Update:-92
पार्थ भी अपने दोनो हाथ ऊपर के ओर बकर उसके सुडोल वक्षों के हाथ में लेकर नीचे से कमर हिलाने लगा… सहवास बिल्कुल अपने मध्य में था और दोनों कमर हिलाकर पूरे मज़े ले रहें थे।… तभी धड़ाम की आवाज़ के साथ दरवाजा खुला और तेजी मे दरवाजा खुला। इससे पहले कि दोनों को कुछ होश आता, कमला की छाती पर एक तेज लात पड़ी और वो पीछे जाकर जमीन पर गिरी।.. और पार्थ हैरानी से वहां का नजारा देखने लगा।
"कुतीया कहीं की, दोबारा अपने डायान बनने की जिज्ञासा में किसी मर्द को फांसते हुए देख ली तुझे, तो नंगे ही पूरा गांव घुमा दूंगी। रंडी कहीं की, किसी कुएं में डूबकर मर क्यों नहीं जाती, तुझे मेरे ही खानदान में आना था।.. तुम क्या घुरे जा रहे हो, कपड़े ठीक करो और चलो, वरना तुम्हरा भी नंगे जुलुश निकालना होगा।".. पूरे गुस्से में और रोश दिखाती हुई निम्मी अपनी बात कही और पार्थ को वहां से उठाकर ले आयी।
दोनों खामोश साथ-साथ चल रहे थे। कुछ दूर जब पार्थ खुली हवा में चला होगा तभी निम्मी रुककर उसके सामने खड़ी हो गई और खींचकर उसके गाल में एक तमाचा जड़ती हुई कहने लगी…. "गांव ही मिला था तुम्हे हवस मिटाने के लिए। जवानी इतना ही जोश मार रहा था तो चले जाते किसी वैश्या के पास। मेरे जगह किसी और ने देख लिया होता ना तब तुम्हे पता चलता।"
पार्थ:- अब उसने सामने से निमंत्रण दिया था तो..
निम्मी:- वो तो है ही कुतिया। एक फूटी आंख ना सोहाती है मुझे। उसे डायान बनना है, उसी की विधि के लिए शिकार ढूंढ़ रही है। गांव में कुछ करेगी तो सबकी नजरों में आ जाएगी इसलिए कोई बाहर का मुर्गा हलाल करने की फिराक में थी। तुम्हे तो वो निमंत्रण देगी ही। जैसी वो त्रिया चरित्र वाली वैसे ही तुम। हवसी कहीं के निमंत्रण सामने से दी और चुलक अंदर से मचने लगा। मै वक़्त पर ना पहुंचती तो कलेजा निकाल ही चुकी थी तुम्हारा। तुमपर यह मेरा एहसान रहा..
पार्थ:- वो मेरे सीने पर ना जाने क्या-क्या रखकर, ऊपर अपने हाथों में खंजर लिए पता ना क्या ही कर रही थी, लेकिन मुझे पता क्यों नहीं चला..
