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Romance भंवर (पूर्ण)

Zoro x

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Update:-91



वीरभद्र जो अबतक पूरे संतुलन के साथ गाड़ी चला रहा था, पार्थ के मुंह से यह सच सुनकर ऐसा संतुलन खोया की ब्रेक लगाते-लगाते एक चट्टान से जाकर गाड़ी भिड़ा दिया। उसका पूरा दिमाग ही जैसे काम करना बंद कर दिया हो और टुकुर टुकुर बस पार्थ को ही देखे जा रहा था।


वीरभद्र अपने चेहरे पर आए पसीने को पोछते हुए कहने लगा… " मेरे होश गुम है, मै समझ नहीं पा रहा की क्या सही है क्या गलत। दिमाग को पूरा चकरा डाला। एक तरफ दिमाग कहता है कि तुम सब भले लोग हो तो दूसरी तरफ दिमाग कहता है कि जब तुम लोग किसी को भी अपने जाल में फंसा सकते हो, तो क्या मेरे लिए जाल नहीं बुन सकते।"


एक थप्पड़ खींच कर जड़ते हुए पार्थ कहने लगा…. "तू एक बात बता, तुम्हे जाल में फंसना कितना आसान होता ना यदि तुम्हे हर तरीके से सोचने के लिए सिखाया ना गया होता। बेवकूफ अब आंटी को वापस लौटना है और यही.. बस तुम जैसे लोग जो कभी उन्हें देखे नहीं और ना ही जाने, पहले से यहां दुश्मन बनाए बैठे हो। ऐसे में उनकी सुरक्षा जरूरी है कि नहीं। बाकी साथ रहकर जज करते रहना नंदनी आंटी कैसी है, कुंजल कैसी है। लगे छालावा हुआ है तो दोनों को गोली मार देना। अब खुश…


वीरभद्र भी खींचकर एक थप्पड़ जड़ते हुए…. "इतनी छोटी सी बात समझाने के लिए दोबारा थप्पड़ मारा ना तो मै तुम्हारा खून कर दूंगा।"..


पार्थ:- ऐसी बात है क्या? चल दिखा खून करके।


वीरभद्र:- देखो मुझे उक्शा रहे हो, आगे परिणाम के लिए तुम खुद जिम्मेदार होगे।


पार्थ:- चल बे चिलगोजे डींगे मारना बंदकर और मुझे मारकर बता।


वीरभद्र खुद को थोड़ा शांत करते हुए…. "रहने दो, मै तुम्हे नहीं मार सकता।


पार्थ:- ठीक है मार नहीं सकता, घायल तो कर सकता है ना।


"ऐसा है क्या"… कहते हुए वीरभद्र ने अपने कमर से खंजर निकाला और पेट में सीधा घोपा। जैसे ही वीरभद्र ने चाकू चलाया वहां तेज-तेज हंसी की आवाज़ आना शुरू हो गया। वीरभद्र आश्चर्य से अपने पास वाली सीट की टटोल कर देखने लगा। वो पागल हुआ जा रहा था, अभी तो उसने पार्थ पर चाकू से हमला किया था, फिर वो पास की सीट से कहां गायब हो गया और ये चाकू सीट में कैसे लग गया।


वीरभद्र:- भाई तुम सब तांत्रिक हो क्या, या मेरी गाड़ी में सच का भूत है?


पार्थ:- इसे भ्रम कहते हैं बेटा.. जिसे तुमलोग जादू के नाम से भी जानते हो।


वीरभद्र फिर चौंक गया ऐसा लगा आवाज़ पास की सीट से आयी है लेकिन वहां पार्थ तो था ही नहीं।… "भाई एक ही दिन में मेरे दिमाग की इतनी ना बैंड बजाओ की मै अपना सर जाकर खुद ही फोड़ लूं। रानी मां (नंदनी) का झटका कम पर गया जो अब ये दूसरा झटका दे रहे हो।"


पार्थ पीछे और आगे की सीट के बीच की जगह से उठकर, उसके कांधे पर हाथ देते हुए कहने लगा…. "3 महीने में तुम्हारी सरिरीक क्षमता एक सीमित रूप तक बढ़ेगी। तीन महीने में लेकिन तुम्हे भ्रम काला सिखाया जा सकता है, और वही करने आया हूं मै यहां।"..


वीरभद्र:- क्या बात कर रहे हो भाई, मतलब मै जादूगर बन जाऊंगा। किसी को भी गायब कर सकता हूं। कहीं भी गायब होकर पहुंच सकता हूं।


पार्थ आगे वाली सीट पर अाकर बैठते हुए….. "अब मै सच में तुम्हारे पास बैठा हूं। तुम्हारी जिज्ञासा के हिसाब से तुम्हारा सवाल जायज है। ट्रेनिंग के आखरी में तुम खुद तय कर लेना की तुमने क्या सीखा। फिलहाल अब मुझे ये बताओ दिमाग में सब क्लियर है या कोई शंका और भी है।"..


वीरभद्र:- सोचने और सवाल पूछने के लिए अंदर दिमाग का संतुलित होना भी जरूरी है, जो कि अब होने से रहा। बस मुझे रानी मां और कुंजल की रखवाली का जिम्मा संभालना है बस।


पार्थ:- हां तो अब गाड़ी भी बढ़ा ना, रोके क्यों है।


वीरभद्र:- चट्टान से ठूकी है गाड़ी भाई। अंदर से कुछ टूट वाइग्रह गया होगा।


दोनों कार से बाहर आए। सुनसान सड़क और जुलाई की भीषण गर्मी, दोनों वहां धूप में जब पकने लगे तो वापस कार में अाकर एसी में बैठ गए। अंत में पार्थ ने पार्सल लाने वालों को ही अपने पास बुलवा लिया साथ में एक टो ट्रक भी।


कुछ देर में वो लोग उदयपुर से पार्थ के पास पहुंच गए। वो पार्थ और वीरभद्र को अपने साथ गांव तक ड्रॉप तो कर देते, लेकिन वीरभद्र को पता था कि यदि वो अपनी कार इस जगह छोड़ गया तो कुछ ही देर में इसके पार्ट-पार्ट गायब होने के पूरा अंदेशा है। इसलिए वो वहीं रुककर टो ट्रक के आने का इंतजार करने लगा और इधर पार्थ पार्सल के साथ गांव वापस आ गया।


पार्सल के अंदर आते ही पार्थ ने उस बिल्डिंग का नक्शा मांग लिया और ट्रेनिंग एरिया और स्टोर हाउस ढूंढ़ने लगा। नक्शा ठीक वैसा ही था जैसा पार्थ ने अनुमान लगाया था। पार्थ अपने सामान के साथ स्टोर रूम में पहुंच गया। स्टोर रूम के अंदर का नजारा देखकर तो वो आवाक रह गया। ऐसा लग रहा था देश विदेश के सारे चाकू और खंजर का कलेक्शन उसी स्टोर रूम में जमा है। ऐसा लग रहा था जैसे यहां चाकू और खंजर का कोई मुसियम खुला हुआ है।


पार्थ ने एक खंजर निकालकर अपने हाथ में लिया और उसे परखने लगा… "परफेक्ट बैलेंस"… पार्थ वो खंजर देख ही रहा था कि सायं से एक चाकू बिल्कुल उसके नाक के करीब से तेजी के साथ गुजरी और पार्थ चौंक गया… "ओ शहरी बाबू मेरी चीजे छूना खतरनाक हो सकता है।"


पार्थ जब अपनी नजर उठा कर देखा तो तकरीबन 60 फिट की दूरी पर ट्रेनिंग एरिया में निम्मी खड़ी थी। एक पल के लिए पार्थ ने आखें मूंदी.. दूरी, रफ्तार, चाकू को फेंकने का संतुलन और पूरे एकाग्रता से साधा गया निशान वो भी हवा की गति को ध्यान में रखकर… पार्थ के होटों से बस "अमेजिंग" शब्द ही निकला…


निम्मी:- ओ शहरी बाबू कितने सदमे में गए, डराया था कहीं मारा होता तो जुबान से आवाज़ नहीं आती और प्राण बाहर होते।


पार्थ वहां पड़े अपने बैग से हार्ड लैदर ग्लोब्स निकाला, जिसे खुद पार्थ ने डिज़ाइन किया था। यह बुलेटप्रूफ मेटरिल की बनी एक ग्लोब्स थी जो इस्तमाल में आसान और भेदने में काफी मुश्किल।


पार्थ अपने ग्लोब्स पहनते हुए कहने लगा… "तुम कमाल कि हो निम्मी और तुम्हारा बदन… उफ्फ ! क्या बनावट है।"..


निम्मी:- मेहमान हो मेहमान की तरह रहो शहरी बाबू, कहीं तुम्हारी जुबान की कीमत जान से ना चुकानी परे।


पार्थ:- 34 साइज के ब्रा लगते होंगे ना…


निम्मी पूरे जोड़ से चिल्लाई, उसके बाएं ओर पार्थ हंसते हुए एक-एक कदम धीरे-धीरे बढ़ाते आगे बढ़ते.. और पास के दाएं ओर के पिलर में कई चाकू और खंजर का सेट टंगा हुआ। निम्मी पूरे गुस्से का प्रदर्शन करती हुई एक के बाद एक पहले खंजर से हमला करती फेंकती चली गई।


हर फेके गए खंजर को पकड़ते वक़्त जुबान से बस इतना ही निकलता "कमाल है ये लड़की".. सायं, सायं करती एक के बाद दूसरी खंजर और हर खंजर लगभग एक ही निशाने पर, सीधा गले में वोकल कोर्ड को निशाना बनाते।


पार्थ हंस-हंस कर मानो उसे उक्सा रहा हो, उसके गुस्से को हवा दे रहा हो। ऐसी सूरत में अब निम्मी ने दूसरे पैटर्न से हमला शुरू किया। पहला खंजर सिर के मध्य में दूसरा खंजर वोकल कोर्ड, तीसरा खंजर सीने के बाएं हिस्से सीधा दिल पर और चौथी उसके टांगों के बीच में।


अपने दाएं ओर से खंजर निकालकर बाएं ओर निशाना लगाकर फेकने में एक सेकंड से भी कम वक़्त लग रहा था। मात्र 10 सेकंड में वो 18 खंजर फेंक चुकी होती। पार्थ जैसे-जैसे नजदीक पहुंच रहा था, निम्मी अब खंजर से चाकू पर आ चुकी थी।


एक कमाल कि चाकूबाजी जिसे पता था कितनी दूरी पर कितना वाजनी चाकू या खंजर से निशाना लगाना है। निम्मी बहुत विश्वास के साथ अपनी चाकू फेक रही थी, शुरू में तो वो अपने गुस्से की वजह से फेकी, लकीन कुछ खंजर के बेकार जाने के बाद निम्मी को भी समझ में आ गया कि पार्थ उसे उकसाकर बस उसके कला का परीक्षण कर रहा है।


वो अपनी पूरी कला का प्रदर्शन कर रही थी। यहीं कोई जब 10 फिट की दूरी बची हुई थी, तब पार्थ को भी अक्ल आयी की वो किससे पंगे ले चुका था। दूरी इतनी कम थी कि अब सबसे हल्के चाकू से निशाना लगाया जा सकता था। और यहीं उसके चाकूबाजी के कला का ऐसा नमूना प्रदर्शित हुआ कि पार्थ चारो खाने चित।


दोनों हाथ के अंगूठे की पकड़ के साथ 2 चाकू और बीच के हर 2 उंगलियों के बीच 1 चाकू फंसे थे। कुल 6 चाकू और निम्मी अपनी दोनों हाथ की कलाई को कैंची बनाकर निशाना साधी और अपने हाथ को झटक दी। पार्थ हमले के लिए तैयार तो था लेकिन ऐसा भी हमला होगा उसे पता नहीं था।


बचने का एक ही उपाय उसे लगा और वो चाकू के रास्ते से खुद को बड़ी तेजी से किनारे किया। लेकिन तबतक 2 चाकू, एक उसकी बांह और दूसरी उसके पेट में किनारे को हल्का चिड़ती हुई निकल गई। निम्मी जबतक दोबारा अपने हाथों में चाकू लगाती पार्थ ठीक उसके पीछे पहुंचकर उसके हाथों की मोड़कर समेट दिया।


निम्मी विजई मुस्कान मुस्कुराती तेज-तेज श्वांस लेे रही थी और पार्थ उसके कान के नीचे अपने होंठ ले जाते हुए कहने लगा… "यदि मेरी नजरों में तुम्हारे बदन के प्रति कोई गलत भावना ना दिखे"…. इतना कहते पार्थ ने उसकी चोली के एक धागे को चाकू से काट दिया और फिर आगे कहते…. "और तुम किसी भी अवस्था में मेरे सामने आओ और खुद को सुरक्षित समझो"… इतना कहते चोली के दूसरे धागे को भी काट दिया…. "तब हम एक दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते है।".. और बात खत्म करके चोली के बचे धागे को काटकर पार्थ उसे छोड़ा, और वहीं बैठकर अपने पर लगे घाव का मुआयना करने लगा। और निम्मी पकड़ से छूटते ही अपने हाथो से अपनी चोली संभालती, वहां से भागी।


रात के 12 बज गए थे। पार्थ अपने मनचले अरमान को समेटे, और गांव में मिली मस्त जवाब भरे पूरे बदन की भाभी से रास लीला रचने पार्थ पूरे मूड बनाकर निकला। गली के अंदर थोड़ा आगे वो पहुंचा ही था कि रास्ते में ही कमला उसका इंतजार कर रही थी। कमला आगे-आगे और पार्थ पीछे-पीछे चल रहा था। कल रात वाली जगह पर ही दोनों पहुंच चुके थे, लेकिन आज कमला का पति वहां नहीं था बल्कि वो पीछे ही वीरभद्र के मकान में सो रहा था।


कमला उसका हाथ पकड़कर कमरे के अंदर ले गई। कमरे में हल्की दिए की रौशनी आ रही थी और अंदर हल्का धुआं भी जल रहा था जिसकी खुशबू काफी मनमोहक थी। कमला उसे कमरे में लाती, नीचे बिछी चटाई को दिखाती कहने लगी… "लेट जाओ बाबू"


पार्थ भी मचलते अरमान के साथ चटाई पर लेट गया। कमला अपना पीठ पार्थ के ओर करती, अपनी चोली को एक, एक कंधे से खिसकाती हुई अपने बदन से अलग कर दी। दिए की रौशनी में कमला का खुला पीठ पूरा चमक रहा था और उसकी चोली नीचे जमीन पर गिरी हुई थी।


कमला फिर पीछे पलटी और घुटनों पर बैठकर, अपने हाथ आगे बढ़कर पार्थ के लोअर को कमर से नीचे खिसकाकर, उसके आधे जागे, आधे सोए लिंग पर अपने हाथ फेरने लगी। पार्थ मज़े में आनंद लेता बस ये सब होते देख रहा था। जैसे ही लिंग पूरा अाकर लिया, कमला अपने घाघरा फैलाकर उसके लिंग पर बैठती हुई पार्थ के लिंग को अपने योनि के अंदर लेती हुई अपने आखें मूंद ली और अपने आखें मूंदे वो लिंग पर उछलकर सहवास के मज़े लेने लगी।


पार्थ भी अपने दोनो हाथ ऊपर के ओर बढाकर, उसके सुडोल वक्षों के हाथ में लेकर, नीचे से कमर हिलाने लगा… सहवास बिल्कुल अपने मध्य में था और दोनों कमर हिलाकर पूरे मज़े ले रहें थे।… तभी धड़ाम की आवाज़ के साथ दरवाजा खुला। इससे पहले कि दोनों को कुछ होश आता, कमला की छाती पर एक तेज लात पड़ी और वो पीछे जाकर जमीन पर गिरी।.. और पार्थ हैरानी से वहां का नजारा देखने लगा।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
निम्मी ने क्या हीं गजब चाकुबाजी दिखाई भाई मजा आ गया भाई

ये रंग में भंग डालने कोन आ गया भाई
मुझे तो निम्मी हीं लगती हैं नैन भाई
 

Zoro x

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पार्थ भी अपने दोनो हाथ ऊपर के ओर बकर उसके सुडोल वक्षों के हाथ में लेकर नीचे से कमर हिलाने लगा… सहवास बिल्कुल अपने मध्य में था और दोनों कमर हिलाकर पूरे मज़े ले रहें थे।… तभी धड़ाम की आवाज़ के साथ दरवाजा खुला और तेजी मे दरवाजा खुला। इससे पहले कि दोनों को कुछ होश आता, कमला की छाती पर एक तेज लात पड़ी और वो पीछे जाकर जमीन पर गिरी।.. और पार्थ हैरानी से वहां का नजारा देखने लगा।


"कुतीया कहीं की, दोबारा अपने डायान बनने की जिज्ञासा में किसी मर्द को फांसते हुए देख ली तुझे, तो नंगे ही पूरा गांव घुमा दूंगी। रंडी कहीं की, किसी कुएं में डूबकर मर क्यों नहीं जाती, तुझे मेरे ही खानदान में आना था।.. तुम क्या घुरे जा रहे हो, कपड़े ठीक करो और चलो, वरना तुम्हरा भी नंगे जुलुश निकालना होगा।".. पूरे गुस्से में और रोश दिखाती हुई निम्मी अपनी बात कही और पार्थ को वहां से उठाकर ले आयी।


दोनों खामोश साथ-साथ चल रहे थे। कुछ दूर जब पार्थ खुली हवा में चला होगा तभी निम्मी रुककर उसके सामने खड़ी हो गई और खींचकर उसके गाल में एक तमाचा जड़ती हुई कहने लगी…. "गांव ही मिला था तुम्हे हवस मिटाने के लिए। जवानी इतना ही जोश मार रहा था तो चले जाते किसी वैश्या के पास। मेरे जगह किसी और ने देख लिया होता ना तब तुम्हे पता चलता।"


पार्थ:- अब उसने सामने से निमंत्रण दिया था तो..


निम्मी:- वो तो है ही कुतिया। एक फूटी आंख ना सोहाती है मुझे। उसे डायान बनना है, उसी की विधि के लिए शिकार ढूंढ़ रही है। गांव में कुछ करेगी तो सबकी नजरों में आ जाएगी इसलिए कोई बाहर का मुर्गा हलाल करने की फिराक में थी। तुम्हे तो वो निमंत्रण देगी ही। जैसी वो त्रिया चरित्र वाली वैसे ही तुम। हवसी कहीं के निमंत्रण सामने से दी और चुलक अंदर से मचने लगा। मै वक़्त पर ना पहुंचती तो कलेजा निकाल ही चुकी थी तुम्हारा। तुमपर यह मेरा एहसान रहा..


पार्थ:- वो मेरे सीने पर ना जाने क्या-क्या रखकर, ऊपर अपने हाथों में खंजर लिए पता ना क्या ही कर रही थी, लेकिन मुझे पता क्यों नहीं चला..


निम्मी:- साले कुत्ते, नजर छाती से हटेगी तो ना पता चलेगा कि दाएं-बाएं क्या हो रहा है। कुत्ते की जात साले, नंगी लड़की दिखी नहीं की जात दिखा देते हो। और वो दिन में क्या बकवास करके मेरी चोली काट दी थी.. "जब मेरे नज़रों में खोट ना दिखे".. "जब तुम किसी भी अवस्था में रहो और खुद को सुरक्षित मेहसूस करो'".. यहां तुम्हारी नजर भी परख ली और तुम्हारा चरित्र भी। खुली टांग मिली नहीं की लार टपक आता है.. ये हैं नजरों के साफ इंसान। जी तो करता तेरी दिन की हरकत के लिए गले में चाकू घुसाकर यहीं राम नाम सत्य कर दू।


पार्थ:- तुम्हारा गुस्सा जायज है लेकिन एक बात बताओ घर में जो घुआं हो रहा था, क्या तुम जानती हो वो धुआं किस चीज का था।


निम्मी:- हां वो कोई वश में करने की विधि है, जो अक्सर डायन अपने शिकार फसाने के लिए करती है। घूएं से शिकार का पूरा दिमाग कब्जे में आ जाता है।


पार्थ:- मतलब तुम्हे पता था कि मै उसके वश में हूं, फिर भी मुझे इतना सुना रही हो।


निम्मी:- इसे हरामजादगी कहते है। अपनी ठनक और अरमान को निकालने उसके पीछे नहीं जाते थरकी तो वो धुआं के संपर्क में कैसे आते.. दिल तो किया कि मरने के लिए छोड़ दूं ताकि तुम्हे अपनी हवस की और कल सुबह उसे डायन बनने की सजा, दोनों मिल जाए.. लेकिन मुझे, तुमसे सीखने के स्वार्थ ने तुम्हे बचा लिया।


पार्थ:- जी बहुत-बहुत शुक्रिया आप का।


निम्मी:- सुनो मुझे तुमसे इंग्लिश के साथ कुछ कला में भी माहिर होना है कब से शुरू करोगे।


पार्थ:- कल से ही शुरू करते है।


निम्मी:- ठीक है, लेकिन अपनी थरक और अरमान कोठे वालियों पर लुटाकर आना। ना तो मुझे उकसाने के लिए कभी अपनी जुबान से गंदगी निकालना और ना ही मेरे करीब आने कि कोशिश करना।


पार्थ:- ठीक है बाबा समझ गया..


