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Shukriya bhai,,,,,Greattt bro. Beautiful poetry.
Shukriya bhai,,,,,Greattt bro. Beautiful poetry.
आओ कोई तफरीह का सामान किया जाए / क़तील
आओ कोई तफरीह का सामान किया जाए
फिर से किसी वाईज़ को परेशान किया जाए॥
बे-लर्जिश-ए-पा मस्त हो उन आँखो से पी कर
यूँ मोह-त-सीबे शहर को हैरान किया जाए॥
हर शह से मुक्क्दस है खयालात का रिश्ता
क्यूँ मस्लिहतो पर इसे कुर्बान किया जाए॥
मुफलिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत
अब खुल के मज़रो पर ये ऐलान किया जाए॥
वो शक्स जो दीवानो की इज़्ज़त नहीं करता
उस शक्स का चाख-गरेबान किया जाए॥
पहले भी 'कतील' आँखो ने खाए कई धोखे
अब और न बीनाई का नुकसान किया जाए॥
Fantastic shubham bhai______
Amazing bro.जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने।
इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हम ने।।
सब का अहवाल वही है जो हमारा है आज,
ये अलग बात कि शिकवा किया तन्हा हम ने।।
ख़ुद पशीमान हुए ने उसे शर्मिंदा किया,
इश्क़ की वज़्अ को क्या ख़ूब निभाया हम ने।।
कौन सा क़हर ये आँखों पे हुआ है नाज़िल,
एक मुद्दत से कोई ख़्वाब न देखा हम ने।।
उम्र भर सच ही कहा सच के सिवा कुछ न कहा,
अज्र क्या इस का मिलेगा ये न सोचा हम ने।।
______शहरयार
कुछ न कुछ इश्क़ की तासीर का इक़रार तो है।
उस का इल्ज़ाम-ए-तग़ाफ़ुल पे कुछ इंकार तो है।।
हर फ़रेब-ए-ग़म-ए-दुनिया से ख़बर-दार तो है,
तेरा दीवाना किसी काम में हुश्यार तो है।।
देख लेते हैं सभी कुछ तिरे मुश्ताक़-ए-जमाल,
ख़ैर दीदार न हो हसरत-ए-दीदार तो है।।
माअ'रके सर हों उसी बर्क़-ए-नज़र से ऐ हुस्न,
ये चमकती हुई चलती हुइ तलवार तो है।।
सर पटकने को पटकता है मगर रुक रुक कर,
तेरे वहशी को ख़याल-ए-दर-ओ-दीवार तो है।।
इश्क़ का शिकवा-ए-बेजा भी न बे-कार गया,
न सही जौर मगर जौर का इक़रार तो है।।
तुझ से हिम्मत तो पड़ी इश्क़ को कुछ कहने की,
ख़ैर शिकवा न सही शुक्र का इज़हार तो है।।
इस में भी राबता-ए-ख़ास की मिलती है झलक,
ख़ैर इक़रार-ए-मोहब्बत न हो इंकार तो है।।
क्यूँ झपक जाती है रह रह के तिरी बर्क़-ए-निगाह,
ये झिजक किस लिए इक कुश्ता-ए-दीदार तो है।।
कई उन्वान हैं मम्नून-ए-करम करने के,
इश्क़ में कुछ न सही ज़िंदगी बे-कार तो है।।
सहर-ओ-शाम सर-ए-अंजुमन-ए-नाज़ न हो,
जल्वा-ए-हुस्न तो है इश्क़-ए-सियहकार तो है।।
चौंक उठते हैं 'फ़िराक़' आते ही उस शोख़ का नाम,
कुछ सरासीमगी-ए-इश्क़ का इक़रार तो है।।
_______'फ़िराक़' गोरखपुरी