• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest बरसात की रात,,,(Completed)

Devang

Member
160
187
43
अपने इस सुखद मिलन को लेकर दोनों भाई बहन अति प्रसन्न नजर आ रहे थे,,,,, अपने भाई के साथ संभोग करके सालु की मदमस्त जवानी और ज्यादा खिल उठी थी,, वह महकने लगी थी उसकी खूबसूरती में चार चांद लग चुके थे,,, अब उसकी दोनों गोलाइयां अपने आकार में तब्दीली लाना शुरू कर चुके,, थे,,, दोनों भाई बहन का जुगाड़ घर में ही हो चुका था जब चाहे तब दोनों एक दूसरे में समा जाते थे रघु हर बार अपनी बहन को संपूर्ण तृप्ति का अहसास दिलाता था चुदाई के असली सुख से वाकिफ कराता था,,, जवानी में शालू अपने ही भाई के मर्दाना अंग को पाकर संपूर्ण रूप से संतुष्ट हो चुकी थी,,,, दोनों मौका मिलते ही एक दूसरे के जवान जिस्म से खेलना शुरू कर देते थे जिन की भनक उनकी मां को बिल्कुल भी नहीं था,,,,,, दोनों भाई बहन का समय अच्छे से गुजरने लगा था,,,, रघु अपने आप को भाग्यशाली समझता था क्योंकि अब तक उसने हलवाई की बीवी और रामू की मां के परिपक्व खूबसूरत जिस्म के साथ-साथ अपनी बहन की कमसिन जवानी के साथ भी खेल चुका था जिसमें उसे आनंद ही आनंद प्राप्त हो रहा था,,,।

ऐसे ही 1 दिन वह रामू को बुलाने के लिए उसके घर गया तो घर में उसे उसकी मां के सिवा और कोई नजर नहीं आया जो कि वह अपने बालों को संवार रही थी,,, रामू की मां को अकेली देखते ही रघु के पजामे में हरकत होने लगी और वह पीछे से जाकर रामू की मां को अपनी बाहों में भर कर सीधे उसकी दोनों चूचियों पर ब्लाउज के ऊपर से हाथ लगाकर उन्हें दबाना शुरू कर दिया और बोला,,,।


ओहहह चाची अब तो तुम्हारे दर्शन दुर्लभ हो गए हैं दिखाई नहीं देती हो,,,
(पहले तो वह पूरी तरह से घबरा गई,,,उसे नहीं मालूम था कि उसे पीछे से अपनी बाहों में भरने वाला रघु है उसे लगा कोई और है वह कुछ बोलती ईससे पहले ही रघु की आवाज सुनते ही वह एकदम से हड़बड़ा गई और उसे दूर करते हुए धीरे से बोली,,,)

दूर हट पागल हो गया है क्या अंदर कमरे में रामु है,,,,,
( अंदर कमरे में रामू जो कि नहाने के बाद अपने कपड़े बदल रहा था,,,, उसके कानों में हल्की हल्की फुसफुसाहट भरी बातें पडते ही वो एकदम से सचेत हो गया,,,, वह अपने कान खड़े कर लिया और दूसरी तरफ बाहर कमरे में रामू की मौजूदगी में ऐसा वैसा कोई काम नहीं करना चाहता था इसलिए वह ललिया से दूर होते हुए बोला,,,)

तो यहां कौन सा मैं तुम्हारी चुदाई करने आया हूं,,, मैं तो रामू को बुलाने आया हूं,(रघु भी बड़े धीमे स्वर में बोला,,,, लेकिन चुदाई शब्द रामू के कानों में पड़ते ही वो एकदम से सचेत होते हुए अपने कानों को बाहर की बातें सुनने के लिए एकदम से गड़ा दिया,,)

पागल हो गया है क्या तू इस तरह की बातें कर रहा है,,, अगर रामु सुन लिया तो,,,,,,,,(ललिया रघु से दूरी बनाते हुए बोली,,,)

सुन लिया तो सुन लिया मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता चाची,,,(इतना कहने के साथ ही रामू एक बार फिर से उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया और उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया इतनी देर में रघु का लंड खड़ा होना शुरू हो गया था,,, जोकि ललिया के पिछवाड़े पर ठोकर मार रहा था ललिया को भी रघु की यह हरकत बहुत अच्छी लगी थी क्योंकि जिस तरह से वह उसे अपनी बांहों में झगड़ा हुआ था वह अपने नितंबों पर उसके लंड के कठोर पन को बड़े अच्छे से महसूस कर पा रही थी,, वह तो रामू की बाहों से छूटने ही नहीं चाहती थी लेकिन मजबूर थी उसे भी अच्छा लग रहा था लेकिन अंदर कमरे में उसका बेटा रामू मौजूद था,,, वह कोई काम कर रहा था,,,रघु के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी एक बार फिर से ललिया को अपनी बाहों में लेकर वह मस्त हो गया था,,,घर में अगर रामू मौजूद ना होता तो शायद ललिया दी इस मौके का अच्छी तरह से फायदा उठाती लेकिन उसे रामू का डर था कि कहीं वह अपनी आंखों से यह सब कुछ देख ना ले,,, इसलिए वह उसकी बाहों से आजाद होने की कोशिश करते हुए बोली,,,।)

रघु रहने दे बाद में यह सब कर लेना अभी जाने दे,,,
(रामू का दिल जोरो से धड़कने लगा था,,, उसे अपनी मा की बातें थोड़ा-थोड़ा सुनाई दे रही थी और जिस तरह से वह धीमे स्वर फुसफुसा रही थी,,, उससे रामू के मन में उठ रही शंका के बादल और ज्यादा गहराने लगे थे,,, दूसरी तरफ रघु ललिया के साथ पूरी तरह से मस्ती करने के मूड में आ गया था,,,पजामे में उसका लंड पूरी तरह से गदर मचाए हुआ था जो कि ललिया की बुर में घुसने के लिए बेताब था,,,। रघु ललिया की बात मानने के लिए तैयार नहीं था और वह अपना दोनों हाथ उसके ब्लाउज के ऊपर रखकर उसके दोनों कबूतरों को दबाना शुरू कर दिया,,, ललिया को साफ़ महसूस हो रहा था कि रघु के हाथों में आते ही उसके दोनों कबूतर आपस में गुटूर गू करना शुरू कर दीए थे,,,।उसका मन तो नहीं कर रहा था लेकिन फिर भी वह रामू को दूर हटाते हुए बोली,,,)

रघु रहने दे,,,, यह सब बाद में कर लेना,,,,


नहीं चाची तुम समझ नहीं रही हो मेरा बहुत मन कर रहा है,,,(इतना कहते हुए रघु उसकी साड़ी को नीचे से पकड़ कर ऊपर की तरफ उठाने लगा , रामू को धीरे धीरे सब कुछ साफ सुनाई दे रहा था उसे समझते देर नहीं लगी कि रघु और उसकी मां के बीच जरूर कुछ चल रहा है,,, उसका दिल जोरो से धड़कने लगा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इस तरह की बातों को अपने कानों से सुन कर वह गुस्सा करें या खामोश खड़ा रहे,,,,ना जाने क्यों ऊन दोनों की बातें सुनते हुए उसके तन बदन में भी अजीब सी हलचल होने लगी थी,,,)

नहीं रामू छोड़ मुझे,,,,(इतना कहते हुए ललिया रघु के हाथों में से अपनी साड़ी छुड़ाते हुए उसे धक्का दे दी और वह अपने आप को संभाल नहीं पाया और सीधा जाकर सामने की दीवार के करीब जाकर गिरा और उसके हाथ से लगकर लकड़ी के पाटीए पर रखे हुए बर्तन गिर गए,,, और बर्तनों के गिरने की आवाज को सुनकर रामू को यही सही मौका लगा बाहर निकलने का और वह तुरंत बाहर निकलते हुए बोला,,,।

क्या हुआ मां ये बर्तन कैसे गिर,,,,(इतना कहने के साथ ही वह रघु की तरफ देखकर ऐसे चुप हो गया जैसे कि यह सब से वह बिल्कुल अनजान हो,,,) तू,,,,, तू कैसे गिर गया,,,
(० इतने में ललिया अपने कपड़ों को एकदम सही कर ली और बहाना बनाते हुए बोली,,,)

ये,,,,, ये,,,,, तुझे ही बुलाने आया था और पांव फिसल गया नीचे गिर गया,,,,।
(रामू जानता था कि माजरा कुछ और है लेकिन फिर भी वह इस समय कोई भी नाटक नहीं करना चाहता था इसलिए जानबूझकर अपनी मां की बात को मानते हुए बोला,,,)

तू है ही ऐसा हर जगह हड़बड़ाहट करता है तभी गिर गया,,,
(तब तक रघु अपने आप से उठकर अपने कपड़े झाड़ते हुए बोला,,,)

तुझे ही बुलाने आया था,,,,

हां वह तो देख ही रहा हूं,,,(रामू इतना कहते हुए रघु की तरफ तो कभी अपनी मां की तरफ देख रहा था और ललिया को अपने बेटे की नजरों से थोड़ा घबराहट हो रहा था,,,, लेकिन फिर वह सारे मामले को संभालते हुए बोली,)

जाओ तुम दोनों बाहर टहल कर आओ तब तक मैं घर का काम कर लेती हुं,,,,,,,


ठीक है मां,,, चल रघु,,,,(इतना कह कर रामु आगे बढ़ गया और रघु उसके पीछे पीछे जाते हुए अपना एक हाथ पीछे की तरफ से ही ललिया की दोनों जांघों के बीच उसकी बुर पर लाकर जोर से उसे दबा दिया,,,, ललिया जब तक अपने आप को संभाल पाती तब तक रघु की हथेली अपना काम कर चुकी थी उसकी हथेली ठीक साड़ी के ऊपर से ही ललिया की बुर को दबाने में कामयाब हो चुकी थी ललिया को रघु की इस हरकत की वजह से घबराहट तो हुई थी लेकिन मजा भी बहुत आया था,,,, घर पर रामू की मौजूदगी से अपना मन मसोसकर वह रघु को बाहर जाते हुए देखती रही,,,,,

घर से थोड़ी दूर पर पहुंचते ही,,,, रामू गुस्से में रघु की तरफ देखते हुए बोला,,,,।

घर पर क्यों आया था तू सही सही बताना,,,,।

तुझे बुलाने आया था और किस लिए आया था,,,,।


नहीं तु मुझे बुलाने नहीं आया था तू किसी और मकसद से आया था,,,,,,


कैसी बातें कर रहा है तू मेरा और कोई मकसद क्या हो सकता है तेरे घर पर आने के लिए,,,( रामू की बातें सुनकर रघु को लगने लगा था कि रामू जरूर कुछ जान गया है इसलिए इस तरह की बातें कर रहा है।)


तेरा मकसद में अच्छी तरह से समझता हूं तो मुझे बुलाने नहीं आया था किसी और काम से मेरे घर आया था,,,,

देख रामु मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि तू क्या कह रहा है,,,।

मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि मैं क्या कह रहा हूं और तू भी अच्छी तरह से जानता है कि मैं किस बारे में कह रहा हूं,,,


सच रामू मुझे बिल्कुल भी नहीं पता कि तू क्या कह रहा है,,,।

देख रघु,,, मैं तुम दोनों की बातें सुन रहा था और यह भी जानता हूं कि तुम दोनों के बीच जरूर कुछ चल रहा है,,,।

(रामू की यह बात सुनकर रघु अच्छी तरह से समझ गया कि उन दोनों के बारे में रामू को पता चल गया है इसलिए कुछ भी छुपाने से फायदा नहीं है फिर भी वह अनजान बनता हुआ बोला,,)

क्या सुन रहा था मुझे तो कुछ भी नहीं समझ में आ रहा है कि तु क्या कह रहा है,,,।

तु मेरी मां से नहीं बोला कि तुम समझ नहीं रही हो आज मेरा बहुत मन कर रहा है,,,, और मेरी मां तुझे इंकार कर रही थी की रामु अंदर है,,,,।

(रामू की बात सुनकर रघु समझ गया कि अब कुछ भी छुपाने जैसा नहीं है और वैसे भी रघु को इस बात से बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ रहा था कि वह उसकी मां को चोदता है और यह बात रामू को पता चल गई तो क्या होगा क्योंकि वह जानता था कि अगर रामू को यह बात पता भी चल गई कि वह उसकी मां को चोदता है तो भी कुछ होने वाला नहीं था क्योंकि वह रामू की नस नस से वह वाकिफ था,,, जो लड़का खुद उसके साथ बैठकर अपनी मां की नंगी बड़ी बड़ी गांड को देखकर अपना लंड हिलाता हो तो उसे इस बात से कहा फर्क पड़ने वाला था कि उसकी खुद की मां को उसका दोस्त चोदता है, इसलिए रघु भी सब कुछ रामू को बताने का मन बना लिया और उसे बोला,,,)

मैं जानता हूं कि जो कुछ भी हुआ वैसा होना तो नहीं चाहिए था लेकिन यह सब अपने आप ही हो गया,,आ, उस पेड़ के नीचे बैठ कर बातें करते हैं,,,
(इतना कहते हुए रघु उसे घने पेड़ के नीचे उस की छांव में ले गया जहां पर दोनों इत्मीनान से बैठ गए,,
Behtareen update
 

Devang

Member
160
187
43
रघु और रामू दोनों घने पेड़ के नीचे छांव में बैठ गए रामू का दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसके मन में उसकी मां और रघु को लेकर जिस तरह की शंका पनप रही थी ना जाने क्यों रामू को लग रहा था कि उसकी शंका वास्तविक है,,,लेकिन वह रघु के मुंह से सुनना चाहता था और रघु को इस बात में किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं थी,,,क्योंकि यह बात रघु भी अच्छी तरह से जानता था कि अगर मौका मिले तो रामू खुद अपनी मां को चोदने के लिए तैयार हो जाएगा,,,, लेकिन फिर भी वह रामू से बात को गोल-गोल घुमाते हुए बोला,,,।

अब बोल तू क्या जानना चाहता है,,,?

देख रघु तू अच्छी तरह से जानता है कि मैं क्या जानना चाहता हूं ,,तु बात को गोल गोल मत घुमा,,,,

तो वही तो पूछ रहा हूं तो जानना क्या चाहता है,,,,


तेरी और मेरी मां के बीच क्या चल रहा है सच-सच बताना मुझसे कुछ भी छुपाना मत क्योंकि मुझे पूरा यकीन हो गया कि तुम दोनों में जरूर कुछ खिचड़ी पक रही है,,,।
(रामू की बात सुनकर रघु समझ गया था कि रामु से छुपाने जैसा कुछ भी नहीं है बस वह अपनी बातों से मजा लेना चाहता था इसलिए वह बोला)

जैसा तू सोच रहा है वैसा कुछ भी नहीं है,,,,

देख रघु तु मुझे गुस्सा दिला रहा है मैं जैसा सोच रहा हूं वैसा ही है,,,,,


हां जैसा तू सोच रहा है मेरे और तेरी मां के बीच वैसा ही है,,, तेरी मां मुझ से चुदवा चुकी है,,,,।
(रघु के मुंह से इतना सुनते ही रामू का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया उसे शंका तो हो गई थी लेकिन बस वह अपनी बात को, अपनी शंका को निश्चित कर लेना चाहता था,,.)

लेकिन देख रामु इसमें बुरा मानने वाली जैसी कोई बात नहीं है,,,, (यह बात रघु रामू के जले पर,, मलहम लगाते हुए बुला क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि इस तरह की गंदी बातें अपनी मां के बारे में सुनकर भी वह कुछ नहीं बोलेगा बस गुस्सा होने का नाटक करेगा और यही हुआ भी रामू गुस्सा दिखाते हुए बोला,,)

बुरा मानने वाली बात नहीं है,,,, तू मेरी मां को चोदता है और कह रहा है कि इसमें बुरा मानने वाली बात नहीं है,,,तो क्या मैं भी अगर तेरी मां को चोद दूं तो तुझे बुरा नहीं लगेगा,,,


नहीं बिल्कुल नहीं,,,,(रघु को गुस्सा तो बहुत आ रहा था लेकिन वह नहीं चाहता था कि वह गुस्से में रामू के साथ उल्टा सीधा कुछ ऐसा करते हैं कि रामू के घर पर आना जाना बंद हो जाए क्योंकि अभी तो उसकी मां उसके नीचे आई थी अभी तो उसकी दोनों बहने बाकी थी इसलिए अपना मन कठोर करके बोला,,,)
मुझे बिल्कुल भी गुस्सा नहीं आएगा लेकिन क्या तुझे लगता है कि मेरी मां तुझे वह सब करने देगी जो तेरी मां मुझे करने दी,,,, अगर ऐसा होगा तो मेरी तरफ से तुझे पूरी आजादी है,,,

(रघु कि यह बात सुनकर रामु कुछ बोल नहीं पाया क्योंकि रामू अच्छी तरह से जानता था कि रघु जो कुछ भी कह रहा था वह सच था,,, रघु की मां शायद उसकी मां जैसी बिल्कुल भी नहीं थी,,, रघु अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,)

देख जो कुछ भी हुआ इसमें ना तो तेरी मां की गलती थी और ना मेरी,,,,

यह सब हुआ कैसे,,,,?(रामू नजरे नीचे छुपाए हुए बोला वह सब कुछ जानना चाहता था,,, और रघु सब कुछ बताने के लिए उत्सुक था,,,,)

तूफान वाली रात में,,,,

तूफान वाली रात में,,,, लेकिन तुम दोनों तो दूसरे के घर में थे वहां पर,,,, कैसे,,,? (रामू आश्चर्य जताते हुए बोला)

हां तूफान वाली रात में,,, यह बात सब लोग जानते हैं कि हम दोनों तूफान वाली रात में किसी और के घर में थे लेकिन मैं तुझे हकीकत बताता हूं उस दिन हम दोनों किसी के घर नहीं रुके थे बल्कि वहां से निकलने के बाद तूफानी रात में तूफानी बारिश मैं देखकर एक खंडहर में रुके थे,,,।

क्या,,,,(रामू आश्चर्य जताते हुए बोला,,)

हां खंडहर में,,,,,
(रघु को रामू की मां के बारे में गंदी बातें करने में और वह भी उसके सामने बेहद आनंद प्रद लग रहा था,,,अच्छी तरह से जानता था कि रामू के तन बदन में भी उत्तेजना बढ़ रही होगी उसकी मां के बारे में गंदी बातें सुनकर क्योंकि वह बहुत बार उसकी मां और उसकी बहन के बारे में गंदी बातें कर चुका था लेकिन रामू की तरफ से कभी भी किसी भी तरह से कठोर प्रतिक्रिया नहीं आई थी इसलिए तो रघु की हिम्मत बढ़ती जाती थी,,),,,, रामू ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता था जैसा कि उस रात हम दोनों के बीच अनजाने में ही हो गया था तेरी मां और मैं पूरी तरह से भीग चुके थे,, अपने आप को बचाने के लिए हम दोनों एक खंडहर में रुक गए हम दोनों के कपड़े पूरी तरह से गीले हो चुके थे,,,,,
भीगने की वजह से हम दोनों को ठंड लग रहा था,,, मैं अपने गीले कपड़े उतार कर उसे सूखने के लिए वही दीवार पर टांग दिया,,,,
(रामू बड़े गौर से रघु की बातें सुन रहा था,,,)

चारों तरफ एकदम अंधेरा था कुछ भी नजर नहीं आ रहा था बस रह-रहकर बिजली की चमक में पूरा खंडहर जगमगा उठ रहा था,,,,,,मेरा पैजामा भी गीला हो चुका था इसलिए मैं उसे भी उतार कर वहीं पास में रख दिया मैं खंडहर के अंदर पूरी तरह से नंगा था एक कोने में खड़ा था मैं नहीं चाहता था कि तेरी मां की नजर मुझ पर पड़े,,,,,, लेकिन शायद किस्मत को यही मंजूर था बिजली की चमक के उजाले में तेरी मां की नजर मुझ पर पड़ गई मैं पूरा नंगा था और ना जाने क्यों उस समय मेरा लंड की पूरी तरह से खड़ा था,,,,,,
(रामू की सांसे ऊपर नीचे हो रही थी इस बात का एहसास रघु को अच्छी तरह से हो रहा था उसे समझ में आ रहा था कि रामू को उसकी बातें सुनने में मजा आ रहा है इसलिए वह अपनी बातों को और ज्यादा नमक मिर्च लगाकर बोला,,)

मैं अपने आपको तेरी मां की नजरों से एकदम बचाया हुआ था लेकिन तेरी मां ने मुझे एकदम नंगा देख ली थी खास करके शायद तेरी मां की नजर मेरे खड़े लंड पर पड़ गई थी और वह उस तूफानी बारिश में अपने मन को भटकने से रोक नहीं पाई और तुरंत मेरे पास आकर सीधे मेरे खड़े लंड को पकड़ ली,,,

क्या,,,, सच में माने ऐसा किया,,,(रामू आश्चर्य से बोला)

हारे तेरी मां ने बिल्कुल ऐसा ही किया मैं तो सोच भी नहीं सकता था,,,, लेकिन रामू मुझे तेरी मां की यह हरकत अच्छी तो नहीं लगी थी लेकिन ना जाने क्यों मेरे तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी,,,।

कैसी हलचल,,,

पता नहीं मैं बता नहीं सकता अजीब सी हलचल थी वह जिस तरह की हलचल को मैंने कभी भी अपने बदन में महसूस नहीं किया था ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरा लंड तेरी मां नहीं बल्कि स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा ने पकड़ रखी हो,,,, मैं तेरी मां को लंड छोड़ने के लिए बोला लेकिन वह नहीं मानी,,,,

क्या बोली उसने,,,(दबे हुए स्वर में लेकिन उत्तेजना भरे शब्दों में रामू यह बात बोला,,)

वह बोली,,,, नहीं रघु,,, मैंने आज तक अपनी जिंदगी में तेरे जैसा मोटा तगड़ा लंबा लंड नहीं देखी,,,, मेरा मन बहक रहा है रघु,,,, ना जाने क्यों मुझे तेरा लंड अपनी बुर में लेने के लिए तड़प जाग रही है,,,। मैं तेरी मां को रोकता रहा ,,,
नहीं चाची ऐसा बिल्कुल मत करो लेकिन तेरी मां नहीं मानी ,,,। तुझे पता है तेरी मां क्या बोली,,,।


क्या बोली उसने,,,,


तेरी मां बोली की तेरे चाचा मतलब की तेरे पिताजी तेरी मां को खुश नहीं कर पाते मेरे लंड से आधा भी नहीं है तेरे पिताजी का लंड,,, मैं तो यह सुनकर हैरान रह गया जब तेरी मां यह बोली की तेरे पिताजी का पानी बहुत जल्दी निकल जाता है और वह खुश नहीं हो पाती,,,,


क्या ऐसा कहा मा ने,,,,

हारे एक-एक शब्द तेरी मां ने ऐसा ही कहा,,, मैं हैरान था तेरी मां की हरकत तेरी मां की बातें मुझे मदहोश कर रही थी क्योंकि वह मुझसे बातें करते हुए मेरे लंड को हिलाना शुरू कर दी थी,,,, मैं कब तक अपने आप को रोक पाता,,,

तो तूने क्या किया,,,,
(रामू गहरी सांस लेते हुए बोला रघु उसके हावभाव को देख कर अच्छी तरह से समझ रहा था कि उसे अपनी मां की गंदी बातें सुनने में बहुत मजा आ रहा था और वह उसके पजामी की तरफ देखने लगा तो वहां पर अच्छा खासा तंबू बन चुका था,,, रघु अपनी बातों को नमक मिर्च लगाकर बोल रहा था,,,)

मैं क्या करता वही किया जो एक मर्द को एक औरत की इस तरह की हरकत पर करना चाहिए मुझे तुझे बताना तो नहीं चाहिए लेकिन तो मेरा दोस्त है इसलिए मैं तुझे सब कुछ बता रहा हूं,,, तेरी मां बहुत खूबसूरत है रामू तेरी मां का कपड़ा तेरी मां की सारी पूरी तरह से पानी में भीग चुकी थी जिसकी वजह से तेरी मां की ब्लाउज से उसकी निप्पल एकदम तनी हुई नजर आ रही थी तेरी मां की बड़ी बड़ी चूची देख कर मुझ से रहा नहीं गया और मैं अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाकर ब्लाउज के ऊपर से तेरी मा की चूचियों को दबाना शुरू कर दिया,,,,


तो वह क्या बोली,,,

वह क्या बोलती उसे तो शायद यही सब चाहिए था वही तो मदहोश होने लगी और अपने हाथों से अपनी ब्लाउज के बटन खोल कर अपना ब्लाउज उतारकर वही नीचे फेंक दी,, यार रामू तेरी मां की नंगी चूचियां देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं तेरी मां की चूची को दबाता हुआ उसे मुंह में लेकर पीना शुरू कर दिया,,जोर जोर से दबाता हुआ मैं तेरी मां की चूची पी रहा था और तेरी मां जोर जोर से चिल्ला चिल्ला कर मजे ले रही थी,,,

कैसे चला रही थी क्या कह रही थी,,,,

ओहहहहह,,, रघु और जोर से दबा और जोर से दबा दबा कर मेरी चूची पी इसका पूरा दूध नीचोड़ डाल,,,,

फिर क्या हुआ रघु,,,,?

