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Bohot hi umda update bhai, bhadra ka shareer chamakna, uska roop badalna ye sab kya or kyu hua ye samjh me aaya, lekin saath astra apne guruo ko dena ye kaise or kyu hua ye dekhne wali baar hai? Aage kya hota haiअध्याय पैंसठ
अभी सुबह हो गयी थी और आश्रम में सभी लोग उठ चुके थे और जब प्रिया की नींद खुली तो उसने देखा की भद्रा वहाँ पर नही है उसे लगा की वो बाहर बाकी गुरुओं के साथ मिलकर आगे की योजना बना रहा होगा
इसीलिए उसने इस बात पर ध्यान न देते हुए उसने शांति को भी जगाया जिसके बाद दोनों ही बाहर आके भद्रा को ढूँढने लगी लेकिन उन्हे वो कही नही मिला
और ऐसे ही भद्रा को ढूँढते हुए वो दोनों महागुरु के कुटिया के पास पहुँच गये जहाँ पर महागुरु उन्हे दिखे तो उन्होंने उनसे भद्रा के बारे मे पूछा तो उन्हे भी इस बारे मे कोई जानकारी नही थे
जिससे अब उन दोनों के मन में भद्रा के लिए चिंता होने लगी थी जिसके वजह से वो अब भद्रा को ढूँढने के लिए पुरा आश्रम छान लिया लेकिन उन्हे भद्रा कही नही मिला उन्होंने आश्रम के पीछे वाली नदी के पास जाकर देखा तो वहाँ भी उन्हे कुछ नही मिला
हुआ यू की नदी मे से वो संदेश मिलने के बाद भद्रा उन चित्र में दिखाई जगह को ढूँढने के लिए ध्यान मे बैठा था और कोई उसके इस कार्य मे बाधा न डाल पाए
इसीलिए उसने आश्रम के पास बने हुए जंगल मे जाकर ध्यान लगाने का फैसला किया था तो वही जब प्रिया और शांति को भद्रा कही नही दिखा तो उन्होंने ये बात आश्रम में सबको बता दी
जिससे अब सारे गुरु शिबू और भद्रा के माँ बाबा सभी भद्रा को ढूँढने के लिए लग गए लेकिन उनको भद्रा कही नही मिला और जब सभी ढूंढ रहे थे की तभी सबको को महा शक्तिशाली और भयानक ऊर्जा शक्ति का आभास हुआ
जो महसूस करते ही सभी सतर्क हो गए थे सबको पहले लगा की ये भद्रा के ऊर्जा शक्ति का एहसास है लेकिन जब उन्होंने भद्रा की युद्ध मैदान में सातों अस्त्रों की शक्तियों को पाने के बाद जो ऊर्जा शक्ति उन्हे महसूस हुआ था
उसके मुकाबले ये ऊर्जा शक्ति बहुत ज्यादा शक्तिशाली और भयानक लग रही थी जिसके बाद वो सभी भद्रा को ढूँढने का छोड़कर उस उर्जशक्ति को ढूँढने लगे जिससे अब वहाँ पर सभी सतर्क होने लगे थे और जब उन्होंने इस ऊर्जा शक्ति का पीछा किया
तो वो उसी जगह पहुँच गए जहाँ पर भद्रा ध्यान लगा रहा था और जब सबने भद्रा को देखा तो सब दंग रह गए क्योंकि इस वक्त भद्रा के शरीर किसी हीरे की तरह चमक रहा था
और उसके शरीर के कपड़े पूरी तरीके से काले थे उसकी कमर पर दो खंजर थे तो दूसरी तरफ दो तलवारे लटक रही थी उसके पीठ पर एक गोल ढाल थी तो उसके सर पर दो सिंग उगे हुए थे
जो की उसके कपड़ो के तरह काले थे तो वही उसके आँखों से खून आँसुओं की तरह बह रहे थे जब सबने भद्रा का ये रूप देखा तो सब हैरान और परेशान हो गए थे तो वही शिबू और भद्रा के माता पिता के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी थी जो देखकर महागुरु ने उनसे पूछा
महागुरु :- सम्राट आप तीनो मुस्कुरा रहे है लेकिन क्यों भद्रा का ये भयानक रूप क्या आप को पता है ये क्यों है इतना अजीब रूप भद्रा ठीक तो है ना
शिबू :- ठीक ये कैसी बात कर रहे हो महागुरु भद्रा को कुछ हुआ ही किधर है ये जो भद्रा का रूप है यही उसका असली अवतार है ब्रम्ह राक्षस का अवतार कुमार का अवतार
शिबू के ये बोलने से सभी को एक बड़ा झटका लगा था मेरा असली रूप ऐसा होगा ये किसीने सोचा भी नही था अभी कोई कुछ और बोलता की तभी मैने अपनी आँखे खोल दी
और जब मैने मेरी आँखे खोली तो सबको और एक झटका लगा क्योंकि मेरी आँखे पूरी तरह से लाल हो गयी थी जो देखकर सब एक बार के लिए डर गए थे
और जब मैने अपने सामने सबको ऐसे डरे हुए देखा तो मुझे खुदकी हालत का अंदाजा हो गया जिसके बाद मैने फिर से खुदको आम इंसानो जैसे रूप दे दिया
मै :- मुझे आप सब से बहुत जरूरी बात करनी है मुझे आश्रम के सभा गृह मे मिलिए
इतना बोलके मे वहाँ से चला गया अपने चेहरे पर लगा खून धोने तो वही सप्त गुरुओं से शिक्षा ग्रहण करने बाद और उनकी ली गई परीक्षा के बाद से मेरी शक्ति ऊर्जा पहले से कई गुना अधिक बढ़ गयी थी
जिसका असर मेरे आवाज पर भी हुआ था मेरी आवाज पहले से भी ज्यादा गहरी और गंभीर हो गयी थी जिसे सुनकर वहाँ खड़े सब के बदन पर रुएँ खड़ी हो गयी थी
