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इस प्रक्रिया को करते वक़्त मैने तब तक उसके जंपर को उसके कंधो से होते हुए उसके बाज़ू से लेते हुए उसके सर के उपर से निकालके एक ओर फ़ैक् दिया....अब वो मेरे सामने डेज़ी डी की एक सफेद ब्रा पहने हुई झुकी थी..मैने उसके ब्रा की हुक भी खोल डाली और ठीक उसके साथ ही उसके मम्मे भी आज़ाद कर दिए अब उसके दोनो आम जैसी लटकती छातियो को मैं नीचे से भरपूर दबाए जा रहा था....जब तक रूपाली गरम ना हो गयी...
वो फ़ौरन सीधी बैठ गयी फिर मैं उसकी चुचियो के बीच अपना विशाल काय लंड रगड़ने लगा..वो दोनो चुचियो के बीच मेरे लिंग को दबाए रही तब तक मैं लिंग उपर नीचे उसके छातियो के बीच घिसने लगा....रूपाली कामुक हो गयी....उसने ज़ीब नीचे ले जाते हुए उपर नीचे होते सुपाडे के छेद पे चाटना शुरू कर दिया...कुछ ही देर में मेरा लिंग बहुत ज़्यादा कठोर हो गया
रूपाली सीधी लेट गयी...मैने उसके पाजामे के डोरी को खोल डाला...और उसे नीचे तक सरकाते हुए उतार दिया...फिर उसकी पैंटी भी उसकी भीनी खुश्बू मेरे नथुनो में जैसे समा गयी उसकी चूत पे हल्के हल्के रोयेदार झान्टे उग गयी थी शायद उसने हाल ही में वहाँ सॉफ नही किया था
मैने रूपाली की चूत को थोड़ा फैलाया और उसके छेद और इर्द गिर्द ज़ुबान फेरने लगा...उसकी चूत को चाटते ही रूपाली जैसे बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी..और अपने चूत के दाने को दबाने लगी...मैने आगे बढ़के उसकी चूत का दाना मुँह में लेके चुस्स लिया फिर दुबारा चूत को चाटने लगा.....जब तक रूपाली की चूत गीली ना हो गयी..कुछ ही पल में वो शिथिल पड़ गयी
तो मैने अपना मोटा लंबा लंड उसकी चूत के भीतर एक ही बार में घुसाने की नाकाम कोशिश कर दी...लिंग फच्छ की आवाज़ के साथ अंदर घुसता चला गया....जड़ तक लंड बिठा देने के बाद मैने रूपाली को टाँगें एकदुसरे से अलग करने को कहा क्यूंकी चूत के रस छोड़ने पे ही उसने काँपते हुए अपनी चूत जांघों से दबा ली थी.....मैं छेद में लिंग घुसाए पूरी रफ़्तार से चुदाई करने लगा
रूपाली ने अपनी दोनो टाँगों को फैलाए पाओ पे सख्ती से अपना हाथ रख लिया ताकि उसकी टाँगों से पकड़ ना छूटे....मैं सतसट नीचे से धक्के पेल रहा था...चूत से फ़च फ़च की आवाज़ आ रही थी...और मेरी रफ़्तार लगातार तेज़ होने लगी...इस बीच रूपाली होंटो को दाँतों से काट रही थी....
सूरज ढल रहा था लेकिन हमारी चुदाई कम नही हो रही थी...अब हम एक दूसरी मुद्रा में चुदाई का आनंद ले रहे थे....वो मेरी जांघों पे बैठी हुई थी...और मेरे सीने पे दोनो हाथ का दबाव दिए मेरे लिंग को अपनी चूत में फँसाए उपर नीचे हो रही थी....लगभग अंडकोष पे वो कूद रही थी...मुझे धक्के देने के ज़रूरत नही पड़ी क्यूंकी उसकी चूत मेरा लंड बार बार खाने से चौड़ी हो चुकी थी.."आहह आहह स अहहह ओह्ह्ह ओह्ह्ह उईईइ".......रूपाली सिसकते हुए आहें भर रही थी जब शरीर उसका अकड़ जाता या चुदाई की चरम सीमा पे आ जाती तो वो मेरे लिंग पे बैठ जाती और उसे पूरा अपने अंदर लिए अंडकोष पे अपनी गान्ड घिस्सने लगती..फिर दुबारा अपनी गान्ड को उपर नीचे करते हुए कूदने लगती...
