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Adultery मेरे नाजायज प्रेम का सफ़र l

naqsh8521

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प्रेम अध्याय की शुरुआत

हम बचपन से ही एक बात हमेशा सुनते आये हैं.. जीवन एक नदी की धारा की तरह है जिसने कभी रूकना नहीं जाना..

उस नदी की एक बूंद जिसका सफ़र कहीं पहाड़ियों की चोटी से शुरू होता है और अंत में न जाने कितने ही अवरोधों को पार करते हुए कितने ही खूबसूरत जन्नत सरीखे रास्तों से होते हुए.. महासागर में समर्पित हो जाती है।

मेरा जीवन भी अभी उन्हीं मोड़ों से गुज़र रहा है.. जब भी ये जीवन किसी खूबसूरत जन्नत से लगने वाले गंतव्य से गुजरती है तो वो मैं आपके सामने एक कहानी के तौर पर लिख देता हूँ.. मेरी पिछली कहानियाँ आप सभी पाठकों द्वारा काफी सराही गई, उसके लिए आप सभी को धन्यवाद !

यह कहानी शुरु होती है जब मेरी कहानी सच्चे प्यार की तलाश प्रकाशित हुई थी। मैं अपने मेल पर आप सभी पाठकों के मेल का जवाब दे रहा था, तभी मेरी नज़र एक मेल पर पड़ी, मेल था: IASpreyashi….

मुझे थोड़ा अजीब सा लगा, फिर सोचा कि क्या प्यार की ज़रुरत और तलाश तो सभी को होती है। तो प्रशाशनिक अधिकारी हो या आम मध्यम वर्ग, प्यार की ज़रुरत सभी की एक जैसी ही होती है, हम भले ही अपने दिल को यह कह कर बहला लें कि अगर जिस्म का सुख हैं, मेरे पास तो प्यार की क्या ज़रुरत ! पर असल में हम अन्दर ही अन्दर खोखले हुए जाते हैं। प्यार बिना यह सारी दुनिया जैसे उजाड़ सी लगती है।

मैंने उसका मेल खोला, बड़ा ही संक्षिप्त संवाद था, लिखा था: ” मैंने अपने सारे अरमान अपनी मंजिल और अपने परिवार की खुशियों के लिए कुर्बान कर दिए थे। ऐसा लगता था कि अब मैं कभी उसे याद नहीं करुँगी पर जब मैंने आपकी कहानी पढ़ी तो खुद को रोक न पाई। मैं पहली बार किसी से इस तरह बात कर रही हूँ, काश आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में होता जो मेरी जिंदगी में प्यार ही प्यार भर सकता क्यूँकि जो इंसान इतने दिनों तक किसी के साथ बिताए पलों को अपनी जिंदगी बनाए हुए है और उसका इंतज़ार अब तक कर रहा है वही मुझे प्यार भी दे सकता है..”

मैंने इस मेल को एक बार पढ़ा फिर दोबारा पढ़ा, फिर कम से कम सात बात पढ़ा और मैं सोच में पड़ गया कि क्या जवाब दूँ इसका..

फिर मैंने उसका जवाब भेजा.. “मैडम मैं क्या कहूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा, पर मैं आपका अकेलापन समझ सकता हूँ, मुझे तो लगता था कि दुनिया में मैं सबसे अकेला हूँ, पर जितना आपको जाना है उससे तो मुझे ऐसालगता है कि जैसे मैंने खुद को ही शीशे में देख लिया हो। मैं वीडियो चैट और ऑनलाइन बातों में यकीन नहीं रखता हूँ क्यूंकि आज सच्चाई कम और धोखे ज्यादा मिलते हैं। अगर सच में आप ऊब गई हैं ऐसी जिंदगी से तो मुझसे मिलिए, शायद यह मुलाक़ात हम दोनों की जिंदगी को किसी खूबसूरत मुकाम तक पहुँचा सके।”

और फिर मैंने वो मेल भेज दिया..

वहाँ से जवाब आया, “आपने तो आइना देख लिया पर अब मैं भी देखना चाहती हूँ, सब कुछ भूल कर बस अपने होने का एहसास करना चाहती हूँ, मैं एक सफ़र पे जाना चाहती हूँ जहाँ बस आप हो, और मैं हूँ और कुछ भी नहीं ! अपना नाम और उम्र मुझे भेजें ताकि मैं अपने सफ़र की टिकट करवा सकूँ..”

