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Nice update.....अध्याय इक्सठ
जहाँ एक तरफ मे उस मायावी दुनिया में कैद था तो वही दूसरी तरफ मायासुर ने विराज को मारने के बाद लगभद पूरे पाताल लोक को अपने कब्जे में ले लिया था
जहाँ पहले पाताल लोक में केवल काम क्रीड़ा और मदिरा के नशे मे धुत्त योद्धाओं का आमना सामना होता और कोई एक मारा जाता या कभी कभी दोनों मारे जाते और स्त्रियाँ तो वहा केवल भोग विलास की वस्तु थी
तो वही अब मायासुर ने पूरे पाताल लोक में सारे मदिरा और वैश्या घरों को बंद कर दिया था और सभी असुर असुरियों को केवल आने वाले युद्ध के लिए ही तैयार रहने का आदेश दिया था यहाँ तक असुर कुमारों को भी उसने युद्ध मे सैनिकों का सामान उठाने के लिए तैयार किया था
और अगर कोई भी जरा सी चु चा करता तो तुरंत उसका सर धड़ से अलग होता और अगर कोई स्त्री उसके सामने अपनी आवाज उठाने की गुस्ताखी करती तो उस सबके सामने एकसाथ कई असुरों द्वारा बेरहमी से भोगा जाता
साफ कहे तो मायासुर ने आने वाले युद्ध मे विजय सुनिश्चित करने के बजाए प्रजा के मन में विद्रोह की सोच को जरूर सुनिश्चित कर दिया था अभी तक सारे असुर मायासुर का कहा मान रहे थे
तो इसी वजह से की उसके साथ स्वयं आचार्य शुक्राचार्य है और कोई भी असुर उनके खिलाफ विद्रोह की आवाज नही उठा सकता था और इसी का फायदा उठा कर मायासुर लगभग पूरे पाताल लोक में अपना राज कायम कर लिया था
अब पूरे पाताल लोक में केवल दो ही जगह ऐसी थी जहाँ पर अभी तक मायासुर ने अपना राज तो दूर बल्कि कदम भी नही रखा था और वो दो जगहे थी शुक्राचार्य का राज्य जहाँ पर सारे असुर आ जा सकते थे
लेकिन जिन्होंने वहा पर किसी भी तरफ के दुर्व्यवहार करने की इच्छा रखी उसका सामना करने स्वयं शुक्राचार्य आ जाते और पूरे पाताल लोक में ऐसा एक असुर भी नही था जो शुक्राचार्य से युद्ध करने की इच्छा रखे
अगर साफ कहा जाए तो वहा जिसने भी राज करने की इच्छा से कदम रखा उसे वहा केवल और केवल 6*6 की कब्र नसीब हुई जिसमे उन्हे वहा के मिट्टी मे पनपने वाले सूक्ष्म जीव नोच नोच कर खाते
इसीलिए आज तक पाताल लोक में जितने भी राजा ही उन सभी ने गुरु शुक्राचार्य के उस भाग के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था भले ही उनके पास पूरे पाताल लोक की ही शक्ति क्यों न हो लेकिन
वो सभी जानते थे की शुक्राचार्य को हराने में केवल त्रिदेव ही सक्षम थे और सारे असुरो का उनके प्रति भरोषा और आदर भी अतुल्य था इसी कारण से जब मायासुर के आतंक से तंग आकर कुछ असुरों ने शुक्राचार्य से मदद मांगी
तो शुक्राचार्य ने उस मदद के रूप मे सारे असुर बालकों को औरतो को अपने राज्य में रहने का स्थान दीया जिससे उनके प्रति सबका आदर और विश्वास पहले से भी दोगुना बढ़ गया
तो वही दूसरी जगह वही भाग था जहाँ पर महासूर ने अपना राज्य स्थापित किया था वहा मायासुर जाना तो चाहता था ताकि वो महासूर से मिलकर कोई प्रबल योजना बना पाए
आखिर कौन राजा नही चाहेगा की आने वाले युद्ध मे ऐसा की महा शक्तिशाली और प्रबल पक्ष उनके साथ खड़ा हो न की उनके विरोध में और मायासुर को इस बात का भी बोध था कि अगर कोई एक महासूर ने उसकी मैत्री को स्वीकार करे तो सारे महासूर उसके साथ हो जायेंगे
और सबसे बड़ी बात सप्तस्त्रों की तोड़ थे ये महासूर ये सारी बात उसे और उकसा रही थी आगे बढ़ने के लिए लेकिन शुक्राचार्य का साफ आदेश था की उनके कोई भी मतलब कोई भी उस भाग में प्रवेश नही करेगा
और यही एक बात थी की हर बार मायासुर उस भाग की सीमा पर आता और केवल वहा के हाल का निरीक्षण करता कुछ सिपाहियों ने जिज्ञासा वश उस भाग में जाने की गुस्ताखी की थी
लेकिन जिन्होंने भी उस भाग में कदम रखा वो सब केवल वहा की प्रजा जो अब नरभक्षी बन गए थे उनके आहार मे शामिल हो जाते जिसके कारण बाकी कोई भी वहा जाने से अब डरने लगा था
तो वही इस वक़्त गुरु शुक्राचार्य और मायासुर दोनों उसी जगह पर थे जहाँ कुछ समय पहले महायुद्ध हुआ था जिसमे भद्रा ने आके पुरा पासा ही पलट दिया था और अभी उस जगह पर वो दोनों मौजूद थे
और उनके अलावा वहा शहीद हुए लाखों असुरी सिपाहियों जली कटी लाशे जो देखकर मायासुर समझ नही पा रहा था कि आखिर शुक्राचार्य उसे लेकर यहाँ क्यों आये है
जिससे उसके मन इसका कारण जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी और इसी जिज्ञासा वश उसने अपने गुरु से पूछने लगा
मायासुर :- गुरुवर आपने अभी तक बताया नही की आखिर हम यहाँ पर आये क्यों है आखिर इन शिपहियों के मृत देह और अस्थियों से क्या कार्य है
शुक्राचार्य :- धीरज मायासुर धीरज रखो सब पता चल जायेगा
अभी फिर से मायासुर कुछ बोलता या पूछता उससे पहले ही शुक्राचार्य का शरीर हवा में उड़ने लगा और वो अपनी आँखे बंद करके जोरों से मंत्र जाप करने लगे और जब वो मंत्र पढ़ रहे थे
वैसे वैसे वहा की पूरी धरती मे कंपन होने लगी थी वहा के आसमान मे भयंकर बिजलियाँ चमकने लगी थी और जब मायासुर ने वो मंत्र ध्यान से सुना तो उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आ गयी
जैसे किसी छोटे बालक को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो इसके पीछे कि वजह थी वो विद्या जो गुरु शुक्राचार्य इस्तेमाल कर रहा था और वो विद्या थी मृत संजीवनी विद्या
हमारी संस्कृति में इस विद्या के बारे में वर्णित किया गया है की अपने गुरु की आज्ञा से एक शिष्य ने भगवान आदिदेव को गुरु बनाने के लिए कठोर तप किया. जिसके परिणाम स्वरूप भगवान आदिदेव ने प्रसन्न होकर उस शिष्य को मृत संजीवनी की विद्या दी,
जिससे किसी मृत को भी जीवित किया जा सकता है. भगवान आदिदेव से यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद वो शिष्य दैत्यगुरु शुक्राचार्य बन गया. जिसके बाद दैत्य देवों द्वारा मारे गए अपने शिष्यों को जीवित कर देते
.लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले इसे सिद्ध करना बहुत जरूरी है. सिद्ध करने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है. मान्यता है कि यदि मंत्र सिद्ध हो जाए तो किसी मृत व्यक्ति के कान में चुपचाप इस मंत्र को बोलने से वो व्यक्ति फिर से जीवित हो सकता है.