निम्मी:- साले कुत्ते, नजर छाती से हटेगी तो ना पता चलेगा कि दाएं-बाएं क्या हो रहा है। कुत्ते की जात साले, नंगी लड़की दिखी नहीं की जात दिखा देते हो। और वो दिन में क्या बकवास करके मेरी चोली काट दी थी.. "जब मेरे नज़रों में खोट ना दिखे".. "जब तुम किसी भी अवस्था में रहो और खुद को सुरक्षित मेहसूस करो'".. यहां तुम्हारी नजर भी परख ली और तुम्हारा चरित्र भी। खुली टांग मिली नहीं की लार टपक आता है.. ये हैं नजरों के साफ इंसान। जी तो करता तेरी दिन की हरकत के लिए गले में चाकू घुसाकर यहीं राम नाम सत्य कर दू।
पार्थ:- तुम्हारा गुस्सा जायज है लेकिन एक बात बताओ घर में जो घुआं हो रहा था, क्या तुम जानती हो वो धुआं किस चीज का था।
निम्मी:- हां वो कोई वश में करने की विधि है, जो अक्सर डायन अपने शिकार फसाने के लिए करती है। घूएं से शिकार का पूरा दिमाग कब्जे में आ जाता है।
पार्थ:- मतलब तुम्हे पता था कि मै उसके वश में हूं, फिर भी मुझे इतना सुना रही हो।
निम्मी:- इसे हरामजादगी कहते है। अपनी ठनक और अरमान को निकालने उसके पीछे नहीं जाते थरकी तो वो धुआं के संपर्क में कैसे आते.. दिल तो किया कि मरने के लिए छोड़ दूं ताकि तुम्हे अपनी हवस की और कल सुबह उसे डायन बनने की सजा, दोनों मिल जाए.. लेकिन मुझे, तुमसे सीखने के स्वार्थ ने तुम्हे बचा लिया।
पार्थ:- जी बहुत-बहुत शुक्रिया आप का।
निम्मी:- सुनो मुझे तुमसे इंग्लिश के साथ कुछ कला में भी माहिर होना है कब से शुरू करोगे।
पार्थ:- कल से ही शुरू करते है।
निम्मी:- ठीक है, लेकिन अपनी थरक और अरमान कोठे वालियों पर लुटाकर आना। ना तो मुझे उकसाने के लिए कभी अपनी जुबान से गंदगी निकालना और ना ही मेरे करीब आने कि कोशिश करना।
पार्थ:- ठीक है बाबा समझ गया..
निम्मी:- करीबी नहीं हूं तुम्हारी जो बाबा, बेबी कर रहे हो। छी चरित्रहीन कहीं के.. जाओ अपने कमरे…
क्या गुस्सा था उसका। पार्थ तो दुबका कोई भिंगी बिल्ली बना हुआ था। हां इसमें कोई दो राय नहीं थी कि पार्थ पर निम्मी पूरा हावी थी और वो थोड़े भय में भी था। जैसे ही निम्मी से अलग हुआ तेज-तेज श्वांस लेने लगा। मानो ऐसा हुआ था कि निम्मी जब अपने तैश में थी, तब पार्थ की श्वांस भी कहीं अटकी हुई थी।
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राठौर मैंशन दिल्ली…
तीनों बाप बेटे, विक्रम, कंवल और लोकेश बड़ी से डायनिंग टेबल पर बैठे हुए थे। विक्रम के पास उसकी पत्नी भानुमती बैठी हुई थी, जो लगभग ना के बराबर ही बोला करती थी। भानुमती के पास ही उसकी सबसे छोटी बेटी कुसुम बैठी हुई थी। कंवल के पास उसकी पत्नी नम्रता और उसके पास उसका बेटा चिरंजीत बैठा हुआ था। और इस घर के सबसे रोमांटिक जोड़ी और हमेशा मुस्कुराने वाले लोकेश और मीरा दोनों साथ बैठे हुए थे। खाने के टेबल पर भी दोनों के प्यार भरे वारदात टेबल के नीचे से चलते रहते थे।