निम्मी:- करीबी नहीं हूं तुम्हारी जो बाबा, बेबी कर रहे हो। छी चरित्रहीन कहीं के.. जाओ अपने कमरे…


क्या गुस्सा था उसका। पार्थ तो दुबका कोई भिंगी बिल्ली बना हुआ था। हां इसमें कोई दो राय नहीं थी कि पार्थ पर निम्मी पूरा हावी थी और वो थोड़े भय में भी था। जैसे ही निम्मी से अलग हुआ तेज-तेज श्वांस लेने लगा। मानो ऐसा हुआ था कि निम्मी जब अपने तैश में थी, तब पार्थ की श्वांस भी कहीं अटकी हुई थी।



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राठौर मैंशन दिल्ली…



तीनों बाप बेटे, विक्रम, कंवल और लोकेश बड़ी से डायनिंग टेबल पर बैठे हुए थे। विक्रम के पास उसकी पत्नी भानुमती बैठी हुई थी, जो लगभग ना के बराबर ही बोला करती थी। भानुमती के पास ही उसकी सबसे छोटी बेटी कुसुम बैठी हुई थी। कंवल के पास उसकी पत्नी नम्रता और उसके पास उसका बेटा चिरंजीत बैठा हुआ था। और इस घर के सबसे रोमांटिक जोड़ी और हमेशा मुस्कुराने वाले लोकेश और मीरा दोनों साथ बैठे हुए थे। खाने के टेबल पर भी दोनों के प्यार भरे वारदात टेबल के नीचे से चलते रहते थे।


डायनिंग टेबल के पास एक मात्र नौकर खड़ा होता अलख सिंह, जो इस घर का सबसे वफादार था और बाकी के नौकर खाना डालकर सीधा अपने क्वार्टर में। एक भड़ा पूरा संयुक्त परिवार था, जो नियमित रूप से अपना भोजन एक साथ ग्रहण करते थे। इसी बीच यहां सब बैठकर, पूरे परिवार के लोग बातें भी किया करते थे।


लोकेश:- इन्हीं सब दिन के लिए मै शुरू से कह रहा हूं आप मायलो के वारिश को ढूंढो, लेकिन पापा आप मेरी सुनते ही नहीं।


विक्रम:- शुरू -शुरू में जरूरत पड़ी थी लेकिन अब उसकी क्या जरूरत, सबकुछ अच्छा चल तो रहा है। नंदनी के पैसे को भी तो अब हम इस्तामल कर ही रहे है ना।


लोकेश:- हां लेकिन कानूनन वो अपने नहीं है, यह क्यों भुल जाते है।


विक्रम की बड़ी बहू नम्रता… हां तो ढूंढ़ कर गांव ले जाओ और किस्सा ही खत्म करो, कबतक हम सेकंड थॉट के साथ काम करते रहेंगे।


कंवल:- शाबाश, मै भी यही सोच रहा था।


कुसुम:- क्या आप लोग भी हमेशा, इसको मारो उसको मारो। अब तो अपने परिवार के लोग को ही मारने का सोच रहे हो। ये कैसा कल्चर का बीज बो रहे हो आप लोग। लोकेश और कंवल भैय्या के नेक्स्ट जेनरेशन भी ऐसा करें तो कैसा रहेगा।


लोकेश:- दैट्स माय सिस्टर.. बिल्कुल सही कह रही है वो। वैसे भी मारना सॉल्यूशन थोड़े ना है। अब देखो श्वांस कैसे अटकी थी हमारी। 40000 करोड़ का प्रोजेक्ट बंद होने जा रहा था जिसमें से 30000 करोड़ बैंक के कर्ज थे। अब यदि बैंक की वसूली होती तो पहले हमारी संपत्ति कुर्की होती, क्योंकि पूरा प्रोजेक्ट हमनें अकेले के फैसले से शुरू किया था। वहीं अगर अभी मालिक के सिग्नेचर होते, तो वो जाने और उसका काम, हमारे पैसे और हिस्से तो सब सुरक्षित होते।


कुसुम:- क्या लोकेश भैय्या आप तो सकुनी के भी बाप हो। जो करना है करो मुझे क्या, खाली कल मुझे शॉपिंग के लिए पैसे चाहिए वो मुझे दे देना।


विक्रम:- अकाउंट में पैसे तो होंगे ही..


कुसुम:- मात्र 30 लाख है कहां से होगी इतने में शॉपिंग। कम से कम 2 करोड़ तो चाहिए ही।


विक्रम की छोटी बहू मीरा….. "लो हमारी बन्नो को 30 लाख रुपए मात्र लगते हैं। मैं तो 10000 में पूरी शॉपिंग कर आऊं।"


कुसुम:- भाभी यहां 10000 कह रही हो और आपके पड़ोस में जो बैठे है आप के प्यारे पति, मिस्टर लोकेश सिंह राठौड़, उनके क्रेडिट कार्ड के 22 करोड़ का लिमिट, एक ही दिन के ऑनलाइन शॉपिंग में चला गया, उसके बारे में मत बोलना। बड़ी आयी मुझे समझाने वाली। यहां सबसे ज्यादा शॉपिंग के खर्च आपके है।


मीरा:- हां तो मै अपने पति के पैसे उड़ती हूं, तुम भी अपने पति के पैसे उड़ाना।


मीरा की बात पर सब हंसने लगे और कुसुम चिढ़ कर नाक मुंह फुला ली। जबतक दोनों भाई ने मना नहीं लिया और मीरा से ज्यादा शॉपिंग के लिए उसके अकाउंट में 25 करोड़ नहीं डलवा दिए तबतक अपना मुंह फुलाए ही रही।


उनकी सभा कि समाप्ति के बाद ही लोकेश और विक्रम साथ निकल गये, जिसे देखते हुए नम्रता अपनी आंखें चढ़ा कर कंवल से कहने लगी… "वो दिन दूर नहीं जब आपका भी हाल आपका भाई, कुंवर सिंह के जैसा करेगा। जिस हिसाब से ये बिजनेस टेकओवर कर रहा है आप बस प्रॉफिट में शेयर ही लेते रहना बाकी पूरा एम्पायर तो वो लोकेश ले जाएगा।"..


कंवल अपनी पत्नी को आखें दिखाते हुए कहने लगा…. "कितनी बार कहा है अपनी लगाई-भिड़ाई दूर रखो। जहां विश्वास नहीं वहां कोई काम नहीं हो सकता। इसलिए अपनी फालतू राय मुझे मत दिया करो।


इधर विक्रम, लोकेश के साथ एक छोटा सा वॉक लेता बातें करने लगा…. "क्या नंदनी का होना इतना जरूरी है।"


लोकेश:- देखिए पापा इन पॉलिटीशियन का कोई भरोसा नहीं है। 4 कंपनी को बर्बाद जब करने में इन्हे एक मिनट का वक़्त नहीं लगा, क्या भरोसा कल को अपने फायदे के लिए हमे बर्बाद ना करें।


विक्रम:- बात में दम तो है, लेकिन नंदनी को ढूंढेंगे कहां।


लोकेश:- जब ढूंढ़ नहीं सकते तो उसकी जगह किसी और बिठा दीजिए।


विक्रम:- बच्चे हो तुम अभी। रियल वर्ल्ड में ऐसा नहीं चलता। एक छोटी सी भनक और समझो ये बेवकूफी भड़ा फ्राउड पूरे कारोबार को ले डूबेगा।


लोकेश:- कैसे पापा।


विक्रम:- मायलो ग्रुप में हमारा 0% का शेयर है। मुख्य मालिक नंदनी है और मै केयर टेकर हूं। कानून दाव पेंच से मैंने 25% की हिस्सेदारी ली है। अब यदि पता चल जाए कि मै गलत तरीके से किसी को ऑनर बना दिया हूं, फिर पूर्ण संपत्ति हड़पने का मामला चलेगा। ये इतना बड़ा एम्पायर अब बन चुका है कि यही राजनेता हमे गिध की तरह नोच देंगे।


लोकेश:- लेकिन पापा किसी को पता चलेगा तब ना।


विक्रम:- लोकेश किसी कि कितनी भी पहचान मिटा दो, कुछ ना कुछ निशानियां रह ही जाती है। फिर आज कल तो डीएनए टेस्ट भी होता है। हां ! लेकिन तुम्हारा सुझाव सही है। बेटा तुम्हे ही मै ये जिम्मा देता हूं ढूंढ़ निकालो नंदनी को।


लोकेश:- ठीक है पापा मै जल्द ही खुशखबरी देता हूं। हां लेकिन एक बात, भले अरबों खर्च हो जाए परवाह नहीं, लेकिन राठौड़ मैंशन उसे मत दीजिएगा। कहीं और बंगलो बनवा दीजिएगा।


विक्रम:- इस मैंशन से तो मुझे भी लगाव है .. ऐसा लगता है जैसे राजा हर्षवर्धन के वंशज अब भी राज कर रहे है।


लोकेश:- बिल्कुल सही कहा पापा।



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स्वस्तिका और कुंजल दोनों रात के 8 बजे तक मुंबई पहुंच गए थे। कुंजल अपने बैग पटक कर चारो ओर देखने लगी।… "दीदी अंदर से ये पूरा घर ऐसा लग रहा है जैसे जाना पहचाना है, ठीक वैसे ही जैसे दिल्ली का फ्लैट है।"


स्वस्तिका:- हां हमारा पूरा ठिकाना लगभग एक जैसा डिज़ाइन किया हुआ है। पार्थ ने ही डिज़ाइन किया था ऐसा, हमारे रूटीन के वर्कआउट के लिए।


कुंजल:- एक बात बताओ आप मुझे यहां ट्रेनिंग के लिए लाई हो ना।


स्वस्तिका:- सच कहूं या झूट।


कुंजल:- क्या दीदी, झूट बोलते अच्छा लगेगा क्या?


स्वस्तिका:- ठीक है सुन यहां तुम्हे ट्रेनिंग के लिए लाई हूं ये सत्य है, लेकिन कोई बहुत ज्यादा फिजिकल ट्रेनिंग नहीं होगी। बस यह सुनिश्चित करना है की विषम से विषम परिस्थतियों में तुम अपनी जान बचा सकती हो की नहीं।


कुंजल:- हे भगवान क्या मै मरने वाली हूं? दीदी मुझे नहीं मारना है अभी। अभी तो अपने भाइयों की शादी में नाचना है। जीजाजी के साथ तो छेड़छाड़ भी अभी करनी बाकी है। ये सब अरमान निकालें बैगर मै नहीं मर सकती।


स्वस्तिका उसके सर पर एक हाथ मारती…. "झल्ली कहीं की, ऐसा कुछ नहीं होगा, लेकिन ये एक कला है और मै चाहती हूं कि तुम जान बचाने की कला में माहिर हो जाओ।


कुंजल:- ओह तो ये डिपार्टमेंट आप का है।


स्वस्तिका:- पागल.. अब ये तुम्हारा दिमाग.. मतलब हम डिपार्टमेंट में बटें है?


कुंजल:- गलत थोड़े ना कहीं… ऐमी है वो कंप्यूटर वाली बिल्ली, आप है मेकअप वाली। बाकी सब मुझे लाठी चलाने वाले लगते है, आप के टीम के तीनों लड़के। वैसे दीदी मेरी एक छोटी सी ख्वाहिश है।


स्वस्तिका:- जी कहिए..


कुंजल:- मुझे होने वाले जीजू से मिलना है।


स्वस्तिका अपनी आखें शिकोड़ते…. "होने वाले जीजू हां, और ये साहब कहां है अभी।"..


कुंजल झट से स्वस्तिका का फोन उठकर भगति हुई उसका संदेश खोल कर पढ़ती हुई कहने लगी… "मिस यू सोना"… "मिस यू टू बेबी".... कुंजल मेरा मैसेज पढ़ना बंद कर, वरना मै सर फोड़ दूंगी तेरा…. "ओह रात नहीं कट रही, बाहों में लेकर.. छी,छी दीदी ये कैसे, कैसे मैसेज भेज रहा है।"…. "मार खा जाएगी कुंजल, मै कहती हूं मेरे मैसेज पढ़ना बंद कर।"…. "एक शर्त पर, मुझे मिलवाओगी"…


स्वस्तिका भागती-भागती परेशान होकर, सोफे पर सर पकड़कर बैठ गई.. कुंजल उसे उदास बैठे देखकर, वो भी उसके पास बैठ गई और फोन बढ़ाती हुई… "सॉरी दीदी"..


तभी स्वस्तिका उसपर झपटी और उसका हाथ उल्टा मोड़कर… "सॉरी की बच्ची, तुझे मेरे मैसेज पढ़ते शर्म ना आयी।"..


कुंजल:- अरे हाथ छोड़ दो, टूट जाएगा। आव.. दीदी सच में दुख रहा है।


स्वास्तिक उसके हाथ छोड़कर टिक कर बैठ गई… उसके पास ही कुंजल भी टिक कर बैठ गई…. "जानू तुम नहीं हो तो श्वांस तक नहीं लिया जा रहा है।"… जैसे ही कुंजल ने यह बोला.. दोनों जोर-जोर से हंसने लगी… "बसकर तू तो जीजाजी को छोड़कर, मुझे ही छेड़ने लगी।"….


कुंजल:- कब मिलवा रही हो।


स्वस्तिका:- छुटकी अभी हमारे रिलेशन ऐसे नहीं की परिवार से मिलवाया जाए..


कुंजल:- अच्छा अच्छा अच्छा.. मतलब सुनकर ही मानोगी..


स्वस्तिका:- चूपकर, मेरा फोन लेकर मेरी ही जासूसी कर ली मुझे पता भी नहीं चला। ब्लैकमेलर, ठीक है कल मिलवाती हूं, अब खुश।


कुंजल:- नाह !! पहले मुझे बताओ कि ये एंगेजमेंट में आपका मेकअप ना करना और जब कोई चाहने वाला मिलेगा तब करूंगी.. ये सब ड्रामे क्या थे?


स्वस्तिका:- आरव के लिए। उसे पता चल जाता तो वो अपनी एंगेजमेंट छोड़कर मेरी एंगेजमेंट करवाने लगता, और इस वक़्त मै नहीं चाहती कि मै किसी बंधन में फसू।


"मतलब मामला दो तरफा है.. आप भी चाहती है.. वूहू वूहू वूहू... मतलब यही है अपने होने वाले जीजू.. वो ओ ओ ओ ओ ओ"…... "कुंजल की बच्ची, इमोशनल ब्लैकमेलर, तुझे तो मै, रूक बताती हूं।"….. "नहीं नहीं दीदी .. छोड़ो .. मै किसी को नहीं बताउंगी सच्ची..


दोनों की खट्टी मीठी नोक झोंक जारी रही। स्वस्तिका को जिस परिवार का ना होना खलता रहा उसे वो मेहसूस कर रही थी, और अपने अरमान भी साझा कर रही थी।….
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
हर कोई अपने मोहरों को बेजोड़ बनने में लगा हैं भाई
 

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अपस्यु:- तो तू करना क्या चाहता है?

आरव:- मुझे तू बैकअप देता जा। टारगेट मुझे मिल गया है, एलिमिनेटर कैसे करना है वो मैं समझ लूंगा।

अपस्यु:- ठीक है लेकिन याद रहे किसी भी सूरत में कोई कड़ी मत छोड़ना। क्योंकि उसके 3 डीलर मारे जाएंगे तो वो कारण का पता जरूर लगाएगा।

आरव:- तू बस देखता जा, ये मैं कैसे करता हूं।

अपस्यु:- ठीक है तो तू कल से ही काम शुरू कर देना।

आरव:- मैं तो काम शुरू ही कर दूंगा लेकिन क्या तू तैयार है। नहीं, मतलब अभी तू पूरी तरह से ठीक भी नहीं हुआ है। तेरी हड्डी जुड़ने में वक़्त है अभी, ऐसी हालत में तू यहां अकेले सब कैसे करेगा। ऊपर से बॉथरूम आने पर क्या करेगा।

अपस्यु:- चिंता मत कर कल बहुत कुछ सुधार अा जाएगा।

अगले दिन तकरीबन सुबह के 8 बजे अपस्यु ने एक बार पुनः वहीं प्रक्रिया शुरू कर दी। लगभग आधे घंटे तक चली प्रक्रिया और उसके बाद अपस्यु बेहोश परा सोता रहा। इधर आरव अपना सामान पैक करके, वहीं लगे कई तरह के अभ्यास करने वाले मशीनों पर अपना अभ्यास कर, सारी क्षमता दर्ज करने लगा। लगभग 3 बजे दिन में अपस्यु भी उठ चुका था। खुद में वो पहले से बेहतर तो मेहसूस कर रहा था लेकिन अभी भी पूरी तरह से ठीक होने में वक्त लगता, खासकर उसकी टूटी पसलियां और हाथ-पाऊं की हड्डियां जुड़ने में अभी वक़्त था।

दोनों भाई आगे कि रणनीति पर चर्चा कर रहे थे, तभी उनके फ्लैट की घंटी बजी। फ्लैट की घंटी बजते ही दोनों भाई चौक्कना हो गए। दोनों की नजर एक साथ बाहर लगे कैमरे की स्क्रीन पर गई…. "ले अा गई तेरा हाल पूछने। लगता है तेरी वाली बीमारी इसे भी लग गई। पहले तू इसके घर में झांकता था अब ये तेरे घर"

अपस्यु:- जा, जाकर दरवाजा खोल।

आरव हंसते हुए उसके सर पर एक हाथ मारा और जाकर दरवाजा खोलने चला गया।… "स्वागत है जी आप का हमारे छोटे से गरीब खाने में"

साची मुस्कुराती हुई अंदर प्रवेश की और जैसे ही सामने हॉल का नजारा देख… "ओह माय गॉड… ये तो किसी ट्रेनिंग वर्क शॉप जैसा लग रहा है"

आरव:- हा हा हा, अंदर भी आओगी या फिर यहीं खड़ा रहना है।

साची पूरे हॉल का जायजा लेती हुई अाकर सोफे पर बैठ गई… "तुम्हारे घर और रहन-सहन को देख कर तो ऐसा लगता है कि कोई मालदार आसामी हो"

अपस्यु:- आरव चाई ला दे बनाकर। और बताओ साची कैसे आना हुआ।

साची:- अभी मै यहां भांगड़ा करूंगी और तुम ढोल पीटना डफर। तुम्हे देखने आयु हूं और खबर भी लेने।

अपस्यु:- देख तो ली अब खबर भी लेलो।

आरव, किचेन से ही.. साची डंडे से इसकी खबर लेना।

साची:- खबर तो तुम्हारी ही लेने अाई हूं आरव, वेदांता से सीधा फ्लैट में शिफ्ट कर दिए।

आरव:- घूम फिर कर सबका निशाना मैं ही बनता हूं। लो चाय लो। दरअसल बात कुछ यूं हुई की मै गया तो वेदांता ही था लेकिन थोड़े से चेकअप के बाद उन्होंने कुछ दवा लिखी। कमीनो ने ₹40000 जमा भी करवा लिए और आधे घंटे बाद कहते है "नॉर्मल चोट है, 2 हफ्ते में ठीक हो जाएगा। इन्हे घर लेे जा सकते है"।

साची:- चोट नॉर्मल कैसे हो गई। कमाल है हॉस्पिटल बदलते ही पूरा ज़ख्म का रंग-रूप ही बदल गया।

अपस्यु:- सरकारी हस्पताल वाले थे ना वो लोग। कोई भी रिपोर्ट बना देते हैं साची।

अभी साची चाय पी ही रही थी कि उसके सामने से आरव बैग टांगें निकालने लगा। आरव को जाते देख साची ने पूछ लिया कि आखिर वो किधर जा रहा है। आरव को निकालने के लिए बोलकर अपस्यु साची से कहता है…

"अभी जो तुमने मालदार आसामी बोला था ना, उन मालदार आसामी को भी जीने के लिए माल की जरूरत पड़ती है वहीं लाने जा रहा है"

साची:- कोई फैक्ट्री या मिल होगा उसी का कलेक्शन लेने जा रहा होगा।

अपस्यु:- हा हा हा.. नहीं ऐसा कोई मिल या फैक्ट्री नहीं है हमारे पास और ना ही करोड़ों संजोया हुआ है। ये सब कुछ, जो तुम देख रही हो वो हमारे बाबा का संजोया हुआ है। ले-दे कर आय के नाम पर दार्जलिंग में चाय का एक बागान है जिससे हर 3 महीने में 1.5 से 2 लाख रुपए मिल जाते हैं। वहीं हिसाब करके पैसे लेने जा रहा है।

साची:- पैसे अकाउंट पर भी तो मंगवा सकते हो, ऐसे हालात में तुम्हे छोड़ कर जाने की क्या जरूरत है।

अपस्यु:- पैसे के नाम पर बस ₹200 रुपया बचा है। वहां जबतक हिसाब नहीं करेंगे तो पता चलेगा कि जहां 1.5 या 2 लाख आने है वहां ₹50000 से ही संतोष करना होगा।

साची:- पैसों की जरूरत थी तो मुझ से मांग लेते, कुछ समय बाद चला जाता वो।

अपस्यु:- लो अभी मांग लिए जरूरत तो है ही। फिलहाल ₹20000 दे दो। पैसे आते ही लौटा दूंगा।

साची:- ठीक है कल सुबह मै देदुंगी। वैसे मानना पड़ेगा, पैसों का सही इस्तमाल किया है।

अपस्यु:- इस्तमाल नहीं उपयोग।

साची:- मतलब,

अपस्यु:- मतलब "इस्तमाल" शब्द उर्दू से लिया गया है और ये हिंदी भाषा का मूल शब्द नहीं है। "उपयोग" मूल शब्द है।

साची:- आरव ने सही ही बताया था।

अपस्यु:- क्या?