और इसी महान विद्या का इस्तेमाल करके शुक्राचार्य ने वहा पर शहीद हुए सारे असुरी सैनिकों को पुनर्जीवित कर दिया था जो देखकर मायासुर और बाकी सब शुक्राचार्य के सामने झुक गए थे
आज पहली बार मायासुर ने साक्षात रूप से इस विद्या को देखा था और ये देखकर आज उसे इस बात का यकीन हो गया था की भले ही शिष्य कितना ही बड़ा तोप बन जाए लेकिन गुरु हमेशा गुरु ही रहेगा
लेकिन इस विद्या का एक नियम था कि ये एक योद्धा पर केवल एक ही बार काम करता है
जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था तो वही दूसरी तरफ इस वक़्त मे और गुरु नंदी किसी बड़े मैदान में थे जहाँ पर बहुत सी भयानक और क्रूर दिखने वाले असुरो की मूर्तियाँ भी थी
जिन्हे देखकर लग रहा था कि मानो अभी जीवित हो जायेंगी और हमला करेंगे मे उन मूर्तियों को देखकर उत्साहित हो गया था और उन्हे बार बार देख रहा था और जब गुरु नंदी ने मुझे उन मूर्तियों को देखते पाकर गुरु नंदी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी
गुरु नंदी :- इन मूर्तियों को ऐसे क्यों घूर रहे हो कुमार
मै:- इन्हे देखकर ऐसा लगता हैं कि ये सब जीवित है
गुरु नंदी :- सही कहा आपने ये सब महासुरों की सेना का हिस्सा है जिन्हे हमने मूर्तियों में तब्दील कर दिया था और जब महासूर जागेंगे तब ये सभी पुन्हा दैत्य रूप धारण करेंगे
मै :- अच्छा
उसके बाद मे और गुरु नंदी एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो गए और उसके बाद गुरु नंदी ने मुझे बहुत सी चीजों की जानकारी दी बहुत से ऐसी विद्याएँ भी सिखाई जो बहुत उपयोगी थे
जिसके बाद गुरु जल, वानर अग्नि, पृथ्वी, सिँह और काल सभी गुरुओं ने एक एक करके मुझे अपने अपने अस्त्रों से जुड़ी जानकारी बताई अलग अलग विद्याएँ सिखाई और बीच बीच में वो सभी मेरे साथ युद्ध अभ्यास भी करते
ऐसे ही न जाने कितना समय बीत गया लेकिन ये शिक्षा बंद नही हुई वो मुझे सिखाते जाते और जब हमारी ये शिक्षा पूरी हुई तो तो सारे गुरु मेरे सामने खड़े थे
गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है
अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय इक्सठ
जहाँ एक तरफ मे उस मायावी दुनिया में कैद था तो वही दूसरी तरफ मायासुर ने विराज को मारने के बाद लगभद पूरे पाताल लोक को अपने कब्जे में ले लिया था
जहाँ पहले पाताल लोक में केवल काम क्रीड़ा और मदिरा के नशे मे धुत्त योद्धाओं का आमना सामना होता और कोई एक मारा जाता या कभी कभी दोनों मारे जाते और स्त्रियाँ तो वहा केवल भोग विलास की वस्तु थी
तो वही अब मायासुर ने पूरे पाताल लोक में सारे मदिरा और वैश्या घरों को बंद कर दिया था और सभी असुर असुरियों को केवल आने वाले युद्ध के लिए ही तैयार रहने का आदेश दिया था यहाँ तक असुर कुमारों को भी उसने युद्ध मे सैनिकों का सामान उठाने के लिए तैयार किया था
और अगर कोई भी जरा सी चु चा करता तो तुरंत उसका सर धड़ से अलग होता और अगर कोई स्त्री उसके सामने अपनी आवाज उठाने की गुस्ताखी करती तो उस सबके सामने एकसाथ कई असुरों द्वारा बेरहमी से भोगा जाता
साफ कहे तो मायासुर ने आने वाले युद्ध मे विजय सुनिश्चित करने के बजाए प्रजा के मन में विद्रोह की सोच को जरूर सुनिश्चित कर दिया था अभी तक सारे असुर मायासुर का कहा मान रहे थे
तो इसी वजह से की उसके साथ स्वयं आचार्य शुक्राचार्य है और कोई भी असुर उनके खिलाफ विद्रोह की आवाज नही उठा सकता था और इसी का फायदा उठा कर मायासुर लगभग पूरे पाताल लोक में अपना राज कायम कर लिया था
अब पूरे पाताल लोक में केवल दो ही जगह ऐसी थी जहाँ पर अभी तक मायासुर ने अपना राज तो दूर बल्कि कदम भी नही रखा था और वो दो जगहे थी शुक्राचार्य का राज्य जहाँ पर सारे असुर आ जा सकते थे
लेकिन जिन्होंने वहा पर किसी भी तरफ के दुर्व्यवहार करने की इच्छा रखी उसका सामना करने स्वयं शुक्राचार्य आ जाते और पूरे पाताल लोक में ऐसा एक असुर भी नही था जो शुक्राचार्य से युद्ध करने की इच्छा रखे
