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Erotica मजा पहली होली का ससुराल में

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Thanks so much, sequel me saath baanaye rkahiye
Bilkul, update ka intezaar hai waha bhi😅
 
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Bilkul, update ka intezaar hai waha bhi😅
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Ye dil maange more
 
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मजा पहली होली का, ससुराल में

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मुझे त्योहारों में बहुत मज़ा आता है, खास तौर से होली में.


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पर कुछ चीजें त्योहारों में गड़बड़ है. जैसे, मेरे मायके में मेरी मम्मी और उनसे भी बढ़ के छोटी बहनें कह रही थीं

कि मैं अपनी पहली होली मायके में मनाऊँ. वैसे मेरी बहनों की असली दिलचस्पी तो अपने जीजा जी के साथ होली खेलने में थी.





परन्तु मेरे ससुराल के लोग कह रहे थे कि बहु की पहली होली ससुराल में हीं होनी चाहिये.

मैं बड़ी दुविधा में थी. पर त्योहारों में गड़बड़ से कई बार परेशानियां सुलझ भी जाती हैं. इस बार होली २ दिन पड़ी.
मेरी ससुराल में 17 मार्च को और मायके में 18 को.

मायके में जबर्दस्त होली होती है और वो भी दो दिन. तय हुआ कि मेरे घर से कोई आ के मुझे होली वाले दिन ले जाए और ‘ये’ होली वाले दिन सुबह पहुँच जायेंगे. मेरे मायके में तो मेरी दो छोटी बहनों नीता और रीतू के सिवाय कोई था नहीं.

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मम्मी ने फिर ये प्लान बनाया कि मेरा ममेरा भाई, चुन्नू, जो 11वीं में पढ़ता था, वही होली के एक दिन पहले आ के ले जायेगा.

"चुन्नू कि चुन्नी..." मेरी ननद गीता ने छेड़ा.

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वैसे बात उसकी सही थी. वह बहुत कोमल, खूब गोरा, लड़कियों की तरह शर्मीला, बस यों समझ लीजिए कि जबसे वो क्लास ८ में पहुँचा, लड़के उसके पीछे पड़े रहते थे.

यूं कहिये कि ‘नमकीन’ और हाईस्कूल में उसकी टाइटिल थी, “है शुक्र कि तू है लड़का..”, पर मैंने भी गीता को जवाब दिया,


“अरे आएगा तो खोल के देख लेना क्या है, अंदर हिम्मत हो तो...”

“हाँ, पता चल जायेगा कि... नुन्नी है या लंड”



मेरी जेठानी ने मेरा साथ दिया.

“अरे भाभी उसका तो मूंगफली जैसा होगा... उससे क्या होगा हमारा?”

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मेरी बड़ी ननद ने चिढ़ाया.

“अरे मूंगफली है या केला.. ये तो पकड़ोगी तो पता चलेगा. पर मुझे अच्छी तरह मालूम है कि तुम लोगों ने मुझे ले जाने के लिये उसे बुलाने की शर्त इसीलिये रखी है कि तुम लोग उससे मज़ा लेना चाहती हो.”

हँस के मैं बोली.

“भाभी उससे मज़ा तो लोग लेना चाहते है, पर हम या कोई और ये तो होली में हीं पता चलेगा, आपको अब तक तो पता चल हीं गया होगा कि यहाँ के लोग पिछवाड़े के कितने शौक़ीन होते है?”

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मेरी बड़ी ननद रानू जो शादी-शुदा थी, खूब मुँह फट्ट थी और खुल के मजाक करती थी.

बात उसकी सही थी.

मैं फ्लैश बैक में चली गई.

सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.
Suruaat to acchi hai komalrani.......
 

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सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.



मुझे अब तक याद है, उस दिन मैंने सलवार-सूट पहन रखा था, जो थोड़ा टाईट था और मेरे मम्मे और नितम्ब खूब उभर के दिख रहे थे. रानू ने मेरे चूतड़ों पे चिकोटी काट के चिढ़ाया,


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“भाभी लगता है आपके पिछवाड़े में काफी खुजली मच रही है. आज आपकी गांड़ बचने वाली नहीं है, अगर आपको इस ड्रेस में भैया ने देख लिया...”


“अरे तो डरती हूँ क्या तुम्हारे भैया से? जब से आई हूँ लगातार तो चालू रहते है, बाकी और कुछ तो अब बचा नहीं......

ये भी कब तक बचेगी?”


चूतड़ मटका के मैंने जवाब दिया.

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और तब तक ‘वो’ भी आ गए. उन्होंने एक हाथ से खूब कस के मेरे चूतड़ को दबोच लिया
और उनकी एक उंगली मेरे कसी सलवार में, गांड़ के क्रैक में घुस गई.

उनसे बचने के लिये मैं रजाई में घुस गई अपनी सास के बगल में.....

‘उनकी’ बगल में मेरी जेठानी और छोटी ननद बैठी थी. वह भी रजाई में मेरी बगल में घुस के बैठ गए

और अपना एक हाथ मेरे कंधे पे रख दिया.

छेड़-छाड़ सिर्फ कोई ‘उनकी’ जागीर तो थी नहीं. सासू के बगल में मैं थोड़ा सेफ भी महसूस कर रही थी
और रजाई के अंदर हाथ भी थोड़ा बोल्ड हो जाता है.

मैंने पजामे के ऊपर हाथ रखा तो उनका खूंटा पूरी तरह खड़ा था. मैंने शरारत से उसे हल्के से दबा दिया और उनकी ओर मुस्कुरा के देखा.


बेचारे.... चाह के भी..... अब मैंने और बोल्ड हो के हाथ उनके पजामे में डाल के सुपाड़े को खोल दिया. पूरी तरह फूला और गरम था. उसे सहलाते-सहलाते मैंने अपने लंबे नाख़ून से उनके पी-होलको छेड़ दिया.