कुछ ही पल में मैं स्खलन के करीब पहुच गया पर रूपाली ने मुझे उठने नही दिया....और वो ज़ोर ज़ोर से कूदने लगी..."आहह आहह रूपाली मेरा अंदर गिर जाएगा आहह रूपाली आहह"........"निकाल दो अपना पानी गीला कर दो मेरी चूत को एक शादी शुदा औरत को चोदने में कैसा संकोच आअहह अंदर ही डाल दो आहह"........रूपाली का जिस्म काँपने लगा और उसकी चूत में मेरा लिंग बुरी तरीके से फस गया मुझे अहसास हुआ कि मैं झड़ने लगा हूँ रूपाली चुदाई की थकान से किसी पेड़ की सुखी पत्ती की तरह आदम के सीने पे गिर पड़ी.....आदम ने उसे अपनी बाहों में जकड लिया उसकी ज़ूलफें आदम के चेहरे के उपर बिखर गयी थी...लिंग जैसे ही चूत से आज़ाद किया तो चूत ने ढेर सारा रस अपने भीतर से उगला .
जल्द ही दोनो पास के तालाब के पानी से अपने गुप्ताँग को धोते हुए जल्दी जल्दी अपने कपड़ों को ठीक से पहनते हुए वापिस हवेली लौट आए....रूपाली के पिता के चेहरे पे भी जैसे संतुष्टि के भाव थे मानो कितनी देर तक वो अपनी बीवी की चुदाई में लगा हुआ था....रूपाली की माँ गुसलखाने में इस वक़्त नहा रही थी...रूपाली ने इशारो में ही बताया कि चुदाई के बाद वो अक्सर नहाती है
खैर खातिरदारी और मेहमान नवाज़ी के बाद शाम को आदम वापिस घर लौट रहा था...पर रूपाली भाभी के माँ बाबूजी ने आदम को जाने से मना किया....आदम ने भी सोचा घर जाके अकेले सोने से अच्छा है आज की रात यही काट लून...वो आज की रात अपने भाई के ससुराल में ही रुक गया....
रात गये माँ बाबूजी कमरे का दरवाजा लगाए सोने चले गये...कुछ घंटो बाद ही रूपाली ने मौका देखके आदम के दरवाजे पे दस्तक दी....उसने पलभर भी नही लगाया और आदम के कमरे में दाखिल होते हुए सीधे चितकनी लगा दी....आदम ने उसकी पूरी रात ठुकाइ भी की और चुदाई भी....अब वो रूपाली भाभी से बिना कॉंडम की चुदाई करने में हिचकिचाता नही था उसकी ससुराल में उसे काफ़ी मज़ा मिल रहा था
अगली सुबह सुबह आदम वहाँ से विदा लेके शहर चला आया....सुनने को मिला कि ठीक उसके बाद ही उसका भाई उसकी रूपाली भाभी को लेने आ गया था अच्छा हुआ कि उसकी नज़रें आदम से नही टकराई रूपाली ने आदम के आने की बात लगभग छुपा ली थी और माँ बाबूजी को भी समझा दिया था....घर आते ही वो मुँह हाथ धोके फ्रेश हुआ उसने एक बार उस अननोन नंबर पे कॉल करना चाहा जो उसके दोस्त का था...कुछ देर में रिंग बजने लगी और फिर एक भारी आवाज़ ने हेलो कहा
आदम : हेलो ? कैसा है भाई? इतने सालो बाद समीर हाउ आर यू?
समीर : अर्रे तेरी अब तुझे टाइम मिला परसो कॉल किया पर तूने फोन उठाया नही
आदम : हाहाहा असल में साइलेंट मोड पे था
समीर : वाह बेटा परिवार से दूर क्या हुआ? कि अभी से प्राइवसी के लिए इतने जतन...कौन वहाँ आके तुझे चुदाई से तंग करता? साले सब समझता हूँ वहाँ जाके तेरी नियत खराब हो गयी अब ये बता किसके चक्कर में है वहाँ पे?
