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Fantasy ब्रह्माराक्षस

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
21,832
57,857
259
अध्याय इक्सठ

जहाँ एक तरफ मे उस मायावी दुनिया में कैद था तो वही दूसरी तरफ मायासुर ने विराज को मारने के बाद लगभद पूरे पाताल लोक को अपने कब्जे में ले लिया था

जहाँ पहले पाताल लोक में केवल काम क्रीड़ा और मदिरा के नशे मे धुत्त योद्धाओं का आमना सामना होता और कोई एक मारा जाता या कभी कभी दोनों मारे जाते और स्त्रियाँ तो वहा केवल भोग विलास की वस्तु थी


तो वही अब मायासुर ने पूरे पाताल लोक में सारे मदिरा और वैश्या घरों को बंद कर दिया था और सभी असुर असुरियों को केवल आने वाले युद्ध के लिए ही तैयार रहने का आदेश दिया था यहाँ तक असुर कुमारों को भी उसने युद्ध मे सैनिकों का सामान उठाने के लिए तैयार किया था

और अगर कोई भी जरा सी चु चा करता तो तुरंत उसका सर धड़ से अलग होता और अगर कोई स्त्री उसके सामने अपनी आवाज उठाने की गुस्ताखी करती तो उस सबके सामने एकसाथ कई असुरों द्वारा बेरहमी से भोगा जाता

साफ कहे तो मायासुर ने आने वाले युद्ध मे विजय सुनिश्चित करने के बजाए प्रजा के मन में विद्रोह की सोच को जरूर सुनिश्चित कर दिया था अभी तक सारे असुर मायासुर का कहा मान रहे थे

तो इसी वजह से की उसके साथ स्वयं आचार्य शुक्राचार्य है और कोई भी असुर उनके खिलाफ विद्रोह की आवाज नही उठा सकता था और इसी का फायदा उठा कर मायासुर लगभग पूरे पाताल लोक में अपना राज कायम कर लिया था


अब पूरे पाताल लोक में केवल दो ही जगह ऐसी थी जहाँ पर अभी तक मायासुर ने अपना राज तो दूर बल्कि कदम भी नही रखा था और वो दो जगहे थी शुक्राचार्य का राज्य जहाँ पर सारे असुर आ जा सकते थे

लेकिन जिन्होंने वहा पर किसी भी तरफ के दुर्व्यवहार करने की इच्छा रखी उसका सामना करने स्वयं शुक्राचार्य आ जाते और पूरे पाताल लोक में ऐसा एक असुर भी नही था जो शुक्राचार्य से युद्ध करने की इच्छा रखे

अगर साफ कहा जाए तो वहा जिसने भी राज करने की इच्छा से कदम रखा उसे वहा केवल और केवल 6*6 की कब्र नसीब हुई जिसमे उन्हे वहा के मिट्टी मे पनपने वाले सूक्ष्म जीव नोच नोच कर खाते

इसीलिए आज तक पाताल लोक में जितने भी राजा ही उन सभी ने गुरु शुक्राचार्य के उस भाग के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था भले ही उनके पास पूरे पाताल लोक की ही शक्ति क्यों न हो लेकिन

वो सभी जानते थे की शुक्राचार्य को हराने में केवल त्रिदेव ही सक्षम थे और सारे असुरो का उनके प्रति भरोषा और आदर भी अतुल्य था इसी कारण से जब मायासुर के आतंक से तंग आकर कुछ असुरों ने शुक्राचार्य से मदद मांगी


तो शुक्राचार्य ने उस मदद के रूप मे सारे असुर बालकों को औरतो को अपने राज्य में रहने का स्थान दीया जिससे उनके प्रति सबका आदर और विश्वास पहले से भी दोगुना बढ़ गया

तो वही दूसरी जगह वही भाग था जहाँ पर महासूर ने अपना राज्य स्थापित किया था वहा मायासुर जाना तो चाहता था ताकि वो महासूर से मिलकर कोई प्रबल योजना बना पाए

आखिर कौन राजा नही चाहेगा की आने वाले युद्ध मे ऐसा की महा शक्तिशाली और प्रबल पक्ष उनके साथ खड़ा हो न की उनके विरोध में और मायासुर को इस बात का भी बोध था कि अगर कोई एक महासूर ने उसकी मैत्री को स्वीकार करे तो सारे महासूर उसके साथ हो जायेंगे


और सबसे बड़ी बात सप्तस्त्रों की तोड़ थे ये महासूर ये सारी बात उसे और उकसा रही थी आगे बढ़ने के लिए लेकिन शुक्राचार्य का साफ आदेश था की उनके कोई भी मतलब कोई भी उस भाग में प्रवेश नही करेगा

और यही एक बात थी की हर बार मायासुर उस भाग की सीमा पर आता और केवल वहा के हाल का निरीक्षण करता कुछ सिपाहियों ने जिज्ञासा वश उस भाग में जाने की गुस्ताखी की थी

लेकिन जिन्होंने भी उस भाग में कदम रखा वो सब केवल वहा की प्रजा जो अब नरभक्षी बन गए थे उनके आहार मे शामिल हो जाते जिसके कारण बाकी कोई भी वहा जाने से अब डरने लगा था

तो वही इस वक़्त गुरु शुक्राचार्य और मायासुर दोनों उसी जगह पर थे जहाँ कुछ समय पहले महायुद्ध हुआ था जिसमे भद्रा ने आके पुरा पासा ही पलट दिया था और अभी उस जगह पर वो दोनों मौजूद थे

और उनके अलावा वहा शहीद हुए लाखों असुरी सिपाहियों जली कटी लाशे जो देखकर मायासुर समझ नही पा रहा था कि आखिर शुक्राचार्य उसे लेकर यहाँ क्यों आये है

जिससे उसके मन इसका कारण जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी और इसी जिज्ञासा वश उसने अपने गुरु से पूछने लगा

मायासुर :- गुरुवर आपने अभी तक बताया नही की आखिर हम यहाँ पर आये क्यों है आखिर इन शिपहियों के मृत देह और अस्थियों से क्या कार्य है

शुक्राचार्य :- धीरज मायासुर धीरज रखो सब पता चल जायेगा

अभी फिर से मायासुर कुछ बोलता या पूछता उससे पहले ही शुक्राचार्य का शरीर हवा में उड़ने लगा और वो अपनी आँखे बंद करके जोरों से मंत्र जाप करने लगे और जब वो मंत्र पढ़ रहे थे


वैसे वैसे वहा की पूरी धरती मे कंपन होने लगी थी वहा के आसमान मे भयंकर बिजलियाँ चमकने लगी थी और जब मायासुर ने वो मंत्र ध्यान से सुना तो उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आ गयी

जैसे किसी छोटे बालक को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो इसके पीछे कि वजह थी वो विद्या जो गुरु शुक्राचार्य इस्तेमाल कर रहा था और वो विद्या थी मृत संजीवनी विद्या

हमारी संस्कृति में इस विद्या के बारे में वर्णित किया गया है की अपने गुरु की आज्ञा से एक शिष्य ने भगवान आदिदेव को गुरु बनाने के लिए कठोर तप किया. जिसके परिणाम स्वरूप भगवान आदिदेव ने प्रसन्न होकर उस शिष्य को मृत संजीवनी की विद्या दी,

जिससे किसी मृत को भी जीवित किया जा सकता है. भगवान आदिदेव से यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद वो शिष्य दैत्यगुरु शुक्राचार्य बन गया. जिसके बाद दैत्य देवों द्वारा मारे गए अपने शिष्यों को जीवित कर देते

.लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले इसे सिद्ध करना बहुत जरूरी है. सिद्ध करने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है. मान्यता है कि यदि मंत्र सिद्ध हो जाए तो किसी मृत व्यक्ति के कान में चुपचाप इस मंत्र को बोलने से वो व्यक्ति फिर से जीवित हो सकता है.


