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Romance बुड्ढा पति ।

How is the starting of this story ?

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parkas

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मन्नू बहुत खुश है आज। आखिर उसे श्वेता के साथ पूरा दिन बिताने का मौका मिलेगा। वैसे एक बात बता दूं कि मन्नू के दिल में श्वेता बसने लगी। उसमे श्वेता को पाने का जूनून सवार होने लगा। कल से श्वेता के बारे में सोचकर खुश हो रहा था। खुद से कहने लगा "मन्नू श्वेता जिस दिन तेरी हुई न उस दिन के बाद तेरी किस्मत उल्टी हो जाएगी। एक खूबसूरत औरत को बाहों में मुझे अपना बुढ़ापा गुजरना है। मेरे भाई भीमा की तरह मुझे भी एक खूबसूरत जवान औरत मिल जाएगी।"

वैसे आपको एक बात बता दूं। मन्नू निशा को भी पसंद करता था। निशा उसकी भाभी है इसीलिए दूरी बना ली। इसीलिए वो हवेली में नही इस छोटे से घर में रहता था। मन्नू एक बहुत ही अच्छा चित्रकार है। पूरी रात अपने दिल को काबू में करने के लिए श्वेता की तस्वीर बना रहा था।

"श्वेता ओ श्वेता। अब तुम हमेशा के लिए यहां आ गई। अब तो हमारा मिलना रहेगा। लेकिन कब तक ये दोस्ती का रिश्ता बनाएंगे ? किसी न किसी दिन तुमसे अपने प्यार का इजहार तो करना ही है। जिस दिन तुम मेरी हुई, उस दिन के बाद तुम्हारा अकेलापन हमेशा के लिए खत्म। श्वेता तुम्हे अंदाजा नहीं कि हर पल तुम्हे पाने का जूनून बढ़ता जा रहा है। श्वेता बस एक बार मेरे प्यार को स्वीकार कर लो। अगर तुमने मेरे प्यार ठुकराया तो मैं वही मन्नू हूं जो मुड़कर भी तुम्हे नही देखेगा। फिर किसी जवान औरत को दिल देगा। भीमा को देखकर मैंने तय कर लिया कि मैं किसी जवान स्त्री को अपने साथ रखूंगा। जी भर के उसे प्यार करूंगा।"

मन्नू ने पेंटिंग बना ली। मन्नू को खासियत यह थी कि वो किसी भी महिला को लेकर उनके शरीर के आकार सहित अच्छे से पेंटिंग बना सकता है। पेंटिंग बनाते बनाते रात गुजर गई। मन्नू को नींद आने लगी। सोचा थोड़ी देर आराम कर ले। सुबह 5 बजे थे। सोचा श्वेता 10 बजे तक आ जाएगी। यही सोचकर वो सोने चला गया। घर के बाहर खटिया रखकर सोने चला गया। पेड़ के छाए पर सो रहा मुन्ना नही जानता था कि श्वेता सुबह 8 बजे उसके पास आकर खड़ी है। गहरी नींद में सो रहे मुन्ना ने नींद को श्वेता ने तोड़ दिया।

"उठिए मन्नू उठ जाइए।" श्वेता ने मन्नू को उठाने का प्रयास किया।

"उम्म्म सोने दो ना नटवर चाचा। उठा ऐसे रहे हो जैसे श्वेता आई हो।" मन्नू होश में नहीं था और वो श्वेता का नाम लिए जा रहा था।

मन्नू फिर से सोते हुए बोला "सोने दो चाचा। श्वेता आ जाएगी। तब से गहरी नींद में सो लेता हूं।"

"अरे मुन्ना उठो। मै आ गई। श्वेता ने जोर से हिलाकर मन्नू को उठाया।

मन्नू की आंखे खुली तो सामने श्वेता के खूबसूरत चेहरे को देखा। नीली साड़ी और काले रंग का sleveless ब्लाउस और खुले बाल में श्वेता कयामत लग रही थीं। मन्नू तो जैसे इन खुबसूरती में खो गया।

श्वेता ने मन्नू को हल्का सा धक्का देते हुए कहा "इतने सुबह आई तुमसे मिलने और तुम हो कि सो रहे हो। ठीक है सो जाओ। मैं चलती हूं।" श्वेता पीछे मुड़ी चलने को।

मनु ने पीछे से श्वेता का हाथ पकड़ा और बोला "माफ करदो माफ करदो। मेहरबानी करके मत जाओ।"

"कितने गंदे आदमी हो तुम। मैं कब से यहां आई हूं और तुम घोड़े बेचकर सो रहे हो।"

"मेरी गलती मेरी गलती। मुझे पांच मिनिट दो। मैं तैयार हो जाऊं। तब तक तुम अंदर आ जाओ।"

श्वेता मुंह बनाते हुए अंदर आई और बैठ गई। मनु दौड़ते हुए नहा धो लिया और तैयार हो गया। वापिस आया तो श्वेता का बिगड़ा हुआ मुंह देखा।

मन्नू श्वेता के पास आया और बोला "अभी भी गुस्सा आ रहा है ?"

श्वेता बोली "हां।"

मन्नू कान पकड़कर उठक बैठक करने लगा। मन्नू को उठक बैठक करता देख श्वेता हल्के से हंस दी और बोली "बहुत पागल हो तुम। चलो मैं माफ कर दिया।"

मन्नू बोला "सच्ची ?"

"मुच्ची।"

"तो फिर अच्छा हुआ। मै घबरा गया था।"

"अच्छा आज हम करेंगे क्या ?"

"चलो मेरे साथ आज मैं तुम्हे बाहर एक गुफा ले चलता हूं।"

"वहां क्या है ?"

"तुम चलो तो सही।"

दोनो जंगल के अंदर गुफा की तरफ चल दिए। मन्नू और श्वेता गुफा पहुंचे।

श्वेता पूछी "अंदर क्या मन्नू ?"

"अंदर एक छोटा सा घर है जिसमे मैंने पेंटिंग बनाई है।"

"तुम पेंटिंग बना लेते हो ?"

"हां।"

दोनो अंदर गए। वहां मन्नू के बनाए तस्वीरों को श्वेता ने देखा। को बहुत ही खूबसूरत था। ज्यादातर तस्वीरे महिलाओं को लेकर ही बना था। इन सभी तस्वीरों में से निशा की तस्वीर भी बनी थी। पूरे पांच पेंटिंग बना थी।

"निशा की पेंटिंग बीज बनाई तुमने ? बहुत खूबसूरत है।" श्वेता ने कहा।

"मैं आपकी भी तस्वीर बना सकता हूं। "

"सच में ? तो कब बनाओगे ?"

"जब तुम चाहो।"

"तो फिर जल्द से जल्द बनाओ।"

"ठीक है।"

दोनो ने खूब सारी बाते की। दोनो ने तलाब के पास भी बैठकर बातचीत की। दोनो वापिस घर आए।

"श्वेता आज हम साथ में खाना बनाएंगे।"

"हां ठीक है। लेकिन तुम्हारा रसोईघर कहां है ?"

"चलो दिखाता हूं।" मन्नू श्वेता को रसोईघर ले गया

"सुनी श्वेता मैं आता हूं।"

मन्नू अपने कमरे चला गया। वहां उसने कुछ पेंटिंग को बाहर निकाला जो निशा का था। जो नग्न अवस्था वाली पेंटिंग थी। दरअसल बात ये थी कि मन्नू निशा से प्यार करता था और करता भी है लेकिन भाभी होने की वजह से कुछ किया नहीं।

"निशा तुम न सही तो श्वेता हो सही। उसे मेरा जीवन साथी बनना होगा।"



निशा को पेंटिंग जो मन्नू ने बनाई



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Bahut hi badhiya update diya hai Hills bhai....
Nice and awesome update..
 
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kas1709

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मन्नू बहुत खुश है आज। आखिर उसे श्वेता के साथ पूरा दिन बिताने का मौका मिलेगा। वैसे एक बात बता दूं कि मन्नू के दिल में श्वेता बसने लगी। उसमे श्वेता को पाने का जूनून सवार होने लगा। कल से श्वेता के बारे में सोचकर खुश हो रहा था। खुद से कहने लगा "मन्नू श्वेता जिस दिन तेरी हुई न उस दिन के बाद तेरी किस्मत उल्टी हो जाएगी। एक खूबसूरत औरत को बाहों में मुझे अपना बुढ़ापा गुजरना है। मेरे भाई भीमा की तरह मुझे भी एक खूबसूरत जवान औरत मिल जाएगी।"

वैसे आपको एक बात बता दूं। मन्नू निशा को भी पसंद करता था। निशा उसकी भाभी है इसीलिए दूरी बना ली। इसीलिए वो हवेली में नही इस छोटे से घर में रहता था। मन्नू एक बहुत ही अच्छा चित्रकार है। पूरी रात अपने दिल को काबू में करने के लिए श्वेता की तस्वीर बना रहा था।

"श्वेता ओ श्वेता। अब तुम हमेशा के लिए यहां आ गई। अब तो हमारा मिलना रहेगा। लेकिन कब तक ये दोस्ती का रिश्ता बनाएंगे ? किसी न किसी दिन तुमसे अपने प्यार का इजहार तो करना ही है। जिस दिन तुम मेरी हुई, उस दिन के बाद तुम्हारा अकेलापन हमेशा के लिए खत्म। श्वेता तुम्हे अंदाजा नहीं कि हर पल तुम्हे पाने का जूनून बढ़ता जा रहा है। श्वेता बस एक बार मेरे प्यार को स्वीकार कर लो। अगर तुमने मेरे प्यार ठुकराया तो मैं वही मन्नू हूं जो मुड़कर भी तुम्हे नही देखेगा। फिर किसी जवान औरत को दिल देगा। भीमा को देखकर मैंने तय कर लिया कि मैं किसी जवान स्त्री को अपने साथ रखूंगा। जी भर के उसे प्यार करूंगा।"

मन्नू ने पेंटिंग बना ली। मन्नू को खासियत यह थी कि वो किसी भी महिला को लेकर उनके शरीर के आकार सहित अच्छे से पेंटिंग बना सकता है। पेंटिंग बनाते बनाते रात गुजर गई। मन्नू को नींद आने लगी। सोचा थोड़ी देर आराम कर ले। सुबह 5 बजे थे। सोचा श्वेता 10 बजे तक आ जाएगी। यही सोचकर वो सोने चला गया। घर के बाहर खटिया रखकर सोने चला गया। पेड़ के छाए पर सो रहा मुन्ना नही जानता था कि श्वेता सुबह 8 बजे उसके पास आकर खड़ी है। गहरी नींद में सो रहे मुन्ना ने नींद को श्वेता ने तोड़ दिया।

"उठिए मन्नू उठ जाइए।" श्वेता ने मन्नू को उठाने का प्रयास किया।

"उम्म्म सोने दो ना नटवर चाचा। उठा ऐसे रहे हो जैसे श्वेता आई हो।" मन्नू होश में नहीं था और वो श्वेता का नाम लिए जा रहा था।

मन्नू फिर से सोते हुए बोला "सोने दो चाचा। श्वेता आ जाएगी। तब से गहरी नींद में सो लेता हूं।"

"अरे मुन्ना उठो। मै आ गई। श्वेता ने जोर से हिलाकर मन्नू को उठाया।

मन्नू की आंखे खुली तो सामने श्वेता के खूबसूरत चेहरे को देखा। नीली साड़ी और काले रंग का sleveless ब्लाउस और खुले बाल में श्वेता कयामत लग रही थीं। मन्नू तो जैसे इन खुबसूरती में खो गया।

श्वेता ने मन्नू को हल्का सा धक्का देते हुए कहा "इतने सुबह आई तुमसे मिलने और तुम हो कि सो रहे हो। ठीक है सो जाओ। मैं चलती हूं।" श्वेता पीछे मुड़ी चलने को।

मनु ने पीछे से श्वेता का हाथ पकड़ा और बोला "माफ करदो माफ करदो। मेहरबानी करके मत जाओ।"

"कितने गंदे आदमी हो तुम। मैं कब से यहां आई हूं और तुम घोड़े बेचकर सो रहे हो।"

"मेरी गलती मेरी गलती। मुझे पांच मिनिट दो। मैं तैयार हो जाऊं। तब तक तुम अंदर आ जाओ।"

श्वेता मुंह बनाते हुए अंदर आई और बैठ गई। मनु दौड़ते हुए नहा धो लिया और तैयार हो गया। वापिस आया तो श्वेता का बिगड़ा हुआ मुंह देखा।

मन्नू श्वेता के पास आया और बोला "अभी भी गुस्सा आ रहा है ?"

श्वेता बोली "हां।"

मन्नू कान पकड़कर उठक बैठक करने लगा। मन्नू को उठक बैठक करता देख श्वेता हल्के से हंस दी और बोली "बहुत पागल हो तुम। चलो मैं माफ कर दिया।"

मन्नू बोला "सच्ची ?"

"मुच्ची।"

"तो फिर अच्छा हुआ। मै घबरा गया था।"

"अच्छा आज हम करेंगे क्या ?"

"चलो मेरे साथ आज मैं तुम्हे बाहर एक गुफा ले चलता हूं।"

"वहां क्या है ?"

"तुम चलो तो सही।"

दोनो जंगल के अंदर गुफा की तरफ चल दिए। मन्नू और श्वेता गुफा पहुंचे।

श्वेता पूछी "अंदर क्या मन्नू ?"

"अंदर एक छोटा सा घर है जिसमे मैंने पेंटिंग बनाई है।"

"तुम पेंटिंग बना लेते हो ?"

"हां।"

दोनो अंदर गए। वहां मन्नू के बनाए तस्वीरों को श्वेता ने देखा। को बहुत ही खूबसूरत था। ज्यादातर तस्वीरे महिलाओं को लेकर ही बना था। इन सभी तस्वीरों में से निशा की तस्वीर भी बनी थी। पूरे पांच पेंटिंग बना थी।

"निशा की पेंटिंग बीज बनाई तुमने ? बहुत खूबसूरत है।" श्वेता ने कहा।

"मैं आपकी भी तस्वीर बना सकता हूं। "

"सच में ? तो कब बनाओगे ?"

"जब तुम चाहो।"

"तो फिर जल्द से जल्द बनाओ।"

"ठीक है।"

दोनो ने खूब सारी बाते की। दोनो ने तलाब के पास भी बैठकर बातचीत की। दोनो वापिस घर आए।

"श्वेता आज हम साथ में खाना बनाएंगे।"

"हां ठीक है। लेकिन तुम्हारा रसोईघर कहां है ?"

"चलो दिखाता हूं।" मन्नू श्वेता को रसोईघर ले गया

"सुनी श्वेता मैं आता हूं।"

मन्नू अपने कमरे चला गया। वहां उसने कुछ पेंटिंग को बाहर निकाला जो निशा का था। जो नग्न अवस्था वाली पेंटिंग थी। दरअसल बात ये थी कि मन्नू निशा से प्यार करता था और करता भी है लेकिन भाभी होने की वजह से कुछ किया नहीं।

"निशा तुम न सही तो श्वेता हो सही। उसे मेरा जीवन साथी बनना होगा।"



निशा को पेंटिंग जो मन्नू ने बनाई



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Nice update.....
 
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मन्नू अपने कमरे में निशा की नंगी तस्वीर को अलमारी में रख दिया। बाहर श्वेता चिल्लाते हुए बोली "अरे ओ मुन्ना। कहा गए हो? मैं रसोईघर में तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।"

"आया श्वेता।"

मन्नू रसोईघर में घुसा। दोनो नीचे बैठकर खाना बनाने लगे। मन्नू सब्जी काट रहा था और श्वेता आटा गूथ रही थी। मन्नू श्वेता को आता घुंठते हुए देख रहा था। काम करते वक्त clevage दिख रहा था लेकिन श्वेता को पता नहीं था। आटा गूथ ते वक्त कमर पर साड़ी का पल्लू खोस दी। मन्नू लगातार clevage को घूर रहा था। श्वेता इस बात से अनजान थी की एक काला सा बूढ़ा आदमी उसके लिए मर रहा था। वो इस बात से अनजान थी कि wohi बुढ़ा आदमी उसकी मोहोब्बत की आग में जल रहा था।

श्वेता की नजर मन्नू पर गई जो उसे घूर रहा था। श्वेता ने पास में बड़े बेलन से मन्नू को हल्के से मारा और कहा "सब्जी काटो वरना भूखा मरेंगे दोनो।"

"अरे हां। बस अभी हो जाएगा काम।"

श्वेता पूछी "आप अकेले कैसे रह लेते है यहां पर ? और आपके बीवी बच्चे नही है क्या ?"

"नही। मेरी अब तक शादी ही नहीं हुई।"

दरअसल बात यह थी कि गरीबी और मजदूरी जीवन से मन्नू को आमदनी इतनी कम थी कि उसमे उसी का खर्चा हो पाता था। इसीलिए तो उसकी शादी न हो सकी।

"क्यों शादी नही की?"