आदम : अर्रे यार तू भी ना अभी हाल चाल नही पूछा और मेरी खिचाई करने लगा मैने ऐसा क्या गुनाह कर दिया? खैर रही बात चक्कर की तो भाई मेरी ना कोई है ना कोई थी बस कुछ अपने है उन्ही के साथ टाइम स्पेंड करता हूँ एनीवे मेरी छोड़ अपनी बता तू कैसा है? और हां आंटी कैसी है?
समीर : मोम भी अच्छी है और मैं भी अच्छा हूँ तू यार अपनी माँ को अकेले छोड़के वहाँ ज़िंदगी बिता रहा है तुझे पता है तेरी माँ तेरा कितना ख्याल रखती है....मेरी माँ सोफीया तेरे घर गयी थी साले तेरी माँ कितनी दुख में है मुझे उन्होने बताया
आदम : हाहाहा हां यार शायद मैं कसूरवार हूँ हम मर्द ज़ात भी ना अपनी अयाशी के लिए रिश्ते नाते सब भूल जाते है एनीवे तेरे लिए एक खुशख़बरी है
समीर : कैसी खुशख़बरी?
आदम ने बताया कि वो वापिस दिल्ली आ रहा है...और वो सिर्फ़ माँ के लिए और उसने अपनी नौकरी तक को अलविदा कह दिया...सुनने के बाद समीर चौंका फिर उसके चेहरे पे अज़ीब सी मुस्कुराहट छा गयी
समीर : वाह बेटे लगता है अब तू भी मेरे रास्ते को दोहरा रहा है
आदम : ह्म बहुत बातें करनी है तुझसे खासकरके अपनी !
समीर : वो सब फोन पे बताने की ज़रूरत नही खैर तू टाइम और डेट बता दे मैं उसी दिन तुझसे मिलूँगा
आदम : अर्रे भाई आने तो दे दिल्ली पहले
समीर : अच्छा खैर नौकरी की टेन्षन मत ले बस तू बेफिक्री से घर आजा चलो सुबह का भुला शाम को घर आने के बारे में सोचा तो....और सुन माँ की मुहब्बत से बढ़के कोई मुहब्बत नही एक बार इसे चख लिया ना तो फिर किसी पराई औरत का भी स्वाद नही लगेगा
समीर की बात इतनी गरम थी कि आदम के दिल की धड़कने तेज़ हो गयी उसने कुछ देर बात करके फोन कट कर दिया.....सच में समीर की ही रास्ते पे वो आज चल रहा था
दरवाजे पे दस्तक सुनके मैं फ़ौरन फोन छोड़के उठ खड़ा हुआ...एक शर्ट डाला अपने बदन पे और सीधे दरवाजे के करीब आते ही तबस्सुम दी को दरवाजे के बाहर खड़ा पाया....मैने दरवाजा झट से खोला...तबस्सुम दीदी अंदर आई
आदम : अर्रे अच्छे टाइम पे आई हो मैं फ्री ही था
तबस्सुम : ह्म पर ये क्या तुम वापिस जा रहे हो?
आदम : हां वो दरअसल दिल्ली से बुलावा आया है परिवार को देखने जा रहा हूँ
तबस्सुम : ओह अच्छा अच्छा हां परिवार को भी बीच बीच में देखते रहना चाहिए फिर कब आओगे?