साची:- यही की गुरु जी के पास बैठ जाओ और ज्ञान की प्राप्ति होते रहेगी।

अपस्यु:- नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। तुम साहित्य लेकर पढ़ रही थी तो मैं तुम्हारा ज्ञान बढ़ा रहा था।

साची:- अरे हां तुम उस दिन कैंटीन में इस बारे में कुछ बात कर रहे थे ना।

अपस्यु:- वो बात ऐसी है कि हम भी आप के ही सहपाठी हैं जी, और हमारा भी विषय साहित्य ही है।

साची:- ओह हो .. तभी हिंदी के ऊपर मुझे इतना लेक्चरर सुनाया जा रहा था।

अपस्यु, गहरी श्वास खींचते.. सुनाने को तो बहुत कुछ चाहता हूं..

कुछ पल के लिए दोनों के बीच की बातें थम गई और दोनों एक दूसरे को देखने लगते हैं। ये खामोशी जैसे अपने आप में ही एक शोर हो। साची अपने नजरें चुरा कर इधर-उधर देखने लगती है।

अपस्यु:- अब कॉलेज में कोई परेशानी तो नहीं।

साची:- नहीं, कोई परेशानी नहीं। थैंक यू सूूूूूूूू मच..... समस्या का समाधान हो गया। और हां मेरी मां ने भी तुम्हे खास तौर ओर धन्यवाद कहने को कहीं है।

अपस्यु:- स्वागत है जी आप का और आंटी को मेरे ओर से प्रणाम कहिएगा।

साची:- ठीक है अब मैं चलती हूं, रात को आऊंगी खाना लेकर।

अपस्यु, हसरत भरी नजरों से देखते बस "ठीक है" कहता है। दोनों की एक बार फिर नजरें मिलती है, कुछ पल की खामोशी और और फिर दोनों के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान। लेकिन इन पलों की शांति को भंग करने के लिए कॉल बेल बजने लगता है।

अपस्यु, अपने स्क्रीन पर एक बार फिर से देखते हुए… "साची मोबाइल वाला आया है, जरा डिलीवरी लेे लोगी क्या"..

साची:- तुमने कैसे ऐसी हालत में उसे जाने दिया..

अपस्यु:- तुम यहीं रुको मैं कुछ दिखता हूं।

अपस्यु ने पास पड़े रिमोट से ओपन का बटन प्रेस किया और दरवाजा खुल गया। कुछ ऐसी सेटिंग थी कि इधर दरवाजा खुला उधर हॉल के उस हिस्से में पर्दा डल जाता, जहां इनके सारे सामान परे हुए थे। वहीं परे माईक से अपस्यु उसे अंदर बुला कर डीलीवरी लेे लेता है।

उसके जाते ही साची, कमाल को व्यक्ति करने वाला अपना चेहरा बनती हुई.. "क्या बात है तुम्हारा फ्लैट तो पूरा डिजीटल ही है"। फिर उसके मोबाइल को ऑन करके अपना नंबर उसमे सेव करती हुई कहती है.. "कोई जरूरत हो तो कॉल कर लेना"… और वहां से चली जाती है।

अपस्यु गहरी सांसें लेता उसके बारे में ही सोचता रहा, कि तभी उसके फोन की घंटी बजने लगी। अपस्यु जैसे ही उठता है दूसरी ओर से… "इस बार अपंग कर के जिंदा छोड़ा है, मेरे पैसे नहीं लौटाए तो जान से जाएगा"..

अपस्यु:- तुम्हे कुछ भी करने की जरूरत नहीं, तुम्हे तुम्हारे 110 करोड़ मिल जाएंगे।

जमील:- 240 करोड़।

अपस्यु:- तेरे बाप ने भी कभी इतने पैसे देखे है क्या। 6 साल की राजनीति और 52 साल की उम्र तक तूने और भूषण ने मिलकर 110 करोड़ अंदर किए और तुझे अब डबल से भी ज्यादा चाहिए। देख ऐसी स्तिथि उत्पन्न मत कर की मैंने जो मन बनाया है उसे मैं बदल लूं।

जमील:- क्या त्रिवेणी शंकर को पता है कि तूने ही उसके बेटे को मारा और जिसे वो ढूंढ़ रहा है वो तू ही है। साला बित्ते भर का होकर सबको नचाए है। अब मेरी बात ध्यान से सुन 150 करोड़ उसके और 110 करोड़ हमारे। कुल 260 करोड़ में से मैं सिर्फ 240 करोड़ मांग रहा। बाकी तू अपने पास रख, साथ में प्रोटेक्सन भी दूंगा और आगे हम दोनों मिलकर धमाल करेंगे।

अपस्यु:- 200 करोड़ में डील फाइनल करते हैं लेकिन मेरी एक शर्त है। जितने कम राजदार उतनी ही सुरक्षा। 100 करोड़ मै तेरे इंटरनैशनल अकाउंट में ट्रांसफर मारता हूं। मुझे जब लगेगा की तुमने मेरा काम कर दिया तो बाकी के 100 करोड़ तुझे कैश मिल जाएंगे। जगह और समय मै दोनों बता दूंगा साथ में आगे के हर काम में 20% की भागीदारी भी। बोल मंजूर है।

जमील:- नहीं, हिस्सेदारी आधा-आधा.. बाकी सभी शर्तों पर सहमति।

अपस्यु:- नहीं 20-80

जमील:- ना तेरी ना मेरी, चल 40 पर दिल लॉक कर।

अपस्यु:- सब्जी का भाव तोल मोल कर रहा है क्या? तुझे मैंने एक तस्वीर भेजी है देख उसे पहले..

जमील ने होम मिनिस्टर के साथ अपस्यु की तस्वीर को देखते हुए… "अबे तू उधर कैसे पहुंच गया"..

अपस्यु:- ध्यान से सुन मेरी बात, मेरे अंदर दम है और मैं कहीं भी पहुंच सकता हूं। ना तो तू उस लेवल का नेता है और ना ही तू उनके जितना मुझे प्रोटेक्सन दे सकता है। मैं बस उसे इतना ही कहूं ना कि हर महीने 20 करोड़ बस मेरे काम पर पर्दे डालने और प्रोटेक्सन के लिए, तो तू सोच ले क्या होगा। अब बोल मंजूर है डील या फिर सब कैंसल करूं।

जमील:- तू देखने में बस बच्चा लगता है लेकिन है हमारा बाप। मुझे सभी शर्तें मंजूर है तू बस पैसे तैयार रख। मैं सारे काम निपटा कर तुझे फोन करता हूं।

अपस्यु:- ठीक है तेरे कॉल का इंतजार रहेगा।

इधर कॉल डिस्कनेक्ट होते ही अपस्यु ने आरव से संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन मजाल है कि कॉल लग जाए। भाई साहब का फोन लगातार 1 घंटे से बीजी बीजी बीजी…
Fantastic update
 

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दीपेश:- "हम दोनों में से कोई भी ये नहीं बता सकता कि हमारे बीच लगाव कैसे हो गया। हमे पता ही नहीं चला कि कब हम करीब आ गए। हमारी पहली मुलाकात तकरीबन 4 साल पहले हुई थी। तब मै एमबीबीएस थर्ड ईयर में था और स्वास्तिका न्यू एडमिशन थी।"

"बिलो एवरेज सी दिखने वाली एक लड़की जो खुद में ही खुश रहती थी। उसपर बहुत ज्यादा किसी का ध्यान नहीं जाता था, लेकिन हमने उसके पूरे बैच को बहुत परेशान किया था। खासकर उसकी दोस्त शाहीन को, पूरे बैच कि टॉप मॉडल थी वो।"

"वैसे हम तो बस सामान्य रैगिंग और शाहीन के लिए हल्के-फुल्के कमेंट पास करते थे। उसी बीच एक दिन फाइनल ईयर के हमारे सीनियर्स ने शाहीन को बुरी तरह छेड़ दिया था। एक्सप्लेन नहीं किया जा सकता, वो कितना बुरा था। शाहीन तो जैसे पूरी तरह से सदमे में चली गई थी और एकमात्र लड़का योगेश बीच बचाव में आया, जिसकी टांगे सीनियर्स ने तोड़ डाली। और उसी शाम की बात की है, एक कहर बरसा था पूरे हॉस्टल में।"

"स्वास्तिका के साथ तुम्हारा भाई आरव भी था। केवल यही 2 लोग थे और हाथ में रॉड लिए पहले हमारे सीनियर के हॉस्टल में घुसे। हर एक कमरे में घुसकर जो ही पिटाई कि उनकी। जो शामिल थे उन्हें उसके कर्मो के लिए पिटाई परी थी और जो नहीं शामिल थे उन्हें चुपचाप खड़े होकर तमशा देखने के लिए।"

"उनकी पिटाई के बाद ये लोग थर्ड ईयर के हॉस्टल में घुसे, फिर वहां एक तरफ से सबको हौकना शुरू किया। आज भी वो मंजर पूरे हॉस्टल को याद है। इनकी बेरहम पिटाई देखकर कई लड़के तो फर्स्ट फ्लोर से कूद गए। तुम्हारी बहन और भाई ने पुलिस स्टेशन में भी खूब पैसे खिला आए थे, इसलिए नहीं कि उन्हें कोई पकड़कर ना ले जाए, बल्कि इसलिए कि जबतक ये दोनों भाई-बहन पिटाई कर रहे हो, तबतक उन्हें कोई परेशान ना करे।"

"3 घंटे तक दोनों का कहर बरसा था। फर्स्ट ईयर, थर्ड ईयर और फाइनल ईयर के हॉस्टल में घुसे थे दोनों। क्या लड़का, क्या लड़की, हर तमाशा देखने वालो को पीटा था। 5 मुख्य लड़के जो इस मामले को अंजाम दिए थे, उन पांचों को पीटने के बाद कैंपस के बीचों बीच टांग कर सख्त वार्निंग देते गए थे.. "कल जबतक पूरा कॉलेज इनका जुलुश ना देख ले, उससे पहले यदि किसी ने इनको उतरा तो उनसे ये दोनों प्रिसनली मिलेंगे।"

"पुलिस आयी इनको लेकर भी गई। सबको लगा था कि इतने बड़े-बड़े लोगों के बच्चों पर हाथ डाला है, दोनों तो अच्छे से लपेट लिए जाएंगे। लेकिन अगले दिन स्वास्तिका फिर से कॉलेज में दिख गई। 400 लोगों पर खौफ बरसा था तुम्हारी बहन और भाई का, केवल मै और मेरा दोस्त निर्मल बच गए थे।"

"कुछ दिन बाद जब मै लौटा और स्वास्तिका के बारे में सुना तब मुझे यकीन नहीं हुआ। यहां से शुरवात हुई थी स्वास्तिका को जानने की मेरी जिज्ञासा। मै अक्सर उसके आसपास मंडराता रहता, लेकिन उसने मुझपर कभी ध्यान नहीं दिया, ऐसा मुझे लगता था।"

"स्वास्तिका पहले ईयर से ही लेडी डॉन के नाम से मशहूर हो गई। साल दर साल निकलते चले गए। जिसे जानने की जिज्ञासा थी, अब उसे देखे बिना दिल नहीं लगता था। मेरा दोस्त निर्मल जो मेरे साथ रहता था, वह अक्सर मुझे कहता भी था कहां उस थकेली के पीछे परा है जबकि एक से बढ़कर एक लड़कियां है कॉलेज में। लेकिन मुझे तो वहीं चेहरा पसंद था, फिर और कभी कोई अच्छी लगी ही नहीं।"

"मज़े की बात जानती हो कुंजल, स्वास्तिका सेकंड ईयर के आखरी में थी, जब हमारा कॉलेज फंक्शन था। तब वो पहली बार बन सवर कर आयी थी। आज से पहले वो अपने चेहरे कर क्या पोत कर आया करती थी पता नहीं, लेकिन जब वो अपने चेहरे से वो पुराने स्वास्तिका के मास्क उतार कर आयी, कॉलेज में उसे कोई पहचान नहीं पाया।"

"लेडी डॉन को कोई भी पहचान नहीं पाया था और ऐसा लग रहा था पूरा कॉलेज ही उसके पीछे पड़ा हुआ है। उस दिन मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। मै योगेश और शाहीन का पीछा कर करके पूरा मायूस हो चुका था, लेकिन स्वास्तिका की एक झलक नहीं मिली।"

"ऑडिटोरियम में भी मै निर्मल के पास चुपचाप ही बैठा रहा। तभी स्वास्तिका वहां पहुंची और अपने ही अंदाज़ में निर्मल को उठकर कहीं और जाने बोली। वो ठीक मेरे पास बैठी थी, और आसपास के लोग नई स्वास्तिका से बात करने में लगे थे और मेरी नजर अपनी स्वास्तिका को पूरे ऑडिटोरियम में ढूंढ रही थी। 2 साल हो गए थे लेकिन मै कभी उससे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था। मैं मायूस और उदास बैठा था तभी मेरे कानो में वो सब्द पड़े… "क्यों डॉक्टर आज थोड़े मायूस दिख रहे, बात क्या है?"

"उसकी आवाज़ जब कानो में पड़ी, मेरे चेहरे पर मुस्कान वापस आ गई, और मुड़कर जब देखा तो होश उड़े थे। आखों की यकीन नहीं हो रहा था, यह वही बीलो एवरेज लड़की है, जिसका मै दीवाना हूं। उसे देखने के बाद एक बार फिर मायूसी आ गई मेरे चेहरे पर, शायद यह बात स्वास्तिका ने भांप लिया और मुझसे कहने लगी…. "क्यों डॉक्टर हिम्मत नहीं जुटा पा रहे क्या परपोज करनें की।"..

"क्या ही बताऊं मेरा क्या हाल था उस वक़्त। कहना तो बहुत कुछ चाहता था उसे, लेकिन मेरे जुबान ने साथ नहीं दिया, लेकिन हाल-ए-दिल उसे सब पता था, और उसके दिल का हाल भी कुछ अपने जैसा ही था। अब तो बस एक ही फीलिंग रहती है, एक बस वो मिल गई अब भगवान से और कुछ नहीं चाहिए।"


कुंजल:- वाउ .. मतलब दोनों के दूसरे को पूरे शिद्दत से चाहते हो। तो बताओ आप कब आ रहे हो मां से शादी की बात करने।


दीपेश:- मै तो कब से तैयार ही हूं, लेकिन तुम्हारी बहन यह कहकर टाल जाती है कि अभी जल्दी क्या है?


कुंजल:- ठीक है आज से हम दोनों एक टीम में, आओ मेरे साथ बाहर..


दीपेश:- लेकिन तुम करने क्या वाली हो…


"आप चलो तो सही, इतना घबरा क्यों रहे हो।"… कुंजल दीपेश का हाथ खींचकर बाहर ले जाने लगी… जैसी ही कुंजल हॉल में पहुंची…. "दीदी ये क्या नाटक लगा रखा है।"..


स्वास्तिका:- कुंजल अंदर से तू जो भी सोचकर आयी है, उसपर हम अकेले में बात करेंगे ठीक है।


कुंजल:- ठीक है दीदी… पक्का ना, बात को टाल तो नहीं दोगी ना।


स्वास्तिका:- हां बाबा पक्का। अब आजा इधर दीपेश से ही केवल मिलेगी क्या, इनसे भी तो मिल लेे थोड़ा, और डॉक्टर साहब थोड़ा सी सफाई देंगे की आपने इन दोनों की एक शाम क्यों बिगड़ दी?


दीपेश:- मुझे लगा तुमने कहीं कोई खतरनाक सरप्राइज प्लान ना की हो, इसलिए बतौर सेफ्टी मै इन दोनों को मनाकर पहले यहां भेज दिया।


स्वास्तिका:- डॉक्टर आज भी तुम और तुम्हारे दोस्त केवल मेरी बहन की वजह से बच गए। ये मेरे पास है, तो लगता है कि क्यों झगड़ा करके मै अपना मूड खराब करू। फिर मै छोटी के पास खराब मूड से पहुंचूं। वरना खैर नहीं थी तुम्हारी..


कुंजल पहली बार स्वास्तिका के माहौल को भी देख रही थी। स्वास्तिका पूरी खुशमिजाज थी, जिसकी झलक वो दिल्ली में तो देख ही चुकी थी, यहां मुंबई में तो उस मिजाज में और भी निखार आ गए थे। खाते-पीते और खट्टे-मीठे नोक झोंक के साथ कब शाम बीती, पता भी नहीं चला।


अगली सुबह फिर से वही सब कुंजल के साथ दोहरा रहा था। एक बार फिर कुंजल वैसे ही छटपटाई और जब दम घुटने लगा तब स्वास्तिका ने कुंजल को छोड़ दिया। आज भी उसके चेहरे पर वहीं गुस्सा था लेकिन श्वांस सामान्य होने के बाद कुंजल ने खुद के गुस्से पर काबू किया और शांति से पूछने लगी… "उपाय बताइए"..


स्वास्तिका:- पहला उपाय यही है। गुस्सा हो, डर हो या घबराहट। कोई भी ऐसी बात जो मन को बेचैन करे पहले अपने दिमाग को नियंत्रित रखो। जान जाने की स्तिथि में सबसे बड़ी जो गलती होती है..…. एक तो श्वांस वैसे ही टूट रही होती है, ऊपर से फालतू की कोशिश शरीर कि बची ऊर्जा भी खत्म कर देती है। इसलिए जब भी जान जाने की स्तिथि लगे, अपने दिमाग को नियंत्रित करके केवल एक छोटा सा हमला करो। ऐसा हमला जो मजबूत से मजबूत शिकारी को भी चौंका दे। मकसद केवल और केवल चौकान होना चाहिए, ताकि छोटी सी कोशिश में काम बन जाए… आओ मेरे साथ कुछ दिखाती हूं…


कुंजल और स्वास्तिका दोनों ट्रेनिंग एरिया में पहुंचे जहां स्वास्तिका ने उसे टेक्नोलॉजी के साथ आर्टिफिशियल नाखून की ऐसी सीरीज दिखाई की उसका दिमाग घूम गया। कुंजल को पहली बार एहसास हो रहा था कि एक नाखून से कितना कुछ किया जा सकता है। सीखने के लिए तो सारा जहां परा है, बस सीखने कि चाह होनी चाहिए और कुंजल के अंदर भी कुछ नया सीखने की जिज्ञासा जाग उठी थी।



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राजस्थान, वीरभद्र का गांव...