"श्वेता मेरे पास पैसे नहीं थे। तो कैसे करता शादी ?"

"अब तो आपो पास पैसे है न ? दो का खर्चा अब आप कर सकते है न। फिर अब कर लीजिए शादी।" श्वेता ने हल्के से छेड़ते हुए कहा।

"कोई मिलनी भी तो चाहिए। अब लड़की कहां से मुझे मिलेगी कोई औरत ?"

"अच्छा ये बताइए कि कैसी औरत चाहिए आपको ?"

"मुझे कोई जवान और बेहद खूबसूरत औरत से शादी करना है। एल्किन इस बुढ़ापे में कोई नहीं आएगी।"

वैसे श्वेता थोड़ा खुले विचारों वाली औरत थी। और मजाक भी करती थी। तो बस मन्नू की फिरकी लेते हुए बोली "चलो तो आपके कहने का मतलब है खूबसूरत और जवान औरत यानी मेरी जैसी ?"

"हां। बिलकुल सही।"

"मेरी जैसी अभी आपको मिलना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं।"


मन्नू ने भी हल्के से मजाक करने को सोचा और कहा " वैसे तुम क्यों नहीं बन जाती मेरी पत्नी ?"

श्वेता जोर जोर से हंसने लगी और बोली "अच्छा तो अब आप मुझपर डोरे डाल रहे है ?"

मन्नू आंख मरते हुए कहा "मैं तो डाल चुका हूं। अब जल्दी से हां बोल दो। अभी शादी कर ले ?"

श्वेता को मजा आ रहा था एक दूसरे को छेड़ने में।

"हाय तौबा। इतनी जल्दी ? अब तो पक्का यकीन हो गया कि तुम मुझपर डोरे डाल रहे हो।"

"सिर्फ डोरे नही डाल रहा। अब तो पक्का तुमसे शादी करने का इरादा बना लिया।"

"लेकिन शादी करेंगे कहा ?"

"तुम कहो तो अभी चल दे मन्दिर?"

"इतना उतावलापन अच्छा नहीं। शादी का मामला है। मुझे वक्त चाहिए। वैसे तुमसे शादी करने में मुझे कोई हर्ज नहीं। तुम खेती करो और में काम करूंगी।"

"पूरे दिन खेती और काम करेंगे तो वक्त हमे कैसे मिलेगा ?"

"किस चीज के लिए वक्त चाहिए ?"

"प्यार करने का।" मन्नू ने आंख मरते हुए कहा।

"अब क्या इस उमर में प्यार करेंगे आप ?"

"लो प्यार की कोई उम्र होती है ?"

"लेकिन प्यार क्यों करेंगे आप ?"

"जब तुम इतनी खूबसूरत औरत मेरी बीवी बनेगी तो उसे ऐसे जाने दूंगा।पहले तो खूब प्यार करूंगा और......."

"और क्या ?"

"और फिर अपना परिवार बनाऊंगा। आखिर बच्चे भी तो चाहिए मुझे।"

श्वेता हंसने लगी और बोली "लगता है तुम्हे आशिकी का बुखार चढ़ गया। मुझे तुमसे बचकर रहना होगा।पता नही कब तुम मुझपर अपना दिल अपना दिल दे बैठो।"

"दिल दे दिया। अब जल्दी से तुम्हे अपनी बीवी बना लूं।"

"हाय तौबा इस आशिक से मुझे बचाओ। वरना ये मुझे चुराकर ले जाएगा।"

"तो अब से तुम्हे जानू कहकर बुलाऊंगा।"

"और मैं तुम्हे जानेमन ?"

"बुलाओ न। वैसे भी हमारी शादी जो होनेवाली है।"

"आप भी ना मन्नू। पागल है आप पागल।"

"तुम्हारे प्यार में मेरी जान।"

"हां मेरे जानेमन। अब लगता है इस पागल को झेलना ही पड़ेगा।"

"I Love you श्वेता।"

"I hate you मेरे बदमाश आशिक।"

दोनो ने खूब मजाक किया और साथ में खाना खाया।

श्वेता को बस मजाक मस्ती कर रही थी और मन्नू भी। मन्नू जानता था कि श्वेता कभी भी उसके जैसे काले बूढ़े से शादी नहीं करेगी। काम से कम इस मजाक मस्ती की आड़ में जिंदगी के कुछ अच्छे लम्हे को जी लेगा। मन्नू श्वेता का कभी भी बुरा नही चाहेगा और न कभी गलत फायदा उठाएगा उसकी दोस्ती का। वो तो बस श्वेता में अपनी अच्छी दोस्त को देख रहा है। ऐसा दोस्त जो अकेलेपन में उसका साथ दे। एक पवित्र मैत्री संबंध।

कहना खाने के बाद दोनो साथ में अलग अलग कमरे में आराम करने लगे। मन्नू अपने कमरे में निशा के दूसरे नग्न तस्वीर को देखने लगा और बोला "निशा प्यार जब होता है तो दुनिया अच्छी लगने लगती है। मैं जानता हूं की तुम भीमा की पत्नी हो लेकिन आज भी मेरे दिल में तुम्हारे लिए मोहोब्नत है। तुमसे दूर रहने की वजह मेरा प्यार है। जब भी तुम्हारे पास आता हूं तो जैसे तुम्हे बाहों में भरने का मन करता है। मुझे याद है जब मैंने तुम्हे पीछे साल तलाब में नहाते हुए देखा। तुम इस बात से अनजान थी कि झाड़ियों में छुपकर मै तुम्हे नहाते देख रहा था। क्या यौवन है तुम्हारा। शरीर पर एक भी कपड़े न थे। सोने सी चमक है तुम्हारे जिस्म में। तुम्हारे एक एक अंग को मैने देखा। सच कहता हूं निशा, जैसे तुम्हे बाहों में भरने का मन हो रहा था। तुम जानती नही कि उस दिन से तुमने भीमा के साथ मुझे भी अपने दीवाना बना दिया। तुम्हारे नग्न शरीर मेरे दिमाग में इस कदर बस गया की ये नग्न तस्वीर पूरी तरह से वैसे ही बनाया। निशा बस एक बार तुम्हारे से साथ रात बिता सकता लेकिन अब जाने दो। श्वेता ही शायद मेरी जीवनसाथी बन जाए।"

शाम हुई और मन्नू को अलविदा कहकर श्वेता अपने घर चली गई। मन्नू आज बड़े मुश्किल दौर से गुजर रहा था। श्वेता से इस कसर मोहब्बत हो गई कि अब उसके बिना एक एक पल नही कट रहा था। रात तक ये बैचेनी इस कदर बढ़ गई कि उसने जेब से सस्ता मोबाइल निकाला और श्वेता को कॉल कर दिया। श्वेता उस वक्त अकेले छत पर थी। मन्नू का कॉल देखते ही चेहरे पर अलग सी मुस्कान आ गई।

"हेलो।" श्वेता ने मीठे स्वर में कहा।

"हेलो जानू।" मन्नू ने छेड़ते हुए कहा।

"हां जानेमन।" श्वेता हंस दी।

"क्या कर रही हो ?" मन्नू ने पूछा।

"कुछ नही। अकेले छत पर हूं। तुम क्या कर रहे हो ?"

"बस तुम्हे याद। अपनी जानू को याद।"

"अरे ओ मनचले आशिक। इतना भी याद न करो। वरना पागल हो जाओगे मेरी याद में।" श्वेता इतना बोलते ही फोन को साइड में रखी और दो सेकंड के लिए हंसने लगी।

"पागल तो हूं। तुमसे मिलने का दिल कर रहा है।"

"इतनी बेताबी भी ठीक नहीं। क्या इतना पागल कर दिया मैंने तुम्हे ?"

"हां। अब मैंने मोहब्बत की है तो निभानी पड़ेगी। कल रविवार है।"

"हां तो ?" श्वेता ने पूछा।

"तो जरा मेरे दिल के बुरे हाल को ठीक कर दो।"

"वो कैसे ?"

"अपने आशिक के घर आ जाओ।"

"नही नही। इस पागल आशिक से मिलने कल नही आऊंगी।"

"तो मैं आ जाऊं ? कहो तो अभी आ जाऊं ?"

"पागल हो क्या ? ऐसे कैसे ? इतनी रात को ?"

"हां। और वैसे भी निशा, बच्चे और भीमा बाहर गए है न। एक हफ्ते के लिए। अकेले क्या करोगी ?"

"पागल हो तुम पागल। मुझसे मिलने रात को ?"

"अगर आया तो क्या कहोगी ?"

"पागल कहूंगी तुम्हे। बाते भी तो सही करो। कोई रात को आएगा क्या मिलने ?"

"अपने छत के किनारे आओ। मैं आ गया।"

"क्या ?" श्वेता दौड़ते हुए छत के किनारे आई तो देखा अंधेरे आई बीच मन्नू खड़ा था।

"तुम पागल हो गए हो क्या ? इतनी रात यहां क्या कर रहे हो ?" श्वेता ने हैरान होकर पूछा।

"तुमसे मिलने आया। चलो नीचे आओ।"

"नही बिलकुल नहीं। मुझे सोने जाना है।"

"मिलने तो आना पड़ेगा मुझसे।" मन्नू ने कहा।

"नही आऊंगी। क्या कर लोगे ?"

"पूरी रात खड़ा रहूंगा।"

"ऑफ़ हो। आ रही हूं बाबा।"

"अच्छा सुनो ना। तुम्हारे लिए कुछ प्लान बनाया है। जल्दी से साड़ी में आओ वो भी sleveless साड़ी में।"

"पर क्यों ?"

"क्यों का जवाब बाद में। जल्दी से आओ साड़ी में।"

श्वेता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। चुप चाप साड़ी पहनी और दबे पांव से घर के बाहर गई। बाहर मन्नू खड़ा था।

"ये क्या ज़िद है ? इतनी रात क्यों बुलाया नीचे ?"

मन्नू ने श्वेता का हाथ पकड़ा और ले जाने लगा।

"ये क्या कर रहे हो मन्नू ? छोड़ो मेरा हाथ। कहा ले जा रहे हो ?"

"घर ले जा रहा हूं।"

"लेकिन क्यों ?"

"बताता हूं।" मन्नू थोड़ी दूर श्वेता को अपने घर ले आया। श्वेता ने देखा तो घर के अंदर पेंटिंग के समान थे। और एक कुर्सी थी।

"आज तुम्हारी तस्वीर बनाऊंगा।"

"मेरी तस्वीर ? वो तो कल बना सकते थे। अभी इतनी रात को क्यों ?"

"ताकि रात को कोई हमे परेशान न कर सके। वैसे भी तुमने कहा था ना कि तुम्हारी पेंटिंग मैं बनाऊं।"

"पागल हो गए हो तुम। चलो बनाओ। लेकिन एक शर्त पर।"

"कैसी शर्त।"

"तुम्हारा कान पकड़कर खींचना है।" श्वेता ने मन्नू का जोर से कान पकड़कर खींचा।"

"Aaahhh ये क्या कर रही हो। छोड़ो दर्द हो रहा है।" मन्नू ने चीखते हुए कहा।

"ये कान पकड़ा है तुम्हे सजा देने के लिए। इतनी रात मुझे अपने घर लेकर आए। न सो खुद रहे हो और न मुझे सोने दे रहे हो।"

"कान तुमने पकड़ लिया। अब घुसा शांत ?"

श्वेता हंसते हुए बोली "हे भगवान इस पागल को क्या कहूं ? तुम सच में पागल हो। चलो अब करो जो करना चाहते हो।"

आज बहुत सालो बाद श्वेता को किसी ने हसाया, गुदगुदाया और adventure करवाया। श्वेता को मन्नू में एक नजदीकी दोस्ती दिखी। वो बस इस लम्हे का आनंद लेना चाहती है। जहां वो हंसे, खुश रहे और बाहर कुदरती सौंदर्य में खोती रहे।

मन्नू ने श्वेता की पेंटिंग बनाने लगा। पेंटिंग बनाते बनाते रात 10 बजे से 3 कब बज गए पता न चला।

श्वेता बोली "अच्छा मन्नू बहुत देर हो गई। अब मुझे कहीं घुमाने ले जाओ वरना मैं चली जाऊंगी अपने घर।"

"तो फिर आज तुम्हे झरने के पास ले चलता हूं। ठंडा ठंडा पानी और भीनी भीनी हवाओं का आनंद हम लेंगे।"

मन्नू श्वेता को लेकर जंगोर के पास झरने में ले गया। चांदनी रात में जैसे स्वर्ग सा लग रहा था झरना।

"ओह मन्नूतना खूबसूरत है ये जगह।"

मन्नू झरने के किनारे झूले पर ले गया श्वेता को। श्वेता को झूला झूलने लगा। श्वेता झूले का मजा ले रही थी।

"ओह मन्नू इस खूबसूरत जगह की बात ही अलग है। बहुत खूबसूरत है ये जगह।"

"तुम्हारे जितना खूबसूरत नही।" मन्नू ने श्वेता को पीछे से देखते हुए कहा।

श्वेता ने झूला रोका और पीछे खड़े मन्नू की तरफ मुड़ी और बोली "तुम तो शुरू हो गए फिर से।"

"अब क्या सच बोलना भी गुनाह है ? श्वेता तुमसे प्यार करने जो लगा हूं मैं।"


"शैतान हो तुम शैतान। मुझे छेड़ते रहते हो तुम।"

"ये शैतानी चलती रहेगी। मुझे शैतान भी तो तुम्हारी खुबसूरती ने बनाया।"

"हम्म् इसका मतलब अब इस शैतान से मुझे कोई नही बचा सकता ?" श्वेता ने चिढ़ाते हुए पूछा।

"नही बचा सकता कोई।"

"हटो बदमाश।" श्वेता नदी से बहते झरने को देखते देखते किनारे पेड़ के नीचे लेट गई। मन्नू भी श्वेता को बगल लेट गया।

"मन्नू मुझे इस जगह से प्यार हो गया। कुछ देर मुझे इस जगह को गोद में सोना है।"

"मैं भी बगल में लेट जाऊं ?"

"हां बिलकुल।"

दोनो साथ में लेटकर झरना, नदी और चांद को देख रहे थे।

"श्वेता मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।"

"मुझे भी।"

"वैसे शादी के बाद हम एक ही बिस्तर पर होंगे। इस जमीन पर नहीं।"

"Stop it मन्नू। तुम तो शादी के पीछे पड़ गए। ऐसा लग रहा है की तुम मुझे यहां शादी के लिए ले आए हो।" श्वेता हंसते हुए बोली।

"शादी तो करनी है तुमसे।" मन्नू ने हल्के से श्वेता का हाथ पकड़ लिया।

श्वेता बोली "तुम अब हाथ भी पकड़ने लगे। सच में मन्नू तुम तो बड़े तेज़ हो। इस गांव में पता नही मेरा एक दीवाना भी है।"

"I love you shweta." दोनो शांत वातावरण में आंखे बंद करके एक दूसरे का हाथ थामकर सो गए।


निशा का नदी में नहानेवाली पेंटिंग



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मन्नू अपने कमरे में निशा की नंगी तस्वीर को अलमारी में रख दिया। बाहर श्वेता चिल्लाते हुए बोली "अरे ओ मुन्ना। कहा गए हो? मैं रसोईघर में तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।"

"आया श्वेता।"

मन्नू रसोईघर में घुसा। दोनो नीचे बैठकर खाना बनाने लगे। मन्नू सब्जी काट रहा था और श्वेता आटा गूथ रही थी। मन्नू श्वेता को आता घुंठते हुए देख रहा था। काम करते वक्त clevage दिख रहा था लेकिन श्वेता को पता नहीं था। आटा गूथ ते वक्त कमर पर साड़ी का पल्लू खोस दी। मन्नू लगातार clevage को घूर रहा था। श्वेता इस बात से अनजान थी की एक काला सा बूढ़ा आदमी उसके लिए मर रहा था। वो इस बात से अनजान थी कि wohi बुढ़ा आदमी उसकी मोहोब्बत की आग में जल रहा था।

श्वेता की नजर मन्नू पर गई जो उसे घूर रहा था। श्वेता ने पास में बड़े बेलन से मन्नू को हल्के से मारा और कहा "सब्जी काटो वरना भूखा मरेंगे दोनो।"

"अरे हां। बस अभी हो जाएगा काम।"

श्वेता पूछी "आप अकेले कैसे रह लेते है यहां पर ? और आपके बीवी बच्चे नही है क्या ?"

"नही। मेरी अब तक शादी ही नहीं हुई।"

दरअसल बात यह थी कि गरीबी और मजदूरी जीवन से मन्नू को आमदनी इतनी कम थी कि उसमे उसी का खर्चा हो पाता था। इसीलिए तो उसकी शादी न हो सकी।

"क्यों शादी नही की?"

