• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery बाबा ठाकुर (ब्लू मून क्लब- भाग 2)

कहानी का कथानक (प्लॉट)

  • अच्छा

    Votes: 2 12.5%
  • बहुत बढ़िया

    Votes: 13 81.3%
  • Could ठीक-ठाकbe better

    Votes: 2 12.5%

  • Total voters
    16

naag.champa

Active Member
661
1,792
139
बाबा ठाकुर
BBT-Hindi2-Cover-Ok22.jpg


(ब्लू मून क्लब- भाग 2)
~ चंपा नाग ~
अनुक्रमणिका

अध्याय १ // अध्याय १ // अध्याय ३ // अध्याय ४ // अध्याय ५
अध्याय ६ // अध्याय ७ // अध्याय ८ // अध्याय ९ // अध्याय १०
अध्याय ११ // अध्याय १२ // अध्याय १३ // अध्याय १४ // अध्याय १५
अध्याय १६ // अध्याय १७ // अध्याय १८ // अध्याय १९ // अध्याय २०
अध्याय २१ // अध्याय २२ // अध्याय २३ // अध्याय २४ // अध्याय २५
अध्याय २६ // अध्याय २७ // अध्याय २८ // अध्याय २९ // अध्याय ३०
अध्याय ३१ // अध्याय ३२ (समाप्ति)


प्रिय पाठक मित्रों,

बड़ी उत्साह के साथ और बड़ी खुशी के साथ मैं आपके लिए एक नई कहानी प्रस्तुत करने करने जा रही हूं| इस कहानी को मैंने बहुत ही धैर्य से और बड़े ही विस्तार से लिखा है| आशा है कि यह कहानी आप लोगों को मेरी लिखी हुई बाकी कहानियों की तरह ही पसंद आएगी क्योंकि इस कहानी को लिखने का मेरा सिर्फ एकमात्र ही उद्देश्य है वह है कि अपने पाठक बंधुओं का मनोरंजन करना|

मुझे आप लोगों के सुझाव, टिप्पणियां, कॉमेंट्स और लाइक्स का बेसब्री से इंतजार रहेगा|
PS और अगर अभी तक आप लोगों ने इस कहानी का पहला भाग नहीं पड़ा हो तो जरूर पढ़िएगा| पहले भाग का लिंक नीचे दिया हुआ है
ब्लू मून क्लब (BMC)

~ चंपा नाग ~



यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है और इसका जीवित और मृत किसी भी शख्स से कोई वास्ता नहीं। इस कहानी में सभी स्थान और पात्र पूरी तरह से काल्पनिक है, अगर किसी की कहानी इससे मिलती है, तो वो बस एक संयोग मात्र है| इस कहानी को लिखने का उद्देश्य सिर्फ पाठकों का मनोरंजन मात्र है|
 
Last edited:

manu@84

Well-Known Member
8,549
11,974
174
क्या खता हमसे हुयी, क्या डाक खाना बंद है,
क्या नेट में हड़ताल है, क्यों पोस्ट आना बंद है ✍️
 
  • Like
Reactions: Tiger 786

naag.champa

Active Member
661
1,792
139
प्रिय " चंपा नाग " आपकी कहानी के अध्याय 24,25, 26 संभोग कला और कामुकता से परिपूर्ण रहे, पियाली को इस तरह बाबा के लंड पर बैठकर अपने नेवि में कार्यरत पति का जिकर बार बार करना मुझे पसंद नहीं आ रहा है।

""एक शादीशुदा स्त्री चाहे जितने गैर मर्दो के साथ रंग रेलिया मनाये लेकिन अपने पति को इस तरह गैरों के बिस्तर पर रुसवा नही करना चाहिए। अपनी जिस्म की भूख की पूर्ति करने का पत्नी को पूर्ण अधिकार है, और आज के दौर में पति भी कोई रोक टोक नही करते। पर उनकी खुली छूट को गैरों के लंड की सवारी करते हुए अपने पति की मर्दांगी को यू बदनाम करना कतयी बर्दाश्त नही किया जायेगा।""

पियाली बाल्य अवस्था से ही सेक्स की भूखी रही जिसके कारण उसके चूचे उम्र से बड़े हो गये। पियाली की कम उम्र में फटती जवानी और उठती गांड को देखकर ही उसके पिता ने कम उम्र में ब्याह कर दिया था। पति ने अपनी पत्नी को खुशी देने के लिए हर सुख साधन दिया बस वक़्त नही दे पाया, ये वक्त की आड़ में ही पियाली ने छिनार रूप धर लिया। टॉम के साथ भी वो सेक्स सुख से संतुष्ट नही हुयी। नये नये मर्दो के साथ संभोग करने की चाह को भाग्य पर थोप कर खुद को सही साबित ना करे। पियाली बाबा के साथ इस तरह पेश आ रही है जैसे वो धरती का सबसे बड़ा लंड धारी इंसान है। ह्म्म्म ह्म्म्म

खैर आपके लिए दो सलाह है एक ये 👇

(बाबा ठाकुर अभी तक मंत्रमुग्ध दृष्टि से मेरी तरफ देख रहे थे, "फूल? हां वह जवाकुसुम का फूल... लेकिन एक बात बता पीयाली, तू हर रोज इस तरह से अपने बालों पर मेरे पैर क्यों रखवाती है?""यह तो एक परंपरा है बाबा ठाकुर, सदियों से सनातन धर्म में यही तो चला रहा है, मुझ जैसी नारियों के लिए एक सिद्ध पुरुष का आशीर्वाद लेने का भला और क्या तरीका हो सकता है?")

इस तरह अपनी काम गाथा में धार्मिक शब्दों का प्रयोग ना करे किसी ने रिपोर्ट कर दी तो कहानी बेन हो जायेगी। और दूसरी सलाह है कि ये "बाबा पुराण" अब बंद कीजिये... कुछ नया लिखिये.✍️ बांकी आपको जैसा ठीक लगे....

धन्यवाद....
आदरणीय मित्र manu@84 जी,

मेरी कहानी ज्यादातर फीमेल (स्त्री कामुकता) सेक्सुअलिटी पर आधारित है|

अगर इंसान को घर में खाना ना मिले तो वह बाहर होटल से खाना बनाता है|

खैर जो भी हो, मैं आपकी आभारी हूं की आपको मेरी कहानी पसंद आ रही है और आप इस कहानी के साथ बने हुए हैं| मैं आपकी प्रतिपुष्टि की सराहना करती हूं|

आप जैसे पाठक मेरे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है|
 

naag.champa

Active Member
661
1,792
139

अध्याय २७



कहा तो मैंने सोचा था कि आज भी कामलीला में मैं अपना पूरा नियंत्रण रखूंगी; लेकिन बाबा ठाकुर पंडित की एकनाथ आखिर एक पुरुष हैं और उन्हें अपनी प्रधानता को सिद्ध करना था|

खैर, रात अभी बाकी है और पौ फटने में काफी देर है इसलिए मैं अपने घुटनों को मोड़कर अपना सिर बिस्तर से टिका दिया ताकि मेरे नितंब पर उठे रहे... मैं बिल्कुल बिस्तर के किनारे पर इस तरह से जीती हुई थी इसलिए बाबा ठाकुर पहले मेरे स्तर की तरफ आए और उन्होंने अपने लिंग की चमड़ी को पीछे की तरफ खींचा जिसकी वजह से उनके लिंग का गुलाबी गुलाबी सुपाड़ा बिल्कुल उन्मुक्त हो गया... मैं उनका इशारा समझ गई और जैसे ही उन्होंने अपना लिंग मेरे मुंह की तरफ बढ़ाया तो सबसे पहले मैंने अपनी जीभ से उनके अंडकोष को चाटा और फिर मैंने अपना मुंह खोल कर उनके लिंग का सीधा अपने मुंह के अंदर लेकर अपनी जीभ उसके ऊपर घुमा घुमा कर उनका लिंग चूसने लगी|

एक या दो मिनट तक बाबा ठाकुर ने इस एहसास के पूरे मजे लिए और उसके बाद उन्होंने अपना लेंगे मेरे मुंह से निकाल लिया... मुझे अच्छा खासा नशा चढ़ चुका था और मैं यह जानती थी कि किसी भी आदमी का अहंकार उसका पुरुषत्व है- और उनका यहअहंकार फिलहाल मेरी मुट्ठी में था; मैंने अपनी नशीली नजरों से उनकी तरफ देख कर कहा आज आपको मेरे हाथ पैरया मुंह बांधने की कोई जरूरत नहीं है... मैं गुदा-मैथुन पूरी तरह से तैयार हूं... लेकिन आप वादा कीजिए कि आप इसके बाद. मुझे अपनी मनमानी करने देंगे.. क्योंकि मैं चाहती हूं मैं भी आपको खुश कर दूं"