जोश में आ के उन्होंने मेरे मम्मे कस के दबा दिए.


उनके चेहरे से उत्तेजना साफ़ दिख रही थी. वह उठ के बगल के कमरे में चले गए जो मेरी छोटी ननद का रीडिंग रूम था. बड़ी मुश्किल से मेरी ननद और जेठानी ने अपनी मुस्कान दबायी.

“जाइये-जाइये भाभी, अभी आपका बुलावा आ रहा होगा.”


शैतानी से मेरी छोटी ननद बोली.

हम दोनों का दिन-दहाड़े का ये काम तो सुहागरात के अगले दिन से हीं चालू हो गया था.

पहली बार तो मेरी जेठानी जबरदस्ती मुझे कमरे में दिन में कर आई और उसके बाद से तो मेरी ननदें और यहाँ तक की सासू जी भी.......बड़ा खुला मामला था मेरी ससुराल में......

एक बार तो मुझसे ज़रा सी देर हो गई तो मेरी सासू बोली,

“बहु, जाओ ना... बेचारा इंतज़ार कर रहा होगा...”

“ज़रा पानी ले आना...” तुरन्त हीं ‘उनकी’ आवाज सुनाई दी.

“जाओ, प्यासे की प्यास बुझाओ...”

मेरी जेठानी ने छेड़ा.

कमरे में पँहुचते हीं मैंने दरवाजा बंद कर दिया.

उनको छेड़ते हुए, दरवाजा बंद करते समय, मैंने उनको दिखा के सलवार से छलकते अपने भारी चूतड़ मटका दिए.

फिर क्या था.? पीछे आके उन्होंने मुझे कस के पकड़ लिया और दोनों हाथों से कस-कस के मेरे मम्मे दबाने लगे.

और ‘उनका’ पूरी तरह उत्तेजित हथियार भी मेरी गांड़ के दरार पे कस के रगड़ रहा था. लग रहा था, सलवार फाड़ के घुस जायेगा.


मैंने चारों ओर नज़र दौडाई. कमरे में कुर्सी-मेज़ के अलावा कुछ भी नहीं था. कोई गद्दा भी नहीं कि जमीन पे लेट के.


मैं अपने घुटनों के बल पे बैठ गई और उनके पजामे का नाड़ा खोल दिया. फनफ़ना कर उनका लंड बाहर आ गया.

सुपाड़ा अभी भी खुला था, पहाड़ी आलू की तरह बड़ा और लाल.

मैंने पहले तो उसे चूमा और फिर बिना हाथ लगाये अपने गुलाबी होठों के बीच ले चूसना शुरू कर दिया.

धीरे-धीरे मैं लॉलीपॉप की तरह उसे चूस रही थी और कुछ हीं देर में मेरी जीभ उनके पी-होल को छेड़ रही थी.


उन्होंने कस के मेरे सिर को पकड़ लिया. अब मेरा एक मेहन्दी लगा हाथ उनके लंड के बेस को पकड़ के हल्के से दबा रहा था और दूसरा उनके अंडकोष (Balls) को पकड़ के सहला और दबा रहा था. जोश में आके मेरा सिर पकड़ के वह अपना मोटा लंड अंदर-बाहर कर रहे थे.

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उनका आधे से ज्यादा लंड अब मेरे मुँह में था. सुपाड़ा हलक पे धक्के मार रहा था. जब मेरी जीभ उनके मोटे कड़े लंड को सहलाती और मेरे गुलाबी होठों को रगड़ते, घिसते वो अंदर जाता.... खूब मज़ा आ रहा था मुझे. मैं खूब कस-कस के चूस रही थी, चाट रही थी.



उस कमरे में मुझे चुदाई का कोई रास्ता तो दिख नहीं रहा था. इसलिए मैंने सोचा कि मुख-मैथुन कर के हीं काम चला लूं.




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पर उनका इरादा कुछ और हीं था.

“कुर्सी पकड़ के झुक जाओ...” वो बोले..




मैं झुक
Ooo ohhh ek dam mast ab gayi teri...........
 
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पिछवाड़े का मजा





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पर उनका इरादा कुछ और हीं था.



























“कुर्सी पकड़ के झुक जाओ...” वो बोले..


मैं झुक गई.

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पीछे से आके उन्होंने सलवार का नाड़ा खोल के उसे घुटनों के नीचे सरका दिया और कुर्ते को ऊपर उठा के ब्रा खोल दी.


अब मेरे मम्मे आजाद थे. मैं सलवार से बाहर निकलना चाहती थी,

पर उन्होंने मना कर दिया कि ऐसे झट से कपड़े फिर से पहन सकते हैं, अगर कोई बुला ले.....


इस आसन में मुझे वो पहले भी चोद चुके थे पर सलवार पैर में फँसी होने के कारण मैं टाँगे ठीक से फैला नहीं पा रही थी और मेरी चूत और कसी कसी हो रही थी.

एक हाथ से वो मेरा जोबन मसल रहे थे और दूसरे से उन्होंने मेरी चूत में उँगली करनी शुरू कर दी.

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चूत तो मेरी पहले हीं गीली हो रही थी, थोड़ी देर में हीं वो पानी-पानी हो गई. उन्होंने अपनी उँगली से मेरी चूत को फैलाया और सुपाड़ा वहाँ सेंटर कर दिया.

फिर जो मेरी पतली कमर को पकड़ के उन्होंने कस के एक करारा धक्का मारा तो मेरी चूत को रगड़ता, पूरा सुपाड़ा अंदर चला गया.



दर्द से मैं तिलमिला उठी. पर जब वो चूत के अंदर घिसता तो मज़ा भी बहुत आ रहा था.

दो चार धक्के ऐसे मारने के बाद उन्होंने मेरी चूचियों को कस-कस के रगड़ते, मसलते चुदाई शुरू कर दी.