फिर क्या हुआ तेरी मां खुद अपने हाथ से अपनी साड़ी उतार कर नीचे फेंक दी और देखते ही देखते अपनी पेटिकोट की डोरी खोल कर उसे भी नीचे जमीन पर गिरा दी और फिर तेरी मां मेरी आंखों के सामने एकदम नंगी हो गई उस खंडहर में मैं और तेरी मां एकदम नंगी,,,,,,
सच कहूं रामू मैं तो एकदम मस्त हो गई इससे पहले मैंने कभी इतनी करीब से किसी औरत को नंगी नहीं देखा था तेरी मां को उस दिन नंगी देखने के बाद पता चला कि तेरी मां बहुत खूबसूरत है उसकी बड़ी बड़ी गांड मेरे होश उड़ा रही थी,,, वो खुद मेरे दोनों हाथों को पकड़कर अपने पीछे की तरफ ले जाकर अपनी गांड पर रख दी और उसे जोर जोर से दबाने के लिए बोली,,,,

तो तूने क्या किया,,,,


मेरी जगह अगर कोई और होता तो वही करता जो मैं उस समय कर रहा था तेरी मां की बड़ी बड़ी और गोरी गोरी गांड को जोर जोर से दबाने लगा,,,तेरी मां मदहोश होने का की मस्त होने लगी उसके मुख से अजीब अजीब सी आवाजें निकलने लगी उन आवाज को सुनकर मुझे एहसास हो रहा था कि तेरी मां को बहुत मजा आ रहा है,,,,


क्या सच में मेरी मां को मजा आ रहा था,,,,।

हां तेरी मां को बहुत मजा आ रहा था तभी तो वह मेरा लंड पकड़ कर,, अपनी दोनों टांगे फैलाकर उसे अपनी बुर पर रगड़ रहीं थी,,,,।

क्या मां इतनी गंदी है,,,,

नहीं रे तेरी मां बहुत मस्त है,,,, तेरी मां ने ही तो मुझे चोदना सिखाया,,,, वरना मुझे कहां चोदना आता था कैसे चोदा जाता है,,,,।

कैसे बताई तुझे मेरी मा ने,,,,


बहुत अच्छे से बताएं,,,,पहले तो तेरी मां मुझे अच्छी तरह से अपनी बुर के दर्शन कराई,,यह बात तुझे भी अच्छी तरह से मालूम है कि हम दोनों मिलकर दूर से ही औरतों की बुर के दर्शन कर पाए हैं चाहे वह किसी की भी हो तेरी मां की भी तो बुर देखकर उस दिन हम दोनों ने एक साथ अपना पानी निकाले थे,,,,लेकिन रामू नजदीक से देखने पर पता चलता है कि औरत की दोनों टांगों के बीच कितनी खूबसूरत जगह बनी हुई है जिसमें स्वर्ग का सुख मिलता है,,, मैं तो तेरी मां की दोनों टांगों के बीच की उस रसीली बुर को देखकर एकदम मस्त हो गया मुझे तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करना है कि तभी तेरी मां अपना दोनों हाथ से मेरे बाल को पकड़कर मेरा मुंह अपनी दोनों टांगों के बीच डाल दी,,,

क्या ऐसा की मा ने,,,

हां पहले तो मुझे समझ में नहीं आया कि तेरी मां ने ऐसा क्यों की लेकिन तभी जो बात उन्होंने बोली उसे सुनकर मेरे लंड की हालत खराब हो गई,,,


क्या बोली मा ने,,

चाट रघु,,,,,,, अपना मुंह लगाकर मेरी बुर चाट,,,

मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि तेरी मां क्या कह रही है,,,,लेकिन इतना कहने के साथ ही वह अपनी बुर को मेरे चेहरे पर गोल गोल घुमाने लगी,,,, और मुझे चाटने के लिए बोली,,,,,


फफफ,, फिर,,,,,


फिर क्या था मैं अपनी जीभ बाहर निकाल कर तेरी मां की बुर को चाटना शुरू कर दिया,,,,

कककक,, क्या सच में तूने ऐसा किया कैसा लग रहा था तुझे,,,


पहले तो बड़ा अजीब सा स्वाद लगा लेकिन धीरे-धीरे मजा आने लगा फिर तो तेरी मां की बुर चाटने में इतना मैं जा रहा हूं ताकि जैसे रस मलाई चाट रहा हूं,,,
(रामू मैं तो सोने लगा था उत्तेजित होने लगा था उत्तेजना के मारे उसका गला सूखने लगा था जिसे वह बार-बार अपने थूक से गीला कर रहा था उसे अपनी मां की इस तरह की गंदी बातें सुनने में इतना अत्यधिक मजा आ रहा था कि इतना मजा उसे कभी नहीं आया था)

फिर क्या हुआ रघु,,,।

फिर क्या ,,, जो,,, में,,, तेरी मां के साथ किया वही तेरी मां ने भी मेरे साथ किया,,,

क्या की मा ने,,,


तेरी मां की मेरे लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी,,,

क्या,,,?(रामू एकदम से चौक ते हुए बोला)

हां मैं जो कुछ भी कह रहा हूं एकदम सच कह रहा हूं तेरी माफी मेरे लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी और इतना चुसी के एकदम मस्त हो गया,,, बहुत मजा आया रामू,,,हम दोनों यह बात भी भूल गए कि हम दोनों तूफानी बारिश में तूफानी रात में खंडहर में हैं बस एक दूसरे से मजा लेते रहे,,

फिर क्या हुआ,,,

फिर क्या था तेरी मां जमीन पर लेट गई और अपनी दोनों टांगे फैलाकर मुझे अपनी बुर दिखाने लगी,,, वह सब कुछ जानती थी इसलिए मुझे बोलने लगी कि मुझे अपना लंड उसकी पूरी में डालना है और अपनी कमर हिलाना है बस इतना ही करना है,,,, और मैं जैसा जैसा वह बताती गई मैं वैसा वैसा करता गया,,, यह बात तेरी मां ने ही मुझे बताया कि मेरा लंड को ज्यादा ही मोटा है इसलिए तो जब मैं तेरी मां की बुर में डाला तो तेरी मां जोर जोर से चिल्लाने लगी लेकिन निकालने के लिए नहीं बोली उसे मजा आ रहा था और जैसा कि तेरी मां ने मुझे पता ही थी वैसा ही में अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया,,, मैं तेरी मां को चोद रहा था और मस्त हो रही थी चारों तरफ तूफानी बारिश चालू थी तेज हवा का झोंका हम दोनों को हिला दे रहा था लेकिन ना में हटा ना तेरी मां,,,, रामू पहली बार मुझे पता चला की चुदाई किसे कहते हैं यह तेरी मां की ही देन थी जो मुझे स्वर्ग का सुख दी,,,,ऊस तूफानी रात में मैं तेरी मां की तीन बार चुदाई किया और तेरी माई के मस्त हो गई लेकिन रामू तीनों बार तेरी मां ने ही पहल की चुदवाने के लिए,,,,
(इतना कहकर वह रामू की तरफ गौर से देखने लगा रामू एक दम मस्त हो चुका था उसके पजामे में उसका तंबू पूरी तरह से तन गया था,,,,, रघु अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला)

रामू बुरा मत मानना आज मैं तेरे घर तुझे बुलाने नहीं बल्कि तेरी मां को पेलने के लिए आया था उस रात के बाद में तो तेरी मां का दीवाना हो गया बार-बार मेरा लंड तेरी मां को याद करके खड़ा हो जाता है जैसा कि देख अभी एकदम खड़ा है,,,,(अपने पजामे की तरफ इशारा करते हुए बोला रामू भी उसके पजामे की तरफ देखने लगा जो कि एक तंबू की शक्ल में आ चुका था,,)/और तेरा भी तो खड़ा हो गया तेरी मां की बात सुनकर,,,, देख रामु जो कुछ भी हुआ वह भूल जा,,,यह बात मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि अपनी मां की इस तरह की बातें सुनकर तेरा मन भी तेरी मां को चोदने के लिए करता होगा तभी तो तेरा लंड खड़ा हो गया है,,,(इतना सुनते ही रामू पहचाने के ऊपर अपना दोनों हाथ रखकर अपने तंबू को छिपाने लगा) मुझसे छुपाने की जरूरत नहीं है रामू हम दोनों बचपन के दोस्त हैं और एक दूसरे का राज अच्छी तरह से जानते हैं,,, अच्छा एक बात बता अगर किसी भी तरह से मैं जुगाड़ कर दो और तुझे तेरी मां को चोदने का मौका मिल जाए तो क्या तू अपनी मां को चोदेगा कि नहीं,,,,
(रखो कि यह बात सुनकर रामू खामोश ना को कुछ बोल नहीं पा रहा था उसको मन तो हां कहने के लिए कह रहा था लेकिन वह शर्मा रहा था कुछ देर तक वह खामोश रहा तो रघु ही बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,)

देख रामु शर्मा मत मैं सब कुछ जानता हूं,,,, मैं तेरी मन की बात को अच्छी तरह से समझ सकता हूं तेरी मां की नंगी गांड को देखकर तू अपना लंड कआ पानी निकाला था मैदान में याद है कि नहीं,,,,
(रामू रघु की तरफ देखकर खामोश ही रहा,,,)

देख रामुमैं तेरे लिए जुगाड़ बनाना चाहता हूं ताकि तू अपनी मां को चोद सकें,, अगर नहीं चोदना है तो रहने दे मैं जा रहा हूं,,,

चोदना है,,,,(रामू एकदम दबे स्वर में बोला)

यह हुई ना बात,,, अब जो कुछ भी हुआ उसे भूल जा समझा मैं तेरे लिए जुगाड़ बना लूंगा,,,, जैसा मैं कहूं वैसा ही करना देखना हम दोनों मिलकर तेरी मां को चोदेंगे,,,, बस अब मुस्कुराती दे,,,
(इस बार रामू के चेहरे पर मुस्कान आ गए और रघु उसका हाथ पकड़कर उसे उठाते हुए खेत की तरफ चला गया)
Behtareen update
 

Devang

Member
160
187
43
एक दिन सुबह-सुबह रघु लकड़ी के बने अपने गुसल खाने में नहा रहा था,,,,उसकी आदत थी कि जब भी वह अपने लकड़ी के बने गुसलखाना में नहाता था तो अपने सारे कपड़े उतार कर एकदम नंगा हो जाता था और फिर नहाता था,,। गुसल खाने में जाने से पहले वह अपनी बहन के साथ मस्ती कर रहा था उसके अंगों से छेड़खानी कर रहा था इसमें सालु को भी मजा आ रहा था वह दोनों आगे बढ़ना चाहते थे,,, रघु एक बार फिर अपनी बहन को चोदना चाहता था वैसे तो दोनों की चुदाई रोज ही हो रही थी रोज रघु अपनी बहन को चोद रहा था लेकिन आज दोनों को मौका नहीं मिल पा रहा था क्योंकि कजरी घर पर ही थी,, इससे दोनों काफी उत्तेजित हो चुके थे और अपनी जवानी की गर्मी को ठंडा करने के लिए ही रखो आज जल्दी नहाने की सोच रहा था वह गुसल खाने में एकदम नंगा था उसका लंड अपनी बहन की मदहोश जवानी की खुशबू पाकर पूरी तरह से टन्ना गया था,,, गुशल खाने में पूरी तरह से नंगा होने के बाद रघु का लंड कुछ ज्यादा ही ताकतवर और लंबा लग रहा था,वह कुशल खाने में खड़े खड़े अपने खड़े लंड को देख रहा था और उसे देखकर अपने आप पर वह गर्व महसूस कर रहा था क्योंकि इस लंड के बदौलत वह अपनी जीवन की बेहतरीन पलको जी रहा था उसका पूरी तरह से मजा लूट रहा था,,, सबसे पहले हलवाई की बीवी और दूसरी रामू की मां जिसे बचपन से चाची चाची कहता आ रहा था और मौका मिलने परउसी चाची की बुर में अपना लंड डालने में उसे बिल्कुल भी शर्म का एहसास नहीं हुआ,,, और तीसरी उसकी बड़ी बहन जीसकी चुदाई करके वह धन्य हो चुका था,,, और जिसको रात दिन वह चोद रहा था,,, उसी की जवानी का नशा था कि जो गुसल खाने में भी उसका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था और रघु उस पर ठंडा पानी डालकर उसे ठंडा करने की कोशिश कर रहा था,,,

दूसरी तरफ कजरी घर के बाहर अपने जानवर को चारा पानी दे रही थी कि तभी दो आदमी आए हट्टे कट्टे हाथ में लट्ठ लिए,,, जिन्हें अपने द्वार पर आया देखकर कजरी घबरा गई,,,, वो लोग आते ही कजरी से बोले,,,।

रघु कहां है,,,?
(कजरी एकदम से घबरा गई उसे लगा कि कुछ गड़बड़ हो गई है वह तुरंत खड़ी होकर बोली)

क्यों क्या हो गया मेरे बेटे से कोई गुस्ताखी हुई है क्या,,,,

नहीं नहीं बहन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है,,,तुम्हारे बेटे को प्रताप सिंह जी ने याद किया है किसी काम की वजह से,,, तो उसे हम लेने आए हैं,,,

मेरे बेटे से भला उन्हें क्या काम हो सकता है,,,।

यह तो वही जाने हमें तो सिर्फ आदेश मिला है,,, देखो हमें देर हो रही है अपने बेटे को बुला दो,,,।

ठीक है आप लोग यहीं बैठो में बुला कर लाती हूं,,,,(इतना कहकर कजरी घर में रघु को बुलाने के लिए चली गई,, तो सालों से पता चला कि वह तो नहाने गया है,,, और कजरी गुसल खाने की तरफ आगे बढ़ गई,,, वहगुसल खाने की तरफ पहुंचकर उसे आवाज देने ही वाली थी कि तभी,, दो बड़ी-बड़ी लकड़ियों के बीच की खाली जगह में से उसे जो नजर आया उस दृश्य पर उसे विश्वास नहीं हुआ,,, और वह एकदम करीब जाकर दोनों लकड़ियों के बीच की खाली जगह में से अपनी नजर को अंदर की तरफ दौड़ाने लगी,,।
उसकी आंखों ने जो दृश्य देखा उस दृश्य को देखकर वह एकदम दंग रह गई,,,उसकी दोनों टांगों के बीच हलचल सी मचने लगी,, अजीब सी थरथराहट उसके तन बदन को अपनी आगोश में लेने लगी,,,,, वह यह बात भी भूल गई कि वह यहां पर रघु को बुलाने के लिए आई थी,,,बस दोनों लकड़ियों के बीच की खाली जगह में से अपनी नजर गड़ाए अंदर के दृश्य को देखकर अपने आपको पूरी दुनिया से भुलाने लगी,,, कर भी क्या सकती थी उसकी जगह कोई और औरत होती तो वह भी इस दृश्य को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती,,, रघु लकड़ी के बने गुशल खाने के अंदर संपूर्ण नग्ना वस्था में था और अपने बदन पर लोटे से पानी लेकर डाल रहा था,,,। यह बात कजरी के लिए हैरानी वाली बिल्कुल भी नहीं थी ,,, रघु उसका बेटा था और बचपन से वह उसको देखते आ रही थी,, उसके बदन से अच्छी तरह से वाकिफ थी अगर वाकिफ नहीं थी तो उसके दोनों टांगों के बीच लटकते हुए हथियार से वह अभी भी अपने बच्चे को बच्चा ही समझती थी और यही उसके लिए,हैरानी वाली बात थी,,, की रघु अभी बच्चा ही था लेकिन उसका लंड बड़े लोगों से भी कहीं ज्यादा तगड़ा था,,, इसी बात को लेकर कजरी हैरान थी,,,, अपने बेटे के खड़े लंड को देखकर उसका मुंह खुला का खुला रह गया था,,, उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उसके बेटे पहले इतना तगड़ा मोटा और लंबा होगा,,,,, इसमें उसकी कोई गलती नहीं थी आज तक वह अपने पति के ही लंड देखी थी और अपने पति के लंड को ही दुनिया के सभी मर्दों के लंड से तुलना करके संतुष्ट थी,,, लेकिन आज अपने बेटे के लंड को देखकर वह हैरान थी लंड क्या ऐसा भी होता है वह अपने आप से ही यह सवाल कर रही थी,,,, कजरी की सांसे ऊपर नीचे हो रही थी,,, रघु बार-बार बाल्टी में से लौटा भरकर अपने बदन पर पानी डाल रहा था और पानी की बूंदे उसके बदन से होती हुई उसके लंड पर से नीचे गिर रही थी,,, ऐसा लग रहा था कि मानो वो धीरे धीरे पेशाब कर रहा हो,,,, तभी अपने बेटे की हरकत को देखकर कजरी की दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में हलचल होना शुरू हो गया,,, रघु लोटे के पानी की धार को अपनी खड़े लंड पर गिरा रहा था और पानी की धार के वजन से उसका लंड ऊपर नीचे हील रहा था, और अपने बेटे के हिलते हुए लंड को देखकर एक अजीब सी लहर कजरी अपने बदन में उठती हुई महसूस करने लगी,, रघु को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उसकी मां लकड़ी के पट्टी के आड़ में खड़ी होकर उसकी हरकत को देख रही है,, वह तो अपनी मस्ती में था,,,।
कजरी की सांसे ऊपर नीचे हो रही थी वह वहां से चली जाना चाहती थी लेकिन आंखों के सामने जिस तरह का मादक दृश्य था उसे छोड़कर जाने की इच्छा उसकी बिल्कुल भी नहीं हो रही थी और यह भी वह भूल गई थी कि वह अपने बेटे को बुलाने आई थी,,,। वह तो अपने बेटे के नंगे बदन उसके खड़े लंड को और उसकी हरकत को देखकर मंत्रमुग्ध हुए जा रही थी,,,,,, तभी रघु अपने लंड को अपनी मुट्ठी में भर कर मुट्ठीयाने लगा,,, और अपने बेटे की इस हरकत को देखकर कजरी के बदन में आग लग गई वह अपना हाथ दोनों टांगों के बीच ले जाकर साड़ी के ऊपर से ही अपनी बुर को जो की कचोरी की तरह फुल चुकी थी उसे दबोच ली,,,अपने बेटे की इस तरह की हरकत देखने में कपिल को आनंद की अनुभूति होने लगी उसे आनंद आ रहा था एक अजीब सा सुख उसे प्राप्त हो रहा था लेकिन रघु यह क्रिया ज्यादा देर तक नहीं किया तीन चार बार अपने लंड को मुठीयाकर वापस नहाना शुरू कर दिया,,,, अपने बेटे के मोटे तगड़े और लंबे लंड को देखकर ना चाहते हुए भी उसके मन में एकाएक यह ख्याल आया कि अगर वह अपने बेटे के लंड को अपनी बुर में लेगी तो उसके बेटे का लंड ईतना मोटा है कि उसकी बुर में घुस नहीं पाएगा और इस खयाल से कजरी पूरी तरह से उत्तेजना से सरोबोर हो गई,,,, उत्तेजना के मारे उसकी बुर से अमृत रूपी रस बुंद बनकर उसकी बुर की गुलाबी पत्तियों के बीच से निकलकर नीचे जमीन पर गिर गई,,,, अपने बदन में आए इस जबरदस्त बदलाव को महसूस करके कचरी एकदम से गदगद हो गई,,, उसकी आंखें अपने बेटे के लंड को देखकर यह साफ पता लगा ले रही थी कि उसके बेटे के लंड का सुपाड़ा कुछ ज्यादा ही मोटा था और उसकी बुर की गुलाबी छेद सुपाड़े से छोटी ही थी,,। अपने मन में आए इस ख्याल से साफ पता चल रहा था कि अपने बेटे के खड़े लंड को देखकर कजरी के मन में उस से चुदवाने की कामना जागने लगी थी,,,,,

कजरी,,,अपने बेटे के नंगे बदन उसके खड़े लंड के दर्शन और देर तक करना चाहती थी,,, लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हो पाया रघु तौलिया लेकर उसे अपने बदन से लपेट लिया,,, लेकिन तोलिया लपेटने के बावजूद भी उसके तौलिए में जबरदस्त तंबू बना हुआ था जिसे देखकर कजरी की हालत खराब होती जा रही थी,,,, लेकिन अब ज्यादा देर तक वहां खड़े रहना उसके लिए ठीक नहीं था,,, इसलिए वह वहां से सीधा घर में आ गई,,,,और वह भी इस इंतजार में कि घर में आने पर उसके तौलिए में बना तंबू उसे एक बार फिर से नजर आ जाएगा,,, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया रघु तब तक वही कुशल खाने में खड़ा रहा जब तक कि उसका लंड ढीला नहीं पड़ गया,,,, जब वह घर में आया तो उसे देखकर उसे नहीं बल्कि उसके तंबू को देखकर जो कि इस समय मैदान में से गायब हो चुका था निराश हो गई,,, और वह अपने बेटे से बोली,,,।

रघु तुझे प्रताप के आदमी बुलाने आए थे,,,

कौन प्रताप सिंह,,,,

हां हां वही,,,,,

लेकिन मुझ से उन्हें क्या काम हो सकता है,,,,


कोई काम होगा तभी तो तुझे बुलाया है और बाहर दो आदमी आए हैं तुझे लेने के लिए,,,,


मुझे लेने के लिए,,,,(इतना कहकर वह तसल्ली करने के लिए घर से बाहर आकर देखा तो दो आदमी वही खाट पर बैठे हुए उसका इंतजार कर रहे थे,,,रघु वापस कमरे में गया और जल्दी से तैयार होकर उन दोनों आदमी के पास पहुंच गया और बोला)

बोलो क्या काम है मुझसे,,,,


क्या काम है आप यह तो हम नहीं जानते लेकिन तुम्हें मालिक ने बुलाया है इसलिए तुम्हें लेने के लिए आए हैं,,,,

ठीक है चलो मैं चलने के लिए तैयार हूं,,,,(इतना कहकर रघु दोनों आदमी के साथ चलने लगा उसके मन में ढेर सारे सवाल चल रहे थे कि आखिरकार प्रताप सिंह को उससे क्या काम निकल आया जो उसे बुलाने के लिए अपने दो आदमी उसके घर भेज दिए थे रघु थोड़ा बहुत परेशान भी नजर आ रहा था,,,रघुयह बात अच्छी तरह से जानता था कि प्रताप सिंह गांव समाज का इज्जत दार इंसान था इसके लिए उसकी बात मानना भी जरूरी था,,,,इसलिए वह ज्यादा सवाल जवाब किए बिना ही उन दोनों के साथ चल दिया कि जो होगा वही देखा जाएगा।)
Behtareen update
 

Devang

Member
160
187
43
रघु प्रताप सिंह के दोनों आदमी के साथ थोड़ी देर में उनके घर पहुंच गया रघु के मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे कि आखिरकार प्रताप सिंह उसे क्यों बुला रहा है थोड़ी घबराहट भी मन में थी,,,।थोड़ी देर में बात प्रताप सिंह के सामने खड़ा था उसके अगल-बगल उसके दोनों आदमी हाथ में लट्ठ लिए खड़े थे,,। प्रताप सिंह सामने अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था और हुक्का को मुंह से लगाए गुडगुडा रहा था,,,। रघु प्रताप सिंह को नमस्कार किया और बोला,,।

मालिक आप मुझे किस लिए बुलाए हैं,,,?

बताता हूं पहले बैठ जाओ बड़ी दूर से चलकर आए हो थोड़ा हवा ले लो,,,
(इतना सुनकर वह वहीं पर बैठ गया और घर की नौकरानी तुरंत पानी का गिलास लेकर उसके पास आई और रघु पानी का गिलास लेकर एक सांस में पानी का गिलास खाली कर दिया वैसे भी इसे प्यास बड़ी तेज लगी थी,,, वह दोनों आदमी वही उसके पास ही खड़े थे,, तभी प्रताप सिंह रघु से बोला,,,)

लाला जी बता रहे थे कि तुम तांगा बहुत अच्छा चलाते हो,,,

जी मालिक थोड़ा बहुत ,,,,(रघु खुश होता हुआ बोला,,)

हम तो यह सुनकर एकदम खुश हो गए,,, तुम हमारे काम के आदमी हो,,,,
(प्रताप सिंह की बात सुन कर रखो इतना तो समझ ही गया था कि तांगा चलाने के सिलसिले में ही उसे यहां लाया गया है,,,तभी प्रताप सिंह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,)

हमारी पत्नी का कुछ दिनों से यहां मन नहीं लगता उसे अपने मायके जाना है मैं चाहता हूं कि तुम उसे अपने साथ थाना में लेकर उसके मायके लेकर जाओ और दो-तीन दिन वहां रुक कर वापस लेकर चले आना,,,।
(प्रताप सिंह की बात सुनकर रघु सोच में पड़ गया था उसे जाने का मन बिल्कुल भी नहीं कर रहा था क्योंकि बिना चुदाई किए अब उसका मन नहीं मानता था पहले तो चल जाता था क्योंकि उसके पास जुगाड़ नहीं था लेकिन अब तो घर में ही खूबसूरत बड़ी बहन का जुगाड़ हो चुका था जिसकी बुर के अंदर वह अपने बदन की सारी गर्मी डाल देता था और उसकी बहन भी उसके बिना नहीं रह सकती थी वह भी उसी से चुदवाए बिना जल बिन मछली की तरह तड़पती रहती थी,,,, रघु यह सब छोड़कर जाने का बिल्कुल भी इच्छुक नहीं था,,, यही सब सोचकर वह हैरान था,,, कि वह प्रताप सिंह से ना कैसे कहे,, रघु यही सब सोच रहा था कि प्रताप सिंह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोले।)
देखो रघु मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम इंकार नहीं करोगे,,,

लेकिन मेरी मां,,,,

तुम अपनी मां की चिंता बिल्कुल भी मत करो हम तुम्हारी मां से बात कर लेंगे और ऐसा नहीं है कि तुम्हें तांगा चलाने के बाद में कुछ नहीं मिलेगा तुम्हें तुम्हारी पूरी मजदूरी मिलेगी खाना-पीना और साथ ही कपड़े लत्ते भी,,,,
(प्रताप सिंह की बात सुन कर रघु का मन खुश हो गया,,, लेकिन अपनी बड़ी बहन की बुर चोदने की आदत से वह मजबूर था और प्रताप सिंह की बात को ना मानना उचित नहीं था,,,, इसलिए वह अपना मन मार कर बोला,,,)

ठीक है मालिक जैसा आप उचित समझे,,,, लेकिन निकलना कब है,,,

अभी थोड़ी देर बाद ही निकलना है,,,,तुम चाहो तो अपने घर पर जाकर यह बात बता सकते हो और किसी भी प्रकार की दिक्कत हो तो मुझे जरूर बताना,,,,


जी मालिक,,,,,


तुम जल्दी जाओ और अपने घर से होकर आ जाओ तब तक हम अपनी बीवी को तैयार होने के लिए कहते हैं,,,,(इतना कहने के साथ ही प्रताप कुर्सी पर से उठ कर कमरे में चले गए और रघु अपने घर की तरफ,,,,जब तक वह घर पर पहुंच नहीं गया तब तक उसके मन में अपनी बहन का ही ख्याल उठ रहा था,,, उसे अब अपनी बहन की आदत सी पड़ गई थी,,,, कजरी अंदर कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई थी,,, उसकी आंखों के सामने उसके बेटे का खड़ा लंबा लंड नाच रहा था जब से उसने अपने बेटे के लंड का दीदार की थी तब से अपने होशो हवास में बिल्कुल नहीं थी,,, बरसों के बाद उसने शायद पहली बार अपनी आंखों से नंगे और बेहद जबरदस्त लंड देखी थीतभी तो उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था और खेतों में जाने के बजाय वह अंदर कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई थी,,,,,, उसकी आंखों के सामने तो केवल उसके बेटे का बमपिलाट लंड ही नजर आ रहा था,,,जिंदगी में उसने कभी भी अपने बेटे जैसा लैंड नहीं देखी थी जिसमें बिल्कुल भी ढीलापन नहीं था एकदम खड़ा का खड़ा था ऐसा लग रहा था कि जैसे लंड ना होकर गाय भैंस को काबू में रखके बांधने वाला खूंटा हो,,, वह बेसुध होकर बिस्तर पर लेटी हुई थी उसके कपड़े अस्त-व्यस्त हो चुके थे यहां तक कि वह घुटनों को मोड़कर हल्का सा घुटनों को खोल कर लेटी हुई थी जिससे उसकी साड़ी एकदम ऊपर चढ़कर घुटनों से नीचे गिर गई थी और कजरी को इतना भी भान नहीं था कि जिस स्थिति में वह सोई हुई थी उसकी साड़ी एकदम जांघों तक आ गई थी और उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार नजर आने लगी थी,,,,, उसकी आंखें बंद थी वह अपने बेटे के ख्यालों में खोई हुई थी,,,, उसकी आंखों के सामने बार-बार वही दृश्य दोहराते हुए नजर आ रहा था जब वह लकड़ी के दोनों के बीच की जगह में से गुसल खाने के अंदर चोरी-छिपे देख रही थी और रघु लोटे का पानी की धार को अपनी खड़े लंड पर डाल रहा था और पानी के दबाव में उसका लंड ऊपर नीचे बेहद कामुक स्थिति में हील रहा था,,, कजरी एकदम से मदहोश हो चुकी थी उसके दोनों हाथ कब उसके ब्लाउज के ऊपर पहुंच गए उसे खुद नहीं पता चला और वह उसे हल्के हल्के दबा रही थी,,,कजरी के साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था जैसा कि आज हो रहा था और वह भी अपने ही बेटे के कल्पना में जो कि वह खुद सपने में भी कभी नहीं चाहती थी लेकिन उसकी सोच के विरुद्ध सब कुछ वैसा ही हो रहा था जैसा कि एक कामुक काम भावना से ग्रस्त औरत के साथ होता है,,,

रघु इस बात से अनजान की कमरे में उसकी मां बिस्तर पर सो रही है सो नहीं रही थी बल्कि कल्पनाओं की दुनिया में अपने आप को लेकर उड़ रही थी,, रघु प्रताप सिंह से हुई बातचीत को अपनी मां से बताने के लिए उसे ढूंढता हुआ अंदर के कमरे तक आ गया और जैसे ही दरवाजे पर पहुंचा वह अपनी मां को बिस्तर पर लेटा हुआ देखकर एकदम से दंग रह गया उसके होश उड़ गए,,उसकी मां बेसुध होकर बिस्तर पर पीठ के बल लेटी हुई थी उसकी दोनों टांगें घुटनों से मुड़ी हुई थी,, जिससे उसकी साड़ी जांघों तक आ चुकी थी और जब रघु की नजर अपनी मां की दोनों टांगों के बीच पहुंची तो वह एकदम से मदहोश हो गया,,रघु को साफ-साफ अपनी मां की बुर नजर आ रही थी जिस पर हल्के हल्के घुंघराले रेशमी बाल थे,,। रघु अपनी मां की बुर देखकर एकदम मस्त हो गया रघु को तो ऐसा ही लग रहा था कि उसकी मां सो रही है ,,, लेकिन उसे क्या पता था कि उसकी मां उसके ख्यालों में मदहोश होकर कल्पना मैं खोई हुई है जिसकी वजह से उत्तेजित अवस्था में उसकी बुर गरम रोटी की तरफ फूल चुकी थी,,, और तभी रघु को अपनी मां की बुर फुली हुई नजर आ रही थी,,,,, इसलिए तो रघू जितनी भी वह बुर को देख चुका था,,ऊन सबमे सबसे खूबसूरत बुर उसे अपनी मां की लग रही थी,,, रघु तो अपनी मां की दोनों टांगों के बीच देखता ही रह गया,,, रघु के लिए तो उसकी मां की दोनों टांगों के बीच का वह अंग दुनिया का सबसे खूबसूरत अंग था,,, साड़ी के अंदर दोनों टांगों के बीच छुपा हुआ दुनिया का बेहतरीन खजाना जो कि आज अनजाने में ही बेपर्दा होकर अपनी चमक बिखेर रहा था,,।
अपनी मां की बुर पर नजर पड़ते ही रघू के लंड को खड़ा होने में पल भर की भी देरी नहीं लगी,,,, होश खो बैठा था रघु अपनी बहन की चुदाई करके जिस तरह के अद्भुत आनंद को महसूस किया था इससे उसे साफ पता चल गया था कि परिवार के सदस्य में किसी भी औरत की चुदाई करने का सुख दुनिया के हर एक सुख से सबसे बेहतरीन सुख है,,,इसके लिए उसके मन में यह ख्याल चल रहा था कि जब बहन को चोदने में इतना मजा आया तो जब वह अपनी मां को चोदेगा तो उसे कितना मजा आएगा,,,,,, यही सोच कर रघु को इस समय अपनी मां के ऊपर चढ़ने की इच्छा हो रही थी,,, लेकिन उसे डर भी लग रहा था,,,कजरी एकदम मदहोश होकर अपने बेटे के ख्याल में खोई हुई थी उसे तो इस बात का आभास तक नहीं था कि दरवाजे पर उसका बेटा खड़ा होकर उसकी दोनों टांगों के बीच उसकी बुर को झांक रहा है,,,,,,, रघु का दिल जोरों से धड़क रहा था रघू अपनी मां की बुर को अपने हाथ से छूना चाहता था स्पर्श करना चाहता था,,, उसे अपनी मुट्ठी में लेकर दबाना चाहता था उसके रस को पूरी तरह से नीचोड डालना चाहता था,, जैसा कि वह अपनी बहन की बुर के साथ करता था,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था उत्सुकता के साथ साथ डर की परत उसके मन पर चढ़ी हुई थी,,, उसे अपनी मां से डर लगता था क्योंकि एक बार वह उसका गुस्सा देख चुका था जब वह उसे पेशाब करते हुए प्यासी आंखों से देख रहा था,,,लेकिन आज उसकी मां नींद में थी ऐसा हुआ सोच रहा था जबकि उसकी मां पूरी तरह से मदहोशी के आलम में मस्त हो चुकी थी अगर इस समय रघु खटिया पर सोई हुई अपनी मां की दोनों टांगें फैला कर अपना लंड उसकी बुर में डाल भी देता तो शायद उसकी मां उसे मना नहीं कर पाती बल्कि गर्मजोशी के साथ अपने बेटे को अपनी बाहों में लेकर उसके लंड का अपनी बुर के अंदर स्वागत करती,,, लेकिन यह तो मन की बात थी भला मन की बात कौन समझ सकता था अगर रघू समझ पाता तो अब तक अपनी मां पर चढ़ गया होता,,, कजरी के दोनों हाथ अभी भी उसके दोनों दशहरी आम पर थे लेकिन इस समय वह अपनी चूचियों को दबा नहीं रही थी बल्कि वैसे ही अपनी हथेली उस पर रखे हुए थी,,,,बेहद मनमोहक मादक दृश्य देखकर रघु का पैजामा पूरी तरह से तनकर तंबू की शक्ल धारण कर चुका था,,,,,, इस समय निश्चित तौर पर अगर कजरी की आंख खुली होती तो अपनी दोनों बाहें फैलाकर अपने बेटे को अपने ऊपर बुला ली होती,,,,

