अध्याय २६
बाबा ठाकुर का हाथ पकड़ कर मैंने उन्हें पलंग पर बिठाया और फिर सर नीचे किए हुए मैं कमरे से बाहर निकल कर सीढ़ियों से उतर कर रसोई में दाखिल हुई जहां फ्रीज में कोल्ड ड्रिंक की बोतल रखी हुई थी|
मैंने फ्रिज खोलकर कोल्ड ड्रिंक की बोतल निकाली और एक बड़ी कटोरी में बर्फ निकालें| इतने में मैंने देखा कि बाबा ठाकुर के आने से पहले ही आरती ने अच्छी तरह से साड़ी ब्लाउज पेटीकोट पहन लिया था और हां उसने मेरी उसके लिए खरीदी हुई ब्रा भी पहन रखी थी|
उसने मुझसे कहा, "पीयाली दीदी, यह क्या बाबा ठाकुर तो कमरे में आ चुके हैं- और मैं देख रही हूं कि सिर्फ तुम्हारे बाल ही खुले हुए हैं, ना तो तुमने अपने गहरे उतारे हैं और ना ही बदल से कपड़े आखिर बात क्या है?"
मैंने अपनी हथेली से हल्के से उसके गालों को थपथपाया और फिर बोली, "मैंने कहा था ना? कि आज बाबा ठाकुर मुझसे कुछ नहीं कहेंगे... पर तू जानती है थोड़ी ही देर बाद मैं बिल्कुल नंगी हो जाऊंगी..."
फिर न जाने क्या याद करके आरती ने अपना मुंह बिचकाया और फिर बोली, मैं एक बार जरूर कहूंगी पीयाली दीदी, बाबा ठाकुर तुमको जी भर के रात भर चोदते जरूर रहते हैं... और तुम्हें बिल्कुल गंदा कर देते हैं... उसके बाद तुम्हारे बदन से एक अजीब सी बदबू आने लगती है..."
"आज देख ना, कौन किसे गंदा करता है; कमरे की एक खिड़की जो अंदर की तरफ खुलती है वह ठीक तरह से तो बंद नहीं होती... उसी में से झांक कर देख लेना... लेकिन उस दिन की तरह बिल्कुल नंगी धड़ंगी होकर मत रहना.... नहीं तो तेरे सर पर कोई न कोई भूत आ जाएगा"
वापस कमरे में जाकर मैंने बाबा ठाकुर के लिए और अपने लिए एक एक रमका पेग बनाया उसमें कोल्ड ड्रिंक मिलाई और बर्फ डाले|
बाबा ठाकुर ने हंसते हुए उससे कहा, "एक बात कहूं पीयाली तेरे शहर के दारू से मेरा कुछ भी नहीं होने वाला मेरे लिए तो सिर्फ बाबा का प्रसाद (गांजा) ही ठीक है... लेकिन तू जब मेरे लिए इतने प्यार से यह पेग बना कर लाई है तो तू उससे थोड़ा सा जुठला दे..." यह कहकर उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरा|
उनकी आज्ञा अनुसार मैंने बिल्कुल वैसा ही किया| बाबा ठाकुर एक ही सांस में पूरा का पूरा पेग गटक गए|
उसके बाद बाबा ठाकुर के कहे अनुसार मैंने अलमारी से उनकी गांजा का चिलम निकाला और जमीन पर उकडू होकर बैठ कर जैसा जैसा वह कहते गए ठीक वैसे ही मैंने गांजे के साथ तंबाकू मिलाकर चिलम में ठूसने लगी|
अब तक मैंने गौर कर लिया था कि बाबा ठाकुर जब भी अपने चिलम में गांजा भरते हैं तो जमीन पर उकडू होकर बैठकर ही ऐसा करते हैं|
बातों ही बातों में उन्होंने मुझसे एक बार कहा था कि किशोरावस्था से ही उनको यही आदत पड़ी हुई है| उन्होंने तंत्र मंत्र विद्या सीखने की शुरुआत बहुत ही कम उम्र से कर दी थी और वह अपने गुरुदेव के साथ कई कई रात या तो श्मशान में या फिर कब्रिस्तान में बिताया करते थे|
और अपनी तंत्र मंत्र की क्रिया और प्रक्रिया करते वक्त वे दोनों इसी तरह से गांजा पिया करते थे|
बाबा ठाकुर भी न जाने कब बिस्तर से उतरकर मेरे बिल्कुल सामने उकडू होकर बैठे हुए थे| आज शायद गांजे का दुआ थोड़ा तेज था इसलिए मैं बिना कुछ नहीं उठकर कमरे की खिड़की जो बाहर की तरफ खुलती है उसके किवाड़ खोल दिए और पर्दा तान दिया|
और फिर वापस जमीन पर मैं भी उनके बगल में रम का गिलास लेकर उनसे एकदम सटके बैठ गई और मैंने जानबूझकर अपना सर उनके कंधे पर टिका दिया ताकि मेरे खुले बालों की छुअन उनके नंगे पीठ पर लगती रहे|