मैंने उसे निशांत, उम्र 26 लिख कर भेज दिया।उसने एक हफ्ते बाद की बुकिंग कराई थी और बुकिंग की एक कॉपी मुझे भेज दी उसने।

अब मुझे सच में डर लग रहा था, मैंने तो उसे अब तक देखा भी नहीं था न ही उसकी आवाज़ सुनी थी, और तो और उसका नाम भी नहीं जानता था मैं.. तभी मेरे दिमाग में एक बात आई, मैंने फ़ौरन अपना मेल बॉक्स खोला और टिकट को चेक किया। पटना से दिल्ली तो मेरे अकेले की थी पर दिल्ली से बागडोगरा के लिए हम दोनों की फ्लाइट थी। उसमें उसका नाम लिखा था राज प्रेयसी (बदला हुआ) उम्र 33 वर्ष !

अब तो बस एक हफ्ता काटना था, आखिर वो दिन आ ही गया, मैं पटना हवाई अड्डे पर पहुँचा, दो घंटे बाद की मेरी फ्लाइट थी। नियत समय पर मैं दिल्ली पहुँचा।

दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुँचते ही मुझे अजीब सी बेचैनी हो रही थी, मैं उसे पहचान भी तो नहीं सकता था, पता नहीं वो आई है या नहीं, उसका फ़ोन नंबर भी नहीं था मेरे पास, बस उसकी सीट मेरे बगल में थी, यही जानता था।

अब तीन घंटों के इंतज़ार के बाद मेरी अगली फ्लाइट का समय हुआ, मैं अपनी सीट पर बैठ गया और अपनी आँखें बंद कर ली मैंने ! करीब दस मिनट के बाद मुझे एहसास हुआ कि कोई मेरे बगल में बैठा है। अब तो बस कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि आँखें खोलूँ या नहीं।

फिर मुझे महसूस हुआ कि उसने अपना सर मेरे कंधे पे रख दिया है, मैंने धीरे से अपनी आँखें खोली। काफी लम्बे और घने बाल थे उसके.. मैंने धीरे से उसके सर को चूम लिया, उसने चौंक कर अपना सर ऊपर किया, हमारी नज़रें मिली, आँखें भूरी थी उसकी पर चमक ऐसी कि कोई भी सम्मोहित हो जाए, निचला होंठ ऊपर के होंठ से हलके भारी था, गुलाबी और चमकदार। रंग सांवला और शरीर भरा पूरा था।
 

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Rochak, Rasprad aur romanchak. Agle update ka intejar
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जब मैं उसका मुआयना कर रहा था, तभी उसने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेकर मुझसे कहा- क्या देख रहे हो जनाब?

मैंने कहा- कोशिश कर रहा हूँ कुछ देखने की ! शायद कुछ दिख जाए..

वो हंसने लगी ! वो सच में बहुत खुश लग रही थी उस वक़्त !

वो मेरी आँखों में देख रही थी थी मैं उसकी.. मुझे एक ग़ज़ल याद आ रही थी..

कोई फ़रियाद मेरे दिल में दबी हो जैसे,

तूने आँखों से कोई बात कही हो जैसे,

जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे…

मेरे हाथों में उसका हाथ था और हम दोनों में से कोई भी अपनी नज़र नीचे करने को तैयार ही नहीं था। पता नहीं क्या हुआ मुझे, मैंने अपने होंठ उसके होंठों से मिला दिए। उसके होंठ कोई हरकत नहीं कर रहे थे पर जैसे जैसे कुछ लम्हे बीते, उसने साथ देना शुरू कर दिया।

मैं खिड़की की तरफ था, उसने मुझे किनारे पर लाकर मेरे होंठों को खा जाने सा यत्न करने लग गई। बड़ी मुश्किल से मैं उसे खुद से अलग कर पाया।

हमारी ज्यादा बातें नहीं हुई, हम बागडोगरा पहुँच गए, हमने एक टैक्सी किराये पे ली और भूटान की तरफ चल दिए। यान से उतरने के दौरान मैं उसके बदन पर गौर कर पाया- 5’6″ की लम्बाई.. भरा पूरा बदन और उस पर हल्के नारंगी रंग की सलवार कमीज !