और इसी महान विद्या का इस्तेमाल करके शुक्राचार्य ने वहा पर शहीद हुए सारे असुरी सैनिकों को पुनर्जीवित कर दिया था जो देखकर मायासुर और बाकी सब शुक्राचार्य के सामने झुक गए थे

आज पहली बार मायासुर ने साक्षात रूप से इस विद्या को देखा था और ये देखकर आज उसे इस बात का यकीन हो गया था की भले ही शिष्य कितना ही बड़ा तोप बन जाए लेकिन गुरु हमेशा गुरु ही रहेगा


लेकिन इस विद्या का एक नियम था कि ये एक योद्धा पर केवल एक ही बार काम करता है

जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था तो वही दूसरी तरफ इस वक़्त मे और गुरु नंदी किसी बड़े मैदान में थे जहाँ पर बहुत सी भयानक और क्रूर दिखने वाले असुरो की मूर्तियाँ भी थी

जिन्हे देखकर लग रहा था कि मानो अभी जीवित हो जायेंगी और हमला करेंगे मे उन मूर्तियों को देखकर उत्साहित हो गया था और उन्हे बार बार देख रहा था और जब गुरु नंदी ने मुझे उन मूर्तियों को देखते पाकर गुरु नंदी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी

गुरु नंदी :- इन मूर्तियों को ऐसे क्यों घूर रहे हो कुमार

मै:- इन्हे देखकर ऐसा लगता हैं कि ये सब जीवित है

गुरु नंदी :- सही कहा आपने ये सब महासुरों की सेना का हिस्सा है जिन्हे हमने मूर्तियों में तब्दील कर दिया था और जब महासूर जागेंगे तब ये सभी पुन्हा दैत्य रूप धारण करेंगे

मै :- अच्छा

उसके बाद मे और गुरु नंदी एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो गए और उसके बाद गुरु नंदी ने मुझे बहुत सी चीजों की जानकारी दी बहुत से ऐसी विद्याएँ भी सिखाई जो बहुत उपयोगी थे

जिसके बाद गुरु जल, वानर अग्नि, पृथ्वी, सिँह और काल सभी गुरुओं ने एक एक करके मुझे अपने अपने अस्त्रों से जुड़ी जानकारी बताई अलग अलग विद्याएँ सिखाई और बीच बीच में वो सभी मेरे साथ युद्ध अभ्यास भी करते

ऐसे ही न जाने कितना समय बीत गया लेकिन ये शिक्षा बंद नही हुई वो मुझे सिखाते जाते और जब हमारी ये शिक्षा पूरी हुई तो तो सारे गुरु मेरे सामने खड़े थे

गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है

अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

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Bohot hi badhiya update tha vajradhikari bhai 👌🏻 dukracharya ne bhadra ke dwara mari gai sena ko jeevit kar diya, mahasur bhi aarahe hai, or abhi bhadra jaha yudh ki sikhsa , . Ile raha hai wahi ki zameen hilne ka matlab hai ki jo senik murti bane hue tha wo jeevit ho rahe hai m i right?
Awesome update 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥
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Rohit1988

Well-Known Member
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जहाँ एक तरफ मे उस मायावी दुनिया में कैद था तो वही दूसरी तरफ मायासुर ने विराज को मारने के बाद लगभद पूरे पाताल लोक को अपने कब्जे में ले लिया था

जहाँ पहले पाताल लोक में केवल काम क्रीड़ा और मदिरा के नशे मे धुत्त योद्धाओं का आमना सामना होता और कोई एक मारा जाता या कभी कभी दोनों मारे जाते और स्त्रियाँ तो वहा केवल भोग विलास की वस्तु थी


तो वही अब मायासुर ने पूरे पाताल लोक में सारे मदिरा और वैश्या घरों को बंद कर दिया था और सभी असुर असुरियों को केवल आने वाले युद्ध के लिए ही तैयार रहने का आदेश दिया था यहाँ तक असुर कुमारों को भी उसने युद्ध मे सैनिकों का सामान उठाने के लिए तैयार किया था

और अगर कोई भी जरा सी चु चा करता तो तुरंत उसका सर धड़ से अलग होता और अगर कोई स्त्री उसके सामने अपनी आवाज उठाने की गुस्ताखी करती तो उस सबके सामने एकसाथ कई असुरों द्वारा बेरहमी से भोगा जाता

साफ कहे तो मायासुर ने आने वाले युद्ध मे विजय सुनिश्चित करने के बजाए प्रजा के मन में विद्रोह की सोच को जरूर सुनिश्चित कर दिया था अभी तक सारे असुर मायासुर का कहा मान रहे थे

तो इसी वजह से की उसके साथ स्वयं आचार्य शुक्राचार्य है और कोई भी असुर उनके खिलाफ विद्रोह की आवाज नही उठा सकता था और इसी का फायदा उठा कर मायासुर लगभग पूरे पाताल लोक में अपना राज कायम कर लिया था


अब पूरे पाताल लोक में केवल दो ही जगह ऐसी थी जहाँ पर अभी तक मायासुर ने अपना राज तो दूर बल्कि कदम भी नही रखा था और वो दो जगहे थी शुक्राचार्य का राज्य जहाँ पर सारे असुर आ जा सकते थे

लेकिन जिन्होंने वहा पर किसी भी तरफ के दुर्व्यवहार करने की इच्छा रखी उसका सामना करने स्वयं शुक्राचार्य आ जाते और पूरे पाताल लोक में ऐसा एक असुर भी नही था जो शुक्राचार्य से युद्ध करने की इच्छा रखे

अगर साफ कहा जाए तो वहा जिसने भी राज करने की इच्छा से कदम रखा उसे वहा केवल और केवल 6*6 की कब्र नसीब हुई जिसमे उन्हे वहा के मिट्टी मे पनपने वाले सूक्ष्म जीव नोच नोच कर खाते

इसीलिए आज तक पाताल लोक में जितने भी राजा ही उन सभी ने गुरु शुक्राचार्य के उस भाग के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था भले ही उनके पास पूरे पाताल लोक की ही शक्ति क्यों न हो लेकिन

वो सभी जानते थे की शुक्राचार्य को हराने में केवल त्रिदेव ही सक्षम थे और सारे असुरो का उनके प्रति भरोषा और आदर भी अतुल्य था इसी कारण से जब मायासुर के आतंक से तंग आकर कुछ असुरों ने शुक्राचार्य से मदद मांगी


तो शुक्राचार्य ने उस मदद के रूप मे सारे असुर बालकों को औरतो को अपने राज्य में रहने का स्थान दीया जिससे उनके प्रति सबका आदर और विश्वास पहले से भी दोगुना बढ़ गया

तो वही दूसरी जगह वही भाग था जहाँ पर महासूर ने अपना राज्य स्थापित किया था वहा मायासुर जाना तो चाहता था ताकि वो महासूर से मिलकर कोई प्रबल योजना बना पाए

आखिर कौन राजा नही चाहेगा की आने वाले युद्ध मे ऐसा की महा शक्तिशाली और प्रबल पक्ष उनके साथ खड़ा हो न की उनके विरोध में और मायासुर को इस बात का भी बोध था कि अगर कोई एक महासूर ने उसकी मैत्री को स्वीकार करे तो सारे महासूर उसके साथ हो जायेंगे


और सबसे बड़ी बात सप्तस्त्रों की तोड़ थे ये महासूर ये सारी बात उसे और उकसा रही थी आगे बढ़ने के लिए लेकिन शुक्राचार्य का साफ आदेश था की उनके कोई भी मतलब कोई भी उस भाग में प्रवेश नही करेगा

और यही एक बात थी की हर बार मायासुर उस भाग की सीमा पर आता और केवल वहा के हाल का निरीक्षण करता कुछ सिपाहियों ने जिज्ञासा वश उस भाग में जाने की गुस्ताखी की थी

