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Superb update and awesome writingअध्याय चौसठ
गुरु वानर :- याद रखना कुमार इन सबसे लड़ने जाने से पहले तुम्हे उस अस्त्र को जरूर पाना है
मै :- आप निश्चित रहियेगा सप्तऋषियों मे आपको भरोशा दिलाता हूं की जिस युद्ध को आपने शतकों पहले अधूरा छोड़ा था उसी युद्ध को मे अंजाम तक पहॅुचाऊँगा
सभी गुरु एक साथ :- विजयी भवः
इतना बोलके वो सभी वहाँ से गायब हो गए और उस जगह पर तेज प्रकाश फैल गया था जिससे मेरी आँखे बंद हो गयी थी और जब आँखे खोली तो मे अपने कमरे मे मौजूद था
मेरे आस पास प्रिया और शांति दोनों मौजूद थे जिनके सोते हुए मासूमियत से भरे चेहरे देखकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी जिसके बाद मे धीरे से अपनी जगह से उठकर बाहर चला गया
और सप्तगुरुओं द्वारा सिखाये हुए विद्याओं का अभ्यास करने लगा और जब अभ्यास पूर्ण हुआ तो मे उनके द्वारा दी ही पहेली के बारे में सोचने लगा की मुझे जन्म के बाद मुझे पहली बार अस्त्रों की ऊर्जा महसूस हुई थी
मे उसके बारे में सोचने लगा हर बार मे उसके जवाब के नजदीक पहुँचता लेकिन बीच मे ही कुछ हो जाता जिससे मे मुड़कर उसी जगह आ जाता जहाँ अभी मै मौजूद था
ऐसे ही सोचते हुए रात कब गुजर गयी और सुबह कब शुरू हो गयी मुझे भी पता नही चला अभी ब्रम्ह मुहूर्त शुरू था इसीलिए आश्रम मे कोई उठा नही था
(ब्रम्ह मुहूर्त :- चंद्र ढलने के बाद और सूर्य उगने से पहले का समय सुबह 3 से 5 के बीच का समयकाल)
इस ब्रम्ह मुहूर्त के मनमोहक दृश्य की सुंदरता मे गुम होकर मे इस वक़्त आश्रम के पीछे वाली नदी के पास पहुँच गया था स्नान के लिए जब मे वहाँ पहुँचा तो
उस जगह की शांतता और वहाँ के वातावरण में फैली हुई शीतलता मे मेरे मन मे भी एक अजीब सी सुकून और शांति की भावना आ गयी थी बिल्कुल वैसी ही की तपती गर्मी मे लगातार 4-5 घंटे घूमकर आने के बाद ac की ठंडी हवाँ मै बैठने को मिले
वैसा ही हाल अभी मेरा था ऐसे वातावरण मे स्नान करने का लुफ्त उठाने के बाद जब मेरा दिल और दिमाग दोनों मे ही असीम सुख और शांतता छा गयी तो मे भी उस सुख और शांती को और अच्छे से महसूस करने के लिए मे ध्यान मे बैठ गया
और ध्यान मे बैठने के बाद मे शांत दिमाग से मे उस पहेली के बारे मे सोचने लगा और ऐसा करते ही मेरे दिमाग मे मेरे जन्म के बाद होने वाली सारी चीजे किसी चलचित्र के तरह दिखने लगी
जो देखके मुझे मेरी पहली का जवाब भी मिल गया जब बचपन मे मैं गुरु राघवेंद्र को मिला था तो उन्होंने मेरे अस्तित्व का पता लगाने हेतु मेरे उपर कालास्त्र की शक्तियाँ इस्तेमाल की थी
और जब उन्होंने ऐसा किया था तभी मेरे शरीर मे उनके अस्त्र की ऊर्जा महसूस हुई थी जो सोचते ही मेरा ध्यान टूट गया और जब मेने अपनी आँखे खोली तो पाया कि अभी धीरे धीरे सूरज उगने लग गया था
जो देखके मे तुरंत खड़ा हो गया और चारों तरफ कोई न कोई सबूत ढूँढने लगा लेकिन मुझे वहाँ कुछ नही मिला जो देखकर मे निराश हो गया था और अभी मे आश्रम मे वापिस लौट रहा था की तभी मेरी नज़र वहाँ पर बहती हुई नदी पर पड़ी
जिसके अंदर मुझे कुछ चमकती ही चीज दिखाई देने लगी लेकिन वो चीज नदी में गहराई मे थी जिसे देखकर मेने सीधा नदी मे छलांग लगा दी लेकिन मे जितना उस चमकती चीज के पास पहुँचता
वो उतनी ही नदी मे और गहराई मे चली जाती कुछ समय ऐसे ही नाकाम कोशिश करने के बाद मेरे दिमाग में एक और तरीका आ गया उस चीज तक पहुँचने का और उसके लिए मे तुरंत नदी से बाहर निकल आया
और नदी के किनारे पर आके खड़ा हो गया और फिर मेने अपने जल अस्त्र की मदद से उस नदी के सारे पानी को गायब कर दिया जिससे उस जगह पर अब मुझे वो चीज साफ साफ दिखाई दे रही थी
और वो चीज कुछ और नही बल्कि एक लोहे का बक्शा था जो पानी मे रहने के बाद भी बिल्कुल सही सलामत था उसपर जरा सी भी जंग नही चढ़ी थी
और जब में उस बक्शे को खोलकर देखा तो उसमे एक संदेशा पत्र था जिसको में पढ़ा तो पता चला की उसे गुरु जल ने ही लिखा था
संदेश :- शब्बाश भद्रा हमे पता था की तुम इस संदेश तक पहुँच जाओगे अब तुम्हे इस संदेश पत्र को संभालकर रखना है और अब तुम्हे उस महास्त्र को पाने के लिए और 7 पड़ावों को पार करना होगा हर पड़ाव तुम्हे तुम्हारे मंजिल के करीब लेकर जायेगा और जब तुम उन सातों पड़ावों को पर कर लोगे तो तुम्हे मिलेगा अजेय अस्त्र जिससे तुम उन सातों महासुरों को मार पाओगे दूसरे पडाव तक पहुँचने के लिए तुम्हारी सहायता ये संदेश ही करेगा
मेरे इतना पढ़ते ही वो पत्र और बक्शा दोनों जल के राख हो गए और उनमे लगी आग से वहाँ पर मुझे कुछ चित्र दिखने लगे वो चित्र दिखने मे बड़े खतरनाक लग रहे थे