डायनिंग टेबल के पास एक मात्र नौकर खड़ा होता अलख सिंह, जो इस घर का सबसे वफादार था और बाकी के नौकर खाना डालकर सीधा अपने क्वार्टर में। एक भड़ा पूरा संयुक्त परिवार था, जो नियमित रूप से अपना भोजन एक साथ ग्रहण करते थे। इसी बीच यहां सब बैठकर, पूरे परिवार के लोग बातें भी किया करते थे।
लोकेश:- इन्हीं सब दिन के लिए मै शुरू से कह रहा हूं आप मायलो के वारिश को ढूंढो, लेकिन पापा आप मेरी सुनते ही नहीं।
विक्रम:- शुरू -शुरू में जरूरत पड़ी थी लेकिन अब उसकी क्या जरूरत, सबकुछ अच्छा चल तो रहा है। नंदनी के पैसे को भी तो अब हम इस्तामल कर ही रहे है ना।
लोकेश:- हां लेकिन कानूनन वो अपने नहीं है, यह क्यों भुल जाते है।
विक्रम की बड़ी बहू नम्रता… हां तो ढूंढ़ कर गांव ले जाओ और किस्सा ही खत्म करो, कबतक हम सेकंड थॉट के साथ काम करते रहेंगे।
कंवल:- शाबाश, मै भी यही सोच रहा था।
कुसुम:- क्या आप लोग भी हमेशा, इसको मारो उसको मारो। अब तो अपने परिवार के लोग को ही मारने का सोच रहे हो। ये कैसा कल्चर का बीज बो रहे हो आप लोग। लोकेश और कंवल भैय्या के नेक्स्ट जेनरेशन भी ऐसा करें तो कैसा रहेगा।
लोकेश:- दैट्स माय सिस्टर.. बिल्कुल सही कह रही है वो। वैसे भी मारना सॉल्यूशन थोड़े ना है। अब देखो श्वांस कैसे अटकी थी हमारी। 40000 करोड़ का प्रोजेक्ट बंद होने जा रहा था जिसमें से 30000 करोड़ बैंक के कर्ज थे। अब यदि बैंक की वसूली होती तो पहले हमारी संपत्ति कुर्की होती, क्योंकि पूरा प्रोजेक्ट हमनें अकेले के फैसले से शुरू किया था। वहीं अगर अभी मालिक के सिग्नेचर होते, तो वो जाने और उसका काम, हमारे पैसे और हिस्से तो सब सुरक्षित होते।
कुसुम:- क्या लोकेश भैय्या आप तो सकुनी के भी बाप हो। जो करना है करो मुझे क्या, खाली कल मुझे शॉपिंग के लिए पैसे चाहिए वो मुझे दे देना।
विक्रम:- अकाउंट में पैसे तो होंगे ही..
कुसुम:- मात्र 30 लाख है कहां से होगी इतने में शॉपिंग। कम से कम 2 करोड़ तो चाहिए ही।
विक्रम की छोटी बहू मीरा….. "लो हमारी बन्नो को 30 लाख रुपए मात्र लगते हैं। मैं तो 10000 में पूरी शॉपिंग कर आऊं।"
कुसुम:- भाभी यहां 10000 कह रही हो और आपके पड़ोस में जो बैठे है आप के प्यारे पति, मिस्टर लोकेश सिंह राठौड़, उनके क्रेडिट कार्ड के 22 करोड़ का लिमिट, एक ही दिन के ऑनलाइन शॉपिंग में चला गया, उसके बारे में मत बोलना। बड़ी आयी मुझे समझाने वाली। यहां सबसे ज्यादा शॉपिंग के खर्च आपके है।
मीरा:- हां तो मै अपने पति के पैसे उड़ती हूं, तुम भी अपने पति के पैसे उड़ाना।
मीरा की बात पर सब हंसने लगे और कुसुम चिढ़ कर नाक मुंह फुला ली। जबतक दोनों भाई ने मना नहीं लिया और मीरा से ज्यादा शॉपिंग के लिए उसके अकाउंट में 25 करोड़ नहीं डलवा दिए तबतक अपना मुंह फुलाए ही रही।
उनकी सभा कि समाप्ति के बाद ही लोकेश और विक्रम साथ निकल गये, जिसे देखते हुए नम्रता अपनी आंखें चढ़ा कर कंवल से कहने लगी… "वो दिन दूर नहीं जब आपका भी हाल आपका भाई, कुंवर सिंह के जैसा करेगा। जिस हिसाब से ये बिजनेस टेकओवर कर रहा है आप बस प्रॉफिट में शेयर ही लेते रहना बाकी पूरा एम्पायर तो वो लोकेश ले जाएगा।"..