लेकिन जिन्होंने भी उस भाग में कदम रखा वो सब केवल वहा की प्रजा जो अब नरभक्षी बन गए थे उनके आहार मे शामिल हो जाते जिसके कारण बाकी कोई भी वहा जाने से अब डरने लगा था

तो वही इस वक़्त गुरु शुक्राचार्य और मायासुर दोनों उसी जगह पर थे जहाँ कुछ समय पहले महायुद्ध हुआ था जिसमे भद्रा ने आके पुरा पासा ही पलट दिया था और अभी उस जगह पर वो दोनों मौजूद थे

और उनके अलावा वहा शहीद हुए लाखों असुरी सिपाहियों जली कटी लाशे जो देखकर मायासुर समझ नही पा रहा था कि आखिर शुक्राचार्य उसे लेकर यहाँ क्यों आये है

जिससे उसके मन इसका कारण जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी और इसी जिज्ञासा वश उसने अपने गुरु से पूछने लगा

मायासुर :- गुरुवर आपने अभी तक बताया नही की आखिर हम यहाँ पर आये क्यों है आखिर इन शिपहियों के मृत देह और अस्थियों से क्या कार्य है

शुक्राचार्य :- धीरज मायासुर धीरज रखो सब पता चल जायेगा

अभी फिर से मायासुर कुछ बोलता या पूछता उससे पहले ही शुक्राचार्य का शरीर हवा में उड़ने लगा और वो अपनी आँखे बंद करके जोरों से मंत्र जाप करने लगे और जब वो मंत्र पढ़ रहे थे


वैसे वैसे वहा की पूरी धरती मे कंपन होने लगी थी वहा के आसमान मे भयंकर बिजलियाँ चमकने लगी थी और जब मायासुर ने वो मंत्र ध्यान से सुना तो उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आ गयी

जैसे किसी छोटे बालक को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो इसके पीछे कि वजह थी वो विद्या जो गुरु शुक्राचार्य इस्तेमाल कर रहा था और वो विद्या थी मृत संजीवनी विद्या

हमारी संस्कृति में इस विद्या के बारे में वर्णित किया गया है की अपने गुरु की आज्ञा से एक शिष्य ने भगवान आदिदेव को गुरु बनाने के लिए कठोर तप किया. जिसके परिणाम स्वरूप भगवान आदिदेव ने प्रसन्न होकर उस शिष्य को मृत संजीवनी की विद्या दी,

जिससे किसी मृत को भी जीवित किया जा सकता है. भगवान आदिदेव से यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद वो शिष्य दैत्यगुरु शुक्राचार्य बन गया. जिसके बाद दैत्य देवों द्वारा मारे गए अपने शिष्यों को जीवित कर देते

.लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले इसे सिद्ध करना बहुत जरूरी है. सिद्ध करने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है. मान्यता है कि यदि मंत्र सिद्ध हो जाए तो किसी मृत व्यक्ति के कान में चुपचाप इस मंत्र को बोलने से वो व्यक्ति फिर से जीवित हो सकता है.


और इसी महान विद्या का इस्तेमाल करके शुक्राचार्य ने वहा पर शहीद हुए सारे असुरी सैनिकों को पुनर्जीवित कर दिया था जो देखकर मायासुर और बाकी सब शुक्राचार्य के सामने झुक गए थे

आज पहली बार मायासुर ने साक्षात रूप से इस विद्या को देखा था और ये देखकर आज उसे इस बात का यकीन हो गया था की भले ही शिष्य कितना ही बड़ा तोप बन जाए लेकिन गुरु हमेशा गुरु ही रहेगा


लेकिन इस विद्या का एक नियम था कि ये एक योद्धा पर केवल एक ही बार काम करता है

जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था तो वही दूसरी तरफ इस वक़्त मे और गुरु नंदी किसी बड़े मैदान में थे जहाँ पर बहुत सी भयानक और क्रूर दिखने वाले असुरो की मूर्तियाँ भी थी

जिन्हे देखकर लग रहा था कि मानो अभी जीवित हो जायेंगी और हमला करेंगे मे उन मूर्तियों को देखकर उत्साहित हो गया था और उन्हे बार बार देख रहा था और जब गुरु नंदी ने मुझे उन मूर्तियों को देखते पाकर गुरु नंदी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी

गुरु नंदी :- इन मूर्तियों को ऐसे क्यों घूर रहे हो कुमार

मै:- इन्हे देखकर ऐसा लगता हैं कि ये सब जीवित है

गुरु नंदी :- सही कहा आपने ये सब महासुरों की सेना का हिस्सा है जिन्हे हमने मूर्तियों में तब्दील कर दिया था और जब महासूर जागेंगे तब ये सभी पुन्हा दैत्य रूप धारण करेंगे

मै :- अच्छा

उसके बाद मे और गुरु नंदी एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो गए और उसके बाद गुरु नंदी ने मुझे बहुत सी चीजों की जानकारी दी बहुत से ऐसी विद्याएँ भी सिखाई जो बहुत उपयोगी थे

जिसके बाद गुरु जल, वानर अग्नि, पृथ्वी, सिँह और काल सभी गुरुओं ने एक एक करके मुझे अपने अपने अस्त्रों से जुड़ी जानकारी बताई अलग अलग विद्याएँ सिखाई और बीच बीच में वो सभी मेरे साथ युद्ध अभ्यास भी करते

ऐसे ही न जाने कितना समय बीत गया लेकिन ये शिक्षा बंद नही हुई वो मुझे सिखाते जाते और जब हमारी ये शिक्षा पूरी हुई तो तो सारे गुरु मेरे सामने खड़े थे

गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है

अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था

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अध्याय साठ

जहाँ एक तरफ भद्रा अपने ही मस्ती मे मस्त हो कर सो रहा था तो वही दूसरी तरफ पताल लोक के गहराइयों मे इस वक़्त महासुरों के एक बीज ने अपना साम्राज्य स्थापित कर दिया था

पाताल लोक के उस भाग मे जो भी मौजूद था उसे उन्होंने अपने जादुई धुए के मदद से अपने वश में ले लिया था और जो भी उस भाग में कदम रखता वो भी तुरंत उन महासुरों के वश मे आ जाता चाहे वो की असुर हो या कोई मायावी जीव


लेकिन उस धुए से कोई बच नही पाया था ऐसे मे एक शक्स बिना रुके उस हिस्से के अंदर जा रहा था और आश्चर्य की बात थी कि उस पर इस जादुई धुए का कुछ भी असर नहीं हो रहा था

और जब उस महासूर के सिपाहियों ने एक अज्ञात असुर को अपने इलाके मे आते देखा तो वो सभी हमला करने के लिए उसके पास बढ़ने लगे लेकिन उन्हे इस बात का बोध नही था कि ये उनके लिए कितना भारी पड़ सकता हैं

शायद अगर अभी उनके पास उनकी बुद्धि होती तो वो ये गलती नही करते अभी वो सब उस पर आक्रमण करते उससे पहले ही वहाँ वातावरण में फिर एक बार महासूर की आवाज गूंजने लगी जिसने उन सभी लोगों को रोक दिया

महासूर :- असुर कुल गुरु महान आचार्य शुक्राचार्य को मेरा प्रणाम

शुक्राचार्य:- आप भी मेरा प्रणाम स्वीकार करे महासूर

महासूर :- कहिये आपका यहाँ आना कैसे हुआ और क्या मकसद था मुझे और मेरे भाईयों को समय से पूर्व इस संसार मे लाने का

शुक्राचार्य :- मेरे जीवन का एक मात्र मकसद यही है कि असुर जाती को त्रिलोक विजयी बनाउ और इसी मकसद से मैने सभी महासुरों को समय से पूर्व बुलाया है