बाबा ठाकुर ने मानो अपनी स्वीकृति जाहिर करने के लिए अपना लिंग दोबारा मेरे मुंह में डाल दिया... और मैंने भी उसे तब तक चूसा जब तक कि उन्होंने दोबारा अपना लिंग मेरे मुंह से निकाल नहीं लिया|

आरती को पता था कि बाबा ठाकुर को गुदामैथुन करना बहुत पसंद है इसलिए उसने पहले से ही ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा की दी हुई क्रीम टेबल पर निकाल कर रख दी थी| उन्होंने ज्यादा वक्त जायर नहीं कियाऔर वह अपनी उंगली से वह क्रीम मेरे मलद्वार पर लगाने लगे और फिर उन्होंने अपनी उंगली पर एक कंडोम चढ़ा ली और उससे भी क्रीम लगाकर उन्होंने उस उंगली पर क्रीम लगाकर मेरे मलद्वार के अंदर डालकर लगाया|

उंगली का कंडोम उतार कर फेंक देने के बाद उन्होंने अपने लिंग पर एक कंडोम चढ़ाया... आज मैं तन से और मन से गुदामैथुन के लिए तैयार थी इसलिए जब उन्होंने अपना लिंग धीरे-धीरे मेरे मलद्वार के अंदर घुस आया... मैंने अपना मुंह तकिए में दबा कर रखा लेकिन फिर भी दर्द की वजह से मेरे मुंह से दबी सी आवाज निकल ही आई-"म्मम्मम्म"

बाबा ठाकुर से जितना हो सके उन्होंने अपना लिंग उतना मेरे मलद्वार अंदर घुस आया और फिर क्षणों के लिए बिल्कुल चुपचाप बने रहे... और फिर उसके बाद उन्होंने शुरू किया अपना मिथुन का खेल... उनके धक्कों से मेरा पूरा शरीर ही ले लगा और अनजाने में ही मैं सिसकियां लेती हुई, "उह...आह...नहीं...नहीं...उई...माँ ... उई...माँ ..." करती रही|

और मैं जानती थी कि मेरा इस तरह से करहाना बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ को और भी रोमांचित कर रहा था...

***

बाबा ठाकुर को अच्छी तरह से पता था कि गुदामैथुन से औरतों को काफी तकलीफ होती है| इसलिए गुदामैथुन का खेल समाप्त होने के बाद उन्होंने मुझे सताने का थोड़ा सा वक्त दिया| और फिर एक-एक करके उन्होंने मेरे बाकी गहने - जैसे कि माथे की टिकली, नाक का नथ, हाथों की चूड़ियां मेरे शरीर से उतार दिए... लेकिन जब उन्होंने मेरे गले का हार उतारने के लिए मेरी गर्दन के पीछे से मेरे बाल हटाए तो हम दोनों की समझ में आ गया बिहार और बाल आपस में उलझ गए हैं|

"ही ही ही ही ही ही ही", और मैं इस बार आरती की तरह हंस पड़ी|

इसी तरह से मैं उठकर जगमगाती हुई आईने के सामने गई और गले का हार उतारकर मैंने आईने में अपने आपको देखा... इतने में ही मेरे बाल बुरी तरह से बिगड़ गए थे... आईने के सामने रखे हुए टेबल पर बड़े दांत वाली काकी रखी हुई थी... मैं उससे अपने बालों में कंघी करने लगी... बाबा ठाकुर बिस्तर पर बैठे-बैठे मुझे देख रहे थे... और मैंने आईने में देखा कि उनका लिंग फिर से खड़ा हो गया है| शायद उन्होंने इससे पहले अपनी इस कमरे में किसी नंगी लड़की को इस तरह से बालों में कंघी करते हुए नहीं देखा था... यह भी उनके लिए एक मदहोश कर देने वाला दृश्य था इसलिए वह शायद मंत्रमुग्ध होकर मुझे देख रहे थे|

कूल्हेमैं जानती थी कि मेरी जुबान लड़खड़ा रही है लेकिन फिर भी मैंने उनसे पूछा, "बाबा ठाकुर, मैंने तो अपना सब कुछ आपको समर्पित कर दिया है लेकिन मैं आपसे सुनना चाहती हूं मेरे अंदर ऐसा क्या क्या है, जो आपको अच्छा लगता है?"

बाबा ठाकुर ने अपना गला साफ किया और फिर बोले, " मुझे तेरा सब कुछ अच्छा लगता है पीयाली..."

मुझे लग रहा था वह तो कहना बहुत कुछ चाहते थे लेकिन शायद उनको शब्द नहीं मिल रहे थे, लेकिन फिर भी उन्होंने मुझसे कहा, " तू दिखने में किसी कामना की देवी से कम नहीं है, भले ही तो शहर की लड़की है लेकिन तेरे बाल लंबे घने और मखमली है... तेरा रंग एकदम गोरा चिट्टा है ऐसा लगता है तू संगमरमर की एक मूर्ति है... तेरे स्तन बड़े-बड़े सुडौल और तने- तने से हैं... सचमुच तो बहुत ही सुंदर दिखती है तेरे मांसल कूल्हे और पतली कमर किसी भी मर्द कीनिगाहों को वह खाने के लिए काफी है... और सबसे बड़ी बात... तू दूसरी औरतों की तरह मजबूरी में मेरे साथ संभोग नहीं कर रही है... हालांकि मैं तुझे यहां खुद लेकर आया हूं लेकिन फिर भी तू मेरे साथ पूरी इच्छा से और खुशी से संभोग करती है... अच्छा मैंने तो अपने मन की बात बता दी है अब तू यह बता मुझ जैसे अधेड़ उम्र के आदमी के साथ तुझे कैसा लगता है?"

मैं उनकी सवाल के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी लेकिन मैंने जो कहा वह बिल्कुल सच था, "जी बाबा ठाकुर आपका शरीर बहुत ही गठीला है... आपकी छाती पर घने बाल हैं... आपका लिंग बिल्कुल लंबा- सीधा- और मोटा भी है... आज भी आपके अंदर वह ऊर्जा है जो शायद जवान लड़कों के अंदर कम ही मिलती है... आप किसी की उम्र की लड़की या फिर औरत को खुश करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है और दूसरी बात एक औरत होने के नाते जो मैं महसूस कर सकती हूं वह यह कि जब आप सहवास के बाद वीर्य स्खलन करते हैं... तो आपके गरम-गरम वीर्य की मात्रा भी काफी ज्यादा होती है... अब मैं आपको कैसे समझाऊं? एक स्त्री होने के नाते यह बहुत ही संतुष्टि की बात है... जो कि सिर्फ नारियां ही अनुभव कर सकती हैं"

यह कहते-कहते मैं उनके बिल्कुल पास आकर बैठ गई थी उन्होंने मुझे अपनी आगोश में लेकर मेरे स्तनों पर हाथ फिरते हुए बोले, "पीयाली तेरे स्तनों की चूचियां तो बिल्कुल खड़ी हो गई है"

"जी हां बाबा ठाकुर", मैंने उनकी आंखों में आंखें डाल कर कहा, "दरअसल में भी बहुत गर्म हो चुकी हूं... यह कहकर मैं बिस्तर के किनारे उनके दो टांगों के बीच के हिस्से में जमीन पर बैठ गई और उनका लिंग अपनी मुट्ठी में लेकर अपने स्तनों पर फेरने लगी है... बाबा ठाकुर कलिंग भी बिल्कुल लोहे की तरह सख्त हो चुका था...

मैं कुछ देर तक उनका लिंग अपनी मुट्ठी में लेकर धीरे-धीरे ऊपर नीचे हिलाते रहिए और उसके बाद मैंने उनके लिंग को अपने दो स्तनों के बीच की दरार में धर लिया| और इस बार मैंने अच्छी तरह महसूस किया कि मेरे ऐसा करने पर बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ के बदन पर एक सिहरन सी दौड़ गई| मैंने उनको मुझे लेने का पूरा मौका दिया मैंने वैसे ही उनके लिंग को सहलाती रही और मैंने गौर किया कि बाबा ठाकुर भी इस चीज का लुफ्त उठा रहे थे|

उसके बाद धीरे-धीरे उनके लिंग से हल्का हल्का चिपचिपा सा तरल पदार्थ निकलने लगा और जो मेरे स्तनों पर लगने लगा था... मैं समझ गई कि वक्त हो चुका है|

मेरे बाबा ठाकुर से कहा कि वह बिस्तर पर लेट जाएं| उन्होंने वैसा ही किया और फिर मेरी योनि पर अपना हाथ फिर कर वह बोले, "पीयाली, तेरा गूद (यौनांग) भी तो गिला हो गया है... क्या तुम मुझे अपने साथ संभोग नहीं करने देगी?"