“न जाने क्यों पीयाली, आज तेरे बदन से एक मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही है... और तेरी छुअन और भी स्त्रैण और मुलायम लग रही है| तेरा पति और तेरा प्रेमी बहुत ही भाग्यवान है"
"आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं बाबा ठाकुर... यह तो मेरा सौभाग्य है कि आपने मुझे अपनी यौन संगिनी के रूप में स्वीकार किया... ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा के पास तो और भी लड़कियां है लेकिन उन सब को छोड़कर आपने मुझे ही चुना... और मुझे इस बात का गर्व है कि आप जैसे सिद्ध पुरुष के वीर्य का स्खलन एक बार नहीं कई बार मेरी योनि के अंदर हो चुका है..." यह कहते-कहते मुझे बाजार जाते वक्त है उस अधेड़ उम्र की औरत की याद आ गई... और साथ ही में मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा कि कहीं मेरी असलियत का पता आरती को ना चल जाए; अगर ऐसा हुआ तो शायद वह बेचारी रो देगी| क्योंकि वह अभी भी यही सोचती है कि मैं गांव की दूसरी औरतों की तरह बाबा ठाकुर के घर मां बनने के लिए आई हूं|
"हा हा हा हा हा... तू बातें बहुत अच्छी कर लेती है... लेकिन एक बात सच सच बता आज तक तूने कितनों के साथ...?"
मैंने उनकी बात बीच में ही काट दी और मेरे स्वर में एक दृढ़ता से आ गई क्योंकि मैं सच बोल रही थी, "आप तीसरे ऐसे पुरुष हैं... जिसने मेरे तन और मन का पूरी तरह से आत्म स्वाद किया... बचपन से ही रिश्तेदारों और पड़ोसियों का यह कहना था कि उम्र के हिसाब से मेरा विकास कुछ ज्यादा ही हो गया है... स्कूल में यूं तो क्लास 8 से लड़कियों को साड़ी पहनने की सलाह दी जाती है लेकिन मेरी टीचर दीदी ने मेरे घर वालों को बुलाकर क्लास सिक्स ही मुझे साड़ी पहनने की हिदायत दी... इसने मेरी शादी तो जल्दी हो गई... और मेरा पति भी अच्छा खासा पढ़ा लिखा इंसान मिला... वह मर्चेंट नेवी में काम करता है; इसलिए आप समझ सकते हैं जिस की तनख्वाह भी मोटी तगड़ी है| मेरे पास पैसों की कोई कमी नहीं है.... लेकिन मेरा पति ज्यादातर अपने जहाज पर ही अपना समय बिताता है... हमारा घर शहर के एक रिहायशी इलाके में है... एक 4bhk... घर की कीमत ही करीब आज के दिनों में एक करोड़ के आसपास है... आप नहीं जानते हमारे पास क्या-क्या है... एक नहीं दो बड़े बड़े स्मार्ट टीवी... माइक्रोवेव... 6 फुट लंबा ट्रिपल डोर फ्रिज... चार- चार स्प्लिट एसी... इटालियन सोफा सेट... हमें क्या क्या बताऊं आपको? बस, मेरा पति ही मेरे साथ नहीं रहता साल में यह एक या दो महीने के लिए ही मेरे पास आता है... घर में तो तरह-तरह की चीजें सजावट के लिए रखी हुई है... अफ्रीका की खाड़ी से लाई हुई समुंदर का शंख या फिर ग्रीस की किसी प्राचीन देवी देवता की मूर्ति... मेरे पति जय ने तो अपने फ्लैट को बहुत सजा सजा के रखा है... लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि उसके लिए मैं सिर्फ एक सजावट की वस्तु हूं... मर्चेंट नेवी में काम करने वाला आदमी जिसकी एक खूबसूरत बीवी है जिसे उसने अपने फ्लैट में बंद करके रखा है... वह आता है मेरे साथ सोता है... बस अंदर डालता है दो-चार बार हिलाना और उसके बाद निकाल कर सो जाना... इसके बाद मेरी मुलाकात ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा से हुई... उन्हें