जिसके बाद मे जब वहाँ से थोड़ा दूर पहुंचा तो मेने अपने शक्ति ऊर्जा को फिर से काबू कर लिया जिससे मेरे चारो तरफ एक छलावे का कवच निर्माण कर दिया जिससे मेरी असली ऊर्जा कोई महसूस न कर पाए जिसके बाद सभी सभाग्रुह मे जमा हो गए थे
मै :- आप सभी जानते है कि हमारे उपर युद्ध की तलवार लटक रही है लेकिन वो का गिरेगी ये हमे अभी तक पता नही है लेकिन अब हमारे पास केवल 14 दिनों का समय है इन 14 दिनों के पूर्ण होते ही ये संसार एक महा विनाशकारी युद्ध का साक्षी बनेगा जो युद्ध किसी के हार से नही बल्कि किसी एक पक्ष के संपूर्ण विनाश से होगा
गुरु वानर :- भद्रा तुम्हे कैसे पता की हमारे पास केवल 14 दिनों का समय है
मै :- मेरे अस्त्रों ने बताया (झूठ मे चाहता तो सबको सप्त ऋषियों के बारे मे बता सकता था लेकिन इसके लिए उन्होंने ही मना किया था)
मै :- तो सर्वप्रथम मे सबको उनके जिम्मेदारियों से अवगत करा देता हूँ सबसे पहले दैत्य सम्राट शिबू गुरु अग्नि और गुरु वानर आप तीनो सभी योद्धाओं और सैनिकों को युद्ध प्रशिक्षण दोगे
तो गुरु सिंह बाबा (त्रिलोकेश्वर) और गुरु नंदी आप तीनो सभी उन जगहों पर ध्यान दोगे जहाँ से असुर प्रवेश कर सकते है और उन जगहों पर अलग अलग जाल बिछाओगे ये काम आपको इस तरह करना है कि किसी को पता न चले
जिसके बाद महागुरु, गुरु वानर आप दोनों सभी सेनापतियों के लिए मायावी अस्त्रों का निर्माण करेंगे और महागुरु आप सभी गुरुओं को भी अपने तरह दिव्यास्त्रों का ज्ञान प्रदान कीजिये
तो वही शांति प्रिया और माँ (दमयंती) आप सभी योद्धाओं और सैनिकों के लिए दवाइयाँ और जड़ीबूटियों का इंतेज़ाम करेंगे और साथ मे ही आप तीनों आश्रम में रहकर उसकी सुरक्षा और यहाँ पर मौजूद सभी योद्धाओं की सुरक्षा और सेहत का ध्यान रखेंगे
साथ मे शांति तुम पशु पक्षीयों को आश्रम के चारों तरफ किसी गुप्तचर की तरह बिछा दो जिससे यहाँ पर शत्रु पक्ष कभी भी आकसमात आक्रमण न कर पाए
ये सब बताते हुए में फिर से एक बार मेरी आवाज को भारी और गंभीर कर दिया था जिससे कोई भी इन बातों को भूल कर भी दुलक्ष ना कर पाए
मै :- अब सभी सातों गुरु मेरे सामने आये
मेरे आवाज की गंभीरता की वजह से कोई भी सवाल पूछ ही नही पा रहा था और सब मे जैसा कह रहा था वैसे ही कर रहे थे मेरे कहे मुताबिक सभी जन वैसा ही करते हुए मेरे सामने आकर खड़े हो गए
जिसके बाद मेने अपने हाथों को जोड़कर आँखों को बंद करके कुछ मंत्र जपने लगा जिससे मेरे शरीर से सातों अस्त्र निकालकर अपने पुराने धारक के शरीर मे समा गए
जो देखकर वहाँ सभी हैरान हो गए उन्हे समझ नही आ रहा था की आखिर ये मेने क्यों किया और सबसे बड़ा सवाल कैसे किया क्योंकि अस्त्र अपने मालिक को छोड़के दूसरे के पास तीन ही परिस्थितियों मे जाते है
जो तीनो परिस्थितिया अभी के हालत मेल नही बना रहे थे सबसे पहला धारक मर जाए ये सरासर असम्भव था
दूसरा अगर अस्त्र को जबरदस्ती छिना जाए तब जो भी अस्त्रों को बचाने के लिए अपने प्राण दांव पर लगायेगा और खुद को साबित करेगा
या तीसरा धारक खुद के स्वेच्छा से उनका त्याग कर दे लेकिन ये भी तभी होगा जब अस्त्र धारक पूरी तरह से उनका त्याग करे
लेकिन ये भी नामुमकिन था क्योंकि अगर ऐसे होता तो मुझे इतनी पीड़ा और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता की उसमे मेरे प्राण भी चले जाते लेकिन ऐसा भी कुछ नही हुआ था
ये देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे मैने अपनी किसी छोटी मोटी शक्ति उन्हे दी हो अपने अस्त्र वापिस पाकर सारे अस्त्र धारक खुश थे तो वही सब मेरे इस आकासमात फैसले से हैरान थे
किसी को समझ नही आ रहा था की मैने ऐसा किस कारण से किया लेकिन मेरे ऊर्जा शक्ति को महसूस करके मेरा असली रूप देखकर और मेरी आवाज सुनकर किसी मे हिम्मत नहीं थी कि मुझसे सीधा आकर ये सवाल पूछे की तभी मैने अपना अगला फैसला सुनाया जिससे सब और भी हैरान रह गये
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आज के लिए इतना ही
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Lovely update, superb writingअध्याय छियासठ
इस वक्त सभी अस्त्र धारक और बाकी सभी मेरे ऐसे आकासमात अस्त्रों का त्याग करने से परेशान थे की तभी मैने अपने अगले फैसले के बारे में बता दिया जिससे वो सभी हैरान हो गए
