मन्नू अपने कमरे में निशा की नंगी तस्वीर को अलमारी में रख दिया। बाहर श्वेता चिल्लाते हुए बोली "अरे ओ मुन्ना। कहा गए हो? मैं रसोईघर में तुम्हारा इंतजार कर रही हूं।"
"आया श्वेता।"
मन्नू रसोईघर में घुसा। दोनो नीचे बैठकर खाना बनाने लगे। मन्नू सब्जी काट रहा था और श्वेता आटा गूथ रही थी। मन्नू श्वेता को आता घुंठते हुए देख रहा था। काम करते वक्त clevage दिख रहा था लेकिन श्वेता को पता नहीं था। आटा गूथ ते वक्त कमर पर साड़ी का पल्लू खोस दी। मन्नू लगातार clevage को घूर रहा था। श्वेता इस बात से अनजान थी की एक काला सा बूढ़ा आदमी उसके लिए मर रहा था। वो इस बात से अनजान थी कि wohi बुढ़ा आदमी उसकी मोहोब्बत की आग में जल रहा था।
श्वेता की नजर मन्नू पर गई जो उसे घूर रहा था। श्वेता ने पास में बड़े बेलन से मन्नू को हल्के से मारा और कहा "सब्जी काटो वरना भूखा मरेंगे दोनो।"
"अरे हां। बस अभी हो जाएगा काम।"
श्वेता पूछी "आप अकेले कैसे रह लेते है यहां पर ? और आपके बीवी बच्चे नही है क्या ?"
"नही। मेरी अब तक शादी ही नहीं हुई।"
दरअसल बात यह थी कि गरीबी और मजदूरी जीवन से मन्नू को आमदनी इतनी कम थी कि उसमे उसी का खर्चा हो पाता था। इसीलिए तो उसकी शादी न हो सकी।
"क्यों शादी नही की?"
"श्वेता मेरे पास पैसे नहीं थे। तो कैसे करता शादी ?"
"अब तो आपो पास पैसे है न ? दो का खर्चा अब आप कर सकते है न। फिर अब कर लीजिए शादी।" श्वेता ने हल्के से छेड़ते हुए कहा।
"कोई मिलनी भी तो चाहिए। अब लड़की कहां से मुझे मिलेगी कोई औरत ?"
"अच्छा ये बताइए कि कैसी औरत चाहिए आपको ?"
"मुझे कोई जवान और बेहद खूबसूरत औरत से शादी करना है। एल्किन इस बुढ़ापे में कोई नहीं आएगी।"
वैसे श्वेता थोड़ा खुले विचारों वाली औरत थी। और मजाक भी करती थी। तो बस मन्नू की फिरकी लेते हुए बोली "चलो तो आपके कहने का मतलब है खूबसूरत और जवान औरत यानी मेरी जैसी ?"
"हां। बिलकुल सही।"
"मेरी जैसी अभी आपको मिलना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं।"
मन्नू ने भी हल्के से मजाक करने को सोचा और कहा " वैसे तुम क्यों नहीं बन जाती मेरी पत्नी ?"
श्वेता जोर जोर से हंसने लगी और बोली "अच्छा तो अब आप मुझपर डोरे डाल रहे है ?"
मन्नू आंख मरते हुए कहा "मैं तो डाल चुका हूं। अब जल्दी से हां बोल दो। अभी शादी कर ले ?"
श्वेता को मजा आ रहा था एक दूसरे को छेड़ने में।
"हाय तौबा। इतनी जल्दी ? अब तो पक्का यकीन हो गया कि तुम मुझपर डोरे डाल रहे हो।"
"सिर्फ डोरे नही डाल रहा। अब तो पक्का तुमसे शादी करने का इरादा बना लिया।"
"लेकिन शादी करेंगे कहा ?"
"तुम कहो तो अभी चल दे मन्दिर?"
"इतना उतावलापन अच्छा नहीं। शादी का मामला है। मुझे वक्त चाहिए। वैसे तुमसे शादी करने में मुझे कोई हर्ज नहीं। तुम खेती करो और में काम करूंगी।"
"पूरे दिन खेती और काम करेंगे तो वक्त हमे कैसे मिलेगा ?"
"किस चीज के लिए वक्त चाहिए ?"
"प्यार करने का।" मन्नू ने आंख मरते हुए कहा।
"अब क्या इस उमर में प्यार करेंगे आप ?"
