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Fantasy ब्रह्माराक्षस

dhparikh

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अध्याय इकहत्तर

मेने पूरी तेजी से उस पत्थर को उस शक्स के सीने मे घुसा दिया और दूसरे हाथ से उसका गला पकड़ लिया जिससे अब वो पूरी तरह से मेरे कब्ज़े मे था

और ऐसा होते ही मुझे कदमों की आवाज मुझसे दूर जाती सुनाई देने लगी इसका मतलब वहाँ पर दो जीव थे ये महसूस होते ही मैने उस जीव को जिसे मैने पकडा था मैने उस तुरंत अपने गिरफ्त मे लिया

जिसके बाद मैने उस नुकीले पत्थर को चाकू की तरह उसके गर्दन पर लगा दिया और उस दूसरे जीव को आवाज देने लगा जिससे वो भी मेरे सामने आ गया

वो दोनों जैसे ही मेरे पास पहुंचे वैसे ही दोनों का शरीर चमकने लगा और जिसे में अपनी गिरफ्त मे पकडा हुआ था वो भी मेरे शरीर से आर पार हो कर निकल गया

जिसके बाद वो दोनों वैसे ही चमकते हुए एक दूसरे मे मिल गए और वहाँ पर एक सुनहरे रंग का बक्शा निर्माण हो गया ये बिल्कुल वैसा ही बक्शा था

जैसा मुझे पडाव पार करने के बाद मिलता और जैसे ही मैने उस बक्शे को खोला तो उसमे रखा हुआ संदेश अपने आप उड़ता हुआ मेरे सामने आ गया

संदेश :- शब्बाश कुमार तुमने इस चक्रव्युव को बड़े ही हिम्मत और निडरता से पार किया लेकिन इतने मे जश्न मनाने मत लगना क्योंकि इस चक्रव्युव का दूसरा हिस्सा अभी शेष है जिसमे तुम्हे अपनी हिम्मत के साथ साथ ही अपने बल का संगम भी दिखाना है याद रखना जितना तुम्हारा खुद पर विश्वास होगा उतने ही तुम शक्तिशाली होगे इसलिए कर खुदपर विश्वास और दिखादो सबको तुम हो कितने खास

इतना बोलते ही वो संदेश गायब हो गया और उसके गायब होते ही उस जंगल की जमीन हिलने लगी थी जैसे मानो की भूकंप आ गया हो


और देखते ही देखते जहाँ खड़ा था वहाँ चारोँ तरफ पत्थर की दीवारे जमीन के नीचे से आने लगी और मे कुछ कर पाता

उससे पहले वो दीवारे एक कमरे के आकार आ गयी और उस 4*4 ke कमरें के अंदर मे फस के रह गया न वहाँ पर कोई खिड़की थी न दरवाजा वहाँ पर रोशनी भी कोई स्त्रोत नही था

ऐसा मानो की मे उसमे कैद होके रह गया था मैने अपने भुजबल से उन दीवारों को भी तोड़ने का प्रयास किया लेकिन जैसा मुझे लगा था की यहाँ पर मेरी आम मानवी शक्ति काम नही आयेगी

मुझे अपनी मायावी शक्तियों की जरूरत थी उनके बिना मे यहाँ से कभी भी नहीं निकल सकता था यही सोचते हुए मै निराश होकर वही बैठ गया अभी मै वहाँ जमीन पर बैठा ही था

की तभी मुझे मेरे दिमाग मे वो दृश्य दिखने लगे जहाँ वो दुष्ट महासुरों ने उन सातों लोकों को अपना गुलाम बना कर रखा था

और उसके बाद मेरे आँखों के सामने वो दृश्य आने लगे जहाँ वो महासूर अपनी पूरी सेना के साथ धरती के तरफ बढ़ते जा रहे थे और उन्हे रोकने के लिए जो भी आगे बढ़ रहे थे

वो सभी को वो खतम कर देते और फिर मेरे आँखों के सामने मेरे अपनों की लाशे आने लगी जिनको कुचल कर वो सभी धरती लोक पर आक्रमण कर रहे थे

ये सब देखकर मेरा क्रोध अब मेरे काबू से बाहर जा रहा था मे ऐसे ही निराश होकर बैठा रहा तो कही मेरी वो कल्पना सत्य मे परावर्तित न हो जाए मे अभी ये सब सोच रहा था कि तभी मेरे मन मे गुरु काल की सिख आने लगी

गुरु काल :- याद रखना अपने सारे नकारत्मक भावों को अपनी ऊर्जा बनाओ अगर तुम ऐसा कर पाए तो दुनिया की कोई भी शक्ति तुम्हे हरा नहीं पायेगी

ये बात मेरे दिमाग मे आते ही मैने तुरंत अपने क्रोध और निराश को अपनी ताकत बनाने का विचार किया और उसके लिए मे वही ध्यान लगाने लगा और जब मे इस मे सफल हो गया