जल्द हीं मैं भी मस्ती में आ कभी अपनी चूत से उनके मोटे हलब्बी लंड पे सिकोड़ देती,
कभी अपनी गांड़ मटका के उनके धक्के का जवाब देती. साथ-साथ कभी वो मेरी क्लिट, कभी निप्पल्स पिंच करते और मैं मस्ती में गिनगिना उठती.

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तभी उन्होंने अपनी वो उँगली, जो मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रही थी और मेरी चूत के रस से अच्छी तरह गीली थी, को मेरी गांड़ के छेद पे लगाया और कस के दबा के उसकी टिप अंदर घुसा दी.

“हे...अंदर नहीं......उँगली निकाल लो.....प्लीज़...”



मैं मना करते बोली.

पर वो कहाँ सुनने वाले थे. धीरे-धीरे उन्होंने पूरी उँगली अंदर कर दी.

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अब उन्होंने चुदाई भी फुल स्पीड में शुरू कर दी थी. उनका बित्ते भर लंबा मूसल पूरा बाहर आता और एक झटके में उसे वो पूरा अंदर पेल देते. कभी मेरी चूत के अंदर उसे गोल-गोल घुमाते. मेरी सिसकियाँ कस-कस के निकल रही थी.

उँगली भी लंड के साथ मेरी गांड़ में अंदर-बाहर हो रही थी.

लंड जब बुर से बाहर निकलता तो वो उसे टिप तक बाहर निकालते और फिर उँगली लंड के साथ हीं पूरी तरह अंदर घुस जाती.

पर उस धक्का पेल चुदाई में मैं गांड़ में उँगली भूल हीं चुकी थी.

जब उन्होंने गांड़ से गप्प से उँगली बाहर निकाली तो मुझे पता चला. सामने मेरी ननद की टेबल पर फेयर एंड लवली ट्यूब रखी थी.

उन्होंने उसे उठा के उसका नोज़ल सीधे मेरी गांड़ में घुसा दिया और थोड़ी सी क्रीम दबा के अंदर घुसा दी.

और जब तक मैं कुछ समझती उन्होंने अबकी दो उंगलियां मेरी गांड़ में घुसा दी.

दर्द से मैं चीख उठी. पर अबकी बिन रुके पूरी ताकत से उन्होंने उसे अंदर घुसा के हीं दम लिया.

“हे...निकालो ना.... क्या करते हो.? उधर नहीं...प्लीज़....चूत चाहे जित्ती बार चोद लो... ओह...”



मैं चीखी.

लेकिन थोड़ी देर में चुदाई उन्होंने इत्ती तेज कर दी कि मेरी हालत खराब हो गई. और खास तौर से जब वो मेरी क्लिट मसलते...,

मैं जल्द हीं झड़ने के कगार पर पहुँच गई तो उन्होंने चुदाई रोक दी.

मैं भूल हीं चुकी थी कि जिस रफ़्तार से लंड मेरी बुर में अंदर-बाहर हो रहा था,

उसी तरह मेरी गांड़ में उँगली अंदर-बाहर हो रही थी.

लंड तो रुका हुआ था पर गांड़ में उँगली अभी भी अंदर-बाहर हो रही थी. एक मीठा-मीठा दर्द हो रहा था पर एक नए किस्म का मज़ा भी मिल रहा था. उन्होंने कुछ देर बाद फिर चुदाई चालू कर दी.

दो-तीन बार वो मुझे झड़ने के कगार पे ले जाके रोक देते पर गांड़ में दोनों उँगली करते रहते और अब मैं भी गांड़, उँगली के धक्के के साथ आगे-पीछे कर रही थी.

और जब कुछ देर बाद उँगली निकाली तो क्रीम के ट्यूब का नोज़ल लगा के पूरी की पूरी ट्यूब मेरी गांड़ में खाली कर दी. अपने लंड में भी क्रीम लगा के उसे मेरी गांड़ के छेद पे लगा दिया और अपने दोनों ताकतवर हाथों से मेरे चूतड़ को पकड़, कस के मेरी गांड़ का छेद फैला दिया.

उनका मोटा सुपाड़ा मेरी गांड़ के दुबदुबाते छेद से सटा था. और जब तक मैं संभलती, उन्होंने मेरी पतली कमर पकड़ के कस के पूरी ताकत से तीन-चार धक्के लगाए....


उईईई.....”



मैं दर्द से बड़े जोर से चिल्लाई.


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मैंने अपने होंठ कस के काट लिये पर लग रहा था मैं दर्द से बेहोश हो जाऊँगी.

बिना रुके उन्होंने फिर कस के दो-तीन धक्के लगाये और मैं दर्द से बिलबिलाते हुए फिर चीखने लगी.

मैंने अपनी गांड़ सिकोड़ने की कोशिश की और गांड़ पटकने लगी पर तब तक उनका सुपाड़ा पूरी तरह मेरी गांड़ में घुस चुका था

और गांड़ के छल्ले ने उसे कस के पकड़ रखा था.



मैं खूब अपने चूतड़ हिला और पटक रही थी पर जल्द हीं मैंने समझ लिया कि वो अब मेरी गांड़ से निकलने वाला नहीं.

और उन्होंने भी अब कमर छोड़ मेरी चूचियाँ पकड़ ली थी और उसे कस कस के मसल रहे थे.

दर्द के मारे मेरी हालत खराब थी. पर थोड़ी देर में चूचियों के दर्द के आगे गांड़ का दर्द मैं भूल गई.


अब बिना लंड को और ढकेले, अब वो प्यार से कभी मेरी चूत सहलाते, कभी क्लिट को छेड़ते.

थोड़ी देर में मस्ती से मेरी हालत खराब हो गई. अब उन्होंने अपनी दो उंगलियां मेरी चूत में डाल दी
और कस-कस के लंड की तरह उसे चोदने लगे.

जब मैं झड़ने के कगार पे आ जाती तो वो रुक जाते. मैं तड़प रही थी.