कंवल अपनी पत्नी को आखें दिखाते हुए कहने लगा…. "कितनी बार कहा है अपनी लगाई-भिड़ाई दूर रखो। जहां विश्वास नहीं वहां कोई काम नहीं हो सकता। इसलिए अपनी फालतू राय मुझे मत दिया करो।
इधर विक्रम, लोकेश के साथ एक छोटा सा वॉक लेता बातें करने लगा…. "क्या नंदनी का होना इतना जरूरी है।"
लोकेश:- देखिए पापा इन पॉलिटीशियन का कोई भरोसा नहीं है। 4 कंपनी को बर्बाद जब करने में इन्हे एक मिनट का वक़्त नहीं लगा, क्या भरोसा कल को अपने फायदे के लिए हमे बर्बाद ना करें।
विक्रम:- बात में दम तो है, लेकिन नंदनी को ढूंढेंगे कहां।
लोकेश:- जब ढूंढ़ नहीं सकते तो उसकी जगह किसी और बिठा दीजिए।
विक्रम:- बच्चे हो तुम अभी। रियल वर्ल्ड में ऐसा नहीं चलता। एक छोटी सी भनक और समझो ये बेवकूफी भड़ा फ्राउड पूरे कारोबार को ले डूबेगा।
लोकेश:- कैसे पापा।
विक्रम:- मायलो ग्रुप में हमारा 0% का शेयर है। मुख्य मालिक नंदनी है और मै केयर टेकर हूं। कानून दाव पेंच से मैंने 25% की हिस्सेदारी ली है। अब यदि पता चल जाए कि मै गलत तरीके से किसी को ऑनर बना दिया हूं, फिर पूर्ण संपत्ति हड़पने का मामला चलेगा। ये इतना बड़ा एम्पायर अब बन चुका है कि यही राजनेता हमे गिध की तरह नोच देंगे।
लोकेश:- लेकिन पापा किसी को पता चलेगा तब ना।
विक्रम:- लोकेश किसी कि कितनी भी पहचान मिटा दो, कुछ ना कुछ निशानियां रह ही जाती है। फिर आज कल तो डीएनए टेस्ट भी होता है। हां ! लेकिन तुम्हारा सुझाव सही है। बेटा तुम्हे ही मै ये जिम्मा देता हूं ढूंढ़ निकालो नंदनी को।
लोकेश:- ठीक है पापा मै जल्द ही खुशखबरी देता हूं। हां लेकिन एक बात, भले अरबों खर्च हो जाए परवाह नहीं, लेकिन राठौड़ मैंशन उसे मत दीजिएगा। कहीं और बंगलो बनवा दीजिएगा।
विक्रम:- इस मैंशन से तो मुझे भी लगाव है .. ऐसा लगता है जैसे राजा हर्षवर्धन के वंशज अब भी राज कर रहे है।
लोकेश:- बिल्कुल सही कहा पापा।
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स्वस्तिका और कुंजल दोनों रात के 8 बजे तक मुंबई पहुंच गए थे। कुंजल अपने बैग पटक कर चारो ओर देखने लगी।… "दीदी अंदर से ये पूरा घर ऐसा लग रहा है जैसे जाना पहचाना है, ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली का फ्लैट है।"
स्वस्तिका:- हां हमारा पूरा ठिकाना लगभग एक जैसा डिज़ाइन किया हुआ है। पार्थ ने ही डिज़ाइन किया था ऐसा, हमारे रूटीन के वर्कआउट के लिए।
कुंजल:- एक बात बताओ आप मुझे यहां ट्रेनिंग के लिए लाई हो ना।
स्वस्तिका:- सच कहूं या झूट।
कुंजल:- क्या दीदी, झूट बोलते अच्छा लगेगा क्या?
स्वस्तिका:- ठीक है सुन यहां तुम्हे ट्रेनिंग के लिए लाई हूं ये सत्य है, लेकिन कोई बहुत ज्यादा फिजिकल ट्रेनिंग नहीं होगी। बस यह सुनिश्चित करना है की विषम से विषम परिस्थतियों में तुम अपनी जान बचा सकती हो की नहीं।
कुंजल:- हे भगवान क्या मै मरने वाली हूं? दीदी मुझे नहीं मारना है अभी। अभी तो अपने भाइयों की शादी में नाचना है। जीजाजी के साथ तो छेड़छाड़ भी अभी करनी बाकी है। ये सब अरमान निकालें बैगर मै नहीं मर सकती।
स्वस्तिका उसके सर पर एक हाथ मारती…. "झल्ली कहीं की, ऐसा कुछ नहीं होगा, लेकिन ये एक कला है और मै चाहती हूं कि तुम जान बचाने की कला में माहिर हो जाओ।
कुंजल:- ओह तो ये डिपार्टमेंट आप का है।
स्वस्तिका:- पागल.. अब ये तुम्हारा दिमाग.. मतलब हम डिपार्टमेंट में बटें है?
