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Adultery बाबा ठाकुर (ब्लू मून क्लब- भाग 2)

कहानी का कथानक (प्लॉट)

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naag.champa

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बाबा ठाकुर
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(ब्लू मून क्लब- भाग 2)
~ चंपा नाग ~
अनुक्रमणिका

अध्याय १ // अध्याय १ // अध्याय ३ // अध्याय ४ // अध्याय ५
अध्याय ६ // अध्याय ७ // अध्याय ८ // अध्याय ९ // अध्याय १०
अध्याय ११ // अध्याय १२ // अध्याय १३ // अध्याय १४ // अध्याय १५
अध्याय १६ // अध्याय १७ // अध्याय १८ // अध्याय १९ // अध्याय २०
अध्याय २१ // अध्याय २२ // अध्याय २३ // अध्याय २४ // अध्याय २५
अध्याय २६ // अध्याय २७ // अध्याय २८ // अध्याय २९ // अध्याय ३०
अध्याय ३१ // अध्याय ३२ (समाप्ति)


प्रिय पाठक मित्रों,

बड़ी उत्साह के साथ और बड़ी खुशी के साथ मैं आपके लिए एक नई कहानी प्रस्तुत करने करने जा रही हूं| इस कहानी को मैंने बहुत ही धैर्य से और बड़े ही विस्तार से लिखा है| आशा है कि यह कहानी आप लोगों को मेरी लिखी हुई बाकी कहानियों की तरह ही पसंद आएगी क्योंकि इस कहानी को लिखने का मेरा सिर्फ एकमात्र ही उद्देश्य है वह है कि अपने पाठक बंधुओं का मनोरंजन करना|

मुझे आप लोगों के सुझाव, टिप्पणियां, कॉमेंट्स और लाइक्स का बेसब्री से इंतजार रहेगा|
PS और अगर अभी तक आप लोगों ने इस कहानी का पहला भाग नहीं पड़ा हो तो जरूर पढ़िएगा| पहले भाग का लिंक नीचे दिया हुआ है
ब्लू मून क्लब (BMC)

~ चंपा नाग ~



यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है और इसका जीवित और मृत किसी भी शख्स से कोई वास्ता नहीं। इस कहानी में सभी स्थान और पात्र पूरी तरह से काल्पनिक है, अगर किसी की कहानी इससे मिलती है, तो वो बस एक संयोग मात्र है| इस कहानी को लिखने का उद्देश्य सिर्फ पाठकों का मनोरंजन मात्र है|
 
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Tiger 786

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अध्याय १७



मैं जानती थी कि वक्त आ गया है कि मुझे उसे थोड़ा बहकाना होगा... क्योंकि मुझे पक्का यकीन हो गया था कि वह मेरे साथ यौन करना चाहती है... यह लड़की बड़ी हो गई है, इसके कच्चे आम पक चुके हैं... मुझे इसको थोड़ा बहकना पड़ेगा; अगर मैंने ऐसा नहीं किया तो पता नहीं यह किसके साथ क्या कर लेगी और खराब हो जाएगी और मैं ठहरी ब्लू मून क्लब की हॉट गर्ल्स की फायर ब्रिगेड की एक प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल; मुझे तो इन सब चीजों में मजा भी आता है और मुझे ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने अच्छी खासी तालीम भी दे रखी है|

"अरे वाह! तेरे होठों का स्वाद भी बहुत अच्छा है और हां उम्र के हिसाब से तेरा बदन भी अच्छी तरह से खिल उठा है... लेकिन तू इतना शर्माती क्यों है?" यह कहकर मैंने आरती के स्तनों की चूचियों में हल्की सी चिकोटि काठी|

आरती ने एक लंबी सी आह भरी… और वह तब भी अपनी आंखें मूंदे मेरे स्तनों से खेल रही थी|

"क्या बात है री आरती? तू क्या इसी तरह अपनी आंखों को मूंदकर ऐसे ही बैठी रहेगी या फिर मुझे थोड़ा प्यार भी करेगी? देख तूने मुझे आधी नंगी तो कर ही दिया है..."

आरती ने धीरे से अपनी आंखें खोली और उसने मुझे कसकर जकड़ लिया और जैसे ही मुझे उसके नंगे बदन की छुअन महसूस हुई मुझे ऐसा लगा कि मेरे पूरे बदन में जैसे बिजली की एक लहर सी दौड़ गई... बाप रे बाप! इस लड़की के अंदर जवानी की गर्मी तो बिल्कुल उबल रही है... जैसे कि एक ज्वालामुखी जो किसी भी वक्त फट सकता है... आरती मुझसे लिपटकर फूट-फूट कर रोने लगी...

मैंने बड़े प्यार से आरती से पूछा, "तू रो क्यों रही है, आरती?"

"पीयाली दीदी, न जाने क्यों मुझे पता नहीं कैसा कैसा लग रहा है... मुझे तुमको बहुत प्यार करने का मन कर रहा है... सचमुच तुम बहुत ही सुंदर हो"

मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "ठीक है ठीक है, अब जल्दी से नंगी हो जा तोरे लड़की... मैं भी अपनी साड़ी उतार के बिस्तर पर चित्त होकर लेट जाती हूं मैं चाहती हूं कि तुम मुझे जी भर के प्यार करें"

"हां पीयाली दीदी जरूर" यह कहकर आरती ने अपने होठों को मेरे गालों से सटा के मुझे चूमा उसके बाद वह हड़बड़ा कर उठ कर मेरे सामने खड़ी होकर अपनी साड़ी उतारने लगी|

उसने जल्दी-जल्दी अपनी साड़ी उतार कर बिस्तर की एक तरफ रखा उसके बाद उसने अपनी पेटिकोट किनारे में लगी गांठ को खींच कर खोल दिया और अपने पेटिकोट को थोड़ा ढीला किया... ऐसा करते ही उसका पेटीकोट छठ से जमीन पर गिर गया| आरती ने बेटी नहीं पहन रखी थी और वह भी शब्द मेरे सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी... मैंने उसको ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह से देखा... उसके सर के बाल अस्त-व्यस्त थे... यौनांग के आसपास काफी सारे बाल थे... उसकी आंखें बड़ी बड़ी हो चुकी थी और वह एक अजीब से आवेग मन में लिए हुए मेरी तरफ देख रही थी... मैं समझ गई कि यह लड़की बड़ी हो चुकी है; लेकिन इसको आज तक यौन संतुष्टि नहीं मिली है... अच्छा हुआ कि कोई गलती करने से पहले यह मेरे हत्थे चढ़ गई... मैं इसको वो खुशी दे सकती थी जिसकी से जरूरत है... मुझे ऐसा लग रहा था कि आज तक उस नेता का झांकी करके जो भी देखा है उन सब चीजों ने उसके अंदर जवानी की आग में घी का काम किया था... मेरा अंदाजा बिल्कुल सही था उसका ज्वालामुखी अब फटने वाला था... हां मैं भी एक औरत हूं और आरती गांव की एक सीधी-सादी लड़की है लेकिन मैं उसके मन की बात को समझ सकती हूं... उस लड़की को थोड़ी शांति की जरूरत है... और उस शांति का स्वाद उसे आज मिलने वाला है... क्योंकि मैं उसकी मदद करने वाली हूं|

आरती फटी फटी आंखों से मुझे देखती हुई यह इंतजार कर रही थी कि कब मैं अपनी साड़ी उतारो... इसलिए मैंने ज्यादा देर नहीं की, मैं उठ कर खड़ी हो गई और जानबूझकर उसकी तरफ पीठ करके खड़ी होकर धीरे-धीरे अपने साड़ी उतारने लगी और उसे उतारने के बाद मैंने साड़ी को तह करके मिस्र की एक तरफ रख दिया और फिर बिस्तर पर घुटनों के बल उठकर वह उल्टी लेट गई... मुझे मालूम था कि आरती को चैन नहीं मिल रहा था... वह भागकर मेरे पास आई और मेरे पीठ और कूल्हों को सहलाने लगी... मैं धीरे-धीरे सीधे ऊपर लेट गई और मुझे ऐसा लगा जैसे आरती की निगाहें मुझे सर से पांव तक मानों छू गई... मैंने अपनी दोनों टांगों को फैला कर उसे अपने पास आने का इशारा किया... उसने भी देर नहीं की और एकदम कूद के बिस्तर पर चढ़ गई और मेरे ऊपर लेट गई और एक पगली की तरह वह मेरे दोनों गालों को चूमने लगी... मैं भी कुछ देर तक आरती के नंगे बदन को अपनी बाहों और टांगों से जकड़ी रही...

उसके अंदर फूटती जवानी की आग की गर्मी से न जाने क्यों मुझे भी एक अनजाना सा सुख मिल रहा था... उसके उलझे उलझे बालों से मेरा चेहरा लगभग लग गया था... उसके यौनांग के बालों की छुअन मेरी योनि के अधरों में एक अजीब सी गुदगुदी से पैदा कर रही थी... और हां उसके बालों का पर्दा जो मेरे चेहरे पर पड़ा हुआ था मानो वह मुझे इस जहान की असलियत को परे रखकर हम दोनों एक नया आनंद उठाने के लिए थोड़ी बहुत गोपनीयता दे रहा था... और आरती वह पूरे जोश के साथ मुझसे लिपटकर अपने शरीर के हर हिस्से से मेरे नंगे बदन की छुअन का एहसास लेने में मस्त थी... उसे अब इस दुनिया जहान से कोई मतलब नहीं था...

मैंने आरती का चेहरा अपने हथेलियों पर थाम कर उसके होंठों को चूमा और उसके बाद हल्के हल्के मैं उसके होठों को अपने दांतों से काटने लगी और फिर अपनी जीभ से उसके होठों को चाटने लगी|

कुछ देर के लिए आरती का बदन थोड़ा सा सख्त सा हो गया और वह हल्का-हल्का कांपने लगी... उसकी सांसे गहरी और लंबी होती गई... फिर मैंने गौर किया वह भी मेरी देखा देखी मेरा नकल उतारने लगी... उसने मौका ना गवां कर वह मेरे होठों को भी अपनी जीभ से चाटने लगी... मैंने भी मौके पर चौका लगा दिया|

उसकी जीभ को अपने मुंह के अंदर लेकर मैं चूसने लगी... उसकी जीभ का स्वाद मानो बहुत ही अद्भुत था; मुझे अच्छा लग रहा था|

"उम्मम्म...." आरती ने एक दबी सी आह भरी...

वह मेरे आगोश में हल्की हल्की हिलने डुलने लगी थी इसलिए मैंने उससे कसकर जकड़ लिया और उसके नरम नरम पर जवानी के कसाव में भरे पूरे कूल्हों को जोर-जोर से अपने हाथों से दबाने लगी... मैं जानती थी कि मेरा ऐसा करने से आरती को बड़ा मजा आ रहा है... इसलिए वह मुझसे अपनी पूरी ताकत से लिपटी हुई पड़ी रही... उसके बाद... मेरा हाथ थोड़ा नीचे चला गया... मैं उसके मलद्वार और यौनांग के बीच के हिस्से को हल्का हल्का दबा दबा कर और फिर हिला हिला कर उकसाने लगी...

"उम मम्म ... उम मम्म ... हुहूहुहू" अब आरती से रहा नहीं गया| वह मारे उत्तेजना के फूट-फूट कर रोने लगी... लेकिन मैं जानती थी कि उसका यह रोना-धोना एक अजीब सी खुशी के एहसास की वजह से है... अब मैं उसके ऊपर लेटी हुई थी और वह मेरे बदन के नीचे दबी हुई थी, इसलिए वह ज्यादा हिलडुल नहीं पा रही थी... लेकिन फिर भी न जाने उसने कहां से थोड़ी सी ताकत जुटाकर अपने सुडौल स्तनों को मेरे स्तनों से किसने लगी... अब मेरा हाथ उसके यौनांग पर चला गया और मैंने गौर किया कि उसकी झांटे हल्की-हल्की गिली गिली सी लगने लगी थी... उसकी कामना का रस झरने लगा था; मैं भी एक नारी हूं इसलिए मैं जानती थी कि अब ज्यादा देर करने की जरूरत नहीं है... उसके बदन से अपने आपको अलग किया और मैंने उसको सर से पांव तक एक बार देखा... आरती मानो किसी अनजानी कशिश में चटपटा सी रही थी और मेरा सारा चेहरा उसके चूमने चाटने की वजह से उसकी लार शकीला हो रखा था... मैंने अपनी तर्जनी और मध्यमा उंगली को अपने मुंह में डाला और जितना हो सके अपनी थूक से गिला किया...

"अपनी दोनों टांगों को जरा फैला दे लड़की..." मैंने अपना मुंह की कान के पास ले जाकर हल्के से फुसफुसाया...

आरती ने भी देर नहीं की... शायद उसे मालूम था कि मैं उसके साथ क्या करने जा रही हूं... उसने झट से अपनी दोनों टांगे फैला दी|

मैंने उसकी योनि के अंदर अपनी गीली गीली दो उंगलियां घुसा दी|

आरती को मानो करंट का झटका लगा उसका सारा शरीर फिर से कांप उठा... उसकी सांसे फूटने लगी... मुझे मालूम था मुझे क्या करना है, इसलिए मैंने अपनी उंगलियों से उसके भगोष्ठ (क्लाइटोरिस) को उकसाने लगी...

"पीयाली दीदी...पीयाली दीदी... ना ना ना ममममम" आरती अब कराहने लगी थी|

मैं मुस्कुराती हुई उसकी योनि में अपनी उंगलियों से मैथुन करने लगी... और जैसे किसी पतीले में गरम दाल उबलने लगती है मैं जानती थी की आरती के अंदर वैसा ही वासना का उबाल आ रहा था... आरती की सांसे अब और गहरी और तेज होने लगी है... उसकी सांसों के साथ उसके सुडोल स्तन ऊपर नीचे होने लगे... मैंने उसको चूमना चाटना शुरू कर दिया... और जितना हो सके उसे प्यार करने लगी... वह छ्टपटाती हुई अपना सर दाएं बाएं पागलों की तरह कर रही थी.. मैंने अपनी उंगलियों से उसकी मैथुन की गति बढ़ा दी...

"पीयाली दीदी.... रुकना मत.. रुकना मत.... आआआआ"

आरती का नंगा बदन एक बार फिर से कांप उठा... और वह इस बार रोने लगी... मुझे पता चल गया कि उसके अंदर अब कामना कि आनंद का विस्फोट हो चुका है.... इसलिए मैंने उसका चेहरा अपने नंगी सीने से लगा लिया... आरती एकदम निढाल सी पड़ी हुई थी... लेकिन मेरी छाती से उसका चेहरा जैसे ही लगा, उसने मेरे स्तनों की चूचियों को चूसना शुरू कर दिया... उसके बदन नरम नरम और गरम गरम छुअन का एहसास मुझे भी मानव मदहोश कर रहा था... अब सुखाने की बारी मेरी थी मैं उसकी तरफ मुंह करके लेट कर ही... अपनी योनि में उंगली डालकर हिलाने लगी... और बीच-बीच में आरती को चूमने चाटने लगी... उसके होंठ, माथे पर, कान की लौ... जहां तक मेरा मुंह पहुंच पाता मैंने उसके शरीर का एक इंच भी नहीं छोड़ा... आरती अभी भी निढाल सी होकर पड़ी हुई थी बस थोड़ी थोड़ी देर में हल्का-हल्का कापसी रही थी... बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के साथ दो बार संभोग करने के बाद भी मुझे जो खुशी नहीं मिली थी... वह मुझे इतनी देर बाद आरती के जरिए मिल गई|

कुछ देर बाद... मैं भी शांत हुई... और फिर उससे लिपट कर लेट गई...