मैंने उनसे कहा,

“प्लीज मुझे झड़ने दो...”


तो वो बोले,

“तुम मुझे अपनी ये मस्त गांड़ मार लेने दो.”

मैं अब पागल हो रही थी.
मैं बोली,

“हाँ राजा चाहे गांड़ मार लो, पर...”


वो मुस्कुरा के बोले,


“जोर से बोल....”


और मैं खूब कस के बोली,

“मेरे राजा, मार लो मेरी गांड़, चाहे आज फट जाये... पर मुझे झाड़ दो...”

और उन्होंने मेरी चूत के भीतर अपनी उँगली इस तरह से रगड़ी जैसे मेरे जी-प्वाइंट को छेड़ दिया हो और मैं पागल हो गई.


मेरी चूत कस-कस के काँप रही थी और मैं झड़ रही थी, रस छोड़ रही थी.


और मौके का फायदा उठा के उन्होंने मेरी चूचियाँ पकड़े-पकड़े कस-कस के धक्के लगाये

और पूरा लंड मेरी कोरी गांड़ में घुसेड़ दिया.

दर्द के मारे मेरी गांड़ फटी जा रही थी. कुछ देर रुक के उनका लंड पूरा बाहर आके मेरी गांड़ मार रहा था.


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आधे घन्टे से भी ज्यादा गांड़ मारने के बाद हीं वो झड़े. और उनकी उंगलियां मेरा चूत मंथन कर रही थी

और मैं भी साथ-साथ झड़ी.

उनका वीर्य मेरी गांड़ के अंदर से निकल के मेरे चूतड़ों पे आ रहा था.

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उन्होंने अपने लंड निकाला भी नहीं था कि मेरी ननद की आवाज़ आई,



भाभी, आपका फोन.”
Nice update komal........
 
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छुटकी.

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अरे तो इसमें क्या? कल होली भी है और रिश्ता भी.”

बोतल अब उनके पास थी. मुझे भी कोई ऐतराज नहीं था. मेरा कोई सगा देवर था नही, फिर नंदोई जी भी बहुत रसीले थे.


“तेरे तो मज़े हैं यार....कल यहाँ होली और परसों ससुराल में...किस उम्र की है तेरी सालियाँ?”

नंदोई जी अब पूरे रंग में थे.

‘इन्होंने’ बोला

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“बड़ी वाली दसवें में पढ़ती है है और दूसरी थोड़ी छोटी है...(मेरी छोटी ननद का नाम ले के बोले) ...उसके बराबर होगी.”


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“अरे तब तो चोदने लायक वो भी हो गई है.” हँस के नंदोई जी बोले.

“अरे उससे भी 4-5 महीने छोटी है...छुटकी.”

मेरा भाई जल्दी से बोला.

अबतक ‘इन्होंने’ और नंदोई ने मिल के उसे ८-१० घूंट पिला हीं दिया था. वो भी अब शर्म-लिहाज खो चुका था.

“अरे हाँ...साले साहब से हीं पूछिये ना उनकी बहनों का हाल. इनसे अच्छा कौन बताएगा?” ‘ये’ बोले.

“बोल साल्ले... बड़ी वाली की चूचियाँ कितनी बड़ी हैं?”

वो...वो उमर में मुझसे एक साल बड़ी है और उसकी...उसकी अच्छी है....थोड़ी..दीदी के इतनी तो नहीं... दीदी से थोड़ी छोटी....”

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हाथ के इशारे से उसने बताया.

मैं शर्मा गई...लेकिन अच्छा भी लगा सुन के कि मेरा ममेरा भाई मेरे उभारों पे नज़र रखता है.

“अरे तब तो बड़ा मज़ा आयेगा तुझे उसके जोबन दबा-दबा के रंग लगाने में...”


नंदोई ‘इनसे’ बोले और फिर मेरे भाई से पूछा,

“और छुटकी की?”

“वो उसकी...उसकी अभी...”

नंदोई बेताब हो रहे थे. वो बोले,

“अरे साफ-साफ बता, उसकी चूचियाँ अभी आयी हैं कि नहीं?”







“आयीं तो है बस अभी..... लेकिन उभर रही हैं... छोटी है बहुत....”

वो बेचारा बोला.

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“अरे उसी में तो असली मज़ा है...चूचियाँ उठान में...मींजने में, पकड़ के पेलने में... चूतड़ कैसे हैं?”

“चूतड़ तो दोनों सालियों के बड़े सेक्सी हैं... बड़ी के उभरे-उभरे और छुटकी के कमसिन लौण्डों जैसे... मैंने पहले तय कर लिया है कि होली में अगर दोनों साल्लियों की कच-कचा के गांड़ ना मारी.”

“हे तुम जब होली से लौट के आओगे तो अपनी एक साली को साथ ले आना...उसी छुटकी को...फिर यहाँ तो रंग पंचमी को और जबरदस्त होली होती है. उसमें जम के होली खेलेंगे साल्ली के साथ.”

आधी से ज्यादा बोतल खाली हो गई थी और दोनों नशे के सुरूर में थे. थोड़ा बहुत मेरे भाई को भी चढ़ चुकी थी.


“एकदम जीजा... ये अच्छा आइडिया दिया आपने. बड़ी वाली का तो बोर्ड का इम्तिहान है, लेकिन छुटकी तो अभी 9वीं में है. पंद्रह दिन के लिये ले आयेंगे उसको.”

“अभी वो छोटी है.”

वो फिर जैसे किसी रिकार्ड की सुई अटक गई हो बोला.

“अरे क्या छोटी-छोटी लगा रखी है? उस कच्ची कली की कसी फुद्दी को पूरा भोंसड़ा बना के पंद्रह दिन बाद भेजेंगे यहाँ से, चाहे तो तुम फ्रॉक उठा के खुद देख लेना.”



बोतल मेज पे रखते ‘ये’ बोले.