मै :- आप सबको मे अपने अगले फैसले के बारे मे बताना चाहता हूँ कि मे आज से अगले 10 दिनों तक एक अज्ञात प्रवास पर जा रहा हूँ जहाँ मे अकेला जाऊंगा तब तक आप सभी मेरे कह मुकाबिक यहाँ पर बदलाव कर दीजियेगा क्योंकि मेरे वापस आते ही यहाँ पर एक ऐसा युद्ध रूपी हवन आरंभ होगा जिसमे हर किसी को अपने प्राणों को आहुति के रूप मृत्यु की अग्नि मे डालने होंगे
मेरे अचानक आश्रम छोड़कर 10 दिनों के लिए प्रवास पर जाने का सोचकर सभी और भी ज्यादा हैरान हो गए थे वो भी ऐसे प्रवास पर जिसकी न कोई मंजिल थी और न ही कोई रास्ता मालूम था
एक ऐसा अज्ञात प्रवास वो भी ऐसे समय पर जब युद्ध हमारे सर पर पहुँच गया है सभी लोग मेरे फैसले से हैरान थे लेकिन कोई कुछ बोल नही पा रहा था आखिर कार प्रिया ने थोड़ी हिम्मत रखते हुए वहाँ फैले सन्नाटे को खतम करने का फैसला किया
प्रिया :- भद्रा मे ये नही पूछूँगी की तुम क्यों जा रहे हो और न ही ये पूछूँगी की तुम कहाँ जा रहे हो मुझे यकीन है कि तुम जो भी करोगे उसमे सबका भला होगा भी मे ये कहना चाहती हूँki तुम जहाँ भी जा रहे हो वहाँ मे भी तुम्हारे साथ आऊँगी
मै :- नही प्रिया इस प्रवास पर मे अकेला ही जाऊंगा
प्रिया :- लेकिन
मै :- प्रिया तुमने मुझे वचन दिया था न की मेरे जीवन के हर अभियान में मेरा साथ दोगी
प्रिया :- हाँ याद है और उसी के लिए तो मे तुम्हारे साथ आना चाहती हूँ
मै :- लेकिन मुझे तुम्हारी मदद अज्ञात प्रवास मे नही बल्कि यहाँ आश्रम में जरूरत है
प्रिया :- ठीक है तुम चिंता मत करो मे सब संभाल लुंगी
अभी प्रिया को मैने शांत किया था कि तभी महागुरु मेरे सामने आ गए
महागुरु :- भद्रा अगर तुम्हारा ये प्रवास इतना जरूरी है तो तुमने अपनी सर्व शक्तिशाली ऊर्जा सप्तस्त्रों की ताकत का त्याग कर दिया ऐसा क्यों
मै :- क्योंकि सप्तस्त्रों की सात्विक ऊर्जा के साथ मे कुमार की तमसिक ऊर्जा का इस्तेमाल नही कर पा रहा हूँ और इस युद्ध मे मुझे सप्तस्त्रों के साथ कुमार की शक्तियों की भी जरूरत है इसीलिए में ये कदम उठाया (झूठ)
मेरे इस कारण के बाद सबके चेहरे से कुछ उलझन के भाव कम हो गए थे क्योंकि अब तक सबको या लगता हैं कि सात्विक और तमसिक शक्तियां कभी भी एक साथ नही हो सकते
और सबके इसी गलतफहमी का मैने फायदा उठाया मे उन्हे सच बता सकता था लेकिन ऐसा करने के लिए सप्तऋषियों ने मना किया था वो नही चाहते थे की मेरी असली ताकत और असली ऊर्जा का पता किसी को भी अंतिम युद्ध से पहले चले
मेरे सप्तस्त्रों के त्याग करने के पीछे दो प्रमुख कारण थे सबसे पहला तो ये की मुझे पता है की भले ही महासुरों के पुनर्जन्म लेने मे अभी 14 दिनों की अवधी अभी शेश है इस कालावधि मे भी असुर धरती पर आक्रमण कर सकते है
जिससे लढने के लिए इन सबको अस्त्रों की जरूरत होगी क्योंकि आम लोगों से भरी जगह पर कोई भी दिव्यस्त्र इस्तेमाल नही कर सकते और नही आम अस्त्रों से असुरों को कुछ फरक नही पड़ता
ऐसे हालत में ये सप्तस्त्रों की शक्ति ही हमारी सबसे बड़ी उम्मीद थी तो वही दूसरा कारण था कि अभी मेरे शरीर मे इतनी सप्तस्त्रों की ऊर्जा थी की मे बिना अस्त्रों के भी उनके शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता था
फिर कुछ देर और सबसे बात करने के बाद मे चल पड़ा अपने अज्ञात प्रवास के तरफ जहाँ मुझे उन 7 पड़ावों को पार करना था जिनके बारे मे मुझे कुछ भी ज्ञान नही था मे कुछ नही जानता था
बस इतना जानता था कि वो पड़ाव मुझे और मेरे काबिलियत को उसकी चरम सिमा तक परखेंगे जो मेरे लिए बिल्कुल भी आसान नही होने वाला था मेरे पास इस प्रवास को आगे बढ़ाने के लिये केवल 1 ही सुराग था
और वो थे वो चित्र जिनके बारे मे भी मुझे ज्यादा कुछ पता नही था बस इतना मालूम था कि वो जगह पृथ्वी पर ही है और जितना मैने भूगोल में पढ़ा है तो जरूर वो जगह इंडोनेशिया मे ही होगी
क्योंकि भूगोल के अनुसार इंडोनेशिया में दुनिया में सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी हैं और यह दुनिया के उन स्थानों में से एक है जो प्रशांत रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) के भीतर स्थित हैं
यह 25,000 मील (40,000 किमी) घोड़े की नाल के आकार का क्षेत्र है जो प्रशांत महासागर की सीमा पर है इसीलिए इतना तो तय था की जो जगह मैने देखी ये वही जगह है