पहले की तरह हो यह चाहते थे कि मैं बिस्तर पर चित्त होकर लेट जाओ और वह मेरे ऊपर चढ़कर मेरी योनि में अपना लिंग डालकर मैथुन करें|

"बाबा ठाकुर, रतिक्रिया के लिए बिल्कुल तैयार हूं और हां, मैं जरूर अपनी गूद (यौनांग) में डालने दूंगी... और जैसा कि मैंने कहा मैं चाहती हूं कि आप पहले की तरह मेरी योनि में अपना वीर्य स्खलन करें... मुझे यह एहसास बहुत अच्छा लगता है और वैसे भी जब तक किसी पुरुष का वीर्य किसी नारी की योनि में स्खलित ना हो तब तक तो संभोग अधूरा ही रह जाता है ना"

बाबा ठाकुर मुझे एक उत्साह पूर्ण मुस्कान और प्रत्याशी भरी है दृष्टि से निहारे जा रहे थे...

क्रमशः
 

naag.champa

Active Member
661
1,792
139

अध्याय २८



मुझे अच्छी तरह मालूम था कि कमरे की जो खिड़की अंदर की तरफ खुलती है उसके बाहर छुप छुप कर आरती सब कुछ देख भी रही है और सुन भी रही है| मैंने तिरछी नजरों से खिड़की की तरफ देखा...लेकिन वह मुझे नहीं दिखी... इधर फिर मैंने बाबा ठाकुर की तरफ अपनी नजर डाली... मैं उनके दो टांगों के बीच में बैठी हुई झुक कर उनका लिंग चूस रही थी और बीच-बीच में उनके अंडकोष को चाट भी रही थी... आखिरकार मुझे अपने स्त्री धर्म का पालन करना था... फिर मैंने सोचा कि इसके बाद अगर मैं उन्हें अपनी जीभ चूसने के लिए दूं तो क्या सोचेंगे?

लेकिन इसका जवाब मुझे जल्दी ही मिल गया... बाबा ठाकुर के लिंग में एक तरह की कंपन शुरू हो गई थी उन्होंने मेरे बालों को पकड़कर मेरा चेहरा अपने चेहरे के पास ले आए और अपने होठों को मेरे होठों से चिपका कर झूमने लगे... मेरे खुले बालों के झरने उनके चेहरे पर एक पर्दे की तरह फैल गए और न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि किसी औरत के साथ उनका यह पहला अनुभव है क्योंकि इससे पहले किसी भी औरत ने उनको ऐसा सुख नहीं दिया था|

हम एक दूसरे के होंठों को हल्का हल्का काटने-चूमने और चाटने लगे... और जैसे ही मुझे उनका मुंह थोड़ा सा भी खुला मिला मैंने अपनी जीभ उनके मुंह के अंदर डाल दिया और बाबा ठाकुर पंडित की एकनाथ बड़े चाव से मेरी जीभ को चूसने में मगन हो गए|

हर इंसान की जीभ का स्वाद अलग होता है... इसलिए शायद आरती भी मेरी जीभ चूसना पसंद करती है|

उसके बाद कमरे की मंदिर रौशनी में बाबा ठाकुर ने मेरी आंखों में एक अलग सी चमक देखी| मैं उनकी आलिंगन से मुक्त होकर पलंग पर घुटनों और हाथों के बल बैठ गई ताकि उनका पूरा शरीर मेरे हाथों पैरों के बीच में रहे| इसके बाद मैंने अपने बालों को अपने कंधे के ऊपर से सामने की तरफ लाकर रख दिया... मेरे लंबे बालों की छुअन से बाबा ठाकुर के बदन पर एक बार फिर से बिजली से दौड़ गई और मैं जानबूझकर उनके चेहरे पर और छाती पर अपने बालों से बनी जादू की तूलिका फेर-फेर कर उन्हें उकसानाती रही और फिर उनके हाथों को खुद ले कर के अपने स्तनों के ऊपर रख दिया... वह मेरा इशारा समझ गए और मेरे स्तनों को बहुत ही प्यार से दबाने लगे|

मैं भी चाहती थी कि मैं भी पूरी तरह से गर्म हो जाऊं... और साथ ही बाबा ठाकुर को भी कमकता के समुंदर के बिल्कुल बीचो-बीच ले जाओ... ताकि आज की रात हमारी और पुरुष कामना के इस समंदर का अच्छी तरह से मदद कर सके... मैं अपनी हर हरकतों से बाबा ठाकुर की असंग लिप्सा भड़का रही थी... और इसी बीच बाबा ठाकुर कर लेंगे बिल्कुल कुतुबमीनार बंद कर मेरे पेट के निचले हिस्से को बार-बार सोने की कोशिश कर रहा था... हां अब मुझे भी लग रहा था कि हम लोग कामना के सागर के बिल्कुल बीचो-बीच पहुंच गए हैं... हम लोगों की कामवासना बिल्कुल चरम सीमा तक पहुंच गई है...

मैंने एक हाथ से उनके लिंग को अपनी मुट्ठी में पकड़ा और दूसरे हाथ की उंगलियों से अपनी योनि के अधरों को हल्का सा खोला... हां मेरी योनि बिल्कुल गीली हो चुकी थी... फिर मैं घुटनों के बल सीधे बैठकर अपनी योनि के अधरों को उनके लिंग के सहारे के ठीक ऊपर रखा और फिर हल्का सा उसे अंदर घुसाया... बाबा ठाकुर से रहा नहीं जा रहा था शायद उन्होंने अपनी उत्तेजना के कारण अपनी कमर ऊपर की तरफ उठा दी... मैं मुस्कुराती हुई धीरे-धीरे उनके लिंग के ऊपर बैठती गई और उनका लोहे जैसा तना हुआ सख्त लिंग मेरी योनि के अंदर धीरे-धीरे घुसने लगा... मैं पूरी तरह से अपनी भावनाओं में बह गई थी लेकिन फिर भी मेरे मुंह मीठे दर्द से भरीसे एक हल्की सी आवाज आखिरकार निकल ही आई-- 'आ-आ-ह '

bms2-2.jpg

बाबा ठाकुर बड़े ही विस्मयके साथ मुझे आंखें फाड़ फाड़ कर देख रहे थे... भावावेग में बहकर उन्होंने कसकर मेरी कमर को पकड़ लिया... वह जानते थे अब मैं उनके ऊपर ऊपर नीचे ऊपर नीचे नाचने वाली हूं... और जल्दी मैंने ऐसा ही करना शुरू किया और मैं भी मस्त हो गई अपनी इस मैथुन लीला में...मेरे सुडौल स्तनों के जोड़े इस तरह से फुदकने लगे जैसे कि मानोउनमें भी जान आ गई हो... मेरे केशों की राशि बार-बार उनके चेहरे पर किसी पेंट वर्ष की भांति उनके चेहरे को मानो एक अनोखे रंग में भर देना चाह रहे थे... मेरे बालों की सुगंध और कामाग्नि में तपे हुए शरीर से निकलते पसीने और फेरोमोंस की सुगंध से बाबा ठाकुर बिल्कुल पागल हो उठे...

आज उनका लिंग पहले की तरह मेरी योनि के अंदर घुसा हुआ था, लेकिन आज बात कुछ और नहीं है... आज मैं पूरी नियंत्रण में थी... मैंने उनके लिंग को पंप कर कर के उनके अस्तित्व की गहराई में बसे हुए पोरस पूर्ण तरल बीज पदार्थ का शोषण करने का निर्णय ले रखा था... बाबा ठाकुर ने सपने में भी नहीं सोचा था कि आज उनको मैं ऐसा सुख देने वाली हूं... कुछ ही देर बाद मुझे ऐसा लगने लगा कि वह थरथर कांप रहे हैं... मेरी भी मैथुन लीला की गति और बढ़ गई... और मेरे अंदर भी मानो वासना का सैलाब उमड़ रहा था... बाबा ठाकुर से रहा नहीं जा रहा था वह मेरे हर धक्के के साथ अपनी कमर को ऊपर उचका देते... बस मुझे थकना नहीं है मुझे जारी रखना है मैं जो कर रही हूं... थोड़ी ही देर की बात है... और फिर कुछ ही देर बाद... उनके कुतुबमीनार से काढ़ा-गरम तरल चिपचिपा वीर्य एक फव्वारे की तरह फूट पड़ा... लगभग तीन या चार बार... मैंने अपनी बची कुची ताकत समेत कर अपने योनि के अधरों से उनके लिंग को दबाने की कोशिश की और अपनी कमर को एक बार ऊपर उठाया जैसे कि मानो मैं उनके वीर्य की हर एक बूंद को उनके लिंग से निचोड़ कर अपने अंदर ले लेना चाहती हूं... बाबा ठाकुर का शरीर फिर से कांप उठा| हम दोनों पसीने से बिल्कुल लथपथ हो चुके थे अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था मैं बिल्कुल निढाल होकर बाबा ठाकुर के शरीर पर लेट गई... और अनजाने में ही मेरे मुंह से निकला, "बाबा ठाकुर आप मुझे अपने से जोड़कर रखिए... कृपा करके आप अपना लिंग मेरी योनि से बाहर मत निकालिएगा..."

