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Erotica मजा पहली होली का ससुराल में

Rajajhand

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शाम को फिर सूखी होली, अबीर और गुलाल की और इस बार इनके भी दोस्त, देवर कईयों ने नंबर लगाया|

और मेरा भाई बेचारा (हालाँकि उसने भी सिर्फ छोटी ननद की हीं नहीं बल्कि दो-तीन और की सील तोड़ी) मेरी ननदों ने मिल के जबरन साड़ी ब्लाउज पहना पूरा श्रृंगार करके लड़की बनाया और मेरे सामने हीं निहुरा के...
Hope, Komal ji will explore this point in new sequel of this story in "PURVABHAS"
 
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komaalrani

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Good story
Thaks so much , aap ko meri baaki kahnaiyon par bhi dekhakr mujhe bahoot khushi huyi. Please meri do running stories par bhi regular comments den, thanks again
 
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komaalrani

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इन्सेस्ट, एक सगे भाई बहन के बीच दैहिक संबंधो में मेरा पहला प्रयास।

भाग २७


किस्सा इन्सेस्ट यानी भैया के बहिनिया पर चढ़ने का

उर्फ़ गीता और उसके भैया का

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Adultery - छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

जोरू का गुलाम के ४०० पृष्ठ पूरे हो गए १ मिलियन व्यूज पहले ही हो गए थे आप सभी मित्रों का सादर साभार congratulations komaalrani urf meri bhabhi ji.. bilkul aise hi record pr record hit krte jaiye..💋💋💋🥳🥳
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छुटकी- होली, दीदी की ससुराल में

पृष्ठ १३६ पोस्ट १३५ भाग २७


गीता का स्कूल का नाम संगीता था लेकिन घर में सब लोग उसे गीता, फिर गीता से गितवा,



उसके भाई का नाम अरविन्द था , लेकिन वो गीता से दो साल बड़ा तो उसे वो भैया ही कहती थी , और वो भी प्यार से कभी कुछ कभी कुछ , और कभी सब की तरह गीता ही,...

गीता की जवानी बस खिल रही थी , वो बस ,... गाँव से दो चार किलोमीटर दूर कन्या विद्यालय,.. . अब जाने दीजिये क्लास वलास जान के क्या करेंगे, ... कोई क्लास के नाम पे ही कहानी पे नजर लगा दे,... तो बस जवानी के फूल अभी खिल रहे थे , २८ नंबर, एक पड़ोस की भाभी के साथ जा के बजार वाले दिन पहली बार उसने ब्रा खरीदी थी , और पहनते हुए इतना अजीब लगता था , वरना भी तो वो समीज से ही,...

so please do read, like and share your views on that story on my first effort, there was a lot of suggestions from my readers that i must try this genre too,... so waiting for your comments on that thread,... thanks
 
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मजा पहली होली का, ससुराल में

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मुझे त्योहारों में बहुत मज़ा आता है, खास तौर से होली में.


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पर कुछ चीजें त्योहारों में गड़बड़ है. जैसे, मेरे मायके में मेरी मम्मी और उनसे भी बढ़ के छोटी बहनें कह रही थीं

कि मैं अपनी पहली होली मायके में मनाऊँ. वैसे मेरी बहनों की असली दिलचस्पी तो अपने जीजा जी के साथ होली खेलने में थी.





परन्तु मेरे ससुराल के लोग कह रहे थे कि बहु की पहली होली ससुराल में हीं होनी चाहिये.

मैं बड़ी दुविधा में थी. पर त्योहारों में गड़बड़ से कई बार परेशानियां सुलझ भी जाती हैं. इस बार होली २ दिन पड़ी.
मेरी ससुराल में 17 मार्च को और मायके में 18 को.

मायके में जबर्दस्त होली होती है और वो भी दो दिन. तय हुआ कि मेरे घर से कोई आ के मुझे होली वाले दिन ले जाए और ‘ये’ होली वाले दिन सुबह पहुँच जायेंगे. मेरे मायके में तो मेरी दो छोटी बहनों नीता और रीतू के सिवाय कोई था नहीं.

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मम्मी ने फिर ये प्लान बनाया कि मेरा ममेरा भाई, चुन्नू, जो 11वीं में पढ़ता था, वही होली के एक दिन पहले आ के ले जायेगा.

"चुन्नू कि चुन्नी..." मेरी ननद गीता ने छेड़ा.

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वैसे बात उसकी सही थी. वह बहुत कोमल, खूब गोरा, लड़कियों की तरह शर्मीला, बस यों समझ लीजिए कि जबसे वो क्लास ८ में पहुँचा, लड़के उसके पीछे पड़े रहते थे.

यूं कहिये कि ‘नमकीन’ और हाईस्कूल में उसकी टाइटिल थी, “है शुक्र कि तू है लड़का..”, पर मैंने भी गीता को जवाब दिया,


“अरे आएगा तो खोल के देख लेना क्या है, अंदर हिम्मत हो तो...”