तो मैने अपनी आँखे खोली जो अभी पूरी लाल हो गयी थी जिसके बाद मै अपने सामने की दीवार के पास गया और अपनी पूरी ताकत को अपनी एक मुट्ठी में इकट्ठा किया

और पूरी ताकत से उस दीवार पर वार किया जिससे उस दीवार के चित्थडे उड़ गए और जैसे ही मे उस कमरे के बाहर निकला वैसे ही उस पूरे जंगल मे प्रकाश फैल गया

और जब वो प्रकाश हटा तो वह जंगल पुरा खाली मैदान बन गया था और वहाँ मेरे सामने हर बार की तरह बक्शा था जो मेरे सामने हवा मे उड़ रहा लेकिन ये बक्शा कुछ अलग था

अब तक मुझे जितने भी बक्शे मिले थे उन सब मे सिर्फ एक संदेश था और सर्प द्वीप पर मिले बक्शे संदेश के साथ एक शक्ति भी थी लेकिन जब मैने ये बक्शा खोला


तो उसमे एक के अलावा 2 संदेश थे और साथ मे एक ऊर्जा शक्ति भी थी अभी मे कुछ करता उससे पहले ही उन दोनों मेसे एक संदेश हवा मे उड़ते हुए मेरे सामने आ गया

संदेश :- उत्तम कुमार अति उत्तम तुमने अब तक सभी पड़ावों मे सफल हो चुके हो जहाँ तुमने सफल होने के साथ कुछ शक्तियाँ भी पा ली है अभी जो शक्ति तुम्हे बक्शे मे दिख रही हैं वो कोई शक्ति न होके वो ज्ञान है पूरे संसार के सभी चक्रव्युव के बारे में ज्ञान अब तुम्हारे अंदर इस ब्रह्मांड के सारे चक्रव्यू के राज समा चुके है अब ऐसा कोई चक्रव्यू नहीं होगा ऐसी कोई गुत्थी नहीं होगी जिसे तुम सुलझा नहीं सकते अगर तुम चाहो तो खुद भी बड़े से बड़े चक्रव्युव की रचना कर अपने दुश्मन को फंसा सकते हो और अब तुम चाहो तो महासुरों को अनियमित काल के लिए इन चक्रव्युव मे फँसा सकते हो

उस संदेश के इतना बोलते ही वहाँ पर मौजूद वो ज्ञान शक्ति मेरे अंदर समा गयी जिसके बाद वो संदेश फिर से बोलने लगा

संदेश :- अगले पड़ाव पर जाने से पहले ये जान लो की उस अजेय शक्ति को पाने के लिए तुम्हारा सामना कुरुमा से होगा जो की इस संसार के सबसे विशाल और सबसे खतरनाक जीव है और वो उस अस्त्र की रक्षा के लिए किसी के भी प्राण ले सकता हैं और वैसे भी तुम उन अस्त्रों से केवल उन महासुरों के अंदर पनप रहे सप्तस्त्रों के अंश को खतम कर पाओगे और वो भी केवल तुम्हे एक ही मौका मिलेगा तो वही तुम अंगीनात चक्रव्युव का निर्माण करके उन महासुरों को अनंतकाल तक कैद कर सकते हो सोचलो या तो तुम अपना और अपने साथियों का खुशहाल जीवन चुनो या फिर अपनी मौत याद रखना की अगर तुम मे गए तो महासुरों को रोकने के लिए कोई नही होगा और फिर वो महासूर हर तरफ तबाही मचा देंगे अगर तुम वापस लौटना चाहो तो लौट सकते हो

मे :- नही में आगे बढूंगा भले ही आज मे उन्हे कैद कर दूंगा लेकिन भविष्य मै कभी न कभी तो वो बच कर निकलेंगे ही उस वक्त उनकी तबाही से धरती को कौन बचाएगा इससे अच्छा की मे आगे बढ़ कर उन महासुरों को खतम कर दु इसीलिए अब मुझे बताइये कि अगला पड़ाव कहाँ होगा

संदेश :- जैसा तुम चाहो अगला पड़ाव तुम्हारा अंतिम पड़ाव होगा याद रखना की एक बार तुम अंदर चले गए तो कभी बाहर नही आ पाओगे बाहर आने के लिए तुम्हे कुरुमा को हराना होगा अगर अभी भी तुम अपने फैसले पर टिके हुए हो तो ये रहा अगले पड़ाव का रास्ता

उसके इतना बोलते ही वो दूसरा संदेश हवा मे उड़ते हुए मेरे सामने आया और और देखते ही देखते उसका आकर बढ़ने लगा और फिर वो संदेश एक मायावी द्वार मे परावर्तित हो गया जिसके बाद मे भी बिना कुछ सोचे समझे उस संदेश रूपी मायावी द्वार मे घुस गया

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आज के लिए इतना ही

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Nice update....
 