बाबा ठाकुर भी मुझे प्यार से सुनते हुए बोले, "मैं भी यही चाहता हूं... तूने मुझे आज वह सुख दिया है जिसकी कभी मैंने कल्पना भी नहीं की थी... मैं भी तुझे कुछ देना चाहता हूं"

इतना सब कुछ देखने जानने और सुनने के बाद आरती क्या सोच रही होगी? हे भगवान! मैंने उस लड़की को बर्बाद कर दिया|

क्रमशः
 

manu@84

Well-Known Member
8,549
11,974
174
आदरणीय मित्र manu@84 जी,

मेरी कहानी ज्यादातर फीमेल (स्त्री कामुकता) सेक्सुअलिटी पर आधारित है|

अगर इंसान को घर में खाना ना मिले तो वह बाहर होटल से खाना बनाता है|

खैर जो भी हो, मैं आपकी आभारी हूं की आपको मेरी कहानी पसंद आ रही है और आप इस कहानी के साथ बने हुए हैं| मैं आपकी प्रतिपुष्टि की सराहना करती हूं|

आप जैसे पाठक मेरे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है|
ऐसे हम नही खेलगे, आप बिना बताये छोड़ जाती है, अकेला... बुरे ख्याल आते हैं. वादा करिये आगे से खामोश नही होगी।
 

naag.champa

Active Member
661
1,792
139
ऐसे हम नही खेलगे, आप बिना बताये छोड़ जाती है, अकेला... बुरे ख्याल आते हैं. वादा करिये आगे से खामोश नही होगी।
Ok done
 
  • Like
Reactions: Tiger 786

naag.champa

Active Member
661
1,792
139

अध्याय २९



बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मेरी दी हुई इस अकल्पनीय आनंद से बहुत ही ज्यादा संतुष्ट थे और उनको इसकी वजह से काफी प्रोत्साहन के मिला था| मैं तो थक कर चूर हो चुकी थी लेकिन साथ ही मुझे ऐसा लग रहा था कि बाबा ठाकुर को भी दम लेने की थोड़ी बहुत जरूरत महसूस हुई होगी| इसलिए थोड़ा सा सस्ता लेने के बाद उनका पौरुष फिर से जाग उठा|

हम दोनों एक दूसरे के अगल-बगल लेटे हुए थे और हमारे गुप्तांग आपस में संयुक्त थे... इसलिए उन्हें ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ी बस वह सिर्फ करवट बदल कर मेरे ऊपर लेट गए; मैंने भी उनकी सुविधा के लिए अपनी दोनों टांगों को फैला दिया वह मेरे चेहरे से मेरे उलझे उलझे बालों को हटाते हुए मुझे फिर से चूमने और प्यार करने लग गए... न जाने क्यों इस बार मुझे उनका ऐसा करना थोड़ा अलग सा लग रहा था... इस बार उनकी मैथुन करने की गति थोड़ी देनी थी| इसकी वजह उनका थक जाना नहीं था बल्कि वह चाहते थे कि वह धीरे-धीरे हर्बल का मजा लेते हुए मेरे साथ सहवास करें... मैंने उनको खुश करने के लिए तो इतनी मेहनत की है अब शायद मुझे संतुष्टि देने की बारी उनकी है| मुझे सिर्फ उनकी हर क्रिया पर प्रतिक्रिया करनी है... अगर वह मुझे प्यार से चूमें तो मुझे भी उन्हें चूमना है...

अब तो शायद उन्हें पता चल गया था कि उनकी दाढ़ी अगर मेरे गालों से रगड़ खाती है मुझे बड़ा अच्छा लगता है| शायद इसीलिए हुआ ऐसा ही कर रहे थे| अपने बालों से मेरी शादी हो मेरे सुडौल स्तनों के ऊपर घिसते रहे... और साथ ही उनका लिंग मेरी योनि के अंदर एक लयबद्ध तरीके से ऊपर नीचे हिल रहा था|

जल्द ही में आयोजित होकर उनके शरीर के वजन से दबे होने के बावजूद थोड़ा बहुत हिलने डुलने और कसमसाने लगी... और मुझे ऐसा लगा कि मेरी इस हरकत से बाबा ठाकुर और खुश हो गए उन्होंने अपने मैथुन की गति थोड़ी सी बढ़ा दी| मैंने उनको अपनी पूरी ताकत से अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया और अपनी जीभ के सिरे से उनके होठों को हल्का-हल्का उकसाने लगी... मौका पाते ही उन्होंने मेरी जीभ को अपने मुंह के अंदर ले लिया और जोर जोर से चूसने लगे वाहनों को चाहते हो कि मेरे अंदर की यौवन सुधा को पूरी तरह से पी जाना चाहते थे... उनकी मैथुन की गति और तेज हो गई और मेरा पूरा शरीर एक परिचित ले में फिर से हिलने लगा... पर इस बार बाबा ठाकुर के वीर्य निर्गत करने के पहले से ही मैंने यौन आनंद की चरम सीमा का कई बार उल्लंघन किया....

***

"पीयाली दीदी, ओ पीयाली दीदी? कब तक सोती रहोगी? देखो देखो साढ़े दस बज रहे हैं"

मैंने किसी तरह से अपनी आंखें खोली और फिर मुझे इस बात का एहसास हुआ न जाने कब से आरती मुझे हिला हिला कर जगाने की कोशिश कर रही थी| मैंने किसी तरह से अपनी आंखें खोली तो आंखों में थोड़ी बहुत जलन सी महसूस हो रही थी ऐसा लग रहा था कि इतना सोने के बावजूद भी मेरी नींद पूरी नहीं हुई होगी| मैं हड़बड़ा कर उठी उसके बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरा पूरा का पूरा बदन दर्द से भरा हुआ था खासकर योनि और स्तन काफी दुख रहे थे| मेरा शरीर सिर्फ एक चादर से ढका हुआ था और जैसे ही मैं उठ कर बैठ गई, चादर मेरी छाती से फिसल कर नीचे गिरा और मेरा शरीर का ऊपरी हिस्सा बिल्कुल नंगा हो गया| इसे देखकर आरती की आंखों में खुशी की चमक सी छा गई और उसने मुझसे कहा,"सुबह से मैंने कितनी बार तुम्हें उठाने की कोशिश की लेकिन तुम्हें तो कोई होश ही नहीं था"

"अरे बाप रे बाप! मेरा सर तो दर्द से फटा जा रहा है..." पिछली रात को मारे जोश के शायद में कुछ ज्यादा ही पी गई थी उसके बाद पूरा का पूरा कमरा गांजे के धुएं से भरा हुआ था... उसके ऊपर से मैं और बाबा ठाकुर लगभग सारी रात रामलीला में मग्न थे... इसलिए मैं ठीक से सो भी नहीं पाई थी... और अब एक भयंकर हैंगओवर!

"तुम दो मिनट यहीं बैठो पीयाली दीदी... मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं"

मैंने अपने बदन से चादर पूरी तरह से हटाकर पलक से उतरकर बिलकुल नंगी खड़ी हो गई और अपने दोनों हाथों से अपने खुले बालों को समेट कर एक जोड़ा बात भी हुई मैंने उससे कहा, "हां बिल्कुल काली चाय; हो सके तो अदरक लौंग और एक पूरा नींबू निचोड़ कर..."

"उफ़! पीयाली दीदी तुम्हारे बदन से एक अजीब सी बदबू आ रही है और आज भी पहले की तरह तुम्हारे पूरे बदन पर जगह-जगह चिपचिपा सड़का लगा हुआ है"

मुझे याद आ गया कि बाबा ठाकुर को खुश करने के लिए मैंने अपने स्तनों के बीच में उनका लिंग दबाया था; ऐसा करते वक्त शायद उनका थोड़ा यह भी है निकलकर उस जगह गिर गया होगा और फिर कल तो सारी रात मेरा पूरा का पूरा शरीर बाबा ठाकुर के लिए एक खेल का मैदान था...