अगर साफ कहा जाए तो वहा जिसने भी राज करने की इच्छा से कदम रखा उसे वहा केवल और केवल 6*6 की कब्र नसीब हुई जिसमे उन्हे वहा के मिट्टी मे पनपने वाले सूक्ष्म जीव नोच नोच कर खाते
इसीलिए आज तक पाताल लोक में जितने भी राजा ही उन सभी ने गुरु शुक्राचार्य के उस भाग के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया था भले ही उनके पास पूरे पाताल लोक की ही शक्ति क्यों न हो लेकिन
वो सभी जानते थे की शुक्राचार्य को हराने में केवल त्रिदेव ही सक्षम थे और सारे असुरो का उनके प्रति भरोषा और आदर भी अतुल्य था इसी कारण से जब मायासुर के आतंक से तंग आकर कुछ असुरों ने शुक्राचार्य से मदद मांगी
तो शुक्राचार्य ने उस मदद के रूप मे सारे असुर बालकों को औरतो को अपने राज्य में रहने का स्थान दीया जिससे उनके प्रति सबका आदर और विश्वास पहले से भी दोगुना बढ़ गया
तो वही दूसरी जगह वही भाग था जहाँ पर महासूर ने अपना राज्य स्थापित किया था वहा मायासुर जाना तो चाहता था ताकि वो महासूर से मिलकर कोई प्रबल योजना बना पाए
आखिर कौन राजा नही चाहेगा की आने वाले युद्ध मे ऐसा की महा शक्तिशाली और प्रबल पक्ष उनके साथ खड़ा हो न की उनके विरोध में और मायासुर को इस बात का भी बोध था कि अगर कोई एक महासूर ने उसकी मैत्री को स्वीकार करे तो सारे महासूर उसके साथ हो जायेंगे
और सबसे बड़ी बात सप्तस्त्रों की तोड़ थे ये महासूर ये सारी बात उसे और उकसा रही थी आगे बढ़ने के लिए लेकिन शुक्राचार्य का साफ आदेश था की उनके कोई भी मतलब कोई भी उस भाग में प्रवेश नही करेगा
और यही एक बात थी की हर बार मायासुर उस भाग की सीमा पर आता और केवल वहा के हाल का निरीक्षण करता कुछ सिपाहियों ने जिज्ञासा वश उस भाग में जाने की गुस्ताखी की थी
लेकिन जिन्होंने भी उस भाग में कदम रखा वो सब केवल वहा की प्रजा जो अब नरभक्षी बन गए थे उनके आहार मे शामिल हो जाते जिसके कारण बाकी कोई भी वहा जाने से अब डरने लगा था
तो वही इस वक़्त गुरु शुक्राचार्य और मायासुर दोनों उसी जगह पर थे जहाँ कुछ समय पहले महायुद्ध हुआ था जिसमे भद्रा ने आके पुरा पासा ही पलट दिया था और अभी उस जगह पर वो दोनों मौजूद थे
और उनके अलावा वहा शहीद हुए लाखों असुरी सिपाहियों जली कटी लाशे जो देखकर मायासुर समझ नही पा रहा था कि आखिर शुक्राचार्य उसे लेकर यहाँ क्यों आये है
जिससे उसके मन इसका कारण जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी और इसी जिज्ञासा वश उसने अपने गुरु से पूछने लगा
मायासुर :- गुरुवर आपने अभी तक बताया नही की आखिर हम यहाँ पर आये क्यों है आखिर इन शिपहियों के मृत देह और अस्थियों से क्या कार्य है
शुक्राचार्य :- धीरज मायासुर धीरज रखो सब पता चल जायेगा
अभी फिर से मायासुर कुछ बोलता या पूछता उससे पहले ही शुक्राचार्य का शरीर हवा में उड़ने लगा और वो अपनी आँखे बंद करके जोरों से मंत्र जाप करने लगे और जब वो मंत्र पढ़ रहे थे
वैसे वैसे वहा की पूरी धरती मे कंपन होने लगी थी वहा के आसमान मे भयंकर बिजलियाँ चमकने लगी थी और जब मायासुर ने वो मंत्र ध्यान से सुना तो उसके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आ गयी
जैसे किसी छोटे बालक को उसका मनपसंद खिलौना मिल गया हो इसके पीछे कि वजह थी वो विद्या जो गुरु शुक्राचार्य इस्तेमाल कर रहा था और वो विद्या थी मृत संजीवनी विद्या
हमारी संस्कृति में इस विद्या के बारे में वर्णित किया गया है की अपने गुरु की आज्ञा से एक शिष्य ने भगवान आदिदेव को गुरु बनाने के लिए कठोर तप किया. जिसके परिणाम स्वरूप भगवान आदिदेव ने प्रसन्न होकर उस शिष्य को मृत संजीवनी की विद्या दी,
जिससे किसी मृत को भी जीवित किया जा सकता है. भगवान आदिदेव से यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद वो शिष्य दैत्यगुरु शुक्राचार्य बन गया. जिसके बाद दैत्य देवों द्वारा मारे गए अपने शिष्यों को जीवित कर देते
.लेकिन इसका प्रयोग करने से पहले इसे सिद्ध करना बहुत जरूरी है. सिद्ध करने की प्रक्रिया काफी कठिन होती है. मान्यता है कि यदि मंत्र सिद्ध हो जाए तो किसी मृत व्यक्ति के कान में चुपचाप इस मंत्र को बोलने से वो व्यक्ति फिर से जीवित हो सकता है.