पता नहीं क्यों पर चलते वक़्त मेरे हाथ उसकी कमर पर चले गए और उसने भी अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया।मैंने उससे पूछा- क्या मैं तुम्हें पारो बुला सकता हूँ..?

उसने हाँ कहा।

टैक्सी के अन्दर वहाँ के नज़ारे और ठंडी ठंडी हवा ने मुझे नींद की आगोश में भर सा दिया।

अब मैं अपने स्वप्न में था.. मैं एक कमरे के अन्दर था और सामने घूँघट में पीहू थी.. मैं धीरे से उसके पास पहुँचा.. और घूँघट उठाते हुए उससे कहा-

छुपाती क्यों हो अपने हुस्न को?

कि आज तो प्यार की रात है,

यूँ नज़रें नीचे ना करो,

मुझे देखो और मुझमे खो जाओ

कि आज इकरार की रात है.. !

उसने मुझसे कहा-

शर्म और हया भी कोई चीज़ होती है मेरे सनम,

कैसे समा जाऊँ तुझमें मेरे सनम

कि नखरे और अदा भी कोई चीज़ होती है..

फिर मैंने कहा-

ठीक है दूर ही रहो फिर मुझसे,

कि अब पास कभी न आना,

मर जाऊँगा तुमसे दूर जा के

तब मेरे ज़नाज़े से शरमाना…

मैंने इतना कहा ही था कि वो मुझसे कस के लिपट गई, उसके आंसुओं की बूंदें मुझे मेरे गाल पर महसूस हो रही थी..

वो मुझसे कस के लिपट गई, उसके आंसुओं की बूंदें मुझे मेरे गाल पर महसूस हो रही थी..

एक नए एहसास के लिए मैं तैयार था, मैंने उसके होठों को अपने होठों से मिला लिया, आज शायद मैं उतना बेसब्र नहीं हो रहा था, आराम से उसके निचले होठों को अपने जुबान से तराश रहा था, गालों पर जो डिंपल बन रहे थे उसे देख कर मैं अंदाजा लगा सकता था उस शर्म और हया का जो हर लड़की पहली बार महसूस करती है।

मुझे उस पर प्यार आ गया, मैंने धीरे से उसके गालों और माथे को चूम लिया।

वो अब तक मुझे कस के पकड़े हुए थी, मैंने उसे अपने गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। अब उसके कपड़े उतारने लगा मैं ! धीरे धीरे उसके सारे वस्त्र अलग कर दिए, बिस्तर की सफ़ेद चादर पर गुलाब के फूलों के बीच उसका बदन जैसे ऐसा लग रहा था मानो हजारों गुलाब अपनी इस नाज़ुक कलि को छुपाने का प्रयास कर रहे हों और मैं भंवरा बन उसके सारे रस को निचोड़ लेना चाहता था।

मैं खड़े खड़े ही अपने होठों को उसके होठों से लगा दिया.. फिर थोड़ा अलग हो अपनी साँसों की गर्मी उसके सारे शरीर पर देनी शुरू कर दी मैंने !

मैं उसके चेहरे से पैर की उँगलियों तक उसे चूमता, फिर थोड़ा अलग हो अपने साँसों की गर्मी उसके जिस्म के उस हिस्से पर देता। जब जब मैं चूमता और फिर अपने चेहरे को हटाता, वो अपने जिस्म के उस हिस्से को उठा कर फिर से मेरे होठों से मिलाने का प्रयत्न करती। प्यार अगर संगीत की तरह है तो हम जैसे उसकी लय पर थिरकने वाले पारंगत नर्तक की तरह नृत्य कर रहे थे। मैं उसे चूमता हुआ अपने सारे कपड़े उतारने लगा। मैं तो बस प्रेम के नृत्य में मग्न उसकी सूरत निहार रहा था।

उसकी चेहरे की भाव भंगिमा मुझे व्याकुल किये जा रही थी।

अब उसके करीब आ उसे अपनी बांहों में भर लिया मैंने, उसके होठों को चूम कर आँखों ही आँखों में उसकी आज्ञा ली मैंने ‘आगे बढ़ने की !’