“और क्या... जो अभी शर्मा रही होगी ना...जब जायेगी तो मुँह से फूल की जगह गालियाँ झड़ेंगी, रंडी को भी मात कर देगी वो साल्ली....”



नंदोई बोले.

मैं समझ गई कि अब ज्यादा चढ़ गई है दोनों को, फिर उन लोगों की बातें सुन के मेरा भी मन करने लगा था. मैं अंदर गई और बोली, “चलिए खाने के लिये देर हो रही है!”

नंदोई उसके गाल पे हाथ फेर के बोले,


“अरे इतना मस्त भोजन तो हमार पास हीं है.”

वो तीनों खाना खा रहे थे लेकिन खाने के साथ-साथ... ननदों ने जम के मेरे भाई को गालियां सुनाई, खास कर छोटी ननद ने.

मैंने भी नंदोई को नहीं बख्शा और खाना परसने के साथ में जान-बूझ के उनके सामने आँचल ढुलका देती...कभी कस के झुक के दोनों जोबन लो कट चोली से... नंदोई की हालत खराब थी.




जब मैं हाथ धुलाने के लिये उन्हें ले गई तब मेरे चूतड़ कुछ ज्यादा हीं मटक रहे थे, मैं आगे-आगे और वो मेरे पीछे-पीछे... मुझे पता थी उनकी हालत. और जब वो झुके तो मैंने उनकी मांग में चुटकी से गुलाल सिंदूर की तरह डाल दिया और बोली,


“सदा सुहागन रहो, बुरा ना मानो होली है.”


उन्होंने मुझे कस के भींच लिया. उनके हाथ सीधे मेरे आँचल के ऊपर से मेरे गदराए जोबन पे और उनका पजामा सीधे मेरे पीछे दरारों के बीच... मैं समझ गई कि उनका ‘खूंटा’ भी उनके साले से कम नहीं है.

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मैं किसी तरह छुड़ाते हुए बोली,


“समझ गई मैं, जाइये ननद जी इंतज़ार कर रही होंगी. चलिए कल होली के दिन देख लूंगी आपकी ताकत भी, चाहे जैसे जितनी बार डालियेगा, पीछे नहीं भागूंगी.”

जब मैं किचेन में गई तो वहाँ मेरी ननद कड़ाही की कालिख निकाल रही थी और दूसरे हाथ में बिंदी और टिकुली थी.
मैंने पूछा तो बोली,

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“आपके भाई के श्रृंगार के लिये, लेकिन भाभी... उसे बताइयेगा नहीं! ये मेरे-उसके बीच की बात है.”


हँस के मैं बोली,

“एकदम नहीं, लेकिन अगर कहीं पलट के उसने डाल दिया तो... ननद रानी बुरा मत मानना!”

वो हँस के बोली,


“अरे भाभी, साल्ले की बात का क्या बुरा मानना? एकदम नहीं.. और फिर होली तो है हीं डालने-डलवाने का त्योहार. लेकिन आप भी समझ जाइये ये भी गाँव की होली है, वो भी हमारे गाँव की होली..यहाँ कोई भी ‘चीज़’ छोड़ी नहीं जाती होली में.”

उसकी बात पे मैं सोचती, मुस्कुराती कमरे में गई तो ‘ये’ तैयार बैठे थे.

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जल्दी से मैंने सलवार चढाई, कुरता सीधा किया और बाहर निकली. दर्द से चला भी नहीं जा रहा था.

किसी तरह सासू जी के बगल में पलंग पे बैठ के बात की.

मेरी छोटी ननद ने छेड़ा,


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“क्यों भाभी, बहुत दर्द हो रहा है.?”



मैंने उसे खा जाने वाली नज़रों से देखा.

सासू बोली,

“बहु, लेट जाओ...”

लेटते हीं जैसे मेरे चूतड़ गद्दे पे लगे फिर दर्द शुरू गया हो. उन्होंने समझाया,


“करवट हो के लेट जाओ, मेरी ओर मुँह कर के...”


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और मेरी जेठानी से बोलीं,


“तेरा देवर बहुत बदमाश है, मैं फूल-सी बहु इसीलिए थोड़ी ले आई थी...”


“अरी माँ, अपनी बहु को दोष नहीं देती, मेरी प्यारी भाभी है हीं इत्ती प्यारी और फिर ये भी तो मटका-मटका कर.”

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उनकी बात काट के मेरी छोटी ननद बोली.


“लेकिन इस दर्द का एक हीं इलाज है, थोड़ा और दर्द हो तो कुछ देर के बाद आदत पड़ जाती है.”

मेरा सिर प्यार से सहलाते हुए मेरी सासू जी धीरे से मेरे कान में बोलीं.


“लेकिन भाभी भैया को क्यों दोष दें? आपने हीं तो उनसे कहा था मारने के लिये... खुजली तो आपको हीं हो रही थी.”


सब लोग मुस्कुराने लगे और मैं भी अपनी गांड़ में हो रही टीस के बावजूद मुस्कुरा उठी.

सुहागरात के दिन से हीं मुझे पता चल गया था कि यहाँ सब कुछ काफी खुला हुआ है.

तब तक वो आके मेरे बगल में रजाई में घुस गए. सलवार तो मैंने ऐसे हीं चढा ली थी.

इसलिए आसानी से उसे उन्होंने मेरे घुटने तक सरका दी और मेरे चूतड़ सहलाने लगे.

मेरी जेठानी उनसे मुस्कुराकर छेड़ते हुए बोली,

“देवर जी, आप मेरी देवरानी को बहोत तंग करते हैं, और तुम्हारी सजा ये है कि आज रात तक अब तुम्हारे पास ये दुबारा नहीं जायेगी.”

मेरी सासू जी ने उनका साथ दिया. जैसे उसके जवाब में उन्होंने मेरे गांड़ के बीच में छेड़ती उँगली को पूरी ताकत से एक हीं झटके में मेरी गांड़ में पेल दिया.