RAAZ

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अध्याय चौसठ

गुरु वानर :- याद रखना कुमार इन सबसे लड़ने जाने से पहले तुम्हे उस अस्त्र को जरूर पाना है

मै :- आप निश्चित रहियेगा सप्तऋषियों मे आपको भरोशा दिलाता हूं की जिस युद्ध को आपने शतकों पहले अधूरा छोड़ा था उसी युद्ध को मे अंजाम तक पहॅुचाऊँगा

सभी गुरु एक साथ :- विजयी भवः

इतना बोलके वो सभी वहाँ से गायब हो गए और उस जगह पर तेज प्रकाश फैल गया था जिससे मेरी आँखे बंद हो गयी थी और जब आँखे खोली तो मे अपने कमरे मे मौजूद था


मेरे आस पास प्रिया और शांति दोनों मौजूद थे जिनके सोते हुए मासूमियत से भरे चेहरे देखकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी जिसके बाद मे धीरे से अपनी जगह से उठकर बाहर चला गया

और सप्तगुरुओं द्वारा सिखाये हुए विद्याओं का अभ्यास करने लगा और जब अभ्यास पूर्ण हुआ तो मे उनके द्वारा दी ही पहेली के बारे में सोचने लगा की मुझे जन्म के बाद मुझे पहली बार अस्त्रों की ऊर्जा महसूस हुई थी

मे उसके बारे में सोचने लगा हर बार मे उसके जवाब के नजदीक पहुँचता लेकिन बीच मे ही कुछ हो जाता जिससे मे मुड़कर उसी जगह आ जाता जहाँ अभी मै मौजूद था

ऐसे ही सोचते हुए रात कब गुजर गयी और सुबह कब शुरू हो गयी मुझे भी पता नही चला अभी ब्रम्ह मुहूर्त शुरू था इसीलिए आश्रम मे कोई उठा नही था

(ब्रम्ह मुहूर्त :- चंद्र ढलने के बाद और सूर्य उगने से पहले का समय सुबह 3 से 5 के बीच का समयकाल)

इस ब्रम्ह मुहूर्त के मनमोहक दृश्य की सुंदरता मे गुम होकर मे इस वक़्त आश्रम के पीछे वाली नदी के पास पहुँच गया था स्नान के लिए जब मे वहाँ पहुँचा तो


उस जगह की शांतता और वहाँ के वातावरण में फैली हुई शीतलता मे मेरे मन मे भी एक अजीब सी सुकून और शांति की भावना आ गयी थी बिल्कुल वैसी ही की तपती गर्मी मे लगातार 4-5 घंटे घूमकर आने के बाद ac की ठंडी हवाँ मै बैठने को मिले

वैसा ही हाल अभी मेरा था ऐसे वातावरण मे स्नान करने का लुफ्त उठाने के बाद जब मेरा दिल और दिमाग दोनों मे ही असीम सुख और शांतता छा गयी तो मे भी उस सुख और शांती को और अच्छे से महसूस करने के लिए मे ध्यान मे बैठ गया

और ध्यान मे बैठने के बाद मे शांत दिमाग से मे उस पहेली के बारे मे सोचने लगा और ऐसा करते ही मेरे दिमाग मे मेरे जन्म के बाद होने वाली सारी चीजे किसी चलचित्र के तरह दिखने लगी

जो देखके मुझे मेरी पहली का जवाब भी मिल गया जब बचपन मे मैं गुरु राघवेंद्र को मिला था तो उन्होंने मेरे अस्तित्व का पता लगाने हेतु मेरे उपर कालास्त्र की शक्तियाँ इस्तेमाल की थी

और जब उन्होंने ऐसा किया था तभी मेरे शरीर मे उनके अस्त्र की ऊर्जा महसूस हुई थी जो सोचते ही मेरा ध्यान टूट गया और जब मेने अपनी आँखे खोली तो पाया कि अभी धीरे धीरे सूरज उगने लग गया था

जो देखके मे तुरंत खड़ा हो गया और चारों तरफ कोई न कोई सबूत ढूँढने लगा लेकिन मुझे वहाँ कुछ नही मिला जो देखकर मे निराश हो गया था और अभी मे आश्रम मे वापिस लौट रहा था की तभी मेरी नज़र वहाँ पर बहती हुई नदी पर पड़ी

जिसके अंदर मुझे कुछ चमकती ही चीज दिखाई देने लगी लेकिन वो चीज नदी में गहराई मे थी जिसे देखकर मेने सीधा नदी मे छलांग लगा दी लेकिन मे जितना उस चमकती चीज के पास पहुँचता

वो उतनी ही नदी मे और गहराई मे चली जाती कुछ समय ऐसे ही नाकाम कोशिश करने के बाद मेरे दिमाग में एक और तरीका आ गया उस चीज तक पहुँचने का और उसके लिए मे तुरंत नदी से बाहर निकल आया