ना जाने कब हम दोनों की आंख लग गई... और हम दोनों एक सुकून भरी गहरी नींद में सो गए|

क्रमशः
Bohot hi kamuk update 👏👏👏👏👏👏💯💯💯💯💯💯💯
 
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Tiger 786

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अध्याय १८



न जाने कहां से मेरे कानों में इलेक्ट्रिक गिटार की एक जानी पहचानी सी धुन गूंजने लगी... यह धुन मुझे बहुत पसंद है... फिर अचानक मुझे ध्यान आया कि यह तोमेरे मोबाइल फोन का रिंगटोन है| मैं इतनी गहरी नींद सो गई थी कि मुझे आंखें खोलने के बाद दो-तीन पल यह समझने में लग गए कि अब शाम होने को आई है और मेरा फोन बज रहा है... और मैं बिल्कुल नंगे बदन सो रही थी... और मेरे बगल में आरती भी बेसुध होकर हाथ पैर फैलाए गहरी नींद में डूबी हुई थी और वह भी नंगी थी|

मैंने अपनी आंखों को मल कर फोन उठाया और देखा कि ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने s.m.s. किया है-'Payment received make our client happy... :) I have taught you everything I know (पेमेंट मिल गया है... हमारे ग्राहक को खुश कर देना| मैंने तुम्हें वह सब सिखा दिया है जो मुझे आता था)'

इसका मतलब बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ बाबा ठाकुर पंडित एकनाथने ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा को पैसे दे दिए... मुझे भोगने के लिए|

मैं मुस्कुराई और फिर मैंने जवाब भेजा, 'Ok'

और जैसे ही मेरी नजर दीवार पर टंगी घड़ी की ओर गई है तो मैं एकदम चौंक उठी| शाम के साढ़े पॉंच बज रहे थे... ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा

ने मुझे अच्छी तरह समझा-बुझाकर भेजा था| मैं यहां सिर्फ रंगरेलियां मनाने नहीं आई हुई थी| मुझे बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को जी भर के खुश भी करना था- जैसे कि गांव की गृहणियाँ करती हैं|

और ऐसा करने के लिए मुझे दिखने में बिल्कुल तरोताजा और खूबसूरत बन के रहना था और साथ ही चंगा और यौन रूप से तैयार रहना था|

खुद को इस अंदाज में डालने के लिए मुझे क्या करना है मुझे अच्छी तरह मालूम था| मैंने जल्दी-जल्दी बिस्तर से उतर कर बैग में रखी रम की बोतल खोल कर उसमें से दो घूँट गटक गई... लेकिन मुझे मालूम था आरती या फिर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को इसका पता नहीं चलना चाहिए इसलिए मैंने दोबारा अपने बैक को खंगाला और मुझे पुदीन हरा एक स्ट्रिप मिल गई|

मैंने जल्दी-जल्दी उसमें से दो गोलियां निकाल कर चबा गई| अब शराब की कोई बदबू नहीं आएगी|

उसके बाद जब मेरी नजर आरती पर पड़ी तो न जाने क्यों मैं एक पल के लिए चौंक उठी|

उसे देख कर मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद मैं अपना ही प्रतिबिंब देख रही हूं... मुझे उस दिन की याद आ गई.... जब मैं अपनी तालीम के दौरान एक दिन ठीक ऐसे ही यौन तृप्ति के बाद ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा कि बिस्तर पर बिल्कुल नंगी सो रही थी... मैरी डिसूजा मुझे नींद से जगाने की कोशिश कर रही थी और मुझे याद है आज जैसे आरती बेसुध होकर चेहरे पर एक अजीब सी संतुष्टि और होठों पर एक अध - खिली सी मुस्कान लिए गहरी नींद में डूबी हुई थी- मैं मन ही मन सोच में पड़ गई- क्या आज मैंने गांव की एक सीधी-सादी लड़की के अंदर कामना की अग्नि को और भड़का दिया है? नहीं वह तो बड़े दिनों से इस घर में बहुत कुश्ती होती है आ रही है... बहुत ही छोटी उम्र में ही उसने बहुत कुछ देख- सुन लिया और जान लिया था... नहीं यहां मेरी कोई भी गलती नहीं है... यह लड़की और मैं भले ही मेरे से छोटी हो लेकिन यह जवान और सयानी हो चुकी है... गांव में तो इसकी उम्र की लड़कियों की कब की शादी हो चुकी होती है और बच्चे भी हो चुके होते हैं... पर अब तक यही सोच रही है कि मैं भी दूसरी औरतों की तरह बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के घर गर्भवती होने के लिए आई हुई हूँ|

मेरे घड़ी की ओर देखा छः बज कर पाँच मिनट| सूरज डूब चुका था... पर आकाश में लालिमा अभी भी छाई हुई थी| इतनी देर में ब्लू मून क्लब के ड्राइवर अनवर मियां भी बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को लेकर शहर से गांव की ओर रवाना हो चुके होंगे|

परंपरा के अनुसार महिलाओं को इतनी देर तक सोते नहीं रहना चाहिए इसलिए मैं आरती को हिला हिला कर उठानेकी कोशिश करने लगी,"अरी ओ आरती... आरती? बड़ी देर हो गई है उठ जा... चल चल चल... उठ जा- उठ जा- उठ जा... देखअंधेरा होने को आया है… अरी छोरी, इतनी बड़ी होकर बिल्कुल घोड़ी बन गई है पर अभी भी सो रही है- चल, जल्दी कर उठ जा"

लेकिन उसकी नींद खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी|

इसलिए हार कर मैंने ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की तकनीक को आजमाया मैं उसके होठों को चूमने लगी और उसके योनि के अधरों को अपनी दो उंगलियों से तेजी से मलने लगी| यह तरकीब काम आ गई| आरतीने मुस्कुराकर अपनी आज खुली आंखों से मुझे देखा और फिर मुझसे लिपटकर दो तीन बार चुम लिया|

मैंने उससे कहा, "हे भगवान! मैं तुझे कल से बुला रही हूं और अब जाकर तेरी नींद खुली है... अब जा जल्दी से नहा ले... बाबा ठाकुर आते ही होंगे हमें घर भी तो संभालना है

"पीयाली दीदी... आंखें खोलते ही तुम्हें नंगी देखकर मुझे बड़ी खुशी हो रही है... यकीन मानो तुम बहुत सुंदर हो... थोड़ी देर तुम मुझे अपनी गूद (यौनांग) में उंगली करने दो ना..."

"नहीं..." मेरे झूठ मुट नाराज होने का नाटक किया|

आरती थोड़ा भौंचक्की सी हो गई| शायद मुझे ऐसे नाराज होने का नाटक नहीं करना चाहिए था क्योंकि शायद उसने उसे सच मान लिया था|

इसलिए मैंने अपनी हथेलियों में उसका चेहरा थाम कर प्यार से कहा, "तू तो जानती है कि बाबा ठाकुर सुबह ही मेरे साथ संभोग करके गए हैं... उनका आशीर्वाद (वीर्य) मेरी गूद (यौनांग) अभी भी भरा हुआ है... और तू सोच रही है कि तू मेरी गूद (यौनांग) में उंगली डालेगी और उसके बाद वही उंगली अपनी गूद (यौनांग) मेरी डालेगी... तो सोच ले तेरा क्या हाल होगा... कहीं तेरा भी पेट फूल गया तो?"

"अरे बाप रे मैं तो भूल ही गई थी... कि तुम बाबा ठाकुर से चुदी हुई हो... तुम्हारे गूद (यौनांग) में अभी भी उनका सड़का भरा हुआ है..." आरती की नींद शायद पूरी तरह से खुली ही नहीं थी...

"ओफ़ ओ! यह कैसी अभद्र भाषा है... तू अपने दो टांगों के बीच का हिस्सा तो देख- ऐसा लग रहा है कि तूने वहां सुंदरवन का सारा जंगल पाल रखा है... जा जल्दी से नहा कर आ"

"ही ही ही ही ही ही ही ही"

***

बाबा ठाकुर पंडित देखना था जहां रहते थे, वह एक ग्रामीण इलाका था और गांव में वक्त बेवक्त बिजली का कुल हो जाना आम बात है|

उस दिन भी पूरे इलाके में बत्ती नहीं थी लेकिन कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि घर में मोमबत्तियां और लालटेन की कोई कमी नहीं थी| मैंने और आरती ने नहाने धोने के बाद, मिलकर हर कमरे में मोमबत्ती या फिर लालटेन जला दी|


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फिर मुझे ध्यान आया कि यहां आते वक्त है ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने एक सुगंधित मोमबत्ती भी ला कर दी थी| मैंने उससे बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के कमरे में रोशन कर दिया| सच में, मैरी डिसूजा एक बहुत ही तजुर्बे दार औरत है| उनमें परिस्थितियों का अनुमान लगाने की अदभुत क्षमता थी|

मेरे पास दो तीन तरह के परफ्यूम भी थे| मैंने उनमें से चुनकर एक स्रैण यौन मादक सुगंधी अपने ऊपर लगा ली|

उसका सर ऐसा था की आरती ने भी कह डाला, " वाह पीयाली दीदी,! वाह... तुम तो एक परी की तरह महक रही हो..."

इतने में आरती ने मेरे पैरों में सुंदर तरीके से आलता पहना दिया था... मेरी मांग सिंदूर से भरी हुई थी, हाथों में किसी भी बंगाली ग्रेबलों की तरह शाँखा और पौला पहन रखा था| ब्रा, पेंटी पेटिकोट या ब्लाउज पहनना तो मना था... इसलिए मैंने बदन में सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी| साड़ी बंगाली बात की थी और क्रीम कलर की थी और उस पर मोटा चौड़ा सा लाल रंग का बॉर्डर था...

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के दिए हुए अनुदेश के अनुसार मैंने अपने बालों को खुला छोड़ रखा था|

मैंने आंखों में काजल और फिर होठों पर लिपस्टिक लगाया और फिर अपने आप को आईने में देखने लगी है इतने में मेरी नजर मेरे पीछे खड़ी आरती पर भी पड़ी... और उसकी नजरों से ही मैं समझ गई कि उसका जी मुझे चूमने के लिएललचा रहा था... वरना चेहरा मेरे पास ला ही रही थी कि इतने में हमें बाहर से गाड़ी की आने की आवाज और उसका हॉर्न सुनाई दिया...

ब्लू मून क्लब के ड्राइवर अनवर मियां बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को अपने साथ लेकर यहां गांव के घर में पहुंच चुके थे|

बाबा ठाकुर की आहट से आरती थोड़ा सचेत हो गई है, लेकिन वह यह बोलने से नहीं चुकी , "तुम बहुत सुंदर लग रही हो पीयाली दीदी"

उस दिन अमावस्या की रात थी| आकाश में चांद नहीं दिखाई दे रहा था लेकिन गांव का आकाश तारों से भरा हुआ था जिसकी वजह से चारों तरफ एक अजीब सी आभा छाई हुई थी| ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था|

मैं जल्दी-जल्दी हाथ में लालटेन लिए घर के सदर दरवाजे तक गई ताकि मैं बाबा ठाकुर यहां आने का स्वागत कर सकूं|

बाबा ठाकुर ने मेरी तरफ देखा और मैं समझ गई की आरती सच कह रही थी शायद बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मन ही मन शायद आरती के बातों को ही दौरा रहे थे, 'पीयाली तुम बहुत ही सुंदर लग रही हो...'

उन्होंने मुझसे पूछा, "आरती कहां है?"

मैंने कहा, "जी वो रसोई में है- आपके लिए चाय नाश्ता बना रही है"

उन्होंने कहा,"ठीक है, मैं अभी नहा धोकर आता हूं..."

मैं समझ गई कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ नहाने धोने के बाद अपने कमरे में जाएंगे और वहां उन्हें मेरी उपस्थिति की बहुत जरूरत होगी| इसलिए मैंने उनके हाथों से उनका बैग लिया जो वह अपने साथ शहर लेकर गए थे और फिर चुपचाप सर झुकाए जानबूझकर अपने कूल्हों को मटका हुई उनके कमरे मैं जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगी| मैं जानती थी कि मैंने उनका ध्यान अपनी तरफ पूरी तरह से आकर्षित कर लिया है|

पर ना जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि इस बैग में कुछ सामान रखा हुआ था और वह थोड़ा भारी लग रहा था|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ थोड़ी ही देर में नहा धोकर तरोताजा होकर अपने कमरे में आ गए| वहां तो मैं पहले से ही उनका इंतजार कर रही थी|

मुझे ऐसे ही कमरे में आए मैंने घुटनों के बल बैठ कर अपना माथा जमीन पर टेक दिया और अपने बालों को सामने की तरफ फैला दिए|

मेरे अध -धगीले बालों पर अपने दोनों रखकर बाबा ठाकुर ने मुझे आशीर्वाद दिया और फिर दो कदम पीछे हट गए| मैंने उठकर अपने बालों में जुड़ा बांध लिया- यह इस बात का प्रतीक है कि मैंने उनके चरणों की धूल को अपने माथे पर ग्रहण किया है|

और जैसे ही मैं खड़ी हुई बाबा ठाकुर ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मैं नहीं जान पूछ कर अपना यौनांग उनके यौनांग बिल्कुल सटा दिया और अपने स्तनों को उनकी छाती से और फिर मैं भी उनसे लिपट गई... मेरे लगाए हुए परफ्यूम से बाबा ठाकुर जरूर मुग्ध हो गए थे... उन्होंने मुझे दो-तीन बार छूना और फिर अपने हाथों से मेरे बालों को खोल कर मेरे पेट में फैला दिए और फिर बिस्तर पर मेरे कंधे पर हाथ रखकर मेरे बदन पर दूसरा हाथ फेरते हुए मुझे प्यार करने लगे| मैं भी उनके कंधे पर सर रखकर उनकी पीठ पर हाथ फेरने और मेरा दूसरा हाथ उनकी जांघों पर चल रहा था... कितने में बाबा ठाकुर ने मेरा हाथ अपने लिंग पर रख दिया|

बाबा ठाकुर में कोई अंतर्वास नहीं पहन रखा था इसलिए मैं उनके खड़े और सख्त होते हुए लिंग को अच्छी तरह से महसूस कर पा रही थी और साथ ही साथ में उनका इशारा भी समझ गई|

बाबा ठाकुर ने अपने घुटनों को फैला दिया और मैं जमीन पर घुटनों के बल उनके दो टांगों के बीच में जमीन पर बैठ गई... और फिर मैंने उनकी लुंगी उठाकर उनके यौनांग उन्मुक्त किया और फिर अपनी मुट्ठी में उनका सशक्त और खड़ा हुआ लिंग अपनी कोमल मुट्ठी में लेकर हल्का-हल्का ऊपर नीचे हिलाने लगी... और कुछ क्षणों बाद मैंने उनका लिंग अपने मुंह में ले लिया और फिर उसे चूस चूस कर अपने दांतो से हल्का काटते हुए अपने हाथों से उनका लिंग थोड़ा दीदी से ऊपर नीचे हिलाने लगी...