आदम : देखो दीदी कारण ये है कि मैं जहाँ काम करता हूँ अभी वो धंधा ठंडा पड़ सा गया है और आप तो जानती है बिना नौकरी किए मैं यहाँ रह नही पाउन्गा
तबस्सुम : यही तो मुस्किल है
आदम : अर्रे आप बैठो अभी तो है ना 1 महीना तब तक हम भाई-बहन आराम से एकदुसरे के साथ टाइम स्पेंड कर सकते है और कोई डिस्टर्बेन्स भी नही होगी
तबस्सुम का चेहरा लाल हो गया वो लजा के नज़रें चुराने लगी...मेरी निगाह आज भी उसके क्लीवेज पे थी आज उसने पल्लू थोड़ा नीचे किया हुआ था...इसलिए ब्लाउस का उपरी सिरा या यूँ कह लो चुचियो के कटाव सॉफ दिख रहे थे...मेरे होंठो पे चलती ज़ुबान को देखके उसके मन में भी जैसे वासना उमड़ने लगी
"आहह ओह्ह्ह आहह सस्स आहह आहह आहह उहह उईईइ"......कुछ ही देर में पलंग चरमाते हुए एक तीखी आवाज़ निकाल रहा था और उपर चुद्दम चुदाई का खेल और तबस्सुम और उसके भाई आदम की सिसकियो की आवाज़ गूँज़ रही थी पूरे कमरे में
वो फ़ौरन सीधी बैठ गयी फिर मैं उसकी चुचियो के बीच अपना विशाल काय लंड रगड़ने लगा..वो दोनो चुचियो के बीच मेरे लिंग को दबाए रही तब तक मैं लिंग उपर नीचे उसके छातियो के बीच घिसने लगा....रूपाली कामुक हो गयी....उसने ज़ीब नीचे ले जाते हुए उपर नीचे होते सुपाडे के छेद पे चाटना शुरू कर दिया...कुछ ही देर में मेरा लिंग बहुत ज़्यादा कठोर हो गया
रूपाली सीधी लेट गयी...मैने उसके पाजामे के डोरी को खोल डाला...और उसे नीचे तक सरकाते हुए उतार दिया...फिर उसकी पैंटी भी उसकी भीनी खुश्बू मेरे नथुनो में जैसे समा गयी उसकी चूत पे हल्के हल्के रोयेदार झान्टे उग गयी थी शायद उसने हाल ही में वहाँ सॉफ नही किया था
मैने रूपाली की चूत को थोड़ा फैलाया और उसके छेद और इर्द गिर्द ज़ुबान फेरने लगा...उसकी चूत को चाटते ही रूपाली जैसे बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी..और अपने चूत के दाने को दबाने लगी...मैने आगे बढ़के उसकी चूत का दाना मुँह में लेके चुस्स लिया फिर दुबारा चूत को चाटने लगा.....जब तक रूपाली की चूत गीली ना हो गयी..कुछ ही पल में वो शिथिल पड़ गयी
तो मैने अपना मोटा लंबा लंड उसकी चूत के भीतर एक ही बार में घुसाने की नाकाम कोशिश कर दी...लिंग फच्छ की आवाज़ के साथ अंदर घुसता चला गया....जड़ तक लंड बिठा देने के बाद मैने रूपाली को टाँगें एकदुसरे से अलग करने को कहा क्यूंकी चूत के रस छोड़ने पे ही उसने काँपते हुए अपनी चूत जांघों से दबा ली थी.....मैं छेद में लिंग घुसाए पूरी रफ़्तार से चुदाई करने लगा
रूपाली ने अपनी दोनो टाँगों को फैलाए पाओ पे सख्ती से अपना हाथ रख लिया ताकि उसकी टाँगों से पकड़ ना छूटे....मैं सतसट नीचे से धक्के पेल रहा था...चूत से फ़च फ़च की आवाज़ आ रही थी...और मेरी रफ़्तार लगातार तेज़ होने लगी...इस बीच रूपाली होंटो को दाँतों से काट रही थी....
सूरज ढल रहा था लेकिन हमारी चुदाई कम नही हो रही थी...अब हम एक दूसरी मुद्रा में चुदाई का आनंद ले रहे थे....वो मेरी जांघों पे बैठी हुई थी...और मेरे सीने पे दोनो हाथ का दबाव दिए मेरे लिंग को अपनी चूत में फँसाए उपर नीचे हो रही थी....लगभग अंडकोष पे वो कूद रही थी...मुझे धक्के देने के ज़रूरत नही पड़ी क्यूंकी उसकी चूत मेरा लंड बार बार खाने से चौड़ी हो चुकी थी.."आहह आहह स अहहह ओह्ह्ह ओह्ह्ह उईईइ".......रूपाली सिसकते हुए आहें भर रही थी जब शरीर उसका अकड़ जाता या चुदाई की चरम सीमा पे आ जाती तो वो मेरे लिंग पे बैठ जाती और उसे पूरा अपने अंदर लिए अंडकोष पे अपनी गान्ड घिस्सने लगती..फिर दुबारा अपनी गान्ड को उपर नीचे करते हुए कूदने लगती...