उसने मेरे ललाट को चूम मुझे मौन स्वीकृति दे दी। मैं उसके कंधों को चूमता हुआ उसके स्तनों तक पहुँचा, दांतों से और जिव्हा से मैंने हल्के हल्के आघात करने शुरू किये, उसने भी अपनी सिसकारियों के माध्यम से जवाब दिया मेरे प्यार के हर वार का.. उसके नाख़ूनों का हल्का दबाव मैं अपने जिस्म पर महसूस कर सकता था। अब मैंने अपने सफ़र को थोड़ा और आगे बढ़ाया, अब मैं उसके नाभि से होता हुआ उसके मुख्य भाग तक पहुँचा, मेरे प्यार भरे होठों का स्पर्श महसूस करते ही हलकी सी झनझनाहट मैंने उसके जिस्म में महसूस की।

मैंने अपनी साँसों से पहले अपने होने का एहसास कराया, तब उसके योनि पुष्पों के आसपास चूमना शुरू किया। मेरे बालों में उसकी उँगलियों का कसाव मुझे उसकी हालत का पता बता रहा था। अब मैं अपने जिव्हा से उसके मादक पुष्पों के रस का स्वाद लेने लगा.. मैं अपनी जीभ से उसके दाने को छूता और फिर लम्बी साँसें छोड़ते हुए अपना मुख हटाने लगता। जैसे मैं अपना मुख वहाँ से हटाने को होता वो अपनी कमर ऊपर कर के और मेरे चेहरे पे दबाव बना फिर से मेरी जीभ अपने दाने के पास ले आती। काफी देर तक यह खेल चलता रहा जब तक उसने अपने इस मिलन की पहली वर्षा ना कर दी।

अब मैं बेकाबू हो रहा था, मैं उसके ऊपर हुआ और उसकी टांगों को अपने कंधे पर रख लिया, उसकी योनि द्वार पर अपने लिंग से थोड़ा दबाव बनाया और वो हर बाधा पार करता हुआ उसके जिस्म में समा गया।

एक हल्की सी चीख ने मेरा ध्यान भंग किया। मैंने देखा उसकी आँखों में ख़ुशी और दर्द दोनों का एहसास था। उसकी आँखों से निकलते आँसुओं ने मुझे उसके दर्द का एहसास कराया, मैंने उसके होठों को चूम कर थोड़ा सामान्य होने का मौका दिया। मैं चूम ही रहा था कि मुझे अपने कमर के पास थोड़ी हरकत महसूस हुई, मैंने देखा कि अब उसके चेहरे के भाव बदल से गए थे। अब बस जैसे आनन्द की अनुभूति थी, दर्द का नामो निशाँ भी नहीं था..

मैंने भी अपने धक्कों की रफ़्तार को तेज़ कर दिया, अपनी उँगलियों से उसके होठों को छेड़ रहा था और अपने मुख में उसके स्तनों को भर लिया था। इसी अवस्था में जब मैंने फिर से कसाव सा महसूस किया तो अब पूरी रफ़्तार से मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। उसके चरम पर पहुँचते ही मैं भी उसके साथ साथ चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया..

मैं उसकी आँखों में देख रहा था और तभी उसने एक शरारत की और मेरे गालों पे अपने दांत गड़ा दिए। मैं बस अचानक ही नींद से जाग उठा…

मैंने देखा पारो हँस रही थी और मेरे गालों पे निशान बन आये थे, मैंने ड्राईवर से गाड़ी किनारे करने को कहा।

तब पारो ने पूछा- क्या हुआ जनाब?
 

naqsh8521

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मैंने कहा- मूत्र विसर्जन की जरूरत है मुझे !

वो फिर से हँस पड़ी !

गाड़ी से जब बाहर आया तो देखा चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी, बड़े बड़े चाय के बागान थे और चाय की भीनी भीनी खुशबू हवाओं में थी। मैंने किनारे जाकर अपना अंडरवियर उतारा तो देखा कि मैं तो स्खलित हो चुका हूँ, पहले अपनी जेब से अपना रुमाल निकाला और अपने लिंग और अंडरवियर को साफ़ किया और मूत्र त्याग कर वापिस गाड़ी में आ गया।

पारो ने चिकोटी काटते हुए मेरे कान के पास आकर पूछा- क्यों जी? अभी से यह आलम है तो आगे क्या होगा?

शायद उसने रुमाल फेंकते देख लिया था मुझे !

मैंने उससे कहा- मैडम जी, ये दिल में दबी हुई भावनाएँ थी जो निकल गई, अब हम भीड़ भाड़ से दूर ताज़ी हवा के बीच हैं तो हर चीज़ ताज़ी ही होनी चाहिए न..

