आज तीन साल हो गए हैं, बहुत लड़कियों के साथ जाकर मैंने सोचा कि मैं उसे भूल जाऊँगा पर ऐसा नहीं हो पाया।
मेरे प्यार की तलाश अभी भी ज़ारी है…
ये कहानी यहाँ समाप्त तो नहीं हुयी पर कभी कभी किसी कहानी को एक खूबसूरत मोड़ दे देना भी अंजाम के बराबर ही होता है l
अब मेरी कहानियों की श्रिंखला में पेश है एक और रोमांचक कहानी ... उम्मीद है ये भी आपको उतनी ही पसंद आएगी l
एक व्याख्या प्रेम की
वासना और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। प्रेम का सुख मिल जाए तो वासना मनुष्य के नियंत्रण में हो जाती है और जिस्म का सुख मिल जाए तो प्रेम पीछे छूटने लगता है।
मैं जो कहानी सुनाने जा रहा हूँ वो इन्ही दो शब्दों के बीच है, वासना की आग बड़ी है या प्रेम की सौगात, यही समझने की कोशिश है इस कहानी में !
यह कहानी सत्य है काल्पनिक, यह निर्णय मैं आप पर छोड़ता हूँ क्योंकि कभी कभी सत्य भी काल्पनिक लगने लगता है और प्रेम से बड़ा धोखा तो शायद ही इस संसार में कोई और है।
यह कहानी है पुष्प की ! हाँ, उसका नाम पुष्प था, जैसा नाम वैसा ही स्वरूप ! उसे देख के अक्सर मैं पारिजात वृक्ष के पुष्पों की कल्पना में खो जाता था। कहते हैं देवताओं का शृंगार इन्हीं पुष्पों से होता है। उसका एक एक अंग में जैसे उसी पुष्प की निर्मलता बसी हुई थी। रंग उसका सांवलेपन और गौर वर्ण के बीच का था, 18 की अवस्था थी और इस उम्र के अनुसार कुछ ज्यादा ही परिपक्व थी। उसकी आँखें अगर कोई एक बार देख ले तो उसके सम्मोहन से कभी निकलना ही ना चाहे। उसके सुर्ख गुलाबी अधर जिसके निचले भाग जरा ज्यादा विकसित थे उस पर जब पानी की बूँदें रह जाती थी तब उस जल की एक बूंद के लिए अमृत का त्याग भी संभव लगता। उसके गले और घने गेसुओं का वो मिलन स्थल जिसे यौन क्रिया में स्त्री की ख़ास जगह का दर्जा प्राप्त है, उसमें से आती हुई खुशबू किसी को भी अपना दीवाना बना ले। उसके वो दो अमृत कलश इतने नाजुक लगते थे मानो कहीं छूने मात्र से कहीं अमृत छलक ना जाये।
नाभि ऐसी कि अप्सराएँ भी ईर्ष्या करें, कटि प्रदेश तक आते आते ऐसा मालूम होता है कि सफ़र जिसकी शुरुआत इतनी आनन्ददायक थी उसका अंत ऐसा ही होना चाहिए।
हल्के हल्के रेशमी रोयें जो एक नाज़ुक कवच बना घेरे रहते थे उस पुष्प के रक्तिम पुष्प को, जरा सा ऊपर करने पर नीचे तीसरे द्वार पे उँगलियाँ फिराना ऐसा लगता मानो स्वर्ग के द्वार पे खड़ा मनुष्य अन्दर जाने से इन्कार कर रहा हो… ऐसा लगता है जैसे उसके जिस्म को शब्द में बाँध पाना संभव ही नहीं है।
एक बार फिर मैं पटना पहुँचा। इस बार मैं अपने अंकल के यहाँ रूका था। लगातार दो परीक्षाएँ थी तो इस बार पूरे एक हफ्ते यहीं रूकना था। चेहरे पर उदासी और मन में पिछली बार की याद संजोये यूँ ही अंकल के घर से बाहर टहलने निकला, रह रह कर अपनी पुरानी यादों में डूबा जा रहा था, मन लग नहीं रहा था तो ऑटो से गंगा नदी के किनारे एक छोटे से घाट पर पहुँचा। नदी किनारे से काफी दूर थी, फिर भी शायद मेरी आस्था या संस्कार जो बिना गंगा नदी के जल का स्पर्श किये रह न सका, धीरे धीरे नदी के करीब पहुँच कर उसके जल को छूकर और अपने हाथ पांव धोकर वापिस आने लगा तभी एक किश्ती के मेरे करीब आने की आवाज़ सुनाई दी मेरे पीछे एक नाव आकर रुकी।
मल्लाह ने पूछा- नदी पे सैर करना है भैया?
मेरा मन वैसे भी नहीं लग रहा था, मैं हाँ कह कर उसकी नाव पर चढ़ गया। कुल दस लोगों की जगह थी और मैं अकेला था। ऐसा लग रहा था जैसे पूरी दुनिया में मैं ही अकेला हूँ…
थोड़ी देर में नाविक ने कश्ती को दूसरे तट पर रोक दिया और दूसरे ग्राहक खोजने लगा।
मैं चुपचाप नदी की धार को देख रहा था, अचानक एक आवाज़ ने मेरा ध्यान भंग किया, जैसे ही पलटा, मेरी नज़र उस आवाज़ के स्रोत पर गई। ढलते हुए सूरज की रोशनी में चाँद को देखने जैसा नजारा था।
वो अपने पूरे परिवार के साथ आई हुई थी। दिल में बसी वो पुरानी यादें मानो कहीं खो सी गई, अब तो जैसे मुझे मेरी मंजिल ही मिल गयी थी। वो अपने सारे परिवार को सहारा देकर चढ़ा रही थी और उसके कूल्हे मेरी वासना बढ़ा रहे थे…
एक छन में प्रेम और दूसरे ही पल वासना !
यही जीवन है।
अब पूरे सात लोग हो गए थे और कहीं दूसरा ग्राहक मिलने के आसार नहीं थे तो खेवट ने सैर की शुरुआत की। उसी परिवार का एक लड़का मेरी बगल वाली सीट पर बैठ गया था और उसके बगल में पुष्प.. अपनी वासना से उत्प्रेरित भावना को संयमित करने के लिए मैं दूसरी तरफ देख रहा था कि तभी ढेर सारी पानी की बूँदें मेरे चेहरे और कपड़ों पे आ गिरी। मैं कुछ कहता, उससे पहले उस परिवार के मुखिया ने मुझसे माफ़ी मांगी और उसे डांटने लगा।
मैंने फिर खुद को संयमित कर उनसे कहा- रहने दीजिये कोई बात नहीं..
फिर बगल वाले लड़के ने हाथ बढ़ाते हुए मुझसे कहा- मेरा नाम आकाश है, और आपका?
मैंने उत्तर में अपना नाम बताया ‘निशांत’