मेरी हालत पर तरस आ गया... और यह कुदरत का करिश्मा ही समझ लीजिए कि मेरी शक्ल उनसे इतनी ज्यादा मिलती-जुलती है कि कोई भी अनजान व्यक्ति अगर हम दोनों को एक साथ देख लेगा तो वह यही सोचेगा कि हम लोग मां बेटी है| मेरा तालमेल उनके साथ सही बैठ गया... एक औरत होने के नाते मैं तो यही कहूंगी कि उन्हें यह मालूम है एक नारी की गूद (योनि) का महत्व क्या है... इसलिए उन्होंने मेरी मुलाकात मेरे बॉयफ्रेंड टॉम से करवाई... और अब मैं आपके साथ हूं.. अगर मैं आपके सवाल का सीधा सपाट जवाब दे सकूं तो मैं यही कहूंगी... कि आज की तारीख में आप तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जिसने मेरी यौवन सुधा का पान किया है"
यह कहकर मैंने अपना तीसरा पेग खत्म किया और बाबा ठाकुर ने भी मेरी बातों को बड़े ध्यान से सुनने के बाद गांजे की चिलम से एक लंबा सा कष्ट लेने के बाद उसका धुआं मेरे ऊपर छोड़ा|, "मैं जानता हूं, तू सिर्फ पैसों के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर नहीं कर रही है... मुझे ऐसा लगता है कि तुझे किसी चीज की तलाश है... और मेरी विद्या जो बोलती है... तेरी यह तलाश जारी है और तू तीन - तीन पुरुषों के साथ वक्त बिता कर तूने तजुर्बा तो हासिल कर दिया लेकिन तेरा दिल भरा नहीं है... और हां यह सब तू अपनी मर्जी से कर रही है और इसके मजे भी ले रही है"
मैंने अपने लिए चौथा पेग डाला और बाबा ठाकुर के लिए भी एक पेग बनाया... इसके बाद मैंने अपने दोनों हाथों को फैलाकर उनके सामने रख दिया और फिर बोली, "देखिए ना; मेरे भाग्य में क्या-क्या लिखा हुआ है?"
"जय गुरुदेव! ठीक है, देखता हूं तेरा भविष्य कैसा है?"
यह कहकर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ में गांजे की चिलम से एक लंबा सा कर लिया और उसका दुआ मेरे चेहरे पर छोड़ा और इससे पहले कि वह मेरे हाथों को अपने हाथ में ले पाते मैंने जानबूझकर अपना आंचल हटा दिया और अपना ब्लाउज खोल कर उनके आगे बिल्कुल नंगे सीने में बैठ गई|
बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ आंखों ने आंखों में मुझसे पूछा यह क्या कर रही है? मैंने हंसकर खुलकर बोल कर जवाब दिया, "आप तो सिर्फ मेरा हाथ देख रहे हैं... हो सकता है कि आपको कुछ और भी दिख जाए..."
बाबा ठाकुर ने हल्के से मेरे गाल पर प्यार से एक थप्पड़ मारा और बोले, "बदमाश लड़की"
मैंने अपना चौथा पेग खत्म किया और अपने हाथों को उनकी हथेलियों पर थमा दिया|
बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मेरी हथेलियों की रेखाओं को एक नजर देखते ही बोल पड़े, "मैं जानता था- मेरे भाग्य में भोग और विलासिता भरपूर है... तेरी जिंदगी में कई मर्द आएंगे... कुछ लोगों को तुझसे प्यार भी हो जाएगा... इसके अलावा जिस बात की मुझे चिंता है वह यह है कि तेरे भाग्य में बहुत बड़ा कालसर्प दोष भी है... जिसकी वजह से तू किसी भी आदमी के साथ अपना भरपूर जीवन नहीं बिता पाएगी... और इसके साथ ही मेरे जीवन में बहुत बड़ा विरह योग भी है... इसलिए तू जिसको भी अपनाना चाहेगी, उसे अपना नहीं पाएगी... तेरे पति के साथ तेरा घर संसार करना तेरी किस्मत में बिल्कुल भी नहीं है... यहां तक की तेरे बॉयफ्रेंड है टॉम के साथ भी दूरियों के योग बने हुए हैं... लेकिन साथ ही यह भी देख रहा हूं कि तू मेरे साथ बिताए हुए लमहे को यादगार बनाने की कोशिश कर रही है... लेकिन..."
