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फागुन के दिन चार भाग ३४ - मॉल में माल- महक पृष्ठ ३९८
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वाह कोमल मैमडी॰बी॰
डी बी का फोन था , थोड़े रिलैक्सड थे, बोले
“हाँ अब बता। गाड़ी में हो न। वो सब कचड़ा साफ हो गया ना?” वो पूछ रहे थे।
मैंने पूछा- “हाँ बास लेकिन ये लफड़ा था क्या?”
“अबे तेरी किश्मत अच्छी थी जो ये आज हुआ। तीन महीने पहले होता न,… तो बास मैं भी कुछ नहीं कर सकता था, सिवाय इसके की तुम्हें किसी तरह यूपी के बाहर पहुँचा दूँ। लेकिन अभी तो एकदम सही टाइम पे…” उन्होंने कुछ रहस्यमयी ढंग से समझाया।
मैंने फिर गुजारिश की- “अरे बास कुछ हाल खुलासा बयान करो ना मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा…”
डी॰बी॰- “अरे यार हाल खुलासा बताऊंगा न तो गैंग आफ वासेपुर टाइप दो पिक्चरें बन जायेंगी। राजेश सिंह का नाम सुना है?” सवाल के जवाब में सवाल, पुरानी आदत थी।
“किसने नहीं सुना है। वही ना जिसने दिन दहाड़े बम्बई में ए॰जे॰हास्पिटल में शूट आउट किया था डी कंपनी के साथ…” मैंने अपने सामन्य ज्ञान का परिचय दिया।
डी॰बी॰- “वो उसी के आदमी थे जिसके साथ तुम और खास लोग…”
वो जवाब मेरी नींद हराम करने के लिए काफी था।
डी॰बी॰- “वही। और पिछली सरकार में तो किसी की हिम्मत नहीं थी की। लेकिन तीन महीने पहले जो सरकार बदली है वो ला एंड आर्डर के नाम पे आई है, इसलिए थोड़ा ज्यादा जोर है…”
मेरे दिमाग में गूँजा।
फेस बुक पे जो हम लोग बात कर रहे थे, नई सरकार खास तौर से डी॰बी॰ को ले आई है अपनी छवि सुधारने के नाम पे। पुरानी वाली इलेक्शन इसी बात पे हारी की माफिया, किडनैपिंग ये सब बहुत बढ़ गया था, खास तौर पे इस्टर्न यूपी में था तो हमेशा से, लेकिन अभी बहुत खुले आम हो गया था।
डी॰बी॰ का फोन चालू था-
“तो वो सिंह। पिछले सरकार में तो सब कुछ वो चलाता था, लेकिन जब सरकार बदली तो वो समझ गया की मुश्किल होगी। उसके बहुत छुटभैये पकड़े गए, कुछ मारे गए। उसने उड़ीसा में माइनिंग में इन्वेस्ट कर रखा था तो अब वो उधर शिफ्ट कर गया है। जो दूसरे गैंग है उनको उभरने में थोड़ा टाइम लगेगा। इसके गैंग के जो दो-तीन नंबर वाले थे वो अब हिसाब इधर-उधर सेट कर रहे हैं या क्या पता सिंह ही दल बदल कर 6-7 महीने में इधर आ जाय…”
“और वो शुक्ला?” मेरे सवाल जारी थे।
डी॰बी॰- “वो तो खास आदमी था सिंह का। तुमने सुना होगा बाटा मर्डर…”
“हाँ। वो भी तो सिंह ने दिन दहाड़े पुलिस की कस्टडी में…” मैंने बताया।
डी॰बी॰- “वो साला भी कम नहीं था। लेकिन अभी जो होम मिनिस्टर हैं उनका खास आदमी था। जेल से उसको ट्रांसफर कर रहे थे यहीं बनारस ला रहे थे, आगे-पीछे पुलिस की एस्कोर्ट वैन थी, एक ट्रक पीएसी भी थी, लेकिन तब भी,… 4 एके-47 चली थी आधे घंटे तक, 540 राउंड गोली। सिंह ने जो 4 शूटर लगाए थे उसमें से एक तो उसी समय थाईलैंड भाग गया, शकील का गैंग जवाइन कर लिया। एक नेपाल में है। एक को हम लोगों ने पिछले हफ्ते मार दिया, यही शुक्ला बचा था।
ये सिंह का रेलवे, हास्पिटल और रोड का ठीका भी सम्हालता था। लेकिन अब सरकार बदलने के बाद उसे कुछ मिल नहीं रहा था। इसलिए अपना सीधा,… सिंह का बचा खुचा नेटवर्क तो है ही लेकिन शुक्ला अलग से। इसलिए अब सिंह के लोग भी उसको बहुत सपोर्ट नहीं करते थे। हाँ 6-7 महीने बचा रहता तो जड़ जमा लेता।
बाटा वाले शूट आउट में सिद्दीकी का बहनोंई भी मारा गया था, 38 साल का बहुत ईमानदार इन्स्पेक्टर। उसके अलावा साले सभी मिले थे, वरना पुलिस की कस्टडी से। इसलिए मैंने सिद्दीकी को खास तौर से चुना…”
मेरा एक सवाल अभी भी बाकी था, सवाल भी और डर भी- “वो सेठ जो। उनको तो कहीं कुछ नहीं होगा?”