रघु का दिल जोरों से धड़क रहा था वह अपनी मां के बेहद करीब जाना चाहता था अपनी खुली आंखों से अपनी मां की खुली बुर को देखना चाहता था उसके मनमोहक आकार को उसकी रचना को अपनी आंखों में बसा लेना चाहता था,,, लेकिन अपनी मां के पास जाने से उसे डर लग रहा था,,, फिर भी मादकता के एहसास तले वह अपने कदम आगे बढ़ाने से अपने आप को रोक नहीं सका वह अपनी मां के बेहद करीब पहुंच गया था लेकिन कजरी एकदम बेशुध थी मदहोश थी अपने बेटे के मदमस्त बलवंत मर्दाना ताकत से भरे हुए लंड के ख्याल में पूरी तरह से खोई हुई थी,,,इसलिए उसे इस बात का अहसास तक नहीं हुआ कि जिसके ख्याल में वह अपने आप को पूरी तरह से डूबो ली है वह रघु उसके बेहद करीब खड़ा होकर उसकी दोनों टांगों के बीच के छिपे हुए खजाने को देखकर मस्त हो रहा है,,, रघु के लिए यह पहला मौका था जब वह अपनी मां की बुर को बेहद करीब से देख रहा था हालांकि इससे पहले भी अपनी मां को पेशाब करते हुए देख चुका था लेकिन उस समय उसकी बुर ऊसे ठीक तरह से नजर नहीं आई थी,,,,,।उत्तेजना के मारे बार-बार उसका गला सूख रहा था और वह अपने थुक से अपने गले को गिला कर रहा था,,,। रघु के मन में उसी तरह की हलचल थी अपनी मां की बुर को देखकर जिस तरह की हलचल उसकी बहन सालु के मन में थी उसके खड़े लंड को नंगा देखकर,,,,,,लेकिन सालु की तरह वह हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था सालु तो हिम्मत करके उसके लंड को अपने हाथ में लेकरउसे छूकर उसकी गर्माहट को अपने अंदर मैसेज करके उसे हिलाने तक का सुख प्राप्त कर चुकी थी लेकिन तेरे को इतनी हिम्मत दिखा पाने में असमर्थ साबित हो रहा था हालांकि उसका दिल जोरोंसे धड़क रहा था मन मचल रहा था अपनी मां की बुर को अपनी उंगलियों से अपनी हथेली से स्पर्श करने के लिए उसकी गर्माहट को अपने अंदर महसूस करने के लिए,,,,, रघु गहरी गहरी सांसे ले रहा था और यही स्थिति कजरी की भी थी अपने अंदर अजीब सी हलचल को महसूस करके वह पूरी तरह से मदहोश हो चुकी थी,,,, रघु हैरान था इस बात से कि उसकी मां की बुर से पानी की बूंदें टपक रही थी जिससे उसकी बुर के नीचे वाला हिस्सा गीला होता जा रहा था रघु को यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसकी मां नींद में होने के बावजूद भी उसकी बुर गीली क्यों हो रही है,,,, बुर से निकल रही मदन रस बुंद की शक्ल में मोती की तरह चमक रही थी,,,, जो कि बेहद कीमती और अनमोल थी,,,
अपनी मां की बुर से निकल रहे मदनरस को देखकर रघु का मन और ज्यादा तड़प उठा जिस तरह से वह हलवाई की बीवी रामू की मां और अपनी बड़ी बहन की बुर को अपने होठों से लगाकर अपनी जीभ से उसके मदन रस को चाट कर तृप्त हुआ था उसी तरह से वह अपनी मां की बुर को भी चाटना चाहता था,,,, लेकिन इतनी हिम्मत उसमें बिल्कुल भी नहीं थी तभी वह हिम्मत जुटाकर अपनी मां की पूर्व को अपने हाथों से अपनी उंगलियों से स्पर्श करने की सोच कर अपना हाथ धीरे-धीरे अपनी मां की दोनों टांगों के बीच बढ़ाने लगा लेकिन उसका हाथ बुरी तरह से कांप रहा था पूरा शरीर थरथर कांप रहा था,,, धीरे धीरे रघु कहा था अपनी मां की बुर के बेहद करीब पहुंच गया इतना करीब कि उसकी बुर और उसके हाथ के बीच केवल तीन चार अंगुल का ही फासला रह गया,, रघु की आंखें पूरी तरह से उत्तेजना से लाल हो चुकी थी सांस बड़ी तेजी से चल रही थी,,, रघु की नजर अपनी मां की ऊपर नीचे हो रही चूचियों पर भी बराबर टिकी हुई थी छाती के ऊपर से उसके साड़ी का पल्लू एक तरफ हो चुका था जिससे कजरी की बड़ी बड़ी चूची और उसके बीच की दरार रघू को साफ नजर आ रही थी,,। रघु को अपनी उंगलियों में कंपन साफ महसूस हो रही थी,,, रघु अपनी मां की बुर को उंगलियों से स्पर्श करने ही वाला था कि,, कजरी मदहोशी के आलम में ही कल्पना में सराबोर होकर,,, अपने हाथ को जरा सी हरकत दी की रघु एकदम से घबरा कर खड़ा हो गया और तुरंत,,, बिना रुके घर के बाहर निकल गया वह पीछे पलट कर देखा भी नहीं कि उसकी मां जाग गई है या नींद में अपना हाथ हीलाई थी,,,लेकिन जैसे ही रघु घर के बाहर निकलने लगा वैसे ही कजरी की आंख खुल गई और वह अपने बेटे रघु को घर से बाहर निकल कर जाते हुए देख ली,,, रघु को और अपनी स्थिति को देखते ही वह शर्म से पानी पानी हो गई उसे भी साफ पता चल रहा था किसकी दोनों टांगे फैली हुई थी और उसकी साड़ी जांघों तक चढ़ी हुई थी ,, जिससे दोनों टांगों के बीच की उसकी बुर साफ नजर आ रही थी,,, कजरी के तो होश उड़ गए उसे समझते देर नहीं लगी कि रघु ने उसे इस स्थिति में देख लिया,,, वो शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी वह नहीं चाहती थी कि उसका बेटा उसे इस हाल में देखें,,,, लेकिन जो नहीं होना था वह हो चुका था रघु अपनी आंखों से अपनी मां की रसीली कचोरी जैसी फूली हुई बुर को देख लिया था और अपनी मां की मद मस्त मोटी बुर को देखकर समझ गया था कि, उसकी मां की बुर हलवाई की बीवी रामू की मां और उसकी खुद की बड़ी बहन की बुर से कहीं ज्यादा खूबसूरत और रसीली थी,,,
कजरी के होश उड़े हुए थे उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसका बेटा उसे इस हाल में देखकर क्या सोच रहा होगा,,, वह एकदम से परेशान थी,,, कि तभी उसे अपने बेटे के खड़े लंड के बारे में यादआ गया जिसके बारे में कल्पना करके ही वह इतना मदहोश हो चुकी थी कि उसके बेटे के कमरे में आने की आहट भी ऊसे नहीं मिली,,, जो कुछ भी हुआ कुछ देर पहले उसे चिंतित किए जा रहा था लेकिन अब उसके होठों पर मुस्कुराहट आने लगी थी यह सोच कर कि उसके बेटे ने उसकी दोनों टांगों के बीच की छुपी हुई उसकी बुर को देख लिया होगा,,, और उसे देखने के बाद जरूर ऊतेजीत हो गया होगा,,,,,क्योंकि पहले भी वह अपने बेटे की प्यासी नजरों को भाग चुकी थी तभी तो उसे डांट फटकार लगाई थी जब वह उसे पेशाब करते हुए प्यासी नजरों से देखता हुआ पाई थी,,,उसे पक्का यकीन था कि आज जरूर उसके बेटे ने उसकी बुर को देखकर मस्त हो गया होगा पजामे में उसका लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया होगा जो कि कुछ देर पहले गुसल खाने में अपनी पूरी औकात में एकदम नंगा था,,,,, यह सोचकर ही वह मस्त हुए जा रही थी,,,, ना जाने क्यों उसका दिल रघू के पास जाने को कर रहा था,,, लेकिन वह अपने मन पर काबू कर ले गई,,, क्योंकि अच्छी तरह से जानती थी कि इस समय कमरे से बाहर निकल कर रखो के पास जाना ठीक नहीं था क्योंकि उसका बेटा उसे गहरी नींद में सोया हुआ जानकर ही उसके पास आया था और अगर अभी वह बाहर चली गई तो उसके बेटे को शक हो जाएगा कि उसकी मां सो नहीं रही थी बल्कि सोने का नाटक कर रही थी जो कि वह नाटक नहीं बल्कि खुद अपने ही बेटे के मदमस्त खड़े लंड की कल्पना में पूरी तरह से मस्त होकर मदहोश हो चुकी थी,,,,,, कजरी फिर से अपनी आंखों को बंद करके रघु के ख्यालों में खो गई,,,,

दूसरी तरफ रघु एकदम उत्तेजित हो चुका था वह तो यह भी भूल चुका था कि वह क्या बताने के लिए घर पर आया था वह अपनी बहन को ढूंढता हुआ घर के पीछे गाय भैंस बकरी ओ को बांधने की जगह पर चला गया,,,, जहां पर उसकी बहन जानवरों को चारा पानी दे रही थी,,,,उसके बदन में पूरी तरह से वासना की गर्मी चढ़ चुकी थी उसे निकालना बेहद जरूरी था और इस समय सिर्फ उसकी बड़ी बहन ही ऊसकी गर्मी को शांत कर सकती थी,,,। रघु के पजामे में तंबू बना हुआ था,,,,अपनी मां की रसीली बुर को देखकर उसका लंड पूरी तरह से टनटनाकर खड़ा हो गया था,,,रघु अपने चारों तरफ नजर घुमाकर पूरी तसल्ली कर लिया कि कोई दूसरा वहां है तो नहीं और तसल्ली कर लेने के बाद अपनी बहन की तरफ आगे बढ़ा जोकि झुक झुक कर जानवरों को चारा दे रही थी और झुकने की वजह से उसकी मदमस्त बड़ी बड़ी गांड कुछ ज्यादा ही उभर कर बाहर को निकली हुई थी यह देख कर रघु के वासना का पारा और ज्यादा चढ गया और पीछे से जाकर अपनी बहन को अपनी बाहों में भर लिया,,,

आहहहहह,,,,,(अपनी गांड के बीचो बीच रघु के लंड की चुभन को महसूस करते हैं एकदम से चौक कर उछल पड़ी,,लेकिन रखो पूरी तरह से अपनी बहन को काबू करने में सक्षम था इसलिए वह तुरंत उसकी बाहों को पकड़कर अपनी तरफ दबोच लिया,,, जब सालु को पता चला कि उसे अपनी बाहों में भरने वाला उसका छोटा भाई है तो जाकर उसका मन शांत हुआ और वह थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली,,,) पागल हो गया क्या माने अगर देख लिया तो,,,

मां नहीं देखेगी दीदी वह तो गहरी नींद में अपने कमरे में सो रही है,,,,(रघु अपनी बहन की गांड पर पजामे के ऊपर से अपने लंड को दबाता हुआ बोला)

आहहहह,,, छोडना चुभ रहा है,,,,,


क्या चुभ रहा है दीदी,,,,,(रघु अपनी बहन की दोनों बांहे पकड़ कर उसे अपने लंड से सटाए हुए बोला,,,)

छोड़ना रे तुझे मालूम है फिर भी तेरे शरीर में चुभने वाला अंग और क्या हो सकता है,,,,


मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं दीदी,,,,

तेरा लंड,,,,(सालु एक पल की भी देर किए बिना फट से बोली,,)

आहहहह दीदी तुम्हारे मुंह से सुनने में कितना मजा आता है,,,(रघु सलवार के ऊपर से ही अपनी बहन को चोदना शुरू कर दिया अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया शालू के बदन में भी सुरूर चढने लगा था,,, वह चारों तरफ नजरें दौड़ा कर देख रही थी कि कहीं कोई वहां आ ना जाए उसे अपने भाई की हरकत बेहद रोमांचकारी लग रही थी उसे मजा आ रहा था पर अपने भाई के लंड को सलवार के ऊपर से अपनी गांड पर महसूस करते ही उसकी गुलाबी बुर पानी छोड़ना शुरू कर दी थी,,,)

तेरा तो आज दिन में ही खड़ा हो गया है रे,,,

क्या करूं तेरी तुम्हें देखता हूं तो खड़ा हो जाता है,,,


पहले भी ऐसे ही खड़ा होता था क्या,,,?

नहीं दीदी पहले तो नहीं होता था लेकिन जब से तुमने मेरे लिए अपनी दोनों टांगे खोली हो तब से तुम्हें देखते ही मेरा खड़ा हो जाता है,,,, बस इतना कर दो दीदी ,,,,,अपनी सलवार की डोरी खोल दो ताकि मैं अपने खड़े लंड को तुम्हारी बुर में डालकर तुम्हारी चुदाई कर सकूं,,,


पागल हो गया क्या यहां पर कोई देख लिया तो,,,,(शालू का भी मन करने लगा था इसलिए वह इधर उधर नजर घुमाकर कोई अच्छी सी जगह ढूंढ रही थी,,,)

कोई नहीं देखेगा दीदी मुझसे रहा नहीं जा रहा है बस अपनी सलवार खोल दो,,,(इतना कहते हुए रघु खुद अपने दोनों हाथ उसके सलवार के नाडे पर रखकर उसे खोलने की कोशिश करने लगा तो सालु ऊसे रोकते हुए बोली,,)

रुक रुक चल वहां चलते हैं,,,,(शालू छोटी सी घाश फुश की बनी झोपड़ी की तरफ इशारा करते हुए बोली,,, जिसमें भैंस बांधी जाती थी,,, रघु को भी वही जगह ठीक लगी,,,, और शालू रखो को लेकर एक छोटी सी झोपड़ी में घुस गई जिसके आगे लकड़ी का दरवाजा भी बना हुआ था उसे बंद करके दोनों झोपड़ी में घुस गए,,,,एक तरफ भेंस बंधी हुई थी और दूसरी तरफ सूखी हुई खास का ढेर पड़ा हुआ था,,, शालू घास के ढेर के पास खड़ी होकर अपनी सलवार के नाड़े को खोलने लगी,,,, रघु अपने पजामे को उतार करअपने लंड को पकड़ कर ही जा रहा था यह देखकर शालू का दिल जोर से धड़क रहा था वह जल्दी से अपनी सलवार उतार कर एक तरफ रख दी और सूखी हुई घास के ढेर पर पीठ के बल लेटते हुए अपनी दोनों टांगों को फैला दी,,,। वह भी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी वह अपनी हथेली से अपनी गुलाबी बुर को रगडते हुए बोली,,,।

सससहहहहहह७ ,,,,,, आजा मेरे प्यारे भैया अपनी दीदी की बुर में अपना लंड डाल दे,,,,,(शालू एकदम से मदहोश होते हुए बोली और रघु अपनी बहन की मादक अदा देख अगर हमसे उतावला हो गया अपनी बहन की बुर में लंड डालने के लिए,,, और अपने लंड को हाथ में पकड़ कर हिलाते हुए अपनी बहन के दोनों टांगों के बीच में आ गया और पहले झटके में ही अपना पूरा लंड अपनी बहन की बुर की गहराई में उतारता हुआ बोला,,,)

ले मेरी प्यारी दीदी अपने भैया का लंड,,(फिर क्या था दोनों एकदम मस्त हो गए कुछ ही देर में रघू की कमर पड़ी रफ्तार से ऊपर नीचे होने लगी,,, वह बड़ी तेजी से अपनी बहन को चोद रहा था और शालू एकदम मस्त हुए जा रही थी,,, उसके मुंह से गरमा गरम सिसकारी की आवाज निकल रही थी जिसको सुनकर उस झोपड़ी में बंधी भैंस भी उन दोनों की तरफ ही देख रही थी,,,, रघू के ऊपर तो वासना का भूत सवार था अपनी मां की बुर जो उसने देख लिया था इसलिए वह अपनी बहन को आज कुछ ज्यादा ही बेरहमी से चोद रहा था जिसका एहसास शालू को भी अच्छी तरह से हो रहा था लेकिन उसे तो और ज्यादा मजा आ रहा था क्योंकि औरतों को मजा तभी आता है जब मर्द बेरहम हो कर उसकी चुदाई करता है उसकी ओखली में मुसल डालकर जोर-जोर से कुटता है,, तकरीबन 15:20 मिनट की जबरदस्त चुदाई के बाद रघु अपनी बहन को अपनी बाहों में कस लिया और जोर जोर से अपना लंड उसकी बुर में डालना शुरू कर दिया,,, शालू भी मस्त होकर अपने छोटे भाई को अपनी बाहों में ले ली,,, झोपड़ी में बंधी भैंस बड़ी उत्सुकता से उन दोनों की क्रियाकलाप को देख रही थी,,, आखिरकार दोनों की जवानी का गरम लावा फूट पड़ा दोनों एक दूसरे को अपने काम रस में भिगोने लगे,,,, अपना पूरा गरम लावा अपनी बहन की बुर में डालने के बाद रघु हांफता हुआ उसके बगल में घास के ढेर पर ही ढेर हो गया,,, थोड़ी देर में अपनी सांसो को दुरुस्त करने के बाद वह अपनी बहन से बोला,,,।

दीदी मुझे दो-तीन दिन के लिए बाहर जाना होगा,,,।

बाहर कहां जाना होगा मैं कुछ समझी नहीं,,,,(शालू हैरान होते हुए बोली)

वह अपने प्रताप सिंह जी है ना जमीदार,,, उनकी बीवी को लेकर उनके मायके जाना है,,,,


लेकिन तू कैसे,,, जाएगा,,,,


तांगा लेकर और कैसे,,,,,,


तांगा लेकर मैं अभी भी नहीं समझ पा रही हूं तु क्या कह रहा है,,,(इतना कहते हुए शालू खड़ी हुई और अपनी सरकार को अपनी दोनों टांगों में बारी-बारी से डालकर उसे पहनने लगी,,,)

प्रताप सिंह जी की बीवी अपने मायके जाना चाहती हैं और उन्हें लेकर मुझे जाना होगा,,,,(रघु भी खड़ा होकर अपना पजामा पहने लगा)

लेकिन तू कैसे जाएगा उनके साथ,,,

तांगा लेकर और कैसे,,,
(शालू एकदम हैरान थी वह रघु की बात को समझ नहीं पा रही थी इसलिए वह फिर से बोली,,,)

तो दूसरा कोई लेकर चला जाएगा तु क्यों जाएगा,,(चालू अपने सलवार के नाड़े को बांधते हुए बोली,,,)

दीदी तांगा तो मैं ही चलाऊंगा ना,,,,।

क्या तू तांगा चलाएगा तुझे चलाना आता है,,,

तभी तो प्रताप सिंह जी ने मुझे बुलाया है वरना मुझे क्यों बुलाते,,,,

(अपने भाई की यह बात सुनकर शालू खुश थी लेकिन परेशान की थी कि दो-तीन दिन के लिए वह बाहर जा रहा है तब तक उसका क्या होगा,,,)

लेकिन मैं कैसे रहूंगी तेरे बिना अब तो मेरी आदत पड़ गई है जब तक तेरा लंड अपनी बुर में नहीं लेती तब तक तो मुझे नींद भी नहीं आती,,,

मैं भी तो परेशान हूं लेकिन क्या करूं जाना पड़ेगा और वैसे प्रताप सिंह जी मुझे तांगा चलाने के एवज में पैसे भी देंगे,,, देखो दीदी मैं तो भूल ही गया समय बहुत गुजर गया हूं मुझे तो तुरंत जाना था मैं अभी जा रहा हूं तुम मां को सब बात बता देना मैं जल्द ही आ जाऊंगा,,,,(इतना कहने के साथ ही रघु चला गया,, और शालू उसे जाता हुआ देखती रह गई,,)
Behtareen update
 

Devang

Member
160
187
43
पूरी तैयारी हो चुकी थी,,,रघु का मन तो जाने को बिल्कुल भी नहीं हो रहा था,,,संभोग का अद्भुत सुख जो ऊसे रोज मिल रहा था और वह भी अपनी ही बड़ी जवान बहन से,,,भला ऐसा सुख छोड़कर जाने की किस की इच्छा करती लेकिन क्या करें मजबूर था प्रताप सिंह की बात जो काट नहीं सकता था,,,। प्रताप सिंह अपनी बीवी को तांगे में बैठने में मदद करके उन्हें ठीक से तांगे में बैठा दिया,,, और रघु को आराम से ले जाने की हिदायत देकर रुखसत कर दिया,,,। रघु बेमन से घोड़े को हांकते हुए तांगा आगे बढ़ा दिया,,
थोड़ी ही देर में तांगा गांव से बाहर निकल गया कच्ची कच्ची पगडंडियों से होती हुई उबड़ खाबड़ पथरीले रास्ते से गुजरते हुए तांगा आगे बढ़ता चला जा रहा था चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी मौसम बड़ा खुशनुमा था रघु का मन ऐसे में और ज्यादा मचल रहा था उसे बार-बार अपनी बहन याद आ रही थी और खास करके आज सुबह में ही जो अपनी मां की बुर के दर्शन किए थे उस दृश्य को याद करके वह पूरी तरह से उत्तेजित हुआ जा रहा था,,,अपनी मां की बुर की फूली हुई गुलाबी पत्तियों को याद करके उसके तन बदन में उत्तेजना की आग सुलग रही थी,,,।वह मैंने यही सोच रहा था कि उसकी मां की पूरी जितनी भी पर देखा था या उन्हें चोद कर उसका सुख लिया था उससे कहीं गुना अत्यधिक लाजवाब और हसीन बुर थी उसकी मां की,,,।
उसी के ख्यालों में खोया हुआ रघू तांगा धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी अपना घूंघट हटा कर चारों तरफ फैली हसी वादियो में खोई हुई थी बहुत कम मौका मिलताथा उसे घर से बाहर निकलने का,,, इसलिए उसे यह पेड़ पौधे खेत खलियान ठंडी हवाएं बहुत अच्छी लग रही थी,,,। दूर दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था और आता भी कैसे गांव में किसी को इतना काम थोड़ी होता है कि काम से बाहर रोज निकलकर घूमने जाए,, तभी प्रताप सिंह की बीवी हसीन वादियों को देखते हुए खुश होते हुए बोली,,,।


कितना खूबसूरत नजारा है,,,, यह हसीन वादियां चारों तरफ हरियाली ही हरियाली और दूर-दूर बड़े बड़े पहाड़ कितना खूबसूरत नजर आ रहे हैं,,,,।
(रघु के कानों में प्रताप सिंह की बीवी की आवाज पडते ही रघु के तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी एकदम मिश्री सी आवाज थी प्रताप सिंह की बीवी की और आवाज को सुनकर रघु एकदम से चौक दिया था क्योंकि आवाज कोई ज्यादा उम्र की औरत की नहीं बल्कि कम उम्र की औरत की थी,,,, उसकी आवाज रघू के कानों में शहद घोल रहा था,,,। उससे रहा नहीं गया और वह तुरंत पलट कर पीछे तांगे में देखा तो देखता ही रह गया,,, उसके सोचने के मुताबिक उससे उल्टा नजर आ रहा था स्वच्छता प्रताप सिंह जी की बीवी होगी तो कोई उम्रदराज औरत होगी लेकिन तांगे में तो चांद का टुकड़ा बैठा हुआ था,,, बेहद खूबसूरत बेहद हसीन नजर आ रही थी नजर क्या आ रही थी वह खूबसूरत थी ही उम्र भी कुछ 32 या 35 के करीब होगी,,, प्रताप सिंह की बीवी का ध्यान रखो पर बिल्कुल भी नहीं था वह तो अपने चारों तरफ फैली हुई हरियाली को देख रही थी,,, यह देख कर रघु मन ही मन एकदम खुश हो गया और खुश होता हुआ बोला,,,।

लगता है मालकिन बहुत दिनों बाद घर से बाहर निकल रही हैं,,,।

हां तुम ठीक कह रहे हो,,,, वैसे नाम क्या है तुम्हारा,,,,

रघु,,,, रघु नाम है मेरा,,,,

रघु,,,,, बड़ा प्यारा नाम है,,,,(वह नजरों को उसी तरह से चारों तरफ घुमाते हुए बोली,,,,)

वैसे रघू जब तुम्हें बुलाने के लिए आदमी गए हुए थे तो मुझे ऐसा ही लगा था कि कोई उम्र दराज आदमी होगा जो कि तांगा चलाता होगा लेकिन तुम्हें देखकर तो मैं एक दम हेरान हो गई,,,


ऐसा क्यों मालकिन,,,,(रघु घोड़े को हांकते हुए बोला)


अरे मैं तो यही सोच रही थी कि मुझे मेरे मायके ले जाने वाला कोई उम्र दराज आदमी होगा बूढ़ा सा बुजुर्ग लेकिन तुम तो एकदम जवान हो,,,, यह देख कर मुझे अच्छा लगा कि चलो कोई जवान लड़का तो साथ में है जिससे मैं तो बातें कर सकती हूं,,,,।

दो बातें क्यों मालकिन ढेर सारी बातें करो,,,

(जवाब में प्रताप सिंह की बीवी हंस दी,,, और हंसते हुए बोली)

तुम बातें बहुत अच्छी करते हो,, रघु,,,,
(उसके मुंह से अपना नाम सुनकर रघू के तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी,,,, रघु को अब यह सफर अच्छा लगने लगा था धीरे धीरे प्रताप सिंह की बीवी के साथ बातें करते हुए उसे सब कुछ अच्छा लगने लगा था और अब ना तो उसे अपनी बहन याद आ रही थी और ना अपनी मां की दोनों टांगों के बीच की खूबसूरत जगह जिसके अंदर कुछ घंटे पहले वह समा जाने के लिए आतुर हुए जा रहा था,,,,)

एक बात कहूं मालकिन बुरा तो नहीं मानोगी,,,।

नहीं,,,,,, मै भला क्यों बुरा मानने लगी,,।


आपसे मिलने से पहले मुझे कुछ और लग रहा था,,,,।
(इतना कह कर रघु खामोश हो गया चौकी उसके मन में डर था कि आकर मालकिन बुरा मान गई तो लेकिन उसे फिर खामोश देखकर वह बोली।)

क्या लग रहा था तुम्हें,,,,,?

मुझे लग रहा था कि जिसे तांगे में बैठा कर ले जाना है और कोई उम्र वाली औरत होगी,,,‌‌
(वह रघु की बातें सुन कर मुस्कुरा रही थी क्योंकि वह जानती थी कि जो कुछ भी उसके मन में चल रहा है वह किसी के भी मन में शंका पैदा कर सकता था,,, इसलिए रघु की बात सुनते ही वह बोली,,,)

अभी क्या लग रहा है,,,,।


सच कहूं तो आपको देखकर मेरे तो होश उड़ गए,,,

भला ऐसा क्यों,,,,?