"हां तू चाय लेकर आ तब तक मैं थोड़ा सुस्ता कर नहा लेती हूं"

"अभी लाई..." यह कहकर आरती मानो एक छोटी सी चिड़िया के भांति फर्रर्र से उड़ती हुई रसोई की तरफ चली गई| उसको मेरे लिए कुछ करने का मौका मिल जाए तो उसे बड़ी खुशी होती है|

आरती के बाहर जाते ही मैंने अपना बैग खोला और उसमें से रम की बोतल निकालकर मैंने एक बड़ा सा केक बनाया और उसमें थोड़ा सा पानी डालकर उसे गटागट पी गई... क्योंकि मुझे मालूम था यह हैंगओवर सिर्फ चाय से ही दूर नहीं होने वाला...

इससे पहले की आरती कमरे में चाय लेकर आती तब तक मैं एक पूरी बोतल पानी पी गई| उसके बाद मुझे ध्यान आया कि मैं अब तक बिल्कुल नंगी खड़ी हूं और कमरे का दरवाजा भी खुला हुआ है इसलिए जल्दी-जल्दी मैंने एक साड़ी अपने बदन पर लपेटी और तब तक चाय लेकर आरती कमरे में पहुंच गई|

"बाबा ठाकुर कहां है?" मैंने उससे पूछा

"मैं और क्या बताऊं पीयाली दीदी? सुबह-सुबह ज्वेलरी वालों का फोन आया था उन्होंने बाबा ठाकुर के लिए एक गाड़ी ही भेज दी थी... श्रीलंका से न जाने कौन सा व्यापारी है अपने साथ गृह रत्नों का खजाना लेकर आया हुआ है... उनके नमूनों का निरीक्षण करने के लिए ज्वेलरी वालों ने बाबा ठाकुर को जरूरी तौर पर बुलाया है... उसके बाद बाबा ठाकुर को ज्वेलरी में बैठकर लोगों का ज्योतिष विचार भी करना है इसलिए वह थोड़ा बहुत खा पीकर ही घर से निकल गए... आज शाम तक बस मैं और तुम घर में अकेली है"

यह कहकर आरती अपनी साड़ी उतारने लगी|

"यह क्या कर रही है, पगली?" मैंने आश्चर्य से पूछा|

"क्यों? मैं तुम्हारे लिए नंगी हो रही हूं पीयाली दीदी"

"अरे अरे अरे... अभी तू मुझे छूना मत... मैं बिल्कुल गंदी हो रखी हूं अभी तक तो मैं नहाई भी नहीं"

"मैं जानती हूं, तुम्हारे बदन से बदबू भी आ रही है... बाबा ठाकुर के पसीने और..." बाकी बोलते बोलते आरती नाक से कूदकर चुप हो गई, फिर उसमें बोलना जारी रखा, "आज जल्दबाजी में मैं भी नहीं नहाई... इसलिए मैंने तय किया है कि पहले हम दोनों नहा लेंगे और उसके बाद दोपहर का खाना खा कर के मैं तुम्हें जी भर के प्यार करूंगी और तुम्हें सुला दूंगी तुम्हारी आंखों को देखकर ऐसा लगता है कि तुम सारी की सारी रात ठीक से सोई नहीं हो"

मेरा सर तब भी दर्द से फटा जा रहा था इसलिए मैं कुछ बोली रही मैंने सीधे रम की बोतल उठाई और एक बड़ा सा पैक बनाकर उस पर थोड़ा सा पानी डालकर मैं गटागट पी गई...

और जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो तब तक आरती अपनी साड़ी, ब्लाउज, पेटिकोट और अपनी नई ब्रा उतार कर सिर्फ पेंटी पहनी हुई खड़ी थी और मुझे फटी फटी नजरों से देख रही थी|

"हे भगवान! पीयाली दीदी? तुम तो पानी की तरह शराब पीती हो"

मैंने मुस्कुरा कर जवाब दिया, "हां"

"आज मैं भी पियूंगी- ही ही ही ही ही ही"

"नहीं नहीं नहीं नहीं- बिल्कुल नहीं", मैंने मना किया, "अगर तुझे यह सब पीना ही है; तो बाबा ठाकुर से पूछ कर ही पीना... वरना तेरी तो छोड़ मेरी भी खैर नहीं"

आरती ने मुंह बिचका कर स्वीकृति में सर हिलाया और उसे वहीं छोड़कर मैं बाथरूम में चली गई| बाथरूम में मैं आराम से पाँच मिनट के लिए बैठी ही थी कि इतने में बाहर से आरती की जोर जोर से खांसने की आवाज आने लगी| जैसे तैसे मैंने खुद को धो-धा यह बाहर निकली तो मैंने देखा वही हुआ है जिसका मुझे डर था आरती हाथ में रम का गिलास पकड़ी हुई जोर जोर से हंस रही थी| मेरे बाथरूम में जाते ही आरती ने गिलास में रम डालकर एक घूंट पी गई और उसके बाद वही हुआ जिसका मुझे डर था| सबसे बड़ी बात वह चुपके चुपके बोतल से बिना पानी मिलाए एकदम कच्चा कच्चा रम का घूंट पी गई थी|

मैंने किसी तरह से उसे संभाला फिर उसे डांटने लगी, "मैंने तुझे मना किया था ना? हम लड़कियों को यह सब अपने स्वामी या फिर बड़ों की आज्ञा के बगैर नहीं करना चाहिए?"

आरती की आंखें बिल्कुल लाल हो रखी थी और वह अनियंत्रित तरीके से खांसी जा रही थी लेकिन फिर भी इसी तरह से उसने अपने आप को संभाल कर बोली, "अरे बाप रे बाप! पीयाली दीदी? खों -खों -खों (खांसी) यह तो बिल्कुल शहर है तुम और बाबा ठाकुर कैसे यह सब गटागट की लेती हो?"

मैंने अपनी आंखें बड़ी बड़ी करके जैसे बच्चों को डांटते हैं वैसे ही उसे डांटते हुए कहा, "अब बिल्कुल चुपचाप यहां बैठकर ढेर सारा पानी पी ले... और खबरदार जिंदगी में दोबारा तूने इन सब चीजों को हाथ भी लगाया तो... मैं तेरे बालों में दो- दो चुटिया कस कर उस में मरे हुए बांध दूंगी"

यह कहकर में अपने बालों में जुड़ा बांधने लगी और उसके बाद बाबा ठाकुर के छोड़े हुए बासी कपड़े उठाकर बाथरूम में ले गई और फिर बाल्टी में साबुन खंगालने के बाद मैंने उनके कपड़ों को उस में भिगो दिया||

यह देखकर आरती ने मुझसे कहा, "पीयाली दीदी, तुम बाबा ठाकुर के क्यों धो रही हो? यह सब तो मैं करती हूं... और वैसे भी घर में तो एक वॉशिंग मशीन पड़ा हुआ है नीचे"

मैंने कहा, "कोई बात नहीं, गांव की सारी औरतें तो अपने पतियों के लिए यह सब कुछ करती रहती हैं... और फिलहाल तो मैंने बाबा ठाकुर को अपना तन और मन सब कुछ न्योछावर कर दिया है इसलिए फिलहाल वह मेरे स्वामी है और मैं उनकी रखैल और जितने दिन मैं बाबा ठाकुर के बिस्तर पर लेट रही हूं- यह सब मुझे करने दे... उसके बाद तू करती रहना"

वैसे तो मैं शहर में ही पली-बढ़ी हूं लेकिन यहां आकर मुझे एक गांव की औरतों की जिंदगी जीने का मौका मिल गया था और उसका मैंने पूरा फायदा उठा रही थी- और यह सब मुझे बहुत ही नया और अच्छा लग रहा था|

इतने मैंने गौर किया कि आरती मुझे आंखें फाड़ फाड़ कर बड़ी अजीब से निगाहों से देख रही थी लगता है शराब की एक ही चुस्की में उसे नशा चढ़ गया था, उसने मुझसे पूछा, "एक बात सच सच बताओ पीयाली दीदी... क्या तुम सचमुच में कोई परी हो? तुम्हें देखकर ऐसा लग रहा है यह किसी ने तुम्हारे बदन को बड़ी ही मेहनत और लगन के साथ तराशा है..."

"यह क्या अनाप-शनाप बक रही है? नीचे जा के देख दोपहर का खाना बना कि नहीं तब तक मैं बाबा ठाकुर के कपड़े धो दूंगी और उन्हें छत पर जाकर सूखने के लिए टांग कर आऊंगी"

"ठीक है; मैं नीचे रसोई में जा कर आती हूं... लेकिन उसके बाद आज मैं तुमको नहला दूंगी..."