"श्वेता मेरे पास पैसे नहीं थे। तो कैसे करता शादी ?"

"अब तो आपो पास पैसे है न ? दो का खर्चा अब आप कर सकते है न। फिर अब कर लीजिए शादी।" श्वेता ने हल्के से छेड़ते हुए कहा।

"कोई मिलनी भी तो चाहिए। अब लड़की कहां से मुझे मिलेगी कोई औरत ?"

"अच्छा ये बताइए कि कैसी औरत चाहिए आपको ?"

"मुझे कोई जवान और बेहद खूबसूरत औरत से शादी करना है। एल्किन इस बुढ़ापे में कोई नहीं आएगी।"

वैसे श्वेता थोड़ा खुले विचारों वाली औरत थी। और मजाक भी करती थी। तो बस मन्नू की फिरकी लेते हुए बोली "चलो तो आपके कहने का मतलब है खूबसूरत और जवान औरत यानी मेरी जैसी ?"

"हां। बिलकुल सही।"

"मेरी जैसी अभी आपको मिलना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं।"


मन्नू ने भी हल्के से मजाक करने को सोचा और कहा " वैसे तुम क्यों नहीं बन जाती मेरी पत्नी ?"

श्वेता जोर जोर से हंसने लगी और बोली "अच्छा तो अब आप मुझपर डोरे डाल रहे है ?"

मन्नू आंख मरते हुए कहा "मैं तो डाल चुका हूं। अब जल्दी से हां बोल दो। अभी शादी कर ले ?"

श्वेता को मजा आ रहा था एक दूसरे को छेड़ने में।

"हाय तौबा। इतनी जल्दी ? अब तो पक्का यकीन हो गया कि तुम मुझपर डोरे डाल रहे हो।"

"सिर्फ डोरे नही डाल रहा। अब तो पक्का तुमसे शादी करने का इरादा बना लिया।"

"लेकिन शादी करेंगे कहा ?"

"तुम कहो तो अभी चल दे मन्दिर?"

"इतना उतावलापन अच्छा नहीं। शादी का मामला है। मुझे वक्त चाहिए। वैसे तुमसे शादी करने में मुझे कोई हर्ज नहीं। तुम खेती करो और में काम करूंगी।"

"पूरे दिन खेती और काम करेंगे तो वक्त हमे कैसे मिलेगा ?"

"किस चीज के लिए वक्त चाहिए ?"

"प्यार करने का।" मन्नू ने आंख मरते हुए कहा।

"अब क्या इस उमर में प्यार करेंगे आप ?"

"लो प्यार की कोई उम्र होती है ?"

"लेकिन प्यार क्यों करेंगे आप ?"

"जब तुम इतनी खूबसूरत औरत मेरी बीवी बनेगी तो उसे ऐसे जाने दूंगा।पहले तो खूब प्यार करूंगा और......."

"और क्या ?"

"और फिर अपना परिवार बनाऊंगा। आखिर बच्चे भी तो चाहिए मुझे।"

श्वेता हंसने लगी और बोली "लगता है तुम्हे आशिकी का बुखार चढ़ गया। मुझे तुमसे बचकर रहना होगा।पता नही कब तुम मुझपर अपना दिल अपना दिल दे बैठो।"

"दिल दे दिया। अब जल्दी से तुम्हे अपनी बीवी बना लूं।"

"हाय तौबा इस आशिक से मुझे बचाओ। वरना ये मुझे चुराकर ले जाएगा।"

"तो अब से तुम्हे जानू कहकर बुलाऊंगा।"

"और मैं तुम्हे जानेमन ?"

"बुलाओ न। वैसे भी हमारी शादी जो होनेवाली है।"

"आप भी ना मन्नू। पागल है आप पागल।"

"तुम्हारे प्यार में मेरी जान।"

"हां मेरे जानेमन। अब लगता है इस पागल को झेलना ही पड़ेगा।"

"I Love you श्वेता।"

"I hate you मेरे बदमाश आशिक।"

दोनो ने खूब मजाक किया और साथ में खाना खाया।

श्वेता को बस मजाक मस्ती कर रही थी और मन्नू भी। मन्नू जानता था कि श्वेता कभी भी उसके जैसे काले बूढ़े से शादी नहीं करेगी। काम से कम इस मजाक मस्ती की आड़ में जिंदगी के कुछ अच्छे लम्हे को जी लेगा। मन्नू श्वेता का कभी भी बुरा नही चाहेगा और न कभी गलत फायदा उठाएगा उसकी दोस्ती का। वो तो बस श्वेता में अपनी अच्छी दोस्त को देख रहा है। ऐसा दोस्त जो अकेलेपन में उसका साथ दे। एक पवित्र मैत्री संबंध।

कहना खाने के बाद दोनो साथ में अलग अलग कमरे में आराम करने लगे। मन्नू अपने कमरे में निशा के दूसरे नग्न तस्वीर को देखने लगा और बोला "निशा प्यार जब होता है तो दुनिया अच्छी लगने लगती है। मैं जानता हूं की तुम भीमा की पत्नी हो लेकिन आज भी मेरे दिल में तुम्हारे लिए मोहोब्नत है। तुमसे दूर रहने की वजह मेरा प्यार है। जब भी तुम्हारे पास आता हूं तो जैसे तुम्हे बाहों में भरने का मन करता है। मुझे याद है जब मैंने तुम्हे पीछे साल तलाब में नहाते हुए देखा। तुम इस बात से अनजान थी कि झाड़ियों में छुपकर मै तुम्हे नहाते देख रहा था। क्या यौवन है तुम्हारा। शरीर पर एक भी कपड़े न थे। सोने सी चमक है तुम्हारे जिस्म में। तुम्हारे एक एक अंग को मैने देखा। सच कहता हूं निशा, जैसे तुम्हे बाहों में भरने का मन हो रहा था। तुम जानती नही कि उस दिन से तुमने भीमा के साथ मुझे भी अपने दीवाना बना दिया। तुम्हारे नग्न शरीर मेरे दिमाग में इस कदर बस गया की ये नग्न तस्वीर पूरी तरह से वैसे ही बनाया। निशा बस एक बार तुम्हारे से साथ रात बिता सकता लेकिन अब जाने दो। श्वेता ही शायद मेरी जीवनसाथी बन जाए।"

शाम हुई और मन्नू को अलविदा कहकर श्वेता अपने घर चली गई। मन्नू आज बड़े मुश्किल दौर से गुजर रहा था। श्वेता से इस कसर मोहब्बत हो गई कि अब उसके बिना एक एक पल नही कट रहा था। रात तक ये बैचेनी इस कदर बढ़ गई कि उसने जेब से सस्ता मोबाइल निकाला और श्वेता को कॉल कर दिया। श्वेता उस वक्त अकेले छत पर थी। मन्नू का कॉल देखते ही चेहरे पर अलग सी मुस्कान आ गई।

"हेलो।" श्वेता ने मीठे स्वर में कहा।

"हेलो जानू।" मन्नू ने छेड़ते हुए कहा।

"हां जानेमन।" श्वेता हंस दी।

"क्या कर रही हो ?" मन्नू ने पूछा।

"कुछ नही। अकेले छत पर हूं। तुम क्या कर रहे हो ?"

"बस तुम्हे याद। अपनी जानू को याद।"

"अरे ओ मनचले आशिक। इतना भी याद न करो। वरना पागल हो जाओगे मेरी याद में।" श्वेता इतना बोलते ही फोन को साइड में रखी और दो सेकंड के लिए हंसने लगी।

"पागल तो हूं। तुमसे मिलने का दिल कर रहा है।"

"इतनी बेताबी भी ठीक नहीं। क्या इतना पागल कर दिया मैंने तुम्हे ?"

"हां। अब मैंने मोहब्बत की है तो निभानी पड़ेगी। कल रविवार है।"

"हां तो ?" श्वेता ने पूछा।

"तो जरा मेरे दिल के बुरे हाल को ठीक कर दो।"

"वो कैसे ?"

"अपने आशिक के घर आ जाओ।"

"नही नही। इस पागल आशिक से मिलने कल नही आऊंगी।"

"तो मैं आ जाऊं ? कहो तो अभी आ जाऊं ?"

"पागल हो क्या ? ऐसे कैसे ? इतनी रात को ?"

"हां। और वैसे भी निशा, बच्चे और भीमा बाहर गए है न। एक हफ्ते के लिए। अकेले क्या करोगी ?"

"पागल हो तुम पागल। मुझसे मिलने रात को ?"

"अगर आया तो क्या कहोगी ?"

"पागल कहूंगी तुम्हे। बाते भी तो सही करो। कोई रात को आएगा क्या मिलने ?"

"अपने छत के किनारे आओ। मैं आ गया।"

"क्या ?" श्वेता दौड़ते हुए छत के किनारे आई तो देखा अंधेरे आई बीच मन्नू खड़ा था।

"तुम पागल हो गए हो क्या ? इतनी रात यहां क्या कर रहे हो ?" श्वेता ने हैरान होकर पूछा।

"तुमसे मिलने आया। चलो नीचे आओ।"

"नही बिलकुल नहीं। मुझे सोने जाना है।"

"मिलने तो आना पड़ेगा मुझसे।" मन्नू ने कहा।

"नही आऊंगी। क्या कर लोगे ?"

"पूरी रात खड़ा रहूंगा।"

"ऑफ़ हो। आ रही हूं बाबा।"

"अच्छा सुनो ना। तुम्हारे लिए कुछ प्लान बनाया है। जल्दी से साड़ी में आओ वो भी sleveless साड़ी में।"

"पर क्यों ?"

"क्यों का जवाब बाद में। जल्दी से आओ साड़ी में।"

श्वेता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। चुप चाप साड़ी पहनी और दबे पांव से घर के बाहर गई। बाहर मन्नू खड़ा था।

"ये क्या ज़िद है ? इतनी रात क्यों बुलाया नीचे ?"

मन्नू ने श्वेता का हाथ पकड़ा और ले जाने लगा।

"ये क्या कर रहे हो मन्नू ? छोड़ो मेरा हाथ। कहा ले जा रहे हो ?"

"घर ले जा रहा हूं।"

"लेकिन क्यों ?"

"बताता हूं।" मन्नू थोड़ी दूर श्वेता को अपने घर ले आया। श्वेता ने देखा तो घर के अंदर पेंटिंग के समान थे। और एक कुर्सी थी।

"आज तुम्हारी तस्वीर बनाऊंगा।"

"मेरी तस्वीर ? वो तो कल बना सकते थे। अभी इतनी रात को क्यों ?"

"ताकि रात को कोई हमे परेशान न कर सके। वैसे भी तुमने कहा था ना कि तुम्हारी पेंटिंग मैं बनाऊं।"

"पागल हो गए हो तुम। चलो बनाओ। लेकिन एक शर्त पर।"

"कैसी शर्त।"

"तुम्हारा कान पकड़कर खींचना है।" श्वेता ने मन्नू का जोर से कान पकड़कर खींचा।"

"Aaahhh ये क्या कर रही हो। छोड़ो दर्द हो रहा है।" मन्नू ने चीखते हुए कहा।

"ये कान पकड़ा है तुम्हे सजा देने के लिए। इतनी रात मुझे अपने घर लेकर आए। न सो खुद रहे हो और न मुझे सोने दे रहे हो।"

"कान तुमने पकड़ लिया। अब घुसा शांत ?"

श्वेता हंसते हुए बोली "हे भगवान इस पागल को क्या कहूं ? तुम सच में पागल हो। चलो अब करो जो करना चाहते हो।"

आज बहुत सालो बाद श्वेता को किसी ने हसाया, गुदगुदाया और adventure करवाया। श्वेता को मन्नू में एक नजदीकी दोस्ती दिखी। वो बस इस लम्हे का आनंद लेना चाहती है। जहां वो हंसे, खुश रहे और बाहर कुदरती सौंदर्य में खोती रहे।

मन्नू ने श्वेता की पेंटिंग बनाने लगा। पेंटिंग बनाते बनाते रात 10 बजे से 3 कब बज गए पता न चला।

श्वेता बोली "अच्छा मन्नू बहुत देर हो गई। अब मुझे कहीं घुमाने ले जाओ वरना मैं चली जाऊंगी अपने घर।"

"तो फिर आज तुम्हे झरने के पास ले चलता हूं। ठंडा ठंडा पानी और भीनी भीनी हवाओं का आनंद हम लेंगे।"

मन्नू श्वेता को लेकर जंगोर के पास झरने में ले गया। चांदनी रात में जैसे स्वर्ग सा लग रहा था झरना।

"ओह मन्नूतना खूबसूरत है ये जगह।"

मन्नू झरने के किनारे झूले पर ले गया श्वेता को। श्वेता को झूला झूलने लगा। श्वेता झूले का मजा ले रही थी।

"ओह मन्नू इस खूबसूरत जगह की बात ही अलग है। बहुत खूबसूरत है ये जगह।"

"तुम्हारे जितना खूबसूरत नही।" मन्नू ने श्वेता को पीछे से देखते हुए कहा।

श्वेता ने झूला रोका और पीछे खड़े मन्नू की तरफ मुड़ी और बोली "तुम तो शुरू हो गए फिर से।"

"अब क्या सच बोलना भी गुनाह है ? श्वेता तुमसे प्यार करने जो लगा हूं मैं।"


"शैतान हो तुम शैतान। मुझे छेड़ते रहते हो तुम।"

"ये शैतानी चलती रहेगी। मुझे शैतान भी तो तुम्हारी खुबसूरती ने बनाया।"

"हम्म् इसका मतलब अब इस शैतान से मुझे कोई नही बचा सकता ?" श्वेता ने चिढ़ाते हुए पूछा।

"नही बचा सकता कोई।"

"हटो बदमाश।" श्वेता नदी से बहते झरने को देखते देखते किनारे पेड़ के नीचे लेट गई। मन्नू भी श्वेता को बगल लेट गया।

"मन्नू मुझे इस जगह से प्यार हो गया। कुछ देर मुझे इस जगह को गोद में सोना है।"

"मैं भी बगल में लेट जाऊं ?"

"हां बिलकुल।"

दोनो साथ में लेटकर झरना, नदी और चांद को देख रहे थे।

"श्वेता मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।"

"मुझे भी।"

"वैसे शादी के बाद हम एक ही बिस्तर पर होंगे। इस जमीन पर नहीं।"

"Stop it मन्नू। तुम तो शादी के पीछे पड़ गए। ऐसा लग रहा है की तुम मुझे यहां शादी के लिए ले आए हो।" श्वेता हंसते हुए बोली।

"शादी तो करनी है तुमसे।" मन्नू ने हल्के से श्वेता का हाथ पकड़ लिया।

श्वेता बोली "तुम अब हाथ भी पकड़ने लगे। सच में मन्नू तुम तो बड़े तेज़ हो। इस गांव में पता नही मेरा एक दीवाना भी है।"

"I love you shweta." दोनो शांत वातावरण में आंखे बंद करके एक दूसरे का हाथ थामकर सो गए।


निशा का नदी में नहानेवाली पेंटिंग



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Bahut hi shaandar update diya hai Hills bhai....
Nice and lovely update..
 

dhparikh

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मन्नू अपने कमरे में निशा की नंगी तस्वीर को अलमारी में रख दिया। बाहर श्वेता चिल्लाते हुए बोली "अरे ओ मुन्ना। कहा गए हो? मैं रसोईघर में तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।"

"आया श्वेता।"

मन्नू रसोईघर में घुसा। दोनो नीचे बैठकर खाना बनाने लगे। मन्नू सब्जी काट रहा था और श्वेता आटा गूथ रही थी। मन्नू श्वेता को आता घुंठते हुए देख रहा था। काम करते वक्त clevage दिख रहा था लेकिन श्वेता को पता नहीं था। आटा गूथ ते वक्त कमर पर साड़ी का पल्लू खोस दी। मन्नू लगातार clevage को घूर रहा था। श्वेता इस बात से अनजान थी की एक काला सा बूढ़ा आदमी उसके लिए मर रहा था। वो इस बात से अनजान थी कि wohi बुढ़ा आदमी उसकी मोहोब्बत की आग में जल रहा था।

श्वेता की नजर मन्नू पर गई जो उसे घूर रहा था। श्वेता ने पास में बड़े बेलन से मन्नू को हल्के से मारा और कहा "सब्जी काटो वरना भूखा मरेंगे दोनो।"

"अरे हां। बस अभी हो जाएगा काम।"

श्वेता पूछी "आप अकेले कैसे रह लेते है यहां पर ? और आपके बीवी बच्चे नही है क्या ?"

"नही। मेरी अब तक शादी ही नहीं हुई।"

दरअसल बात यह थी कि गरीबी और मजदूरी जीवन से मन्नू को आमदनी इतनी कम थी कि उसमे उसी का खर्चा हो पाता था। इसीलिए तो उसकी शादी न हो सकी।

"क्यों शादी नही की?"