हस्तमैथुन तनाव और थकान दूर करने का एक बहुत ही अच्छा तरीका है- बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ खुशनसीब है जो मैं उनकी इस सेवा के लिए हाजिर हूं...

मैं मन ही मन सोच रही थी कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ शायद भूल गए हैं की आरती चाय नाश्ता लेकर अभी ऊपर आती ही होगी इसलिए मुझे वक्त का भी ध्यान रखना है... यह सोचकर मैंने बाबा ठाकुर की हस्तमैथुन की गति बढ़ा दी...

***

अब तक बिजली आ चुकी थी- उम्मीद करती हूं कि शायद रात भर बिजली रहेगी...

रात को खाना खाने के बाद| मैं बाथरूम में गई अपना बहुत अच्छी तरह से धोया, दांतों में ब्रश किया और फिर मुस्कुराती हुई अपना यौनांग और मलद्वार को अच्छी तरह से हाथों में साबुन मल कर धोया... और बाथरूम में जाने से पहले मैं अपने साथ चुपके से 'अफ़रोडिसियक' (कामोत्तेजक दवाई) की गोली वाली स्ट्रिप भी लेकर आई थी जिसमें से एक गोली मैंने खा ली| बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मुझे काफी पैसा खर्च करके अपने पास लेकर आए थे| इसलिए मुझे उनकी पूर्ण यौन संतुष्टि और और भोग विलास का ध्यान रखना था... और इसके लिए मुझे भी अपनी काम उत्तेजना को बरकरार रखना था क्योंकि यह मेरा कर्तव्य था और कर्तव्य करते वक्त मुझे थकना नहीं था|

आखिरकार मैं ब्लू मून क्लब की मालकिन मेरी डिसूजा की फायर ब्रिगेड की सबसे महंगी में से एक प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल बन चुकी थी|

जब मैं कमरे में आए तब मैंने देखा कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ सिर्फ लुंगी पहनकर बैठे हुए थे उन्होंने अपनी बनियान भी उतार दी थी और जैसा कि मैंने कहा वह सिर्फ लुंगी पहने हुए थे इसलिए उनका लिंग खड़ा हो सकत होकर लूंगी के अंदर से साफ उभर रहा था; लेकिन बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को इसकी परवाह नहीं थी|

मैं जानती थी कि शाम को जब वह घर लौटे थे तब तो मैंने उनको एक हस्तमैथुन देकर के उनकी थकान और तनाव को तो दूर कर दिया था लेकिन जो भी हुआ था वह बहुत जल्दी हुआ था जिसकी वजह से थोड़ी देर के लिए बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ तो शांत हो गए थे; पर मैंने जो किया था उसकी वजह से मैं जानती थी कि उनके अंदर की कामवासना की आग को मैंने और भड़का दिया है|

उन्होंने अपनी लुंगी उठाकर अपनी जांघों को नंगा करके वहां हल्के हल्के थपकी मार के मुझे अपनी जानू पर बैठने का इशारा किया मैं मुस्कुराती हुई उनके पास आई औरउनकी जांघों के ऊपर बैठने को गई; लेकिन उन्होंने मुझे रोक लिया और फिर बोले, " ऐसे नहीं पीयाली, अपनी साड़ी को अपने कमर के ऊपर उठा कर तो मेरी गोद में बैठ"

उस वक्त कमरे में सिर्फ नीले रंग का एक नाइट बल्ब जल रहा था पर उसकी रोशनी में सब कुछ साफ साफ दिखाई दे रहा था| उन्होंने जैसा कहा मैंने बिल्कुल वैसा ही किया और फिर अपनी बाहों उनको अपनी आगोश में ले लिया|

'अफ़रोडिसियक' (कामोत्तेजक दवाई) अपना असर दिखाने लगी थी इसलिए उनकी बदन का छुअन पाते ही मेरे अंदर भी एक अजीब तरह की सनसनी दौड़ गई|

बाबा ठाकुर ने बड़े प्यार से मेरा आंचल मेरे सीने से हटा दिया और मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से को बुरी तरह नंगा कर दिया और उसके बाद बड़े प्यार से मेरे बदन को सहलाने लगे| पता नहीं क्यों मुझे उनका स्पर्श और मुझे इस तरह से प्यार करना बहुत ही अच्छा लगने लगा था... मेरी सांसे धीरे-धीरे गहरी और लंबी होती गई और उनके साथ मेरे स्तन जुगल ऊपर नीचे होने लगे|

मुझे मालूम था मेरी ऐसी प्रतिक्रिया जो कि बिल्कुल प्राकृतिक थी, देखकर बाबा ठाकुर पंडित गीत नाथ मन ही मन बहुत ही खुश हो रहे थे... शायद में उनकी मन की बात पढ़ पा रही थी; उन्हें ऐसा लग रहा था कि वह मेरे अंदर कामवासना की आग को भड़काने का जो प्रयास कर रहे थे उसमें वह सफल भी हो रहे थे|

उसके बाद बाबा ठाकुर ने मेरे बालों में अपनी उंगलियां चलाना शुरू कर दिया और उसके बाद मुझे खूब प्यार करने लगे... वह मुझे चूमने लगे... मेरे गालों पर... होठों पर... आंखों की पलकों पर... उन्होंने मुझे एक हाथ से पकड़ रखा था और अपने दूसरे हाथ से वह मेरे कोमल जांघों पर हाथ फेरते हुए मेरी यौवन सुधा का का स्वाद लेने लगे...

अब तक पूरा कमरा सुगंधित मोमबत्ती की खुशबू से पूरी तरह भर चुका था...

"अपनी साड़ी उतार कर तो पूरी तरह नंगी हो जा, पीयाली" बाबा ठाकुर ने मुझसे कहा|

मैं समझ गई कि बाबा ठाकुर पूरी तरह गर्म हो चुके हैं|

मैंने सर झुकाए मुस्कुराकर कहा, "जी बाबा ठाकुर"

यह कहकर मैं उठकर उनके सामने खड़ी हो गई और उनकी तरफ पीठ करके धीरे-धीरे अपनी साड़ी उतारने लगी| और फिर उसको अच्छी तरह से तह करके अपने सीने के पास उसे पकड़ कर धीमे कदमों से मैं उनके पास आई; बाबा ठाकुर ने तब तक अपनी लूंगी उतार दी थी| उनका लिंग बिल्कुल खड़ा और सख्त हो चुका था| उन्होंने खड़े होकर मुझे अपने आगोश में ले लिया... मेरे अंदर एक जानी पहचानी सी अनुभूति हुई... मेरे पीठ के निचले हिस्से में मैंने उनके लिंग का स्पर्श साफ महसूस किया... उनके लिंग का सुपाड़ा हल्का हल्का गिला हो चुका था... उनके बालों भरी छाती से जैसे ही मेरे स्तन छुए... न जाने क्यों मैं एकदम कांप उठी... और साथ ही में भी उनसे लिपट गई और अनजाने में ही मैंने उनके सीने से अपने स्तनों को दाएं बाएं घिसना शुरू कर दिया... और अपने कोमल गाल उनकी दाढ़ी से... ऐसा मुझे बहुत अच्छा लग रहा था... उसके बाद ना जाने क्यों मेरे मन में ख्याल आया कि मैं उनके आलिंगन से मुक्त हुई... और उनके आगे घुटने टेक कर बैठ गई|

पर जब मैं धीरे-धीरे बैठ रही थी तब मैंने अपनी जीभ की नोक से उनकी दाढ़ी, गला. छाती और पेट को अपनी जीव से एक तूलिका की तरह फिरती हुई बैठी थी... मैं अपने बॉयफ्रेंड टॉम के साथ ऐसा ही करती हूं और मैं जानती हूं उसे यह बहुत अच्छा लगता है... और मेरा अंदाजा बिल्कुल सही है कि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को भी यह सब बहुत अच्छा लग रहा होगा... बाबा ठाकुर बिल्कुल सांस शुरू कर एक एक पल का उपभोग कर रहे थे…

अब उनका लिंग बिल्कुल मेरे मुंह के सामने था... और मैंने मौका नहीं गंवाया... मैंने अपने जीभ की नोक से उनके खड़े और चिपचिपे लिंग के सूपड़े को हल्का-हल्का उकसाने लगी|

"मेरी गुस्ताखी माफ कीजिएगा, बाबा ठाकुर" यह कहकर मैंने उनके लिंग के सिरे का चमड़ा पीछे की तरफ खींच दिया और उनके लिंग के सूपड़े को अपनी जीभ की नोक से चाटने लगी| मुझे एक अजीब सी जानी पहचानी गंधआ रही थी... यह गंध पसीना और अनजाने में ही हल्का-हल्का निकलने वाला वीर्य का था... मैं अपनी मुट्ठी में उनका लिंग पकड़कर धीरे-धीरे मिथुन करने लगी... बाबा ठाकुर खड़े-खड़े अपना चेहरा ऊपर की तरफ उठाए शायद किसी स्वर्गीय आनंद का मजा ले रहे थे... और उनके मुंह से हल्की हल्की आंहें निकल रही थी, "आहा हा हा हा..."

उन्होंने अपना लिंग मेरे मुंह से निकालने की कोई इच्छा जाहिर नहीं की... मैं समझ गई थी कि मेरा इस तरह से उनको मुख मेहन की सेवा देना बहुत अच्छा लग रहा था... और पता नहीं क्यों मुझे भी ऐसा लग रहा था कि आज अगर मैंने उनको अच्छी तरह से खुश कर दिया तो शायद वह भी मुझे बहुत अच्छी तरह से खुश कर देंगे| इसलिए मैंने उनको मुख मेहन देना जारी रखा... और बीच-बीच में अपने दांतो से उनके लिंग को हल्का हल्का काटती भी रही... वैसे तो इस खेल में वक्त आने पर टॉम अपना वीर्य स्खलित करके मेरा पूरा मुंह भर देता था... ऐसा आज शाम को बाबा ठाकुर के साथ भी हुआ था... अब दिखती हूं कि बाबा ठाकुर क्या इस बार करते हैं?

चुपके-चुपके मैं जो रम के दो घूंट पी गई थी और साथ ही मैंने 'अफ़रोडिसियक' (कामोत्तेजक दवाई) की एक गोली भी खाली थी... अब मुझे उसका हल्का-हल्का असर महसूस होने लगा था... मुझे थोड़े-थोड़े चक्कर आ रहे थे| लेकिन मैं जानती थी कि इस वक्त में ड्यूटी पर हूं मुझे बिल्कुल जागरूक रहना पड़ेगा... नशे के असर से निढाल होकर सो जाने से नहीं चलेगा...

मैं एक तरह की ताल में ताल मिलाकर अपने मुंह के अंदर बाबा ठाकुर का जन्म लेकर अपने हाथ की मुट्ठी से उनका मैथुन कर रही थी... कि अचानक मेरे मुंह के अंदर बाबा ठाकुर के लिंग से उनके वीर्य का एक विस्फोट जैसा हुआ... और मेरा मुंह पूरी तरह से भर गया| मैं अनजाने में ही काफी सारा वीर्य निकल गई और बाकी मेरे होठों के कोणों से टपकने लगा|

बाबा ठाकुर ने गहरी सांस छोड़ी... आज शायद उन्हें एक नई तरह की सुखस का एहसास हुआ होगा... न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि उन्हें इस पर का इंतजार शायद तब से था जब से उन्होंने मुझे पहली बार देखा था, भले ही इस बीच बाबा ठाकुर मेरे साथ प्राकृतिक संभोग कर चुके थे; लेकिन उन्हें उस सुख का अभी तक एहसास नहीं हुआ था जिसकी वह आशा कर रहे थे और ना ही मुझे ऐसा मौका मिला था कि मैं उनको यह सेवा प्रदान कर सकूं...

कुछ देर तक बाबा ठाकुर बिल्कुल शांत होकर खड़े रहे... शायद वह अपने चरम सुख प्राप्ति के हर पल को भोग रहे थे...

लेकिन मेरा माथा ठनका, मुझे झपकी सी आने लगी थी... मेरा सर चकरा रहा था... जहां तक मुझे मालूम है; बाबा ठाकुर आज ही ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा को पूरा पेमेंट करके आए हैं... ऐसे हालात में अगर नशे में लुढ़क गई... तो यह बिजनेस के लिए अच्छा नहीं होगा|

मैं बिल्कुल निश्चित होकर यही सब सोच रही थी कि अचानक बाबा ठाकुर ने मेरे बालों को अपनी मुट्ठी में पकड़कर मुझे बलपूर्वक खड़ा किया... और मेरे चेहरे पर ताबड़तोड़ दो थप्पड़ जड़ दिया... थप्पड़ की वजह से मुझे जो झपकी सी आ रही थी वह तो दूर हो गई है पर मैं असंतुलित होकर बिस्तर पर धड़ाम से गिर पड़ी...

मैं आंखों में आंसू दिए हक्की बक्की होकर उनकी तरफ देख रही थी और मैंने देखा कि वह भी बिल्कुल अचंभित होकर मेरी तरफ देख रहे थे...