क्योंकि जिस भी इलाके के ये चित्र थे उस पूरे इलाके मे ज्वालामुखी भरे हुए थे कुछ विशाल ज्वालामुखी थे तो कुछ छोटे ज्वालामुखी थे और जिन जगहों पर ज्वालामुखी नही थे वहाँ पर नुकीले और प्राणघाती ज्वाला काँच(obsidian) थे
जिनपर गलती से भी पैर पड़ जाता तो उसकी तपिश उसी वक़्त जला के राख कर देती बस एक बात अच्छी दिख रही थी और वो ये की वहाँ पर सारे ज्वालामुखी सुप्त अवस्था मे थे
लेकिन फिर भी उनके मुख से निकालने वाली वो भाँप इतनी गरम महसूस हो रही थी की वो आँखों को साफ दिख रही थी
जिसके बाद वो चित्र गायब हो गया और मेने भी उस नदी का फिर पहले की तरह भर दिया जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था
तो वही रात मे महागुरु के कुटिया मे इस वक्त मेरे प्रिया और शांति को छोड़कर सब मौजूद थे सारे गुरु शिबू और मेरे माता पिता भी
गुरु वानर :- तो सम्राट आपके कहे मुताबिक आपने भद्रा को सुरक्षित रखने के लिए हमारे आश्रम मै भेजा लेकिन अभी भी मे समझ नही पा रहा हूँ की आपने उस वक्त आश्रम पर लगा हुआ कवच को कैसे निष्क्रिय किया
पिता जी :- सर्वप्रथम आप हमे अपना मित्र समझिये सम्राट हम तब थे जब हम हमारे सिंहासन पर विराजमान थे लेकिन अब हम केवल त्रिलोकेश्वर है और रही बात कवच की तो वो हमने निष्क्रिय नही किया था
पिताजी की बात सुनकर सब दंग रह गए थे क्योंकि वो पिछले 20 सालों से इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हे मिल नही था और मेरे अस्तित्व की असलियत जानने के बाद उन्हे लगा था की ये सालों पुरानी अनसुलझी पहेली का जवाब उन्हे आज मिल जायेगा लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि बात जहाँ थी वही आके रुक गयी थी अभी कोई कुछ और बोलता की तभी महागुरु बोलने लगे
महागुरु :- कोई अपने सिंहासन या राजपाठ से सम्राट नही बनता बल्कि उनके कर्म उनके प्रति प्रजा का विश्वास और आदर उन्हे खुद ब खुद सम्राट की उपाधि दे देती हैं और रही उस कवच की बात तो आप सब इस बात को भूल रहे हैं कि भद्रा के शरीर मे बाल्यकाल से ही सप्त ऊर्जा समाई हुई है और जो कवच मेने बनाया है वो किसी भी अस्त्र धारक या कोई ऐसा जिसके अंदर सप्तस्त्रों का अंश भी हो उसे रोक नही सकता हैं
गुरु जल :- ये सब तो ठीक है लेकिन अब आगे क्या मतलब अब हम क्या करेंगे हमारे पास अब सप्त अस्त्र नही है और आने वाले महासंग्राम मे हम मुकाबला कैसे करेंगे कैसे महासुरों और शुक्राचार्य के सेना का सामना करेंगे
गुरु सिँह :- अपने बल हिम्मत और जज्बे से
गुरु वानर:- अपने ज्ञान से
शिबू :- सबसे बढ़कर एकता से हम उनका सामना करेंगे और उन्हे पछाड़ देंगे
महागुरु :- अब आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा क्यों दिलावर
ऐसे ही कुछ देर बाते करने के बाद सभी अपने कक्ष मे जाकर सो जाते है उन्हे पता नही था की सुबह उन्हे एक साथ कितने सारे झटके मिलने वाले है
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आज के लिए इतना ही
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Nice and superb update....अध्याय चौसठ
गुरु वानर :- याद रखना कुमार इन सबसे लड़ने जाने से पहले तुम्हे उस अस्त्र को जरूर पाना है
मै :- आप निश्चित रहियेगा सप्तऋषियों मे आपको भरोशा दिलाता हूं की जिस युद्ध को आपने शतकों पहले अधूरा छोड़ा था उसी युद्ध को मे अंजाम तक पहॅुचाऊँगा
सभी गुरु एक साथ :- विजयी भवः
इतना बोलके वो सभी वहाँ से गायब हो गए और उस जगह पर तेज प्रकाश फैल गया था जिससे मेरी आँखे बंद हो गयी थी और जब आँखे खोली तो मे अपने कमरे मे मौजूद था
मेरे आस पास प्रिया और शांति दोनों मौजूद थे जिनके सोते हुए मासूमियत से भरे चेहरे देखकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी जिसके बाद मे धीरे से अपनी जगह से उठकर बाहर चला गया
और सप्तगुरुओं द्वारा सिखाये हुए विद्याओं का अभ्यास करने लगा और जब अभ्यास पूर्ण हुआ तो मे उनके द्वारा दी ही पहेली के बारे में सोचने लगा की मुझे जन्म के बाद मुझे पहली बार अस्त्रों की ऊर्जा महसूस हुई थी
मे उसके बारे में सोचने लगा हर बार मे उसके जवाब के नजदीक पहुँचता लेकिन बीच मे ही कुछ हो जाता जिससे मे मुड़कर उसी जगह आ जाता जहाँ अभी मै मौजूद था
ऐसे ही सोचते हुए रात कब गुजर गयी और सुबह कब शुरू हो गयी मुझे भी पता नही चला अभी ब्रम्ह मुहूर्त शुरू था इसीलिए आश्रम मे कोई उठा नही था
(ब्रम्ह मुहूर्त :- चंद्र ढलने के बाद और सूर्य उगने से पहले का समय सुबह 3 से 5 के बीच का समयकाल)
इस ब्रम्ह मुहूर्त के मनमोहक दृश्य की सुंदरता मे गुम होकर मे इस वक़्त आश्रम के पीछे वाली नदी के पास पहुँच गया था स्नान के लिए जब मे वहाँ पहुँचा तो
उस जगह की शांतता और वहाँ के वातावरण में फैली हुई शीतलता मे मेरे मन मे भी एक अजीब सी सुकून और शांति की भावना आ गयी थी बिल्कुल वैसी ही की तपती गर्मी मे लगातार 4-5 घंटे घूमकर आने के बाद ac की ठंडी हवाँ मै बैठने को मिले