महासूर :- मैने आपसे पहले भी कहाँ था कि जब तक असुर जातियों में एकता नही होगी तब तक आपकी सारी योजनाएं विफल जायेंगी जिसका उदाहरण अभी हाल ही मे हुआ संग्राम जहाँ पर आप जीता हुआ युद्ध हार गए

शुक्राचार्य:- मे आपकी इस बात से सर्वथा सहमत हूँ इसीलिए मैने अपने सबसे काबिल शिष्य को असुर कुल का सम्राट बनाया है और अब मे चाहता हूँ कि आप और आपके सभी भाई असुर कुल के मार्गदर्शक बने

महासूर :- सर्व प्रथम हमे उस बालक को रोकने के लिए कोई उपाय करना होगा जो बालक सातों अस्त्रों को इतनी कुशलता से इस्तेमाल करने के लिए सक्षम है उससे बिना किसी योजना के ललकारना सबसे बड़ी मूर्खता होगी

शुक्राचार्य :- मे आपके सुझाव को ध्यान मे रखूँगा पहले मे उस बालक को खुद से परखूँगा और उसके बाद खास अपने हाथों से उसके लिए जाल बिछऊंगा

महासूर :- अब आप जाइये और एक विशाल और शक्तिशाली योद्धाओं की फौज तैयार कीजिये क्योंकि अब जैसे ही 15 दिन पूर्ण होंगे वैसे ही ये विश्व इस युग के महाप्रलयंकारी और विध्वंशक युद्ध का साक्षी बनेगा

शुक्राचार्य :- अब आपसे मुलाकात 15 दिनों पश्चात ही होगी

महासुर:- नही मेरा अनुभव कह रहा है कि आप 15 दिनों की अवधी पूर्ण होने से पूर्व ही आने वाले हो

जहाँ एक तरफ इन दोनों ने अपनी पूरी योजना बना ली थी


तो वही दूसरी तरफ मे दुनिया की सारी परेशानियों को भूल कर अपनी दोनों प्रेमिकाओं को अपने आलिंगन मे लेकर चैन की नींद सो रहा था की तभी मुझे मेरे शरीर में अचानक पीड़ा होने लगी जिससे मेरी नींद खुल गई

और जब मे अपनी आँखे खोली तो मुझे एक बहुत बड़ा झटका लगा क्योंकि इस वक़्त न मेरे पास मै जहाँ शांति प्रिया लेटी हुई थी वहा अब कोई नहीं था

और जब मे पूरी तरह होश मे आया तब मुझे ज्ञात हुआ की मे अपने कमरे न होके किसी और ही दुनिया में पहुँच गया था जहाँ एक तरह घना जंगल तो दूसरी तरफ असीमित समुद्र उपर तपता आग उगलता सूरज तो नीचे रेत ही रेत


मे अभी इस सब का निरीक्षण कर ही रहा था कि तभी मुझे वहाँ पर एक जगह से तेज प्रकाश आते दिखाई देने लगा जो देखकर मे तुरंत उस प्रकाश के तरफ बढ़ने लगा

और जैसे ही मे वहाँ पहुँचा वैसे ही मुझे वहाँ पर 7 पुरुष दिखाई दिये उन सातों के चेहरे पर उगी हुई सफेद दाड़ी और बालों को देखकर ऐसा लगता कि वो सातों अब वृद्ध हो चुके है


लेकिन उनके चेहरे का तेज देखकर ऐसा लगता कि उन सभीने अभी अपनी गृहावस्था मे प्रवेश किया है पहले तो मे उन्हे देखकर सोच मे पड़ गया

क्योंकि मुझे लग रहा था कि मैने इन्हे पहले भी कही देखा है और जब मुझे याद आ गया तब मे तुरंत उनके सामने झुक गया

क्योंकि मेरे सामने कोई और नही बल्कि पूरे संसार के प्रथम सप्त ऋषि मौजूद थे जिनके बारे में मुझे महागुरु ने बताया था

गुरु नंदी :- आपको हमारे सामने झुकने की आवश्यकता नहीं है कुमार

मै :- आप सब इस संसार के सर्व प्रथम सप्तऋषि है

गुरु अग्नि:- हम सभी आपकी भावनाओं का सन्मान करते है कुमार लेकिन अभी हमारे पास इस सभी शिष्टाचार का समय नही है आज से ठीक 15 दिन बाद इस संसार में फिरसे एक बार महासुरों के अन्यायों का साक्षी बनेगा और इस अनर्थ को रोकने के लिए स्वयं आदिदेव ने तुम्हे चुना है

गुरु पृथ्वी :- और हम यहाँ तुम्हे उसके लिए ही तैयार करने आये है आने वाले युद्ध मे न सिर्फ अकेले पृथ्वी गृह बल्कि पूरे संसार का भविष्य दांव पर लगा है

मे :- सप्तस्त्रो के शक्तियों के मदद से और आप सबसे शिक्षा लेने के बाद में किसी भी असुर या महासूर को हरा सकता हूँ

गुरु काल :- आत्मविश्वास अच्छा है कुमार लेकिन घमंड नही आपको हम सभी एक एक करके आपको शिक्षा प्रदान करेंगे और जब तक आप वो शिक्षा को ग्रहण करके हमारी परीक्षाओं में आप उत्तीर्ण न हो जाओ तब तक आप अपनी दुनिया में वापस नही जा सकते

मै :- मे तैयार हूँ सबके लिए

गुरु काल :- याद रखना इस दुनिया मे आप किसी भी अस्त्र का इस्तेमाल नही कर पाओगे

मे :- तो मे अस्त्रों की शक्तियों को काबू करना उनका इस्तेमाल करना कैसे सीखूँगा

गुरु नंदी :- वो आपको अस्त्र स्वयं सिखा देंगे लेकिन पहले आपको खुदको उसके लिए शक्तिशाली बनाना होगा

गुरु जल :- याद रखना कुमार अस्त्र आपको नही आप अस्त्रों को ऊर्जा देते हो आप जितने शक्तिशाली होंगे उतने ही ज्यादा शक्तिशाली अस्त्र होंगे

मै :- ठीक है अब जो भी हो मे हार नही मानूँगा

मेरे इतना बोलते ही वहाँ के आसमान का रंग नीले से बदल कर लाल रंग मे बदल गया और पूरे आसमान मे भयंकर बिजलियाँ कडकड़ाने लगी ऐसा लगने लगा था की कोई बहुत बड़ी अनहोनी होने वाली है

ये सब देखकर एक बार की तो मेरे मन में भी भय और पीछे हटने के ख्यालों ने जन्म ले लिया था लेकिन मैने तुरंत ही उन्हे अपने मन से निकालने लगा और पूर्ण दृढ़ता के साथ मे सप्तऋषियों के समक्ष खड़ा हो गया

गुरु काल :- लगता हैं अब तुम तैयार हो तो सबसे पहले तुम्हे शिक्षा देंगे गुरु नंदी याद रखना इस जगह पर कोई भी अस्त्र या शस्त्र काम नही करता यहाँ केवल तुम्हे अपने बुद्धि और बाहु बल से ही हर चुनौती को पार करना होगा

उनके इतना बोलने के बाद मे और गुरु नंदी अचानक गायब हो गए

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आज के लिए इतना ही

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जहाँ एक तरफ मे उस मायावी दुनिया में कैद था तो वही दूसरी तरफ मायासुर ने विराज को मारने के बाद लगभद पूरे पाताल लोक को अपने कब्जे में ले लिया था

जहाँ पहले पाताल लोक में केवल काम क्रीड़ा और मदिरा के नशे मे धुत्त योद्धाओं का आमना सामना होता और कोई एक मारा जाता या कभी कभी दोनों मारे जाते और स्त्रियाँ तो वहा केवल भोग विलास की वस्तु थी