उसने मेरी ओर देखा और कहा- बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे..!

फिर उसने मेरे कंधे पे अपना सर रख दिया और थोड़ी देर में हम भारत की सीमा पर बसे इलाके में पहुँच गये।

नाम था उस जगह का ‘जय गाँव’

बड़ा सा दरवाज़ा बना था वहाँ पर जिसके दूसरी तरफ भूटान था। मैंने पारो के साथ उस गेट को पार किया और वहाँ के भारतीय विदेश विभाग के दफ्तर तक गया। पारो ने मुझे रुकने को कहा और खुद अन्दर गई। शायद उसके ओहदे का असर ही था कि बस दस मिनट में वो पास लेकर वापिस आई और साथ में एक सरकारी गाडी की चाभी लाई थी।

मैंने कहा- इसे कहते हैं ओहदे का गलत फायदा उठाना..

वो मेरे पास आई और जवाब दिया उसने- हम अक्सर दूसरों को कहते हैं कि वो भ्रष्ट है, बुरा है, क्यूंकि हमें उस जैसा हसीन मौका जो नहीं मिला होता है। जब मिलेगा तो हम भी वही हो जायेंगे…

मुझे उसकी बातें सही भी लगी।

अब मैं गया ड्राइविंग सीट पर और वो बैठ गई मेरे बगल में ! अब हमारी सफ़र की शुरुआत हुई एक हसीन सफ़र की जिसने हम दोनों की जिंदगी ही बदल दी..

अब शुरुआत हुई एक हसीन सफ़र की। एक हसीन शाम की मेरी जिंदगी की.. ! मेरी अब तक की सबसे खुशनुमा स्मृतियों की ! जिसकी याद से ही अलग सी गुदगुदी, सिहरन दौड़ जाती है दिल में !

मैं ड्राइविंग सीट पर था और पारो मेरे साथ बैठी थी। करीब सौ किलोमीटर का सफ़र था और पूरे रास्ते तंग पहाड़ी घाटियों से गुजरते थे। जिधर भी देखो उधर बस पहाड़, हरियाली और बहुत ही शांत वातावरण था।

तभी मुझे मेरे पैरों पर कुछ महसूस हुआ, मैंने देखा वो मुस्कुरा रही थी और फिर मैंने भी एक हल्की सी मुस्कान से उसका जवाब दिया।

मैंने पूछा- क्या इरादा है जान?

उसने अपना सर शर्म से दूसरी तरफ कर लिया। शायद एक झिझक सी थी। हो भी क्यों न आखिर किसी को पहली बार इतने करीब आने देना किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं होता।

मैंने कार किनारे करके रोक दिया सामने बेहद खूबसूरत नज़ारा था। मैं जिस सड़क पर था अब उसके दोनों तरफ बस बादल ही बादल थे दूर कहीं ध्यान से देखने पर बादलों का सीना चीरते पहाड़ नज़र आ रहे थे।

मेरे लिए तो ये किसी जन्नत के नज़ारे जैसा ही था।

मैं कार से उतर कर उसके दरवाजे के तरफ आ गया। अब उसकी तरफ के दरवाज़े को खोल उसे उठा कर पहले खुद बैठा फिर उसे अपनी गोद में बिठा लिया। वो अब भी शरमा रही थी। मैंने उसका चेहरा अपनी तरफ किया और उसके होठों से अपने होंठ मिला दिए। उस चुम्बन में मुझे खुद में मिला लेने की चाह थी जैसे। मैं चाह कर भी अपने होंठ अलग नहीं कर पा रहा था। यह उसकी जिस्म की प्यास थी या प्यार की भूख, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, बस इतना लग रहा था कि जैसे वो हमेशा के लिए इन लम्हों को अपनी आप में कैद कर लेना चाहती हो।

थोड़ी देर बाद मुझसे अलग हो वो मेरे गले लग गई। धीरे से मेरे कान के पास अपने होंठ लाकर फ़ुसफ़ुसाई- आई लव यू ! तुमने मुझे मेरी जिंदगी वापिस कर दी है। अब तक ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं जिए जा रही हूँ, अपने सपनों के लिए अपने परिवार के लिए ! पर तुमसे मिल कर मैंने जाना कि जिंदगी क्या चीज़ है। यह लम्हा मेरी जिंदगी का सबसे हसीन लम्हा है।

बोलते वक़्त उसकी आँखों में आसू आ गए थे।

मैंने उसके सर को अपने सीने से लगा दिया, मुझे कुछ नहीं समझ में आ रहा था कि मैं क्या कहूँ।

थोड़ी देर बाद मैंने कहा- जान, अब हटोगी भी.. बहुत भारी हो तुम ! देखो, मैं तो दब ही जाऊँगा !