और इसी महान विद्या का इस्तेमाल करके शुक्राचार्य ने वहा पर शहीद हुए सारे असुरी सैनिकों को पुनर्जीवित कर दिया था जो देखकर मायासुर और बाकी सब शुक्राचार्य के सामने झुक गए थे
आज पहली बार मायासुर ने साक्षात रूप से इस विद्या को देखा था और ये देखकर आज उसे इस बात का यकीन हो गया था की भले ही शिष्य कितना ही बड़ा तोप बन जाए लेकिन गुरु हमेशा गुरु ही रहेगा
लेकिन इस विद्या का एक नियम था कि ये एक योद्धा पर केवल एक ही बार काम करता है
जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था तो वही दूसरी तरफ इस वक़्त मे और गुरु नंदी किसी बड़े मैदान में थे जहाँ पर बहुत सी भयानक और क्रूर दिखने वाले असुरो की मूर्तियाँ भी थी
जिन्हे देखकर लग रहा था कि मानो अभी जीवित हो जायेंगी और हमला करेंगे मे उन मूर्तियों को देखकर उत्साहित हो गया था और उन्हे बार बार देख रहा था और जब गुरु नंदी ने मुझे उन मूर्तियों को देखते पाकर गुरु नंदी के चेहरे पर मुस्कान आ गयी
गुरु नंदी :- इन मूर्तियों को ऐसे क्यों घूर रहे हो कुमार
मै:- इन्हे देखकर ऐसा लगता हैं कि ये सब जीवित है
गुरु नंदी :- सही कहा आपने ये सब महासुरों की सेना का हिस्सा है जिन्हे हमने मूर्तियों में तब्दील कर दिया था और जब महासूर जागेंगे तब ये सभी पुन्हा दैत्य रूप धारण करेंगे
मै :- अच्छा
उसके बाद मे और गुरु नंदी एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो गए और उसके बाद गुरु नंदी ने मुझे बहुत सी चीजों की जानकारी दी बहुत से ऐसी विद्याएँ भी सिखाई जो बहुत उपयोगी थे
जिसके बाद गुरु जल, वानर अग्नि, पृथ्वी, सिँह और काल सभी गुरुओं ने एक एक करके मुझे अपने अपने अस्त्रों से जुड़ी जानकारी बताई अलग अलग विद्याएँ सिखाई और बीच बीच में वो सभी मेरे साथ युद्ध अभ्यास भी करते
ऐसे ही न जाने कितना समय बीत गया लेकिन ये शिक्षा बंद नही हुई वो मुझे सिखाते जाते और जब हमारी ये शिक्षा पूरी हुई तो तो सारे गुरु मेरे सामने खड़े थे
गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है
अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था
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आज के लिए इतना ही
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Bohot khoob vajradhikari bhai, kya gajab likha hai, hadra ki takat use mul gai, per kis kaam ki?? sare guruo ne to use kitna samjhaya per wo ek ko bhi na bacha saka?अध्याय बाशठ
गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है
अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था
उन्हे देख ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्होंने किसी अनहोनी को महसूस कर लिया था अभी मे उनसे इस सब का कारण पूछता उससे पहले ही वहा पर जितनी भी पत्थर की मूर्तियाँ थी वो सभी धीरे धीरे जीवित होने लगी
जो देखकर मुझे गुरु नंदी की कही बात याद आने लगी की ये सेना तभी जागेगी जब महासूर जागेंगे इसका मतलब की महासूर जाग चुके है और इससे पहले की मे कुछ और सोच पाता
उससे पहले ही उन सभी मूर्तियों ने हम पर हमला बोल दिया मे अभी अपने सोच मे गुम था कि तभी उन मूर्तियों मेसे एक ने मेरे उपर अपने गदा से वार किया जिससे मे दो कदम पीछे हो गया और जमीन पर गिर पड़ा
और जैसे ही गुरु नंदी ने मुझे गिरते देखा तो उन्होंने तुरंत अपने हाथों मे पकड़ी हुई तलवार को मेरे तरफ फेक दिया जिससे वो तलवार ठीक मेरे सामने आके गिर गई
लेकिन जब मैने उस तलवार को उठाने की कोशिश की तो वो तलवार इतनी भारी थी कि उसको उठाना तो दूर मे उसे हिला भी नही पा रहा था
गुरु नंदी :- वो नंदी अस्त्र से जुड़ी हुई तलवार है उस उठाने के लिए अपने शरीर मे 100 हाथियों की ताकत समाओ कुमार अह्ह्ह
मे :- नहीं....
