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सुनीता सीधा कमरे से बाहर निकल जाती है और अजय उसको देखते ही रहता है।अजय भी कुछ नहीं बोलता और वो सीधा अपने दुकान निकल जाता।कुछ देर बाद सुधा वापस घर आ जाती है और खाना बनाने लगती है।अजय भी घर रात को देर में आता है और खाना खा कर अपने कमरे में चला जाता है।और किसी से कुछ नहीं बोलता है
अपने कमरे में सुनीता आज जो कुछ भी हुआ उसके बारे में सोचने लगती है और क्या करें और फिर वो फोन उठती है और किसी को कॉल करती है घंटी बजने लगती हैं और फिर उदर से आवाज आती है
शालिनी:हेलो
सुनीता:दीदी मैं सुनीता बोल रही हु माफ करना इतनी रात को आपको फोन किया
शालिनी:अरे कोई बात नहीं मैं जग ही रही थी बोलो क्या हुआ
सुनीता:दीदी मुझे आपसे कुछ बात करनी है
शालिनी: हा बोलो
सुनीता:दीदी फोन पे नहीं आपसे मिलके अकेले में
शालिनी:ठीक है कल दोपहर को मेरे घर आ जाओ मैं अकेली ही हु
सुनीता:ठीक है दीदी और इतना बोल के वो फोन कट कर देती है
और फिर शालिनी से बात करके वो सो जाती और सुबह होने का इंतजार करने लगती है।
सुबह होते ही सुनीता उठ के नहा धो कर नाश्ता बनाने लगती है तब तक सुधा भी उठ जाती है और वो सुनीता की मदद करने लगती है।फिर अजय कसरत करके नहा धो कर नाश्ता करने आता है।सुधा उसको नाश्ता देती है पर वो कुछ बोलता नहीं और न ही सुनीता से कोई बात करता है।और नाश्ता करके वो दुकान के लिए निकल जाता हैं।
सुनीता भी दोपहर का खाना बनकर वो सुधा को बोलती है कि वो शालिनी के घर जा रही है और सुनीता निकल जाती है और २० मिनिट बाद वो शालिनी के घर के समाने होती है और गेट खोल कर अंदर चलीं जाती है।शालिनी छत पे होती है और ऊपर से सुनीता को इशारा करके बोलती है कि गेट बंद करके छत पे आ जा।
सुनीता गेट बंद करके छत पे चली जाती है और फिर शालिनी बोलती है कि तू रुक मैं आती हु और जब वो वापस आती है तो उसके हाथ में दो कप चाय थी
सुनीता:अरे दीदी इसकी क्या जरूरत थी?
शालिनी:अरे जरूरत कैसे नहीं तुम मेरे घर आई हो और मैं चाय भी न पूछूं ये कैसे हो सकता है।और बताओ क्या बात है बड़ी परेशान लग रही हो
सुनीता:दीदी अब क्या बोलूं में
शालिनी:अरे बेझिझक बोलो तुम तो जानती हो कि जो बाते हमारे बीच होती है तो हमारे तक ही रहती है तुम बेफिक्र बोलो
सुनीता:दीदी बात अजय को लेकर है
शालिनी:क्या हुआ अजय को सब ठीक तो है न कल ही तो मैने उसे देखा था ठीक तो लग रहा था कल
सुनीता:ठीक तो है दीदी पर बहुत बिगड़ गया है
शालिनी:हुआ क्या है बताओ भी तो सही
सुनीता फिर वो सारे आगाज और गंदी तस्वीर की किताब सब शालिनी को देती है और शालिनी पहले तो वो गंदी तस्वीरों की किताब देखती है और फिर वो सारे आगाज जिसमें कहानी थी और फिर कुछ पन्ने पढ़ कर वो सुनीता की और देखती है और एक गहरी सांस लेती है।
शालिनी:सुनीता एक बात पूछूं तुमसे पर उसका सही सही उतर देना
सुनीता:बोलो दीदी
शालिनी:अजय तुम्हे कैसा लगता है।
सुनीता:दीदी अच्छा है
शालिनी:क्या तुमने कभी उसे एक मर्द की तरह देखा है
सुनीता:दीदी वो मेरा बेटा है और आप भी उसकी तरफ से बोल रही है मुझे तो ऐसा ही लग रहा है
शालिनी: देखो सुनीता तुम्हारा बेटा तुम्हें पसंद करता है और तुम्हे एक मा नहीं औरत की नजर से देखता है और तुम्हे बहुत चाहता भी है
सुनीता:दीदी पर ये तो गलत है ऐसे रिश्ते कहा होते है।