"लो प्यार की कोई उम्र होती है ?"
"लेकिन प्यार क्यों करेंगे आप ?"
"जब तुम इतनी खूबसूरत औरत मेरी बीवी बनेगी तो उसे ऐसे जाने दूंगा।पहले तो खूब प्यार करूंगा और......."
"और क्या ?"
"और फिर अपना परिवार बनाऊंगा। आखिर बच्चे भी तो चाहिए मुझे।"
श्वेता हंसने लगी और बोली "लगता है तुम्हे आशिकी का बुखार चढ़ गया। मुझे तुमसे बचकर रहना होगा।पता नही कब तुम मुझपर अपना दिल अपना दिल दे बैठो।"
"दिल दे दिया। अब जल्दी से तुम्हे अपनी बीवी बना लूं।"
"हाय तौबा इस आशिक से मुझे बचाओ। वरना ये मुझे चुराकर ले जाएगा।"
"तो अब से तुम्हे जानू कहकर बुलाऊंगा।"
"और मैं तुम्हे जानेमन ?"
"बुलाओ न। वैसे भी हमारी शादी जो होनेवाली है।"
"आप भी ना मन्नू। पागल है आप पागल।"
"तुम्हारे प्यार में मेरी जान।"
"हां मेरे जानेमन। अब लगता है इस पागल को झेलना ही पड़ेगा।"
"I Love you श्वेता।"
"I hate you मेरे बदमाश आशिक।"
दोनो ने खूब मजाक किया और साथ में खाना खाया।
श्वेता को बस मजाक मस्ती कर रही थी और मन्नू भी। मन्नू जानता था कि श्वेता कभी भी उसके जैसे काले बूढ़े से शादी नहीं करेगी। काम से कम इस मजाक मस्ती की आड़ में जिंदगी के कुछ अच्छे लम्हे को जी लेगा। मन्नू श्वेता का कभी भी बुरा नही चाहेगा और न कभी गलत फायदा उठाएगा उसकी दोस्ती का। वो तो बस श्वेता में अपनी अच्छी दोस्त को देख रहा है। ऐसा दोस्त जो अकेलेपन में उसका साथ दे। एक पवित्र मैत्री संबंध।
कहना खाने के बाद दोनो साथ में अलग अलग कमरे में आराम करने लगे। मन्नू अपने कमरे में निशा के दूसरे नग्न तस्वीर को देखने लगा और बोला "निशा प्यार जब होता है तो दुनिया अच्छी लगने लगती है। मैं जानता हूं की तुम भीमा की पत्नी हो लेकिन आज भी मेरे दिल में तुम्हारे लिए मोहोब्नत है। तुमसे दूर रहने की वजह मेरा प्यार है। जब भी तुम्हारे पास आता हूं तो जैसे तुम्हे बाहों में भरने का मन करता है। मुझे याद है जब मैंने तुम्हे पीछे साल तलाब में नहाते हुए देखा। तुम इस बात से अनजान थी कि झाड़ियों में छुपकर मै तुम्हे नहाते देख रहा था। क्या यौवन है तुम्हारा। शरीर पर एक भी कपड़े न थे। सोने सी चमक है तुम्हारे जिस्म में। तुम्हारे एक एक अंग को मैने देखा। सच कहता हूं निशा, जैसे तुम्हे बाहों में भरने का मन हो रहा था। तुम जानती नही कि उस दिन से तुमने भीमा के साथ मुझे भी अपने दीवाना बना दिया। तुम्हारे नग्न शरीर मेरे दिमाग में इस कदर बस गया की ये नग्न तस्वीर पूरी तरह से वैसे ही बनाया। निशा बस एक बार तुम्हारे से साथ रात बिता सकता लेकिन अब जाने दो। श्वेता ही शायद मेरी जीवनसाथी बन जाए।"
शाम हुई और मन्नू को अलविदा कहकर श्वेता अपने घर चली गई। मन्नू आज बड़े मुश्किल दौर से गुजर रहा था। श्वेता से इस कसर मोहब्बत हो गई कि अब उसके बिना एक एक पल नही कट रहा था। रात तक ये बैचेनी इस कदर बढ़ गई कि उसने जेब से सस्ता मोबाइल निकाला और श्वेता को कॉल कर दिया। श्वेता उस वक्त अकेले छत पर थी। मन्नू का कॉल देखते ही चेहरे पर अलग सी मुस्कान आ गई।
"हेलो।" श्वेता ने मीठे स्वर में कहा।
"हेलो जानू।" मन्नू ने छेड़ते हुए कहा।
"हां जानेमन।" श्वेता हंस दी।
"क्या कर रही हो ?" मन्नू ने पूछा।
"कुछ नही। अकेले छत पर हूं। तुम क्या कर रहे हो ?"