अभी गुरु नंदी मुझे ये बात बता रहे थे की तभी कुछ सिपाहियों ने उनके भटके हुए ध्यान का फायदा उठा कर सीधा उनके सर को उनके धड़ से अलग कर दिया जो देखकर मेरे होश ही उड़ गये
मे उस तलवार को छोड़ अपने अस्त्रों की शक्ति पर ध्यान लगाने लगा लेकिन मेरे सारे प्रयत्न विफल जाते अभी मे इस कोशिश में लगा हुआ था कि तभी मुझे एक चीख सुनाई दी जो गुरु वानर की थी
जिनको उन दैत्यों ने घेर लिया था और एक दैत्य ने उनका एक हाथ काट दिया था और बाकी दैत्य उनका ये हाल देखकर नाच रहे थे
तो वही ये देखकर मे अपनी पूरी गति से उनके तरफ बढ़ने लगा मे शिबू की मायावी तलवारों को भी याद किया लेकिन वो भी नाकाम रहा मे खुदको बड़ा बेबस महसूस कर रहा था
गुरु वानर :- कुमार अपनी गति को अपने भार से जोड़ो तुम्हे अपने दिल और दिमाग को एक करना होगा अह्ह्ह बचाओ भद्रा
उनके यही आखरी बोल थे जो उन्होंने मरने से पहले बोले थे जी हाँ जब वो मुझे गति बढ़ाने के लिए बोल रहे थे की तभी एक दैत्य ने अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दी और उनका सर आके सीधा मेरे पैरों के पास गिरा
जिसे देखकर मेरे कदम वही थम गए मुझे यकीन नहीं हो रहा था की मेरे सामने 2 अस्त्र धारकों को दैत्यों ने मार दिया और मे कुछ भी नही कर पाया क्या मे सच्ची मे सातों अस्त्रों के काबिल हूँ क्या मे सच्ची मे इस महान जिम्मेदारी को संभाल सकता हूँ
अभी मे ये सब सोच ही रहा था कि तभी आसमान से कही से एक आग का गोला आके मेरे से टकरा गया जिसे मैं दुर उड़ता हुआ जा गिरा अब तक मुझे बहुत चोटे आ चुकी थी
मे बार बार अपने सप्त अस्त्रों की शक्ति को जाग्रुत करने का प्रयास करता या फिर शिबू की मायावी तलवारों को प्रकट करने का प्रयत्न करता लेकिन उससे कुछ भी नहीं होता
जिसके बाद मेने भी अब उनके इस्तेमाल करने के सोच को टाल दिया और अपने बाहुबल का इस्तेमाल करने लगा लेकिन उन असुरों की खाल इतनी मजबूत थी की मेरा कोई भी प्रहार उन्हे कुछ भी चोट नही कर पा रही थी
ऐसा लग रहा था कि जैसे मे किसी पहाड़ पर अपने बाहु बल का प्रयोग कर रहा हूँ मै अभी तक एक दैत्य को नही मार पा रहा था
तो वही उन दैत्य सेना ने अभी तक गुरु नंदी और वानर के साथ साथ गुरु अग्नि, जल, सिँह को मार दिया था उन तीनों ने मुझे आखरी साँस तक मदद के लिए बुलाया था
लेकिन मे उनके पास पहुँच कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था उन्हे मरते हुए देखने के सिवा मुझे खुद पर इतना क्रोध आ रहा था कि मे चाह कर भी कुछ नही कर पा रहा था मे बार बार खुद से एक ही सवाल पूछ रहा था
कि क्या इसीलिए मुझे चुना गया था की मे सबको मरते देखु क्या इसीलिए मुझे महान शक्तियाँ दी गई थी अब तक मे खुद को सर्व शक्तिशाली मानता था मुझे कोई नही हरा सकता मे ये हूँ वो हूँ
लेकिन आज जैसे मुझे किसी ने आइना दिखा दिया था की मे कुछ नही हूँ अगर मे इन मामूली दैत्यों से नही लड़ पा रहा हूँ तो मे महासुरों से क्या खाक लडूंगा ऐसे ही कई सारे खयाल मेरे मन में जनम ले रहे थे
और अभी मे इन सब ख्यालों से झूँझ रहा था कि तभी मेरी नज़र गुरु पृथ्वी पर गयी जिन्हे दैत्यों ने घेर लिया था और उन्हे वो मारने वाले थे की तभी मे उनके पास पहुँच गया
और उन असुरों पर वार करने लगा लेकिन अंजाम हर बार एक ही होता मेरे लात घुसे उनपर विफल जाते लेकिन उनका एक ही वार मुझे घायल करने के लिए काफी था
गुरु पृथ्वी :- कुमार इन पर लात घूसों का असर नहीं होगा इन्हे मारने के लिए तुम्हे अपने शरीर के हर हिस्से को मजबूत करना होगा बिल्कुल किसी अभेद्य कवच की तरह तभी तुम इनके वार से बच पाओगे तुम्हे जो हमने सिखाया है उसे याद करो
अभी वो इतना बोले ही थे की तभी कही से एक तीर आया और वो सीधा उनके गर्दन मे जा घुसा और वो सीधा जमीन पर गिर पड़े जो देखकर अब मे पूरी तरह से टूट गया था
मे खुद की सुध बुध खो कर वही घुटनों के बल बैठ कर रोने लगा था इस बात से अनजान की जिन्होंने गुरु पृथ्वी को मारा वो सब मेरे सामने ही है और उनका अगला शिकार मे ही हूँ
अभी वो सभी अपने अस्त्र को लिए मेरे तरफ बढ़ रहे थे की तभी किसी ने मुझे पीछे खिंचा और जब मेने मुझे पीछे खींचने वाले का चेहरा देखा तो वो गुरु काल थे जो बहुत क्रोध में थे जिन्हे देखकर मे वही जमीन पर बैठकर रोने लगा
मै :- मुझसे कुछ भी उम्मीद मत रखिये गुरु काल में कुछ नही कर पाऊंगा
गुरु काल :- तुमसे उम्मीद है किस को जब तुम्हारे सामने गुरु नंदी मारे गए थे और तुमने कुछ नही किया तभी मे जान गया था कि तुम बिना अस्त्रों के कुछ भी नही हो तुम केवल एक रोते हुए बालक हो जो केवल रो सकता हैं नही वो संसार की रक्षा करने मे सक्षम है नही अपने अपनों की न वो बुराई से लोहा ले सकता हैं न ही अपने माता पिता का प्रतिशोध ले सकता हैं
गुरु काल की ये सारी बात सुनकर अब मेरे अंदर क्रोध बढ़ रहा था मेरे आँखों मे आँसू अब सुख गए थे और दिमाग मे केवल अपने माता पिता पर हुए अत्याचार दिख रहे थे
गुरु काल :- क्रोध आ रहा है क्या तुम्हे हाँ लेकिन तुम रोने के अलावा कर भी क्या सकते हो अगर तुम युद्ध उनको खतम करने के लिए हथियार नही उठा सकते तो कायरों के तरफ कही छुप जाओ क्योंकि उनसे अकेले युद्ध करना और तुम्हे बचना मे एक साथ नही कर सकता जाओ छुप जाओ कायरों के तरह
