । ऐसा लगता है जैसे इस बार किसी औरत का नही बल्कि एक मर्द का चीरहरण हो रहा है ।
आनंद साहब के लिए एक तरह का यह चीरहरण ही था । इतना पेशेंस , इतना सहनशक्ति , इतना सीधापन हर किसी लड़के मे नही होता ।
लेकिन आनंद साहब करे भी तो क्या करे ! यह दिल का मामला जो है । गुड्डी के हुस्न का जलवा जो है । उसकी अदाएं , उसकी नखरे , उसकी बातें या फिर उसकी शरारतें का जो है ।

मार्च का महीना चल रहा है । इसका मतलब फागुन के दिन चल रहे है । इस पुरे माह गांव के लगभग हर बस्ती मे , हर इलाके मे फागुन के लोकगीत गाये - बजाए जाते हैं जो अत्यंत ही कर्णप्रिय होते है । लोग अपने अपने ग्रूप बनाकर झाल - ढोल , गाजे - बाजे के साथ द्वार - द्वार जाकर होली के लोकगीत गाते हैं ।
मुझे याद है होली के दिन की शुरुआत मिट्टी - गोबर और कपड़े फाड़कर होती थी । दोपहर का पुरा समय एक दूसरे को गहरे रंग से सराबोर करके होती थी । ठंडाई और भांग के दौर से होती थी । और शाम - रात को अबीर - गुलाल और ड्राई फ्रूट के साथ गले मिलन के साथ इस पावन पर्व की समाप्ति होती थी ।
वैसे यह सब धीरे धीरे विलुप्त होते जा रहा है ।
आप के फागुन पर दिए हुए अपडेट वापस हमे उसी दौर मे ले जाते है ।
आप के यह अपडेट कभी-कभी हमे भाव - विह्वल कर देता है।
" जाने कहां गए वो दिन ।"

जहां तक ताश और जुआ खेलने की बात है , उस दौरान मै भी ऐसे मौके का एक पात्र बना रहा । मनोरंजन का यह भी एक बहुत बड़ा अंग था ।

आपकी स्टोरी बहुत अच्छी तरीके से आगे बढ़ रही है । धीरे धीरे किरदार के संख्या मे भी इजाफे हो रहे है । किरदारों का चरित्र भी शनैः शनैः डेवलप हो रहा है ।

आनंद साहब फिलहाल बिन ब्याहे दुल्हे का लुत्फ उठा रहे है । गुड्डी लाख कहे , पर आनंद साहब अपने शर्मीलेपन और अनाड़ीपन से निजात तो नही पाने वाले ।

बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट कोमल जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
आपका रिव्यू एक बार पढ़ने से मन नहीं भरता।

एक तो अपनी तारीफ़ किसे नहीं अच्छी लगती, और फिर तारीफ़ करने वाला एक मश्हूरो मारूफ लिखने वाला है जिनकी राय की हर शख्स कदर करता है सर आंखों पे उसका हर लफ्ज़ रखता है।

और दूसरी बात आप के साथ अतीत की गलियों में सफर करने का लुत्फ़ भी मिलता है। मेरी कहानियों में वो अतीत वो माटी की पुकार हलकी कशिश ही सही आती है और आप उसे दुहराकर और ताजा बना देते हैं और फिर लगता है लिखना अकारज नहीं गया।

लेकिन सबसे बड़ी बात आप सिर्फ क्या कहा गया उसपे जोर नहीं देते बल्कि कैसे कहा गया, कथ्य के साथ जो शिल्प है उस पर भी आपकी पारखी नजर जाती है।

आप के कमेंट पर सिर्फ एक रस्म पूरा करने वाला धन्यवाद देने से मन नहीं भरता बल्कि वो एक बतकही में तब्दील हो जाती है।

अब जो आपने होली के मंजरकशी की बात की,...

अब इस भाग में " खयी के पान बनारस वाला " में अनेक दृश्य हैं और जैसे पेंटिंग में कोलाज या फिल्मो में मोंताज होता है जहाँ कई दृश्य मिल कर एक अलग अहसास चित्रित करते हैं, बिलकुल उसी तरह, ... और उस में बनारस की गलियों का भी चित्र है, फगुनहट का , देर शाम का और उन के बैकग्राउंड में गुड्डी और आनंद की अनकही बढ़ती प्रणय बेल का,

और गली बनारस की पतली, संकरी लम्बी और दोनों ओर घर भी दुकाने भी, गलियों में से निकलती और संकरी गलियां, जैसे बात से बात निकलती है,...

