Innocent- heart
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Aur isse ke saath maine aapki teesri erotic aur romnch se bhari kahani purri samapth kardi komaalrani ji***** *****बीत गई ससुराल की होली, टाटा बाईं बाई
बहुत देर से वो और मंझली नहीं दिख रहे थे।
दुछत्ती से कुछ बहुत हल्की-हल्की आवाजें आ रही थी,
वही जगह, जहाँ कल उन्होंने होली के मौके पे अपनी हाईस्कूल वाली मंझली साली का भरतपुर लूट कर ससुराल में होली की शुरुवात की थी।
और मैंने ध्यान लगाकर देखा तो वही दोनों थे, मंझली निहुरी हुई, उसकी फ्राक उन्होंने कमर तक मोड़ रखी थी,
और उसके छोटे-छोटे लौंडा मार्का चूतड़, हवा में उठे हुए थे।
“जीजू, इधर नहीं, प्लीज इधर बहुत दर्द करेगा…”
वो रिरिया रही थी।
लेकिन हाईस्कूल वाली साली की गाण्ड मारनी हो तो कौन सुनता है।
उन्होंने कमर पकड़ी और जोर का धक्का मार दिया। दो चार धक्कों में गाण्ड का छल्ला पार था।
मंझली भी थोड़ा रोई-धोई लेकिन,
8-10 धक्कों के बाद ही, मजे से पीछे चूतड़ मटका-मटकाकर गाण्ड मरवाने का मजा लेने लगी।
कोई मुझे ढूँढ़ते हुए ऊपर न आ जाय, इसलिए दबे पाँव छुटकी का सामान लेकर मैं नीचे उतर गई।
मिश्रायिन भाभी चली गई थीं और रीतू भाभी, मम्मी के साथ मिलकर टेबल लगा रही थीं।
;;;;
छुटकी तैयार हो रही थी, ट्रेन के टाइम में एक घण्टा बचा था।
मंझली और रीतू भाभी हम लोगों को स्टेशन तक छोड़ने आये।
और हम सब जब ट्रेन में बैठ गए तो उन दोनों ने आँख नचाकर, मुश्कुराकर पूछा-
“क्यों जीजू, मजा आया ससुराल में पहली होली का…”
गाड़ी चलने के पहले टीटी आया, वही जो परसों रात में ट्रेन में था, और उसने वही बात बोली-
“फर्स्ट क्लास में आज कोई और पैसेंजर नहीं है, आप लोगों के सिवाय। आप डिब्बे का ही दरवाजा अंदर से बंद कर लीजिये,
मुझे और डिब्बे भी चेक करने हैं…”
मुश्कुराते हुए उन्होंने हामी भरी।
कनखियों से मैंने देखा, ₹100 के दो नोट इनके हाथ से उनके हाथ पास हुए, आते हुए से दुगुने…
और क्यों नहीं माल भी तो दुगुने थे।
कच्चे टिकोरों वाली साली,
रात भर रेल गाड़ी में सटासट-सटासट, गपागप-गपागप।
बस, यह थी ‘इनके’ ससुराल में पहली होली के दो दिनों की कहानी।
साथ के लिए धन्यवाद देकर आपके साथ बिताये गए पलों की मधुरिमा को कम नहीं करूंगी