तो वही अब मायासुर ने पूरे पाताल लोक में सारे मदिरा और वैश्या घरों को बंद कर दिया था और सभी असुर असुरियों को केवल आने वाले युद्ध के लिए ही तैयार रहने का आदेश दिया था यहाँ तक असुर कुमारों को भी उसने युद्ध मे सैनिकों का सामान उठाने के लिए तैयार किया था

और अगर कोई भी जरा सी चु चा करता तो तुरंत उसका सर धड़ से अलग होता और अगर कोई स्त्री उसके सामने अपनी आवाज उठाने की गुस्ताखी करती तो उस सबके सामने एकसाथ कई असुरों द्वारा बेरहमी से भोगा जाता

साफ कहे तो मायासुर ने आने वाले युद्ध मे विजय सुनिश्चित करने के बजाए प्रजा के मन में विद्रोह की सोच को जरूर सुनिश्चित कर दिया था अभी तक सारे असुर मायासुर का कहा मान रहे थे

तो इसी वजह से की उसके साथ स्वयं आचार्य शुक्राचार्य है और कोई भी असुर उनके खिलाफ विद्रोह की आवाज नही उठा सकता था और इसी का फायदा उठा कर मायासुर लगभग पूरे पाताल लोक में अपना राज कायम कर लिया था


अब पूरे पाताल लोक में केवल दो ही जगह ऐसी थी जहाँ पर अभी तक मायासुर ने अपना राज तो दूर बल्कि कदम भी नही रखा था और वो दो जगहे थी शुक्राचार्य का राज्य जहाँ पर सारे असुर आ जा सकते थे

लेकिन जिन्होंने वहा पर किसी भी तरफ के दुर्व्यवहार करने की इच्छा रखी उसका सामना करने स्वयं शुक्राचार्य आ जाते और पूरे पाताल लोक में ऐसा एक असुर भी नही था जो शुक्राचार्य से युद्ध करने की इच्छा रखे

अगर साफ कहा जाए तो वहा जिसने भी राज करने की इच्छा से कदम रखा उसे वहा केवल और केवल 6*6 की कब्र नसीब हुई जिसमे उन्हे वहा के मिट्टी मे पनपने वाले सूक्ष्म जीव नोच नोच कर खाते

इसीलिए आज तक पाताल लोक में जितने भी राजा ही उन सभी ने गुरु शुक्राचार्य के उस भाग के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था भले ही उनके पास पूरे पाताल लोक की ही शक्ति क्यों न हो लेकिन

वो सभी जानते थे की शुक्राचार्य को हराने में केवल त्रिदेव ही सक्षम थे और सारे असुरो का उनके प्रति भरोषा और आदर भी अतुल्य था इसी कारण से जब मायासुर के आतंक से तंग आकर कुछ असुरों ने शुक्राचार्य से मदद मांगी


तो शुक्राचार्य ने उस मदद के रूप मे सारे असुर बालकों को औरतो को अपने राज्य में रहने का स्थान दीया जिससे उनके प्रति सबका आदर और विश्वास पहले से भी दोगुना बढ़ गया

तो वही दूसरी जगह वही भाग था जहाँ पर महासूर ने अपना राज्य स्थापित किया था वहा मायासुर जाना तो चाहता था ताकि वो महासूर से मिलकर कोई प्रबल योजना बना पाए

आखिर कौन राजा नही चाहेगा की आने वाले युद्ध मे ऐसा की महा शक्तिशाली और प्रबल पक्ष उनके साथ खड़ा हो न की उनके विरोध में और मायासुर को इस बात का भी बोध था कि अगर कोई एक महासूर ने उसकी मैत्री को स्वीकार करे तो सारे महासूर उसके साथ हो जायेंगे


और सबसे बड़ी बात सप्तस्त्रों की तोड़ थे ये महासूर ये सारी बात उसे और उकसा रही थी आगे बढ़ने के लिए लेकिन शुक्राचार्य का साफ आदेश था की उनके कोई भी मतलब कोई भी उस भाग में प्रवेश नही करेगा

और यही एक बात थी की हर बार मायासुर उस भाग की सीमा पर आता और केवल वहा के हाल का निरीक्षण करता कुछ सिपाहियों ने जिज्ञासा वश उस भाग में जाने की गुस्ताखी की थी

लेकिन जिन्होंने भी उस भाग में कदम रखा वो सब केवल वहा की प्रजा जो अब नरभक्षी बन गए थे उनके आहार मे शामिल हो जाते जिसके कारण बाकी कोई भी वहा जाने से अब डरने लगा था

तो वही इस वक़्त गुरु शुक्राचार्य और मायासुर दोनों उसी जगह पर थे जहाँ कुछ समय पहले महायुद्ध हुआ था जिसमे भद्रा ने आके पुरा पासा ही पलट दिया था और अभी उस जगह पर वो दोनों मौजूद थे

और उनके अलावा वहा शहीद हुए लाखों असुरी सिपाहियों जली कटी लाशे जो देखकर मायासुर समझ नही पा रहा था कि आखिर शुक्राचार्य उसे लेकर यहाँ क्यों आये है

जिससे उसके मन इसका कारण जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी और इसी जिज्ञासा वश उसने अपने गुरु से पूछने लगा

मायासुर :- गुरुवर आपने अभी तक बताया नही की आखिर हम यहाँ पर आये क्यों है आखिर इन शिपहियों के मृत देह और अस्थियों से क्या कार्य है

शुक्राचार्य :- धीरज मायासुर धीरज रखो सब पता चल जायेगा

अभी फिर से मायासुर कुछ बोलता या पूछता उससे पहले ही शुक्राचार्य का शरीर हवा में उड़ने लगा और वो अपनी आँखे बंद करके जोरों से मंत्र जाप करने लगे और जब वो मंत्र पढ़ रहे थे


वैसे वैसे वहा की पूरी धरती मे कंपन होने लगी थी वहा के आसमान मे भयंकर बिजलियाँ चमकने लगी थी और जब मायासुर ने वो मंत्र ध्यान से सुना तो उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आ गयी

जैसे किसी छोटे बालक को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो इसके पीछे कि वजह थी वो विद्या जो गुरु शुक्राचार्य इस्तेमाल कर रहा था और वो विद्या थी मृत संजीवनी विद्या

हमारी संस्कृति में इस विद्या के बारे में वर्णित किया गया है की अपने गुरु की आज्ञा से एक शिष्य ने भगवान आदिदेव को गुरु बनाने के लिए कठोर तप किया. जिसके परिणाम स्वरूप भगवान आदिदेव ने प्रसन्न होकर उस शिष्य को मृत संजीवनी की विद्या दी,

जिससे किसी मृत को भी जीवित किया जा सकता है. भगवान आदिदेव से यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद वो शिष्य दैत्यगुरु शुक्राचार्य बन गया. जिसके बाद दैत्य देवों द्वारा मारे गए अपने शिष्यों को जीवित कर देते

.लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले इसे सिद्ध करना बहुत जरूरी है. सिद्ध करने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है. मान्यता है कि यदि मंत्र सिद्ध हो जाए तो किसी मृत व्यक्ति के कान में चुपचाप इस मंत्र को बोलने से वो व्यक्ति फिर से जीवित हो सकता है.