यहाँ बात से बात निकलने की उपमा गली से निकलती गली की बात कहती ही है हमें टी. एस इलियट की मशहूर कविता की इन लाइनों की भी याद दिला देता है,

Streets that follow like a tedious argument

फागुन हो बनारस हो न हो, चाहे वह सेमी क्लासिकल होरी, धमार हो या शुद्ध भोजपुरी गाने,

गली के शुरू में ही जहाँ लग रहा था कोई गाने की बैठकी चल रही थी, एक मीठी मीठी आवाज आ रही थी होरी की,

कैसी होरी मचाई,...

इतते आवत कुँवरी राधिका, उतते कुँवर कन्हाई
खेलत फाग परस्पर हिलमिल, यह सुख बरनि न जाई

घर-घर बजत बधाई


और उस गाने ने ही आनंद और गुड्डी दोनों को ट्रांसफार्म कर दिया, ... खेलत फाग परस्पर हिलमिल,, बनारस का रस लेने के लिए सुनने वाले को रसिक होना पड़ता है, रस का अहसास होना चाहिए और गुड्डी तो ठेठ बनारसी और अपने रस में उसने आनंद को भी मिला लिया,...

गुड्डी ने जिस तरह मुझे देखा, छरछरराती हजार पिचकारियां एक साथ चल पड़ी,.. बिना रंगे, रंगो से मैं नहा उठा,... हम दोनों आगे आगे पीछे से पीछा करती धीमी होती ठुमरी

अब इस समय गुड्डी या आनंद शायद कुछ भी बोलते तो रस भंग होता, सिर्फ पलकों का उठना गिरना, हलकी सी मुस्कान और बहुत हुआ तो हथेली का दबाना, दबना बहुत कुछ कह देता है,

एक चित्र है मुंडेर पर से रंग उंडेलने का,

एक बड़ी सी बिंदी, काजल भरी आंखे,... खिलखलाती हंसती,..मुंडेर से एक बड़ा लोटा गाढ़े गुलाबी रंग का,...

भांग की दूकान, गुलाल, रंग और पिचकारी की दुकाने,... मैंने कोशिश की है एक फागुनी शाम का चित्र खींचने की

और साथ में गुड्डी का छेड़ना, चिढ़ाना तो है ही लेकिन एक अनकही बात भी इस गली में होती है

गुड्डी के खींचने से मैं बच तो गया लेकिन एक दो छींटे मेरी भी सफ़ेद शर्ट पर

तभी बड़ी जोर की भगदड़ मची, ...

गुड्डी ने कस के मेरा हाथ पकड़ लिया और खिंच के एकदम पीछे, सट के चिपक के ढाल सी खड़ी हो गयी,


गुड्डी चिढ़ाती है तो बचाती भी है चाहे मुंडेर से गिरते रंग से हो, या फिर वृषभ देव से गली के रेले से,... आनंद से पहले उसे आहट हो जाती है आशंकित हो उठती है वो और सामने,

वामा सिर्फ पुरुष के लिए रमणी ही नहीं, उसकी शक्ति भी है ऊर्जा भी है उसे विश्वास भी दिलाती है।


एक बार फिर कोटिश आभार आपका, समय निकाल कर इस सूत्र पर आने का,... आने वाले हिस्सों में भी आप का साथ चाहूंगी,

धन्यवाद
 

komaalrani

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गुड्डी भी अपनी मां से कम नहीं हैं वह भी आनंद बाबू के पूरे मजे ले रही है आनंद बाबू ठहरे शर्मिले बेचारे मां बेटी के बीच में फंस गए हैं गुड्डी ने आखिर आनंद से मम्मी बुलवावही दिया है दोनो को देखकर जीभ ललचा रही है देखते दोनो में से मिलती कोन सी है
आनंद बाबू के भाई साहेब के विवाह वाले प्रसंग में जब गुड्डी और गुड्डी की मम्मी पहली बार मिलती हैं आनंद बाबू से तभी वह ऑफर मिल गया था एक के साथ एक फ्री वाला, पृष्ठ १९ पोस्ट १८६

दुहरा देती हूँ लाइने

" कल गुड्डी का डांस बहुत अच्छा था, .... " लेकिन जो जवाब गुड्डी की मम्मी ने दिया मैं सोच नहीं सकता था,


" बियाह करोगे इससे " वो सीरियस हो के बोली, भाभी ( गुड्डी की मम्मी )एकदम उसके पीछे पड़ी थी, चिढ़ाते बोलीं,