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गांड़ के अंदर उनका वीर्य लोशन की तरह काम कर रहा था.

फिर भी मेरी चीख निकल गई. मुस्कराहट दबाती हुई सासू जी किसी काम का बहाना बना बाहर निकल गईं.

लेकिन मेरी ननद कहाँ चुप रहने वाली थी.

वो बोली,

“भाभी, क्या किसी चींटे ने काट लिया...?”

“अरे नहीं लगता है, चींटा अंदर घुस गया है...”


छोटी वाली बोली.

“अरे मीठी चीज होगी तो चींटा लगेगा हीं. भाभी आप हीं ठीक से ढँक कर नहीं रखती?”

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बड़ी वाली ने फिर छेड़ा.

तब तक उन्होंने रजाई के अंदर मेरा कुरता भी पूरी तरह से ऊपर उठा के मेरी चूचि दबानी शुरू कर दी थी

और उनकी उँगली मेरी गांड़ में गोल-गोल घूम रही थी.

“अरे चलो, बेचारी को आराम करने दो, तुम लोगों को चींटे से कटवाउंगी तो पता चलेगा.”


ये कह के मेरी जेठानी दोनों ननदों को हांक के बाहर ले गईं. लेकिन वो भी कम नहीं थी.

ननदों को बाहर करके वो आईं और सरसों के तेल की शीशी रखती बोलीं,

“ये लगाओ, एंटी-सेप्टिक भी है.”


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तब तक उनका हथियार खुल के मेरी गांड़ के बीच धक्का मार रहा था. निकल कर बाहर से उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.

फिर क्या था.?

उन्होंने मुझे पेट के बल लिटा दिया और पेट के नीचे दो तकिया लगा के मेरे चूतड़ ऊपर उठा दिए.

सरसों का तेल अपने लंड पे लगा के सीधे शीशी से हीं उन्होंने मेरी गांड़ के अंदर डाल दिया.


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वो एक बार झड़ हीं चुके थे इसलिए आप सोच हीं सकते हैं इस बार पूरा एक घंटा गांड़ मारने के बाद हीं वो झड़े



और जब मेरी जेठानी शाम की चाय ले आईं तो भी उनका मोटा लंड मेरी गांड़ में हीं घुसा था.
Nice update
 

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मेरी छोटी ननद और मेरा छोटा भाई

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अब तक आपने पढ़ा


जल्दी से मैंने सलवार चढाई, कुरता सीधा किया और बाहर निकली. दर्द से चला भी नहीं जा रहा था. किसी तरह सासू जी के बगल में पलंग पे बैठ के बात की.


मेरी छोटी ननद ने छेड़ा, “क्यों भाभी, बहुत दर्द हो रहा है.?”

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मैंने उसे खा जाने वाली नज़रों से देखा. सासू बोली,

“बहु, लेट जाओ...”

लेटते हीं जैसे मेरे चूतड़ गद्दे पे लगे फिर दर्द शुरू गया हो.

उन्होंने समझाया, “करवट हो के लेट जाओ, मेरी ओर मुँह कर के...” और मेरी जेठानी से बोलीं, “तेरा देवर बहुत बदमाश है, मैं फूल-सी बहु इसीलिए थोड़ी ले आई थी...”


“अरी माँ, अपनी बहु को दोष नहीं देती, मेरी प्यारी भाभी है हीं इत्ती प्यारी और फिर ये भी तो मटका-मटका कर.”

उनकी बात काट के मेरी छोटी ननद बोली.

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“लेकिन इस दर्द का एक हीं इलाज है, थोड़ा और दर्द हो तो कुछ देर के बाद आदत पड़ जाती है.” मेरा सिर प्यार से सहलाते हुए मेरी सासू जी धीरे से मेरे कान में बोलीं.



“लेकिन भाभी भैया को क्यों दोष दें? आपने हीं तो उनसे कहा था मारने के लिये... खुजली तो आपको हीं हो रही थी.” सब लोग मुस्कुराने लगे और मैं भी अपनी गांड़ में हो रही टीस के बावजूद मुस्कुरा उठी.


सुहागरात के दिन से हीं मुझे पता चल गया था कि यहाँ सब कुछ काफी खुला हुआ है.

तब तक वो आके मेरे बगल में रजाई में घुस गए. सलवार तो मैंने ऐसे हीं चढा ली थी. इसलिए आसानी से उसे उन्होंने मेरे घुटने तक सरका दी और मेरे चूतड़ सहलाने लगे.

मेरी जेठानी उनसे मुस्कुराकर छेड़ते हुए बोली,


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“देवर जी, आप मेरी देवरानी को बहोत तंग करते हैं, और तुम्हारी सजा ये है कि आज रात तक अब तुम्हारे पास ये दुबारा नहीं जायेगी.”


मेरी सासू जी ने उनका साथ दिया. जैसे उसके जवाब में उन्होंने मेरे गांड़ के बीच में छेड़ती उँगली को पूरी ताकत से एक हीं झटके में मेरी गांड़ में पेल दिया. गांड़ के अंदर उनका वीर्य लोशन की तरह काम कर रहा था. फिर भी मेरी चीख निकल गई. मुस्कराहट दबाती हुई सासू जी किसी काम का बहाना बना बाहर निकल गईं. लेकिन मेरी ननद कहाँ चुप रहने वाली थी.
वो बोली,

“भाभी, क्या किसी चींटे ने काट लिया...?”

“अरे नहीं लगता है, चींटा अंदर घुस गया है...” छोटी वाली बोली.

“अरे मीठी चीज होगी तो चींटा लगेगा हीं. भाभी आप हीं ठीक से ढँक कर नहीं रखती?”


बड़ी वाली ने फिर छेड़ा.


तब तक उन्होंने रजाई के अंदर मेरा कुरता भी पूरी तरह से ऊपर उठा के मेरी चूचि दबानी शुरू कर दी थी और उनकी उँगली मेरी गांड़ में गोल-गोल घूम रही थी.