सच कहूं मालकीन,,,(रघु घोड़े को हांकते हुए बोला,,)

नहीं तो क्या झूठ कहोगे,,,


नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है मुझे आपसे डर लगता है,,,,

डर किस बात का,,,,

आप इतने बड़े जमीदार की बीवी है कहीं बुरा मान गई तो मेरी तो हड्डी पसली एक करवा देंगी,,,

(रघु की बात सुनते ही वह खिल खिलाकर जोर से हंस पड़ी रघु पीछे मुड़कर उसको मुस्कुराता हुआ देख रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी मुस्कुराते हुए बड़ी खूबसूरत लग रही थी और रघु उसकी खूबसूरती में पूरी तरह से खोता चला जा रहा था,,, औरतों की संगत पाकर रघू इतना तो समझ ही गया था कि औरतों का दिल कैसे जीता जाता है,,, और वही तिकड़म वह प्रताप सिंह की बीवी पर आजमा रहा था,,,क्योंकि जिस तरह का उसके साथ हो रहा था किस्मत पूरी तरह से उस पर मेहरबान थी एक के बाद एक खूबसूरत औरतें उसकी झोली में आकर गिर जा रही थी,, जिस किसी की भी चाहता था वह उसकी दोनों टांगें खोलकर ले ले रहा था वह चाहे हलवाई की बीवी हो या रामू की मां या फिर अपनी खुद की बड़ी बहन हो,,,, आकर्षण तो उसे अपनी मां के ऊपर भी हो रहा था लेकिन अभी ऐसा कोई मौका हाथ नहीं रखा था कि वह अपनी मां की दोनों टांगों को अपने हाथों से खेोल सके,,,, लेकिन ना जाने क्यों उसे पूरा विश्वास था कि प्रताप सिंह की बीवी को चोदने का सुख ऊसे जरूर प्राप्त होगा,,,, और अपनी तरफ से वह पूरी कोशिश कर रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी को हंसता हुआ देखकर वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)

आप हंस क्यों रही हो,,,,

तुम बात ही कुछ ऐसी करते हो रघू कि मुझे हंसी आ गई,,,


अब लो मैं ऐसा क्या कह दिया कि जिस पर आप इतनी जोर जोर से हंसने लगी,,, लेकिन एक बात कहूं मालकिन आप हंसते हुए बहुत खूबसूरत लगती हो,,,,
(रघु की यह बात सुनते ही पल भर में ही प्रताप सिंह की बीवी के चेहरे से हंसी गायब हो गई एकदम सन्न रह गई क्योंकि रघु उसकी तारीफ कर रहा था उसकी खूबसूरती की तारीफ कर रहा था यह सुनकर उसको बेहद अच्छा लग रहा था लेकिन इस जमीदार की बीवी होने के नाते वह अजीब सा महसूस कर रही थी,,,, वह अपने मन में सोच रही थी कि वह भी इतनी खूबसूरत शब्दों के लायक थी लेकिन प्रताप सिंह की बीवी बनने के बाद उसके सारे सपने चकनाचूर हो गए एक तो सबसे पहले अपने से बेहद बड़े उम्र वाले आदमी से उसकी शादी हो गई मतलब की प्रताप सिंह से जो कि वह कभी नहीं चाहती थी एक औरत के जो अरमान होते हैं अपनी शादी को लेकर वैसे ही अरमान उसके भी थे लेकिन मां बाप की गरीबी और प्रताप सिंह के हट के कारण उसे अपने सपनों का गला बैठना पड़ा और ना चाहते हुए भी अपने मां-बाप की खुशी के खातिर प्रताप सिंह की बीवी बन कर उसके घर आना पड़ा जो कि उसे कभी मंजूर नहीं था,,,क्योंकि यह बात वह भी अच्छी तरह से जानती थी कि प्रताप सिंह की वह पहली नहीं बल्कि दूसरी बीवी बन कर घर पर आई थी पहली बीवी का देहांत हो चुका था जिससे उसे एक संतान थी जिसका विवाह लाला की लड़की के साथ हुआ था,,,,,, तभी जैसे किसी ने उसकी तंद्रा भंग की हो उसे नींद से जगाया हो इस तरह से रघु उसे होश में लाते हुए बोला,,,)

क्या हुआ मालकिन आप बुरा मान गई क्या इसीलिए मैं कुछ भी नहीं कह रहा था,,,

नहीं नहीं रघु मैं बुरा नहीं मानी हूं मुझे तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं लग रहा है,,,

तो आप इस तरह से खामोश क्यों हो गई हंसते-हंसते रुक क्यों गई,,,,


कुछ याद आ गया था,,,,


क्या याद आ गया था मालकिन,,,,


अरे कुछ नहीं यह बहुत लंबी कहानी है हां तो तू क्या कह रहा था,,,,? (प्रताप सिंह की बीवी मुख्य मुद्दे पर आते हुए बोली,, रघु भी अपनी बात कहने के लिए उतावला था बस थोड़ा सा नानू को कहकर प्रताप सिंह की बीवी के मन में उमड़ रहे भावनाओं को भांपना चाहता था,,,। और उसकी जिज्ञासा को देखकर रघू की भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी अपने मन की बात कहने के लिए,,, इसलिए वह बोला,,,।)

अब देखो मार्केट बुरा मत मानना मेरे मन में जो कुछ भी था वह में बता रहा हूं,,,।


हां तो बताओ गोल-गोल क्यों घुमा रहे हो,,,(इतना कहने के साथ ही प्रताप सिंह की बीवी मोहक अदा से चारों तरफ नजरें घुमा कर खूबसूरत नजारे का लुफ्त उठाने लगी)

गोल गोल कहां घुमा रहा हूं वहां के मैं तो बस यह कह रहा हूं कि आपको देख कर मुझे यकीन ही नहीं होता कि मालिक की बीवी है,,,
(रघु की यह बात सुनकर फिर से उसके होठों पर मुस्कान तैरने लगी लेकिन वहां अपनी मुस्कुराहट को काबू में करके जानबूझकर रघु की तरफ गुस्से से देखने लगी क्योंकि अपनी बातें कहते हुए उसकी तरफ ही देख रहा था रघु प्रताप सिंह की बीवी को गुस्से में देख कर एकदम से घबरा गया और वह माफी मांगते हुए बोला,,,)

मैं माफी चाहता हूं मैं लेकिन मैं आपसे पहले भी कह रहा था कि बुरा मत मानना,,, आपका गुस्सा देखकर मुझे डर लग रहा है,,,,।

तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं मालिक की बीवी नहीं लगती,,,

उम्र से मालकिन,,,, मालिक तो उम्र दराज लेकिन आप तो एकदम जवान है,,, मेरा मतलब है कि एकदम खूबसूरत,,,,


चलो मैं इतनी भी खूबसूरत नहीं हूं,,, जो मेरी इस तरह से तारीफ कर रहे हो,,,,


नहीं नहीं मैं सच कह रहा हूं मालकिन,,, आपको देखकर तो आईना भी शर्मा जाए,,,
(रघु की बातें उसके सीधे दिल में उतर रही थी उसे बेहद आनंद की प्राप्ति करा रही थी रघु की बातें जिंदगी में पहली बार किसी ने उसकी खूबसूरती की तारीफ किया था हालांकि वह बला की खूबसूरत थी यह बात वही अच्छी तरह से जानती थी लेकिन किस्मत के आगे वह एकदम मजबूर हो चुकी थी बस सारा दिन घर में ही अपनी जिंदगी का हर एक खुशनुमा पल जो कि अब उसके लिए किसी सजा की तरह हो चुका था वह गुजार रही थी लेकिन आज खुली हवा में सांस लेकर उसे आजादी का अनुभव हो रहा था उसे लगने लगा था कि असली जिंदगी इसी तरह की होनी चाहिए ना जाने क्यों रखो की तरफ उसका आकर्षण बढ़ने लगा था उसकी चिकनी चुपड़ी बातें बेहद मोहक लग रही थी,,,)

क्या तुम्हें में इतनी ज्यादा खूबसूरत लग रही हो,,,।

मुझे क्या मालूम तुम तो इस पृथ्वी के हर एक इंसान को खूबसूरत लगोगी पंछी को जानवर को पेड़ पौधों को इस हरे-भरे जंगल को ठंडी हवाओं को इस खुशनुमा मौसम को,, वह पागल ही होगा मालकिन जिसे आप खूबसूरत नहीं लगोगी,,,,


बाप रे तुम तो एकदम कवि की तरह बातें करते हो,,,
( रघु की बातें प्रताप सिंह की बीवी को बहुत अच्छी लग रही थी उसने आज तक इस तरह की मीठी बातें करने वाला लड़का नहीं देखी थी उसे भी रघु से बातें करने में मजा आ रहा था धीरे-धीरे सफर कट रहा था सूरज सर पर पहुंच चुका था,,, धूप एकदम तिलमिला रही थी,,,, तभी रघु को सामने नदी बहती हुई नजर आई जिसमें पानी तो बहुत कम था लेकिन उस पार जाने के लिए नदी में से ही जाना था,,, एक पल के लिए रघू घबरा गया उसे समझ में नहीं आ रहा था कि नदी पार कैसे किया जाएगा क्योंकि आज तक वह इस जगह पर कभी नहीं आया था,,,।



क्रमशः,,,,,
Behtareen update
 

Devang

Member
160
187
43
रघु हैरान था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार नदी पार होगी कैसे वह तांगे को वही रोक कर तांगे से नीचे उतर गया,,, और अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर विचार मग्न हो गया,,,,वह अपने मन में यही सोच रहा था कि यह तो बड़ी मुसीबत आ गई है इस बारे में तो प्रताप सिंह जी ने कुछ भी नहीं बताया था कि रास्ते में नदी पड़ेगी और वैसे भी रघु के लिए यह रास्ता यह गांव यह नदी बिल्कुल अनजान थी वह पहली बार अपने गांव से बाहर निकला था,,,। वह नदी के पानी को उसकी लंबाई उसकी चौड़ाई और उसकी गहराई को अपने मन में ही नाप रहा था लेकिन कहते हैं ना कि नदी में उतरे बिना उसकी गहराई का पता नहीं चलता वैसे ही मन में लाख विचार आने पर भी पानी की गहराई का सही अंदाजा अपने मन में नहीं लगा पा रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी तांगे में बैठे-बैठे रघु की हरकत को देख रही थी उसे समझ में आ गया था कि वह नदी देखकर परेशान हो चुका है लेकिन वह देखना चाहती थी कि वह करता क्या है,,,। धीरे-धीरे रघु के प्रति आकर्षित होने लगी थी रघु बेहद जवान हट्टा कट्टा और कसरती बदन का लड़का था,,,,,, उसकी बातें उसे अच्छी लगने लगी थी उसका मासूम सा मुखड़ा उसे प्यारा लगने लगा था,,, रघु उसके बेटे की उम्र का था लेकिन ना जाने क्यों रघू के प्रति उसके मन में बेटे वाली चाहत महसूस नहीं हो रही थी इस सफर के दौरान वह रघू को अपना हमदर्द समझने लगी थी,,, जिससे वह अपने मन की बात कह सकती थी,,, वह रघु को बड़े गौर से देख रही थी,,,, जब उसे इस बात का एहसास हो गया कि रघू कुछ समझ नहीं पा रहा है तो वह खुद,,, तांगे पर से नीचे उतर गई,,, और धीरे धीरे चलते हुए रघु के बेहद करीब पहुंच गई,,, जैसे ही रघु की नजर प्रताप सिंह की बीवी पर पड़ी तो वह उसकी खूबसूरती से एकदम हैरान हो गया था,,, पहले तो वह प्रताप सिंह की बीवी को तांगे में बैठी हुई ही देखा था,,, लेकिन उसे उसके आदम कद वजूद को देखकर रघु पूरी तरह से उसके ऊपर मोहित हो गया। साड़ी के ऊपर से ही उसकी मदमस्त गोलाईया उसे साफ नजर आ रही थी,,,। जो कि उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था एक पल के लिए प्रताप सिंह की बीवी रघु की नजरों को अपने गोल गोल गोलाईयों पर धंसती हुई महसूस करके एकदम से गनगना गई,,, और मैं तुरंत अपने एक हाथ से अपनी चुचियों के नीचे वाले साड़ी के पल्लू को पकड़कर मुट्ठी में भींच ली,,,, उसके इस हरकत पर नजर पड़ते ही रघु को इस बात का एहसास हुआ कि वह अपनी नजरों को उसकी चूचियों पर गड़ाए हुए है इसलिए घबराकर हडबडाते हुए बोला,,,।

अअअअअ,,,आप,,,, तांगे से उतरकर यहां क्यों आई है,,। जाईए आप बैठ जाईए,,,,

तुम परेशान नजर आ रहे थे इसलिए मैं तांगे से उतरकर तुम्हारे पास आई हूं,,,, अच्छी तरह से समझ रही हूं कि तुम्हें समझ में नहीं आ रहा है कि नदी पार कैसे करेंगे,,,।

आप सच कह रही हैं मालकिन,,,,(इतना कहते हुए रघु नीचे झुक कर कंकड़ उठाया और उसे जोर से नदी के पानी में फेंक दिया यह उसका गुस्सा दिखाने का तरीका था जो कि वह नदी पर दिखा रहा था रघु की परेशानी को प्रताप सिंह की बीवी अच्छी तरह से समझ रही थी इसलिए मुस्कुराते हुए बोली,,,।)


लगता है रघु तुम यहां पहली बार आए हो,,,,।


आप ठीक कह रही है मालकिन,, मैं आज पहली बार अपने गांव से बाहर निकला हूं इसलिए किसी बात का किसी स्थान का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं है,,,


मतलब कि बिल्कुल अनजान तांगे वाले हो,,,,(इतना कहकर वह खिलखिला कर हंसने लगी उसकी हंसी देखकर रघु के होंठों पर मुस्कुराहट आ गई,,, और वह बोला।)

आप हंसते हुए कितनी खूबसूरत लगती हैं,,,।

अब एक ही बात कितनी बार कहोगे रघू,,,,(वह शरमाते हुए बोली)

जितनी बार आप हसेंगी,,,,


मैं तो सारा दिन हंसते रहूंगी तो क्या तुम इसी तरह से मेरी तारीफ करते रहोगे,,,।

जी हां मालकिन मैं आपकी तारीफ करता रहूंगा सारा दिन क्या सारी जिंदगी क्योंकि आप सच में हंसते हुए बहुत खूबसूरत लगती हो,,,,
(रघु की बात सुनकर वह फिर से खिलखिला कर हंसने लगी,,, रघू की बातें उसे बहुत अच्छी लग रही थी,,,, और वह हंसते-हंसते एकटक रघु के मासूम चेहरे को देखने लगी,,, और उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखते हुए बोली,,,)

तुम बहुत अच्छे हो रघू,,, एकदम मासूम एकदम निश्चल जिसके मन में बिल्कुल भी कपट नहीं है,,,, सच कहूं तो तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो,,,,,(वह भावना मैं बहकर बोलने को तो बोल गई लेकिन अपने कहे कहे बातों का मतलब समझते ही वह शर्मा कर एकदम से बात को बदलते हुए बोली,,)

अच्छा रघु मैं तुम्हें बताती हूं नदी पार करने का अच्छा और बहुत ही सरल रास्ता,,,(इतना कहकर वह दो चार कदम आगे चलकर रुक गई और अपने हाथों की उंगली का इशारा नदी की तरफ करके बोलने लगी रघु उसके पीछे खड़ा था तेज हवा चल रही थी जिसकी वजह से उसकी साड़ी एकदम से लगाकर उसके नितंबों से चिपक जा रही थी पहली बार रघु की नजर उसकी गोलाकार और घेरावदार नितंबों पर पड़ी,,, और सुबह प्रताप सिंह की बीवी की चूतड़ों को देखता ही रहेगा,,, एकदम गोलाकार एकदम सटीक ऐसा लग रहा था कि जैसे भगवान ने अपने हाथों से उसके नितंबों को आकार दिए हो,,, एक औरत को खूबसूरत बनाने में उसके नितंबों का बहुत ही बड़ा योगदान होता है और इस समय प्रताप सिंह की बीवी के नितंब उसकी खूबसूरती को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे थे,,, रघु के मुंह में पानी आ गया था प्रताप सिंह की बीवी की गांड को देखकर,,,,,, वह उसके नितंबों को जी भर कर देख लेना चाहता था तभी प्रताप सिंह की बीपी पीछे की तरफ नजर करके रघू को अपने पास बुलाने के लिए जैसे ही अपनी नजर पीछे घूमाई तो रखो कि नजर को अपने नितंबों के नीचे के घेराव पर टिकी हुई देखकर एकदम से सन्न रह गई,,,,रघु की नजर को अपनी गांड के ऊपर महसूस करते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी,,, लेकिन फिर भी वह अपने इस हलचल को अपने चेहरे पर नहीं आने दी और बड़े ही स्वाभाविक और औपचारिक ढंग से,, रघु को अपने पास बुलाते हुए बोली,,,।

इधर आओ रघु मैं तुम्हें बताती हूं,,,,
(उसकी आवाज कानों में पडते ही रघु कि जैसे संतरा टूटी हो और वह तुरंत लगभग भागते हुए उसके करीब पहुंच गया,, और हडबडाते हुए बोला,,,)

जजजज,,जी ,,,, मालकीन,,,,

देखो रघु तुम पहली बार आए हो लेकिन मैं यहां बहुत बार आ चुकी हूं मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि तांगा कौन सी जगह से बड़े आराम से गुजर जाता है,,,, अगर हम यहां से सामने से जाएंगे तो बहुत लंबा जाना होगा और पानी भी गहरा मिलेगा जिसमें से तांगा आसानी से नहीं निकल पाएगा,,,।

तो क्या करना होगा मालकिन,,,,


अरे यही तो बता रही हूं,,,, वह जगह देख रहे हो,,,(बाएं हाथ को उठाकर उंगली से इशारा करते हुए वह थोड़ी दूर की जगह दिखाने लगी और ऐसा करने से रघु को उसके ब्लाउज के आकार का सही नाम पता चल रहा था क्योंकि वह उसके बाएं खड़ा था जैसे ही वह हाथ उठा करउंगली से इशारा करने लगी वैसे ही रघू की नजर उसके ब्लाउज पर गई जो कि बेहद कसी हुई थी और काफी बड़ी थी,,, कसी हुई ब्लाउज में कैद उसकी चूचियों को देख कर उसे उसके आकार का अंदाजा लग गया था,,,, पर उसके सही आकार का पता चलते ही रघु के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,,, तभी प्रताप सिंह की बीवी की आवाज उसके कानों में पड़ी,,,)
अगर रघु हम वहां से नदी पार करेंगे तो बड़े आराम से और कम पानी से तांगा गुजर जाएगा और हम आराम से उस पार पहुंच जाएंगे,,,,
(उसकी बात सुनते ही रघु खुश होता हुआ बोला,,,)

क्या बात है मालकिन,,, आप तो हमारा दिशा-निर्देश कर दी,,,, अब आप जल्दी से चलिए और तांगे पर बैठ जाईए,,,
(इतना कहकर रघु वहीं खड़ा होकर हाथ से इशारा करके उसे आगे बढ़ने के लिए बोला तो वह मुस्कुरा कर धीरे से अपने कदम आगे बढ़ा दी उसके गोरे गोरे पैर देखकर रघु के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,, वह धीरे-धीरे बड़े संभाल कर अपने कदम रख रही थी,,,नदी का किनारा होने से वहां बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए थे जिस पर से वह इधर-उधर बड़े संभाल कर पर रखते हुए आगे बढ़ रही थी और उसकी हर एक चाल हर एक कदम के साथ-साथ उसकी गोल गोल गांड मैं बेहतरीन लचक आ रही थी जिसे देखकर रघु अपनी आंखें सेंक रहा था,,, बेहद कसा हुआ बदन होने के साथ-साथ उसने अपनी साड़ी को कसके अपनी कमर से बात रखी थी जिसकी वजह से उसके नितंबों की रूपरेखा बेहद सटीक नजर आ रही थी,,, उसकी हर एक चाल रघु के दिल पर छुरियां चला रही थी,,। देखते ही देखते वह तांगे के पास पहुंच गई,,, और तांगे पर चढ़कर बैठने के लिए अपना एक पैर उठाकर लकड़ी पर रखी तो उसका पिछवाड़ा कुछ ज्यादा ही उभर कर बाहर नजर आने लगा यह देख कर रघु के पजामे में हरकत होने लगी मन तो उसका कर रहा था कि तांगे पर चढ़ते समय ही उसको पीछे से पकड़ कर उसकी साड़ी को कमर तक उठाकर उसकी गुलाबी बुर के अंदर अपना मोटा लंड डालकर उसकी चुदाई कर दे लेकिन ऐसा करना रघु के लिए उचित नहीं था,,, छोटू के तन बदन में उत्तेजना की गर्मी फैलाकर वह तांगे पर आराम से बैठ गई थी,,, रघु भी अपना मन मसोस कर तांगे पर बैठ गया और घोड़े को हांक दिया,, घोड़ा धीरे-धीरे अपनी दिशा में आगे बढ़ने लगा प्रताप सिंह की बीवी के तन बदन में भी हलचल होना शुरू हो गई थी क्योंकि वह रघु की नजरों को थोड़ा बहुत समझ में लगी थी जो कि उसके ही बदन के उन अंगों पर घूम रहा था जिसे देखकर अक्सर मर्द अपने होशो हवास खो देते हैं और औरतों का वही अंग ऊनकी उत्तेजना का केंद्र बिंदु भी रहता है,,,,
थोड़ी ही देर में रघु का तांगा उस जगह पर आकर खड़ा हो गया था जिस जगह का निर्देश वह दूर से खड़ी होकर कर रही थी रघु पहली बार नदी पार करने जा रहा था मन में थोड़ा डर भी था पैसा नहीं था कि उसे तैरना नहीं आता था उसे करना भी आता था लेकिन उसके मन में यह डर था कि तांगा को वह सही सलामत नदी के उस पार ले जा पाएगा कि नहीं ,,,सारा दामोदार उसकी सूझबूझ और घोड़े के दम पर था,,, प्रताप सिंह की बीवी बड़े आराम से आने पर बैठी हुई थी दूर दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था एकदम वीरान जगह थी,,, हवा बड़ी तेज चल रही थी,,,। नदी के पानी को अच्छी तरह से भापकर रघु घोड़े को पानी में हांक दिया,,, घोड़ा अपने पैर आगे बढ़ाकर पानी में उतरने लगा,,,, गर्मी का समय था इसलिए ठंडे पानी में पैर पडते ही घोड़े को राहत महसूस होने लगी,,, घोड़ा धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा,,,

निकल तो जाएगा ना मालकिन,,,

बिल्कुल रघु आराम से निकल जाएगा,,, मैं पहले भी इधर से आई गई हूं इसलिए मुझे मालूम है,,,,


कहीं बीच में पानी तो ज्यादा नहीं होगा,,,

नहीं नहीं बिल्कुल नहीं अगर होगा भी तो घुटनों तक होगा इससे ज्यादा नहीं है,,,


तो ठीक है मालकिन,,,, वैसे मालकिन यह जगह बेहद खूबसूरत है,,,। मुझे तो यह जगह बेहद खूबसूरत और पसंद भी आ रही है,,,।

मुझे भी रघू,,, नदी का किनारा ठंडी हवाएं चारों तरफ घने घने वृक्ष पेड़ पौधे,,,, इंसान को इससे ज्यादा और क्या चाहिए,,,,।


सच कह रही हो मालकिन,,, मैं तो आपका शुक्रगुजार हूं कि आपकी वजह से मुझे भी एक खूबसूरत हसीन नजारा देखने को मिल रहा है,,,,(घोड़ा धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था घोड़े को भी मालूम था कि नदी में कैसे चला जाता है इसलिए बड़े आराम से बचाकर चल रहा था,,, देखते ही देखते नदी में आधा रास्ता तय हो चुका था,,, रघु अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला,,,,)

वैसे मालकिन एक बात पूछूं,,,,,

इसमें पूछने वाली क्या बात है तुम मुझसे कुछ भी पूछ सकते हो,,,,


ठीक है मालकिन मैं यह पूछना चाह रहा था कि आप इतनी खूबसूरत है मुझे तो ऐसा लगता है कि जैसे सर कैसे उतरी हुई कोई अप्सरा ईस तांगे में आकर बैठ गई हो,,,,


स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा,,,,,(इतना कहकर बा जोर-जोर से हंसने लगी,,,,)

देखी ना मालकिन आप हंसते हुए कितनी खूबसूरत लगती हैं,,,,।

फिर वही,,,,(रघु की तरफ शरारत भरी निगाहों से देखते हुए बोली,,,)

कहा था ना मालकिन जब जब आप हंसोगी तब तब मैं आपकी तारीफ करूंगा,,,,,


ठीक है रघू तारीफ करो मुझे भी अच्छा लगता है जब तुम मेरी तारीफ करते हो लेकिन सीधे स्वर्ग की अप्सरा क्या मैं तुम्हें स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लगती हूं क्या मैं इतनी खूबसूरत हुंं,,,।


हां मालकिन तुम बहुत खूबसूरत हो,, स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा ही लगती हो,,,


तो क्या तुम अप्सराओं को देखे हो,,,,

देखा तो नहीं हूं मालकीन लेकिन दावे के साथ कह सकता हूं कि आपसे ज्यादा खूबसूरत नहीं होगी,,,
(रघु की बातें प्रताप सिंह की बीवी के मन को प्रसन्न किए जा रहे थे जिंदगी में पहली बार किसी ने उसकी इतनी तारीफ किया था,,,) अच्छा मालकिनआप इतनी खूबसूरत है तो आपके माता पिता ने आपका नाम भी बहुत खूबसूरत ही रखा होगा क्या मैं आपका नाम जान सकता हूं,,,,।

हां यह बात तो है मेरे माता पिता ने मेरा नाम बहुत खूबसूरत रखा था,,,,


क्या नाम है आपका,,,,

मेरा नाम,,,,( वह अपना नाम बताती ईससे पहले ही तांगे का पहिया बड़े से पत्थर से टकरा गया और तांगा वहीं का वहीं रुक गया,,,, प्रताप सिंह की बीवी गिरते-गिरते बची,,,।)

बाप रे अभी तो मैं पानी में गिरी होती,,,।

लगता है मालकिन पहिया के नीचे बड़ा पत्थर आ गया है,,,,


हां लगता तो ऐसा ही है,,,,।

आप बैठी रहिए में धक्का देकर निकालने की कोशिश करता हूं,,,,(इतना कह कर रघु तांगे से नीचे पानी में उतर गया,,,, पानी घुटनों से लगभग लगभग ज्यादा ही था उसका पूरा पैजामा घुटना तक भीग गया,,,, प्रताप सिंह की बीवी की नजर उसके पजामे पर पड़ी तो वह बोली,,,)

रघु तुम्हारा तो पजामा गीला हो गया,,,।

तो क्या हुआ मालकिन सूख जाएगा,,,,(इतना कहकर वो टांगे को पीछे से धक्का लगाने लगा,,, प्रताप सिंह की बीवी वही पीछे ही बैठी हुई थी और बड़े गौर से रघु को देख रही थी,,, रघु पूरा दम लगा दे रहा था,,,,प्रताप सिंह की बीवी बड़े गौर से उसके चेहरे को देख रही थी बड़ा ही मासूम चेहरा था रघू का,,,, रघु के ताकत लगाने पर तांगे का पहिया थोड़ा सा आगे को सर का,,, आगे से घोड़ा भी बाहर निकलने की सोच रहा था,,, इसलिए वह भी पूरी ताकत लगा कर आगे की तरफ बढ़ रहा था लेकिन पत्थर को ज्यादा ही बड़ा था इसलिए पहीया थोड़ा सा ऊपर की तरफ खसकने के साथ ही नीचे आ जा रहा था,,, रघु भी समझ गया कि उसके अकेले से यह काम होने वाला नहीं है,,, लेकिन प्रताप सिंह की बीवी से यह कहने में उसे शर्म महसूस हो रही थी कि वह क्या सोचेगी उससे एक पहिया नहीं सरक रहा था,,,,लेकिन प्रताप सिंह की बीवी तांगे पर बैठे-बैठे रघु की हालत को देखकर वह भी समझ गई थी कि रघु से यह काम अकेले होने वाला नहीं है क्योंकि पहिया बुरी तरह फस गया था इसलिए वह रघु से बोली,,,।

रघु मैं भी आकर तुम्हारी मदद करती हूं तभी तांगा बाहर निकल पाएगा,,,

नहीं नहीं मालकिन,,, यह गजब मत करो,,, मालिक को पता चल गया तो मेरी खैर नहीं कि मैंने आपसे तांगे को धक्का लगवाया है,,,,

अरे ऐसा क्यों कहते हो रघु मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि यह काम तुम्हारी जगह अगर कोई दूसरा भी होता तो उस से अकेले नहीं हो पाता,,,, तुम चिंता मत करो किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा,,,, लो मेरा हाथ पकड़ो और मुझे उतरने में मदद करो,,,(इतना कहकर अपना हाथ आगे बढ़ा दी रघु को शायद इसी पल का इंतजार था वो झट से प्रताप सिंह की बीवी का हाथ पकड़ लिया नरम नरम हथेलियों का एहसास अपनी हथेली पर होते ही उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी पहली बार वह बेहद खूबसूरत औरत का हाथ अपने हाथ मे ले रहा था,, और वह भी इतने जमीदार की बीवी का पजामे में हलचल हो रही थी,,, प्रताप सिंह की बीवी तांगे से नीचे उतरने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी एक बार फिर से रघू उसे सचेत करते हुए बोला,,,।