लेकिन अब सवाल ये था की वहाँ मौजूद इतने सारे ज्वालामुखी मेसे अपने काम का कोनसा है जब मुझे इस सवाल का जवाब नही मिला तो मैने उस समय पर छोड़ दिया और चल पड़ा इंडोनेशिया के प्रशांत रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) के तरफ
वहाँ पहुँचकर मैंने देखा कि जितना मैने चित्र में देखा था उसके मुकाबले यहाँ कुछ ज्यादा ही आग भड़क रही है इन ज्वालामुखियों के अंदर पहले सिर्फ धुआ निकल रहा था लेकिन अब तो सीधे आग की लपेटे निकल रही है वो भी भयानक वाली
जो पूरे के पूरे इंसान की हड्डी के साथ पिघला दे तो वही जहां मैं खड़ा था बहा कि जमीन तक गर्म होने लगी थी जबकी में मुख्य ज्वालामुखी से 5 किमी दूर खड़ा था जमीन का तापमान बहुत बढ़ चुका था
जमीन का तापमान कितना था इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है जब मे वहाँ के मुख्य ज्वालामुखी तक पहुंचा तो वहाँ की गर्मी ने ही संकेत दे दिया की यही मेरी मंजिल है
वहाँ गर्मी ऐसी थी की मानो मे ज्वालामुखी के पास नही बल्कि उसके भीतर खड़ा हूँ तो वही जब मैने उस ज्वालामुखी के चोटी पर जाके उसकी गहराई नापने की कोशिश की तो मुझे उसके अंदर केवल अंधकार दिख रहा था
मै (मन मे) :- ज्वालामुखी गहरा कितना है ये बताना तो घास मे सुई ढूँढने से भी ज्यादा मुश्किल है
लेकिन ये मुझे करना तो था ही इसलिए मैं उड़ता हुआ उसके अंदर कुछ दूरी तक पहुंच गया और जब मे वहाँ से नीचे देखने लगा तो मुझे वहाँ आग के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था
इसलिए मैंने अपने हाथों को जॊडा और अपनी अग्नि शक्ति को जागृत किया और उसके अगले ही पल में ज्वालामुखी के मुँह में तेजी से घुस गया और जब मुझे अपने पैरों तले जमीन का आभास हुआ
तो मैने तुरंत अपनी आँखे खोल दी और जैसे ही मैंने अपनी आंखों को खोला तो मैं सामने का नजारा देखकर एकदम हैरान रह
गया
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आज के लिए इतना ही
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Nice and superb update....अध्याय छियासठ
इस वक्त सभी अस्त्र धारक और बाकी सभी मेरे ऐसे आकासमात अस्त्रों का त्याग करने से परेशान थे की तभी मैने अपने अगले फैसले के बारे में बता दिया जिससे वो सभी हैरान हो गए
मै :- आप सबको मे अपने अगले फैसले के बारे मे बताना चाहता हूँ कि मे आज से अगले 10 दिनों तक एक अज्ञात प्रवास पर जा रहा हूँ जहाँ मे अकेला जाऊंगा तब तक आप सभी मेरे कह मुकाबिक यहाँ पर बदलाव कर दीजियेगा क्योंकि मेरे वापस आते ही यहाँ पर एक ऐसा युद्ध रूपी हवन आरंभ होगा जिसमे हर किसी को अपने प्राणों को आहुति के रूप मृत्यु की अग्नि मे डालने होंगे
मेरे अचानक आश्रम छोड़कर 10 दिनों के लिए प्रवास पर जाने का सोचकर सभी और भी ज्यादा हैरान हो गए थे वो भी ऐसे प्रवास पर जिसकी न कोई मंजिल थी और न ही कोई रास्ता मालूम था
एक ऐसा अज्ञात प्रवास वो भी ऐसे समय पर जब युद्ध हमारे सर पर पहुँच गया है सभी लोग मेरे फैसले से हैरान थे लेकिन कोई कुछ बोल नही पा रहा था आखिर कार प्रिया ने थोड़ी हिम्मत रखते हुए वहाँ फैले सन्नाटे को खतम करने का फैसला किया
प्रिया :- भद्रा मे ये नही पूछूँगी की तुम क्यों जा रहे हो और न ही ये पूछूँगी की तुम कहाँ जा रहे हो मुझे यकीन है कि तुम जो भी करोगे उसमे सबका भला होगा भी मे ये कहना चाहती हूँki तुम जहाँ भी जा रहे हो वहाँ मे भी तुम्हारे साथ आऊँगी
मै :- नही प्रिया इस प्रवास पर मे अकेला ही जाऊंगा
प्रिया :- लेकिन
मै :- प्रिया तुमने मुझे वचन दिया था न की मेरे जीवन के हर अभियान में मेरा साथ दोगी
प्रिया :- हाँ याद है और उसी के लिए तो मे तुम्हारे साथ आना चाहती हूँ
मै :- लेकिन मुझे तुम्हारी मदद अज्ञात प्रवास मे नही बल्कि यहाँ आश्रम में जरूरत है
प्रिया :- ठीक है तुम चिंता मत करो मे सब संभाल लुंगी
अभी प्रिया को मैने शांत किया था कि तभी महागुरु मेरे सामने आ गए
महागुरु :- भद्रा अगर तुम्हारा ये प्रवास इतना जरूरी है तो तुमने अपनी सर्व शक्तिशाली ऊर्जा सप्तस्त्रों की ताकत का त्याग कर दिया ऐसा क्यों
मै :- क्योंकि सप्तस्त्रों की सात्विक ऊर्जा के साथ मे कुमार की तमसिक ऊर्जा का इस्तेमाल नही कर पा रहा हूँ और इस युद्ध मे मुझे सप्तस्त्रों के साथ कुमार की शक्तियों की भी जरूरत है इसीलिए में ये कदम उठाया (झूठ)