कुंजल:- गलत थोड़े ना कहीं… ऐमी है वो कंप्यूटर वाली बिल्ली, आप है मेकअप वाली। बाकी सब मुझे लाठी चलाने वाले लगते है, आप के टीम के तीनों लड़के। वैसे दीदी मेरी एक छोटी सी ख्वाहिश है।
स्वस्तिका:- जी कहिए..
कुंजल:- मुझे होने वाले जीजू से मिलना है।
स्वस्तिका अपनी आखें शिकोड़ते…. "होने वाले जीजू हां, और ये साहब कहां है अभी।"..
कुंजल झट से स्वस्तिका का फोन उठकर भगति हुई उसका संदेश खोल कर पढ़ती हुई कहने लगी… "मिस यू सोना"… "मिस यू टू बेबी".... कुंजल मेरा मैसेज पढ़ना बंद कर, वरना मै सर फोड़ दूंगी तेरा…. "ओह रात नहीं कट रही, बाहों में लेकर.. छी,छी दीदी ये कैसे, कैसे मैसेज भेज रहा है।"…. "मार खा जाएगी कुंजल, मै कहती हूं मेरे मैसेज पढ़ना बंद कर।"…. "एक शर्त पर, मुझे मिलवाओगी"…
स्वस्तिका भागती-भागती परेशान होकर, सोफे पर सर पकड़कर बैठ गई.. कुंजल उसे उदास बैठे देखकर, वो भी उसके पास बैठ गई और फोन बढ़ाती हुई… "सॉरी दीदी"..
तभी स्वस्तिका उसपर झपटी और उसका हाथ उल्टा मोड़कर… "सॉरी की बच्ची, तुझे मेरे मैसेज पढ़ते शर्म ना आयी।"..
कुंजल:- अरे हाथ छोड़ दो, टूट जाएगा। आव.. दीदी सच में दुख रहा है।
स्वास्तिक उसके हाथ छोड़कर टिक कर बैठ गई… उसके पास ही कुंजल भी टिक कर बैठ गई…. "जानू तुम नहीं हो तो श्वांस तक नहीं लिया जा रहा है।"… जैसे ही कुंजल ने यह बोला.. दोनों जोर-जोर से हंसने लगी… "बसकर तू तो जीजाजी को छोड़कर, मुझे ही छेड़ने लगी।"….
कुंजल:- कब मिलवा रही हो।
स्वस्तिका:- छुटकी अभी हमारे रिलेशन ऐसे नहीं की परिवार से मिलवाया जाए..
कुंजल:- अच्छा अच्छा अच्छा.. मतलब सुनकर ही मानोगी..
स्वस्तिका:- चूपकर, मेरा फोन लेकर मेरी ही जासूसी कर ली मुझे पता भी नहीं चला। ब्लैकमेलर, ठीक है कल मिलवाती हूं, अब खुश।
कुंजल:- नाह !! पहले मुझे बताओ कि ये एंगेजमेंट में आपका मेकअप ना करना और जब कोई चाहने वाला मिलेगा तब करूंगी.. ये सब ड्रामे क्या थे?
स्वस्तिका:- आरव के लिए। उसे पता चल जाता तो वो अपनी एंगेजमेंट छोड़कर मेरी एंगेजमेंट करवाने लगता, और इस वक़्त मै नहीं चाहती कि मै किसी बंधन में फसू।
"मतलब मामला दो तरफा है.. आप भी चाहती है.. वूहू वूहू वूहू... मतलब यही है अपने होने वाले जीजू.. वो ओ ओ ओ ओ ओ"…... "कुंजल की बच्ची, इमोशनल ब्लैकमेलर, तुझे तो मै, रूक बताती हूं।"….. "नहीं नहीं दीदी .. छोड़ो .. मै किसी को नहीं बताउंगी सच्ची..
दोनों की खट्टी मीठी नोक झोंक जारी रही। स्वस्तिका को जिस परिवार का ना होना खलता रहा उसे वो मेहसूस कर रही थी, और अपने अरमान भी साझा कर रही थी।….