और नदी के किनारे पर आके खड़ा हो गया और फिर मेने अपने जल अस्त्र की मदद से उस नदी के सारे पानी को गायब कर दिया जिससे उस जगह पर अब मुझे वो चीज साफ साफ दिखाई दे रही थी

और वो चीज कुछ और नही बल्कि एक लोहे का बक्शा था जो पानी मे रहने के बाद भी बिल्कुल सही सलामत था उसपर जरा सी भी जंग नही चढ़ी थी

और जब में उस बक्शे को खोलकर देखा तो उसमे एक संदेशा पत्र था जिसको में पढ़ा तो पता चला की उसे गुरु जल ने ही लिखा था

संदेश :- शब्बाश भद्रा हमे पता था की तुम इस संदेश तक पहुँच जाओगे अब तुम्हे इस संदेश पत्र को संभालकर रखना है और अब तुम्हे उस महास्त्र को पाने के लिए और 7 पड़ावों को पार करना होगा हर पड़ाव तुम्हे तुम्हारे मंजिल के करीब लेकर जायेगा और जब तुम उन सातों पड़ावों को पर कर लोगे तो तुम्हे मिलेगा अजेय अस्त्र जिससे तुम उन सातों महासुरों को मार पाओगे दूसरे पडाव तक पहुँचने के लिए तुम्हारी सहायता ये संदेश ही करेगा

मेरे इतना पढ़ते ही वो पत्र और बक्शा दोनों जल के राख हो गए और उनमे लगी आग से वहाँ पर मुझे कुछ चित्र दिखने लगे वो चित्र दिखने मे बड़े खतरनाक लग रहे थे


क्योंकि जिस भी इलाके के ये चित्र थे उस पूरे इलाके मे ज्वालामुखी भरे हुए थे कुछ विशाल ज्वालामुखी थे तो कुछ छोटे ज्वालामुखी थे और जिन जगहों पर ज्वालामुखी नही थे वहाँ पर नुकीले और प्राणघाती ज्वाला काँच(obsidian) थे

जिनपर गलती से भी पैर पड़ जाता तो उसकी तपिश उसी वक़्त जला के राख कर देती बस एक बात अच्छी दिख रही थी और वो ये की वहाँ पर सारे ज्वालामुखी सुप्त अवस्था मे थे

लेकिन फिर भी उनके मुख से निकालने वाली वो भाँप इतनी गरम महसूस हो रही थी की वो आँखों को साफ दिख रही थी

जिसके बाद वो चित्र गायब हो गया और मेने भी उस नदी का फिर पहले की तरह भर दिया जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था

तो वही रात मे महागुरु के कुटिया मे इस वक्त मेरे प्रिया और शांति को छोड़कर सब मौजूद थे सारे गुरु शिबू और मेरे माता पिता भी

गुरु वानर :- तो सम्राट आपके कहे मुताबिक आपने भद्रा को सुरक्षित रखने के लिए हमारे आश्रम मै भेजा लेकिन अभी भी मे समझ नही पा रहा हूँ की आपने उस वक्त आश्रम पर लगा हुआ कवच को कैसे निष्क्रिय किया

पिता जी :- सर्वप्रथम आप हमे अपना मित्र समझिये सम्राट हम तब थे जब हम हमारे सिंहासन पर विराजमान थे लेकिन अब हम केवल त्रिलोकेश्वर है और रही बात कवच की तो वो हमने निष्क्रिय नही किया था

पिताजी की बात सुनकर सब दंग रह गए थे क्योंकि वो पिछले 20 सालों से इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हे मिल नही था और मेरे अस्तित्व की असलियत जानने के बाद उन्हे लगा था की ये सालों पुरानी अनसुलझी पहेली का जवाब उन्हे आज मिल जायेगा लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि बात जहाँ थी वही आके रुक गयी थी अभी कोई कुछ और बोलता की तभी महागुरु बोलने लगे

महागुरु :- कोई अपने सिंहासन या राजपाठ से सम्राट नही बनता बल्कि उनके कर्म उनके प्रति प्रजा का विश्वास और आदर उन्हे खुद ब खुद सम्राट की उपाधि दे देती हैं और रही उस कवच की बात तो आप सब इस बात को भूल रहे हैं कि भद्रा के शरीर मे बाल्यकाल से ही सप्त ऊर्जा समाई हुई है और जो कवच मेने बनाया है वो किसी भी अस्त्र धारक या कोई ऐसा जिसके अंदर सप्तस्त्रों का अंश भी हो उसे रोक नही सकता हैं