क्रमशः
Awesome update
 

naag.champa

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bahut hi shandaar kahani hai, aur hindi bhasha par aapki pakad dekhkar lagrta hai ki kaafi gyan hai aapko
maja aa raha hai kahani ka
likhte rahiye
आदरणीय Ashokafun30 जी

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद|

मेरी कहानी आपको अच्छी लग रही है इस बात कि मुझे खुशी है|

कृपया कहानी के साथ बने रहिए मुझे आपके मूल्यवान मंतव्य और टिप्पणियों का इंतजार रहेगा
 

naag.champa

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अध्याय २५



सारी दोपहर हम दोनों काफी देर तक एक दूसरे के साथ लिप्त रहे| मैं और आरती कल्पना की उस दुनिया में पहुंच गए थे जिसका कि शायद हमें अंदाजा भी नहीं था| आरती ने अपनी कृतज्ञता जताने के लिए मेरी योनि में दिल लगाकर हस्तमैथुन की थी| मुझे ऐसा लग रहा था कि मुझे सुख देखकर उसको भी एक अनजाना सा सुकून का एहसास हो रहा है|

लेकिन मैं यहां ड्यूटी पर थी| ब्लू क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने मुझे एक खास मकसद से यहां भेजा था| मेरा काम था मैं अपने क्लाइंट बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की मनोकामनाओं के हर पन्ने पर अव्वल आऊं| इसलिए मैंने पहले से ही मोबाइल फोन पर अलार्म लगा रखा था|

जब हम दोनों की नींद अलार्म की आवाज से खुली तो सबसे पहले आदत अनुसार हम दोनों ने अपने अपने चेहरे आईने में देखा- और देख कर हम लोग बिल्कुल अवाक रह गए- हम दोनों खुद अपनी हालत आईने में देख कर हैरान थे क्योंकि ऐसा लग रहा था कि शायद हम दोनों के साथ ही किसी जंगली टोली ने बलात्कार किया हो|

मैंने घड़ी की ओर देखा और आरती से अपनी नजरें मिलाई और आंखों ही आंखों में हम दोनों ने यह समझ लिया थोड़ी ही देर में बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ घर लौटने वाले हैं| और उनके आने से पहले हमें यह पूरा कमरा बिल्कुल साफ सुथरा और ठीक करना है| इसलिए हम दोनों के दोनों तुरंत काम पर लग गई| कमरे में अच्छी तरह से झाड़ू लगाई, बिस्तर को एकदम खींचतान के तरोताजा कर दिया, तकियोँ को पीट-पीटकर फिर से फुला दिया... और मेरे कहने से पहले ही आरती बिल्कुल भागती हुई पूजा के कमरे में गई और वहां से धूप- धुना लेकर आई और पूरे कमरे में उसकी सुगंधी फैला दी|

हमारा काम यहीं खत्म नहीं हुआ था| शाम के वक्त पूरे घर में झाड़ू लगा रही थी और पूछा भी करना था; हम दोनों एक दूसरे के साथ सिर्फ आंखों ही आंखों में बातचीत कर रहे थे- मैंने झाड़ू उठाई तो आरती ने पोछा और बाल्टी... और बिल्कुल युद्ध स्तर पर हम दोनों ने पूरे घर को साफ सुथरा करना शुरू कर दिया|

फिर हमने एक दूसरे को ऊपर से नीचे तक देखा| हम दोनों की हालत वास्तव में खराब हो रखी थी इसलिए बिना कुछ बोले ही हम दोनों एक साथ कमरे से लगे बाथरूम में घुस गए और वहां फव्वारा चलाकर दोनों के दोनों जल्दी-जल्दी नहाने लगे|

अच्छी तरह से साबुन लगाकर रगड़ रगड़ कर एक दूसरे के बदन को साफ करने के बाद और एक दूसरे के बालों में शैंपू लगाने के बाद हम दोनों अपने बदन और बालों को पोंछती हुई बाथरूम से बाहर निकले और फिर एक दूसरे की तरफ देख कर एक राहत की सांस ली... मैंने घड़ी की ओर देखा करीब करीब शाम के सवा पाँच बज रहे थे... बाबा ठाकुर वापस घर आते ही होंगे मैंने खिड़की का पर्दा हटा कर आसमान की तरफ देखा दक्षिण दिशा मैं लालिमा छाई हुई थी- लाल-लाल सूरज डूबने वाला था... लेकिन न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि सूरज की लालिमा क्या हम दोनों की शर्माहट को दर्शा रहा है... क्योंकि आज दोपहर को हम दोनों ने एक दूसरे के साथ वह किया जो आज तक नहीं किया था... और इस बात की ऊष्मा हम दोनों के अंदर अभी भी बरकरार थी|

हम दोनों ने तो दोबारा की ओर देखा घड़ी शायद घोड़े पर सवार थी- इस वक्त शाम के पौने छः बज रहे थे... अभी भी बहुत सारा काम बाकी था|

मैं दौड़कर आंगन में गई और वहां से तुलसी के 8 या 10 पत्ते तोड़ लाई उनको पानी में डाला और फिर पूजा के कमरे में जाकर कपूर और लौंग लेकर आई.. आरती भागती हुई आकर मुझे कॉलिंग स्प्रे की बोतल थमा गई और मैंने बाबा ठाकुर की गुरुदेव की तस्वीर के पीछे छुपाया हुआ गमछा निकाला और छह फ़ुट गुणा चार फ़ुट की पूरी तस्वीर पर कॉलिंग फ्री छिड़ककर उसे साफ करने लगी, और उसके बाद उस पूरी तस्वीर को मैंने तुलसी के पत्ते, पीसी हुई लौंग और कपूर के पानी से दोबारा साफ किया|

इतने में आरती लोबान के दो बड़े-बड़े पात्र जला करती आई और एक हाथ पंखे के साथ घर के निचले हिस्से में उसका धुआं और सुगंध फैलाने लगी- मैंने भी वक्त जायर किया... मैं घर के ऊपर के हिस्से में लोबान का धुआं और सुगंध फैलाने लगी|

इतना सब कुछ करने के बाद हम दोनों ने एक-दूसरे से नजरें मिलाई और हम दोनों एक राहत की सांस लेने ही वाली थी कि - अचानक आरती का फोन बजे उठा| फोन पर बाबा ठाकुर के मैनेजर साहब थे उन्होंने कहा कि उनकी साइकिल का टायर पंचर हो गया है इसलिए उन्हें आने में अभी आधे घंटे की देर है|

हम दोनों लड़कियों ने फ्रिज में रखे मिठाइयों से बाबा ठाकुर के गुरुदेव की चरणों मैं उन मिठाइयों का प्रसाद चढ़ाया|

ऊपर बाबा ठाकुर के कमरे में जाकर, मैंने और आरती ने एक दूसरे से नजर मिलाई और हम दोनों ने ही एक राहत की सांस ली| अब मुझे ख्याल आया कि इतनी देर तक हम दोनों लड़कियां बिल्कुल नंगी थी- अब तक हम लोगों ने घर में जितनी भी भागा दौड़ी और सफाई की वह सब इसी हालत में की थी|

मैंने सचेत होकर जैसे ही पास में रखी हुई साड़ी लेने के लिए अपना हाथ बढ़ा है तो आरती ने मुझे रोक लिया|

"पीयाली दीदी, तुम ऐसे ही रहो ना- बिल्कुल नंगी... तुम खुले बालों में, बिना कपड़ों के- एकदम नंगी... बहुत सुंदर दिखती हो... देखो ना मैं भी तो बिल्कुल नंगी हूं"

पता नहीं क्यों मेरे बॉयफ्रेंड टॉम, ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा और आरती मेरा नंगी होकर रहना और बालों को खुला रखना इतना अच्छा लगता है|

लेकिन मुझे मालूम था कि मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है इसलिए मैंने बाजार से खरीदी हुई चीजों की पैकेट एक-एक करके आरती को पकड़ा दी गई और उसे बोल दी गई कि कैसे-कैसे मुझे सजाना है| क्योंकि मैंने बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ से वादा किया था कि वह आज घर लौटने के बाद मेरा एक नया रूप देखने वाले हैं|

मेरे कहे अनुसार आरती मेरे चेहरे पर क्रीम, बदन और बालों में परफ्यूम लगाने लगी| उसके बाद उसने बड़े प्यार से मेरी आंखों में काजल लगा दिया, नाखूनों में नेल पॉलिश, पैरों में आलता और उसके बाद आरती ने मेरे माथे पर एक बड़ी सी बिंदिया भी लगा दी|

और उसके बाद बड़े जतन के साथ उसने मुझे एक क्रीम कलर की साड़ी जिस पर चौड़ा सा लाल बॉर्डर था- और जिसे मैंने इस खास मौके के लिए ही खरीदा था वह उसने पहना दिया| मैंने जानबूझकर उसे साड़ी को कमर से जितना नीचे हो सके पहनाने को कहा और उसके बाद बाजार से खरीदी हुई इमिटेशन ज्वेलरी (Imitation Jewellery) के डब्बे एक-एक करके उसे थमाती गई|

"पीयाली दीदी, तुम तो एकदम नई नवेली दुल्हन की तरह लग रही हो" यह कहकर आरती मेरे बालों में कंघी करने लगी और साथ यह गाना गुनगुनाने लगी| इस गाने की धुन काफी जानी पहचानी सी लग रही थी- लेकिन मैं यह तय नहीं कर पा रही थी यह गाना कौन सा है इसलिए मैंने आखिरकार उससे पूछ लिया, "अरि आरती? यह गाना कुछ जाना पहचाना सा लग रहा है- कौन सा गाना है यह?"

पता नहीं क्यों आरती ने एक शरारत भरी निगाहों से मुझे देखा और फिर जल्दी-जल्दी साड़ी पहनने लगी| अपने बदन पर साड़ी और ब्लाउज चढ़ाने के बाद जैसे-तैसे उसने अपने बालों में एक जुड़ा बांधा और फिर कमरे से भागती हुई बाहर जाते-जाते उससे बोली "दो मिनट रुको अभी बताती हूं"

यह कहकर जैसे कि मानो वह बिल्कुल उड़ती हुई कमरे से बाहर चली गई और पलक झपकते ही वापस कमरे में वापस आए और उसके हाथों में ऐसा कुछ था जिसे वह मुझसे छुपा रही थी, मेरा ध्यान बटाने के लिए उसने उस गाने की धुन को ठीक से गुनगुनाया-

"बड़ो लोकेर बोहु-बेटी तदेर लंबा- लंबा चूलगो,

आईना देखी खोंपा बाँधी- मथाय गोंजा फूल गो"

गाने के बोल गुनगुना कर उसने मेरे बालों में एक बड़ा सा लाल गुलाब का फूल लगा दिया और यही फूल तोड़ कर लाने के लिए वह कमरे से भागती ही बाहर गई थी और इसी फूल को वह मुझसे छुपा रही थी|

एक बंगाली लोकगीत के बोल थे| जिसका अर्थ कुछ इस तरह से है

'बड़े लोगों की बहू बेटियां- उनके लंबे लंबे बाल

वह आईना देखकर अपने बालों को संवारती हैं

और अपने जुड़े में बड़ा सा फूल लगाती हैं'

"पीयाली दीदी, तुम तो बिल्कुल एक परी जैसी लग रही हो..."

मैं शर्मा कर हल्का-हल्का मुस्कुराती हुई आईना देखकर अपनी मांग पर सिंदूर भरती हुई बोली, "धत पगली!"

आरती से रहा नहीं जा रहा था वह मेरे पास आकर मुझे चूमना चाहती थी; लेकिन मैंने उसे रोका, "रुक जा आरती, फिलहाल तुम मुझे छूना नहीं... क्योंकि अब मैं तेरी पीयाली दीदी नहीं हूं; फिलहाल में बाबा ठाकुर की रखैल हूं... और अब मेरे तन और मन पर सिर्फ बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ का ही हक है"

फिर भी आरती ने मेरे दोनों स्तनों पर अपने हाथ रख कर उन्हें हल्का हल्का दबाती हुई एक कुंठा सेबोली, "बाबा ठाकुर तो तुम्हें दिन रात चोदते रहते हैं, एक मैं ही हूं जिसे तुम्हें जी भर के प्यार करने का मौका नहीं मिलता... तुम जो इतना सज धज कर बैठी हुई हो... इससे फायदा क्या होगा वह आते ही तुमको बिल्कुल नंगी कर देंगे और उसके बाद अपना लंड तुम्हारी चुत मैं डालने के बाद अपनी कमर हिलाते रहेंगे और फिर तुम्हारे अंदर अपने सड़के का सैलाब फव्वारे की तरह छोड़ देंगे..."

यह कहते-कहते उसकी आंखों में आंसू आ गए| उसे इस बात की जलन हो रही थी कि उसे मेरे साथ वक्त बिताने का इतना मौका नहीं मिलता जितना कि बाबा ठाकुर को मिलता है|

मेरे उसके आंसू पोंछे और फिर मैंने उसे समझाने की कोशिश की है जैसे कि मैं छोटी सी बच्ची को समझा रही हूं, "अगर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मेरे अंदर अपना बीज नहीं छोड़ेंगे, तो मेरे पेट में बच्चा कैसे आएगा? और फिर मैं मां कैसे बनूंगी?"

शायद उसकी समझ में आ गया, अब मैंने अपने बालों से फूल हटाया और अपने बालों में एक अच्छा सा जुड़ा बांधा और फिर मैंने आरती से कहा, "ले अब यह फूल मेरे जुड़े में लगा दे"

"पीयाली दीदी? यह क्या कर रही हैं आप? बाबा ठाकुर तो जुड़ा या चोटी है करने से मना करते हैं- उन्होंने यह सख्त हिदायत दे रखी है कि उनके यहां जो भी औरत आएगी उसे सिर्फ एक साड़ी पहन कर रहना है और बालों को हमेशा खुला रखना है"

मैंने मुस्कुराते हुए आरती से कहा, "यह बात में बहुत अच्छी तरह जानती हूं| लेकिन आज बाबा ठाकुर मुझसे कुछ नहीं कहेंगे तो देख लेना...." मैंने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा|

आरती शायद कुछ कहने जा रही थी लेकिन उसे मौका नहीं मिला क्योंकि उसी वक्त एकदम झप से बत्ती गुल हो गई| गांव में तो यह आम बात थी| लेकिन मौसम बड़ा ही सुहावना हो रखा था बाहर से ठंडी हवाओं के झोंके अंदर आते हुए बर्दों को उड़ा रहे थे|

कुछ ही देर बाद बाबा ठाकुर घर वापस लौटने वाले थे और मेरे कहे अनुसार आज आरती उनके हाथ पैर धुला देगी और साथ में उनको चाय नाश्ता भी करवा देगी| मेरे पास अकेले रहने के लिए थोड़ा सा वक्त मिल गया- और इस वक्त का मैंने पूरा पूरा फायदा उठाया मैंने अपना बैग खोला उसमें रखी रम की बोतल निकाली; और थोड़ा सा रम मैंने कांच की गिलास में डाला थोड़ा सा पानी और थोड़ा सा कोल्ड ड्रिंक मिलाकर मैं एक सांस में ही एक पटियाला पेग लटक गई... पर मेरा जी नहीं भरा मैंने एक दूसरा पिया और उसके बाद तीसरा... मुझे मालूम था कि जब तक बाबा ठाकुर ऊपर कमरे में आएंगे तब तक मुझे हल्का हल्का नशा चढ़ चुका होगा|

आज बाबा ठाकुर मेरा एक नया रूप देखने वाले हैं इसलिए मैंने कमरे में चारों कोनों में मोमबत्तियां जला दी और जो लालटेन पहले से चल रही थी उसकी रोशनी को थोड़ा सा धीमा कर दिया और फिर सर पर घूंघट चढ़ाकर बिस्तर के कोने में सर झुका है चुपचाप बैठी बाबा ठाकुर पंडित का इंतजार करने लगी....