डी॰बी॰ हँसे और बोले- “अरे यार तुम मौज करो। ये सब ना, उसको कौन बोलेगा? सिंह को तो वो अभी भी हफ्ता देता ही है, और वैसे भी अब वो सिंह यहाँ का धंधा समेट रहा है। माइनिंग में बहुत माल है। खास तौर से उसने वहां एक-दो मल्टी नेशनल से हिसाब सेट कर लिया है। यूपी से लड़के ले जाता है। वहां जमीन पे कब्ज़ा करने में ट्राइबल्स को हड़काने में, तो अब बनारस की परचून की दुकान में,…. शुक्ला था तो उसको तुमने अन्दर करवा दिया। अब साल भर का तो उसको आराम हो गया और उनका रिश्ता सिंह से पुराना था।
उसकी दुकान से इस्टर्न यूपी, बिहार सब जगह माल जाता था तो उसी के अन्दर डालकर हथियार खास तौर से कारतूस, बदले में सेल्स टैक्स चुंगी वाले किसी की हिम्मत नहीं थी।
और बाद में शुक्ल ड्रग्स में भी। तो सेठजी की हिम्मत नहीं हो रही थी, तो उसकी लड़की उठाकर ले गए थे। फिर जो सौदा सेट हो गया तो। वैसे भी शुक्ला को एक-दो बार इसने घर पे भी बुलाया था। वहीं पे उसकी लड़की इसने देखी।
और ज्यादातर माफिया वाले मेच्योर होते हैं। उनका लड़की वड़की का नहीं होता, ज्यादा शौक हुआ तो बैंगकाक चले गए। लेकिन ये नया और थोड़ा ज्यादा। तो अब वैसे भी उन्हें डरने की बात नहीं है और एक-दो हफ्ते के लिए तुम्हें इत्ता डर है तो सिक्योरिटी लगा दूंगा। उसका फोन तो हम टैप करते हैं…”
कोमल मैममाफिया, दंगा और पॉलिटिक्स
लो इंटेसिटी रायट्स, उससे माफिया का कनेक्शन, और लांग टर्म इम्पैक्ट टेरर के ब्रीडिंग ग्राउंड के तौर पर, माफिया तो अब समझो नयी सरकार के बाद ठंडा हो गया है लेकिन ये बड़ा सरदर्द है। " डी बी ने ठंडी साँस लेकर कहा।
" ये लो इंटेसिटी रायट्स, ये क्या बला है " मेरी समझ में नहीं आया
" कास्ट बनाम रिलिजन " वो बोल के रुक गए फिर समझ गए की मेरी समझ में नहीं आया। और बात आगे बढ़ाई,
" और उसी से नैरेटिव सेट करना, वेस्टर्न यूपी में तो शुरू हो गया था लेकिन अब यहाँ भी लगता है वही, किसी एकदम छोटे से मुद्दे को लेकर कस्बे में आग भड़केगी और फिर दो तीन दिन में जबतक पुलिस ऐक्शन होकर मामला ठंडा हो, ऐसा नैरेटिव सेट होगा, इलेक्ट्रानिक मिडिया वाले सब मिले हुए और आग भड़काएंगे। उन्हें टी आर पी का फायदा, और माफिया फायदा उठाती है हथियार सप्लाई करने का, और उसके बाद एक किसी कम्युनिटी वालों के मकान जल जाते हैं तो सस्ते मद्दे कोई माफिया का आदमी, या उनके इशारे पर और फिर वहां नया आपर्टमेंट, शहर के साथ गाँव, कसबे में भी, जो सैकड़ों साल से साथ रहते थे अलग,अलग