और इसी महान विद्या का इस्तेमाल करके शुक्राचार्य ने वहा पर शहीद हुए सारे असुरी सैनिकों को पुनर्जीवित कर दिया था जो देखकर मायासुर और बाकी सब शुक्राचार्य के सामने झुक गए थे

आज पहली बार मायासुर ने साक्षात रूप से इस विद्या को देखा था और ये देखकर आज उसे इस बात का यकीन हो गया था की भले ही शिष्य कितना ही बड़ा तोप बन जाए लेकिन गुरु हमेशा गुरु ही रहेगा


लेकिन इस विद्या का एक नियम था कि ये एक योद्धा पर केवल एक ही बार काम करता है

जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था तो वही दूसरी तरफ इस वक़्त मे और गुरु नंदी किसी बड़े मैदान में थे जहाँ पर बहुत सी भयानक और क्रूर दिखने वाले असुरो की मूर्तियाँ भी थी

जिन्हे देखकर लग रहा था कि मानो अभी जीवित हो जायेंगी और हमला करेंगे मे उन मूर्तियों को देखकर उत्साहित हो गया था और उन्हे बार बार देख रहा था और जब गुरु नंदी ने मुझे उन मूर्तियों को देखते पाकर गुरु नंदी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी

गुरु नंदी :- इन मूर्तियों को ऐसे क्यों घूर रहे हो कुमार

मै:- इन्हे देखकर ऐसा लगता हैं कि ये सब जीवित है

गुरु नंदी :- सही कहा आपने ये सब महासुरों की सेना का हिस्सा है जिन्हे हमने मूर्तियों में तब्दील कर दिया था और जब महासूर जागेंगे तब ये सभी पुन्हा दैत्य रूप धारण करेंगे

मै :- अच्छा

उसके बाद मे और गुरु नंदी एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो गए और उसके बाद गुरु नंदी ने मुझे बहुत सी चीजों की जानकारी दी बहुत से ऐसी विद्याएँ भी सिखाई जो बहुत उपयोगी थे

जिसके बाद गुरु जल, वानर अग्नि, पृथ्वी, सिँह और काल सभी गुरुओं ने एक एक करके मुझे अपने अपने अस्त्रों से जुड़ी जानकारी बताई अलग अलग विद्याएँ सिखाई और बीच बीच में वो सभी मेरे साथ युद्ध अभ्यास भी करते

ऐसे ही न जाने कितना समय बीत गया लेकिन ये शिक्षा बंद नही हुई वो मुझे सिखाते जाते और जब हमारी ये शिक्षा पूरी हुई तो तो सारे गुरु मेरे सामने खड़े थे

गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है

अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था

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आज के लिए इतना ही

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Nice update bro
 

park

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अध्याय इक्सठ

जहाँ एक तरफ मे उस मायावी दुनिया में कैद था तो वही दूसरी तरफ मायासुर ने विराज को मारने के बाद लगभद पूरे पाताल लोक को अपने कब्जे में ले लिया था

जहाँ पहले पाताल लोक में केवल काम क्रीड़ा और मदिरा के नशे मे धुत्त योद्धाओं का आमना सामना होता और कोई एक मारा जाता या कभी कभी दोनों मारे जाते और स्त्रियाँ तो वहा केवल भोग विलास की वस्तु थी


तो वही अब मायासुर ने पूरे पाताल लोक में सारे मदिरा और वैश्या घरों को बंद कर दिया था और सभी असुर असुरियों को केवल आने वाले युद्ध के लिए ही तैयार रहने का आदेश दिया था यहाँ तक असुर कुमारों को भी उसने युद्ध मे सैनिकों का सामान उठाने के लिए तैयार किया था

और अगर कोई भी जरा सी चु चा करता तो तुरंत उसका सर धड़ से अलग होता और अगर कोई स्त्री उसके सामने अपनी आवाज उठाने की गुस्ताखी करती तो उस सबके सामने एकसाथ कई असुरों द्वारा बेरहमी से भोगा जाता

साफ कहे तो मायासुर ने आने वाले युद्ध मे विजय सुनिश्चित करने के बजाए प्रजा के मन में विद्रोह की सोच को जरूर सुनिश्चित कर दिया था अभी तक सारे असुर मायासुर का कहा मान रहे थे

तो इसी वजह से की उसके साथ स्वयं आचार्य शुक्राचार्य है और कोई भी असुर उनके खिलाफ विद्रोह की आवाज नही उठा सकता था और इसी का फायदा उठा कर मायासुर लगभग पूरे पाताल लोक में अपना राज कायम कर लिया था


अब पूरे पाताल लोक में केवल दो ही जगह ऐसी थी जहाँ पर अभी तक मायासुर ने अपना राज तो दूर बल्कि कदम भी नही रखा था और वो दो जगहे थी शुक्राचार्य का राज्य जहाँ पर सारे असुर आ जा सकते थे

लेकिन जिन्होंने वहा पर किसी भी तरफ के दुर्व्यवहार करने की इच्छा रखी उसका सामना करने स्वयं शुक्राचार्य आ जाते और पूरे पाताल लोक में ऐसा एक असुर भी नही था जो शुक्राचार्य से युद्ध करने की इच्छा रखे

अगर साफ कहा जाए तो वहा जिसने भी राज करने की इच्छा से कदम रखा उसे वहा केवल और केवल 6*6 की कब्र नसीब हुई जिसमे उन्हे वहा के मिट्टी मे पनपने वाले सूक्ष्म जीव नोच नोच कर खाते

इसीलिए आज तक पाताल लोक में जितने भी राजा ही उन सभी ने गुरु शुक्राचार्य के उस भाग के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था भले ही उनके पास पूरे पाताल लोक की ही शक्ति क्यों न हो लेकिन

वो सभी जानते थे की शुक्राचार्य को हराने में केवल त्रिदेव ही सक्षम थे और सारे असुरो का उनके प्रति भरोषा और आदर भी अतुल्य था इसी कारण से जब मायासुर के आतंक से तंग आकर कुछ असुरों ने शुक्राचार्य से मदद मांगी


तो शुक्राचार्य ने उस मदद के रूप मे सारे असुर बालकों को औरतो को अपने राज्य में रहने का स्थान दीया जिससे उनके प्रति सबका आदर और विश्वास पहले से भी दोगुना बढ़ गया

तो वही दूसरी जगह वही भाग था जहाँ पर महासूर ने अपना राज्य स्थापित किया था वहा मायासुर जाना तो चाहता था ताकि वो महासूर से मिलकर कोई प्रबल योजना बना पाए

आखिर कौन राजा नही चाहेगा की आने वाले युद्ध मे ऐसा की महा शक्तिशाली और प्रबल पक्ष उनके साथ खड़ा हो न की उनके विरोध में और मायासुर को इस बात का भी बोध था कि अगर कोई एक महासूर ने उसकी मैत्री को स्वीकार करे तो सारे महासूर उसके साथ हो जायेंगे


और सबसे बड़ी बात सप्तस्त्रों की तोड़ थे ये महासूर ये सारी बात उसे और उकसा रही थी आगे बढ़ने के लिए लेकिन शुक्राचार्य का साफ आदेश था की उनके कोई भी मतलब कोई भी उस भाग में प्रवेश नही करेगा

और यही एक बात थी की हर बार मायासुर उस भाग की सीमा पर आता और केवल वहा के हाल का निरीक्षण करता कुछ सिपाहियों ने जिज्ञासा वश उस भाग में जाने की गुस्ताखी की थी

लेकिन जिन्होंने भी उस भाग में कदम रखा वो सब केवल वहा की प्रजा जो अब नरभक्षी बन गए थे उनके आहार मे शामिल हो जाते जिसके कारण बाकी कोई भी वहा जाने से अब डरने लगा था

तो वही इस वक़्त गुरु शुक्राचार्य और मायासुर दोनों उसी जगह पर थे जहाँ कुछ समय पहले महायुद्ध हुआ था जिसमे भद्रा ने आके पुरा पासा ही पलट दिया था और अभी उस जगह पर वो दोनों मौजूद थे

और उनके अलावा वहा शहीद हुए लाखों असुरी सिपाहियों जली कटी लाशे जो देखकर मायासुर समझ नही पा रहा था कि आखिर शुक्राचार्य उसे लेकर यहाँ क्यों आये है

जिससे उसके मन इसका कारण जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी और इसी जिज्ञासा वश उसने अपने गुरु से पूछने लगा