वैसा ही हाल अभी मेरा था ऐसे वातावरण मे स्नान करने का लुफ्त उठाने के बाद जब मेरा दिल और दिमाग दोनों मे ही असीम सुख और शांतता छा गयी तो मे भी उस सुख और शांती को और अच्छे से महसूस करने के लिए मे ध्यान मे बैठ गया
और ध्यान मे बैठने के बाद मे शांत दिमाग से मे उस पहेली के बारे मे सोचने लगा और ऐसा करते ही मेरे दिमाग मे मेरे जन्म के बाद होने वाली सारी चीजे किसी चलचित्र के तरह दिखने लगी
जो देखके मुझे मेरी पहली का जवाब भी मिल गया जब बचपन मे मैं गुरु राघवेंद्र को मिला था तो उन्होंने मेरे अस्तित्व का पता लगाने हेतु मेरे उपर कालास्त्र की शक्तियाँ इस्तेमाल की थी
और जब उन्होंने ऐसा किया था तभी मेरे शरीर मे उनके अस्त्र की ऊर्जा महसूस हुई थी जो सोचते ही मेरा ध्यान टूट गया और जब मेने अपनी आँखे खोली तो पाया कि अभी धीरे धीरे सूरज उगने लग गया था
जो देखके मे तुरंत खड़ा हो गया और चारों तरफ कोई न कोई सबूत ढूँढने लगा लेकिन मुझे वहाँ कुछ नही मिला जो देखकर मे निराश हो गया था और अभी मे आश्रम मे वापिस लौट रहा था की तभी मेरी नज़र वहाँ पर बहती हुई नदी पर पड़ी
जिसके अंदर मुझे कुछ चमकती ही चीज दिखाई देने लगी लेकिन वो चीज नदी में गहराई मे थी जिसे देखकर मेने सीधा नदी मे छलांग लगा दी लेकिन मे जितना उस चमकती चीज के पास पहुँचता
वो उतनी ही नदी मे और गहराई मे चली जाती कुछ समय ऐसे ही नाकाम कोशिश करने के बाद मेरे दिमाग में एक और तरीका आ गया उस चीज तक पहुँचने का और उसके लिए मे तुरंत नदी से बाहर निकल आया
और नदी के किनारे पर आके खड़ा हो गया और फिर मेने अपने जल अस्त्र की मदद से उस नदी के सारे पानी को गायब कर दिया जिससे उस जगह पर अब मुझे वो चीज साफ साफ दिखाई दे रही थी
और वो चीज कुछ और नही बल्कि एक लोहे का बक्शा था जो पानी मे रहने के बाद भी बिल्कुल सही सलामत था उसपर जरा सी भी जंग नही चढ़ी थी
और जब में उस बक्शे को खोलकर देखा तो उसमे एक संदेशा पत्र था जिसको में पढ़ा तो पता चला की उसे गुरु जल ने ही लिखा था
संदेश :- शब्बाश भद्रा हमे पता था की तुम इस संदेश तक पहुँच जाओगे अब तुम्हे इस संदेश पत्र को संभालकर रखना है और अब तुम्हे उस महास्त्र को पाने के लिए और 7 पड़ावों को पार करना होगा हर पड़ाव तुम्हे तुम्हारे मंजिल के करीब लेकर जायेगा और जब तुम उन सातों पड़ावों को पर कर लोगे तो तुम्हे मिलेगा अजेय अस्त्र जिससे तुम उन सातों महासुरों को मार पाओगे दूसरे पडाव तक पहुँचने के लिए तुम्हारी सहायता ये संदेश ही करेगा
मेरे इतना पढ़ते ही वो पत्र और बक्शा दोनों जल के राख हो गए और उनमे लगी आग से वहाँ पर मुझे कुछ चित्र दिखने लगे वो चित्र दिखने मे बड़े खतरनाक लग रहे थे
क्योंकि जिस भी इलाके के ये चित्र थे उस पूरे इलाके मे ज्वालामुखी भरे हुए थे कुछ विशाल ज्वालामुखी थे तो कुछ छोटे ज्वालामुखी थे और जिन जगहों पर ज्वालामुखी नही थे वहाँ पर नुकीले और प्राणघाती ज्वाला काँच(obsidian) थे
जिनपर गलती से भी पैर पड़ जाता तो उसकी तपिश उसी वक़्त जला के राख कर देती बस एक बात अच्छी दिख रही थी और वो ये की वहाँ पर सारे ज्वालामुखी सुप्त अवस्था मे थे
लेकिन फिर भी उनके मुख से निकालने वाली वो भाँप इतनी गरम महसूस हो रही थी की वो आँखों को साफ दिख रही थी
जिसके बाद वो चित्र गायब हो गया और मेने भी उस नदी का फिर पहले की तरह भर दिया जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था
तो वही रात मे महागुरु के कुटिया मे इस वक्त मेरे प्रिया और शांति को छोड़कर सब मौजूद थे सारे गुरु शिबू और मेरे माता पिता भी
गुरु वानर :- तो सम्राट आपके कहे मुताबिक आपने भद्रा को सुरक्षित रखने के लिए हमारे आश्रम मै भेजा लेकिन अभी भी मे समझ नही पा रहा हूँ की आपने उस वक्त आश्रम पर लगा हुआ कवच को कैसे निष्क्रिय किया
पिता जी :- सर्वप्रथम आप हमे अपना मित्र समझिये सम्राट हम तब थे जब हम हमारे सिंहासन पर विराजमान थे लेकिन अब हम केवल त्रिलोकेश्वर है और रही बात कवच की तो वो हमने निष्क्रिय नही किया था
पिताजी की बात सुनकर सब दंग रह गए थे क्योंकि वो पिछले 20 सालों से इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हे मिल नही था और मेरे अस्तित्व की असलियत जानने के बाद उन्हे लगा था की ये सालों पुरानी अनसुलझी पहेली का जवाब उन्हे आज मिल जायेगा लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि बात जहाँ थी वही आके रुक गयी थी अभी कोई कुछ और बोलता की तभी महागुरु बोलने लगे
