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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

क्या आपको ग़ज़लें पसंद हैं..???

  • हाॅ, बेहद पसंद हैं।

    Votes: 12 85.7%
  • हाॅ, लेकिन ज़्यादा नहीं।

    Votes: 2 14.3%

  • Total voters
    14

Tiwari_baba

Active Member
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अगर कभी गुजरो
मेरे दिल के दरवाज़े से हो कर
तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!
 

Kratos

Anger can be a weapon if you can control it use it
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अगर कभी गुजरो
मेरे दिल के दरवाज़े से हो कर
तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!
बहुत खूब पण्डित
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Kya baat hai badhiya..

Kya alfaz hai koi padh ke dekh to lo..
बहुत बहुत शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अगर कभी गुजरो
मेरे दिल के दरवाज़े से हो कर
तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
कि तुम्हारे ही इंतज़ार में
मैंने एक उम्र गुजारी है !!
वाह!! बहुत खूब भाई,,,,,
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं।
ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैं।।

रास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब से,
कोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं।।

छत की कड़ियों से उतरते हैं मिरे ख़्वाब मगर,
मेरी दीवारों से टकरा के बिखर जाते हैं।।

नर्म अल्फ़ाज़ भली बातें मोहज़्ज़ब लहजे,
पहली बारिश ही में ये रंग उतर जाते हैं।।

उस दरीचे में भी अब कोई नहीं और हम भी,
सर झुकाए हुए चुप-चाप गुज़र जाते हैं।।

________जावेद अख़्तर
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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हम ने ढूँडें भी तो ढूँडें हैं सहारे कैसे।
इन सराबों पे कोई उम्र गुज़ारे कैसे।।

हाथ को हाथ नहीं सूझे वो तारीकी थी,
आ गए हाथ में क्या जाने सितारे कैसे।।

हर तरफ़ शोर उसी नाम का है दुनिया में,
कोई उस को जो पुकारे तो पुकारे कैसे।।

दिल बुझा जितने थे अरमान सभी ख़ाक हुए,
राख में फिर ये चमकते हैं शरारे कैसे।।

न तो दम लेती है तू और न हवा थमती है,
ज़िंदगी ज़ुल्फ़ तिरी कोई सँवारे कैसे।।

________जावेद अख़्तर
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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उसी तरह से हर इक ज़ख़्म खुशनुमा देखे।
वो आये तो मुझे अब भी हरा-भरा देखे।।

गुज़र गए हैं बहुत दिन रिफ़ाक़ते-शब में,
इक उम्र हो गई चेहरा वो चाँद-सा देखे।।

मेरे सुकूत से जिसको गिले रहे क्या-क्या,
बिछड़ते वक़्त उन आंखों का बोलना देखे।।

तेरे सिवा भी कई रंग ख़ुशनज़र थे मगर,
जो तुझको देख चुका हो वो और क्या देखे।।

बस एक रेत का ज़र्रा बचा था आँखों में,
अभी तलक जो मुसाफ़िर का रास्ता देखे।।

उसी से पूछे कोई दश्त की रफ़ाकत
जो,
जब आँख खोले पहाड़ों का सिलसिला देखे।।

तुझे अज़ीज़ था और मैंने उसको जीत लिया,
मेरी तरफ़ भी तो इक पल ख़ुदा देखे।।

_______परवीन शाकिर
 

Tiwari_baba

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कभी कभी चाँद जब आपकी खिड़की से झाँकने लगता है तो यूँ लगता है जैसे वह अपन पास बुला कर कुछ कह रहा हो ...तब अनायास ही यह पंक्तियाँ दिल से निकल जाती है

कल रात हुई
इक हौली सी आहट
झांकी खिड़की से
चाँद की मुस्कराहट
अपनी फैली बाँहों से
जैसे किया उसने
कुछ अनकहा सा इशारा
मैंने भी न जाने,
क्या सोच कर
बंद किया हर झरोखा
और कहा ,
रुक जाओ....
बहुत सर्द है यहाँ
ठहरा सहमा है हुआ
हर जज्बात....
शायद तुम्हारे यहाँ होने से
कुछ पिघलने का एहसास
इस उदास दिल को हो जाए
और दे जाए
कुछ धड़कने जीने की
कुछ वजह तो
अब जीने की बन जाए !!
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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कभी कभी चाँद जब आपकी खिड़की से झाँकने लगता है तो यूँ लगता है जैसे वह अपन पास बुला कर कुछ कह रहा हो ...तब अनायास ही यह पंक्तियाँ दिल से निकल जाती है

कल रात हुई
इक हौली सी आहट
झांकी खिड़की से
चाँद की मुस्कराहट
अपनी फैली बाँहों से
जैसे किया उसने
कुछ अनकहा सा इशारा
मैंने भी न जाने,
क्या सोच कर
बंद किया हर झरोखा
और कहा ,
रुक जाओ....
बहुत सर्द है यहाँ
ठहरा सहमा है हुआ
हर जज्बात....
शायद तुम्हारे यहाँ होने से
कुछ पिघलने का एहसास
इस उदास दिल को हो जाए
और दे जाए
कुछ धड़कने जीने की
कुछ वजह तो
अब जीने की बन जाए !!
Waah bahut khoob,,,,,,,
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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तेरी ख़ुश्बू का पता करती है।
मुझ पे एहसान हवा करती है।।

शब की तन्हाई में अब तो अक्सर,
गुफ़्तगू तुझ से रहा करती है।।

दिल को उस राह पे चलना ही नहीं,
जो मुझे तुझ से जुदा करती है।।

ज़िन्दगी मेरी थी लेकिन अब तो,
तेरे कहने में रहा करती है।।

उस ने देखा ही नहीं वर्ना ये आँख,
दिल का एहवाल कहा करती है।।

बेनियाज़-ए-काफ़-ए-दरिया अन्गुश्त,
रेत पर नाम लिखा करती है।।

शाम पड़ते ही किसी शख़्स की याद,
कूचा-ए-जाँ में सदा करती है।।

मुझ से भी उस का है वैसा ही सुलूक,
हाल जो तेरा अन करती है।।

दुख हुआ करता है कुछ और बयाँ,
बात कुछ और हुआ करती है।।

अब्र बरसे तो इनायत उस की,
शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है।।

मसला जब भी उठा चिराग़ों का,
फ़ैसला सिर्फ़ हवा करती है।।

_______परवीन शाकिर
 
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