***

समय को लेकर मेरी गणना लगभग सही साबित हुई| मेरे अंदाजे के अनुसार ठीक होनी ही देर बाद बाबा ठाकुर ऊपर के कमरे में आए जहां उनके बिस्तर पर एक कोने में मैं बैठी हुई है और जलती हुई मोमबत्तियों की रोशनी में चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट और नशीली आंखें लिए हुए मैं एकदम सिमटी हुई थी बैठकर उनका इंतजार कर रही थी- जैसे कि सुहागरात को एक नई नवेली दुल्हन अपने दूल्हे का इंतजार करती है|

बाबा ठाकुर कमरे के अंदर दाखिल हुए और दरवाजों को भिड़ा कर कुंडी लगा दी और उसके बाद उन्होंने मुड़कर मेरी तरफ देखा| पूरा का पूरा कमरा मोमबत्तियों की रोशनी में भरा हुआ था और एक कामुक माहौल पैदा कर रहा था| मैं भी बिल्कुल सजी-धजी गहनों से लदी सिमटी हुई सीन बिस्तर के कोने पर बैठी हुई थी| लगता है बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को ऐसे स्वागत की आशा नहीं थी- इसीलिए वह बिल्कुल मंत्रमुग्ध होकर दरवाजे के पास ही खड़े थे|

मैंने ज्यादा वक्त शायर नहीं किया| मैं धीरे-धीरे पलंग से उतरी और सीधे उनके सामने घुटनों के बल बैठ गई, अपना घूंघट हटा दिया और अपने जुड़े में लगा हुआ वह बड़ा सा फूल निकालकर, अपना जुड़ा खोल कर अपने सर को पीछे की तरफ थोड़ा सा झुका के अपने सर को एक दो बार झटका दिया और उसी बीच में अपने बालों में अपनी उंगलियां चलाती रही ताकि मेरे बाल अच्छी तरह फैल जाएं|

फिर मैंने उनकी चरणों में रख दिया और फिर अपना जुड़ा खोलकर अपने बालों को अच्छी तरह फैला कर मैंने अपना सर जमीन पर टिका दिया और बालों को उनके चरणों के आगे फैला दिए| पहले की तरह बाबा ठाकुर ने एक-एक करके अपने दोनों पैरों से मेरे बालों पर खड़े होकर मुझे आशीर्वाद दिया और फिर दो कदम पीछे हट गए| मैं उठने को हुई, तो अनजाने में ही मेरा आंचल सरक कर नीचे गिर गया मैंने उसे संभाला और फिर जमीन पर पड़ा हुआ वह फूल अपने कान के पीछे लगा लिया|

जैसे ही मैं उठ कर खड़ी होने लगी थी तो बाबा ठाकुर ने मेरे दोनों कंधों को पकड़कर मुझे सहारा दिया और फिर वैसे ही एक मंत्रमुग्ध दृष्टि से मुझे देखने लगे उन्होंने कहा आज तुम बहुत ही सुंदर लग रही हो, “पीयाली…इन गहनों में सजी-धजी बिल्कुल एक नई नवेली दुल्हन की तरह लग रही हो तुम"

मैं जानती थी मेरी इन अदाओं पर कोई भी मर्द मर मिटेगा| बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ एक सिद्ध पुरुष जरूर है- लेकिन मैं भी एक नारी हूं- किसी भी पुरुष की सबसे बड़ी कमजोरी...

और मुझे इस बात की खुशी है कि अबकी बार मेरा जादू बाबा ठाकुर के ऊपर चल गया!

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"आपको मैं अच्छी लगी, यह मेरी खुशकिस्मती है| और मुझे अच्छी तरह याद है कि आपने कहा था कि जब तक मैं आपके घर पर रहूंगी तब तक मैं अपने बालों को ना बाँधु; लेकिन मैं सोच रही थी यह जो फूल मेरे पास था जो मैं आपके चरणों में अर्पित करने वाली थी इस समय कहां संभाल कर रखूं? इसलिए मैंने अपने बालों में जुड़ा बांध लिया और उसी में मैंने यह फूल लगाकर रखना कि जब आप आएंगे तुम्हें यह फूल सबसे पहले आपके चरणों में अर्पित करूंगी और उसके बाद अपने बाल खोल दूंगी"

बाबा ठाकुर अभी तक मंत्रमुग्ध दृष्टि से मेरी तरफ देख रहे थे, "फूल? हां वह जवाकुसुम का फूल... लेकिन एक बात बता पीयाली, तू हर रोज इस तरह से अपने बालों पर मेरे पैर क्यों रखवाती है?"

"यह तो एक परंपरा है बाबा ठाकुर, सदियों से सनातन धर्म में यही तो चला रहा है, मुझ जैसी नारियों के लिए एक सिद्ध पुरुष का आशीर्वाद लेने का भला और क्या तरीका हो सकता है?"

बाबा ठाकुर को शायद समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले इसलिए मैंने किसी तरह से अपनी शरारती मुस्कुराहट को छिपाकर उनको कपड़े बदलने में मदद करने लगी|

उनका कुर्ता, उनकी गंजी धोती उतारकर मैंने एक तरफ रख दिया उसके बाद मैंने उनको एक लुंगी पहनने में मदद की और उसके बाद मैंने नीचे सेलूंगी के अंदर हाथ डालकर उनके अंडरवियर का नाड़ा खोल कर उसे उतारा और फिर सारे छोड़े हुए कपड़े मैंने कमरे में लगे बाथरूम में जाकर एक बाल्टी भर पानी में उनको भिगो दिया|

उसके बाद उनको बाथरूम में ले जाकर साबुन लगा लगाकर उनके हाथ और पैर धोने में मैंने उनकी मदद की और इस दौरान मैं बार-बार यही कोशिश कर रही थी कि मेरा बदन उनके बदन से चाहे अनचाहे छुंता रहे|

वापस हम लोग जब कमरे में आए तो बाबा ठाकुर से रहा नहीं गया; उन्होंने मुझे बाहों में भर लिया| मैं भी उनसे लिपट कर उनके कंधे पर सर रखकर थोड़ी देर तक वैसे ही खड़ी रही और वह मेरे बालों को सहलाते रहे|

बाबा ठाकुर ने अपनी दोनों हथेलियों में मेरा चेहरा थाम कर उससे पूछा, "पीयाली, आज तो सचमुच बहुत सुंदर लग रही है- मैंने सोचा भी नहीं था कि आज घर आकर मैं तुझे इस रूप में पाऊंगा| तू जो इस तरह से सज धज कर मेरे लिए बैठी रहेगी इसकी मुझे कभी भी उम्मीद नहीं थी, मोमबत्तियों की इस स्निग्ध रोशनी में तू बहुत ही खूबसूरत लग रही है... गुरुदेव की कसम मांग! क्या वर मांगती है मांग? मुझे मेरे तंत्र सिद्धि की सौगंध तू आज जो मांगेगी वह मैं तुझे दूंगा"

मैंने उनकी आंखों में आंखें डाल कर जवाब दिया, "बाबा ठाकुर, सिर्फ आज रात के लिए मैं आपकी पीयाली नहीं हूं; मैं एक बिल्कुल नई नवेली लड़की जिनसे आप पहले कभी नहीं मिले... और हां मैं जानती हूं आप चाहते हैं... कि आपके यहां आई हुई लड़कियां या औरतें अपने बालों को खुला रखें, सिर्फ साड़ी पहन कर रहे- ब्लाउज पेटीकोट और अंतर्वास... कुछ भी नहीं- यह आपका एक वस्तुकाम है... लेकिन आज आपने मेरा इस तरह से साज शृंगार करना और बालों को जुड़े में बात कर रखने की गुस्ताखी को भी है माफ कर दिया है... लेकिन मेरी एक और इच्छा है... इसके अलावा में आपकी सारी बातें मानूंगी"

"तथास्तु! तथास्तु! बोल- बोल- बोल, तेरी क्या इच्छा है?"

"तो ठीक है, सबसे पहले मुझे आज मुझे जी भर के शराब पीने की आज्ञा दीजिए, ताकि मुझे नशा हो जाए और उसके बाद मैं चाहती हूं कि आप को खुश करने के लिए आज के दिन मैं आपके ऊपर लेटूँ..."

"क्या मतलब?"

"जी, हां" मेरे स्वर में थोड़ी सी दृढ़ता आ गई, "आज मैं आपके साथ संयुक्त होने के बाद... मैं आपके ऊपर डोलूँगी"

"हे भगवान! मैथुन करना तो मर्दों का काम है..."

मैंने बीच में उनकी बात काट दी, "आज आप देखिए ना, आपकी यह नई नवेली रखैल आपके लिए क्या कर सकती है?"

क्रमशः
 

naag.champa

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अध्याय २६



बाबा ठाकुर का हाथ पकड़ कर मैंने उन्हें पलंग पर बिठाया और फिर सर नीचे किए हुए मैं कमरे से बाहर निकल कर सीढ़ियों से उतर कर रसोई में दाखिल हुई जहां फ्रीज में कोल्ड ड्रिंक की बोतल रखी हुई थी|

मैंने फ्रिज खोलकर कोल्ड ड्रिंक की बोतल निकाली और एक बड़ी कटोरी में बर्फ निकालें| इतने में मैंने देखा कि बाबा ठाकुर के आने से पहले ही आरती ने अच्छी तरह से साड़ी ब्लाउज पेटीकोट पहन लिया था और हां उसने मेरी उसके लिए खरीदी हुई ब्रा भी पहन रखी थी|

उसने मुझसे कहा, "पीयाली दीदी, यह क्या बाबा ठाकुर तो कमरे में आ चुके हैं- और मैं देख रही हूं कि सिर्फ तुम्हारे बाल ही खुले हुए हैं, ना तो तुमने अपने गहरे उतारे हैं और ना ही बदल से कपड़े आखिर बात क्या है?"

मैंने अपनी हथेली से हल्के से उसके गालों को थपथपाया और फिर बोली, "मैंने कहा था ना? कि आज बाबा ठाकुर मुझसे कुछ नहीं कहेंगे... पर तू जानती है थोड़ी ही देर बाद मैं बिल्कुल नंगी हो जाऊंगी..."

फिर न जाने क्या याद करके आरती ने अपना मुंह बिचकाया और फिर बोली, मैं एक बार जरूर कहूंगी पीयाली दीदी, बाबा ठाकुर तुमको जी भर के रात भर चोदते जरूर रहते हैं... और तुम्हें बिल्कुल गंदा कर देते हैं... उसके बाद तुम्हारे बदन से एक अजीब सी बदबू आने लगती है..."

"आज देख ना, कौन किसे गंदा करता है; कमरे की एक खिड़की जो अंदर की तरफ खुलती है वह ठीक तरह से तो बंद नहीं होती... उसी में से झांक कर देख लेना... लेकिन उस दिन की तरह बिल्कुल नंगी धड़ंगी होकर मत रहना.... नहीं तो तेरे सर पर कोई न कोई भूत आ जाएगा"

वापस कमरे में जाकर मैंने बाबा ठाकुर के लिए और अपने लिए एक एक रमका पेग बनाया उसमें कोल्ड ड्रिंक मिलाई और बर्फ डाले|

बाबा ठाकुर ने हंसते हुए उससे कहा, "एक बात कहूं पीयाली तेरे शहर के दारू से मेरा कुछ भी नहीं होने वाला मेरे लिए तो सिर्फ बाबा का प्रसाद (गांजा) ही ठीक है... लेकिन तू जब मेरे लिए इतने प्यार से यह पेग बना कर लाई है तो तू उससे थोड़ा सा जुठला दे..." यह कहकर उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरा|

उनकी आज्ञा अनुसार मैंने बिल्कुल वैसा ही किया| बाबा ठाकुर एक ही सांस में पूरा का पूरा पेग गटक गए|

उसके बाद बाबा ठाकुर के कहे अनुसार मैंने अलमारी से उनकी गांजा का चिलम निकाला और जमीन पर उकडू होकर बैठ कर जैसा जैसा वह कहते गए ठीक वैसे ही मैंने गांजे के साथ तंबाकू मिलाकर चिलम में ठूसने लगी|

अब तक मैंने गौर कर लिया था कि बाबा ठाकुर जब भी अपने चिलम में गांजा भरते हैं तो जमीन पर उकडू होकर बैठकर ही ऐसा करते हैं|



बातों ही बातों में उन्होंने मुझसे एक बार कहा था कि किशोरावस्था से ही उनको यही आदत पड़ी हुई है| उन्होंने तंत्र मंत्र विद्या सीखने की शुरुआत बहुत ही कम उम्र से कर दी थी और वह अपने गुरुदेव के साथ कई कई रात या तो श्मशान में या फिर कब्रिस्तान में बिताया करते थे|

और अपनी तंत्र मंत्र की क्रिया और प्रक्रिया करते वक्त वे दोनों इसी तरह से गांजा पिया करते थे|

बाबा ठाकुर भी न जाने कब बिस्तर से उतरकर मेरे बिल्कुल सामने उकडू होकर बैठे हुए थे| आज शायद गांजे का दुआ थोड़ा तेज था इसलिए मैं बिना कुछ नहीं उठकर कमरे की खिड़की जो बाहर की तरफ खुलती है उसके किवाड़ खोल दिए और पर्दा तान दिया|

और फिर वापस जमीन पर मैं भी उनके बगल में रम का गिलास लेकर उनसे एकदम सटके बैठ गई और मैंने जानबूझकर अपना सर उनके कंधे पर टिका दिया ताकि मेरे खुले बालों की छुअन उनके नंगे पीठ पर लगती रहे|

“न जाने क्यों पीयाली, आज तेरे बदन से एक मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही है... और तेरी छुअन और भी स्त्रैण और मुलायम लग रही है| तेरा पति और तेरा प्रेमी बहुत ही भाग्यवान है"

"आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं बाबा ठाकुर... यह तो मेरा सौभाग्य है कि आपने मुझे अपनी यौन संगिनी के रूप में स्वीकार किया... ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा के पास तो और भी लड़कियां है लेकिन उन सब को छोड़कर आपने मुझे ही चुना... और मुझे इस बात का गर्व है कि आप जैसे सिद्ध पुरुष के वीर्य का स्खलन एक बार नहीं कई बार मेरी योनि के अंदर हो चुका है..." यह कहते-कहते मुझे बाजार जाते वक्त है उस अधेड़ उम्र की औरत की याद आ गई... और साथ ही में मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा कि कहीं मेरी असलियत का पता आरती को ना चल जाए; अगर ऐसा हुआ तो शायद वह बेचारी रो देगी| क्योंकि वह अभी भी यही सोचती है कि मैं गांव की दूसरी औरतों की तरह बाबा ठाकुर के घर मां बनने के लिए आई हूं|

"हा हा हा हा हा... तू बातें बहुत अच्छी कर लेती है... लेकिन एक बात सच सच बता आज तक तूने कितनों के साथ...?"

