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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

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The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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115,965
354
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा।
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा।।

हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा,
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा।।

वो हवाओं की तरह ख़ाना-ब-जाँ फिरता है,
एक झोंका है जो आएगा गुज़र जाएगा।।

वो जब आएगा तो फिर उस की रिफ़ाक़त के लिए,
मौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगा।।

आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी,
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगा।।

मुझ को तहज़ीब के बर्ज़ख़ का बनाया वारिस,
जुर्म ये भी मिरे अज्दाद के सर जाएगा।।

_______परवीन शाकिर
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
115,965
354
चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया।
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया।।

ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब की,
अहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया।।

मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई,
उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया।।

अब के हवा के साथ है दामन-ए-यार मुंतज़िर,
बानू-ए-शब के हाथ में रखना सँभाल कर दिया।।

मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था,
हम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया।।

मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो,
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया।।

चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके,
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया।।

मुद्दतों बा'द उस ने आज मुझ से कोई गिला किया,
मंसब-ए-दिलबरी पे क्या मुझ को बहाल कर दिया।।

__________परवीन शाकिर
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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खुले पानियों में घिरी लड़कियाँ
नर्म लहरों के छींटे उड़ाती हुई
बात-बे-बात हँसती हुई
अपने ख़्वाबों के शहज़ादों का तज़्किरा कर रही थीं
जो ख़ामोश थीं
उन की आँखों में भी मुस्कुराहट की तहरीर थी
उन के होंटों को भी अन-कहे ख़्वाब का ज़ाइक़ा चूमता था!
आने वाले नए मौसमों के सभी पैरहन नीलमीं हो चुके थे!
दूर साहिल पे बैठी हुई एक नन्ही सी बच्ची
हमारी हँसी और मौजों के आहंग से बे-ख़बर
रेत से एक नन्हा घरौंदा बनाने में मसरूफ़ थी
और मैं सोचती थी
ख़ुदा-या! ये हम लड़कियाँ
कच्ची उम्रों से ही ख़्वाब क्यूँ देखना चाहती हैं
ख़्वाब की हुक्मरानी में कितना तसलसुल रहा है!

__________परवीन शाकिर
 

Mr. Perfect

"Perfect Man"
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143
Waahh The_InnoCent bhai. Kya shayri hai fantastic_______

चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिया।
इश्क़ के इस सफ़र ने तो मुझ को निढाल कर दिया।।

ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब की,
अहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया।।

मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई,
उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया।।

अब के हवा के साथ है दामन-ए-यार मुंतज़िर,
बानू-ए-शब के हाथ में रखना सँभाल कर दिया।।

मुमकिना फ़ैसलों में एक हिज्र का फ़ैसला भी था,
हम ने तो एक बात की उस ने कमाल कर दिया।।

मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो,
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया।।

चेहरा ओ नाम एक साथ आज न याद आ सके,
वक़्त ने किस शबीह को ख़्वाब ओ ख़याल कर दिया।।

मुद्दतों बा'द उस ने आज मुझ से कोई गिला किया,
मंसब-ए-दिलबरी पे क्या मुझ को बहाल कर दिया।।

__________परवीन शाकिर
 

VIKRANT

Active Member
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वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा।
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा।।

हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा,
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा।।

वो हवाओं की तरह ख़ाना-ब-जाँ फिरता है,
एक झोंका है जो आएगा गुज़र जाएगा।।

वो जब आएगा तो फिर उस की रिफ़ाक़त के लिए,
मौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगा।।

आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी,
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगा।।

मुझ को तहज़ीब के बर्ज़ख़ का बनाया वारिस,
जुर्म ये भी मिरे अज्दाद के सर जाएगा।।

_______परवीन शाकिर
Greatttt bro. Such a beautiful poetry. :applause::applause:
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Waahh The_InnoCent bhai. Kya shayri hai fantastic_______
बहुत बहुत शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Greatttt bro. Such a beautiful poetry. :applause::applause:
बहुत बहुत शुक्रिया विक्रान्त भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अक्स-ए-ख़ुशबू हूँ बिखरने से न रोके कोई।
और बिखर जाऊँ तो मुझ को न समेटे कोई।।

काँप उठती हूँ मैं ये सोच के तन्हाई में,
मेरे चेहरे पे तिरा नाम न पढ़ ले कोई।।

जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा,
उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई।।

मैं तो उस दिन से हिरासाँ हूँ कि जब हुक्म मिले,
ख़ुश्क फूलों को किताबों में न रक्खे कोई।।

अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं,
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई।।

कोई आहट कोई आवाज़ कोई चाप नहीं,
दिल की गलियाँ बड़ी सुनसान हैं आए कोई।।

_________परवीन शाकिर
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
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354
लड़की!
ये लम्हे बादल हैं
गुज़र गए तो हाथ कभी नहीं आएँगे
इन के लम्स को पीती जा
क़तरा क़तरा भीगती जा
भीगती जा तू जब तक इन में नम है
और तिरे अंदर की मिट्टी प्यासी है
मुझ से पूछ
कि बारिश को वापस आने का रस्ता कभी न याद हुआ
बाल सुखाने के मौसम अन-पढ़ होते हैं!

_________परवीन शाकिर
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,152
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354
आँख बोझल है
मगर नींद नहीं आती है
मेरी गर्दन में हमाइल तिरी बाँहें जो नहीं
किसी करवट भी मुझे चैन नहीं पड़ता है
सर्द पड़ती हुई रात
माँगने आई है फिर मुझ से
तिरे नर्म बदन की गर्मी
और दरीचों से झिझकती हुई आहिस्ता हवा
खोजती है मिरे ग़म-ख़ाने में
तेरी साँसों की गुलाबी ख़ुश्बू!
मेरा बिस्तर ही नहीं
दिल भी बहुत ख़ाली है
इक ख़ला है कि मिरी रूह में दहशत की तरह उतरा है
तेरा नन्हा सा वजूद
कैसे उस ने मुझे भर रक्खा था
तिरे होते हुए दुनिया से तअल्लुक़ की ज़रूरत ही न थी
सारी वाबस्तगियाँ तुझ से थीं
तू मिरी सोच भी, तस्वीर भी और बोली भी
मैं तिरी माँ भी, तिरी दोस्त भी हम-जोली भी
तेरे जाने पे खुला
लफ़्ज़ ही कोई मुझे याद नहीं
बात करना ही मुझे भूल गया!
तू मिरी रूह का हिस्सा था
मिरे चारों तरफ़
चाँद की तरह से रक़्साँ था मगर
किस क़दर जल्द तिरी हस्ती ने
मिरे अतराफ़ में सूरज की जगह ले ली है
अब तिरे गिर्द मैं रक़्सिंदा हूँ!
वक़्त का फ़ैसला था
तिरे फ़र्दा की रिफ़ाक़त के लिए
मेरा इमरोज़ अकेला रह जाए
मिरे बच्चे, मिरे लाल
फ़र्ज़ तो मुझ को निभाना है मगर
देख कि कितनी अकेली हूँ मैं!

_________परवीन शाकिर
 
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