महागुरु :- कोई अपने सिंहासन या राजपाठ से सम्राट नही बनता बल्कि उनके कर्म उनके प्रति प्रजा का विश्वास और आदर उन्हे खुद ब खुद सम्राट की उपाधि दे देती हैं और रही उस कवच की बात तो आप सब इस बात को भूल रहे हैं कि भद्रा के शरीर मे बाल्यकाल से ही सप्त ऊर्जा समाई हुई है और जो कवच मेने बनाया है वो किसी भी अस्त्र धारक या कोई ऐसा जिसके अंदर सप्तस्त्रों का अंश भी हो उसे रोक नही सकता हैं
गुरु जल :- ये सब तो ठीक है लेकिन अब आगे क्या मतलब अब हम क्या करेंगे हमारे पास अब सप्त अस्त्र नही है और आने वाले महासंग्राम मे हम मुकाबला कैसे करेंगे कैसे महासुरों और शुक्राचार्य के सेना का सामना करेंगे
गुरु सिँह :- अपने बल हिम्मत और जज्बे से
गुरु वानर:- अपने ज्ञान से
शिबू :- सबसे बढ़कर एकता से हम उनका सामना करेंगे और उन्हे पछाड़ देंगे
महागुरु :- अब आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा क्यों दिलावर
ऐसे ही कुछ देर बाते करने के बाद सभी अपने कक्ष मे जाकर सो जाते है उन्हे पता नही था की सुबह उन्हे एक साथ कितने सारे झटके मिलने वाले है
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आज के लिए इतना ही
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Bahut hi shaandar update diya hai VAJRADHIKARI bhai....अध्याय चौसठ
गुरु वानर :- याद रखना कुमार इन सबसे लड़ने जाने से पहले तुम्हे उस अस्त्र को जरूर पाना है
मै :- आप निश्चित रहियेगा सप्तऋषियों मे आपको भरोशा दिलाता हूं की जिस युद्ध को आपने शतकों पहले अधूरा छोड़ा था उसी युद्ध को मे अंजाम तक पहॅुचाऊँगा
सभी गुरु एक साथ :- विजयी भवः
इतना बोलके वो सभी वहाँ से गायब हो गए और उस जगह पर तेज प्रकाश फैल गया था जिससे मेरी आँखे बंद हो गयी थी और जब आँखे खोली तो मे अपने कमरे मे मौजूद था
मेरे आस पास प्रिया और शांति दोनों मौजूद थे जिनके सोते हुए मासूमियत से भरे चेहरे देखकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी जिसके बाद मे धीरे से अपनी जगह से उठकर बाहर चला गया
और सप्तगुरुओं द्वारा सिखाये हुए विद्याओं का अभ्यास करने लगा और जब अभ्यास पूर्ण हुआ तो मे उनके द्वारा दी ही पहेली के बारे में सोचने लगा की मुझे जन्म के बाद मुझे पहली बार अस्त्रों की ऊर्जा महसूस हुई थी
मे उसके बारे में सोचने लगा हर बार मे उसके जवाब के नजदीक पहुँचता लेकिन बीच मे ही कुछ हो जाता जिससे मे मुड़कर उसी जगह आ जाता जहाँ अभी मै मौजूद था
ऐसे ही सोचते हुए रात कब गुजर गयी और सुबह कब शुरू हो गयी मुझे भी पता नही चला अभी ब्रम्ह मुहूर्त शुरू था इसीलिए आश्रम मे कोई उठा नही था
(ब्रम्ह मुहूर्त :- चंद्र ढलने के बाद और सूर्य उगने से पहले का समय सुबह 3 से 5 के बीच का समयकाल)
इस ब्रम्ह मुहूर्त के मनमोहक दृश्य की सुंदरता मे गुम होकर मे इस वक़्त आश्रम के पीछे वाली नदी के पास पहुँच गया था स्नान के लिए जब मे वहाँ पहुँचा तो
उस जगह की शांतता और वहाँ के वातावरण में फैली हुई शीतलता मे मेरे मन मे भी एक अजीब सी सुकून और शांति की भावना आ गयी थी बिल्कुल वैसी ही की तपती गर्मी मे लगातार 4-5 घंटे घूमकर आने के बाद ac की ठंडी हवाँ मै बैठने को मिले
वैसा ही हाल अभी मेरा था ऐसे वातावरण मे स्नान करने का लुफ्त उठाने के बाद जब मेरा दिल और दिमाग दोनों मे ही असीम सुख और शांतता छा गयी तो मे भी उस सुख और शांती को और अच्छे से महसूस करने के लिए मे ध्यान मे बैठ गया
और ध्यान मे बैठने के बाद मे शांत दिमाग से मे उस पहेली के बारे मे सोचने लगा और ऐसा करते ही मेरे दिमाग मे मेरे जन्म के बाद होने वाली सारी चीजे किसी चलचित्र के तरह दिखने लगी
जो देखके मुझे मेरी पहली का जवाब भी मिल गया जब बचपन मे मैं गुरु राघवेंद्र को मिला था तो उन्होंने मेरे अस्तित्व का पता लगाने हेतु मेरे उपर कालास्त्र की शक्तियाँ इस्तेमाल की थी
और जब उन्होंने ऐसा किया था तभी मेरे शरीर मे उनके अस्त्र की ऊर्जा महसूस हुई थी जो सोचते ही मेरा ध्यान टूट गया और जब मेने अपनी आँखे खोली तो पाया कि अभी धीरे धीरे सूरज उगने लग गया था
जो देखके मे तुरंत खड़ा हो गया और चारों तरफ कोई न कोई सबूत ढूँढने लगा लेकिन मुझे वहाँ कुछ नही मिला जो देखकर मे निराश हो गया था और अभी मे आश्रम मे वापिस लौट रहा था की तभी मेरी नज़र वहाँ पर बहती हुई नदी पर पड़ी
जिसके अंदर मुझे कुछ चमकती ही चीज दिखाई देने लगी लेकिन वो चीज नदी में गहराई मे थी जिसे देखकर मेने सीधा नदी मे छलांग लगा दी लेकिन मे जितना उस चमकती चीज के पास पहुँचता
वो उतनी ही नदी मे और गहराई मे चली जाती कुछ समय ऐसे ही नाकाम कोशिश करने के बाद मेरे दिमाग में एक और तरीका आ गया उस चीज तक पहुँचने का और उसके लिए मे तुरंत नदी से बाहर निकल आया
और नदी के किनारे पर आके खड़ा हो गया और फिर मेने अपने जल अस्त्र की मदद से उस नदी के सारे पानी को गायब कर दिया जिससे उस जगह पर अब मुझे वो चीज साफ साफ दिखाई दे रही थी
