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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

क्या आपको ग़ज़लें पसंद हैं..???

  • हाॅ, बेहद पसंद हैं।

    Votes: 12 85.7%
  • हाॅ, लेकिन ज़्यादा नहीं।

    Votes: 2 14.3%

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VIKRANT

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अब वो मंजर, ना वो चेहरे ही नजर आते हैं।
मुझको मालूम ना था ख्वाब भी मर जाते हैं।।

जाने किस हाल में हम हैं कि हमें देख के सब,
एक पल के लिये रुकते हैं गुजर जाते हैं।।

साकिया तूने तो मयखाने का ये हाल किया,
रिन्द अब मोहतसिबे-शहर के गुण गाते हैं।।

ताना-ए-नशा ना दो सबको कि कुछ सोख्त-जाँ,
शिद्दते-तिश्नालबी से भी बहक जाते हैं।।

जैसे तजदीदे-तअल्लुक की भी रुत हो कोई,
ज़ख्म भरते हैं तो गम-ख्वार भी आ जाते हैं।।

एहतियात अहले-मोहब्बत कि इसी शहर में लोग,

गुल-बदस्त आते हैं और पा-ब-रसन जाते हैं।।

________अहमद 'फ़राज़'
Outstanding amazing poetry bro. :applause: :applause: :applause:
 
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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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आँखों में हया हो तो
पर्दा दिल का ही काफी है फ़राज़,

नहीं तो नकाबों से भी होते हैं

इशारे मोहब्बत के।।
 
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उस से बिछड़े तो मालूम हुआ की
मौत भी कोई चीज़ है फ़राज़,

ज़िन्दगी वो थी जो हम उसकी

महफ़िल में गुज़ार आए।।
 
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उसकी जफ़ाओं ने मुझे
एक तहज़ीब सिखा दी है फ़राज़,

मैं रोते हुए सो जाता हूँ पर

शिकवा नहीं करता।।
 
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ऐसा डूबा हूँ
तेरी याद के समंदर में “फ़राज़”

दिल का धड़कना भी

अब तेरे कदमों की सदा लगती है।।
 
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उस से बिछड़े तो मालूम हुआ की
मौत भी कोई चीज़ है फ़राज़,

ज़िन्दगी वो थी जो हम उसकी

महफ़िल में गुज़ार आए।।
Amazing bro. :applause: :applause: :applause:
 
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तलब करें तो मैं
अपनी आँखें भी उन्हें दे दूँ,

मगर ये लोग
मेरी आँखों के ख्वाब माँगते हैं।
 
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शेर-ओ-सुखन क्या कोई बच्चों का खेल है?
जल जातीं हैं जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।
 
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