मेरे इस कारण के बाद सबके चेहरे से कुछ उलझन के भाव कम हो गए थे क्योंकि अब तक सबको या लगता हैं कि सात्विक और तमसिक शक्तियां कभी भी एक साथ नही हो सकते
और सबके इसी गलतफहमी का मैने फायदा उठाया मे उन्हे सच बता सकता था लेकिन ऐसा करने के लिए सप्तऋषियों ने मना किया था वो नही चाहते थे की मेरी असली ताकत और असली ऊर्जा का पता किसी को भी अंतिम युद्ध से पहले चले
मेरे सप्तस्त्रों के त्याग करने के पीछे दो प्रमुख कारण थे सबसे पहला तो ये की मुझे पता है की भले ही महासुरों के पुनर्जन्म लेने मे अभी 14 दिनों की अवधी अभी शेश है इस कालावधि मे भी असुर धरती पर आक्रमण कर सकते है
जिससे लढने के लिए इन सबको अस्त्रों की जरूरत होगी क्योंकि आम लोगों से भरी जगह पर कोई भी दिव्यस्त्र इस्तेमाल नही कर सकते और नही आम अस्त्रों से असुरों को कुछ फरक नही पड़ता
ऐसे हालत में ये सप्तस्त्रों की शक्ति ही हमारी सबसे बड़ी उम्मीद थी तो वही दूसरा कारण था कि अभी मेरे शरीर मे इतनी सप्तस्त्रों की ऊर्जा थी की मे बिना अस्त्रों के भी उनके शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता था
फिर कुछ देर और सबसे बात करने के बाद मे चल पड़ा अपने अज्ञात प्रवास के तरफ जहाँ मुझे उन 7 पड़ावों को पार करना था जिनके बारे मे मुझे कुछ भी ज्ञान नही था मे कुछ नही जानता था
बस इतना जानता था कि वो पड़ाव मुझे और मेरे काबिलियत को उसकी चरम सिमा तक परखेंगे जो मेरे लिए बिल्कुल भी आसान नही होने वाला था मेरे पास इस प्रवास को आगे बढ़ाने के लिये केवल 1 ही सुराग था
और वो थे वो चित्र जिनके बारे मे भी मुझे ज्यादा कुछ पता नही था बस इतना मालूम था कि वो जगह पृथ्वी पर ही है और जितना मैने भूगोल में पढ़ा है तो जरूर वो जगह इंडोनेशिया मे ही होगी
क्योंकि भूगोल के अनुसार इंडोनेशिया में दुनिया में सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी हैं और यह दुनिया के उन स्थानों में से एक है जो प्रशांत रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) के भीतर स्थित हैं
यह 25,000 मील (40,000 किमी) घोड़े की नाल के आकार का क्षेत्र है जो प्रशांत महासागर की सीमा पर है इसीलिए इतना तो तय था की जो जगह मैने देखी ये वही जगह है
लेकिन अब सवाल ये था की वहाँ मौजूद इतने सारे ज्वालामुखी मेसे अपने काम का कोनसा है जब मुझे इस सवाल का जवाब नही मिला तो मैने उस समय पर छोड़ दिया और चल पड़ा इंडोनेशिया के प्रशांत रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) के तरफ
वहाँ पहुँचकर मैंने देखा कि जितना मैने चित्र में देखा था उसके मुकाबले यहाँ कुछ ज्यादा ही आग भड़क रही है इन ज्वालामुखियों के अंदर पहले सिर्फ धुआ निकल रहा था लेकिन अब तो सीधे आग की लपेटे निकल रही है वो भी भयानक वाली
जो पूरे के पूरे इंसान की हड्डी के साथ पिघला दे तो वही जहां मैं खड़ा था बहा कि जमीन तक गर्म होने लगी थी जबकी में मुख्य ज्वालामुखी से 5 किमी दूर खड़ा था जमीन का तापमान बहुत बढ़ चुका था
जमीन का तापमान कितना था इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है जब मे वहाँ के मुख्य ज्वालामुखी तक पहुंचा तो वहाँ की गर्मी ने ही संकेत दे दिया की यही मेरी मंजिल है
वहाँ गर्मी ऐसी थी की मानो मे ज्वालामुखी के पास नही बल्कि उसके भीतर खड़ा हूँ तो वही जब मैने उस ज्वालामुखी के चोटी पर जाके उसकी गहराई नापने की कोशिश की तो मुझे उसके अंदर केवल अंधकार दिख रहा था
मै (मन मे) :- ज्वालामुखी गहरा कितना है ये बताना तो घास मे सुई ढूँढने से भी ज्यादा मुश्किल है
लेकिन ये मुझे करना तो था ही इसलिए मैं उड़ता हुआ उसके अंदर कुछ दूरी तक पहुंच गया और जब मे वहाँ से नीचे देखने लगा तो मुझे वहाँ आग के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था
इसलिए मैंने अपने हाथों को जॊडा और अपनी अग्नि शक्ति को जागृत किया और उसके अगले ही पल में ज्वालामुखी के मुँह में तेजी से घुस गया और जब मुझे अपने पैरों तले जमीन का आभास हुआ
तो मैने तुरंत अपनी आँखे खोल दी और जैसे ही मैंने अपनी आंखों को खोला तो मैं सामने का नजारा देखकर एकदम हैरान रह
गया
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय छियासठ
इस वक्त सभी अस्त्र धारक और बाकी सभी मेरे ऐसे आकासमात अस्त्रों का त्याग करने से परेशान थे की तभी मैने अपने अगले फैसले के बारे में बता दिया जिससे वो सभी हैरान हो गए