कुछ ही पल में मैं स्खलन के करीब पहुच गया पर रूपाली ने मुझे उठने नही दिया....और वो ज़ोर ज़ोर से कूदने लगी..."आहह आहह रूपाली मेरा अंदर गिर जाएगा आहह रूपाली आहह"........"निकाल दो अपना पानी गीला कर दो मेरी चूत को एक शादी शुदा औरत को चोदने में कैसा संकोच आअहह अंदर ही डाल दो आहह"........रूपाली का जिस्म काँपने लगा और उसकी चूत में मेरा लिंग बुरी तरीके से फस गया मुझे अहसास हुआ कि मैं झड़ने लगा हूँ रूपाली चुदाई की थकान से किसी पेड़ की सुखी पत्ती की तरह आदम के सीने पे गिर पड़ी.....आदम ने उसे अपनी बाहों में जकड लिया उसकी ज़ूलफें आदम के चेहरे के उपर बिखर गयी थी...लिंग जैसे ही चूत से आज़ाद किया तो चूत ने ढेर सारा रस अपने भीतर से उगला .
जल्द ही दोनो पास के तालाब के पानी से अपने गुप्ताँग को धोते हुए जल्दी जल्दी अपने कपड़ों को ठीक से पहनते हुए वापिस हवेली लौट आए....रूपाली के पिता के चेहरे पे भी जैसे संतुष्टि के भाव थे मानो कितनी देर तक वो अपनी बीवी की चुदाई में लगा हुआ था....रूपाली की माँ गुसलखाने में इस वक़्त नहा रही थी...रूपाली ने इशारो में ही बताया कि चुदाई के बाद वो अक्सर नहाती है
खैर खातिरदारी और मेहमान नवाज़ी के बाद शाम को आदम वापिस घर लौट रहा था...पर रूपाली भाभी के माँ बाबूजी ने आदम को जाने से मना किया....आदम ने भी सोचा घर जाके अकेले सोने से अच्छा है आज की रात यही काट लून...वो आज की रात अपने भाई के ससुराल में ही रुक गया....
रात गये माँ बाबूजी कमरे का दरवाजा लगाए सोने चले गये...कुछ घंटो बाद ही रूपाली ने मौका देखके आदम के दरवाजे पे दस्तक दी....उसने पलभर भी नही लगाया और आदम के कमरे में दाखिल होते हुए सीधे चितकनी लगा दी....आदम ने उसकी पूरी रात ठुकाइ भी की और चुदाई भी....अब वो रूपाली भाभी से बिना कॉंडम की चुदाई करने में हिचकिचाता नही था उसकी ससुराल में उसे काफ़ी मज़ा मिल रहा था
अगली सुबह सुबह आदम वहाँ से विदा लेके शहर चला आया....सुनने को मिला कि ठीक उसके बाद ही उसका भाई उसकी रूपाली भाभी को लेने आ गया था अच्छा हुआ कि उसकी नज़रें आदम से नही टकराई रूपाली ने आदम के आने की बात लगभग छुपा ली थी और माँ बाबूजी को भी समझा दिया था....घर आते ही वो मुँह हाथ धोके फ्रेश हुआ उसने एक बार उस अननोन नंबर पे कॉल करना चाहा जो उसके दोस्त का था...कुछ देर में रिंग बजने लगी और फिर एक भारी आवाज़ ने हेलो कहा
आदम : हेलो ? कैसा है भाई? इतने सालो बाद समीर हाउ आर यू?
समीर : अर्रे तेरी अब तुझे टाइम मिला परसो कॉल किया पर तूने फोन उठाया नही
आदम : हाहाहा असल में साइलेंट मोड पे था
समीर : वाह बेटा परिवार से दूर क्या हुआ? कि अभी से प्राइवसी के लिए इतने जतन...कौन वहाँ आके तुझे चुदाई से तंग करता? साले सब समझता हूँ वहाँ जाके तेरी नियत खराब हो गयी अब ये बता किसके चक्कर में है वहाँ पे?
आदम : अर्रे यार तू भी ना अभी हाल चाल नही पूछा और मेरी खिचाई करने लगा मैने ऐसा क्या गुनाह कर दिया? खैर रही बात चक्कर की तो भाई मेरी ना कोई है ना कोई थी बस कुछ अपने है उन्ही के साथ टाइम स्पेंड करता हूँ एनीवे मेरी छोड़ अपनी बता तू कैसा है? और हां आंटी कैसी है?