गुरु जल :- ये सब तो ठीक है लेकिन अब आगे क्या मतलब अब हम क्या करेंगे हमारे पास अब सप्त अस्त्र नही है और आने वाले महासंग्राम मे हम मुकाबला कैसे करेंगे कैसे महासुरों और शुक्राचार्य के सेना का सामना करेंगे

गुरु सिँह :- अपने बल हिम्मत और जज्बे से

गुरु वानर:- अपने ज्ञान से

शिबू :- सबसे बढ़कर एकता से हम उनका सामना करेंगे और उन्हे पछाड़ देंगे

महागुरु :- अब आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा क्यों दिलावर

ऐसे ही कुछ देर बाते करने के बाद सभी अपने कक्ष मे जाकर सो जाते है उन्हे पता नही था की सुबह उन्हे एक साथ कितने सारे झटके मिलने वाले है

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आज के लिए इतना ही

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Zabardast update to aane wale yudh ke liye Shakti ki khoj me Bhadra ka safar shuru ho gaya hai.
 

sunoanuj

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Adhbhut mayavi itni jabardast lekhni hai … shabd nahin hai ab tarifon ke liye…. 👏🏻👏🏻👏🏻
 

VAJRADHIKARI

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अध्याय बहत्तर

उसके इतना बोलते ही वो दूसरा संदेश हवा मे उड़ते हुए मेरे सामने आया और और देखते ही देखते उसका आकर बढ़ने लगा और फिर वो संदेश एक मायावी द्वार मे परावर्तित हो गया जिसके बाद मे भी बिना कुछ सोचे समझे उस संदेश रूपी मायावी द्वार मे घुस गया

अभी मे जिस जगह पर था उसका वर्णन करना नामुमकिन था क्योंकि उसमे वर्णन करने जैसा कुछ था ही नही हर तरफ खाली बंजर पड़ा मैदान हर तरफ रेत और पत्थर के सिवा और कुछ नही था

अभी मे उस जगह को देखकर अपने दिमाग मे योजना बना रहा था की तभी वहाँ की जमीन धीरे धीरे हिलने लगी और मुझे वहाँ किसी के घूर्राने की आवाज सुनाई देने लगी

और जब मैने उस आवाज का पीछा किया तो वहाँ देखकर मेरी हालत खराब होने लगी क्योंकि इस वक्त मेरे सामने एक 50 फीट से ज्यादा लंबा और चौडा एक भेड़िया था जिसके मुह से लार जैसा कुछ निकल कर गिर रहा था

और जहां जहां वो लार गिर रहा थी वहां से काले रंग का धुआं निकल रहा था जिसे देखकर मे यहाँ की जमीन के बंजर होने का रहस्य तो जान गया था

लेकिन अब मे ये नही समझ पा रहा था की मे इस भेड़िये को कैसे हराउ अभी मे उसे हराने के बारे मे सोच रहा था कि तभी मुझे एक झटका और लगा

भेड़िया :- वाह इतने लंबे समय के बाद की मानव यहाँ तक पहुँच पाया है आज तो इस मानव का माँस खाने मे बड़ा मज़ा आयेगा

मै उसकी आवाज सुन कर दंग रह गया था क्योंकि उसकी आवाज मे दरिंदगी साफ झलक रही थी न सिर्फ उसकी दरिंदगी बल्कि जब भी वो अपना मुह खोलता

तो उसके वो सफेद और नुकीले दात उन्हे देखकर ऐसा लगता कि जैसे उन दातों के बीच मे ही मे फँस के मर जाऊंगा मे अभी कुछ और कर पाता उससे पहले ही उस भेड़िये ने मुझे अपने पैरों के नीचे कुचलना चाहा

लेकिन उसका पैर मुझ पर पड़ता की उससे पहले ही मे वहाँ कूद कर बाजू हट गया लेकिन फिर भी उसके पैर के जमीन से टकराने से वहाँ जो हलचल निर्माण हुई थी

उस हलचल की वजह से मेरा संतुलन बिगड़ गया था जिसे मैने बड़ी मुश्किल से संभाल लिया था और उसके बाद अब मे भी तैयार था उसके उपर हमला करने के लिए यहाँ एक बात अच्छी थी

की मे यहाँ अपनी शक्तियों का इस्तेमाल खुलकर कर सकता हूँ और सबसे पहले मैने अपनी संपूर्ण ऊर्जा को अपने सप्तचक्रों मै प्रवाहित करना आरंभ कर दिया और जब मेरी ऊर्जा के कारण मेरे सप्तचक्र जाग्रुत हो गए

तो मैने उन चक्रों की ऊर्जा के मदद से सर्व प्रथम अपने आकार को इतना बढ़ा दिया जिससे अब मे उस भेड़िये की आँखों मे आँखे डालकर युद्ध कर सकता था

तो वही मेरा आकार बढ़ता देख उस भेड़िये के भी चेहरे पर अब मुझे उलझन दिख रही थी और जैसे ही उसकी आँखो मे मुझे हैरत दिखी वैसे ही मैने अपने घुसे से उसके चेहरे पर मैने एक झबरदस्त घुसा जड़ दिया