ट्रेनिंग का पहला चरण पार्थ ने शुरू कर दिया था। भ्रम जाल फैलाना और सामने होकर भी छिपे रहने की कला को वीरभद्र बारीकी से समझ रहा था। वह एक बेहतरीन स्नाइपर था इसलिए सबसे पहले इसी विषय को उठाया गया कि कोई दूसरा स्नाइपर जब कहीं दूर से निशाना ले रहा हो, तब खुद का बचाव कैसे किया जाए।


भ्रम जाल की इस कड़ी में वीरभद्र के दिमाग की नशें हिल गई। कुछ सुरवाती भौतिक विज्ञान की जानकारी के बाद, जब आइने के प्रयोग वीरभद्र सुना, तो उसे ऐसा लगा जैसे अभी स्नाइपिंग में बहुत कुछ सीखना बाकी है। दूसरे स्नाइपर से बचने की कड़ी में आइने के प्रयोग को समझाने के बाद, पार्थ ने वीरभद्र को एक माइक्रो डिवाइस का प्रयोग भी सिखाया, जिसमे दूसरे स्नाइपर से बचने के लिए "बॉडी टारगेट डेविएशन" प्रोग्राम किया गया था, जहां इस डिवाइस की मदद से किसी के इंसान की वास्तविक स्थिति को वर्चुअली कुछ इंच का हेर-फेर किया जा सकता था।


पहले चरण के सेशन के बाद फिर दोनों फिजिकल एक्सरसाइज और "लौंग एंड शॉर्ट रेंज" टारगेट प्रैक्टिस करने लगे। निम्मी भी दोनों को छिपकर ट्रेनिंग करते देख रही थी और अपने काम कि बातों पर पूरा ध्यान दे रही थी। दिन के खाने के बाद फिर आया निम्मी के इंग्लिश क्लास की बारी।


बेचारा पार्थ डरा सहमा सा उसके सामने बैठा बिना अपने नजरें ऊपर किए उससे मूलभूत चीजें समझा रहा था। इसी क्रम में एक बार पार्थ की नजर जैसे ही ऊपर गई, निम्मी उसे टोकती हुई कहने लगी…. "आखें ही निकाल लूंगी दोबारा अगर नजर ऊपर करने के भी कोशिश किए तो।"


पार्थ:- सॉरी वो मैं नहीं चाहता था, लेकिन गर्दन अकड़ गई थी इसलिए ऊपर करनी पड़ी।


निम्मी:- अकड़ी गर्दन के साथ जिंदा रहा जा सकता है लेकिन गर्दन ही उतार गई फिर क्या करोगे।


बेचारा पार्थ दोबारा कुछ नहीं बोला और अपने काम में वो लग गया। आधे घंटे की क्लास खत्म होने के बाद निम्मी उसे टोकती हुई कहने लगी… "मुझे तुमसे कुछ सीखना है उसके लिए मुझे नियमित समय चाहिए।"


पार्थ:- ठीक है शाम के 4 बजे से शुरू करेंगे… एक दिन के ट्रेनिंग के बाद तय कर लेंगे की आगे का समय कितना लगना है।


निम्मी:- ठीक है, मुझे कार चलानी भी सीखनी है।


पार्थ:- कुछ ज्यादा ही तुम तो उम्मीद लगाए बैठी हो।


निम्मी:- एक ही विकल्प है इसलिए आश्रित होना पड़ता है, वरना घटिया लोग मेरे आसपास भी हो तो मुझे कतई बर्दास्त नहीं होता।


पार्थ:- यह कुछ ज्यादा नहीं हो रहा। तुम्हे नहीं लगता कि तुम कुछ ज्यादा ही बोल रही हो।


निम्मी:- हम्मम ! ये भी सही है, जितनी कम बातें और ज्यादा से ज्यादा काम कि बातें हो, वहीं फायदेमंद है। ठीक है मै कोई निजी बात नहीं करूंगी। कार कब सीखा रहे हो।


पार्थ:- अभी चलो। पहले ड्राइविंग फिर कला..


निम्मी:- ठीक है। तुम गाड़ी निकालो जबतक मै तैयार होकर अाई।


पार्थ गाड़ी निकालने चला गया और निम्मी तैयार होकर उतरी। निम्मी का चिढ़ पार्थ पर देखने को बनता था। पार्थ आगे बैठकर ड्राइविंग कर रहा था और निम्मी पीछे से बैठकर सीख रही थी। लौटते वक़्त जब लगा की निम्मी को खुद से कोशिश करनी चाहिए, फिर वो गांव के पास अपनी कार कुछ दूर ड्राइव करती अपने घर तक लाई।


पार्थ उसके सीखने कि ललक को बहुत ही गहराई से आकलन कर रहा था। ट्रेनिंग एरिया में भी निम्मी बहुत ही सधी और अपने जरूरतों कि चीजें सीखने में ज्यादा रुझान रख रही थी। जिसमे वो चाकू से क्लोज रेंज कॉम्बैट में अपने मूव्स को और कितना इफेक्टिव कर सकती है, उसपर विशेष ध्यान दे रही थी।




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पार्थ और स्वास्तिका, यूं तो वीरभद्र और कुंजल को 3 महीने में अपने दिए लक्ष्य तक सिखाने में उन्हें लगे हुए थे, लेकिन कुंजल और वीरभद्र को सिखाने के क्रम में, वो दोनों भी बहुत कुछ सीख रहे थे। जहां एक ओर पार्थ क्लोज कॉम्बैट में चाकू और खंजर के प्रयोग को अपने अंदर उतार रहा था, वहीं स्वास्तिका कुंजल से वो हाथ की सफाई सीख रही थी, जिससे आज तक सभी घरवाले अनजान थे।


हर दिन के साथ सबकी ट्रेनिंग में ज्यादा ही निखार आ रहा था। कुछ सीखने कि ललक ऐसी थी इन लोगों में कि ये सभी 2 दिन का ट्रेनिंग शेड्यूल एक दिन में पूरा कर रहे थे। वहीं अगर इन सबमें निम्मी की चर्चा हो तो वो 3 दिन का शेड्यूल 1 दिन में कवर कर रही थी, हां बस थोड़े संयम की कमी थी उसमें और जल्द ही किसी बात को लेकर गुस्सा हो जाया करती थी।


एंगेजमेंट को 28 दिन हो चुके थे, इस दौरान हर कोई पाने आज को खुशियों में जीते हुए, कल की तैयारियों में लगे हुए थे। अपस्यु से केवल नंदनी की लगातार बातें हुआ करती थी बाकी सबको शक्त हिदायत थी कि कुछ ज्यादा ही जरूरी हो तो ही संपर्क करने। 2014 की जुलाई भी लगभग अपने समापन के ओर थी और अपस्यु का एक छोटा सा संदेश ऐमी के पास पहुंचा। ऐमी उस संदेश को देखती हुई खुद से ही कहने लगी…. "ना जाने कब से इसका इंतजार था… लव यू.. उम्माह"…
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
मजा आ गया ट्रैनिंग देखकर
 

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Update:- 95..



एंगेजमेंट को 28 दिन हो चुके थे, इस दौरान हर कोई पाने आज को खुशियों में जीते हुए, कल की तैयारियों में लगे हुए थे। अपस्यु से केवल नंदनी की लगातार बातें हुआ करती थी बाकी सबको शक्त हिदायत थी कि कुछ ज्यादा ही जरूरी हो तो ही संपर्क करने। 2014 की जुलाई भी लगभग अपने समापन के ओर थी और अपस्यु का एक छोटा सा संदेश ऐमी के पास पहुंचा। ऐमी उस संदेश को देखती हुई खुद से ही कहने लगी…. "ना जाने कब से इसका इंतजार था… लव यू.. उम्माह"…


अपस्यु लौट आया है इस बात की खबर किसी को नहीं थी सिवाय ऐमी के। दोनों एयरपोर्ट से ही साथ थे…. "तो क्या सब प्लान है मैडम के"


ऐमी:- पहले ठीक से तुम्हे देखने तो दो अपस्यु, जब से यूएसए से लौटी हूं, तुम्हे बहुत मिस कर रही थी।


अपस्यु, ऐमी की बात पर खामोश रहा, और बिना कुछ बोले बस "हम्मम" करके रह गया… "क्या हुआ, अचानक खामोश क्यों हो गए। बात क्या है अपस्यु।"..


अपस्यु:- अंदर गिल्ट फील हो रहा है।


ऐमी, मुस्कुराती हुई…. "इतना नहीं सोचते, निजी ज़िंदगी को अपने काम से दूर रखा करो। और हां स्माइल प्लीज"..


अपस्यु:- जी बिल्कुल। खैर छोड़ो ये सब, मुझे बताओ इस बीच क्या सब हुआ?


ऐमी:- पहला तो राजीव मिश्रा पागल हो गया था, वो सुसाइड मिशन पर निकला था। किसी तरह समझा बुझाकर उसे अपने पोस्ट पर काबिज करवाया। तुम्हे याद है वो झींगुर नील, जिसे तुमने डिस्को में मारा था, बेचारा बहुत डिप्रेस लग रहा था, उसे उसके बाप के मर्डर कि कहानी भी बताई। इसके अलावा बस तुम्हारा इंतजार…


अपस्यु:- मिश्रा तो अपना कर्मा झेलेगा। अच्छा की उसे बचाकर, वरना सस्ते में छूटने कि तैयारी कर रहा था। हां लेकिन वो नील अपने काम आ सकता है। उसपर नजर बनाए रखना।


ऐमी:- येस बॉस। अपस्यु… सुनो तो…


अपस्यु:- हां सुन रहा हूं…


ऐमी:- और कब तक ये ऑफिशयल बातें चलेगी…


दोनों बात करते जबतक तीसरे फ्लैट, कनॉट प्लेस के पास वाले मुक्ता अपार्टमेंट मे पहुंच गए थे। कार पार्क करने के बाद दोनों चल दिए… "बताओ ना अपस्यु, और कितनी देर ऑफिशयल बातें चलेंगी…


अपस्यु उसका हाथ पकड़कर खिंचते हुए अपने बाहों में लेकर गोद में उठाया और उसके होटों को चूमते हुए कहने लगा…. "अब बातें कर सकता हूं ऑफिशली, या अब भी कोई परेशानी होगी।"


ऐमी भी अपस्यु के गले में हाथ डालकर उसके होंठ को चूमती हुई कहने लगी… "हां ऐसे कोई परेशानी नहीं होगी। तुम चाहो तो पूरे दिन कोई भी बातें कर सकते हो।"..


अपस्यु उसे गोद में उठाए ही फ्लैट के अंदर पहुंचा.. "ऐमी, आज रुल ब्रेक कर दे क्या?"


ऐमी मुस्कुरा कर अपस्यु के चेहरे को पढ़ती हुई कहने लगी… "नीचे उतारिए सर, थोड़ी सी छूट क्या दे दी, आप तो नियम भंग करने पर उतर आए"..


अपस्यु ऐमी को नीचे उतारते हुए… "शर्म तो नहीं आयी होगी ना यह कहते हुए"..


ऐमी:- इस मामले की बॉस मै हूं अपस्यु और तुम्हे मेरे फैसले के खिलाफ कुछ भी बोलने का कोई हक नहीं..


अपस्यु, ऐमी की आंखों में झांकते हुए कहने लगा… "बहुत ही शरारत तुम्हे सूझ रही, अभी बताता हूं।"


अपस्यु अपनी बात कहकर ऐमी के ओर झपटा ही था, कि ऐमी पीछे हटती… "अन्ह हां ! ऐसे कैसे… आप अगर 12 साल से ट्रेनिंग कर रहे हैं सर, तो मै भी उतने ही वक़्त से कर रही हूं… जोर जबरदस्ती से काम नहीं बनेगा बाबू।"


अपस्यु:- ऐसी बात है क्या.. मतलब मुझे सिर्फ जोर आजमाइश के लिए मिस किया जा रहा था….


ऐमी, ट्रेनिग एरिया के ओर अपनी कदम बढ़ती अपने ऊपर के ढीले कपड़े निकाल कर ट्रेनिंग के टाईट कपड़ों में आती… "मै तो पहले से तैयार होकर भी आयी हूं। आ जाओ, तुम जोर लगाना और तुम्हे मै, आजमा तो लूंगी ही।"…


अपस्यु भी तेजी से ट्रेनिंग एरिया में अपने कदम बढ़ाते… "एक बार और सोच लो।"..


ऐमी:- मामला बातों से नहीं सुलझने वाला अपस्यु, और ना ही मै तुम्हारी बातों में आने वाली। रुल ब्रेक करना है तो पहले मुझे जितना होगा।


अपस्यु तेजी से ऐमी के ओर दौड़ लगाते हुए… "बदमाश कहीं की, मुझ से ही चालाकी।"..


ऐमी दौड़कर अपने हाथो में रोड उठती…. "कम ऑन बेबी, आई एम् रेडी।"..


अपस्यु भी तेजी से दौड़कर उसके पास पहुंच रहा था… ऐमी बिना कोई परवाह किए अपने हाथो का रॉड चला चुकी थी, और वो जानती थी कि आगे क्या होने वाला है, इसलिए दूसरे हाथ के रॉड को पहले से तैयार रखी थी। उसे यकीन था कि अपस्यु बचने के लिए या तो राइट मूव करेगा या फीर नीचे स्लाइड…


जैसे ही अपस्यु पर हमला हुआ, वो हमले को अपने कंधे पर झेलते हुए, ऐमी का हाथ पकड़ लिया और तेजी के साथ खुद उसके पीछे पहुंचकर, उसका हाथ पीछे की ओर मोड़ते हुए, उसके कानों के नीचे चूमते हुए… "इतना आसान नहीं मुझे प्रिडिक्ट करना बेबी।"


"ऐसी बात है क्या?".. ऐमी मुस्कुराती हुई अपनी बात कही और हवा में जैसे वो 360⁰ का फ्लिप करती थी, ठीक उसी प्रकार से फ्लिप करती वह अपस्यु के सर पर बैठ चुकी थी और अब स्तिथि उल्टी होने वाली थी, क्योंकि ऐमी का हाथ अब सीधा होकर ऊपर अपस्यु के सीने पर था। बिना देर किए ऐमी पीछे के ओर एक और फ्लिप ली, और मजबूरी में अपस्यु को अपना हाथ छोड़ना परा।


अपस्यु क्लैप करते…. "कमाल कर दिया तुमने।"..


ऐमी:- शुरू में ही बोली थी रुल तोड़ने के लिए पहले जितना होगा..


अपस्यु:- हम दोनों जानते है, इस फाइट के बाद हम रूल तोड़ने लायक ही नहीं बचेंगे।


ऐमी:- ओह मेरा बच्चा, मायूस हो गए.. अच्छा एक कोशिश तो कर लो कम से कम…


अपस्यु:- नहीं करनी कोशिश। घर ही चला जाता हूं… उस रात भी मैंने कहा चलो सेलिब्रेट करते है .. सिर्फ मै और तुम, तब भी नखरे और अब भी नखरे। दिखाती रहो नखरे, मै जा रहा हूं। बाद में कहती रहना आज मेरा मूड हो रहा है, फिर बताऊंगा…


ऐमी:- बोल तो ऐसे रहे हो जैसे एंगेजमेंट के अगले दिन मैंने अपनी इक्छा जाहिर की और तुमने मान लिया था। बताओगे क्या, पहले ही बता चुके हो। इसलिए ये भावनात्मक कोशिश की समझ है मुझे की किस मकसद से कहे जा रहे है। अच्छी कोशिश थी लेकिन मै इमोशनल ब्लैकमेल नहीं होने वाली। या तो कोशिश कर लो हराने की या फिर भूल जाओ की इस वक़्त मै किसी भी तरह के मूड से हूं, सिवाय तुम्हे परेशान करने के…


अपस्यु:- मेरा मूड नहीं अभी कोशिश करने की, आ जाओ बहुत परेशान कर ली।


ऐमी "हिही" करती हुई अपस्यु के पास पहुंची और उसे अपने गले से लगाकर भींचती हुई कहने कान में धीमे से कहने लगी… "अभी मेरी बायोलॉजिकल कंडीशन नहीं है, समझे बुद्ध।"… अपस्यु, ऐमी को खुद में और समेटकर उसके गले पर अपने दांत के निशान देते हुए कहने लगा… "सॉरी मुझे याद नहीं रहा।"..


दोनों अलग होकर एक दूसरे को हंसते हुए देखने लगे और होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए एक दूसरे के गले में हाथ डालकर खोते चले गए…. "आह ! तुम नौटंकी बंद करोगे अपस्यु।"…


"जो भी बात करनी है वो किस्स करते हुए करो".. अपस्यु अपनी बात कहते हुए जैसे ही होंठ आगे बढाने लगा, ऐमी बीच मे अपनी उंगली लगाती… "तुम अपने हाथ फिर ऊपर बढ़ाओगे और मुझे उत्तेजित करने की कोशिश करते रहोगे इसलिए नो मोर किस्स। कोई काम, प्लान करके आए हो तो बता दो 5 दिन प्लान पर काम कर लेते है।"..


अपस्यु:- काम तो प्लान किया है, लेकिन अलग-अलग करने का नहीं सोचा था।


ऐमी, अपस्यु की बेबसी पर हंसती हुई… "ओह हो, मतलब आउटसाइड सिटी प्लान करके भी आए थे सर।"..


अपस्यु अपना छोटा सा मुंह बनाते… "अब क्या फायदा 5 दिन तो वैसे ही निकल जाने है। और ये तुम मुंह फाड़ कर हंसना बंद करोगी, कब से मेरी हालत पर हंस रही हो।


ऐमी अपने दोनो कान पकड़ती हुई…. "ठीक है बाबा सॉरी, अब प्लान तो मेरा भी था, पर किया भी क्या जा सकता है।"..


अपस्यु, ऐमी को आंख मारते…. "खूनी भिड़ंत हो तो सकती है।"..


ऐमी:- पागल हो गए हो तुम। अपने अरमानों के पंख पर लगाम लगाओ।


अपस्यु:- हा वो तो करना ही होगा और कोई उपाय भी नहीं है।


ऐमी:- दैट्स माय स्वीटो… चलो अब बताओ कि बाहर के कौन सा प्लान कर आए हो?


अपस्यु:- पूछ तो ऐसे रही हो जैसे तुम्हे पता ही नाह हो।


ऐमी:- फिर भी आज तुम्हे सुनने का अलग ही मज़ा आ रहा है। इस सिचुएशन पर एक शायरी याद आ गई…


अपस्यु सुनने से पहले ही आने वाले व्यंग पर हंसते हुए… "जी इर्शाद"


अर्ज़ किया है…

वाह वाह … वाह वाह..

अर्ज़ किया है..
तेरी मुफ्ल्लासी और बेबसी ये बयान करती है..


वाह वाह… वाह वाह..

अजी अर्ज़ किया है…

तेरी मुफ्ल्लासी और बेबसी ये बयान करती है..

हसरतों की सेज सजी थी और उड़ रहे थे अरमान।

(नीला रंग अपस्यु की आवाज़ और लाल ऐमी की)

अपस्यु:- आगे भी तो बोलो..


ऐमी:- बस यही पूरा है.. आगे के नतीजा जानने के लिए कृपया अपने चहरे को आईने में देख लें..


अपस्यु:- उड़ा लो मज़ाक, इसका बदला तो मै लेकर रहूंगा.. अंदर से बहुत हंसी आ रही होगी ना…


ऐमी:- इसमें भी कोई शक की बात है क्या अपस्यु… एक लंबे वक्त तक मै तरपी थी, ये उसी का फल बीच-बीच में मिलता रहता है तुम्हे।


अपस्यु थोड़ा गंभीर हिते हुए… "हां जनता हूं… शायद मै समझकर भी नहीं समझना चाहता था और तुम सब कुछ समझकर भी बस मेरे वजह से इंतजार में रही। कितना कुछ हमने खोया है ना ऐमी।


ऐमी:- खोया कब था … मैंने जिसे चाहा वो शुरू से मेरे बिल्कुल करीब था। तुम नज़रों से दूर कब हुए… और कुछ चीजें सोचकर या समझकर नहीं होती.. बस हो जाती है और शायद इसलिए कभी उन चीजों को समझ नहीं पाते।


अपस्यु मुसकुराते हुए आगे बढ़ने लगा.. तभी ऐमी उसे आखें दिखती हुई… "फिर शुरू हो गए तुम। चलो अब डिस्टेंस मेंटेन किया जाए और काम निपटाकर आया जाए।"..