"श्वेता मेरे पास पैसे नहीं थे। तो कैसे करता शादी ?"

"अब तो आपो पास पैसे है न ? दो का खर्चा अब आप कर सकते है न। फिर अब कर लीजिए शादी।" श्वेता ने हल्के से छेड़ते हुए कहा।

"कोई मिलनी भी तो चाहिए। अब लड़की कहां से मुझे मिलेगी कोई औरत ?"

"अच्छा ये बताइए कि कैसी औरत चाहिए आपको ?"

"मुझे कोई जवान और बेहद खूबसूरत औरत से शादी करना है। एल्किन इस बुढ़ापे में कोई नहीं आएगी।"

वैसे श्वेता थोड़ा खुले विचारों वाली औरत थी। और मजाक भी करती थी। तो बस मन्नू की फिरकी लेते हुए बोली "चलो तो आपके कहने का मतलब है खूबसूरत और जवान औरत यानी मेरी जैसी ?"

"हां। बिलकुल सही।"

"मेरी जैसी अभी आपको मिलना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं।"


मन्नू ने भी हल्के से मजाक करने को सोचा और कहा " वैसे तुम क्यों नहीं बन जाती मेरी पत्नी ?"

श्वेता जोर जोर से हंसने लगी और बोली "अच्छा तो अब आप मुझपर डोरे डाल रहे है ?"

मन्नू आंख मरते हुए कहा "मैं तो डाल चुका हूं। अब जल्दी से हां बोल दो। अभी शादी कर ले ?"

श्वेता को मजा आ रहा था एक दूसरे को छेड़ने में।

"हाय तौबा। इतनी जल्दी ? अब तो पक्का यकीन हो गया कि तुम मुझपर डोरे डाल रहे हो।"

"सिर्फ डोरे नही डाल रहा। अब तो पक्का तुमसे शादी करने का इरादा बना लिया।"

"लेकिन शादी करेंगे कहा ?"

"तुम कहो तो अभी चल दे मन्दिर?"

"इतना उतावलापन अच्छा नहीं। शादी का मामला है। मुझे वक्त चाहिए। वैसे तुमसे शादी करने में मुझे कोई हर्ज नहीं। तुम खेती करो और में काम करूंगी।"

"पूरे दिन खेती और काम करेंगे तो वक्त हमे कैसे मिलेगा ?"

"किस चीज के लिए वक्त चाहिए ?"

"प्यार करने का।" मन्नू ने आंख मरते हुए कहा।

"अब क्या इस उमर में प्यार करेंगे आप ?"

"लो प्यार की कोई उम्र होती है ?"

"लेकिन प्यार क्यों करेंगे आप ?"

"जब तुम इतनी खूबसूरत औरत मेरी बीवी बनेगी तो उसे ऐसे जाने दूंगा।पहले तो खूब प्यार करूंगा और......."

"और क्या ?"

"और फिर अपना परिवार बनाऊंगा। आखिर बच्चे भी तो चाहिए मुझे।"

श्वेता हंसने लगी और बोली "लगता है तुम्हे आशिकी का बुखार चढ़ गया। मुझे तुमसे बचकर रहना होगा।पता नही कब तुम मुझपर अपना दिल अपना दिल दे बैठो।"

"दिल दे दिया। अब जल्दी से तुम्हे अपनी बीवी बना लूं।"

"हाय तौबा इस आशिक से मुझे बचाओ। वरना ये मुझे चुराकर ले जाएगा।"

"तो अब से तुम्हे जानू कहकर बुलाऊंगा।"

"और मैं तुम्हे जानेमन ?"

"बुलाओ न। वैसे भी हमारी शादी जो होनेवाली है।"

"आप भी ना मन्नू। पागल है आप पागल।"

"तुम्हारे प्यार में मेरी जान।"

"हां मेरे जानेमन। अब लगता है इस पागल को झेलना ही पड़ेगा।"

"I Love you श्वेता।"

"I hate you मेरे बदमाश आशिक।"

दोनो ने खूब मजाक किया और साथ में खाना खाया।

श्वेता को बस मजाक मस्ती कर रही थी और मन्नू भी। मन्नू जानता था कि श्वेता कभी भी उसके जैसे काले बूढ़े से शादी नहीं करेगी। काम से कम इस मजाक मस्ती की आड़ में जिंदगी के कुछ अच्छे लम्हे को जी लेगा। मन्नू श्वेता का कभी भी बुरा नही चाहेगा और न कभी गलत फायदा उठाएगा उसकी दोस्ती का। वो तो बस श्वेता में अपनी अच्छी दोस्त को देख रहा है। ऐसा दोस्त जो अकेलेपन में उसका साथ दे। एक पवित्र मैत्री संबंध।

कहना खाने के बाद दोनो साथ में अलग अलग कमरे में आराम करने लगे। मन्नू अपने कमरे में निशा के दूसरे नग्न तस्वीर को देखने लगा और बोला "निशा प्यार जब होता है तो दुनिया अच्छी लगने लगती है। मैं जानता हूं की तुम भीमा की पत्नी हो लेकिन आज भी मेरे दिल में तुम्हारे लिए मोहोब्नत है। तुमसे दूर रहने की वजह मेरा प्यार है। जब भी तुम्हारे पास आता हूं तो जैसे तुम्हे बाहों में भरने का मन करता है। मुझे याद है जब मैंने तुम्हे पीछे साल तलाब में नहाते हुए देखा। तुम इस बात से अनजान थी कि झाड़ियों में छुपकर मै तुम्हे नहाते देख रहा था। क्या यौवन है तुम्हारा। शरीर पर एक भी कपड़े न थे। सोने सी चमक है तुम्हारे जिस्म में। तुम्हारे एक एक अंग को मैने देखा। सच कहता हूं निशा, जैसे तुम्हे बाहों में भरने का मन हो रहा था। तुम जानती नही कि उस दिन से तुमने भीमा के साथ मुझे भी अपने दीवाना बना दिया। तुम्हारे नग्न शरीर मेरे दिमाग में इस कदर बस गया की ये नग्न तस्वीर पूरी तरह से वैसे ही बनाया। निशा बस एक बार तुम्हारे से साथ रात बिता सकता लेकिन अब जाने दो। श्वेता ही शायद मेरी जीवनसाथी बन जाए।"

शाम हुई और मन्नू को अलविदा कहकर श्वेता अपने घर चली गई। मन्नू आज बड़े मुश्किल दौर से गुजर रहा था। श्वेता से इस कसर मोहब्बत हो गई कि अब उसके बिना एक एक पल नही कट रहा था। रात तक ये बैचेनी इस कदर बढ़ गई कि उसने जेब से सस्ता मोबाइल निकाला और श्वेता को कॉल कर दिया। श्वेता उस वक्त अकेले छत पर थी। मन्नू का कॉल देखते ही चेहरे पर अलग सी मुस्कान आ गई।

"हेलो।" श्वेता ने मीठे स्वर में कहा।

"हेलो जानू।" मन्नू ने छेड़ते हुए कहा।

"हां जानेमन।" श्वेता हंस दी।

"क्या कर रही हो ?" मन्नू ने पूछा।

"कुछ नही। अकेले छत पर हूं। तुम क्या कर रहे हो ?"

"बस तुम्हे याद। अपनी जानू को याद।"

"अरे ओ मनचले आशिक। इतना भी याद न करो। वरना पागल हो जाओगे मेरी याद में।" श्वेता इतना बोलते ही फोन को साइड में रखी और दो सेकंड के लिए हंसने लगी।

"पागल तो हूं। तुमसे मिलने का दिल कर रहा है।"

"इतनी बेताबी भी ठीक नहीं। क्या इतना पागल कर दिया मैंने तुम्हे ?"

"हां। अब मैंने मोहब्बत की है तो निभानी पड़ेगी। कल रविवार है।"

"हां तो ?" श्वेता ने पूछा।

"तो जरा मेरे दिल के बुरे हाल को ठीक कर दो।"

"वो कैसे ?"

"अपने आशिक के घर आ जाओ।"

"नही नही। इस पागल आशिक से मिलने कल नही आऊंगी।"

"तो मैं आ जाऊं ? कहो तो अभी आ जाऊं ?"

"पागल हो क्या ? ऐसे कैसे ? इतनी रात को ?"

"हां। और वैसे भी निशा, बच्चे और भीमा बाहर गए है न। एक हफ्ते के लिए। अकेले क्या करोगी ?"

"पागल हो तुम पागल। मुझसे मिलने रात को ?"

"अगर आया तो क्या कहोगी ?"

"पागल कहूंगी तुम्हे। बाते भी तो सही करो। कोई रात को आएगा क्या मिलने ?"

"अपने छत के किनारे आओ। मैं आ गया।"

"क्या ?" श्वेता दौड़ते हुए छत के किनारे आई तो देखा अंधेरे आई बीच मन्नू खड़ा था।

"तुम पागल हो गए हो क्या ? इतनी रात यहां क्या कर रहे हो ?" श्वेता ने हैरान होकर पूछा।

"तुमसे मिलने आया। चलो नीचे आओ।"

"नही बिलकुल नहीं। मुझे सोने जाना है।"

"मिलने तो आना पड़ेगा मुझसे।" मन्नू ने कहा।

"नही आऊंगी। क्या कर लोगे ?"

"पूरी रात खड़ा रहूंगा।"

"ऑफ़ हो। आ रही हूं बाबा।"

"अच्छा सुनो ना। तुम्हारे लिए कुछ प्लान बनाया है। जल्दी से साड़ी में आओ वो भी sleveless साड़ी में।"

"पर क्यों ?"

"क्यों का जवाब बाद में। जल्दी से आओ साड़ी में।"

श्वेता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। चुप चाप साड़ी पहनी और दबे पांव से घर के बाहर गई। बाहर मन्नू खड़ा था।

"ये क्या ज़िद है ? इतनी रात क्यों बुलाया नीचे ?"

मन्नू ने श्वेता का हाथ पकड़ा और ले जाने लगा।

"ये क्या कर रहे हो मन्नू ? छोड़ो मेरा हाथ। कहा ले जा रहे हो ?"

"घर ले जा रहा हूं।"

"लेकिन क्यों ?"

"बताता हूं।" मन्नू थोड़ी दूर श्वेता को अपने घर ले आया। श्वेता ने देखा तो घर के अंदर पेंटिंग के समान थे। और एक कुर्सी थी।

"आज तुम्हारी तस्वीर बनाऊंगा।"

"मेरी तस्वीर ? वो तो कल बना सकते थे। अभी इतनी रात को क्यों ?"

"ताकि रात को कोई हमे परेशान न कर सके। वैसे भी तुमने कहा था ना कि तुम्हारी पेंटिंग मैं बनाऊं।"

"पागल हो गए हो तुम। चलो बनाओ। लेकिन एक शर्त पर।"

"कैसी शर्त।"

"तुम्हारा कान पकड़कर खींचना है।" श्वेता ने मन्नू का जोर से कान पकड़कर खींचा।"

"Aaahhh ये क्या कर रही हो। छोड़ो दर्द हो रहा है।" मन्नू ने चीखते हुए कहा।

"ये कान पकड़ा है तुम्हे सजा देने के लिए। इतनी रात मुझे अपने घर लेकर आए। न सो खुद रहे हो और न मुझे सोने दे रहे हो।"

"कान तुमने पकड़ लिया। अब घुसा शांत ?"

श्वेता हंसते हुए बोली "हे भगवान इस पागल को क्या कहूं ? तुम सच में पागल हो। चलो अब करो जो करना चाहते हो।"

आज बहुत सालो बाद श्वेता को किसी ने हसाया, गुदगुदाया और adventure करवाया। श्वेता को मन्नू में एक नजदीकी दोस्ती दिखी। वो बस इस लम्हे का आनंद लेना चाहती है। जहां वो हंसे, खुश रहे और बाहर कुदरती सौंदर्य में खोती रहे।

मन्नू ने श्वेता की पेंटिंग बनाने लगा। पेंटिंग बनाते बनाते रात 10 बजे से 3 कब बज गए पता न चला।

श्वेता बोली "अच्छा मन्नू बहुत देर हो गई। अब मुझे कहीं घुमाने ले जाओ वरना मैं चली जाऊंगी अपने घर।"

"तो फिर आज तुम्हे झरने के पास ले चलता हूं। ठंडा ठंडा पानी और भीनी भीनी हवाओं का आनंद हम लेंगे।"

मन्नू श्वेता को लेकर जंगोर के पास झरने में ले गया। चांदनी रात में जैसे स्वर्ग सा लग रहा था झरना।

"ओह मन्नूतना खूबसूरत है ये जगह।"

मन्नू झरने के किनारे झूले पर ले गया श्वेता को। श्वेता को झूला झूलने लगा। श्वेता झूले का मजा ले रही थी।

"ओह मन्नू इस खूबसूरत जगह की बात ही अलग है। बहुत खूबसूरत है ये जगह।"

"तुम्हारे जितना खूबसूरत नही।" मन्नू ने श्वेता को पीछे से देखते हुए कहा।

श्वेता ने झूला रोका और पीछे खड़े मन्नू की तरफ मुड़ी और बोली "तुम तो शुरू हो गए फिर से।"

"अब क्या सच बोलना भी गुनाह है ? श्वेता तुमसे प्यार करने जो लगा हूं मैं।"


"शैतान हो तुम शैतान। मुझे छेड़ते रहते हो तुम।"

"ये शैतानी चलती रहेगी। मुझे शैतान भी तो तुम्हारी खुबसूरती ने बनाया।"

"हम्म् इसका मतलब अब इस शैतान से मुझे कोई नही बचा सकता ?" श्वेता ने चिढ़ाते हुए पूछा।

"नही बचा सकता कोई।"

"हटो बदमाश।" श्वेता नदी से बहते झरने को देखते देखते किनारे पेड़ के नीचे लेट गई। मन्नू भी श्वेता को बगल लेट गया।

"मन्नू मुझे इस जगह से प्यार हो गया। कुछ देर मुझे इस जगह को गोद में सोना है।"

"मैं भी बगल में लेट जाऊं ?"

"हां बिलकुल।"

दोनो साथ में लेटकर झरना, नदी और चांद को देख रहे थे।

"श्वेता मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।"

"मुझे भी।"

"वैसे शादी के बाद हम एक ही बिस्तर पर होंगे। इस जमीन पर नहीं।"

"Stop it मन्नू। तुम तो शादी के पीछे पड़ गए। ऐसा लग रहा है की तुम मुझे यहां शादी के लिए ले आए हो।" श्वेता हंसते हुए बोली।

"शादी तो करनी है तुमसे।" मन्नू ने हल्के से श्वेता का हाथ पकड़ लिया।

श्वेता बोली "तुम अब हाथ भी पकड़ने लगे। सच में मन्नू तुम तो बड़े तेज़ हो। इस गांव में पता नही मेरा एक दीवाना भी है।"

"I love you shweta." दोनो शांत वातावरण में आंखे बंद करके एक दूसरे का हाथ थामकर सो गए।


निशा का नदी में नहानेवाली पेंटिंग



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Nice update....
 
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सुबह के ६ बज गए और ठंडी हवा चारो तरफ अपना जाल फैला चुका था। ठंड से मंद मंद कांपती हुई श्वेता उठी। उसी वक्त मुन्ना भीनूथ गया। मुन्ना श्वेता को बिना कुछ बोले उठा दिया। दोनो मन्नू के घर गए। बदल चारो तरफ से घिरा था। बिना कुछ बोले दोनो घर पहुंचे। मनु ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। श्वेता को एक कमरे ले गया। श्वेता खटिया पर लेट गई। मन्नू ने गरम रजाई श्वेता को ओढ़ा दी। श्वेता गहरी नींद में फिर से समा गई। बिना कुछ बोले मन्नू भी अपने कमरे में चला गया और ठंडी से बचने के लिए थोड़ी देर रजाई में लेट गया।

सुबह 11 बजे थे। श्वेता की आंख खुली और वो कमरे से बाहर आई।

"क्या हुआ जानू ? उठ गई ?" मन्नू ने पूछा।

श्वेता अंगड़ाई लेते हुए बोली "हां उठ गई। चलो अब मुझे जाना होगा।"

"दुबारा कब मुलाकात होगी ?"

"अगले शनिवार ?"