जिससे वो दो कदम पीछे हो गया जो देखकर मेरी और उस भेड़िये दोनों की भी आँखे हैरानी से फैल गयी क्योंकि मैने जो उसे घुसा जड़ा था उसमे मैने उतनी ही ताकत डाली थी

जितनी मैने उस दीवार को तोड़ने के लिए इस्तेमाल की थी मुझे लगा था कि इतनी ताकत मे उसका काम निपट जायेगा लेकिन वो तो सिर्फ 2 कदम ही पीछे गया तो वही

भेड़िया (मन में) :- ये मानव आखिर है कौन जिसने मुझे महान कुरुमा को एक घुसे मे दो कदम पीछे ढकेल दिया इसे कम नही समझना चाहिए (मुझसे) तुम कोई साधारण बालक नही लग रहे हो कौन हो तुम जिसने इस महान कुरुमा को भी 2 कदम पीछे धकेल दिया

मै :- तेरा बाप हूँ मे कुरुमा

इतना बोलके में अपने एक हात मे तलवार को प्रकट किया और सीधा उसके उपर तलवार से हमला कर दिया लेकिन वो भी बड़ा फ़ुर्तिला था वो तुरंत मेरी तलवार से बचता हुआ बाजू मे कूद गया

और जैसे ही वो बाजू मे हुआ वैसे ही उसने मुझे पर भयानक अग्नि से वार कर दिया जिससे मे बच तो गया लेकिन उससे मे नीचे गिर गया

कुरुमा :- क्या हुआ बच्चे लगी तो नही

उसकी ये बात मेरे दिल में लग गयी जिससे अब मे अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा और अब मैंने उस परदो तरफ़ा हमले की सोची

जिसके लिए मैंने फिर से एक बार तलवार का आह्वान किया तलवार हाथ में आते ही मैंने उसके सर की तरफ फेंक दिया जिससे वो तलवार उस कुरुमा के एक सिर के सामने रुक गई

और फिर मैने अपनी जल शक्ति को तलवार मे प्रवाहित मे कर दिया जिससे उस तलवार मे से पूरी ताकत से पानी निकल कर भेड़िये की तरफ बढ़ने लगा उस भेड़िये ने ऐसा कुछ होगा सोचा भी नही था

जिस कारण ये ताकत उसके हिसाब से बहुत खतरनाक थी, और इसीलिए जब वो पानी भेड़िये को लगा तो वो पीछे जाने लगा और मे भी इसी का इंतज़ार कर रहा था

जैसे ही वो उस पानी की धार से उलझने मे व्यस्त हो गया था तो मे दौड़ते हुए उस भेड़िये के पीछे पहुंचा.उसके पीछे पहुंच कर मैंने एक जोर की छलांग लगाई

और अपने हाथ मे शिबू की तलवार को याद किया और एक ही झटके मे उस भेड़िये कुरुमा के एक सिर को उसके धड़ से अलग कर दिया जो देखकर मे जोर जोर से चिल्लाने लगा

मै :- क्यों कुरुमा अब लगी क्या तुझे

मै अभी ये बोल ही रहा था कि तभी मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे कोई कसकर बांध रहा है और जब मैने ध्यान दिया तो ये उस भेड़िये की पूछ थी जो मुझे लपेट अपने मे लपेट रही थी

मेरी तो हालत खराब हो गई मैंने ऊपर देखा तो एक नया झटका मेरा इंतजार कर रहा था उस भेड़िये का सर जो मैंने काट दिया था उसकी जगह एक नये सर ने ले ली थी ये देखकर मेरा पूरा आत्मविश्वास ही ख़त्म हो गया था

इधर वो भेड़िये की पूछ किसी सांप की तरह मेरे इर्द गिर्द मेरे शरीर पर कसती जा रही थी जिसके बाद मैने मुश्किल से अपने दर्द को काबू मे किया और उसे अपनी ऊर्जा मे तब्दील कर दिया

जिससे ये परिणाम हुआ की जहाँ मैं अभी भी भेड़िये की दुम में फ़सा हुआ था लेकिन अब मुझे ज़रा सा भी दर्द नहीं हो रहा था जिसके बाद मैने अपना दिमाग लगाया और फिर मैने अपने अग्नि अस्त्र की शक्ति जाग्रुत कर दी

जिससे अब मेरे पूरे शरीर से अग्नि निकलने लगी जिसे वो कुरुमा ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने अपनी पकड़ को ढीला कर दिया जिसके बाद मैंने एक ऊंची छलांग मारी और कुरुमा के ठीक सामने खड़ा हो गया