और वो चीज कुछ और नही बल्कि एक लोहे का बक्शा था जो पानी मे रहने के बाद भी बिल्कुल सही सलामत था उसपर जरा सी भी जंग नही चढ़ी थी
और जब में उस बक्शे को खोलकर देखा तो उसमे एक संदेशा पत्र था जिसको में पढ़ा तो पता चला की उसे गुरु जल ने ही लिखा था
संदेश :- शब्बाश भद्रा हमे पता था की तुम इस संदेश तक पहुँच जाओगे अब तुम्हे इस संदेश पत्र को संभालकर रखना है और अब तुम्हे उस महास्त्र को पाने के लिए और 7 पड़ावों को पार करना होगा हर पड़ाव तुम्हे तुम्हारे मंजिल के करीब लेकर जायेगा और जब तुम उन सातों पड़ावों को पर कर लोगे तो तुम्हे मिलेगा अजेय अस्त्र जिससे तुम उन सातों महासुरों को मार पाओगे दूसरे पडाव तक पहुँचने के लिए तुम्हारी सहायता ये संदेश ही करेगा
मेरे इतना पढ़ते ही वो पत्र और बक्शा दोनों जल के राख हो गए और उनमे लगी आग से वहाँ पर मुझे कुछ चित्र दिखने लगे वो चित्र दिखने मे बड़े खतरनाक लग रहे थे
क्योंकि जिस भी इलाके के ये चित्र थे उस पूरे इलाके मे ज्वालामुखी भरे हुए थे कुछ विशाल ज्वालामुखी थे तो कुछ छोटे ज्वालामुखी थे और जिन जगहों पर ज्वालामुखी नही थे वहाँ पर नुकीले और प्राणघाती ज्वाला काँच(obsidian) थे
जिनपर गलती से भी पैर पड़ जाता तो उसकी तपिश उसी वक़्त जला के राख कर देती बस एक बात अच्छी दिख रही थी और वो ये की वहाँ पर सारे ज्वालामुखी सुप्त अवस्था मे थे
लेकिन फिर भी उनके मुख से निकालने वाली वो भाँप इतनी गरम महसूस हो रही थी की वो आँखों को साफ दिख रही थी
जिसके बाद वो चित्र गायब हो गया और मेने भी उस नदी का फिर पहले की तरह भर दिया जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था
तो वही रात मे महागुरु के कुटिया मे इस वक्त मेरे प्रिया और शांति को छोड़कर सब मौजूद थे सारे गुरु शिबू और मेरे माता पिता भी
गुरु वानर :- तो सम्राट आपके कहे मुताबिक आपने भद्रा को सुरक्षित रखने के लिए हमारे आश्रम मै भेजा लेकिन अभी भी मे समझ नही पा रहा हूँ की आपने उस वक्त आश्रम पर लगा हुआ कवच को कैसे निष्क्रिय किया
पिता जी :- सर्वप्रथम आप हमे अपना मित्र समझिये सम्राट हम तब थे जब हम हमारे सिंहासन पर विराजमान थे लेकिन अब हम केवल त्रिलोकेश्वर है और रही बात कवच की तो वो हमने निष्क्रिय नही किया था
पिताजी की बात सुनकर सब दंग रह गए थे क्योंकि वो पिछले 20 सालों से इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हे मिल नही था और मेरे अस्तित्व की असलियत जानने के बाद उन्हे लगा था की ये सालों पुरानी अनसुलझी पहेली का जवाब उन्हे आज मिल जायेगा लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि बात जहाँ थी वही आके रुक गयी थी अभी कोई कुछ और बोलता की तभी महागुरु बोलने लगे
महागुरु :- कोई अपने सिंहासन या राजपाठ से सम्राट नही बनता बल्कि उनके कर्म उनके प्रति प्रजा का विश्वास और आदर उन्हे खुद ब खुद सम्राट की उपाधि दे देती हैं और रही उस कवच की बात तो आप सब इस बात को भूल रहे हैं कि भद्रा के शरीर मे बाल्यकाल से ही सप्त ऊर्जा समाई हुई है और जो कवच मेने बनाया है वो किसी भी अस्त्र धारक या कोई ऐसा जिसके अंदर सप्तस्त्रों का अंश भी हो उसे रोक नही सकता हैं
गुरु जल :- ये सब तो ठीक है लेकिन अब आगे क्या मतलब अब हम क्या करेंगे हमारे पास अब सप्त अस्त्र नही है और आने वाले महासंग्राम मे हम मुकाबला कैसे करेंगे कैसे महासुरों और शुक्राचार्य के सेना का सामना करेंगे
गुरु सिँह :- अपने बल हिम्मत और जज्बे से
गुरु वानर:- अपने ज्ञान से
शिबू :- सबसे बढ़कर एकता से हम उनका सामना करेंगे और उन्हे पछाड़ देंगे
महागुरु :- अब आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा क्यों दिलावर
ऐसे ही कुछ देर बाते करने के बाद सभी अपने कक्ष मे जाकर सो जाते है उन्हे पता नही था की सुबह उन्हे एक साथ कितने सारे झटके मिलने वाले है
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय चौसठ
गुरु वानर :- याद रखना कुमार इन सबसे लड़ने जाने से पहले तुम्हे उस अस्त्र को जरूर पाना है
मै :- आप निश्चित रहियेगा सप्तऋषियों मे आपको भरोशा दिलाता हूं की जिस युद्ध को आपने शतकों पहले अधूरा छोड़ा था उसी युद्ध को मे अंजाम तक पहॅुचाऊँगा
सभी गुरु एक साथ :- विजयी भवः
इतना बोलके वो सभी वहाँ से गायब हो गए और उस जगह पर तेज प्रकाश फैल गया था जिससे मेरी आँखे बंद हो गयी थी और जब आँखे खोली तो मे अपने कमरे मे मौजूद था
मेरे आस पास प्रिया और शांति दोनों मौजूद थे जिनके सोते हुए मासूमियत से भरे चेहरे देखकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी जिसके बाद मे धीरे से अपनी जगह से उठकर बाहर चला गया