"जी हां मैं बिल्कुल सही फरमाया... आपको भी काम के सिलसिले में हर रोज सुबह शहर जाना पड़ता है... जो वक्त आपको मेरे साथ बिताना था उस वक्त आपको काम करना पड़ता है... मेरे भाग्य की यही विडंबना है"
मुझे ऐसा लगा कि मैंने बाबा ठाकुर की मुंह की बात छीन ली है|
वह बिना कुछ कहे मेरी तरफ एक निरंक दृष्टि से बिना पलक झपकाए मेरी तरफ देख रहे थे और प्रसंग बदलने के लिए मैंने अपनी साड़ी का आंचल ठीक किया और फिर मैं बोली, "मैं नीचे रसोई में जाकर आरती से कह देती हूं कि वह आज रात का खाना थोड़ा जल्दी लगा दे... क्योंकि मैं आपके साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताना चाहती हूं"
यह बात कहते वक्त मेरे पेट के निचले हिस्से में एक अनजानी सी मस्ती भरी मीठी सी गुदगुदी सी हो रही थी| अगर बाबा ठाकुर पंडित की एकनाथ की जगह मेरा कोई और क्लाइंट इस वक्त मेरे सामने बैठा होता तो शायद मैं यह बात कहने के बाद उनको एक आंख मारती; लेकिन बाबा ठाकुर ठहरे एक सिद्ध पुरुष शायद वह जैसी एक लड़की का उन्हें आंख मारना पसंद नहीं आएगा|
बाबा ठाकुर ने अपने गांजे के चिलम का एक लंबा सा कश लिया और फिर थोड़ा सा धुआं अपनी नाक से निकालते हुए बाकी का धुआं मेरे चेहरे पर छोड़कर उन्होंने मुझसे कहा, "ठीक है, जैसी तेरी मर्जी पीयाली..."
उनकी टेढ़ी मुस्कान में कामुकता और वासना भरी हुई थी| मैं चुपचाप सर झुकाए कमरे से बाहर निकलकर रसोई में चली गई|
मेरे हर कदम पर मेरे पहने हुए गहने खनखन कर रहे थे... मैं जानती हूं ऐसी स्त्रियोचित अभिव्यक्तियाँ किसी भी पुरुष की लालसा को सुरसुराने के लिए काफी है|
***
रात के खाने के बाद और तीन पेग जिन पीने के बाद मुझे हल्का हल्का नशा हो रहा था| बाबा ठाकुर पंडित एक नाचने जी शायद अपना तीसरा चिलम खत्म कर लिया था| अब तक मैं उनके साथ जमीन पर ही बैठी हुई थी- साड़ी में लिपटी, गहनों से लदी और अपनी टांगों को मैं जितना फैला सकती थी फैलाकर उकड़ु होकर उनके सामने बैठी मैं शराब पी रही थी|
बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ चिलम को फर्श के एक कोने में सरकार कर उठ कर जाकर बिस्तर पर बैठ गए और वहां बैठे-बैठे वह मुझे कच्ची शराब का तीसरा पर खत्म करते हुए देख रहे थे|
न जाने क्यों आज बाबा ठाकुर का शरीर मुझे बहुत ही आकर्षक लग रहा था- क्या यह शराब कि नशे की वजह से था या फिर यह गांजे के धुएं का असर था? या फिर पेट की भूख मिटाने के बाद अब अपनी कामवासना की प्यास बुझाने इच्छा? यह मैं ठीक नहीं कर पा रही थी|
मैंने उनको अपनी आधी खुली नशीली आंखों से निहार रही थी| उनका चेहरा दाढ़ी से भरा हुआ था, लेकिन उनकी दाढ़ी छठी हुई थी| उनकी उम्र पचपनसाल के परे थी लेकिन फिर भी उनका गठीला शरीर और मर्दानगी किसी भी नव युवती को मदहोश करने के लिए पर्याप्त से अधिक थी|