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आज के लिए इतना ही

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VAJRADHIKARI

Hello dosto
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Hello Bhai log aur unki bahan log ummid karta hoon sab kushal mangal honge sabse pahle toh aap sabka bahut bahut dhanyawad jo aapne mujhe aur meri story ko itna pyaar Diya hai kripaya karke aise hi pyaar barsate rahiyega ab aaye hai mudde ki baat par pichle kuch dino se mere saath kuch aise kaand ho rahe hai jisse ab meri mental health stable nahi hai jisse is story ko lekar ab mujhe kuch bhi sujh nahi raha hai jise aap log writer's block bhi kah sakte ho jis kaaran ab ye story ko me jald hi khatam karne wala hoon like next 6 to 7 Update me kahani ka the end ho jayega shayad end me aap logon ko khas maja na aaye lekin I promise you ki ke apne new project me sari shikayate khatam kar dunga
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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अध्याय बहत्तर

उसके इतना बोलते ही वो दूसरा संदेश हवा मे उड़ते हुए मेरे सामने आया और और देखते ही देखते उसका आकर बढ़ने लगा और फिर वो संदेश एक मायावी द्वार मे परावर्तित हो गया जिसके बाद मे भी बिना कुछ सोचे समझे उस संदेश रूपी मायावी द्वार मे घुस गया

अभी मे जिस जगह पर था उसका वर्णन करना नामुमकिन था क्योंकि उसमे वर्णन करने जैसा कुछ था ही नही हर तरफ खाली बंजर पड़ा मैदान हर तरफ रेत और पत्थर के सिवा और कुछ नही था

अभी मे उस जगह को देखकर अपने दिमाग मे योजना बना रहा था की तभी वहाँ की जमीन धीरे धीरे हिलने लगी और मुझे वहाँ किसी के घूर्राने की आवाज सुनाई देने लगी

और जब मैने उस आवाज का पीछा किया तो वहाँ देखकर मेरी हालत खराब होने लगी क्योंकि इस वक्त मेरे सामने एक 50 फीट से ज्यादा लंबा और चौडा एक भेड़िया था जिसके मुह से लार जैसा कुछ निकल कर गिर रहा था

और जहां जहां वो लार गिर रहा थी वहां से काले रंग का धुआं निकल रहा था जिसे देखकर मे यहाँ की जमीन के बंजर होने का रहस्य तो जान गया था

लेकिन अब मे ये नही समझ पा रहा था की मे इस भेड़िये को कैसे हराउ अभी मे उसे हराने के बारे मे सोच रहा था कि तभी मुझे एक झटका और लगा

भेड़िया :- वाह इतने लंबे समय के बाद की मानव यहाँ तक पहुँच पाया है आज तो इस मानव का माँस खाने मे बड़ा मज़ा आयेगा

मै उसकी आवाज सुन कर दंग रह गया था क्योंकि उसकी आवाज मे दरिंदगी साफ झलक रही थी न सिर्फ उसकी दरिंदगी बल्कि जब भी वो अपना मुह खोलता

तो उसके वो सफेद और नुकीले दात उन्हे देखकर ऐसा लगता कि जैसे उन दातों के बीच मे ही मे फँस के मर जाऊंगा मे अभी कुछ और कर पाता उससे पहले ही उस भेड़िये ने मुझे अपने पैरों के नीचे कुचलना चाहा


लेकिन उसका पैर मुझ पर पड़ता की उससे पहले ही मे वहाँ कूद कर बाजू हट गया लेकिन फिर भी उसके पैर के जमीन से टकराने से वहाँ जो हलचल निर्माण हुई थी

उस हलचल की वजह से मेरा संतुलन बिगड़ गया था जिसे मैने बड़ी मुश्किल से संभाल लिया था और उसके बाद अब मे भी तैयार था उसके उपर हमला करने के लिए यहाँ एक बात अच्छी थी

की मे यहाँ अपनी शक्तियों का इस्तेमाल खुलकर कर सकता हूँ और सबसे पहले मैने अपनी संपूर्ण ऊर्जा को अपने सप्तचक्रों मै प्रवाहित करना आरंभ कर दिया और जब मेरी ऊर्जा के कारण मेरे सप्तचक्र जाग्रुत हो गए

तो मैने उन चक्रों की ऊर्जा के मदद से सर्व प्रथम अपने आकार को इतना बढ़ा दिया जिससे अब मे उस भेड़िये की आँखों मे आँखे डालकर युद्ध कर सकता था


तो वही मेरा आकार बढ़ता देख उस भेड़िये के भी चेहरे पर अब मुझे उलझन दिख रही थी और जैसे ही उसकी आँखो मे मुझे हैरत दिखी वैसे ही मैने अपने घुसे से उसके चेहरे पर मैने एक झबरदस्त घुसा जड़ दिया