अपस्यु:- ठीक है बाबा समझ गया। अच्छा रण सज गया है… तुम्हे कहां जाना है।


ऐमी:- और तुम भी कह दो कि तुम्हे नहीं पाता मै कहां का रण चुनने वाली हूं।


अपस्यु:- सोच लो तुम्हे राजस्थान में सरप्राइज मिलने वाला है। पर्थ को धूल चटाने के चक्कर में इसबार कहीं तुम्हे हार का मुंह ना देखना परे…


ऐमी:- जब पहले से जीत सुनिश्चित हो, वहां क्या मज़ा आएगा? हारे भी तो एक कड़ी चुनौती के बाद, मज़ा तो उसी में है… वैसे मेरा तो 50-50 है, लेकिन मुंबई में तो तुम्हे निश्चित हार मिलने वाली है।


अपस्यु:- 4 बार रण में 2-2 की बराबरी पर है स्वास्तिका और आरव की टीमिंग.. इसलिए यहां भी 50-50 ही है।


ऐमी:- हीहीही… और कुंजल का क्या? तुम्हारे रण में तो ऐसा है की तरजू के दोनो पल्ले बिल्कुल बराबर पर है… एक पत्ते जितने वजन भी नतीजा तय कर देगी…


अपस्यु:- ठीक है फिर देखते हैं ऐमी.. तुम राजस्थान का रण सजाओ और वहां का पुरा आकलन करो। लगभग महीने दिन की ट्रेनिंग दोनो जगह हो ही चुकी है।


ऐमी:- हां लगभग महीना तो बित ही गया है… फिर आज ही निकलते है।


अपस्यु:- नहीं आज नहीं… आज तुम मेरे पास रहो… परसो की सुबह दोनो जगह सरप्राइज देंगे… मेरे ख्याल से तुम्हे आरव को सूचना भी नहीं देना परे.. वो राखी के लिए खुद दोनो बहनों को लेने कल निकल ही जाएगा…


सारी बातें तय करने के बाद दोनो फिर साथ में खाना खाए और एक दूसरे के साथ अपने प्यार को बांटते, मुसकुराते हुए अपनी खट्टी-मीठी बातों से एक दूसरे के चेहरे पर मुस्कान ला रहे थे।


आलम ऐसा था कि दिन से रात बीत चुकी थी, लेकिन अपस्यु और ऐमी की खिलखिलाती हंसी वहां के माहौल में लगातार गूंजती रही। रण सजना इन लोगों के ट्रेनिंग की परीक्षा के जैसा होता था, जिसमें किसी एक दिन एक छोटा सा झंडा ट्रेनिंग एरिया में लगाकर आपसी प्रतिद्वंद का आगाज करते थे।


2 दिन बाद बिल्कुल सुबह-सुबह का वक़्त था। पर्थ वीरभद्र के साथ सुबह-सुबह ट्रेनिंग करता था, और निम्मी वहीं आसपास खड़ी रहकर, अपने काम की चीज सीखने में काफी दिलचस्पी लेती थी।


पार्थ सुबह-सुबह दोनो (वीरभद्र और निम्मी) के साथ जैसे ही ट्रेनिंग एरिया में पहुंचा… ट्रेनिंग एरिया के बिल्कुल मध्य में, नीले और लाल रंग का झंडा देखकर पार्थ कहने लगा…. "तैयार हो जाओ यहां एक फाइट शुरू हो चुकी है, और किसी भी तरह का यदि हमला करना पड़े तो पीछे मत हटना।"
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
ट्रैनिंग कैसी चल रही हैं उसे चेक करने का इनका तरिका भी बहुत ख़तरनाक होगा भाई
 

Sanju@

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Update:-14



इधर कॉल डिस्कनेक्ट होते ही अपस्यु ने आरव से संपर्क करने की कोशिश की। लेकिन मजाल है कि कॉल लग जाए। भाई साहब का फोन लगातार 1 घंटे से बीजी बीजी बीजी…

आरव अपने घर से निकलते ही, कुछ दूर चलते ही, रास्ते में परता हुआ उसके घर को देखते हुए एयरपोर्ट के ओर निकला। टैक्सी में बैठकर आरव लावणी के बारे में सोच कर मुस्कुराया और खुद से ही कहने लगा… "देखता हूं मेरी जानेमन क्या कर रही है".. फिर क्या था मिला दिया कॉल।

2 पूरी घंटी के बाद भी उसने कॉल नहीं उठाया। तीसरी घंटी में वो कॉल उठाती हुई पूछने लगी… "हां जी कौन"… उधर से आरव कहता है.. "जी हम आप के लवर बोल रहे हैं"।.. लवर का नाम सुनते ही वो हड़बड़ा गई, फोन हाथों से छूट कर नीचे गिरते-गिरते बचा। तभी बैकग्राउंड से आवाज़ अाई.. "किसका फोन है लावणी".. लावणी हड़बड़ाती हुई कहने लगी…. "सुषमा का फोन है मां".. और जल्दी से भागकर अपने कमरे में चली गई।

इधर आरव पीछे चल रही कहानी के मज़े ले रहा था… अपने कमरे में पहुंच कर लावणी फुसफुसाती हुई पूछने लगी… "तुम्हे मेरा नंबर कहां से मिला"

आरव:- बड़ा जल्दी समझ गई कि किसने कॉल किया है।

लावणी:- हद होती है किसी भी बात कि। पहले तुम ये बताओ कि मेरा नंबर कहां से मिला।

आरव:- किसी लड़की को लाइन मारने वाले लड़के के पास उसकी पूरी डिटेल होती है। तुम ना समझोगी, अभी बहुत कच्ची हो।

लावणी:- हां इसलिए दारू पीला कर पक्का बना रहे थे। तुम मिलो तो सही फिर बताती हूं।

आरव:- क्या बात है, मतलब काम निकल गया तो अब उल्टा हम ही दोषी हो गए.. क्यों?

लावणी:- तुम्हे तो में जूते से मारूंगी आरव, बस मौका नहीं मिल रहा। तुम्हारे वजह से कितना डर-डर कर जीना पड़ रहा है पता है। मेरी तो सोचते ही रूह कांप जाती है कि अगर इस कांड के बारे में पापा और मम्मी को पता चला तो मेरा क्या होगा।

आरव:- अरे इतना डरती क्यों हो। इस परिस्थिति से निकलने के लिए वहीं डोज बनेगा, 180ml पियो और शान से जियो।

लावणी:- ज्यादा बकवास की ना करो, मैं तुम्हारा मुंह तोड़ दूंगी आरव।

आरव:- इतना ही गुस्सा है तो बताओ कहां आना है निकाल लेना अपनी भड़ास।

लावणी:- ऊफ़ ओ !!! मुझे क्यों परेशान कर रहे हो। कोई काम है तो जल्दी बोलो, मां इधर ही नजर गड़ाए हुए हैं।

आरव:- चल झूठी। अभी तो अपनी मां से झूट बोलकर अपने कमरे में आई हो।

लावणी, चिढ़ती हुई कहने लगी… "देखो यदि मुझे परेशान किया ना तो मुझ से बुरा कोई ना होगा। चुपचाप फोन रख दो"।

आरव:- मुझ से इतनी ही चिढ़ है तो तुम्हारे पास भी लाल बटन है। इतनी बहस काहे कर रही हो। लेकिन… लेकिन… लेकिन … तुमने अगर अभी कॉल काटा तो एक बात याद रखना, जो बात मैं तुम्हे अभी बताने वाला हूं और तुम्हारे छोटे से रिक्वेस्ट पर उसे पूरा भी कर दूंगा। अगर तुमने कॉल डिस्कनेक्ट किया तो उसी काम के लिए तुम्हे पापड़ बेलने होंगे।

लावणी:- हो गई तुम्हारी बकवास खत्म.. बाय..

आरव हंसते हुए फोन को देखने लगा और खुद से ही कहने कहा… "लड़की में बहुत बदलाव अा गया है"। फिर गैलरी खोल कर कुछ तस्वीरें छांट ली। ये उसी दिन की तस्वीरें थी जिस दिन लावणी ने वोदका पिया था, और पीने के बाद आरव के गालों को चुमी थी।

इधर लावणी मोबाइल को हाथ में पकड़े बस इसी बात को सोच रही थी आखिर इसको मेरा नंबर कहां से मिला होगा। तभी एक के बाद एक व्हाट्स एप मैसेज आने शुरू हो गए। लावणी ने जब अपना एप खोला तो सबसे ऊपर में ही आरव के नाम से संदेश आने शुरू थे।… "इसका नंबर तो मेरे मोबाइल में भी सेव है"… फिर मैसेज ओपन की और सामने के स्क्रीन पर आए तस्वीरों को देखकर चौंकती हुई उसने वापस कॉल लगाया… "ये सब तस्वीरे तुम्हारे पास कैसे आए… कब खींची"

आरव:- ये डर भगाव दवा का असर था.. जब ये सरा कांड हो गया।

लावणी:- तुमने मेरे नशे का गलत फायदा उठाया..

आरव:- ओ मैडम जरा गौर से देखो, कौन किसको चूम रहा है। उल्टा जबरदस्ती तुमने मेरे साथ की और मुझे ही सुना रही हो।

मुद्दे पर वाद-विवाद होता रहा। कभी गुस्सा तो कभी मिन्नतें तो कभी ड्रामा ये सब बातों के दौरान चलता रहा। लेकिन आरव अपनी जिद पर अरा रहा… "तस्वीरें तभी डिलीट होंगी, जब वो फिर से होश में एक बार, ऐसे ही उसको चुम्मी देगी".. इसी बीच अपस्यु के कॉल भी उसे आते रहे लेकिन वो नजरअंदाज करता रहा।

लावणी से बात खत्म कर उसने सीधा फिर अपस्यु को कॉल मिलाया। अपस्यु ने अपने और जमील के बीच हुए बातचीत को बताते हुए पूछने लगा कि अब क्या करना चाहिए। आरव ने साफ कह दिया कि किसी के भी बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, योजना के अनुसार चलेंगे। यदि जमील ने काम कर दिया तो अच्छा वरना हम तो तयारी से निकले ही है।

आरव फ्लाइट बोर्ड करने निकल चुका था और इधर अपस्यु को थोड़ी चिंता भी सता रही थी। हालांकि विश्वास तो पूर्ण रूप से था किन्तु दिल नहीं मान रहा था कि आरव सब अकेले कैसे करेगा।

रात के लगभग 8 बजे की बात होगी, जब साची और लावणी उसके फ्लैट की बेल बजा रही थी। दरवाजा खुलते ही दोनों बहने अंदर अाई और फिर दरवाजा बंद। धीमी रौशनी पूरे हॉल में थी जो देखने पर ऐसा लग रहा था मानो लगभग अंधेरा ही है ये पूरी जगह।

साची, अपस्यु के पास बैठते ही सबसे पहले उसने ये अंधेरा कायम रहे की स्थिति के बारे में ही पूछी.. अपस्यु उसके बात पर हंसते हुए पूरे घर में उजाला कर दिया। पूरी रौशनी में जब लावणी ने उस हॉल को देखा तो वो भी साची की तरह ही दंग रह गई और जिज्ञासा वस चारो ओर घूमकर सब देखने लगी… "अपस्यु क्या मैं इन्हे छु कर देख सकती हूं"..

अपस्यु.. अरे वो कांच के नहीं है.. छु कर क्या मन हो तो 2-4 सामान पटक कर भी देखो, टूटेगा नहीं..

अपस्यु, लावणी के ओर मुड़ कर बात कर रहा था और साची अपस्यु को निहार रही थी। बात पूरी होने के बाद जैसे ही अपस्यु मुड़ा, साची अपनी नजरें चुराती हुई, अपने उंगली को बिस्तर पर गोल-गोल घुमती पूछने लगी.. "अभी तबीयत कैसी है तुम्हारी"

अपस्यु:- अभी कुछ घंटे पहले ही तो देखी थी, इतने समय में कितना सुधार होगा।

साची:- हां ये भी है…. (कुछ पल की खामोशी… और नजरों का मिलना और झुकना, फिर नजाकत के साथ कहना)… अब से हम दोस्त।

अपस्यु, साची के चेहरे को गौर से देखते हुए… "ये दिल में कुछ और, और दिखा कुछ और रहे हैं, मुझ से नहीं हो पाएगा"।

साची अपनी नजर चुराती हुई धीमे स्वर में बोली…. "खाना खा लो"

अपस्यु:- अभी भूख नहीं लगी है बाद में खा लूंगा…

साची:- अभी खाने में क्या परेशानी है…

अपस्यु, हंसते हुए:- इतनी जल्दी खाऊंगा तो रात को दोबारा भूख लग जाएगी।

साची:- थोड़ा एक्स्ट्रा खाना लाई हूं, बाद में भूख लगे तो खा लेना।

अपस्यु:- एक्स्ट्रा तो तब समझूंगा ना जब तुम मेरा डाइट जानती हो।

साची, मुस्कुराती हुई… अभी खाना खा लो, तो डाइट भी जान जाऊंगी।

अपस्यु, कुछ सोचते हुए कहने लगा… "नहीं तुम चली जाओ, मैं बाद में खा लूंगा"

साची उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करती हुई कहने लगी… "खा लो मैं यहीं हूं"।

फिर से अपस्यु का यही जवाब आया,"मैं बाद में खा लूंगा"। किंतु इस बार साची उसे आंख दिखाती हुई कहने लगी… "बस कोई बहस नहीं, चुपचाप खाओ"… अपस्यु बेड को हल्का फोल्ड करते हुए टेक लगाया, तबतक साची ने आलू के पराठे थाली में लगा दिए। थोड़ी परेशानी के साथ वो अपना हाथ आगे बढ़ा कर निवाला लेने कि कोशिश करने लगा।

साची को समझ में आ गया कि क्यों अपस्यु उसे जाने के लिए कहा। वो अपनी परेशानी जाहिर नहीं होने देना चाह रहा था। साची उसकी कलाई पकड़ कर निवाला अपने हाथो में ली और अपस्यु के मुंह की ओर बढ़ा दी। दोनों एक दूसरे का चेहरा बड़े प्यार से देख रहे थे, मानो नजरें कुछ कह रही हो । और साची बिना पलकें झपकाए, नजरों से नजरें मिलाए अपस्यु के ओर निवाला बढ़ाए जा रही थी।

खामोशी के कुछ पल थे और दोनों बड़े सुकून से एक दूसरे को देखे जा रहे थे, तभी गले की खराश की आवाज़ ने दोनों का ध्यान भंग किया। दोनों ने जब लावणी को देखा तो हड़बड़ा गए और जो वो कर रही थी उसे देखकर तो साची शर्मा कर भाग ही गई। दरअसल साची जब बिना पलकें झपकाए अपस्यु को निवाला बढ़ा रही थी तब निवाला मुंह के बदले नीचे गिर रहा था। लावणी ने जब ऐसा होते देखा तो वो नीचे थाली लगा कर वहीं बैठ गई।
Awesome update
बहुत ही रोमांटिक पल है आरव और लावणी की लव स्टोरी बहुत ही मस्तीभरी और नोकझोक वाली है वही साची और अपश्यु की लव स्टोरी रोमांचकारी है
 

Zoro x

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पार्थ सुबह-सुबह दोनो (वीरभद्र और निम्मी) के साथ जैसे ही ट्रेनिंग एरिया में पहुंचा… ट्रेनिंग एरिया के बिल्कुल मध्य में, नीले और लाल रंग का झंडा देखकर पार्थ कहने लगा…. "तैयार हो जाओ यहां एक फाइट शुरू हो चुकी है, और किसी भी तरह का यदि हमला करना पड़े तो पीछे मत हटना।"


वीरभद्र:- क्या हुआ पार्थ भाई आप इतने सारे हथियार के साथ खुद को तैयार क्यों कर रहे हो।


पार्थ:- क्योंकि यहां लड़ाई शुरू होने वाली है…


निम्मी, जो चाकू से लड़की छिल रही थी…. "लगता है इसका कोई बाप आया है जिससे पहले मार खा चुका है… तभी इतनी तैयारी के साथ आज उसे हराने कि सोच रहा है।"..


वीरभद्र:- निम्मी तुम्हे तमीज है कि नहीं बात करने की। यहां मै खड़ा हूं और तू ऐसे बात कर रही है।


निम्मी:- मुझे बाद में डांट लेना भैय्या, जाओ पहले अपने उस दुश्मन से भिड़ आओ। इसकी उत्सुकता और बेचैनी देखकर यही समझ में आता है कि ये फिर आज हारेगा…


पार्थ:- देखते है निम्मी, वैसे क्या तुम भी हमारे साथ लड़ोगी…


वीरभद्र:- क्या भाई वो तो अभी बच्ची है। उसे क्यों शामिल कर रहे हो इन सब में…


निम्मी:- कितने लोग आ रहे है वैसे लड़ने…


पार्थ:- कोई फौज थोड़े ना आयी है। सिर्फ एक है लेकिन वो काफी क्षमता वाली है…


निम्मी जोड़ से हंसती हुई…. "एक लड़की का सामना करने के लिए 2 लोग तैयार हो रहे हो जो खुद को प्रोफेशनल मानते है। मै तो बाहर से बैठकर देखूंगी कि ये क्या बला है…


"क्या पार्थ, क्या वीरे… लाली पाउडर के साथ चूड़ियां पहन कर तैयार तो नहीं हो रहे, जो बाहर आने में इतना वक़्त लगा रहे हो।"…


वीरे:- ये तो ऐमी जी की आवाज़ है… वो आयी है क्या?..


वीरभद्र अपने मेहमान के स्वागत के लिए उत्सुकता वाश निकल गया, पीछे से पार्थ माना करता रह गया, लेकिन वीरभद्र उसकी बात काटते हुए कहने लगा…. "घर में मेहमान आया है और आप भी ना पार्थ भाई, लड़ाई के लिए तैयार होने कह रहे।"…


उसे ट्रेनिग एरिया में जाते देख पार्थ भी उसके पीछे दौड़ा, और निम्मी क्या होने वाला है इसकी उत्सुकता में उनके पीछे गई। जैसे ही निम्मी ट्रेनिंग एरिया के सीमा पर पहुंची उसे बिल्कुल मध्य में खड़ी हुई एक लड़की दिखाई दी, जो दोनो हाथ में रॉड ली हुई थी… वीरे जैसे ही उसके पास पहुंचा..