उसने मेरी ओर देखते हुए कहा- अच्छा जी तो इतनी ही कैपेसिटी है आपकी..?

मैंने कहा- जगह पे चलो, तब दिखाता हूँ अपनी कैपेसिटी !

फिर हम दोनों हंसने लग गए। मैं ड्राइविंग सीट पर वापिस आ गया।

थोड़ी देर बाद हम अपने निर्धारित गन्तव्य पर पहुँचे।

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उस जगह का नाम भी ‘पारो’ था। मैं उसकी ओर देख मुस्कुराने लगा। होटल था ताज ताशी ! ताज ग्रुप का होटल था तो बताने की ज़रुरत नहीं है कि कैसा होगा।


मैंने औपचारिकता पूरी की, हम दोनों अपने कमरे में पहुँचे। उस कमरे को देख ऐसा लगा जैसे सफ़र की मंजिल वास्तव में ऐसी ही होनी चाहिए। कमरे में एक बालकनी भी थी जिससे उस पूरी जगह की ख़ूबसूरती का बेहतरीन नज़ारा मिल रहा था। वहाँ की वादियों में हल्की ठंडक थी। मैं तो वादियों का नज़ारा ही ले रहा था कि तभी एक वेटर आकर कॉफ़ी और स्नैक्स दे गया। इस कमरे के दो हिस्से थे, एक में हमारा बिस्तर लगा था और एक किसी अतिथि के लिए बैठने की जगह बनी हुई थी। मैं थका हुआ था ही, सो सीधा बिस्तर पर गिरा पड़ा। पारो नहाने गई थी तो कॉफ़ी के लिए मैंने उसका इंतज़ार करना ठीक समझा।
 
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सूरज डूबने वाला था, मैं वापिस बालकनी में आ गया। वहाँ एक झूला लगा था, उसी पर बैठ गया। एक ओर सूरज डूब रहा था और दूसरी तरफ चाँद बादलों से झाँक रहा था। धीरे धीरे हल्का अँधेरा सा हो गया।

मैं तो बिना पलकें झपकाये उस नज़ारे को देख रहा था, तभी मुझे अपनी आँखों पे एक बेहद नर्म और हल्के गर्म हाथों का एहसास हुआ। मैंने भी कुछ नहीं कहा, बस धीरे धीरे उसके हाथों से उसे महसूस करता हुआ उसके चेहरे तक ले गया फिर उसे छूता हुआ हाथ नीचे उसके उरोजों पे लाने लगा।

मैं उन उभारों के पास पहुँचा ही था कि वो हाथ हटा भागने लग गई। मैंने उसे पकड़ने की कोशिश की तो उसका गाउन मेरे हाथ में आ गया। कस के एक झटका दिया तो कपड़ा फटने की आवाज़ आई और वो सीधे मेरे ऊपर गिर पड़ी, उसका गाउन ऊपर से फट गया था.. लाल रंग का जालीदार गाउन थी, वैसे भी बहुत मुश्किल से ही उसका बदन ढक पा रहा था। मेरे उस झटके ने तो रही सही कसर भी निकाल दी थी। उसने शर्म से अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया।मैं उसके हाथों को चूमते हुए उसके हाथ हटाने लगा। अब मेरे होंठ उसके अधरों का रसपान कर रहे थे। अब वो भी काफी अभ्यस्त हो चुकी थी।

मैं उसे चूमता हुआ उसके कपड़े अलग करने लग गया। अब तो जिस्म पर बस दो अन्तःवस्त्र ही थे। मैंने उनके ऊपर से ही उसे चूमता हुआ सहलाने लगा। वो उसका जवाब सिस्कारियों में ही दे रही थी। जब मैं दांत गड़ाता तब उसकी सिसकारियाँ थोड़ी तेज़ हो जाती और जब मैं आराम से चूमता तब उसकी आवाज़ भी धीमी हो जाती।