और सप्तगुरुओं द्वारा सिखाये हुए विद्याओं का अभ्यास करने लगा और जब अभ्यास पूर्ण हुआ तो मे उनके द्वारा दी ही पहेली के बारे में सोचने लगा की मुझे जन्म के बाद मुझे पहली बार अस्त्रों की ऊर्जा महसूस हुई थी
मे उसके बारे में सोचने लगा हर बार मे उसके जवाब के नजदीक पहुँचता लेकिन बीच मे ही कुछ हो जाता जिससे मे मुड़कर उसी जगह आ जाता जहाँ अभी मै मौजूद था
ऐसे ही सोचते हुए रात कब गुजर गयी और सुबह कब शुरू हो गयी मुझे भी पता नही चला अभी ब्रम्ह मुहूर्त शुरू था इसीलिए आश्रम मे कोई उठा नही था
(ब्रम्ह मुहूर्त :- चंद्र ढलने के बाद और सूर्य उगने से पहले का समय सुबह 3 से 5 के बीच का समयकाल)
इस ब्रम्ह मुहूर्त के मनमोहक दृश्य की सुंदरता मे गुम होकर मे इस वक़्त आश्रम के पीछे वाली नदी के पास पहुँच गया था स्नान के लिए जब मे वहाँ पहुँचा तो
उस जगह की शांतता और वहाँ के वातावरण में फैली हुई शीतलता मे मेरे मन मे भी एक अजीब सी सुकून और शांति की भावना आ गयी थी बिल्कुल वैसी ही की तपती गर्मी मे लगातार 4-5 घंटे घूमकर आने के बाद ac की ठंडी हवाँ मै बैठने को मिले
वैसा ही हाल अभी मेरा था ऐसे वातावरण मे स्नान करने का लुफ्त उठाने के बाद जब मेरा दिल और दिमाग दोनों मे ही असीम सुख और शांतता छा गयी तो मे भी उस सुख और शांती को और अच्छे से महसूस करने के लिए मे ध्यान मे बैठ गया
और ध्यान मे बैठने के बाद मे शांत दिमाग से मे उस पहेली के बारे मे सोचने लगा और ऐसा करते ही मेरे दिमाग मे मेरे जन्म के बाद होने वाली सारी चीजे किसी चलचित्र के तरह दिखने लगी
जो देखके मुझे मेरी पहली का जवाब भी मिल गया जब बचपन मे मैं गुरु राघवेंद्र को मिला था तो उन्होंने मेरे अस्तित्व का पता लगाने हेतु मेरे उपर कालास्त्र की शक्तियाँ इस्तेमाल की थी
और जब उन्होंने ऐसा किया था तभी मेरे शरीर मे उनके अस्त्र की ऊर्जा महसूस हुई थी जो सोचते ही मेरा ध्यान टूट गया और जब मेने अपनी आँखे खोली तो पाया कि अभी धीरे धीरे सूरज उगने लग गया था
जो देखके मे तुरंत खड़ा हो गया और चारों तरफ कोई न कोई सबूत ढूँढने लगा लेकिन मुझे वहाँ कुछ नही मिला जो देखकर मे निराश हो गया था और अभी मे आश्रम मे वापिस लौट रहा था की तभी मेरी नज़र वहाँ पर बहती हुई नदी पर पड़ी
जिसके अंदर मुझे कुछ चमकती ही चीज दिखाई देने लगी लेकिन वो चीज नदी में गहराई मे थी जिसे देखकर मेने सीधा नदी मे छलांग लगा दी लेकिन मे जितना उस चमकती चीज के पास पहुँचता
वो उतनी ही नदी मे और गहराई मे चली जाती कुछ समय ऐसे ही नाकाम कोशिश करने के बाद मेरे दिमाग में एक और तरीका आ गया उस चीज तक पहुँचने का और उसके लिए मे तुरंत नदी से बाहर निकल आया
और नदी के किनारे पर आके खड़ा हो गया और फिर मेने अपने जल अस्त्र की मदद से उस नदी के सारे पानी को गायब कर दिया जिससे उस जगह पर अब मुझे वो चीज साफ साफ दिखाई दे रही थी
और वो चीज कुछ और नही बल्कि एक लोहे का बक्शा था जो पानी मे रहने के बाद भी बिल्कुल सही सलामत था उसपर जरा सी भी जंग नही चढ़ी थी
और जब में उस बक्शे को खोलकर देखा तो उसमे एक संदेशा पत्र था जिसको में पढ़ा तो पता चला की उसे गुरु जल ने ही लिखा था
संदेश :- शब्बाश भद्रा हमे पता था की तुम इस संदेश तक पहुँच जाओगे अब तुम्हे इस संदेश पत्र को संभालकर रखना है और अब तुम्हे उस महास्त्र को पाने के लिए और 7 पड़ावों को पार करना होगा हर पड़ाव तुम्हे तुम्हारे मंजिल के करीब लेकर जायेगा और जब तुम उन सातों पड़ावों को पर कर लोगे तो तुम्हे मिलेगा अजेय अस्त्र जिससे तुम उन सातों महासुरों को मार पाओगे दूसरे पडाव तक पहुँचने के लिए तुम्हारी सहायता ये संदेश ही करेगा
मेरे इतना पढ़ते ही वो पत्र और बक्शा दोनों जल के राख हो गए और उनमे लगी आग से वहाँ पर मुझे कुछ चित्र दिखने लगे वो चित्र दिखने मे बड़े खतरनाक लग रहे थे
क्योंकि जिस भी इलाके के ये चित्र थे उस पूरे इलाके मे ज्वालामुखी भरे हुए थे कुछ विशाल ज्वालामुखी थे तो कुछ छोटे ज्वालामुखी थे और जिन जगहों पर ज्वालामुखी नही थे वहाँ पर नुकीले और प्राणघाती ज्वाला काँच(obsidian) थे
जिनपर गलती से भी पैर पड़ जाता तो उसकी तपिश उसी वक़्त जला के राख कर देती बस एक बात अच्छी दिख रही थी और वो ये की वहाँ पर सारे ज्वालामुखी सुप्त अवस्था मे थे
लेकिन फिर भी उनके मुख से निकालने वाली वो भाँप इतनी गरम महसूस हो रही थी की वो आँखों को साफ दिख रही थी
जिसके बाद वो चित्र गायब हो गया और मेने भी उस नदी का फिर पहले की तरह भर दिया जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था
तो वही रात मे महागुरु के कुटिया मे इस वक्त मेरे प्रिया और शांति को छोड़कर सब मौजूद थे सारे गुरु शिबू और मेरे माता पिता भी
गुरु वानर :- तो सम्राट आपके कहे मुताबिक आपने भद्रा को सुरक्षित रखने के लिए हमारे आश्रम मै भेजा लेकिन अभी भी मे समझ नही पा रहा हूँ की आपने उस वक्त आश्रम पर लगा हुआ कवच को कैसे निष्क्रिय किया