ऐमी:- वीरे अभी मै तुम्हारी मेहमान नहीं हूं, और जब तुम्हे बताया गया है कि यहां लड़ाई शुरू होनी है, फिर ऐसे टहल कर आना… पहली बार है इसलिए छोड़ रही हूं, आगे ऐसी गलती नहीं होनी चाहिए…


जैसे ही वीरे वहां से हटा, ऐमी के चारो ओर छोटे-छोटे धमाके होने लगे, और उन धमाकों के साथ कई सारे कीलें ऐमी के बदन को भेदने के लिए हवा में उड़े। कच्ची खिलाड़ी तो कभी ऐमी थी ही नहीं, वीरभद्र से बातों के दौरान भी वो विश्राम की स्तिथि में नहीं आयी, और अपने चिर परिचित बैंक फ्लिप के साथ वो लगातार 3 फ्लिप लेकर धमाके से दूर तो हुई, लेकिन उतनी ही ज्यादा हैरान भी थी।


उससे अपस्यु की कहीं बात याद आने लगी…. "बेईमान कहीं के हिंट नहीं कर सकता था, अच्छा हो कि आरव और स्वास्तिका उस खडूस की अच्छी धुलाई करे।"…


बचने के क्रम में जब ऐमी अपने डिवाइस को एक्टिव मोड पर ला रही थी तब एक भी डिवाइस एक्टिव नहीं हुई। कुछ दिन पहले ही ऐमी ने अपस्यु के साथ अपने एक डिवाइस हैकिंग सॉफ्टवेर डेवलप कि जानकारी साझा की थी, जिसे अपस्यु पार्थ के साथ साझा कर चुका था।…


"क्या हुआ ऐमी कहीं डर तो नहीं लग रहा ना। बेचारी अब बिना अपने डिवाइस के कैसे रण में टिकेगी।"… पार्थ की आवाज़ आ तो रही थी लेकिन वो कहीं नजर नहीं आ रहा था।…


"मेरी डिवाइस निष्क्रिय करके, अपनी डिवाइस सक्रिय मोड पर डाले तो हो पार्थ लेकिन अभी से नतीजा निकालना… कोई नहीं आज आजमाइश हो ही जाए।"… ऐमी के पास बस अब हथियार के तौर पर केवल वो 2 रॉड ही थे।


ऐमी ट्रेनिग एरिया के बिल्कुल मध्य में खड़ी होकर गहरी श्वांस खींची, अपनी आखें मूंदकर अपस्यु की कुछ बातों को याद करती वो अपनी आखें खोल ली और पार्थ की गूंजती आवाज़ पर ना ध्यान देकर वहां के हवा के रुख को परखने लगी।


ऐमी बिल्कुल सावधान मुद्रा में तभी उसे लगा कि उसके बाएं से कुछ तेजी से उसके ओर बढ़ता आ रहा है। ऐमी पीछे के ओर पुरा झुककर, अपने दोनो हाथ पीछे ले जाती, रॉड को जमीन से लगाकर खुद को सहारा दी। स्नाइपर से गोली चली थी जो शायद वीरभद्र ने चलाया था।


अभी ऐमी इस हमले से संभली भी नहीं थी कि उसपर फिर से छोटे-छोटे बॉम्ब से हमले शुरू हुए। ऐमी हर संभव बचने का प्रयास तो कर रही थी लेकिन हर प्रयास कामयाब हो ऐसा मुमकिन तो नहीं। वहीं ट्रेनिंग एरिया से बाहर खड़ी निम्मी, ऐमी को देखकर इतना हर्षित थी कि वो तो बस जल्दी से सारा खेल खत्म होने के बाद मिलने के लिए बेकरार बैठी थी।


ऐमी को कहीं ना कहीं लगने लगा कि रण में उसकी स्तिथि मात्र खुद को बचाने जैसी हो गई है और दुश्मन छिप कर हमला कर रहे, जिस वजह से वो जवाबी हमले नहीं कर पा रही। कुछ देर खुद को और डिफेंड करने के बाद जब ऐमी को लगा कि यहां उसी की परीक्षा ली जा रही है, तब उसने अंधेरे पर ही दाव लगाना सही समझा और एक के बाद एक वहां स्मोक की पूरी चादर बिछा दी…


"तुम अपस्यु नहीं हो ऐमी, जो अंधेरे में भी देख सकती हो।"… पार्थ अपनी बात कहकर जोर-जोर से हंसने लगा। तभी एक जोर की चींख सुनाई दी जो वीरभद्र की थी। पार्थ के लिए कुछ भी देखना मुश्किल हो रहा था और समझ पाना तो उससे भी ज्यादा कठिन था, क्योंकि वीरभद्र के स्नाइपिंग पोजिशन के पास ऐमी पहुंच कैसे गई।


अभी पार्थ इन सब बातों का अवलोकन कर ही रहा था कि तभी उसके पीठ और कंधे पर दो रॉड परे और वो छटपटाकर इधर-उधर भागने लगा…. "क्यों बेटा मज़ा आया। तू जिस डिवाइस के दम पर अपना भ्रम जाल बनता है, उन सब की मां मै हूं। मुझे ही तू भ्रम जाल में फसा रहा था, मल्टीपल डिवाइस इस्तमाल करके।"


"तो क्या हुआ ऐमी, तुम भी फाइट अपने डिवाइस के दम पर ही जीता करती थी। देखा आज कैसे तुम्हे चौंका दिया।"… पार्थ हंसते हुए अपनी बात कह गया।


ऐमी, पार्थ की इस बेवकूफी पर हंसी और आवाज़ की दिशा तय हो जाने के बाद वो फौरन उस दिशा के ओर बढ़ गई। फिर तो जब एक बार धुएं के भीतर पार्थ फसा उसकी तो बस चीखने की आवाज़ ही आ रही थी। पार्थ जवाबी हमला तो कर रहा था लेकिन धुएं के अंदर पार्थ कहां हमला कर रहा था उसे खुद नहीं पता। पार्थ जब धुएं के कोहरे के बीच मार खा रहा था तब उसे यकीन कर पाना मुश्किल था, कि ऐमी सभी छलावे को भेदकर कोहरे के अंदर से उस तक पहुंच सकती है।


जब वहां का कोहरा हटा, पार्थ बुरी तरह से पीटकर वहीं नीचे जमीन पर बैठा था और वीरभद्र ट्रेनिंग एरिया में किसी बुद्धू की तरह इधर उधर भटक रहा था… "वीरे जी कहां ध्यान है, पीछे भी पलट जाओ।"… और जैसे ही वीरे पीछे पलटा ऐमी दौड़ कर हवा में उछालती अपना वार कर चुकी थी।


निम्मी वहीं नजदीक में ही खड़ी थी। हमला ट्रेनिंग एरिया कि सीमा पर ही हो रहा था। अपने भाई पर रॉड चलते देख, निम्मी अपने पूरे जोर लगाकर दौड़ी और अपने भाई को धकेल कर जैसे ही वो हटाई, वो बिल्कुल ऐमी के निशाने पर आ चुकी थी।


ऐमी अपने हमले के जगह को तेजी के साथ बदलाव करती दोनो रॉड को निम्मी के दाएं बाएं नीचे फ्लोर पर चला दी। ऐमी अपने हाथ निम्मी के ओर बढ़ती… "तुम ठीक तो हो ना।"


निम्मी, ऐमी के हाथ पकड़ कर खड़ी हुई और फुर्ती दिखती उसके गले पर चाकू रखती हुई कहने लगी…. "मुझे वो डंडे पर भी जाते तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, लेकिन तब भी निशाना आपका गला ही होता। यूं समझो की आप हार चुकी हो, क्योंकि मैं गले पर चाकू रखकर बात करने में विश्वास नहीं रखती, बल्कि गले में चाकू उतारकर बात करने में विश्वास रखती हूं।


ऐमी:- क्या बात है, और तुम दोनो को कुछ सीखना चाहिए इस लड़की से।


निम्मी:- लड़की नहीं निम्मी..


ऐमी:- हां निम्मी से… पार्थ तुम्हारे केस में एक ही बात कह सकती हूं, तुम मशीन पर काफी डिपेंड हो। तुम्हारा भ्रम जाल टूटने के बाद, बेबस से हो जाते हो। वाकई तुम्हारा मूव चौंकाने वाला था, लेकिन तुम दोनो में से किसी ने फायदा नहीं लिया। निम्मी को देखो, एक छोटा लूप मिला और बाजी पलट गई।


निम्मी:- क्या आप मुझे सिखाएंगी, क्योंकि पता नहीं ये दोनो सारा दिन क्या करते हैं, लेकिन फिर भी आपका मुकाबला ना कर पाए। मुकाबला तो छोड़ो टक्कर भी कुछ दे देते तो सुकून मिलता।


ऐमी:- निम्मी तुम्हारी समीक्षा गलत है। पार्थ ने जिस काम में मेहनत कि है वो शारीरिक क्षमता या फिर लड़ाई के तरीकों से कहीं बढ़कर है। ये एक जाल बनता है जिसमें बड़े से बड़ा शिकारी भी फंस सकता है। चूंकि मै एक शिकारी हूं और पार्थ को मुझे फसाना था, और इसी बात की ट्रेनिंग वीरे को भी दी जा रही है।


निम्मी:- हां तो वो फंसा भी कहां पाया.. यह काम भी तो ठीक से नहीं हुआ..


ऐमी:- वो इसलिए क्योंकि उसने इतनी जल्दी लड़ाई की उम्मीद नहीं की थी। ये जब अपस्यु को फसा सकता है फिर मै क्या चीज हूं। हां लेकिन अचानक की स्तिथि के लिए भी पार्थ को एक तैयारी करनी चाहिए थी।


निम्मी:- लेकिन ये इतनी सारी तैयारियां क्यो.. आखिर आप लोग मेरे भाई से करवाने क्या वाले है?


ऐमी:- वीरे को बॉडीगार्ड की नौकरी करनी है, और जान बचाना इसका काम है। गोली कब कहां से किसे भेद दे किसे पता, दूसरों के साथ खुद की जान बचाना भी आना चाहिए। उम्मीद है तुम्हे बात समझ में आ गई होगी।


निम्मी:- समझ गई, लेकिन आपको मैंने हराया है, इसलिए मुझे इनाम तो मिलना चाहिए..


ऐमी:- तुम्हारे चेहरे की खुशी मुझे समझ में आ रही है, लेकिन जो तुम चाह रही हो वो नहीं हो पाएगा। मैं तुम्हे ट्रेंड नहीं कर सकती।


निम्मी:- लेकिन क्यों? मुझे भी आपकी तरह बनना है। यहां पर ये दोनों हैं पूछ लीजिए मैंने आज तक किसी से "आप" कहकर बात नहीं किया। मुझे भी आपकी तरह बनना है। प्लीज माना नहीं कीजिए..


ऐमी:- हम्म्म ! निम्मी मै तुम्हे नहीं सीखा सकती लेकिन हफ्ते में 1 दिन मै तुम्हे गाइड जरूर कर सकती हूं। अगर मंजूर हो तो बोलो…


निम्मी:- मुझे मंजूर है।


इसी के साथ ऐमी, वीरभद्र और निम्मी की मेहमाननवाजी स्वीकार करती 1 दिन के लिए वहीं रुक गई। निम्मी किसी पक्की चेली की तरह ऐमी के आगे पीछे कर रही थी। ऐमी उसकी जिज्ञासा देखकर खुद भी हैरान थी कि आखिर इस लड़की को लड़ाई की कला सीखने की इतनी ललक क्यों है।


लगभग 2 पूरे दिन ऐमी के साथ बिताने के बाद अपस्यु भी मुंबई पहुंच गया। अपस्यु से पहले वहां आरव पहुंचा हुआ था जो राखी के लिए अपनी दोनो बहनों को लेने आया था।


सुबह का वक़्त था आज स्वास्तिका ने कुंजल को ट्रेनिंग से छुट्टी दे रखी थी, और तीनों भाई बहन मस्त नींद में थे। तभी फ्लैट के अंदर तेज म्यूज़िक बजने के कारण सबसे पहले स्वास्तिका की नींद खुली और वो आधी जागी, आधी सोयी, की स्थिति में उठकर आयी और म्यूज़िक बंद करके जाने लगी..


जैसे ही वो जाने लगी, फिर से वापस पलटी और अपनी पूरी आंख खोलती वहां रखे झंडे को देखने लगी… केशरी और उजले रंग का छोटा सा झंडा… स्वास्तिका वो झंडा उठाकर आरव के रूम में पहुंची और आरव को जोर-जोर से हिलाकर जगाने लगी… "आरव उठ जा अपस्यु आया हुआ है"


आरव जैसे ही अपस्यु का नाम सुना वो उठकर बैठते हुए…. "साला भूत कहीं का, रण का झंडा लगा गया क्या?"


स्वास्तिका:- हां …


आरव:- साला पागल हो गया है… झंडा ही लगाना था तो दिन में लगा देता। ये सुबह के 4 बजे। छुट्टी के दिन में ही इसे भूत बनकर आना होता है। सुन तू आराम कर मै आता हूं उसे सबक सीखा कर्।


स्वास्तिका:- रुक मै भी चलती हूं, वरना वो चालक बहुत है तुझे फसा लेगा। दोनो साथ रहेंगे तो मिलकर सबक सिखाएंगे..


आरव:- ठीक है चल..


दोनो पहुंचे ट्रेनिंग एरिया में जहां अपस्यु पहले से खड़ा था। सुबह का जगाना आरव को इतना खाला की वो दौड़ गया अपस्यु के ओर। दोनो भाई में घमशान होने लगी। दोनो ही अपने-अपने दाव का प्रदर्शन करते हुए लड़ रहे थे। आरव कुछ ज्यादा ही मार खा रहा था और अपस्यु को बीच-बीच में कभी चोट लग जाय करती थी।


हालांकि आरव खाली हाथ लड़ रहा था और अपस्यु के हाथ में रॉड थी। स्वास्तिका की एंट्री ने फिर अपस्यु के काम को और मुश्किल में डाल दिया। अब उन दोनों के पास भी रॉड थे और अपस्यु पर दोनो ओर से हमले होने लगे।


पलरा अब स्वास्तिका और आरव का भाड़ी पड़ने लगा और अपस्यु बैकफुट पर चला गया था। जहां अपस्यु को 20 रॉड पर रहे थे, वहीं अपस्यु दोनो पर मुश्किल से 2-4 रॉड ही सफलतापूर्वक मार पा रहा था। इन लोगों की लड़ाई में शुरू से ही आरव और स्वास्तिका का पलड़ा भारी रहा है, लेकिन अपस्यु के पास लगातार घंटों तक हमला करते रहना और मार सहने की इतनी अद्भुत क्षमता थी, कि वो रॉड की मार खाकर भी जवाबी हमला करते रहता था।


लड़ाई लगातार चल रही थी और वही हुआ जो अपस्यु शुरू से करता आ रहा था, स्वास्तिका को पहले टारगेट करना। लेकिन आज आरव, अपस्यु को पूरी तरह से झटके देने वाला था। आरव को जब लगा की अपस्यु, स्वास्तिका के चढ़ती श्वांस को देखकर उसपर हमला करेगा, तुरंत ही वो इशारे से स्वास्तिका को अपने पीछे आने कहा…


"क्या बात है, आज तुम दोनो कमाल का प्रदर्शन कर रहे।"… अपस्यु अपने पूरे जोड़ से आरव पर हमले करते कहने लगा…


"भूत कहीं का… देखा जाए तो तू 400 रॉड खाकर हारा ही है… अब साला कोई 1000 रॉड खाकर भी नहीं गिरे और हम कुछ ही रॉड में नीचे गिर जाए, तब तो ये चीटिंग ही हुई ना।"… आरव भी जवाबी हमले करते कहने लगा… लेकिन लगातार मारते-मारते उसकी भी श्वांस चढ़ी हुई थी..


"क्या हुआ स्वास्तिका को अब आगे करके तू पीछे जाएगा क्या श्वांस बटोरने"… अपस्यु हंसते हुए पूछने लगा…


"अरे यार सच ही आरव कहता है कि तू भूत है। घंटे भर से लगातार रॉड चला रहा और हाफ भी नहीं रहा।"… स्वास्तिका झुंझलाकर बोलने लगी…


आरव को लगा कि अपस्यु अभी बातों में लगा है तबतक वो कुछ श्वांस बटोर लेगा, लेकिन अपस्यु को जैसे ही मौका मिला वो फाइनल शॉट लेने के लिए तैयार हो गया। किसी तरह स्वास्तिका को हमला के रास्ते से हटाकर आरव ने वो मूव कंप्लीट नहीं होने दिया। तीनों को लड़ते लड़ते सुबह के 6.30 बज चुके थे, इसी बीच कुंजल भी जाग कर ट्रेनिंग एरिया में पहुंच गई और सबको ऐसे लड़ते देखकर वो सिटी बजती हुई कहने लगी…. "वाह भाई आपने तो दोनो एक साथ संभाल रखा है। जरा जोड़ से मारो क्या आप दोनो को धीमे धीमे मार रहे।"…


स्वास्तिका और आरव, कुंजल को भी अंदर बुलाने की कोशिश की, लेकिन कुंजल दोनो के बात को टालती हुई बाहर ही खड़े रहने में अपनी भलाई समझी। कुछ देर और सबको लड़ते देख कुंजल उबासी लेती कहने लगी… "भैय्या भागकर शादी करना बुरा है या शादी करके भाग जाना।"..


तीनों जो आपस में लड़ रहे थे, एकदम से अपनी लड़ाई रोककर कुंजल को घूरने लगे…. "तीनों मुझे ऐसे लुक क्यों दे रहे हो। मैं तो दीदी के बारे में सोचकर ऐसा कह रही थी।"..


स्वास्तिका जैसे ही कुंजल की बात सुनी वो तेजी से उसके पास निकालने लगी लेकिन तभी पीछे से आरव उसका हाथ पकड़कर रोकते हुए कहने लगा… "अपस्यु देख तो ये छुटकी क्या कहना चाह रही है।"… अपस्यु की पूछने कि भी जरूरत नहीं हुई और कुंजल ने झट से दीपेश और स्वास्तिका के बारे में सब बता दी।… माहौल अब कुछ ऐसा था कि दोनो भाई हॉल में बैठकर स्वास्तिका को उस लड़के को बुलाने के लिए दबाव डालने लगे।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
दोनों ही जगह की फाइट शानदार रहीं भाई
मजा आ गया
 

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स्वास्तिका जैसे ही कुंजल की बात सुनी वो तेजी से उसके पास निकलने लगी लेकिन तभी पीछे से आरव उसका हाथ पकड़कर रोकते हुए कहने लगा… "अपस्यु देख तो ये छुटकी क्या कहना चाह रही है।"… अपस्यु की पूछने कि भी जरूरत नहीं हुई और कुंजल ने झट से दीपेश और स्वास्तिका के बारे में सब बता दी।… माहौल अब कुछ ऐसा था कि दोनो भाई हॉल में बैठकर स्वास्तिका को उस लड़के को बुलाने के लिए दबाव डालने लगे।


स्वास्तिका सब लोगों के बीच बैठकर कुंजल को ही देख रही थी। कुंजल अपने दोनो हाथ अपने कानो पर रखती हुई धीमे से "सॉरी" कहने लगी। स्वास्तिका दोनो भाइयों के बीच फसी बस अपने सर पर हाथ दिए सोच रही थी। उसकी हालत को समझते हुए आरव उसके करीब बैठकर…. "एंगेजमेंट से ठीक एक दिन पहले मुझे किसी ने कहा था, खुशियां और प्यार हमारी कमजोरी नहीं इसलिए मुस्कुराकर खुले दिल से स्वागत करो"..


स्वास्तिका आरव को सुनकर उससे लिपटकर रोटी हुई कहने लगी… "मुझे बहुत डर लग रहा है। मै नहीं समझ पा रही क्यों लेकिन मुझेमे सुसाइड करने की चाहत बढ़ने लगी है। मै बस मारना चाहती हूं।"..

"हेहेहे.. नॉटी, शुहहहहहहहहहहहह… शांत.. शांत… शुहहहहहहहहहहहह…"… स्वास्तिका लगातार रोए जा रही थी। आरव उसे लगातार शांत करते हुए, उसके भी आखें छलक आयी। आरव आश्चर्य से नजर उठाकर अपस्यु को देखने लगा। अपस्यु, स्वास्तिका के पास नीचे उसके पाऊं में बैठा और उसके दोनो हाथ थाम कर कहने लगा…. "मरना तो अंतिम मंज़िल है, हर किसी को वहीं पहुंचना है। तो सवाल यह है कि मरने से पहले हम कितना जीते है।"


स्वास्तिका, नजर उठाकर अपस्यु को देखती हुई उसके हाथ को जोर से थामती…. "मुझे भी जीना है अपस्यु लेकिन किसी का मारना अब बर्दाश्त नहीं होगा। दिल में नजाने डर सा पैदा होने लगा है, मै कमजोर पड़ने लगी हूं। मै बर्दाश्त नहीं कर सकती किसी का मरना।"..


अपस्यु:- तुम खुलकर जीना सीखो, और मै खुलकर मौत को देखता हूं। मेरा वादा है तुम सबसे .. तुम लोग खांसते हुए हॉस्पिटल या घर के बेड पर अपनी मौत मारोगे।


स्वास्तिका:- और तुम..


अपस्यु:- और मै उस वक़्त कई सारे बच्चों के बीच बैठकर, उसे तुम्हारी कहानी सुनाऊंगा… एक थी हमारी नॉटी.. जो ऊपर से शक्त अंदर से नरम। रोमांटिक मूवी देखकर जब कपल मिलते तो मुकुराने वाली, कपल जब बिछड़ते तो फुट-फुट कर रोने वाली। यदि कहीं कपल मर गए तो उसके वियोग में 13 दिन भूखे रहना और उनके श्राद करने के बाद खाना खाने वाली। किसी से इस डर से नहीं मिलना, कहीं वो गुम ना हो जाए उसकी ज़िन्दगी से। अरमान तो बहुत थे लेकिन खुलकर कभी किसी से कह ही नहीं पायी… ये कहानी है हमारी नॉट की, जो पिछले एक महीने से अपनी छोटी बहन के साथ रहने के बाद, यह सोचने पर मजबूर हो गई की क्या वाकई में उसकी बहन की जान खतरे में है… क्या वाकई ऐसी कोई अनहोनी होने वाली है… नहीं अभी प्यार का वक़्त नहीं.. अभी मुझे अपनी बहन को देखना है… क्यों सही कहानी सुना रहा हूं ना बच्चों को…


स्वास्तिका रोती हुई हसने लगी, वहीं कुंजल अपस्यु के पास बैठती हुई अपनें भाई को गले लगाती कहने लगी… "भैय्या, दीदी तो विदाई वाला रोना अभी से रोने लगी। लगता है विदाई के वक्त दिल्ली में बाढ़ ना ला दे।"..


आरव, स्वास्तिका के आशु पोच्छते… "दोबारा अगर सुसाइड कि बात सोची ना तो देख लेना नॉटी, बहुत ही गलत कह गई तुम।"..


अपस्यु:- अरे जहिलों अब अपना फैमिली ड्रामा सब बंद करो। अभी इस नॉटी ने गलत किया ना, अब इसके उस डॉक्टर, कुंजल क्या नाम है रे जीजा का..


कुंजल:- भैय्या डॉक्टर ही है..


स्वास्तिका:- हट पागल, दीपेश नाम है..


अपस्यु:- हां तो अब हम सब जरा परेड लगा दे उसकी…


स्वास्तिका:- अपस्यु प्लीज नहीं। बहुत प्यारा है वो..