“हाँ, पता चल जायेगा कि... नुन्नी है या लंड”

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मेरी जेठानी ने मेरा साथ दिया.

“अरे भाभी उसका तो मूंगफली जैसा होगा... उससे क्या होगा हमारा?”

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मेरी बड़ी ननद ने चिढ़ाया.

“अरे मूंगफली है या केला.. ये तो पकड़ोगी तो पता चलेगा. पर मुझे अच्छी तरह मालूम है कि तुम लोगों ने मुझे ले जाने के लिये उसे बुलाने की शर्त इसीलिये रखी है कि तुम लोग उससे मज़ा लेना चाहती हो.”

हँस के मैं बोली.

“भाभी उससे मज़ा तो लोग लेना चाहते है, पर हम या कोई और ये तो होली में हीं पता चलेगा, आपको अब तक तो पता चल हीं गया होगा कि यहाँ के लोग पिछवाड़े के कितने शौक़ीन होते है?”

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मेरी बड़ी ननद रानू जो शादी-शुदा थी, खूब मुँह फट्ट थी और खुल के मजाक करती थी.

बात उसकी सही थी.

मैं फ्लैश बैक में चली गई.

सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.
Kahaniyo ki duniya me komalji aap ek nasha ho. Jab tak mere pas mohe rang de thi. Me use bacha bacha ke padh rahi thi. Par khatam hui to me tadap uttji. Mene yahi kahani say ad pahele padhi hogi. Par start se hi maza aa raha he.
 

Shetan

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सुहागरात के चार-पांच दिन के अंदर हीं, मेरे पिछवाड़े की... शुरुआत तो उन्होंने दो दिन के अंदर हीं कर दी थी.



मुझे अब तक याद है, उस दिन मैंने सलवार-सूट पहन रखा था, जो थोड़ा टाईट था और मेरे मम्मे और नितम्ब खूब उभर के दिख रहे थे. रानू ने मेरे चूतड़ों पे चिकोटी काट के चिढ़ाया,


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“भाभी लगता है आपके पिछवाड़े में काफी खुजली मच रही है. आज आपकी गांड़ बचने वाली नहीं है, अगर आपको इस ड्रेस में भैया ने देख लिया...”


“अरे तो डरती हूँ क्या तुम्हारे भैया से? जब से आई हूँ लगातार तो चालू रहते है, बाकी और कुछ तो अब बचा नहीं......

ये भी कब तक बचेगी?”


चूतड़ मटका के मैंने जवाब दिया.

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और तब तक ‘वो’ भी आ गए. उन्होंने एक हाथ से खूब कस के मेरे चूतड़ को दबोच लिया
और उनकी एक उंगली मेरे कसी सलवार में, गांड़ के क्रैक में घुस गई.

उनसे बचने के लिये मैं रजाई में घुस गई अपनी सास के बगल में.....

‘उनकी’ बगल में मेरी जेठानी और छोटी ननद बैठी थी. वह भी रजाई में मेरी बगल में घुस के बैठ गए

और अपना एक हाथ मेरे कंधे पे रख दिया.

छेड़-छाड़ सिर्फ कोई ‘उनकी’ जागीर तो थी नहीं. सासू के बगल में मैं थोड़ा सेफ भी महसूस कर रही थी
और रजाई के अंदर हाथ भी थोड़ा बोल्ड हो जाता है.

मैंने पजामे के ऊपर हाथ रखा तो उनका खूंटा पूरी तरह खड़ा था. मैंने शरारत से उसे हल्के से दबा दिया और उनकी ओर मुस्कुरा के देखा.


बेचारे.... चाह के भी..... अब मैंने और बोल्ड हो के हाथ उनके पजामे में डाल के सुपाड़े को खोल दिया. पूरी तरह फूला और गरम था. उसे सहलाते-सहलाते मैंने अपने लंबे नाख़ून से उनके पी-होलको छेड़ दिया.

जोश में आ के उन्होंने मेरे मम्मे कस के दबा दिए.


उनके चेहरे से उत्तेजना साफ़ दिख रही थी. वह उठ के बगल के कमरे में चले गए जो मेरी छोटी ननद का रीडिंग रूम था. बड़ी मुश्किल से मेरी ननद और जेठानी ने अपनी मुस्कान दबायी.

“जाइये-जाइये भाभी, अभी आपका बुलावा आ रहा होगा.”


शैतानी से मेरी छोटी ननद बोली.

हम दोनों का दिन-दहाड़े का ये काम तो सुहागरात के अगले दिन से हीं चालू हो गया था.

पहली बार तो मेरी जेठानी जबरदस्ती मुझे कमरे में दिन में कर आई और उसके बाद से तो मेरी ननदें और यहाँ तक की सासू जी भी.......बड़ा खुला मामला था मेरी ससुराल में......

एक बार तो मुझसे ज़रा सी देर हो गई तो मेरी सासू बोली,

“बहु, जाओ ना... बेचारा इंतज़ार कर रहा होगा...”