मालकिन पानी में आपकी साड़ी भीग जाएगी,,,

तुम चिंता मत करो मैं संभाल लूंगी,,,(इतना कहकर वह तांगे पर से नीचे उतरने लगी)
Behtareen update
 

Devang

Member
160
187
43
तुम चिंता मत करो मैं संभाल लूंगी,,,(इतना कहकर वह तांगे पर से नीचे उतरने लगी,,यह बात वो भी अच्छी तरह से जानती थी कि नीचे उतरने पर उसकी साड़ी पानी में भीग जाएगी इसलिए वह एक हाथ से अपनी साड़ी को पकड़ कर नीचे उतरने लगी साड़ी को थोड़ा सा उठा रखी थी जिससे घुटनों के नीचे की टांगें दिखाई देने लगी एकदम गोरी गोरी मखमली टांगों को देखकर रघु की आंखों में चमक आने लगी,,,, रघु के हाथों में प्रताप सिंह की बीवी का हाथ था एकदम नरम नरम एकदम मुलायम ऐसा लग रहा था कि जैसे हाथ नहीं बल्कि रुई के ढेर को अपनी हथेली में दबा रखा हो,, धीरे धीरे वह एक एक करके अपने दोनों पैर को पानी में उतार दी देखते ही देखते पानी उसके घुटनों तक आ गया और वह अपनी साड़ी को घुटनों के ऊपर तक उठा दी,,, उसकी साड़ी घुटनों के ऊपर तक थी जिससे उसकी गोरी गोरी पिंडलिया नजर आ रही थी,, रघु के होश खोने लगे वह मदहोश होने लगा,,, जी मैं आ रहा था कि वह उसकी साड़ी को कमर तक उठाकर उसकी मदमस्त गोरी गोरी गांड के दर्शन करके अपने आप को धन्य कर ले,,, लेकिन यह ख्याल बस था हकीकत की शक्ल देने में शायद अभी बहुत वक्त था,,, प्रताप सिंह की बीवी तांगे के दूसरे छोर पर खड़े होकर एक हाथ से साड़ी पकड़ कर तांगे को धक्का लगाने लगी,, यह देख कर रघू भी जोर लगाने लगा,,,

दम लगा के हईशा ,,,,,,,दम लगा के हईशा,,,,,,(प्रताप सिंह की बीवी हंसते हुए यह बोलकर रघु की तरफ देख रही थी रघु भी उस के सुर में सुर मिलाता हुआ दम लगा के हईशा बोलने लगा,,, दोनों को मजा आ रहा था प्रताप सिंह की बीवी में ऐसा लग रहा था कि अभी भी बचपना बाकी था या तो वह अपने बचपन को ठीक तरह से बीता नहीं पाई थी,,,प्रताप सिंह की बीवी का इस तरह से दम लगा कर हईशा बोल बोल के तांगे को धक्का लगा ना बहुत अच्छा लग रहा था,,,,टांगे को धक्का लगाते हुए वह थोड़ा सा झुकी हुई थी जिसकी वजह से घुटनों के ऊपर तक उठी हुई साड़ी और बाहर की तरफ निकला हुआ उभार दार मदमस्त कर देने वाला अद्भुत नितंब रघु के होश उड़ा रहा था बार-बार उसकी नजर उसकी उठी हुई गांड पर चली जा रही थी और रघु जिस तरह से वो झुकी हुई थी,,,रघु टांगे को धक्का लगाते लगाते कल्पना कर रहा था कि वह उसी स्थिति में प्रताप सिंह की बीवी की चुदाई कर रहा है और उसके मुख से दम लगा के हईशा की जगह गरमा गरम सिसकारियों की आवाज गूंज रही है,,,, रघु कल्पना करके ही एकदम मस्त हो जा रहा था,,,, प्रताप सिंह की बीवी एक हाथ से अभी भी साड़ी को पकड़े हुए थी,,, कभी कभी जोर लगाने की अफरातफरी में उसकी साड़ी जांघों तक ऊपर उठ जाती थी जिसकी वजह से रघु को मोटी मोटी इतनी मांसल गोरी जांघें देख कर अपनी आंखें सेंकने का मौका मिल जा रहा था,,, रघु मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि जमीदार की बीवी अपनी साड़ी को कमर तक उठा दे ताकि वह उसकी गोलाकार सुडोल अद्भुत गांड के दर्शन कर सकें,,,।

जोर लगाओ रघु मेरी तरफ क्या देख रहे हो,,,,, तांगे को पानी से निकालना है कि नहीं,,,,

जजजज,,जी,,, मालकिन,,,,,( रघु एकदम से हडबडाते हुए बोला,,,प्रताप सिंह की बीवी को इतना तो समझ में आ ही गया था कि रघु उसे अपनी प्यासी नजरों से देख रहा है और उसका इस तरह से उसे देखना उसे अच्छा भी लग रहा था,,, वह इतना तो अच्छी तरह से जानती थी कि जिस तरह से अपनी साड़ी को ऊपर की तरफ उठाई हुई है उसकी मांसल सुडौल जांघें रघु को साफ दिखाई दे रही है,, और वही अंग रघु चोर नजरों से देख भी रहा था,,,। बार-बार वह भगवान से एक ही प्रार्थना कर रहा था कि काश ऊसकी साड़ी कमर तक उठ जाए और उसे वह दृश्य नजर आ जाए जिसके देखने की कामना वह अपने मन में बसाकर रखा है,,,, धीरे धीरे रघू के पजामे में तंबू बनना शुरू हो गया था,,,, प्रताप सिंह की बीवी की मादकता भरी जवानी उसके होश उड़ा रही थी,,, घोड़ा अपनी पूरी ताकत लगा रहा था साथ ही रखो और प्रताप सिंह की बीवी भी अपना-अपना जोर दिखा रहे थे,,, एकाएक घोड़े की ताकत और दोनों की कोशिश रंग लाई हो तांगे का पहिया पत्थर सुपर से ऊपर की तरफ होता हुआ आगे निकल गया,,,, घोड़ा बड़ी तेजी से आगे की तरफ निकला था इसलिए प्रताप सिंह की बीवी अपने आप को संभाल नहीं पाई और आगे की तरफ एकदम से झुक गई जिसकी वजह से अपने आप को संभालने के चक्कर में उसके हाथ में फंसी साड़ी ऊपर की तरफ उठ गई और ऐसा लग रहा था कि भगवान मेरा को की प्रार्थना सुन ली और उसकी आंखों के सामने वही तेरे से नजर आने लगा जिसकी काम लावा कर रहा था साड़ी के ऊपर उठ जाने की वजह से प्रताप सिंह की बीवी की नंगी गांड रघु की आंखों के सामने उजागर हो गई,, रघू तो देखता ही रह गया,,, रघु की आंखों के सामने प्रताप सिंह की बीवी की नंगी गांड थी जिसकी शायद वह कल्पना भी नहीं कर सकता था वह इतनी ज्यादा खूबसूरत है एकदम गोरी ,,, ऐसा लग रहा था कि गोरी गांड की शक्ल में चांद नीचे जमीन पर उतर आया हो,,,,प्रताप सिंह की बीवी की गांड देखते ही रघू के मुंह में पानी आ गया पजामे में हरकत होना शुरू हो गई,,,,, रघु से ज्यादा दृश्य अपनी आंखों से देख पाता इससे पहले ही अपने आप को ना संभाल पाने की स्थिति में प्रताप सिंह की बीवी पानी में गिर गई,,,, और एकदम से घबरा गया और जल्दी से आगे बढ़ा,,,प्रताप सिंह की बीवी को उठाने के लिए जैसे ही अपना हाथ आगे बढ़ाया प्रताप सिंह की बीवी पानी में पूरी तरह से भीग चुकी थी पानी ज्यादा नहीं था घुटनों जितना ही था इसलिए वह एक तरह से पानी में एकदम से बैठ गई थी,,, वह रघू को देखकर जोर-जोर से हंसने लगी,, रघू भी हंसने लगा प्रताप सिंह की बीवी का पूरा बदन पानी में डूबा हुआ था कि बलवा अपना चेहरा बाहर निकाल कर हंस रही थी और बड़ी खूबसूरत लग रही थी रघु तो उसे देखता ही रह गया,,,,।

आप हंस क्यों रही है मालकिन,,,,

बचपन का दिन याद आ गया रे रघू,,,,, इसी तरह से हम लोग नदी में खूब मजे किया करते थे कोई पाबंदी नहीं थी कोई रोक-टोक नहीं था,,,, लेकिन जैसे जैसे बड़े होने लगे वैसे कैसे मर्यादा की दीवार समाज के बंधन में बंधते चले गए,,, सब कुछ उम्र के साथ पीछे छूट गया रघू,,,,।

लेकिन मालकिन आज यहां पर किसी भी प्रकार का बंधन नहीं है कोई मर्यादा की दीवार में न समाज है ना लोग हैं कुछ नहीं है,,,, आप हंसती हो तो बहुत खूबसूरत लगती हो आज एक बार फिर से बचपन लौट आया है,,, क्यों ना आज जिस तरह से बचपन में मजे करती थी उसी तरह से जवानी में मजे कर लो,,,,
(रघु जानबूझकर जवानी शब्द पर जोर देते हुए बोला था और प्रताप सिंह की बीवी भी अपने लिए जवानी शब्द सुनकर एक पल के लिए रघु को एकटक देखने लगी थी क्योंकि यह बात वही अच्छी तरह से जानती थी कि,, भले ही वह एक उम्र दराज जमीदार के साथ ब्याही गई थी तो इसका मतलब यह नहीं था कि उसकी भी उम्र हो गई है वह अभी भी जवान थी और एकदम जवान जिसे देखकर गांव के बड़े बूढ़े सब लोग आहें भरते थे,,,, प्रताप सिंह की बीवी कुछ सोचने के बाद मुस्कुराते हुए खड़ी हुई,,,, और जैसे ही खड़ी हुई रघु के होश उड़ गए क्योंकि पानी में गिरने की वजह से अपने आप ही उसके ब्लाउज का ऊपर ही बटन खोल चुका था और उसकी मदमस्त लाजवाब चूचियां आधे से ज्यादा नजर आने लगी थी,,, एकदम गोरी और एकदम गोल मानो उसके ब्लाउज में चुचियों की जगह अलग से खरबूजा रख दिया गया हो,,,। और साड़ी की हालत भी अस्त व्यस्त थी पानी में भीग कर उसकी साड़ी एकदम बदन से चिपक गई थी और साड़ी का एक चोर उसके घुटनों के ऊपर चिपका हुआ था जिससे घुटनों के नीचे वह पूरी तरह से अपनी लाजवाब बेहतरीन नंगी टांगों को अपना आकार बक्स रहा था,, रघु का आश्चर्य से मुंह खुला का खुला रह गया था रघु को इस तरह से अपने आप को देखता हुआ पाकर उसके तन बदन में भी अजीब सी हलचल हो रही थी लेकिन वह अपने कपड़ों को यहां अपनी स्थिति को सुधारने के बजाय मुस्कुराकर एकाएक घूम गई और आगे पांव बढ़ाकर पानी में जाते हुए बोली,,,,

तुम ठीक कह रहे हो रघु,,, मुझे यहां पर खुल कर जी लेना चाहिए एक बार फिर से अपने बचपन को अपनी मस्ती के साथ जी लेना चाहिए,,,,(और ऐसा कहते हुए वह नदी में चलने लगी रघु उसके पीछे खड़ा उसे देख रहा था पानी में पूरी तरह से भीग जाने की वजह से उसकी साड़ी पूरी तरह से उसकी भारी-भरकम बड़ी बड़ी गांड से चिपक गई थी जिसकी वजह से उसकी गांड का हर एक कटाव और उसका उठाव बेहतरीन आकार लिए अपने आप को प्रदर्शित कर रहा था,,,। यह जबरदस्त अद्भुत और अतुल्य नजारे को देखकर रघु के मुंह के साथ-साथ उसके लंड में भी पानी आ रहा था,,,। जिस तरह से वह पानी में अपने पैरों को जोर देकर चल रही थी उससे उसके नितंबों में अजीब सी हलचल अद्भुत थिरकन हो रही थी,,, यह देख कर रघू के तन बदन में जवानी का शोला भड़कने लगा था,,। उसकी बड़ी-बड़ी मटकती हुई गांड को देखकर रघु यही सोच रहा था कि प्रताप सिंह ऐसी जवान बीवी से कितना मजा लेता होगा,,, लेकिन फिर उसके मन में ख्याल आया कि,, क्या प्रताप सिंह उम्र दराज होने के बावजूद अपनी जवानी से लबालब बीवी को संतुष्ट कर पाता होगा क्या उसकी बेलगाम जमाने को अपने लगाम से काबू में कर पाता होगा,,,, रघु का अपने सवाल का जवाब अच्छी तरह से मालूम था की प्रताप सिंह अपनी जवानी से भरपूर कम उम्र की बीवी को संतुष्ट नहीं कर पाता होगा,,,, क्योंकि उसके सामने दो औरतों के उदाहरण पहले से मौजूद थे एक हलवाई की बीवी और दूसरी रामू की मां दोनों के पति मौजूद है अगर वह लोग अपने पति से संतुष्ट होती तो उसके साथ कभी भी शारीरिक संबंध नहीं बनाती,,, गैर मर्द के साथ शारीरिक संबंध बनाने का सबसे अहम कारण नहीं होता है कि औरत अपने पति से संतुष्ट नहीं होती उनका पति उन्हें जुदाई का भरपूर साथ नहीं दे पाता तब जाकर मजबूर होकर औरत किसी गैर मर्द से संबंध बनाती है ताकि वह उसे संतुष्ट कर सके और रघु इस मामले में दोनों औरतों को उनकी सोच के मुताबिक ज्यादा ही संतुष्टि का एहसास करा चुका था इसलिए तो वह दोनों औरते रघू की दीवानी हो चुकी थी,,,,और प्रताप सिंह की बीवी को देखकर रघु को यही लग रहा था कि फल पूरी तरह से पक चुका है बस उसकी झोली में गिरने का इंतजार है,,, और यही देखना था कि कब उसकी झोली में गिरता है,,,। इसलिए तो रघु प्यासी नजरों से प्रताप सिंह की बीवी की मटकती हुई गांड देख रहा था जो कि बेहद मादक अदा से ईठलाती हुई पानी में आगे बढ़ रही थी,,, रघु कुछ बोल पाता इससे पहले ही वह फिर से पानी में पूरी तरह से जानबूझकर गिर गई और थोड़े से पानी में तैरने का आनंद लेने लगी चिलचिलाती गर्मी में नदी का पानी ठंडक दे रहा था।,,, पानी इतना ज्यादा नहीं था कि उसके पूरे बदन को अपनी आगोश में ले सके,,, इसलिए जब बहुत ही करने की कोशिश करती थी तो उसकी भारी-भरकम मदमस्त गांड पानी से भीगी हुई नदी के पानी से बाहर नजर आ जा रही थी,,,, यह देखकर रघु पजामे के ऊपर से ही अपने खड़े लंड को हाथ से मसल दे रहा था,। प्रताप सिंह की बीवी रघू की इस हरकत से अनजान नदी के पानी में नहाने का मजा लूट रही थी,,,, पानी में लेटे लेटे ही वह रघु की तरफ देख कर बोली,,।

रघु तुम भी पानी में नहाने का मजा ले लो इस चिलचिलाती धूप में नदी के पानी से नहाने का मजा ही कुछ और है,,,(वह इतना बोल ही रही थी कि तभी उसकी नजर रघु के पजामे की तरफ गई और पजामे में बने तंबू को देखकर हैरान रह गई,,, वह रघु के तंबू को देखती ही रह गई,,, इतना तो अंदाजा लगा ली थी कि जिस तरह का तंबू उसके पहचानोगे दिख रहा है पजामे के अंदर का हथियार उतना ही दमदार होगा,,,, वह अपने चेहरे पर आए हैंरानी के भाव को जल्द ही दूर करते हुए एकदम सहज भाव से बोली,,।)

तुम भी नहा लो रघु गर्मी बहुत है,,,,।
(रघु उसकी बात को टाल नहीं सका और जहां खड़ा था वहीं पानी में बैठकर ठंडे पानी का आनंद लेने लगा वह नहा रहा था प्रताप सिंह की बीवी भी नहा रही थी लेकिन अब उसका नहाने में मन नहीं लग रहा था क्योंकि जिस तरह का तंबू उसने रघु के पजामे में देखी थी,,वह कोई मामूली तंबू नहीं था यह इस बात का अंदाजा उसे लग चुका था इसलिए बार-बार उसका ध्यान रघु के तने हुए तंबू पर चला जा रहा था जो कि अब वह पानी में नहा रहा था,, प्रताप सिंह की बीवी के तन बदन में हलचला होना शुरु हो गई थी,,,,,, रघु बार-बार उसके तन बदन को प्यासी नजरों से देख ले रहा था और वह उसी तरह से पानी में तैरने की कोशिश कर रही थी उसकी भारी-भरकम नितंब पानी में डूबी हुई बहुत ही खूबसूरत लग रही थी,,, रघु का लंड शांत बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था,,, तकरीबन आधा घंटे तक नदी के पानी में नहाने के बाद प्रताप सिंह की बीवी खड़ी हुई और रघु की तरफ देख कर बोली,,,।

रघु बहुत हो गया अब चलो चलते हैं,,,,(इतना कहकर वो नदी के पानी से बाहर जाने लगी लेकिन रघु उसके ब्लाउज की तरफ देख चुका था जिसका दो बटन खोल चुका था अब आधे से भी ज्यादा चूचियां उसे निर्वस्त्र हालत में नजर आ रही थी उसकी कलाइयां साफ-साफ ब्लाउज के अंदर अपनी आभा बिखेर रहा था,,, रघु प्रताप सिंह की बीवी की दोनों गोलाइयो को पानी से एकदम गीला देखकर एकदम मस्त हो गया और यह बात उसे भी पता थी कि उसके ब्लाउज के दो बटन खुल चुके हैं लेकिन वहां उसे बंद करने की जरा भी सुध नहीं ले रही थी वह उसी तरह से नदी के पानी में चलती चली जा रही थी उसकी मटकती गांड रघु की हालत पतली किए जा रही थी,,,। वह भी पानी में से खड़ा हो गया था,,,,और साथ ही उसका लंड भी जो कि पैजामा पूरी तरह से पानी में भीग गया था और पानी में गीला होने की वजह से उसका पैजामा पूरी तरह से उसके लंड के आकार पर चिपक गया था,,, और पानी में भीगने की वजह से उसके लंड की त्वचा एकदम साफ नजर आ रही थी जो कि अब तक प्रताप सिंह की बीवी की नजर में नहीं आई थी लेकिन उसका मन उसे देखने का बहुत कर रहा था,,,, रघु भी पीछे-पीछे जाने लगा शायद अब साड़ी को पानी में भीगने से बचाने की जरूरत नहीं थी इसलिए प्रताप सिंह की बीवी बड़े आराम से पानी में चल रही थी उसकी साड़ी पानी की सतह पर गुब्बारे की तरह दे रहा था लेकिन नितंबों पर अभी भी उसका वस्त्र गीला होकर चिपका हुआ था जिससे उसके आकार में अद्भुत उठाव नजर आ रहा था,,,, यह नजारा देखकर रघु को डर लग रहा था कि उसका लंड कहीं बगावत पर ना उतर आए,,,, उसकी जगह कोई और औरत होती तो अब तक रघु उसे अपने नीचे ले लिया होता लेकिन इतने बड़े जमींदार की औरत होने के नाते रघु को थोड़ा डर भी लग रहा था उसके साथ कुछ ऐसा वैसा करने में क्योंकि उसकी कोई भी गलत हरकत उसकी जान ले सकती थी इसलिए अपने आप को संभाले हुए था वह चाहता था कि उसकी बीवी खुद अपने आप ही उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए,,, इसलिए तो वह अब उसकी आंखों के सामने से अपने तंबू को छिपाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रहा था क्योंकि वह जानता था अगर प्रताप सिंह की बीवी उसके पजामे में बने तंबू को देख ली तो जरूर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए लालायित हो जाएगी।

प्रताप सिंह की बीवी आगे आगे चल रही थी और रघु पीछे पीछे,,,, एक नारी होने के नाते इस तरह से एकांत में एक जवान लड़के की उपस्थिति में गीले बदन उसे अद्भुत और उत्तेजना का अनुभव रहा था उसका रोम रोम उत्तेजित हुए जा रहा था,,, वैसे भी उसे ही इस बात का आभास था कि उसे शारीरिक संतुष्टि नहीं प्राप्त हो पा रही है क्योंकि प्रताप सिंह की उम्र और ताकत इतनी नहीं थी कि वह एक जवान औरत को अपने मर्दाना ताकत से संपूर्ण संतुष्टि का अहसास करा सकें,,,, इसलिए तो रघु के आकर्षण में वह बंधती चली जा रही थी,,,, वह पानी में चलते हुए पीछे मुड़ कर रघू की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी,,,,लेकिन जैसे ही उसकी नजर एक बार फिर से उसके तंबू पर पड़ी तो वह हक्की बक्की रह गई क्योंकि इस बार पानी में भीग जाने की वजह से उसके पेजामे का कपड़ा पूरी तरह से उसके लंड से चिपक गया था जिससे लगभग लगभग पजामे के अंदर होने के बावजूद भी,,, रघू का लंड पुरी औकात में नजर आ रहा था,,, यह नजारा देखते ही प्रताप सिंह की बीवी की दोनों टांगों के बीच हलचल होना शुरू हो गई और मन ही मन रघु कै लंड के आकार की कल्पना करने लगी थी,,,। रघु जिस तरह से बड़ी मुश्किल से पानी में अपने पैरों को आगे बढ़ाते हुए आ रहा था और उसी कशमकश में पजामे के अंदर अपना जलवा बिखेर रहा उसका लंड ऊपर नीचे हो रहा था जिसे देख देख कर प्रताप सिंह की बीवी की हालत खराब हो रही थी,,,, अजीब सी हलचल उसके तन बदन को झकझोर कर रख दे रही थी वह बार-बार उसके तंबू पर से अपनी नजर हटा ले रही थी लेकिन उसे बार-बार देखने की लानत उसे मजबूर कर दे रही थी,,,,

देखते ही देखते दोनों नदी से बाहर आ गए,,,, गर्मी के महीने में चिलचिलाती धूप,,,, पूरे वातावरण को अपनी आगोश में ले लिया था गंगा नदी के बाहर हरी हरी घास में खड़ा था और घोड़ा उसी हरी हरी घास का मजा ले रहा था,,,, उसे भूख लगी हुई थी इसलिए वह हरी हरी घास खा रहा था,,,, जहां पर तांगा खड़ा था वहां पर विशाल वृक्ष था जिसकी छाया में तांगा खड़ा था और वह दोनों की उसी पेड के नीचे जाकर खड़े हो गए,,, दोनों के वस्त्र पूरी तरह से पानी से किले हो चुके थे जिन्हें बदलना आवश्यक था,,,, रघु जानबूझकर प्रताप सिंह की बीवी की आंखों के सामने ही अपना कुर्ता निकालने लगा और जैसे ही कुर्ता निकाल कर बताएंगे पर रखकर उसे सुखाने के लिए रख दिया उसकी नंगी चौड़ी छाती देख कर प्रताप सिंह की बीवी एक दम काम विह्वल हो गई,,,। रघु एकदम जवान था उसका गठीला और कसरती बदन किसी भी औरत के लिए आकर्षण बन जाता है इसलिए तो प्रताप सिंह की बीवी एकदम से उसकी तरफ आकर्षित हो गई उसका जवान पत्नी देखकर ना जाने क्यों उसके तन बदन में हलचल होने लगी खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में अजीब सी हलचल हो रही थी,,,अपने बदन में इस तरह की हलचल का मतलब वह अच्छी तरह से समझ रही थी वह हैरान थी कि उसे यह क्या हो रहा है कि वह अनजान लड़के के आकर्षण में खींचती चली जा रही है,,, वह अभी भी गीले कपड़ों में थी इसलिए रघू ही उसे बोला,,,

मालकिन कपड़े बदल लो वरना सर्दी लग जाएगी,,,

हुं,,,,,,(इतना कहकर वह टांगे में रखी हुई अपनी अटैची खोलने लगी,,, जिसमें वह अपने काम का सामान और कपड़े रखी हुई थी,,,, देखते ही देखते वह उसमें से अपनी साड़ी ब्लाउज और पेटीकोट निकालकर तांगे के दूसरे छोर पर चली गई,,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था रघू तांगे के ईस ओर खड़ा था और प्रताप सिंह की बीवी दूसरी ओर,,, रघु का भी दिल जोरों से धड़क रहा था,,, पहली बार कोई औरत उसके इतने करीब अपने सारे कपड़े उतार कर कपड़े बदल रही थी हालांकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि रखो किसी औरत को कपड़े बदलते देखा नहीं हो वह अपनी मां और अपनी बहन दोनों को कपड़े उतारते हुए बदलते हुए और उन्हें एकदम नग्न अवस्था में देख चुका है हालांकि वह अपनी बड़ी बहन की चुदाई भी करता आ रहा है,,,लेकिन आज पहली बार किसी बड़े घराने की औरत उसके बेहद समकक्ष खड़ी होकर अपने सारे कपड़े उतार कर कपड़े बदलने वाली थी,,, इसलिए उसके तन बदन में हलचल मची हुई थी,,,,
दूसरी तरफ प्रताप सिंह की बीवी एक-एक करके अपने सारे कपड़े उतारने लगी ब्लाउज के बटन ऊपर के दो तो पहले से ही खुल चुके थे बाकी के बटन को खोल कर अपना ब्लाउज उतारकर वही तांगे पर आगे रख दी,,, ठंडे पानी में भीग कर ऐसा लग रहा था कि उसकी दोनों चूचियां कुछ और ज्यादा बड़ी और कठोर हो गई है क्योंकि दोनों की हालत को देखकर ऐसा ही लग रहा था कि दोनों चूचियां बगावत पर उतर आई है,,, अपनी चुचियों पर नजर डालकर वह अपने पेटीकोट की डोरी के साथ-साथ अपनी गीली साड़ी भी खोलने लगी,,,उसे इतना तो पता था कि 1 मीटर जैसी दूरी पर पीछे खड़ा होकर रघु भीअपने कपड़े बदल रहा होगा जिस तरह की हलचल रघू अपने तन बदन में महसूस कर रहा था ठीक उसी तरह की हलचल प्रताप सिंह की बीवी अपने तन बदन में महसूस कर रही थी,,, एक अनजान जवान लड़के के बेहद करीब खड़ी होकर अपने सारे वस्त्र उतार कर,, नंगी हो रही थी,,, यह अनुभव यह एहसास उसके लिए बिल्कुल नया था जिंदगी में पहली बार किसी जवान लड़के के सामने,,, भले ही वह उसके सामने खड़ी होकर ना सही लेकिन उसके समकक्ष अपने सारे कपड़े उतार रही थी देखते ही देखते वह अपनी साड़ी को भी उतार फेंकी,,,, पेटिकोट की डोरी को खोलते हुए वह पेटीकोट को उतारने ही वाली थी कि दूसरे छोर पर खड़े रघू के हाथ से उसका गिला कपड़ा नीचे गिर गया और वह जैसे ही नीचे झुक कर उसे उठाने को चला वैसे ही प्रताप सिंह की बीवी दूसरे छोर पर अपने पेटीकोट की डोरी को खोल कर उसे अपनी कमर से आजाद कर दी और उसका पेटीकोट भरभरा कर उसके कदमों में जा गिरा,,, पर जैसे ही उसका पेटीकोट उसके कदमों में गिरा दूसरे छोर पर रघु नीचे झुक कर अपना कपड़ा उठाते हुए उसकी नजर दूसरे छोर पर खड़ी प्रताप सिंह की बीवी पर पड़ी जिसका पेटीकोट उसके कदमों में गिर गया था,,,,, दूसरे छोर के नजारे को देखते ही रघु का दिल जोरो से धड़कने लगा वह एकदम से मदहोश होने लगा क्योंकि उसे प्रताप सिंह की बीवी की मोटी चिकनी जांघों से लेकर के उसके पैर के अंगूठे तक साफ नजर आ रहा था एकदम गोरी,,, रघु की तो आंखें फटी की फटी रह गई एकदम से बावला हो गया था प्रताप सिंह की बीवी को चोदने की इच्छा उसके मन में एकदम प्रबलित हो रही थी,,, रघू उसके गोरे बदन को अपनी बाहों में लेना चाहता था,,,लेकिन एक बार उसके मन में था कि कहीं यह बात प्रताप सिंह को पता चल गई तो उसकी खैर नहीं,,,, उसकी मदमस्त मोटी मोटी गोरी टांगों से पानी की बूंदे मोती के दाने की तरह उसके बदन पर फिसल रही थी,,, प्रताप सिंह की बीवी को इस बात का अहसास तक नहीं था कि वह उसे नीचे झुककर उसकी नंगी चिकनी टांगों को देख रहा है,,,, कमर के नीचे का संपूर्ण बदन रघु की आंखों से नजर आ रहा था बस उसे इंतजार था कि वह उसकी तरफ मुंह करके खड़ी हो जाए ताकि उसकी दोनों टांगों के बीच की वो पतली दरार मद मस्त रसीली फूली हुई बुर ऊसे नजर आ जाए,,,, वह धड़कते दिल के साथ अपने लंड को अपने हाथ से पकड़ कर सामने के नजारे को देख रहा था,,, उसके लंड की नसों में खुन का दौरा इतनी तेज गति से हो रहा था कि मानो अभी उसके लंड की नसें फट जाएंगी,,,, प्रताप सिंह की बीवी अपनी मस्ती में इस बात से अनजान की कमर के नीचे का संपूर्ण नग्न बदन रखो अपनी आंखों से देख कर मस्त हो रहा है वह अपनी ही धुन मे अपने कपड़े बदल रही थी,,,, देखते ही देखते सबसे पहले वह अपना ब्लाउज उठाई और उसे पहनने लगी,,,,पर एक-एक करके अपने ब्लाउज के सारे बटन को बंद करके अपनी मदमस्त चूचियों को ब्लाउज की कैद में रख दी,,,, और जैसे ही अपनी अटैची में से पेटिकोट निकालने को हुई तो उसका पेटिकोट उसके हाथों से छुट कर नीचे गिर गया और वह तुरंत अपना पेटीकोट उठाने के लिए नीचे झुकी तो उसकी नजर सीधे जाकर रघु की नजरों से टकरा गई,,, रघु को अपनी तरफ देखता हुआ पाकर वह ऊतेजना के मारे एकदम से गनगना गई,,,,उसके तो होश उड़ गए जब उसे इस बात का एहसास हुआ कि रघु नीचे झुककर उसकी नंगे बदन को देख रहा है,,, वो झट से अपनी पेटीकोट उठाकरतुरंत अपना एक-एक करके दोनों पांव डालकर पेटिकोट को कमर तक उठा दी और जल्दी से उसकी डोरी को कस दी,,,, देखते ही देखते बेहद उत्तेजना से भरपूर मादक नजारे पर पर्दा पड़ गया और प्रताप सिंह की बीवी अपनी साड़ी पहन कर एक बार फिर से तैयार हो गई नहाने के बाद वह और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी,,,, रघू एकदम शर्मिंदा हो गया था वह प्रताप सिंह की बीवी से नजर नहीं मिला पा रहा था और प्रताप सिंह की बीवी ना जाने किस एहसास में पूरी तरह से मस्त होकर मंद मंद मुस्कुरा रही थी रघु का इस तरह से चोरी छिपे उसके नंगे बदन को देखना उसे अच्छा लग रहा था,,, रघु इधर-उधर देख रहा था वह प्रताप सिंह की बीवी से नजर नहीं मिला पा रहा था,,,