आरव:- अच्छा वो प्यारा हो गया और हम सब तो खडूस है। सॉरी हम दोनों इस करेला का नहीं कह रहा मै।


बेचारी स्वास्तिका मना करती रहा गई लेकिन सभी भाई बहन, साथ में स्वास्तिका को लेकर उसके कैंपस निकल गए। रास्ते में कुंजल ने खुली जीप को रुकवाकर उसपर बोल्ड अक्षरों से लिखवा दिया… "द डेविल फैमिली".. और फिर खुली हुई जीप पर सवार सभी भाई बहन अपने हाथ में रॉड लिए मेडिकल कैंपस में घुसे।


स्वास्तिका से पूछताछ के बाद पता चला कि इस वक़्त दीपेश अपने हॉस्टल में ही होगा। पूरी पलटन ही चल दी हॉस्टल के ओर और आग की तरह ये बात तुरंत ही कैंपस में फ़ैल गई की स्वास्तिका अपने भाई के साथ और भी कुछ लोगों को लेकर हॉस्टल के ओर आ रहे है।


देखते ही देखते सबके व्हाट्स ऐप से संदेश फॉरवर्ड होने लगा, लेकिन कुछ लोग इन सब बातों से अनभिज्ञ, अपने होस्टल के रूम में बैठ कर सुबह से ही दारू का मज़ा ले रहे थे, वो भी सिर्फ इस बात को सोचकर की उसकी गर्लफ्रेंड आज कॉलेज नहीं आएगी और वो आज ही रखी के लिए अपने घर जा रही है।


उन अभागों के मित्र बार-बार आकर दरवाजा पिट रहे थे लेकिन उन्हें लग रहा था कोई उसकी दारू में शेयर मांगने आ रहा है, इसलिए दरवाजा क्यों खोलने लगे.. और थोड़ी देर बाद बड़े ही जोड़-जोड़ से दरवाजा पीटने की आवाज़… "चुतियों मर जाओ बाहर दरवाजा पिट-पिट कर आज तो महफ़िल समाप्त होने के बाद ही दरवाजा खुलेगा।"… दीपेश का दोस्त निर्मल चिल्लाते हुए कहने लगा।


जैसे ही महफ़िल की बात स्वास्तिका के कानो में गई वो चिंखती हुई कहने लगी… "अभी के अभी दरवाजा खोलो"… अंदर दोनो ही हड़बड़ा गए। निर्मल तो खिड़की के लगे ग्रिल को उखारकर भागने की फिराक में था और दीपेश अपने ऊपर जल्दी से कपड़ा डालकर दरवाजा खोला… "वो बेबी.. वो ओ ओ ओ ओ".. मुंह से कुछ शब्द निकले ही थे कि सामने आरव और कुंजल को देखकर फाटक से दरवाजा बंद करते हुए…. "निर्मल आज बजने वाली है रे, वो लेडी डॉन की छोटी बहन ने हमारे बारे में अपने भाई को बता दी, वो भी आया है।"..


निर्मल:- मां की आंख साले किसने कहा था इतनी खरनाक गर्लफ्रेंड रखने। तेरे चक्कर में कहीं कैंपस में मेरा झंडा ना फहरा दे आज।


तभी दरवाजे पर एक लात और दरवाजा खुल चुका था। सभी भाई बहन अंदर पहुंचे और स्वास्तिका दोनो को देखकर हैरान होती हुई पूछने लगी… "सुबह से कौन बैठता है पीने के लिए डॉक्टर जरा मुझे समझाओगे। मेरे दोनो भाई तुमसे मिलने आए थे.. और तुमने.."


अपस्यु:- सब शांत हो जाएंगे, तुम दोनो में से वो लड़का कौन है जो स्वास्तिका को चाहता है। आगे आओ..


दीपेश सिर झुकाए एक कदम आकर उसके सामने खड़ा होगा। अपस्यु के कहने पर उसने अपना चेहरा ऊपर किया… "हम्मम ! लड़का दिखता तो हैंडसम है। तुम्हारी डाक्टरी कैसी है डॉक्टर।


दीपेश:- सर हम दोनों (दीपेश और निर्मल) स्वास्तिका के तरह टॉपर तो नहीं लेकिन डिस्टिंक्शन मार्क ले आते है, और अपने विषय पर प्रैक्टिकली अच्छी पकड़ भी है।


अपस्यु:- हमें तुम्हारा प्रोफाइल पसंद आया। आरव सबको लेकर फ्लैट जाओ मैं जरा कुछ और निजी जानकारी इनकी निकलता हूं।


आरव:- बेवड़ा कहीं का ये क्यों नहीं कहते कि इनको टेस्ट करना है कि तुम्हारे साथ बैठक के लायक है कि नहीं।


अपस्यु:- एक बार में नहीं समझ में आती क्या, जाओ मै आता हूं।


स्वास्तिका:- अपस्यु खबरदार जो अपने लिए कोई नया पार्टनर के रूप में दीपेश को देखा तो। दीपेश तुम चलो हमारे साथ। अपस्यु तुम उस निर्मल की निजी जानकारी निकलते रहो आराम से।


"ठीक है गुप्त मतदान करते है। सब अपने अपने चिट लिखेंगे और हम किसी बाहर वाले से वो चिट पढ़ाएंगे। बोलो मंजूर"..


स्वास्तिका और आरव इसके लिए तैयार नहीं थे, लेकिन कुंजल के कहने पर चिट बनाया गया और बाहर के एक लड़के से पढ़ाया गया। मात्र 2 वोट थे "नहीं जाएंगे" बाकी 4 वोट जाने के थे। फिर क्या था अपस्यु दोनों को लेकर निकल गया और स्वास्तिका उसकी इस हरकत से पूरी तरह चिढ़ गई। उसके गुस्से का शिकार बेचारी कुंजल को भी होना पड़ा। वापस लौटकर स्वास्तिका चिढ़ती हुई सबको बैग पैक करने बोली और जो भी फ्लाइट मिली उसे पकड़ कर दिल्ली।


इधर अपस्यु जब दोनो को लेकर निकला, तीनों पैदल चलते हुए बात करते कैंपस के बाहर निकल आए। कुछ ही कदम अपस्यु साथ चला होगा लेकिन केवल दीपेश ही नहीं बल्कि निर्मल के बारे में भी बहुत कुछ पता चल गया। एक बात जो अपस्यु को सबसे ज्यादा अच्छी लगी वो थी दोनो की दोस्ती। दोनो के रिश्ते में गहराई और सच्चाई दोनो नजर आती थी।


पैदल ही तीनों निकले, और कैंपस के बाहर से टैक्सी में तीनों बैठ गए। निर्मल अपस्यु से पूछने लगा कि पहले कहां जाना है। अपस्यु ने टैक्सी वाले को लैंबोर्गिनी के शोरूम ले जाने के लिए बोल दिया। दीपेश और निर्मल को कुछ भी समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है।


अपस्यु वहां पहुंचकर दोनो को एक मस्त कार पसंद करने के लिए बोला। इसपर पहले दीपेश ने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए अपस्यु को बहुत कुछ सुना दिया और उसी के नक्शे कदम पर निर्मल ने भी मेहनत कि कमाई के ऊपर अच्छा खासा भाषण दे दिया। अपस्यु दोनो की बड़े ध्यान से सुनता गया…


"ओ भाई राम मिलाए जोड़ी, कौन से ख्याली पुलाव पका रहे हो। तुम्हे क्या लगा यहां मै 4-5 कारोर की कार तुम्हे दिलवाने लाया हूं। और ये क्या कह रहे थे मेहनत कि कमाई, जब किसी मरीज को आर्थिक रूप से ना मारते हुए अपनी कमाई करोगे तब यह बात कहना, मुझे खुशी होगी। तुम डॉक्टर्स के पास पढ़ाई के वक़्त तो बहुत नैतिकता होती है लेकिन माफ करना 100 में से 90 की नैतिकता हॉस्पिटल में जाते ही उसके पिछवाड़े में घुस जाती है। भूल जाओ की किसी डॉक्टर को मै 5 रुपया का भी कोई गिफ्ट दूं। वो तो हमारी छुटकी को लैंबोर्गिनी बहुत पसंद है तो सोचा दोनो बहन के लिए ले लूं। अब ख्याली पुलाव पकाना बंद करो।"..


निर्मल:- यार अपना तो पुरा बलात्कार कर दिया तेरे साले ने..


दीपेश:- साला ऐसे ही ओवर रिएक्ट करते रहे तो ऐसे ही पोपट होना है।


कार की शॉपिंग के बाद तीनों फिर निकले। दोनो सोचकर तो निकले थे कि आज शायद अपस्यु के साथ बैठक हो, लेकिन अपस्यु ने दोनो को किसी कुली कि तरह खटाया और लगभग 3 घंटे वो दोनो से समान उठवाते रहा। अंत में जब अपस्यु उसे छोड़कर जाने लगा तब दीपेश से अकेले में मिलते हुए कहने लगा… "वैसे तो मुझे नॉटी की चॉइस पर कभी 2 राय नहीं रही लेकिन तुम से मिलने के बाद और भी अच्छा लगा। अपना एड्रेस मैसेज कर देना। जल्द ही मां के साथ आऊंगा तुम्हारे परिवार से मिलने।"..


अपस्यु के जाते ही निर्मल, दीपेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहने लगा… "साला 5 करोड़ की शॉपिंग अपनी बहन के लिए कर गया, हमें एक जूस के लिए नहीं पूछा। बड़ा ही कंजर परिवार है ये।"..


दीपेश:- यार 10 मिनट तक जो मेहनत पर भाषण दिए जाते, लगता है मेरे सले ने सच में दिल पर लगा लिया। हम तो कार के बारे में कह रहे थे.. थोड़े ना कुछ खिलाने-पिलाने के लिए मना किया था।


निर्मल:- साला इनके चक्कर ने 400 रुपए का खंबा भी फेंक दिया..


दीपेश:- चुतीया, पैसे भी नहीं है अब..


इधर अपस्यु भी फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली आ गया और कुंजल के लिए भी पूरी खरीदारी करने के बाद लगभग 7 बजे शाम तक वापस पहुंच गया। अपस्यु को इतनी जल्दी वहां देखकर कुंजल उसके पास दौड़ कर पहुंची और दोनो (आरव और स्वास्तिका) की शिकायत करने लगीं। उसके नेगेटिव वोटिंग के कारन दोनो ने उसे खूब सुनाया था।


अपस्यु मुसकुराते हुए उसके माथे को चूमा…. "चल जल्दी नीचे तुझे कुछ दिखाना है।"


कुंजल:- क्या है भाई, मेरे लिए कोई सरप्राइज है क्या?


अपस्यु:- पहले चल तो सही..


ब्रांड न्यू पैक लंबोर्गिनी को देखकर कुंजल उछलती हुई अपस्यु के गले लगती कहने लगी… "थैंक्स थैंक्स थैंक्स भैय्या.. आप को याद था।"..


अपस्यु:- पागल, भुला ही कब था।


कुंजल:- हां लेकिन दोनो लंबोर्गिनी मेरी। मुझे जिस दिन जो चलाने का मन होगा मै वो चलाऊंगी।


अपस्यु:- ठीक है, हैप्पी ना अब..


कुंजल:- भैय्या सुनो ना..


अपस्यु:- अभी तो खुश थी, इतनी जल्दी मायूस क्यो..


कुंजल:- मै लालची तो नहीं होते जा रही जो ना जाने क्यों इतने बड़े -बड़े और कीमती गिफ्ट देखकर खुश होती हूं जबकि जीने के लिए तो 10000 में भी अच्छे से गुजरा हुआ करता था कभी।


"इधर आ मेरे पास".. कुंजल जैसे ही उसके पास पहुंची, उसके सर पर हाथ फेरने हुए अपस्यु कहने लगा…. "सबके लिए सोचना अच्छी बात होती है, लिए लेकिन हम सबके लिए कुछ नहीं कर सकते। यहां हर किसी को अपने और अपने परिवार के लिए खुद काम करना पड़ता है। रही बात लालच की तो थोड़े बहुत तो दुनिया लालची है लेकिन किसी चीज को पाने की चाहत में दूसरों को रौंद कर उस चाहत को पुरा करना असल लालच होती है।
"फिर वो किसी की फीलिंग को ही रौंदना क्यों ना हो। बस अब खुश हो जा और तुझे यदि ऐसा रहा हो कि जितने पैसे अकेले तुझ पर खर्च हो रहे है उतने में दूसरों के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है तो भगवान वो अवसर तुम्हे जल्द देगा जब तुम बहुत से लोगों को बहुत कुछ करने के लायक हो जाओगी। उस वक़्त खुद को मजबूत करते हुए दोनो हाथों से जितना कर सकती हो करते रहना।"


कुंजल फिर से "थैंक्स भैय्या" बोलकर चाभी हाथ में ले ली और दौड़ते हुए भागी। अंदर जाकर नाचती हुई सबके कमरे में जा जाकर अपनी नए कार के बारे में बताने लगी। ऐसा लग रहा था आज कुंजल का दिन ही खराब चल रहा था। जैसी ही वो खुश होकर नंदनी के कमरे में गई अपनी बात कहने, एक थप्पड़ खा गई, और कार के लिए डांट सुनी सो अलग।


इसी क्रम में सबको पता भी चल गया कि अपस्यु वापस लौट आया है। बाकी सब को तो पता था सिवाय नंदनी के इसलिए नंदनी अपस्यु से मिलने हॉल में चली आयी.. कुछ देर बाद पूरे परिवार की सभा बैठी। बात अभी अपस्यु और उसके शराब के बारे में चलना शुरू ही हुई थी, कि इतने में गुफरान का फोन आया।


घबराया वो कॉल करके बताने लगा कि एक छोटा सा ऐक्सिडेंट हो गया और कुंजल को कुछ लोग घेर लिए है। उनमें से कुछ ने उसपर हाथ भी उठाया.. अपस्यु ने जैसी ही ये बात सुनी, थोड़ा लड़खड़ा गया.. उसे ऐसी हालत में देख सब चौक कर खड़े हो गए..


अपस्यु अपने घबराए चेहरे को तुरंत ही ठीक करते हुए आरव और स्वास्तिका से कहने लगा… "एक दोस्त का ऐक्सिडेंट हुआ है, बहुत ही परेशान वो पहले से है, ऊपर से कुछ लोग और परेशान कर रहे है।"


नंदनी:- बहुत बुरा हुआ.. जल्दी जाओ अपस्यु अपने दोस्त की जल्द से जल्द सहायता करो।


आरव और स्वास्तिका भी कहने लगे.. "हम भी आ रहे है।" अपस्यु ने आरव को गाड़ी निकालने कहा और स्टोर रूम से जाकर अपना एक बैग निकाल लाया जिसमें पुरा हथियार भड़ा हुए था… जैसे ही अपस्यु कार में बैठा दोनो अपस्यु से हड़बड़ी में पूछने लगी… "कुंजल तो ठीक है ना।"..


"वो भले ही ठीक हो लेकिन इस वक़्त मै ठीक नहीं हूं। अगर मेरी बहन की गलती हुई तो उसका मार खाने का गम मै सह लूंगा.. वरना मै युद्ध आवाहन मंत्र शुरू कर चुका हूं। आरव कार को छोटी की जीपीएस लोकेशन पर ले.. जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी।"..
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
ये अपस्यू हर बार किसी ना किसी मंत्र का आवाहन करता हैं लेकिन कोई जादू तो दिखता नहीं हैं भाई
 

Sanju@

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खामोशी के कुछ पल थे और दोनों बड़े सुकून से एक दूसरे को देखे जा रहे थे, तभी गले की खराश की आवाज़ ने दोनों का ध्यान भंग किया। दोनों ने जब लावणी को देखा तो हड़बड़ा गए और जो वो कर रही थी उसे देखकर तो साची शर्मा कर भाग ही गई। दरअसल साची जब बिना पलकें झपकाए अपस्यु को निवाला बढ़ा रही थी तब निवाला मुंह के बदले नीचे गिर रहा था। लावणी ने जब ऐसा होते देखा तो वो नीचे थाली लगा कर वहीं बैठ गई।

एक बार जो साची ने दौड़ लगाई फिर सीधा अपने कमने में जाकर रुकी। पीछे से लावणी भी पहुंची, कई बार उसके कमरे के दरवाजे को खटखटाई, आवाज़ भी दी किंतु साची समझती थी कि उसे लावणी के द्वारा छेड़ा जाना है इसलिए दरवाजे पर आकर सिर्फ इतना ही कही की आज दरवाजा नहीं खुलेगा।

काफी खुश लग रही थी और इसी खुशी को प्रत्यक्ष दर्शाती उसने सबसे पहले तो एक मधुर संगीत बजाया…

पल भर ठहर जाओ, दिल ये संभल जाए
कैसे तुम्हें रोका करूँ,
मेरी तरफ आता हर ग़म फिसल जाए
आँखों में तुम को भरूं, बिन बोले बातें तुमसे करूँ
गर तुम साथ हो, अगर तुम साथ हो..

फिर अपनी दोनों बाहें फैलाए गोल-गोल घुमाती वो बिस्तर पर जा गिरी। दोनों बाहें फैलाए, आखें खुली छत को निहारती, सासें मध्यम-मध्यम और अंदर एक खुशनुमा एहसास जिसमें वो अपस्यु के ख्यालों में डूबी रही। उसे याद करते-करते फिर दिल में मीठी चुभन का वो एहसास…. "उफ्फ !!! कितने प्यारे हो तुम"।

साची अपनी खुशी बांटना चाह रही थी और इसी क्रम में उसने अपना लैपटॉप खोला और एफबी में किसी को खुशी कि ढेर सारी स्माइली पोस्ट करके उसके संदेश वापस आने का इंतजार करने लगी।

तकरीबन 2 मिनट बाद… संदेश वापस आया…

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Crazy boy:- Kya baat hai, itni jyada khushi. Feeling horney kya ???

Unknown girl (Sachi ki fake id name):- nope duffer, I think I am in love ???

Crazy boy:- Oh my god !!! Waise ladke se hi pyar hua na ??

Unknown girl :- ????

Crazy Boy:- ???

Unknown Girl:- ????

Crazy Boy :- Ok Solly to humari unknown madam ko kisi se pyar ho gaya hai

Unknown Girl:- Yassssssssssss Woohooooooo.. ☺️☺️☺️ m very excited crazy boy..

Crazy Boy:- excited ho to X-chat karen kya (X-chat=sex chat)

Unknown Girl:- Huhhh !!! ???

Crazy Boy:- Ab kya hua ???

Unknown Girl:-Tumhare sath Q karun X-chat.

Crazy Boy:- Mere sath hi to karti thi tum X-chat. Bhul gayi kya.... "oh I am feeling horney, chalo kuch dhamal karte hain"

Unknown Girl:- Tab main relationship me nahi thi aur apni fantasy jine ke liye puri azad thi. Lekin ab main relation me hun.

Crazy Boy:- Hmmm !! Samjh gaya. Matlab tum mujhe bye-bye kahne aayi ho.

Unknown Girl:- kya main kewal X-chat hi tumhare sath karne aati thi aur bhi to baten hua karti thi..

Crazy Boy:- Kab ??? Upar ke chat dekh lo tum… jab bhi aayi ho bas itna hi… feeling horney.. feeling horney.. feeling horney… wo main hi to hun jisne har bar tumhare horney feeling ko apne typing ke dum par orgasms me badla hai.

Unknown Girl… Aukkat mat bhulo tum… virtual friend ho virtual friend ki tarah behave karo, jyada close hone ki jaroorat nahi hai.

Crazy Boy:- Anjaan hi sahi par 2 salon se lagatar hum jisse baat karte hain unke sath bounding ho hi jati hai. Sorry mujhe aaena dikhane ke liye. Tum ek raat aati aur 10 raten gayab ho jati, lekin main har raat tumhara jag kar intzar karta. Kewal is khyal se ki kahin main so gaya aur tum aa gayi, to jo ek mauka mila tha itne dino me, wo bhi hath se gaya aur na jane agla mauka kab mile. Thank you so much… Byeeeee..