"बस तुम्हे याद। अपनी जानू को याद।"
"अरे ओ मनचले आशिक। इतना भी याद न करो। वरना पागल हो जाओगे मेरी याद में।" श्वेता इतना बोलते ही फोन को साइड में रखी और दो सेकंड के लिए हंसने लगी।
"पागल तो हूं। तुमसे मिलने का दिल कर रहा है।"
"इतनी बेताबी भी ठीक नहीं। क्या इतना पागल कर दिया मैंने तुम्हे ?"
"हां। अब मैंने मोहब्बत की है तो निभानी पड़ेगी। कल रविवार है।"
"हां तो ?" श्वेता ने पूछा।
"तो जरा मेरे दिल के बुरे हाल को ठीक कर दो।"
"वो कैसे ?"
"अपने आशिक के घर आ जाओ।"
"नही नही। इस पागल आशिक से मिलने कल नही आऊंगी।"
"तो मैं आ जाऊं ? कहो तो अभी आ जाऊं ?"
"पागल हो क्या ? ऐसे कैसे ? इतनी रात को ?"
"हां। और वैसे भी निशा, बच्चे और भीमा बाहर गए है न। एक हफ्ते के लिए। अकेले क्या करोगी ?"
"पागल हो तुम पागल। मुझसे मिलने रात को ?"
"अगर आया तो क्या कहोगी ?"
"पागल कहूंगी तुम्हे। बाते भी तो सही करो। कोई रात को आएगा क्या मिलने ?"
"अपने छत के किनारे आओ। मैं आ गया।"
"क्या ?" श्वेता दौड़ते हुए छत के किनारे आई तो देखा अंधेरे आई बीच मन्नू खड़ा था।
"तुम पागल हो गए हो क्या ? इतनी रात यहां क्या कर रहे हो ?" श्वेता ने हैरान होकर पूछा।
"तुमसे मिलने आया। चलो नीचे आओ।"
"नही बिलकुल नहीं। मुझे सोने जाना है।"
"मिलने तो आना पड़ेगा मुझसे।" मन्नू ने कहा।
"नही आऊंगी। क्या कर लोगे ?"
"पूरी रात खड़ा रहूंगा।"
"ऑफ़ हो। आ रही हूं बाबा।"
"अच्छा सुनो ना। तुम्हारे लिए कुछ प्लान बनाया है। जल्दी से साड़ी में आओ वो भी sleveless साड़ी में।"
"पर क्यों ?"
"क्यों का जवाब बाद में। जल्दी से आओ साड़ी में।"
श्वेता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। चुप चाप साड़ी पहनी और दबे पांव से घर के बाहर गई। बाहर मन्नू खड़ा था।
"ये क्या ज़िद है ? इतनी रात क्यों बुलाया नीचे ?"
मन्नू ने श्वेता का हाथ पकड़ा और ले जाने लगा।
"ये क्या कर रहे हो मन्नू ? छोड़ो मेरा हाथ। कहा ले जा रहे हो ?"
"घर ले जा रहा हूं।"
"लेकिन क्यों ?"
"बताता हूं।" मन्नू थोड़ी दूर श्वेता को अपने घर ले आया। श्वेता ने देखा तो घर के अंदर पेंटिंग के समान थे। और एक कुर्सी थी।
"आज तुम्हारी तस्वीर बनाऊंगा।"
"मेरी तस्वीर ? वो तो कल बना सकते थे। अभी इतनी रात को क्यों ?"