"ठीक है श्वेता।"

श्वेता और मन्नू ने एक दूसरे को अलविदा किया। श्वेता घर की तरफ लौटी। रास्ते के बीच अचानक से बारिश हुई। श्वेता दौड़ते दौड़ते घर पहुंची। वो पूरी तरह से भीग चुकी थी। घर के अंदर नटवर काका ने श्वेता को देखा तो अंदर लेकर आए।

श्वेता का पूरा बदन भीग चुका था।

"अरे श्वेता ये क्या हुआ ? तुम भीग चुकी हो। अंदर जाओ और कपड़े बदलकर आओ।"

श्वेता अंदर गई और कपड़े बदलकर अंदर वापिस आई। नटवर ने चाय बनाया और श्वेता को दिया।

"बारिश अचानक से शुरू हो गई।" श्वेता ने थोड़ा सा कांपते हुए कहा।

"हां और आज ठंडी भी कितनी है।" नटवर ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।

"अच्छा आप जरा कुसुम चाची को कहिए न कि आज खाना न बनाए।"

"अरे श्वेता तुम भूल गई ? वो आज से एक हफ्ते छुट्टी पर है। घर में कोई नहीं हम दोनो ने सिवाय।"

"अरे हां काका। मैं तो भूल ही गई।"

"वैसे आप थी कहा ?"

"बाहर गई थी। अच्छा आप मेरे साथ कुछ लकड़ी लेने स्टोर रूम चलिए न। थोड़ा आज लगाकर सेक लेते है। ठंडी सच्ची में बहुत है आज।"

नटवर और श्वेता ने आग लगाई और आंगन में सेक लें लगे। श्वेता को थोड़ी राहत मिली। बारिश भी थम गया लेकिन तब तक शाम हो चुकी थी। सूरज भी आज पूरे दिन न दिखा। श्वेता ने सोचा की गीले कपड़े बाजार को सुखाने रखा था उसे अंदर ले आए। श्वेता जब छत पर गई तो देखा कि उसके साड़ी का ब्लाउज नही है। श्वेता ने सोचा की शायद हवा होने की वजह से उड़ गया होगा।अपने कपड़े लेकर श्वेता ने रास्ते में नटवर का कमरा देखा जो थोड़ा सा खुला हुआ था। श्वेता ने देखा तो नटवर अब गहरी नींद में था और तो और खर्राटे भी मार रहा था। श्वेता ने दरवाजे को बंद कर दिया और खुद अपने कमरे में चली गई। रात हुई और श्वेता थोड़ा सा थकान महसूस कर रही थी। श्वेता ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और सारे कपड़े उतार दिया जिससे शरीर हल्का हो। खुद को चद्दर से लपेट लिया और सोने लगी।

रात के 11 बज चुके थे। श्वेता करीब 4 घंटे से सो रही थी। शरीर को अब अच्छे से आराम मिल गया। श्वेता का पूरा नग्न शरीर चादर से लिपटा हुआ था। बगल में पड़ी किताब उठाई और पढ़ने लगी। पढ़ने में मग्न श्वेता को अचानक से किसी का कॉल आया। श्वेता ने सोचा इतनी रात को कौन है जो उसे कॉल करेगा ? श्वेता ने जब मोबाइल स्क्रीन को देखा
तो चेहरा मुस्कान से भर गया। वो कॉल मुन्ना का था।

"हेलो।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"क्या कर रही हो जानू ?"

"सोकर उठी अभी।"

"तो क्या इरादा है रात भर जागने का ?" मन्नू ने पूछा।

"नही बिलकुल नहीं। कल मुझे स्कूल जाना है समझे ? मुझे कहीं बाहर नही जाना।"

"हां तो मत जाओ बाहर। मैं आ जाता हूं। तुमसे मिलना है मुझे।"

"तुम भी ना अब सो जाओ। और मुझे भी सोने दो।"

"अरे मैं तो सोना चाहता हूं लेकिन जब भी तुम्हे याद करता हूं सोने का मन नहीं करता।"

"मुझे क्यों याद कर रहे हो ?"

"अरे अपनी जान को याद नही कर सकता ?"

"नही बिलकुल भी नहीं।"

"तुम भी ना श्वेता। तुम्हारी याद में पागल हो रहा हूं।"

"वो तुम पहले से हो।"

"देखो मेरा मजाक मत उड़ाओ वरना......"

"वरना क्या ?"

"वरना मैं शादी नहीं करूंगा तुमसे।"

"चलो अच्छा है न। काम से कम एक पागल आदमी से शादी करने से बच जाऊंगी।" श्वेता हंस पड़ी।

"चलो ठीक है। ठीक है। तुम सो जाओ। I love you मेरी श्वेता।"

"I hate you मेरे बूढ़े आशिक।" इतना कहकर श्वेता ने फोन काट दिया। मुस्कुराते हुए खुद से बोली "इस पागल का क्या करूं मैं। मेरे पीछे पड़ गया। हाय तौबा बचा लो इस आशिक से।"


सुबह सुबह 6 बजे श्वेता उठ गई और तैयार होने लगी। जल्द ही तैयार होकर नाश्ता बनाया और नटवर के साथ स्कूल चल दी। सफेद साड़ी और लाल sleveless ब्लाउस में रोज की तरह कमाल की खूबसूरत लग रही थी। ऑफिस दोनो पहुंचे। वहां पर नटवर ने फिर से अपनी डायरी खोली और कुछ लिखा। फिर लग गया काम पर। श्वेता रोज नटवर को देखती। वो देखती की डायरी लिखते समय नटवर का चेहरा अजीब सी मुस्कान देता है। लिया लिखता है इस डायरी में ? आज तो पता करना ही होगा। ये सोचकर श्वेता बैठी थी।

"सुनो श्वेता मुझे कुछ काम है स्कूल का। मैं वापिस आ जाऊंगा। करीब एक घंटा लगेगा।"

"जी नटवर काका।"

नटवर के जाते ही रास्ता साफ। श्वेता ने दौड़ते ही नटवर के टेबल से उसकी डायरी ली और पढ़ना शुरू कर दिया।



Page 1: मेरी दिल की बातें

"आज सुबह मैं निशा और भीमा के साथ रेलवे स्टेशन में गया। वहां निशा की भाभी श्वेता को लेने जाना था। श्वेता जिसे देखते ही मुझे पहली नजर में कुछ कुछ होने लगा। इतनी खूबसूरत और आकर्षित महिला। बेहद सेक्सी। पहली नजर में देखते ही दिल ने मेरे जवाब दे दिया। रोज sleveless साड़ी पहनना और खुले विचारों से बात करना उसका मुझे अच्छा लगता है। निशा जिस तरह भीमा की हुई लाश श्वेता भी मेरी हो जाए। कितनी अजीब बात है। एक समय उसके ससुर के नौकर थे मैं भीमा और मन्नू। आज भीमा ने उस आदमी की बेटी से शादी कर ली। अब हम बराबर हो गए। श्वेता जो बेहद खूबसूरत औरत है बेचारी 20 साल की उमर में विधवा हो गई। 17 सालो से अकेली रहनेवाली श्वेता को ये नहीं पता कि इस गांव में आकर उसने एक अधेड़ उमर के बुड्ढे का दिल चुरा लिया। श्वेता से मुझे प्यार हो गया है।"


ये सब पढ़कर श्वेता अंदर से हिल जाती है और खुद से कहती है "नटवर काका ये सब क्या है ? इस उमर में ? ये सब सोचते है ? मुझसे प्यार हुआ इन्हे ?"

श्वेता को समझ में नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे ? आगे पढ़ने के बजाय वो वापिस अपनी कुर्सी में आ गई। दिल और दिमाग में नटवर की बातें गूंजने लगी। पता नही क्या हो रहा है उसके साथ। कुछ देर बाद नटवर वापिस आया। श्वेता ने सोचा कि अगर वो उससे नजर चुराएगी तो उसे शक हो जाएगा इसीलिए रोज की तरण नॉर्मल behave करेंगी। श्वेता और नटवर दोनो अपने कामों के लग गए। श्वेता का काम में दिल नही लग रहा था। वो बार बार उस diary की तरफ देख रही थी। पता नही क्यों पर श्वेता को आगे पढ़ने का मन कर रहा था। देखते देखते दोपहर हो गई। दोनो वापिस घर को चल दिए। घर पहुंचते ही दोनो ने साथ में खाना खाया।

श्वेता ने सोचा की ठंडी के मौसम में थोड़ा टहल ले। वैसे एक बात बता दूं। ये गांव में ठंडी ज्यादा पड़ती है। चाहे बारिश का मौसम हो या गर्मी का। ३० डिग्री से ज्यादा मौसम कभी नही होता। श्वेता चलते चलते नदी के पास पहुंची। वहां वो अकेली बैठे बैठे कुछ सोच रही थी। श्वेता अपने सोच मे डूबी थी कि अचानक से किसी ने उसके आंखे बंद कर दिया। आंखे बंद होते ही श्वेता जैसे मुस्कुरा दी। श्वेता को पता था कि पीछे खड़ा आदमी मन्नू है।

"मुझे पता है मन्नू तुम ही हो।"

"अरे वाह मुझे पहचान लिया ?" ये कहकर मन्नू श्वेता के बगल बैठ गया।

"तुम्हे तो में बिना आंख खोले पहचान सकती हूं।"

"अरे वाह। इसे कहते है सच्चा प्यार। आखिर मेरे प्यार में पड़ ही गई न मेरी जान।"

इस बार श्वेता हंसने के बजाय शर्माने लगी और बोली "stop it. बड़े बदमाश हो तुम।"

"अभी हमारी बदमाशी दिल्ली कहा तुमने।"

"अच्छा बदमाशी भी करोगे अब मेरे साथ ?"

"बदमाशी और प्यार भी।"

"प्यार ? बड़े बदमाश हो मन्नू। तुम तो मेरे पीछे पड़ गए हो।"

"उसमे पूरी गलती तुम्हारी है।"

"अरे वाह मेरी गलती ? बताओ कैसे ?"

"उसके लिए मेरे साथ चलना होगा कही तुम्हे।"

"कहां चलना होता तुम्हारे साथ मुझे ?"

मन्नू श्वेता का हाथ पकड़ते हुए अपने घर ले गया। वहां एक बड़े से आइने के सामने श्वेता को खड़ा कर दिया और खुद श्वेता के पीछे खड़ा हो गया।

"ये क्या है मन्नू ? तुम तो मुझे मेरी गलती बताने वाले थे।"

"बता तो दिया। इस खुबसूरती की गलती है जिसने मुझे बदमाश बना दिया।"

"चुप रहो। ऐसा क्या है मुझमें जिसने तुम्हे बदमाश बना दिया ?"

"बुरा तो नही मानोगी ?"

"नही मानूंगी।" श्वेता ने कहा।

"खाओ हमारे दोस्ती की कसम।"

"ठीक है हमारी दोस्ती की कसम।"

मन्नू ने पीछे से श्वेता के नाजुक कंधो पे हाथ रखा। दोनो की नजर आएं पर टिकी हुई थी और दोनो एक दूसरे को देख पा रहे थे।

कंधो को हल्के से दबाते हुए श्वेता के कान के पास आकर मन्नू बोला "ये जो चेहरा है न तुम्हारा ये जो लचकदार और गोरा बदन है तुम्हारा ये किसी भी शरीफ आदमी को बिगाड़ दे।"

श्वेता के शरीर में करंट दौड़ने लगा। वो उत्सुकता से बोली "आज तक कोई मेरी खुबसूरती की वजह से बिगड़ा।"

"वो डरते होंगे तुमसे।"

"लेकिन तुम तो नही डरते मुझसे।"

"क्योंकि मैं तुम्हे जान चुका हूं।"

"क्या जान चुके हो मेरे बारे में ?"

"यही की तुम सर्फ बाहर से नही अंदर से भी खूबसूरत हो।"

"हम्मम। लेकिन मुझे अच्छा दोस्त जो मिला है।"

"कौन है वो अच्छा दोस्त ?"

श्वेता ने अपने चेहरे को पीछे किया और मन्नू के काम में कहा "वो मेरे पीछे ही है और उसका नाम मन्नू है।"

"लेकिन तुम तो मुझे बदमाश और शैतान बोलती हो।"

"क्योंकि तुम मुझे छेड़ते हो।"

"तो क्या मैं सिर्फ बदमाश हूं ?"

"नही। मैने ऐसा कब कहा। बदमाश तो तुम हो लेकिन एक अच्छे दोस्त भी हो।"

"अच्छा तो फिर कितना अच्छा दोस्त ?"

"मेरे जिंदगी में सबसे अच्छे दोस्त।"

"ये बूढ़ा आदमी इस हसीन औरत का अच्छा दोस्त क्यों बना और कैसे ?"

"हम्मम तो सबसे पहले इस बुड्ढे ने मुझे बहुत सताया और छेड़ा भी। इतना छेड़ा की अपनी आदत डलवा दी। बार बार मुझे तंग करता। फिर भी मुझे हंसाता, मुझे बार बार अपनी पत्नी कहकर चिढ़ाता। लेकिन आज सच कहूं ? तो ये बूढ़ा मेरे सबसे करीबी हो गया है। अब इससे मुझे अपनी दोस्ती नहीं तोड़ना। इतने कम समय में तुम मेरे दिल के अलग हिस्से ने बस गए। एक सीधी साधी औरत को अपनी तरह पागल बना दिया।"

मन्नू कुछ नही बोला और श्वेता की आंखों में आंखे डालकर देखने लगा। दोनो एक दूसरे को देखने लगे। मन्नू बिना कुछ बोले श्वेता को पीछे से जकड़ लिया और मुलायम कंधे पर सिर रख दिया। श्वेता भी कुछ न बोली और दोस्त की तरह व्यवहार करने लगी।

"लेकिन श्वेता मुझे शैतान बनाने की सजा मिलेगी।"

"कैसी सजा ?"

"अभी बताता हूं।" इतना बोलकर मन्नू ने श्वेता के नाजुक कमर पर चिकोटी भर दी और गाल को चूम लिया।

श्वेता इस हरकत से हक्का बक्का हो गई।

"बदमाश कमीनें बुड्ढे।" श्वेता मन्नू को मारने लगी और पास में पड़े झाड़ू से पीटने लगी।

"बड़ी बदमाशी चढ़ी है तुम्हे आज तो खैर नहीं तुम्हारी।" श्वेता को हंसी भी आ रही थी।

"अरे मारो मत। अरे नही आआह्ह।"

"मुझे छेड़ता हैं अकेली खूबसूरत औरत को छेड़ता है ?"

"हां छेड़ा मैंने और आगे भी करूंगा।" मन्नू भी हंसने लगा।

"ऐसे कैसे मेरी कमर को छुआ ?"

"ऐसे छुआ।" मन्नू ने फिर से नंगी कमर पर चिकोटि भरी।

श्वेता मारते मारते थक गई और फिर हंसने लगी। मन्नू भी मजाक में श्वेता के बगल बैठ गया।

"देखो कितना मारा तुमने मुझे ?"

"मार तो पड़नी ही थी। मुझे छेड़ रहे थे तुम।"

"लेकिन इसका मतलब इतना मरोगी मुझे ?"

"हां।" श्वेता हफ्ते हुए खटिया पर लेट गई। मन्नू भी उसके बगल लेट गया।

श्वेता हंसने लगी और बोली "इसी बदमाशी और शैतान दोस्त ने मुझे बहुत हंसाया। तुम इतने बदमाश हो न कि पूछो मत। पता नही ये शैतान बुड्ढा कैसे मेरे पीछे पड़ गया।"

"चलो श्वेता ये तो मजाक था। लेकिन सच में वादा करो मुझसे दूर नहीं जाओगी।"

"जा भी नही सकती आखिर दोस्ती की आदत पड़ने लगी है मुझे।"

"I love you" इतना कहकर मन्नू ने श्वेता के वमर पर हाथ रख और हल्के से गाल को चूम लिया।"

"But I hate you" श्वेता हंसते हुए मन्नू के गाल पे हल्का सा थप्पड़ मारा।

"कभी तो i love you बोल दो।"

"नही बोलूंगी। मुझे छेड़ने की सजा है ये।"

दोनो कुछ न बोल बस कुछ देर तक आंखे बंद करके लेट गए।
 

park

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मन्नू अपने कमरे में निशा की नंगी तस्वीर को अलमारी में रख दिया। बाहर श्वेता चिल्लाते हुए बोली "अरे ओ मुन्ना। कहा गए हो? मैं रसोईघर में तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।"

"आया श्वेता।"

मन्नू रसोईघर में घुसा। दोनो नीचे बैठकर खाना बनाने लगे। मन्नू सब्जी काट रहा था और श्वेता आटा गूथ रही थी। मन्नू श्वेता को आता घुंठते हुए देख रहा था। काम करते वक्त clevage दिख रहा था लेकिन श्वेता को पता नहीं था। आटा गूथ ते वक्त कमर पर साड़ी का पल्लू खोस दी। मन्नू लगातार clevage को घूर रहा था। श्वेता इस बात से अनजान थी की एक काला सा बूढ़ा आदमी उसके लिए मर रहा था। वो इस बात से अनजान थी कि wohi बुढ़ा आदमी उसकी मोहोब्बत की आग में जल रहा था।

श्वेता की नजर मन्नू पर गई जो उसे घूर रहा था। श्वेता ने पास में बड़े बेलन से मन्नू को हल्के से मारा और कहा "सब्जी काटो वरना भूखा मरेंगे दोनो।"

"अरे हां। बस अभी हो जाएगा काम।"

श्वेता पूछी "आप अकेले कैसे रह लेते है यहां पर ? और आपके बीवी बच्चे नही है क्या ?"