धूप बड़ी जोरों की लग रही थी साथ ही प्रताप सिंह की बीवी को भूख भी लगी हुई थी,,,, वह अच्छी सी जगह देखकर घास के ढेर में घर से लाया हुआ भोजन लेकर बैठ गई,,,, वह अकेले खाने वाली नहीं थी वह जानती थी कि रघू भी भूखा होगा,,, और रघु उससे नजरे चुरा रहा था,, प्रताप सिंह की बीवी उसे आवाज देकर बोली,,,।


अरे रघु सुन तो,,, आकर खाना खा ले मुझे मालूम है तुझे भी भूख लगी होगी,,,, जल्दी आ,,,

(रघु जो कि थोड़ी दूर जाकर ,,, नदी की तरफ मुंह करके खड़ा था प्रताप सिंह की बीवी की आवाज कानों में पड़ते ही,,, उसे एहसास हुआ कि उसे भी बड़े जोरों की भूख लगी है इसलिए वह सब कुछ भूल कर प्रताप सिंह की बीवी के पास आकर बैठ गया,,,हालांकि वह पजामा पहना हुआ था और पैजामा अभी भी गिला था और कमर के ऊपर कुर्ता नहीं पहना था जैसे उसकी नंगी चौड़ी छाती एकदम साफ नजर आ रही थी,,, और प्रताप सिंह की बीवी को रघु की नंगी चौड़ी छाती देखकर कुछ-कुछ हो रहा था,,,।)
Behtareen update
 

Devang

Member
160
187
43
रास्ते के लिए प्रताप सिंह की बीवी घर से खाना लेकर आई थी उसे मालूम था कि घर पहुंचते-पहुंचते काफी समय बीत जाएगा और खाने के लिए जरूरी सामान लेना आवश्यक है,,। दोनों पेड़ के घने छांव के नीचे बैठे हुए थे हरी हरी घास का ढेर नरम नरम गद्दे का एहसास करा रहा था,,,कुछ देर पहले जो नजारा रघु ने अपनी आंखों से देखा था उस नजारे को याद करके उसका रोम-रोम उत्तेजना से पुलकित हुए जा रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी रोटी और सब्जी रघु की तरफ बढ़ाते हुए खुद खाना शुरु कर दी रघु भी भूखा था वह भी खाना शुरु कर दिया लेकिन बार-बार उसकी नजर प्रताप सिंह की बीवी के ऊपर चली जा रही थी,,, प्रताप सिंह की बीवी के भी तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी क्योंकि वह इस बात से पूरी तरह से वाकिफ थी कि कुछ देर पहले रघु उसके नंगे बदन को पूरी तरह से देख लिया था,,, जिस तरह से वह लड़की होकर अपने कपड़े बदल रही थी उससे उसे ऐसा ही लग रहा था कि रघु उसकी मदमस्त गांड के साथ-साथ उसकी दोनों टांगों के बीच की रसीली बुर को भी देख लिया होगा जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं था,,, रघु केवल उसके नंगे बदन को देख पाया था उसके बेहतरीन और अनमोल खजाने पर उसकी नजर अब तक नहीं गई थी हालांकि वह पूरी कोशिश किया था प्रताप सिंह की बीवी की दोनों टांगों के बीच झांकने की लेकिन ऐसा अवसर उसे नहीं मिल पाया था,,। प्रताप सिंह की बीवी का मन कर रहा था कि वह उसे से पूछे कि वह नीचे झुककर क्या देख रहा था,,, लेकिन इस तरह की बात एक जवान लड़के से पूछने की उसकी हिम्मत नहीं हुई,,, दोनों खड़ी दोपहरी में ठंडी छांव में शीतल हवा के झोंकों के साथ खाने का लुफ्त उठा रहे थे रघु को तो दोनों भूख लगी थी पेट की भी और एक जवान औरत को भोगने की लेकिन रघु को पूरा विश्वास नहीं था कि उसकी सोच के मुताबिक वह आज प्रताप सिंह जैसे बड़े जमीदार की खूबसूरत बीवी को भोग पाएगा,,,,,, रघू डरते हुए उससे पूछा,,,।

मालकिन,,,,

क्या हुआ रघू,,,,?

मैं यह पूछना चाह रहा था कि आप इतनी खूबसूरत है,,,।


तुम फिर शुरू हो गए,,,,


नहीं नहीं आप सच में बहुत खूबसूरत है मालकिन,,,

तभी तु तांगे के नीचे से झांक रहा था ना,,,(वह एकटक रघु की तरफ देखते हुए बोली रघु उसके मुंह से इस तरह की बात सुनकर एकदम से शर्मा गया,,, और शर्मिंदगी के एहसास से वह इधर-उधर अपना चेहरा घुमाने लगा,, और अपनी तरफ से सफाई देते हुए बोला,,,)

नहीं नहीं मालकिन ऐसी कोई भी बात नहीं है वह तो मेरा कपड़ा नीचे गिर गया था और मैं उसे उठाने के लिए नीचे झुका था,,,


तो कपड़ा उठाकर खड़े हो जाना चाहिए था ना यों नजर गडा कर क्यों देख रहा था,,,


मालकिन अब तो आप बुरा मान रही है,,,, जैसा आप सोच रही है ऐसा बिल्कुल भी नहीं है बस मेरी नजर पड़ गई थी,,।(इतना कहकर वह चुप हो गया,,,,,)

तुम कुछ देखे तो नहीं थे ना,,,,( वह बड़े ही मादक अदा से बोली,,,)

नहीं-नहीं मालकिन में कुछ नहीं देखा था,,,,


कुछ तो देखा ही होगा,,,, तभी तो आंखें फटी की फटी रह गई थी,,,,(वह जानबूझकर इस तरह की बातें कर रही थी वह देखना चाहती थी कि रघु ने उसके बदन का कौन-कौन सा अंग देखा है,,,,)

मैं सच कह रहा हूं मालकीन में कुछ नहीं देखा था,,,बस,,,,बस,,,,(इतना कहकर वह इधर-उधर देखने लगा जैसे कि वह भी कुछ बताना चाह रहा हो लेकिन अंदर ही अंदर से घबरा रहा हो,,,, लेकिन रघू जानबूझकर नाटक कर रहा था,,,तीन तीन औरतों के साथ शारीरिक संबंध बनाकर उन्हें अपने मर्दाना ताकत का गुलाम बना चुका रघु इतना तो जानता ही था कि औरतों को किस तरह से काबू में किया जाता है,,, रघु को इस तरह से हकलाता हुआ देखकर प्रताप सिंह की बीवी बोली,,,)

क्या बस बस लगा रखे हो कुछ आगे भी बोलोगे,,,,

नहीं मालकिन ऐसी कोई बात नहीं है,,,, कुछ नहीं देखा था,,,


लेकिन अभी तो तुम कुछ बताना चाह रहे थे,,,
(उसकी बात सुनकर रघु समझ गया कि वह भी कुछ सुनना चाहती है,, इसलिए वह जानबूझकर घबराहट का नाटक करते हुए बोला,,,)

ऐसी कोई भी बात नहीं मालकिन लेकिन आप जानना चाहती हैं तो मैं बता सकता है कि मैंने आपकी सिर्फ टांगे ही देखी है,,,


और मेरी नंगी टांगों को देख कर ही तुम्हारा यह हाल हो गया है,,,, पता नहीं और कुछ देख लेते तो जाने क्या हो जाता,,,,!(प्रताप सिंह की बीवी गर्म आहें भरते हुए बोली,,, रघु को सब कुछ अपने पक्ष में आता हुआ नजर आ रहा था क्योंकि जिस तरह से वह बातें कर रही थी रघु को यह अहसास हो रहा था कि हलवाई की बीवी और रामू की मां की तरह यह भी अंदर से प्यासी है,,, बस प्यासे को कुवा दिखाना था बाकी सब काम अपने आप हो जाते हैं,,, प्रताप सिंह की बीवी की बात का जवाब देते हुए वह बोला,,,।)


लेकिन सच कहूं मालकिन आप बहुत खूबसूरत हैं,,,,।

(इस बार वह और जोर-जोर से हंसते हुए एक दम मस्त हो गई और हंसते हुए बोली)

मेरी नंगी टांगों को देख कर बोल रहे हो ना,,,,

नहीं नहीं मालकीन नंगी टांगे ही नहीं बल्कि आप का पूरा बदन आपका चेहरा बहुत खूबसूरत है,,,(रघु भी कुछ-कुछ खुलता हुआ बोल रहा था,,, प्रताप सिंह की बीवी अभी भी मुस्कुरा रही थी,,, कुछ देर तक दोनों के बीच फिर से खामोशी छा गई और इस खामोशी को तोड़ते हुए प्रताप सिंह की बीवी बोली,,,)



अच्छा तो रघ6 तुम क्या पूछना चाह रहे थे यह तो तुम बोले ही नहीं,,,

मैं यही पूछना चाह रहा था लेकिन कि आपका नाम क्या है,,,?

सुमन,,,,, सुमन नाम है मेरा,,,,(अपने होठों पर मादक मुस्कान बिखेरते हुए वह बोली,,,)


सुमन,,,, वह कितना खूबसूरत नाम है,,, वरना गांव में तो ललिया,,,, फुलवा,,,,, चमेली ,,,,रानी बस ऐसा ही नाम होता है,,,,( रघु ख्यालों में डूबता हुआ बोला,,,)

तुम्हें अच्छा लगा मेरा नाम,,

बहुत अच्छा है मालकिन मैं तो पहली बार नाम सुन रहा हूं और सच कहूं तो यह नाम आप पर खूब जच रहा है,,,
(जवाब में वह बोली कुछ नहीं बस मुस्कुरा दी,,, थोड़ी ही देर में दोनों खाना खा चुके थे,,,, रघु लोटा लेकर नदी की तरफ गया और वहां से पीने का पानी भर लाया,,, नदी का ठंडा पानी पीकर प्रताप सिंह की बीवी एकदम तृप्त हो चुकी थी लेकिन खाने के बाद की प्यास तो वह बुझा चुकी थी,,, लेकिन रघु के सानिध्य में जो तन की प्यास जाग रही थी वह उसे परेशान कर रही थी,,,,वह एक जमीदार की बीवी थी,, जिसका समाज में इज्जत था,,रुत्बा था,,,और सबसे बड़ी बात संस्कार और मर्यादा से पली-बडी थी,,, इसलिए कुछ ऊंच-नीच ना हो जाए इसका बड़ा ख्याल रखती थी लेकिन आज ना जाने क्यों उसके मन में हलचल सी हो रही थी,,, रघु जैसे जवान लड़के का साथ पाकर वह आज खुली हवा में अपने पंख फैला कर ऊडना चाहती थी,,,।
धीरे-धीरे समय अपनी गति से आगे बढ़ रहा था घने पेड़ की छांव के नीचे बैठे बैठे काफी समय गुजर गया था बार बार चोर नजरों से प्रताप सिंह की बीवी रघू की तरफ देख ले रही थी,,, रघु का जवान हट्टा कट्टा शरीर उसे बेहद लुभावना लग रहा था वह अपने आपको रघु की जवान चौड़ी छातीयों में छुपा देना चाहती थी,,, रघू भी कुछ कम नहीं था,,, वह भी चोर नजरों से जमीदार की बीवी के जवान बदन को देख ले रहा था और मन ही मन उत्तेजित भी हो रहा था,,,,,, दोनों के बीच की खामोशियों को रघु तोड़ते हुए बोला।)

मालकिन आपस में चलना चाहिए काफी समय हो गया है दिन ढलने लगा है,,,

हा तुम ठीक कह रहे हो रघु,,,,(इतना कहकर वह खड़ी हुई और अपने दोनों हाथों से अपने पिछवाड़े पर लगी धूल मिट्टी को झाड़ते हुए बात को आगे बढ़ाते हुए बोली) मुझे नहीं लगता कि समय पर हम घर पहुंच पाएंगे,,,,

यह तो आप जाने मालकिन मैं तो जानता नहीं हूं,,,(इतना क्या कर बताने पर सुखने के लिए रखे कुर्ते को उतार कर पहनने लगा और बात को आगे बढ़ाते हुए बोला) अब चलने के लिए तैयार हो जाइए तब तक मैं घोड़े को पानी पिला देता हूं,,,,(इतना कहकर वह घोड़े को खोलने लगा और उसे खोल कर नदी की तरफ ले जाने लगा,, प्रताप सिंह की बीवी भी सूखने के लिए तांगे पर रखे हुए कपड़ों को समेटने लगी और उसे इकट्ठा करके एक जगह पर रख दी काफी देर हो गए थे इसलिए उसे अहसास होने लगा कि उसे बड़ी जोरो की पिशाब लगी हुई है,,,, और वह भी रघु की तरफ देखकर जो कि इस समय घोड़े को पानी पिलाने में मशगूल था,,,, वह उसी तरह नदी की तरफ जाने लगी,,, नदी के किनारे ऊंची नीची टेकरियां थी,,,जिन की आड़ में वह बैठ कर के साफ करना चाहती थी ताकि रघू कि नजर उस पर ना पड सके,,,, देखते ही देखते वह टेकरी के पीछे पहुंच गई जहां से रघू तकरीबन 3 4 मीटर की दूरी पर ही खड़ा होकर घोड़े को पानी पिला रहा था,,,, उसको यह लग रहा था कि टेकरी की आड़ में बैठकर अगर वह पेसाब करेगी तो रघू को इस बारे में पता नहीं चलेगा,,, और वह अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर वहीं बैठ गई पेशाब करने के लिए उसे इतनी जोरो की पिशाब लगी हुई थी कि बैठते बैठते उसके गुलाबी बुरके गुलाबी छेद से पेशाब की धार फुट पड़ी,,,और सर्रर्र्रर्र्र,,,,,, करके वह मूतने लगी,,,, रघु अब तक इस बात से अनजान घोड़े को पानी पिलाने में व्यस्त था कि तभी उसके कानों में ,,, सीटी जैसी मधुर आवाज पड़ने लगी,,,। आवाज जानी पहचानी थी इसलिए वह आवाज की दिशा में देखने के लिए बावला हो गया जो कि उस के बेहद करीब टेकरी के पीछे से आ रही थी,,,,,, घोड़े की लगाम छोड़कर वह उस टेकरी की तरफ धीरे-धीरे बढ़ने लगा क्योंकि उसके मन में अंदेशा हो गया था कि जरूर कुछ बेहतरीन नजारा नजर आने वाला है,,,, चार पांच कदम बढ़ाते हैं उसे जमीदार की बीवी का सर नजर आने लगा,,, रेशमी बालों को लहराते हुए देखकर वह समझ गया कि जमीदार की बीवी मुत रही है,,, इस बात का एहसास ही उसके तन बदन में आग लगा गया,,,, वह एक कदम और आगे बढ़ा कर जमीदार की बीवी के संपूर्ण वजूद को देखना चाहता था और उसका अगला कदम उसके सपनों की राजकुमारी को पेशाब करते हुए दिखा सकता था और उसने वैसा ही किया जैसे ही वह अपना एक कदम आगे बढ़ाया टेकरी के पीछे बैठकर मौत रही जमीदार की बीवी उसे पूरी तरह से नजर आने लगी,,,, रघ8 की नजर सीधे उसकी मदमस्त भारी-भरकम गोल गोल गांड पर गई,,, जो की बैठने की वजह से और ज्यादा गोलाकार और उभरी हुई नजर आ रही थी,,,,वह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जमीदार की बीवी इतने बड़े घराने की औरत उसे पेशाब करती हुई नजर आएगी और उसकी मदमस्त गांड को अपनी आंखों से देख कर धन्य हो पाएगा,,,, टेकरी पर दोनों हाथ का सहारा देकर अपने सर को थोड़ा सा उठाकर रघु जमीदार की बीवी के संपूर्ण वजूद को देख रहा था उसकी नंगी नंगी गांड रघु के लंड का तनाव बढा रही थी,,,। जमीदार की बीवी इस बात से बे फ़िक्र के पीछे टेकरी का सहारा लेकर रघु उसकी नंगी गांड को और उसे पेशाब करता हुआ देख रहा है वह अपने आप में ही मस्त अपनी पूरी से सहारा पेशाब बाहर फेंक देना चाह रही थी,,, इसलिए तो बार-बार जोर लगाकर मुत रही थी,,,और हर बार जब तक वह जोर लगा दी थी तब तक पेशाब की धार उसकी गुलाबी बुर से बाहर वारे की तरह निकलती थी और हरी हरी घास को भिगो देती थी,,, उसे राहत महसूस होने लगी वह बहुत अच्छे से पेशाब कर चुकी थी,,,रघु को भी लगने लगा कि अब ज्यादा देर तक यहां खड़े रहना उचित नहीं है क्योंकि इस बात की भनक जमीदार को लगते ही कि वह उसकी बीवी को पेशाब करते हुए देख रहा था तो उसकी और उसके परिवार की तरह नहीं होगी,,, इसलिए वह अपना मन मार कर वहां से कदम पीछे ले लिया और तभी जमीदार की बीवी को कुछ आहट महसूस हुई और वह तुरंत खड़ी होकर पीछे की तरफ देखने लगी तो उसे रघु वापस जाता हुआ नजर आया एक पल के लिए तो एकदम से घबरा गए लेकिन दूसरे ही पल उसके होंठों पर मुस्कान आ गई,,,क्योंकि वह समझ गई थी कि उसे पेशाब करता हुआ कोई देख रहा था और इस बात का एहसास उसकी दोनों टांगों के बीच की गुलाबी पत्तियों में फडफडाहट महसूस करा गई,,,,

रघु के पजामे में तंबू बना हुआ था,,, वह जल्द ही घोड़े को तांगे से जोड़ दिया,,,और तांगे पर बैठकर जमीदार की बीवी का इंतजार करने लगा जो कि पीछे ही आ रही थी,,, वह अपने मन में यह सोच रही थी कि उसको पेशाब करता हुआ देखकर रघु के तन बदन में कैसी आग लगी होगी,,क्या उसकी नंगी गोरी गोरी गांड देखकर उसका लंड खड़ा होगा जिस तरह का तंबू नदी में नहाते समय उसके पजामे में बना हुआ था क्या अभी भी वैसा ही तंबू उसके पजामे में बना होगा ,,,यही देखने के लिए वह बेचैन हुए जा रही थी,,,, लेकिन रघु तांगे पर बैठ चुका था,,,, और वो ऊसके पजामे में बने तंबू को देखना चाहती थी,,, इसलिए बहाना बनाते हुए वह बोली,,,।

रघु मुझे जरा तांगे में बैठने में मदद करा दे थोड़ी सी टांग दुखने लगी है,,,,


जी मालकिन अभी आया,,,,(इतना कह कर रखो तुरंत हटाने से उतरकर पीछे की तरफ आ गया और जमीदार की बीवी को तांगे में बैठने मैं मदद कराने लगा,,, जैसे ही रघु पीछे आया और उसकी नजर सीधे रघु के पजामे पर गई जो की पूरी तरह से तंबू बना हुआ था,,, यह देख कर उसकी दोनों टांगों के बीच कंपन महसूस होने लगी वह अंदर ही अंदर प्रसन्न होने लगी,,,, रघु थोड़ा टांगे के बेहद करीब आकर खड़ा हो गया और जमीदार की बीवी उसे कंधे पर हाथ रखकर एक पाव तांगे पर रहती हो उस पर चढ़ने लगी लेकिन वह जानबूझकर उस पर चढ नहीं पा रही थी,,तो वह बोली,,,।

अरे थोड़ी मदद करोगे या ऐसे ही खड़े रहोगे,,,,

जी मालकिन आप कोशिश करो मैं मदद करता हूं,,,,(इतना कहने के साथ ही जमीदार की बीवी एक बार फिर से तांगे पर चढ़ने की नाकाम कोशिश करते हुए तांगे पर चढ़ने लगी तो अफरा तफरी में रघु उसे सहारा देकर चढ़ाने मैं मदद करते हुए अपना दाया हाथ एका एक सीधे उसकी भारी भरकम गोल गोल गांड पर रखकर उसे लगभग धक्का देते हुए तांगे पर चढ़ाने लगा जैसे ही रघु की हथेली को जमीदार की बीवी अपनी कहां पर महसूस की वह एकदम से गनगना गई ,,, उसे तो समझ में नहीं आया कि रघू यह क्या कर रहा है,,,, उसके हथेली का दबाव अपनी गांड पर महसूस करते हैं उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,,जब इस बात का एहसास रघु को हुआ कि वह सहारा देने के चक्कर में अपना दायां हाथ उसकी गांड पर रख दिया है तो इस बात का एहसास उसके तन बदन में आग लगा गया,,, वह एकदम से मदहोश हो गया,,,,नरम नरम गांड का स्पर्श भले ही साड़ी के ऊपर से ही उसकी हथेली में हुआ था लेकिन उसके संपूर्ण वजूद को गर्म कर गया था,,,,,, उसके बदन में कंपकंपी सी छाने लगी थी,,,, जमीदार की बीवी तांगे पर बैठ चुकी थी रघू एकदम शर्मिंदा हो गया था लेकिन उत्तेजना के परम शिखर पर विराजमान हो गया था,,, और यही हाल जमीदार की बीवी का भी था वह भी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी पहली बार किसी पर आए जवान मर्द की हथेली को अपने गांड के ऊपर महसूस की थी,,,और उसकी हथेली का दबाव उसकी गांड पर भारी हो रहा था लेकिन उसकी दस्तक उसे अपनी बुर की गुलाबी द्वार पर महसूस हो रही थी,,,, ऐसा लग रहा था कि मानो कोई उसे अपनी बुरका द्वार खोलने के लिए मिन्नतें कर रहा है,,,, गिड़गिड़ा रहा है,,,, यह पल दोनों के लिए बेहद अद्भुत था,,,

धीरे धीरे दिन डरने लगा था शाम हो रही थी,,, रघु तांगे को कच्ची सड़क पर ऊंचे नीचे टेकरियो पर से लिए चला जा रहा था,,,,,दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था क्योंकि जो एहसास रघु को हुआ था वही एहसास जमीदार की बीवी को भी हुआ था,,,,देखते ही देखते चारों तरफ अंधेरा छाने लगा जमीदार की बीवी रास्ता अच्छी तरह से जानती थी,,, वह जानती थी कि रात को नहीं जाना जा सकता है इसलिए रघु से बोली,,,,।

रघु कोई अच्छी और सुरक्षित जगह देखकर तांगा रोक दो क्योंकि अब घर पर रात में जाना ठीक नहीं है,,, हम यहीं कहीं अच्छी जगह पर सुबह होने का इंतजार करेंगे और फिर चलेंगे,,,,

जमीदार की बीवी की यह बातें सुनते ही रघु के तन बदन में उत्तेजना कि लहर दौड़ने लगी क्योंकि,,, रात भर जगदार की बीवी के साथ रुकना जो था,,, ऐसा लग रहा था कि भगवान भी शायद उसका साथ दे रहे हैं,,, आज की रात का मौका उसके हाथ में था वह आज की रात कुछ कर गुजरने के चक्कर में था वैसे तो यह ख्याल उसके मन में कब से आ रहा था लेकिन इस बात का डर उसे अंदर ही अंदर सता रहा था कि अगर जमीदार की बीवी ऐसी कोई भी हरकत को अगर अपने पति को बता दी तो उसकी खैर नहीं होगी लेकिन जिस तरह से वह उसकी गांड पर हाथ रखकर उसे तांगे पर बैठने की मदद किया था और इस बात का एतराज उसे बिल्कुल भी नहीं हुआ था इस बात से उसकी हिम्मत बढ़ाने का दी थी उसे लगने लगा था कि शायद हलवाई की बीवी और रामू की मां के साथ-साथ जमीदार की बीवी भी वही चाहती है जो वह चाह रहा है,,,,इस बात का ख्याल रघू के लंड को पूरी तरह से खड़ा कर गया था,,,,,,उसे ना जाने कि वह अपनी किस्मत पर विश्वास होने लगा था कि आज की रात वह अपने मोटे तगड़े लंड को जमीदार की बीवी की बुर में डाल सकेगा,,, यही सोच कर एक अच्छी और सुरक्षित जगह जोड़ते हुए तांगे को धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा और तभी उसे एक सुरक्षित जगह नजर आने लगी,,,, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था और लगभग लगभग आम के बगीचे से होकर गुजर रहा था चारों तरफ बड़े-बड़े पेड़ थे,,,

यह जगह बिल्कुल ठीक हो की मालकिन मैं यही तांगा रोक देता हूं,,,,


जैसा ठीक समझो रघू,,,,,,
(यह कह कर जमीदार की बीवी अपनी सहमति दर्शा दी और रघु तांगा वही रोक दिया,,, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था एकदम सन्नाटा केवल उल्लू की आवाज और कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी कोई और समय होता तो शायद इस वीरान जगह पर रघु था वह कभी नहीं रुकता लेकिन उसके मन में हलचल बची हुई थी उसके साथ एक जवान औरत थी और वह भी बड़े घराने की बहू जो कि उस समय तांगे में बैठी हुई थी,,, और रघु उस बड़े घराने की औरत को चोदने के फिराक में इस तरह के वीरान और डरावने जगह पर तांगा रोक दिया था,,,,शायद यही ख्याल जमीदार की बीवी का भी था एक औरत होने के नाते इस तरह से विरान में रुकना बिल्कुल भी ठीक नहीं था,,, लेकिन उसके मन में भी यही चल रहा था जो रघु के मन में चल रहा था,,, जमीदार की बीवी का भी दिल जोरों से धड़क रहा था,,, वह तांगे से बाहर की तरफ झांक रही थी चारों तरफ कुछ भी नजर नहीं आ रहा था बस बड़े-बड़े पेड़ ही नजर आ रहे थे,,,,,, एक औरत होने के नाते उसे डर लगना चाहिए था लेकिन उसे डर बिल्कुल भी नहीं लग रहा था,,, क्योंकि उसके तन बदन में भी जवानी का जोश चढ़ा हुआ था,,,,,, वह तांगे में बैठकर रघु के बारे में ही सोच रहीं थीं,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसे याद आ रहा था जब वह टेकरी के पीछे के साथ कर रही थी तो रघु टेकरी की आड़ में से उसे पेशाब करता हुआ देख रहा था और एकदम उत्तेजित हो गया था इसका अंदाजा उसे तांगे पर सहारा लेने के लिए रघु को बुलाना पड़ा और रघु के पजामे में बने तंबू को देखकर उसे इस बात का एहसास हो गया कि उसकी बातों पर जवानी देख कर रघू पूरी तरह से बावला हो गया है,,, पर वह पल याद आते ही उसकी गुलाबी बुर में खुजली होने लगी जब वहउसके कंधों का सहारा लेकर तांगे पर चल रही थी और उसे चढाने में मदद करने के बहाने उसकी गांड पर हाथ रख दिया था,,,,आहहहहहह,,,, यह ख्याल उसके तन बदन में चिकोटीया काटने लगी,,,, रघु तांगे से नीचे उतर चुका था वह चारों तरफ बड़े ध्यान से देख रहा था कि कहीं कोई जानवर ना हो पैरों के नीचे सांप बिच्छू ना हो,,,, सबसे पहले वह पीछे की तरफ आ कर,,,, तांगे में टंगी लालटेन को जला दिया और लालटेन के चलते ही तांगे के अंदर पूरी तरह से रोशनी फैल गई लालटेन की रोशनी में सबसे पहले वहां जमीदार की बीवी के खूबसूरत मुखड़े को देखने लगा जो कि और भी ज्यादा खूबसूरत लगने लगी थी,,,, रघु सब कुछ भूल कर उसे एकटक देखता ही रह गया,,, रघु को इस तरह से अपने चेहरे को देखता हुआ पाकर वह एकदम से शरमा गई और शर्मा कर दूसरी तरफ नजर घुमा दी,,, उसकी शर्मा हट को देख कर रघू एकदम से उसकी सादगी का कायल हो गया,,,ऐसा लग रहा था कि जैसे वजनदार की बीवी नहीं बल्कि उसकी खुद की नई नवेली दुल्हन हो उसके साथ वह आज की रात सुहागरात मनाने वाला है,,,। दोनों का दिल जोरों से धड़क रहा था जमीदार की बीवी शर्मा रही थी वह सीमटती जा रही थी,,,,, रघु एकदम से मदहोश होता जा रहा था वह धीरे-धीरे अपने चेहरे को उसके करीब लिए जा रहा था,,, रघू सब कुछ भूल चुका था,,,और जमीदार की बीवी शर्म से पानी पानी हो जा रही थी ना कि वह भी यही चाह रही थी लेकिन इतनी जल्दी उसे उम्मीद नहीं थी ,,, क्योंकि जिस तरह से वह उसकी तरफ आगे बढ़ता जा रहा था उसे लगने लगा था कि वह उसे अपनी बाहों में भर लेगा लेकिन तभी घोड़ा जोर से हीनहीनाने लगा तो रघु की तंद्रा भंग हुई और वह घोड़े की तरफ देखने लगा,,, वह अभी भी अपना दोनों पैर ऊपर की तरफ उठा रहा था ,,,, तो जमीदार की बीवी बोली,,,।