"अच्छा अच्छा ठीक है... और उसके बाद हम दोनों दोपहर का खाना खा लेंगे"

"हां हां जरूर और उसके बाद तुम और मैं बिस्तर पर नंगी होकर लेट जाएंगे..." ही ही ही ही"

क्रमशः
 

naag.champa

Active Member
661
1,792
139

अध्याय ३०



अगले कुछ दिन ऐसे ही बीते करें| मैं रोज सुबह उठकर बाबा ठाकुर को प्रणाम करती उनके सत्संग में शंख बजाते और फिर बाबा ठाकुर धरे बने तरीके से काम पर जाने से पहले हर रोज मेरे साथ एक या दो बार संभोग करते और फिर काम पर निकल जाते| उनके जाने के बाद मैं उनके बासी कपड़े अपने हाथों से धो देती है कमरे में झाड़ू पोछा लगाती और फिर रसोई में आरती की मदद भी करती है| शाम को जब बाबा ठाकुर घर आते तमे उनका हर ख्याल रखती थी और रात को एक कर्तव्यनिष्ठ यौन पुतली की तरह उनकी कामवासना की हर इच्छा को पूरी करती है...

वह मुझे उत्तेजित करने के लिए मेरी जीभ चूसते, मेरे निपल्स चूसते और मेरी योनि चाटते। शायद इसीलिए अब तो शायद मुझे गुदा- मैथुन का दर्द मुझे मीठा- मीठा लगता था|

बाबा ठाकुर के अंडकोष मानो शुक्राणु के कारखाने की तरफ थे, वो रात को कई बार मेरे साथ संभोग करते लेकिन हर बार उनके वीर्य स्खलन की मात्रा मुझे एक अवर्णनीय स्त्रीत्व के गहरे गर्म आनंद से भर देती थी। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि महिलाएं गर्भवती होने के लिए उसके पास आती हैं।

इस बीच कई बार मैंने खुद सोचा कि इससे पहले जिंदगी में कभी नहीं खुद मुझे कामलीला की ऐसी संतुष्टि कभी नहीं मिली थी|

लेकिन उस दिन की बात कुछ और ही थी|

बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ पिछली रात से ही काफी बेचैन से लग रहे थे| उन्होंने पिछली रात को मेरे साथ दो बार गुदा- मैथुन किया था उसके बाद प्राकृतिक मैथुन...

उनका लिंग मेरी योनि में तब भी संयुक्त था वह मेरे ऊपर लेटे हुए थे मैं भी टांगे फैलाकर उनके नीचे लेटी हुई थी हम दोनों की लंबी और गहरी सांसे लयबद्ध तरीके से चल रही थी उन्होंने दोबारा मेरे साथ मैथुन करना शुरू किया उनके धक्कों से मेरा शरीर डोले लगा... आज लगता है उनकी मैथुन की गति कुछ ज्यादा ही तेज थी... आखिरकार आख़िरकार उसने अपने गर्म वीर्य की धार से मेरी योनि को शांत कर दिया|

फिर वह मुझे प्यार करते हुए बोले, "कल सुबह तू वापस चली जाएगी पीयाली?"

मैं चुपचाप उनके शरीर के वजन से दबे लेटी रही मैंने कोई जवाब नहीं दिया...

उन्होंने बोलना जारी रखा, "इससे पहले आज तक किसी भी औरत ने मुझे वह सुख नहीं दिया जो तूने दिया है... इसलिए मैंने तय किया है कि आज मैं तेरी योनि से अपना लिंग नहीं निकाल लूंगा... आज जितनी बार हो सके मैं तेरे साथ संभोग करूंगा"

मैंने गौर किया कि धीरे-धीरे उनका शिथिल सा पड़ा हुआ लिंग जो कि मेरी योनि में अभी भी संयुक्त था वह धीरे-धीरे खड़ा और सख्त होने लगा है... और जल्द ही वह फिर से मेरे साथ संभोग लीला में दोबारा मगन हो गए|

***

बाबा ठाकुर ने पिछली रात को कितनी बार मेरे साथ संभोग किया यह तो मुझे पता नहीं... लेकिन मुझे इतना जरूर याद है कि हर बार के बाद मुझे करीब पंद्रह या बीस मिनट तक सुस्त आने का वक्त देते और फिर से कामवासना के समुद्र मंथन में वह लग जाते|

जहां तक मेरा अंदाजा है सुबहपांच या साढ़े पाँच के आसपास उन्हें नींद आने लगी और वह मेरे बगल में लेट कर सो गए|

जब मेरी नींद खुली तब मैंने देखा घड़ी में करीब सुबह के पौने आठ बज रहे थे| मेरे पूरे शरीर, कोमल अंगों और गुप्तांगों में भी हल्का हल्का दर्द था|

बाबा ठाकुर ने मुझे अपनी बाहों में ले रखा था और चैन की नींद सो रहे थे|

आज लगता है उन्होंने अपना सत्संग रद्द कर दिया था; वह ज्यादा से ज्यादा वक्त मेरे साथ बिताना चाहते थे|

मैं धीरे-धीरे बाबा ठाकुर के आलिंगन से बाहर आई और चुपके-चुपके बाथरूम में जाकर साफ-सुथरी होने के बाद मैंने बाबा ठाकुर के कपड़े दोबारा भिगो दिए और फिर मुझे याद आया कि आज शायद इन कपड़ों को आरती को ही धोना पड़ेगा क्योंकि कुछ देर बाद तो शहर से ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा गाड़ी मुझे वापस ले जाने के लिए भेज देगी|

मैं दबे पाव कमरे से बाहर निकली| मैं यह नहीं चाहती थी कि मेरी वजह से बाबा ठाकुर की नींद में कोई खलल पड़े| नीचे रसोई में से आवाज आ रही थी| आरती शायद चाय बना रही होगी- मैंने सोचा कि मैं जाकर देखो शायद उसे कुछ मदद की जरूरत हो तो...

मेरे रसोई में कदम रखते ही आरती एकदम से तोड़कर आकर मुझसे लिपट गई और सुबह-सुबह कर रोने लगी, "पीयाली दीदी? क्या सचमुच आज तुम वापस चली जाओगी?"

मैंने भी आरती को गले से लगा लिया और प्यार से उसे सहला सहला कर सांत्वना देने की कोशिश करने लगी|

"मुझे तो वापस जाना ही पड़ेगा. आरती" यह कहते-कहते मेरा भी गला भर आया| इन चंद दिनों में मैं और आरती आपस में अच्छी तरह घुल मिल गए थे, "तू भूल गई? कुछ भी हो, मैं पराई घर की लड़की हूं- मुझे तो वापस जाना ही पड़ेगा"

इतने में बाबा ठाकुर भी नहा धोकर बिल्कुल तैयार हो गए थे|

आरती ने सुबह का नाश्ता बहुत ही भारी बनाया था- क्योंकि वह जानती थी यह गांव से शहर तक का सफर काफी लंबा है|

आज उसके हाथों में पता नहीं कोई जादू था उसका बकाया हुआ खाना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था| घर का माहौल बड़ा अजीब सा हो रखा था... एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी कोई किसी से कोई बात नहीं कर रहा था|

मुझे समझ में आ गया कि मेरे वापस चले जाने के बाद इस घर में बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ और उनकी पाली हुई बेटी- आरती को मेरी कमी बहुत खलेगी|

मैंने अपना मोबाइल फोन चालू करने की कोशिश की| लेकिन वह ऑन नहीं हुआ; उसकी बैटरी एकदम डाउन थी| पिछले दो-तीन दिन में गांव के माहौल में इतना घुल मिल गई थी... कि मैं गांव की ही एक स्त्री की तरह वहां जी रही थी| शायद इसलिए मुझे अपना मोबाइल फोन चार्ज करना याद नहीं रहा| खैर कुछ भी हो, मैंने अपना मोबाइल फोन चारजर से नीचे वाले कमरे में ही लग पॉइंट में लगाकर चार्ज करने लगी|

इतने में बाबा ठाकुर कमरे में आए और बोले, "पीयाली, अभी-अभी मैरी डिसूजा का फोन आया था; उन्होंने कहा कि तेरा नंबर लग नहीं रहा है... इसलिए उन्होंने मुझे फोन किया था| उन्होंने शहर से गाड़ी रवाना कर दी है... लेकिन उसे आने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा..."

मैं हल्का सा मुस्कुराई और समझ गई कि बाबा ठाकुर के मन में क्या इच्छा जाग रही है| मैंने उनकी नजरें बचाकर आरती की तरफ देखा जो मेरे साथ कमरे में बिल्कुल मुझसे चिपक कर बैठी हुई थी|

आरती भी समझ गई कि मुझे अब बाबा ठाकुर के कमरे में जाना होगा|

इसलिए मैं चुपचाप सर झुकाए उठ कर खड़ी हो गई और फिर अपनी साड़ी का आंचल ठीक किया और धीमे कदमों से बाबा ठाकुर के साथ ऊपर उनके कमरे में चली गई|

बाबा ठाकुर के कमरे में दाखिल होते ही मैंने अपनी साड़ी उतार दिया बालोंअच्छी तरह अपनी पीठ पर फैला दिया और फिर बिस्तर पर अपनी दोनों टांगों को फैला कर लेट गई|

बाबा ठाकुर ने भी कमरे के दरवाजे बंद कर दिए और फिर अपनी लुंगी और बनियान उतार कर वह मेरे ऊपर लेट कर मुझे प्यार करने लगे...