जिससे वो दो कदम पीछे हो गया जो देखकर मेरी और उस भेड़िये दोनों की भी आँखे हैरानी से फैल गयी क्योंकि मैने जो उसे घुसा जड़ा था उसमे मैने उतनी ही ताकत डाली थी

जितनी मैने उस दीवार को तोड़ने के लिए इस्तेमाल की थी मुझे लगा था कि इतनी ताकत मे उसका काम निपट जायेगा लेकिन वो तो सिर्फ 2 कदम ही पीछे गया तो वही

भेड़िया (मन में) :- ये मानव आखिर है कौन जिसने मुझे महान कुरुमा को एक घुसे मे दो कदम पीछे ढकेल दिया इसे कम नही समझना चाहिए (मुझसे) तुम कोई साधारण बालक नही लग रहे हो कौन हो तुम जिसने इस महान कुरुमा को भी 2 कदम पीछे धकेल दिया

मै :- तेरा बाप हूँ मे कुरुमा

इतना बोलके में अपने एक हात मे तलवार को प्रकट किया और सीधा उसके उपर तलवार से हमला कर दिया लेकिन वो भी बड़ा फ़ुर्तिला था वो तुरंत मेरी तलवार से बचता हुआ बाजू मे कूद गया

और जैसे ही वो बाजू मे हुआ वैसे ही उसने मुझे पर भयानक अग्नि से वार कर दिया जिससे मे बच तो गया लेकिन उससे मे नीचे गिर गया

कुरुमा :- क्या हुआ बच्चे लगी तो नही

उसकी ये बात मेरे दिल में लग गयी जिससे अब मे अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा और अब मैंने उस परदो तरफ़ा हमले की सोची


जिसके लिए मैंने फिर से एक बार तलवार का आह्वान किया तलवार हाथ में आते ही मैंने उसके सर की तरफ फेंक दिया जिससे वो तलवार उस कुरुमा के एक सिर के सामने रुक गई

और फिर मैने अपनी जल शक्ति को तलवार मे प्रवाहित मे कर दिया जिससे उस तलवार मे से पूरी ताकत से पानी निकल कर भेड़िये की तरफ बढ़ने लगा उस भेड़िये ने ऐसा कुछ होगा सोचा भी नही था

जिस कारण ये ताकत उसके हिसाब से बहुत खतरनाक थी, और इसीलिए जब वो पानी भेड़िये को लगा तो वो पीछे जाने लगा और मे भी इसी का इंतज़ार कर रहा था

जैसे ही वो उस पानी की धार से उलझने मे व्यस्त हो गया था तो मे दौड़ते हुए उस भेड़िये के पीछे पहुंचा.उसके पीछे पहुंच कर मैंने एक जोर की छलांग लगाई

और अपने हाथ मे शिबू की तलवार को याद किया और एक ही झटके मे उस भेड़िये कुरुमा के एक सिर को उसके धड़ से अलग कर दिया जो देखकर मे जोर जोर से चिल्लाने लगा

मै :- क्यों कुरुमा अब लगी क्या तुझे

मै अभी ये बोल ही रहा था कि तभी मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे कोई कसकर बांध रहा है और जब मैने ध्यान दिया तो ये उस भेड़िये की पूछ थी जो मुझे लपेट अपने मे लपेट रही थी


मेरी तो हालत खराब हो गई मैंने ऊपर देखा तो एक नया झटका मेरा इंतजार कर रहा था उस भेड़िये का सर जो मैंने काट दिया था उसकी जगह एक नये सर ने ले ली थी ये देखकर मेरा पूरा आत्मविश्वास ही ख़त्म हो गया था

इधर वो भेड़िये की पूछ किसी सांप की तरह मेरे इर्द गिर्द मेरे शरीर पर कसती जा रही थी जिसके बाद मैने मुश्किल से अपने दर्द को काबू मे किया और उसे अपनी ऊर्जा मे तब्दील कर दिया


जिससे ये परिणाम हुआ की जहाँ मैं अभी भी भेड़िये की दुम में फ़सा हुआ था लेकिन अब मुझे ज़रा सा भी दर्द नहीं हो रहा था जिसके बाद मैने अपना दिमाग लगाया और फिर मैने अपने अग्नि अस्त्र की शक्ति जाग्रुत कर दी

जिससे अब मेरे पूरे शरीर से अग्नि निकलने लगी जिसे वो कुरुमा ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने अपनी पकड़ को ढीला कर दिया जिसके बाद मैंने एक ऊंची छलांग मारी और कुरुमा के ठीक सामने खड़ा हो गया

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आज के लिए इतना ही

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Awesome update and mind blowing writing skills vajradhikari bhai 👍
Bhadra ke us mayavi dwar me jane se lekar kuruma se ladne ka safar kafi chota laga mujhe , ha update bada hi dilchasp tha isme koi sak nahi, dekhne wali baat hogi ki kumar kuruma ko kaise harata hai👍 superb.
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