मैंने उनकी बात बीच में ही काट दी और मेरे स्वर में एक दृढ़ता से आ गई क्योंकि मैं सच बोल रही थी, "आप तीसरे ऐसे पुरुष हैं... जिसने मेरे तन और मन का पूरी तरह से आत्म स्वाद किया... बचपन से ही रिश्तेदारों और पड़ोसियों का यह कहना था कि उम्र के हिसाब से मेरा विकास कुछ ज्यादा ही हो गया है... स्कूल में यूं तो क्लास 8 से लड़कियों को साड़ी पहनने की सलाह दी जाती है लेकिन मेरी टीचर दीदी ने मेरे घर वालों को बुलाकर क्लास सिक्स ही मुझे साड़ी पहनने की हिदायत दी... इसने मेरी शादी तो जल्दी हो गई... और मेरा पति भी अच्छा खासा पढ़ा लिखा इंसान मिला... वह मर्चेंट नेवी में काम करता है; इसलिए आप समझ सकते हैं जिस की तनख्वाह भी मोटी तगड़ी है| मेरे पास पैसों की कोई कमी नहीं है.... लेकिन मेरा पति ज्यादातर अपने जहाज पर ही अपना समय बिताता है... हमारा घर शहर के एक रिहायशी इलाके में है... एक 4bhk... घर की कीमत ही करीब आज के दिनों में एक करोड़ के आसपास है... आप नहीं जानते हमारे पास क्या-क्या है... एक नहीं दो बड़े बड़े स्मार्ट टीवी... माइक्रोवेव... 6 फुट लंबा ट्रिपल डोर फ्रिज... चार- चार स्प्लिट एसी... इटालियन सोफा सेट... हमें क्या क्या बताऊं आपको? बस, मेरा पति ही मेरे साथ नहीं रहता साल में यह एक या दो महीने के लिए ही मेरे पास आता है... घर में तो तरह-तरह की चीजें सजावट के लिए रखी हुई है... अफ्रीका की खाड़ी से लाई हुई समुंदर का शंख या फिर ग्रीस की किसी प्राचीन देवी देवता की मूर्ति... मेरे पति जय ने तो अपने फ्लैट को बहुत सजा सजा के रखा है... लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि उसके लिए मैं सिर्फ एक सजावट की वस्तु हूं... मर्चेंट नेवी में काम करने वाला आदमी जिसकी एक खूबसूरत बीवी है जिसे उसने अपने फ्लैट में बंद करके रखा है... वह आता है मेरे साथ सोता है... बस अंदर डालता है दो-चार बार हिलाना और उसके बाद निकाल कर सो जाना... इसके बाद मेरी मुलाकात ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा से हुई... उन्हें मेरी हालत पर तरस आ गया... और यह कुदरत का करिश्मा ही समझ लीजिए कि मेरी शक्ल उनसे इतनी ज्यादा मिलती-जुलती है कि कोई भी अनजान व्यक्ति अगर हम दोनों को एक साथ देख लेगा तो वह यही सोचेगा कि हम लोग मां बेटी है| मेरा तालमेल उनके साथ सही बैठ गया... एक औरत होने के नाते मैं तो यही कहूंगी कि उन्हें यह मालूम है एक नारी की गूद (योनि) का महत्व क्या है... इसलिए उन्होंने मेरी मुलाकात मेरे बॉयफ्रेंड टॉम से करवाई... और अब मैं आपके साथ हूं.. अगर मैं आपके सवाल का सीधा सपाट जवाब दे सकूं तो मैं यही कहूंगी... कि आज की तारीख में आप तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिसने मेरी यौवन सुधा का पान किया है"

यह कहकर मैंने अपना तीसरा पेग खत्म किया और बाबा ठाकुर ने भी मेरी बातों को बड़े ध्यान से सुनने के बाद गांजे की चिलम से एक लंबा सा कष्ट लेने के बाद उसका धुआं मेरे ऊपर छोड़ा|, "मैं जानता हूं, तू सिर्फ पैसों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर नहीं कर रही है... मुझे ऐसा लगता है कि तुझे किसी चीज की तलाश है... और मेरी विद्या जो बोलती है... तेरी यह तलाश जारी है और तू तीन - तीन पुरुषों के साथ वक्त बिता कर तूने तजुर्बा तो हासिल कर दिया लेकिन तेरा दिल भरा नहीं है... और हां यह सब तू अपनी मर्जी से कर रही है और इसके मजे भी ले रही है"

मैंने अपने लिए चौथा पेग डाला और बाबा ठाकुर के लिए भी एक पेग बनाया... इसके बाद मैंने अपने दोनों हाथों को फैलाकर उनके सामने रख दिया और फिर बोली, "देखिए ना; मेरे भाग्य में क्या-क्या लिखा हुआ है?"

"जय गुरुदेव! ठीक है, देखता हूं तेरा भविष्य कैसा है?"

यह कहकर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ में गांजे की चिलम से एक लंबा सा कर लिया और उसका दुआ मेरे चेहरे पर छोड़ा और इससे पहले कि वह मेरे हाथों को अपने हाथ में ले पाते मैंने जानबूझकर अपना आंचल हटा दिया और अपना ब्लाउज खोल कर उनके आगे बिल्कुल नंगे सीने में बैठ गई|



बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ आंखों ने आंखों में मुझसे पूछा यह क्या कर रही है? मैंने हंसकर खुलकर बोल कर जवाब दिया, "आप तो सिर्फ मेरा हाथ देख रहे हैं... हो सकता है कि आपको कुछ और भी दिख जाए..."

बाबा ठाकुर ने हल्के से मेरे गाल पर प्यार से एक थप्पड़ मारा और बोले, "बदमाश लड़की"

मैंने अपना चौथा पेग खत्म किया और अपने हाथों को उनकी हथेलियों पर थमा दिया|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मेरी हथेलियों की रेखाओं को एक नजर देखते ही बोल पड़े, "मैं जानता था- मेरे भाग्य में भोग और विलासिता भरपूर है... तेरी जिंदगी में कई मर्द आएंगे... कुछ लोगों को तुझसे प्यार भी हो जाएगा... इसके अलावा जिस बात की मुझे चिंता है वह यह है कि तेरे भाग्य में बहुत बड़ा कालसर्प दोष भी है... जिसकी वजह से तू किसी भी आदमी के साथ अपना भरपूर जीवन नहीं बिता पाएगी... और इसके साथ ही मेरे जीवन में बहुत बड़ा विरह योग भी है... इसलिए तू जिसको भी अपनाना चाहेगी, उसे अपना नहीं पाएगी... तेरे पति के साथ तेरा घर संसार करना तेरी किस्मत में बिल्कुल भी नहीं है... यहां तक की तेरे बॉयफ्रेंड है टॉम के साथ भी दूरियों के योग बने हुए हैं... लेकिन साथ ही यह भी देख रहा हूं कि तू मेरे साथ बिताए हुए लमहे को यादगार बनाने की कोशिश कर रही है... लेकिन..."



"जी हां मैं बिल्कुल सही फरमाया... आपको भी काम के सिलसिले में हर रोज सुबह शहर जाना पड़ता है... जो वक्त आपको मेरे साथ बिताना था उस वक्त आपको काम करना पड़ता है... मेरे भाग्य की यही विडंबना है"

मुझे ऐसा लगा कि मैंने बाबा ठाकुर की मुंह की बात छीन ली है|

वह बिना कुछ कहे मेरी तरफ एक निरंक दृष्टि से बिना पलक झपकाए मेरी तरफ देख रहे थे और प्रसंग बदलने के लिए मैंने अपनी साड़ी का आंचल ठीक किया और फिर मैं बोली, "मैं नीचे रसोई में जाकर आरती से कह देती हूं कि वह आज रात का खाना थोड़ा जल्दी लगा दे... क्योंकि मैं आपके साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहती हूं"

यह बात कहते वक्त मेरे पेट के निचले हिस्से में एक अनजानी सी मस्ती भरी मीठी सी गुदगुदी सी हो रही थी| अगर बाबा ठाकुर पंडित की एकनाथ की जगह मेरा कोई और क्लाइंट इस वक्त मेरे सामने बैठा होता तो शायद मैं यह बात कहने के बाद उनको एक आंख मारती; लेकिन बाबा ठाकुर ठहरे एक सिद्ध पुरुष शायद वह जैसी एक लड़की का उन्हें आंख मारना पसंद नहीं आएगा|

बाबा ठाकुर ने अपने गांजे के चिलम का एक लंबा सा कश लिया और फिर थोड़ा सा धुआं अपनी नाक से निकालते हुए बाकी का धुआं मेरे चेहरे पर छोड़कर उन्होंने मुझसे कहा, "ठीक है, जैसी तेरी मर्जी पीयाली..."

उनकी टेढ़ी मुस्कान में कामुकता और वासना भरी हुई थी| मैं चुपचाप सर झुकाए कमरे से बाहर निकलकर रसोई में चली गई|

मेरे हर कदम पर मेरे पहने हुए गहने खनखन कर रहे थे... मैं जानती हूं ऐसी स्त्रियोचित अभिव्यक्तियाँ किसी भी पुरुष की लालसा को सुरसुराने के लिए काफी है|

***

रात के खाने के बाद और तीन पेग जिन पीने के बाद मुझे हल्का हल्का नशा हो रहा था| बाबा ठाकुर पंडित एक नाचने जी शायद अपना तीसरा चिलम खत्म कर लिया था| अब तक मैं उनके साथ जमीन पर ही बैठी हुई थी- साड़ी में लिपटी, गहनों से लदी और अपनी टांगों को मैं जितना फैला सकती थी फैलाकर उकड़ु होकर उनके सामने बैठी मैं शराब पी रही थी|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ चिलम को फर्श के एक कोने में सरकार कर उठ कर जाकर बिस्तर पर बैठ गए और वहां बैठे-बैठे वह मुझे कच्ची शराब का तीसरा पर खत्म करते हुए देख रहे थे|

न जाने क्यों आज बाबा ठाकुर का शरीर मुझे बहुत ही आकर्षक लग रहा था- क्या यह शराब कि नशे की वजह से था या फिर यह गांजे के धुएं का असर था? या फिर पेट की भूख मिटाने के बाद अब अपनी कामवासना की प्यास बुझाने इच्छा? यह मैं ठीक नहीं कर पा रही थी|



मैंने उनको अपनी आधी खुली नशीली आंखों से निहार रही थी| उनका चेहरा दाढ़ी से भरा हुआ था, लेकिन उनकी दाढ़ी छठी हुई थी| उनकी उम्र पचपनसाल के परे थी लेकिन फिर भी उनका गठीला शरीर और मर्दानगी किसी भी नव युवती को मदहोश करने के लिए पर्याप्त से अधिक थी|

उनकी छाती चौड़ी और सख्त थी- यह सब शायद उनकी जवानी में नियमित रूप से व्यायाम करने का नतीजा था उन्होंने सिर्फ लूंगी पहन रखी थी और मेरे देखते ही देखते उनका लिंग धीरे-धीरे कुतुब मीनार की तरह खड़ा हो रहा था... और हां जब भी वह यौन संबंध बनाते हैं तो उनके वीर्य स्खलन की मात्रा काफी ज्यादा होती है- यह मेरी एक व्यक्तिगत अनुभूति है| किसी भी औरत को संभोग करते वक्त क्या चाहिए होता है? एक स्वस्थ आदमी का ठोस शरीर जिसके वजन से उसका कोमल शरीर दबा रहे... लंबे समय तक उसकी मैथुन करने की क्षमता और फिर योनि के अंदर अपने चिपचिपे और गाढ़े वीर्य का सैलाब ढा देना

यही सब सोचते सोचते अनजाने में ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कान खिल गई और मेरे अंदर दबी हुई बात है अब मेरी जुबान से निकल ही गई, "बाबा ठाकुर, क्या मैं आपके लिए नंगी हो जाऊं?"

बाबा ठाकुर ने मुस्कुराते हुए कहा, "तू एक काम कर तू बस अपनी साड़ी उतार दे; लेकिन कहने मत उतारना... वैसे तेरे बाल तो खुले ही हुए हैं; बस मैं तुझे नंगे बदन और खुले बालों में गहनों में सजा हुआ एक बार देखना चाहता हूं"

मैंने जमीन पर बैठे-बैठे ही अपने पैग नंबर साढ़े तीन को खत्म किया| और उसके बाद खड़ी होकर और जानबूझकर उनकी तरफ पीठ करके मैं धीरे-धीरे अपनी साड़ी खोलने लगी| साड़ी उतारकर बिल्कुल नंगी हो जाने के बाद ठीक पहले की तरह वह अपने बाएं हाथ से आप लोगों को और बाएं हाथ से अपने दो टांगों के बीच के हिस्से को ढक कर अपनी शर्मो हया बचाने का एक निरर्थक प्रयास करती हुई धीरे-धीरे मैं उनकी तरफ हो गई|

और मैं यह अच्छी तरह जानती थी कि मेरी ऐसी लड़की पन भरी हरकतें बाबा ठाकुर को बहुत अच्छी लग रही थी; क्योंकि उन्हें एक निष्पाप, आज्ञाकारी और कामुकता से भरी हुई गृहणी के साथ विलासिता करने की चाहत थी|

फिर मैं अपना सर झुकाए एक-एक कदम करके उनकी तरफ बढ़ने लगी| उनके पास पहुंचते ही उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी तरफ खींचा और पलक में बिठा दिया और उसके बाद मेरे सर के पीछे से बालों को पकड़कर मेरा चेहरा अपने चेहरे के पास ले आए और मुझे जी भर के चुने चाटने लगे| मैं उनके हर तूने चाटने का आग्रह के साथ चंबल पैटर्न के साथ ही जवाब देने लगी, उन्होंने मुझे अपनी खास से जकड़ रखा था और दूसरे हाथ से मेरे स्तनों को बड़े ही चाव से मस्त दबाए जा रहे थे|

फिर उन्होंने मेरे कानों से एक बाली उतार दी और मेरे कान की लोगों को अपने दांतो से हल्का हल्का काटने लगे और चूसने लगे... फिर उन्होंने मेरे दूसरे कान के साथ भी ऐसा ही किया|

खिड़कियां खुली हुई थी पर पर्दे तने हुए थे और हवाओं के झोंके उन्हें बार-बार उड़ा रहे थे| ऐसा लग रहा था शायद यह हसीन रात भी हम दोनों की कामलीला की झलकियां देखना चाहती है| गांव के माहौल और सुहावने मौसम में ठंडी हवाओं के झोंके मेरे बदन में जैसे लालसा की आग को और भड़का रहे थे... मैं आंखें मूंदकर बाबा ठाकुर की हर हरकत का मजा ले रही थी इतने में मैंने हल्के से अपनी आंखों को खोल कर अंदर वाली खिड़की की तरफ देखा- मुझे पक्का यकीन था कि खिड़की के पीछे दुबक कर बैठी आरती भी हमारी हरकतों खुद दिख रही है और उसके बदन में भी आग लग रही है...