मायासुर :- गुरुवर आपने अभी तक बताया नही की आखिर हम यहाँ पर आये क्यों है आखिर इन शिपहियों के मृत देह और अस्थियों से क्या कार्य है

शुक्राचार्य :- धीरज मायासुर धीरज रखो सब पता चल जायेगा

अभी फिर से मायासुर कुछ बोलता या पूछता उससे पहले ही शुक्राचार्य का शरीर हवा में उड़ने लगा और वो अपनी आँखे बंद करके जोरों से मंत्र जाप करने लगे और जब वो मंत्र पढ़ रहे थे


वैसे वैसे वहा की पूरी धरती मे कंपन होने लगी थी वहा के आसमान मे भयंकर बिजलियाँ चमकने लगी थी और जब मायासुर ने वो मंत्र ध्यान से सुना तो उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आ गयी

जैसे किसी छोटे बालक को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो इसके पीछे कि वजह थी वो विद्या जो गुरु शुक्राचार्य इस्तेमाल कर रहा था और वो विद्या थी मृत संजीवनी विद्या

हमारी संस्कृति में इस विद्या के बारे में वर्णित किया गया है की अपने गुरु की आज्ञा से एक शिष्य ने भगवान आदिदेव को गुरु बनाने के लिए कठोर तप किया. जिसके परिणाम स्वरूप भगवान आदिदेव ने प्रसन्न होकर उस शिष्य को मृत संजीवनी की विद्या दी,

जिससे किसी मृत को भी जीवित किया जा सकता है. भगवान आदिदेव से यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद वो शिष्य दैत्यगुरु शुक्राचार्य बन गया. जिसके बाद दैत्य देवों द्वारा मारे गए अपने शिष्यों को जीवित कर देते

.लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले इसे सिद्ध करना बहुत जरूरी है. सिद्ध करने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है. मान्यता है कि यदि मंत्र सिद्ध हो जाए तो किसी मृत व्यक्ति के कान में चुपचाप इस मंत्र को बोलने से वो व्यक्ति फिर से जीवित हो सकता है.


और इसी महान विद्या का इस्तेमाल करके शुक्राचार्य ने वहा पर शहीद हुए सारे असुरी सैनिकों को पुनर्जीवित कर दिया था जो देखकर मायासुर और बाकी सब शुक्राचार्य के सामने झुक गए थे

आज पहली बार मायासुर ने साक्षात रूप से इस विद्या को देखा था और ये देखकर आज उसे इस बात का यकीन हो गया था की भले ही शिष्य कितना ही बड़ा तोप बन जाए लेकिन गुरु हमेशा गुरु ही रहेगा


लेकिन इस विद्या का एक नियम था कि ये एक योद्धा पर केवल एक ही बार काम करता है

जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था तो वही दूसरी तरफ इस वक़्त मे और गुरु नंदी किसी बड़े मैदान में थे जहाँ पर बहुत सी भयानक और क्रूर दिखने वाले असुरो की मूर्तियाँ भी थी

जिन्हे देखकर लग रहा था कि मानो अभी जीवित हो जायेंगी और हमला करेंगे मे उन मूर्तियों को देखकर उत्साहित हो गया था और उन्हे बार बार देख रहा था और जब गुरु नंदी ने मुझे उन मूर्तियों को देखते पाकर गुरु नंदी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी

गुरु नंदी :- इन मूर्तियों को ऐसे क्यों घूर रहे हो कुमार

मै:- इन्हे देखकर ऐसा लगता हैं कि ये सब जीवित है

गुरु नंदी :- सही कहा आपने ये सब महासुरों की सेना का हिस्सा है जिन्हे हमने मूर्तियों में तब्दील कर दिया था और जब महासूर जागेंगे तब ये सभी पुन्हा दैत्य रूप धारण करेंगे

मै :- अच्छा

उसके बाद मे और गुरु नंदी एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो गए और उसके बाद गुरु नंदी ने मुझे बहुत सी चीजों की जानकारी दी बहुत से ऐसी विद्याएँ भी सिखाई जो बहुत उपयोगी थे

जिसके बाद गुरु जल, वानर अग्नि, पृथ्वी, सिँह और काल सभी गुरुओं ने एक एक करके मुझे अपने अपने अस्त्रों से जुड़ी जानकारी बताई अलग अलग विद्याएँ सिखाई और बीच बीच में वो सभी मेरे साथ युद्ध अभ्यास भी करते

ऐसे ही न जाने कितना समय बीत गया लेकिन ये शिक्षा बंद नही हुई वो मुझे सिखाते जाते और जब हमारी ये शिक्षा पूरी हुई तो तो सारे गुरु मेरे सामने खड़े थे

गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है

अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था

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आज के लिए इतना ही

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Nice and superb update....
 
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Smith_15

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sunoanuj

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100 पेज के पूर्ण होने की बहुत शुभ कामनाएं... बहुत अच्छा लिख रहे हो आप मित्र एक दम थ्रिलर की फील आती पढ़ते हुए या फिल्म के जैसा लगता है इतना विस्तार दिखाते हैं आप... 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 
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parkas

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अध्याय इक्सठ

जहाँ एक तरफ मे उस मायावी दुनिया में कैद था तो वही दूसरी तरफ मायासुर ने विराज को मारने के बाद लगभद पूरे पाताल लोक को अपने कब्जे में ले लिया था

जहाँ पहले पाताल लोक में केवल काम क्रीड़ा और मदिरा के नशे मे धुत्त योद्धाओं का आमना सामना होता और कोई एक मारा जाता या कभी कभी दोनों मारे जाते और स्त्रियाँ तो वहा केवल भोग विलास की वस्तु थी


तो वही अब मायासुर ने पूरे पाताल लोक में सारे मदिरा और वैश्या घरों को बंद कर दिया था और सभी असुर असुरियों को केवल आने वाले युद्ध के लिए ही तैयार रहने का आदेश दिया था यहाँ तक असुर कुमारों को भी उसने युद्ध मे सैनिकों का सामान उठाने के लिए तैयार किया था

और अगर कोई भी जरा सी चु चा करता तो तुरंत उसका सर धड़ से अलग होता और अगर कोई स्त्री उसके सामने अपनी आवाज उठाने की गुस्ताखी करती तो उस सबके सामने एकसाथ कई असुरों द्वारा बेरहमी से भोगा जाता

साफ कहे तो मायासुर ने आने वाले युद्ध मे विजय सुनिश्चित करने के बजाए प्रजा के मन में विद्रोह की सोच को जरूर सुनिश्चित कर दिया था अभी तक सारे असुर मायासुर का कहा मान रहे थे

तो इसी वजह से की उसके साथ स्वयं आचार्य शुक्राचार्य है और कोई भी असुर उनके खिलाफ विद्रोह की आवाज नही उठा सकता था और इसी का फायदा उठा कर मायासुर लगभग पूरे पाताल लोक में अपना राज कायम कर लिया था


अब पूरे पाताल लोक में केवल दो ही जगह ऐसी थी जहाँ पर अभी तक मायासुर ने अपना राज तो दूर बल्कि कदम भी नही रखा था और वो दो जगहे थी शुक्राचार्य का राज्य जहाँ पर सारे असुर आ जा सकते थे

लेकिन जिन्होंने वहा पर किसी भी तरफ के दुर्व्यवहार करने की इच्छा रखी उसका सामना करने स्वयं शुक्राचार्य आ जाते और पूरे पाताल लोक में ऐसा एक असुर भी नही था जो शुक्राचार्य से युद्ध करने की इच्छा रखे

अगर साफ कहा जाए तो वहा जिसने भी राज करने की इच्छा से कदम रखा उसे वहा केवल और केवल 6*6 की कब्र नसीब हुई जिसमे उन्हे वहा के मिट्टी मे पनपने वाले सूक्ष्म जीव नोच नोच कर खाते