पिता जी :- सर्वप्रथम आप हमे अपना मित्र समझिये सम्राट हम तब थे जब हम हमारे सिंहासन पर विराजमान थे लेकिन अब हम केवल त्रिलोकेश्वर है और रही बात कवच की तो वो हमने निष्क्रिय नही किया था
पिताजी की बात सुनकर सब दंग रह गए थे क्योंकि वो पिछले 20 सालों से इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हे मिल नही था और मेरे अस्तित्व की असलियत जानने के बाद उन्हे लगा था की ये सालों पुरानी अनसुलझी पहेली का जवाब उन्हे आज मिल जायेगा लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि बात जहाँ थी वही आके रुक गयी थी अभी कोई कुछ और बोलता की तभी महागुरु बोलने लगे
महागुरु :- कोई अपने सिंहासन या राजपाठ से सम्राट नही बनता बल्कि उनके कर्म उनके प्रति प्रजा का विश्वास और आदर उन्हे खुद ब खुद सम्राट की उपाधि दे देती हैं और रही उस कवच की बात तो आप सब इस बात को भूल रहे हैं कि भद्रा के शरीर मे बाल्यकाल से ही सप्त ऊर्जा समाई हुई है और जो कवच मेने बनाया है वो किसी भी अस्त्र धारक या कोई ऐसा जिसके अंदर सप्तस्त्रों का अंश भी हो उसे रोक नही सकता हैं
गुरु जल :- ये सब तो ठीक है लेकिन अब आगे क्या मतलब अब हम क्या करेंगे हमारे पास अब सप्त अस्त्र नही है और आने वाले महासंग्राम मे हम मुकाबला कैसे करेंगे कैसे महासुरों और शुक्राचार्य के सेना का सामना करेंगे
गुरु सिँह :- अपने बल हिम्मत और जज्बे से
गुरु वानर:- अपने ज्ञान से
शिबू :- सबसे बढ़कर एकता से हम उनका सामना करेंगे और उन्हे पछाड़ देंगे
महागुरु :- अब आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा क्यों दिलावर
ऐसे ही कुछ देर बाते करने के बाद सभी अपने कक्ष मे जाकर सो जाते है उन्हे पता नही था की सुबह उन्हे एक साथ कितने सारे झटके मिलने वाले है
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय चौसठ
गुरु वानर :- याद रखना कुमार इन सबसे लड़ने जाने से पहले तुम्हे उस अस्त्र को जरूर पाना है
मै :- आप निश्चित रहियेगा सप्तऋषियों मे आपको भरोशा दिलाता हूं की जिस युद्ध को आपने शतकों पहले अधूरा छोड़ा था उसी युद्ध को मे अंजाम तक पहॅुचाऊँगा
सभी गुरु एक साथ :- विजयी भवः
इतना बोलके वो सभी वहाँ से गायब हो गए और उस जगह पर तेज प्रकाश फैल गया था जिससे मेरी आँखे बंद हो गयी थी और जब आँखे खोली तो मे अपने कमरे मे मौजूद था
मेरे आस पास प्रिया और शांति दोनों मौजूद थे जिनके सोते हुए मासूमियत से भरे चेहरे देखकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी जिसके बाद मे धीरे से अपनी जगह से उठकर बाहर चला गया
और सप्तगुरुओं द्वारा सिखाये हुए विद्याओं का अभ्यास करने लगा और जब अभ्यास पूर्ण हुआ तो मे उनके द्वारा दी ही पहेली के बारे में सोचने लगा की मुझे जन्म के बाद मुझे पहली बार अस्त्रों की ऊर्जा महसूस हुई थी
मे उसके बारे में सोचने लगा हर बार मे उसके जवाब के नजदीक पहुँचता लेकिन बीच मे ही कुछ हो जाता जिससे मे मुड़कर उसी जगह आ जाता जहाँ अभी मै मौजूद था
ऐसे ही सोचते हुए रात कब गुजर गयी और सुबह कब शुरू हो गयी मुझे भी पता नही चला अभी ब्रम्ह मुहूर्त शुरू था इसीलिए आश्रम मे कोई उठा नही था
(ब्रम्ह मुहूर्त :- चंद्र ढलने के बाद और सूर्य उगने से पहले का समय सुबह 3 से 5 के बीच का समयकाल)
इस ब्रम्ह मुहूर्त के मनमोहक दृश्य की सुंदरता मे गुम होकर मे इस वक़्त आश्रम के पीछे वाली नदी के पास पहुँच गया था स्नान के लिए जब मे वहाँ पहुँचा तो
उस जगह की शांतता और वहाँ के वातावरण में फैली हुई शीतलता मे मेरे मन मे भी एक अजीब सी सुकून और शांति की भावना आ गयी थी बिल्कुल वैसी ही की तपती गर्मी मे लगातार 4-5 घंटे घूमकर आने के बाद ac की ठंडी हवाँ मै बैठने को मिले
वैसा ही हाल अभी मेरा था ऐसे वातावरण मे स्नान करने का लुफ्त उठाने के बाद जब मेरा दिल और दिमाग दोनों मे ही असीम सुख और शांतता छा गयी तो मे भी उस सुख और शांती को और अच्छे से महसूस करने के लिए मे ध्यान मे बैठ गया
और ध्यान मे बैठने के बाद मे शांत दिमाग से मे उस पहेली के बारे मे सोचने लगा और ऐसा करते ही मेरे दिमाग मे मेरे जन्म के बाद होने वाली सारी चीजे किसी चलचित्र के तरह दिखने लगी
जो देखके मुझे मेरी पहली का जवाब भी मिल गया जब बचपन मे मैं गुरु राघवेंद्र को मिला था तो उन्होंने मेरे अस्तित्व का पता लगाने हेतु मेरे उपर कालास्त्र की शक्तियाँ इस्तेमाल की थी
और जब उन्होंने ऐसा किया था तभी मेरे शरीर मे उनके अस्त्र की ऊर्जा महसूस हुई थी जो सोचते ही मेरा ध्यान टूट गया और जब मेने अपनी आँखे खोली तो पाया कि अभी धीरे धीरे सूरज उगने लग गया था