बाबा ठाकुर का ध्यान और कहीं नहीं था वह सिर्फ मेरे बदन में ही पूरी तरह से मगन थे| अब मुझे ध्यान आया हवा में उड़ते हुए मेरे खुले बाल कभी-कभार बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की जीभ और मेरी त्वचा के बीच में आ रहे थे| इसलिए मैंने अपने बालों को समेटकर पीछे अपने दोनों हाथों से एक पोनीटेल की तरह पकड़ा ताकि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मेरे पूरे नंगे बदन को अच्छी तरह प्यार से सहला सके, चुम सकें और अपनी जीव से चाट सकें... और इसकी वजह से मेरे दोनों हाथ थोड़ी ऊपर उठे हुए थे और बाबा ठाकुर की नजर मेरे बगलों पर गई... और मैंने देखा कि उनकी आंखों की पुतलियों में एक अजीब सी चमक सी आ गई... मेरे शरीर का यह हिस्सा अभी तक उनसे अन छुआ रह गया था|

उन्होंने मुझसे कहा, "पीयाली दूसरों से कामधेनु क्यों होती है... तेरे सर के बाल और भौहों के अलावा तेरे शरीर पर कोई भी बाल नहीं है यहां तक की तेरे बगलों में भी नहीं... और तेरे नंगे बदन से एक अजीब सी मादक स्त्रैण चमक और एक कुदरती खुशबू आती रहती है"

उनकी यह टिप्पणी सुनकर मुझे ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की याद आ गई- उन्होंने मुझे नियमित रूप से 'फुल बॉडी वैक्सिंग' करने की सलाह दी थी- और उनकी सलाह को मैंने माना था|

और मेरा अंदाजा सही था, बाबा ठाकुर के मन में यही चल रहा था कि उन्होंने मेरे शरीर के हर हिस्से में अपनी छाप छोड़ी है सिवाय मेरे बगलों के... इसलिए उन्होंने यह मौका नहीं छोड़ा और मेरे बगलों को वह हल्का हल्का काटने- चूमने और चाटने लगे|

मेरे पूरे बदन में एक अजीब सी सनसनी दौड़ गई है और मैं हल्का हल्का कांपने लगी और मदहोशी से सिसकियां भरी सांसे लेने लगी|

पता नहीं क्यों इतने में बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने मुझसे कहा, "पीयाली, जा उठकर जा और कमरे के नीले रंग के नाइट बल्ब को जला दें और बाकी सारी बत्तियां बंद कर दे"

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने अब तक मेरे अंदर जिस तरह वासना की इच्छा का संचार किया था मैं उसी में डूबी हुई थी- लेकिन मैंने सोचा कमरे में अगर नीली- नीली रोशनी हो तो माहौल और कामुक जाएगा... इसलिए मैं किसी तरह से उठी- हालांकि मुझे बाबा ठाकुर की आगोश से निकलने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था- और कुछ कदम डगमगाती हुई चलकर स्विच बोर्ड के पास जाकर पहले कमरे की नीली वाली नाइट बल्ब जलाई और उसके बाद बाकी सब बत्तियां मैंने बंद कर दी|

मेरे पीठ पीछे बाबा ठाकुर ने भी खड़े होकर अपनी लुंगी उतारउतारकर बिल्कुल नंगे हो गए थे और इससे पहले कि मैं पीछे मुड़ पाती, उन्होंने आकर मुझे पीछे से पकड़ लिया और अपने दोनों हाथों से मेरे स्तनों को दबाते हुए बोले, "पीयाली, आज पता नहीं क्यों चलते वक्त तेरे कूल्हे बड़े ही मादक तरीके से मटक रहे थे..."

और मैं उनके बड़े लिंग का दबाव अपने कूल्हों पर साफ महसूस कर रही थी| यह कहकर उन्होंने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और सीधे बिस्तर पर ले जाकर मुझे उल्टा लिटा दिया|

क्रमशः
 

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अध्याय २३

आज बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के आश्रम में उनके मैनेजर सेनगुप्ता साहब आए हुए थे| इसलिए मैंने सिर्फ उनके गुरुदेव की तस्वीर को अच्छी तरह से साफ किया और उसके बाद ढूंढना दिखाकर शंख बजाकर आरती का हाथ बंटाने के लिए सीधे रसोई घर में चली गई थी| इसलिए सब कुछ जल्दी-जल्दी हो गया|

बाबा ठाकुर में सत्संग के बाद ही आरती को लेकर बाजार जाने दिया| लेकिन इस बार उन्होंने मुझे ब्रा-पेंटी और ब्लाउज-पेटीकोट पहनने की इजाजत दे दी थी- क्योंकि मैं घर के बाहर कदम रखने वाली थी| पर मेरे सारे के सारे ब्लाउज जो मैं अपने साथ लाई थी वह बहुत कटे खुले से थे| ऐसा ब्लाउज पहनने के बाद अगर मैं बराबर होती तो शायद ब्रा के ऊपरी हिस्से दिख रहे होते| ऐसे ब्लाउज को पहनने के बाद सीने का बहुत सा हिस्सा और स्तनों की वक्र रेखाएं साफ दिखती है- आखिरकार यह डिजाइनर और मॉडर्न ब्लाउज जो ठहरे| इसलिए साड़ी पहनने के बाद मैंने अपने आंचल से अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा अच्छी तरह से ढक लिया|

इसके साथ ही बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने मुझसे कहा था कि मैं घर के बाहर खुले बालों में ना जाऊं इसलिए मैंने अपने बालों में एक अच्छा सा जोड़ा बना लिया था| पर मैं जानती थी कि बाजार से घर आने के बाद फिर से मुझे अपने सारे अंतर्वास उतार कर दोबारा सिर्फ साड़ी लपेट कर रहना है और अपने बालों को खुले रखना है|

और हां सत्संग के दौरान अपनी स्त्रैण छठी इंद्री की बदौलत में समझ गई बाबा ठाकुर के मैनेजर साहब- उम्र दार होने के बावजूद- मुझे सर से पांव तक अपनी आंखों से नाप रहे थे| लगता है आरती बिल्कुल सही कह रही थी; बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के घर आज तक जितनी लड़कियां या फिर औरतें आई होंगी उनमें सबसे ज्यादा सुंदर शायद में ही थी|

मुझे तैयार होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा मैं सिर्फ कमरे का दरवाजा हल्का सा भिड़ा के कपड़े बदल रही थी कितने में आरती एकदम एक फुल स्पीड में धड़धड़ा कर आती हुई स्टीम इंजन की तरह कमरे के दरवाजों के किवाड़ों को झटके के साथ खुलती हुई दाखिल हुई और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती; उसने छुपकर मेरी साड़ी उठाकर मेरी बेटी खींच कर उतार दी|

मैं एक पल के लिए तो बिल्कुल भौंचक्की रह गई और फिर मैंने संभल कर उससे पूछा, "यह क्या कर रही है"

उसने खिलखिला कर हंसते हुए मुझसे कहा, "पीयाली दीदी, चलो ना आज हम दोनों बिना पैंटी पहने की बाजार जाएंगे--- बड़ा मजा आएगा... ही ही ही ही"

***

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के घर से पक्की सड़क करीब 10-15 मिनट के फासले पर थी| आरती ने मुझसे कहा था पक्के रास्ते पर आते ही हमें रिक्शा मिल जाएगा जिस पर सवार होकर हम लोग बाजार तक पहुंचेंगे|

कच्चे रास्ते पर चलते हुए मैं गांव के माहौल का पूरा मजा ले रही थी... रास्ता कच्चा था और दोनों तरफ घने घने पेड़ों के जैसे जंगल- जंगल थे| यह बारिश का मौसम था और कल रात बारिश भी बहुत ज्यादा हुई थी इसलिए मौसम बहुत ही सुहावना हो रखा था| लेकिन चलते-चलते मैंने गौर किया कि आते जाते सभी लोग- बड़े बूढ़े, बच्चे जवान यहां तक की औरतें भी मुझे आंखें फाड़ फाड़ कर देख रही थी| मैंने अपने बदन पर एक पारंपरिक साड़ी पहन रखी थी, मेरी मांग सिंदूर से भरी हुई थी और हाथों में किसी भी शादीशुदा बंगाली औरत की तरह मोटे मोटे शांखा और पौला थे|

पर मैं गांव की आती जाती लड़कियों की तुलना में बहुत ज्यादा गोरी थी लंबे बालों की वजह से मेरे जुड़े का साइज भी काफी बड़ा था और ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की संगत में आकर मैं नियमित रूप से योगा और जिम (gym) किया करती थी जिसकी वजह से मेरा फिगर अच्छी तरह से निखार आया था और आम लड़कियों के मुकाबले मैं थोड़ी लंबी थी और मेरे हर कदम पर मेरे स्थानों का जोड़ा जैसे थिरकते रक्त कर यौवन का रस छलका रहा था... इसलिए मैंने गौर किया कि ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा ने बिल्कुल सही कहा था- मर्दों की नजरें लड़की के चेहरे पर पड़ने के बाद सीधे उनकी स्तन युगल पर पड़ती है- और यहां भी ऐसा ही हो रहा था|

मैंने फुसफुसाते हुए आरती से कहा, "देख लिया ना तूने, आते जाते लोग बाग कैसे आंखें फाड़ फाड़ कर मुझे देख रहे हैं? यह सब तेरी वजह से हुआ है; तूने तो मेरी पेंटी भी खींच कर उतार दी... लगता है सब को पता चल गया है कि मैं साड़ी के नीचे बिल्कुल नंगी हूं... "

आरती भी शरारत से मुस्कुराती हुई बोली, "पीयाली दीदी, जो बातमैं तो जानती हूं उन्हें तो इस बात का पता ही नहीं... वह यह नहीं जानते कि तुम्हारी दो टांगों के बीच में बिल्कुल भी बाल नहीं है सब कुछ एकदम सफाचट"

मैंने बंगाली में कहा, "धुर! पाजी मेये (धत! बदमाश लड़की)"

"तुम जानती नहीं हो पीयाली दीदी; तुम बहुत ही सुंदर हो- तुम्हारा रंग एकदम दूधिया है... कमर तक लंबे घने बाल... भरे पूरे से मम्मे (स्तन) पतली कमर और मांसल कूल्हे..."

"तू थोड़ा चुप करेगी"

"नहीं ना पीयाली दीदी, तुमको देख कर ऐसा लगता है जैसे बड़ी ही बारीकी से तराशी हुई एक देवी की मूर्ति"

"अब देख मुझे गुस्सा आ रहा है"

"ही ही ही ही ही"

हम लोग ऐसे ही चले जा रहे थे कि इतने में किसी औरत ने पीछे से हम दोनों को आवाज लगाई, "अरी आरती! कहां चली जा रही है?"

हम दोनों ने पीछे मुड़कर देखा| हमारे पीछे एक अधेड़ उम्र की औरतऔर एक शायद मुझसे चार पांच साल बड़ी शादीशुदा लड़की खड़ी थी और उनके साथ एक छोटा सा बच्चा भी था| मैं इस बच्चे को देखते ही पहचान गई| यही लड़का उस दिन सुबह बाबा ठाकुर के आंगन में सूखे हुए गुलाब के पौधे पर बड़े मजे से सुसु कर रहा था|

"अभी आती हूं!"

यह कहकर आरती लगभग मुझे खींचते हुए उन लोगों के पास ले गई|

"क्या री आरती, कहां जा रही है?" उस अधेड़ उम्र की औरत में पूछा पर उन लोगों की निगाहें मुझ पर ही टिकी हुई थी|

"यहीं तो; हम लोग थोड़ा बाजार जा रहे हैं कुछ खरीदारी करनी है, बुआ जी"

"अच्छा एक बात बता तेरे साथ यह सुंदर सी लड़की कौन है?" उस औरत ने मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराते हुए आरती से पूछा|

लेकिन इतने में एक छोटा सा लड़का मुझे देखकर पहचान गया था और उसअधेड़ उम्र कीऔरतों के पीछे छुप गया|

"यह हमारी नई नवेली भाभी है- बाबा ठाकुर के यहां मां बनने आई है" आरती ने बिल्कुल उत्साह के साथ जवाब दिया|

मेरा दिल धक से रह गया!

"आहा! ऐसी सुंदर बहू? एक रात में ही पेट से आ जाएगी" उस अधेड़ उम्र की औरत ने मेरे गालों पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, "पर एक बात बता बाबा ठाकुर उसको कितने दिन अपने पास रखेंगे?"

"पीयाली दीदी हमारे घर इस रविवार तक ही है" आरती ने उसी उत्साह के साथ जवाब दिया|

लेकिन फिर मैंने गौर किया कि उसका चेहरा थोड़ा उतर सा गया शायद वह मुझे जाने नहीं देना चाहती थी|

"अरे वाह यह तो बड़ी अच्छी बात है! बड़े दिनों के बाद तुम्हारे घर ऐसी एक नई नवेली दुल्हन आई हुई है... जहां तक मुझे याद है पिछले डेढ़ साल से तुम्हारे यहां कोई नहीं आई"

मैंने उनकी आंखों ही आंखों में यह जान लिया कि उनके मन में यह बात चल रही थी कि मुझ जैसी लड़की को बाबा ठाकुर तो क्या कोई भी आदमी एक रानी की तरह मुझे रख सकता है|

उन्होंने बोलना जारी रखा, "बाबा ठाकुर जैसे सिद्ध पुरुष के घर उनका आशीर्वाद ग्रहण करके अगर कोई लड़की मां बनती है तो इसमें कोई हर्ज नहीं है... मैंने भी तो अपनी बेटी को बाबा ठाकुर के यहां भेजा था... शादी के करीब करीब 3 साल हो गए थे लेकिन मेरी बेटी को बच्चा नहीं हो रहा था... इसलिए उसकी सास बात बात पर मेरी बेटी को ताने मारा करती थी... इसलिए मैंने अपनी बेटी से कहा कि मैं तेरे को बाबा ठाकुर के घर भेज दूंगी.. अगर हम अपनी परंपरा को याद करें तो यह जाहिर है कि सिद्ध पुरुष लोग वर्षों की तपस्या के बाद एक शक्ति का अर्जित करते थे... इसके बाद कोई भी लड़की अगर उनसे गर्भवती हो जाए तो इसमें हर्ज ही क्या है?"

ओ अच्छा अब बात समझ में आई| यह छोटा सा बच्चा और कोई नहीं बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की ही संतान है... अब मेरी समझ में चित्र आ गया किस गांव खेड़ी में अगर कोई लड़की अपने पति के द्वारा मां नहीं बन पाती तो लोग बाग़ उसे किसी धार्मिक व्यक्ति के पास भेज देते हैं- और अगर यह लड़की उनके द्वारा गर्भवती हो जाती है तो यह इनके समाज में अच्छी तरह से स्वीकार्य है|

लेकिन अब मैं क्या करूं? मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था इसलिए मैंने सीधे धैंस- एकदम उस अधेड़ उम्र की औरत की चरणों पर गिर कर उन्हें प्रणाम किया|

जब मैं उठी तो उन्होंने सिर्फ मेरे गालों पर हाथ फिर कर प्यार से आरती से पूछा, "क्या रे आरती? बाबा ठाकुर में इस लड़की को अपना आशीर्वाद दिया कि नहीं?"