जाओ रघू जल्दी से देखो कोई जानवर तो नहीं है,,,,,
(इतना सुनते ही रघु तांगे में टंगी लालटेन तो अपने हाथ में लेकर आगे की तरफ आ गया और लालटेन की रोशनी में चारों तरफ देखने लगा तो उसे एक बड़ा सा काला सांप पास में से गुजरता हुआ नजर आया उस पर जमीदार की बीवी की भी नजर पड़ी और उसका मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया क्योंकि वह सांप बहुत बड़ा था,,,, वह सामने की घनी झाड़ियों में जाता हुआ नजर आया,,,,जब वह सांप चला गया तो घोड़ा भी एकदम शांत हो गया,,, रघु लालटेन लेकर तांगे के पीछे की तरफ आया और बोला,,,।)

मालकिन बहुत बड़ा सांप था इसलिए घोड़ा बिंदक रहा था,,,

हां मैं देखी बहुत बड़ा सांप था,,,,


मैं घोड़े को पेड़ से बांध देता हूं ताकि वह भी आराम कर ले,,,

ठीक है रघू,,,,

(रघु तांगे में से घोड़े को छुड़ाकर पेड़ से बांध दिया,,,,,, रघु के मन में हलचल हो रही थी मैं जानता था कि एक जवान औरत है इस वीराने में उसके साथ बिल्कुल अकेली है,,, पर वह भी बेहद खूबसूरत बड़े घराने की,,, इस बात का एहसास ही उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर बढ़ा रहा था,, यही हाल प्रताप सिंह की बीवी का भी था,,, उसका दिल भी जोरों से धड़क रहा था चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था बड़े-बड़े पेड़ इस अंधेरी रात में भयानक लग रहे थे,,, लेकिन इस वीराने में भी प्रताप सिंह की बीवी सुख ढूंढ रही थी और वह भी तन का जो इस समय उसे रघु ही दे सकता था,,, लेकिन वह ऐसी वैसी औरत तो थी नहीं कि अपने आप से अपने ही मुंह से रघू को उसे तन सुख देने के लिए बोले,,, और आज की रात का ही मौका था उसके पास वह कभी भी अभी तक अपने कदमों को डगमगाने नहीं दी थी एक उम्र दराज जमीदार के साथ शादी करके भले ही उसे अपने पति से दैहिक सुख की संतुष्टि प्राप्त नहीं हुई थी लेकिन यह सुख वह बाहर भी नहीं ढूंढ़ी थी,,, सिर्फ अपने संस्कारों के बदौलत वह अपनी जिंदगी को जिए जा रही थी,,, लेकिन आज जवान लड़का रघु उसके मन में हलचल पैदा कर गया था,,, बार-बार रघु के पजामें मे बने तंबू को याद करके उसके तन बदन में कपकपी सी फैल जा रही थी,,, खास करके उसकी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार में,,, जिसका मुख शायद अभी ठीक तरह से खुला भी नहीं था क्योंकि जमींदार में लंड इतना ताकतवर और मोटा नहीं था क्योंकि उसकी गुलाबी पत्तियों को अपना संपूर्ण आकार दे सके और ना ही अब तक वह मां बनने का सुख प्राप्त कर पाई थी इसलिए अभी तक इस उमर में जिस तरह का आकार बुर का होना चाहिए था उस तरह का आकार उसका बिल्कुल भी नहीं था,,,,
हवा सांय सांय करके चल रही थी,,, गर्मी के मौसम में हरियाली पेड़ पौधों से भरा हुआ यह स्थान ठंडक दे रहा था,,, रघु घोड़े को पेड़ से बांध चुका था अब उसके सामने यह प्रश्न था कि सोना कहां है मन तो उसका यही कर रहा था कि वह जमीदार की बीवी के साथ तांगे में ही सो जाए लेकिन ऐसी किस्मत कहां थी कि जमीदार की बीवी के साथ उसे सोने को मिलता ऐसा वह सोच रहा था बल्कि उसका दूसरा मन तो आज उसे चोदने के लिए कर रहा था,,, वह घोड़े को पेड़ से बांधकर,,, तांगे पर चढ़ने लगा उसे आगे की तरफ चढ़ता हुआ देखकर प्रताप सिंह की बीवी बोली,,,,।

रघु सोओगे कहां,,,?

आप बिल्कुल भी चिंता मत करो मालकिन मैं यही सो जाऊंगा,,,,

नहीं नहीं रघू वहां कैसे सो पाओगे वहां तो सोने भर की जगह भी नहीं है,,, एक काम करो तुम भी इधर आ कर सो जाओ,,,
(जमीदार की बीवी की बात सुनते ही रघु का दिल धक्क से कर गया,,, यही तो वह चाहता था,,, लेकिन फिर भी ऊपरी मन से वह इनकार करते हुए बोला,,,)

नहीं नहीं मालकिन भला ऐसे कैसे हो सकता है,,, आप एक जवान औरत है और जमीदार की बीवी है भला मैं आप के बगल में कैसे सो सकता हूं मैं तो आपका मुलाजिम हूं,,,


पागल हो तुम रघू,,, मेरे लिए ऊंच-नीच अमीर गरीब छोटा बड़ा कोई मायने नहीं लगता,,, तुम बहुत अच्छे लड़के हो इसलिए मैं कह रही हूं,,,, अब आ जाओ ज्यादा बातें मत बनाओ,,,,
(उसकी बात सुनकर रघु को ऐसा लग रहा था कि जैसे वह खुद उसे चोदने के लिए बुला रही हो,,, रघु भला क्यों इंकार करता,,, वह मन ही मन प्रसन्न हो रहा था उसके तो हाथों में जैसे लड्डू आ गया हो,,, एक बार फिर से उसका पाजामा पूरी तरह से तन गया,,,, और प्रताप सिंह की बीवी के तन बदन में यह कहते हुए पूरी तरह से उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी ऐसा लग रहा था कि आज की रात से ही कुछ कर गुजरेगी,,, आज की रात का भी भरपूर आनंद ले लेना चाहती थी,,,, रघु तांगे से उतरता हुआ बोला।)

ठीक है मालकिन जैसी आपकी मर्जी,,,,,
(तांगे से उतरकर वह थोड़ी दूर पर जाकर पेशाब करने लगा अंधेरा एकदम घना था इसलिए कुछ भी नजर नहीं आ रहा था,,, रघु को खुद अपना लंड नहीं दिख रहा था हाथ में लेने पर उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसका लंड कुछ ज्यादा ही मोटा और तगड़ा हो गया है,,, अपने लंड को हाथ में पकड़े पेशाब करते हुए नहीं सोच रहा था कि अगर नहीं लैंड प्रताप सिंह की बीवी की बुर में डाल दिया जाए तो वह एकदम मस्त हो जाएगी क्योंकि उसकी बातों से उसकी हरकत से रघु को इतना तो एहसास होने लगा था कि वह तन की प्यासी है,,, भला एक उम्रदराज आदमी अपनी जवान बीवी को तन का सुख कैसे दे सकता है,,, इस उम्र में तो औरते अपने घर के अंदर मोटा तगड़ा लंड की कामना करती हैं,,,,, तांगे में बैठी हुई प्रताप सिंह की बीवीअपनी सांसो पर काबू नहीं कर पा रही थी उत्तेजना के मारे उसकी सास बड़ी तेजी से चल रही थी उसकी कानों में पानी के गिरने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी जिससे उसे पता चल गया था कि रघु पेशाब कर रहा है और अपने मन में व कल्पना करने लगी कि कैसे अपना मोटा तगड़ा बाहर निकाल कर मुत रहा होगा,,,, हाथ में लेकर उसका लंड कैसा लग रहा होगा,,,, जब वह उसके मोटे तगड़े लंड को अपने हाथ में लेगी तो उसे कैसा लगेगा,,,, यह सोचकर ही उसका पसीना छूटने लगा,,,, थोड़ी ही देर में रघू पेसाब करके टांगे के पीछे आ गया जहां पर लालटेन की रोशनी में प्रताप सिंह की बीवी एकदम साफ नजर आ रही थी उसका खूबसूरत मुखड़ा एकदम दमक रहा था,,,, उसके खूबसूरत चेहरे को देखते ही रघू के तन बदन में उत्तेजना के शोले भडकने लगे,,,, तांगे पर चढ़ने में उसे शर्म महसूस हो रही थी वैसे तो उसे जोश में आ जाता है था तो औरत पर चढ़ने में उसे शर्म नहीं आती थी लेकिन आज प्रताप सिंह की बीवी के सामने तांगे पर चढ़ने में उसे शर्म महसूस हो रही थी,।,,, प्रताप सिंह की बीवी रघु के हाव भाव को देखकर वह अच्छी तरह से समझ गए कि वह अपने आप को असहज महसूस कर रहा है इसलिए वह उसका हौसला बढ़ाते हुए बोली,,।)

घबराओ मत रघू आ जाओ,,, कभी औरत के साथ सोए नहीं हो क्या,,,,(वह मुस्कुराते हुए बोली रघु अब इतना नादान नहीं रह गया था कि वह उसकी बातों का मतलब समझता ना हो लेकिन वह बोला कुछ नहीं और टांगे पर चढ़ने लगा उसे चढ़ता हुआ देखकर जगह बनाने के लिए प्रताप सिंह की बीवी थोड़ा सा और दूसरी तरफ सरक गई,,,, रघु तांगे पर चल गया था लालटेन की रोशनी में तांगा पूरा जगमगा रहा था,,, तांगा केवल आगे से और पीछे से खुला हुआ था ऊपर से ढका हुआ था जो कि अंदर से बहुत खूबसूरत लग रहा था,,, रघु के अंदर आते ही प्रताप सिंह की बीवी जगह बना कर लेट गई,,, प्रभु की नजर जैसे ही उसके ब्लाउज पर पड़ी वह एकदम से दंग रह गया क्योंकि नीचे के दो बटन खुले हुए थे जिससे लेटने के बाद उसकी दोनों चूचियां पानी भरे गुब्बारों की तरह बाहर की तरफ निकल आई थी,,,आधे से ज्यादा चुचियों नजर आ रही थी बस केवल उसके बीच की निप्पल ब्लाउज के अंदर दबी हुई थी शायद अपने नुकीले पन से ब्लाउज के अंदर अपनी जगह बनाई हुई थी वरना सरक कर पूरी की पूरी चूचियां बाहर आ जाती,,,, यह देख कर रघु के तन बदन में आग लगने लगी उसके पजामे में गदर मचने लगा,,,, प्रताप सिंह की बीवी ने यह हरकत जानबूझकर की थी जब वह पेशाब कर रहा था और उसके पेशाब करने की आवाज कानों में पड़ते ही प्रताप सिंह की बीवी अपने तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ते हुए महसूस की थी और उत्तेजित अवस्था में उसने जानबूझकर अपने ब्लाउज के नीचे के दो बटन खोल दिए थे,, और उसकी यह हरकत रघू पर बराबर काम कर रही थी,,, उत्तेजना के मारे रघु का गला सुख रहा था,,, और वह प्यासी आंखों से जमीदार की बीवी के ब्लाउज की तरफ देखते हुए पीठ के बल लेटने लगा प्रताप सिंह के बीवी को अच्छी तरह से मालूम था की रघु उसकी चुचियों को ही देख रहा है यह देखकर वह मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,,,
दोनों के बीच किसी भी तरह की वार्तालाप नहीं हो रही थी रघु चोर नजरों से सांसो के साथ उठती बैठती,,, जमीदार की बीवी की बड़ी-बड़ी चुचियों को देख रहा था जो कि बेहद मादक तरीके से अपना जलवा बिखेर रही थी,,,तकरीबन 10 मिनट गुजर गए थे लेकिन दोनों के बीच किसी भी तरह की बातचीत नहीं हो रही थी प्रताप सिंह की बीवी अपनी आंखों में भावनाओं का तूफान और हसरत लेकर रघू की तरफ देख रही थी कि रघू कुछ शुरुआत करें,,,, क्योंकि संस्कार के बोझ तले दबी जमीदार की बीवी को पहल करने मैं घबराहट हो रही थी हालांकि उसने रघू के लिए सारे रास्ते साफ करने के साथ-साथ खोलकर भी रख दिए थे,,, रघु की पैनी नजर अपनी चुचियों पर महसूस करके उसका दिल जोरों से धड़क रहा था,,,परघु का मन मचल रहा था उसकी दोनों चूचियों को अपने हाथ में लेकर दबाने के लिए,,, लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी वह भी प्रताप सिंह की बीवी को पूरी तरह से उत्तेजित कर देना चाहता था ताकि उसकी गलत हरकत से वह मस्त हो जाएगा और जो वह करें इसे करने दे,,,, इसलिए वह जानबूझकर ऐसी हरकत किया कि जिसे देखकर प्रताप सिंह की बीवी एकदम से गरमा गई,,,,रघु के पजामे में उसका लंड पूरी तरह से खडा हो चुका था और अपने दोनों घुटने मोड़कर पीठ के बल लेटा हुआ था,,, मैं जानता था कि उसके पैर फैलाते ही उसके पजामे में बना तंबू जमीदार की बीवी की नजर के सामने आ जाएगा और इसलिए वह जानबूझकर अपने दोनों पैर फैला दिया,,, और उसके पजामे में बना दमदार तंबू एकदम से किसी सामियाना के तंबू की तरह नजर आने लगा और जमीदार की बीवी की नजर उस के तंबू पर पडते ही वो एकदम से उत्तेजित हो गई,,,वह एकदम से जोश से भर गई उसका मन लालच उठा रघु के तंबू को अपने हाथ से पकड़ने के लिए,,,, और वह अपना एक पैर धीरे से घुटनों से मोड़ दी जिससे उसकी साड़ी सरसराकर जांघों से होती हुई कमर के इर्द-गिर्द आकर इकट्ठा हो गई पलक झपकते ही उसकी मदमस्त गोरी गोरी सुडोल टांग और उसकी मोटी मोटी जांघें लालटेन की पीली रोशनी में चमकने लगी यह देख कर रघु से रहा नहीं गया और वह अपना एक हाथ बढ़ा कर सीधे जमीदार की बीवी के ब्लाउज पर रख दिया जिसमें से उसकी आधी से ज्यादा चूचियां बाहर को झलक रही थी,,,,,, जैसे ही रघू का हाथउसे अपनी चुचियों पर महसूस हुआ उसके मुंह से गर्म सिसकारी फूट पड़ी,,,।

सससहहहहह,,,,,आहहहहहहहह,,,,, रघू यह क्या कर रहे हो,,,,तुम्हें डर नहीं लगता मैं जमीदार की बीवी हूं अगर इस बारे में जमीदार को पता चल गया तो तुम्हारा क्या हश्र होगा,,,(वह सिर्फ बोल रही थी उसे रोकने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रही थी,,, जिससे रघु को पता चल गया कि उसके साथ चाहे कुछ भी करेगा कुछ भी नहीं बोलने वाली और वह अपने मन में यही चाहती है कि वह कुछ करें रघु उसका इशारा समझ चुका था,,, इसलिए मैं रघु बिना डरे ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चूची को दबाते हुए बोला,,,)

मैं अच्छी तरह से जानता हूं मालकिन अगर यह बात मालिक को पता चल गया तो मेरी खैर नहीं होगी शायद वह मुझे जान से मार दें लेकिन मौत तो बाद में आएगी लेकिन उसके पहले जीने का सुख मैं नहीं छोड़ सकता आपकी खूबसूरत और मस्त कर देने वाली सूची को अपने हाथ से दबाने की लालच को मैं रोक नहीं पाऊंगा,,,(रघु अपने एक हाथ से जोर-जोर से ब्लाउज के ऊपर से ही उसकी चूची को दबाते हुए बोला)

क्या तुम्हें मेरी छोटी इतनी अच्छी लगती है,,,

हां मालकिन आपकी चुची बहुत खूबसूरत है,,,,
(एक बड़े घराने की औरत के मुंह से चुची शब्द सुनकर रघु एक दम मस्त हो चुका था,,,,)

तो लो मैं तुम्हें अच्छी तरह से दीखा देती हु,,,,।(इतना कहने के साथ ही वह अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी यह देखकर रघु का दिल जोरो से धड़कने लगा,,,,,रघु को साफ नजर आ रहा था कि अपने ब्लाउज के बटन खोलने में और वह भी उसकी आंखों के सामने उसके चेहरे पर जरा भी झिझक के भाव नजर नहीं आ रहे थे वह एकदम सहज होकर अपने ब्लाउज के बटन खोल रही थी,, पर जैसे ही बाकी के बटन खोल कर अपनी ब्लाउज के दोनों चोरों को पकड़ कर अपनी चूचियों पर से दूर हटाए वैसे ही बेहद खूबसूरत कबूतर अपने पंख फड़फड़ाते हुए मुस्कुराने लगे,,,, रघु तो आंखें फाड़े जमीदार की बीवी की छलकती जवानी को देखता ही रह गया,,,, और वह अपने होठों पर मादक मुस्कान बिखेरते हुए बोली।

कैसे लग रहे हैं,,,,?


बहुत खूबसूरत मालकिन,,,,( इतना कहते हुए रघु अपना एक हाथ आगे बढ़ाकर हल्के से अपनी उंगलियों को उसकी बड़ी बड़ी चूची पर फिराने लगा,,, रघु एक दम मस्त हो चुका था,,ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई अनमोल खजाने को देख लिया हो और उस पर ऊंगलिया स्पर्श करके उसके खरा खोटे होने की तसल्ली कर रहा हो,,, मदमस्त चुचियों को देखकर उसकी चमक रघु की आंखों में साफ नजर आ रही थी,,,,जिस तरह के हाव-भाव रघु के चेहरे पर बदल रहे थे उसे देखकर प्रताप सिंह की बीवी मन ही मन प्रसन्न हो रही थी,,,,,, इस बात का एहसास हो रहा था कि पहली बार कोई औरत के इन अंगों को देखता है तो शायद इसी तरह के हाव-भाव उसके चेहरे पर बदलते रहते हैं जिस तरह के हाव-भाव रघु के चेहरे पर बदल रहे थे,,, रघु से रहा नहीं गया और वह उसकी चूची को हल्के हल्के से स्पर्श करते हुए अपना दूसरा हाथ भी आकर बढ़ाकर दोनों चुचियों को दोनों हाथ में लेकर जोर से दबा दिया,,,, अपनी हथेली का दबाव इतनी जोर से लगाया था कि उसके मुंह से आह निकल गई,,,,


आहहहहहह,,, रघु थोड़ा धीरे,,,,


धीरे से दबाने लायक वह चीज नहीं है मालकिन,,,,

तो,,,,,,( वह आश्चर्य जताते हुए बोली)

इस पर तो पूरा जोर लगा कर इससे खेलना चाहिए,,,,(रघु अपने दोनों हाथों में उसकी चुचियों को लिए हुए बोला)


दर्द होता है,,,,

दर्द में ही तो मजा है मालकीन,,,,


मैं कुछ समझी नहीं,,,,,


अगर आप इजाजत दें तो मैं समझा भी सकता हूं,,,,


अपने हाथों से अपने ब्लाउज के बटन को खोलती हूं अब इससे ज्यादा तुझे किस बात की इजाजत चाहिए,,,,

ओहहहह,,,, मालकिन,,,,,(इतना कहने के साथ ही रघु जमीदार की बीवी की मदमस्त झलकती जवानी पर टूट पड़ा वह अपने दोनों हाथों से उसके दोनों दशहरी आम को जोर-जोर से दबाते हुएउसके चेहरे की तरफ देखने लगा वह लालटेन की रोशनी में उसके चेहरे पर बदलते भाव को देखना चाहता था,,,। रघु को साफ दिखाई दे रहा था किउसके चेहरे पर दर्द के भाव दिखाई दे रहे हैं लेकिन रघु चाहता था कि उसके चेहरे पर दर्द के नहीं बल्कि आनंद के भाव नजर आए इसलिए वह अपना मुंह आगे बढ़ा कर उसके एक दशहरी आम को अपने मुंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया,,,,।

आहहहहहह,,,,,सहहहहहहहहह,,,,, रघू,,,,,,( वह एकदम से मस्ती भरी सिसकारी लेते हुए बोली,,, रघु की हरकत काम करने लगी थी,,,, रघू एकदम माहिर हो चुका था,,, रघु के हाथ में प्रताप सिंह की बीवी की चूचीया आते ही अपना रंग बदलना शुरू कर दी थी,,,,थोड़ी ही देर में रघू उन्हें दबा दबा कर और उनको मुंह में भर कर पी पी कर लाल कर दिया था,,,। प्रताप सिंह की बीवी हाथ की कोहनी का सहारा लेकर लेटी हुई थी और रघु भी लेटा हुआ था लेकिन वह पूरी तरह से जमीदार की बीवी पर छा गया,,, था,,। थोड़ी ही देर में तांगे के साथ-साथ उस वीरान जगह पर प्रताप सिंह की बीवी की मादक सिसकारियां गुंजने लगी,,,,जिस तरह से रघु उसकी चूचियों से खेल रहा था उस तरह से उसके पति प्रताप सिंह ने कभी भी उसकी चुचियों के साथ खेलना मुनासिब नहीं समझा,,,उन्हें बस एक ही काम आता था औरत के ऊपर चढ़ जाना और 2 मिनट में काम खत्म करके बगल में लेट जाना औरतों के बदन के साथ किस तरह से खेला जाता है किस तरह से उन्हें सुख दिया जाता है इस बारे में प्रताप सिंह बिल्कुल ही अनजान था,,, लेकिन रघु एकदम उस्ताद थाऔरतों के बदन के साथ खेल से खेला जाता है कैसे उन्हें सुख किया जाता है यह उसे अच्छी तरह से आता था,,, दोनों की सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,,,प्रताप सिंह की बीवी को मजा आ रहा था आनंद की ऐसी पराकाष्ठाउसने कभी भी अपने अंदर महसूस नहीं की थी जिस तरह की पराकाष्ठा रघु उसे महसूस करा रहा था,, वह मदहोश होने लगी पहली बार उसे ज्ञात हो रहा था कि औरतों के चुचियों से मर्द इस तरह से भी खेलते हैं,,, रघू के दोनों हाथों में प्रताप सिंह की बीवी के दोनों कबूतर जी जान से फड़फड़ा रहे थे,,,

कैसा लग रहा है मालकिन ,,,,,,(पल भर के लिए वह उसकी चूची से मुंह उठाकर ऊपर की तरफ देखते हुए बोला)


बहुत अच्छा लग रहा है रघु,,,, बहुत मजा आ रहा है,,,( वह एकदम मदहोश होते हुए मादक स्वर में बोली उसकी आंखें बंद हो रही थी जिससे साफ पता चल रहा था कि वह आनंद की पराकाष्ठा का अनुभव कर रही है उसे साफ महसूस हो रहा था कि उसकी बुर में से मदन रस बह रहा है,,, पर ऐसा तभी होता था जब वो एकदम से काम भावना से ग्रस्त हो जाती थी और आज ऐसा ही महसूस करके एकदम मस्त हुए जा रही थी,,,। अपनी मालकिन का जवाब सुनकर रखो फिर से दोनों खरबूजा पर टूट पड़ा रघु यही अदा औरतों को उसका दीवाना बना देती थी क्योंकि वह उनकी चुचियों के साथ जी भर के खेलता था इतना कि उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं होता था कि कब उनकी बुर पानी छोड़ने लगी,,,,प्रताप सिंह की बीवी की बुर से इतना पानी निकलने लगा था कि उसकी पेटीकोट भीगने लगी थी,,,, कुछ देर तक उसकी चुचियों के साथ खेलने के बाद रघु थोड़ा सा अपने आपको विराम दे कर अपनी मालकिन के चेहरे को देखने लगा उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव नजर आ रहे थे उसे आनंद आ रहा था उसकी आंखें बंद थी रेशमी बालों की लट उसके चेहरे पर आ रही थी जिससे उसका चेहरा और खूबसूरत लग रहा था लालटेन की रोशनी में उसका गोरा मुखड़ा एकदम दमक रहा था,,,, रघू अपनी खूबसूरत मालकिन को एकदम नग्नवस्था में देखना चाहता था,,,,कपड़ों में जब वो इतनी खूबसूरत लगती थी तो वह अपने मन में ही सोच रहा था कि बिना कपड़ों के वह कितनी खूबसूरत लगती होगी इसलिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर उसके ब्लाउज को उसके कंधों से नीचे की तरफ सरकाने लगा,,, रघु को अपना ब्लाउज उतारता हुआ देखकर वह अपने बदन को एकदम ढीला छोड़ दी ताकि रखो आराम से उसके ब्लाउज को उसके बदन से अलग कर सके,,,, यह पूर्ण सहमति थी जिससे रघु एकदम खुश नजर आ रहा था देखते ही देखते वह उसके बदन पर से ब्लाउज को उतारकर तांगे में एक कोने पर रख दिया,,,, कमर के ऊपर बाइक दम से नंगी हो गई उसकी मां की मस्त चूचियां पानी भरे गुब्बारों की तरह छातियों पर लहरा रही थी जिसे देखकर एक बार फिर से उसके मुंह में पानी आ गया और वहां अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाकर फिर से उन्हें अपने हाथों में थाम कर उन्हें दबाना शुरू कर दिया,,,,प्रताप सिंह की बीवी के मुख से एक बार फिर से गर्म सिसकारी की आवाज निकल पड़ी,,, वह मन ही मन में चाहती थी कि रघु इससे ज्यादा आगे बढ़े साथियों से शुरू किए गए खेल को वह उसकी दोनों टांगों के बीच आकर खत्म करें,,, लेकिन रघु के मन को वह समझ नहीं पा रही थी रघु जी जान लगाकर हद से ज्यादा औरतों के हर एक अंग से खेलता था उन्हें इस बात का एहसास दिलाता ताकि उनके बदन का हर एक अंग मर्दों के लिए उत्तेजना और आनंद की सीमा को तय करते हैं और हर एक मर्द अपनी सीमा में रहकर औरतों के हर एक अंग से खेलता था लेकिन रघु की बात कुछ अलग थी वह हद से ज्यादा औरतों के अंगों से खेलता था चाहे भले वह चूची हो उनकी बड़ी बड़ी गांड हो या रसीली बुर हो,,,, प्रताप सिंह की बीवी अपने आप को रघु की आंखों के सामने अर्धनग्न अवस्था में पाकर शर्म से गड़ी जा रही थी,,,,क्योंकि उसे इस बात का एहसास भी अच्छी तरह से हो रहा था कि दोनों की उम्र की सीमा एक बराबर बिल्कुल भी नहीं थी,,, कुछ ना कुछ उम्र की सीमा यह तय कर रही थी कि रघु उसके बेटे जैसा ही था लेकिन जिस्म की प्यास के आगे उम्र की कोई सीमा नहीं होती,,,,,,
रघु पागल हुए जा रहा था अपनी मदमस्त खूबसूरत जवानी से भरी हुई मालकिन के कपड़े उतारते हुए उसे अद्भुत सुख का अहसास हो रहा था पजामे में उसका लंड गदर मचाए हुए था,,, अपनी मालकिन के गुलाबी होंठ देखकर उसके मुंह में पानी आने लगा और वह अपना मुंह आगे बढ़ा कर उसके होठों पर अपना हॉट रखकर चूसना शुरू कर दिया प्रताप सिंह की बीवी के लिए बिल्कुल नया अनुभव था क्योंकि आज तक उसके पति ने उसके होठों पर इस तरह से चुंबन नहीं किया था एकदम मदहोश होने लगी आंखें बंद थी जिसे खोलने की हिम्मत शायद अब ऊसमें बिल्कुल भी नहीं थी और अब उसे नज़रें नहीं मिला पा रही थी एक जवान लड़के को इस तरह से अपने होंठों को चूसता हुआ पाकर वह मदहोश हुए जा रही थी,,, उसे शर्म भी आ रही थी,,,, रघु पागलों की तरह उसके होठों का रसपान कर रहा था और एक हाथ से उसकी चूची को भी दबा रहा था,,,, ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी चुचियों में ही सारा रस छुपा हुआ है,,,, देखो पागल हुए जा रहा था एक जवान औरत और वो भी बड़े घराने की उसकी बाहों में थी,,,,वह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतने बड़े घराने की औरत का सुख वह भोग पाएगा,,,वैसे भी उसकी किस्मत बड़ी तेज चल रही थी सबसे पहले हलवाई की बीवी उसके बाद रामू की मां और उसके बाद खुद की बड़ी बहन और आप जाकर एक बड़े घराने की एक जमीदार की औरत जो इस वीराने में घने जंगल के बीच उसे शरीर सुख दे रही थी,,, रघु प्रताप सिंह की बीवी का हाथ पकड़कर उसे धीरे-धीरे नीचे की तरफ लेकर आया और सीधे अपने पेंट में बने तंबू पर रख दिया,,यु एका एक रघू के तंबू पर हाथ पडते ही ,, एकदम से घबरा गई और घबराकर अपना हाथ पीछे खींच ली तो रघू एक बार फिर से उसका हाथ पकड़ कर अपने तंबू पर रखते हुए बोला,,,।

डरो मत मालकिन मेरा लंड है यही तो वह अंग है जिसे औरत सबसे ज्यादा पसंद करती है और उससे खेलने के लिए दिन रात मचलती रहती है,,,,यही लंड अगर आप इजाजत देंगी तो थोड़ी देर बाद तुम्हारी बुर के अंदर होगा तुम्हारी बुर की गहराई नाप रहा होगा,,,,(रघु एकदम बेशर्मी बनता हुआ बोला रघुवीर तरह की बातें प्रताप सिंह की बीवी के तन बदन में हलचल पैदा कर रही थी पहली बार वह ईतनी गंदी बातें अपने लिए सुन रही थी,,,,लेकिन उसे बुरा नहीं लग रहा था उसे तो रघू की बातें सुनकर मजा आ रहा था,,,।और इस किस तरह की गंदी बातें सुनकर उसका मदहोशी छाने लगी और इस बार वह रघु के तंबू पर से अपना हाथ नहीं हटाई करके उसे पकड़कर दबाने लगी,,, प्रताप सिंह की बीवी को मजा आ रहा था पहचाने के ऊपर से ही रघू के लंड को दबाते हुएउसे इस बात का एहसास हो गया कि रघु का हथियार कुछ ज्यादा ही तगड़ा है,,,, इसलिए वह धीरे से शरमाते हुए बोली,,,।)

रघु तुम्हारा तो ज्यादा ही मोटा और लंबा है,,,


क्यों मालकिन मालिक का ऐसा नहीं है क्या,,,?