“अरे चलो, बेचारी को आराम करने दो, तुम लोगों को चींटे से कटवाउंगी तो पता चलेगा.” ये कह के मेरी जेठानी दोनों ननदों को हांक के बाहर ले गईं. लेकिन वो भी कम नहीं थी. ननदों को बाहर करके वो आईं और सरसों के तेल की शीशी रखती बोलीं, “ये लगाओ, एंटी-सेप्टिक भी है.”

तब तक उनका हथियार खुल के मेरी गांड़ के बीच धक्का मार रहा था. निकल कर बाहर से उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.

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फिर क्या था.? उन्होंने मुझे पेट के बल लिटा दिया और पेट के नीचे दो तकिया लगा के मेरे चूतड़ ऊपर उठा दिए. सरसों का तेल अपने लंड पे लगा के सीधे शीशी से हीं उन्होंने मेरी गांड़ के अंदर डाल दिया.

वो एक बार झड़ हीं चुके थे इसलिए आप सोच हीं सकते हैं इस बार पूरा एक घंटा गांड़ मारने के बाद हीं वो झड़े और जब मेरी जेठानी शाम की चाय ले आईं तो भी उनका मोटा लंड मेरी गांड़ में हीं घुसा था.




आगे


मेरी बड़ी ननद रानू मुझे फ्लैश बैक से वापस लाते हुए बोली, “क्या भाभी, क्या सोच रही हैं अपने भाई के बारे में?”
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“अरे नहीं तुम्हारे भाई के बारे में...” तब तक मुझे लगा कि मैं क्या बोल गई, और मैं चुप हो गई.


“अरे भाई नहीं अब मेरे भाईयों के बारे में सोचिये... फागुन लग गया है और अब आपके सारे देवर आपके पीछे पड़े हैं. कोई नहीं छोड़ने वाला आपको और नंदोई हैं सो अलग..” वो बोली.


“अरे तेरे भाई को देख लिया है तो देवर और नंदोई को भी देख लूंगी..”

गाल पे चिकोटी काटती मैं बोली.

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होली के पहले वाली शाम को वो (मेरा ममेरा भाई) आया........


पतला, गोरा, छरहरा किशोर, अभी रेख आई नहीं थी.




सबसे पहले मेरी छोटी ननद मिली और उसे देखते हीं वो चालू हो गई,

‘चिकना’

वो भी बोला,

“चिकनी...” और उसके उभरते उभारों को देख के बोला,

“बड़ी हो गई है.”


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मुझे लग गया कि जो ‘होने’ वाला है वो ‘होगा’. दोनों में छेड़-छाड़ चालू हो गई.

वो उसे ले के जहाँ उसे रुकना था, उस कमरे में ले गई. मेरे बेडरूम से एकदम सटा, प्लाई का पार्टीशन कर के एक कमरा था उसी में उसके रुकने का इंतज़ाम किया गया था.

उसका बेड भी, जिस साइड हम लोगों का बेड लगा था, उसी से सटा था.

मैंने अपनी ननद से कहा, “अरे कुछ पानी-वानी भी पिलाओगी बेचारे को या छेड़ती हीं रहोगी?”

वो हँस के बोली, “ अब भाभी इसकी चिंता मेरे ऊपर छोड़ दीजिए.”

और गिलास दिखाते हुए कहा, “देखिये इस साले के लिये खास पानी है.”



जब मेरे भाई ने हाथ बढ़ाया तो उसने हँस के ग्लास का सारा पानी, जो गाढा लाल रंग था, उसके ऊपर उड़ेल दिया.


बेचारे की सफ़ेद शर्ट...

पर वो भी छोड़ने वाला नहीं था. उसने उसे पकड़ के अपने कपड़े पे लगा रंग उसकी फ्रॉक पे रगड़ने लगा और बोला,

“अभी जब मैं डालूँगा ना अपनी पिचकारी से रंग तो चिल्लाओगी”


वो छुड़ाते हुए बोली, “

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एकदम नहीं चिल्लाउंगी, लेकिन तुम्हारी पिचकारी में कुछ रंग है भी कि सब अपनी बहनों के साथ खर्च कर के आ गए हो?”

वो बोला कि सारा रंग तेरे लिये बचा के लाया हूँ, एकदम गाढ़ा सफ़ेद..."
Yah hua naa chedh chaad......
Gazab........
Mast update dear........
 

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जीजा साला और ननदोई


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उन दोनों को वहीं छोड़ के मैं गई किचेन में जहाँ होली के लिये गुझिया बन रही थी और मेरी सास, बड़ी ननद और जेठानी थी.

गुझिया बनाने के साथ-साथ आज खूब खुल के मजाक, गालियाँ चल रही थी.




बाहर से भी कबीरा गाने, गालियों की आवाज़ें, फागुनी बयार में घुल-घुल के आ रही थी.

ठण्डाई बनाने के लिये भांग रखी थी और कुछ बर्फी में डालने लिये.

मैंने कहा,

"हे कुछ गुझिया में भी डाल के बना देते है, लोगों को पता नही चलेगा. और फिर खूब मज़ा आएगा.”

मेरी ननद बोली,

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“हाँ, और फिर हम लोग वो आपको खिला के नंगे नचायेंगे.....”

मैं बोली,


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“मैं इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ, भांग वाली और बिना भांग वाली गुझिया अलग-अलग डिब्बे में रखेंगे.”



हम लोगों ने तीन डिब्बों में, एक में डबल डोज वाली, एक में नॉर्मल भांग की और तीसरे में बिना भांग वाली रखी.


फिर मैं सब लोगों को खाना खाने के लिये बुलाने चल दी.

मेरा भाई भी उनके साथ बैठा था.

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साथ में बड़ी ननद के हसबैंड, मेरे नंदोई भी...

उनकी बात सुन के मैं दरवाजे पे हीं एक मिनट के लिये ठिठक के रुक गई और उनकी बात सुनने लगी.