और कुछ देर बाद ही हम दोनों फिर से कामवासना के समुद्र का मंथन करने लगे|

***

लगता है अब तक मेरा मोबाइल फोन पूरी तरह चार्ज हो गया होगा| मैं धीरे-धीरे बिस्तर पर उठ कर बैठी है और फिर मैंने बाबा ठाकुर की तरफ देखा और फिर बोली, "बाबा ठाकुर अब मुझे तैयार होना है मेरी गाड़ी आती ही होगी"

"हां, पीयाली अब तो तेरे जाने का वक्त आ गया है"

"और अब अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं अपने बालों को अच्छी तरह कंगी करके एक अच्छा सा जुड़ा बांध लूंगी और उसके बाद मुझे ब्रा पेंटी ब्लाउज और पेटीकोट पहन कर उसके ऊपर साड़ी भी पहननी है"

"हां हां मैं जानता हूं... तू कुछ दिन और यहां रह जाती तो अच्छा होता"

तब तक मैं आईने के सामने खड़ी होकर अपने बालों में कंघी कर रही थी कितने में आईने में मैंने देखा कि बाबा ठाकुर मुझे देखकर हस्तमैथुन कर रहे हैं मैं मुस्कुरा कर दोबारा उनके पास गई और फिर मैंने उनसे कहा, "जब तक मैं यहां हूं... आपको इस तरह से हाथ मारने की कोई जरूरत नहीं है"

यह कहकर मैंने उनका लिंग अपने मुंह में लिया और उसे पकड़ कर हिलाने लगी और जी भर के उनका लिंग चूसने लगी| मैं ऐसा तब तक करती गई जब तक उनका दोबारा से वीर्य स्खलन नहीं हो गया और इस बार में उनके वीर्य की हर एक बूंद को निगल गई|

इसके बाद बाथरूम में जाकर मैंने अपने हाथ मुंह धो हुए और फिर वापस कमरे में आकर अपना जुड़ा बनाकर मैंने ब्रा पेंटी, पेटिकोट ब्लाउज और साड़ी पहन ली|

मेरी आवाज सुनकर आरती मेरा फोन लेकर ऊपर चली आई मैंने देखा कि फोन तब तक 87% चार्ज हुआ था लेकिन एक फोन करने के लिए और सफर के लिए इतना काफी था|

सबसे पहले मैंने ब्लू मून क्लब की मालकिन मैरी डिसूजा फोन लगाया|

सिर्फ दो बार रिंग होते ना होते ही मैरी डिसूजा ने फोन उठा लिया और बड़े ही चिंतित स्वर में उन्होंने मुझसे कहा, "पीयाली? तेरा फोन स्विच ऑफ क्यों आ रहा था? मैं कितनी देर से तेरा फोन लगा रही थी... अनवर मियां यहां से गाड़ी लेकर रवाना हो चुके हैं अब तक तो वह शायद पहुंचने वाले भी होंगे... गाड़ी आने के बाद क्लाइंट के घर एक मिनट भी मत रुकना... तेरा वक्त कीमती है"

अनवर मियां गाड़ी लेकर के ठीक समय पर पहुंच गए| घर से बाहर निकलते वक्त आरती मुझसे लिपटकर फूट-फूट कर रो रही थी| वैसे तो मैं संभोग करने के बाद बिना नहाए धोए आरती को मेरा बदन छूने नहीं देती थी- क्योंकि कुछ भी हो वह एक कुंवारी लड़की है- लेकिन आज कोई चारा नहीं था| बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ भी उदास लग रहे थे, उन्होंने मुझसे कहा, "हो सके तो कभी कबार हमारे घर आती रहना, पीयाली"

"बाबा ठाकुर, आप तो अब जब चाहे मुझे अपने घर बुलाकर रख सकते हैं"

हे भगवान! मैं तो बिल्कुल ब्लू मून क्लब की हॉट गर्ल्स की फायर ब्रिगेड की प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल की तरह बात कर रही हूं|

बाबा ठाकुर ने जवाब नहीं दिया क्योंकि वह जानते थे मुझे घर लाने की कीमत लाखों में थी जो कि शायद उनके लिए भी आसान नहीं था|

आरती के साथ दोस्ती, गांव का यह माहौल और गांव की एक घरेलू औरत की तरह बनकर रहना शायद मेरे मन में घर कर गया था इसलिए जब मैं गाड़ी में बैठी और दरवाजा बंद किया तो मेरी आंखों से भी आंसुओं का बांध टूट पड़ा|

गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे बैठे न जाने में कब सो गई थी| अनवर मियां की आवाज सुनकर मेरी नींद खुली| हम लोग टोल टैक्स के पास थे अनवर मियां ने गाड़ी रोककर उससे कहा, "अपना आंचल ठीक कर लो बेटी"


क्रमशः
 

Tiger 786

Well-Known Member
6,215
22,559
173

अध्याय १९


"पीयाली" बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की आवाज काँप रही थी, वह आश्चर्य से कभी अपने हाथ को और कभी मुझे देख रहे थे, " मुझे माफ कर देना... न जाने मुझे क्या हो गया था... न जाने में क्यों इतना बहक गया था... कि मैंने तुझे अनजाने में ही इतनी जोर से थप्पड़ मारा... तूने मुझे आज उस जन्नत की सैर करवा दी जिसका मुझे शायद पता ही नहीं था.... और मैंने तेरे पर ही हाथ उठाया.. मुझे माफ कर देना मेरी कामधेनु..."

यह कहकर वह मुझे अपनी बाहों में लेकर बहुत प्यार करने लगे और चूमने लगे| उनकी छुअन पाते ही मेरे अंदर की कामवासना की अग्नि जो कि कुछ देर के लिए शायद बुझ सी गई थी फिर से भड़कने लगी... उनके थप्पड़ से बस एक फायदा हुआ मुझे जो हल्के हल्के चक्कर आ रहे थे और झपकी आ रही थी... वह सर दूर सा हो गया...

इतने में बाबा ठाकुर अचानक बिस्तर से उठे और वह कमरे में कुछ सूंघने लगे... फिर उन्होंने उससे पूछा, "यह खुशबू किस चीज की है जो पूरे कमरे में फैली हुई है..."

फिर उनका ध्यान सुगंधित मोमबत्ती की तरफ गया जिसे मैंने उनके कमरे में आने से पहले से ही चला रखा था...

"लगता है हम लोगों ने जो नशा कर रखा है और इसमें बत्ती की खुशबू... कुछ ज्यादा ही असर दिखा रही है..." उनका कहना बिल्कुल सही था और यह कहकर उन्होंने कमरे की सारी खिड़कियां खोल दी... और बाहर से ठंडी हवाओं के झोंके आकर हम दोनों के बदन को मानो और जलाने लगे...

उसके बाद बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ मेरी तरफ मुस्कुराकर देखते हुए बोले, "पीयाली, तू बहुत ही सुंदर लड़की है... मैं तेरी योनि को एक बार परख कर देखना चाहता हूं..."

परख कर देखना चाहता हूं? क्या मतलब है उनका? उन्होंने तो मुझे पूरी नंगी हालत में देख ही लिया है और उन्होंने मेरे साथ सहवास करके मेरी योनि में अपना वीर्य स्खलित भी किया है; आखिर वह कहना क्या चाहते हैं?