"नही। मेरी अब तक शादी ही नहीं हुई।"

दरअसल बात यह थी कि गरीबी और मजदूरी जीवन से मन्नू को आमदनी इतनी कम थी कि उसमे उसी का खर्चा हो पाता था। इसीलिए तो उसकी शादी न हो सकी।

"क्यों शादी नही की?"

"श्वेता मेरे पास पैसे नहीं थे। तो कैसे करता शादी ?"

"अब तो आपो पास पैसे है न ? दो का खर्चा अब आप कर सकते है न। फिर अब कर लीजिए शादी।" श्वेता ने हल्के से छेड़ते हुए कहा।

"कोई मिलनी भी तो चाहिए। अब लड़की कहां से मुझे मिलेगी कोई औरत ?"

"अच्छा ये बताइए कि कैसी औरत चाहिए आपको ?"

"मुझे कोई जवान और बेहद खूबसूरत औरत से शादी करना है। एल्किन इस बुढ़ापे में कोई नहीं आएगी।"

वैसे श्वेता थोड़ा खुले विचारों वाली औरत थी। और मजाक भी करती थी। तो बस मन्नू की फिरकी लेते हुए बोली "चलो तो आपके कहने का मतलब है खूबसूरत और जवान औरत यानी मेरी जैसी ?"

"हां। बिलकुल सही।"

"मेरी जैसी अभी आपको मिलना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं।"


मन्नू ने भी हल्के से मजाक करने को सोचा और कहा " वैसे तुम क्यों नहीं बन जाती मेरी पत्नी ?"

श्वेता जोर जोर से हंसने लगी और बोली "अच्छा तो अब आप मुझपर डोरे डाल रहे है ?"

मन्नू आंख मरते हुए कहा "मैं तो डाल चुका हूं। अब जल्दी से हां बोल दो। अभी शादी कर ले ?"

श्वेता को मजा आ रहा था एक दूसरे को छेड़ने में।

"हाय तौबा। इतनी जल्दी ? अब तो पक्का यकीन हो गया कि तुम मुझपर डोरे डाल रहे हो।"

"सिर्फ डोरे नही डाल रहा। अब तो पक्का तुमसे शादी करने का इरादा बना लिया।"

"लेकिन शादी करेंगे कहा ?"

"तुम कहो तो अभी चल दे मन्दिर?"

"इतना उतावलापन अच्छा नहीं। शादी का मामला है। मुझे वक्त चाहिए। वैसे तुमसे शादी करने में मुझे कोई हर्ज नहीं। तुम खेती करो और में काम करूंगी।"

"पूरे दिन खेती और काम करेंगे तो वक्त हमे कैसे मिलेगा ?"

"किस चीज के लिए वक्त चाहिए ?"

"प्यार करने का।" मन्नू ने आंख मरते हुए कहा।

"अब क्या इस उमर में प्यार करेंगे आप ?"

"लो प्यार की कोई उम्र होती है ?"

"लेकिन प्यार क्यों करेंगे आप ?"

"जब तुम इतनी खूबसूरत औरत मेरी बीवी बनेगी तो उसे ऐसे जाने दूंगा।पहले तो खूब प्यार करूंगा और......."

"और क्या ?"

"और फिर अपना परिवार बनाऊंगा। आखिर बच्चे भी तो चाहिए मुझे।"

श्वेता हंसने लगी और बोली "लगता है तुम्हे आशिकी का बुखार चढ़ गया। मुझे तुमसे बचकर रहना होगा।पता नही कब तुम मुझपर अपना दिल अपना दिल दे बैठो।"

"दिल दे दिया। अब जल्दी से तुम्हे अपनी बीवी बना लूं।"

"हाय तौबा इस आशिक से मुझे बचाओ। वरना ये मुझे चुराकर ले जाएगा।"

"तो अब से तुम्हे जानू कहकर बुलाऊंगा।"

"और मैं तुम्हे जानेमन ?"

"बुलाओ न। वैसे भी हमारी शादी जो होनेवाली है।"

"आप भी ना मन्नू। पागल है आप पागल।"

"तुम्हारे प्यार में मेरी जान।"

"हां मेरे जानेमन। अब लगता है इस पागल को झेलना ही पड़ेगा।"

"I Love you श्वेता।"

"I hate you मेरे बदमाश आशिक।"

दोनो ने खूब मजाक किया और साथ में खाना खाया।

श्वेता को बस मजाक मस्ती कर रही थी और मन्नू भी। मन्नू जानता था कि श्वेता कभी भी उसके जैसे काले बूढ़े से शादी नहीं करेगी। काम से कम इस मजाक मस्ती की आड़ में जिंदगी के कुछ अच्छे लम्हे को जी लेगा। मन्नू श्वेता का कभी भी बुरा नही चाहेगा और न कभी गलत फायदा उठाएगा उसकी दोस्ती का। वो तो बस श्वेता में अपनी अच्छी दोस्त को देख रहा है। ऐसा दोस्त जो अकेलेपन में उसका साथ दे। एक पवित्र मैत्री संबंध।

कहना खाने के बाद दोनो साथ में अलग अलग कमरे में आराम करने लगे। मन्नू अपने कमरे में निशा के दूसरे नग्न तस्वीर को देखने लगा और बोला "निशा प्यार जब होता है तो दुनिया अच्छी लगने लगती है। मैं जानता हूं की तुम भीमा की पत्नी हो लेकिन आज भी मेरे दिल में तुम्हारे लिए मोहोब्नत है। तुमसे दूर रहने की वजह मेरा प्यार है। जब भी तुम्हारे पास आता हूं तो जैसे तुम्हे बाहों में भरने का मन करता है। मुझे याद है जब मैंने तुम्हे पीछे साल तलाब में नहाते हुए देखा। तुम इस बात से अनजान थी कि झाड़ियों में छुपकर मै तुम्हे नहाते देख रहा था। क्या यौवन है तुम्हारा। शरीर पर एक भी कपड़े न थे। सोने सी चमक है तुम्हारे जिस्म में। तुम्हारे एक एक अंग को मैने देखा। सच कहता हूं निशा, जैसे तुम्हे बाहों में भरने का मन हो रहा था। तुम जानती नही कि उस दिन से तुमने भीमा के साथ मुझे भी अपने दीवाना बना दिया। तुम्हारे नग्न शरीर मेरे दिमाग में इस कदर बस गया की ये नग्न तस्वीर पूरी तरह से वैसे ही बनाया। निशा बस एक बार तुम्हारे से साथ रात बिता सकता लेकिन अब जाने दो। श्वेता ही शायद मेरी जीवनसाथी बन जाए।"

शाम हुई और मन्नू को अलविदा कहकर श्वेता अपने घर चली गई। मन्नू आज बड़े मुश्किल दौर से गुजर रहा था। श्वेता से इस कसर मोहब्बत हो गई कि अब उसके बिना एक एक पल नही कट रहा था। रात तक ये बैचेनी इस कदर बढ़ गई कि उसने जेब से सस्ता मोबाइल निकाला और श्वेता को कॉल कर दिया। श्वेता उस वक्त अकेले छत पर थी। मन्नू का कॉल देखते ही चेहरे पर अलग सी मुस्कान आ गई।

"हेलो।" श्वेता ने मीठे स्वर में कहा।

"हेलो जानू।" मन्नू ने छेड़ते हुए कहा।

"हां जानेमन।" श्वेता हंस दी।

"क्या कर रही हो ?" मन्नू ने पूछा।

"कुछ नही। अकेले छत पर हूं। तुम क्या कर रहे हो ?"

"बस तुम्हे याद। अपनी जानू को याद।"

"अरे ओ मनचले आशिक। इतना भी याद न करो। वरना पागल हो जाओगे मेरी याद में।" श्वेता इतना बोलते ही फोन को साइड में रखी और दो सेकंड के लिए हंसने लगी।

"पागल तो हूं। तुमसे मिलने का दिल कर रहा है।"

"इतनी बेताबी भी ठीक नहीं। क्या इतना पागल कर दिया मैंने तुम्हे ?"

"हां। अब मैंने मोहब्बत की है तो निभानी पड़ेगी। कल रविवार है।"

"हां तो ?" श्वेता ने पूछा।

"तो जरा मेरे दिल के बुरे हाल को ठीक कर दो।"

"वो कैसे ?"

"अपने आशिक के घर आ जाओ।"

"नही नही। इस पागल आशिक से मिलने कल नही आऊंगी।"

"तो मैं आ जाऊं ? कहो तो अभी आ जाऊं ?"

"पागल हो क्या ? ऐसे कैसे ? इतनी रात को ?"

"हां। और वैसे भी निशा, बच्चे और भीमा बाहर गए है न। एक हफ्ते के लिए। अकेले क्या करोगी ?"

"पागल हो तुम पागल। मुझसे मिलने रात को ?"

"अगर आया तो क्या कहोगी ?"

"पागल कहूंगी तुम्हे। बाते भी तो सही करो। कोई रात को आएगा क्या मिलने ?"

"अपने छत के किनारे आओ। मैं आ गया।"

"क्या ?" श्वेता दौड़ते हुए छत के किनारे आई तो देखा अंधेरे आई बीच मन्नू खड़ा था।

"तुम पागल हो गए हो क्या ? इतनी रात यहां क्या कर रहे हो ?" श्वेता ने हैरान होकर पूछा।

"तुमसे मिलने आया। चलो नीचे आओ।"

"नही बिलकुल नहीं। मुझे सोने जाना है।"

"मिलने तो आना पड़ेगा मुझसे।" मन्नू ने कहा।

"नही आऊंगी। क्या कर लोगे ?"

"पूरी रात खड़ा रहूंगा।"

"ऑफ़ हो। आ रही हूं बाबा।"

"अच्छा सुनो ना। तुम्हारे लिए कुछ प्लान बनाया है। जल्दी से साड़ी में आओ वो भी sleveless साड़ी में।"

"पर क्यों ?"

"क्यों का जवाब बाद में। जल्दी से आओ साड़ी में।"

श्वेता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। चुप चाप साड़ी पहनी और दबे पांव से घर के बाहर गई। बाहर मन्नू खड़ा था।

"ये क्या ज़िद है ? इतनी रात क्यों बुलाया नीचे ?"

मन्नू ने श्वेता का हाथ पकड़ा और ले जाने लगा।

"ये क्या कर रहे हो मन्नू ? छोड़ो मेरा हाथ। कहा ले जा रहे हो ?"

"घर ले जा रहा हूं।"

"लेकिन क्यों ?"

"बताता हूं।" मन्नू थोड़ी दूर श्वेता को अपने घर ले आया। श्वेता ने देखा तो घर के अंदर पेंटिंग के समान थे। और एक कुर्सी थी।

"आज तुम्हारी तस्वीर बनाऊंगा।"

"मेरी तस्वीर ? वो तो कल बना सकते थे। अभी इतनी रात को क्यों ?"

"ताकि रात को कोई हमे परेशान न कर सके। वैसे भी तुमने कहा था ना कि तुम्हारी पेंटिंग मैं बनाऊं।"

"पागल हो गए हो तुम। चलो बनाओ। लेकिन एक शर्त पर।"

"कैसी शर्त।"

"तुम्हारा कान पकड़कर खींचना है।" श्वेता ने मन्नू का जोर से कान पकड़कर खींचा।"

"Aaahhh ये क्या कर रही हो। छोड़ो दर्द हो रहा है।" मन्नू ने चीखते हुए कहा।

"ये कान पकड़ा है तुम्हे सजा देने के लिए। इतनी रात मुझे अपने घर लेकर आए। न सो खुद रहे हो और न मुझे सोने दे रहे हो।"

"कान तुमने पकड़ लिया। अब घुसा शांत ?"

श्वेता हंसते हुए बोली "हे भगवान इस पागल को क्या कहूं ? तुम सच में पागल हो। चलो अब करो जो करना चाहते हो।"

आज बहुत सालो बाद श्वेता को किसी ने हसाया, गुदगुदाया और adventure करवाया। श्वेता को मन्नू में एक नजदीकी दोस्ती दिखी। वो बस इस लम्हे का आनंद लेना चाहती है। जहां वो हंसे, खुश रहे और बाहर कुदरती सौंदर्य में खोती रहे।

मन्नू ने श्वेता की पेंटिंग बनाने लगा। पेंटिंग बनाते बनाते रात 10 बजे से 3 कब बज गए पता न चला।

श्वेता बोली "अच्छा मन्नू बहुत देर हो गई। अब मुझे कहीं घुमाने ले जाओ वरना मैं चली जाऊंगी अपने घर।"

"तो फिर आज तुम्हे झरने के पास ले चलता हूं। ठंडा ठंडा पानी और भीनी भीनी हवाओं का आनंद हम लेंगे।"

मन्नू श्वेता को लेकर जंगोर के पास झरने में ले गया। चांदनी रात में जैसे स्वर्ग सा लग रहा था झरना।

"ओह मन्नूतना खूबसूरत है ये जगह।"

मन्नू झरने के किनारे झूले पर ले गया श्वेता को। श्वेता को झूला झूलने लगा। श्वेता झूले का मजा ले रही थी।

"ओह मन्नू इस खूबसूरत जगह की बात ही अलग है। बहुत खूबसूरत है ये जगह।"

"तुम्हारे जितना खूबसूरत नही।" मन्नू ने श्वेता को पीछे से देखते हुए कहा।

श्वेता ने झूला रोका और पीछे खड़े मन्नू की तरफ मुड़ी और बोली "तुम तो शुरू हो गए फिर से।"

"अब क्या सच बोलना भी गुनाह है ? श्वेता तुमसे प्यार करने जो लगा हूं मैं।"


"शैतान हो तुम शैतान। मुझे छेड़ते रहते हो तुम।"

"ये शैतानी चलती रहेगी। मुझे शैतान भी तो तुम्हारी खुबसूरती ने बनाया।"

"हम्म् इसका मतलब अब इस शैतान से मुझे कोई नही बचा सकता ?" श्वेता ने चिढ़ाते हुए पूछा।

"नही बचा सकता कोई।"

"हटो बदमाश।" श्वेता नदी से बहते झरने को देखते देखते किनारे पेड़ के नीचे लेट गई। मन्नू भी श्वेता को बगल लेट गया।

"मन्नू मुझे इस जगह से प्यार हो गया। कुछ देर मुझे इस जगह को गोद में सोना है।"

"मैं भी बगल में लेट जाऊं ?"

"हां बिलकुल।"

दोनो साथ में लेटकर झरना, नदी और चांद को देख रहे थे।

"श्वेता मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।"

"मुझे भी।"

"वैसे शादी के बाद हम एक ही बिस्तर पर होंगे। इस जमीन पर नहीं।"

"Stop it मन्नू। तुम तो शादी के पीछे पड़ गए। ऐसा लग रहा है की तुम मुझे यहां शादी के लिए ले आए हो।" श्वेता हंसते हुए बोली।

"शादी तो करनी है तुमसे।" मन्नू ने हल्के से श्वेता का हाथ पकड़ लिया।

श्वेता बोली "तुम अब हाथ भी पकड़ने लगे। सच में मन्नू तुम तो बड़े तेज़ हो। इस गांव में पता नही मेरा एक दीवाना भी है।"

"I love you shweta." दोनो शांत वातावरण में आंखे बंद करके एक दूसरे का हाथ थामकर सो गए।


निशा का नदी में नहानेवाली पेंटिंग



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Nice and superb update....
 
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dhparikh

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सुबह के ६ बज गए और ठंडी हवा चारो तरफ अपना जाल फैला चुका था। ठंड से मंद मंद कांपती हुई श्वेता उठी। उसी वक्त मुन्ना भीनूथ गया। मुन्ना श्वेता को बिना कुछ बोले उठा दिया। दोनो मन्नू के घर गए। बदल चारो तरफ से घिरा था। बिना कुछ बोले दोनो घर पहुंचे। मनु ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। श्वेता को एक कमरे ले गया। श्वेता खटिया पर लेट गई। मन्नू ने गरम रजाई श्वेता को ओढ़ा दी। श्वेता गहरी नींद में फिर से समा गई। बिना कुछ बोले मन्नू भी अपने कमरे में चला गया और ठंडी से बचने के लिए थोड़ी देर रजाई में लेट गया।

सुबह 11 बजे थे। श्वेता की आंख खुली और वो कमरे से बाहर आई।

"क्या हुआ जानू ? उठ गई ?" मन्नू ने पूछा।

श्वेता अंगड़ाई लेते हुए बोली "हां उठ गई। चलो अब मुझे जाना होगा।"

"दुबारा कब मुलाकात होगी ?"

"अगले शनिवार ?"