इतना बोलके गुरु काल फिर से युद्ध के मैदान में कूद पड़े और सब सैनिकों को खतम करने लगे तो वही अब तक उनकी सारी बातों से मुझे क्रोध आ गया था और उसी क्रोध के वश मे आकर मे भी युद्ध के मैदान में कूद पडा
और इस क्रोध के कारण शायद मेरा बल भी बढ़ गया था क्योंकि जहाँ पहले उन दैत्यों पर मेरा एक वार भी ठीक से नही हो रहा था तो वही अब मेरे एक घुसे से वो असुर 10 कदम दूर जाके गिर रहे थे जो देखकर गुरु काल के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गयी थी
गुरु काल :- शब्बाश कुमार अब आप अपने क्रोध को अपनी ऊर्जा मे बदलो इन पर तुम्हारे बाहुबल से नही बल्कि मायाबल से आक्रमण करो जो तलवार गुरु नंदी ने दी थी उसका इस्तेमाल करो
अभी उन्होंने इतना बोला था की तभी वहा एक जोरदार धमाका हुआ जिस धमाके से वहा हर तरफ धुआ फैल गया और जब धुआ हटा तो वहा पर सातों महासूर खड़े थे जिन्हे देखकर मेरा क्रोध बढ़ रहा था
और उसी क्रोध के आवेश मे मैं सीधा उन महासुरों के उपर टूट पड़ा लेकिन जैसे ही मे उनके पास पहुंचा वैसे ही उन सब ने मुझे घेर लिया और मुझ पर वार करने लगे जिससे मे चोटिल हो गया था
और अभी मे कुछ कर पाता उससे पहले ही महादंश ने मुझे उठाकर दूर फेक दिया और उसके बाद क्रोधासुर ने अपना एक तिर मेरे उपर छोड़ दिया लेकिन इसके पहले की वो तिर मुझ तक पहुँच पाता
उससे पहले ही गुरु काल मेरे और उस तिर के मध्य आ गए और वो तिर उनके सीने मे धस गया और वो सीधा मेरे पैरों के पास गिर गए जो देखकर मेने तुरंत उनके सर अपने गोद मे ले लिया मुझे ऐसा लग रहा था की वो कुछ बोलने की कोशिश कर रहे हैं
गुरु काल :- याद रखना अपने सारे नकारत्मक भावों को अपनी ऊर्जा बनाओ अगर तुम ऐसा कर पाए तो दुनिया की कोई भी शक्ति तुम्हे हरा नहीं पायेगी
इतना बोलते हुए उन्होंने मेरे गोद मे ही दम तोड़ दिया तो वही गुरु काल का निर्जीव शरीर को अपने गोद मे महसूस करके मेरा क्रोध अपनी चरम पर पहुँच गया था
जिसके चलते मे फिर एक बार उन महासुरों के तरफ दौड़ पड़ा लेकिन इसबार भी वही हुआ जो पिछली बार हुआ था महादंश ने मुझे किसी खिलौने समान उठाकर दूर फेक दिया लेकिन मे रुका नही
अभी मे फिर से कोशिश करता की तभी मेरा ध्यान गुरु नंदी की दी हुई तलवार पर पड़ी और जैसे ही मैने उसे देखा मेरे मन में सारे गुरुओं द्वारा बताई हुई बाते आ गयी जिसके चलते मे वही तलवार के पास बैठकर ध्यान लगाने लगा
जिसके बाद मुझे अपने शरीर में बहुत से बदलाव महसूस होने लगे और अभी मे ध्यान बैठा था की तभी क्रोधासुर ने फिर से एक तिर मेरे तरफ छोड़ दिया और जैसे ही वो तिर मेरे शरीर से टकराया
वैसे ही उस तिर के मुह पर लगे ही तिखा हिस्सा टूट कर तिर से अलग हो गया इसके पीछे का कारण था मेरा शरीर जो अब किसी अभेद्य कवच के तरह मजबूत हो गया था
और उस तिर के नाकाम होते ही मेने अपना हाथ आगे बढ़ाकर तलवार को पकड़ लिया और अपनी आँखे खोल दी जो की अब पूरी लाल हो गयी थी जैसे मानो उनके अंदर रक्त उतर आया है
और जो तलवार अब तक पूरी ताकत लगाकर भी मुझसे उठ नही रही थी वो अब मैने अपने एक हाथ मे ऐसे उठा रखी थी की जैसे खिलौने की तलवार हो और जैसे ही मे उस तलवार को उठाकर आगे बढ़ने लगा की तभी......
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आज के लिए इतना ही
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Nice and superb update....अध्याय बाशठ
गुरु नंदी :- कुमार जो ज्ञान हम आपको दे सकते थे वो सभी ज्ञान हम आपको दे चुके है अब आप उसका इस्तेमाल कैसे करते हो ये आपके उपर निर्भर करता है
अभी उन्होंने इतना बोला ही था कि तभी वहा की जमीन थर थर कांपने लगी आसमान मे फिर से एक बार बिजलियाँ चमकने लगी तो वही ये सब देखकर सारे गुरुओं के चेहरे का रंग उड़ गया था उनके आँखों मे भय साफ दिख रहा था
उन्हे देख ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्होंने किसी अनहोनी को महसूस कर लिया था अभी मे उनसे इस सब का कारण पूछता उससे पहले ही वहा पर जितनी भी पत्थर की मूर्तियाँ थी वो सभी धीरे धीरे जीवित होने लगी
जो देखकर मुझे गुरु नंदी की कही बात याद आने लगी की ये सेना तभी जागेगी जब महासूर जागेंगे इसका मतलब की महासूर जाग चुके है और इससे पहले की मे कुछ और सोच पाता
उससे पहले ही उन सभी मूर्तियों ने हम पर हमला बोल दिया मे अभी अपने सोच मे गुम था कि तभी उन मूर्तियों मेसे एक ने मेरे उपर अपने गदा से वार किया जिससे मे दो कदम पीछे हो गया और जमीन पर गिर पड़ा
और जैसे ही गुरु नंदी ने मुझे गिरते देखा तो उन्होंने तुरंत अपने हाथों मे पकड़ी हुई तलवार को मेरे तरफ फेक दिया जिससे वो तलवार ठीक मेरे सामने आके गिर गई
लेकिन जब मैने उस तलवार को उठाने की कोशिश की तो वो तलवार इतनी भारी थी कि उसको उठाना तो दूर मे उसे हिला भी नही पा रहा था
गुरु नंदी :- वो नंदी अस्त्र से जुड़ी हुई तलवार है उस उठाने के लिए अपने शरीर मे 100 हाथियों की ताकत समाओ कुमार अह्ह्ह
मे :- नहीं....