नहीं उनका तो इससे आधा भी नहीं है,,,


तब तो मालिक तुम्हें चुदाई का पूरा सुख नहीं दे पाते होंगे,,,


मुझे क्या पता रघू,,,, शायद मे असली सुख से वाकिफ नहीं हो पाई हूं,,,,


चिंता मत करो मालकिन आज तुम्हें असली सुख में दूंगा आज तुम्हें चुदाई का ऐसा सुख दूंगा कि तुम जिंदगी भर याद रखोगी,,,,(रघु की मस्ती भरी औ सांत्वना भरी बातें सुनकर वर्षों से मदहोश होते हुए बोली,,)

ओहहह रघु तुम कितने अच्छी हो,,,,(इतना कहने के साथ ही वह इस बार खुद रघू के होंठों को अपने होंठों में भरकर चुसना शुरु कर दी,,, दोनों एक दूसरे के होंठों का रसपान करने में एकदम मगन हो गए,,,, प्रताप सिंह की बीवी पजामे के ऊपर से ही रघु के लंड से खेल रही थी और रघु धीरे से अपने पजामी की डोरी खोल दिया और प्रताप सिंह की बीवी का हाथ पकड़ कर उसे अपने पजामे में डाल दिया,,, रघु का मोटा तगड़ा नंगा लंड हाथ में आते ही प्रताप सिंह की बीवी एकदम से सिहर उठी लेकिन वह रघू के लंड को छोड़ी नहीं बल्कि और मजबूती से पकड़ ली,,, इतनी जोर से कि रघु के मुंह से आह निकल गई,,,। जवान औरत के हाथों से इस तरह से नींद दबाने पर रघु को आनंद ही आनंद प्राप्त हो रहा था,,,, रघु की हालत खराब हुए जा रही थी पर जल्द से जल्द प्रताप सिंह की बीवी को एकदम नंगी कर देना चाहता था इसलिए अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसकी साड़ी को नाभि के नीचे से खोलना शुरू कर दिया,,,,और देखते ही देखते रघु प्रताप सिंह की बीवी की साड़ी को उतार कर तांगे में एक कोने पर रख दिया,,,। प्रताप सिंह की बीवी का दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसे मालूम था कि उसे उसे पूरी तरह से नंगी करने वाला है उसकी जिंदगी में यह दूसरा मर्द था जिसके सामने वह पूर्ण रूप से निर्वस्त्र होने जा रही थी,,,, जिसे वो खुद अपने हाथों से उसके कपड़े उतार कर नंगी करने जा रहा था अपनी मालकिन की आंखों में झांकते हुए उसके पेटीकोट की डोरी को खोलने लगा,,, प्रताप सिंह की बीवी की आंखों में शर्म नजर आ रही थी,,,हालांकि अभी भी उसके हाथ में रघू का मोटा तगड़ा लंड था जिसे वह जोर-जोर से दबा रही थी,,,।उसका लंड इतना ज्यादा कड़क हो चुका था कि लग ही नहीं रहा था कि वह हाड मास का बना हुआ है ऐसा लग रहा था कि वह लोहे की छड़ हो।

देखते ही देखते रखो लालटेन की रोशनी में मदहोश मत मस्त जवानी के कमर से पेटीकोट की डोरी को खोल दिया और उसे दोनों हाथों से पकड़कर नीचे की तरफ खींचने लगा तो भारी-भरकम नितंबों के नीचे पेटीकोट तभी होने की वजह से नीचे नहीं आ रही थी तो प्रताप सिंह की बीवी खुद उसकी मदद करते हुए अपनी भारी-भरकम गांड को थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठा दी और रघु मौका देखते ही अपने दोनों हाथों से ऊसकी पेटीकोट खींचकर तुरंत उसकी मोटी मोटी चिकनी जांघों से होती हुई उसकी टांगों से पेटिकोट निकाल कर उसे भी कोने पर रख दिया,,अब प्रताप सिंह की बीवी जमीदार की बीवी बड़े घर की औरत लोगों के सामने एकदम नंगी लेटी हुई थी रघु लालटेन की रोशनी में उसके गोरे बदन को दमकता हुआ देख रहा था,, रघु की आंखों में उसकी मदमस्त गोरी जवानी देखकर एकदम चमक आने लगी वह मदहोश होने लगा और ऊपर से नीचे की तरफ देखते हुए वह बोला,,,,।

वाहमालकिन आप तो बहुत खूबसूरत है ऐसा लग रहा है कि जैसे स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा मेरे तांगे में आकर बैठ गई है,,,(रघु की बात सुनकर प्रताप सिंह की बीवी शर्मा गईरघु अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उसकी दोनों टांगों को पकड़कर उसे हल्का सा खोलते हुए बोला) देखने तो दो मालकिन जिस चीज को देखने के लिए मैं तड़प रहा था वह चीज कैसी दिखती है,,,,(इतना कहकर वह अपनी मालकिन की दोनों टांगों को खोल दिया,,, टांगों के बीच उसकी मदमस्त फुली हुई बुर को देखकर एकदम बदहवास हो गया,,,वह तो उसे देखता ही रह गया उसका मुंह खुला का खुला रह गया था उत्तेजना के मारे प्रताप सिंह की बीवी की बुर तवे पर गर्म रोटी की तरह खुल चुकी थी जिसके एक दिखी रे रेशमी बालों का गुच्छा था लेकिन गुच्छे के बीच उसकी मखमली गुलाबी बुर बेहद हसीन लग रही थी,,। रघु तो उसे देखकर एकदम पागल हो गया था और प्रताप सिंह की बीवी की हालत खराब हो रही थी क्योंकि उसे अच्छी तरह से मालूम है कि इस समय रघु उसकी बुर को ही देख रहा है,,,

रघु अपनी लालच को रोक नहीं पा रहा था और अपना ही कहा था आगे बढ़ाकर उसकी गुलाबी बुर की गुलाबी पत्तियों को अपनी उंगली से छूकर उसे देखने लगा,,, जिसमें से मदन रास्ते रहा था और उसकी कुछ बोल दे उसकी उंगली पर लग गई और वह उंगली को अपने होठों पर रखकर उसे जीभ से चाटने लगा यह देखकर प्रताप सिंह की बीवी एकदम से शर्म से पानी पानी हो गई,,,,,

मालकिन आपकी बुर तो पानी छोड़ रही है,,,(इतना कहने के साथ ही रघुअपना मुंह के दोनों टांगों के बीच ले गया और उसकी बुर को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया,,,,,प्रताप सिंह की बीवी एकदम से मदहोश हो गई रघु की हरकत की वजह से उसके मुख से गरम सिसकारी फूट पड़ी तो कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि कोई अनजान जवान लड़का उसकी बुर को चाटेगा,,, लेकिन हकीकत तो यह था कि उसे इस बात का पता ही नहीं था कि औरत की बुर चाटी भी जाती है,,,,जब तक उसे इस बात का एहसास हुआ तब तक रघु उसके ऊपर पूरी तरह से छा चुका था मैं पागलों की तरह अपनी जीभ जितना अंदर जा सकती थी उस ना अंदर बुर के अंदर उतार देता था और जीभ से उसके मदनरस को चाट रहा था,,।

आहहहहहह,,,सीईईईईईईईई,,,आहहहहहहह,,,, रघू,,,आहहहहहहह,( प्रताप सिंह की बीवी अपने दोनों हाथ से उसका बाल पकड़कर उसको और जोर से अपनी बुर पर दबा रही थी उसे मज़ा आ रहा था उसने कभी सोची भी नहीं थी कि इस तरह का आनंद भी मिलता है रघु से पूरी तरह से मस्त कर रहा था देखते ही देखते वहां एक साथ अपनी दो उंगली उसकी बुर के अंदर डाल दिया,,,,,

आहहहहह,,,, रघु दर्द हो रहा है,,,,(दो उंगली बुर के अंदर जाने की वजह से वह कराहते हुए बोली,,,)

चिंता मत करो मालकिन थोड़ी देर में मजा आने लगेगा ( वह अपनी दो उंगली जोर-जोर से अंदर बाहर करना शुरू कर दिया उसे मज़ा आ रहा था वह पूरी मस्त हुए जा रही थी रघु उसकी बुर में अपनी दो उंगली जानबूझकर डाल रहा था वह अपने लंड के लिए जगह बना रहा था,,, प्रताप की बीवी एकदम मस्त हुए जा रही थी उत्तेजना के मारे अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठा दे रही थी,,,,रघु को समझती थी और नहीं लगी कि लोहा गर्म हो चुका है बस हथोड़ा मारने की देरी है,,, क्योंकि जिस तरह का जोशप्रताप सिंह के बीवी पर छाया हुआ था उसे देखते हुए रघू को लगने लगा था कि वह उसके मोटे तगड़े लंड को अपनी बुरर के अंदर पूरा का पूरा ले लेगी,,,, यही सोचकर वह बिना एक पल गांवाए,,, अपना कुर्ता पजामा दोनों एक साथ उतार दिया तांगे के अंदर वह भी पूरा का पूरा नंगा हो गया,,, प्रताप सिंह की बीवी की नजर रघु के नंगे बदन पर पड़ी तो वह एकदम पूरी तरह से आकर्षित हो गई एकदम जवान गठीला बदन ऊपर से दोनों टांगों के बीच में लहराता हुआ उसका खंजर जो कि ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी का कत्ल करने जा रहा हो,,,, पहली बार वह रघु के नंगे लंड को देख रही थी जो कि बेहद आकर्षक और मर्दाना ताकत से भरा हुआ लग रहा था जिसे देखते ही उसकी बुर फुदकने लगी,,,,, देखते ही देखते रघूप्रताप सिंह की बीवी की दोनों टांगों के बीच आ गया और उसकी दोनों टांगों को फैलाता हुआ अपने लिए जगह बनाने लगा,,,, प्रताप सिंह की बीवी की गुलाबी बुर मुस्कुरा रही थी,,, मानो वह एकदम खुश हो रही होऔर यह जता रही हो कि आज उसकी बुर में पहली बार कोई मर्दाना लंड जाने वाला है,,,, प्रताप सिंह की बीवी का दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि उसे पता था कि अब रघु का मोटा तगड़ा बंद उसकी पुर के अंदर प्रवेश करने वाला है लेकिन इस बात का अंदेशा उसके मन में था कि इतने मोटे तगड़े लेने को अपनी बुरके गुलाबी छेद मैं पूरी तरह से ले पाएगी कि नहीं,,, लेकिन रघु को पूरा विश्वास था कि जमीदार की बीवी की जवानी पर पूरी तरह से विजय प्राप्त कर लेगा,,,।प्रताप सिंह की बीवी घबरा रही थी इतनी घबराहट तो उसे अपने पति के साथ संभोग करने से भी नहीं हुआ था जितनी घबराहट उसे रघू के साथ हो रहा था,,,
रघु अपने लिए जगह बना चुका था,,, प्रताप सिंह की बीवी की गरम जवानी के चलते उसके पसीने छूट रहे थे,,, देखते ही देखते रघू एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर मालकिन की गुलाबी बुर के ऊपर रख दिया,,,,,।

सससहहहहहह आहहहहहहह,,,,(एक जवान लड़के के मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर की गुलाबी पत्ती पर महसूस करते ही प्रताप सिंह की बीवी अपनी गरम सिसकारी को रोक नहीं पाई और उसके मुख से गर्म सिसकारी फूट पड़ी,,, और उसको इस तरह से सिसकारी लेता हुआ देखकर रघु बोला)

क्या हुआ मालकिन,,,,


मुझे डर लग रहा है रघू,,,,


डरो मत मालकिन बहुत मजा आएगा,,, आखिर लंड बना ही होता है बुर के अंदर जाने के लिए,,, तो डर कैसा,,,(इतना कहकर वह प्रताप सिंह की बीवी की बुरके छेद पर अपना गर्म सुपाड़ा रखकर हल्के से दबाव देता हूंआ अपनी कमर आगे की तरफ ठेलने लगा,,,,, रघु को थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन बुर अपने ही मदन रस से एकदम चिकना हो चुका था जिससे धीरे-धीरे रघु का लंड प्रताप सिंह की बीवी की बुर के अंदर दाखिल हो रहा था और देखते ही देखते गुलाबी बुरके गुलाबी छेद को छेंदता हुआ रघु का लंड अंदर की तरफ जाने लगा,,,,,जैसे-जैसे लंड का सुपाड़ा बुर के अंदर सरक रहा था वैसे वैसे प्रताप सिंह की बीवी के गोरे चेहरे का रंग बदलता जा रहा था,,,, आश्चर्य डर और घबराहट का मिलाजुला असर उसके चेहरे पर दिख रहा था उसका मुंह खुला का खुला था,, रघु एकदम मदहोश हो रहा था,,,,,धीरे-धीरे करके लंड का सुपाड़ा पूरी तरह से बुर के अंदर प्रवेश कर चुका था,,,और एकबार मुंह घुस जाए तो बाकी का शरीर जाने में कहा समय लगता है,,, रघू पसीने से तरबतर हो चुका था,,,।लंड का सुपाड़ा भर गया था,,,और रघू को लग रहा था की मालकिन का पानी
नीकालने में उसे मेहनत करनी होगी,,,

जमींदार की बीवी देखना चाह रही थी कि उसकी बुर में कीतना लंड घुसा हुआ है,,, इसलिए वह अपना मुंह ऊठा कर अपनी दोनों टांगों के बीच देखी तो हैरान रह गई और उसके मुंह से निकल गया कि,,,,

बाप रे अभी तो सुपाड़ा ही गया है अभी तो पूरा लंड बाकी है,,,,
( उसके मुंह से सुपाड़ा शब्द सुनकर रघू एकदम मस्त हो गया और मुस्कुराते हुए बोला)

चिंता मत करो मालकिन लंड भी चला जाएगा,,,बस थोड़ी देर और,,,,


लेकिन मुझे दर्द हो रहा है,, तुम्हारा लंड मोटा तगड़ा है,,,

मजा भी तो उतना ही देगा मालकिन,,,,तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारी बुर की ऐसी सेवा करुंगा कि आप जिंदगी भर याद रखोगी,,,( रघू लंबी सांस लेते हुए बोला,,, और फिर से जोर लगाता हुआ अपनी कमर का दबाव बढ़ाने लगा ,,,देखते ही देखते रघू का लंड ओर अंदर सरकने लगा,,,,थोड़ा थोड़ा करके रघू का लंड उसकी बुर में घुस रहा था,,,यह देखकर रघू के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी,,,और वह अपनी मालकीन से बोला,,,।

तुम्हारी बुर बहुत संकरी है,,,लगता है मालिक ठीक से आपकी चुदाई नहीं करते थे,,,।

तुम ठीक कह रहे हो रघू,,,जितनी देर में तुम बुर में सुपाड़ा घुसा पाए हो अभी वो होते तो इससे भी कम समय में पानी छोड़ दिए होते,,,

तब तो मालकिन,,आप चुदाई का भरपूर आनंद नहीं ले पाई हो,,,,

हां तुम ठीक कह रहे हो,,,, लेकिन आज ऐसा लग रहा है कि तुम मुझे असली सुख दोगे,,,,( वह आसा भरी निगाह से रघू की तरफ देखते हुए बोली,,,)

हां मालकिन,,,तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो,, मैं तुम्हें चुदाई का ऐसा सुख दुंगा की तुम जिंदगी भर याद रखोगी और मेरे लंड की ऐसी दीवानी हो जाओगी की मालीक को छोड़ कर मेरे पास चुदवाने आओगी,,,

( रघु की ईस बात पर वह एकदम से शर्मा गई,,,और शर्मा कर दुसरी तरफ मुंह फेर ली,, रघु को उसका इस तरह से शर्माना बेहद लुभावना लग रहा था और वह इस बार उसकी दोनों मोटी मोटी जांघों को अपने हाथों से पकड़ कर अपनी कमर का ऐसा झटका दिया कि उसका आधा लंड उसकी बुर में घुस गया,,,और जिस तरह से कचकचा कर उसने अपना लंड अंदर घुसेड़ा था प्रताप सिंह की बीवी के मुंह से एक चीख निकल गई,,,,,)

आहहहहह मर गई रे यह क्या किया रघू,,,(और यह देखने के लिए कि कहीं ऊसकी बुर तो नहीं फट गईवह तुरंत मोड खाकर अपनी दोनों टांगों के बीच की स्थिति को देखने लगी लेकिन सब कुछ वैसे का वैसा ही था तब उसके जान में जान आई लेकिन फिर भी उसे दर्द हो रहा था वह अपना लंड बाहर निकालने के लिए रघू को बोलने लगी लेकिन रघू कहा मानने वाला था,,,, वह एक बार फिर से उसकी कमर को थाम कर जोर का झटका दिया और इस बार बुर के अंदर की सारी अड़चनों को दूर करता हुआ उसका मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर की गहराई नापता हुआ सीधे जाकर उसके बच्चेदानी से टकरा गया इस बार फिर से प्रताप सिंह की बीवी दर्द से बिलबिला उठी,,,,, उसे बहुत दर्द कर रहा था वह छटपटा रही थी सर को दाएं बाएं पटक रही थी,,,, औरत के अंगों से मर्द किस तरह से खेलते हैं उड़ी में कैसा सुख देते हैं इस बारे में उसे पहली बार पता चला था तो यह बात भी उसे पहली बार पता चली थी कि जब एक मर्दाना ताकत से भरा हुआ लंड बुर में घुसता है तो औरत को कैसा दर्द देता है वह तो बार-बार उसे अपना लंड बाहर निकालने के लिए बोल रही थी लेकिन रघु जानबूझकर अपना लंड बाहर नहीं निकाल रहा था क्योंकि वह जानता था कि अगर एक बार अपना लंड उसकी बुर से बाहर निकाल दिया तो वह दोबारा उसके अंदर डालने नहीं देगी,,, लेकिन ऐसी परिस्थिति में कैसे रास्ता निकाला जाता है इस बारे में रघू अच्छी तरह से सीख चुका था,,,, इसलिए वह प्रताप सिंह की बीवी को धैर्य बंधाते हुए बोला,,,)


बस बस मालकीन थोड़ा सा,,,,थोड़ी ही देर में सब कुछ बदल जाएगा तुम्हें मजा आने लगेगा बस थोड़ा सा धीरज रखो,,,,(इतना कहने के साथ ही रघु बिना अपनी कमर हिलाई अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उसके दोनों दशहरी आम को अपने हाथों में भर लिया और उसे दबाते हुए उसके ऊपर जाकर उसके गुलाबी होठों को चूसना शुरू कर दिया रघु की हरकत रंग लाने लगी थोड़ी ही देर में दर्द से कराने की आवाज मत भरी सिसकारी में बदल गई उसे मजा आने लगा लेकिन अभी तक रघु अपनी कमर हिलाने का था लेकिन उसे गर्म सिसकारी लेते धीरे-धीरे वह अपनी कमर को ऊपर नीचे करते हुए उसे चोदना शुरू कर दिया,,, प्रताप सिंह की बीवी आनंद से भावविभोर हुए जा रही थी और रखो अपनी कला दिखाएं जा रहा था वह लगातार उसके होठों को चूसता हुआ अपनी कमर हिला रहा था और साथ ही उसकी दोनों चूचियों को दबा भी रहा था प्रताप सिंह की बीवी को दुगना मजा मिल रहा था स्तन मर्दन के साथ साथ चुदाई का आनंद प्राप्त कर रही थी,,,,थोड़ी देर में सी गर्म सिसकारी की आवाज तेज होने लगी तो रघु उसके ऊपर से उठ कर उसकी कमर थाम लिया और अब अपने झटको की गति को तेज कर दिया,,,,

अब कैसा लग रहा है मालकिन,,,,

बहुत मजा आ रहा है रघु,,,,(उत्तेजना के मारे अपने सूखे हुए होठों को थूक से गीला करते हुए बोली)

क्या मालिक ने कभी ऐसी चुदाई की है तुम्हारी,,,,


नहीं रे मुझे तो आज पहली बार मालूम पड़ रहा है की चुदाई ऐसी होती है वरना तेरे मालिक को तो चोदना नहीं आता वह बस ऊपर चढ़ जाते थे और लैंड को गया कि नहीं यह भी पता नहीं चलता था और पानी छोड़ देते थे,,,,


इसका मतलब है मालकिन की शादी के बाद तुम ने सुहागरात का मजा ली नहीं हूं,,,।


ऐसा ही समझ लो रघु,,,,


तो फिर तुम भी ऐसा समझ लो मालकिन कि आज तुम्हारी सुहागरात है आज मैं तुम्हें चुदाई का एहसास होगा कि आज की रात तुम जिंदगी भर नहीं भूलोगी,,,,


मैं भी यही चाहती हूं रघू,,,


जैसा आप चाहती हो वैसा ही होगा मालकिन,,,(इतना कहने के साथ रघु अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर एक बार फिर से अपनी मालकिन के दोनों दशहरी आम को अपनी हथेली में भर लिया और उसे दबाते हुए धकके लगाना शुरू कर दिया,,, रघु के हर धक्के के साथ प्रताप सिंह की बीवी के मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज फूट पड़ रही थी।,,, घने जंगल के बीच बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे चारों तरफ अंधेरा के अंदर तांगा खड़ा करके दोनों जवानी का मजा लूट रहे थे रघु के साथ चुदवाते हुए प्रताप सिंह की बीवी यह भूल चुकी थी कि वह बड़े घर की बहू है, एक बड़े जमीदार की औरत है,,, जिसका समाज में एक रुतबा है पहचान है,,, लेकिन जिस्म की प्यास यह सब कहां देखती है जिस्म की जरूरत यह सब बंधनों को कहां मानती है,,, जिस्म की प्यास के आगे सारे बंधन नाते बेफिजूल के लगने लगते हैं उन्हें तो बस अपने बदन की प्यास बुझाने से मतलब होता है अपनी वासना मिटाने में होता है और यही हो भी रहा था वरना कहां जमीदार की बीवी और कहां गांव का आवारा लड़का रखो दोनों का किसी भी तरह से मेलजोल नहीं था,,, लेकिन दोनों की जरूरत एक थी जमीदार की बीवी को तनसुख चाहिए था और गांव के लड़के रघु को एक बड़े घर की औरत की बुर चोदने के लिए चाहिए थी जो कि दोनों अपनी अपनी अभिलाषा में उतरते चले जा रहे थे दोनों एक दूसरे के बदन से अपने लिए सुख ढूंढ रहे थे,,,, देखते ही देखते रघु का जलवा टांग के अंदर लालटेन की रोशनी के बीच छाने लगा रघु के हर धक्के के साथ प्रताप सिंह की बीवी आगे की तरफ सरक जा रही थी और रघु यह देख कर अपना दोनों हाथ आगे बढ़ाकर उसके दोनों कंधों को थाम लिया और जोर जोर से धक्के लगाने लगा प्रताप सिंह की बीवी पहली बार जिंदगी में चुदाई के असली सुख से वाकिफ और संभोग सुख के अंदर कितनी मिठास कितनी देर कितनी तृप्ति भरी हुई है यह उसे पहली बार एहसास हो रहा था और वह इस एहसास में पूरी तरह से डूब चुकी थी अपने आपको भीगो चुकी थी,,,, रघु भी प्रताप सिंह की बीवी की टांगों के बीच के संकरे रास्ते से होता हुआ अपने लिए मंजिल ढूंढ लिया था,,, कुछ देर पहले प्रताप सिंह की बीवी को यही लग रहा था कि रघु का मोटा तगड़ा लंबा लंड उसकी बुर की गहराई में कभी नहीं घुस पाएगा लेकिन अब बिना किसी परेशानी के रघु का वही मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर में बड़े आराम से अंदर बाहर हो रहा था और उसे आनंद की अनुभूति करा रहा था,,,,

तकरीबन 40 45 मिनट की गजब मदमस्त कर देने वाली चुदाई से भाव विभोर होकर प्रताप सिंह की बीवी के मुख से निकलने वाली सिसकारी की आवाज तेज होने लगी,,,वह बात अच्छी तरह से जानती थी कि इस वीराने में उसकी तेज सिसकारी की आवाज को सुनने वाला वहां कोई नहीं था इसलिए बेफिक्र होकर तेज तेज सिसकारी की आवाज निकाल रही थी और अपनी मालकिन की इस तरह की मादक सिसकारियां को सुनकर रघु का जोश बढ़ता जा रहा था,,, अपनी मालकिन की बढ़ती हुई शिसकारियों को देखकररघु समझ गया कि उसका पानी निकलने वाला है और साथ ही उसका भी चरम सुख की तरफ बढ़ने लगा था,,, रघु के धक्के तेज हो गए किसी मशीन की तरह उसकी कमर ऊपर नीचे हो रही थी,,, और देखते ही देखते रघू प्रताप सिंह की बीवी के पेट के नीचे अपनी दोनों हाथों को डालकर उसे अपनी बाहों में जकड़ दिया और जोर-जोर से अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया देखते ही देखते प्रताप सिंह की बीवी अपनी बुर से पानी छोड़ने लगी और थोड़ी देर बाद रघु भी अपना गरम लावा की पिचकारी प्रताप सिंह की बीवी की बुर में फेंकने लगा प्रताप सिंह की बीवी अपनी बुर के अंदर रघू के लंड से निकली हुई पिचकारी को अच्छी तरह से महसूस कर रही थी,,,। जो कि यह एहसास उसकी जिंदगी में पहली बार से हो रहा था पहली बार उसे महसूस हो रहा था कि लंड की पिचकारी इतनी तेज होती है,,, वह एकदम भाव विभोर हो गई थी और मदहोश होकर रघु को अपनी बाहों में भर ली थी,,, रघु भी हांफता हुआ उसके ऊपर पसर गया था,,,, लेकिन खेल अभी खत्म नहीं हुआ था अभी तो सारी रात बाकी थी।
Behtareen update
 
Top