उनकी छाती चौड़ी और सख्त थी- यह सब शायद उनकी जवानी में नियमित रूप से व्यायाम करने का नतीजा था उन्होंने सिर्फ लूंगी पहन रखी थी और मेरे देखते ही देखते उनका लिंग धीरे-धीरे कुतुब मीनार की तरह खड़ा हो रहा था... और हां जब भी वह यौन संबंध बनाते हैं तो उनके वीर्य स्खलन की मात्रा काफी ज्यादा होती है- यह मेरी एक व्यक्तिगत अनुभूति है| किसी भी औरत को संभोग करते वक्त क्या चाहिए होता है? एक स्वस्थ आदमी का ठोस शरीर जिसके वजन से उसका कोमल शरीर दबा रहे... लंबे समय तक उसकी मैथुन करने की क्षमता और फिर योनि के अंदर अपने चिपचिपे और गाढ़े वीर्य का सैलाब ढा देना
यही सब सोचते सोचते अनजाने में ही मेरे चेहरे पर एक मुस्कान खिल गई और मेरे अंदर दबी हुई बात है अब मेरी जुबान से निकल ही गई, "बाबा ठाकुर, क्या मैं आपके लिए नंगी हो जाऊं?"
बाबा ठाकुर ने मुस्कुराते हुए कहा, "तू एक काम कर तू बस अपनी साड़ी उतार दे; लेकिन कहने मत उतारना... वैसे तेरे बाल तो खुले ही हुए हैं; बस मैं तुझे नंगे बदन और खुले बालों में गहनों में सजा हुआ एक बार देखना चाहता हूं"
मैंने जमीन पर बैठे-बैठे ही अपने पैग नंबर साढ़े तीन को खत्म किया| और उसके बाद खड़ी होकर और जानबूझकर उनकी तरफ पीठ करके मैं धीरे-धीरे अपनी साड़ी खोलने लगी| साड़ी उतारकर बिल्कुल नंगी हो जाने के बाद ठीक पहले की तरह वह अपने बाएं हाथ से आप लोगों को और बाएं हाथ से अपने दो टांगों के बीच के हिस्से को ढक कर अपनी शर्मो हया बचाने का एक निरर्थक प्रयास करती हुई धीरे-धीरे मैं उनकी तरफ हो गई|
और मैं यह अच्छी तरह जानती थी कि मेरी ऐसी लड़की पन भरी हरकतें बाबा ठाकुर को बहुत अच्छी लग रही थी; क्योंकि उन्हें एक निष्पाप, आज्ञाकारी और कामुकता से भरी हुई गृहणी के साथ विलासिता करने की चाहत थी|
फिर मैं अपना सर झुकाए एक-एक कदम करके उनकी तरफ बढ़ने लगी| उनके पास पहुंचते ही उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी तरफ खींचा और पलक में बिठा दिया और उसके बाद मेरे सर के पीछे से बालों को पकड़कर मेरा चेहरा अपने चेहरे के पास ले आए और मुझे जी भर के चुने चाटने लगे| मैं उनके हर तूने चाटने का आग्रह के साथ चंबल पैटर्न के साथ ही जवाब देने लगी, उन्होंने मुझे अपनी खास से जकड़ रखा था और दूसरे हाथ से मेरे स्तनों को बड़े ही चाव से मस्त दबाए जा रहे थे|
फिर उन्होंने मेरे कानों से एक बाली उतार दी और मेरे कान की लोगों को अपने दांतो से हल्का हल्का काटने लगे और चूसने लगे... फिर उन्होंने मेरे दूसरे कान के साथ भी ऐसा ही किया|
खिड़कियां खुली हुई थी पर पर्दे तने हुए थे और हवाओं के झोंके उन्हें बार-बार उड़ा रहे थे| ऐसा लग रहा था शायद यह हसीन रात भी हम दोनों की कामलीला की झलकियां देखना चाहती है| गांव के माहौल और सुहावने मौसम में ठंडी हवाओं के झोंके मेरे बदन में जैसे लालसा की आग को और भड़का रहे थे... मैं आंखें मूंदकर बाबा ठाकुर की हर हरकत का मजा ले रही थी इतने में मैंने हल्के से अपनी आंखों को खोल कर अंदर वाली खिड़की की तरफ देखा- मुझे पक्का यकीन था कि खिड़की के पीछे दुबक कर बैठी आरती भी हमारी हरकतों खुद दिख रही है और उसके बदन में भी आग लग रही है...