अभी गुरु नंदी मुझे ये बात बता रहे थे की तभी कुछ सिपाहियों ने उनके भटके हुए ध्यान का फायदा उठा कर सीधा उनके सर को उनके धड़ से अलग कर दिया जो देखकर मेरे होश ही उड़ गये
मे उस तलवार को छोड़ अपने अस्त्रों की शक्ति पर ध्यान लगाने लगा लेकिन मेरे सारे प्रयत्न विफल जाते अभी मे इस कोशिश में लगा हुआ था कि तभी मुझे एक चीख सुनाई दी जो गुरु वानर की थी
जिनको उन दैत्यों ने घेर लिया था और एक दैत्य ने उनका एक हाथ काट दिया था और बाकी दैत्य उनका ये हाल देखकर नाच रहे थे
तो वही ये देखकर मे अपनी पूरी गति से उनके तरफ बढ़ने लगा मे शिबू की मायावी तलवारों को भी याद किया लेकिन वो भी नाकाम रहा मे खुदको बड़ा बेबस महसूस कर रहा था
गुरु वानर :- कुमार अपनी गति को अपने भार से जोड़ो तुम्हे अपने दिल और दिमाग को एक करना होगा अह्ह्ह बचाओ भद्रा
उनके यही आखरी बोल थे जो उन्होंने मरने से पहले बोले थे जी हाँ जब वो मुझे गति बढ़ाने के लिए बोल रहे थे की तभी एक दैत्य ने अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दी और उनका सर आके सीधा मेरे पैरों के पास गिरा
जिसे देखकर मेरे कदम वही थम गए मुझे यकीन नहीं हो रहा था की मेरे सामने 2 अस्त्र धारकों को दैत्यों ने मार दिया और मे कुछ भी नही कर पाया क्या मे सच्ची मे सातों अस्त्रों के काबिल हूँ क्या मे सच्ची मे इस महान जिम्मेदारी को संभाल सकता हूँ
अभी मे ये सब सोच ही रहा था कि तभी आसमान से कही से एक आग का गोला आके मेरे से टकरा गया जिसे मैं दुर उड़ता हुआ जा गिरा अब तक मुझे बहुत चोटे आ चुकी थी
मे बार बार अपने सप्त अस्त्रों की शक्ति को जाग्रुत करने का प्रयास करता या फिर शिबू की मायावी तलवारों को प्रकट करने का प्रयत्न करता लेकिन उससे कुछ भी नहीं होता
जिसके बाद मेने भी अब उनके इस्तेमाल करने के सोच को टाल दिया और अपने बाहुबल का इस्तेमाल करने लगा लेकिन उन असुरों की खाल इतनी मजबूत थी की मेरा कोई भी प्रहार उन्हे कुछ भी चोट नही कर पा रही थी
ऐसा लग रहा था कि जैसे मे किसी पहाड़ पर अपने बाहु बल का प्रयोग कर रहा हूँ मै अभी तक एक दैत्य को नही मार पा रहा था
तो वही उन दैत्य सेना ने अभी तक गुरु नंदी और वानर के साथ साथ गुरु अग्नि, जल, सिँह को मार दिया था उन तीनों ने मुझे आखरी साँस तक मदद के लिए बुलाया था
लेकिन मे उनके पास पहुँच कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था उन्हे मरते हुए देखने के सिवा मुझे खुद पर इतना क्रोध आ रहा था कि मे चाह कर भी कुछ नही कर पा रहा था मे बार बार खुद से एक ही सवाल पूछ रहा था
कि क्या इसीलिए मुझे चुना गया था की मे सबको मरते देखु क्या इसीलिए मुझे महान शक्तियाँ दी गई थी अब तक मे खुद को सर्व शक्तिशाली मानता था मुझे कोई नही हरा सकता मे ये हूँ वो हूँ
लेकिन आज जैसे मुझे किसी ने आइना दिखा दिया था की मे कुछ नही हूँ अगर मे इन मामूली दैत्यों से नही लड़ पा रहा हूँ तो मे महासुरों से क्या खाक लडूंगा ऐसे ही कई सारे खयाल मेरे मन में जनम ले रहे थे
और अभी मे इन सब ख्यालों से झूँझ रहा था कि तभी मेरी नज़र गुरु पृथ्वी पर गयी जिन्हे दैत्यों ने घेर लिया था और उन्हे वो मारने वाले थे की तभी मे उनके पास पहुँच गया
और उन असुरों पर वार करने लगा लेकिन अंजाम हर बार एक ही होता मेरे लात घुसे उनपर विफल जाते लेकिन उनका एक ही वार मुझे घायल करने के लिए काफी था
गुरु पृथ्वी :- कुमार इन पर लात घूसों का असर नहीं होगा इन्हे मारने के लिए तुम्हे अपने शरीर के हर हिस्से को मजबूत करना होगा बिल्कुल किसी अभेद्य कवच की तरह तभी तुम इनके वार से बच पाओगे तुम्हे जो हमने सिखाया है उसे याद करो
अभी वो इतना बोले ही थे की तभी कही से एक तीर आया और वो सीधा उनके गर्दन मे जा घुसा और वो सीधा जमीन पर गिर पड़े जो देखकर अब मे पूरी तरह से टूट गया था
मे खुद की सुध बुध खो कर वही घुटनों के बल बैठ कर रोने लगा था इस बात से अनजान की जिन्होंने गुरु पृथ्वी को मारा वो सब मेरे सामने ही है और उनका अगला शिकार मे ही हूँ
अभी वो सभी अपने अस्त्र को लिए मेरे तरफ बढ़ रहे थे की तभी किसी ने मुझे पीछे खिंचा और जब मेने मुझे पीछे खींचने वाले का चेहरा देखा तो वो गुरु काल थे जो बहुत क्रोध में थे जिन्हे देखकर मे वही जमीन पर बैठकर रोने लगा