समीर : मोम भी अच्छी है और मैं भी अच्छा हूँ तू यार अपनी माँ को अकेले छोड़के वहाँ ज़िंदगी बिता रहा है तुझे पता है तेरी माँ तेरा कितना ख्याल रखती है....मेरी माँ सोफीया तेरे घर गयी थी साले तेरी माँ कितनी दुख में है मुझे उन्होने बताया
आदम : हाहाहा हां यार शायद मैं कसूरवार हूँ हम मर्द ज़ात भी ना अपनी अयाशी के लिए रिश्ते नाते सब भूल जाते है एनीवे तेरे लिए एक खुशख़बरी है
समीर : कैसी खुशख़बरी?
आदम ने बताया कि वो वापिस दिल्ली आ रहा है...और वो सिर्फ़ माँ के लिए और उसने अपनी नौकरी तक को अलविदा कह दिया...सुनने के बाद समीर चौंका फिर उसके चेहरे पे अज़ीब सी मुस्कुराहट छा गयी
समीर : वाह बेटे लगता है अब तू भी मेरे रास्ते को दोहरा रहा है
आदम : ह्म बहुत बातें करनी है तुझसे खासकरके अपनी !
समीर : वो सब फोन पे बताने की ज़रूरत नही खैर तू टाइम और डेट बता दे मैं उसी दिन तुझसे मिलूँगा
आदम : अर्रे भाई आने तो दे दिल्ली पहले
समीर : अच्छा खैर नौकरी की टेन्षन मत ले बस तू बेफिक्री से घर आजा चलो सुबह का भुला शाम को घर आने के बारे में सोचा तो....और सुन माँ की मुहब्बत से बढ़के कोई मुहब्बत नही एक बार इसे चख लिया ना तो फिर किसी पराई औरत का भी स्वाद नही लगेगा
समीर की बात इतनी गरम थी कि आदम के दिल की धड़कने तेज़ हो गयी उसने कुछ देर बात करके फोन कट कर दिया.....सच में समीर की ही रास्ते पे वो आज चल रहा था
दरवाजे पे दस्तक सुनके मैं फ़ौरन फोन छोड़के उठ खड़ा हुआ...एक शर्ट डाला अपने बदन पे और सीधे दरवाजे के करीब आते ही तबस्सुम दी को दरवाजे के बाहर खड़ा पाया....मैने दरवाजा झट से खोला...तबस्सुम दीदी अंदर आई
आदम : अर्रे अच्छे टाइम पे आई हो मैं फ्री ही था
तबस्सुम : ह्म पर ये क्या तुम वापिस जा रहे हो?
आदम : हां वो दरअसल दिल्ली से बुलावा आया है परिवार को देखने जा रहा हूँ
तबस्सुम : ओह अच्छा अच्छा हां परिवार को भी बीच बीच में देखते रहना चाहिए फिर कब आओगे?
आदम : देखो दीदी कारण ये है कि मैं जहाँ काम करता हूँ अभी वो धंधा ठंडा पड़ सा गया है और आप तो जानती है बिना नौकरी किए मैं यहाँ रह नही पाउन्गा
तबस्सुम : यही तो मुस्किल है
आदम : अर्रे आप बैठो अभी तो है ना 1 महीना तब तक हम भाई-बहन आराम से एकदुसरे के साथ टाइम स्पेंड कर सकते है और कोई डिस्टर्बेन्स भी नही होगी
तबस्सुम का चेहरा लाल हो गया वो लजा के नज़रें चुराने लगी...मेरी निगाह आज भी उसके क्लीवेज पे थी आज उसने पल्लू थोड़ा नीचे किया हुआ था...इसलिए ब्लाउस का उपरी सिरा या यूँ कह लो चुचियो के कटाव सॉफ दिख रहे थे...मेरे होंठो पे चलती ज़ुबान को देखके उसके मन में भी जैसे वासना उमड़ने लगी
"आहह ओह्ह्ह आहह सस्स आहह आहह आहह उहह उईईइ"......कुछ ही देर में पलंग चरमाते हुए एक तीखी आवाज़ निकाल रहा था और उपर चुद्दम चुदाई का खेल और तबस्सुम और उसके भाई आदम की सिसकियो की आवाज़ गूँज़ रही थी पूरे कमरे में