बाबा ठाकुर का ध्यान और कहीं नहीं था वह सिर्फ मेरे बदन में ही पूरी तरह से मगन थे| अब मुझे ध्यान आया हवा में उड़ते हुए मेरे खुले बाल कभी-कभार बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की जीभ और मेरी त्वचा के बीच में आ रहे थे| इसलिए मैंने अपने बालों को समेटकर पीछे अपने दोनों हाथों से एक पोनीटेल की तरह पकड़ा ताकि बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मेरे पूरे नंगे बदन को अच्छी तरह प्यार से सहला सके, चुम सकें और अपनी जीव से चाट सकें... और इसकी वजह से मेरे दोनों हाथ थोड़ी ऊपर उठे हुए थे और बाबा ठाकुर की नजर मेरे बगलों पर गई... और मैंने देखा कि उनकी आंखों की पुतलियों में एक अजीब सी चमक सी आ गई... मेरे शरीर का यह हिस्सा अभी तक उनसे अन छुआ रह गया था|
उन्होंने मुझसे कहा, "पीयाली दूसरों से कामधेनु क्यों होती है... तेरे सर के बाल और भौहों के अलावा तेरे शरीर पर कोई भी बाल नहीं है यहां तक की तेरे बगलों में भी नहीं... और तेरे नंगे बदन से एक अजीब सी मादक स्त्रैण चमक और एक कुदरती खुशबू आती रहती है"
उनकी यह टिप्पणी सुनकर मुझे ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की याद आ गई- उन्होंने मुझे नियमित रूप से 'फुल बॉडी वैक्सिंग' करने की सलाह दी थी- और उनकी सलाह को मैंने माना था|
और मेरा अंदाजा सही था, बाबा ठाकुर के मन में यही चल रहा था कि उन्होंने मेरे शरीर के हर हिस्से में अपनी छाप छोड़ी है सिवाय मेरे बगलों के... इसलिए उन्होंने यह मौका नहीं छोड़ा और मेरे बगलों को वह हल्का हल्का काटने- चूमने और चाटने लगे|
मेरे पूरे बदन में एक अजीब सी सनसनी दौड़ गई है और मैं हल्का हल्का कांपने लगी और मदहोशी से सिसकियां भरी सांसे लेने लगी|
पता नहीं क्यों इतने में बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने मुझसे कहा, "पीयाली, जा उठकर जा और कमरे के नीले रंग के नाइट बल्ब को जला दें और बाकी सारी बत्तियां बंद कर दे"
बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने अब तक मेरे अंदर जिस तरह वासना की इच्छा का संचार किया था मैं उसी में डूबी हुई थी- लेकिन मैंने सोचा कमरे में अगर नीली- नीली रोशनी हो तो माहौल और कामुक जाएगा... इसलिए मैं किसी तरह से उठी- हालांकि मुझे बाबा ठाकुर की आगोश से निकलने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था- और कुछ कदम डगमगाती हुई चलकर स्विच बोर्ड के पास जाकर पहले कमरे की नीली वाली नाइट बल्ब जलाई और उसके बाद बाकी सब बत्तियां मैंने बंद कर दी|
मेरे पीठ पीछे बाबा ठाकुर ने भी खड़े होकर अपनी लुंगी उतारउतारकर बिल्कुल नंगे हो गए थे और इससे पहले कि मैं पीछे मुड़ पाती, उन्होंने आकर मुझे पीछे से पकड़ लिया और अपने दोनों हाथों से मेरे स्तनों को दबाते हुए बोले, "पीयाली, आज पता नहीं क्यों चलते वक्त तेरे कूल्हे बड़े ही मादक तरीके से मटक रहे थे..."
और मैं उनके बड़े लिंग का दबाव अपने कूल्हों पर साफ महसूस कर रही थी| यह कहकर उन्होंने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और सीधे बिस्तर पर ले जाकर मुझे उल्टा लिटा दिया|
क्रमशः