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वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा।
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा।।
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा,
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा।।
वो हवाओं की तरह ख़ाना-ब-जाँ फिरता है,
एक झोंका है जो आएगा गुज़र जाएगा।।
वो जब आएगा तो फिर उस की रिफ़ाक़त के लिए,
मौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगा।।
आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी,
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगा।।
मुझ को तहज़ीब के बर्ज़ख़ का बनाया वारिस,
जुर्म ये भी मिरे अज्दाद के सर जाएगा।।
_______परवीन शाकिर
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा।।
हम तो समझे थे कि इक ज़ख़्म है भर जाएगा,
क्या ख़बर थी कि रग-ए-जाँ में उतर जाएगा।।
वो हवाओं की तरह ख़ाना-ब-जाँ फिरता है,
एक झोंका है जो आएगा गुज़र जाएगा।।
वो जब आएगा तो फिर उस की रिफ़ाक़त के लिए,
मौसम-ए-गुल मिरे आँगन में ठहर जाएगा।।
आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी,
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जाएगा।।
मुझ को तहज़ीब के बर्ज़ख़ का बनाया वारिस,
जुर्म ये भी मिरे अज्दाद के सर जाएगा।।
_______परवीन शाकिर