और एक तरह के लोग अगर एक साथ रहेंगे तो फिर आग सुलगाने में आसानी होती है उन्हें असली नकली वीडियो दिखा के, टेरर वालों के लिए भी अपना धंधा बढ़ाना आसान हो जाता है। फिर अगर ग्राउंड लेवल पे ये बात हो गयी तो, कहाँ तक पुलिस लगेगी, इसलिए ये दंगे, लैंड माफिया, पोलिटिसियन सबके लिए फायदे में हैं सिवाय हम लोगो के "
डी॰बी॰- “ठीक है तो। लेकिन लौटते समय घर जरूर आना और अकेडमी का क्या हाल है? वो खड़ूस चला गया…”
मैंने बोला- “हाँ। नए डायरेक्टर तो यूपी में ही ए॰डी॰जी॰ थे ना। हाँ लौटूंगा तो मिलूँगा…”
डी॰बी॰- “पक्का। वो भी खाली भाषण है। चलो टच में रहना…” कहकर उन्होंने फोन काट दिया।
बात उनकी सही थी, लेकिन तबतक उनकी कोई मीटिंग शुरू होने वाली थी और वो चल दिए और मैं सोच रहा था।
कुछ दिन पहले की बात है मैं ट्रेन से आ रहा था, और एक कोई बुजुर्ग सहयात्री थे, उन्होंने पूछा की कहाँ के रहने वाले हो और जैसे मैंने नाम बताया, बड़ी अजीब नज़रों से उन्होंने देखा और बोले
" अच्छा जहाँ का अबू सलेम है "
मैंने उन्हें लाख, शिब्ली नोमानी, हरिऔध, राहुल सांस्कृत्याययन से लेकर ब्रिगेडियर सुलेमान और कैफ़ी आजमी का जिक्र किया लेकिन अकेले अबू सलेम ने सबको धो दिया था।
आज मुझे समझ में आ रहा था नैरेटिव की ताकत।
मेरी चिड़िया चहक के बोली, " पता नहीं तेरे सीनयर क्या चकचक कर रहे थे लेकिन एक बात मुझे लगता है उन्होंने तुमसे समझदारी की, की "
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और बिना मेरे पूछे कान खींच के कान में बोली, " कुछ कहा न उन्होंने ट्रेनिंग में ही कर लेने को, तुम्हारे सीनियर हैं कुछ तो तुझे उनकी बात माननी चाहिए "
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मतलब मेरी चिड़िया सो नहीं रही थी, सुन रही थी
जो डी बी ने कहा था, " तेरी किस्मत अच्छी है जो ऐसी लड़की मिली है। अबकी घर पे बात पक्की कर लेना और पांच छह महीने ट्रेनिंग के बचे हैं, ट्रेनिंग में ही शादी कर लेना वरना बाद में ऐन सुहागरात के समय फोन आ जाएगा, और शादी की छुट्टी भी मुश्किल से तीन दिन की
तब तक होटल आ गया।
छुटकी -होली दीदी की ससुराल में १००० पृष्ठ पूरे
इसके पहले मेरी एक और कहानी के १००० पृष्ठ पूरे हो चुके है
जोरू का गुलाम -१४२४ और कहानी जारी है और १५०० पृष्ठ से आगे ही बढ़ेगी
दस लाख से अधिक व्यू वाली तीन कहानी
। छुटकी -होली दीदी की ससुराल में =२१,८९,२२४
२ जोरू का गुलाम -----------३२,४४, ५९८
और मोहे रंग दे - १६,०६,१७०