अरे आज शादी थोड़ी कर देंगे , बस यही मंडप में आज सगाई हो जायेगी, सब लोग हैं भी,... शादी तो तीन चार साल बाद,... पढ़ाई वढ़ाई हो जाए,... "

और फिर मेरे ऊपर चालू हो गयीं,

" घबड़ा मत,.. मैं हूँ न तबतक हमसे काम चलाना, सिखाय पढाय के पक्का कर दूंगी, जो लजाते हो न इतना "



असल में 'तुम्हारी मम्मी ' वाला झगड़ा शादी के बाद चलता है, लड़के के मम्मी को, अपनी सास को अगर नयी बहू, तुम्हारी मम्मी कह के बोले ( बोलती है तो या तो गुस्से में तंज में य चिढ़ाने में_) तो लड़के को हजम नहीं होता, लेकिन कई पुरुषो को सास को मम्मी बोलना अजीब लगता है।

लेकिन मेरे लिए ये मामला प्रेम वाले मामले में और टेढ़ा है,

प्रेम का मतलब ही है व्हेयर ईच इज बोथ.

जहाँ मैं और तुम का अहसास ही ख़तम हो जाए, कबीरा यह घर प्रेम का खाला का घर नहीं सीस उतारो भुई धरो तब पैठो घर माहीं।

सीस उतारो का मतलब ही है मैं का अहसास ख़तम होना, सिर्फ देह का मिलना नहीं नेह का जुड़ना,... और फिर तब मेरी और तेरी का क्या मतलब।
 

komaalrani

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आनंद बाबू को इतना शर्मिला और सीधा नहीं होना चाहिए था ये तो ना इंसाफी है गुड्डी की मम्मी ने जो भी आनंद से कहा था गुड्डी आनंद को वही बाते बोल कर मजे ले रही है गुड्डी ने होली की मस्ती का सारा सामान ले लिया है लगता है चंदा भाभी और गुड्डी आनंद की दमदार रगड़ाई करने वाली है
गर बाजी इश्क की बाजी है , जो चाहो लगा दो डर कैसा।

जीत गए तो क्या कहना, हारे भी तो बाजी मात नहीं .

इस खेल में हार कर ही जीत होती है, ... और आनंद बाबू इस रगड़ाई के बाद भी यही तो चाहते हैं उनका सपना भी यही है

" बस वो स्वाद एक सपना जगाता है ,... उसी घर में ये लड़की दुल्हन बनी, कोहबर में दही गुड़ खिला रही है और उसकी बहने छेड़ रही हैं,... लेकिन मैं सपने देखने वाला और वो सपनों को जमीन पर लाने वाली,..." ( पृष्ठ ३८ पोस्ट ३७२ )


बहुत बहुत आभार इतने अच्छे कमेंट्स के लिए और ये मेरे मन में भी और बाकी पाठको के मन भी भी कहानी के प्रति विश्वास जगाता है ,

धन्यवाद
 

komaalrani

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komaalrani

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आनंद बाबू ने प्यार में गुड्डी की मम्मी को मम्मी बोल दिया वो भी सबके सामने कई बार फिर तो आनंद बाबू की गुड्डी और उसकी मम्मी के द्वारा फोन पर ही गारियो के साथ रगड़ाई हुई बेचारे आनंद साहब अब क्या करे गुड्डी से प्यार जो करते हैं
कोमल जी आपने बहुत ही शानदार तरीके से देवर भाभी के मस्ती मजाक का जो चित्रण किया है वह amzing है
Thanks so much. I will try to post next post soon, very soon. your support keeps on enthusing me.
 

komaalrani

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चंदा भाभी तो तैयार बैठी है गुड्डी ने चंदा भाभी के हवाले कर दिया है आनंद बाबू को अब तो आनंद के साथ बहुत कुछ होने वाला है गुड्डी की मम्मी ने पहले ही आनंद की खूब रगड़ाई की है
अगले पार्ट से ही आनंद बाबू को आनंद मिलना शुरू हो जाएगा।
 

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चंदा भाभी तो तैयार बैठी है गुड्डी ने चंदा भाभी के हवाले कर दिया है आनंद बाबू को अब तो आनंद के साथ बहुत कुछ होने वाला है गुड्डी की मम्मी ने पहले ही आनंद की खूब रगड़ाई की है
मजे पाने के लिए थोड़ी बहुत रगड़ाई भी झेलनी पड़ती है।
 

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NEXT PART SOON
 

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फागुन के दिन चार - भाग चार

चंदा भाभी
 

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I thank all my readers, and friends for supporting this story. Next part soon.
 
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