झूला भी एक झूलने वाला बिस्तर ही था। ऊपर आसमान, ठंडी हवाएँ जो हमारे तन की आग को और भी भड़का रही थी, चांदनी रात और चाँद सी हसीना का साथ। मैंने उसे चूमते हुए अपने कपड़े भी निकाल दिए। अब मैंने उसकी चोली को उसकी काया से अलग कर दिया। उसके उरोजों का रसपान करने को मेरी जीभ स्वतः ही आगे बढ़ गई, उन उरोजों के अग्र भाग को अपने कामुक वार से घायल करता हुआ चूम रहा था, मेरे ही मुख की लार से मैंने उसके दोनों उरोजों के हर हिस्से को ही गीला कर दिया था। अब तो जैसे उनमें मुझे चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब भी नज़र आ रहा था। मुझे तो अब चन्द्रमा की चमक भी फीकी लग रही थी। मैं किसी तरह उरोजों के मोहपाश से खुद को छुड़ा कर अपनी मुख्य मंजिल की तरफ चल पड़ा। अब उसके जिस्म पर बचा एकमेव वस्त्र भी मैंने उतार दिया। हवाओं की ठंडक का भी अब कोई असर नही था हम पर ! हम तो जैसे खो चुके थे एक दूसरे में। इतनी ठण्ड भी हमारे अन्दर की आग को शांत कर पाने में असमर्थ ही थी।

अब मैं अपनी मंजिल पर था, उसने अपने पैरों के बीच जैसे मुझे कैद ही कर लिया था, मैंने भी अपने मुख का दायरा बढ़ाया और उसकी योनि को खा जाने जा यत्न करने लगा, मेरे जीभ निरंतर उस योनि द्वार पर वार किये जा रही थी।

तभी मुझे कुछ सूझा और अपनी उँगलियों को उसकी योनि की चिकनाई से चिकनी की और उसके पिछले द्वार पर सहलाते हुए अपनी एक उंगली अन्दर सरका दी। इस अप्रत्याशित हमले से वो भी थोड़ी असहज हो गई पर धीरे धीरे उसे इसमें भी आनन्द आने लगा। वो खुद को रोक न पाई और थोड़ी ही देर में अपने प्यार की धार से मुझे नहला दिया।

अब उसकी बारी थी, मैंने अपना लिंग उसके मुख के पास कर दिया। वो थोड़ी असहज थी क्योंकि यह आखिर पहला अनुभव ही था उसके लिए, एक बार उसने मेरी तरफ देखा, फिर धीरे धीरे मेरे लिंग को मुख में भरने लग गई। मैंने उसका हाथ पकड़ा और अपने लिंग पर टिका दिया। हाथों से लिंग को सहलाते हुए और अपनी जिह्वा के वार से मुझे घायल करने लग गई। एक बार तो मुझे लगा जैसे मैं रोक ही नहीं पाऊँगा। पर आज मैं इतनी जल्दी हार मानने वाला नहीं था तो उसके मुख से अपने लिंग को अलग किया और उसके योनिद्वार पर टिका दिया। उसके होठों को अपने होठों से लगा कर थोड़ा दबाव बनाया तो लिंग का अगला हिस्सा उसके अन्दर था।

उसके जिस्म का कसाव मुझे उसके दर्द का आभास करा रहा था। मैं उसे सहलाता रहा और उसके सामान्य होने का इंतज़ार किया और फिर थोड़ा तेज़ दबाव देकर पूरे लिंग को उसके जिस्म के अन्दर धकेल दिया। अब तो वो कुछ भी कहने की हालत में नहीं थी। मैं थोड़ी देर उसी अवस्था में रह कर उसके होंठ और उरोज सहलाता रहा।

जब उसने थोड़ी हरकत की तो फिर मैं उस पर हावी हो गया। उसी अवस्था में करने के बाद अब मैंने आसन बदला। उसे पलट कर पीछे से उसकी योनि में धक्के लगाने लगा। मेरे हर धक्के के साथ झुला भी हिलकर अपनी गति बढ़ा रहा था।अब मैं अपने चरम पे था, तो अपनी गति को बढ़ाकर अपना सारा वीर्य उसके अन्दर ही उड़ेल दिया। हम दोनों साथ साथ स्खलित हो चुके थे। झूलला अब भी हिल रहा था और अब हवाओं का असर हम महसूस कर सकते थे।

मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और कमरे में आकर आपस में लिपट कर सो गए।
 
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