मैं समझ गई कि यह जानना चाहती है कि बाबा ठाकुर ने मेरे साथ संभोग किया है कि नहीं- न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था इस बात को जानने के लिए वह बहुत ही उत्सुक हैं|

मैंने नजरें झुका कर स्वीकृति में अपना सर गिराया कितने में आरती बोल पड़ी, "जी हां जी हां बिल्कुल! ही ही ही ही ही"

मुझे लगा कि वह अधेड़ उम्र की औरत यह सुनकर बहुत खुश हुई|

लेकिन इसी बीच मेरी नजरें उस अधेड़ उम्र की औरत के साथ आई हुई उनकी बेटी के साथ मिली और आंखों में आंखों में मैं समझ गई के आशीर्वाद के नाम पर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ में हम दोनों के साथ ही पायुकाम के मजे ले लिए थे|

***

उस दिन गांव के बाजार में हाट लगा हुआ था|

दूर-दूर से दुकानदार इस गांव में अपना सामान बेचने के लिए आए हुए थे| जिंदगी में पहली बार मैंने मछली बाजार में इतनी बड़ी-बड़ी मछलियां देखी थी| आखिरकार में एक बंगालन हूं, लेकिन शहर के बाजार में मैंने इतनी बड़ी मछलियां नहीं देखी थी|

लेकिन मुझे मछलियां खरीदने की चिंता नहीं थी क्योंकि मैं जानती थी कि आज दोपहर तक बाबा ठाकुर के घर पर कोई ना कोई ऐसी ताजा मछलियों को जरूर पहुंचा देगा| और मुझे मालूम है की मछलियां तब तक जिंदा होंगी और मुझे और आरती को मार-मार कर इन मछलियों को मौत के घाट उतारना पड़ेगा और उसके बाद काट कूट कर उनको पकाना पड़ेगा|

शहर में ऐसी ताजा सब्जियां और मछलियां नहीं मिलती!

यहां की चीजें बहुत सस्ती है| गांव के बाहर ही किसी सेठ ने अपनी फैक्ट्री लगा रखी है इसलिए यहां होज़री (hosiery) की चीजें से इतने सस्ते में मिलती है|

और इन्हीं चीजों में अगर किसी विदेशी कंपनी मैं अपना ठप्पा लगा दिया तो शायद यह चीजें दस गुना ज्यादा कीमतों में बिकेंगे- और ऐसा ही होता है|

मैंने अपना वैनिटी बैग खोलकर देखा. उसमें सिर्फ ₹480 ही पड़े हुए थे| मुझे याद है जब मैं बाबा ठाकुर के यहां आने वाली थी तब मैंने यह नहीं देखा था कि मेरे पास कितने पैसे हैं मैं सिर्फ जल्दी जल्दी तैयार होकर ब्लू मून क्लब की तरफ रवाना हो गई थी| मैंने यह देखने की जहमत नहीं उठाई थी कि मेरे बैग में कितने पैसे पड़े हुए हैं| रास्ते में मैंने यह तो सोच कर रखा था कि मुझे एटीएम से पैसे निकालने हैं, लेकिन रास्ते में कोई एटीएम नहीं मिला और मुझे भी याद नहीं रहा| फिर न जाने क्यों मैंने सोचा कि मैं अपने बैग के अंदर का छोटा वाला चेन खोल कर देखूं क्या है? और चेन खोलते ही मैं अवाक रह गई पर मेरी बांछें खिल गई| उसमें कम से कम ₹20,000 रुपए के आसपास रखे हुए थे|

मैं मन ही मन अपने बॉयफ्रेंड टॉम को याद कर रही थी क्योंकि मैं जानती थी कि यह सब उसी की कारस्तानी है|

आरती के साइज की ब्रा पेंटी खरीदने में मुझे ज्यादा देर नहीं लगी. लेकिन गांव के दुकानदार यही सोच रहे थे कि इस सुहागिन के साथ इसका शौहर क्यों नहीं आया? यह साथ में एक लड़की लेकर आई है और उसके अंतर्वास खरीद रही है| अब इसमें हर्ज क्या है? अब यह कोई गांव के लोगों को समझाएं|

अंतर्वास के अलावा मैंने आरती के लिए काफी सारे कपड़े लत्ते भी खरीद कर दिए जिसमें चार की साड़ियां भी थी| इस गांव में हाथ की बनी हुई 5 की साड़ियां इतने सस्ते में मिलती है इसका मुझे अंदाजा भी नहीं था- जो साड़ी यहां ₹400 की मिल रही थी वही शहर में करीब-करीब ₹2000 आसपास के आसपास कि मिलेंगी|

इसके अलावा मैंने आरती के लिए एक नेल कटर और काफी सारे मैचिंग नेल पॉलिश भी खरीद कर दिए|

लेकिन इतने सब खरीदारी करते वक्त बार-बार मुझे अपने बॉयफ्रेंड टॉम की याद आ रही थी- मेरे मना करने के बावजूद वह मेरे पास में चुपके चुपके पैसे डाल दिया करता था- पागल आशिक कहीं का...

इसके बाद मेरी नजर गांव के हाट में एक तड़क भड़क स्टोर पर पड़ी| वहां एक शोकेस में हेयर रिमूवर रखा हुआ था वह मैंने झट से खरीद लिया उसके बाद मेरी नजर शोकेस में रखे हुए इमिटेशन ज्वेलरी पर पड़ी| अगर कोई ध्यान से ना देखे तो असली वाली ज्वेलरी भी इन सब चीजों के आगे हार मान जाएगी|

मेरे पास पैसे तो काफीफिर देर किस बात की थी? धूम धड़ाम मैंने गले का एक मोटा सा हार पैरों की बालियां, हाथों की मोटी मोटी चूड़ियां नाक का नथ, कानों की बालियां, माथे की टिकली और बाकी काफी सारा सामान खरीद लिया|

आरती मेरे को आंखें पढ़ पढ़ कर देख रही थी क्योंकि उसे मालूम था यह सारा सामान मैं उसी के लिए खरीद रही हूं; लेकिन पहले में इनका इस्तेमाल मैं करूंगी|

इमिटेशन ज्वेलरी के दुकानदार एक जवान लड़का था और वह बार-बार मेरे चेहरे को देख रहा था और उसकी निगाहें ना चाहते हुए भी मेरे स्तनों के जोड़ों पर टिक रही थी; मैंने मन ही मन सोचा कि इसमें हर्ज ही क्या है?

उस दुकानदार की सुबह सुबह की बोहनी करीब-करीब सात हजार रुपयों की हुई|

ऐसे इमिटेशन के गहने अगर कोई लड़की पहन कर रखें और अगर किसी ने ध्यान से नहीं देखा तो ऐसा लगेगा कि लड़की ने करीब करीब दस बारह लाख के सोने के गहने पहन रखे हैं|

सारा सामान समेटने के बाद मैंने दुकानदार से पूछा, "भैया यहां कहीं कोल्ड ड्रिंक मिलेगी क्या"

"हां हां जरूर,आपको पीना है कि आप घर लेकर जाएंगी?"

"जी हमको को घर लेकर जाना है"

"हां हां हां जरूर थोड़ी देर बैठी है मैं भी लेकर आता हूं"

दुकानदार ने मेरे से कोल्ड ड्रिंक के पैसे नहीं लिए| आखिरकार सुबह-सुबह उसकी दुकान की बोहनी दो- दो सुंदर लड़कियों ने करवाई थी और ऐसा लग रहा था कि शायद सुबह-सुबह ही उसकी इतनी आमदनी हो गई जितना कि वह शायद पूरे दिन में नहीं कमा पाता|

इसके बाद हम लोग बाजार के मछली बाजार में गए| यहां ताजा हिलसा मछली मिल रही थी और वह भी जिंदा| शहर में तो ऐसी मछलियां सिर्फ बर्फ से सनी हुई होती है|

मछली वाला भी मुझे और आरती को ताड़ रहा था| आरती ने भी ब्रा नहीं पहन रखी थी और बार-बार उसका आंचल सरक जा रहा था जिसकी वजह से मिला उसके अंदर से उसकी चूचियां साफ ऊपर करा रही थी और नतीजा यह हुआ कि अगर मैं ठीक से हिसाब नहीं करती तो शायद मछली वाले को करीब करीब डेढ़ सौ का नुकसान हो जाता|

वापस लौटते वक्त हम लोगों को रिक्शा जल्दी ही मिल गया| रिक्शे में बैठकर लौटते वक्त आरती ने मुझसे कहा, "पीयाली दीदी, तुम इन बहनों को पहनकर मुझे जरूर दिखाना..."

"हां हां जरूर" मैंने जवाब दिया, " बस तू मुझको इन बहनों को एक या दो बार पहले देना- बाकी यह सारे गहने मैंने तेरे लिए ही खरीदे हैं"

"हैं?" आरती एकदम आसमान से गिरी|

"हां यह सारे गहने तेरे लिए ही है; लेकिन तुझे काम करना पड़ेगा आज शाम को बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के लिए क्या तुम मुझे अच्छी तरह से सजा देगी?"

"हां हां हां जरूर जरूर जरूर" इतना कहकर आरती ने मुझसे लिपटकर मेरे गालों को चूमा|

रिक्शावाला इतनी देर से हमारी बातें सुन रहा था अब उससे रहा नहीं गया उसने पीछे मुड़कर हम दोनों को देखा और उसके ऐसा करते ही आरती उस पर भौंक उठी, "ओ भैया! क्या देख रहे हो तुम ठीक-ठाक रिक्शा चलाओ"

मुझसे रहा नहीं गया| मैं हंस पड़ी लेकिन मैंने आरती से कहा, "सुन आरती फिलहाल बाबा ठाकुर से तू कुछ मत कहना मैं उनको एक सरप्राइज देना चाहती हूं"

"सरप्राइस, मतलब?"

"देख लेना"

क्रमशः
अंतः रांड की गांड, सांड ने मार ही ली। बड़ी कमाल की रण्डी है ये पियाली, त्रिया चरित्र में phd किये हुए हैं। भला गांड मराई में बेहोशी का नाटक कर के गांड मारने वाले को ये अहसास दिया कि उसकी गांड का ढक्कन पहली बार खुला है। स्त्रियों की सबसे ज्यादा बदनाम कौम है " रण्डी " जब पुरुष में स्त्री के गुण आ जाये तो वो महात्मा बन जाता है और जब स्त्री में पुरुष के गुण आ जाये तो वो "रण्डी" बन जाती है। गाड़ मराई की क्रिया का वरण अभिभूत कर गया। लेकिन जितना बढ़ा चढा कर लिखा गया उतना कहानी में उत्तेजना भरने के लिए लाजमी है। यथार्थ में गांड मराने या गांड मारने का मुझे कोई अनुभव नही है, इसलिए ज्यादा गहराई से समीक्षा नही कर सकता। हा लेकिन कुछ स्त्री/पुरुषो से सुना है कि गांड में लंड लेने/देने से ही संभोग के दौरान परम आनंद की प्राप्ति होती है। और मै इस परम आनंद लेने से अभी वंचित हू। गुदा मैथुन सारे मैथुन में से हमेशा से ही सर्वोच्च रहा है... " है कोई गांडू आपके ध्यान में.. मुझे भी अपना लंड देना है दान मे 😜😂" पियाली रांड दिन में चार बार लंड लेकर अपना बाबा से विधिवत इलाज करा रही है, साथ साथ आरती की कच्ची अमिया का अचार भी चख रही है, बिना पैंटी के बाजार जाना कोई नई बात नही है, छोटे छोटे शहरों में अंधिकांश लुगाई पेटीकोट के नीचे पैंटी नही पहनती।


अध्याय : 21,22,23 लजाबाब रहे... आगे भी आप और हम साथ साथ शब्दों की नाव में बैठकर पूरा हावड़ा ब्रिज घूमेगे.... ✍️


स्सनेह धन्यवाद.....
 

manu@84

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प्रिय " चंपा नाग " आपकी कहानी के अध्याय 24,25, 26 संभोग कला और कामुकता से परिपूर्ण रहे, पियाली को इस तरह बाबा के लंड पर बैठकर अपने नेवि में कार्यरत पति का जिकर बार बार करना मुझे पसंद नहीं आ रहा है।

""एक शादीशुदा स्त्री चाहे जितने गैर मर्दो के साथ रंग रेलिया मनाये लेकिन अपने पति को इस तरह गैरों के बिस्तर पर रुसवा नही करना चाहिए। अपनी जिस्म की भूख की पूर्ति करने का पत्नी को पूर्ण अधिकार है, और आज के दौर में पति भी कोई रोक टोक नही करते। पर उनकी खुली छूट को गैरों के लंड की सवारी करते हुए अपने पति की मर्दांगी को यू बदनाम करना कतयी बर्दाश्त नही किया जायेगा।""

पियाली बाल्य अवस्था से ही सेक्स की भूखी रही जिसके कारण उसके चूचे उम्र से बड़े हो गये। पियाली की कम उम्र में फटती जवानी और उठती गांड को देखकर ही उसके पिता ने कम उम्र में ब्याह कर दिया था। पति ने अपनी पत्नी को खुशी देने के लिए हर सुख साधन दिया बस वक़्त नही दे पाया, ये वक्त की आड़ में ही पियाली ने छिनार रूप धर लिया। टॉम के साथ भी वो सेक्स सुख से संतुष्ट नही हुयी। नये नये मर्दो के साथ संभोग करने की चाह को भाग्य पर थोप कर खुद को सही साबित ना करे। पियाली बाबा के साथ इस तरह पेश आ रही है जैसे वो धरती का सबसे बड़ा लंड धारी इंसान है। ह्म्म्म ह्म्म्म

खैर आपके लिए दो सलाह है एक ये 👇

(बाबा ठाकुर अभी तक मंत्रमुग्ध दृष्टि से मेरी तरफ देख रहे थे, "फूल? हां वह जवाकुसुम का फूल... लेकिन एक बात बता पीयाली, तू हर रोज इस तरह से अपने बालों पर मेरे पैर क्यों रखवाती है?""यह तो एक परंपरा है बाबा ठाकुर, सदियों से सनातन धर्म में यही तो चला रहा है, मुझ जैसी नारियों के लिए एक सिद्ध पुरुष का आशीर्वाद लेने का भला और क्या तरीका हो सकता है?")

इस तरह अपनी काम गाथा में धार्मिक शब्दों का प्रयोग ना करे किसी ने रिपोर्ट कर दी तो कहानी बेन हो जायेगी। और दूसरी सलाह है कि ये "बाबा पुराण" अब बंद कीजिये... कुछ नया लिखिये.✍️ बांकी आपको जैसा ठीक लगे....

धन्यवाद....
 
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