"ठीक है श्वेता।"

श्वेता और मन्नू ने एक दूसरे को अलविदा किया। श्वेता घर की तरफ लौटी। रास्ते के बीच अचानक से बारिश हुई। श्वेता दौड़ते दौड़ते घर पहुंची। वो पूरी तरह से भीग चुकी थी। घर के अंदर नटवर काका ने श्वेता को देखा तो अंदर लेकर आए।

श्वेता का पूरा बदन भीग चुका था।

"अरे श्वेता ये क्या हुआ ? तुम भीग चुकी हो। अंदर जाओ और कपड़े बदलकर आओ।"

श्वेता अंदर गई और कपड़े बदलकर अंदर वापिस आई। नटवर ने चाय बनाया और श्वेता को दिया।

"बारिश अचानक से शुरू हो गई।" श्वेता ने थोड़ा सा कांपते हुए कहा।

"हां और आज ठंडी भी कितनी है।" नटवर ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।

"अच्छा आप जरा कुसुम चाची को कहिए न कि आज खाना न बनाए।"

"अरे श्वेता तुम भूल गई ? वो आज से एक हफ्ते छुट्टी पर है। घर में कोई नहीं हम दोनो ने सिवाय।"

"अरे हां काका। मैं तो भूल ही गई।"

"वैसे आप थी कहा ?"

"बाहर गई थी। अच्छा आप मेरे साथ कुछ लकड़ी लेने स्टोर रूम चलिए न। थोड़ा आज लगाकर सेक लेते है। ठंडी सच्ची में बहुत है आज।"

नटवर और श्वेता ने आग लगाई और आंगन में सेक लें लगे। श्वेता को थोड़ी राहत मिली। बारिश भी थम गया लेकिन तब तक शाम हो चुकी थी। सूरज भी आज पूरे दिन न दिखा। श्वेता ने सोचा की गीले कपड़े बाजार को सुखाने रखा था उसे अंदर ले आए। श्वेता जब छत पर गई तो देखा कि उसके साड़ी का ब्लाउज नही है। श्वेता ने सोचा की शायद हवा होने की वजह से उड़ गया होगा।अपने कपड़े लेकर श्वेता ने रास्ते में नटवर का कमरा देखा जो थोड़ा सा खुला हुआ था। श्वेता ने देखा तो नटवर अब गहरी नींद में था और तो और खर्राटे भी मार रहा था। श्वेता ने दरवाजे को बंद कर दिया और खुद अपने कमरे में चली गई। रात हुई और श्वेता थोड़ा सा थकान महसूस कर रही थी। श्वेता ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और सारे कपड़े उतार दिया जिससे शरीर हल्का हो। खुद को चद्दर से लपेट लिया और सोने लगी।

रात के 11 बज चुके थे। श्वेता करीब 4 घंटे से सो रही थी। शरीर को अब अच्छे से आराम मिल गया। श्वेता का पूरा नग्न शरीर चादर से लिपटा हुआ था। बगल में पड़ी किताब उठाई और पढ़ने लगी। पढ़ने में मग्न श्वेता को अचानक से किसी का कॉल आया। श्वेता ने सोचा इतनी रात को कौन है जो उसे कॉल करेगा ? श्वेता ने जब मोबाइल स्क्रीन को देखा
तो चेहरा मुस्कान से भर गया। वो कॉल मुन्ना का था।

"हेलो।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"क्या कर रही हो जानू ?"

"सोकर उठी अभी।"

"तो क्या इरादा है रात भर जागने का ?" मन्नू ने पूछा।

"नही बिलकुल नहीं। कल मुझे स्कूल जाना है समझे ? मुझे कहीं बाहर नही जाना।"

"हां तो मत जाओ बाहर। मैं आ जाता हूं। तुमसे मिलना है मुझे।"

"तुम भी ना अब सो जाओ। और मुझे भी सोने दो।"

"अरे मैं तो सोना चाहता हूं लेकिन जब भी तुम्हे याद करता हूं सोने का मन नहीं करता।"

"मुझे क्यों याद कर रहे हो ?"

"अरे अपनी जान को याद नही कर सकता ?"

"नही बिलकुल भी नहीं।"

"तुम भी ना श्वेता। तुम्हारी याद में पागल हो रहा हूं।"

"वो तुम पहले से हो।"

"देखो मेरा मजाक मत उड़ाओ वरना......"

"वरना क्या ?"

"वरना मैं शादी नहीं करूंगा तुमसे।"

"चलो अच्छा है न। काम से कम एक पागल आदमी से शादी करने से बच जाऊंगी।" श्वेता हंस पड़ी।

"चलो ठीक है। ठीक है। तुम सो जाओ। I love you मेरी श्वेता।"

"I hate you मेरे बूढ़े आशिक।" इतना कहकर श्वेता ने फोन काट दिया। मुस्कुराते हुए खुद से बोली "इस पागल का क्या करूं मैं। मेरे पीछे पड़ गया। हाय तौबा बचा लो इस आशिक से।"


सुबह सुबह 6 बजे श्वेता उठ गई और तैयार होने लगी। जल्द ही तैयार होकर नाश्ता बनाया और नटवर के साथ स्कूल चल दी। सफेद साड़ी और लाल sleveless ब्लाउस में रोज की तरह कमाल की खूबसूरत लग रही थी। ऑफिस दोनो पहुंचे। वहां पर नटवर ने फिर से अपनी डायरी खोली और कुछ लिखा। फिर लग गया काम पर। श्वेता रोज नटवर को देखती। वो देखती की डायरी लिखते समय नटवर का चेहरा अजीब सी मुस्कान देता है। लिया लिखता है इस डायरी में ? आज तो पता करना ही होगा। ये सोचकर श्वेता बैठी थी।

"सुनो श्वेता मुझे कुछ काम है स्कूल का। मैं वापिस आ जाऊंगा। करीब एक घंटा लगेगा।"

"जी नटवर काका।"

नटवर के जाते ही रास्ता साफ। श्वेता ने दौड़ते ही नटवर के टेबल से उसकी डायरी ली और पढ़ना शुरू कर दिया।



Page 1: मेरी दिल की बातें

"आज सुबह मैं निशा और भीमा के साथ रेलवे स्टेशन में गया। वहां निशा की भाभी श्वेता को लेने जाना था। श्वेता जिसे देखते ही मुझे पहली नजर में कुछ कुछ होने लगा। इतनी खूबसूरत और आकर्षित महिला। बेहद सेक्सी। पहली नजर में देखते ही दिल ने मेरे जवाब दे दिया। रोज sleveless साड़ी पहनना और खुले विचारों से बात करना उसका मुझे अच्छा लगता है। निशा जिस तरह भीमा की हुई लाश श्वेता भी मेरी हो जाए। कितनी अजीब बात है। एक समय उसके ससुर के नौकर थे मैं भीमा और मन्नू। आज भीमा ने उस आदमी की बेटी से शादी कर ली। अब हम बराबर हो गए। श्वेता जो बेहद खूबसूरत औरत है बेचारी 20 साल की उमर में विधवा हो गई। 17 सालो से अकेली रहनेवाली श्वेता को ये नहीं पता कि इस गांव में आकर उसने एक अधेड़ उमर के बुड्ढे का दिल चुरा लिया। श्वेता से मुझे प्यार हो गया है।"


ये सब पढ़कर श्वेता अंदर से हिल जाती है और खुद से कहती है "नटवर काका ये सब क्या है ? इस उमर में ? ये सब सोचते है ? मुझसे प्यार हुआ इन्हे ?"

श्वेता को समझ में नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे ? आगे पढ़ने के बजाय वो वापिस अपनी कुर्सी में आ गई। दिल और दिमाग में नटवर की बातें गूंजने लगी। पता नही क्या हो रहा है उसके साथ। कुछ देर बाद नटवर वापिस आया। श्वेता ने सोचा कि अगर वो उससे नजर चुराएगी तो उसे शक हो जाएगा इसीलिए रोज की तरण नॉर्मल behave करेंगी। श्वेता और नटवर दोनो अपने कामों के लग गए। श्वेता का काम में दिल नही लग रहा था। वो बार बार उस diary की तरफ देख रही थी। पता नही क्यों पर श्वेता को आगे पढ़ने का मन कर रहा था। देखते देखते दोपहर हो गई। दोनो वापिस घर को चल दिए। घर पहुंचते ही दोनो ने साथ में खाना खाया।

श्वेता ने सोचा की ठंडी के मौसम में थोड़ा टहल ले। वैसे एक बात बता दूं। ये गांव में ठंडी ज्यादा पड़ती है। चाहे बारिश का मौसम हो या गर्मी का। ३० डिग्री से ज्यादा मौसम कभी नही होता। श्वेता चलते चलते नदी के पास पहुंची। वहां वो अकेली बैठे बैठे कुछ सोच रही थी। श्वेता अपने सोच मे डूबी थी कि अचानक से किसी ने उसके आंखे बंद कर दिया। आंखे बंद होते ही श्वेता जैसे मुस्कुरा दी। श्वेता को पता था कि पीछे खड़ा आदमी मन्नू है।

"मुझे पता है मन्नू तुम ही हो।"

"अरे वाह मुझे पहचान लिया ?" ये कहकर मन्नू श्वेता के बगल बैठ गया।

"तुम्हे तो में बिना आंख खोले पहचान सकती हूं।"

"अरे वाह। इसे कहते है सच्चा प्यार। आखिर मेरे प्यार में पड़ ही गई न मेरी जान।"

इस बार श्वेता हंसने के बजाय शर्माने लगी और बोली "stop it. बड़े बदमाश हो तुम।"

"अभी हमारी बदमाशी दिल्ली कहा तुमने।"

"अच्छा बदमाशी भी करोगे अब मेरे साथ ?"

"बदमाशी और प्यार भी।"

"प्यार ? बड़े बदमाश हो मन्नू। तुम तो मेरे पीछे पड़ गए हो।"

"उसमे पूरी गलती तुम्हारी है।"

"अरे वाह मेरी गलती ? बताओ कैसे ?"

"उसके लिए मेरे साथ चलना होगा कही तुम्हे।"

"कहां चलना होता तुम्हारे साथ मुझे ?"

मन्नू श्वेता का हाथ पकड़ते हुए अपने घर ले गया। वहां एक बड़े से आइने के सामने श्वेता को खड़ा कर दिया और खुद श्वेता के पीछे खड़ा हो गया।

"ये क्या है मन्नू ? तुम तो मुझे मेरी गलती बताने वाले थे।"

"बता तो दिया। इस खुबसूरती की गलती है जिसने मुझे बदमाश बना दिया।"

"चुप रहो। ऐसा क्या है मुझमें जिसने तुम्हे बदमाश बना दिया ?"

"बुरा तो नही मानोगी ?"

"नही मानूंगी।" श्वेता ने कहा।

"खाओ हमारे दोस्ती की कसम।"

"ठीक है हमारी दोस्ती की कसम।"

मन्नू ने पीछे से श्वेता के नाजुक कंधो पे हाथ रखा। दोनो की नजर आएं पर टिकी हुई थी और दोनो एक दूसरे को देख पा रहे थे।

कंधो को हल्के से दबाते हुए श्वेता के कान के पास आकर मन्नू बोला "ये जो चेहरा है न तुम्हारा ये जो लचकदार और गोरा बदन है तुम्हारा ये किसी भी शरीफ आदमी को बिगाड़ दे।"

श्वेता के शरीर में करंट दौड़ने लगा। वो उत्सुकता से बोली "आज तक कोई मेरी खुबसूरती की वजह से बिगड़ा।"

"वो डरते होंगे तुमसे।"

"लेकिन तुम तो नही डरते मुझसे।"

"क्योंकि मैं तुम्हे जान चुका हूं।"

"क्या जान चुके हो मेरे बारे में ?"

"यही की तुम सर्फ बाहर से नही अंदर से भी खूबसूरत हो।"

"हम्मम। लेकिन मुझे अच्छा दोस्त जो मिला है।"

"कौन है वो अच्छा दोस्त ?"

श्वेता ने अपने चेहरे को पीछे किया और मन्नू के काम में कहा "वो मेरे पीछे ही है और उसका नाम मन्नू है।"

"लेकिन तुम तो मुझे बदमाश और शैतान बोलती हो।"

"क्योंकि तुम मुझे छेड़ते हो।"

"तो क्या मैं सिर्फ बदमाश हूं ?"

"नही। मैने ऐसा कब कहा। बदमाश तो तुम हो लेकिन एक अच्छे दोस्त भी हो।"

"अच्छा तो फिर कितना अच्छा दोस्त ?"

"मेरे जिंदगी में सबसे अच्छे दोस्त।"

"ये बूढ़ा आदमी इस हसीन औरत का अच्छा दोस्त क्यों बना और कैसे ?"

"हम्मम तो सबसे पहले इस बुड्ढे ने मुझे बहुत सताया और छेड़ा भी। इतना छेड़ा की अपनी आदत डलवा दी। बार बार मुझे तंग करता। फिर भी मुझे हंसाता, मुझे बार बार अपनी पत्नी कहकर चिढ़ाता। लेकिन आज सच कहूं ? तो ये बूढ़ा मेरे सबसे करीबी हो गया है। अब इससे मुझे अपनी दोस्ती नहीं तोड़ना। इतने कम समय में तुम मेरे दिल के अलग हिस्से ने बस गए। एक सीधी साधी औरत को अपनी तरह पागल बना दिया।"

मन्नू कुछ नही बोला और श्वेता की आंखों में आंखे डालकर देखने लगा। दोनो एक दूसरे को देखने लगे। मन्नू बिना कुछ बोले श्वेता को पीछे से जकड़ लिया और मुलायम कंधे पर सिर रख दिया। श्वेता भी कुछ न बोली और दोस्त की तरह व्यवहार करने लगी।

"लेकिन श्वेता मुझे शैतान बनाने की सजा मिलेगी।"

"कैसी सजा ?"

"अभी बताता हूं।" इतना बोलकर मन्नू ने श्वेता के नाजुक कमर पर चिकोटी भर दी और गाल को चूम लिया।

श्वेता इस हरकत से हक्का बक्का हो गई।

"बदमाश कमीनें बुड्ढे।" श्वेता मन्नू को मारने लगी और पास में पड़े झाड़ू से पीटने लगी।

"बड़ी बदमाशी चढ़ी है तुम्हे आज तो खैर नहीं तुम्हारी।" श्वेता को हंसी भी आ रही थी।

"अरे मारो मत। अरे नही आआह्ह।"

"मुझे छेड़ता हैं अकेली खूबसूरत औरत को छेड़ता है ?"

"हां छेड़ा मैंने और आगे भी करूंगा।" मन्नू भी हंसने लगा।

"ऐसे कैसे मेरी कमर को छुआ ?"

"ऐसे छुआ।" मन्नू ने फिर से नंगी कमर पर चिकोटि भरी।

श्वेता मारते मारते थक गई और फिर हंसने लगी। मन्नू भी मजाक में श्वेता के बगल बैठ गया।

"देखो कितना मारा तुमने मुझे ?"

"मार तो पड़नी ही थी। मुझे छेड़ रहे थे तुम।"

"लेकिन इसका मतलब इतना मरोगी मुझे ?"

"हां।" श्वेता हफ्ते हुए खटिया पर लेट गई। मन्नू भी उसके बगल लेट गया।

श्वेता हंसने लगी और बोली "इसी बदमाशी और शैतान दोस्त ने मुझे बहुत हंसाया। तुम इतने बदमाश हो न कि पूछो मत। पता नही ये शैतान बुड्ढा कैसे मेरे पीछे पड़ गया।"

"चलो श्वेता ये तो मजाक था। लेकिन सच में वादा करो मुझसे दूर नहीं जाओगी।"

"जा भी नही सकती आखिर दोस्ती की आदत पड़ने लगी है मुझे।"

"I love you" इतना कहकर मन्नू ने श्वेता के वमर पर हाथ रख और हल्के से गाल को चूम लिया।"

"But I hate you" श्वेता हंसते हुए मन्नू के गाल पे हल्का सा थप्पड़ मारा।

"कभी तो i love you बोल दो।"

"नही बोलूंगी। मुझे छेड़ने की सजा है ये।"

दोनो कुछ न बोल बस कुछ देर तक आंखे बंद करके लेट गए।
Nice update....
 

parkas

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सुबह के ६ बज गए और ठंडी हवा चारो तरफ अपना जाल फैला चुका था। ठंड से मंद मंद कांपती हुई श्वेता उठी। उसी वक्त मुन्ना भीनूथ गया। मुन्ना श्वेता को बिना कुछ बोले उठा दिया। दोनो मन्नू के घर गए। बदल चारो तरफ से घिरा था। बिना कुछ बोले दोनो घर पहुंचे। मनु ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। श्वेता को एक कमरे ले गया। श्वेता खटिया पर लेट गई। मन्नू ने गरम रजाई श्वेता को ओढ़ा दी। श्वेता गहरी नींद में फिर से समा गई। बिना कुछ बोले मन्नू भी अपने कमरे में चला गया और ठंडी से बचने के लिए थोड़ी देर रजाई में लेट गया।

सुबह 11 बजे थे। श्वेता की आंख खुली और वो कमरे से बाहर आई।

"क्या हुआ जानू ? उठ गई ?" मन्नू ने पूछा।

श्वेता अंगड़ाई लेते हुए बोली "हां उठ गई। चलो अब मुझे जाना होगा।"

"दुबारा कब मुलाकात होगी ?"