मै :- आप सबको मे अपने अगले फैसले के बारे मे बताना चाहता हूँ कि मे आज से अगले 10 दिनों तक एक अज्ञात प्रवास पर जा रहा हूँ जहाँ मे अकेला जाऊंगा तब तक आप सभी मेरे कह मुकाबिक यहाँ पर बदलाव कर दीजियेगा क्योंकि मेरे वापस आते ही यहाँ पर एक ऐसा युद्ध रूपी हवन आरंभ होगा जिसमे हर किसी को अपने प्राणों को आहुति के रूप मृत्यु की अग्नि मे डालने होंगे
मेरे अचानक आश्रम छोड़कर 10 दिनों के लिए प्रवास पर जाने का सोचकर सभी और भी ज्यादा हैरान हो गए थे वो भी ऐसे प्रवास पर जिसकी न कोई मंजिल थी और न ही कोई रास्ता मालूम था
एक ऐसा अज्ञात प्रवास वो भी ऐसे समय पर जब युद्ध हमारे सर पर पहुँच गया है सभी लोग मेरे फैसले से हैरान थे लेकिन कोई कुछ बोल नही पा रहा था आखिर कार प्रिया ने थोड़ी हिम्मत रखते हुए वहाँ फैले सन्नाटे को खतम करने का फैसला किया
प्रिया :- भद्रा मे ये नही पूछूँगी की तुम क्यों जा रहे हो और न ही ये पूछूँगी की तुम कहाँ जा रहे हो मुझे यकीन है कि तुम जो भी करोगे उसमे सबका भला होगा भी मे ये कहना चाहती हूँki तुम जहाँ भी जा रहे हो वहाँ मे भी तुम्हारे साथ आऊँगी
मै :- नही प्रिया इस प्रवास पर मे अकेला ही जाऊंगा
प्रिया :- लेकिन
मै :- प्रिया तुमने मुझे वचन दिया था न की मेरे जीवन के हर अभियान में मेरा साथ दोगी
प्रिया :- हाँ याद है और उसी के लिए तो मे तुम्हारे साथ आना चाहती हूँ
मै :- लेकिन मुझे तुम्हारी मदद अज्ञात प्रवास मे नही बल्कि यहाँ आश्रम में जरूरत है
प्रिया :- ठीक है तुम चिंता मत करो मे सब संभाल लुंगी
अभी प्रिया को मैने शांत किया था कि तभी महागुरु मेरे सामने आ गए
महागुरु :- भद्रा अगर तुम्हारा ये प्रवास इतना जरूरी है तो तुमने अपनी सर्व शक्तिशाली ऊर्जा सप्तस्त्रों की ताकत का त्याग कर दिया ऐसा क्यों
मै :- क्योंकि सप्तस्त्रों की सात्विक ऊर्जा के साथ मे कुमार की तमसिक ऊर्जा का इस्तेमाल नही कर पा रहा हूँ और इस युद्ध मे मुझे सप्तस्त्रों के साथ कुमार की शक्तियों की भी जरूरत है इसीलिए में ये कदम उठाया (झूठ)
मेरे इस कारण के बाद सबके चेहरे से कुछ उलझन के भाव कम हो गए थे क्योंकि अब तक सबको या लगता हैं कि सात्विक और तमसिक शक्तियां कभी भी एक साथ नही हो सकते
और सबके इसी गलतफहमी का मैने फायदा उठाया मे उन्हे सच बता सकता था लेकिन ऐसा करने के लिए सप्तऋषियों ने मना किया था वो नही चाहते थे की मेरी असली ताकत और असली ऊर्जा का पता किसी को भी अंतिम युद्ध से पहले चले
मेरे सप्तस्त्रों के त्याग करने के पीछे दो प्रमुख कारण थे सबसे पहला तो ये की मुझे पता है की भले ही महासुरों के पुनर्जन्म लेने मे अभी 14 दिनों की अवधी अभी शेश है इस कालावधि मे भी असुर धरती पर आक्रमण कर सकते है
जिससे लढने के लिए इन सबको अस्त्रों की जरूरत होगी क्योंकि आम लोगों से भरी जगह पर कोई भी दिव्यस्त्र इस्तेमाल नही कर सकते और नही आम अस्त्रों से असुरों को कुछ फरक नही पड़ता
ऐसे हालत में ये सप्तस्त्रों की शक्ति ही हमारी सबसे बड़ी उम्मीद थी तो वही दूसरा कारण था कि अभी मेरे शरीर मे इतनी सप्तस्त्रों की ऊर्जा थी की मे बिना अस्त्रों के भी उनके शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता था
फिर कुछ देर और सबसे बात करने के बाद मे चल पड़ा अपने अज्ञात प्रवास के तरफ जहाँ मुझे उन 7 पड़ावों को पार करना था जिनके बारे मे मुझे कुछ भी ज्ञान नही था मे कुछ नही जानता था
बस इतना जानता था कि वो पड़ाव मुझे और मेरे काबिलियत को उसकी चरम सिमा तक परखेंगे जो मेरे लिए बिल्कुल भी आसान नही होने वाला था मेरे पास इस प्रवास को आगे बढ़ाने के लिये केवल 1 ही सुराग था
और वो थे वो चित्र जिनके बारे मे भी मुझे ज्यादा कुछ पता नही था बस इतना मालूम था कि वो जगह पृथ्वी पर ही है और जितना मैने भूगोल में पढ़ा है तो जरूर वो जगह इंडोनेशिया मे ही होगी
क्योंकि भूगोल के अनुसार इंडोनेशिया में दुनिया में सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी हैं और यह दुनिया के उन स्थानों में से एक है जो प्रशांत रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) के भीतर स्थित हैं
यह 25,000 मील (40,000 किमी) घोड़े की नाल के आकार का क्षेत्र है जो प्रशांत महासागर की सीमा पर है इसीलिए इतना तो तय था की जो जगह मैने देखी ये वही जगह है