मेरे भाई को उन्होंने सटा के, ऑलमोस्ट अपने गोद में (खींच के गोद में हीं बैठा लिया).


सामने नंदोई जी एक बोतल (दारू की) खोल रहे थे. मेरे भाई के गालों पे हाथ लगा के बोले,


“यार तेरा साला तो बड़ा मुलायम है..”

“और क्या एकदम मक्खन मलाई....”


दूसरे गाल को प्यार से सहलाते वो बोले.

गाल ऐसा है तो फिर गांड़ तो... क्यों साल्ले कभी मराई है क्या?


बोतल से सीधे घूंट लगाते मेरे नंदोई बोले और फिर बोतल ‘उनकी’ ओर बढ़ा दी.

मेरा भाई मचल गया और मुँह फुला के अपने जीजा से बोला,



“देखिये जीजाजी, अगर ये ऐसी बात करेंगे तो....”

उन्होंने बोतल से दो बड़ी घूंट ली और बोतल नंदोई को लौटा के बोले,




“जीजा, ऐसे थोड़े हीं पूछते हैं.!! अभी कच्चा है, मैं पूछता हूँ...”

फिर मेरे भाई के गाल पे प्यार से एक चपत मार के बोले,


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“अरे ये तेरे जीजा के भी जीजा हैं, मजाक तो करेंगे हीं.... क्या बुरा मानना? फिर होली का मौका है. तू लेकिन साफ-साफ बता, तू इत्ता गोरा चिकना है लौंडियों से भी ज्यादा नमकीन, तो मैं ये मान नहीं सकता कि तेरे पीछे लड़के ना पड़े हों!

तेरे शहर में तो लोग कहते हैं कि अभी तक इसलिए बड़ी लाइन नहीं बनी कि लोग छोटी लाइन के शौक़ीन हैं.”

और उन्होंने बोतल नंदोई को दे दी.

ना नुकुर कर के उसने बताया कि कई लड़के उसके पीछे पड़े तो थे

और कुछ हीं दिन पहले वो साईकिल से जब घर आ रहा था तो कुछ लड़कों ने उसे रोक लिया और जबरन स्कूल के सामने एक बांध है, उसके नीचे गन्ने के खेत में ले गए.

उन लोगों ने तो उसकी पैंट भी सरका के उसे झुका दिया था.

लेकिन बगल से एक टीचर की आवाज सुनाई पड़ी तो वो लोग भागे.

तो तेरी कोरी है अभी? चल हम लोगों की किस्मत... कोरी मारने का मज़ा हीं और है.”



नंदोई बोले और अबकी बोतल उसके मुँह से लगा दिया. वो लगा छटपटाने....

उन्होंने उसके मुँह से बोतल हटाते हुए कहा,

“अरे जीजा अभी से क्यों इसको पिला रहे हैं?”

(लेकिन मुझको लग गया था कि बोतल हटाने के पहले जिस तरह से उन्होंने झटका दिया था, दो-चार घूंट तो उसके मुँह में चला हीं गया.) और खुद पीने लगे.

“कोई बात नहीं...कल जब इसे पेलेंगे तो... पिलायेंगे.”

संतोष कर नंदोई बोले.

“अरे डरता क्यों है?”

दो घूंट ले उसके गाल पे हाथ फेरते वो बोले,


“तेरी बहना की भी तो कोरी थी, एकदम कसी... लेकिन मैंने छोड़ी क्या? पहले उँगली से जगह बनाई, फिर क्रीम लगा के, प्यार से सहला के,


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धीरे-धीरे... और एक बार जब सुपाड़ा घुस गया... वो चीखी, चिल्लाई लेकिन.... अब हर हफ्ते उसकी पीछे वाली...
दो-तीन बार तो कम से कम..”


और उन्होंने उसको फिर से खींच के अपनी गोद में सेट करके बैठाया.

दरवाजे की फांक से साफ़ दिख रहा था. उनका पजामा जिस तरह से तना था...

मैं समझ गई कि उन्होंने सेंटर करके सीधे वहीं लगा के बैठा लिया उसको.

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वो थोड़ा कुनमुनाया, पर उनकी पकड़ कितनी तगड़ी थी, ये मुझसे अच्छा और कौन जानता था?


उन्होंने बोतल अब नंदोई को बढ़ा दी...


“यार तेरी बीवी...मेरी सलहज का पिछवाड़ा..उसके गोल गोल गुदाज चूतड़ इतने मस्त हैं कि देख के खड़ा हो जाता है...

और ऊपर से गदराई उभरी-उभरी चूचियाँ... बड़ा मज़ा आता होगा तुझे उसकी चूचि पकड़ के गांड़ मारने में..है ना?”



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बोतल फिर नंदोई जी ने वापस कर दी. एक घूंट मुँह से लगा के ‘ये’ बोले,

“एकदम सही कहते हैं आप... उसके दोनों मम्मे बड़े कड़क हैं... बहोत मज़ा आता है उसकी गांड़ मारने में ”

“अरे बड़े किस्मत वाले हो साले जी तुम... बस एक बार मुझे मिल जाये ना... बस जीवन धन्य हो जाये...मज़ा आ जाये यार”

नंदोई जी ने बोतल उठा के कस के लंबी घूंट लगाई... अपनी तारीफ सुन के मैं भी खुश हो गई थी... मेरी चूत भी अब गीली हो रही थी.

“अरे तो इसमें क्या? कल होली भी है और रिश्ता भी.”


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बोतल अब उनके पास थी. मुझे भी कोई ऐतराज नहीं था. मेरा कोई सगा देवर था नही, फिर नंदोई जी भी बहुत रसीले थे.


“तेरे तो मज़े हैं यार....कल यहाँ होली और परसों ससुराल में...किस उम्र की है तेरी सालियाँ?”
Wah re wah kya likti ho yaar..........
 
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