"अगले शनिवार ?"

"ठीक है श्वेता।"

श्वेता और मन्नू ने एक दूसरे को अलविदा किया। श्वेता घर की तरफ लौटी। रास्ते के बीच अचानक से बारिश हुई। श्वेता दौड़ते दौड़ते घर पहुंची। वो पूरी तरह से भीग चुकी थी। घर के अंदर नटवर काका ने श्वेता को देखा तो अंदर लेकर आए।

श्वेता का पूरा बदन भीग चुका था।

"अरे श्वेता ये क्या हुआ ? तुम भीग चुकी हो। अंदर जाओ और कपड़े बदलकर आओ।"

श्वेता अंदर गई और कपड़े बदलकर अंदर वापिस आई। नटवर ने चाय बनाया और श्वेता को दिया।

"बारिश अचानक से शुरू हो गई।" श्वेता ने थोड़ा सा कांपते हुए कहा।

"हां और आज ठंडी भी कितनी है।" नटवर ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।

"अच्छा आप जरा कुसुम चाची को कहिए न कि आज खाना न बनाए।"

"अरे श्वेता तुम भूल गई ? वो आज से एक हफ्ते छुट्टी पर है। घर में कोई नहीं हम दोनो ने सिवाय।"

"अरे हां काका। मैं तो भूल ही गई।"

"वैसे आप थी कहा ?"

"बाहर गई थी। अच्छा आप मेरे साथ कुछ लकड़ी लेने स्टोर रूम चलिए न। थोड़ा आज लगाकर सेक लेते है। ठंडी सच्ची में बहुत है आज।"

नटवर और श्वेता ने आग लगाई और आंगन में सेक लें लगे। श्वेता को थोड़ी राहत मिली। बारिश भी थम गया लेकिन तब तक शाम हो चुकी थी। सूरज भी आज पूरे दिन न दिखा। श्वेता ने सोचा की गीले कपड़े बाजार को सुखाने रखा था उसे अंदर ले आए। श्वेता जब छत पर गई तो देखा कि उसके साड़ी का ब्लाउज नही है। श्वेता ने सोचा की शायद हवा होने की वजह से उड़ गया होगा।अपने कपड़े लेकर श्वेता ने रास्ते में नटवर का कमरा देखा जो थोड़ा सा खुला हुआ था। श्वेता ने देखा तो नटवर अब गहरी नींद में था और तो और खर्राटे भी मार रहा था। श्वेता ने दरवाजे को बंद कर दिया और खुद अपने कमरे में चली गई। रात हुई और श्वेता थोड़ा सा थकान महसूस कर रही थी। श्वेता ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और सारे कपड़े उतार दिया जिससे शरीर हल्का हो। खुद को चद्दर से लपेट लिया और सोने लगी।

रात के 11 बज चुके थे। श्वेता करीब 4 घंटे से सो रही थी। शरीर को अब अच्छे से आराम मिल गया। श्वेता का पूरा नग्न शरीर चादर से लिपटा हुआ था। बगल में पड़ी किताब उठाई और पढ़ने लगी। पढ़ने में मग्न श्वेता को अचानक से किसी का कॉल आया। श्वेता ने सोचा इतनी रात को कौन है जो उसे कॉल करेगा ? श्वेता ने जब मोबाइल स्क्रीन को देखा
तो चेहरा मुस्कान से भर गया। वो कॉल मुन्ना का था।

"हेलो।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"क्या कर रही हो जानू ?"

"सोकर उठी अभी।"

"तो क्या इरादा है रात भर जागने का ?" मन्नू ने पूछा।

"नही बिलकुल नहीं। कल मुझे स्कूल जाना है समझे ? मुझे कहीं बाहर नही जाना।"

"हां तो मत जाओ बाहर। मैं आ जाता हूं। तुमसे मिलना है मुझे।"

"तुम भी ना अब सो जाओ। और मुझे भी सोने दो।"

"अरे मैं तो सोना चाहता हूं लेकिन जब भी तुम्हे याद करता हूं सोने का मन नहीं करता।"

"मुझे क्यों याद कर रहे हो ?"

"अरे अपनी जान को याद नही कर सकता ?"

"नही बिलकुल भी नहीं।"

"तुम भी ना श्वेता। तुम्हारी याद में पागल हो रहा हूं।"

"वो तुम पहले से हो।"

"देखो मेरा मजाक मत उड़ाओ वरना......"

"वरना क्या ?"

"वरना मैं शादी नहीं करूंगा तुमसे।"

"चलो अच्छा है न। काम से कम एक पागल आदमी से शादी करने से बच जाऊंगी।" श्वेता हंस पड़ी।

"चलो ठीक है। ठीक है। तुम सो जाओ। I love you मेरी श्वेता।"

"I hate you मेरे बूढ़े आशिक।" इतना कहकर श्वेता ने फोन काट दिया। मुस्कुराते हुए खुद से बोली "इस पागल का क्या करूं मैं। मेरे पीछे पड़ गया। हाय तौबा बचा लो इस आशिक से।"


सुबह सुबह 6 बजे श्वेता उठ गई और तैयार होने लगी। जल्द ही तैयार होकर नाश्ता बनाया और नटवर के साथ स्कूल चल दी। सफेद साड़ी और लाल sleveless ब्लाउस में रोज की तरह कमाल की खूबसूरत लग रही थी। ऑफिस दोनो पहुंचे। वहां पर नटवर ने फिर से अपनी डायरी खोली और कुछ लिखा। फिर लग गया काम पर। श्वेता रोज नटवर को देखती। वो देखती की डायरी लिखते समय नटवर का चेहरा अजीब सी मुस्कान देता है। लिया लिखता है इस डायरी में ? आज तो पता करना ही होगा। ये सोचकर श्वेता बैठी थी।

"सुनो श्वेता मुझे कुछ काम है स्कूल का। मैं वापिस आ जाऊंगा। करीब एक घंटा लगेगा।"

"जी नटवर काका।"

नटवर के जाते ही रास्ता साफ। श्वेता ने दौड़ते ही नटवर के टेबल से उसकी डायरी ली और पढ़ना शुरू कर दिया।



Page 1: मेरी दिल की बातें

"आज सुबह मैं निशा और भीमा के साथ रेलवे स्टेशन में गया। वहां निशा की भाभी श्वेता को लेने जाना था। श्वेता जिसे देखते ही मुझे पहली नजर में कुछ कुछ होने लगा। इतनी खूबसूरत और आकर्षित महिला। बेहद सेक्सी। पहली नजर में देखते ही दिल ने मेरे जवाब दे दिया। रोज sleveless साड़ी पहनना और खुले विचारों से बात करना उसका मुझे अच्छा लगता है। निशा जिस तरह भीमा की हुई लाश श्वेता भी मेरी हो जाए। कितनी अजीब बात है। एक समय उसके ससुर के नौकर थे मैं भीमा और मन्नू। आज भीमा ने उस आदमी की बेटी से शादी कर ली। अब हम बराबर हो गए। श्वेता जो बेहद खूबसूरत औरत है बेचारी 20 साल की उमर में विधवा हो गई। 17 सालो से अकेली रहनेवाली श्वेता को ये नहीं पता कि इस गांव में आकर उसने एक अधेड़ उमर के बुड्ढे का दिल चुरा लिया। श्वेता से मुझे प्यार हो गया है।"


ये सब पढ़कर श्वेता अंदर से हिल जाती है और खुद से कहती है "नटवर काका ये सब क्या है ? इस उमर में ? ये सब सोचते है ? मुझसे प्यार हुआ इन्हे ?"

श्वेता को समझ में नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे ? आगे पढ़ने के बजाय वो वापिस अपनी कुर्सी में आ गई। दिल और दिमाग में नटवर की बातें गूंजने लगी। पता नही क्या हो रहा है उसके साथ। कुछ देर बाद नटवर वापिस आया। श्वेता ने सोचा कि अगर वो उससे नजर चुराएगी तो उसे शक हो जाएगा इसीलिए रोज की तरण नॉर्मल behave करेंगी। श्वेता और नटवर दोनो अपने कामों के लग गए। श्वेता का काम में दिल नही लग रहा था। वो बार बार उस diary की तरफ देख रही थी। पता नही क्यों पर श्वेता को आगे पढ़ने का मन कर रहा था। देखते देखते दोपहर हो गई। दोनो वापिस घर को चल दिए। घर पहुंचते ही दोनो ने साथ में खाना खाया।

श्वेता ने सोचा की ठंडी के मौसम में थोड़ा टहल ले। वैसे एक बात बता दूं। ये गांव में ठंडी ज्यादा पड़ती है। चाहे बारिश का मौसम हो या गर्मी का। ३० डिग्री से ज्यादा मौसम कभी नही होता। श्वेता चलते चलते नदी के पास पहुंची। वहां वो अकेली बैठे बैठे कुछ सोच रही थी। श्वेता अपने सोच मे डूबी थी कि अचानक से किसी ने उसके आंखे बंद कर दिया। आंखे बंद होते ही श्वेता जैसे मुस्कुरा दी। श्वेता को पता था कि पीछे खड़ा आदमी मन्नू है।

"मुझे पता है मन्नू तुम ही हो।"

"अरे वाह मुझे पहचान लिया ?" ये कहकर मन्नू श्वेता के बगल बैठ गया।

"तुम्हे तो में बिना आंख खोले पहचान सकती हूं।"

"अरे वाह। इसे कहते है सच्चा प्यार। आखिर मेरे प्यार में पड़ ही गई न मेरी जान।"

इस बार श्वेता हंसने के बजाय शर्माने लगी और बोली "stop it. बड़े बदमाश हो तुम।"

"अभी हमारी बदमाशी दिल्ली कहा तुमने।"

"अच्छा बदमाशी भी करोगे अब मेरे साथ ?"

"बदमाशी और प्यार भी।"

"प्यार ? बड़े बदमाश हो मन्नू। तुम तो मेरे पीछे पड़ गए हो।"

"उसमे पूरी गलती तुम्हारी है।"

"अरे वाह मेरी गलती ? बताओ कैसे ?"

"उसके लिए मेरे साथ चलना होगा कही तुम्हे।"

"कहां चलना होता तुम्हारे साथ मुझे ?"

मन्नू श्वेता का हाथ पकड़ते हुए अपने घर ले गया। वहां एक बड़े से आइने के सामने श्वेता को खड़ा कर दिया और खुद श्वेता के पीछे खड़ा हो गया।

"ये क्या है मन्नू ? तुम तो मुझे मेरी गलती बताने वाले थे।"

"बता तो दिया। इस खुबसूरती की गलती है जिसने मुझे बदमाश बना दिया।"

"चुप रहो। ऐसा क्या है मुझमें जिसने तुम्हे बदमाश बना दिया ?"

"बुरा तो नही मानोगी ?"

"नही मानूंगी।" श्वेता ने कहा।

"खाओ हमारे दोस्ती की कसम।"

"ठीक है हमारी दोस्ती की कसम।"

मन्नू ने पीछे से श्वेता के नाजुक कंधो पे हाथ रखा। दोनो की नजर आएं पर टिकी हुई थी और दोनो एक दूसरे को देख पा रहे थे।

कंधो को हल्के से दबाते हुए श्वेता के कान के पास आकर मन्नू बोला "ये जो चेहरा है न तुम्हारा ये जो लचकदार और गोरा बदन है तुम्हारा ये किसी भी शरीफ आदमी को बिगाड़ दे।"

श्वेता के शरीर में करंट दौड़ने लगा। वो उत्सुकता से बोली "आज तक कोई मेरी खुबसूरती की वजह से बिगड़ा।"

"वो डरते होंगे तुमसे।"

"लेकिन तुम तो नही डरते मुझसे।"

"क्योंकि मैं तुम्हे जान चुका हूं।"

"क्या जान चुके हो मेरे बारे में ?"

"यही की तुम सर्फ बाहर से नही अंदर से भी खूबसूरत हो।"

"हम्मम। लेकिन मुझे अच्छा दोस्त जो मिला है।"

"कौन है वो अच्छा दोस्त ?"

श्वेता ने अपने चेहरे को पीछे किया और मन्नू के काम में कहा "वो मेरे पीछे ही है और उसका नाम मन्नू है।"

"लेकिन तुम तो मुझे बदमाश और शैतान बोलती हो।"

"क्योंकि तुम मुझे छेड़ते हो।"

"तो क्या मैं सिर्फ बदमाश हूं ?"

"नही। मैने ऐसा कब कहा। बदमाश तो तुम हो लेकिन एक अच्छे दोस्त भी हो।"

"अच्छा तो फिर कितना अच्छा दोस्त ?"

"मेरे जिंदगी में सबसे अच्छे दोस्त।"

"ये बूढ़ा आदमी इस हसीन औरत का अच्छा दोस्त क्यों बना और कैसे ?"

"हम्मम तो सबसे पहले इस बुड्ढे ने मुझे बहुत सताया और छेड़ा भी। इतना छेड़ा की अपनी आदत डलवा दी। बार बार मुझे तंग करता। फिर भी मुझे हंसाता, मुझे बार बार अपनी पत्नी कहकर चिढ़ाता। लेकिन आज सच कहूं ? तो ये बूढ़ा मेरे सबसे करीबी हो गया है। अब इससे मुझे अपनी दोस्ती नहीं तोड़ना। इतने कम समय में तुम मेरे दिल के अलग हिस्से ने बस गए। एक सीधी साधी औरत को अपनी तरह पागल बना दिया।"

मन्नू कुछ नही बोला और श्वेता की आंखों में आंखे डालकर देखने लगा। दोनो एक दूसरे को देखने लगे। मन्नू बिना कुछ बोले श्वेता को पीछे से जकड़ लिया और मुलायम कंधे पर सिर रख दिया। श्वेता भी कुछ न बोली और दोस्त की तरह व्यवहार करने लगी।

"लेकिन श्वेता मुझे शैतान बनाने की सजा मिलेगी।"

"कैसी सजा ?"

"अभी बताता हूं।" इतना बोलकर मन्नू ने श्वेता के नाजुक कमर पर चिकोटी भर दी और गाल को चूम लिया।

श्वेता इस हरकत से हक्का बक्का हो गई।

"बदमाश कमीनें बुड्ढे।" श्वेता मन्नू को मारने लगी और पास में पड़े झाड़ू से पीटने लगी।

"बड़ी बदमाशी चढ़ी है तुम्हे आज तो खैर नहीं तुम्हारी।" श्वेता को हंसी भी आ रही थी।

"अरे मारो मत। अरे नही आआह्ह।"

"मुझे छेड़ता हैं अकेली खूबसूरत औरत को छेड़ता है ?"

"हां छेड़ा मैंने और आगे भी करूंगा।" मन्नू भी हंसने लगा।

"ऐसे कैसे मेरी कमर को छुआ ?"

"ऐसे छुआ।" मन्नू ने फिर से नंगी कमर पर चिकोटि भरी।

श्वेता मारते मारते थक गई और फिर हंसने लगी। मन्नू भी मजाक में श्वेता के बगल बैठ गया।

"देखो कितना मारा तुमने मुझे ?"

"मार तो पड़नी ही थी। मुझे छेड़ रहे थे तुम।"

"लेकिन इसका मतलब इतना मरोगी मुझे ?"

"हां।" श्वेता हफ्ते हुए खटिया पर लेट गई। मन्नू भी उसके बगल लेट गया।

श्वेता हंसने लगी और बोली "इसी बदमाशी और शैतान दोस्त ने मुझे बहुत हंसाया। तुम इतने बदमाश हो न कि पूछो मत। पता नही ये शैतान बुड्ढा कैसे मेरे पीछे पड़ गया।"

"चलो श्वेता ये तो मजाक था। लेकिन सच में वादा करो मुझसे दूर नहीं जाओगी।"

"जा भी नही सकती आखिर दोस्ती की आदत पड़ने लगी है मुझे।"

"I love you" इतना कहकर मन्नू ने श्वेता के वमर पर हाथ रख और हल्के से गाल को चूम लिया।"

"But I hate you" श्वेता हंसते हुए मन्नू के गाल पे हल्का सा थप्पड़ मारा।

"कभी तो i love you बोल दो।"

"नही बोलूंगी। मुझे छेड़ने की सजा है ये।"

दोनो कुछ न बोल बस कुछ देर तक आंखे बंद करके लेट गए।
Bahut hi badhiya update diya hai Hills bhai....
Nice and excellent update..
 
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