जो देखके मे तुरंत खड़ा हो गया और चारों तरफ कोई न कोई सबूत ढूँढने लगा लेकिन मुझे वहाँ कुछ नही मिला जो देखकर मे निराश हो गया था और अभी मे आश्रम मे वापिस लौट रहा था की तभी मेरी नज़र वहाँ पर बहती हुई नदी पर पड़ी
जिसके अंदर मुझे कुछ चमकती ही चीज दिखाई देने लगी लेकिन वो चीज नदी में गहराई मे थी जिसे देखकर मेने सीधा नदी मे छलांग लगा दी लेकिन मे जितना उस चमकती चीज के पास पहुँचता
वो उतनी ही नदी मे और गहराई मे चली जाती कुछ समय ऐसे ही नाकाम कोशिश करने के बाद मेरे दिमाग में एक और तरीका आ गया उस चीज तक पहुँचने का और उसके लिए मे तुरंत नदी से बाहर निकल आया
और नदी के किनारे पर आके खड़ा हो गया और फिर मेने अपने जल अस्त्र की मदद से उस नदी के सारे पानी को गायब कर दिया जिससे उस जगह पर अब मुझे वो चीज साफ साफ दिखाई दे रही थी
और वो चीज कुछ और नही बल्कि एक लोहे का बक्शा था जो पानी मे रहने के बाद भी बिल्कुल सही सलामत था उसपर जरा सी भी जंग नही चढ़ी थी
और जब में उस बक्शे को खोलकर देखा तो उसमे एक संदेशा पत्र था जिसको में पढ़ा तो पता चला की उसे गुरु जल ने ही लिखा था
संदेश :- शब्बाश भद्रा हमे पता था की तुम इस संदेश तक पहुँच जाओगे अब तुम्हे इस संदेश पत्र को संभालकर रखना है और अब तुम्हे उस महास्त्र को पाने के लिए और 7 पड़ावों को पार करना होगा हर पड़ाव तुम्हे तुम्हारे मंजिल के करीब लेकर जायेगा और जब तुम उन सातों पड़ावों को पर कर लोगे तो तुम्हे मिलेगा अजेय अस्त्र जिससे तुम उन सातों महासुरों को मार पाओगे दूसरे पडाव तक पहुँचने के लिए तुम्हारी सहायता ये संदेश ही करेगा
मेरे इतना पढ़ते ही वो पत्र और बक्शा दोनों जल के राख हो गए और उनमे लगी आग से वहाँ पर मुझे कुछ चित्र दिखने लगे वो चित्र दिखने मे बड़े खतरनाक लग रहे थे
क्योंकि जिस भी इलाके के ये चित्र थे उस पूरे इलाके मे ज्वालामुखी भरे हुए थे कुछ विशाल ज्वालामुखी थे तो कुछ छोटे ज्वालामुखी थे और जिन जगहों पर ज्वालामुखी नही थे वहाँ पर नुकीले और प्राणघाती ज्वाला काँच(obsidian) थे
जिनपर गलती से भी पैर पड़ जाता तो उसकी तपिश उसी वक़्त जला के राख कर देती बस एक बात अच्छी दिख रही थी और वो ये की वहाँ पर सारे ज्वालामुखी सुप्त अवस्था मे थे
लेकिन फिर भी उनके मुख से निकालने वाली वो भाँप इतनी गरम महसूस हो रही थी की वो आँखों को साफ दिख रही थी
जिसके बाद वो चित्र गायब हो गया और मेने भी उस नदी का फिर पहले की तरह भर दिया जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था
तो वही रात मे महागुरु के कुटिया मे इस वक्त मेरे प्रिया और शांति को छोड़कर सब मौजूद थे सारे गुरु शिबू और मेरे माता पिता भी
गुरु वानर :- तो सम्राट आपके कहे मुताबिक आपने भद्रा को सुरक्षित रखने के लिए हमारे आश्रम मै भेजा लेकिन अभी भी मे समझ नही पा रहा हूँ की आपने उस वक्त आश्रम पर लगा हुआ कवच को कैसे निष्क्रिय किया
पिता जी :- सर्वप्रथम आप हमे अपना मित्र समझिये सम्राट हम तब थे जब हम हमारे सिंहासन पर विराजमान थे लेकिन अब हम केवल त्रिलोकेश्वर है और रही बात कवच की तो वो हमने निष्क्रिय नही किया था
पिताजी की बात सुनकर सब दंग रह गए थे क्योंकि वो पिछले 20 सालों से इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हे मिल नही था और मेरे अस्तित्व की असलियत जानने के बाद उन्हे लगा था की ये सालों पुरानी अनसुलझी पहेली का जवाब उन्हे आज मिल जायेगा लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि बात जहाँ थी वही आके रुक गयी थी अभी कोई कुछ और बोलता की तभी महागुरु बोलने लगे
महागुरु :- कोई अपने सिंहासन या राजपाठ से सम्राट नही बनता बल्कि उनके कर्म उनके प्रति प्रजा का विश्वास और आदर उन्हे खुद ब खुद सम्राट की उपाधि दे देती हैं और रही उस कवच की बात तो आप सब इस बात को भूल रहे हैं कि भद्रा के शरीर मे बाल्यकाल से ही सप्त ऊर्जा समाई हुई है और जो कवच मेने बनाया है वो किसी भी अस्त्र धारक या कोई ऐसा जिसके अंदर सप्तस्त्रों का अंश भी हो उसे रोक नही सकता हैं
गुरु जल :- ये सब तो ठीक है लेकिन अब आगे क्या मतलब अब हम क्या करेंगे हमारे पास अब सप्त अस्त्र नही है और आने वाले महासंग्राम मे हम मुकाबला कैसे करेंगे कैसे महासुरों और शुक्राचार्य के सेना का सामना करेंगे
गुरु सिँह :- अपने बल हिम्मत और जज्बे से
गुरु वानर:- अपने ज्ञान से
शिबू :- सबसे बढ़कर एकता से हम उनका सामना करेंगे और उन्हे पछाड़ देंगे
महागुरु :- अब आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा क्यों दिलावर
ऐसे ही कुछ देर बाते करने के बाद सभी अपने कक्ष मे जाकर सो जाते है उन्हे पता नही था की सुबह उन्हे एक साथ कितने सारे झटके मिलने वाले है
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आज के लिए इतना ही
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