लेकिन अब सवाल ये था की वहाँ मौजूद इतने सारे ज्वालामुखी मेसे अपने काम का कोनसा है जब मुझे इस सवाल का जवाब नही मिला तो मैने उस समय पर छोड़ दिया और चल पड़ा इंडोनेशिया के प्रशांत रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) के तरफ
वहाँ पहुँचकर मैंने देखा कि जितना मैने चित्र में देखा था उसके मुकाबले यहाँ कुछ ज्यादा ही आग भड़क रही है इन ज्वालामुखियों के अंदर पहले सिर्फ धुआ निकल रहा था लेकिन अब तो सीधे आग की लपेटे निकल रही है वो भी भयानक वाली
जो पूरे के पूरे इंसान की हड्डी के साथ पिघला दे तो वही जहां मैं खड़ा था बहा कि जमीन तक गर्म होने लगी थी जबकी में मुख्य ज्वालामुखी से 5 किमी दूर खड़ा था जमीन का तापमान बहुत बढ़ चुका था
जमीन का तापमान कितना था इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है जब मे वहाँ के मुख्य ज्वालामुखी तक पहुंचा तो वहाँ की गर्मी ने ही संकेत दे दिया की यही मेरी मंजिल है
वहाँ गर्मी ऐसी थी की मानो मे ज्वालामुखी के पास नही बल्कि उसके भीतर खड़ा हूँ तो वही जब मैने उस ज्वालामुखी के चोटी पर जाके उसकी गहराई नापने की कोशिश की तो मुझे उसके अंदर केवल अंधकार दिख रहा था
मै (मन मे) :- ज्वालामुखी गहरा कितना है ये बताना तो घास मे सुई ढूँढने से भी ज्यादा मुश्किल है
लेकिन ये मुझे करना तो था ही इसलिए मैं उड़ता हुआ उसके अंदर कुछ दूरी तक पहुंच गया और जब मे वहाँ से नीचे देखने लगा तो मुझे वहाँ आग के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था
इसलिए मैंने अपने हाथों को जॊडा और अपनी अग्नि शक्ति को जागृत किया और उसके अगले ही पल में ज्वालामुखी के मुँह में तेजी से घुस गया और जब मुझे अपने पैरों तले जमीन का आभास हुआ
तो मैने तुरंत अपनी आँखे खोल दी और जैसे ही मैंने अपनी आंखों को खोला तो मैं सामने का नजारा देखकर एकदम हैरान रह
गया
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आज के लिए इतना ही
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Nice update.....अध्याय छियासठ
इस वक्त सभी अस्त्र धारक और बाकी सभी मेरे ऐसे आकासमात अस्त्रों का त्याग करने से परेशान थे की तभी मैने अपने अगले फैसले के बारे में बता दिया जिससे वो सभी हैरान हो गए
मै :- आप सबको मे अपने अगले फैसले के बारे मे बताना चाहता हूँ कि मे आज से अगले 10 दिनों तक एक अज्ञात प्रवास पर जा रहा हूँ जहाँ मे अकेला जाऊंगा तब तक आप सभी मेरे कह मुकाबिक यहाँ पर बदलाव कर दीजियेगा क्योंकि मेरे वापस आते ही यहाँ पर एक ऐसा युद्ध रूपी हवन आरंभ होगा जिसमे हर किसी को अपने प्राणों को आहुति के रूप मृत्यु की अग्नि मे डालने होंगे
मेरे अचानक आश्रम छोड़कर 10 दिनों के लिए प्रवास पर जाने का सोचकर सभी और भी ज्यादा हैरान हो गए थे वो भी ऐसे प्रवास पर जिसकी न कोई मंजिल थी और न ही कोई रास्ता मालूम था
एक ऐसा अज्ञात प्रवास वो भी ऐसे समय पर जब युद्ध हमारे सर पर पहुँच गया है सभी लोग मेरे फैसले से हैरान थे लेकिन कोई कुछ बोल नही पा रहा था आखिर कार प्रिया ने थोड़ी हिम्मत रखते हुए वहाँ फैले सन्नाटे को खतम करने का फैसला किया
प्रिया :- भद्रा मे ये नही पूछूँगी की तुम क्यों जा रहे हो और न ही ये पूछूँगी की तुम कहाँ जा रहे हो मुझे यकीन है कि तुम जो भी करोगे उसमे सबका भला होगा भी मे ये कहना चाहती हूँki तुम जहाँ भी जा रहे हो वहाँ मे भी तुम्हारे साथ आऊँगी
मै :- नही प्रिया इस प्रवास पर मे अकेला ही जाऊंगा
प्रिया :- लेकिन
मै :- प्रिया तुमने मुझे वचन दिया था न की मेरे जीवन के हर अभियान में मेरा साथ दोगी
प्रिया :- हाँ याद है और उसी के लिए तो मे तुम्हारे साथ आना चाहती हूँ
मै :- लेकिन मुझे तुम्हारी मदद अज्ञात प्रवास मे नही बल्कि यहाँ आश्रम में जरूरत है
प्रिया :- ठीक है तुम चिंता मत करो मे सब संभाल लुंगी
अभी प्रिया को मैने शांत किया था कि तभी महागुरु मेरे सामने आ गए
महागुरु :- भद्रा अगर तुम्हारा ये प्रवास इतना जरूरी है तो तुमने अपनी सर्व शक्तिशाली ऊर्जा सप्तस्त्रों की ताकत का त्याग कर दिया ऐसा क्यों
मै :- क्योंकि सप्तस्त्रों की सात्विक ऊर्जा के साथ मे कुमार की तमसिक ऊर्जा का इस्तेमाल नही कर पा रहा हूँ और इस युद्ध मे मुझे सप्तस्त्रों के साथ कुमार की शक्तियों की भी जरूरत है इसीलिए में ये कदम उठाया (झूठ)