मै :- मुझसे कुछ भी उम्मीद मत रखिये गुरु काल में कुछ नही कर पाऊंगा
गुरु काल :- तुमसे उम्मीद है किस को जब तुम्हारे सामने गुरु नंदी मारे गए थे और तुमने कुछ नही किया तभी मे जान गया था कि तुम बिना अस्त्रों के कुछ भी नही हो तुम केवल एक रोते हुए बालक हो जो केवल रो सकता हैं नही वो संसार की रक्षा करने मे सक्षम है नही अपने अपनों की न वो बुराई से लोहा ले सकता हैं न ही अपने माता पिता का प्रतिशोध ले सकता हैं
गुरु काल की ये सारी बात सुनकर अब मेरे अंदर क्रोध बढ़ रहा था मेरे आँखों मे आँसू अब सुख गए थे और दिमाग मे केवल अपने माता पिता पर हुए अत्याचार दिख रहे थे
गुरु काल :- क्रोध आ रहा है क्या तुम्हे हाँ लेकिन तुम रोने के अलावा कर भी क्या सकते हो अगर तुम युद्ध उनको खतम करने के लिए हथियार नही उठा सकते तो कायरों के तरफ कही छुप जाओ क्योंकि उनसे अकेले युद्ध करना और तुम्हे बचना मे एक साथ नही कर सकता जाओ छुप जाओ कायरों के तरह
इतना बोलके गुरु काल फिर से युद्ध के मैदान में कूद पड़े और सब सैनिकों को खतम करने लगे तो वही अब तक उनकी सारी बातों से मुझे क्रोध आ गया था और उसी क्रोध के वश मे आकर मे भी युद्ध के मैदान में कूद पडा
और इस क्रोध के कारण शायद मेरा बल भी बढ़ गया था क्योंकि जहाँ पहले उन दैत्यों पर मेरा एक वार भी ठीक से नही हो रहा था तो वही अब मेरे एक घुसे से वो असुर 10 कदम दूर जाके गिर रहे थे जो देखकर गुरु काल के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गयी थी
गुरु काल :- शब्बाश कुमार अब आप अपने क्रोध को अपनी ऊर्जा मे बदलो इन पर तुम्हारे बाहुबल से नही बल्कि मायाबल से आक्रमण करो जो तलवार गुरु नंदी ने दी थी उसका इस्तेमाल करो
अभी उन्होंने इतना बोला था की तभी वहा एक जोरदार धमाका हुआ जिस धमाके से वहा हर तरफ धुआ फैल गया और जब धुआ हटा तो वहा पर सातों महासूर खड़े थे जिन्हे देखकर मेरा क्रोध बढ़ रहा था
और उसी क्रोध के आवेश मे मैं सीधा उन महासुरों के उपर टूट पड़ा लेकिन जैसे ही मे उनके पास पहुंचा वैसे ही उन सब ने मुझे घेर लिया और मुझ पर वार करने लगे जिससे मे चोटिल हो गया था
और अभी मे कुछ कर पाता उससे पहले ही महादंश ने मुझे उठाकर दूर फेक दिया और उसके बाद क्रोधासुर ने अपना एक तिर मेरे उपर छोड़ दिया लेकिन इसके पहले की वो तिर मुझ तक पहुँच पाता
उससे पहले ही गुरु काल मेरे और उस तिर के मध्य आ गए और वो तिर उनके सीने मे धस गया और वो सीधा मेरे पैरों के पास गिर गए जो देखकर मेने तुरंत उनके सर अपने गोद मे ले लिया मुझे ऐसा लग रहा था की वो कुछ बोलने की कोशिश कर रहे हैं
गुरु काल :- याद रखना अपने सारे नकारत्मक भावों को अपनी ऊर्जा बनाओ अगर तुम ऐसा कर पाए तो दुनिया की कोई भी शक्ति तुम्हे हरा नहीं पायेगी
इतना बोलते हुए उन्होंने मेरे गोद मे ही दम तोड़ दिया तो वही गुरु काल का निर्जीव शरीर को अपने गोद मे महसूस करके मेरा क्रोध अपनी चरम पर पहुँच गया था
जिसके चलते मे फिर एक बार उन महासुरों के तरफ दौड़ पड़ा लेकिन इसबार भी वही हुआ जो पिछली बार हुआ था महादंश ने मुझे किसी खिलौने समान उठाकर दूर फेक दिया लेकिन मे रुका नही
अभी मे फिर से कोशिश करता की तभी मेरा ध्यान गुरु नंदी की दी हुई तलवार पर पड़ी और जैसे ही मैने उसे देखा मेरे मन में सारे गुरुओं द्वारा बताई हुई बाते आ गयी जिसके चलते मे वही तलवार के पास बैठकर ध्यान लगाने लगा
जिसके बाद मुझे अपने शरीर में बहुत से बदलाव महसूस होने लगे और अभी मे ध्यान बैठा था की तभी क्रोधासुर ने फिर से एक तिर मेरे तरफ छोड़ दिया और जैसे ही वो तिर मेरे शरीर से टकराया
वैसे ही उस तिर के मुह पर लगे ही तिखा हिस्सा टूट कर तिर से अलग हो गया इसके पीछे का कारण था मेरा शरीर जो अब किसी अभेद्य कवच के तरह मजबूत हो गया था
और उस तिर के नाकाम होते ही मेने अपना हाथ आगे बढ़ाकर तलवार को पकड़ लिया और अपनी आँखे खोल दी जो की अब पूरी लाल हो गयी थी जैसे मानो उनके अंदर रक्त उतर आया है
और जो तलवार अब तक पूरी ताकत लगाकर भी मुझसे उठ नही रही थी वो अब मैने अपने एक हाथ मे ऐसे उठा रखी थी की जैसे खिलौने की तलवार हो और जैसे ही मे उस तलवार को उठाकर आगे बढ़ने लगा की तभी......
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आज के लिए इतना ही
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