"ताकि रात को कोई हमे परेशान न कर सके। वैसे भी तुमने कहा था ना कि तुम्हारी पेंटिंग मैं बनाऊं।"
"पागल हो गए हो तुम। चलो बनाओ। लेकिन एक शर्त पर।"
"कैसी शर्त।"
"तुम्हारा कान पकड़कर खींचना है।" श्वेता ने मन्नू का जोर से कान पकड़कर खींचा।"
"Aaahhh ये क्या कर रही हो। छोड़ो दर्द हो रहा है।" मन्नू ने चीखते हुए कहा।
"ये कान पकड़ा है तुम्हे सजा देने के लिए। इतनी रात मुझे अपने घर लेकर आए। न सो खुद रहे हो और न मुझे सोने दे रहे हो।"
"कान तुमने पकड़ लिया। अब घुसा शांत ?"
श्वेता हंसते हुए बोली "हे भगवान इस पागल को क्या कहूं ? तुम सच में पागल हो। चलो अब करो जो करना चाहते हो।"
आज बहुत सालो बाद श्वेता को किसी ने हसाया, गुदगुदाया और adventure करवाया। श्वेता को मन्नू में एक नजदीकी दोस्ती दिखी। वो बस इस लम्हे का आनंद लेना चाहती है। जहां वो हंसे, खुश रहे और बाहर कुदरती सौंदर्य में खोती रहे।
मन्नू ने श्वेता की पेंटिंग बनाने लगा। पेंटिंग बनाते बनाते रात 10 बजे से 3 कब बज गए पता न चला।
श्वेता बोली "अच्छा मन्नू बहुत देर हो गई। अब मुझे कहीं घुमाने ले जाओ वरना मैं चली जाऊंगी अपने घर।"
"तो फिर आज तुम्हे झरने के पास ले चलता हूं। ठंडा ठंडा पानी और भीनी भीनी हवाओं का आनंद हम लेंगे।"
मन्नू श्वेता को लेकर जंगोर के पास झरने में ले गया। चांदनी रात में जैसे स्वर्ग सा लग रहा था झरना।
"ओह मन्नूतना खूबसूरत है ये जगह।"
मन्नू झरने के किनारे झूले पर ले गया श्वेता को। श्वेता को झूला झूलने लगा। श्वेता झूले का मजा ले रही थी।
"ओह मन्नू इस खूबसूरत जगह की बात ही अलग है। बहुत खूबसूरत है ये जगह।"
"तुम्हारे जितना खूबसूरत नही।" मन्नू ने श्वेता को पीछे से देखते हुए कहा।
श्वेता ने झूला रोका और पीछे खड़े मन्नू की तरफ मुड़ी और बोली "तुम तो शुरू हो गए फिर से।"
"अब क्या सच बोलना भी गुनाह है ? श्वेता तुमसे प्यार करने जो लगा हूं मैं।"
"शैतान हो तुम शैतान। मुझे छेड़ते रहते हो तुम।"
"ये शैतानी चलती रहेगी। मुझे शैतान भी तो तुम्हारी खुबसूरती ने बनाया।"
"हम्म् इसका मतलब अब इस शैतान से मुझे कोई नही बचा सकता ?" श्वेता ने चिढ़ाते हुए पूछा।
"नही बचा सकता कोई।"
"हटो बदमाश।" श्वेता नदी से बहते झरने को देखते देखते किनारे पेड़ के नीचे लेट गई। मन्नू भी श्वेता को बगल लेट गया।
"मन्नू मुझे इस जगह से प्यार हो गया। कुछ देर मुझे इस जगह को गोद में सोना है।"
"मैं भी बगल में लेट जाऊं ?"
"हां बिलकुल।"
दोनो साथ में लेटकर झरना, नदी और चांद को देख रहे थे।
"श्वेता मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।"
"मुझे भी।"
"वैसे शादी के बाद हम एक ही बिस्तर पर होंगे। इस जमीन पर नहीं।"
"Stop it मन्नू। तुम तो शादी के पीछे पड़ गए। ऐसा लग रहा है की तुम मुझे यहां शादी के लिए ले आए हो।" श्वेता हंसते हुए बोली।
"शादी तो करनी है तुमसे।" मन्नू ने हल्के से श्वेता का हाथ पकड़ लिया।
श्वेता बोली "तुम अब हाथ भी पकड़ने लगे। सच में मन्नू तुम तो बड़े तेज़ हो। इस गांव में पता नही मेरा एक दीवाना भी है।"
"I love you shweta." दोनो शांत वातावरण में आंखे बंद करके एक दूसरे का हाथ थामकर सो गए।
निशा का नदी में नहानेवाली पेंटिंग