मेरे इस कारण के बाद सबके चेहरे से कुछ उलझन के भाव कम हो गए थे क्योंकि अब तक सबको या लगता हैं कि सात्विक और तमसिक शक्तियां कभी भी एक साथ नही हो सकते
और सबके इसी गलतफहमी का मैने फायदा उठाया मे उन्हे सच बता सकता था लेकिन ऐसा करने के लिए सप्तऋषियों ने मना किया था वो नही चाहते थे की मेरी असली ताकत और असली ऊर्जा का पता किसी को भी अंतिम युद्ध से पहले चले
मेरे सप्तस्त्रों के त्याग करने के पीछे दो प्रमुख कारण थे सबसे पहला तो ये की मुझे पता है की भले ही महासुरों के पुनर्जन्म लेने मे अभी 14 दिनों की अवधी अभी शेश है इस कालावधि मे भी असुर धरती पर आक्रमण कर सकते है
जिससे लढने के लिए इन सबको अस्त्रों की जरूरत होगी क्योंकि आम लोगों से भरी जगह पर कोई भी दिव्यस्त्र इस्तेमाल नही कर सकते और नही आम अस्त्रों से असुरों को कुछ फरक नही पड़ता
ऐसे हालत में ये सप्तस्त्रों की शक्ति ही हमारी सबसे बड़ी उम्मीद थी तो वही दूसरा कारण था कि अभी मेरे शरीर मे इतनी सप्तस्त्रों की ऊर्जा थी की मे बिना अस्त्रों के भी उनके शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता था
फिर कुछ देर और सबसे बात करने के बाद मे चल पड़ा अपने अज्ञात प्रवास के तरफ जहाँ मुझे उन 7 पड़ावों को पार करना था जिनके बारे मे मुझे कुछ भी ज्ञान नही था मे कुछ नही जानता था
बस इतना जानता था कि वो पड़ाव मुझे और मेरे काबिलियत को उसकी चरम सिमा तक परखेंगे जो मेरे लिए बिल्कुल भी आसान नही होने वाला था मेरे पास इस प्रवास को आगे बढ़ाने के लिये केवल 1 ही सुराग था
और वो थे वो चित्र जिनके बारे मे भी मुझे ज्यादा कुछ पता नही था बस इतना मालूम था कि वो जगह पृथ्वी पर ही है और जितना मैने भूगोल में पढ़ा है तो जरूर वो जगह इंडोनेशिया मे ही होगी
क्योंकि भूगोल के अनुसार इंडोनेशिया में दुनिया में सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी हैं और यह दुनिया के उन स्थानों में से एक है जो प्रशांत रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) के भीतर स्थित हैं
यह 25,000 मील (40,000 किमी) घोड़े की नाल के आकार का क्षेत्र है जो प्रशांत महासागर की सीमा पर है इसीलिए इतना तो तय था की जो जगह मैने देखी ये वही जगह है
लेकिन अब सवाल ये था की वहाँ मौजूद इतने सारे ज्वालामुखी मेसे अपने काम का कोनसा है जब मुझे इस सवाल का जवाब नही मिला तो मैने उस समय पर छोड़ दिया और चल पड़ा इंडोनेशिया के प्रशांत रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) के तरफ
वहाँ पहुँचकर मैंने देखा कि जितना मैने चित्र में देखा था उसके मुकाबले यहाँ कुछ ज्यादा ही आग भड़क रही है इन ज्वालामुखियों के अंदर पहले सिर्फ धुआ निकल रहा था लेकिन अब तो सीधे आग की लपेटे निकल रही है वो भी भयानक वाली
जो पूरे के पूरे इंसान की हड्डी के साथ पिघला दे तो वही जहां मैं खड़ा था बहा कि जमीन तक गर्म होने लगी थी जबकी में मुख्य ज्वालामुखी से 5 किमी दूर खड़ा था जमीन का तापमान बहुत बढ़ चुका था
जमीन का तापमान कितना था इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है जब मे वहाँ के मुख्य ज्वालामुखी तक पहुंचा तो वहाँ की गर्मी ने ही संकेत दे दिया की यही मेरी मंजिल है
वहाँ गर्मी ऐसी थी की मानो मे ज्वालामुखी के पास नही बल्कि उसके भीतर खड़ा हूँ तो वही जब मैने उस ज्वालामुखी के चोटी पर जाके उसकी गहराई नापने की कोशिश की तो मुझे उसके अंदर केवल अंधकार दिख रहा था
मै (मन मे) :- ज्वालामुखी गहरा कितना है ये बताना तो घास मे सुई ढूँढने से भी ज्यादा मुश्किल है
लेकिन ये मुझे करना तो था ही इसलिए मैं उड़ता हुआ उसके अंदर कुछ दूरी तक पहुंच गया और जब मे वहाँ से नीचे देखने लगा तो मुझे वहाँ आग के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था
इसलिए मैंने अपने हाथों को जॊडा और अपनी अग्नि शक्ति को जागृत किया और उसके अगले ही पल में ज्वालामुखी के मुँह में तेजी से घुस गया और जब मुझे अपने पैरों तले जमीन का आभास हुआ
तो मैने तुरंत अपनी आँखे खोल दी और जैसे ही मैंने अपनी आंखों को खोला तो मैं सामने का नजारा देखकर एकदम हैरान रह
गया
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आज के लिए इतना ही
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