इसीलिए आज तक पाताल लोक में जितने भी राजा ही उन सभी ने गुरु शुक्राचार्य के उस भाग के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था भले ही उनके पास पूरे पाताल लोक की ही शक्ति क्यों न हो लेकिन

वो सभी जानते थे की शुक्राचार्य को हराने में केवल त्रिदेव ही सक्षम थे और सारे असुरो का उनके प्रति भरोषा और आदर भी अतुल्य था इसी कारण से जब मायासुर के आतंक से तंग आकर कुछ असुरों ने शुक्राचार्य से मदद मांगी


तो शुक्राचार्य ने उस मदद के रूप मे सारे असुर बालकों को औरतो को अपने राज्य में रहने का स्थान दीया जिससे उनके प्रति सबका आदर और विश्वास पहले से भी दोगुना बढ़ गया

तो वही दूसरी जगह वही भाग था जहाँ पर महासूर ने अपना राज्य स्थापित किया था वहा मायासुर जाना तो चाहता था ताकि वो महासूर से मिलकर कोई प्रबल योजना बना पाए

आखिर कौन राजा नही चाहेगा की आने वाले युद्ध मे ऐसा की महा शक्तिशाली और प्रबल पक्ष उनके साथ खड़ा हो न की उनके विरोध में और मायासुर को इस बात का भी बोध था कि अगर कोई एक महासूर ने उसकी मैत्री को स्वीकार करे तो सारे महासूर उसके साथ हो जायेंगे


और सबसे बड़ी बात सप्तस्त्रों की तोड़ थे ये महासूर ये सारी बात उसे और उकसा रही थी आगे बढ़ने के लिए लेकिन शुक्राचार्य का साफ आदेश था की उनके कोई भी मतलब कोई भी उस भाग में प्रवेश नही करेगा

और यही एक बात थी की हर बार मायासुर उस भाग की सीमा पर आता और केवल वहा के हाल का निरीक्षण करता कुछ सिपाहियों ने जिज्ञासा वश उस भाग में जाने की गुस्ताखी की थी

लेकिन जिन्होंने भी उस भाग में कदम रखा वो सब केवल वहा की प्रजा जो अब नरभक्षी बन गए थे उनके आहार मे शामिल हो जाते जिसके कारण बाकी कोई भी वहा जाने से अब डरने लगा था

तो वही इस वक़्त गुरु शुक्राचार्य और मायासुर दोनों उसी जगह पर थे जहाँ कुछ समय पहले महायुद्ध हुआ था जिसमे भद्रा ने आके पुरा पासा ही पलट दिया था और अभी उस जगह पर वो दोनों मौजूद थे

और उनके अलावा वहा शहीद हुए लाखों असुरी सिपाहियों जली कटी लाशे जो देखकर मायासुर समझ नही पा रहा था कि आखिर शुक्राचार्य उसे लेकर यहाँ क्यों आये है

जिससे उसके मन इसका कारण जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी और इसी जिज्ञासा वश उसने अपने गुरु से पूछने लगा

मायासुर :- गुरुवर आपने अभी तक बताया नही की आखिर हम यहाँ पर आये क्यों है आखिर इन शिपहियों के मृत देह और अस्थियों से क्या कार्य है

शुक्राचार्य :- धीरज मायासुर धीरज रखो सब पता चल जायेगा

अभी फिर से मायासुर कुछ बोलता या पूछता उससे पहले ही शुक्राचार्य का शरीर हवा में उड़ने लगा और वो अपनी आँखे बंद करके जोरों से मंत्र जाप करने लगे और जब वो मंत्र पढ़ रहे थे


वैसे वैसे वहा की पूरी धरती मे कंपन होने लगी थी वहा के आसमान मे भयंकर बिजलियाँ चमकने लगी थी और जब मायासुर ने वो मंत्र ध्यान से सुना तो उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आ गयी

जैसे किसी छोटे बालक को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो इसके पीछे कि वजह थी वो विद्या जो गुरु शुक्राचार्य इस्तेमाल कर रहा था और वो विद्या थी मृत संजीवनी विद्या

हमारी संस्कृति में इस विद्या के बारे में वर्णित किया गया है की अपने गुरु की आज्ञा से एक शिष्य ने भगवान आदिदेव को गुरु बनाने के लिए कठोर तप किया. जिसके परिणाम स्वरूप भगवान आदिदेव ने प्रसन्न होकर उस शिष्य को मृत संजीवनी की विद्या दी,

जिससे किसी मृत को भी जीवित किया जा सकता है. भगवान आदिदेव से यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद वो शिष्य दैत्यगुरु शुक्राचार्य बन गया. जिसके बाद दैत्य देवों द्वारा मारे गए अपने शिष्यों को जीवित कर देते

.लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले इसे सिद्ध करना बहुत जरूरी है. सिद्ध करने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है. मान्यता है कि यदि मंत्र सिद्ध हो जाए तो किसी मृत व्यक्ति के कान में चुपचाप इस मंत्र को बोलने से वो व्यक्ति फिर से जीवित हो सकता है.


और इसी महान विद्या का इस्तेमाल करके शुक्राचार्य ने वहा पर शहीद हुए सारे असुरी सैनिकों को पुनर्जीवित कर दिया था जो देखकर मायासुर और बाकी सब शुक्राचार्य के सामने झुक गए थे

आज पहली बार मायासुर ने साक्षात रूप से इस विद्या को देखा था और ये देखकर आज उसे इस बात का यकीन हो गया था की भले ही शिष्य कितना ही बड़ा तोप बन जाए लेकिन गुरु हमेशा गुरु ही रहेगा


लेकिन इस विद्या का एक नियम था कि ये एक योद्धा पर केवल एक ही बार काम करता है

जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था तो वही दूसरी तरफ इस वक़्त मे और गुरु नंदी किसी बड़े मैदान में थे जहाँ पर बहुत सी भयानक और क्रूर दिखने वाले असुरो की मूर्तियाँ भी थी

जिन्हे देखकर लग रहा था कि मानो अभी जीवित हो जायेंगी और हमला करेंगे मे उन मूर्तियों को देखकर उत्साहित हो गया था और उन्हे बार बार देख रहा था और जब गुरु नंदी ने मुझे उन मूर्तियों को देखते पाकर गुरु नंदी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी

गुरु नंदी :- इन मूर्तियों को ऐसे क्यों घूर रहे हो कुमार

मै:- इन्हे देखकर ऐसा लगता हैं कि ये सब जीवित है

गुरु नंदी :- सही कहा आपने ये सब महासुरों की सेना का हिस्सा है जिन्हे हमने मूर्तियों में तब्दील कर दिया था और जब महासूर जागेंगे तब ये सभी पुन्हा दैत्य रूप धारण करेंगे

मै :- अच्छा

उसके बाद मे और गुरु नंदी एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो गए और उसके बाद गुरु नंदी ने मुझे बहुत सी चीजों की जानकारी दी बहुत से ऐसी विद्याएँ भी सिखाई जो बहुत उपयोगी थे

जिसके बाद गुरु जल, वानर अग्नि, पृथ्वी, सिँह और काल सभी गुरुओं ने एक एक करके मुझे अपने अपने अस्त्रों से जुड़ी जानकारी बताई अलग अलग विद्याएँ सिखाई और बीच बीच में वो सभी मेरे साथ युद्ध अभ्यास भी करते

ऐसे ही न जाने कितना समय बीत गया लेकिन ये शिक्षा बंद नही हुई वो मुझे सिखाते जाते और जब हमारी ये शिक्षा पूरी हुई तो तो सारे गुरु मेरे सामने खड़े थे

गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है

अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था

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आज के लिए इतना ही

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Bahut hi badhiya update diya hai VAJRADHIKARI bhai....
Nice and beautiful update....
 
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