शालिनी:और अगर ऐसे रिश्ते होते तो क्या तुम्हे वो बताते की एक मा और बेटे के बीच शारीरिक सम्बन्ध है नहीं न कुछ रिश्ते सिर्फ चार दिवारी के भीतर ही पानाबते है।
सुनीता की विश्वास ही नहीं हो रहा होता है कि शालिनी ऐसा बोलेगी और अजय को सही बताएगी।
शालिनी: देखो सुनीता तुम्हें ऊपर वाले ने इतना हटा कटा और नौजवान बेटा दिया है जो तुम्हे पसंद करता है तो क्यों न तुम भी उसका इसमें साथ दो
सुनीता:दीदी आप क्या बोल रही है ऐसे कैसे बोल सकती है लोग क्या कहेंगे और ये समाज
शालिनी:सुनीता तुम अपनी खुशी देखी लोगो का मत सोचो।याद है उस दिन तुम मुझसे पूछ रही थी दीदी आप इतनी खिली खिली कैसे रहती है।मैं बताने वाली थी पर उस समय कोई आ गया था।
सुनीता:हा दीदी याद आया।
शालिनी:सुनीता अब मैं जो बताने जा रही हु एक राज है और ये राज कोई नहीं जानता और तुमपे भरोसा करके ये बाद बता रही हु
सुनीता:दीदी मेरी जान चली जाएगी पर आपकी बात किसी को पता नहीं चलने दूंगी।आप बेफिक्र होकर बताओ
शालिनी:सुनीता मैं और मेरे बेटे राजेश मां और बेटे तो है।पर वो रिश्ता सिर्फ बाहर वाले के लिए है और घर के अंदर मैं उसकी बीवी हु और हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते है।राजेश मुझे हर सुख देता है।और मैं भी खुश हु।
सुनीता ये सुनाते ही वो एकदम शांत हो जाती है उसे यकीन नहीं होता जो शालिनी कह रही थी।
सुनीता:दीदी पर आप खुश है इस रिश्ते से और समाज का क्या?
शालिनी:मैं बहुत खुश हु सुनीता मुझे ऐसा प्यार करने वाला मर्द मिला है जो मेरी शारीरिक जरूरत को पूरा करता है।और समाज क्या क्या है अगर बाहर किसी आदमी से रिश्ता रख लो तो यही लोग औरत को रण्डी बोलते है और बदनामी का डर अलग से।पर यह मैं और मेरा बेटा चार दिवारी के अंदर बड़े सुकून से रहते है वो तो मुझे घर के हर होने में चोद चुका है और बाहर हम एकदम मां बेटे की तरह रहते है और किसी को शक भी नहीं होता।तुम्ही बताओ क्या ये गलत है मैं एक औरत हु मेरी भी शारीरिक जरूरत है तो वही जरूरत अगर घर पे मिल रही हो तो क्या बुराई है और सबसे बड़ी बात बदनामी तो नहीं होती।सच काहू तो अगर मेरी एक बेटी होती न तो भी मैं उसे राजेश से चुदावा देती फिर हम तीनों एक हसी खुशी जिंदगी जीते।मैं तो कहती हु सुनीता अपने बेटे को अपना लो बहुत भाग्य से तुम्हे वापस प्यार मिला है ऐसे मत ठुकरा के जाओ उसे।
सुनीता बहुत ध्यान से शालिनी की हर के शब्द सुनती है और फिर एक गहरी सांस लेती है।
सुनीता:आप सच कह रही है दीदी समाज तो वैसे भी हम लोगों को जीने नहीं देता।वैसे भी अगर बाहर रिश्ता बनाओ तो बदनामी का दाग लग जाता है।
शालिनी:सही कहा।और जितना तुमने ये सब दिखाया है और ये सारी कहानी पढ़ी मैने उस से तो ये साबित हो जाता है कि अजय बहुत कामुक लड़का है और तुम्हारी आने वाली रातें रंगीन होने वाली है।
सुनीता ये सुन कर किसी नई नवेली दुल्हन की तरह शर्मा जाती है।
शालिनी:एक बात याद रखना सुनीता मर्द की हर एक बात मानना और आज कल के लड़के बहुत गंदे हो गए है उन्हें गंदी सी गंदी चुदाई पसंद है और चुदाई के वक्त औरत जितना बेशरम होती है चुदाई का मजा उतना ही आता है।
सुनीत:दीदी मैं आपकी हर एक बात का खयाल रखूंगी ।अच्छा दीदी अब मैं चलती हु। अपने मेरे मन से बहुत बड़ा भोज उतर दिया।
शालिनी: कोई बात नहीं और जाओ और अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करो।
फिर कुछ देर तक दोनों आपस में बात करते है और फिर सुनीता अपने घर के लिए निकल जाती है।