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इधर उसने बाय कहा और उधर साची अपनी लैपी बंद करती हुई कहने लगी… "हुंह, बड़ा आया"… और फिर आराम से लेट कर, अपस्यु को याद करती, सात रंग के सपनों में खो गई।

जब से सुबह हुई, वो चहकती हुई इधर से उधर कर रही थी। कान बस अपनी मां के उस आवाज़ को सुनने के लिए तरस रहे थे जब अनुपमा उससे कहती की "बेटा उसे भी खाना देकर अा"…

इंतजार के बाद वो वक़्त भी अा ही गया जब अनुपमा उसे टिफिन देती हुई बोली… "जा उसे भी खाना दे अा"… अभी के लिए तो वो अपनी बाहर की उड़ान को अपने दिखावे के चादर तले ढक कर रखी थी, लेकिन जैसे ही वो अपार्टमेंट के लिफ्ट में पहुंची, बाहर से भी उतावली नजर आने लगी।

चहकती हुई वो अपस्यु के फ्लैट के ओर बढ़ रही थी, किंतु दरवाजे के निकट पहुंचने से पहले उसने एक बार फिर अपने अपने ऊपर एक दिखावा का चादर चढ़ाया और अपने हाव भाव को ठीक करती वो बेल बजाने लगी। दरवाजा खुला और साची अंदर।

दरवाजे के पास ही खड़ी होकर उसने एक पूरी नजर अपस्यु को देखा। उसका दिल किया की अभी उसके बगल में लेट कर उसे बाहों में भर लूं, लेकिन खुद के अंदर की झिझक और पहले अपस्यु के पहल के इंतजार ने उसके भावनाओ को बांधे रखा।

लेकिन वो होता है ना.. मन में किसी के लिए प्यार बसा हो या फिर नफरत चेहरे से समझ में आ ही जाती है, ठीक वही हो रहा था साची के साथ। लाख वो खुद के बंधे रखी थी किंतु उसके चेहरे की रौनक आज इतनी अलग थी कि अपस्यु दूर से ही उसे भांप गया।

एक बार फिर नजरों से नजरें मिलनी शुरू हुई लेकिन इस बार अपस्यु ने साची को यह कहकर जाने के लिए बोल दिया कि उसके कॉलेज जाने में देरी हो रही है। साची यूं तो जाना नहीं चाहती थी लेकिन रुक भी नहीं सकती थी। क्या कहती, तुम मुझे पसंद हो और मुझे तुम्हे छोड़ कर जाने का मन नहीं। दुविधा और विरोधाभास के साथ साची केवल ये सोच कर निकल गई की शाम को अाकर अच्छे से मिलूंगी।

साची के जाते ही अपस्यु, आरव से बात करना शुरू कर दिया। मामला ये था कि जब साची पहुंची उससे थोड़े समय पहले ही आरव ने कॉल लगाया था। अभी वो अपस्यु से उसके तबीयत की जानकारी लिया ही था कि साची अा गई जिस वजह से दोनों को बीच में ही बात रोकनी परी।

आरव:- कहे भगा दिया इतनी जल्दी बेचारी को..

अपस्यु:- कुत्ता कहीं का, तुझे जरा भी संस्कार नहीं। क्या तुझे पाया नहीं की, दूसरों की ना तो बातें सुनी जाती है और ना ही वो क्या कर रहे है उसे देखने में कोई रुचि होनी चाहिए। साला मनहूस कहीं का, मेरी खुशियों पर ग्रहण लगाए बैठा है। चुपचाप वहीं रुक और इंतजार कर, मैं किसी को कॉल करूंगा तो वो तुम्हारे पास 120 करोड़ पहुंचा देगा। फिर आगे क्या करना है वो मैं तुम्हे बाद ने बताऊंगा। चल अब फोन रख।

यदि बात करते-करते बातों में अचानक बदलाव अा जाए फिर चाहे बदलवा नफरत भड़ा हो या प्यार भड़ा, ये संकेत होता है कि कुछ गड़बड़ है। फिर उनके अपने डिकोडिंग के तरीके थे, जैसे कि अपस्यु का कहना .. "दूसरों की बातें सुनना और उनको देखने में रुचि दिखाना".. मतलब ये था कि कोई देख भी रहा है और सुन भी रहा है।

और बस संकेत को समझते ही आरव तुरंत ही कॉल डिस्कनेक्ट कर सीधा बाथरूम पहुंच गया और कानों में एयरपो्ट लगाकर अपस्यु को कॉल मिलाया और साथ ही अपना मैसेंजर खोल लिया….

अपस्यु:- 2 लोग तुझे देख और सुन रहे है।

आरव संदेश भेजते हुए… "ठीक है, लोकेशन बता"

अपस्यु:- एक तेरे लेफ्ट विंडो से 22 डिग्री नॉर्थ.. तकरीबन 400 मीटर की दूरी पर, पहाड़ पर बने एक झोपड़ी से नजर दिए है। दूसरा वेस्ट में, तकरीबन 500 मीटर की दूरी पर, एक हॉल्ट स्टेशन की छत से तुझ पर नजर बनाए है। दोनों के
स्नाइपर रायफल वैपन ड्रागुनोव एस वी डी 7.62।

आरव:- ठीक है होलोग्राम इमेज क्रिएट कर, बाकी मैं इनका बंदोबस्त करता हूं।

अपस्यु:- वैसे कौन सा वैपन तुझे वहां डिलीवर हुआ है?

आरव:- SVLK-14S “Twilight” .408 Cheytac और एक Glock 17 Pistol

अपस्यु:- ठीक है तू चकमा देकर बाहर निकल वहां से, लेकिन याद रखना की उस रिजॉर्ट के कुछ लोग उनके खबरी भी हो सकते है। बाकी मै पूरी नजर बनाए हुए हूं।

आरव:- ठीक है भाई, अब तू बस देखता जा…

अपस्यु वहां पर लगातार नजर बनाए हुए था। आरव के कहे अनुसार अपस्यु ने होलोग्राम इमेज क्रिएट कर सब सेट कर चुका था। आरव अपने साथ लाए रिफ्लेक्टर डिवाइस को वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) से कनेक्ट कर दिया। अब आरव का प्रतिबिंब पूरे कमरे में इधर से उधर भटक रहा था। इधर बाथरूम में ही आरव ने अपने हुलिया में थोड़ा बहुत बदलाव किया और रेंगते हुए दरवाजे से बाहर निकला।

आरव सबको चकमा दे कर बाहर आ चुका था। उसने किराए की कार को स्टार्ट किया और बड़े ही सावधानी से ठीक उस शूटर के लोकेशन के पीछे पहुंच गया जो पहाड़ पर बने एक झोपड़ी से उसपर नजर दिए हुए था… आरव अब घूमकर ठीक उसके झोपड़ी के पीछे पहुंच चुका था और फुर्ती दिखाते हुए पीछे से ही झोपड़ी के अंदर प्रवेश किया..

जबतक वो शूटर स्कोप से अपनी नजर हटा कर हरकत में आया, तबतक आरव की पिस्तौल उसके कनपटी पर लग चुकी थी। आरव ने उसे कुछ ना बोलने का इशारा कर, उसके जेब से फोन लिया और उस पर चल रहे कॉल को डिस्कनेक्ट कर दिया।

शूटर:- तुम्हे क्या लगता है उन्हें पता नहीं चला होगा। मैंने कोई आवाज़ नहीं की पर तुम जो ये तोड़ते-फोड़ते अंदर घुसे हो, क्या उसकी आवाज़ उन तक नहीं पहुंची होगी…

तभी सायलेंसर में दबी गोली चलने की आवाज और आरव हंसता हुआ… "जब जान पर बन आती है तो ऐसे ही कहानियां बनने लगते है। जब उनसब का नंबर भी अा ही रहा है, तो मुझे क्यों इस बात की फ़िक्र की उन्हे शक हुआ या नहीं हुआ। उन्हें पता चला या नहीं चला.. ट्रिगर दबाव खेल खल्लास, अब अगले का नंबर आने दो"
Nice अपडेट है ये दोनो तो पक्के खिलाड़ी लग रहे है
 
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तभी सायलेंसर में दबी गोली चलने की आवाज और आरव हंसता हुआ… "जब जान पर बन आती है तो ऐसे ही कहानियां बनने लगते है। जब उनसब का नंबर भी अा ही रहा है, तो मुझे क्यों इस बात की फ़िक्र की उन्हे शक हुआ या नहीं हुआ। उन्हें पता चला या नहीं चला.. ट्रिगर दबाव खेल खल्लास, अब अगले का नंबर आने दो"

"अबे !!! पूरा कान सुन कर दिया। तू चाहता क्या है"… थोड़ा डर और गुस्से के बीच, निकली उस शूटर की आवाज़।

आरव:- आज मेरा मूड बहुत अच्छा है इसलिए तुझे मारने से पहले सोचा तुझ से कुछ बाते कर लूं। वैसे नाम क्या है तुम्हारा और शूटिंग में कौन से झंडे गाड़े है वो बता।

शूटर:- मेरा नाम वीरभद्र सिंह है, उदयपुर से हूं। मैंने शूटिंग में प्रशिक्षण लिया है और ये मेरा पहला काम था। लेकिन मैं अभी ये सोच कर परेशान हूं की तू वहां भी है और यहां भी, ये कैसे संभव हुआ।

आरव अपना पिस्तौल पीछे कमर में खोंसकर उसेके सिर पर एक हाथ मारते बोला… "अभी मैं बात करना चाह रहा हूं ना, तो मेरे बातों का बस जवाब दे। गोली मार दी हुई होती, तो साले सस्पेंस में ही मर जाता"

मौका अच्छा था, वीरभद्र ने जैसे ही देखा पिस्तौल उसने पीछे रख लिया, फुर्ती दिखाते उसने अपनी पिस्तौल निकाल ली और सर पर तानने की नाकाम कोशिश। जैसे ही वो अपना हाथ घुमाकर आगे के ओर लाया, आरव ट्रिगर में फंसे उंगली को हल्का ऊपर की ओर मोड़ दिया, दूसरे हाथ से एक धारदार खंजर उसके गले पर रखकर…

"अभी मैं अपना हाथ का दवाब थोड़ा और बढ़ा दूं, तो एक तरफ तेरी ट्रिगर दबाने वाली उंगली ऐसे टूट जाएगी की फिर तू नकारा हो जाएगा। और कहीं ये वाले हाथ का दवाब बढ़ा दिया तो तेरे आगे स्वर्गवासी का टाइटल लग जाएगा। जल्दी बता कौन सा ऑप्शन तुझे पसंद आया"

वीरभद्र:- इनमें से कोई नहीं। बात करते हैं ना।

आरव उसके हाथ से पिस्तौल लेकर इतने तेजी के साथ पिस्तौल के एक-एक पुर्जे को अलग किया कि वीरभद्र अपनी आंखें चौड़ी कर बस देखता ही रह गया। उसने अपने दोनो हाथ जोड़ कर उसे नमन करते हुए पूछा… "देखने में लड़के जितने और अंदर ऐसी क्षमता। आज से आप मेरे गुरु और मैं आप का चेला, प्रभु।

आरव:- अब जाकर तूने कुछ ऐसा कहा जो मेरे कानो को पसंद आया है। अब जरा जल्दी-जल्दी में बक की तुझे यहां किसने भेजा और तुझे कौन सा काम सौंपा गया था?

वीरभद्र:- मुझे और मेरे साथ एक और शूटर, जिसे मैं जानता नहीं, उसे विधायक भूषण जी ने भेजा है। मेरा काम बस आप के कमरे में नजर बनाए रखना था और पल-पल की खबर विधायक जी को देनी थी।

आरव:- पल-पल की खबर.. अबे ये बता तू पल-पल की खबर के लिए ये फोन लाइन हमेशा चालू रखेगा, तो तेरी फोन कि बैट्री ना डिस्चार्ज होगी। और क्या वो इतना फुर्सत में है कि पूरा दिन तुझे सुनता रहेगा।

वीरभद्र अपना फोन बाहर निकाला और साथ में बैग खोलकर बैट्री चार्ज करने की व्यवस्था दिखाते हुए कहने लगा.. "भाई 5 पॉवरबैंक अपने साथ लाया हूं और उधर विधायक चाचा थोड़े ना कान लगा कर सुन रहे हैं। वहां एक लड़का है जो हमेशा हमे सुनता रहता है। कोई इमरजेंसी वाली बात हो तो वो विधायक चाचा से बता देता है"।

आरव:- वह !! शाबाश !! क्या उम्दा टेक्नोलॉजी है। वैसे ये विधायक, चाचा कब से हो गए रे।

वीरभद्र:- वो मेरे दूर के रिश्तेदार हैं और उन्होंने ही मेरे प्रशिक्षण का पूरा खर्चा उठाया था।

आरव:- मदर*** हरामि.. मतलब तुझे शूटर बनाया उसने और कुछ पढ़ाई लिखाई भी करवाई है या नहीं।

वीरभद्र:- अरे पढ़ाई लिखाई करके क्या करेंगे गुरुदेव। अंत में तो पैसे ही कमाने है, और देखो, इस काम के लिए उन्होंने मुझे 1 लाख रुपए भी दिए है।

आरव:- हम पंछी एक ही वृक्ष के है बस डाल अलग-अलग। अच्छा सुन तुझे कभी ये नहीं लगा कि तू अपने ज़िन्दगी में कुछ अच्छा भी कर सकता था।

वीरभद्र:- मै इससे भी अच्छा क्या करता?

आरव:- साले पूरा गोबर ही हो। अबे 1 लाख के लिए यहां अा गया और मैंने तुझे गोली मार दी होती तो क्या वो 1 लाख अपने छाती पर लाद कर ले जाता। तुझे इतनी भी समझ नहीं की वो तुझे मारने के लिए यहां भेजा है।

वीरभद्र:- अपने को काम चाहिए बस, इतना नहीं सोचता। आपने धोका दिया वरना मेरे निशाने पर तो पहले आप ही थे। अब बताओ की कौन मरता और कौन मारता।

आरव:- बस बहुत हुआ.. तुझ से बात करूंगा तो मेरा भेजा फ्राई हो जाएगा। ये बता मेरे लिए काम करेगा।

वीरभद्र:- आप मुझे गद्दारी करने के लिए कह रहे है।

आरव:- मैंने गोली चलाई और तू मर गया यानी तेरी पिछली जिंदगी भी उसी के साथ मर गई। अब मैंने तुझे जिंदगी बक्शी तो इस हिसाब से तू किसका वफादार हुआ।

वीरभद्र:- हां ये तो मैंने सोचा ही नहीं। बिल्कुल गुरुदेव अब से मेरी वफादारी आपकी, जबतक की मैं मर ना जाऊं।

आरव:- फ़िक्र मत कर तुझे हम मरने नहीं देंगे। अच्छा ये बता तूने अबतक कोई मज़े किए हैं कि ना किए।

वीरभद्र:- कैसे मज़े..

आरव:- अरे वही छोड़े, लड़कियों के साथ मज़े..

वीरभद्र शर्माते हुए… जी नहीं गुरुदेव अब तक तो मैंने किसी को छुआ तक नहीं

आरव:- पहले तो तू ये गुरुदेव बुलाना बंद कर, मेरा नाम आरव है। और हां आज रात तू तैयार रहना..

वीरभद्र:- किसलिए गुरुदेव.. अरे माफ़ करना. किसलिए आरव.. किसी को मारना है क्या…

आरव:- नहीं रे भोले.. तुझे मज़े के लिए तैयार रहने कह रहा हूं। फिलहाल चल जरा उस दूसरे शूटर से भी हाय-हेल्लो कर आते हैं।

वहां से निकलने से पहले आरव ने वीरभद्र से कॉल लगवाया और बहाने बनवाते हुए कहलवा दिया कि, "बिल्कुल सुदूर इलाका है नेटवर्क आते जाते रहता है, अपने लोकेशन पर हूं और मेरे ठीक सामने टारगेट है"। फिर वहां से निकलकर वो लोग चढ़े उस हल्ट स्टेशन की छत पर।

ये वाला शूटर थोड़ा अनुभवी और ढिट भी था। तकरीबन 22 हत्याएं कर चुका था और जमील का खास पंटर था। आरव ने उसे 10 करोड़ के डील पर सेट किया और 5 करोड़ एडवांस में दे दिए। चूंकि इस शूटर पर यकीन नहीं किया जा सकता था इसलिए आरव ने चुपके से उसके गन में एक छोटा सा जीपीएस यंत्र और साथ में एक माइक्रोफोन चिपकाकर वीरभद्र के साथ वापस लौट आया।

रिजॉर्ट लौटकर वीरभद्र कुछ सोचते हुए आरव से कुछ पूछने कि कोशिश करता है लेकिन आरव उसे चुप रहने का इशारा कर अपने साथ लाए कुछ यंत्र बैग से निकालने लगा। बिल्कुल छोटे और मक्खी के अाकर का माइक्रो डिवाइस जो देखते ही देखते उड़ कर वहां से गायब हो गई और थोड़े देर बाद तकरीबन 50 से ऊपर वैसी ही मक्खियां वापस लौट आई जिसे आरव ने एक छोटे से बॉक्स में पैक करके चार्ज होने के लिए छोड़ दिया।

ये वही डिवाइस थे जो अपस्यु के वीपीएन से कनेक्ट था और पूरे चप्पे चप्पे पर वो इसी से नजर बनाए हुए था। आरव डिस्चार्ज हुए डिवाइस को चार्ज में लगा चुका था और उसकी जगह बैकअप डिवाइस छोड़ चुका था।

आरव:- हां भाई वीरे अब बताइए क्या पूछ रहे थे।

वीरभद्र:- भाई यही सब पूछने कि कोशिश कर रहा था कि आप कर क्या रहे हो।

आरव:- कुछ नहीं बस मक्खियां उड़ाने का शौक है वहीं पूरा कर रहा था। चल अब जरा तफरी कर आया जाए। और हां साथ में वो दूसरा बैग भी लेे लेना।

वीरभद्र:- इसमें क्या है आरव..

आरव:- कुछ और छोटे बड़े कीड़े, इन्हे जरा बाहर इनकी सही जगह छोड़ आऊं।

आरव वीरभद्र के साथ निकाल गया। इधर अपस्यु भी थोड़ा निश्चिंत मेहसूस करते हुए अपने बदन की जांच करके देखने लगा। पसलियां जुड़ना शुरू हो चुकी थी। हाथ की हड्डी भी लगभग जुड़ने को अाई थी। दिक्कत बस पाऊं की हड्डियों में था, शायद पाऊं की हड्डी जुड़ने में अभी कुछ दिन और लगने वाले थे।

लगभग सुबह के 11 बजे होंगे जब सभी न्यूज चैनल के ब्रेकिंग न्यूज में एक ही समाचार अा रहा था… "नागपुर के पूर्व सांसद और केंद्रीय मंत्री त्रिवेणी शंकर का हार्ट अटैक से निधन, पूरे देश में सोक कि लहर"… अपस्यु इस खबर को देख कर मुस्कुराया… "वह रे पैसा तू कुछ भी करवा सकता है".. अपस्यु इस खबर पर मुस्कुरा ही रहा था कि तभी उसके फोन की घंटी बजने लगी… "मुझे उम्मीद ही थी इसकी"

अपस्यु, अपना कॉल उठाते… "जी सर मैंने खबर देख लिया, लेकिन अभी तक वन डाउन ही हुआ है, दूसरे की खबर कब सुना रहे"…

जमील:- दूसरा कोई राह चलता आदमी नहीं है, उदयपुर का सीटिंग एमएलए और राजस्थान का शिक्षा मंत्री है, थोड़ा वक़्त चाहिए होगा इसके लिए।

अपस्यु:- चलो ठीक है दिया वक़्त, लेकिन ये तो बताओ कि उस पूर्व केंद्रीय मंत्री को उड़ाया कैसे।

जमील:- देख छोटे ये धंधे के राज तो मैं अपनी बीवी को नहीं बताता इसलिए इसका जवाब मै नहीं दे सकता। बस तू काम होने से मतलब रख। जो जिस हैसियत का है, उसकी मौत उतने ही सन्नाटे में, बिना किसी शक के होगा।

अपस्यु:- चलो नहीं पूछता मैं धंधे कि बात लेकिन जल्दी से बचा काम कर दो और अपने पैसे लेकर जाओ।

जमील:- देख अब हम पार्टनर हो गए हैं तो एक दूसरे पर भरोसा करते आना चाहिए इसलिए मैं चाहता हूं कि तू वो बाकी के पैसे मुझे देदे।

अपस्यु:- हाम्म, ठीक है कुछ वक़्त दो मै इसपर सोच कर बताता हूं।

अपस्यु उससे बात ख़त्म कर जोर जोर हंसने लगा और फिर पूरी ताकत झोंक दी अपनी आवाज़ में….

व्यापार में फसे या गलत कारोबार में फसे
जहां घिरे वहीं फसे, फसे तो बस फंसते रहे
हर मोड़- मोड़, हर डगर- डगर

भंवर है ये भंवर- भंवर....​
Fantastic update
वीरभद्र ने बता दिया है कि मंत्री इसके साथ डबल गेम खेल रहा है एक का काम तो जमील ने कर दिया है देखते हैं अब आरव क्या करने वाला है और क्या ये वीरभद्र कोई खेल तो नही खेल रहा है
 
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