इस बारे में मुझे ज्यादा सरका पाने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि इससे पहले मैं कुछ और सोच पाती है वह मेरे पैरों को घुटनों के नीचे से पकड़ कर मुझे खींचकर बिल्कुल बिस्तर के किनारे तक ले आए... और सिर्फ मेरे कूल्हे बिस्तर पर टिके हुए थे और मेरे पैर जमीन को छू रहे थे... ऐसी हालत में मैंने अपने बॉयफ्रेंड टॉम के साथ कई बार संभोग किया था... इसलिए मुझे इसकी आदत पड़ी हुई थी और शायद इसीलिए अनजाने में ही मैंने अपनी दोनों टांगे फैला दी और मैं सोच रही थी कि शायद बाबा ठाकुर पंडित देखना अपना लिंग मेरी योनि में डाल देंगे... लेकिन नहीं उन्होंने अपना सर मेरे दो टांगों के बीच में घुसा दिया और फिर मेरी योनि को चाट चाट कर चूसते हुए मेरे यौवन का रस पीने लगे|

मेरे पूरे बदन में मानव बिजली सी दौड़ गई और मेरे अंदर कंपकंपी सी होने लगी... मेरी योनि से मेरी यौवन सुधा का कुछ देश स्वाद लेने के बाद वह मुझे अपने हाथों से किसी गुड़िया की तरह उठाकर बिस्तर पर ठीक से लिटा दिया... मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा पूरा का पूरा शरीर शायद एक अनजाने असर के बस में है... मैंने दोबारा अपनी दोनों टांगे बिल्कुल फैला दी... और मन ही मन में सोच रही थी कि अब सिर्फ चाटने या चूसने से काम नहीं चलेगा इसलिए अनजाने में ही मैंने अपनी दोनों हाथों की उंगलियों से अपने योनि के अधरों को खोल दिया... अगर कोई मेरी योनि को इस हालत में देखता तो शायद सोचता है कि मेरे अंदर की कामवासना अपना मुंह खोले किसी लिंग को निमंत्रित कर रही है|

बाबा ठाकुर को मेरा इशारा समझ में आ गया वह मेरी दोनों टांगों के बीच में बैठ गए और अपने लिंग का सुपाड़ा मेरे खुले हुए योनि के अधरों से छुआया... मैंने अनजाने में ही अपनी कमर ऊपर उठा दी और फिर क्या था बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ ने अपना सुडौल खड़ा और सख्त लिंग मेरी योनि के अंदर घुसा दिया... मुझे ऐसा लग रहा था कि उनका लिंग शायद इस बार और भी दृढ़ हो गया है और शायद उन्होंने पहले के मुकाबले और ज्यादा ही उसको अंदर डाल दिया है... मुझे पूरा यकीन है कि वह जरूर वायग्रा (Viagra) जैसी कोई दवाई खा कर आए हैं... उन्होंने ज्यादा देर नहीं की... वह मेरे ऊपर चढ़कर लेट गए और अपनी पूरी ताकत के साथ मेरे खाने वालों के अंदर अपनी उंगलियां चला चला कर मुझे प्यार करने लगे... मेरे होंठ गाल माथा आंखों की पलकें नाक कानों की लौ चुन-चुन कर चाट चाट कर मुझे भी मजे देने लगे... न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा पूरा बदन शायद किसी अनजानी मदहोशी के बस में है... शायद इसीलिए कुछ देर बाद मुझे एहसास हुआ कि हालांकि वह सब कुछ भूल कर मेरे ऊपर लेट कर मुझे प्यार करने में बिल्कुल मदमस्त हो रहे थे और उन्होंने अभी तक अपनी मैथुन लीला शुरू नहीं की थी लेकिन मैं अनजाने में अपनी कमर बार-बार ऊपर कुछ उचकने की कोशिश कर रही थी|

आखिरकार बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ में अपनी मैथुन लीला शुरू की... इस बार उनकी रतिक्रिया की गति बहुत ही जोरदार और तेज थी... एक जानी पहचानी ताल में मेरा पूरा शरीर डोलने लगा... लेकिन मुझे थोड़ा फर्क महसूस हो रहा था... मेरे पति जयऔर बॉयफ्रेंड टॉम की तुलना में बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की छाती पर काफी सादाबाद थे... उनके बालों का स्पर्श मेरे बदन में एक अजीब सी लहर दौड़ा रहा था... और मैं मन ही मन सोच रही थी... आखिरकार में ब्लू मून क्लब की हॉट गर्ल्स की फायर ब्रिगेड प्रीमियम पार्ट टाइम लवर गर्ल क्यों बनी? यौन आचरण की विविधता का एहसास करने के लिए... और मैंने जो निर्णय लिया था वह शायद आज अपने फल दे रहा है... इसलिए मैंने भी अपनी सारी शर्मो हया छोड़कर पूरे मन से बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की... की छठी हुई दाढ़ी में अपने कोमल गालो को कैसे रखें... उनके हर चुंबन और लेहन कब मजा लेने लगी... मैंने कुछ देर के लिए अपने दिमाग से वह सारी बातें निकाल दी जो शायद किसी भी औरत को किसी पराए मर्द के साथ कामलीला में मगन होने में रोक सकती थी... मैं जानबूझकर यह भूलने का कोशिश कर रही थी कि मैं शादीशुदा हूं... मेरा एक पति है... और इसके अलावा मेरा एक बॉयफ्रेंड भी है- जो मुझे पागलों की तरह प्यार करता है- फिलहाल में एक नारी हूँ और बाबा ठाकुर पंडितएकनाथ एक पुरुष और हम दोनों इस वक्त रतिक्रिया में मगन है... हे भगवान मेरी कामना का ज्वालामुखी फटने वाला था... लेकिन मानो मेरी आस ही नहीं मिट रही थी... मुझे और भी चाहिए... नहीं... नहीं... नहीं... मैं तो फट पड़ने वाली थी... बाबा ठाकुर अपने पूरे पौरुष के साथ मेरी कामना के समंदर का मंथन कर रहे थे... मुझे और थोड़ी देर टिककर रहना पड़ेगा... नहीं- नहीं- नहीं- इतनी जल्दी नहीं... लेकिन मैं क्या करती बाबा ठाकुर के पुरुष के आगे मैं टिक नहीं पाई... और मेरी कामना की ज्वालामुखी का विस्फोट हो गया... मैं अनजाने में ही चीख, "ना..!"

लेकिन बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ रुके नहीं... उन्होंने मेरे कोमल बदन पर अपना समुद्र मंथन जारी रखा... अब मेरी सांस फूलने लगी थी... लेकिन वो रुके नहीं... कम से कम और तीन बार मैंअपने यौन आनंद के सुख सागर का सीमा पार कर गई|

हर बार मेरे कामना की ज्वालामुखी जैसे कि मानो एक जबरदस्त धमाकेदार तरीके से विस्फोट करता गया... मैं अब बिल्कुल निढाल हो चुकी थीऔर उसके बाद अंततः मुझे थोड़ी सांत्वना देने के लिए शायद मेरे जलते हुए बदन पर शांति केजल का छिड़काव करते हुए बाबा ठाकुर ने अपना वीर्य मेरे अंदर स्खलित किया... मुझे लगाकि उनके गरम गरम वीर्य से मेरी पूरी योनि भर गई... हां इस बार उनकी वीर्य की मात्रा काफी ज्यादा थी... अगर मैं दूसरी औरतों की तरह यहां मां बनने के लिए आई हुई होती तो शायद यह संभोग मुझे मातृत्व अशोक देने के लिए पूरी तरह पर्याप्त था...

मैंने कॉल किया कि बाबा ठाकुर मेरे से अलग नहीं हुए और ना ही उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि के अंदर से निकाला... उनका लिंग धीरे-धीरे शिथिल पड़ रहा था लेकिन ऐसा ज्यादा देर तक नहीं रहा... मैंने महसूस किया कि उनका लिंग फिर से खड़ा और शक हो रहा है मैं सोच रही थी कि शायद वह दोबारा मेरे साथ संभोग करेंगे...

लेकिन उन्होंने दबे दबे स्वर मेंउससे कुछ और ही कहा, "पीयाली, अब तुझे उल्टा होकर लेटना पड़ेगा..."

तो बाबा ठाकुर क्या आप मेरे पीछे...?

“हां पीयाली”

मैं तो बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की खरीदी हुई लड़की हूं... इस वक्त वह मेरेतन मन और आत्मा और हां मेरे नंगे बदन के मालिक हैं| ब्लू मून क्लब की मालकिन मेरी डिसूजा ने मुझे जो तालीम दी है; उसके मुताबिक मुझे अपने नारीत्व के धर्म का पालन कर रहा था... बाबा ठाकुर पंडित एकनाथ की हर ख्वाहिश मेरे लिए एक हुक्म के बराबर था...

इसलिए मैंने बड़ी ही नम्रता से उनसे कहा, "बाबा ठाकुर, यह मेरे लिए भाइयों काम की गुदामैथुन पहला तजुर्बा होगा... मैं अपने साथ कुछ क्रीम वगैरह लेकर आई हूं... वह मुझे लगा लेने दीजिए... और साथ ही मैं अपने साथ थोड़ा जेल भी लाई हूं... और इसके साथ ही आप कृपा करके मेरे हाथ पैर और मुंह बांध दीजिएगा...”

“तेरी मालकिन ने भी मुझसे यही कहा था... कि तेरे लिए गुदामैथुन का यह पहला तजुर्बा होगा... ठीक है, मैं तेरे हाथ पर जरूर बांध दूंगा और साथ ही मैं तुझे थोड़ा नशा भी करवा दूंगा ताकि तुझे ज्यादा तकलीफ ना हो...”


क्रमशः
Bohot badiya update
 
Top