“ज़रा पानी ले आना...” तुरन्त हीं ‘उनकी’ आवाज सुनाई दी.

“जाओ, प्यासे की प्यास बुझाओ...”

मेरी जेठानी ने छेड़ा.

कमरे में पँहुचते हीं मैंने दरवाजा बंद कर दिया.

उनको छेड़ते हुए, दरवाजा बंद करते समय, मैंने उनको दिखा के सलवार से छलकते अपने भारी चूतड़ मटका दिए.

फिर क्या था.? पीछे आके उन्होंने मुझे कस के पकड़ लिया और दोनों हाथों से कस-कस के मेरे मम्मे दबाने लगे.

और ‘उनका’ पूरी तरह उत्तेजित हथियार भी मेरी गांड़ के दरार पे कस के रगड़ रहा था. लग रहा था, सलवार फाड़ के घुस जायेगा.


मैंने चारों ओर नज़र दौडाई. कमरे में कुर्सी-मेज़ के अलावा कुछ भी नहीं था. कोई गद्दा भी नहीं कि जमीन पे लेट के.


मैं अपने घुटनों के बल पे बैठ गई और उनके पजामे का नाड़ा खोल दिया. फनफ़ना कर उनका लंड बाहर आ गया.

सुपाड़ा अभी भी खुला था, पहाड़ी आलू की तरह बड़ा और लाल.

मैंने पहले तो उसे चूमा और फिर बिना हाथ लगाये अपने गुलाबी होठों के बीच ले चूसना शुरू कर दिया.

धीरे-धीरे मैं लॉलीपॉप की तरह उसे चूस रही थी और कुछ हीं देर में मेरी जीभ उनके पी-होल को छेड़ रही थी.


उन्होंने कस के मेरे सिर को पकड़ लिया. अब मेरा एक मेहन्दी लगा हाथ उनके लंड के बेस को पकड़ के हल्के से दबा रहा था और दूसरा उनके अंडकोष (Balls) को पकड़ के सहला और दबा रहा था. जोश में आके मेरा सिर पकड़ के वह अपना मोटा लंड अंदर-बाहर कर रहे थे.

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उनका आधे से ज्यादा लंड अब मेरे मुँह में था. सुपाड़ा हलक पे धक्के मार रहा था. जब मेरी जीभ उनके मोटे कड़े लंड को सहलाती और मेरे गुलाबी होठों को रगड़ते, घिसते वो अंदर जाता.... खूब मज़ा आ रहा था मुझे. मैं खूब कस-कस के चूस रही थी, चाट रही थी.



उस कमरे में मुझे चुदाई का कोई रास्ता तो दिख नहीं रहा था. इसलिए मैंने सोचा कि मुख-मैथुन कर के हीं काम चला लूं.




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पर उनका इरादा कुछ और हीं था.

“कुर्सी पकड़ के झुक जाओ...” वो बोले..




मैं झुक गई.
Abhi tak to mohe rang de ki vahi feeling is kahani me aa rahi he.

Par komaliya ka pichhvade ki kutai sajan se padhne ko darsak vaha tadap gae.

Lekin komalhi ek or bat. Jis kahani me jo kalpna karte he. Vo dusri kahani ke vahi kirdar hone ke bavjud vo maza us jagah nahi aaega.
 
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komaalrani

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Abhi tak to mohe rang de ki vahi feeling is kahani me aa rahi he.

Par komaliya ka pichhvade ki kutai sajan se padhne ko darsak vaha tadap gae.

Lekin komalhi ek or bat. Jis kahani me jo kalpna karte he. Vo dusri kahani ke vahi kirdar hone ke bavjud vo maza us jagah nahi aaega.
Mohe Rang de ekdam alag kism ki kahani hai maine apki post padhi

aur agar us tarah ki doosari kahani meri padhni hi to vo shaayd , ... shaadi, sasuraal aur Honeymoon ho lekin meri do kahaniyan kabhi bhi ek jaisi nahi hoti aur unka mood, mizaz aur mahaul alag hi hota hai


Mohe rng de se niklane men thoda samay lag skata hai .


shadi sasuraal aur honeymoon is forum men pdf vaale section maine hain


welcome to the thread
 
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Mohe Rang de ekdam alag kism ki kahani hai maine apki post padhi

aur agar us tarah ki doosari kahani meri padhni hi to vo shaayd , ... shaadi, sasuraal aur Honeymoon ho lekin meri do kahaniyan kabhi bhi ek jaisi nahi hoti aur unka mood, mizaz aur mahaul alag hi hota hai


Mohe rng de se niklane men thoda samay lag skata hai .


shadi sasuraal aur honeymoon is forum men pdf vaale section maine hain


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Ab pahele komliya ke sath holi ka maza le lu. Fir sajan ke sath honeymoon bhi mana lenge. Vese bhi ab dar lagne laga he. Kahi kahani khatam na ho jae.

Chasni ab pini nahi he. Ham chat ke hi kam chala lenge. Kyo ki banaras ka bhi intjar he
 
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